वर्जना (कहानी) : डॉ पद्मा शर्मा
Varjana (Hindi Story) : Dr. Padma Sharma
काल
...यह इक्कीसवी सदी के पूर्वार्द्ध का वह कालांश है, जब मल्टी नेशनल कंपनियों ने देश की अर्थ व्यवस्था के मार्फत समाज पर अपना शिकंजा कस लिया है। कार्पोरेट दुनिया के लोग शेष लोगों के लिए आदर्श हैं, सिर्फ वे ही लाखों में खेल रहे हैं, मजे में हैं, उन को छोड़कर बाकी वर्ग दास वर्ग में है। आर्थिक संसाधन जुटाने के लिए अधिकांश पति-पत्नी घर से बाहर निकल रहे हैं। कई जोड़े तो अलग-अलग शहरों में जॉब करते हैं। सन्तान के मुद्दे पर कोई समझौता नहीं। ... प्रजनन की दारूण यातना और शिशु पोषण के झंझट से बचने के लिए ज्यादातर पति-पत्नी निसंतान रहना पसंद करते हैं। उनके अंदर निहित पितृत्व और मातृत्व के स्रोत सूखते जा रहे हैं...और टेलीविजन के चैनल दिन रात इसका समर्थन कर रहे हैं।
गाँवों से पलायन नई बात नहीं। लेकिन पहले वे लोग भागते थे जो भूमिहीन थे, अब बड़े किसान भी भाग रहे हैं। ज्यादा लोग, सो ज्यादा मकानों की जरूरत। शहर तो बहुमंजिला इमारतों से पट गए हैं और कस्बे बेतरतीब बसाहट से। खेत और यहाँ तक कि जंगल भी, कंकरीट के जंगलों का रूप धारण करते जा रहे हैं। भव्यता और चमक दमक ही इस काल में युवा पीढी की चाहत बन गई है।
देश
यह उस कस्बे की बात हैं जहाँ अर्द्ध नगरीय सभ्यता से लदी-फदी एक नई कॉलोनी में खेत की जमीन मकानों में तब्दील हो चुकी हैं। सब की तरह यहाँ भूमण्डलीकरण और आयातित सभ्यता कस्बाई आदमी की जिंदगी में अतिक्रमण करती जा रही हैं। जीवन मूल्य तिरोहित हो चुके हैं। उचित-अनुचित, स्वीकार्य-अस्वीकार्य, अच्छे-बुरे की परिभाषायें परिवर्तित हो गई हैं। साधन और साध्य की शुद्धता की अपेक्षा सिर्फ इच्छाओं और कामनाओं की पूर्ति पर नई पीढ़ी अधिक बल दे रही है।
खाली प्लॉट
कॉलोनी की पहली सड़क पर दांयी ओर जो पहला मकान है, उसके मेन गेट पर एम0 कुमार की नेम प्लेट लगी है। इस सड़क पर कतार में सारे मकान बन चुके और बस चुके हैं, सिर्फ एम0 कुमार के सामने एक चालीस बाई साठ का सपाट-समतल प्लॉट कुछ दिन पहले तक मूल स्थिति में मौजूद था, जिसे बड़ी हसरत से एम0 कुमार देखते और कल्पना करते कि इस पर कैसा मकान बनेगा। ...कैसे लोग रहने आयेंगे... उनके क्या अंदाज होंगे।
कॉलोनी में बाकी के तमाम मकान उन ग्रामीणों के हैं जो खेती को घाटे का सौदा मानकर खेत बटाई पर या ठेके पर देकर शहर में बस गये हैं। एम0 कुमार साहब के सामने का प्लॉट जो खाली है और फिलवक्त लावारिस भी... उसे कॉलोनी भर के लोगों ने कूड़ा फेंकने की जगह में तब्दील कर दिया है। वह खाली प्लॉट जो किसी के सपनों और कल्पनाओं की जमीन था- सुअरलैण्ड बन कर रह गया है।
...होनी की बात कि दूसरे कस्बों की तरह इस कस्बे में भी चिकनगुनिया नामक बुखार फैला, सो जिला प्रशासन और स्वास्थ्य महकमा चेत गया। नगर पालिका ने कॉलोनी में इस वायरस जनित बीमारी का स्रोत इसी खाली प्लॉट को अधिकृत किया, सो आरंभ हुई भूखण्ड के असली मालिक की तलाश और खोज।
पुराने कागज पत्तर पलटे गये। कॉलोनी बसाने वाले ट्रस्ट ने खोज कर बताया कि इसके मालिक हैं मिस्टर पी0 रस्तोगी जो बिजली विभाग में इंजीनियर हैं। एक दिन वे अपना प्लॉट देखने आये तो लोगों ने जाना कि वे भोपाल के निवासी हैं जहाँ उनके दो पैतृक मकान हैं और फिलहाल इस कस्बे में किराये से रह रहे हैं।
मकान और दोस्ती की शुरूआत
नगर पालिका का सम्मन आया तो मि0 पी0 रस्तोगी ने अपना मकान बनबाना शुरू कर दिया। किसी का मकान बनना आरंभ होते ही अलग-अलग प्रतिक्रियायें होती हैं। पड़ौसी आकुल तो सामने वाला यानी अड़ौसी प्रफुल्ल। पड़ौसी को चिन्ता यह कि मेरे मकान के छज्जे से आगे छज्जा निकल गया तो हमारी शोभा खत्म। चिन्ता तो और भी कई...मसलन पड़ौसी की खिडकी कहाँ खुलेगी ? लॉन कहाँ तक बनेगा ? पहली मंजिल की हाईट क्या होगी ? जबकि अड़ौसी सिर्फ इसी से खुश कि सामने की गंदगी तो खत्म हुई।
मि0 पी0 रस्तोगी को भी कई चिन्तायें सता उठीं...कि सीमेन्ट और सरिया कहाँ रखा जाएगा। टी0एन0पी0 यानी फावड़े-तसला और तगारी कहाँ रैन बसेरा करेंगी ?... सबसे बड़ी फिक्र यह कि राज मिस्त्री और मजदूरों के काम की निगरानी कहाँ बैठ के करेंगे और वक्त जरूरत चाय कॉफी कहाँ ? इन सब चिंताओं से मुक्त किया मि0 कुमार ने सो निश्ंिचत होकर रस्तोगी जी ने भूमिपूजन कर दिया। इस तरह मकान और दोस्ती की नींव बड़ी गहरी खुदी। न लागत का झंझट था न तकनीकी परामर्श का पचड़ा, सो मकान निर्माण तेजी से चल उठा।
मि0 पी0 रस्तोगी ने बताया कि वे पाँच साल पहले शादी तो कर चुके हंै, लेकिन अभी बच्चों की चिल्ल पों से दूर हैं...उन्होंने भी जाना कि मि0 एम0 कुमार वाटरवक्र्स में सुपर वाइजर हैं, उनकी शादी को भी तीन साल हो चुके हैं और वे भी बच्चों की झंझट से कतई मुक्त हैं।
दोनों व्यक्ति सज्जन, दोनों युवा, दोनों फ्री! उनमें सहज प्रारंभिक परिचय के बाद मेलजोल बढ़ गया...और रस्तोगी जी की दो चाय मि0 एम0 कुमार के यहाँ पक्की हो र्गइं। एक सुबह साड़े दस बजे दफ्तर जाते वक्त मि0 कुमार अपने हाथों पिलाकर जाते, दूसरी ठीक साड़े चार बजे उस वक्त जब मिस्टर रस्तोगी की दूसरी विजिट होती और ठीक वही वक्त होता मिसिज कुमार का दोपहर की नींद के बाद की चाय का।
यूँ कभी-कभी मिसेज पी0 रस्तोगी भी अपने मकान का कंस्ट्रक्शन देखने आ जाती, तो मिसेज कुमार के घर में बैठ कर उनकी छककर बातें होतीं। दोनों स्त्रियाँ पर्याप्त पढ़ी-लिखीं, कमसिन, फैशनेबुल, बातूनी और दोेनों भावी पड़ौसिन।...
और सबसे बढकर दोनों अपने-अपने मायकों को रईस बतातीं। मध्यवर्गीय आधुनिक स्त्री जो कथासरित्सागर और किस्सा गुल बकावली जैसी अनंत विस्तार की कथाओं की आधुनिक परंपरा में टेलीविजन के चैनलों पर चलने वाली कथा की नियमित व दत्तचित्त दर्शक जिन्हें अधिकांश चालाक और रंगीन मिजाज स्त्री चरित्र गुदगुदाते यानी लुभाते व स्पृहा से भर देते। सो, दोनों में खूब पटने लगी। चर्चा में अचार-मुरब्बे पड़ते, साड़ियों की पसंद देखी जाती, ज्वेलरी के डिजाइन पर बहस होती और... कुछ अंतरंग किस्से बांटे जाते।
मिस्टर रस्तोगी और कुमार बार-बार मिलते। उनकी रुचियाँ मिलती थी, विचार मिलते थे। सो, घनिष्टता खूब बढ़ गई। मिसेज कुमार अब रस्तोगी दम्पति के लिए ‘‘भाभी जी‘‘ बन गईं और मिस्टर एम0 कुमार हुए कुमार साहब। उधर मिस्टर एण्ड मिसेज कुमार के लिये मिसेज रस्तोगी ‘‘भाभी जी‘‘ हुई और मि0 पी0 रस्तोगी को संबोधन मिला रस्तोगी साहब। त्यौहारों-उत्सवों पर दोनों पुरुष अपनी-अपनी भाभियों के बेहिचक पैर छूते।
साल भर के अरसे में भवन निर्माण पूरा हुआ और आनन-फानन में उद्घाटन का भव्य आयोजन भी... जिसमें कॉलोनी के दीगर वासियों से रस्तोगी दंपति का ‘‘परिचय‘‘ और ‘‘हलो-हाय‘‘ का मौका मिला। पर दोस्ती हुई तो कुमार दंपति से ही। दोनों मर्द एक सी कद काठी के। दोनों हट्टे-कट्टे। दोनों स्मार्ट और हैण्डसम। दोनों पुरुष ड्रिंक के शौकीन। जल्दी ही हमप्याला, हमनवा और हमराज बन गए। प्रत्येक शनिवार दावतें होती। कभी इनके यहाँ कभी उनके। दोनों सज्जन थियेटर भी साथ जाते तो सायवर कैफे भी।... अचरज यह कि मिस्टर रस्तोगी को इंटरनेट पर भारतीय मिथ कथाओं और पुराणों की अनेक नई व्याख्यायें और क्षेपक कथायें पढने को मिलती और दोनों ड्रिंक के वक्त उन पर विमर्श करते। दोनों का दूध वाला, इस्तरी वाला, किराने वाला और कामवाली बाईयाँ एक ही थीं।
इस तरह एक-दूसरे की फेमिली का ध्यान भी रखा जाने लगा। कभी मिसेज रस्तोगी को बाजार तक जाना होता और रस्तोगी जी व्यस्त होते तो कुमार साहब स्कूटर पर बिठा ले जाते। मिसेज कुमार की ब्यूटी पार्लर की ड्यू-डेट होती और कुमार साहब नदारद तो मि0 रस्तोगी हाजिर होते अपनी वाइक के साथ। इनकी रसोई की गंध उनके यहाँ तो उनकी डिश का स्वाद इनके यहाँ मिल जाता। कटोरी संस्कृति कुछ भी नहीं, थाली संस्कृति अपनाई जाने लगी। बीच की सड़क तो मानो आंगन बन गई। मिस्टर रस्तोगी की बाइक कुमार साहब के दौरे के वक्त गाँव का चक्कर लगाती, बदले में रस्तोगी साहब स्कूटर उठा ले जाते। लैदर की जैकेट, कश्मीरी टोपी और एयरगन का तो असली मालिक ही पता नही चलता था। महिलाएं भी एक-दूसरे की साडियां, कॉस्मेटिक, सेण्डिल और पर्स ही नही ज्वैलरी की भी अदला-बदली कर पहन लेतीं।
गर्मी का उत्ताप और पर्यटन
यूँ तो गर्मी का आरंभ अप्रेल से होता है, लेकिन इस बरस मार्च से ही सूरज का प्रचण्ड ताप उत्पात मचाने लगा। सब दूर त्राहि-त्राहि मच गई। गर्मी का उत्ताप बदन में ही नही मन और मस्तिष्क में भी चढ़ने लगा, तो ठण्ड की चाह पैदा हुई। अब तक सही संग साथ न मिला था, सो रस्तोगी और कुमार लोग कही धूमने न निकले थे, अब संग भी सही था और साथ भी।
एक दिन कुमार साहब ने सहज भाव से किसी हिल स्टेशन पर जाने की चाह प्रकट की, तो फटाफट तीनों सहमत हो गए। मई-जून में तो सब जाते हैं लेकिन इन दोनों घरो में न बच्चे थे न पढ़ने का झंझट, सो समय और पैसे की थोड़ी बहुत इफरात भी, इसलिए- अप्रेल में ही कार्यक्रम बन गया। आनन-फानन पर्यटन की योजना बनी। प्रमुख स्थानों को लेकर विचार विमर्श हुआ, अन्ततः नैनीताल के नाम पर सबकी मुहर लगी। बंधी दिनचर्या से हटकर दो-चार दिन बेपरवाह और मौजमस्ती में बिताने की ललक से दोनों जोड़े हँसी खुशी रवाना हो गए।... लालकुंआ रेल्वे स्टेशन तक रेल फिर एक टैक्सी से नैनीताल। नैनीताल में झील में बने होटल में पढ़ाव। रूम नम्बर एक सौ चार में कुमार दम्पत्ति और एक सौ पांच में रस्तोगी लोग। पहले दिन थोड़ा विश्राम कर माल रेाड़ पर घूमने निकले तो नजारा कुछ और ही था। ज्यादातर युवा जोड़े। सब गलबहियाँ डाले। सब एक-दूसरे में खोये। सब उन्मादित। चारों ओर हरीतिमा। ऊँचे पहाड़। नैनी झील का शांत सौन्दर्य। पहाड़ी मौसम। कमनीय माहौल...ऐसी कमनीयता जिसे ऊध्र्वगामी किया जाय तो सुमित्रानंदन पंत का छायावाद साकार हो जाय और अधोगामी हो जाय तो ‘राम तेरी गंगा मैली‘ की फिल्मी पटकथा मुकम्मल !
माल रोड़ पर किसी ने बताया- यहाँ की सबसे ऊँची पहाड़ी पर जाने के लिए शानदार रोप-वे बनाया गया है। अलग आइटम, अलग अहसास और अनूठी जगह। मि0 रस्तोगी ने फटाफट चार टिकट लिए और रोप-वे के आरंभिक केन्द्र पर हाजिर हो गये चारों। एक ट्रिप में बारह लोग बैठाये जा रहे थे। अपनी बारी पर वे चारो ट्रॉली मे चढे़ तो नीचे फैली हरियाली औेर दूर तक पसरी घाटी ने महिलाओं के बदन में फुरहरी पैदा कर दी।... और ट्रॉली ने ज्यों ही झटके के साथ अपना सफर शुरू किया मिसेज कुमार अचानक घबरा उठीं। अकबर्काइं तो आँखे मूंद लीं। कुछ न सूझा तो सहारे के लिये हाथ बढ़ाया एक मजबूत बांह का स्पर्श हुआ। मिसेज कुमार ने रोमावली से भरी यह बांह कसकर थाम ली। कुछ क्षण बाद संयत हुई तो आँखे खोल दीं। वे चांैक उठीं। अब तक उन्होंने कुमार साहब का हाथ समझकर जो हाथ थाम रखा था, दरअसल, वह पड़ौसी रस्तोगी जी का था।
बिजली-सा झटका लगा। शर्मसार र्हो आइं यकायक। झटके से हाथ छोड़ नजरें फेर लीं उन्होंने। कनखियों से देखा, सब बाहर झांक रहे थे। उनकी ओर देखने की किसी को फुरसत कहाँ थीं, सिवाय रस्तोगी साहब के ! अजीब सी सनसनाहट भर गई थी सारी देह में... यूं तो पहले कई दफा रस्तोगी साहब के साथ बाइक पर बैठी हैं! स्पीड ब्रेकर या झटके से लिए गए ब्रेक पर असंतुलित हो टकराई भी है, रस्तोगी साहब की पीठ से, लेकिन आज..., आज-सा तो पहले कभी नही लगा। दिल वेकाबू था, इस कदर कि अगर कोई तनिक-सा चीर दे तो उछलकर बाहर गिर पड़े।
...दूसरों की तरह वे भी बाहर झांकने लगी। ट्रॉली धीरे-धीरे पहाड़ी के शिखर की तरफ ऊँची उठ रही थी। अचानक नजरें उठी तो पाया, रस्तोगी साहब कनखियों से उन्ही पर नजरें गढ़ाये थे। वे झेंप गईं। मिसेज रस्तोगी को देखा तो हठात् उनके वे शब्द याद हो आये, जो उन्होंने कभी कहे थे, ‘‘रस्तोगी जी बड़े रोमांटिक तबियत के हैं, पहली रात में ही मेरी सारी झिझक निकाल दी... जब भी छूते हैं तो सारा बदन थरथरा उठता है, एक अलग अहसास होता है यह।’’
झटके के साथ ट्रॉली रुकी तो विचारों को झटका लगा। सब हड़बड़ी में उतर रहे थे। वे बैठी रह गईं। देखा रस्तोगी साहब एक सुदर्शन और आकर्षक व्यक्ति हैं - एक मोहक व्यक्त्तिव। आखिर में उतरीं तो कुमार साहब ने हाथ बढ़ाकर उनकी हथेली को बड़ी कोमलता से थाम लिया और बडे़ कमनीय अंदाज में उन्हें ट्रॉली से उतरने में मदद की।
अब वे पहाड़ी के छत जैसे शिखर पर थे और सामने बने रेस्तराँ की ओर बढ़ रहे थे। मिसिज कुमार को लगा कि रस्तोगी साहब के अन्तरंग क्षणों और पत्नी के साथ किये जाने वाले खास क्रिया-कलाप के बारे सोचना न केवल नैतिक दृष्टि से वरन् अपने दाम्पत्य के हिसाब से भी गलत है, अपने पार्टनर के साथ अंश मात्र में विश्वासघात भी। रस्तोगी जी उनके देवर हैं। उनको लेकर इस तरह सेाचना...छिः-छिः।
सब बैठे थे। वेटर गर्म कॉफी के मग लिए खड़ा था कि अचानक मिसेज कुमार ने पलटकर अपने पति को देखना चाहा और उनका हाथ टकरा गया, वेटर के हाथ की ट्रे से। जो पलट गई और मिसेज कुमार का बायां हाथ गर्म कॉफी से उबल गया। तीखी जलन और तुरंत फफोले पड़ गए मुलायम चमड़ी पर। असह्य पीडा से वे कराह उठीं। मिस्टर रस्तोगी ने जग उठाकर बर्फ का ठण्डा पानी हाथ पर उँडे़ल दिया। कुछ राहत तो मिली। पर पूरा दिन मिसेज कुमार तड़पती रहीं।
दूसरे दिन व्यस्त कार्यक्रम था। ...अन्य प्वाइंट देखने थे।
जानकी ताल में उन सबने एक वोट तय कर ली और नाविक से ताल का चक्कर लगाने को कहा। मंद गति से बहती वोट अभी ताल के बीचों बीच पहुँची थी कि अचानक तेज हवायें चल उठीं। नाव के पीछे लगी छतरी फड़फड़ाने लगी तो नाविक बैचेन हुआ, ‘‘बाबूजी अगर छतरी बंद नहीं करी तो नाव पलट जायेगी... दया करके कोई एक जन उठ के जाओ, बहनजी से छतरी बंद कराओे। एक जन मेरी मदद करो चप्पू चलाओ हजूर।’’
मिस्टर रस्तोगी ने लपक कर चप्पू उठा लिया। छतरी के नीेचे दोनों महिलाए थीं वे उठीं और छतरी बंद करने का प्रयास करने लगीं... लेकिन मिसिज कुमार के हाथ में घाव था, सो वे असफल रहीं। तब संतुलन बनाते हुए मिसिज कुमार नाव के अगले हिस्से की ओर बढ़ीं। और मिस्टर कुमार को पीछे जाने का इशारा किया।
मिस्टर कुमार ने छतरी बंद करने का असफल प्रयास किया। मिसिज रस्तोगी की मदद की और फैली हुई छतरी को देानेां हाथ फैला कर समेट लिया नाव संतुलित हुई। नाविक ने नाव मोड़ी और किनारे की तरफ ले चला।
मिसिज रस्तोगी अभी भी छतरी को दोनों हाथों से दबाये खडी थीं और उनके हाथों के ऊपर थे मिस्टर कुमार के हाथ। सहसा मिसिज रस्तोगी के हाथों में फुरहरी आई और फिर पूरा शरीर चींटियों की मीठी चुभन से भर उठा। हठात् उन्हें ध्यान आया, मिसिज कुमार बता रही थीं, ‘‘ये सबसे पहले मेरे हाथ अपने हाथों में लेते हैं और फिर रोम-रोम इस कदर सिहरन से भर देते हैं कि समर्पण के सिवा फिर कोई चारा नहीं रह जाता।...’’
बोट किनारे लगने तक मिसिज रस्तोगी बेसुध-सी मिस्टर कुमार को निहारती रहीं।
अलमोड़ा, रानीखेत और कोसानी
उन लोगों के बनाये प्लान अनुसार अलमेाड़ा-कोसानी के लिए तीसरा दिन और रानीखेत घूमकर लौटने के लिए चैथा दिन नियत था। वे लोग बस में सवार हुए। घुमावदार रास्तों ने दोनों महिलाओं का जी हलकान कर दिया, उन्हें चक्कर आने लगे और जी उमछा उठा। अलमोड़ा में बस एक रेस्तराँ पर रुकी तो दोनों पुरुष लपक कर नीचे उतरे।
मिस्टर रस्तोगी ने आम के स्वाद वाले कोल्ड ड्रिंक की बोतल ली- उन्हें पता था कि यह मिसिज कुमार की पसंद है। मिस्टर कुमार कोक ले आये जो मिसिज रस्तागी को बेहद प्रिय था।
अलमोड़ा घूमकर वे लोग थके-मांदे कोसानी पहुंचे। होटल मैनेजर ने बताया कि यहाँ का सनराइज बेहद सुंदर होता है। सुबह जल्द ही वे लोग सनराइज प्वांइट पहंुचे और एक चट्टान पर जमकर बैठ गए। सुरक्षा के लिहाज से बीच में महिलाएं थीं और दोनों तरफ दोनों मर्द। जल्दबाजी में बैठने का क्रम गड़बड़ा गया था। मिसिज कुमार के निकट मि0 रस्तोगी थे और मिस्टर कुमार के पास मिसिज रस्तोगी। तब सनराइज क्षितिज पर नहीं, चारों के भीतर हुआ। वे अन्दर ही अंदर एक सुखद अहसास की अनुभूति से लबरेज थे। दोनों पुरुष अभिभूत हो रहे थे।
सो, नैनीताल लौटते हुये चारों अपने आप में गुम थे।
उनके होटल में कोई जश्न-सा दिख रहा थां। मैनेजर ने बताया कि होटल की एनीवर्सिरी है, इसलिये रात को सारे ग्राहक डांस फ्लोर और डाइंनिंग हॉल में आमंत्रित हैं।
डांस फ्लोर
तब सांझ ढल रही थी जब वे चारों सजसँवर कर नीचे पहुँचे। डांस फ्लोर पर जलती बुझती लाइट और तेज लय के संगीत की जुगलबंदी थी। ग्राहक आ रहे थे और मैनेजर इन्हे डांस फ्लोर पर आने की दावत दे रहा था। आज की थीम थी- ‘पार्टनर चेंज’।
मिस्टर कुमार और रस्तोगी को बुलाया गया तो तुरंत उठ खड़े हुए। लेकिन उन्हें तुरंत बैठ जाना पड़ा, दोनों की श्रीमतियाँ सन्नाटे में जो थीं। मिस्टर कुमार ने अपनी मिसेज को समझाया ‘‘देखो भाई अब इस कल्चर में आये हैं तो यहाँ के एटीकेट भी सीखने होंगे।... देखो सब लोग हम लोगों को कैसी नजरों से देख रहे हैं... चलो उठो, बकअप।’’
दोनों महिलाओं ने झिझक के साथ सिर हिलाया। एक-दूसरे को देख उदासीन भाव से अपने-अपने पति को देखा और उनकी आँखों में मनुहार देखकर उठ खडी हुईं।...
पांच मिनट बाद दोनों जोडे़ डांस फ्लोर पर थे। डे-थीम के मुताबिक पार्टनर बदलना जरूरी था। सो, मिस्टर कुमार उस वक्त मिसेज रस्तोगी की कमर में हाथ डाले कदम से कदम मिला कर डांस कर रहे थे और मिस्टर रस्तोगी के साथ मिसिज कुमार थीं।
मि0 कुमार के कदम बेहद उतावले से थे। उनकी तेज हो आई सांसें मिसिज रस्तोगी के दायें कंधे से टकरा के एक नई तान छेड़ रही थीं। नई-सी तान...। मिसिज रस्तोगी का सीना धोंकनी के समान उठने-गिरने लगा। एक अव्यक्त, अपरिभाषित चाहत जन्म ले रही थी, गोया।...
उधर मि0 कुमार अजीब स्थिति में थे। मिसिज रस्तोगी के चेहरे पर एक चोर नजर डाली तो पाया, आँखें बंद थीं उनकी। गुलाबी सर्दी के पहाड़ी मौसम में भी पसीने की नन्हीं बूंदें ! तब टकटकी लगाकर देखा और पाया कि वे आज पहले से अधिक सुन्दर, अधिक मोहक और अधिक कमनीय दिख रही थीं। गाना चल रहा था-‘‘मौसम है आशिकाना...।’’
मिसिज कुमार को रोप-वे की ट्रॉली का स्पर्श याद आ रहा था और वे शर्म से गड़ी जा रही थी। एक अलग ही वातावरण था, एक आनोखा नशा रग-रग में समाया हुआ। सकपका गईं मिसेज कुमार। सभीत हिरणी की भाँति नजरें झुका लीं उन्होंने। फिर काँपते गात के साथ चोर निगाहों से दूसरे जोड़ों को देखा।... डांस फ्लोर पर सब एक-दूसरे में खोए हुए। यहाँ तक कि एक कोने में मि0 कुमार और मिसेज रस्तेागी भी।... तभी यकायक बत्तियां बुझीं और संगीत तेज हो गया।
धड़कने तेजी से बढ़ गईं उनकी। फिर हॉल रौशनी से जगमगा उठा। संगीत थम गया। सारे जोड़े वापस अपनी टेबिलों पर लौट आए। लौटे तो किसी ने कोई बात नहीं की। सब अपनी ही धुन में थे। सबके मन में अलग ही किस्म की खदबहाहट थी। नये प्रकार का सुरूर सबकी आँखो में था।
पाँच मिनट बाद होटल मैनेजर फिर माईक पर था, वह निवेदन कर रहा था एक नये कंपटीशन में शामिल होने का। इसमें भी पार्टनर बदल के डांस करना था, लेकिन थीम थी लेडी पार्टनर के सिर पर गोल फल साधे रखने की। रस्तोगी और कुमार ने कोई दिलचस्पी नही दिखाई। लेकिन कई नयी उम्र के जोडे फटाफट तैयार हो गये और सुर में बजती धुन पर कदम थिरकने लगे। इस प्रतियोगिता में एक विदेशी जोड़ा सबसे ज्यादा देर तक नाचता रहकर माथे पर संतरा साधे रहा।
...रात के ग्यारह बज रहे थें। वेटर ने आकर खाने का ऑर्डर पूछा तो महिलाओं ने एक स्वर में इंकार कर दिया । पुरुष लोगों ने बाद में खाने की इच्छा व्यक्त की। वे ड्रिंक लेना चाहते थे। दोनो महिलाएं उठ खड़ी हुईं। वे अब बिश्राम करना चाहती थीं। शरीर तो थके ही थे। मन भी बोझिल दिख रहे थे दोनों के। पतियों की सहमति पाकर दोनों अपने-अपने रूम में आ गईं। दोनो पुरूष वार में चले गये।
रूम नम्बर एक सौ चार और पांच
अपने रूम नम्बर एक सौ चार में पहुँच कर मिसिज कुमार ने कपड़े बदले और बिस्तर पर लेट गईं।
और रस्तोगी जी को याद कर मिसेज कुमार का मन सचमुच ही थरथराने लगा...। फिर जैसे, झटका लगा। अंतर्मन जाग्रत हुआ और वे सेाचने लगीं, कि- मैं पर पुरुष को याद करके कितना पाप कर रही हूँ... पाप क्या, बल्कि अनैतिक काम है ये तो।
और तभी उनका दूसरा मन जाग उठा... जिसने सुझाया कि- प्रकृति ने सिर्फ दो जातियाँ बनाई हैं- नर और मादा। दोनों के बीच की यह विवाह संस्था तो बाद में बनी। हमारे ग्रंथ-पुराणों में काम चिंतन और प्रणय संबंधों को कही भी वर्जित नही किया गया। यम और यमी याद आने लगे।यह समाधान पाकर मिसिज कुमार का मन असाधारण रूप से शांत हो गया। उन्हें लगा वे कही भी गलत नही हैं।
रूम नं0 105 में मिसिज रस्तोगी भी बड़ी पसोपेश में थीं। कई बार प्रयास किया कि मि0 कुमार के संबंध में न सोचें लेकिन जितना अधिक इच्छाओं और भावनाओं को प्रतिबंधित किया जाये वे उतनी ही तेजी से उत्तुंग हो उठती। गर्म तेल में पड़ी पूड़ी को जितनी दबाओ उतनी अधिक फूलती है। सहसा उन्हें डांस फ्लोर पर आज हुए अहसास याद हो आया।
एक जमाना था जब उन्हें अपने रूप यौवन और उसके दर्प का अहसास था। कितने ही लोगों ने उन्हें चाहा लेकिन आज तक कोई उनकी उंगली भी नही छू पाया। और आज कितना कुछ हो गया ! कदाचित वे पूर्व-सी सख्त हो गई होतीं तो मिस्टर कुमार की क्या हिम्मत थी कि... किंतु अब तो उनकी काल्पनिक छुअन उन्हें अंतरिक्ष-यात्रा पर लिए जा रही थी। अब उन्हें लग रहा था कि इसके आगे की कल्पना से पहले वे ढह जाएंगी। धरती में सूराख हो जाएगा और वे पेंच पड़ी पतंग-सी कट जायेंगी नाहक।...
मगर थेाड़ी देर में सचेत हुई तो वही द्वंद्व फिर उभर आया। पहले आत्म ग्लानि महसूस होने लगी, कि- किसी गैर मर्द के बारे में इस तरह सोचते हुए वे अपने पति के साथ विश्वासघात कर रही हैं। कितनी घिनौनी बात है ये।‘‘ किंतु मन ने तर्क दिया कि- कौन नही जानता कि सुभ्रद्रा ने सगी बुआ के लडके अर्जुन को अपनी देह सोंपी थी। विष्णु और वृन्दा का संबंध। कुन्ती ने तो छह देवताओं का आह्वान किया और हरेक से संतान पाई।
अपराध बोघ सिरे से शांत हो गया था। ...और मि0 कुमार को लेकर वे मीठी नींद में चली गईं।
वार रूम
मि0 कुमार और मि0 रस्तोगी होटल के वार हाउस में जाकर ड्रिंक करने लगे। समीप की टेबल पर कई जोड़े बैठे थे, दो-दो और तीन-तीन के ग्रुप में। एक वही विदेशी जोडा था, जिसने संतरे को माथे पर रखकर सबसे ज्यादा देर तक डांस किया था। ताज्जुब कि वहाँ बैठी महिलाएँ भी हाथ में गिलास लिए बेझिझक ड्रिंक कर रही थीं। भारतीय जोड़े भी मस्ती के मूड में थें। एक फैशनेबल युवक अपने हाथ में लिये गिलास से कभी एक युवती को पिलाता तो कभी दूसरी को। पहनावे से सब युवतियाँ विवाहित दिखती थी, पर कौन किस की पत्नी है, यह समझ में नही आ रहा था।
कहना न होगा कि कोई मर्यादा न थी। कोई झिझक नहीं। लाज-शर्म का तो नामोनिशान नहीं। सब नशे में डूबे थे।... सब पराई पत्तल के जुगाड़ में।
मि0 कुमार और मि0 रस्तोगी अभी तक जिसे मजाक समझ रहे थे, वह हकीकत में बदल गया था।... उजबक की तरह वे एक-दूसरे को घूरते हुए खामोशी में बैठे रह गये थे। नशा हिरन हो गया था। मन में घृणा, खीज और चिंता ब्याप गई थी। अंततः मि0 कुमार ने चुप्पी तोड़ी, ‘‘क्या आधुनिकता है यार। पूरा वेस्टर्न कल्चर घुस आया हैं इन टूरिस्ट प्लेसों पर। ये... ये... छोकरे किस दुनिया में रह रहे हैं, रस्तोगी साहब!’’
जवाब देते हुए रस्तोगी साहब बोले, ‘‘दुनिया की शुरूआत से लेकर अब तक यही किस्सा चल रहा है कुमार साहब। ब्रह्मा की संतान मनु सतरूपा तो आपस में सगे भाई बहन थे। उधर दूसरे धर्म में ईव और एडम या हौआ और आदम जिन्हें कहा गया है, वे क्या रहे होंगे आपस में, सोचिए। तो इस तरह खास चीज है नेचर की बनायी एक मर्द, एक औरत ! बस।’’
और मि0 कुमार दुविधा ग्रस्त हो गए, कि- ‘‘रस्तोगी साहब! मनु स्मृति पढी थी कभी मैंने। उसमें एक लिस्ट दी है मनु ने, जिनसे विवाह यानी यौन संबंध वर्जित हैं।... वे तो सिर्फ पति-पत्नी को अलाउ करते हैं, बाकी सब को नाजायज करार देते हैं।’’
‘‘मनु स्मृति तो बहुत बाद की किताब है, कुमार साहब!’’ रस्तोगी साहब ने फरमाया, ‘‘ इंद्र गौतम का वेष धारण कर अहल्या के पास जाता है... और मजे की बात यह कि इन चरित्रों की कभी कोई आलोचना नही करता। वरन् स्त्रियों को ही कटघरे में खड़ा किया गया, चाहें उनकी गलती हो या न हो। तो क्या ये चरित्र वाकई मिथ हैं। इनकी कथाएँ कपोल-कल्पित हैं? रांगेय राघव ने अपनी प्रागैतिहासिक पुस्तक ‘महायात्रा’ में बताया है कि आरंभ में व्यक्ति अपने परिवार में ही कामे की पूर्ति किया करता था।
‘‘हाँ- लिखा तो फ्रायड ने भी है,’’ मि0 रस्तोगी हाँ में हाँ मिलाते हुए बोले, ‘‘अतृप्त काम-वासनाएँ अचेतन में बैठ जाती हैं। फिर हमें क्यों लगता है कि ये युवक-युवतियाँ नीचता पर उतर आए हैं ? मि0 रस्तोगी ने आगे कहा, ‘‘हिन्दु दर्शन में विवाह के जितने भी प्रकार बताये गये है, उनमे सबसे अच्छा गंधर्व विवाह हैं जिसे देवताओं से लेकर मनुष्यों तक सभी ने अपनाया और समाज ने बकायदा उसे जायज करार दिया।’’
देर तक वे लोग आदम और हौआ, महर्षि पाराशर और धीवर कन्या मत्सय गंधा के संबंधों के बारे में बतियाते रहे थे।
कुमार साहब ने उठते उठते कहा ‘ हमको नहीं पता रस्तोगी साहब, कि मिथक में बताये यह सारे प्रणय प्रसंग कितनी झूठे और कितने सच्चे हैं, लेकिन आज जब हम सभ्यता के इस दौर में है, ये सारे प्रसंग या तो हमको पाषाण कालीन युग में ले जाते हैं या फिर स्त्री के केवल रमणी रूप की याद दिलाते हैं। जबकि सचाई यह है कि स्त्री ने ही इस दुनिया को रहने के लायक बना रखा है, कभी मां के रूप में तो कभी बहन बन कर और अंन्त में बेटी बन कर हमारे मन पर वर्जनाओं के वे बंधन लगा देती है जिनकी बदौलते मनुष्य सामाजिक पुरूष बनता है, अन्यथा नर को तो हर जगह नारी ही नारी दिखेगी और समाज फिर से आदिम समाज में बदल जायेगा।’
चौंकते हुए रस्तोगी बोले, ‘ आप सही कह रहे हो कुमार साहब, बहस-मुबाहिसों में हम लोग कुछ भी बकते रहें लेकिन जब घर-परिवार की बात आती है तो हमे हमारी संस्कृति और नैतिक मूल्य ही बचाते हैं ’
रस्तोगी की बांह में हाथ डाल कर उठाते हुंए कुमार ने बात इस बहस सत्र का समापन यह करते हुए किया, ‘ सामाजिक मर्यादा या यह वर्जना भरे रिश्ते ही हमे ही मनुष्य को पशु होने से रोकते है।’
समय ज्यादा हो जाने पर वेटर ने टोका तो वे अपने-अपने रूम में चले गये।