वारांगना बनी वीरांगना (कहानी) : आचार्य मायाराम पतंग

Varangana Bani Veerangana (Hindi Story) : Acharya Mayaram Patang

कानपुर जहाँ अपनी वीरता और क्रांति के लिए प्रसिद्ध है, वहीं अपनी संगीत– नृत्य कला के लिए भी प्रसिद्ध रहा है। अजीजनबाई का कोठा भी अपने जमाने में नृत्य-संगीत का खास नामी केंद्र था। शहर के बड़े-बड़े रईसजादे नृत्य का आनंद लेने अजीजनबाई के कोठे पर पहुँचने में अपनी शान समझते थे। अजीजन का सुगठित शरीर, खिला हुआ गोल चेहरा और लंबे लटकते झुमके नौजवानों का दिल अपनी ओर आकर्षित कर ही लेते थे। विलासी जीवन की जितनी खासियत, खूबियाँ और बुराइयाँ होती हैं, अजीजनबाई उन सबमें रची-बसी थी।

जून के पहले सप्ताह में ही कानपुर के किले के लिए नानासाहब पेशवा तथा अंग्रेजों में भारी युद्ध हुआ। स्वतंत्रता सेनानियों ने नानासाहब के नेतृत्व में जी-जान से युद्ध किया। अंग्रेजों की सेना को न केवल पीछे हटना पड़ा, बल्कि हार मानकर भागना पड़ा। स्वतंत्रता के लिए युद्ध करने में जहाँ वीर सैनिकों ने आगे बढ़कर भाग लिया, वहीं नारियाँ भी पीछे नहीं रहीं। अजीजनबाई ने कोठे का विलासितापूर्ण जीवन त्यागकर 'मस्तानी महिला मंडली' बनाई। इसी मंडली ने सच्चे देशप्रेम से प्रेरित होकर ऐसे कार्य किए, जिनकी कल्पना करना भी कठिन होता है।

अजीजनबाई तात्या टोपे को अपना नेता मानती थी। तात्या के आदेश पर उसकी मंडली जान हथेली पर लेकर अविश्वसनीय कार्य कर डालती थी। अंग्रेजों के सैनिक शिविर से खुफिया सूचनाएँ एकत्र करने का दायित्व अजीजनबाई को सौंपा गया। उसकी मंडली ने बड़ी चतुराई से अंग्रेज सेनानायकों से अनुमति प्राप्त करके उनकी छावनी में संगीत-नृत्य का कार्यक्रम आयोजित किया। कुछ को नाचने का काम सौंपा गया, तो कुछ को गाने का । कुछ महिलाएँ संगीत के वाद्य बजाने को मंच पर बिठाई गईं, इन्हीं में से कुछ को जासूसी करने के लिए कहा गया। उनकी इस जासूसी ने स्वाधीनता संग्राम सैनिकों का काम बहुत आसान कर दिया। सूचनाओं के आधार पर वे अधिक समय तक सेना से लोहा लेते रहे। एक बार तो इन्होंने अंग्रेजों की सेना को परास्त कर पीछे खदेड़ दिया था।

अजीजनबाई की मंडली ने केवल नाच-गाने का ही काम नहीं किया, अपितु एक और महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। समय-समय पर देशभक्त क्रांतिकारियों को शस्त्र पहुँचाने के लिए भी यह मंडली अपनी जान जोखिम में डालकर आगे बढ़ी। इस कार्य के लिए उन्हें पुरुष - वेष भी धारण करना पड़ा तथा घुड़सवारी भी करनी पड़ी। जहाँ जैसी आवश्यकता हुई, उन्होंने स्वयं को उसी के अनुकूल ढाल लिया। कटि में शस्त्र लटकाए, हाथ में तलवार थामे कानपुर में या बाहर, जहाँ भी जरूरत हुई, अजीजनबाई की मंडली सदैव तत्पर नजर आई। आश्चर्य की बात तो यह है कि इस 'मस्तानी महिला मंडली' को प्रशिक्षण किसी अनुभवी योद्धा से प्राप्त नहीं हुआ था, बल्कि स्वयं अजीजनबाई ने ही मंडली को इन कार्यों के लिए आवश्यक प्रशिक्षण दिया था। यह मंडली युद्ध में घायल सैनिकों की आवश्यक चिकित्सा का प्रबंध भी करती थी।

स्वतंत्रता सेनानियों ने लगातार 21 दिन चले युद्ध में अंग्रेजी सेना के छक्के छुड़ा दिए और अंग्रेजों को हारा हुआ मानकर अपनी अदूरदर्शिता का परिचय दिया। अंग्रेजों ने और सेना मँगवाई तथा फिर से हल्ला बोल दिया और गफलत में पड़े क्रांतिकारियों को घेर लिया। बहुत से क्रांतिकारी मारे गए। कुछ नेता पकड़े गए और कुछ भूमिगत हो गए। अजीजनबाई पकड़ी गई। शहर फिर से अंग्रेजों का गुलाम बन चुका था। आजादी का झंडा, जो कानपुर में लहराने लगा था, फिर उतार दिया गया। सेनापति था हेवलॉक। वह अत्यंत क्रूर और धूर्त था। अजीजनबाई को नर्तकी की जगह सैनिक वेशभूषा में देखकर वह भी कहने लगा, “जहाँ नर्तकी और वारांगना भी आजादी के लिए हथियार उठा सकती हैं, देशप्रेम के लिए अपनी कुरबानी दे सकती हैं, उस देश को अधिक दिन तक गुलाम नहीं रखा जा सकता। "

सेनापति ने अजीजनबाई से कहा, "अच्छा, तुम भी आजाद होना चाहती हो ! फिर क्या तुमको नाचना गाना नहीं पड़ेगा ?" अजीजन खड़ी मुसकराती रही तो उसे और भी आश्चर्य हुआ। बोला, "ऐ! तुम हँसती है ? क्या तुमको मालूम है, गद्दारी करनेवाले को हम मौत की सजा देता है ?"

अजीजन मुसकरा रही थी, मानो उसने कुछ सुना ही न था। वह गुस्से से गुर्राया, "अभी भी टाइम है, तुम माफी माँगेगा तो हम तुमको जिंदा छोड़ देगा । अपनी कंपनी में गाने-बजाने का नौकरी भी देगा। बोलो, माफी माँगता या नहीं माँगता ?" इस बार अजीजन ने जवाब दिया, "माफी! कैसी माफी ? किससे माफी ? क्यों माफी ? मैं कभी माफी नहीं माँगूँगी, कभी नहीं। अपने देश से प्रेम करती हूँ । देशप्रेम कोई पाप नहीं, अपराध नहीं मौत से बढ़कर कोई सजा नहीं होती। मैं मरने से डरती नहीं। डरती तो लड़ने के लिए घर से निकलती ही नहीं।"

सैनिक अफसर चिल्लाया, "ए वार वूमैन! शट अप !" और अपने पास खड़े सैनिक को संकेत किया, "फीयरलेस लेडी ! किल हर ।" संकेत समझकर अजीजन सैनिक के सामने जाकर खड़ी हो गई। अब भी उसके चेहरे पर वही मुसकान थी। भय का लेशमात्र भी नहीं था ।

'धाँय धाँय!" गार्ड ने दो गोली लगातार अजीजन के सीने में उतार दीं। क्रांति की अग्रदूत, देशप्रेम में दीवानी लहूलुहान अजीजन वहीं गिर पड़ी और हँसते-हँसते देश के लिए बलिदान हो गई। पकड़ लिये गए शेष क्रांतिवीर चिल्लाए - "अजीजनबाई जिंदाबाद ! "

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