वनमानुस की चुप्पी : जहूर बख़्श

बहुत पुरानी बात है। रूस में एक गाँव था। वहाँ एक गरीब बूढ़ा और उसकी बुढ़िया रहा करती थी। एक बार बहुत सर्दी पड़ी। उस सर्दी में बुढ़िया चल बसी।

रात हो गयी थी। सड़क पर खूब कोहरा फैला हुआ था। लेकिन बुढ़िया की लाश तो दफनानी थी। इसलिए अपना पुराना कोट पहनकर बूढ़ा घर से बाहर निकला। उसने अपने पड़ोसियों के दरवाजे खटखटाये। उन्हें बुढ़िया की मृत्यु का समाचार बताया। फिर उसे दफनाने के लिए विनय की। पर उस कड़ाके की सर्दी में उसके साथ जाकर बुढ़िया को दफनाने के लिए कोई तैयार न हुआ।

अन्त में बूढ़ा गाँव के पादरी के पास गया। उसने सोचा कि पादरी दयालु हृदय का है, वह जरूर मदद करेगा। लेकिन पादरी ने जब बूढ़े का दुख सुना तो पहले चुप रहा। फिर बोला - तुम्हारे पास रुपये हैं? जानते हो, तुम्हें मुझे इस काम के लिए कुछ रुपये देने पड़ेंगे?

- मैं तो गरीब बूढ़ा हूँ - हाथ जोड़कर बूढ़े ने कहा - इस समय तो मेरे पास एक पैसा भी नहीं है। लेकिन मैं वायदा करता हूँ कि तुम्हारे रुपये मैं दे जाऊँगा।

- तब इस सर्दी में मुझे फुर्सत नहीं है, जाओ। - इतना कहकर पादरी ने किवाड़ बन्द कर लिये। बेचारा बूढ़ा गिड़गिड़ाता ही रह गया। जब किसी तरफ से मदद की आशा न रही तो उसने कुदाल उठायी और कब्रिस्तान पहुँचकर कब्र खोदने लगा।

अचानक बूढ़े की कुदाल एक घड़े से टकरायी। बूढ़ा चक्कर में आ गया। उसने गड्ढे की मिट्टी हटायी। देखा तो सोने की अशर्फियों से भरा सोने का एक घड़ा रखा है। वह खुशी से फूला नहीं समाया। उसने सोचा कि अब उसकी बुढ़िया बहुत अच्छे ढंग से दफना दी जाएगी। फिर वह पादरी और रिश्तेदारों को दावत भी दे सकेगा।

बस उसने चटपट उस घड़े को उठाया और घर लौट आया। जेब में दस अशर्फियाँ डाल लीं। बाकी छिपाकर रख दीं।

बूढ़ा फिर से पादरी के पास गया। पादरी पहले तो झल्लाया, लेकिन जब उसने दस अशर्फियाँ देखीं तो उसको लालच आ गया। उसने सोचा इतना धन तो बड़े-बड़े रईसों को दफनाने पर भी नहीं मिलता। इसलिए वह बूढ़े के साथ चल दिया।

बुढ़िया को दफनाने के बाद, बूढ़े ने सबको बढ़िया दावत दी। पादरी ने ठूँस-ठूँसकर खाया। सबने उस दावत की तारीफ की।

जब सब चले गये तो पादरी ने उस बूढ़े को अकेले में बुलाकर पूछा, “जब तुम मेरे पास पहली बार आये थे, तब तुम्हारे पास एक पैसा भी नहीं था। अचानक इतना धन तुम्हारे पास कहाँ से आ गया? क्या किसी के यहाँ डाका डाला है? या किसी का खून करके लूट लिया है? सच-सच बता दो, वरना तुम्हें पाप लगेगा और ईश्वर सजा देगा।”

पादरी की बात सुनकर बूढ़ा घबरा गया। उसने कहा, “सच बात यह है कि मुझे जमीन में गड़ा हुआ सोने का एक घड़ा मिला। उसमें अशर्फियाँ भरी हुई थीं।”

“ठीक है! मौज उड़ाओ!” - कहकर पादरी चला गया।

बूढ़ा निश्चिन्त हो अपने काम में लग गया। लेकिन पादरी के मन में चैन न था। वह उस धन को हथियाने की योजना बनाता रहा। उसने एक तरकीब सोची और रात होने का इन्तजार करने लगा।

पादरी कद में बहुत छोटा था पर था बहुत चालाक। उसके पास एक बूढ़ा बकरा भी था। रात हुई तो उसने बकरे का वध किया। फिर उसकी खाल, सींग और दाढ़ी निकाली। खाल को ओढ़कर पत्नी से बोला कि उसे सूई-डोरे से सी दे। इसके बाद बकरे के सींग अपने सिर पर लगाये। उसकी दाढ़ी के बाल अपनी दाढ़ी में लगाये।

अब पादरी एक भयानक शैतान की शक्ल का दिखने लगा। वह बूढ़े के घर की ओर चला। रात बढ़ रही थी। बूढ़ा सो रहा था। पादरी ने बूढ़े के घर की खिड़की खटखटायी।

बूढ़े ने पूछा, “कौन?”

पादरी नाक से आवाज निकालकर बोला, “मैं शैतान हूँ।”

“यह तो पवित्र जगह है। तुम्हारा यहाँ क्या काम?” बूढ़े ने घबराकर कहा।

“तुम मेरा धन ले आये हो। मैंने तुम्हारी गरीबी पर दया की थी। सारा धन इसलिए दिखाया था कि जितनी जरूरत हो ले लो। पर तुम ठहरे लालची। तुमने सारा धन ले लिया। अब तुम्हारा काम हो गया है। मेरा धन वापस कर दो।”

बूढ़े ने सोने का घड़ा उठाया। खिड़की खोली। शैतान की भयानक शक्ल देखकर डरते-डरते घड़ा उसके हाथों में थमा दिया।

पादरी इतना सारा धन पाकर बहुत खुश हुआ। वह घर आया। धन को सन्दूक में बन्द किया। फिर पत्नी से बोला कि उसकी खाल के टाँके काट दे। पत्नी ने जैसे ही चाकू चलाया तो पादरी चीख पड़ा। उसके शरीर से खाल चिपक चुकी थी। जिस जगह काटा था वहाँ से खून बहने लगा था।

दोनों बड़े चक्कर में पड़ गये। उन्होंने खाल निकालने की बहुत कोशिश की। पर सफल न हुए। अब सींग और दाढ़ी के बाल भी निकालने की कोशिश की पर वे भी चिपके हुए थे। मजबूर होकर पादरी उसी शक्ल में रहा। उसे अपने पाप का बदला मिल गया था। उसने बूढ़े का धन भी लौटाना चाहा। पर बूढ़े ने उसे शैतान का धन कहकर नहीं लिया। जब तक पादरी जिन्दा रहा, अपनी इस करनी के लिए पछताता रहा। लोग भी उसे बहुत बुरा-भला कहते रहे।

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