वह सुंदरी (कहानी) : पर्ल एस. बक

Vah Sundari (English Story in Hindi) : Pearl S. Buck

मिसेज औमर ने एक नजर रसोई की घड़ी पर डाली। अभी पाँच ही बजे थे, मगर सर्दी के धुंधलके के कारण टोकियो शहर में शाम का झुटपुटा लगने लगा था। बच्चे किसी भी वक्त घर आते होंगे, उम्मीद हैं सेतसु के पैर गीले नहीं हुए होंगे। वह बारह वर्ष की है, उसे बेहतर मालूम होना चाहिए। वह हमेशा सपनों में खोई रहती, जैसाकि इस उम्र की लड़कियाँ करती थीं। हालाँकि पुराने समय में ऐसा नहीं होता था कि बच्चे स्कूल से अपने जूतों के बगैर लौटे। वह दरवाजे पर ही जूते उतार देती और तब तक कदम बाहर न निकालती, जब तक उसके पैरों में लकड़ी के जूते न होते। अब स्कूलों ने पश्चिमी आदतों को अधिक अपनाना शुरू कर दिया था, जहाँ बच्चे घर के अंदर और बाहर, दोनों जगह जूते पहनने लगे थे। अब इनमें कोई भी अंतर नहीं रह गया।

इतने में उसे अपने बाग की ओर वाले गेट से अपने बेटे के चिल्लाने की आवाज सुनाई दी, “मम्मा !"

"मैं यहाँ हूँ, टोरू ।"

वह भागता हुआ आया और उसने अपने जूते दरवाजे पर ही जोर से उछाल दिए। आखिरकार अब घर "जापानी" लगने लगा था। वह किसी को जूते अंदर नहीं लाने देती । वह तेजी से नल की ओर बढ़ी। उसने साफ तौलिए को गरम पानी से गीला कर निचोड़ लिया।

"यहाँ आओ, टोरू ।"

वह उसके पास आया, किताबें उसने दाएँ हाथ में थामी हुई थीं, जबकि माँ ने उसका चेहरा अच्छी तरह से पोंछा ।

"अब तुम्हारे हाथ "ओह ! कितने गंदे हो तुम।"

"यह चॉक है। पापा हैं घर में ?"

वह रोजाना ही यह सवाल उससे पूछता। अब यह सवाल उसे खंजर की तरह चुभने लगा था। लड़का बड़ा होने लगा था, उसे अपने बाप की कमी महसूस होती थी ।

"तुम जानते हो न कि तुम्हारे पिता बहुत व्यस्त रहते हैं। वे घर में सिर्फ इसलिए नहीं आ सकते कि तुम यहाँ हो।"

"वे कहाँ गए हैं?"

"मैंने तुम्हें बताया तो था ।"

"बार" बार में गए हैं न वे ?"

"अपनी किताबें उठाकर रखो। हम अपना शाम का खाना खाएँगे, बस सेतसु को आने दो।"

वह चला गया। उसने अपने पीछे कमरे के स्लाइडिंग दरवाजे (शोजी) को हटाने की आवाज सुनी। वैसे यह बच्चा बहुत अच्छा है, दस वर्ष का है और उस लिहाज से काफी समझदार है। यह बात वह रात को अपने पति को अवश्य बताएगी।

"गुड ईवनिंग मम्मा !"

सेतसु आ गई थी। लंबी-पतली अल्हड़ सी लड़की चुपचाप माँ के पास रसोई में आ खड़ी हुई थी। उसने जूते उतार दिए थे और बाल भी अच्छे ढंग से सँवारे हुए थे ।

"तुम्हें देर हो गई, सेतसु ?"

“मम्मा, ट्रैफिक बहुत था । हमारी बस बार - बार रुक रही थी ।"

"यह तो और भी बुरी बात है।"

उसने लापरवाही से बेटी से पूछा और एक नजर अपनी प्यारी बेटी पर डाली, जो उसकी इकलौती बेटी थी। बारह वर्ष की बच्ची होने के बावजूद सेतसु तेजी से परिपक्व हो रही थी । सारी लड़कियाँ इस नए टोकियो में जैसे तेजी से बड़ी हो रही थीं। वे खुले तौर बाहर अंदर आने-जाने लगी थीं, पश्चिमी फिल्में देख-देखकर वे सभी अमेरिकी नौजवानों की नकल करने लगी थीं। इसके बावजूद जहाँ तक हो सके, वह सेतसु को बाहर थियेटर आदि में नाच-गाने में जाने की इजाजत नहीं देती थी। एक बार वह स्वयं उसके साथ बाहर गई थी, जब सेतसु ने पहली बार उससे जाने की जिद की थी।

"सभी लड़कियाँ जा रही हैं।" उसने मुँह फुलाकर कहा था ।

“मैं भी तुम्हारे साथ चलूँगी। मैं खुद देखूँगी जाकर।" उसने कहा ।

वह बेटी के इस तरह जाने से भयभीत क्यों थी ? उसने देखा था, यहाँ हजारों की तादाद में थियेटर थे, जहाँ चारों ओर बहुत से नौजवान लोग थे, जिनमें अधिकतर लड़कियाँ थीं। यह सब देखकर वह स्तंभित रह गई थी। स्टेज पर बहुत से गायक, नौजवान लड़के माइक्रोफोन के पीछे खड़े गा रहे थे। अगर उसे गाना कहा जाए तो वह पश्चिमी संगीत का क्रंदन अधिक लग रहा था ।"कॉव-बुआय" की तरह उन्हें प्रेम-गीत गाते सुनकर वह लज्जा से भर गई, जबकि वह परिपक्व औरत थी। इस तरह की चीख- चिल्लाहट तथा विलाप का संगीत से कुछ लेना-देना नहीं था, जो लड़कियों द्वारा भी गाया जा रहा था। क्या वे सचमुच में जापानी थे ? उसने देखा कि गीत समाप्त होते ही बीस वर्ष से अधिक उम्र की एक युवती भागते हुए स्टेज की ओर बढ़ी और उसने गायकों के गले में फूल-मालाएँ डालीं; यहाँ तक कि सभी के गालों पर चुंबन भी दिए। यह देख उसने हाथ से अपनी आँखें ढक लीं और वहाँ से चल दी।

"नहीं सेतसु ! उसने नम्रता से बेटी को समझाया, “मैं तुम्हें फिर कभी ऐसी जगह जाने की आज्ञा नहीं दूँगी ।"

उसे पूरा विश्वास नहीं था कि उसके मना करने के बावजूद सेतसु वहाँ नहीं जाएगी। कोई भी माँ इस नए टोकियो में अपने बच्चों की पूरी गारंटी नहीं ले सकती थी और न ही अपने पति की ही। उसने अपने भीतर उठे पति की बेवफाई के विचार को ठेलकर बाहर निकाल दिया और सोचा, "किसी भी औरत को अपने पति की बेवफाई के बारे में कदापि सोचना नहीं चाहिए ।" यह बात उसकी माँ ने उसे समझाई थी।

वह स्टोव की ओर पलटी, जहाँ उसने पैन में मछली पकने के लिए रखी थी। सेतसु अपने हाथ धो रही थी। अब वह मेज पर खाने के बरतन और चॉपस्टिक रख रही थी।

"मैं पापा की जगह पर बैठ जाऊँ ?" उसने पूछा ।

"तुम्हें मालूम ही है कि वे यहाँ नहीं हैं।"

माँ-बेटी के बीच एक मौन पसर गया। इसे फिर से सेतसु ने ही तोड़ा।

"मुझे समझ में नहीं आता कि तुम रोज पापा को शाम को "बार" में जाने क्यों देती हो !”

मिसेज और अपना काम करते हुए एक क्षण को रुक गई। वह कच्ची गाजर को सूप के लिए फूल के आकार में काट रही थी, ताकि खाना आरंभ किया जा सके।

"मैं अनुमति दूँगी ? मैं इस बारे में कुछ नहीं कर सकती। वे तो शुरू से बाहर (बार) जाते रहे हैं।"

"युद्ध से पहले तो ऐसा नहीं था।"

“ युद्ध से पहले यह नर्तकी का घर था। अब नर्तकियाँ ही "बार-गर्ल्स" हैं। तुम्हें मालूम है ?"

“मम्मा, तुम समझती क्यों नहीं हो ?"

मिसेज औमर ने चाकू नीचे रख दिया और कहा, "मगर मर्द लोग तो बाहर "बार" में जाते ही रहते हैं, अब जबकि नर्तकियों के नाच घर भी नहीं रहे तो वे लोग कहाँ जाएँ ?"

मिसेज औमर के होंठों पर मुसकराहट आ गई, उसने एकदम हथेली मुँह पर रख ली, क्योंकि उसकी बेटी जो बात चीखकर बोल रही थी, उसे सोचते हुए भी वह भयभीत हो जाती थी ।

"मम्मा, मैं सोचती हूँ कि तुम हथेली के पीछे मेरी खिल्ली नहीं उड़ा रही होगी। यह तरीका बहुत पुराना हो चुका है।" अचानक वह जोर से कराह उठी ।

मिसेज औमर ने हाथ हटा लिया, “तुम्हारे पापा घर पर रुकेंगे ?" जब तुम बच्चे पैदा नहीं हुए थे, तब वे घर पर रुकते थे। वे शोर व क्रंदन को बिल्कुल भी बरदाश्त नहीं कर सकते, फिर यह उनके बिजनेस के लिए भी जरूरी है।"

सेतसु ने तिरस्कारपूर्ण ढंग से कहा, "बिजनेस ! बार में कैसा बिजनेस ? "

मिसेज औमर ने फिर से चाकू उठा लिया। उसने अपनी स्वाभाविक गरिमा से कहा, “मैं ऐसा कोई आचरण तुम्हारे पापा के सामने नहीं कर सकती । मर्द लोग बार आदि जगहों पर जाते ही रहते हैं। बिजनेस की बातें इन प्यालों पर आसानी से की जाती हैं, ऐसा तुम्हारे पापा कहते हैं, बिजनेस के अधिकतर सौदे यहीं होते हैं।"

सेतसु ने टोका, "फिर वे सुबह दो बजे लौटते हैं और चाहते हैं कि तुम उस समय भी उनका इंतजार करते और मुसकराते हुए मिलो।"ओह, मेरे प्यारे! तुम कितना थक जाते हो। तुम पूरे घर के लिए सारा दिन काम करते रहते हो। यह रही तुम्हारी चाय । मैं तुम्हारे नहाने के लिए गरम पानी उड़ेल देती हूँ। आप तब तक सोते रहें, जब तक बच्चे स्कूल नहीं चले जाते ।"

सेतसु ने माँ की इस तरह नकल करते हुए कहा कि मिसेज औमर एकदम भौचक्की रह गई। कितने ध्यान से पूरी बातें सुनते हैं।

"तुम कितनी शैतान लड़की हो !” उसने गंभीरता से कहा ।

सेतसु ने जोर से पैर पटकते हुए कहा, “हमारे बारे में सोचो, अगर तुम अपने बारे में नहीं सोच सकती तो...। वे हमारे पापा हैं, हैं न, मगर हम उन्हें कितना देख पाते हैं, सिर्फ कुछेक घंटे, वह भी शायद संडे को या किसी छुट्टी के दिन क्या यह टोरू के लिए अच्छा है ? हालाँकि मेरे लिए यह कोई अहमियत नहीं रखता।"

उसने कंधे सिकोड़े और दूर जाते हुए बोली, “मुझे मालूम ही नहीं कि वे देखने में कैसे लगते हैं! मैं उनके पास से गली में से गुजर जाऊँ तो भी उन्हें पहचान नहीं पाऊँगी।"

वह कमरे से बाहर निकल गई, मगर मिसेज औमर ने उसे पुकारा, "इधर आओ, सेतसु ।"

सेतसु अनिच्छा से मुड़ी और आधा दरवाजा खोलकर खड़ी हो गई।

मिसेज औमर संकोच से चलते हुए उसके पास गई। यह लड़की किसी औरत की तरह दिखाई दे रही थी एक अजनबी सी ।

"तुम क्या करतीं, अगर तुम मेरी जगह पर होतीं ?"

"मैं उनके साथ बार जाया करती।" सेतसु ने दृढ़ता से कहा।

"मैं?" मिसेज औमर भौचक्की रह गईं, जैसे वह खुद को वहाँ खड़ी देख रही हो। चाकू उसके एक हाथ में और गाजर दूजे हाथ में अटकी रह गई ।

"जवान औरतों को बार में जाना चाहिए, " सेतसु ने कहा, "वे वहाँ अपने पतियों के संग जाएँगी तो पति लोग वहाँ जाना बंद कर देंगे।"

"तुम यह सब कैसे जानती हो ?"

"हम सभी इस बारे में स्कूल में बातें करते हैं। कुछ लड़कियों की बड़ी बहनें हैं, जो ब्याहता हैं।"

मिसेज औमर ने भयातुर होकर कहा, "ऐसी बातें स्कूल में होती हैं।"

"हाँ, क्यों नहीं ?" सेतसु ने कहा, “बस कुछ ही वर्षों में हम बड़ी हो जाएँगी और हम अपने पतियों को इस तरह बार में जाने की आज्ञा कभी नहीं देंगे, जैसे तुम देती हो।"

मिसेज औमर ने अपनी बिटिया के प्यारे चेहरे की ओर देखा। इससे पहले उसने बिटिया के मासूम चेहरे पर इतनी मजबूती नहीं देखी थी। वह कैसे उसकी ओर टकटकी लगाकर देख रही थी। आज के समय में लड़कियाँ बहुत बदल गई हैं, एकदम अलग हैं। उसने देखा और रसोई के सिंक की ओर बढ़ गई।

"अपने कपड़े बदल लो और टोरू को आवाज दे दो। हम अपना "सूपर" (खाना) खा ले, फिर तुम दोनों अपना होम वर्क पूरा कर लेना । मैंने तुम्हारा गुलाबी ड्रेस तकरीबन पूरी कर ली है।"

शाम के काम रोजाना की तरह पूरे किए गए। उन्होंने चुपचाप खाना खाया और मिसेज औमर ने सबकुछ समेट दिया। उन्होंने अपने घरेलू "किमोनो" (जापानी खुला लबादा ) पहन लिये और पढ़ने की मेज पर अपनी पुस्तकें लेकर पढ़ने लगे। उनके समीप बैठकर मिसेज औमर गुलाबी पोशाक तैयार करने लगी, जो सेतसु के लिए थी । बिटिया इस गुलाबी पोशाक में बहुत सुंदर लगेगी। उसकी आँखें और बाल कितने काले थे। वह उम्मीद करती थी कि सेतसु अपने बाल कभी भी सुनहरी रंग में नहीं रँगवाएगी, जैसे कि आजकल की लड़कियाँ करने लगी थीं। कितना अजीब है यह फैशन! कुछ वर्ष पहले तक औरत की सुंदरता उसके काले बालों से होती थी, परंतु आजकल जमाना बहुत बदल गया है। मिसाल के लिए बार, उसे गीशा - हाउस (नर्तकियों के कोठे) सही लगते थे, जहाँ नर्तकियों व पत्नियों में एक अंतर होता था, मगर ये बार लड़कियाँ...।

इसी क्षण उसे सेतसु की बात याद आ गई, शायद यह बच्ची ठीक ही कह रही हो। वह बार में क्यों नहीं जा सकती ? एक बार जाकर देखे तो सही कि उन बारों में आखिर होता क्या है ? उसे यह जानने का पूरा हक है कि उसके पति अपनी शामें कहाँ बिताते हैं। ये लंबी शामें, अंतहीन, जब बच्चे सोने चले जाते हैं। उससे आधी रात तक पति के इंतजार में बैठा नहीं जाता। वह पल-पल गिनती है। आधी रात के बाद के दो घंटे बिताने उसके लिए अत्यंत मुश्किल हो जाते हैं। सेतसु ने एकदम ठीक ही कहा, दो बजे या उसके भी आधे घंटे के पश्चात् अंततः वह वापस लौटते हैं । वह जबरदस्ती मुसकराती, बहादुरी से झूठ बोलती, उसे उसका स्वागत करना ही पड़ता, मगर चुपचाप । कभी भी उसने अपनी कोई परेशानी, शिथिलता के बारे में नहीं बताया, न ही कभी घर की किसी समस्या के बारे में ही बात की। वह इन सभी बातों से एकदम निर्लिप्त रहता था, जैसे कि आमतौर पर मर्द रहते हैं।

अपनी बेटी के शब्दों से उसके जख्मी दिल को बहुत चोट पहुँची। शायद इसलिए कि वह एक पुरानी सोच की औरत थी । आखिर उसके बोझिल जीवन का अर्थ ही क्या था ।

जब उसके दोनों बच्चे बिस्तर पर सोने चले गए तो वह सोचने लगी कि वह अपने लिए क्या कर सकती है। वह तुरंत वहाँ चली गई, जहाँ उसके कपड़े तह लगाकर रखे हुए थे। उसने उसमें से एक पश्चिमी पोशाक बाहर निकाली, जो किसी खास मौके पर उसके पति ने उसके लिए ली थी ।" तुम्हारे पास कम-से-कम एक पश्चिमी पोशाक तो होनी ही चाहिए।" पति ने कहा था, " अमरीकन लोगों को खुश करने के लिए ही ।" उस खास मौके के लिए उसने सिल्क का नीला सूट लिया था, मगर उस मौके के बाद उसने कभी उसे नहीं पहना था । उसका स्कर्ट काफी छोटा था, जिससे उसकी नंगी टाँगें दिखाई देती थीं। उसने वह पोशाक निकालकर पहन ली और अपने बालों को अच्छे ढंग से सँवारकर बाँध लिया और उससे मिलता-जुलता मोतियों का सैट गले में डाल लिया। उसी समय उसने अपने होंठों पर हलकी सी लिपस्टिक लगाई और खुद को एक नजर शीशे में देखा। वह न तो अत्यधिक सुंदर थी, न ही बदसूरत, लेकिन देखने में वह गरिमामयी और शिष्ट लग रही थी घरेलू बेमेल कपड़ों के मुकाबले में ।

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