वह ? (कहानी) : गाय दी मोपासां
Vah ? (French Story) : Guy de Maupassant
मेरे प्यारे दोस्त! तुम कहते हो तुम्हारी समझ में यह बात नहीं आ रही है । मैं तुम पर पूरा विश्वास करता हूँ । तुम सोचते हो, मैं पागल हो रहा हूँ? शायद यह सही है, लेकिन तुम जो सोचते हो , उन कारणों से नहीं ।
हाँ , मैं शादी करने जा रहा हूँ । तुम्हें बताऊँगा कि मैं यह कदम क्यों उठा रहा हूँ ।
मेरे विचार और मेरा विश्वास बिलकुल भी नहीं बदले हैं । मैं तमाम वैध सहवास को निहायत बेवकूफी समझता हूँ । मेरा विश्वास है कि दस में से नौ पति अकसर एक कुलटा पत्नी से बँधे होते हैं और उन्हें उससे अधिक कुछ भी नहीं मिलता, जो उन्हें मिलना चाहिए था । उन्होंने मूर्ख बनते हुए अपनी जिंदगी को जंजीरों में जकड़ लिया है और प्यार में अपनी आजादी को त्याग दिया है, जो दुनिया की इकलौती सुखद और अच्छी चीज है । उन्होंने कल्पना के उन पंखों को कतर दिया है, जो हमें लगातार तमाम औरतों की तरफ ले जाते हैं । तुम जानते हो , मैं क्या कहना चाहता हूँ । मैं पहले से भी अधिक इस बात को महसूस करता हूँ कि मैं एक अकेली औरत को प्यार करने में असमर्थ हूँ, क्योंकि मैं और तमाम औरतों को बेहद प्यार करूँगा । मैं तो चाहता हूँ कि मेरे एक हजार हाथ होते, हजार मुँह और हजार स्वभाव होते, ताकि मैं एक ही समय में इन सुंदिरयों की पूरी फौज को अपने आलिंगन में भींच लेता ।
फिर भी मैं शादी करने जा रहा हूँ!
मैं यह भी बता दूं कि मैं उस लड़की के बारे में बहुत ही कम जानता हूँ, जो कल मेरी पत्नी बनने जा रही है । मैंने उसे बस चार या पाँच बार देखा है । मैं जानता हूँ कि उसमें कुछ भी अरुचिकर नहीं है । मेरे मकसद के लिए यह काफी है । वह छोटी, गोरी और हट्टी-कट्टी है, इसलिए परसों मैं बेशक एक लंबी, काली और पतली औरत की व्यग्रता से कामना करूँगा ।
वह अमीर नहीं है, मध्यम वर्ग की है । वह उन लड़कियों में से है, जो तुम्हें थोक में मिल जाएँगी , जो शादी- ब्याह के लिए ही बनी होती हैं । जिनमें कोई स्पष्ट दोष दिखाई नहीं देते और कोई असाधारण गुण भी नहीं होते । लोग उसके बारे में कहते हैं , कुमारी लाजोल बहुत अच्छी लड़की है, और कल वे कहेंगे, कितनी अच्छी महिला है श्रीमती रेमो । संक्षेप में कहूँ तो वह उन अनगिनत लड़कियों में से है , जो उस क्षण के आने तक हमारी बहुत अच्छी पत्नियाँ बनी रहती हैं । जब हमें यह पता चलता है कि हमने जिस खास औरत से शादी की है, उससे अधिक तो हम बाकी तमाम औरतों को पसंद करते हैं ।
देखो! तुम मुझसे कहोगे , आखिर तुम शादी करते ही किसलिए हो ?
मैं तो तुम्हें बताना भी नहीं चाहता, उस अजीब और लगभग असंभव कारण के बारे में , जिसने मुझे बेतुके काम के लिए बाध्य किया । बहरहाल , सच यह है कि मुझे अकेला रहने में डर लगता है!
समझ में नहीं आ रहा कि तुम्हें कैसे बताऊँ या अपनी बात तुम्हें कैसे समझाऊँ , लेकिन मेरी दिमागी हालत इतनी भयंकर है कि तुम्हें मुझ पर तरस आएगा और मुझसे घृणा भी होगी ।
अब मैं रात में और अकेला नहीं रहना चाहता । मैं यह महसूस करना चाहता हूँ कि मेरे पास कोई है, जो मुझे छू रहा है, ऐसा कोई जो कुछ बोल सकता है और कह सकता है, चाहे वह कुछ भी हो ।
मैं चाहता हूँ कि मेरी बगल में कोई हो , जिसे मैं जगा सकूँ , ताकि मैं इच्छा होने पर उससे अचानक कोई सवाल भी कर सकूँ , ताकि मैं एक इनसानी आवाज सुन सकूँ और यह महसूस कर सकूँ कि मेरे पास कोई जागा हुआ है ।
ऐसा कोई जिसकी सूझ - बूझ काम कर रही है , ताकि जब मैं जल्दबाजी में मोमबत्ती जलाऊँ तो मैं अपने बराबर में कोई इनसानी चेहरा देख सकूँ , क्योंकि मुझे स्वीकार करते शर्म आ रही है; क्योंकि मुझे अकेले में डर लगता है ।
अरे , तुम अभी भी मेरी बात नहीं समझे ।
मैं किसी खतरे से नहीं डरता; अगर कोई आदमी मेरे कमरे में आ जाए तो मैं बिना काँपे उसे मार डालूँ । मुझे भूतों से डर नहीं लगता और मैं अलौकिकता में भी विश्वास नहीं करता । मुझे मुरदा लोगों से डर नहीं लगता , क्योंकि मेरा मानना है कि जो इस धरती की सतह से गायब होता है, वह पूरी तरह से नष्ट हो जाता है ।
देखो, हाँ देखो, यह तो बताना ही होगा; मुझे अपने आपसे डर लगता है, डर लगता है अबूझ भय के उस भयावह भाव से ।
तुम चाहो तो हँस सकते हो । यह भयंकर है और मैं इससे उबर नहीं पा रहा हूँ । मुझे दीवारों से, फर्नीचर से , जानी -पहचानी चीजों से डर लगता है तो जहाँ तक मेरा सवाल है, एक तरह के जैविक जीवन से सभी अनुप्राणित हैं । सबसे बड़ी बात तो मैं अपने ही भयंकर खयालों से, अपनी सूझ- बूझ से डरता हूँ । ऐसा लगता है मानो एक रहस्यमय और अदृश्य पीड़ा मुझे छोड़ने वाली हो ।
पहले तो मैं अपने मन में एक अस्पष्ट सी बेचैनी महसूस करता हूँ , जिसके कारण मेरे पूरे शरीर में ठंड की एक झुरझुरी दौड़ जाती है । मैं इधर-उधर देखता हूँ । बेशक मुझे कुछ दिखाई नहीं देता, मेरा मन करता है कि वहाँ कुछ हो, चाहे कुछ भी हो , बस कुछ ऐसा हो जो मूर्त हो । मैं डरता हूँ , इसलिए कि मैं अपने ही भय को नहीं समझ पाता ।
अगर मैं बोलता हूँ तो मुझे अपनी ही आवाज से डर लगता है । अगर मैं टहलता हूँ तो न जाने किस चीज से डरता हूँ, दरवाजे के पीछे, परदों के पीछे, आलमारी में या मेरे पलंग के नीचे और फिर भी सारा समय मुझे पता रहता है कि कहीं कुछ भी नहीं है, मैं अचानक पीछे घूम जाता हूँ, क्योंकि मुझे उससे डर लगता है, जो मेरे पीछे है, हालाँकि वहाँ कुछ भी नहीं होता है और मुझे यह पता होता है ।
मैं व्यग्र हो जाता हूँ । मुझे लगता है मेरा डर बढ़ रहा है, इसलिए मैं अपने आपको अपने कमरे में बंद कर लेता हूँ , बिस्तर में घुस जाता हूँ और कपड़ों के नीचे छिप जाता हूँ, वहाँ दुबककर गठरी बन जाता हूँ और निराशा में अपनी आँखें बंद कर लेता हूँ । न जाने में कितनी देर तक ऐसे ही रहता हूँ । मुझे याद आता है कि मेरी मोमबत्ती मेरे पलंग के पास मेज पर जल रही है और मुझे इसे बुझा देना चाहिए, फिर भी ऐसा करने की मेरी हिम्मत नहीं होती! ऐसा होना बहुत भयंकर है, क्यों है न?
पहले मैं इस सबके बारे में कुछ भी नहीं सोचता था । मैं बड़े आराम से घर आता था और अपने कमरों में चहलकदमी करता था । मेरे मन की शांति को कोई भी चीज भंग नहीं करती थी । अगर कोई मुझसे कहता कि मुझ पर अत्यंत असंभाव्य बीमारी का हमला होगा, क्योंकि इसे मैं बीमारी के अलावा और कुछ कह नहीं सकता तो ऐसी बकवास और भयंकर बीमारी की बात सुनकर मैं खूब हँसता था । मैं सचमुच अँधेरे में दरवाजा खोलने से कभी नहीं डरता था; मैं इसे बिना बंद किए धीरे- धीरे अपने पलंग पर सोने जाता था और बीच रात में कभी यह पक्का करने के लिए नहीं उठता था कि सबकुछ कसकर बंद तो था ।
इसकी शुरुआत पिछले साल बड़े अजीब ढंग से पतझड़ की एक नम शाम को हुई । मेरे खाना खाने के बाद जब मेरा नौकर कमरे से चला गया तो मैंने अपने आपसे पूछा कि मैं अब क्या करूँगा? मैं कुछ देर तक अपने कमरे में चहलकदमी करता रहा; मैं अकारण ही थका हुआ महसूस कर रहा था , काम करने में असमर्थ था , पढ़ने की हिम्मत भी मुझमें नहीं थी । अच्छी बारिश हो रही थी और मैं दुखी महसूस कर रहा था । मैं आकस्मिक हताशा के उस दौरे से पीड़ित था , जिसके कारण हमें चिल्लाने का या चाहे किसी से भी बात करने का मन होता है, ताकि हम अपने अवसादी विचारों को झटक सकें ।
मुझे लगा, मैं अकेला हूँ और मेरे कमरे मुझे पहले के मुकाबले अधिक खाली लगे । एक अनंत और बेहद अकेलेपन के अहसास ने मुझे घेर लिया। क्या करता मैं ? मैं बैठ गया, लेकिन फिर एक तरह की घबराहट भरी अधीरता ने मेरी टाँगों को हिला दिया । इस तरह मैं उठकर दोबारा टहलने लगा। मुझे हरारत हो रही थी , क्योंकि जैसा कि धीरे - धीरे टहलते समय होता है, मैंने अपने हाथ पीछे बाँध रखे थे और वे जैसे एक - दूसरे को जला रहे थे, फिर अचानक मेरी पीठ पर ठंड की एक झुरझुरी दौड़ गई । मैंने सोचा कि नम हवा मेरे कमरे में घुस आई होगी, इसलिए उस साल मैंने पहली बार आग जलाई, फिर से बैठ गया और लपटों को देखने लगा, लेकिन जल्दी ही मुझे लगा कि मेरे लिए शांत बने रहना संभव नहीं था । मैं फिर से उठ गया । मैंने ठान लिया कि मैं बाहर जाऊँगा, अपने आपको संयत करूँगा और साथ के लिए कोई दोस्त तलाशूँगा ।
मुझे कोई नहीं मिल पाया , इसलिए मैं बड़ी सड़क पर चला गया कि कोशिश करके किसी परिचित या किसी और से मिलूँ । मैं हर कहीं अभागा ही रहा । गीला खडंजा गैस की रोशनी में चमक रहा था , जबकि लगभग अमूर्त बारिश की आततायी धुंध सड़कों पर भारी सी पसरी थी और बत्तियों की रोशनी को जैसे धुंधला कर रही थी । मैं धीरे- धीरे आगे बढ़ता रहा । मैं मन- ही - मन कहता जा रहा था, मुझे एक भी प्राणी नहीं मिलेगा बात करने को ? मैंने मादलेन से लेकर दूर फोबूर प्वासोंयेर तक कितने ही कैफे झाँक लिये । वहाँ मुझे मेजों पर बैठे अनेक व्यक्ति दिखाई दिए , जो दुखी लग रहे थे, उनमें इतनी हिम्मत भी नहीं थी कि उन्होंने जो कुछ खाने -पीने को मँगाया था , उसे खत्म कर लें ।
काफी देर तक मैं निरुद्देश्य इधर से उधर घूमता रहा और लगभग आधी रात को मैं घर के लिए रवाना हुआ । मैं बहुत शांत और बहुत थका हुआ था । मेरे दरबान ने फौरन दरवाजा खोल दिया, जो उसके लिए असामान्य बात थी । मैंने सोचा कि बेशक वहाँ रहनेवाला कोई और व्यक्ति अभी- अभी अंदर आया था ।
बाहर जाते समय मैं अपने कमरे के दरवाजे में हमेशा दो बार ताला लगाता हूँ, लेकिन इस समय मैंने देखा कि वह बस बंद था और इस पर मुझे आश्चर्य हुआ, लेकिन मैंने सोचा कि शायद इस दौरान शाम को मेरी डाक आई होगी ।
मैं अंदर गया तो देखा कि आग अभी भी जल रही थी और इससे कमरा थोड़ा रोशन हो रहा था । मोमबत्ती उठाते समय मैंने गौर किया कि आग के पास रखी मेरी आरामकुरसी पर कोई बैठा अपने पाँव ताप रहा था , उसकी गरदन मेरी तरफ थी ।
मैं बिलकुल भी नहीं डरा । स्वाभाविक तौर पर मैंने यही सोचा कि कोई दोस्त या कोई और मुझसे मिलने आया था । बेशक उस दरबान ने ही उसे मेरी चाबी दे दी होगी, जिसे मैंने जाते समय अपने जाने के बारे में बताया था । एक पल में अपने लौटने की सारी परिस्थितियों को याद कर गया मैं कि कैसे मुख्य दरवाजा तुरंत खोल दिया गया था और मेरा अपना दरवाजा बस बंद था और उसमें ताला नहीं लगा था ।
मैं अपने दोस्त का बस सिर ही देख पा रहा था । जरूर वह मेरा इंतजार करते- करते सो गया था, इसलिए मैं उसे जगाने के लिए उसके पास गया । मैं उसे बिलकुल स्पष्ट देख रहा था ; उसका दाहिना हाथ नीचे लटक रहा था और उसके पैर एक के ऊपर एक रखे थे, जबकि उसका सिर आरामकुरसी के बाईं ओर थोड़ा झुका हुआ था , उससे पता चलता था कि वह सोया हुआ है । कौन हो सकता है यह ? मैंने अपने आपसे सवाल किया । मैं साफ - साफ देख नहीं पा रहा था , क्योंकि कमरा थोड़ा अँधेरे में डूबा था । इसलिए मैंने उसका कंधा छूने के लिए हाथ बढ़ाया और कुरसी की पीठ से टकराया । वहाँ कोई नहीं था; कुरसी खाली थी ।
मैं डर के मारे उछल गया । एक पल को तो मैं पीछे हट गया, मानो कोई भयंकर खतरा मेरे रास्ते में अचानक आ गया हो, फिर मुझे आरामकुरसी को दोबारा देखने की धृष्टतापूर्ण इच्छा हुई और मैं फिर पीछे घूम गया । मैं सीधा खड़ा- का - खड़ा रह गया , डर से हाँफता हुआ, इतना घबराया हुआ कि मैं अपने विचारों को संयत भी नहीं कर पाया और गिरने ही वाला था ।
स्वभाव से मैं एक शांत व्यक्ति हूँ और मैंने जल्दी ही अपने आपको सँभाल लिया । मैंने सोचा, यह बस एक दृष्टि - भ्रम है; और कुछ नहीं । और मैंने तुरंत इस घटना पर सोचना शुरू कर दिया । ऐसे पलों में खयाल बहुत तेजी से दौड़ते हैं ।
मैं दृष्टि -भ्रम से ग्रस्त था ; यह एक निर्विवाद सत्य था । मेरा दिमाग बिलकुल साफ था और दिमाग में तो कोई गड़बड़ी नहीं थी । बस मेरी आँखें ही थीं, जो धोखा खा गई थीं; उन्हें साक्षात् दर्शन हुआ था , ऐसा दर्शन जिसके कारण सीधे- सादे लोग चमत्कारों में विश्वास करने लग जाते हैं । यह आँखों के साथ हुआ एक हादसा था और कुछ नहीं; आँखें कुछ ज्यादा ही थक गई थीं शायद । ।
मैंने मोमबत्ती जला ली । ऐसा करते हुए जब मैं आग की तरफ झुका तो मैंने गौर किया कि मैं काँप रहा था और फिर मैं कूदकर खड़ा हो गया, जैसे किसी ने पीछे से मुझे छू दिया था ।
मैं सचमुच बिलकुल भी आश्वस्त नहीं हुआ था । मैं थोड़ी चहलकदमी करने लगा और एक - दो धुन गुनगुनाने लगा, फिर मैंने अपने कमरे में दो बार ताला लगाया और थोड़ा आश्वस्त महसूस करने लगा ; कम- से - कम अब कोई अंदर नहीं आ सकता था । मैं फिर बैठ गया और देर तक अपनी इस अनहोनी के बारे में सोचता रहा, फिर मैं सोने चला गया और अपनी बत्ती बुझा दी ।
कुछ मिनट सबकुछ ठीक -ठाक रहा; मैं पीठ के बल शांत लेटा रहा, फिर मुझे कमरे में निगाह डालने की अदम्य इच्छा हुई और मैं करवट बदलकर लेट गया ।
मेरी आग लगभग बुझ चुकी थी और थोड़े से दमकते अंगारे फर्श पर कुरसी के पास एक हलकी रोशनी डाल रहे थे, जहाँ मुझे लगा कि वह आदमी फिर से बैठा हुआ है ।
मैंने जल्दी से माचिस की तीली जलाई , लेकिन मुझे धोखा हुआ था, क्योंकि वहाँ कुछ भी नहीं था । बहरहाल, मैं उठ गया और कुरसी को मैंने अपने पलंग के पीछे छिपा दिया और सोने की कोशिश करने लगा, क्योंकि कमरे में अब अँधेरा था , लेकिन मुझे अपने आपको भूले हुए अभी पाँच मिनट से ज्यादा भी नहीं हुए थे कि मैंने उस पूरे दृश्य को अपने सपने में इतना स्पष्ट देखा, जैसे हकीकत हो । मैं चौंककर जाग गया और मोमबत्ती जलाकर बिस्तर में बैठ गया । मुझे फिर से सोने की कोशिश करने की , सोने की हिम्मत नहीं हुई ।
लेकिन फिर नींद ने मुझे मेरी तमाम कोशिश के बावजूद कुछ पलों के लिए दोबारा आ घेरा और दो बार मुझे फिर वही दिखाई दिया । फिर मुझे लगा, मैं पागल हो रहा हूँ, लेकिन जब भोर हुई तो मुझे लगा, मैं ठीक हो गया हूँ और फिर दोपहर तक मैं चैन से सोया ।
सबकुछ बीत चुका था , खत्म हो चुका था । मुझे हरारत हो रही थी , मैंने बुरा सपना देखा था ; मुझे नहीं पता वह क्या था । थोड़े शब्दों में कहूँ तो मैं बीमार हो गया था , लेकिन फिर भी मैं सोच रहा था कि मैं बड़ा बेवकूफ था ।
उस शाम मैंने खूब मजा किया; मैंने एक रेस्तराँ में जाकर खाना खाया । उसके बाद मैं थिएटर गया और फिर घर के लिए चल पड़ा , लेकिन जब मैं मकान के पास पहुँचा तो एक बार फिर बेचैनी के एक अजीब अहसास ने मुझे जकड़ लिया; मैं उसे फिर से देखने से डर रहा था । मुझे उसका डर नहीं था , उसकी मौजूदगी का डर नहीं था , क्योंकि उसमें मुझे विश्वास ही नहीं था , बल्कि मुझे तो दोबारा धोखा खाने का डर था । मुझे किसी नए दृष्टि - भ्रम का डर था , डर था कि कहीं डर मुझ पर हावी न हो जाए ।
एक घंटे से भी ज्यादा समय तक मैं खडंजे पर इधर- से- उधर घूमता रहा, फिर मैंने सोचा कि मैं सचमुच बेहद मूर्ख था और मैं घर लौट पड़ा । मैं इतना हाँफ रहा था कि मुश्किल से सीढ़ियाँ चढ़ पाया और दस मिनट से भी ज्यादा समय तक अपने दरवाजे के बाहर खड़ा रहा, फिर अचानक मैंने हिम्मत की और अपने आपको सँभाला । मैंने ताले में चाबी लगाई और एक मोमबत्ती पकड़कर अंदर आ गया । मैंने अपने सोने के कमरे के अधखुले दरवाजे को लात मारकर खोला और डरे - डरे आतिशदान की तरफ देखा; वहाँ कुछ नहीं था । आह !
कैसी राहत और कैसा आनंद! कैसी मुक्ति ! मैं तेज - तेज कदमों से और हिम्मत के साथ चहलकदमी करने लगा, लेकिन मैं पूरी तरह से आश्वस्त नहीं था और बार - बार चौंककर पीछे घूम जाता था । कोनों की छायाएँ तक मुझे अशांत कर रही थीं ।
मुझे ठीक से नींद नहीं आई और काल्पनिक आवाजें मुझे लगातार परेशान करती रहीं , लेकिन मैंने उसे नहीं देखा; नहीं, वह सब अब खत्म हो चुका था ।
तब से मैं रात में अकेला होने से डरता रहा हूँ । मुझे लगता है कि वह छाया वहाँ मेरे नजदीक है, मेरे आसपास है, लेकिन उसके बाद से मेरे साथ फिर वैसा नहीं हुआ है । मान लो कि ऐसा होता भी तो उससे क्या होता , क्योंकि मैं उसमें विश्वास ही नहीं करता और जानता हूँ कि यह कुछ नहीं है ।
बहरहाल, यह मुझे चिंतित तो अभी भी करता है, क्योंकि मैं इसके बारे में लगातार सोचता रहता हूँ उसका दाहिना हाथ नीचे लटक रहा था और उसका सिर किसी सोए हुए आदमी की तरह बाई ओर को झुका हुआ था । बहुत हो गया, ईश्वर के नाम पर ! मैं इस बारे में सोचना नहीं चाहता!
लेकिन आखिर यह खयाल मुझ पर लगातार इतना हावी क्यों है ? उसके पाँव आग के नजदीक थे!
वह मेरा पीछा करता है; यह बहुत मूर्खतापूर्ण है, लेकिन यह ऐसा ही है । कौन और क्या है वह ? मैं जानता हूँ कि मेरी कायरतापूर्ण कल्पना, मेरे भय और मेरी पीड़ा के सिवा उसका कहीं कोई वजूद नहीं है! वहाँ – बस बहुत हो गया !
हाँ , मेरे लिए बहुत अच्छा है यह कि मैं अपने आपसे तर्क करूँ , अपने आपको कड़ा कर लूँ, लेकिन मैं घर में नहीं रह सकता, क्योंकि मैं जानता हूँ कि वह वहाँ है । मैं जानता हूँ, मैं उसे फिर से नहीं देखुंगा ; वह अपने आपको फिर से नहीं दिखाएगा ; वह सब बीत चुका है, लेकिन वह फिर भी मेरे खयालों में है । वह अदृश्य रहता है, लेकिन उससे उसका वहाँ होना रुक नहीं जाता । वह दरवाजों के पीछे होता है , बंद अलमारियों में होता है, कपड़ों की आलमारी में होता है , पलंग के नीचे होता है , हरेक अँधेरे कोने में होता है । मैं अगर दरवाजे या आलमारी को खोलता हूँ , मैं अगर पलंग के नीचे देखने के लिए मोमबत्ती लेता हूँ और अँधेरी जगहों में रोशनी डालता हूँ तो वह वहाँ फिर नहीं होता, लेकिन मुझे लगता है कि वह मेरे पीछे है । मैं पीछे घूम जाता हूँ, मुझे विश्वास होता है कि मैं उसे नहीं देलूँगा । मैं उसे फिर कभी नहीं देखूगा, लेकिन वह फिर भी मेरे पीछे होता है । यह बहुत मूर्खतापूर्ण है । यह भयावह है, लेकिन मैं क्या करूँ ? मैं विवश हूँ इस मामले में । अगर उस जगह हम दो होंगे तो मेरा पूरा विश्वास है कि वह फिर वहाँ नहीं रह पाएगा, क्योंकि वह वहाँ केवल इसलिए है, क्योंकि मैं अकेला हूँ । सिर्फ और सिर्फ इसलिए क्योंकि मैं अकेला हूँ!