व्यर्थ सौंदर्य (कहानी) : गाय दी मोपासां

Useless Beauty (French Story) : Guy de Maupassant

एक बहुत शानदार बग्घी हवेली के सामने आकर खड़ी हुई । उसमें दो खूबसूरत काले घोड़े जुते हुए थे। जून महीने के अंतिम दिन थे । शाम के कोई साढ़े पाँच बज रहे थे। हवेली के बड़े से प्रांगण में गुनगुनी धूप चमक रही थी ।

काउंटेस द मास्कारे नीचे आई और तभी उसका पति गाड़ी के दरवाजे पर दिखाई दिया । वह घर लौट रहा था । वह कुछ पल रुककर अपनी पत्नी को देखता रहा । उसका चेहरा कुछ पीला पड़ गया । उसकी पत्नी बहुत खूबसूरत , सौम्य थी और अलग ही दिखाई देती थी । उसका चेहरा लंबा, अंडाकार था , रंगत सुनहरे हाथी दाँत जैसी थी । बड़ी बड़ी काली आँखें थीं और बाल काले थे। वह अपनी गाड़ी में बैठ गई । उसने अपने पति की ओर देखा भी नहीं । उसकी तरफ गौर भी नहीं किया । उसमें कुलीनता का ऐसा विशेष भाव था कि उसके पति को इतने अरसे से खाए जा रही ईर्ष्या एक बार फिर उसके मन को कचोटने लगी । वह अपनी पत्नी के पास जाकर बोला, " घूमने जा रही हो ? "

उसने हिकारत से बस इतना जवाब दिया , " वह तो तुम देख ही रहे हो! "

" ब्वा द बूलॉनी में ? "

" शायद । "

" मैं भी चल सकता हूँ ? "

" गाड़ी तो तुम्हारी ही है । "

उसे अपनी पत्नी के जवाब देने के लहजे पर कोई आश्चर्य नहीं हुआ और वह अंदर जाकर उसकी बगल में बैठ गया । " ब्वा द बूलॉनी । " उसने कहा और गाड़ी का दरबान कूदकर कोचवान की बगल में बैठ गया । घोड़े हमेशा की तरह जमीन पर अपने पैर मारकर अपने सिरों को हिलाने लगे, फिर वे सड़क पर आ गए । पति -पत्नी एक - दूसरे की बगल में चुपचाप बैठे रहे । पति सोच रहा था कि बातचीत कैसे शुरू की जाए , वह हठ में इतनी तनकर बैठी थी कि उसकी बात शुरू करने की हिम्मत नहीं हुई । लेकिन आखिर में पति ने बड़ी चालाकी से काउंटेस के दस्ताने में बंद हाथ को जैसे अनायास ही छू दिया , लेकिन उसने अपने हाथ को एक झटके से अलग कर लिया । उसके अंदाज में इतनीहिकारत थी कि दबंग और बेलगाम स्वभाव का होने के बावजूद वह सोच में डूबा रहा ।

" गाब्रीएल! " आखिर में वह बोला ।

" क्या चाहिए? "

" मेरे खयाल में तुम बहुत सुंदर लग रही हो । "

पत्नी ने कोई जवाब नहीं दिया । बस गाड़ी में टिककर लेटी रही । वह किसी चिढ़ी हुई महारानी सी दिख रही थी । इस समय वे शां जैलीर्ज मार्ग में होकर आर्क द गायोंफ की तरफ बढ़ रहे थे। वह विशाल स्मारक , लंबे छायादार मार्ग के अंत में लाल आसमान की पृष्ठभूमि में अपना भारी मेहराब उठाए खड़ा था और सूरज ऐसा लग रहा था जैसे इसमें डूब रहा हो । वह इस पर आकाश से अग्निमयी धूल बिखेर रहा था ।

गाडियों के चमकदार साज और बत्तियों से धूप परावर्तित हो रही थी , उनकी कतार एक बहती हुई दोहरी धारा की तरह थी, जिनमें से एक तो शहर की ओर बह रही थी और एक जंगल की ओर । इस दृश्य के बीच काउंट द मास्कारे ने अपनी बात जारी रखी, " मेरी प्यारी गाब्रीएल! "

अब तो काउंटेस के बरदाश्त से बाहर हो गई और उसने खीजकर जवाब दिया , " उफ ! मेहरबानी करके मुझे चैन से रहने दो ! अब तो मुझे अपनी गाड़ी को अपने लिए इस्तेमाल करने की भी छूट नहीं रही । " लेकिन काउंट ने ऐसा जताया जैसे उसने उसकी बात सुनी ही न हो, वह बोलता रहा , “ तुम आज जितनी खूबसूरत कभी नहीं दिखाई दीं । "

काउंटेस का धैर्य निश्चय ही जवाब दे चुका था । उसने क्रोध में जवाब दिया , " इस पर गौर करके तुम गलती कर रहे हो , क्योंकि मैं कसम से कहती हूँ कि अब मैं तुम्हारे साथ इस तरह का कोई लेन - देन कभी नहीं रखने वाली । " यह जवाब सुनकर काउंट तो सकते में ही आ गया और उत्तेजित भी हो उठा । उसका हिंसक स्वभाव उस पर हावी हो गया , वह बोला, " तुम कहना क्या चाहती हो ? " यह बात उसने इस तरह कही कि इससे उसका प्रेमी पुरुष का नहीं बल्कि पाशविक मालिक का चेहरा ही उजागर हुआ, लेकिन काउंटेस ने धीमी आवाज में जवाब दिया, जिससे पहियों की जोरदार गड़गड़ाहट के बीच नौकर उसकी बात न सुन पाए ।

“ अच्छा! मैं कहना क्या चाहती हूँ ? अब मैं तुम्हें फिर से पहचान रही हूँ! क्या तुम मुझसे सबकुछ जानना चाहते हो ? "

" हाँ । "

" वह सबकुछ जो मेरे मन में उस समय से है, जब से मैं तुम्हारी खुदगर्जी की शिकार हो रही हूँ? "

काउंट का चेहरा आश्चर्य और क्रोध से लाल हो गया था । वह दाँत भींचकर गुर्राया, " हाँ, मुझे सबकुछ बताओ । "

काउंट एक लंबा, चौड़े कंधोंवाला आदमी था । उसके एक लंबी लाल दाढ़ी थी । वह खूबसूरत आदमी था , एक शरीफ आदमी, एक दुनियादार आदमी था वह , जो एक मुकम्मिल शौहर और एक जिम्मेदार बाप था । जब से वे घोड़ा गाड़ी में बैठे थे, तब से अब पहली बार काउंटेस उसकी तरफ मुड़ी और उसकी आँखों -में - आँखें डालकर देखा, " आह! तुम्हें यह जान लेना चाहिए कि मैं हर बात के लिए तैयार हूँ , आज मैं किसी बात से नहीं डरती, तुमसे तो बिलकुल भी नहीं । "

काउंट भी उसकी आँखों-में - आँखें डालकर देख रहा था । वह प्रणयावेश में काँपने लगा था , फिर वह धीमे से बोला, " तुम पागल हो ! "

" नहीं, लेकिन अब मैं मातृत्व की उस घृणा भरी सजा का शिकार नहीं बनूँगी, जिसे तुमने मुझ पर ग्यारह साल तक थोपा है! मैं इस दुनिया की औरत की तरह जीना चाहती हूँ , जैसा कि मुझे अधिकार है, जैसा कि सभी औरतों को अधिकार है । "

काउंट का चेहरा अचानक फिर पीला पड़ गया । वह अटकता हुआ बोला, “ मैं तुम्हारी बात समझा नहीं । "

" ओह! हाँ , तुम मेरी बात अच्छी तरह से समझते हो । मैंने जब पिछले बच्चे को पैदा किया था, तब से तीन महीने बीत चुके हैं और क्योंकि मैं अभी भी बहुत खूबसूरत हैं और अपनी तमाम कोशिशों के बावजूद तुम मेरे शरीर को बिगाड़ नहीं सके , जैसा कि तुमने अभी - अभी सीड़ियों पर देखकर समझ लिया, तुम सोच रहे हो कि अब समय आ गया है कि मैं फिर से गर्भवती हो जाऊँ । "

" लेकिन तुम बकवास कर रही हो ! " ।

" नहीं, मैं बकवास नहीं कर रही ; मैं तीस की हूँ और मैं सात बच्चे पैदा कर चुकी हूँ । हमारी शादी को ग्यारह साल हुए हैं । तुम सोचते हो कि यह सब अभी दस साल और चलेगा, उसके बाद तुम जलना छोड़ दोगे । "

काउंट ने अपनी बेगम का हाथ पकड़ लिया और उसे भींचते हुए कहा, " मैं तुम्हें ज्यादा देर इस तरह की बातें करने की इजाजत नहीं दूंगा । "

“ और मैं तुमसे आखिर तक बात करती रहूँगी , जब तक कि मैं वह सब नहीं कह लेती, जो मुझे कहना है । अगर तुमने मुझे रोकने की कोशिश की तो मैं चिल्लाकर बात करूँगी, ताकि कोचबॉक्स में बैठे दोनों नौकर सुन लें । मैंने तुम्हें इसी मकसद से अपने साथ आने दिया, क्योंकि यहाँ मेरे पास ये जो गवाह हैं , जो तुम्हें इस बात के लिए बाध्य कर देंगे कि तुम मेरी बात सुनो और अपने आपको काबू में रखो । इसलिए अब ध्यान देकर मेरी बात सुनो । मैंने तुमसे हमेशा नफरत की है, मैंने हमेशा ही तुम पर इसे व्यक्त भी किया है, क्योंकि मैंने कभी झूठ नहीं बोला । तुमने मेरे विरोध के बावजूद मुझसे शादी की । मेरे माँ - बाप परेशानी में थे, तुमने उन्हें मजूबर किया कि वे तुम्हारे साथ मेरी शादी कर दें, क्योंकि तुम पैसे वाले थे। उन्होंने मेरे आँसुओं के बावजूद मुझे तुमसे शादी करने को बाध्य किया ।

" इस तरह तुमने मुझे खरीद लिया और जैसे ही मैं तुम्हारे कब्जे में आई, जैसे ही मैं तुम्हारी बीवी बन गई कि अपने आपको तुम्हारे साथ जोड़ने को तैयार रहूँ , तुम्हारी दबाने और धमकियों वाली बातों को भूलने को तैयार रहूँ , ताकि मैं बस यह याद रखू कि मुझे एक समर्पित पत्नी बनना है । अपनी ओर से जितना ज्यादा- से- ज्यादा हो सके , तुम्हें प्यार करना है; जैसे ही यह सब हुआ कि तुम ईर्ष्या करने लगे; तुम्हारे जैसी ईर्ष्या पहले कभी किसी मर्द ने नहीं की होगी। यह एक जासूस की नीच, हेय ईर्ष्या थी और यह तुम्हारे और मेरे दोनों के लिए ही अपमानजनक थी । हमारी शादी को अभी आठ महीने भी नहीं हुए थे कि तुम मुझ पर हर तरह की बेवफाई का शक करने लगे और तुमने मुझसे कह भी दिया । कितने अपमान की बात थी । तुम मुझे खूबसूरत होने से तो रोक नहीं सकते थे । लोगों को खुश करने से और बैठकों तथा अखबारों में मुझे पेरिस की एक सबसे खूबसूरत औरत कहे जाने से तो रोक नहीं सकते थे, इसलिए मेरे प्रशंसकों को मुझसे दूर रखने के लिए तुम्हारी समझ में जो भी आया, तुमने वह सब किया । तुमने मुझे हमेशा मातृत्व की हालत में रखने की यह घिनौनी तरकीब सोच निकाली । यह तुमने इस हद तक किया कि मैं मर्द जात से ही चिढ़ने लगी । इससे इनकार मत करो! कुछ समय तक तो मैं इसे समझ ही नहीं पाई , लेकिन फिर मुझे इसका अंदाजा हो गया । तुमने इस बारे में अपनी बहन से भी डींग मारी और उसने मुझे यह बात बता दी , क्योंकि वह मुझे पसंद करती है और तुम्हारे इस गँवारू घटियापन से चिढ़ती भी है ।

" याद करो हमारे झगड़ों को , टूटे हुए दरवाजों और तालों को ! ग्यारह साल तक तुमने मुझे बच्चे पैदा करने वाली एक घोड़ी की हालत में रखा, फिर जैसे ही मैं पेट से हो जाती तो तुम्हें मुझसे अरुचि हो जाती और महीनों तक तुम मुझे दिखाई नहीं पड़ते, मुझे देहात में पारिवारिक हवेली में , खेतों और चरागाहों के बीच अपना बच्चा पैदा करने के लिए भेज दिया जाता । जब मैं दोबारा तरोताजा, खूबसूरत और अटूट होकर लौटती तो तब भी मैं मोहक होती थी और लगातार अपने प्रशंसकों से घिरी होती थी । यह आशा करती थी कि अब आखिर मैं एक जवान रईस औरत की तरह रह पाऊँगी, जिसकी जगह समाज में सम्मानजनक होती है; तब ईर्ष्या तुम्हें फिर घेर लेती और तुम फिर से उस बदनाम और घिनौनी लालसा से मुझे प्रताड़ित करना शुरू कर देते , जिससे तुम यहाँ इस पल मेरी बगल में बैठे हुए परेशान हो रहे हो ।

" यह मुझे पाने की लालसा नहीं है, क्योंकि मैं तो अपने आपको तुम्हारे आगे सौंपने से कभी मना नहीं करती , बल्कि यह मुझे बदसूरत बनाने की लालसा है । इसके अलावा, वह घिनौनी और रहस्यमयी परिस्थिति बनी, जिसे मैं एक लंबे अरसे से समझ रही थी ( लेकिन तुम्हारे विचार और हरकतें देख -रेख मैं उग्र हो गई) । तुम्हारे बच्चों ने मेरी कोख में पलते समय तुम्हें जो सुरक्षा दी थी , उस तमाम अहसास के साथ तुमने अपने आपको उनसे जोड़ लिया । तुमने मेरे प्रति स्नेह महसूस किया और अपने उस घिनौने डर के बावजूद , जो मुझे माँ बनता देखने की खुशी के कारण कुछ समय के लिए खत्म हो जाता था ।

"कितनी ही बार तो मैंने इस खुशी को तुममें देखा है! मैंने इसे तुम्हारी आँखों में देखा और अनुमान किया है । तुमने अपने बच्चों को अपनी जीत समझकर उनसे प्यार किया, इसलिए नहीं कि वे तुम्हारा अपना खून थे। वे तो मेरे ऊपर तुम्हारी जीत के प्रतीक थे। वे प्रतीक थे मेरी जवानी, मेरी खूबसूरती, मेरे आकर्षण, मेरी प्रशंसाओं के ऊपर और उन लोगों पर तुम्हारी जीत के जो मेरे आगे खुलकर मेरी प्रशंसा नहीं करते थे, बल्कि धीमे शब्दों में करते रहते थे । तुम उन पर घमंड करते हो, उनकी परेड लगाते हो , तुम उन्हें अपनी गाड़ी में ब्वा द बूलॉनी में घुमाने और मॉमॉराँसी में चड्डी गाँठने ले जाते हो । तुम उन्हें दोपहर का शो दिखाने थिएटर ले जाते हो , ताकि लोग तुम्हें उनके बीच देखें और कहें , कितना रहमदिल बाप है! जिससे इसे दोहराया जा सके । "

काउंट ने बडे वहशीपन से अपनी पत्नी की कलाई पकड़ ली । उसने इतनी जोर से उसे भींचा कि वह चुपचाप रही, हालाँकि दर्द के मारे उसकी चीख निकलते-निकलते रह गई, फिर दबी आवाज में उससे बोला, " मैं अपने बच्चों से प्यार करता हूँ , सुना तुमने ? तुमने यह जो अभी - अभी कहा है, यह एक माँ को शोभा नहीं देता, लेकिन तुम मेरी हो ; मैं स्वामी हूँ - तुम्हारा स्वामी । मैं तुमसे जो भी चाहूँ और जब भी चाहूँ , ले सकता हूँ और कानून मेरे पक्ष में है । "

वह अपने बड़े से मर्दाना हाथ की मजबूत पकड़ में अपनी पत्नी की उँगलियों को कुचल देने की कोशिश कर रहा था । वह दर्द से नीली पड़ गई थी और अपनी उँगलियाँ उस शिकंजे से छुड़ाने की असफल कोशिश कर रही थी , जो उन्हें कुचले दे रहा था । दर्द के मारे वह हाँफने लगी थी । उसकी आँखों में आँसू आ गए थे।

" तुम देख रही हो न कि मैं स्वामी हूँ और ज्यादा मजबूत भी । " वह बोला । जब उसने अपनी पकड़ थोड़ी सी ढीली की तो उसकी पत्नी ने उससे पूछा , " क्या तुम सोचते हो कि मैं एक धार्मिक औरत हूँ? "

उसके इस सवाल पर वह चकित होकर अटकते हुए बोला, " हाँ । "

" क्या तुम सोचते हो कि मैं क्राइस्ट के शरीर वाली वेदी के आगे, अगर किसी बात के सच होने की कसम खाऊँगी तो वह झूठी होगी? "

" नहीं । "

" तो क्या तुम मेरे साथ किसी चर्च में चलोगे? "

"किसलिए ? "

" तुम खुद देख लेना । बोलो , चलोगे? "

" अगर तुम सचमुच यही चाहती हो, तो हाँ । "

उसने अपनी आवाज तेज करते हुए कहा, "फिलिप! " और कोचवान ने थोड़ा झुकते हुए जैसे केवल अपने कान को अपनी मालकिन की तरफ किया, उसने घोड़ों पर से अपनी नजरें नहीं हटाई । काउंटेस ने कहा, " फिलिप दू- रूल चलो। " और बग्घी, जो ब्वा दू बूलॉनी के प्रवेश बिंदु पर पहुँच गई थी , पेरिस लौट पड़ी ।

पति -पत्नी में पूरे रास्ते कोई बात नहीं हुई । जब गाड़ी चर्च के आगे रुकी, तो मादाम मास्कारे कूदकर बाहर आई और चर्च में चली गई । काउंट कुछ गज के फासले पर उसके पीछे-पीछे था । काउंटेस बिना रुके गायक -मंडली वाली जाली तक चली गई और एक कुरसी पर घुटनों के बल गिरकर उसने अपने चेहरे को अपने हाथों में छिपा लिया । वह देर तक प्रार्थना करती रही । काउंट को साफ दिखाई दे रहा था कि वह रो रही है । वह चुपचाप रो रही थी, जैसे औरतें उस समय रोती हैं , जब वे किसी गहरे, असहनीय दुःख में होती हैं । उसका शरीर एक तरह से हिचकोले ले रहा था और उसके बाद एक हलकी सी सिसकी उठती थी , जो उसकी उँगलियों में छिप और घुटकर रह जाती थी ।

काउंट मास्कारे के हिसाब से यह स्थिति ज्यादा लंबी खिंच गई थी, इसलिए उसने काउंटेस के कंधे को छुआ । इस स्पर्श से वह वापस अपने में लौट आई, मानो वह जल गई हो । वह उठ गई और उसने सीधे काउंट की आँखों में देखा ।

" मैं तुमसे यह कहना चाहती हूँ, तुम मेरे साथ चाहे जो भी कर लेना, मुझे उसका डर नहीं है । तुम चाहो तो मुझे जान से भी मार सकते हो । तुम्हारे बच्चों में से एक तुम्हारा अपना नहीं है; यह बात मैं तुमसे कसम खाकर ईश्वर के सामने कह रही हूँ , जो यहाँ मेरी बात सुन रहा है । तुमने अपने जिन घिनौने मर्दाना अत्याचारों का शिकार मुझे बनाया है और मुझे बच्चे पैदा करने की जो सजा भरी गुलामी दी है, उसके बदले में मेरे लिए यही प्रतिशोध संभव था । मेरा प्रेमी कौन था ? यह तुम कभी नहीं जान पाओगे ! तुम चाहो तो हर किसी पर शक कर सकते हो , लेकिन तुम्हें कभी पता नहीं चल पाएगा । मैंने उससे प्यार नहीं किया, न कोई आनंद लिया , मैंने तो बस तुमसे विश्वासघात करने की गरज से अपने आपको उसके हवाले कर दिया और उसने मुझे माँ बना दिया । कौन सा बच्चा उसका है ? यह भी तुम कभी नहीं जान पाओगे । मेरे सात बच्चे हैं ; कोशिश करो और पता लगाओ! मैंने तो सोचा था कि बाद में तुम्हें यह सब बताऊँगी, क्योंकि किसी आदमी को धोखा देकर ही उससे पूरी तरह से बदला नहीं लिया जा सकता । उसे इस धोखे के बारे में मालूम भी होना चाहिए । तुमने मुझे आज यह इकबाल करने के लिए बाध्य कर दिया है; अब मैं अपनी बात कह चुकी हूँ । " ।

यह कहकर वह जल्दी- जल्दी चर्च के खुले दरवाजे की तरफ बढ़ गई। उसे उम्मीद थी कि उसे अपने पीछे अपने पति के तेज कदमों की आहट सुनने को मिलेगी, जिसके साथ उसने गुस्ताखी की थी और वह चूसा मारकर उसे जमीन पर गिरा देगा, लेकिन उसे कुछ सुनाई नहीं दिया । वह अपनी गाड़ी पर पहुँच गई । वह कूदकर उसमें बैठ गई । वह पीड़ा से अभिभूत थी और डर से हाँफ रही थी । उसने कोचवान से कहा , " घर चलो! " और घोड़े तेजी से दौड़ पड़े ।

काउंटेस मास्कारे आपने कमरे में रात के खाने का वक्त होने का इंतजार कर रही थी , जैसे मौत की सजा पाया कोई मुजरिम अपनी फाँसी की घड़ी का इंतजार करता है । वह क्या करेगा? क्या वह घर आ गया है ? निरंकुश, लालसा भरा और किसी भी हिंसा के लिए तैयार, वह किस उधेड़बुन में था , उसने क्या करने का मन बनाया था ? घर में कोई आवाज नहीं थी और हर पल वह घड़ी की तरफ देख रही थी । उसकी नौकरानी आकर उसे खाने के लिए तैयार करके वापस जा चुकी थी , तभी आठ का घंटा बजा! लगभग तभी दरवाजे पर दो बार दस्तक हुई और खानसामा ने अंदर आकर बताया कि खाना तैयार हो गया है ।

" काउंट आ गए? " उसने पूछा । ।

" जी , मादाम काउंटेस; वह खाने के कमरे में हैं । "

एक पल को तो उसका मन हुआ कि एक छोटा सा रिवॉल्वर ले ले, जिसे उसने अपने मन में पूर्वाभास की जा रही दुखद घटना का पूर्वानुमान करते हुए कुछ हफ्ते पहले ही खरीदा था , लेकिन उसे याद आया कि सभी बच्चे वहाँ होंगे और उसने एक सुँघनी के अलावा और कुछ भी नहीं लिया । काउंट अपनी कुरसी से कुछ- कुछ अभिवादन की मुद्रा में उठा । उन्होंने हल्के से झुककर एक - दूसरे का अभिवादन किया और बैठ गए । तीनों लड़के , अपने शिक्षक आबे मार्ते के साथ काउंटेस के दाई ओर को थे, जबकि तीनों लड़कियाँ अपनी अंग्रेज गवर्नेस मिस स्मिथ के साथ उसके बाईं तरफ थीं । सबसे छोटा बच्चा , जो अभी केवल तीन महीने का था । अपनी धाय के साथ ऊपर कमरे में ही था ।

आबे ने खाने की प्रार्थना की । जब कोई साथ नहीं होता था , तो ऐसा ही होता था, क्योंकि जब मेहमान मौजूद होते थे तो बच्चे नीचे नहीं आते थे, फिर खाना शुरू हुआ । काउंटेस उस भावना से पीड़ित थी , जिसका उसने बिलकुल

हिसाब नहीं लगाया था । वह अपनी आँखें नीची किए हुए बैठी रही । उधर काउंट कभी तीनों लड़कों और कभी तीनों लड़कियों को बारी- बारी से अनिश्चय तथा दुख भरी दृष्टि से देख रहा था । अचानक उसने अपने शराब के गिलास को अपने से दूर हटाया। यह टूट गया और शराब मेजपोश पर छलक गई। इस हादसे से होने वाले हलके से शोर से अपनी कुरसी में बैठी काउंटेस चौंक पड़ी, तब पहली बार दोनों ने एक - दूसरे को देखा । फिर तो लगभग हर पल ही , न चाहते हुए भी और हर नजर से होने वाली झुंझलाहट के बावजूद , पिस्तौल से निकली गोलियों की तेजी के साथ एक - दूसरे को देखने का उनका सिलसिला थमा नहीं ।

आबे को लगा कि यहाँ उलझन का कोई सबब मौजूद है, जिसे वह पकड़ नहीं पा रहा है, इसलिए उसने बातचीत शुरू करने की कोशिश की और कई टॉपिक छेड़े भी , लेकिन उसके व्यर्थ प्रयासों से कोई बात बन ही नहीं पाई, किसी ने एक शब्द भी नहीं बोला । काउंटेस ने अपनी औरतों वाली होशियारी से काम लेते हुए और दुनियादार

औरत की वृत्ति का अनुसरण करते हुए दो - तीन बार उसका जवाब देने की कोशिश की भी , लेकिन वह कामयाब नहीं हुई । अपनी दिमागी परेशानी में उसे कोई शब्द ही नहीं सूझा । उसकी अपनी ही आवाज ने उस बड़े से कमरे की खामोशी में उसे डरा सा दिया । जहाँ प्लेटों और छुरी - काँटों की हलकी सी आवाज के अलावा और कुछ भी सुनाई नहीं दे रहा था ।

अचानक उसके पति ने आगे झुकते हुए उससे कहा, " सुनो , अपने बच्चों के बीच, क्या तुम कसम खाकर मुझसे कह सकती हो कि तुमने मुझसे जो कहा था , वह सच है? "

काउंटेस की नसों में जो नफरत खदक रही थी, उसने अचानक उसे भड़का दिया । उसने उस सवाल का जवाब भी उसी दृढ़ता से दिया , जिस दृढ़ता से उसने उसकी नजरों का जवाब दिया था । उसने अपने दोनों हाथ उठाए दाहिना लड़कों की तरफ और बायाँ लड़कियों की तरफ - और बिना हिचकिचाए एक दृढ़ संकल्प भरे स्वर में कहा, " अपने बच्चों के सिर की कसम खाकर मैं कहती हूँ कि मैंने तुमसे सच कहा है । "

काउंट खड़ा हो गया और खीज में अपने रुमाल को मेज पर फेंककर घूमा । उसने अपनी कुरसी को दीवार पर दे मारा, फिर वह बिना और कुछ कहे वहाँ से निकल गया । काउंटेस ने एक गहरी आह भरी, मानो उसकी पहली जीत हुई हो । शांत स्वर में उसने कहना जारी रखा, " तुम्हारे बाप ने अभी जो कहा है, उस पर कोई ध्यान मत देना । मेरे बच्चो । थोड़ी देर पहले वह बहुत परेशान थे, लेकिन कुछ दिनों में वह बिलकुल ठीक हो जाएँगे । "

फिर उसने आबे और मिस स्मिथ से बात की , अपने सभी बच्चों से मीठी- मीठी, प्यार भरी बातें कीं । ये प्यारी बिगाड़ने वाली माँ के टोटके थे; जिनसे नन्हे -मुन्नों के दिलों के ताले खुल जाते हैं ।

जब खाना हो गया तो वह बैठक में चली गई । उसके बच्चे उसके पीछे-पीछे वहाँ पहुँच गए । उसने बड़े बच्चों को गपशप करवाई और जब उनका सोने का समय हुआ तो वह बहुत देर तक उन्हें चूमती रही, फिर अकेली ही अपने कमरे में चली गई ।

वहाँ वह इंतजार करने लगी, क्योंकि उसे यकीन था , काउंट अवश्य आएगा । उसके बच्चे तो उसके पास थे नहीं , इसलिए उसने ठान लिया कि वह अपने इनसानी जिस्म का बचाव करेगी, जैसे उसने एक दुनियादार औरत के रूप में अपनी जिंदगी का बचाव किया था । अपनी पोशाक की जेब में उसने वह छोटा सा गोलियों भरा रिवॉल्वर रख लिया । इस तरह घंटे बीतते रहे , घंटे बजते रहे और घर में हरेक आवाज खामोश थी । केवल सड़कों पर गाडियों की घरघराहट जारी थी , लेकिन उनका शोर भी शटर गिरी और परदेदार खिड़कियों से होकर बहुत अस्पष्ट ही सुनाई दे रहा था ।

वह जोश और परेशानी में इंतजार करती रही । उसमें अब काउंट का बिलकुल भी डर नहीं था । वह किसी भी बात के लिए तैयार थी और लगभग विजयी भाव में थी, क्योंकि उसे काउंट को लगातार, उसकी जिंदगी के हरेक पल में सताने का साधन मिल गया था ।

भोर का पहला प्रकाश उसके परदों के नीचे लगी झालरों से होकर अंदर आने लगा, लेकिन काउंट उसके कमरे में नहीं आया । वह साश्चर्य इस तथ्य के प्रति जागरूक हुई कि वह नहीं आया । अधिक सुरक्षा के लिए उसने अपने दरवाजे को बंद करके उस पर ताला लगाया और अंत में अपने पलंग पर चली गई और आँखें खोले वहीं पड़ी रही । वह सोचती रही । उसकी यह सब समझ में ही नहीं आ रहा था । वह अनुमान ही नहीं लगा पा रही थी कि वह आगे क्या करनेवाला था ।

जब उसकी नौकरानी उसके लिए चाय लेकर आई, तो उसने काउंटेस को उसके पति की एक चिट्ठी भी दी । चिट्ठी में उसने लिखा था कि वह एक लंबे सफर पर जा रहा है । पुनश्च में उसने लिखा था कि उसे अपने खर्च के लिए जितने भी पैसों की जरूरत होगी, उसके ( काउंट के ) वकील से मिल जाएँगे ।

यह ऑपेरा की बात है । रॉबर्ट दि डेविल नाटक के दो अंकों के बीच का अंतराल था यह । हॉल में लोग अपने हैट पहने खड़े थे। उनके वेस्टकोट बहुत नीची काट के थे और उनकी सफेद कमीजों के सामने का एक बड़ा हिस्सा दिखाई दे रहा था , जिसमें उनके गले के दोहरे बटनों के सुनहरे और कीमती नगीने चमक रहे थे। वे लोग बक्स की तरफ देख रहे थे, जिनमें नीची पोशाकें पहने महिलाओं की भीड़ थी । पोशाकों पर हीरे - मोती लगे थे। ये औरतें प्रकाश में जगमगाते उस गरम भवन में फूलों की तरह फैलती नजर आ रही थीं, जहाँ उनके चेहरों की सुंदरता और उनके कंधों का गोरापन मुआयने के लिए संगीत और इनसानी स्वरों के बीच खिलता नजर आ रहा था ।

ऑर्केस्ट्रा की तरफ पीठ किए दो दोस्त भव्यता की उन फुलवारियों, असली या नकली नगीनों की , ऐशो- इशरत की और ग्रां थिएटर में चारों तरफ दिखाई देती दिखावट की उस नुमाइश को बारीकी से देख रहे थे । उनमें से एक रॉजे द सालनी ने अपने साथी बेरनार ग्रांदै से कहा, " जरा देखो तो , काउंटेस मास्कारे अभी भी कितनी खूबसूरत है ! "

फिर उनमें से बड़े ने अपनी बारी में अपनी ऑपेरा वाली दूरबीन से अपने सामने वाले बक्स में बैठी एक लंबी महिला को देखा, जो अभी भी बहुत कमसिन दिखाई दे रही थी , जिसकी असाधारण खूबसूरती थिएटर के कोने कोने में मौजूद मरदों की आँखों को प्रभावित करती लग रही थी । हाथी दाँत के रंग वाली उसकी पीली सी रंगत उसे एक बुत का रूप दे रही थी । एक छोटा सा हीरों का मुकुट सितारों के झुंड की तरह उसके काले बालों पर चमक रहा था ।

जब बेरनार ग्रांदै कुछ देर उसको देख चुका तो उसने मजाकिया लहजे में जवाब दिया - " हाँ , तुम उसे बिलकुल खूबसूरत कह सकते हो! "

" तुम क्या सोचते हो , वह कितने साल की होगी ? "

" एक पल रुको , मैं तुम्हें ठीक -ठीक बता सकता हूँ, क्योंकि मैं उसे बचपन से जानता हूँ । मैंने उसे समाज सभाओं में पहली बार आने पर देखा था , तब वह लड़की ही थी । वह ... वह छत्तीस की है । "

" असंभव! "

" मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ । "

" वह तो पच्चीस की दिखती है । "

" उसके सात बच्चे हो चुके हैं । "

"विश्वास नहीं होता । "

" और यही नहीं, उसके सातों के सातों बच्चे जिंदा हैं , क्योंकि वह बहुत अच्छी माँ है । मैं कभी - कभार उसके घर जाता हूँ, जो बहुत शांत और सुखद है । वह दुनिया के बीच आदर्श परिवार का साक्षात् दृश्य प्रस्तुत करती है । "

"कितनी अजीब बात है! उसके बारे में कभी कोई ऐसी- वैसी बात सुनने को नहीं मिली? "

" कभी नहीं । "

" लेकिन उसका पति कैसा है ? वह अजीब है, है न ? "

" है भी और नहीं भी । इस बात की बहुत संभावना है कि उनके बीच कोई छोटा - मोटा पारिवारिक नाटक जिसकी भनक तो लगती है, लेकिन जिसके बारे में ठीक -ठाक कभी पता नहीं चल पाता और उसके बारे में आप सही अंदाजा लगा लेते हैं । "

" क्या नाटक है वह ? "

" मुझे इसके बारे में कुछ नहीं मालूम । मास्कारे एक आदर्श पति रह चुकने के बाद अब बहुत तेज जिंदगी बिताता है । जब तक वह अच्छा पति रहा , उसका मिजाज बहुत गरम और रूखा था । किसी बात का जल्दी बुरा मान जाता था , लेकिन जबसे उसने अपनी मौजूदा लफंगों वाली जिंदगी शुरू की है, वह बिलकुल उदासीन हो गया है; लेकिन आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उसे कोई -न - कोई परेशानी तो है, कहीं कोई कीड़ा उसे खा रहा है, क्योंकि वह बहुत बूढ़ा हो गया है । "

इस पर दोनों दोस्त कुछ मिनट तक दार्शनिक अंदाज में उन गुप्त, अनजानी परेशानियों के बारे में बात करते रहे , जो परिवार में चरित्र की भिन्नताओं या शायद उन शारीरिक अरुचियों के कारण पैदा हो जाती हैं , जिन्हें पहले नहीं देखा गया होता, फिर मादाम मास्कारे को अपनी ऑपेरा वाली दूरबीन से देख रहा रॉजे द सालनी बोला — यह तो बिलकुल अविश्वसनीय सा लगता है कि वहाँ बैठी उस औरत के सात बच्चे हो चुके हैं ! "

" हाँ , ग्यारह साल में ; जिसके बाद तीस की हो जाने पर उसने संतानोत्पत्ति पर विराम लगा दिया , ताकि मन बहलाव के सुखद दौर में प्रवेश कर सके । यह दौर अब खत्म होने के आसपास नहीं दिखाई देता । "

" बेचारी औरतें ! "

" तुम्हें उन पर तरस क्यों आता है? "

" क्यों ? अरे! मेरे प्यारे दोस्त , जरा सोचो तो ! मातृत्व के ग्यारह साल, ऐसी औरत के लिए! क्या जुल्म है! उसकी सारी जवानी , उसकी सारी खूबसूरती, सफलता की सारी आशा एक उज्ज्वल जीवन का सारा कवितामय विचार , सबकुछ प्रजनन के उस घृणित नियम की भेंट चढ़ गया, जो सामान्य स्त्री को बच्चे पैदा करने वाली मशीन भर बनाकर रख देता है । "

" तुम क्या कर सकते हो ? यह तो प्रकृति का नियम है!

" हाँ , लेकिन मैं कहता हूँ कि प्रकृति हमारी दुश्मन है कि हमें हमेशा प्रकृति के खिलाफ लड़ना चाहिए, क्योंकि वह लगातार हमें जानवरों वाली स्थिति में वापस लाने का काम कर रही है । यह विश्वास मानो कि ईश्वर ने इस धरती पर ऐसी कोई चीज नहीं रखी, जो साफ , खूबसूरत , शानदार या हमारे आदर्श के लिए सहायक हो ; लेकिन मानव मस्तिष्क ने ऐसा करके दिखाया है । हमी ने सृष्टि में थोड़ी सौम्यता , खूबसूरती , अज्ञात आकर्षण और रहस्य का तत्त्व डाला है । इस काम को अंजाम देने के लिए हमने इसका गुणगान किया है, इसकी विवेचना की है, कवियों के रूप में इसकी प्रशंसा की है , कलाकारों के रूप में इसे आदर्श बनाया है और उन विद्वानों के रूप में इसकी व्याख्या की है, जो गलतियाँ करते हैं , जो प्रकृति के विभिन्न व्यापारों में बुद्धितापूर्ण तर्क , सौम्यता और सुंदरता , थोड़ा अज्ञात आकर्षण और रहस्य ढूँढ़ लेते हैं ।

" ईश्वर ने तो केवल साधारण घटिया जीव ही बनाए , जो कीटाणुओं और रोग से भरे हैं , जो कुछ साल पाशविक आनंद लेने के बाद बूढ़े और कमजोर हो जाते हैं । उनमें इनसानी बुढ़ापे से जुड़ी अशक्तता की बदसूरती और शक्ति का अभाव होता है। लगता है, ईश्वर ने उन्हें केवल इसलिए बनाया है कि वे एक अरुचिकर ढंग से अपनी नस्ल को पैदा कर सकें और फिर क्षणभंगुर कीड़ों की तरह मर जाएँ । मैंने कहा, अरुचिकर ढंग से अपनी नस्ल को पैदा कर सकें और मैं अपने इस कथन पर दृढ़ हूँ । वस्तुतः प्राणियों की प्रजनन की उस हास्यास्पद क्रिया से अधिक घृणित और अधिक अरुचिकर और क्या हो सकता है, जिसके खिलाफ तमाम कोमल मनों ने हमेशा बगावत की है और हमेशा करेंगे? इस द्वेषपूर्ण विधाता ने जिन भी अंगों का आविष्कार किया है, वे सभी क्योंकि दो काम करते हैं , तो उसने उन अंगों को क्यों नहीं चुना जो बेदाग थे, ताकि उन्हें वह पवित्र कार्य सौंपा जा सकता, जो सभी इनसानी कामों में सबसे अधिक नेक और सबसे अधिक गौरवपूर्ण हैं ? जो मुँह खाद्यपदार्थ के जरिए हमारे शरीर को पोषण देता है, वह बालों और विचारों को बाहर निकालता भी है । हमारा मांस अपने ही जरिए अपने आपको पुनर्जीवित करता है और साथ- ही - साथ विचारों को भी व्यक्त करता है । सूंघने वाली इंद्रिय , जो फेफड़ों को प्राणदायी वायु देती है, वह मस्तिष्क तक संसार की तमाम खुशबुओं को भी पहुँचाती है — फूलों की , वनों की , वृक्षों की , सागर की खुशबुओं को । जो कान हमें अपने साथियों के साथ संवाद करने के काबिल बनाता है, उसने हमें ध्वनि के माध्यम से संगीत की खोज करने , सपने, सुख, अनंत और यहाँ तक कि शारीरिक आनंद की सृष्टि करने की अनुमति भी दी ।

" लेकिन यह भी कहा जा सकता है कि ईश्वर की यह इच्छा थी कि पुरुष स्त्रियों के साथ अपने व्यापार को कभी उदात्त या आदर्श रूप न दे पाए, फिर भी पुरुष ने प्यार को खोज लिया है, जो उस कपटी देवत्व के लिए कोई बुरा जवाब नहीं है । उसने कविता से इसे इतना अलंकृत कर दिया है कि औरत अकसर उस संपर्क को भूल जाती है , जिसके आगे समर्पित होने को वह बाध्य है । हममें से जिन लोगों के पास स्वयं को धोखा देने की ताकत नहीं है , उन्होंने दुष्टता और सुसंस्कृत व्यभिचार का आविष्कार कर लिया है, जो ईश्वर पर हँसने का और सौंदर्य को श्रद्धांजलि देने का , उच्छृखल श्रद्धांजलि देने का एक और तरीका है ।

" लेकिन सामान्य पुरुष बच्चे पैदा करता है; वह बस एक जानवर होता है, जो कानून के जरिए एक और जानवर से बँधा होता है ।

" उस औरत को देखो! क्या यह सोचकर घृणा नहीं होती कि ऐसा रत्न , ऐसा मोती , जिसका जन्म खूबसूरत होने , प्रशंसा किए जाने , प्रसन्न किए जाने और सराहे जाने के लिए हुआ था , उसने अपनी जिंदगी के ग्यारह साल काउंट मास्कारे के लिए वारिस पैदा करने में बिता दिए हैं ? "

बेरनार ग्रां ने हँसकर जवाब दिया, " इस सब में काफी सच्चाई है, लेकिन तुम्हारी बातें बहुत कम लोगों की समझ में आएँगी । "

सालनी और भी जोश में आता गया — " जानते हो , मैं ईश्वर की क्या कल्पना करता हूँ? " वह बोला, “ मैं उसे अज्ञात एक ऐसे विराट , सृजनात्मक अंग के रूप में देखता हूँ, जो अंतरिक्ष में दसियों लाख संसार बिखेरता है । ठीक वैसे ही जैसे एक अकेली मछली समुद्र में अपने अंडे छोड़ देती है । वह इसलिए सृजन करता है , क्योंकि ईश्वर होने के नाते ऐसा करना उसका कार्य है, लेकिन वह यह नहीं जानता कि वह कर क्या रहा है और वह मूर्खता की हद तक अपने कार्य में उर्वर है तथा उन तमाम किस्मों के मिश्रणों से अनजान रहता है, जो उसके बिखेरे हुए कीटाणुओं से पैदा होते हैं । इनसानी सोच, एक भाग्यशाली छोटा सा क्षणिक हादसा है, जो पूरे तौर पर अप्रत्याशित है । जो इस पृथ्वी के साथ शायद यहाँ या और कहीं , वही सब या उससे अलग को फिर शुरू करने को अभिशप्त है । हम ईश्वर की बुद्धि के साथ हुए इस छोटे से हादसे के प्रति ऋणी हैं कि हम इस संसार में अत्यंत कष्टमय हैं । इस संसार में , जो हमें ग्रहण करने को, हमें आवास और भोजन देने को या चिंतनकारी जीवों को संतुष्ट करने को तैयार नहीं किया गया था । हम इस बात के लिए भी उस (ईश्वर ) के ऋणी हैं कि हमें उनसे अनवरत संघर्ष करना पड़ता है, जिन्हें आज भी विधाता की मंशा कहा जाता है, जब हम सचमुच सुसंस्कृत और सभ्य जीव हैं । "

ग्रांर्दै बड़े ध्यान से उसकी बातें सुन रहा था , क्योंकि उसे उसकी कल्पना के आश्चर्यजनक विस्फोटों के बारे में बहुत पहले से पता था । उसने सालनी से पूछा, " तो तुम विश्वास करते हो कि इनसानी सोच अंधे दैवीय प्रसव की सहज पैदावार है ? "

" स्वाभाविक है । यह हमारे मस्तिष्क के तंत्रिका केंद्र का एक आकस्मिक ( दैवाधीन ) कार्य है । यह किसी अप्रत्याशित रासायनिक क्रिया की तरह है, जो नए मिश्रणों के कारण होती है और जो उस विद्युत के उत्पाद की तरह भी है, जो किसी पदार्थ की अप्रत्याशित निकटता या घर्षण से पैदा होती है और जो अंत में उस परिघटना के समान भी है, जिसका निर्माण जीवित पदार्थ के अनंत और फलदायक उफान के कारण होता है ।

" लेकिन मेरे प्यारे दोस्त! इसकी सच्चाई उस व्यक्ति के आगे तो अवश्य ही स्पष्ट होगी , जो अपने आसपास यह सब देखता है । अगर सर्वज्ञ विधाता की ओर से निर्दिष्ट को वही होने के लिए बनाया गया था , जो आज वह हो गया है यानी मशीनी विचारों और भाग्यवादिता से बिलकुल भिन्न और इतना आग्रही, इतना खोजी, उत्तेजित, संतप्त, तो क्या वह दुनिया जिसे हमारे वर्तमान स्वरूप को ग्रहण करने के लिए बनाया गया था , तो यह दुनिया अभागे मूों के लिए असुखद छोटी आवास स्थली होती , यह सलाद का खेत , यह चट्टानी , जंगली और गोलाकार किचन गार्डन जहाँ तुम्हारे अदूरदर्शी विधाता ने हमें नियत किया है कि हम वहाँ नंगे रहें , गुफाओं में या पेड़ों के नीचे, वध किए गए जानवरों के, अपने भाई -बंधुओं के मांस का पोषण लेकर या कच्ची सब्जियों पर धूप और बारिश से पोषण पाकर ?

" लेकिन एक क्षण के लिए चिंतन करना पर्याप्त है , ताकि हम यह समझ सकें कि यह दुनिया ऐसे जीवन के लिए नहीं बनाई गई थी , जैसे कि हम हैं । सोच हमारे मस्तिष्क और कोशिकाओं की तंत्रिकाओं में एक चमत्कार से विकसित होती है, क्योंकि यह चमत्कार अशक्त, अज्ञानी और भ्रमित होता है और हमेशा रहेगा भी । यह हम उन तमाम लोगों को , जो बुद्धिजीवी प्राणी हैं , पृथ्वी पर शाश्वत और अभागे निर्वासित बनाता है ।

" इस पृथ्वी को देखो, जैसा कि ईश्वर ने इसे उन्हें दिया है, जो इस पर रहते हैं । क्या देखने में पूरे तौर पर इसे जानवरों की खातिर नहीं बनाया गया - यह जिस पर पेड़- पौधे हैं और जो जंगलों से ढकी है ? हमारे लिए यहाँ क्या है ? कुछ नहीं । उनके लिए? सब कुछ । उन्हें खाने, शिकार करने और अपनी वृत्तियों के अनुसार एक - दूसरे को खाने के अलावा और कुछ नहीं करना पड़ता , क्योंकि ईश्वर ने साधुता और शांतिपूर्ण आचरण का कभी पूर्वानुमान नहीं किया; उसने तो केवल उन प्राणियों की मौत का पूर्वानुमान किया , जो एक - दूसरे को नष्ट करने और खाने पर तुले थे। क्या तीतर, कबूतर और बटेर उस बाज का नैसर्गिक शिकार नहीं हैं , बजाय उस मांस के, जिसे खुंभियों के साथ हमें परोसने के लिए मोटा किया गया है और जिन्हें सुअरों ने खोदा है, हमारे विशेष लाभ के लिए ?

" जहाँ तक खुद हमारा सवाल है, हम जितने अधिक सभ्य, बुद्धिजीवी और सुसंस्कृत हों , उतने ही अधिक हमें उस पाशविक वृत्ति पर विजय पाने की आवश्यकता होनी चाहिए, जो हमारे अंदर ईश्वर की इच्छा का प्रतीक है । इसलिए जानवरों के रूप में अपनी नियति को कम करने की खातिर हमने मकानों से लेकर अत्युत्तम भोजन , चटनियों, मिठाइयों , पेस्ट्री, मदिरा, वस्तु, कपड़ों, गहनों, बिस्तरों , गद्दों, गाडियों, रेलमार्गों और अनगिनत मशीनों और इनके अलावा कलाओं-विज्ञानों , लेखन और कविता को खोजा और बनाया है । प्रत्येक आदर्श हमारे ही अंदर से और जिंदगी की जरूरी सुख - सुविधाओं से आता है कि सरल प्रजननकर्ताओं के रूप में हमारा वजूद कम नीरस और आसान बन सके , जिसके लिए दैवीय विधान ने हमें पूर्णत: अभिप्रेरित किया है ।

" इस थिएटर को देखो । क्या यहाँ हमारी रची हुई एक इनसानी दुनिया नहीं है, जो शाश्वत नियतियों के लिए अप्रत्याशित और अज्ञात है । केवल हमारे मस्तिष्क ही इसे समझ सकते हैं । यह एक ऐंद्रिक और बौद्धिक विचलन है , जिसकी खोज पूरे तौर पर एक असंतुष्ट तथा अशांत नन्हे जानवर के हाथों और उसी के लिए हुई है और वे जानवर हम हैं ।

" उस औरत , मादाम मास्कारे को देखो । ईश्वर की ओर से तो यह अभिप्रेत था कि वह किसी गुफा में नंगी या जंगली जानवरों की खालों में अपने आपको लपेटकर रहे , लेकिन क्या इस रूप में वह अधिक अच्छी नहीं है ? लेकिन उसके बारे में जब बात हो रही है, तो क्या किसी को यह मालूम है कि उसके वहशी पति ने अपने पास ऐसा साथी होते हुए और खासकर अपना उजड्डपन दिखाते हुए उसे सात बार माँ बना देने के बाद, क्यों और कैसे अचानक छोड़ दिया और अब गलत औरतों के पीछे भागता फिर रहा है ? "

ग्रांदै ने जवाब दिया , " ओह! मेरे प्यारे दोस्त, शायद यह अकेला कारण है । उसके पति को लगा कि हमेशा उसके साथ रहना अंत में बहुत महँगा पड़ रहा है और घरेलू अर्थव्यवस्था के कारणों से वह उन्हीं सिद्धांतों पर आ पहुँचा है, जिन्हें एक दार्शनिक के तौर पर तुम बनाते हो ।

तभी तीसरे अंक के लिए परदा उठा और वे मुड़ गए, उन्होंने अपने हैट उतारे और बैठ गए ।

काउंट और काउंटेस मास्कारे उस गाड़ी में अगल - बगल बैठे थे, जो उन्हें ऑपेरा से उनके घर ले जा रही थी । वे आपस में बोल नहीं रहे थे, लेकिन अचानक पति ने अपनी पत्नी से कहा , " गाब्रिएल! "

" क्या चाहिए ? "

" क्या तुम नहीं सोचतीं कि यह बहुत दिन चल गई ? "

" क्या ? "

" यह भयंकर सजा , जो तुम मुझे पिछले छह साल से दिए जा रही हो । "

" तुम क्या चाहते हो ? मैं इसमें कुछ नहीं कर सकती । "

" तो फिर मुझे बता दो, वह कौन सा बच्चा है? "

" कभी नहीं । "

" यह तो सोचो कि अब मैं अपने बच्चों को जब भी देखता हूँ तो मेरे दिल पर इसी शक का बोझ रहता है । मुझे बता दो कि वह कौन सा बच्चा है । मैं कसम खाकर कहता हूँ कि मैं तुम्हें माफ कर दूंगा और उसके साथ और बच्चों जैसा ही बरताव करूँगा। "

"मुझे यह अधिकार नहीं है । "

" तुम समझ नहीं रही हो कि मैं इस जिंदगी को अब और बरदाश्त नहीं कर सकता । यह सोच मुझे गलाए दे रही है । यह सवाल मैं हमेशा अपने आपसे पूछता रहता हूँ, जब- जब भी मैं उन्हें देखता हूँ, यह सवाल मुझे परेशान करता है । यह मुझे पागल किए दे रहा है । "

" तो तुमने बहुत कष्ट उठाया है ? " वह बोली ।

" भयंकर तौर पर । क्या बिना उसके मैं तुम्हारी और भी भयावहता को स्वीकार करता कि मैं महसूस करता हूँ और जानता भी हूँ कि उनमें से एक है, जिसे मैं पहचान नहीं सकता और जो मुझे दूसरे बच्चों को प्यार करने से रोकता है ? "

काउंटेस ने फिर कहा, " तो तुमने सचमुच बहुत कष्ट उठाया है ? "

इस पर काउंट ने संयत और दुखी स्वर में जवाब दिया - " हाँ, क्योंकि मैं तुम्हें रोज यह नहीं बताता कि यह मेरे लिए असहनीय यातना है? अगर मैं उन्हें प्यार न करता होता तो क्या मैं उस घर में तुम्हारे और उनके नजदीक रहता ? ओह ! तुमने मेरे साथ बड़ा घिनौना बरताव किया है । मैंने अपने दिल का सारा स्नेह अपने बच्चों पर उँडेला है । तुम इस बात को जानती हो । उनके लिए मैं पुराने जमाने का बाप हूँ । जैसे मैं तुम्हारे लिए पुराने जमाने के एक परिवार का शौहर था । अपनी वृत्ति से मैं एक नैसर्गिक आदमी, पुराने दिनों का आदमी बना रहा हूँ । हाँ, यह मैं कबूल करता हूँ कि तुमने मुझे बेहद ईर्ष्यालु बना दिया है, क्योंकि तुम किसी और ही नस्ल की , किसी और ही आत्मा की औरत हो । तुम्हारी दूसरी जरूरतें हैं । ओह! तुमने जो - जो मुझसे कहा है, उसे मैं कभी नहीं भूल पाऊँगा, लेकिन उस दिन के बाद से मैं तुम्हारे बारे में कभी परेशान नहीं रहा । मैंने तुम्हें जान से इसलिए नहीं मारा, क्योंकि तब मेरे पास इस दुनिया में यह जानने का कोई साधन नहीं रहता कि हमारे- तुम्हारे बच्चों में से कौन सा मेरा नहीं है । मैंने इंतजार किया है, लेकिन मैंने इतना ज्यादा कष्ट उठाया है कि तुम्हें यकीन नहीं होगा , क्योंकि अब मैं उन्हें प्यार करने की हिम्मत नहीं कर पाता । शायद सबसे बड़े दो बच्चों को छोड़कर मैं अब उनकी तरफ देखने की , उन्हें अपने पास बुलाने की , उन्हें चूमने की हिम्मत नहीं कर पाता । ऐसा नहीं हो पाता कि मैं उन्हें अपनी गोद में बिठाऊँ और मेरे मन में यह सवाल न उठे , क्या यह वाला होगा ? छह साल में मैंने तुम्हारे साथ अपने व्यवहार को सही रखा, बल्कि रहमदिल और शालीन भी । मुझे बता दो कि सच्चाई क्या है और मैं कसम खाता हूँ कि मैं कोई भी बेरहमी वाला काम नहीं करूँगा। "

घोड़ा-गाड़ी में अँधेरा होने के बावजूद उसे लगा कि वह यह देख सकता है कि उसकी बातों का उसकी पत्नी पर असर हुआ है । उसे जब यह विश्वास हो गया कि आखिर वह बोलने जा रही है, तो उसने कहा, " मैं तुमसे प्रार्थना करता हूँ । मैं तुमसे याचना करता हूँ कि वह बात मुझे बता दो । "

" तुम शायद जितना सोचते हो , मैं उससे कहीं ज्यादा कसूरवार हूँ । " उसने जवाब दिया , " लेकिन लगातार गर्भवती रहने वाली वह जिंदगी मुझसे सहन नहीं हो पा रही थी , तुम्हें अपने बिस्तर से दूर रखने का मेरे पास बस एक ही साधन था । मैंने ईश्वर के आगे झूठ बोला और मैंने अपने बच्चों के सिर पर हाथ रखकर भी झूठ बोला, क्योंकि मैंने तुम्हारे साथ कभी धोखा नहीं किया है । "

काउंट ने अँधेरे में उसका हाथ पकड़ लिया और ब्वा द बूलॉनी में सैर वाले उस भयंकर दिन की तरह उसे भींचते हुए बोला, " क्या यह सच है ? "

" यह बिलकुल सच है । "

लेकिन वह भयंकर दु: ख में कराहते हुए बोला, " अब मेरे अंदर नए सिरे से शक पैदा हो जाएँगे, जिनका कभी खात्मा नहीं होगा । तुमने झूठ कब बोला, पिछली बार या अब? इस समय मैं तुम पर कैसे विश्वास कर लूँ? उसके बाद कोई किसी औरत पर कैसे विश्वास कर सकता है ? मैं अब फिर कभी नहीं जान पाऊँगा कि मुझे क्या सोचना चाहिए । मैं तो चाह रहा था कि तुम मुझसे कहो, वह बच्चा जाक है या वह बच्ची जां है । "

घोडा-गाड़ी उन्हें लेकर उनकी हवेली के प्रांगण में आ गई और जब यह सीड़ियों के आगे आकर रुकी तो हमेशा की तरह पहले काउंट गाड़ी से उतरा और अपनी पत्नी को ऊपर जाने में मदद करने के लिए उसका हाथ पकड़ लिया , फिर जैसे ही वे पहली मंजिल पर पहुँच गए तो वह बोला, " क्या मैं तुमसे कुछ पल और बात कर सकता हूँ ?"

उसने जवाब दिया, " मेरी भी इच्छा है । "

वे एक छोटी सी बैठक में चले गए और एक दरबान ने कुछ चकित होते हुए मोमबत्तियाँ जला दीं । जैसे ही दरबान कमरे से बाहर गया अब वे अकेले रह गए, तो उसने अपनी बात आगे बढ़ाई, "मुझे सच्चाई का पता कैसे चलेगा ? मैंने तुमसे हजार बार प्रार्थना की कि बोलो, लेकिन तुम गूंगी बनी रहीं; अभेद्य, अनम्य, कठोर बनी रहीं । आज तुम मुझसे कह रही हो कि तुम झूठ बोल रही थीं । छह साल तक तुमने मुझे सचमुच इस तरह की बात पर विश्वास करने दिया ! नहीं , तुम अब झूठ बोल रही हो , मुझे पता नहीं क्यों , लेकिन शायद मुझ पर तरस खाकर ? "

उसने ईमानदारी भरे और आश्वस्त अंदाज में कहा, “ अगर मैंने ऐसा न किया होता, तो पिछले छह साल में मैं चार और बच्चों की माँ बन गई होती ! "

वह चकित होकर बोला, " क्या कोई माँ इस तरह की बात कर सकती है ? "

" ओह ! " काउंटेस ने जवाब दिया, "मैं यह तो बिलकुल नहीं महसूस करती कि मैं उन बच्चों की माँ हूँ, जो कभी पैदा ही नहीं हुए । मेरे लिए तो यही काफी है कि मैं उन्हीं बच्चों की माँ बनी रहूँ , जिन्हें मैंने पैदा किया है और उन्हें पूरे मन से प्यार करूँ । मैं वह औरत हूँ हम वे औरत हैं जो सभ्य समाज की हैं । हुजूर! और हम सब केवल ऐसी औरतें नहीं रह गई हैं और होने से इनकार भी करती हैं , जो बस धरती की आबादी बढ़ाने का काम करती हैं । "

यह कहकर वह उठ गई , लेकिन काउंट ने उसके हाथ पकड़ लिये और बोला, " बस एक बात, गाब्रीएल । मुझे सच्चाई बता दो ! "

" मैंने अभी - अभी तुम्हें बताई तो । मैंने कभी तुम्हारी इज्जत को बट्टा नहीं लगाया है । "

काउंट ने उसके मुँह की तरफ भरपूर नजरों से देखा । कितनी खूबसूरत थी वह! ठंडे आसमान जैसी काली आँखें । उसके सिर के काले वस्त्र में , काले बालों की उस अपारदर्शी रात में सितारों के झुंड की तरह चमक रहा था हीरों का मुकुट , फिर अचानक उसे महसूस हुआ, एक तरह की अंत: प्रेरणा ने उसे महसूस कराया कि यह शानदार स्त्री मात्र ऐसी जीव नहीं थी, जिसकी नियति उसकी नस्ल को आगे बढ़ाने की हो, बल्कि वह तो विचित्र और रहस्यमयी देन थी, उन तमाम जटिल इच्छाओं की , जो हमारे अंदर शताब्दियों से जमा होती आ रही हैं , लेकिन जिन्हें उनके आदिम और दैवीय उद्देश्य से दूर हटा दिया गया है और जो एक रहस्यमयी, अपूर्ण रूप में देखी गई और अनुभवातीत सुंदरता के पीछे भटकती रही हैं । कुछ औरतें ऐसी होती हैं , जो केवल हमारे सपनों के लिए खिलती हैं । जो सभ्यता के प्रत्येक काव्यात्मक गुण से सजी होती हैं । वे आदर्श, ऐश्वर्य, चंचलता और सौंदर्यवादी आकर्षण से सजी होती हैं , जिन्हें उस जीवित बुत को घेरे होना चाहिए, जो हमारी जिंदगी को उज्ज्वल बनाता है ।

उसका पति उसके सामने खड़ा रहा । वह इस विलंबित और अस्पष्ट खोज से हतप्रभ था , जो उसकी पूर्व ईर्ष्या के कारण पर भ्रमित होकर चोट कर रही थी । वह इस सबको बड़ी अपूर्णता से समझ रहा था । अंत में वह बोला , " मुझे विश्वास है कि तुम ठीक कह रही हो , क्योंकि मुझे लग रहा है कि तुम झूठ नहीं बोल रही हो । पहले मैं सचमुच यही सोच रहा था कि तुम झूठ ही बोल रही हो । "

काउंटेस ने अपने पति की ओर अपना हाथ बढ़ाया और बोली, " तो फिर हम दोस्त हैं ? "

काउंट ने उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए उसे चूम लिया और जवाब दिया, " हम दोस्त हैं । शुक्रिया , गाब्रीएल । "

फिर वह वहाँ से निकल गया । वह अभी भी अपनी पत्नी को देखे जा रहा था और इस बात पर चकित था कि वह अभी भी इतनी खूबसूरत है । उसे अपने अंदर एक विचित्र भावना उठती महसूस हुई, जो शायद प्राचीन और साधारण प्रेम से कहीं अधिक अदम्य थी ।