Us Gali Mein Mein Mere Pairon Ke Nishan Kaise Hain : Asghar Wajahat

उस गली में मेरे पैरों के निशां कैसे हैं : असग़र वजाहत

दिल्ली में कमलेश्वर इस यात्रा में साथ थे। बारिश और दैत्याकार ट्रकों द्वारा टूटी फूटी सड़कों पर गाड़ी में जोर का कमरतोड़ धक्का लगता था तो याद आ जाता था कि यह धक्का बहत्तर वर्षीय कमलेश्वर को भी लगा होगा और अगर वे सह रहे हैं तो हमें अपनी जुबान बंद ही रखनी चाहिए। मऊ स्टेशन में हमें तथागत नामक एक होटल में ले जाया गया। यह बहुत सुखद यात्रा नहीं थी। लेकिन उसके बाद जोकहरा और फिर वहां से गंगोली की यात्रा सब्र का इम्तिहान लेनी वाली थी। जय प्रकाश ‘धूमकेतु’ ने यात्रा को सुखद बनाने के लिए एक तरीका अपनाया था। तरीका यह था कि दूरियां कम करके बताते थे। जैसे जोकहरा से गंगोली साठ किलोमीटर दूर है लेकिन वे बताते थे यही कोई पच्चीस तीस किलोमीटर है। गंतव्य पर पहुंचने पर ही मोहिनी मुस्कुराहट के साथ बताते थे कि यदि यह बता दिया होता कि दूरी इतनी है तो शायद...

हिन्दी के चर्चित लेखक और विवादास्पद सम्पादक विभूति नरायण राय के लिए यदि दुर्लभ शब्द का प्रयोग किया जाये तो अनुचित न होगा। उत्तर प्रदेश में पुलिस के अत्यंत वरिष्ठ इस अधिकारी दस साल पहले अपने गांव जोकहरा में एक पुस्तकालय की स्थापना की थी। मऊ से हम सीधे जोकहरा पहुंचे और वहां राष्ट्रीय संगोष्ठी 'हिन्दुस्तानी की परम्परा और राही मासूम रज़ा का साहित्य' विषय पर परिचर्चा शुरू हुई।

दिल्ली या अन्य महानगरों की गोष्ठियों की तुलना में यहाँ ऐसे लोगों को बड़ी संख्या थी जो वास्तव में कुछ जानना चाहते हैं। सुनना और समझना चाहते हैं। स्कूलों के छात्र थे। गांव के लोग थे। आसपास के जिलों से आये साहित्यप्रेमी और पत्रकार थे। यहां विख्यात हिन्दी साहित्य प्रेमी सुधीर शर्मा भी मिले जो गोवा जेल में दस वर्ष की सज़ा काटरकर अब पुस्तकालय में काम कर रहे हैं।

गोष्ठी में हिन्दुस्तानी की परम्परा पर बातचीत हुई। उस परम्परा की चर्चा हुई जो अमीर खुसरो, कबीर, मीरा से होती निराला और फिराक़ गोरखपुरी तक आती है। वह परम्परा जो आज हिन्दी और उर्दू साहित्य को जीवंत बनाये हुए हैं।

मेरे लिए इस गोष्ठी का विशेष महत्त्व यह था कि इसमें कुछ छायांकन करने का था। मैं चाहता था कि राही के घर, गांव और कुछ लोगों के चित्र ले लिए जायें ताकि गवाही रहे और बेवक्त पर जरूरत काम आये।

राही के घर के सामने के आंगन में शामियाना लग गया था इसलिए घर का चित्र सामने से नहीं खिंच पाया। घर के वे हिस्से जहां चित्र खींचे जा सकते थे वहां फोटोग्राफी की। अन्दर का आंगन जिसका जिक्र ‘आधा गांव’ में है। श्यामबाड़ा, डयोड़िया, बैठक और पुरानी डोलियां सबको सुरक्षित कर लिया। खपरैल की छतों पर कलाकारी और मिट्टी की लिपी-पुती दीवारें और छतों पर किया गया लकड़ी का काम कमरे के जैस में समाते चले गये। घर के बाद मैंने उपन्यास में वर्णित उत्तर पट्टी और दक्खिन पट्टी के घरों की राह ली।

मोहरम का ताज़िया जहां रखा जाता है, जुलूस जिन गलियों से गुजरता है, गांव की मजिस्द, तालाब, मंदिर, धान के फैले हुए खेत, अमराइयां, बांस के झुरमुट फिल्म स्ट्रिप पर उतरते चले गये, सैयद नफीस अहमद, जो राही के रिश्तेदार हैं, से मैंने पूछा कि राही की कविताओं में नील के गोदाम का जिक्र है, वह कहां है। उन्होंने कहा नील का गोदाम कुछ दूर हैं, मैं आपको स्कूटर से ले चलता हूँ।

मैं उनके साथ नील के गोदाम गया। रास्ते में वह स्कूल पड़ा जहां राही ने प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की थी। वह तालाब मिला जहां गांव के लड़के नहाते थे। राही की कविताओं और गांव में बड़ी समानता है । राही का साहित्य जीवंत हो गया था। लोकार्पण समारोह बहुत सादा लेकिन विशेष था। प्रो. कुँवरपाल सिंह ने बताया कि राही की बड़ी ख्वाहिश थी कि आधा गांव उर्दू में छपे। लेकिन गंगोली में उसका लोकार्पण भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं है।
लोकार्पण समारोह के बाद हम सब मऊ आ गये। अगले दिन ‘धूमकेतु’ ने एक प्रेस कांफ्रेंस रखी थी। मऊ के प्रेस कर्मियों से जो बात हुई वह बड़ी सार्थक लगी और यह भी समझ में आया कि आज संवाद विहीनता की स्थिति है। यदि संवाद बनाया जाये तो बहुत सी अनबूझ पहेलियों के उत्तर मिल सकते थे।

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