Upar Ka Aasman : Asghar Wajahat
ऊपर का आसमान : असग़र वजाहत
जोरावर सिंह ने पड़ोस के देश को शांतिदूत अर्थात् कबूतर भेजने का निश्चय किया। क्योंकि कम खर्च और नये तरीके से शांति संदेश भेजने का इससे अच्छा तरीका नहीं हो सकता इसलिए जोरावर सिंह अगले दिन बाजार गये। शांति दूत बन सकने लायक कबूतरों का अकेला जोड़ा बिक गया था और एक आदमी उसे घर की तरफ दिए जा रहा था। जोरावर सिंह ने उस आदमी से कहा, ‘‘तुम ये कबूतर मुझे दे दो।’’
उस आदमी ने कहा, ‘‘क्यों मैं इन्हें पकाने ले जा रहा हूं।’’
जोरावर सिंह के मुंह में पानी भर आया। पर वे बोले, ‘‘तुम्हें शर्म नहीं आती शांतिदूत से अपना पेट भरोगे। लाओ तुम मेरे हाथ ये कबूतर उतने ही पैसे पर बेच दो जितने में खरीदे हों।’’
आदमी ने कहा, ‘‘खरीदे कहां हैं कबूतर वाले ने ऐसे ही दे दिए। उसने कहा, अब इन सालों का क्या करना है। ले जाओ, पकाकर खा लेना।’’
जोरावर सिंह कबूतर ले आये और अनजाने में उनकी वैसा ही सेवा करने लगे जैसी कुर्बानी के बकरे की होती है।
एक दिन ऐसा आया जब पड़ोस के देश को शांतिदूत भेज देना उन्हें बहुत जरूरी लगा और उन्होंने कबूतरों की चोंच में जैतून की टहनी पकड़ाने की कोशिश की लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि कबूतरों ने ऐसा करने से इनकार कर दिया। जोरावर सिंह क्रियेटिव किस्म के आदमी थे। एक-एक करके घर की सब चीजें कबूतरों की चोंच में ठूंसने का प्रयास करते रहे। आखिर तंग आकर वे कबूतरों के सामने थ्री नाट थ्री ले गये और कबूतरों ने झपट कर उसे पकड़ लिया। थ्री नाट थ्री खाली थी। और खाली चीज देना अपशगुन माना जाता है इसलिए जोरावर सिंह ने उसमें कारतूस भर दिये। थ्री नाट थ्री लेकर कबूतर खुशी-खुशी उड़े। कबूतरों ने ऊपर पहुंचते-पहुंचते फायरिंग शुरू कर दी। चिनगारियों और धुएं से ऊपर का आसमान लाल और काला हो गया।