अंडरवियर (गुजराती कहानी) : आबिद सुरती
Underwear : Aabid Surti (Gujarati Story)
रामदास छोटे कद का आदमी था । स्वभाव से नम्र । रास्ते में कोई परिचित मिल जाता तो वह नम्रतापूर्वक हाथ जोड़कर पहले तो नमस्कार करता और फिर हालचाल पूछता । उस वक्त उसके चेहरे पर एक अजीब-सी मिठास झिलमिला उठती । परिचित व्यक्ति के दूर होते ही वह मिठास भी दूर हो जाती ।
वैसे देखा जाए तो रामदास का स्वभाव गंभीर था । खासकर एकांत में वह अपने में खो जाता । फिर गंभीरता से सोचता । सोचने के लिए कोई विषय न मिलने पर वह, क्या सोचा जाए, इस विषय पर सोचता । उसके विचार भी फैंटास्टिक होते थे । उसकी कल्पना जमीन से छलांग लगाती तो सीधी चंद्रमा पर जा बैठती और चंद्रमा पर से कलाबाजियाँ दिखाती सीधे मंगल-ग्रह पर दिखाई देती ।
रामदास शर्ट-पैंट के साथ मोटे फ्रेम का चश्मा भी पहनता था । वह उसे पढ़ने के काम में नहीं लाता था । कभी वह कोई किताब पढ़ने के लिए लेता तो चश्मा उतारकर तिपाई पर रख देता। उसकी कल्पना कुलांचें भरती-चश्मे के साथ आँखें भी उतारकर तिपाई पर रखी जा सकें तो? फिर चश्मे के साथ उसकी आँखें उतर गई हों, ऐसे वह तिपाई पर मोटे फ्रेम को देखता रहता ।
पत्नी पूछती, ‘क्या देख रहे हैं आप?' वह चौंककर पत्नी की ओर देखता और किताब में मुँह छिपा लेता । पलभर उसके मन में सवाल उठता : क्या उसके विचारों को पत्नी पढ़ सकती है? कभी उसे शक होता-शायद पत्नी उसके विचार पढ़ती होगी । यकीन करने के लिए एक दिन उसने मन-ही-मन पत्नी से कहा, ‘हे प्रिय! मेरे मन की आवाज आप सुन सकती हैं तो बताइए, औरतज़ात के बारे में मैं । अभी क्या सोच रहा था?' प्रश्न कर वह पत्नी से मुखातिब हुआ और बेवकूफ़ की तरह एकटक देखता रहा ।
पत्नी झुँझलाकर बोली, ‘हे भगवान! ऐसे मूडी पतियों को पैदा करना था तो हम जैसी पत्नियों को जन्म क्यों दिया?' और रामदास नाखून चबाते हुए फिर चौंका । हकीकत में वह सोच रहा था कि दुनिया में औरतें न होतीं तो क्या होता?
उसके सवाल और पत्नी के जवाब में काफी समानता थी । उसे लगा, उसकी विचार-तरंगें उसके आसपास के लोगों को छू सकती हैं और वे लोग अपनी प्रतिक्रिया भी दर्शाते हैं ।
रामदास सावधान हो गया । सोचने के लिए वह अब वक्त ढूंढ़ने लगा । एकांत ढूंढ़ने लगा । कभी वह बगीचे में जाकर गोशा खोजता तो कभी समुद्रतट पर जा बैठता । कभी वह देर रात को मकान के नीचेवाले चबूतरे पर पालथी मारकर सोचने बैठता तो कभी तड़के उठकर किसी मैदान में चला जाता ।'’
एक रात वह सुनसान सड़क पर टहल रहा था और उसे एक बेमिसाल टोटका सूझा । भगवान के अद्भुत सृजन इंसान में उसे एक खोट दिखाई दी थी, बल्कि भूल। उसके तर्क के मुताबिक इंसान के चेहरे पर दो आँखों की बजाय केवल एक ही आँख काफी थी और वह भी माथे के बीचोंबीच । वह एक आँख से दो आँखों का काम सरलता से कर सकती थी ।
फिर भी, पलभर के लिए हम यह मान लें कि भगवान की इच्छा इंसानों को दो आँखें भेंट देने की है तो दूसरी आँख के लिए कोई नई, सुयोग्य जगह ढूंढ़ी जा सकती है । जैसे कि
दाहिने हाथ की हथेली । अगर हथेली के बीच में एक आँख हो तो हम हथेली को चाहे जिस ओर घुमाकर चाहे जो मंजर देख सकते हैं ।
इस बारे में उसने घंटों चिंतन-मनन किया । मसलन वह पूर्व की ओर मुँह करके बैठा हो तो माथे के बीच की एक आँख सामने देखती होगी और हथेली पीठ पीछे रखी हो तो पीठ पीछे वाला मंजर भी देखा जा सकता है ।
यह अद्भुत विचार उसे पत्नी के मायके जाने के तीसरे रोज और रात के दो बजकर पंद्रह मिनट पर सूझा था और उस समय वहाँ कोई मौजूद न था । यदि होता तो वह रामदास को खुश होकर .पागल की तरह नाचते देख जरूर अचंभे में पड़ जाती । और किसी की मौजूदगी का अहसास होने पर रामदास उससे कहता- क्षमा करें, महाशय, मनोभाव की अभिव्यक्ति में थोड़ी-सी ज्यादती हो गई ।
जिस रात रामदास को ‘हथेली में आँख ' वाला विचार आया, उसके दूसरे ही दिन से जैसे उसकी हथेली में सचमुच एक आँख निकल आई हो, ऐसे वह हथेली को पीठ पीछे लेकर न दिखने वाले दृश्यों को देखने की कोशिश करने लगा । कभी वह हथेली माथे पर रख पूरा आकाश नई आँख में समा लेने के सपने देखता, तो कभी हथेली मनचाही स्थिति में स्थिर करके खुद भी स्थिर हो जाता । अलबत्ता इसमें उसे निराशा ही मिलती । फिर भी वह मायूस न होता । उसे दुख भी न होता । वजह?
यह खेल उसे भा गया था । हथेली में भले आँख न हो, उसकी कल्पना में एक आँख जरूर थी और वह आँख सबकुछ देख सकती थी । शायद इसीलिए राह चलते वह चुपचाप हथेली की स्थिति बदला करता । वह पूरी सावधानी बरतता कि किसी का ध्यान उसकी ओर आकर्षित न हो । वह पागल है, ऐसा किसी को शक न हो । मकान के किराएदारों को तो कतई नहीं ।
रामदास भूलेश्वर के जिस मकान में रहता था, उसके दस किराएदारों के बीच एक संडास कॉमन था । भोर होते ही वहाँ लाइन लगने की शुरूआत हो जाती । रोक की तरह आज भी रामदास डालडा का डिब्बा लेकर लैटरीन के पास आया तो वह बंद था । डिब्बा नीचे रख बंद दरवाजे को वह देखता रहा । दरवाजे के ऊपर के हिस्से की एक पट्टी से सड़कर टूट जाने की वजह से लैटरीन में बैठे आदमी के खड़े होते ही उसका माथा देखा जा सकता था ।
रामदास को सहज ही लैटरीन के भीतर झाँकने की इच्छा हुई । उसने हथेली टूटी पट्टी वाले हिस्से पर रखकर धीरे से अंदर खिसका दी । उसे हैरत हुई । संडास में बैठी एक औरत की साफ तस्वीर उसने अपने दिमाग के पर्दे पर देखी । उसकी खुशी की सीमा न रही। लेकिन इस बार अपने मनोभाव की अभिव्यक्ति में उसने ज्यादती न की । वह केवल मूंछों में मुस्कराकर रह गया । दूसरे दिन फिर उसने संडास के बाहर खड़े होकर प्रयोग किया और अपनी सफलता पर विश्वास होने पर नए-नए प्रयोग करने के लिए उसका दिल बेचैन हो उठा । दस की टंकार पर तैयार ऑफिस जाते समय रास्ते में पोस्ट बॉक्स दिखाई दिया । वह थोड़ा रुका । ‘पोस्ट बॉक्स में उसने अपनी हथेली सरकाई और अंदर पड़ी चिट्ठियों को उसकी अदृश्य आँखों ने देख लिया । इतना ही नहीं, पोस्ट बॉक्स में पड़े चिट्ठियों के ढेर पर दो मासिक पत्रिकाएँ थीं, यह भी उसने नोट किया ।
थोड़ी दूर जाने पर उसकी नजर सड़कछाप एक खेल पर पड़ी । गैस लाइट के खंभे के सहारे एक आदमी हाथ में .झोला लिए खड़ा था । उसके झोले में एक से सौ तक की संख्या वाली पर्चियाँ थीं । सिर्फ़ पच्चीस पैसे देकर झोले में से एक नंबर की पर्ची निकालने वाले को इनाम में एक ट्रांजिस्टर मिल सकता था । रामदास के लिए इनाम जीतना और चुटकी बजाना दोनों एक ही बात थी, तुरंत उसने पच्चीस पैसे का एक सिक्का देकर हाथ झोली में डाला और हथेली खोल दी । हथेली की पहली नजर से उसने ऊपर की कई पर्चियाँ देख डालीं । एक नंबर की पर्ची नजर न आने पर उसने पर्चियों के ढेर को उथल-पुथलकर एक पर्ची दो अँगुलियों के बीच फँसा बाहर खींच ली । फिर नंबर देख सामने खड़े हुए आदमी को पर्ची देते हुए उसने कहा, ' भाई, भगवान की इच्छा है कि ट्रांजिस्टर मुझे तोहफ़े में मिले । यह पहला नंबर देखने के बाद आप भी यही चाहेंगे, ऐसी मैं उम्मीद करता हूँ।’
‘ऑफिस पहुँचकर ट्रांजिस्टर पर क्रिकेट की कमेंट्री सुनते हुए रामदास को अचानक ख्याल आया, उसके दाहिने हाथ की हथेली कीमती है और उसका बीमा करवाना चाहिए। उसी दिन लंच-ऑवर के बाद वह एलआईसी के दफ्तर में चला गया और स्वागत कक्ष में बैठी लड़की से इस बारे में पूछताछ की। रिसेप्सानिस्ट ने बीमा एजेंट श्रीमती बैंकर के कैबिन की ओर अंगुली की।
रामदास उस कैबिन में गया तो श्रीमती बैंकर ने सफेद साड़ी में मुस्कराकर उसका स्वागत किया। रामदास ने सामने की कुर्सी पर बैठते हुए अपनी बेजोड़ हथेली के बारे में थोड़ी जानकारी देकर उसका बीमा करवाने की बात कही। श्रीमती बैंकर मुस्कराई।। रामदास की बात में उसे रस जगा था, सो पूछा, ' इसका क्या सबूत कि आपकी हथेली देख सकती है?’
‘बहिन! ' रामदास ने विनम्र होकर बताया, ‘आपको सचमुच आजमाइश करनी हो तो आप मेरे पास खड़ी हो जाएँ। मैं आपकी साड़ी के नीचे हाथ सरकाकर बता दूँगा कि आपके अंडरवियर का रंग कैसा है?’
श्रीमती बैंकर को जैसे बिजली का झटका लगा हो, आँखें सुर्ख हो गई। दूसरे पल उन्होंने टेबल पर पड़ी घंटी बजाई । तीसरे पल चपरासी अंदर घुस आया । श्रीमती बैंकर ने उसे इशारे से ही समझा दिया-इस नामाकूल को धक्के मारकर बाहर फेंक दो ।
रामदास ने दोनों हाथ जोड़कर अर्ज किया, ‘कोई गलती हो गई हो तो क्षमा करना, बहिन! लेकिन आप खुद ही चाहती थीं कि ... ' उसका जुमला पूरा हो इससे पहले चपरासी ने उसे गले से पकड़कर फुटपाथ पर धकेल दिया ।
रामदास का घोर अपमान होने के बाद भी उसका जरा भी असर उसके चेहरे पर दिखाई नहीं दे रहा था, बल्कि उसका चेहरा खिल उठा था । साड़ी के नीचे हाथ सरकाने का मजाक अफलातून था । अपने दफ्तर की ओर जाते हुए वह सोच रहा था । उसने कहीं सुना था, आजकल की लड़कियाँ अंडरवियर नहीं पहनती थीं । साड़ी पहनती थीं, मैक्सी पहनती थीं, लेकिन अंदर कुछ भी नहीं पहनती थीं । क्या यह सच था?
यह रहस्य जानना रामदास के लिए जरूरी था । उसकी आँखें यहाँ-वहाँ भटकने लगीं । उसने देखा तो सामने से मिनी फ्रॉक वाली एक एयर होस्टेस आ रही थी । उस एयर होस्टेस को रोककर उसकी फॉक के नीचे सिर्फ़ पलभर के लिए हथेली सरकानी थी । लेकिन ऐसा करने के लिए थोड़े साहस की जरूरत थी और रामदास साहसी जीव न था । एयर होस्टेस को फटाफट कदम बढ़ाकर जाते हुए वह देखता रहा ।
वह अपने दफ्तर आया तब उसका ट्रांजिस्टर बगल में बैठनेवाली टाइपिस्ट लड़की अपनी मेज पर रखकर गीतों का कार्यक्रम सुन रही थी । रामदास पर नजर पड़ते ही उसने ट्रांजिस्टर बंद कर लौटा दिया । रामदास ने उसे नम्रता से ‘थैंक्यू' कहकर जोड़ा,'बहिन! यह ट्रांजिस्टर मुझे बिलकुल मुफ्त में मिला है । आप चाहें तो यह आपका हो सकता है ।’
‘वह कैसे?' टाइपिस्ट लड़की तुरंत बोली ।
रामदास ने जवाब न दिया । वह अपने काम में व्यस्त हो गया । शाम तक वह फाइलों पर निशान लगाकर बाईं और बैठे सहायक को ‘पास' करता रहा । शाम छह की टंकार पर काम बंद कर उसने दाहिनी ओर बैठी टाइपिस्ट लड़की की ओर देखा । लड़की उसकी ओर देख मुस्कराई । दोनों साथ ही नीचे उतर नुक्कड़ के एक होटल में गए और फैमिली रूम में बैठे ।
‘देखो, बहिन!' रामदास ने कॉफी का घूँट भरते हुए शुरूआत की, ‘मुझे एक छोटा-सा प्रयोग करना है । आपकी किस्मत अच्छी होगी तो यह ट्रांजिस्टर आप जीत जाएँगी ।’
‘लेकिन मुझे करना क्या है?' टाइपिस्ट लड़की बोल उठी ।
कभी का कप अधूरा छोड़कर रामदास ने उससे खड़े होने की विनती की । वह तुरंत खड़ी हो गई । रामदास घुटनों के बल बैठ गया और अपनी हथेली सीधी कर लड़की के दो पैरों के बीच फर्श पर रख दी । लड़की की समझ में कुछ भी न आया । वह रामदास के एकाग्र माथे को आश्चर्य से देखती रही ।
थोड़ी देर बाद रामदास के चेहरे पर मुस्कान फैली । उसने नजरें उठाकर लड़की से कहा, ‘अब ध्यान से सुनना, बहिन! मैं जो कुछ कहूँगा उसमें जरा भी भूल होगी तो ट्रांजिस्टर आपका । सच बताना, आपने नीले रंग की अंडरवियर पहनी है न?’
लड़की ने आँखें झपकाई । रामदास मन-ही-मन खुश हो रहा था । कह रहा था, ‘बहिन, मैं जादूगर नहीं । फिर भी मैं कहूँगा कि आपके अंडरवियर में दो छेद भी हैं । अब आप साबित कर दें कि मैं गलत हूँ और ट्रांजिस्टर आपका ।' लड़की ने फ्रॉक हाथ में लेकर गले तक उठा दी । रामदास फटी-फटी आँखों से देखता रहा । लड़की ने फ्रॉक के अंदर कुछ भी नहीं पहना था ।