टॉम काका की कुटिया (उपन्यास) : हैरियट बीचर स्टो

अनुवाद : हनुमान प्रसाद पोद्दार

Uncle Tom's Cabin (Novel in Hindi) : Harriet Beecher Stowe

41. जयोल्लास

क्‍या सभी दशाओं में मृत्‍यु कष्‍टकर जान पड़ती है? बहुत-से लोग तो इस दु:खों - यंत्रणाओं से भरे संसार में ऐसे होते हैं, जो खुशी-खुशी मरना चाहते हैं। वे मृत्‍यु को भयानक नहीं समझते। कितने ही ऐसे धर्मवीर हुए हैं, जिन्‍होंने निर्भीक होकर मृत्‍यु से भेंट की। सत्‍य और धर्म के लिए, संसार से अन्‍याय को दूर करने के लिए, कितने ही धर्मवीर और कर्मवीर प्रसन्‍नता से मृत्‍यु की वेदी पर बलि हो गए। क्‍या उन्‍हें उस समय मृत्‍यु कष्‍टकर जान पड़ी थी? कदापि नहीं! मनुष्‍य जब सत्‍य विश्‍वास से उत्तेजित हो जाता है और हृदय में उमड़े हुए धर्म-प्रेम और प्रेमावेश के कारण अपने-आपको भूल जाता है, उस समय वह बाह्य ज्ञान से सर्वथा रहित हो जाता है। किसी प्रकार का शारीरिक कष्‍ट उसकी अंतरात्‍मा को स्‍पर्श नहीं कर सकता।

परंतु जिन्‍हें नित्‍य मार का कष्‍ट सहन करना पड़ता है, जिन्‍हें अत्‍याचारी लोग बूँद-बूँद रक्‍त चूसकर मारते हैं और कठोर आचरण सहते-सहते जिनके हृदय की दया, ममता, एवं अन्‍य सब प्रकार के सद्भावों का शनै:-शनै: नाश हो जाता है, उन्‍हें भी क्‍या मृत्‍यु कष्‍टकर नहीं है? इससे अधिक कष्‍टकर मृत्‍यु संसार में और हो भी क्‍या सकती है?

नर-पिशाच लेग्री जब टॉम को पीटता था और उसे मार डालने की धमकी देता था, उस समय टॉम मन-ही-मन सोचता था कि अब उसके संसार छोड़ने का समय आ गया है, अब शीघ्र ही मृत्‍यु आकर उसके सारे दु:ख-दर्दों को दूर किए देती है। अत: उसके भयभीत होने का कोई कारण नहीं था। सत्‍य-विश्‍वास से उत्तेजित हो कर, धर्मवीरों की भाँति, बेधड़क हो कर, वह लेग्री के सामने डटकर खड़ा हो जाता और ईश्‍वर के सद्दृष्‍टांत के अनुसरण करने का विचार करके मन-ही-मन हर्षित होता था। जब वह उसे ठोंक-पीटकर चला जाता और टॉम देखता कि मृत्‍यु तो आई नहीं, उस समय हृदय का वह उमड़ा हुआ धर्मवेग और मार के समय की उत्तेजना शनै:-शनै: मंद पड़ जाती और तब उसे मार का दर्द बहुत अखरता। उसका शरीर शिथिल पड़ जाता और साथ ही उसकी अंतरात्‍मा को भी अवसन्‍नता धर दबाती। उसके दिल में निराशा आ जाती और अपनी दुर्दशा का स्‍मरण होते ही उसके दिल में असह्य यंत्रणा की अग्नि धधक उठती।

पहले दिन की मार से ही टॉम का शरीर जगह-जगह से छिल गया था और वह बहुत अशक्‍त हो गया था। पर लेग्री ने वह अशक्‍तता दूर होने के पूर्व ही, मारे हठ के, उसे खेत के काम में जोत दिया। अन्‍य कुलियों के साथ उसे काम पर जाना पड़ता था। अपनी इस कमजोरी की हालत में भी वह जी लगाकर खेत का काम करता था, परंतु खेत के रखवाले केवल अपनी हिंसक-वृत्ति को चरितार्थ करने के लिए समय-समय पर उसे बेंत लगाते रहते थे। भला इस निष्‍ठुर आचरण पर भी कोई सहिष्‍णु रह सकता था? परंतु टॉम बड़ी ही शांत प्रकृति का आदमी था। उसके धीरज और सहिष्‍णुता की सीमा नहीं थी। परंतु कभी-कभी सांबो और कुइंबो के हृदयहीन आचरण से उसका मन भी सहिष्‍णुता को भुला बैठता था। टॉम की समझ में अभी तक यह बात नहीं आई थी कि लेग्री के खेत के कुली ऐसे मनुष्‍यत्‍व-विहीन और दुश्‍चरित्र क्‍यों हो गए हैं! उनका हृदय केवल हिंसा, द्वेष, वैर-विरोध स्‍वार्थपरता, निष्‍ठुरता का घर क्‍यों बन गया है! वह इस बात से हैरान था कि इन कुलियों के जड़-हृदय में क्षण भर के लिए भी सहानुभूति का संचार क्‍यों नहीं होता? परंतु अब उसे उनके किसी आचरण से आश्‍चर्य नहीं रहा। अब उसने सहज ही समझ लिया कि अपनी इस प्रकृति का निष्‍ठुर आचरण के अवश्‍यंभावी फल के सिवा और कोई कारण नहीं है, पर वह अपने मन में बहुत डरा कि समय पाकर वह निष्‍ठुर आचरण कहीं उसकी प्रकृति को भी भ्रष्‍ट न कर दे। इस डर से वह जब जरा-सा अवकाश पाता, तुरंत अपनी बाइबिल लेकर बैठ जाता। परंतु आजकल काम का इतना जोर था कि रविवार तक काम के बोझ से छुट्टी नहीं मिलती। कपास चुने जाने के दिनों में कई महीनों तक लेग्री कुलियों को रविवार की भी छुट्टी नहीं देता था। क्‍यों देता? धर्म तो उसका कुछ था ही नहीं, उसके लिए तो देवता और देवता का मंदिर वही कपास का खेत था और था नगदनारायण!

पहले टॉम खेत से लौटने पर नित्‍य रात्रि को रोटी बनाने के समय, चूल्‍हे के उजाले में बैठकर, बा‍इबिल के एक-दो उपदेश पढ़ लिया करता था, किंतु आजकल वह इतना कमजोर हो गया था कि खेत से लौटने पर पल भर भी उससे बैठा न जाता था। आते ही थकावट के मारे वह झोपड़ी में पड़ा रहता और दर्द से छटपटाने लगता।

यह बड़े आश्‍चर्य की बात है कि जब-तब टॉम-सरीखे पक्‍के धर्म-विश्‍वासी का मन भी डावांडोल होने लगा। जिस सुदृढ़ विश्‍वास के कारण उसने सारे जीवन किसी भी कष्‍ट की परवाह नहीं की, उसी अदम्‍य धर्म-विश्‍वास के, निष्‍ठुर आचरण के सामने परास्‍त होने की संभावना होने लगी। अज्ञेय अंधकारपूर्ण जीवन-पहेली के संबंध में उसके मन में भाँति-भाँति के प्रश्‍न उठने लगे। हृदय सुस्‍त पड़ने लगा। अपने मन में वह प्रश्‍न करने लगा "जगत्-पिता कहाँ है? वह चुप क्‍यों है? क्‍या संसार में सचमुच पाप ही की जय होती है?" फिर आप-ही-आप सोचने लगा - नहीं, परमात्‍मा मुझे कभी नहीं भुलाएगा। संभव है, मिस अफिलिया के पत्र पाने पर केंटाकी से कोई मेरा उद्धार करने आता हो।

यों सोचते-सोचते वह व्‍याकुल होकर ईश्‍वर से प्रार्थना करने लगा। वह प्रतिदिन सवेरे उठकर बड़ी आशा से मार्ग की ओर देखता था कि केंटाकी से कोई उसे मुक्‍त कराने के लिए आ रहा है या नहीं। यों ही देखते-देखते कितने ही दिन बीत गए, परंतु कोई कहीं से आया-गया नहीं। तब फिर उसके मन में वही पुराना प्रश्‍न जाग उठा, 'क्‍या ईश्‍वर ने मेरी सुध बिल्‍कुल ही बिसार दी है?'

एक दिन संध्या के उपरांत खेत से आकर वह ऐसा शक्तिहीन हो गया कि धड़ाम से जमीन पर गिर गया। आज उसकी उठने की शक्ति एकदम जाती रही। लेटे-लेटे ही रोटियाँ बनाने की फिक्र में लगा। बीच में उसकी बा‍इबिल पढ़ने की इच्‍छा हुई। तब चूल्‍हे की आग जरा तेज करके निशान लगाए हुए अपनी पसंदवाले बाइबिल के अंशों को पढ़ने लगा। पढ़ते-पढ़ते मन-ही-मन प्रश्‍न करने लगा-क्‍या संसार से शास्‍त्र की शक्ति जाती रही है? क्‍या यह धर्मशास्‍त्र भग्‍न हृदयों को बल और निष्‍प्रभ चक्षुओं में ज्‍योति नहीं देता? इसके बाद ठंडी साँस लेकर उसने ज्यों ही बाइबिल बंद की, त्‍योंही उसे पीछे से किसी का विकट हास्‍य सुनाई दिया। गर्दन घुमा कर देखने पर उसने लेग्री को अपने पीछे खड़ा पाया।

लेग्री बोला - "अब तो समझ लिया न, कि धर्म तेरी कुछ मदद नहीं करने का? मैंने तो पहले ही कहा था कि तेरा धर्म-कर्म सब हवा कर दूँगा।"

धर्म के संबंध में इस व्‍यंग्‍य ने टॉम के हृदय में बरछी मार दी। इतना कष्‍ट उसे दिन भर की भूख-प्‍यास से भी नहीं हुआ था।

लेग्री ने कहा - "तू निरा गधा है। मैंने खरीद के समय तुझे कोई बड़ा ओहदा देने की बात सोची थी। मैं तुझे सांबो और कुइंबो से भी ऊँची जगह देता। आज वे तुझे कोड़े लगाते हैं, लेकिन मेरी बात मानकर तू उन सबको कोड़े लगा सकता था। मैं तुझे बीच-बीच में थोड़ी व्हिस्‍की या ब्रांडी भी पीने को दिया करता। मैं अब भी कहता हूँ कि तू अपने ये सब ढोंग छोड़ दे। अपनी उस फटी-पुरानी पोथी को चूल्‍हे में झोंककर मेरा धर्म अंगीकार कर!"

टॉम ने शांति से कहा - "ईश्‍वर न करे ऐसा हो!"

लेग्री बोला - "तू देखता तो है कि ईश्‍वर तेरी कुछ भी मदद नहीं कर रहा है। अगर उसे तेरी मदद करना मंजूर होता तो वह तुझे मेरे हाथ में ही न पड़ने देता। टॉम, तेरा यह धरम-करम एक तरह का झूठा ढोंग है। मैं अच्‍छी तरह जानता हूँ। मेरी बात मानकर चलना ही तेरे लिए अच्‍छा रहेगा। मैं सामर्थ्‍यवान आदमी हूँ और तेरा कुछ उपकार कर सकता हूँ।"

टॉम ने उत्तर दिया - "नहीं सरकार, मैं अपना संकल्‍प नहीं छोडूँगा। भगवान मेरी सहायता करे या न करे, पर मैं उसकी शरण में रहूँगा और अंत तक उस पर विश्‍वास रखूँगा।"

लेग्री ने ठोकर मारकर उस पर थूकते हुए कहा - "तू बड़ा मूर्ख है! खैर, कुछ परवा नहीं, मैं तुझे समझूँगा। तू देखेगा कि मैं तुझसे कैसे अपनी बात मनवाता हूँ।" यह कहकर लेग्री वहाँ से चला गया।

यंत्रणा के बड़े भार से जब आत्‍मा सर्वथा अवसन्‍न हो जाती है और धैर्य सीमा को पहुँच जाता है, उस समय देह और मन की सब शक्तियाँ उस भार को अलग फेंकने के लिए तिलमिलाने लगती हैं। इसी से प्राय: घोरतम यंत्रणा के उपरांत तत्‍काल हृदय में आनंद और साहस का स्रोत बहते देखा जाता है। यही दशा इस समय टॉम की थी।

निर्दयी मालिक के नास्तिकता-पूर्ण तानों ने उसके दु:ख से बोझिल हृदय को और अधिक अवसन्‍न कर दिया। यद्यपि उसका विश्‍वास उस अनंत परमेश्‍वर से डिगा नहीं, पर निराशा से वह सर्वथा शिथिल हो गया। टॉम चूल्‍हे के पास संज्ञा-शून्‍य की भाँति बैठा रहा। सहसा उसके चारों ओर के पदार्थ मानो शून्‍य में विलीन हो गए और काँटो का ताज पहने, रक्‍त से आरक्‍त, आहत ईसा की मूर्ति उसके नेत्रों के सम्‍मुख उपस्थित हुई। भय और आश्‍चर्य से उस आगत के चेहरे के महान सहिष्‍णु भाव की ओर वह निहारने लगा। उन गंभीर और करुणा से उद्दीप्‍त युगल नेत्रों की दृष्टि उसके अंतस्‍तल पर पड़ी, इससे उसकी अवसन्‍न और मुमूर्षु आत्‍मा जाग उठी। वह घुटने टेककर और दोनों हाथ आगे फैलाकर बैठ गया। उसी समय शनै:-शनै: उस आकृति का रूप बदलने लगा। काँटों के मुकुट की जगह किरणें चमकने लगीं। एक अपूर्व प्रभा-मंडल से उद्भासित उस मुख ने स्‍नेह-चक्षुओं से उसकी ओर देखा। उस कंठ से सुधा की धारा बह निकली। टॉम ने सुना, वाणी कह रही थी - "जैसे मैंने पाप और अत्‍याचारों पर विजय प्राप्‍त कर, पिता के साथ पवित्र सिंहासन पर बैठने का सौभाग्‍य प्राप्‍त किया, वैसे ही वह भी मेरे साथ इस सिंहासन पर बैठ सकेगा, जो संसार में पाप और अत्‍याचारों पर विजय प्राप्‍त करेगा।"

टॉम कितनी देर तक वहाँ पड़ा रहा, इसका उसे कुछ भी होश न था। जब वह होश में आया, तब उसने देखा कि आग बुझ गई है, उसके कपड़ों और शरीर को ओस ने तर कर दिया है, परंतु आत्‍मा का वह संकट-काल निकल गया है। अब उसे हृदय में एक अपूर्व आनंद भरा हुआ है। उस आनंद की उमंग में भूख-प्‍यास, सर्दी-गर्मी, अपमान और नैराश्‍य आदि की सभी यंत्रणाओं को उसने बिसार दिया है। इस जीवन की समस्‍त आशाओं को तिलांजलि देकर उसने अपना चित्त अनादि देव के चरणों में लगा दिया। आकाश के उज्‍ज्‍वल तारों की ओर आँखें लगाकर टॉम आकाश को प्रतिध्‍वनित करता हुआ आत्‍मा के गंभीर आनंद में मगन हो कर, यह गीत गाने लगा -

हिम सम पृथ्‍वी गल जाएगी, भानु भस्‍म हो जाएगा।

तब भी मैं प्रभु, तेरा हूँगा, तू मेरा कहलाएगा।।

होगा पूर्ण धरा का जीवन, जड़ शरीर यह मंद।

शांति-सरोवर में तैरूँगा, पाकर के मैं ब्रह्मानंद।।

वर्ष सहस्र यहाँ पर रहकर फिर प्रकाश-युत भानु-समान।

गाता नित्‍य रहूँगा वैसे जैसे था जब छेड़ा गान।।

यह कोई नई घटना नहीं थी। धर्म-विश्‍वासी गुलामों में ऐसी अचरज-भरी घटनाएँ प्राय: होती रहती थीं। मनोविज्ञानी पंडितों का मत है कि ऐसी भी अवस्‍थाएँ हुआ करती हैं, जिनमें मन के भाव और कल्‍पनाएँ इतनी उत्तेजित और प्रबल हो जाती हैं कि उस समय समस्‍त बाहरी इंद्रियों पर उनका प्रभाव हो जाता है, और ऐसी अवस्‍था में कल्पित पदार्थ प्रत्‍यक्ष-से दीख पड़ने लगते हैं। सर्वव्‍यापी परमेश्‍वर मनुष्‍य को वे शक्तियाँ देकर उसके जीवन में जो अनेक घटनाएँ घटाता है, उनकी गिनती कौन कर सकता है? और इस बात का निर्णय कौन कर सकता है कि वह किन-किन उपायों के द्वारा निराश और असहाय आत्‍माओं में नए बल का संचार करता है? यदि यह दास विश्‍वास करे कि ईसा ने उसे प्रत्‍यक्ष दर्शन दिया था, उससे बातें की थीं, तो कौन उसकी बात का प्रतिवाद करेगा!

दूसरे दिन प्रात:काल, जब हड्डियों के ढाँचे बने गुलाम लोग खेतों की ओर चले, तब उन चीथड़ों में लिपटे, जाड़े से काँपते अभागों में केवल एक ही व्‍यक्ति ऐसा था, जो उमंग से पैर रखता मस्‍तानी चाल से जा रहा था। कारण यही था कि ईश्‍वर के अनंत प्रेम पर उसका अटल विश्‍वास जम गया था। अरे लेग्री! तू अब अपनी सारी शक्ति आजमा कर देख ले। अति दारुण यंत्रणा, शोक, अपमान सब-के-सब इसके लिए शांति-निकेतन ही सीढ़ियाँ बनकर इसे स्‍वर्ग की ओर अग्रसर करने में सहायता करेंगे।

उत्‍पीड़ित टॉम का विनीत हृदय अब और भी अधिक शांतिपूर्ण हो गया। नित्‍य-पवित्र परमेश्‍वर ने उसके श्रद्धापूर्ण हृदय को अपना पवित्र मंदिर बना लिया। इस जीवन का मर्मांतक परिताप बीत चुका। इस जीवन की आशा, भय और आकांक्षा का उद्वेलन पीछे छूट गया और पल-पल की संग्राम-क्लिष्‍ट रुधिराक्‍त मानवीय इच्‍छाएँ संपूर्ण रूप से ईश्‍वरीय इच्‍छा में विलीन हो गईं। टॉम को अपनी जीवन-यात्रा का बचा भाग बहुत अल्‍प प्रतीत होने लगा और अनंत शांति तथा अनंत सुख इतना पास और इतना स्‍पष्‍ट जान पड़ने लगा कि जीवन के दुस्‍सहतम कष्‍ट भी उसके हृदय पर असर न कर सके।

उसका यह बाहरी परिवर्तन सबको दिखाई पड़ने लगा। उसका मुख हर समय प्रफुल्‍ल रहने लगा और हर काम में उसका फुर्तीलापन फिर दिखाई देने लगा। वह बड़े धीरज, सहिष्‍णुता और शांति के साथ अत्‍याचार और निष्‍ठुर व्‍यवहार सहने लगा। किसी भी प्रकार के दुर्व्‍यवहार से उसके मन में उद्विग्‍नता या उत्‍कंठा नहीं पैदा होती थी। यह देखकर एक दिन लेग्री ने सांबो से कहा - "टॉम पर आजकल कौन-सा भूत सवार हो गया है? थोड़े दिन हुए तब तो वह बिल्‍कुल हिल गया था, लेकिन आजकल तो वह बड़ी तेजी दिखलाता है!"

सांबो ने कहा - "कुछ ठीक नहीं मालूम, सरकार! शायद यहाँ से भाग जाने की जुगत कर रहा होगा।"

लेग्री ने अपनी छिपी इच्‍छा व्‍यक्‍त की - "एक बार भागने की कोशिश करे तो अपना काम ही बन जाए। मैं भी यही चाहता हूँ।"

सांबो ने हँसते हुए कहा - "जान पड़ता है, हम लोगों को जल्‍दी ही वह दिन देखना नसीब होगा। जरूर वह भागने की ताक में है। भागने पर जब शिकारी कुत्ते उसे दाँतों में दबा लाएँगे तब बड़ा मजा आएगा। एक बार जब भोली नाम की दासी भागी थी तो कैसा तमाशा हुआ था। मेरा तो उस वक्‍त हँसते-हँसते पेट फटा जा रहा था। कुत्तों ने जाकर उसे पकड़ा और हम लोगों के पहुँचने से पहले ही उसका आधा शरीर नोच डाला। उसे देखकर मुझे ऐसी हँसी छूटती थी कि क्‍या कहूँ!"

लेग्री बोला - "मालूम होता है, लूसी अब शीघ्र ही कब्र में आराम करेगी; लेकिन सांबो, जब भी कोई दास या दासी बहुत खुश और तेज दिखाई पड़े तो तुम्‍हें फौरन उसका मिजाज दुरुस्त करने की ओर ध्‍यान देना चाहिए।"

सांबो ने उत्तर दिया - "आप बेखटक रहिए। मैं खुद ही सब ठीक कर लूँगा।"

यह तीसरे पहर की बात थी, जब लेग्री घोड़े पर सवार होकर पास के किसी कस्‍बे में जा रहा था। उसने मन-ही-मन सोचा था कि उधर से लौटते हुए कुलियों के झोपड़े देखता चलूँगा।

कस्‍बे से लौटते हुए जब वह कुलियों की झोपड़ियों से थोड़ी दूर रह गया, तब उसे किसी के गाने की आवाज सुनाई पड़ी। उसने जरा ठहरकर सुना तो मालूम हुआ कि टॉम गा रहा है:

जब देखूँगा, लिखा हुआ है स्‍वर्ग-द्वार पर मेरा नाम,

भय-भावना बिदा कर दूँगा, अश्रु पोंछ लूँगा विश्राम।

वैरी बन जग लड़ने आवे और नरक से बरसें बाण,

तो भी धरा भृकुटि को निर्भय देखूँ गिनूँ तुच्‍छ शैतान।

प्रलय-समु्द्र उमड़ आवे या घोर शोक का हो तूफान,

मुझको कुछ परवाह न होगी, कुछ न पड़ेगा मुझको जान।

मिले निरापद मुझे स्‍वर्ग-गृह परम पिता सर्वस्‍व-समान।

यह गीत सुनकर लेग्री मन-ही-मन कहने लगा - "हा-हा, बदमाश सोचता है कि स्‍वर्ग जाऊँगा। इसका गीत सुनकर मेरे तो कान जल उठते हैं!"

इसके बाद वह टॉम के सामने पहुँचा और चाबुक ऊँचा उठाकर बोला - "हरामजादे! इतनी रात में बाहर पड़ा क्‍या गोलमाल कर रहा है?"

बहुत ही प्रसन्‍न और विनम्र-भाव से "जो हुकुम सरकार" कहकर जब टॉम अपनी झोपड़ी में जाने लगा, तो उसकी प्रसन्‍नता देखकर लेग्री के मन में असीम क्रोध की ज्‍वाला भड़क उठी और तत्‍काल उसने उसके कंधों और पीठ पर कोड़े बरसाते हुए कहा - "क्‍यों रे सूअर, तू यहाँ बड़ी मौज उड़ा रहा है!"

परंतु यह चाबुक की मार ऊपर-की-ऊपर ही रह गई, टॉम के भीतर हदृय पर उसका कोई प्रभाव नहीं हुआ। उसे इस मार का कोई दुख नहीं हुआ। वह अब जीवनमुक्‍त हो चुका है। उसकी यह पंचभौतिक काया आत्‍मा से पृथक हो चुकी है। अत: कोई भी बाह्य कष्‍ट उसे नहीं जान पड़ता था। टॉम सिर झुकाए खड़ा रहा। लेग्री ने महसूस किया कि इसे अपने ढंग पर लाना शक्ति से बाहर है। उसने समझा, ईश्‍वर अत्‍याचारों से इसकी रक्षा कर रहा है। ऐसा सोचकर वह ईश्‍वर को गालियाँ देने लगा। ताने, धमकियों और बेतों की मार, किसी से भी टॉम के हृदय की शांति को लेग्री नष्‍ट नहीं कर सका। इन दशाओं में जब उसने टॉम को विनम्रता और प्रफुल्‍लता से दिन काटते देखा, तो वह किंकर्तव्‍यविमूढ़ हो गया। ईसा को सतानेवालों ने, उन्‍हें प्रसन्‍नता से अत्‍याचारों को सहते देखकर कहा था - "ईसा, तू क्‍या हम लोगों के हृदय की अग्नि को समय से पूर्व ही सुलगा देगा?" लेग्री के हृदय में भी आज यही भाव उत्‍पन्‍न हुआ। वह टॉम को दुखी देखने के लिए कोड़े लगाता, परंतु टॉम इससे तनिक भी दु:खी न होता। यह देखकर लेग्री के हृदय में अशांति की भयानक आग धधकने लगी।

लेग्री के खेत में काम करनेवाले दीन-दुखी कुलियों की दुर्दशा देखकर टॉम के हृदय में बड़ा ही क्‍लेश हुआ। उसके अपने दु:खों का अंत हो गया है, स्‍वयं वह स्‍वर्गीय शांति का अधिकारी बन चुका है, अब वह अपनी इस शांति-संपदा का कुछ अंश इन दीन-दुखियों को बाँटने की चिंता करने लगा। उसने कुलियों के साथ धर्म-चर्चा करके उन्‍हें शांति के रास्‍ते पर लाने की बात सोची, परंतु उनके साथ धर्म-चर्चा करने का बिल्‍कुल ही अवकाश नहीं था। केवल खेत में आते-जाते समय बातें करने का कुछ अवसर था। टॉम ने इन्‍हीं क्षणों का सदुपयोग करके अभागे कुलियों के साथ धर्म-चर्चा प्रारंभ कर दी। पहले तो उसके सद्विचार का मर्म कोई भी नहीं समझ सका, परंतु धीरे-धीरे उनका वह कठोर हृदय भी पसीजने लगा। कभी वह आप भूखा रहकर अपना भोजन किसी दूसरे को दे डालता, कभी किसी सर्दी से परेशान रोगी कुली का कष्‍ट देखकर उसे अपना फटा कंबल दे देता और खुद जमीन पर ही पड़ा रहता। कभी किसी कमजोर स्‍त्री मजदूर को कपास चुनने में असमर्थ देखकर अपनी चुनी हुई कपास उसकी टोकरी में डाल देता। यह सब करते हुए उसने एक बार भी परवा नहीं की कि इन कार्रवाइयों से उसकी पीठ की चमड़ी उधेड़ी जा सकती है।

उसका ऐसा दयालुतापूर्ण आचरण देखकर खेत के सारे कुलियों का हृदय उसकी ओर आकर्षित होने लगा। कुछ समय बाद कपास चुनने के दिन निकल गए, अत: कुलियों को अब उतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती थी। उन्‍हें काफी अवकाश रहता था। इस समय वे अक्‍सर टॉम के पास बैठकर धर्म-कथाएँ सुनते तथा टॉम के साथ-साथ प्रार्थना किया करते थे।

परंतु प्रार्थना से लेग्री बहुत चिढ़ता था। वह जब सुनता कि कुली लोग टॉम के पास बैठकर धर्म-चर्चा कर रहे हैं, तो वह वहाँ पहुँचकर उन्‍हें बहुत मारता-पीटता। इससे उनकी धर्म-चर्चा की तृष्‍णा और भी बढ़ गई। वास्‍तव में धर्म-विद्वेषियों का अपना स्‍वयं का आचरण ही धर्म-प्रचार में सर्वाधिक सहायक होता है।

निरंतर अत्‍याचारों और हृदयहीनता के कारण लूसी का धर्मभाव सर्वथा नष्‍ट होनेवाला था, पर टॉम के उपदेशों और धर्म-संगति से उसका मृतप्राय विश्‍वास पुन: सजीव हो उठा। औरों की बात जाने दीजिए, कासी जो इतनी प्रतिहिंसक, क्रूर और उन्मत्त हो गई थी, उसके हृदय में भी भक्ति, विश्‍वास और प्रेम का संचार हो गया।

कासी का हृदय पहले से ही असह्य यंत्रणाओं की आग में जल रहा था, संतान-शोक के कारण वह प्राय: सनकी-सी हो गई थी, इससे उसने मन-ही-मन ठान लिया था कि मौका मिलने पर वह इस अत्‍याचारी लेग्री को उसके कुकर्मों का मजा जरूर चखाएगी।

एक दिन रात के समय, जब और सब लोग सो रहे थे, टॉम ने एकाएक उठ कर देखा कि कासी उसे इशारे से बाहर बुला रही है।

टॉम कुटिया से बाहर आया। रात के दो बजे होंगे। चारों ओर चाँदनी छिटकी हुई थी। टॉम ने आज कासी के चेहरे पर विलक्षण आशा और उत्‍साह का भाव देखा। वैसे उसका चेहरा सदा निराशा की मूर्ति बना रहा था, परंतु आज उस सर्वग्रासी निराशा की जगह पर आशा की चमक थी।

कासी ने बड़ी व्‍यस्‍तता से टॉम की कलाई इस सख्‍ती से पकड़कर, मानो उसके हाथ इस्‍पात के बने हों, उसे आगे को खींचते हुए कहा - "पिता टॉम, इधर आओ, तुमसे एक खास बात कहनी है।"

टॉम ने कुछ शंकालु-भाव से पूछा - "क्‍यों, क्‍या बात है?"

कासी ने कहा - "क्‍यों, तुम स्‍वतंत्र होना पसंद नहीं करते?"

टॉम बोला - "जब ईश्‍वर की मर्जी होगी, तब स्‍वतंत्रता मिलेगी।"

कासी ने बड़े उल्‍लास से कहा - "लेकिन तुम्‍हें आज ही रात को स्‍वतंत्रता मिल सकती है। इधर आओ, इधर आओ!"

इसके बाद कासी चुपके-चुपके टॉम के कान में कहने लगी - "अभी लेग्री नींद में बेहोश है। मैंने ब्रांडी में अफीम मिला दी है। अत: जल्‍दी नींद नहीं खुलेगी। इधर आओ। पिछवाड़े का दरवाजा खुला है। वहाँ मैंने पहले से ही एक कुल्‍हाड़ी रख छोड़ी है। मैं तुम्‍हें मार्ग बताए देती हूँ। मैं अपने हाथों से काम कर लेती, पर मेरे हाथों में इतना बल नहीं है। तुम मेरे साथ आओ।"

टॉम ने बड़ी दृढ़ता से कहा - "संसार भर का राज्‍य मुझे मिले तो भी मैं ऐसा पाप-कर्म नहीं करूँगा।"

कासी बोली - "पर जरा इन अभागों की दुर्दशा पर तो विचार करो। हम लोग इन सब गुलामों को मुक्‍त कर देंगे और फिर किसी द्वीप में चलकर बसेंगे।"

टॉम बोला - "मिस कासी, मैं तुम्‍हें भी मना करता हूँ। ऐसा बुरा काम कभी न करना। बुरे काम का नतीजा कभी अच्‍छा नहीं होगा। ईश्‍वर के लिए कष्‍ट सहो, पर इस पाप से हाथ न रंगो। कासी, ऐसा काम मत करना। नहीं-नहीं, तुम एक तो यों ही पाप के समुद्र में डूब रही हो, उस पर अब यह नया पाप मोल मत लो। हमें कष्‍ट सहते हुए समय का इंतजार करना चाहिए।"

कासी कुछ क्रोध में बोली - "इंतजार! क्‍या मैंने इंतजार नहीं किया? मैंने बहुत इंतजार किया है। अब इस हाड़-मांस के शरीर से ज्‍यादा नहीं सहा जाता।"

टॉम ने कासी को समझाया - "देखो कासी, ईसा ने अपना रक्‍त दिया, लेकिन किसी दूसरे का खून नहीं गिराया। हमें शत्रु को भी प्‍यार करना चाहिए।"

कासी बोली - "प्‍यार करूँ? ऐसे दुश्‍मन को प्‍यार करूँ? क्‍या मेरा शरीर लोहे का बना हुआ है?"

टॉम ने कहा - "हम लोगों की सच्‍ची जीत तभी होगी तब हम शत्रु को भी क्षमा करके उसके कल्‍याण के लिए ईश्‍वर से प्रार्थना कर सकें।"

इतना कहकर टॉम आकाश की ओर देखने लगा।

टॉम का यह हृदय-ग्राही उपदेश सुनकर कासी का हृदय पिघल गया। तब उसने कहा - "पिता टॉम, मैं तो पहले ही कह चुकी हूँ कि मुझपर शैतान सवार है। मैं प्रार्थना करना चाहती हूँ, पर कर नहीं सकती। तुमने जो कहा है, सच है, लेकिन मेरा हृदय न जाने कैसी प्रतिहिंसा से भरा हुआ है कि मैं जब भी प्रार्थना करती हूँ, मेरे हृदय में शत्रु के विरुद्ध आग धधकने लगती है।"

टॉम बोला - "हाय, तुम्‍हारी आत्‍मा में कितनी अशांति भरी हुई है। मैं तुम्‍हारे कल्‍याण के लिए ईश्‍वर से प्रार्थना करूँगा। कासी बहन, ईश्‍वर में मन लगाओ!"

कासी चुपचाप खड़ी रही। उसकी आँखों से आँसुओं की बड़ी-बड़ी बूँदे गिरने लगीं।

टॉम ने फिर कहा - "कासी बहन, तुम यदि यहाँ से भागकर कहीं निकल सको तो मैं तुम्‍हें और एमेलिन को भागने की सलाह देता हूँ।"

कासी ने पूछा - "क्‍या तुम भी हम लोगों के साथ चलोगे?"

टॉम ने बताया - "मैं पहले तो चला भी जाता, लेकिन अब मुझे यहाँ एक काम है। मैं इन दीन-दुखी दास-दासियों को धर्म की ओर ले जाने की चेष्‍टा करूँगा। ईश्‍वर ने मुझे यह काम सौंपा है। लेकिन तुम लोगों का यहाँ से भाग जाना ही ठीक है। तुम लोग यहाँ रहोगी तो धीरे-धीरे दूसरी बुराइयों में फँस जाओगी।"

कासी ने कहा - "भागने की कोई सुविधा नहीं है। कहाँ जाएँ? कब्र के सिवा हम लोगों के लिए कहाँ जगह है? जहाँ भी हम जाएँगी, लेग्री शिकारी कुत्तों से पकड़वा मँगाएगा। साँपों और मगरों को रहने की जगह है, पर हम लोगों के लिए इस दुनिया में कहीं ठिकाना नहीं है।"

टॉम ने कुछ देर चुपचाप कासी की बात सुनी, फिर कहा - "जिसने दानियल को सिंह की मांद से बचाया था, अपनी विश्‍वासी संतानों की अग्नि-कुंड से रक्षा की थी, जो समुद्र पर से चलाया गया था, और जिसके हुक्‍म देते ही हवा भी रुक गई थी, वह अब भी विद्यमान है। मुझे जान पड़ता है, वह निश्‍चय ही यहाँ से भाग जाने में तुम लोगों की सहायता करेगा। तुम लोग एक बार यत्‍न करके देखो, तुम लोगों के उद्धार के लिए मैं ईश्‍वर से प्रार्थना करूँगा।"

ईश्‍वर की महिमा विचित्र है! कौन जान सकता है कि किन विचित्र नियमों के अनुसार हमारे मानसिक कार्य-कलापों और चिंताओं का शासन होता है! टॉम की बात सुनकर कासी के मन में अकस्‍मात एक विचार उत्‍पन्‍न हुआ। पहले उसे भागना असंभव जान पड़ता था, पर अब संभव जान पड़ने लगा। कासी ने पहले तो भागने के विषय में बहुत-कुछ सोचा-विचारा था, पर निश्‍चय न कर सकी थी कि भाग निकलने की भी कोई सूरत है, लेकिन आज उसे ऐसा लगने लगा कि उसके लिए भागना बहुत ही सहज है। इससे उसके मन में आशा का संचार हो गया। वह टॉम से बोली - "पिता टॉम! मैं चेष्‍टा करूँगी।"

टॉम ने आकाश की ओर देखते हुए कहा - "परमपिता परमात्‍मा तुम्‍हारे सहायक हों!"

42. पलायन की योजना

पहले बताया जा चुका है कि बहुत धनी और बड़े जमींदार के दिवालिया हो जाने पर लेग्री ने बहुत सस्‍ते में उसका यह मकान और खेत खरीद लिया था। यह मकान बहुत बड़ा था, इसमें बहुत पुरानी कोठरियाँ थीं। जमींदार के शासन में यहाँ अनजान लोग रहते थे; पर जब से यह मकान लेग्री के हाथ में आया है, तब से इसके चार-पाँच सहन तो बिल्‍कुल सूने पड़े रहते हैं। लेग्री का व्‍यापार कोई बहुत लंबा-चौड़ा न था, और न वह वैसा संपन्‍न ही था। कुछ दिनों पहले, जब वह जहाज का कप्‍तान था, उसने इधर-उधर से लूट-खसोट तथा चोरी-जारी करके दो-चार हजार की पूँजी बना ली थी और उसी से बड़े सस्‍ते में यह घर और खेत खरीदकर काम चालू कर दिया था। पहले मालिक के पास इतने बड़े खेत में काम करने के लिए पाँच सौ के लगभग कुली थे, पर अब उसी खेती का काम लेग्री केवल 50 गुलामों से कराता है। इसी से लेग्री के खेत में काम करनेवाले कुल दो-तीन वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहते थे।

मकान में जो 5-6 कमरे खाली पड़े थे, उनमें उत्तर की ओर एक बड़ा कमरा था। यह कमरा कासी के सोने के कमरे से सटा हुआ था। कासी के कमरे के बाईं ओर लेग्री का शयनागार था। उस मकान में रहनेवाले सब लोगों के मन में यह खयाल जमा हुआ था कि लेग्री के उत्तर दिशावाले कमरे में भूत रहता है। रात की कौन कहे, दिन में भी लोगों की उस कमरे में जाने की हिम्‍मत नहीं होती थी। कई वर्ष हुए, लेग्री ने इस कमरे में एक कुली स्‍त्री-मजदूर को तीन सप्‍ताह तक भूखी-प्‍यासी रखकर उसकी जान ले ली थी। तभी से सबको विश्‍वास हो गया था कि यह कमरा भूतों का अड्डा है। इसी घटना से भूत-कथा का सूत्रपात हुआ। स्‍वयं लेग्री की भी कमरे में घुसने की हिम्‍मत न होती, लेकिन वह अपना भय किसी के सामने जाहिर नहीं करता था।

एक दिन कासी, बिना लेग्री से पूछे-ताछे ही, बड़ी घबराहट में सारा माल-असबाब उठाकर अपना कमरा बदलने लगी। दास-दासियों को बुलाकर उसने सारा सामान उठाकर दूसरे कमरे में ले जाने को कहा। कुली लोग बहुत डरते-काँपते हुए वहाँ की सब चीजें उठाकर दूसरे कमरे में जाकर रखने लगे। उस समय लेग्री घूमने गया हुआ था। जब वह लौटा तो यह उलटफेर देखकर उसने पूछा - "कासी, क्‍या बात है? इस कमरे की चीजें उठाकर वहाँ क्‍यों लिए जा रही हो?"

कासी ने कहा - "मुझे इस कमरे में नींद नहीं आती।"

लेग्री ने पूछा - "क्‍यों, क्‍या बात है?"

कासी ने कहा - "मैं वह सब कहना नहीं चाहती।"

लेग्री बोला - "कहने में क्‍या हर्ज है?"

तब कासी ने कहा - "इस उत्तरवाले कमरे में ऐसी-ऐसी विचित्र आवाजें आती हैं कि मुझे बड़ा डर लगता है और इसी से नींद नहीं आती।"

लेग्री ने फिर पूछा - "क्‍या आवाज आती है? वह कैसी आवाज है?"

कासी ने कहा - "क्‍या तुम्‍हें मालूम नहीं, वह किसकी आवाज है, कैसी आवाज है?"

इस बात पर लेग्री आपे से बाहर हो गया और जमीन पर जोर से पैर मारकर उसने कासी के मुँह पर चाबुक चलाई। इस कमरे में कुली स्‍त्री की मौत हुई थी, इस बात को लेग्री किसी पर प्रकट नहीं होने देता था। इसी से कासी पर बहुत क्रुद्ध हुआ। चाबुक खाकर कासी एक किनारे हट गई और जोर-जोर से कहने लगी - "लेग्री, तुम्‍हीं एक रात इस कमरे में सो कर देखो। देखती हूँ, तुम डरते हो कि नहीं।"

कासी की इस बात से लेग्री के मन में भय जमकर बैठ गया। असल में जिन अशिक्षित लोगों में धर्म के प्रति विश्‍वास का भाव नहीं होता, उनके मन में ऐसे कुसंस्‍कार-मूलक भय का भाव बड़ी जल्‍दी पैदा हो जाता है।

कासी ने अच्‍छी तरह जान लिया कि लेग्री के मन में भय समा गया है। इससे वह मन-ही-मन बहुत प्रसन्‍न हुई। इसके बाद कासी उस उत्तरवाले कमरे के पास की एक कोठरी में अपना बिछौना वगैरह तथा सात दिन तक की खाने-पीने की सामग्री रख आई। बीच-बीच में वह ठीक आधी रात को वहाँ जाकर छिपे-छिपे लेग्री के कमरे का दरवाजा खटखटाती और विचित्र प्रकार की आवाज करती। इससे लेग्री का कुसंस्‍कारमूलक भय दिन-ब-दिन बढ़ता गया। इस संबंध में कासी दास-दासियों के मन में अधिक भय पैदा करने की नीयत से नित्‍य नए-नए उपद्रवों के किस्‍से गढ़कर सुनाती। इससे उन सबका डर बढ़ते-बढ़ते यहाँ तक बढ़ गया कि रात को वे उस कमरे की ओर आँख उठाकर देखने में भी भय खाने लगे।

तीन-चार दिन में जब कासी ने देख लिया कि अब भूत-संबंधी संस्‍कार सब के मन में खूब गहरे जम गए हैं तो वह भागने की तैयारी करने लगी। बिछौने आदि तो पहले ही रख आई थी, अब अपने और एमेलिन के कपड़े भी ले जाकर वहाँ रख आई थी।

तीसरे पहल लेग्री बहुत देर से अपने किसी पड़ोसी के यहाँ गया था। यह सुअवसर पाकर, संध्‍या के बाद, जब चारों ओर अँधेरा छा गया, कासी ने एमेलिन से कहा - "चल, झटपट उठकर चल। भागने का इससे अच्‍छा दाँव फिर नहीं मिलेगा।"

वे दोनों घर से निकलकर दलदल की ओर चलीं। पहले उन्‍होंने निश्‍चय किया था कि पश्चिम की ओर दलदल में चलेंगी, पर यह सोचकर कि वहाँ रहने से लेग्री उन्‍हें शिकारी कुत्तों द्वारा पकड़वा मँगाएगा, उन्‍होंने कुछ दूर पश्चिम और फिर उत्तर जाकर, वहाँ से पूर्व की ओर मुँहकर कुछ बढ़ने पर, सामने की खाई पार करके, भुतहे घर में पहुँचकर पाँच-छह दिन वहीं रहने का निश्‍चय किया और सोचा कि अपने भागने के बाद लेग्री संभवत: चार-पाँच दिन उन्‍हें दलदल में ही इधर-उधर खोजेगा अथवा शिकारी कुत्तों से खोज कराएगा; परंतु जब चार-पाँच दिन में वह खोजकर थक जाएगा तब मौके से किसी दिन रात को निकलकर चल देंगी। चलते-चलते जब वे दोनों दलदल के पास पहुँची, तब उन्‍हें पीछे से "पकड़ो! पकड़ो! दासी भागी जा रही हैं!" का शोर सुनाई दिया। कासी ने पहले तो अनुमान किया कि सांबो चिल्‍ला रहा है, पर पीछे उसे आवाज से मालूम हुआ कि वह आवाज सांबो की नहीं, स्‍वयं लेग्री की है। इस चिल्‍लाहट से एमेलिन बहुत डरी और कासी का हाथ पकड़कर बोली - "कासी माँ, मुझे तो बेहोशी आ रही है।"

कासी बोली - "यदि इस समय तुझे बेहोशी आ गई तो मैं तेरी जान ही ले लूँगी, नहीं तो चुपचाप मेरे पीछे दौड़ती चली आ!"

कासी के भय से एमेलिन जी-जान से दौड़ने लगी और शीघ्र ही लेग्री की आँखों से ओझल हो गई। लेग्री ने देखा कि अब इस अंधेरे में बिना शिकारी कुत्तों के इनको पकड़ने की कोई सूरत नहीं है, अत: वह कुत्तों तथा लोगों को साथ लेने के लिए खेत की ओर लौटा और सांबो, कुइंबो तथा अन्‍य दास-दासियों, शिकारी कुत्तों और बंदूकों को लेकर उन्‍हें फिर पकड़ने चला।

लेग्री मन-ही-मन जानता था कि वे दोनों सहज ही भागकर नहीं निकल सकेंगी। उसके सह हब्‍शी गुलाम चारों दिशाओं में फैलकर उनकी खोज करने लगे।

सांबो ने लेग्री से पूछा - "अच्‍छा, कासी को देख पाऊँ तो क्‍या करूँ?"

लेग्री बोला - "कासी को गोली मार सकता है, पर एमेलिन को जान से मत मारना। और जो इन दोनों को जीवित पकड़कर ला सके, उसे पाँच सौ रुपया इनाम दूँगा।"

इधर कासी और एमेलिन अपने निश्‍चय के अनुसार रास्‍ता तय करके उस ठिकानेवाले कमरे में जा पहुँची। घर में पहुँचने पर, जंगले के पास खड़ी होकर, एमेलिन ने कासी को बुलाकर कहा - "वह देख, शिकारी कुत्तों को साथ लिए कितने आदमी चले जा रहे हैं। चल, हम लोग चलकर किसी अँधेरी कोठरी में छिप जाएँ।"

कासी बोली - "डर क्‍या है? यहीं बरामदे में बैठ कर दोनों तमाशा देखेंगी। वे इधर कदापि नहीं आएँगे।"

सारे दास-दासियों तथा कुत्तों को साथ लिए लेग्री दलदल की ओर निकल गया। घर एकदम सूना पड़ा था। एमेलिन को साथ लेकर कासी धीरे से दक्षिण दिशावाला दरवाजा खोलकर लेग्री के सोने के कमरे में घुस गई। वहाँ उसे लेग्री के संदूक की कुंजी बिस्‍तर पर पड़ी हुई मिली, जिसे वह जल्‍दी में वहीं पड़ी छोड़ गया था। कुंजी पाकर कासी को बहुत खुशी हुई। उसने तत्‍काल संदूक खोला और उसमें से तीन-चार हजार रुपयों के नोट निकालकर अपने कपड़ों में छिपा लिए। यह देखकर एमेलिन बहुत डरी। उसने कहा - "ओ कासी माँ, यह तुम क्‍या कर रही हो? ऐसा बुरा काम मत करो।"

इस पर कासी ने कुछ झुँझलाकर कहा "चुप रहो! बिना पैसों के जहाज का भाड़ा और रास्‍ते का सफर-खर्च कहाँ से आएगा? क्‍या दलदल में सड़कर मरना है?"

एमेलिन बोली - "जो भी हो, लेकिन यह तो चोरी ही है।"

कासी ने बड़ी घृणा के साथ कहा - "चोरी है? जो मनुष्‍यों की आत्मा और शरीर-सब कुछ चुरा लेते हैं, वे हमसे क्‍या कह सकते हैं? लेग्री ने ये रुपए कहाँ से पाए हैं? इन कुलियों का खून चूस-चूसकर ही तो ये रुपए बटोरे हैं। यह दास-दासियों का खून है। चोर का माल ले जाने में क्‍या दोष है? यह सारे-का-सारा माल चोरी का है।"

इसके बाद कासी एमेलिन का हाथ पकड़कर से उत्तर के कमरे में ले गई। वहाँ जाकर बोली - "मैंने काफी रोशनी का प्रबंधकर रखा है और समय बिताने के लिए कुछ पुस्‍तकें भी लाकर रख दी हैं। मुझे निश्‍चय है कि वे हम लोगों को खोजने यहाँ नहीं आएँगे। हाँ, यदि आ ही गए तो सचमुच उन्‍हें भूतों का तमाशा दिखाकर डराऊँगी।"

एमेलिन ने पूछा - "क्‍या तुम्‍हें निश्‍चय है कि वे लोग हम दोनों की खोज में यहाँ न आ सकेंगे?"

कासी बोली - "मैं तो चाहती हूँ कि लेग्री एक बार यहाँ आए, पर वह यहाँ नहीं आएगा और न दास-दासी ही आना स्‍वीकार करेंगे।"

एमेलिन ने सीधी-सादी तौर पर पूछा - "अच्‍छा, तुमने उस समय मुझे मार डालने की धमकी किस मतलब से दी थी?"

कासी ने बताया - "जिससे तुम्‍हें मूर्च्‍छा न आ जाए। यदि उस समय तुम्‍हें मूर्छा आ जाती, तो फिर वे सब तुम्‍हें पकड़ लेते।"

यह सुनकर एमेलिन काँप उठी। कुछ देर के बाद वे दोनों चुप हो गईं। फिर कासी एक पुस्‍तक पढ़ने लगी और पढ़ते-पढ़ते उसे नींद आ गई।

आधी रात के वक्‍त लेग्री जब अपना दल-बल लिए निराश होकर घर लौटा, तो बड़ा शोरगुल होने लगा। शोर-गुल होने से कासी और एमेलिन की नींद टूट गई। एमेलिन जागते ही चीख उठी, लेकिन कासी ने उसे धीरज बँधाकर कहा - "कोई भय की बात नहीं है। वह दलदल में हम लोगों को खोजकर लौट आया है। वह देखो, लेग्री के घोड़े के बदन पर कितना कीचड़ लगा हुआ है। लेग्री के बदन पर भी कीचड़ लिपटा है। कुत्ते कैसे थके हुए जीभ लपलपा रहे हैं!"

एमेलिन ने कहा - "धीरे-धीरे बातें करो। चुप रहो, कोई सुन लेगा।"

किंतु कासी ने और जोर से बोलते हुए कहा - "ऐसा क्‍या डर पड़ा है? हम लोगों की बात कोई सुनेगा तो भूत के डर से और भी डरेगा।"

धीरे-धीरे अधिक रात बीत गई। लेग्री बहुत थक गया था, अत: वह अपने भाग्‍य को कोसता हुआ सोने के कमरे में चला गया।

43. कसौटी

चलते-चलते हजारों मील की मंजिल तय हो जाती है और देखते-देखते अमावस्‍या की घोर निशा बीतकर प्रभात का सूर्य निकल आता है। काल का अबाध-अनंत प्रवाह पाप-पंक में डूबे दुराचारियों को धीरे-धीरे उस घोर अमा-निशा की ओर धकेल रहा है, परंतु साधुओं और महात्‍माओं को विपत्ति-वेदनाओं से हटाकर धीरे-धीरे सूर्य की शत-शत किरणों से प्रदीप्‍त दिवस की ओर ले जा रहा है।

पार्थिव पद और प्रभुत्‍व से शून्‍य टॉम के जीवन में कितने ही उलटफेर हुए। पहले वह स्‍त्री-पुरुषों सहित सुख से सानंद जीवन बिताता था, अकस्‍मात् दिन फिरे, और सुख की घड़ियों की जगह दु:ख की घड़ियों ने उसे घेर लिया। स्‍त्री-पुत्रों से वियोग हो गया। उस समय उसे दासता की बेड़ियाँ बहुत अखरीं। समय ने फिर पलटा खाया और सहृदय हाथों में जा पड़ा। इसी लिए वह दासता की लोहे-जैसी कठिन बेड़ी कुसुम-जैसी कोमल हो गई। परंतु विधाता से उसका यह सुख भी अधिक दिनों तक नहीं देखा गया। देखते-देखते वह ऐसे हाथों में चला गया, जहाँ उसकी सांसारिक सुख-रूपी आशा-लताओं को जड़-मूल से उखाड़कर नष्‍ट कर डाला गया। उसके पश्‍चात् दुर्भेद्य गहरे अंधकार को भेदकर स्‍वर्गीय उज्‍ज्‍वल तारों की अपूर्व ज्‍योति उसके नेत्रों के सम्‍मुख चमकने लगी, उसके लिए स्‍वर्ग का द्वार उन्‍मुक्‍त हो गया।

कासी और एमेलिन के भाग जाने के बाद लेग्री की क्रोधाग्नि एकदम भभक उठी और बेचारा टॉम ही उस धधकती हुई क्रोधाग्नि का शिकार हुआ। लेग्री जब दोनों दासियों को पकड़ने के लिए सब गुलामों को बुला रहा था, उस समय टॉम की आँखों से खुशी टपक रही थी। टॉम ने हाथ उठाकर आकाश की ओर देखा। लेग्री ने उसका यह भाव देख लिया था। दूसरे इस बात से भी वह टॉम की नीयत जान गया कि सब गुलाम तो भगोड़ी दासियों को पकड़ने के लिए दौड़-धूप करने लगे, पर टॉम ने उसका साथ नहीं दिया। लेग्री ने एक बार टॉम को पकड़नेवालों के साथ जबर्दस्‍ती भेजने की सोची, लेकिन फिर उसके पहले आचरण का स्‍मरण करके उसने उसे भेजना व्‍यर्थ समझा, क्‍योंकि टॉम जिस बात को बुरा समझता है, उसे वह जीते-जी कभी न करेगा।

लेग्री के लाव-लश्‍कर सहित एमेलिन और कासी को पकड़ने चले जाने पर खेत पर केवल टॉम तथा दो-एक वे लोग रह गए, जिन्‍होंने टॉम से प्रार्थना करना सीखा था। ये लोग मिलकर कासी और एमेलिन के कल्‍याण के लिए ईश्‍वर से प्रार्थना करने लगे।

बहुत खोज के बाद आधी रात के समय लेग्री जब निराश और परेशान होकर घर लौटा, तब टॉम पर उसकी क्रोधाग्नि एकदम भभक उठी। वह मन-ही-मन सोचने लगा कि जब से उसने टॉम को खरीदा है तब से आज तक उसने उसकी आज्ञा का उल्‍लंघन-ही-उल्‍लंघन किया है। यह चिंता नरकाग्नि की तरह उसके हृदय को जलाने लगी। ज्‍योंहि वह अपने बिस्‍तर पर बैठा, अपने-आप से बोला - "मैं टॉम से नफरत करता हूँ। मुझे उससे जबर्दस्‍त नफरत है। क्‍या वह मेरी चीज नहीं है? क्‍या मैं उससे मनमाना व्‍यवहार नहीं कर सकता? अच्‍छा देखता हूँ, मुझे रोकनेवाला कौन है।" - ऐसा कहकर वह बार-बार जमीन पर पैर पटकने लगा। लेकिन उसने फिर सोचा कि टॉम को मैंने अधिक दामों पर खरीदा है, ऐसी कीमती चीज को यों नष्‍ट करना ठीक नहीं है। कल उससे कुछ कहना-सुनना मुनासिब नहीं होगा।

उसने निकट के खेतों से ढूँढ़ने वाले, शिकारी कुत्ते, बंदूकें और बहुत से गुलाम इकट्ठे किए। अब उसने निश्‍चय किया कि जितनी दलदली जमीन है, उसका चप्‍पा-चप्‍पा खोज डाला जाएगा। यदि कासी और एमेलिन मिल गईं, तब तो ठीक, नहीं तो टॉम के प्राण लेने का उसने पक्‍का संकल्‍प किया। वह अंदर से उबलकर दाँत पीसने लगा। उसके पापासक्‍त मन ने इस भयंकर नर-हत्‍या के संकल्‍प का पूरी तरह समर्थन किया।

कानून गढ़नेवाले कहा करते कि मनुष्‍य अपना स्‍वार्थ सोचकर दास-दासियों के प्राण नहीं ले सकता, पर क्रुद्ध होने पर ये हत्‍यारे अपने-पराए तथा भले-बुरे का होश खो बैठते हैं। इनके हाथों में बेचारे गुलामों के प्राण सौंपकर उन लोगों ने नि:संदेह बड़ा पापपूर्ण काम किया था।

प्रात:काल जब लेग्री अपने आदमी इकट्ठे कर रहा था, तब कासी उत्तर दिशावाले दालान के एक सूराख से उसकी सब कार्रवाई देख-सुन रही थी। पकड़नेवाले दल में दो तो पास के दूसरे दो खेतों के परिदर्शक थे और बाकी लेग्री के शराबी सहचर थे। सभी बड़े उत्‍साह से तैयार हो रहे थे और गिलासों में भर-भरकर शराब उड़ा रहे थे। उनकी सारी बातचीत सुनने की इच्‍छा से कासी घर की एक दीवार से कान लगाए चुपचाप खड़ी थी।

उनमें से एक परिदर्शक कह रहा था - "मेरा शिकारी कुत्ता भगोड़ों को पकड़ते ही नोच डालता है।" दूसरे ने कहा - "जैसे ही भगोड़ी दासियाँ मेरी नजर के सामने पड़ेंगी, मैं उन्‍हें तुरंत बंदूक का निशाना बनाकर भागने का मजा चखा दूँगा।"

उन दोनों राक्षसों की बातें सुनकर कासी बोल उठी - "हे भगवान! क्‍या इस संसार में सब पापी-ही-पापी बसते हैं? हमने ऐसा कौन-सा अपराध किया है, जो हम लोगों पर ये इतना अत्‍याचार करते हैं।" फिर एमेलिन की ओर मुँह करके बोली - "बेटी, तू अगर आज मेरे साथ न होती तो मैं अभी उन सबके पास जाकर कहती, 'लो, मुझे गोली से मारकर अपनी साध पूरी कर लो।' स्‍वाधीन होकर ही मेरा क्‍या हुआ जाता है? अब मुझे अपनी दोनों संतानों का मुँह देखने को मिलेगा? मैं फिर पहले-जैसा पवित्र जीवन प्राप्‍त कर सकूँगी?"

कासी के मुँह का भाव देखकर एमेलिन सहम गई और भय से कुछ भी न बोल सकी। उसने एक भयभीत बालक की भाँति कासी का हाथ पकड़ लिया।

कासी ने हाथ छुड़ाते हुए कहा - "मेरा हाथ छोड़ दे, मैं तुझे प्‍यार नहीं करना चाहती। अब संसार में किसी को भी प्‍यार करने की मुझे इच्छा नहीं होती।"

एमेलिन ने कहा - "दुखिया कासी माँ, इतना दु:ख मत करो। यदि ईश्‍वर हमें स्‍वतंत्रता देता है तो शायद वह तुम्‍हें तुम्‍हारी बेटी से भी मिला देगा। यह न हो सका तो मैं तुम्‍हारी बेटी बनकर रहूँगी। अब अपनी दुखिया माँ को देखने की आशा मैंने भी छोड़ दी है। मैं अब तुम्‍हीं को अपनी माँ समझूँगी। कासी माँ, तुम मुझपर प्‍यार करो या न करो, मैं तुम्‍हें अवश्‍य प्‍यार करूँगी।"

कासी बोली - "ओह, अपनी दोनों संतानों के लिए मेरा हृदय कैसा हाहाकार कर रहा है। मेरी आँखें उन्‍हें देखने के लिए तरस रही हैं।" फिर उसने अपनी छाती पीटते हुए कहा - "हे भगवान! मुझे अपनी संतानों से मिला दे। मैं तभी शांतिपूर्ण हृदय से प्रार्थना कर सकूँगी।"

एमेलिन ने कहा - "उस पर विश्‍वास करो - वह हमारा पिता है!"

कासी बोली - "हम लोगों पर भगवान का कोप बरस रहा है। वह हम लोगों पर नाराज हो रहा है।"

एमेलिन ने बताया - "नहीं कासी, वह अवश्‍य हम लोगों पर कृपा करेगा। हम लोगों को उसका भरोसा करना चाहिए।"

इन दोनों में जब ये बातें हो रही थीं, उस समय लेग्री अपने आदमियों सहित निराश और परेशान होकर घर लौट आया था। जब वह बहुत उदास मुँह बनाए घोड़े की पीठ से उतरा, उस समय कासी बड़ी प्रसन्‍नता से, सूराख के रास्‍ते, उसे देख रही थी। उतरते ही उसने कुइंबो से कहा - "जल्‍दी जा और टॉम को यहाँ ला। इस मामले में जरूर उसका हाथ है। उसके काले चमड़े के अंदर से सारी बातें बाहर निकालनी होंगी।"

टॉम को पकड़कर लाने के उद्देश्‍य से सांबो और कुइंबो, दोनों बड़ी प्रसन्‍नता से उछलते-कूदते हुए चले। आपस में इन दोनों की एक घड़ी नहीं बनती थी, लेकिन टॉम पर इन दोनों की ही शनि-दृष्टि थी, क्‍योंकि लेग्री ने टॉम को अपना मुख्‍य परिदर्शक बनाने का संकल्‍प लिया था।

सांबो और कुइंबो ने टॉम से जाकर कहा - "चलो, साहब बुला रहे हैं।" और हाथ पकड़कर वे उसे ले जाने लगे। टॉम ने जान लिया कि कासी और एमेलिन के भागने का वृत्तांत पूछने के लिए ही लेग्री उसे बुला रहा है। टॉम सब बातें जानता था और वे इस समय कहाँ हैं, इसका भी उसे पता था, पर उसने मन-ही-मन ठान लिया था कि चाहे जान चली जाए, पर वह इस गुप्‍त भेद को प्रकट करके उन दोनों अनाथ औरतों को सर्वनाश के मुँह में नहीं जाने देगा। यह सोचकर, वह ईश्‍वर के चरणों में अपने को सौंपकर, मृत्‍यु के लिए कटिबद्ध हो गया। वह हाथ जोड़कर ईश्‍वर से प्रार्थना करने लगा - "ओ परम पिता, मैं आपके हाथों में अपने प्राणों का समर्पण करता हूँ, आज तक आपने ही मेरी रक्षा की है।"

उसे ले जाते हुए कुइंबो कहने लगा - "अहा-हा! अब की बार बच्‍चू को छठी का दूध याद आ जाएगा, आज मालिक बेहद गुस्‍सा हो गए हैं। अब छिपने-छिपाने की गुंजाइश नहीं है, सारी बातें पेट से बाहर निकालनी पड़ेंगी। गुलामों को भागने में मदद देने से क्‍या मजा आता है, यह अबकी बार ही मालूम पड़ेगा। अबकी बार तेरी खोपड़ी दुरुस्‍त हो जाएगी।"

कुइंबो की असभ्‍य और क्रूर बातें टॉम के कानों में नहीं पहुँचीं। जिस समय कुइंबो यह सब बकवास कर रहा था, उस समय टॉम के कानों में अति मधुर कंठ के ये शब्‍द सुनाई दे रहे थे - "शारीरिक यातना देनेवालों से भय मत करो, क्‍योंकि इसके आगे उनका कोई बस नहीं है।"

इस उत्‍साहपूर्ण वाक्‍य को सुनने से टॉम को अपनी हड्डियों तक में नए बल का अनुभव हुआ। लगा, जैसे ईश्‍वर के स्‍पर्श-मात्र से उसके शरीर में नया रक्‍त और उत्‍साह दौड़ने लगा है। सैकड़ों आत्‍माओं का बल मानो उस अकेले की आत्‍मा में प्रवेश कर रहा है। आगे बढ़ते हुए वह ज्‍यों-ज्‍यों पेड़-पत्तों, लता-पादपों एवं दासों के झोपड़ों को पीछे छोड़ता जाता था, त्‍यों-त्‍यों उसे मालूम हो रहा था, मानो वह अपनी दुरावस्‍था को भी पीछे छोड़ता जा रहा है। उसकी आत्‍मा आनंद में नृत्‍य करने लगी। उसके पिता का घर निकट आ गया है, उसकी दासता की बेड़ियों के टूटने का समय आ पहुँचा है!

लेग्री ने टॉम के कोट का कालर पकड़कर खींचते हुए बड़े क्रोध से कहा - "टॉम, तू जानता है कि मैंने तुझे मार डालने का संकल्‍प कर लिया है!"

टॉम ने धीरता से कहा - "यह आपके लिए बहुत सहज काम है सरकार!"

लेग्री बोला - "टॉम, तू इन भगोड़ी दासियों के संबंध में जो कुछ जानता है, मेरे सामने कह दे, नहीं तो आज मैंने तेरी जान लेने की ठान ली है।"

टॉम इस प्रश्‍न पर चुप खड़ा रहा।

खूंखार शेर की तरह गरजते हुए तथा जमीन पर पैर मारते हुए लेग्री बोला - "मैं जो पूछ रहा हूँ, उसका जवाब दे!"

टॉम ने दृढ़ता और धीरज से साफ शब्‍दों में कहा - "सरकार, मुझे कुछ नहीं कहना है।"

लेग्री गालियाँ देते हुए बरसा - "पाजी, काले ईसाई, तू मुझसे यह कहने की हिम्‍मत कर सकता है कि तू उनके बारे में कुछ नहीं जानता?"

टॉम चुप खड़ा था।

लेग्री उसे मारते हुए जोरों से गरजा - "जल्‍दी बोल! तू क्‍या जानता है?"

टॉम ने कहा - "सरकार, मैं जानता हूँ, पर बता नहीं सकता। मुझे मरना स्‍वीकार है।"

यह सुनकर लेग्री कुछ देर गुस्‍से को थामकर बोला - "सुन बे टॉम! एक बार मैंने तुझे छोड़ दिया, इससे तू यह मत समझ कि अब की बार भी छोड़ दूँगा। इस बार मैंने ठान लिया है कि कुछ रुपयों का नुकसान हो जाए तो कोई परवा नहीं। मैं या तो तुझे अपने काबू में करूँगा, या तेरे शरीर से रक्‍त की एक-एक बूँद निकालकर तेरी जान ले लूँगा।"

टॉम ने एक बार उसकी आँखों में अपनी आँखें डालकर देखा और उत्तर दिया - "सरकार, अगर आप बीमार होते, किसी आफत में फँसे होते, या आपकी जान के लाले पड़े होते और मेरे प्राण देने से आप बच सकते, तो मैं आपके लिए प्रसन्‍नता के साथ अपने प्राण न्‍यौछावर कर देता। अब भी अगर मेरी इस तुच्‍छ देह के रक्‍त से आपकी आत्‍मा का कल्‍याण हो सके तो मैं बड़ी खुशी से आपके लिए अपने शरीर का सारा खून बहाने के लिए तैयार हूँ; परंतु सरकार, इस नर-हत्‍या रूपी भयंकर पाप से अपनी आत्‍मा को कलंकित न कीजिए। इस काम में मेरी निस्‍बत आपकी ही अधिक बुराई होगी। मेरे प्राण आप खुशी से ले सकते हैं - इससे मेरे तो सारे ही दु:खों का खात्‍मा हो जाएगा, परंतु अपने पिछले पापों तथा इस नवीन नर-हत्‍या रूपी पाप के कारण आपका बहुत ही अमंगल होगा। सरकार, एक बार इस पर गौर करके देखिए।"

टॉम की यह बात सुनकर उस पाषाण-हृदय नर-पिशाच अंग्रेज के मन में भी पल भर के लिए डर पैदा हो गया। उसे ऐसा मालूम पड़ा जैसे स्‍वर्ग से उतरा कोई देवदूत उपदेश दे रहा हो।

लेग्री चकित होकर टॉम का मुँह देखने लगा। उस समय वहाँ खड़े सब लोग एकदम सन्‍न थे। ऐसा सन्‍नाटा छाया हुआ था कि सुई भी गिरती तो सुनाई देती। यह लेग्री के चरित्र को सुधारने का अंतिम सुयोग था।

पापी मनुष्‍य को अपकर्मों से दूर होने के लिए मंगलमय परमात्‍मा समय-समय पर, पल-पल पर, अवसर देते हैं; क्षण-क्षण पर पापी की आँखों के सामने ऐसी अवस्‍थाएँ आती हैं कि वह इस ईश्‍वर-प्रदत्त सुअवसर का सदुपयोग करके, सहज में आत्‍म-संयम करके, अपने जीवन की गति को बदल सकता है। लेग्री, खूब सोच लो, तुम्‍हारे लिए यह अंतिम अवसर है।

परंतु सारे जीवन नर-हत्‍या करते-करते इन अर्थ-पिशाच स्‍वार्थी गोरों का हृदय पत्‍थर से भी ज्‍यादा सख्‍त हो गया था। अत: साधु-भाव क्षण भर से अधिक इस हृदय पर नहीं टिक सका। लेग्री दो-चार पल ठहरा। एक बार मन में विचार आया कि क्‍या करूँ? इस चिंता ने मन को डाँवाडोल किया, किंतु अभ्‍यस्‍त पैशाचिक भाव के मन में आते ही, तत्‍काल लेग्री का क्रोध भड़क उठा और वह गाय के चमड़े से बने चाबुक से टॉम को पीटने लगा।

उस दिन के भीषण लोमहर्षक कांड का वर्णन करने में लेखनी एकदम असमर्थ है। नृशंस प्रकृति का मनुष्‍य बिना हिचकिचाहट के जो भयंकर अत्‍याचार करता है, उसे सुनने में भी सहृदय मनुष्‍य कानों पर हाथ रख लेते हैं। सिर्फ हाथ ही नहीं रखते, कभी-कभी उन कठोर अत्‍याचारों की बात सुनकर उनके हृदय में बरछी-सी लग जाती है और उनकी मौत का कारण बन जाती है। इसी से दूसरों का कष्‍ट देखकर इवान्‍जेलिन के हृदय की ग्र‍ंथि खुल गई और वह संसार को त्‍यागकर परमपिता की गोद में चली गई।

परम कारुणिक ईसा ने संसार के कल्‍याण के लिए बड़ी-से-बड़ी यातनाएँ, घोर-से-घोर संकट तथा दुस्‍सह अपमान सहे थे, इसी से वे मृत्‍यु के उपरांत देवता समझे गए। फिर उन्‍हीं ईसा का प्रचारित ईसाई-धर्म जिनकी एकमात्र पूँजी है, वे भला क्‍यों इस यातना को सहने में असमर्थ होने लगे? जिन राजाओं के भी राजा परमेश्‍वर ने 1900 वर्ष पूर्व ईसा की सूली के पास आकर कहा था - "बेटा, कोई डर नहीं है! चले आओ! तुम्‍हारे लिए स्‍वर्ग-राज्‍य का द्वार खुला हुआ है।" - वही अनंत मंगलमय जगत-पिता आज, पार्थिव पद और प्रभुत्‍व से हीन दीन टॉम के पास खड़ा होकर उसे आश्‍वस्‍त कर रहा है और मधुर कंठ से कह रहा है - "कोई भय नहीं है, टॉम! तुम्‍हारी दु:ख-निशा का अंत हो गया। स्‍वर्ग का द्वार तुम्‍हारे लिए मुक्‍त है। तुम राजमुकुट धारण करके स्‍वर्ग-राज्‍य में प्रवेश करो। तुम्‍हें उठा लेने के लिए मेरी भुजाएँ फैली हुई हैं।"

मार खाते-खाते जब टॉम बेदम हो गया और उसके प्राण निकलने की तैयारी होने लगी, तब भी उसे लुभाने के लिए लेग्री ने कहा - "भागी हुई दासियाँ कहाँ हैं? अब भी बता दे, तो तुझे छोड़ सकता हूँ।"

परंतु जिसने परमपिता के हाथों में आत्म-समर्पण कर दिया है, उसे कौन लुभा सकता है। उसके मुख से 'हे पिता!' 'हे परमेश्‍वर!' के सिवा कोई आवाज नहीं निकली।

टॉम का धीरज देखकर क्रूर हत्‍यारे सांबो का हृदय भी क्षण भर के लिए पिघल गया। उसने लेग्री से कहा - "सरकार, अब और मार की दरकार नहीं। इसकी जान तो यों ही निकल जाएगी।"

लेकिन पापिष्‍ठ लेग्री ने फिर कहा - "अभी और मार! और मार! जब तक कोई बात नहीं बताएगा, तब तक मैं इसे नहीं छोडूँगा।"

इसी समय धरा पर क्षत-विक्षत पड़े हुए मुमूर्ष टॉम ने लेग्री की ओर देखकर कहा - "ओ अभागे! तू मेरा और अधिक कुछ नहीं कर सकता। जा, मैं तेरे सारे अपराधों को क्षमा करता हूँ।" इतना कहते-कहते वह अचेत हो गया।

उसके शरीर को हिला-डुला कर देखते हुए लेग्री ने कहा - "मालूम होता है, मर गया। अच्‍छा हुआ, अब इसका मुँह बंद हो गया।"

यह ठीक है लेग्री, कि तूने उसका मुँह तो बंद कर दिया, पर उसकी आवाज तो तेरे अंत:करण में सदा गूँजती रहेगी! उसे कौन बंद कर सकेगा?

फिर लेग्री वहाँ से चला गया। लेकिन टॉम के प्राण अभी शरीर से नहीं निकले थे। मार के समय टॉम ने जो प्रार्थना की थी, उसे सुनकर सांबो और कुइंबो जैसे नर-पिशाचों का हृदय भी पिघलने लगा। लेग्री के चले जाने पर वे दोनों तुरंत उसे उठाकर एक झोपड़ी के अंदर ले गए और टॉम को बचाने की चेष्‍टा करने लगे।

सांबो बोला - "हम लोगों ने बड़ा पाप-कर्म किया है। आशा है, इसके लिए मालिक ही को जवाब देना पड़ेगा, हम लोगों का कुछ न होगा।"

फिर वे दोनों टॉम के जख्‍मों को धोने लगे। घावों को धोकर उन्‍होंने उसे एक खाट पर लिटा दिया। इसके बाद उनमें से एक लेग्री के पास गया और अपने पीने का बहाना बनाकर थोड़ी-सी ब्रांडी ले आया और थोड़ी-थोड़ी करके टॉम के गले में डालने लगा।

कुछ देर में टॉम को होश आ गया। कुइंबो बोला - "टॉम भाई! हम लोगों ने तुम पर बड़े-बड़े अत्‍याचार किए हैं।"

टॉम ने कहा - "मैं हृदय से तुम लोगों को क्षमा करता हूँ।"

सांबो ने कहा - "टॉम, हमें एक बात बताओ कि ईसा कौन है? तुमने जिसे पुकारा था, वह कौन है?"

ईसा का मधुर नाम सुनकर टॉम के शरीर में बल आ गया। वह तेजी के साथ ईसा की दया की कथा कहने लगा। तब इन दोनों नराधमों का दिल भी पसीजा और वे काँपते हुए बोले - "आहा! ऐसा सुंदर नाम हमने पहले कभी नहीं सुना था। हे ईश्‍वर! हमपर दया कर!"

टॉम ने कहा - "ओ अभागों! तुम्‍हें धर्म-मार्ग पर ले जाने के लिए मैं सारे कष्‍ट उठा सकता हूँ।"

इतना कहकर उसने इन दोनों की आत्‍माओं के उद्धार के लिए ईश्‍वर से प्रार्थना की।

टॉम की प्रार्थना पूरी हुई। सांबो और कुइंबो ने उसी समय कुपथ छोड़कर सुपथ पर चलने की दृढ़ प्रतिज्ञा की।

44. टॉम की महायात्रा

इसके दो दिनों के बाद एक छोटी गाड़ी पर चढ़कर एक नौजवान लेग्री के यहाँ आया और झटपट गाड़ी से उतरकर वहाँ के लोगों से बोला - "मैं इस घर के मालिक से मिलना चाहता हूँ।"

यह जार्ज शेल्‍वी था। पाठकों को स्‍मरण होगा कि टॉम के नीलाम में भेजे जाने के पहले, मिस अफिलिया ने शेल्‍वी साहब की मेम के पास टॉम को छुड़ाने के लिए एक पत्र भेजा था। पर विधि की विडंबना देखिए, डाकखाने की गलती से वह पत्र इधर-उधर मारा-मारा फिरा और दो महीने बाद श्रीमती शेल्‍वी को मिला। वह टॉम के भावी अमंगल की बात सोचकर बहुत घबड़ाई।

पर इस समय उसके हाथ में टॉम की सहायता का कोई उपाय न था। उसके पति रोग-शय्या पर पड़े थे, उन्‍हीं की सेवा शुश्रूषा एवं काम-काज के झंझट में वह बेतरह फँसी हुई थी। कुछ दिनों बाद शेल्‍वी साहब इस दुनिया से कूच कर गए। इतने सारे काम का बोझ उसी के कंधों पर आ गया। उसके पति पर बहुत ऋण था, उसे चुकाने की उसे बड़ी चिंता हुई। पर उस सुशिक्षिता, सहृदया नारी का हृदय केवल स्‍त्री-सुलभ कोमलता, स्‍नेह, दया और धर्म का ही आगार न था, बल्कि काम-काज सँभालने में भी उसने अपनी असाधारण बुद्धिमत्ता का परिचय दिया। उसने कुछ हिस्‍सा खेत का और घर की बहुत-सी फालतू चीजें बेचकर बहुत शीघ्र ही अपने पति का सारा ऋण चुका दिया और सारे कामों का सिलसिला ठीक कर लिया। उसका तरुण पुत्र अपनी माता के सब कार्यों में हाथ बँटाने लगा।

जब सब ठीक-ठीक हो गया, तब माता और पुत्र दोनों मिलकर टॉम के उद्धार का उपाय सोचने लगे। जिस वकील ने सेंटक्‍लेयर के दास-दासी एवं घर का माल-असबाब बेचने का भार उठाया था, बुद्धिमती मिस अफिलिया ने अपने पत्र में उसका नाम-पता लिख दिया था। इससे टॉम के पते के लिए पहले पत्र लिखा गया, पर वह वकील टॉम के वर्तमान खरीदार का ठिकाना नहीं जानता था।

इस संवाद से माता और पुत्र को बड़ी चिंता हुई। इसके छ: महीने बाद माता के किसी काम से जार्ज शेल्‍वी को दक्षिण की ओर जाना पड़ा। इस अवसर पर उसने स्‍वयं नवअर्लिंस में आकर टॉम की खोज करने का निश्‍चय किया। दो महीने तक तो कहीं कुछ पता न लगा, पर अकस्‍मात् एक दिन एक आदमी से भेंट हो गई। उससे मालूम हुआ कि लेग्री नाम का एक आदमी उसे खरीद ले गया है। यह संवाद पाकर वह तुरंत रेड नदी में खड़े हुए एक जहाज पर सवार हो लिया और आज यहाँ पहुँचा।

लेग्री से भेंट होते ही जार्ज शेल्‍वी ने कहा - "मुझे पता चला है कि नवअर्लिंस से आपने टॉम नाम के एक दास को खरीदा है। वह पहले मेरे पिता के खेत में काम करता था। मैं उसे फिर खरीदने आया हूँ।"

उसकी बात सुनकर लेग्री का मुँह फीका पड़ गया। वह खीझकर बोला - "हाँ, मैंने इस नाम के एक आदमी को खरीदा है। बड़ा अच्‍छा सौदा निकला! ऐसा बेअदब, हठी और पाजी तो किसी ने कभी न देखा होगा। हमारे गुलामों को भड़काकर भगाता है, अभी दो दासियाँ उसकी सलाह से भाग गई हैं, जिनका दाम 800 रु या 1000 रु से कम न होगा। कहता है, उसने उन्‍हें भागने की सलाह दी थी। उसी की सलाह से वे भागी हैं, पर जब पता बताने को कहा गया तो उसने साफ इनकार कर दिया। इतनी मार खाने पर भी, जितनी और किसी गुलाम ने नहीं खाई होगी, उसने पता नहीं बताया। मालूम होता है, अब वह मरने बैठा। मैं नहीं कह सकता कि मरेगा या नहीं।"

ये बातें सुनकर जार्ज का चेहरा सुर्ख हो गया। उसकी आँखों से आग की चिनगारियाँ बरसने लगीं। पर झगड़ा करने में कोई अक्‍लमंदी न समझकर उसने केवल इतना ही पूछा - "वह कहाँ है? मैं उसे देखना चाहता हूँ।"

बाहर जो गुलाम जार्ज का घोड़ा पकड़े हुए खड़ा था, वह बोल उठा - "टॉम इसी कुटिया में है।"

लेग्री ने उस गुलाम को एक लात जमाई, पर जार्ज ने वहाँ पल भर की भी देर न की और झट से कुटिया की ओर बढ़ा।

टॉम दो दिन से इस कुटिया में पड़ा था। शारीरिक कष्‍ट अनुभव करने की उसकी शक्ति चली गई थी। आत्‍मा जीवनमुक्‍त हो गई थी। पर शरीर पहले खूब हष्‍ट-पुष्‍ट था, इस कारण देह-पिंजर से आत्‍मा सहज में बाहर नहीं होने पाती थी। इसी से अब भी उसमें प्राण बाकी था। टॉम सदा लेग्री के भूखे दास-दासियों की सहायता किया करता था, कभी-कभी स्वयं भूखा रहकर अपना आहार उन्‍हें दे देता था। इससे टॉम की इस दशा के कारण सब बड़े दु:खी हो रहे थे। लेग्री के डर के मारे टॉम को देखने जाने की उनकी हिम्‍मत न होती थी, पर रात को वे छिपकर उसकी कुटिया में जाते और यथा-शक्ति उसकी सेवा-शुश्रूषा करते थे। अधिक इनसे और क्‍या होता, जब-तब दो बूँद जल उसके मुख में डाल देते थे।

कासी को टॉम की विपत्ति का सब हाल मालूम हो गया। उसके दु:ख की बात जानकर उसका हृदय शोक से भर गया। टॉम ने उसके और एमेलिन के लिए ही यह अलौकिक त्‍याग स्‍वीकार किया था। यह सोचते-सोचते उसके हृदय में कृतज्ञता की लहरें उठने लगीं। वह सारी आफतों को तुच्‍छ समझकर पहली रात को टॉम को ही देखने के लिए उसकी कुटिया में पहुँची। टॉम अपने उस अंतिम समय में अस्‍फुट स्‍वर से कासी को स्‍नेहपूर्वक जो धर्मोपदेश करने लगा, उसे सुनकर उसके हृदयाकाश से निराशा का अंधकार सर्वथा दूर हो गया। वह शोकदग्‍ध वज्रसम कठोर हृदय पसीजकर नरम पड़ गया। वह रोती हुई प्रार्थना करती चली गई।

टॉम की कुटिया में प्रवेश करते ही उसकी दुर्दशा देखकर जार्ज को चक्‍कर आने लगा। उसके हृदय में गहरी चोट लगी। वह टॉम के बगल में घुटनों के बल बैठकर जोर से बोला - "क्‍या यह संभव है? क्‍या मनुष्‍य मनुष्‍य के साथ इतना अत्‍याचार कर सकता है? टॉम काका! मेरे दु:खी टॉम काका!"

मृत-प्राय टॉम के कानों में इस कंठ-स्‍वर से अमृत-सा बरस गया। वह संज्ञाशून्‍य-सा पड़ा था, पर यह स्‍वर सुनकर धीरे-धीरे उसने सिर हिलाया, होठों पर जरा हँसी आई। अस्‍फुट स्‍वर से बोला - "ईश-कृपा से क्‍या संभव नहीं है? मृत्‍युशय्या भी सुख से भर उठती है!"

जार्ज सिर झुकाए एकटक टॉम के मुँह की ओर देख रहा था। आँखों से आँसुओं की धारा बह रही थी। शोक से रुँधे कंठ से कहने लगा - "प्‍यारे टॉम काका! उठो, एक बार बोलो! आँखें ऊपर उठाकर देखो। तुम्‍हारा मास्‍टर जार्ज आया है, तुम्‍हारा प्‍यारा मास्‍टर जार्ज आया है। क्‍या तुम मुझे नहीं पहचानते हो?"

टॉम ने आँख खोलकर क्षीण कंठ से कहा - "मास्‍टर जार्ज! मास्‍टर जार्ज!" ... वह चौकन्‍ना होकर इधर-उधर देखने लगा। फिर बोला - "मास्‍टर जार्ज!" ... मानो धीरे-धीरे अंत में यह बात उसकी समझ में आई। उसकी शून्‍य आँखें क्रमश: चमकने लगीं, उसका मुख प्रफुल्लित हो गया। नेत्रों से अश्रु-धारा बह निकली। वह हाथ जोड़कर क्षीण स्‍वर में कहने लगा - "धन्‍य भगवान! अंत में मेरी इच्‍छा पूर्ण कर दी। वे मुझे भूले नहीं। इससे मेरी आत्‍मा को संतोष मिल गया। धन्‍य भगवान! धन्‍य भगवान! अब मैं सुख से मरूँगा।"

जार्ज ने कहा - "तुम्‍हें मरना नहीं होगा। तुम नहीं मरोगे। इस बात का विचार भी मन में मत लाओ। मैं तुम्‍हें खरीदकर घर ले चलने के लिए आया हूँ।"

टॉम ने कहा - "ओह, मास्‍टर जार्ज, तुम बड़ी देर से आए। अब समय नहीं रहा। मैं तो ईश्‍वर के हाथ बिक चुका हूँ। वह मुझे अपने साथ अमृत-धाम को ले जाएगा। वहाँ जाने को जी चाह रहा है। केंटाकी से स्‍वर्ग कहीं अच्‍छा है।"

जार्ज बोला - "टॉम काका, ऐसा मत कहो। तुम्‍हारी बातें सुनकर मेरी छाती फटी जाती है। हाय, तुम्‍हें कितना सताया गया हे! कैसे मैले में डाल रखा है हाय, तुम्‍हारी दशा देखकर मेरे प्राण मुँह को आ रहे हैं! ओफ!"

टॉम ने मुस्‍कराते हुए कहा - "मुझे दु:खी मत कहो। मैं दु:खी था, पर अब वे सब बातें गई-गुजरी हो गईं। मैं पिता की गोद में जा रहा हूँ। जार्ज, यह देखो स्‍वर्ग का द्वार खुला हुआ है। धन्‍य ईसा! धन्‍य परमेश्वर!"

जार्ज टॉम के इन सच्चाई से भरे, विश्‍वास-पूर्ण तेजोमय वाक्‍य सुनकर स्‍तंभित रह गया। वह अवाक् होकर उसके मुख की ओर देखने लगा।

टॉम ने जार्ज का हाथ पकड़कर कहा - "तुम रोओ मत! छोई से मेरी इस दशा का हाल कहना। ओफ! उसे कितना दु:ख होगा। लेकिन तुम उससे कहना कि मेरी मृत्‍यु शां‍ति से हुई है। मेरे लिए कोई दु:ख न करे। उससे यह भी कह देना कि भगवान सर्वत्र मेरे साथ थे। उन्‍होंने सदा मुझे दु:खों पर विजय दी है। मुझे बच्‍चों के लिए सदा दु:ख होता था। उन्‍हें मेरे मार्ग पर चलने को कहना। अपने माता-पिता और घर के हर आदमी को मेरा प्रेम कहना। मेरे दिल में हर जीवधारी के लिए प्रेम है। मैं जहाँ गया, वहाँ प्रेम के अलावा और कुछ नहीं किया। ओह, मास्‍टर जार्ज, प्रेम भी क्‍या ही अनोखी चीज है! वाह, धर्म के रास्‍ते पर चलने में कितना आनंद है!"

इसी समय लेग्री वहाँ कुटिया के द्वार तक आया और एक बार अंदर की ओर देखकर घृणा प्रकट करते हुए लौट गया।

जार्ज उसे देखकर क्रोध से बोला - "शैतान कहीं का! ईश्‍वर एक दिन इसे अपने किए का फल देगा।"

टॉम ने कहा - "जार्ज, ऐसी बातें नहीं कहनी चाहिए। वह बड़ा अभागा जीव है। उसकी बातें सोच-सोचकर दु:ख होता है। अब भी अगर वह पश्‍चाताप करे तो ईश्‍वर इसे क्षमा करेंगे। पर यह कभी पश्‍चाताप नहीं करेगा।"

जार्ज बोला - "उसका पश्‍चाताप न करना ही अच्‍छा है। उसे स्‍वर्ग न मिले, यही मैं चाहता हूँ।"

टॉम ने बड़े दु:ख से कहा - "जार्ज, ऐसी बातें मत कहो। मुझे हैरानी होती है। मन में ऐसा भाव मत रखो। उसने मेरा कोई बिगाड़ नहीं किया। मेरे लिए स्‍वर्ग के राज्य का द्वार खोल दिया।"

जार्ज को देखकर टॉम आनंद से उत्तेजित हो गया था। उसी उत्तेजना से उसका शरीर और भी सुस्‍त पड़ गया। आँखें बंद हो गईं। साँस जल्‍दी-जल्‍दी चलने लगी और उसकी आत्‍मा संसार से विदा हो गई। मृत्‍यु के समय उसके मुँह से ये शब्‍द निकल रहे थे - "ईसा के प्रेम से हम लोगों को कौन वंचित करेगा!"

जार्ज स्‍तब्‍ध होकर एकटक उसके मुख की ओर देख रहा था। उसे जान पड़ने लगा कि टॉम का यह मृत्‍यु-गृह पवित्र स्‍थल है। उसने घूमकर देखा तो लेग्री को अपने पीछे खड़ा पाया।

टॉम का अंतिम वाक्‍य सुनकर जार्ज का उत्तेजित भाव कुछ मंद पड़ गया था, नहीं तो आज वह लेग्री की अवश्‍य खबर लेता। पर लेग्री का मुँह देखकर उसके हृदय में घृणा उत्‍पन्‍न हो गई। जार्ज तुरंत वहाँ से उठ जाने को तैयार हुआ और उससे बोला - "तुमसे जो बन सका तुमने कर लिया, अब मैं इस मृत शरीर को साथ ले जाना चाहता हूँ। बोलो, इसकी मृत देह के लिए तुम्‍हें क्‍या देना है? मैं अच्‍छी तरह से इसका क्रिया-कर्म करूँगा।"

लेग्री बोला - "मैं मुर्दे हब्‍शी नहीं बेचता। जहाँ और जब तुम्‍हारा जी चाहे, इसे ले जाकर दफन करो।"

वहाँ दो-तीन दास खड़े हुए लाश की ओर देख रहे थे। जार्ज ने उनसे कहा - "तुम लोग मेरे साथ आकर इस लाश को गाड़ी में रखवा दो और मुझे एक कुदाल लाकर दो।"

लेग्री की आज्ञा की कोई अपेक्षा न करके उनमें से एक कुदाल लाने के लिए दौड़ा, और दो ने उस लाश को गाड़ी पर रखवा दिया। लेग्री भी गाड़़ी के पास जाकर देखने लगा।

जार्ज ने अपना लबादा खोलकर गाड़ी में बिछाया और उस पर टॉम की मृत देह को लिटा दिया। उसके बाद गाड़ी हाँकते समय लेग्री से कहा - "तुमने जो नर-हत्‍या की है, इसकी सजा पाओगे। यह मत समझना कि मैं तुम्‍हें यों ही छोड़ दूँगा। मैं मजिस्‍ट्रेट के सामने जाकर अभी बयान दूँगा।"

यह सुनकर लेग्री ने ताने से हँसकर कहा - "जाओ, जहाँ तुम्‍हारा जी चाहे, बयान दो। ओफ, मुझे तो अब डर के मारे नींद ही नहीं आएगी! पर अंग्रेज गवाह तुम कहाँ से पाओगे। ऐसे मुकदमे में गुलामों की गवाही नहीं मानी जाती।"

जार्ज ने मन-ही-मन सोचा - "यह ठीक कहता है। देश के कानून के अनुसार गोरों के विरुद्ध कालों की गवाही नहीं मानी जाती।" यह सोचकर जार्ज को बड़ा कष्‍ट हुआ।

लेग्री आप-ही-आप कहने लगा - "मेरी तो कुछ समझ में नहीं आता कि एक मुर्दे हब्‍शी के लिए एक पढ़ा-लिखा अंग्रेज इतना बखेड़ा क्‍यों करता है? कितने ही कुली पुरुष और स्त्रियाँ यों ही मारे जाते हैं। यह मुकदमा चलाने चला है! कोई समझदार अंग्रेज-विचारक तो ऐसे तुच्‍छ विषय को सुनेगा ही नहीं। कौन भारी अपराध किया है, बस एक कुली ही न मारा है!"

आग लगने से जैसे बारूद का गोदाम भभक उठता है, वैसे ही लेग्री की यह बात सुनकर जार्ज का क्रोध भभक उठा। जार्ज वकीलों की तरह कानून के पन्‍ने उलटकर कर्तव्‍य निश्‍चय नहीं किया करता था। उसमें बड़ा तेज और बल था। उसने कानून नहीं पढ़ा था कि मनुष्‍यता से विहीन हो जाए। वह तुरंत गाड़ी से कूदकर लेग्री के मुँह पर जोर-जोर से घूँसे जमाने लगा। लेग्री की नाक से खून की नदी बह निकली। कायर लेग्री अधिक न सह सका और मुर्दे की भाँति जमीन पर गिर पड़ा। जार्ज ने अकेले होते हुए भी वह वीरता दिखाकर प्रात: स्‍मरणीय जार्ज वाशिंगटन का नाम सार्थक कर दिया।

संसार में कुछ मनुष्‍य ऐसे होते हैं कि लात खाने पर ही सीधे रहते हैं, ठीक से व्‍यवहार करना सीखते हैं। लेग्री उन्‍हीं व्‍यक्तियों में से था। अब उसने भलमनसी अख्तियार की, धूल झाड़कर उठ बैठा और जब तक जार्ज का गाड़ी आँखों से ओझल न हो गई, तब तक अपना मुँह नहीं खोला।

लेग्री के खेत से हटकर एक वृक्ष-लता से आच्‍छादित सुंदर स्‍थान में जार्ज ने कुलियों को कब्र खोदने की आज्ञा दी। कब्र तैयार हो जाने पर कुलियों ने जार्ज के पास आकर कहा - "हुजूर, यह लबादा खोल लिया जाए?" जार्ज ने कहा - "नहीं-नहीं, इसी के साथ इसे दफना दो!" फिर टॉम की मृत देह को संबोधित करके कहने लगा - "हाय टॉम काका, मेरे पास इस समय और कोई अच्‍छा कपड़ा नहीं है, जिसे तुम्‍हारे साथ दूँ। यही मेरी श्रद्धा का अंतिम चिह्न है।"

टॉम को मिट्टी दे दी गई और कब्र पर फूल बिछा दिए गए। तब जार्ज ने कुलियों को कुछ पैसे देकर कहा - "अब तुम लोग जा सकते हो।" वे जार्ज से कहने लगे - "हुजूर, हम लोगों को खरीद लीजिए। हम दिन-रात जी-जान से आपका काम करेंगे। यहाँ हम लोगों को बड़ी तकलीफ है।"

जार्ज ने कहा - "मैं यहाँ किसी को नहीं खरीद सकता। यह असंभव है। तुम लोग लौट जाओ।"

वे निराश होकर धीरे-धीरे चलते बने।

जार्ज टॉम की समाधि पर घुटनों के बल बैठकर आँखें और हाथ ऊपर करके कहने लगा - "हे अनंतस्‍वरूप परमात्‍मन्! मैं आपके सामने प्रतिज्ञा करता हूँ कि देश से इस घृणित दास-प्रथा को दूर करने के लिए, मैंने आज से अपने तन-मन को समर्पित कर दिया है। आप मेरे इस सत्‍संकल्प में सदा सहायक हों!"

टॉम के समाधि-स्‍थल पर कोई स्‍मृति-चिह्न नहीं बना, पर उसका जीवन ही उसका एकमात्र उज्‍ज्‍वल स्‍मृति-चिह्न था।

टॉम के लिए दु:खित होने का कोई कारण नहीं है। ऐसे जीवन और मृत्‍यु पर तरस खाने की कोई आवश्‍यकता नहीं है। टॉम दया का पात्र या दु:खी व्‍यक्ति नहीं था। वह जिस धन का धनी था, वह धन बड़े-बड़े महाराजाओं के भंडार में भी नहीं मिलता।

टॉम के हृदय की सत्‍यप्रियता, न्‍यायपरता, धर्म-जिज्ञासा, प्रेम, भक्ति और उसका सतत्-विश्‍वास क्‍या संसार के और सारे धनों से अधिक मूल्‍यवान न था!

45. भूत-कथा

कासी और एमेलिन के भाग जाने के बाद लेग्री के दास-दासियों में भूतों की चर्चा ने बड़ा जोर पकड़ा। हर घड़ी उन्‍हीं की चर्चा होने लगी।

रात को बंद किए हुए दरवाजे खुले मिलते, रात को किसी के दरवाजा खटखटाने की-सी आवाज आती, इससे सबने यही नतीजा निकाला कि यह सारी कार्रवाई भूतों के सिवा और किसी की नहीं है। दासों में से कोई-कोई कहता - "भूतों के पास सब दरवाजों की तालियाँ जरूर हैं। बिना ताली के वे दरवाजा कैसे खोल सकते हैं? दूसरे उसका खंडन करते - "यह कोई बात नहीं, भूत बिना ताली के भी दरवाजे खोल सकते हैं।"

भूत की सूरत-शक्‍ल के बारे में भी बड़ा मतभेद होने लगा। किसी ने कहा - "भूतों के सिर नहीं होते। उसके दोनों कंधों पर दो आँखें होती हैं।" पर दूसरे ने उसकी बात काटकर कहा - "मैं तो खुद अपनी आँखों से दो-तीन भूत देख चुका हूँ। कोई भी भूत बिना सिर का नहीं होता।" तीसरे ने कहा - "हाँ-हाँ सिर तो होता है। यह तो मैं भी मानता हूँ, लेकिन वह पीठ की ओर फिरा हुआ होता है। मैंने जितने भूत देखें हैं उनमें एक का भी सिर छाती की तरफ नहीं था।" इस पर चौथा दास बोला - "मालूम होता है, तुम सब लोगों ने जितने भूत देखे हैं, सबके सब विलायती थी, देशी उनमें एक भी नहीं था।"

दास-दासियों में भूत के रूप-रंग के विषय में यों ही तर्क-वितर्क होते रहे, पर कोई बात तय नहीं हुई। मतभेद ज्‍यों-का-त्‍यों बना रहा।

दास-दासियों की ये भूत-संबंधी चर्चाएँ लेग्री के कानों तक भी पहुँचने लगीं। उसने हजार यत्‍न किए, पर इन चर्चाओं का अंत न हुआ। दिन-पर-दिन भूत-चर्चा का बाजार गर्म होता गया। उत्तर के कमरे में बहुधा रात को किसी के पैरों की आहट सुनाई देती थी। इससे उठते ही सवेरे उसकी बात छिड़ जाती थी। रोज-रोज भूतों की कथाएँ सुनते-सुनते गँवार, धर्मज्ञानहीन लेग्री के मन में बुरी तरह डर समा गया। इन भयंकर स्‍मृतियों को मन से दूर रखने के लिए वह पहले से दूनी-चौगुनी शराब पीने लगा।

जिस दिन सवेरे टॉम की मृत्‍यु हुई, उस दिन वह पास के एक दूसरे खेत में गया था। वहाँ से घर लौटने में अधिक रात हो गई। घर पहुँचते ही वह सोने के कमरे में गया और सारी किवाड़ें बंद करने लगा। उत्तर की ओर का दरवाजा बंद करके किवाड़ों के पीछे उसने एक कुर्सी रख दी। अपने सिरहाने एक भरी हुई पिस्‍तौल रखी। डटकर शराब चढ़ाई। फिर लेट गया। कुछ देर बाद उसे नींद आ गई। नींद में पहले की भाँति उसे अपनी माता की मूर्ति दिखाई दी। अनंतर चिल्‍लाहट सुनाई दी। इससे उसकी आँख खुल गई और उसे साफ-साफ आदमी के पैरों की आहट सुनाई पड़ी। दरवाजे पर नजर पड़ते ही उसने देखा कि दरवाजा चौपट पड़ा है, घर की रोशनी बुझ गई है, अंधेरे में किसी ने उसके बदन पर ठंडे हाथ लगाए, जिससे वह खाट से उछलकर दूर जा खड़ा हुआ। इतने में श्वेत-वस्‍त्रधारी मूर्ति अंतर्धान हो गई। लेग्री ने दरवाजे के पास जाकर देखा तो दरवाजे को बाहर की ओर से बंद पाया। देखते ही देखते बेहोश होकर जमीन पर गिर पड़ा। सवेरे जागने पर देखा गया कि खाट की जगह वह जमीन पर पड़ा है।

इसके दूसरे दिन से लेग्री ने शराब की मात्रा और बढ़ा दी। उसने मन-ही-मन दो-तीन रात शराब पीकर एकदम बेहोशी ही हालत में बिताने का निश्‍चय किया, जिससे कोई भी दुश्चिंता उसके पास न फटकने पाए, पर दो-तीन दिन इस प्रकार खूब शराब पीने के कारण उसे भयानक ज्‍वर आया और वह पागल-जैसा हो गया। पहले किए अपने बुरे कामों तथा निष्‍ठुर आचरणों की बातें बकने लगा। वे सब लोमहर्षक बातें आदमी के दिल को कँपा देनेवाली थीं। इससे उस दशा में कोई उसके पास खड़ा नहीं होता था। दिन-रात वह अकेला बेसुध पड़ा रहता। तीन दिन के बाद उसके मुँह से खून गिरने लगा। और उसी के कुछ क्षणों बाद वह पापात्‍मा, नराधम अंग्रेज अपने चिर-कलंकित जीवन से मुक्‍त हो गया।

उसकी लाश का उसके गुलामों ने रेड नदी में बहा दिया और उसके पास जो माल-टाल था, उसे लेकर उत्तर की ओर निकल भागे।

जिस रात को लेग्री मूर्च्छित हुआ था, उस रात को तीन-चार गुलामों ने देखा कि दो स्त्रियाँ सफेद चादर से अपना बदन ढके हुए घर से निकलकर बाहर चली गईं। उसके दूसरे ही दिन सवेरे बाहरी मकान का दरवाजा भी खुला हुआ पाया गया। इससे लेग्री के दिल में और भी डर समा गया था।

सूर्योदय के कुछ ही पहले कासी और एमेलिन नगर के निकट पेड़ों के नीचे बैठकर विश्राम कर रही थीं। वृक्षों की ओट में बैठकर कासी ने स्‍पेन देश की कुलीन स्त्रियों के वस्‍त्र धारण किए और एमेलिन ने उसकी परिचारिका का-सा वेश बना लिया। कासी भले घर में जन्‍मी थी और सभ्‍य जनों की-सी उसने शिक्षा पाई थी। इससे उसे देखकर कोई भगोड़ी दासी नहीं समझ सकता था। उसने नगर में जाकर एक संदूक मोल लिया। उसमें सब कपड़े रखे और उसे एक कुली के सिर पर उठवाकर निकट के एक होटल में जाकर रहने लगी।

उस होटल में पहुँचते ही पहले जार्ज शेल्‍वी से उसकी भेंट हुई। जार्ज शेल्‍वी भी यहाँ जहाज के लिए ठहरा था। कासी ने अपने गुप्‍त स्‍थान से जार्ज शेल्‍वी को टॉम की लाश ले जाते देखा था। जब उसने लेग्री को पीटा था, तब भी वह उसे देख रही थी। इससे जार्ज का चेहरा उससे सर्वथा अपरिचित न था, विशेषकर जार्ज के चले जाने के बाद कासी ने दूसरे दास-दासियों की बातचीत से पता लगा लिया था कि वह टॉम के पूर्व मालिक का पुत्र है। अत: उसने आग्रहपूर्वक जार्ज से घनिष्‍ठता बढ़ाने का यत्‍न किया।

कासी के कुलीन स्त्रियों के-से वस्‍त्र एवं आचार-व्‍यवहार के कारण किसी को उस पर संदेह न हुआ, खासकर होटल में जो खाने-पीने आदि की चीजों का दाम देने में कंजूसी नहीं करता, उससे सब संतुष्‍ट रहते हैं। कासी इन बातों को खूब जानती थी। इसी से वह लेग्री के संदूक से अच्‍छी रकम ले आई थी।

संध्‍या होते-होते जहाज आ गया। जार्ज शेल्‍वी ने बड़े शिष्‍टाचार से कासी का हाथ पकड़कर उसे नाव पर चढ़ाया और स्‍वयं विशेष कष्‍ट सहकर जहाज के बीच का एक अच्‍छा कमरा उसके लिए किराए पर ले दिया। जहाज जब तक रेड नदी में था, तब तक कासी कमरे से बाहर न निकली। शारीरिक अस्‍वस्‍थता का बहाना बनाकर कमरे में ही सोती रही, पर जब जहाज मिसीसिपी नदी के मुहाने पर पहुँचा तो कासी आई। जार्ज ने फिर इस नदीवाले जहाज में भी उसके लिए एक कमरा किराए पर ले दिया। इस जहाज में आते ही कासी की शारीरिक अस्‍वस्‍थता दूर हो गई और जहाज में वह इधर-उधर टहलने लगी।

जहाज के अन्‍य यात्री उसके वस्‍त्र और सौंदर्य देखकर आपस में कहने लगे - "जवानी में यह स्‍त्री बड़ी सुंदर रही होगी।"

जार्ज ने जब से कासी को देखा, उसके मन में यह विचार उठ रहा था कि उसने ऐसा ही सुंदर चेहरा और कहीं देखा है। इससे वह बड़े ध्‍यान से कासी के मुख की ओर देखता था। खाते-पीते, बातें करते, बराबर जार्ज की आँखें उसके मुँह पर लगी रहती थीं।

यह देखकर कासी के मन में उद्विग्‍नता उत्‍पन्‍न हो गई। वह सोचने लगी कि वह आदमी निश्‍चय ही मुझपर संदेह करता है। पर जार्ज की दया पर भरोसा करके उसने आदि से अंत तक अपना सारा वृत्तांत उसे कह सुनाया।

सुनकर जार्ज को बड़ा दु:ख हुआ। उसने उससे सहानुभूति दिखाई और ढाढ़स बँधाया। लेग्री के दास-दासियों का कष्‍ट वह अपनी आँखों से देख आया था। इससे वहाँ से भागी हुई स्त्रियों पर सहज ही उसके मन में दया हो आई थी। उसने कासी को विश्‍वास दिलाया कि तुम डरो नहीं। मैं जी-जान से तुम्‍हारी रक्षा करूँगा।

कासी के कमरे से सटे हुए कमरे में मैडम डिथो नाम की एक फ्रेंच भद्र महिला सफर कर रही थी। जब उस फ्रेंच महिला को जार्ज की बातचीत से पता चला कि वह केंटाकी का आदमी है, तो वह उसके साथ बातचीत करने के लिए विशेष उत्‍सुक हुई। शीघ्र ही उसने जार्ज से परिचय कर लिया। उसके बाद जार्ज प्राय: उसी के कमरे के द्वार पर कुर्सी डालकर उससे बातें किया करता। कासी अपनी जगह से उसकी सारी बातें सुनती रहती।

एक दिन मैडम डिथो ने बातें-ही-बातों में जार्ज से कहा - "पहले मैं भी केंटाकी में ही थी।" और उसने केंटाकी प्रदेश के जिस गाँव का नाम लिया, जार्ज शेल्‍वी का घर भी वहीं था। जार्ज को उसकी बातों से बड़ा आश्‍चर्य हुआ।

इसके बाद एक दिन मैडम डिथो ने जार्ज से पूछा - "अपने गाँव में तुम हेरिस नाम के आदमी को जानते हो?"

"हाँ, इस नाम का एक बूढ़ा आदमी हमारे गाँव में है।" जार्ज ने उत्तर दिया - "उसके बहुत से दास-दासी हैं न?"

"उसके एक जार्ज नाम के वर्णसंकर दास को आप जानते हैं? शायद आपने उसका नाम सुना होगा" मैडम डिथो ने पूछा।

जार्ज बोला - "क्‍या? उसका तो मेरी माता की एक दासी से विवाह हुआ था। पर अब तो वह कनाडा भाग गया है।"

मैडम डिथो ने कहा - "अच्‍छा कनाडा भाग गया है? ईश्‍वर का धन्‍यवाद है!"

जार्ज मैडम डिथो की बात सुनकर बड़ा चकित हुआ, पर उससे आगे कुछ नहीं पूछा। मैथम डिथो दोनों हाथों से मुँह ढककर आनंद से अश्रु बहाने लगी। फिर कुछ सँभलकर बोली - "जार्ज मेरा भाई।"

जार्ज ने बहुत विस्मित होकर कहा - "ओह, ऐसा!"

मैडम डिथो ने गर्व से सिर उठाकर कहा - "हाँ मिस्‍टर शेल्‍वी जार्ज, जार्ज हेरिस मेरा भाई है।"

"मुझे आपकी बात सुनकर बड़ा अचंभा हुआ।"

"मिस्‍टर शेल्‍वी, जिस समय जार्ज बहुत छोटा था। उसी समय हेरिस ने मुझे दक्षिण के एक दास-व्‍यवसायी के हाथ बेच डाला था। उस दास-व्‍यवसायी से मुझे एक सहृदय फ्रांसीसी ने खरीद लिया और गुलामी की बेड़ी से मुक्‍त करके शास्‍त्र के अनुसार मुझसे विवाह कर लिया। कुछ दिन हुए मेरे स्‍वामी की मृत्‍यु हो गई। अब मैं अपने उस छोटे भाई जार्ज को खरीदकर दासता से मुक्ति देने की इच्‍छा से केंटाकी जा रही हूँ।"

जार्ज बोला - "जार्ज हेरिस मुझसे कई बार कहा करता था कि मेरी एमिली नाम की एक बहन को हेरिस ने दक्षिण में बेच डाला है।"

मैडम डिथो ने कहा - "मेरा ही नाम एमिली है।"

"आपका भाई बड़ा बुद्धिमान और चरित्रवान युवक है, पर गुलाम होने के कारण कोई उसके गुणों का आदर नहीं करता। हमारे यहाँ की दासी से उसका विवाह हुआ था। इसी से मैं उसे अच्‍छी तरह से जानता हूँ।" जार्ज ने कहा।

"उसकी स्‍त्री कैसी है?"

"वह भी एक रत्‍न है। परम सुंदरी और बुद्धिमती है, मधुर बोलने वाली, सुशील और धर्मपरायण है। मेरी माता ने अपनी कन्‍या की तरह बड़े यत्‍न से उसका लालन-पालन किया था। वह लिखने-पढ़ने, सीने-पिरोने तथा घर के सभी कामों में बड़ी निपुण है।"

"क्‍या वह आप ही के घर जन्‍मी थी?"

"नहीं, मेरे पिता उसे नवअर्लिंस से मेरी माता को उपहार में देने के लिए खरीद लाए थे। उस समय वह आठ-नौ बरस की थी। उन्‍होंने उसे कितने में खरीदा था, यह बात माता के सामने कभी प्रकट नहीं की, पर थोड़े दिन हुए उनके कागज-पत्रों से हम लोगों को मालूम हुआ कि उसके लिए उन्‍होंने बहुत अधिक मूल्‍य दिया था। ऐसा लगता है, उसके अपूर्व सौंदर्य के लिए ही इतने ज्‍यादा दाम दिए गए थे।"

कासी जार्ज के पीछे बैठी थी। उसके इन बातों को बड़े ध्‍यान से सुनने का पता जार्ज को नहीं था। पर जार्ज की बात समाप्‍त होते ही कासी ने उसकी बाँह पर हाथ रखकर कहा - "मिस्‍टर शेल्‍वी, क्‍या आप बता सकते हैं कि आपके पिता ने उसे किससे खरीदा था?"

जार्ज ने कहा - "याद पड़ता है कि सिमंस नाम के किसी आदमी से उन्‍होंने खरीदा था।"

"हे भगवान!" यह कहकर कासी तुरंत मूर्च्छित होकर गिर पड़ी।

कासी की इस आकस्मिक मूर्च्‍छा का कारण मैडम डिथो और जार्ज की समझ में नहीं आया। वे मिलकर उसे होश में लाने का उपाय करने लगे। होश में आने पर कासी बालिका की भाँति जोर-जोर से रोने लगी।

माँ कहलानेवाली महिलाएँ पूरी तरह से कासी के मनोभाव को समझ सकेंगी। कासी यह मानकर कि वह अब अपनी कन्‍या से नहीं मिल पाएगी, निराश हो गई थी, पर ईश्‍वर की कृपा से फिर मन में उसे देख पाने की आशा बँध गई और इसी से वह हृदय के उमड़े वेग को सँभाल न सकने के कारण बच्‍चे की तरह रोने लगी।

46. टॉम काका के बलिदान का सुफल

जार्ज शेल्‍वी ने अपने घर लौटने के कुछ ही दिन पहले अपनी माता को जो पत्र लिखा था, उसमें केवल अपने घर पहुँचने की तारीख के सिवा और किसी बात की चर्चा नहीं की थी। टॉम की मृत्‍यु का समाचार देने की उसकी हिम्‍मत न पड़ी। कई बार उसने लेखनी उठाई कि टॉम की मृत्‍यु के समय की घटनाएँ विस्‍तार से लिखे, पर कलम उठाते ही उसका हृदय शोक से भर जाता था। दोनों आँखों में आँसू बहने लगते थे। वह तुरंत कागज को फाड़कर फेंक देता था और कलम एक ओर को रखकर आँसू पोंछते हुए अलग जाकर हृदय को शांत करने की चेष्‍टा करता था।

जिस दिन जार्ज ने घर पहुँचने को लिखा था, उस दिन घर के लोग बड़ी प्रसन्‍नता से उसके आने की बाट जोह रहे थे। सबको आशा थी कि आज वह टॉम काका को साथ लेकर लौटेगा।

तीसरे पहर का समय था। मिसेज शेल्‍वी कमरे में बैठी हुई थीं। क्‍लोई पास खड़ी भोजन की मेज पर काँटा-चम्‍मच सजा रही थी। क्‍लोई आज बड़ी प्रसन्‍न थी। पाँच बरस बाद स्‍वामी के दर्शन होंगे। आज क्‍लोई एक-एक चीज को पाँच-पाँच बार सजाती थी। मिसेज शेल्‍वी से वह इस विषय पर बातें करना चाहती थी। मेज के किस तरफ किस कुर्सी पर जार्ज बैठेगा, इत्‍यादि विषयों पर मालकिन से तरह-तरह की बातें हो रही थीं। अंत में क्‍लोई बोली - "मेम साहब, मिस्‍टर जार्ज की चिट्ठी आई है?"

मेम ने कहा - "हाँ आई तो है, लेकिन एक ही लाइन की है। बस आज पहुँचने की बात लिखी है।"

क्‍लोई बोली - "मेरे बूढ़े की कोई बात नहीं लिखी?"

"नहीं, क्‍लोई!"

क्‍लोई ने उदास होकर कहा - "मिस्‍टर जार्ज की तो यह पुरानी आदत है। उन्‍हें ज्‍यादा लिखना पसंद नहीं। सब बातें सामने ही कहना उन्‍हें अच्‍छा लगता है।"

क्‍लोई थोड़ी देर को अपने में खो गई। फिर बोली - "मेरा बूढ़ा घर आकर लड़कों को नहीं पहचान सकेगा। लड़की को भी मुश्किल से पहचानेगा। उसको ले गए तब तो यह बहुत छोटी थी। अब कितनी बड़ी हो गई। पोली जैसी भोली है वैसी ही चालाक भी है। मैं भोजन बनाकर इधर-उधर चली जाती हूँ तो वह बैठी भोजन की रखवाली किया करती है। आज मैंने ठीक वैसा ही भोजन बनाया है, जैसा बूढ़े को ले जानेवाले दिन बनाया था। हे परमेश्‍वर! उस दिन मेरा जी कैसा करने लगा था।"

मिसेज शेल्‍वी ने क्‍लोई की बातें सुनकर ठंडी साँस ली। उसे अपने हृदय पर बड़ा बोझ-सा जान पड़ा। उसका मन उचट गया। जब से उसे अपने पुत्र का पत्र मिला था, उसी दिन से उसके मन से तरह-तरह की शंकाएँ उठ रही थीं। वह सोचती थी कि जार्ज के पत्र में टॉम की बात न लिखने का कोई-न-कोई विशेष कारण होगा।

क्‍लोई ने कहा - "मेम साहब, मेरे भाड़े के रुपयों के बिल मँगा रखे हैं न?"

"हाँ, मँगाए पड़े हैं।"

"मैं बूढ़े को ये रुपए दिखलाऊँगी।"

फिर क्‍लोई ने उल्‍लास से कहा - "उसे मालूम होगा कि मैंने कितने रुपए पाए हैं। वह मिठाईवाला मुझे और कुछ दिन वहाँ रहने को कहता था। मैं रह भी जाती, लेकिन बूढ़े के आने के कारण मेरा मन वहाँ नहीं लगा। मिठाईवाला आदमी बड़ा अच्‍छा है।"

क्‍लोई अपने कमाए रुपए दिखाने के लिए बड़ा आग्रह करती थी। मिसेज शेल्‍वी ने उसके संतोष के लिए उसके बिल और उसमें लिखे रुपए वहाँ ला रखे थे।

क्‍लोई फिर कहने लगी - "बूढ़ा पोली को नहीं पहचान सकेगा। कैसे पहचानेगा?"

"ओफ, उसको गए पाँच बरस हो गए। तब तो पोली बहुत छोटी थी। जरा-जरा खड़ा होना सीखती थी। चलने के समय उसे गिरते-पड़ते देखकर बूढ़ा कैसा खुश होता था। तुरंत दौड़कर उसे गोद में उठा लेता था। वाह!"

इसी समय गाड़ी के पहियों की घड़घड़ाहट सुनाई दी। "मास्‍टर जार्ज!" कहते हुए क्‍लोई खिड़की पर दौड़ गई। मिसेज शेल्‍वी ने शीघ्र बाहर आकर पुत्र को छाती से लगा लिया।

जार्ज ने वहाँ क्‍लोई को खड़े देखते ही उसके दोनों काले हाथ अपने हाथों में लेकर कहा - "दुखिया क्‍लोई चाची! मैं तुमसे क्‍या कहूँ! मैं अपना सब-कुछ देकर भी टॉम को ला सकता तो ले आता, पर... वह तो ईश्‍वर के यहाँ चला गया!"

मिसेज शेल्‍वी हाहाकर कर उठीं, पर क्‍लोई कुछ न बोली।

सबने घर में प्रवेश किया। वे रुपए, जिनके लिए क्‍लोई बहुत गर्वित थी, उस समय भी मेज पर पड़े हुए थे।

क्‍लोई ने उन रुपयों को बटोरकर काँपते हुए हाथों से मेम के सामने रखकर कहा - "मैं अब कभी इन रुपयों को नहीं देखना चाहती हूँ, न इनकी बात ही सुनना चाहती हूँ। मैं पहले से जानती थी कि अंत में यही होना है। खेतवालों ने उसका खून कर डाला!"

क्‍लोई यह कहकर घर से बाहर चल दी। मिसेज शेल्‍वी उठीं और उसे हाथ से पकड़ लाकर अपने पास बिठाते हुए बोली - "मेरी दुखिया क्‍लोई!"

क्‍लोई उसके कंधे पर सिर रखकर रोती हुई कहने लगी - "मुझे क्षमा कीजिए... मेरा दिल टुकड़े-टुकड़े हो गया है।"

मिसेज शेल्‍वी ने कहा - "मैं यह जानती हूँ। मेरे पास सामर्थ्‍य नहीं कि तुम्‍हारी इस व्‍यथा को शांत कर सकूँ, पर ईश्‍वर समर्थ है, वह सब कर सकता है। वह टूटे हुए हृदय को जोड़ सकता है और हृदय में लगे हुए घावों को भर सकता है।"

कुछ देर बाद वहाँ सभी आँसू बहा रहे थे। अंत में जार्ज उस शोकातुर विधवा के पास आकर बैठ गया और उसके हाथ अपने हाथों में लेकर गदगद कंठ से उसके स्‍वामी की वीरोचित मृत्‍यु की घटना सुनाने लगा।

टॉम ने उसके लिए जो प्रेम-संदेश भेजा था, वह भी कह सुनाया।

इसके कोई एक महीने बाद एक दिन प्रात:काल शेल्‍वी साहब के घर के सारे दास-दासी अपने नए मालिक की आज्ञानुसार कमरे में इकट्ठे हुए। कुछ देर बाद सबने बड़े विस्‍मय से देखा कि जार्ज कागजों का एक बंडल हाथ में लिए हुए वहाँ आया। उसने प्रत्‍येक के हाथ में एक-एक कागज देकर बताया कि यह उनकी दासता से मुक्ति का प्रमाण-पत्र है। आज उसने सारे गुलामों को गुलामी की जंजीर से मुक्‍त कर दिया।

उसने हर एक के सामने उसका प्रमाण-पत्र पढ़कर सुनाया। दास-दासी आनंदमग्‍न होकर रोने लगे। कोई-कोई शोर मचाने लगे और उनमें से ही कितनों को इस घटना से बड़ी चिंता हुई। वे उस कागज को वापस ले लेने का अनुरोध करने लगे। बोले - "हम जितने आजाद हैं, उससे ज्‍यादा आजादी नहीं चाहते। हम लोग इस घर को, मेम साहब को और आपको छोड़कर कहीं भी नहीं जाना चाहते।"

जार्ज उन लोगों को सारी बातें अच्‍छी तरह समझाने का यत्‍न करने लगा, पर वे सब उसकी बात को अनसुनी करके कहने लगे - "हम लोग यहाँ से नहीं जाएँगे।" अंत में जब सब चुप हो गए तब जार्ज ने कहा - "गुलामी से छूटकर तुम लोगों को हमारा घर छोड़कर जाने की जरूरत नहीं है। यहाँ पहले जितने नौकरों की आवश्‍यकता थी, अब भी उतनी ही है। घर में जो काम पहले था, वही अब भी है। पर अब तुम लोग पूरी तरह आजाद हो। मैं अब तुम लोगों से तय करके तुम्‍हें महीने-महीने नौकरी दूँगा। तुम लोगों को आजाद कर देने से तुम्‍हारा लाभ यह हुआ कि मान लो, अगर मैं किसी का कर्जदार हो जाऊँ या मर जाऊँ, तो तुम्‍हें कोई पकड़ ले जाकर बेच नहीं सकेगा। मैं अपना काम अपने-आप चलाऊँगा और तुम लोगों को यह बताने का यत्‍न करूँगा कि इस मिली हुई आजादी का कैसे सदुपयोग करना चाहिए। आशा है कि तुम लोग चरित्रवान बनने का यत्‍न करोगे और पढ़ाई-लिखाई में मन लगाओगे। मुझे विश्‍वास है कि ईश्‍वर की कृपा से मैं तुम लोगों के लिए कुछ कर सकूँगा। मेरे भाइयों, आज के दिन तुमने जो अनमोल स्‍वाधीनता-धन पाया है, उसके लिए ईश्‍वर का गुणगान करो, उसे धन्‍यवाद दो।"

इसके बाद जार्ज ने निम्‍नलिखित पद्य में अपनी भावना व्‍यक्‍त की :

रहे अब तुम न किसी के दास!

परवश जीवन मृत्‍यु सदृश है, इसमें कौन सुपास?

किसने कब सुख पाया जग में करके पर की आस।।

वह भी जीना क्‍या जीना है, यदि मन रहा उदास।

इंगित पर औरों के नाचा, सह-सहकर उपहास।

सुख स्‍वतंत्रता का अनुभव कर, होगा उर उल्‍लास।

बीतेगा जीवन विनोद में, होंगे विविध विलास।।

भय न रहा अब तुम्‍हें किसी का, दूर हुआ दु:ख त्रास।

हो स्‍वच्‍छंद सुखी हो विचरो जग में बारौं मास।।

एक बहुत ही बूढ़ा हब्‍शी खड़ा होकर अपने काँपते हुए हाथों को उठाकर कहने लगा - "ईश्‍वर का धन्‍यवाद है! हम सब आप की दया-दृष्टि से गुलामी की बेड़ी से मुक्‍त हुए हैं।" इस बूढ़े के साथ दूसरे दास-दासी भी कृतज्ञता सहित बार-बार ईश्‍वर की प्रार्थना करने लगे।

प्रार्थना समाप्‍त होने पर जार्ज ने उन्‍हें टॉम की मृत्‍यु के समय की सारी घटनाओं का हाल सुनाकर कहा - "देखो, मुझे एक बात और कहनी है। तुम सब कृतज्ञता के साथ हमारे टॉम काका को याद करो। यह मत भूलना कि इस सौभाग्‍य का कारण टॉम काका ही थे। उन्‍होंने अपनी जान देकर आज तुम लोगों को आजादी दिलवाई। उनकी मृत्‍यु देखकर मेरे हृदय में बड़ी व्‍यथा हुई थी। मैंने वहीं उनकी समाधि पर बैठकर परमेश्‍वर के सामने प्रतिज्ञा की थी कि मैं भविष्‍य में अब कभी दास-प्रथा को आश्रय नहीं दूँगा। स्‍वयं कभी दास नहीं रखूँगा। मैं ऐसा नहीं करूँगा कि किसी को अपनी संतान से अलग होना पड़े। आज मेरी वह प्रतिज्ञा पूरी हुई। तुम सब स्‍वाधीन हुए। देखो, जब-जब स्‍वाधीनता के सुख से तुम्‍हारे हृदय में आनंद हो, तब-तब मेरे परम बंधु टॉम काका का स्‍मरण जरूर करना, उसके परिवार पर कृतज्ञता और प्रेम प्रकट करना और जब तक जीते रहो, तब तक टॉम काका की मिसाल सामने रखकर उस पर चलते रहना। टॉम काका का साधु जीवन ही उसका एकमात्र स्‍मृति-चिह्न है। तुम सब टॉम काका की भाँति चरित्रवान और धर्मपरायण होने की चेष्‍टा करते हुए अपने-अपने हृदय में उसका स्‍मृति-मंदिर बना लो!"

47. उपसंहार

जार्ज ने मैडम डिथो से इलाइजा के संबंध में जो बातें की थीं, उन्‍हें सुनकर कासी को निश्‍चय हो गया कि हो न हो, इलाइजा ही मेरी बेटी है। उसके निश्‍चय का विशेष कारण था। जार्ज ने अपने पिता द्वारा इलाइजा के खरीदे जाने की जो तारीख बताई थी, ठीक उसी तारीख को उसकी कन्‍या बिकी थी। इस प्रकार दोनों तारीखों के एक मिल जाने से यह अनुमान पक्‍का हो गया कि मृत शेल्‍वी साहब ने जिस कन्‍या को खरीदा था, वह कासी की ही लड़की थी।

अब कासी और मैडम डिथो में बड़ी घनिष्‍ठता हो गई। वे दोनों एक ही साथ कनाडा की ओर चलीं। जब मनुष्‍य के दिन फिरते हैं तब सारी घटनाएँ अनुकूल-ही-अनुकूल होती जाती हैं। एम्‍हर्स्‍टबर्ग में पहुँचने पर इनकी एक पादरी से भेंट हुई। कनाडा पहुँचने पर जार्ज और इलाइजा ने उन्‍हीं के यहाँ एक रात बिताई थी, इससे पादरी साहब उन्‍हें अच्‍छी तरह जानते थे। उन्‍हें इन नवागत महिलाओं का सारा विवरण सुनकर बड़ा अचंभा हुआ और साथ ही बड़ी दया भी आई। वह तुरंज जार्ज की खोज के लिए मांट्रियल नगर जाने को इनके साथ हो लिए।

गुलामी की बेड़ी से मुक्‍त होकर जार्ज पाँच वर्षों से सानंद स्‍त्री-पुत्र सहित मांट्रियल नगर में जीवन बिता रहा है। वह एक मशीन बनानेवाले की दुकान पर काम करता है। उसे जो कुछ मिलता है, उतने से उसके दिन बड़े सुख से कट जाते हैं। यहाँ आने पर इलाइजा को एक कन्‍या और हुई। वह पाँच बरस की हो गई है और उसका पुत्र हेरी ग्‍यारहवें वर्ष में पदार्पण कर चुका है। इस समय वह इसी नगर के एक विद्यालय में पढ़ता है।

इनका निवास-स्‍थान बड़ा साफ-सुथरा है। सामने एक छोटी-सी सुंदर फुलवारी है, जिसे देखकर घर के मालिक की सुरुचि का परिचय मिलता है। घर में तीन-चार कमरे हैं। उन्‍हीं में से एक कमरे में बैठा हुआ जार्ज पढ़ रहा है। बचपन से ही जार्ज को पढ़ने-लिखने की बड़ी लगन थी। बहुत-सी विघ्‍न-बाधाओं के होते हुए भी उसने पढ़ना-लिखना सीख लिया था। जब काम से थोड़ा अवकाश पाता, तत्‍काल पुस्‍तक लेकर पढ़ने बैठ जाता।

संध्‍या निकट है। जार्ज अपने कमरे में बैठा एक पुस्‍तक पढ़ रहा है। इलाइजा बगलवाली कोठरी में बैठी चाय तैयार कर रही है। कुछ देर बाद वह बोली - "सारे दिन तुमने मेहनत की है, अब थोड़ा आराम कर लो। इधर आओ, कुछ बातचीत करेंगे। इतनी मेहनत करोगे तो तंदुरुस्‍ती खराब हो जाएगी।" इस पर इलाइजा की कन्‍या ने पिता की गोद में जाकर पुस्‍तक छीन ली। यह देखकर इलाइजा बोली - "वाह, ठीक किया! छोड़ो किताब को, इधर आओ!" इसी समय हेरी भी स्‍कूल से आ गया। जार्ज ने उसे देखकर उसके सिर पर हाथ रखते हुए पूछा - "बेटा, तुमने यह हिसाब अपने-आप लगाया है?"

हेरी ने कहा - "जी हाँ, मैंने स्‍वयं लगाया है। किसी की भी मदद नहीं ली।"

जार्ज बोला - "यही ठीक है। बचपन ही से अपने सहारे खड़ा होना चाहिए। खोटी किस्‍मत के कारण तुम्‍हारे बाप को लिखना-पढ़ना सीखने की सुविधा नहीं थी, पर तुम्‍हारे लिए मौका है, इसलिए खूब जी लगाकर पढ़ा-लिखा करो।"

इसी समय जार्ज को दरवाजे पर किसी के खटखटाने की आवाज आई। इलाइजा ने जाकर दरवाजा खोला तो देखा, वही एमहर्स्‍टबर्गवाले पादरी साहब तीन स्त्रियों को साथ लेकर आए हैं। पादरी साहब इनके एक बड़े उपकारी मित्र थे। उन्‍होंने निराश्रित अवस्‍था में इन्‍हें आश्रय दिया था। इससे इलाइजा उन्‍हें देखकर बड़ी प्रसन्‍न हुई और जार्ज को बुलाया।

पादरी साहब और उनके साथ आई स्त्रियों ने घर में प्रवेश किया। इलाइजा ने सबको बड़े आदर-सत्‍कार से बिठाया।

एमहर्स्‍टबर्ग से चलते समय पादरी साहब ने मैडम डिथो और कासी से कह दिया था कि तुम लोग वहाँ पहुँचते ही अपना भेद मत खोल देना। उन्‍होंने मन-ही-मन एक लंबी-चौड़ी भूमिका बाँधकर व्‍याख्‍यान के ढंग पर जार्ज और इलाइजा को इनका परिचय देने का निश्‍चय कर रखा था। मालूम होता है, वही रास्‍ते भर इसी बात को सोचते आ रहे थे कि इस विषय में किस ढंग से शुरूआत करेंगे। इसी से जब सब लोग बैठ गए, तब पादरी साहब जेब से रूमाल निकालकर मुँह पोंछते हुए व्‍याख्‍यान देने की तैयारी करने लगे। पर मैडम डिथो ने भाषण आरंभ होने के पूर्व ही सब खेल बिगाड़ दिया। जार्ज के देखते ही वह उसके गले से लिपट गई और आँसू बहाती हुई बोली - "जार्ज, क्‍या तुम मुझे नहीं पहचानते? मैं तुम्‍हारी बहन एमिली हूँ।"

कासी अब तक चुप बैठी थी। उसकी भाव-भंगिमा से जान पड़ता था कि यदि मैडम डिथो सब खेल न बिगाड़ती, तो वह पूर्व व्‍यवस्‍था के अनुसार मौन धारण किए रहने में बाजी मार जाती। पर इसी समय इलाइजा की कन्‍या वहाँ आ पहुँची। वह रूप-रंग में बिलकुल इलाइजा-जैसी थी। बस, इतनी ही उम्र में इलाइजा कासी की गोद से अलग की गई थी। कासी उसे देखते ही पागल की तरह दौड़ी और छाती में दबोचते हुए बोली - "बेटी, मैं तेरी माँ हूँ। तू मेरी खोई हुई दौलत है!" कासी ने उसी को अपनी संतान समझा!

इनके यों परिचय देने से इलाइजा और जार्ज, दोनों को बड़ा विस्‍मय हुआ। वे चौंक पड़े। उन्‍हें सब स्‍वप्‍न-सा जान पड़ने लगा। अंत में हर्ष-मिश्रित क्रंदन रुकने पर पादरी साहब फिर खड़े हुए और सारा भेद खोलकर सुनाया। उनकी बातें सुनते समय सबकी आँखों से आँसुओं की धारा बह रही थी। वास्‍तव में पादरी साहब की उस दिन की कहानी से उनके श्रोताओं का मन ऐसा पिघला था, जैसा शायद पहले कभी न पिघला होगा।

इसके बाद सब लोग घुटने टेककर बैठे और वह सहृदय पादरी ईश्‍वर को धन्‍यवाद देते हुए प्रार्थना करने लगे। उपासना की समाप्ति पर सबने उठकर परस्‍पर एक-दूसरे का आलिंगन किया। वे भी मन-ही-मन सोच रहे थे कि ईश्‍वर की महिमा कितनी अनंत है। जार्ज और इलाइजा को स्‍वप्‍न में भी ऐसे अद्भुत मिलन की आशा न थी, पर ईश्‍वर ने आज बिना माँगे ही उन्‍हें यह सुख और शांति देने की कृपा की।

कनाडा के एक पादरी के स्‍मृति-पटल पर भगोड़े दास-दासियों के ऐसे अदभुत मिलन की सहस्रों कहानियाँ अंकित थीं। उसकी पुस्‍तक पढ़कर पता चलता है कि दास-प्रथा पर लिखे हुए उपन्‍यासों की काल्‍पनिक घटनाओं की अपेक्षा मनुष्‍य के प्रकृत जीवन की घटनाएँ अधिक आश्‍चर्यजनक होती हैं। छह बरस की अवस्‍था में संतान माता की गोद से बिछुड़ गई है। फिर तीन वर्ष की अवस्‍था में उसी का अपनी माता के साथ कनाडा की धरती पर मिलन हुआ है। कोई किसी को पहचान नहीं सकता है। कितने ही भगोड़े दासों के जीवन में अद्भुत वीरता और त्‍याग के दृष्‍टांत दीख पड़ते हैं। अपनी माताओं और बहनों को दासता के अत्‍याचार से मुक्‍त करने के लिए वे अपनी जान पर खेल गए थे। एक दास युवक था। पहले वह यहाँ अकेला भागकर आया, किंतु पीछे से वह अपनी बहन को छुड़ाने के लिए जाकर एक-एक करके तीन बार पकड़ा गया। उसने बड़ी-बड़ी मुसीबतें और संकट सहे। एक-एक बार की कोड़ों की मार से छ:-छ: महीने खाट पकड़े रहा, पर तब भी किसी तरह उसने अपना निश्‍चय न छोड़ा। अंत में चौथी बार की चेष्‍टा में वह अपनी बहन को छुड़ा ही लाया।

क्‍या यह युवक सच्‍चा वीर नहीं है? पर अमरीका के पशु-प्रकृति के अंग्रेज उसे चोर समझते थे। न्‍याय की नजर से देखा जाए तो ये अर्थलोभी गोरे ही असली चोर हैं। अत्‍याचार-पीड़ित उस युवक का कार्य वास्‍तव में वीरता का कार्य कहलाने योग्‍य था।

कासी, मैडम डिथो और एमेलिन, तीनों जार्ज और इलाइजा के साथ रहने लगीं। कासी पहले कुछ सनकी-सी जान पड़ती थी। वह जब-तब आत्‍म-विस्‍मृति के कारण इलाइजा की कन्‍या को छाती से लगाने के लिए इतने जोरों से खींचती कि देखकर सबको आश्‍चर्य होता था। पर धीरे-धीरे उसकी दशा सुधरने लगी। इलाइजा अपनी माता की यह दशा देखकर उसे बाइबिल सुनाया करती थी, विशेषत: ईश्‍वर की दया की कथा सुनाती थी। कुछ दिनों बाद कासी का मन धर्म की ओर मुड़ा। उसके हृदय में भक्ति और प्रेम का स्रोत प्रवाहित होने लगा और बहुत थोड़े समय में उसका जीवन अत्‍यंत पवित्र हो गया।

थोड़े समय बाद मैडम डिथो ने जार्ज से कहा - "भाई, अपने पति के मरने से मैं ही उसके अतुल धन की मालकिन हुई हूँ। तुम अब इस धन को अपनी इच्‍छानुसार खर्च कर सकते हो। मैं तुम्‍हारी इच्‍छा के अनुसार इस धन का सदुपयोग करना चाहती हूँ।"

यह सुनकर जार्ज बोला - "एमिली बहन, मेरी खूब पढ़-लिखकर विद्वान होने की बड़ी लालसा है। तुम मेरी शिक्षा का कोई प्रबंध कर दो।"

इतनी बड़ी उम्र में जार्ज की शिक्षा का क्‍या प्रबंध होना चाहिए, सब लोग इस विषय पर विचार करने लगे। अंत में सबकी यही राय हुई कि सब लोग फ्रांस चलकर रहें और जार्ज वहाँ के किसी विश्‍वविद्यालय में भर्ती होकर शिक्षा प्राप्‍त करे।

यह बात पक्‍की हो जाने पर ये सब एमेलिन को साथ लेकर जहाज पर सवार हो फ्रांस को चल पड़े। जहाज का कप्‍तान बड़ा अच्‍छा आदमी था। उसने एमेलिन का सदाचार, रूप-लावण्‍य, विनीत भाव और उसके सदगुणों को देखकर उससे विवाह करने की इच्‍छा प्रकट की, और फ्रांस पहुँचकर उससे विवाह कर लिया। जार्ज ने चार वर्ष तक फ्रांस में रहकर अने शास्‍त्रों का अध्‍ययन किया, पर किसी राजनैतिक घटना के कारण उन लोगों को फ्रांस छोड़कर फिर कनाडा लौट आना पड़ा।

अब जार्ज एक सुशिक्षित युवक है। उसके हाथ का लिखा हुआ एक पत्र हम नीचे उदधृत करते हैं। यह पत्र जार्ज ने कार्यक्षेत्र में प्रवेश करने के कुछ ही पहले अपने किसी मित्र को लिखा था। शिक्षा के प्रभाव से उसका हृदय कितना उच्‍च हो गया था, इस पत्र को पढ़कर उसका अनुमान किया जा सकता है -

प्रिय मित्र, मुझे तुम्‍हारे पत्र में यह पढ़कर बड़ा खेद हुआ कि तुम मुझे गोरों के दल में मिलने का अनुरोध कर रहे हो। तुम कहते हो कि मेरा रंग साफ है और मेरी स्‍त्री, पुत्र, कुटुंबी कोई भी काले नहीं है, इससे मैं बड़ी आसानी से उनके समाज में मिल सकता हूँ, पर मैं तुम्हें सच कहता हूँ कि इनमें मिलने की मेरी जरा भी इच्‍छा नहीं है। धनवानों और रईसों पर मेरी तनिक भी श्रद्धा नहीं है। मनुष्‍य-समाज का इनसे कभी उपकार नहीं हो सकता कि अधिकांश मनुष्‍य तो पशुओं की भाँति परिश्रम से पिस-पिसकर मरें और कुछ लोग बाबू और रईस बने फिरें तथा चैन की बंसी बजाएँ। ऐसे आदमियों से मनुष्‍य-समाज का बड़ा अपकार हो रहा है। जिन मनुष्‍यों को पशुओं की भाँति परिश्रम करना पड़ता है, वे किसी प्रकार का ज्ञान प्राप्‍त नहीं कर सकते, जिंदगी भर मूर्ख बने रहते हैं। इससे उन्‍हें धर्म-अधर्म का कोई विचार नहीं रहता, वे सदा बुराइयों में फँसे रहते हैं। इन बुराइयों के मूल कारण वे ही लोग हैं, जो उनसे इस प्रकार पशुओं की भाँति काम लेते हैं। उन लोगों के पाप और दुर्नीति के अवश्‍यंभावी कुफल से समग्र मानव-समाज का अकल्‍याण होता है।

समाज में इतने पाप, दु:ख, अत्‍याचार और दरिद्रता के फलने-फूलने का क्‍या कारण है? संसार में सुख-शांति क्‍यों नहीं है? इस विषय पर मैं जितना सोचता हूँ, उतनी ही इन रईसों और धनवानों पर से मेरी श्रद्धा घटती जाती है। बड़े आदमी ही इसके एकमात्र कारण जान पड़ते हैं।

अत्‍याचार से सताए हुए दीन-दुखियों पर, मानव-समाज के अन्‍नदाता पार्थिव-पद-प्रभुत्‍वहीन गरीब किसानों पर, निर्बल और निस्‍सहाय अनाथों पर ही अब मेरी श्रद्धा है।

तुम मुझे रईस-मंडली में मिलाकर शान के साथ जीवन बिताने को कहते हो, पर जरा विचारो तो, यह रईस-मंडली है क्‍या? असहायों, निराश्रयों और कंगालों के कठोर परिश्रम की कमाई को घर-बैठे मुफ्त में भोग-विलास में उड़ाना ही रईसी है या और कुछ? इसी का नाम शायद बड़प्‍पन है। गरीब दिन-रात खून-पसीना एक करके जो कुछ कमाए, उसे मैं छल-कपट से हड़प लूँ और मेरे पास जो कुछ है, उसमें से किसी को कानी कौड़ी तक न दूँ! मैं विद्वान हूँ, पर उन दुर्बलों को उनके कठोर परिश्रम की कमाई के बदले मैं अपनी विद्या का एक कण भी न दूँ! ऐसे ही आचरणों को भिन्‍न-भिन्‍न जाति के लोग रईसाना व्‍यवहार करते हैं। पर तुम्‍हीं कहो, क्‍या ऐसे रईसी जीवन से मुझे सुख मिल सकता है? ऐसा बड़प्‍पन लेकर क्‍या कोई कभी संसार से पाप, ताप, अत्‍याचार और दरिद्रता का मूलोच्‍छेद कर सकता है? कभी नहीं! बल्कि जो कोई इस रईस मंडली में शामिल होगा, उसको समाज में प्रचलित पापों, अत्‍याचारों और निष्‍ठुरताओं का पक्ष लेना पड़ेगा। मैं मानता हूँ कि इस संसार में सब लोग कभी बराबर नहीं हो सकते, सबकी दशा समान नहीं हो सकती, और मैं यह भी मानता हूँ कि सामाजिक वंचनाओं के कारण लोगों की गिरी दशा में कभी सुधार नहीं होगा, वैषम्‍य बना रहेगा। इससे हमारे लिए यह कदापि उचित नहीं है कि किसी दूसरे का हाथ काटकर उसमें और अपने में भेद उत्‍पन्‍न कर लें। कहो, मेरी क्‍या दशा थी? मैं केवल दासी के पेट से पैदा होने के कारण ही, देश में प्रचलित कानून के द्वारा हर व्‍यक्ति को प्राप्‍त स्‍वाभाविक अधिकारों से वंचित रखा गया। भला ऐसे व्‍यवहार द्वारा मनुष्‍य-समाज में परस्‍पर द्वेष उत्‍पन्‍न होने के अतिरिक्‍त और क्‍या हो सकता है? अपने पितृ-कुल की ऊँची जाति से मेरी तनिक भी सहानुभूति नहीं है। उच्‍च जातिवालों ने मुझे कभी किसी घोड़े या कुत्ते से अधिक नहीं समझा। केवल मेरी माता ही थी, जिसकी निगाह में मैं मनुष्‍य की संतान था। बचपन में जब से मेरा उस स्‍नेहमयी जननी से वियोग हुआ, तब से आज तक मेरी उससे भेंट नहीं हुई। वह मुझे प्राणों से भी अधिक प्‍यार करती थी। उसने कैसे-कैसे कष्‍ट और दु:ख भोगे, मैंने लड़कपन में कैसे-कैसे अत्‍याचार सहे और कष्‍ट उठाए, मेरी स्‍त्री ने बच्‍चे को बचाने के लिए किस तरह नदी पार की और किस वीरता से नाना प्रकार के दु:खों और यंत्रणाओं का सामना किया, इस सबको जब मैं याद करता हूँ, तो मेरा मन बेचैन हो जाता है। पर जिन लोगों ने हमें इतना सताया, इतने दु:ख दिए, उनके विरुद्ध मैं अपने हृदय में किसी प्रकार का द्वेष नहीं रखता, बल्कि ईश्‍वर से उनके भी कल्‍याण की प्रार्थना करता हूँ।"

मेरी माता अफ्रीकावासिनी थी। इससे अफ्रीका मेरी मातृभूमि है। उन पराधीन, अत्‍याचार-पीड़ित, अफ्रीकावासियों की उन्‍नति के निमित्त ही मैं अपने जीवन को लगाऊँगा। देश-हित व्रत धारण करके प्राण-पण से बलवानों के अत्‍याचारों से निर्बलों की रक्षा करने का यत्‍न करूँगा।

तुम मुझे धर्मप्रचारक का व्रत लेने के राय देते हो, और मैं भी समझता हूँ कि धार्मिक हुए बिना कभी मनुष्‍य की उन्‍नति नहीं हो सकती, लेकिन क्‍या इन अपढ़ और गँवारों को सहज ही धर्ममार्ग पर लाया जा सकता है? अत्‍याचार-पीड़ित जाति कभी सत्‍यधर्म का मर्म नहीं समझ सकती। उसकी अंतरात्‍मा जड़ होती है।

अत्‍याचार से पीड़ित पराधीन जाति को उन्‍नत करने के लिए सबसे पहले देश में प्रचलित कानून का सुधार करना होग, पराधीनता की बेड़ी से इन्‍हें मुक्‍त करना होगा। तब जाकर इनका कुछ भला हो सकेगा। मैं तन-मन से इस बात की चेष्‍टा करूँगा कि अफ्रीका-वासियों में जातीय जीवन का गर्व आ सके और संसार की सभ्‍य जातियों में इनकी एक स्‍वतंत्र जाति के रूप में गणना हो सके। इन्‍हीं दिनों साइबेरिया क्षेत्र में साधारण तंत्र (जन-शासन) की स्‍थापना हुई है। मैंने वहीं जाने का निश्‍चय किया है।

तुम शायद समझते हो कि इन घोर अत्‍याचारों से सताए जानेवाले अमरीका के गुलामों को मैं भूल गया हूँ। पर कभी ऐसा मत समझना। यदि मैं इन्‍हें एक घड़ी के लिए, एक पल के लिए भी भूलूँ तो ईश्‍वर मुझे भूल जाए। पर यहाँ रहकर मैं इनका कुछ भला नहीं कर सकूँगा। अकेले मेरे किए इनकी पराधीनता की बेड़ी नहीं टूटेगी। हाँ, यदि मैं किसी ऐसी जाति में जाकर मिल जाऊँ, जिसकी बात पर दूसरी जातियों के प्रतिनिधि ध्‍यान दें, तो हम लोग अपनी बात सबको सुना सकते हैं। किसी जाति की भलाई के लिए किसी व्‍यक्ति-विशेष से वाद-विवाद, अभियोग या अनुरोध करने का अधिकार नहीं है। हाँ, वह पूरी जाति अवश्‍य वैसा करने का पूर्ण अधिकार रखती है।

यदि किसी समय सारा यूरोप स्‍वाधीन जातियों का एक महामंडल बन गया, यदि अधीनता, अन्‍याय और सामाजिक वैषम्‍य के उत्‍पीड़न से यूरोप सर्वथा रहित हो गया, और यदि सारे यूरोप ने इंग्‍लैंड और फ्रांस की भाँति हम लोगों को एक स्‍वतंत्र जाति मान ली, तो उस समय हम विभिन्‍न जातियों की महा-प्रतिनिधि सभा में अपना आवेदन उपस्थित करेंगे और बलपूर्वक दासता में लगाए हुए, अत्‍याचार से पीड़ित, दुर्दशाग्रस्‍त स्‍वजातीय भाइयों की ओर से सही-सही विचार करने की प्रार्थना करेंगे। उस समय स्‍वाधीन और सुसभ्‍य अमरीका देश भी अपने मस्‍तक से इस दासता-प्रथा रूपी सर्वजन-घृणित घोर कलंक को धोकर बहा देगा।

तुम कह सकते हो कि आयरिश, जर्मन और स्‍वीडिश जातियों की भाँति हम लोगों को भी अमरीका के साधारण तंत्र में सम्मिलित होने का अधिकार रहे। मैं भी इसे मानता हूँ। हम लोगों को समान भाव से सबके साथ मिलने देना चाहिए। सबसे पहली जरूरत यह है कि जाति और वर्ण के भेद को परे रखकर हम प्रत्‍येक व्‍यक्ति को योग्‍यतानुसार समाज में ऊँचे स्‍थान पर पहुँचने दें। इतना ही नहीं कि इस देश में जन-साधारण को जो अधिकार मिले हुए हैं, उन्‍हीं पर हमारा दावा है, बल्कि हमारी जाति की जो क्षति इन लोगों के अत्‍याचार से हो रही है, उस क्षति की पूर्ति के लिए अमरीका पर हम लोगों का एक विशेष दावा है। ऐसा होने पर भी मैं वह दावा नहीं करना चाहता। मैं अपना एक देश और एक जाति चाहता हूँ। अफ्रीकी जाति की प्रकृति में कुछ विशेषताएँ हैं। अंग्रेजों से अफ्रीकी जाति की प्रकृति बिल्‍कुल भिन्‍न होने पर भी ये विशेष गुण, सभ्‍यता और ज्ञान-विस्‍तार के साथ-साथ अफ्रीकनों को नीति और धर्म की ओर अग्रसर करने में उच्‍च और महान प्रमाणित होंगे।

मैं एक लंबे समय से समाज के अभ्‍युदय की प्रतीक्षा कर रहा हूँ। मेरा विश्‍वास है कि हम इस नवीन युग की पूर्व सीमा पर खड़े हुए हैं। मुझे विश्‍वास है कि आजकल जो भिन्‍न-भिन्‍न जातियाँ भयंकर वेदनाओं से कातर हो रही हैं, उन्‍हीं की वेदनाओं से सार्वभौम प्रेम और शांति का जन्‍म होगा।

मेरा दृढ़ विश्‍वास है कि अफ्रीका धर्म-बल से ही उन्‍नति के शिखर पर पहुँच सकेगा। अफ्रीकी चाहे क्षमतावान तथा शक्ति-संपन्‍न न हों, पर वे सहृदय, उदारचेता और क्षमाशील अवश्‍य हैं। जिन्‍हें अत्‍याचार की धधकती हुई आग में चलना पड़ता है, उनके हृदय यदि स्‍वर्गीय प्रेम और क्षमा के गुणों से पूर्ण न हों तो उनके हृदय की अग्नि को शांत करने के लिए और उपाय ही क्‍या है? अंत में यही प्रेम और क्षमा उन्‍हें विजयी बनाएँगे। अफ्रीका महाद्वीप में प्रेम और क्षमा के मानवीय धर्म का प्रचार करना ही हम लोगों का जीवन-व्रत होगा।

मैं स्‍वयं इस विषय में कमजोरियों का शिकार हूँ। मेरी नस-नस में आधा खून गर्म-अंग्रेज खून है, पर मेरे सामने सदा एक मधुर-भाषिणी धर्म-उपदेशिका विद्यमान रहती है, यह मेरी सुंदर स्‍त्री है। भटकने पर यह मुझे कर्तव्य के मार्ग का ज्ञान कराती है, हम लोगों के जातीय उद्देश्‍य एवं जीवन के लक्ष्‍य को हमेशा निगाह के सामने जीता-जागता रखती है। देश-हित की इच्‍छा से, धर्मशिक्षा की कामना से, मैं अपने प्रियतम स्‍वदेश अफ्रीका को जा रहा हूँ।

तुम कहो कि मैं कल्‍पना के घोड़े पर सवार हूँ। कदाचित तुम कह सकते हो कि मैं जिस काम में हाथ डाल रहा हूँ, उस पर मैंने पूरी तरह विचार नहीं किया है, पर मैंने खूब सोच-विचार कर रखा है, लाभ-हानि का हिसाब लगाकर देख चुका हूँ। मैं काव्‍यों में वर्णित स्‍वर्गधाम की कल्‍पना करके लाइबेरिया नहीं जा रहा हूँ। मैं कर्मक्षेत्र में डटकर परिश्रम करने का संकल्‍प करके वहाँ जा रहा हूँ। आशा है, स्‍वदेश के लिए परिश्रम करने से मैं कभी मुँह नहीं मोडूँगा, हजारों विघ्‍न-बाधाओं के आने पर भी कर्म-क्षेत्र में डटा रहूँगा और जब तक मेरे शरीर में दम है, देश के लिए काम करता जाऊँगा।

मेरे संकल्‍प के संबंध में तुम चाहे जो कुछ सोचो, पर मेरे हृदय पर अविश्‍वास मत करना। याद रखना कि मैं चाहे कुछ भी काम क्‍यों न करूँ, अपनी जाति की मंगल-कामना को ही हृदय में धारण करके उस काम में लगूँगा।

तुम्‍हारा

जार्ज हेरिस

इसके कुछ सप्‍ताह के बाद जार्ज अपने पुत्र तथा घर के दूसरे लोगों के साथ अफ्रीका चला गया।

मिस अफिलिया और टप्‍सी को छोड़कर उपन्‍यास में आए हुए नामों में से अब हमें और किसी के बारे में कुछ नहीं कहना है।

मिस अफिलिया टप्‍सी को अपने साथ वारमांड ले गई। पहले अफिलिया के पिता के घर के लोग टप्‍सी को देखकर बहुत विस्मित हुए और चिढ़े भी, पर मिस अफिलिया किसी तरह अपने कर्तव्य से हटनेवाली नहीं थी। उसके अपूर्व स्‍नेह और प्रयत्‍न से दास-बालिका थोड़े ही दिनों में सबकी स्‍नेह-पात्र बन गई। बड़ी होने पर टप्‍सी अपनी खुशी से ईसाई हो गई। उसकी तीक्ष्‍ण बुद्धि, कर्मठता और धर्म के प्रति उत्‍साह देखकर कुछ मित्रों ने उसे अफ्रीका जाकर धर्म-प्रचार करने की सलाह दी।

पाठक यह सुनकर सुखी होंगे कि मैडम डिथो की खोज से कासी के पुत्र का भी पता लग गया।

यह वीर युवक माता के पलायन के बहुत पूर्व कनाडा भाग आया था। यहाँ आकर दास-प्रथा के विरोधी, अनाथों के बंधु अनेक सहृदय व्‍यक्तियों की सहायता से उसने अच्‍छी शिक्षा पाई थी। जब उसे मालूम हुआ कि उसकी माता और बहन अफ्रीका जा रही हैं, तब वह भी अफ्रीका की ओर चल दिया।

  • टॉम काका की कुटिया (उपन्यास; अध्याय 31-40) : हैरियट बीचर स्टो
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