टॉम काका की कुटिया (उपन्यास) : हैरियट बीचर स्टो

अनुवाद : हनुमान प्रसाद पोद्दार

Uncle Tom's Cabin (Novel in Hindi) : Harriet Beecher Stowe

31. पिता-पुत्री का पुनर्मिलन

समय किसी की बाट नहीं देखता। हफ्तों-पर-हफ्ते, महीनों-पर-महीने और वर्षों-पर-वर्ष निकले जा रहे हैं। संसार भर के नर-नारियों को अपनी छाती पर लादकर काल का प्रवाह अनंत-सागर की ओर दौड़ा जा रहा है। इवा की नन्‍हीं-सी जीवन-नौका भी अनंत-सागर में समा गई। दो-चार दिन घर-बाहर सभी ने शोक मनाया और आँसू बहाए, पर ज्‍यों-ज्‍यों समय बीतता गया, लोग अपने दु:ख को भूलते गए। सब अपने-अपने धंधों में लग गए। गाना-बजाना, खाना-पीना, सभी ज्‍यों-के-त्‍यों होने लगे। पर देखना यह है कि क्‍या सभी एक-से हैं? क्‍या सेंटक्‍लेयर के जीवन की गाड़ी भी उसी चाल से चल रही है?

इस संसार में केवल इवा ही सेंटक्‍लेयर के जीवन की सर्वस्‍व थी। इवा के लिए ही उसका जीना, इवा के लिए ही धन-संग्रह करना, इवा के लिए ही काम-काज, और इवा ही के लिए उसका सब-कुछ था। इवा के चले जाने से सेंटक्‍लेयर का जीवन लक्ष्‍य-शून्‍य हो गया। अब वह संसार में किसके लिए जिए और दुनिया के झंझटों में किसके लिए फँसे?

आशाएँ टूट जाने पर मनुष्‍य संसार में क्‍या सचमुच उद्देश्‍यहीन हो जाता है? क्‍या सांसारिक तुच्‍छ आशाओं के अतिरिक्‍त मानव-जीवन का अन्‍य कोई महान उद्देश्‍य नहीं है? नहीं यह बात नहीं। इन्‍हीं उद्देश्‍यों से आगे भी बहुत-कुछ है।

मानव-जीवन के महान उद्देश्‍य से सेंटक्‍लेयर अनभिज्ञ न था। इसी से उसका जीवन सर्वथा लक्ष्‍य-हीन नहीं हुआ, विशेषकर इवा के अंतिम शब्‍द हर घड़ी उसके कानों में गूँजते थे। सोते-जागते, उठते-बैठते, हर घड़ी इवा का वह सुमधुर वाक्‍य उसे याद आता। उसे हर समय यही दिखाई पड़ता, मानो इवा अपने नन्‍हें-नन्‍हें हाथों की अँगुलियों के इशारे से उसे जीवन-मार्ग का स्‍वर्गपथ दिखा रही है। पर उसका चिर-सहचर आलस्‍य और उसका वर्तमान शोक उसे कर्तव्‍य-मार्ग के स्‍वर्ग की ओर अग्रसर होने में बाधा डालता था। उसमें इन सब विघ्‍न-बाधाओं को पार करके जीवन के महान उद्देश्‍य की पूर्ति करने की शक्ति थी। यद्यपि वह देश में प्रचलित किसी प्रकार की धर्मोपासना में योग न देता था, तथापि वह बचपन से ही बड़ा सूक्ष्‍मदर्शी और भावुक था। उसके मन में सदा नए-नए भाव उठते रहते थे। वास्‍तव में इस संसार में कभी-कभी ऐसा होता है कि जो लोग लोक और परलोक की तनिक भी परवाह नहीं करते, बल्कि काम पड़ने पर उनके माननेवालों की निंदा तक करने से नहीं चूकते, उन्‍हीं के मुख से कभी-कभी धर्म के ऐसे गूढ़-तत्‍व सुनने में आते हैं कि दंग रह जाना पड़ता है। मूर, बायरन और गेटे जन्‍म भर धर्म पर अपनी अनास्‍था ही दिखलाते रहे, पर उन्‍होंने धर्म के कई ऐसे जटिल तत्‍वों की, जिन्‍हें बहुत से धर्म-गुरुओं ने भी नहीं समझा, ऐसी सुंदर व्‍याख्‍या की कि देखते ही बनती है।

धर्म से सेंटक्‍लेयर को कभी द्वेष न था। पर वह जानता था कि धर्म-पालन खांडे की धार पर चलने के समान है। दुर्बल मन के मनुष्‍यों के लिए वह सर्वथा असाध्‍य है। धर्म को ग्रहण करके उसका पालन न करने की अपेक्षा तो यही अच्‍छा है कि धर्म के पचड़े में ही न पड़ा जाए। यही सोचकर वह सदा इन धर्म-चर्चाओं से अलग रहता था। पर अब उस धर्म के अनुसरण के सिवा उसके जीवन का और लक्ष्‍य ही क्‍या रह गया? अब वह इवा की छोटी बाइबिल को बड़े प्रेम से पढ़ने लगा। और दास-दासियों के विषय में अपने कर्तव्‍य की बात भी सोचने लगा। उसने इस बात को अच्‍छी तरह समझ लिया कि इवा का कहना बिल्‍कुल सच था कि इन दास-दासियों को गुलामी की जंजीर से मुक्‍त कर देना ही ठीक है। अपने नगरवाले मकान में आते ही उसने सबसे पहले टॉम को दासत्‍व से मुक्‍त करने का पक्‍का निश्‍चय किया। इसके लिए उसने अपने वकील से मुक्तिपत्र का मसविदा बनाने को कहा। टॉम आजकल हर समय उसी के साथ लगा रहता था। टॉम इवा को बड़ा प्‍यारा था, इसलिए उसे देखकर जितनी जल्‍दी सेंटक्‍लेयर को इवा का स्‍मरण होता था, उतना और किसी को देखने से नहीं। इसी से टॉम को इवा के स्‍मृति-चिह्न की भाँति सेंटक्‍लेयर हर घड़ी अपने साथ रखता था।

एक दिन सेंटक्‍लेयर ने कहा - "टॉम, मैं तुम्‍हें दासता की बेड़ी से मुक्‍त कर दूँगा। तुम केंटाकी के लिए तैयार रहना। अपना सामान ठीककर रखना।"

यह बात सुनते ही टॉम का चेहरा प्रफुल्लित हो गया। वह हाथ उठाकर बोला - "भगवान आपका भला करें!"

पर टॉम की इस प्रसन्‍नता के भाव से सेंटक्‍लेयर मन-ही-मन दु:खी हुआ। उसने यह नहीं सोचा था कि टॉम उसे छोड़कर जाने के लिए इतनी खुशी दिखाएगा।

उसने शुष्‍क स्‍वर में कहा - "टॉम, तुम्‍हें तो हमारे यहाँ कभी कोई तकलीफ नहीं हुई, फिर हमारा घर छोड़कर जाने की बात पर इतने खुश क्‍यों हुए?"

टॉम ने गंभीर होकर कहा - "प्रभु, यह आप का घर छोड़कर जाने की प्रसन्‍नता नहीं है। यह प्रसन्‍नता इस बात की है कि मैं स्‍वाधीन हो जाऊँगा।"

सेंटक्‍लेयर बोला - "स्‍वाधीन हो जाने की अपेक्षा क्‍या इस समय तुम यहाँ अधिक सुखी नहीं हो?"

टॉम ने कहा - "कभी नहीं!"

"टॉम," सेंटक्‍लेयर बोला - "जैसा अच्‍छा तुम यहाँ खाते-पीते हो और जिस आराम से रहते हो, उतने आराम से रहने के लिए तुम स्‍वाधीन होकर कमाई नहीं कर सकोगे।"

टॉम ने कहा - "स्‍वामी, किंतु स्‍वाधीनता स्‍वाधीनता ही है।... स्‍वाधीनता में मोटा-महीन, बुरा-भला जो कुछ मिले, सब अच्‍छा है। पराधीनता की मेवा-मिठाई भी किस काम की! इसी से कहा है, 'पराधीन सपनेहु सुख नाही।' यह मनुष्‍य का स्‍वाभाविक भाव है।"

सेंटक्‍लेयर ने कहा - "मैं मानता हूँ, यही बात होगी; पर तुम्‍हें अभी यहाँ एक महीना और ठहरना होगा।"

"स्‍वामी, मैं आपको कष्‍ट में छोड़कर नहीं जाऊँगा। आप जब तक रखना चाहें, यह दास आपकी सेवा में रहेगा। यदि मेरा यह शरीर आपके किसी काम आ जाए, तो इससे अधिक सौभाग्‍य की बात मेरे लिए और क्‍या होगी?"

सेंटक्‍लेयर ने उदासीनता से बाहर की ओर नजर डालते हुए कहा - "टॉम, तुम मेरे इस कष्‍ट के दूर होने पर जाना। मेरा यह कष्‍ट कब मिटेगा?"

"जब ईश्‍वर में आपकी भक्ति होगी और धर्म में मन लगेगा।"

"तब तक तुम यहाँ ठहरना चाहते हो? नहीं-नहीं, मैं तब तक तुम्‍हें यहाँ नहीं रोकूँगा। तुम्‍हें शीघ्र ही छुट्टी दे दूँगा। तुम अपने घर पहुँचकर बाल-बच्‍चों से मिलना और उन्‍हें मेरा आशीर्वाद कहना।"

टॉम ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से कहा - "स्‍वामी, मेरा अटल विश्‍वास है कि वह दिन शीघ्र ही आएगा और आप के हाथ से ईश्‍वर अपना कोई काम कराएगा।"

सेंटक्‍लेयर ने गद्गद होकर कहा - "मुझसे, ईश्‍वर का काम! अच्‍छा टॉम, बताओ, तुम्‍हारी समझ में वह कौन-सा काम है?"

"स्‍वामी, मैं तो निपट मूर्ख हूँ, किंतु परमेश्‍वर ने मुझे भी अपना काम करने को सौंपा है। फिर आप तो बहुत होशियार हैं, ऐश्‍वर्यवान हैं, बंधु-बांधवोंवाले हैं - चाहें तो ईश्‍वर के कितने ही प्रिय कार्य कर सकते हैं।" टॉम ने बड़ी भावना से कहा।

सेंटक्‍लेयर मुस्‍कराते हुए बोला - "टॉम, तुम्‍हारी समझ में क्‍या ईश्‍वर को अपने कुछ काम मनुष्‍य से कराने की जरूरत पड़ा करती है?"

"जरूर। हम जब किसी मनुष्‍य के लिए कुछ करते हैं तब वह ईश्‍वर के लिए ही करते हैं, क्‍योंकि सभी मनुष्‍य उसी प्रभु की संतान हैं।"

सेंटक्‍लेयर यह सुनकर अभिभूत हो उठा। बोला - "टॉम, तुम्‍हारा यह धर्म-शास्‍त्र हमारे यहाँ के पादरियों के मत से कहीं अच्‍छा जान पड़ता है।"

तभी कुछ लोग सेंटक्‍लेयर से मिलने आ गए। इससे उसकी और टॉम की बातें यहीं रुक गईं।

इवा के शोक में मेरी बड़ी ही अधीर हो गई थी। पर उसमें एक बहुत बड़ी बुराई थी कि जब वह किसी शोक के कारण दु:ख से स्‍वयं अधीर होती थी, तब दास-दासियों को उससे सौगुना अधीर कर देती थी। इवा जीते-जी इस अत्‍याचार से दास-दासियों की रक्षा करने की चेष्‍टा किया करती थी; पर अब इन बेचारे निस्‍सहायों की रक्षा कौन करेगा? इसी से इवा के लिए दास-दासी बहुत दु:खित होते थे, विशेषकर मामी अपने बाल-बच्‍चों से अलग पड़े रहने के दु:ख को इवा के कारण भूली हुई थी। अब इवा की मृत्‍यु के बाद वह दिन-रात चुपचाप रोया करती थी। इस दशा में उससे कभी-कभी मेरी की टहल में कुछ चूक हो जाती तो उसके लिए मेरी उसे सदा डाँटा करती थी।

मिस अफिलिया को इवा की मृत्‍यु बहुत दु:ख दे रही थी; पर वह चुपचाप गंभीर-भाव से उस दु:ख को सहन कर रही थी। वह पहले की भाँति सदा काम में लगी रहती थी। वह पहले की अपेक्षा अब अधिक यत्‍न से टप्‍सी को पढ़ाने-लिखाने लगी। वह अब टप्‍सी को अपनी कन्‍या की भाँति प्‍यार करती है, हब्‍शी जानकर उससे घृणा नहीं करती। टप्‍सी का चरित्र भी धीरे-धीरे सुधरने लगा। यह नहीं कि वह एक ही दिन में भली बन गई हो। हाँ, इवा के आचरण से उसका मन बहुत-कुछ पलट गया था। पहले उसकी मानसिक जड़ता इस प्रकार की थी कि उस पर कोई उपदेश असर ही नहीं करता था, पर अब यह भाव दूर हो गया।

एक दिन, जब वह तेजी से अपने कपड़ों में कोई चीज छिपाए चली आ रही थी, रोजा ने तत्‍काल उसे पकड़कर कहा - "बोल इसमें क्‍या है? लगता है, तूने कोई चीज चुराई है! कपड़ों में जल्‍दी-जल्‍दी क्‍या छिपा रही थी?"

टप्‍सी अपनी छिपाई हुई चीज को दोनों हाथों से मजबूती से पकड़े हुए थी। हाथ छुड़ाने के लिए रोजा जोर से उसे खींचने लगी, पर टप्‍सी ने हाथ नहीं छोड़ा। वह जमीन पर लोटकर चिल्‍लाने लगी और साथ ही रोजा को एक लात जमा दी। टप्‍सी की चीख सुनकर अफिलिया और सेंटक्‍लेयर दोनों नीचे आए तो रोजा ने बताया कि इसने कुछ चुराया है। टप्‍सी ने सिसकते हुए कहा - "मैंने कुछ भी नहीं चुराया।"

मिस अफिलिया ने दृढ़ता से कहा - "तेरे हाथों में जो कुछ है, मुझे दे दे।"

पहले तो टप्‍सी ने देने में आनाकानी की, पर दुबारा माँगने पर उसने अपने कपड़ों में से एक फटे हुए मोजों की पोटली निकालकर उसके हाथ में पकड़ा दी। उसमें इवा की दी हुई एक छोटी-सी पुस्‍तक और इवा के बालों की एक लट निकली। ये चीजें देखकर सेंटक्‍लेयर की आँखें भर आई।

टप्‍सी रो-रोकर कहने लगी - "मेरी ये चीजें मुझसे मत छीनिए!"

सेंटक्‍लेयर की आँखों से आँसू बहने लगे। वह टप्‍सी को सांत्‍वना देकर बोला - "तेरी ये चीजें कोई नहीं लेगा।" इतना कहकर और वे चीजें उसे लौटाकर अफिलिया सहित वह तेजी से चला गया।

उसने अफिलिया से कहा - "बहन, मुझे जान पड़ता है कि अब तुम टप्‍सी का चरित्र सुधारने में सफल होवोगी। जिस हृदय में शोक और आघात लगता है, उसे सहज ही अच्‍छे रास्‍ते पर लाया जा सकता है। तुम्‍हें अब इसके साथ खूब कोशिश करनी चाहिए।"

अफिलिया ने कहा - "पहले से टप्‍सी बहुत सुधर गई है। मुझे अब इसके विषय में पूरी आशा हो गई है, पर मैं तुमसे एक बात पूछती हूँ कि यह है किसकी? तुम्‍हारी या मेरी?"

"क्‍यों? मैं तो इसे तुम्‍हें सौंप चुका हूँ!" विस्‍मय से सेंटक्‍लेयर ने कहा।

अफिलिया बोली - "नहीं, कानूनन वह मेरी नहीं है। मैं कानूनन उसे अपना बनाना चाहती हूँ।"

"बहन, तुम इसे कानूनन लेना तो चाहती हो, पर तुम्‍हारे यहाँ का दास-प्रथा विरोधी दल इसके लिए तुम्‍हारी निंदा करेगा।"

"इसमें क्‍या है, मैं वहाँ जाकर इसे स्‍वाधीन कर दूँगी। मैं इसके लिए इतना परिश्रम कर रही हूँ, यदि इसे अपने साथ न ले जा सकी तो मेरी सारी मेहनत बेकार चली जाएगी।"

"बहन, बाद को अच्‍छा नतीजा हासिल करने के लिए पहले एक बुरा काम करने का मैं तो अनुमोदन नहीं कर सकता।" सेंटक्‍लेयर ने विनोद भाव से कहा।

अफिलिया बोली - "हँसी-मजाक छोड़कर जरा सोचो! यदि उसे गुलामी से छुटकारा न दिया जा सके तो सारी धर्म-शिक्षा देना व्‍यर्थ है। तुम अगर इसे सचमुच मुझे देना चाहते हो तो एकदम पक्‍की लिखा-पढ़ी कर दो।"

सेंटक्‍लेयर ने कहा - "अच्‍छा-अच्‍छा, कर दूँगा।" यह कहकर उसने समाचार-पत्र पढ़ना आरंभ कर दिया।

अफिलिया बोली - "मैं चाहती हँ, यह काम अभी हो जाए।"

"तुम्‍हें इतनी जल्‍दी क्‍या है?"

"जो काम करना है, उसके लिए यही उचित समय है। उसमें फिर देर का क्‍या काम? कहा भी है - 'काल्हि करै सो आजकर आज करै सो अब। पल में परलय होवेगी, बहुरि करेगा कब?' यह लो कलम-दवात और लिखना है सो अभी लिख दो।"

सेंटक्‍लेयर का स्‍वभाव आलसी था। उसने कुछ आना-कानी की, पर अफिलिया के सामने उसकी एक न चली। उसने तुरंत एक दान-पत्र लिखा और मिस अफिलिया को सौंपकर कहा - "लो, कहो, अब तो कुछ करना बाकी नहीं रहा?"

पर, इस पर किसी की गवाही भी तो होनी चाहिए।

"ओफ, मुसीबत का पार नहीं।" इतना कहकर सेंटक्‍लेयर ने दरवाजा खोलकर पुकारा - "मेरी, बहन तुम्‍हें गवाह बनाना चाहती है। जरा यहाँ आकर इस कागज पर दस्‍तखत तो कर देना।"

मेरी ने उस कागज को पढ़कर कहा - "यह कैसी मजाक की बात है! इसकी भी लिखा-पढ़ी! लेकिन मैं समझती थी कि दीदी अपनी धर्मभीरुता के कारण दास रखने जैसा बुरा काम नहीं करेंगी। पर खैर, अगर इसके लिए इनकी इच्‍छा है तो हम लोग बड़ी प्रसन्‍नता से इनके मन की बात पूरी करेंगे।"

इतना कहकर मेरी ने कागज पर हस्‍ताक्षर कर दिए और चली गई।

सेंटक्‍लेयर ने वह कागज अफिलिया को सौंपते हुए कहा - "आज से टप्‍सी के शरीर और आत्‍मा पर तुम्‍हारी मिलकियत हुई।"

अफिलिया बोली - "वह तो जैसी तब थी वैसी ही अब भी है। ईश्‍वर के सिवा और किसी की क्षमता नहीं कि उसे मुझे दे सके, पर अब मैंने उसकी रक्षा करने का अधिकार हासिल कर लिया है।"

"खैर, अब वह बनावटी कानून के अनुसार तुम्‍हारी चीज हुई।" यह कहकर सेंटक्‍लेयर अपने कमरे में चला गया। मिस अफिलिया उस कागज को यत्‍न से अपने संदूक में बंद करके सेंटक्‍लेयर के कमरे में चली गई। उसे मेरी के साथ देर तक बैठकर बातचीत करना अच्‍छा नहीं लगता था।

वहाँ जाकर मिस अफिलिया बुनने का सामान लेकर बैठ गई। उसने सहसा सेंटक्‍लेयर से कहा - "अगस्टिन, तुम्‍हारे बाद तुम्‍हारे गुलामों की क्‍या स्थिति होगी, इसका भी तुमने कोई बंदोबस्‍त किया है?"

"नहीं।"

"तब तुम्‍हारा उन्‍हें इस समय यह सब आराम देना व्‍यर्थ है, उल्‍टा यह उनके साथ बदसलूकी करना है।"

सेंटक्‍लेयर प्राय: इस विषय को स्‍वयं सोचा करता था; पर अभी तक उसने कोई बंदोबस्‍त नहीं किया था। उसने कहा - "मैं, इन लोगों के लिए कोई प्रबंध करूँगा।"

"कब?"

"इसी बीच में किसी दिन।"

"मान लो, यदि पहले ही तुम चल बसो तो?"

सेंटक्‍लेयर ने अपने हाथ का अखबार रखकर उसकी ओर देखते हुए कहा - "बहन, आखिर ऐसा क्‍या हुआ है? मेरे शरीर में क्‍या तुम्‍हें हैजे या प्‍लेग के लक्षण दिखाई दे रहे हैं, जो तुम मेरे बिल्‍कुल अंतिम समय का बंदोबस्‍त किए जा रही हो?"

सेंटक्‍लेयर उठा और अखबार को किनारे रखकर धीरे-धीरे बरामदे की ओर चला गया। उसे ऐसी बातें अच्‍छी नहीं लगती थीं। इसी से वह उठ गया था। लेकिन आप-ही-आप यंत्र की भाँति उसके मुँह से 'मृत्‍यु' शब्‍द निकलने लगा। वह सोचने लगा कि जगत में कोई ऐसा आदमी नहीं, जिसकी मृत्‍यु न होगी। यह एक साधारण बात है फिर भी हम मृत्‍यु को भूले हुए हैं, यह बड़े आश्‍चर्य का विषय है। आज मनुष्‍य बड़ी-बड़ी आशाओं के पुल बाँध रहा है, घमंड से पागल हुआ जा रहा है। कल ही उसे मौत ने आ दबोचा, तो सदा के लिए छुट्टी। सारे विचार यों ही रखे रह जाएँगे।...

यह सब सोचते हुए जाते-जाते उसने बरामदे के दूसरी ओर टॉम को देखा। अपने सामने बाइबिल रखे हुए टॉम बड़े ध्यान से उसका एक-एक शब्‍द पढ़ रहा था। सेंटक्‍लेयर ने अलमस्‍त की तरह टॉम के पास बैठकर कहा - "टॉम, कहो तो मैं तुम्‍हें बाइबिल पढ़कर सुनाऊँ?"

टॉम ने कहा - "यदि प्रभु कृपा करके पढ़ें तो बहुत अच्‍छी बात है। आपके पढ़ने से बहुत साफ-साफ समझ में आएगी।"

सेंटक्‍लेयर ने पुस्‍तक उठा ली और उस स्‍थल को पढ़ने लगा, जहाँ टॉम ने बड़े-बड़े निशान लगा रखे थे। विषय था: "सारे देवदूतों से घिरे हुए ईश्‍वर-पुत्र जब सिंहासन पर बैठकर विचार करने लगेंगे, उस समय सब जातियाँ उनके सामने इकट्ठी होंगी। तब वह पुण्‍यात्‍माओं में से पापियों को छाँटेंगे। फिर उन पापियों को समुचित दंड लेकर कहेंगे, 'मुझसे दूर हो जाओ। मुझे प्‍यास लगने पर तुमने पानी नहीं दिया, भूखे होने पर अन्‍न नहीं दिया, नंगे होने पर वस्‍त्र नहीं दिया और जेल में पड़े रहने पर मेरी सुध नहीं ली।' यह सुनकर पापी लोग कहेंगे, 'भगवान, हमने कब आपको भूखे, प्‍यासे, नंगे और जेल में पड़े देखकर आपकी सुध नहीं ली?' यह सुनकर वह कहेंगे, 'हमारे इन अत्‍यंत दीन-हीन भाइयों पर तुम लोगों ने जो अत्‍याचार किए हैं, सख्तियाँ की हैं, वे सब मुझपर ही हुई हैं।"

बाइबिल से ये बातें पढ़ते हुए सेंटक्‍लेयर का मन द्रवित हो उठा। उसने इन पंक्तियों को मन-ही-मन पढ़ा और एकाग्रता से सोचने लगा। फिर बोला - "टॉम, मेरे ही जैसे आनंद और सुख के जीवन बितानेवाले लोग, जो स्‍वयं मौज में हैं, मस्‍त हैं और भूख-प्‍यास से तड़प-तड़पकर मरनेवाले अपने दीन बंधुओं की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखते, वही तो ईश्‍वर के विचार से दंड पाएँगे?"

टॉम ने इसका उत्तर नहीं दिया।

सेंटक्‍लेयर चिंता में डूबा हुआ बरामदे में इधर-उधर टहलने लगा। वह विचारों में इतना खो गया कि उसे चाय की घंटी की आवाज भी सुनाई नहीं दी। टॉम ने दो बार घंटी की याद दिलाई, तब जाकर वह चाय पीने गया। चाय पीने के समय भी वह चिंता-मग्‍न था। चाय के बाद वह, उसकी स्‍त्री और मिस अफिलिया चुपचाप बैठक में आए।

आते ही मेरी पलंग पर लेट गई और देखते-देखते सो गई। अफिलिया बुनने में लग गई। सेंटक्‍लेयर पियानो के पास जाकर धीरे-धीरे एक करुण धुन बजाने लगा। वह उस समय भी चिंता-शून्‍य न था। उसे देखकर जान पड़ता था, मानो वह बाजे के अंदर बैठकर स्‍वयं बोल रहा है। कुछ देर बाद उसने दराज से एक पुरानी पुस्‍तक निकाली और उसके पन्‍ने उलटते-उलटते मिस अफिलिया से बोला - "इधर आओ, यह मेरी माँ की पुस्‍तक है। यह देखो, मेरी माताजी के हस्‍ताक्षर हैं।"

अफिलिया उठकर उसके निकट आई।

सेंटक्‍लेयर ने कहा - "माँ यह गीत प्राय: गाया करती थी। ऐसा जान पड़ता है, मानो इस समय मैं माँ का गीत सुन रहा हूँ।" इतना कहकर सेंटक्‍लेयर ने एक पुराना, बड़ा गंभीर, लैटिन गीत गाया।

टॉम बरामदे में बैठा था। गाना सुनकर वह दरवाजे के पास आकर खड़ा हो गया। गाने का अर्थ कुछ भी उसकी समझ में नहीं आया, पर गाने और बजाने की धुन पर उसका हृदय रीझ उठा, विशेषत: उस समय जब सेंटक्‍लेयर उस गीत का करुण अंश गाने लगा। फिर तो वह एकदम मोहित हो गया।

गीत समाप्‍त होने पर सेंटक्‍लेयर सिर पर हाथ रखकर स्थिर चित्त से कुछ सोचने लगा। कुछ देर बाद उठकर घर में टहलने लगा। फिर मिस अफिलिया के पास आकर बोला - "बहन, परलोक-संबंधी विश्‍वास मनुष्‍य के हृदय में कैसी अनोखी शांति ला देता है। केवल शांति ही नहीं, यह विश्‍वास मनुष्‍य को संसार के अत्‍याचार, अन्‍याय और सब प्रकार के कष्‍ट सहने में समर्थ बनाता है। इस विश्‍वास के बल पर आशा लगी रहती है कि कभी तो एक दिन आएगा जब सारे दु:खों का अंत होगा।"

अफिलिया ने कहा - "पर, हम लोगों-जैसे पापियों के लिए यह भयंकर वस्‍तु है।"

सेंटक्‍लेयर बोला - "हाँ, मेरे लिए तो सचमुच ही भयंकर है। मैं आज टॉम को बाइबिल से परलोक के विचार के संबंध में पढ़कर सुना रहा था। पढ़ते-पढ़ते मेरा कलेजा थर्रा उठा। मेरा खयाल था कि बुरा काम करना ही पाप है, और बहुत बुरे कामों के फल से ही लोग स्‍वर्ग से वंचित रहते हैं, पर बाइबिल का यह मत नहीं है। वास्‍तव में अच्‍छे काम न करना ही घोर पाप है, इसी पाप के लिए परलोक में दंड भोगना पड़ता है।"

अफिलिया ने कहा - "मैं समझती हूँ कि जो अच्‍छा काम नहीं करता, उसे बुरा काम करना ही पड़ेगा। सत् और असत्-दो ही मार्ग ठहरे, तीसरा कोई मार्ग ही नहीं है। इच्‍छा हो, सन्‍मार्ग से जाओ, नहीं तो असन्‍मार्ग से जाना ही पड़ेगा।"

सेंटक्‍लेयर व्‍याकुल-चित्त से आप-ही-आप कहने लगा - "तो-तो जिस आदमी ने समाज के अभावों को जानने और जोरों से उनका बखान करते हुए भी अपने मन और अपनी उच्‍च शिक्षा को समाज की भलाई में नहीं लगाया, जिसने बिल्‍कुल उदासीन दर्शक की भाँति सैकड़ों मनुष्‍यों की यंत्रणा और दुर्दशा देखकर भी कार्य-क्षेत्र में पैर नहीं रखा, और जो स्‍वप्‍न-सागर में बह रहा है, उसके संबंध में क्‍या कहा जाएगा?"

अफिलिया ने कहा - "मैं तो कहती हूँ कि उसे अपनी पिछली बातों को भूलकर इसी क्षण कर्म में लग जाना चाहिए।"

सेंटक्‍लेयर ने मुस्‍कराकर फिर कहा - "बहन, तुम ठीक-ठिकाने पर असल काम की बात को कहती हो। तुम मुझे सोचने-विचारने का जरा भी समय नहीं देना चाहती। तुम मेरी भावी चिंता के प्रवाह को घुमा-फिराकर वर्तमान की ओर ले आती हो, तुम्‍हारी आँखों के सामने एक विराट वर्तमान पड़ा हुआ है।"

अफिलिया बोली - "मेरा तो यह मत है कि जो कुछ करना हो, वह अभी कर डालना चाहिए। जो घड़ी सामने है, उसके सिवा और किसी घड़ी पर मनुष्‍य का अधिकार नहीं है।"

सेंटक्‍लेयर ने धीरे से कहा - "उस प्‍यारी नन्‍हीं इवा ने, मुझे काम में लगाने के लिए, मेरी भलाई के लिए, जी जान से यत्‍न किया था।"

इवा की मृत्‍यु के संबंध में सेंटक्‍लेयर ने कभी अधिक चर्चा नहीं की थी; पर आज अत्‍यंत गहरे शोक को बलपूर्वक दबाकर ये बातें कह ही डालीं। फिर कहा - "धर्म के विषय में मेरा यह मत है कि कोई मनुष्‍य उस समय तक धर्मात्‍मा कहलाने का अधिकारी नहीं हो सकता, जब तक कि वह सब प्रकार के सामाजिक और राजनैतिक अत्‍याचारों, दु:खों और कष्‍टों को दूर करने के लिए अपना उत्‍सर्ग नहीं करता, जब तक देश में प्रचलित सारी कुरीतियों को जड़ से उखाड़ फेंकने का यत्‍न नहीं करता और संसार का दु:ख-दारिद्रय दूर करने की चेष्‍टा नहीं करता। मनुष्‍य तभी धर्मात्‍मा कहा जा सकता है, जब वह संसार के समस्‍त नर-नारियों को समान अधिकार दिलाने के संग्राम के लिए कमर कस ले और उस संग्राम में जीवन की मोह-ममता छोड़कर प्राण-विसर्जन करने को तैयार हो जाए। पर यहाँ तो जो धर्म-प्रचारक कहलाते हैं, जिन्‍होंने लोगों को धर्मात्‍मा बना देने का बीड़ा उठा रखा है, वे निर्बलों पर सबलों के अत्‍याचारों एवं अन्‍यायों की तथा सारी सामाजिक बुराइयों की उपेक्षा करते हैं। यही कारण है कि समझदारों को उनके कार्यों पर आस्‍था नहीं रहती।"

मिस अफिलिया बोली - "यदि तुम यह सब जानते-बूझते हो, तो फिर तुम्‍हीं ये सब काम क्‍यों नहीं करते?"

सेंटक्‍लेयर ने कहा - "मैं जानता-बूझता सब हूँ, पर मेरी सहृदयता यहीं तक है कि मैं स्‍वयं कुछ करूँगा-धरूँगा नहीं। दूध से सफेद बिस्‍तर पर पड़ा रहूँगा और पादरियों की, चाहे वे सब-के-सब धर्मवीर ही क्‍यों न हों, चाहे वे सत्‍य के लिए प्राण ही देनेवाले क्‍यों न हों, निंदा करता रहूँगा और उनपर वाक्‍य-बाण बरसाता रहूँगा। दूसरों को कर्तव्‍य के पीछे, धर्म के पीछे, प्राण तक दे डालने चाहिए, इसे मैं खूब समझता हूँ; और जो अपना कर्तव्‍य-पालन नहीं करते, उनकी निंदा भी खूब करना जानता हूँ। पर कुछ भी कहो, मुझसे वह नहीं होने का।"

अफिलिया ने कहा - "अब आगे से क्‍या तुम्‍हारे जीवन का दूसरा ढंग होगा?"

सेंटक्‍लेयर बोला - "आगे की भगवान जाने! हाँ, पहले से अब साहस बढ़ गया है, क्‍योंकि अब सोने-खाने को कुछ रहा नहीं, सब कुछ हार चुका और जिसका हाथ खाली है उसे विपत्ति का क्‍या डर?"

"तो तुम क्‍या करना चाहते हो?"

"मैं अपने दास-दासियों को दासता से मुक्‍त करके उनकी उन्‍नति की चेष्‍टा करूँगा। फिर धीरे-धीरे ऐसा उपाय सोचूँगा जिसमें देश भर से यह बुरी प्रथा उठ जाए।"

"क्‍या तुम सोचते हो कि पूरा देश अपनी इच्‍छा से इस प्रथा को छोड़ देगा?"

"यह तो मैं नहीं कह सकता, लेकिन हाँ, आजकल स्‍वेच्‍छा से त्‍याग और नि:स्वार्थ प्रेम के दृष्‍टांत बहुत जगह देखे जाते हैं। उस दिन यूरोप में हंगरी के जमींदारों ने लाखों की हानि सहकर प्रजा का कर माफ कर दिया। उनकी प्रजा बिल्‍कुल पराधीन थी। उसे स्‍वाधीनता दे दी गई। क्‍या हमारे देश में ऐसे दो-चार सहृदय मनुष्‍य नहीं मिलेंगे, जो जातीय गौरव और न्‍याय के लिए अर्थ की हानि को सहर्ष सहन कर लें?"

मिस अफिलिया ने गंभीर होकर कहा - "मुझे विश्‍वास नहीं होता। अंग्रेज जाति बड़ी अर्थ-पिशाच होती है, बल्कि फ्रेंच इनसे अधिक सहृदय होते हैं।"

सेंटक्‍लेयर बोला - "न मालूम क्‍यों, मुझे बार-बार अपनी माता की याद आ रही है। ऐसा लग रहा है, मानो वह मेरे बहुत पास है।"

यह कहकर वह कुछ देर घर में टहला, फिर हाथ में टोपी लेकर यह कहता बाहर निकल गया - "जरा बाहर घूम आऊँ और आज की खबरें भी सुनता आऊँ।"

टॉम तुरंत उसके पीछे-पीछे हो लिया। सेंटक्‍लेयर ने उसे देखकर कहा - "तुम्‍हारे साथ जाने की जरूरत नहीं है। मैं जल्‍दी ही लौटूँगा।"

टॉम बरामदे में आकर बैठ गया। उस समय रात के नौ बजे थे। चांद की शीतल चांदनी धरती पर चारों ओर छिटकी हुई थी। टॉम वहीं बैठा-बैठा सोचने लगा - अब उसकी गुलामी की बेड़ी टूटने में ज्‍यादा देर नहीं है। वह दस-पाँच दिनों में ही घर चला जाएगा। सोचते-सोचते उसे अपने स्‍त्री-पुत्रों की याद हो आई, मन में नई-नई आशाएँ उठने लगीं। सोचने लगा कि अपने शरीर की मेहनत से धन कमाकर वह अपने पत्‍नी और बच्‍चों को भी गुलामी से छुड़ा लेगा। इस विचार के आते ही उसके हृदय में आनंद की लहरें उठने लगीं। फिर अपने मालिक सेंटक्‍लेयर की सहृदयता का स्‍मरण करके उसका हृदय कृतज्ञता से भर गया। इसके कुछ देर बाद उसे इवा की याद आई। जान पड़ा, मानो स्‍वर्ग की देव-बालाओं से घिरी हुई इवा उसके सामने खड़ी है। यों ही सोचते-विचारते टॉम को नींद ने आ घेरा। स्‍वप्‍न में उसे दिखाई पड़ने लगा कि नाना प्रकार की पुष्‍प-मालाएँ धारण किए इवा उसके पास आ रही है। उसका मुख-कमल चमक रहा है, उसकी दोनों आँखों से अमृत की वर्षा हो रही है, पर ज्‍योंहि उसने उसके मुख की ओर देखा, वह स्‍वर्ग की ओर उड़ी, उसके कपोलों पर लालिमा छा गई। उसकी आँखों से दैवी ज्योति निकलने लगी और पल भर में वह अंतध्यान हो गई।

तभी उसकी आँख खुल गई। जागते ही उसने घर के द्वार पर बहुत से लोगों का शोरगुल सुना। उसने सपाटे से जाकर दरवाजा खोला। देखा, कुछ लोग कपड़ों से ढकी हुई एक लाश लिए खड़े हैं। मृत व्‍यक्ति के मुख की ओर दृष्टि जाते ही टॉम निराशा और दु:ख के मारे चीख उठा। जो लोग उस व्‍यक्ति को कंधे पर लादकर लाए थे, उन्‍होंने घर में जाकर, जहाँ अफिलिया बैठी थी, वहाँ से उतारकर लिटा दिया।

संध्‍या के समाचार-पत्र पढ़ने के लिए सेंटक्‍लेयर किसी चाय-खाने में गया था। वहाँ बैठकर जब वह पत्र पढ़ रहा था तो उसने देखा कि दो भलेमानस शराब के नशे में मतवाले हुए आपस में मार-पीट कर रहे हैं। सेंटक्‍लेयर तथा और दो-एक अन्‍य व्‍यक्ति उन्‍हें छुड़ाने की चेष्‍टा करने लगे। इनमें से एक के हाथ में तेज छुरा था। वह छुरा एकाएक सेंटक्‍लेयर की बगल में घुस गया। वह तत्‍काल मूर्च्छित होकर गिर पड़ा। कुछ लोगों ने उसे कंधे पर उठाकर उसके घर पहुँचा दिया।

सेंटक्‍लेयर की यह दशा देखकर घर के सारे दास-दासी रोने-चीखने लगे। सबकी बुद्धि चकरा गई। कोई जमीन पर लोट-लोटकर रोने लगा। कोई पागल की तरह चीखता हुआ इधर-से-उधर दौड़ने लगा। केवल मिस अफिलिया और टॉम मन को साधकर सेंटक्‍लेयर को होश में लाने के लिए भाँति-भाँति के उपाय करने लगे। अफिलिया के कहने से टॉम ने तत्‍काल बिस्‍तर बिछा दिया और सेंटक्‍लेयर को उस पर लिटाकर दवा दे दी। कुछ देर के बाद सेंटक्‍लेयर को चेत हुआ। वह आँखें मलकर एक-एक करके सबको देखने लगा। अंत में कमरे में टँगी अपनी माता की तस्‍वीर पर जाकर उसकी दृष्टि अटक गई। वह एकटक उसी की ओर देखने लगा।

शीघ्र ही डॉक्‍टर आया और घावों की जाँच करने लगा। डाक्‍टर के चिंतित चेहरे को देखकर लोगों ने समझ लिया कि उसके जीने की कोई आशा नहीं है। डाक्‍टर घावों पर पट्टी बाँधने लगा। टॉम और मिस अफिलिया दोनों बड़े धीरज से सेंटक्‍लेयर की सहायता करने लगे। सब दास-दासी वहीं बैठे-बैठे रोते रहे। डाक्‍टर ने कहा कि बीमार के पास शोरगुल नहीं होना चाहिए। इन दास-दासियों को कमरे से बाहर करके इसको एकांत में रखना चाहिए।

इसी समय सेंटक्‍लेयर ने फिर आँखें खोलीं। जिन दास-दासियों को डाक्‍टर और अफिलिया ने बाहर चले जाने को कहा था, उनके चेहरों की ओर देखते हुए ठंडी साँस लेकर उसने कहा - "अभागे गुलामों!"

ये शब्‍द मुँह से निकलते समय ऐसा जान पड़ता था, मानो उसके हृदय में आत्‍मग्‍लानि की आग धधक रही है। एडाल्‍फ नाम का दास वहाँ से किसी तरह जाने को राजी न हुआ, वहीं धरती पर लोट गया। दूसरे दास-दासियों को जब मिस अफिलिया ने बहुत समझाया, तब वे अनिच्‍छापूर्वक वहाँ से हटे।

सेंटक्‍लेयर की बोली एकदम रुक गई। वह आँखें बंद किए पड़ा रहा। उसके चेहरे से मालूम हो रहा था, मानो दु:सह अनुताप की आग में उसका हृदय जल रहा है। टॉम उसकी बगल में घुटने टेककर बैठा हुआ था। सेंटक्‍लेयर ने कुछ देर बाद टॉम के हाथ पर हाथ रखकर कहा - "टॉम! दु:खी टॉम!"

टॉम ने बड़ी व्‍याकुलता से कहा - "स्‍वामी, क्‍या चाहते हैं?"

सेंटक्‍लेयर ने उसका हाथ दबाते हुए कहा - "मेरे जाने का समय आ गया है। प्रार्थना करो।"

यह सुनकर डाक्‍टर ने कहा - "किसी पादरी को क्‍यों न बुला लिया जाए?"

सेंटक्‍लेयर ने सिर हिलाकर असहमति प्रकट की और टॉम से फिर कहा - "टॉम, प्रार्थना करो।"

परलोकगामी आत्‍मा के कल्‍याण के लिए टॉम भारी हृदय से बड़ी व्‍याकुलतापूर्वक प्रार्थना करने लगा। टॉम की प्रार्थना समाप्‍त होने पर भी सेंटक्‍लेयर उसका हाथ पकड़े हुए उसकी ओर देखता रहा, पर कुछ बोल न सका। धीरे-धीरे उसकी आँखें मुँदने लगीं, लेकिन टॉम का हाथ वह थामे ही रहा। अंतिम साँस तक स्‍नेह के साथ वह काले हाथ को पकड़े रहा।

उसका शरीर एकदम निस्‍तेज हो गया, मृत्‍यु की मलिन छाया ने उसके मुख-मंडल को ढक लिया, किंतु इस मलिन छाया के साथ-साथ उसके मुख पर मधुर कांति छा गई। ऐसा जान पड़ा मानो स्‍वर्ग से किसी दयालु आत्‍मा ने अकस्‍मात् उतरकर शांति की मृदुल प्रभा से उसके मुख-मंडल को अनुरंजित कर दिया है।

अंतिम समय सेंटक्‍लेयर के मुँह से कोई बात नहीं निकली। बस 'माँ' कहते ही उसके प्राण निकल गए। लगा, जैसे अपनी माता को सामने देखकर दुधमुँहा बच्‍चा उसकी गोद में कूद पड़ा।

32. मेरी की क्रूरता

गुलामों के मालिक के मर जाने पर या कर्जदार हो जाने पर गुलामों पर बड़ी विपत्ति आया करती है। इस दशा में पहले मालिक के उत्तराधिकारी या उनके महाजन इन अभागे, असहाय तथा अनाथ गुलामों को प्राय: नीलाम कर डालते हैं। उस समय माता की गोद से बालक को और स्‍वामी के पास से स्‍त्री को अलग होना पड़ता है।

जिस बच्‍चे के माँ-बाप मर जाते हैं और उनका पालन-पोषण उसके आत्‍मीय जन करते हैं, उसे देशप्रचलित कानून के अनुसार, मनुष्‍य के अधिकारों से वंचित नहीं होना पड़ता। पर क्रीत दासों को किसी प्रकार के मानवीय स्‍वत्‍व प्राप्‍त नहीं है। घर की दूसरी वस्‍तुओं की भाँति इनका भी क्रय-विक्रय होता है।

सेंटक्‍लेयर की मृत्‍यु से उसके दास-दासी बहुत सोच में पड़ गए। सभी के मन में चिंता होने लगी कि आगे न जाने कैसे निर्दयी के हाथ में पड़ना पड़ेगा। सेंटक्‍लेयर का-सा दयालु मालिक दास-प्रथा के चलन के इस देश में मिलना एकदम मुश्किल है। ऐसे सहृदय मालिक को खोकर दास-दासियों को कितना शोक हुआ होगा, इसका सहज ही अनुमान किया जा सकता है।

मेरी सेंटक्‍लेयर ने अपने को छूट दे-देकर शरीर और मन को बिल्‍कुल निकम्‍मा कर लिया था। अत: स्‍वामी की मृत्‍यु के समय धीर चित्त से उसकी परिचर्या करना तो दूर, उसके सामने खड़ी भी न हो सकी। भय के कारण वह बार-बार बेहोश होने लगी। जिसके साथ मेरी पवित्र बंधन में बँधी थी, वह पत्‍नी से कुछ कहे बिना ही सदा के लिए बिदा हो गया।

मिस अफिलिया ने अंतिम समय तक तन-मन से सेंटक्‍लेयर की सेवा-शुश्रूषा की। अफिलिया के सिवा इन बेचारे गुलामों पर और कोई करुणा की दृष्टि डालनेवाला न था। इसी से सब-के-सब अब व्‍याकुल-चित्त से मिस अफिलिया की ओर देखते थे।

जिस समय सेंटक्‍लेयर की लाश कब्र में दफनाई जाने लगी, उस समय उसकी छाती पर एक स्‍त्री का छोटा-सा चित्र और उसी के पीछे एक गुच्‍छा बालों का लगा हुआ मिला। गाड़ने के समय वह सैकड़ों आशाओं का, स्‍वप्‍नमय तरुण जीवन का, स्‍मृति-चिह्न उसके निष्‍प्राण वक्षस्‍थल पर ही रख दिया गया।

टॉम का मन परलोक की चिंता में डूब गया। एक बार भी उसके मन में यह बात न आई कि सेंटक्‍लेयर की आकस्मिक मृत्‍यु के कारण अब उसे जन्‍म भर के लिए दासता की बेड़ियों में ही जकड़े रहना पड़ेगा। उसने मालिक की मृत्‍यु के समय बड़े भक्ति-भाव और विश्‍वास के साथ परमात्‍मा की प्रार्थना की। उसे इस बात का विश्‍वास हो गया कि परमेश्‍वर ने उसकी प्रार्थना स्‍वीकार कर ली। इससे उसे अंदर-ही-अंदर बड़ी शांति प्राप्‍त हुई।

काले वस्‍त्रों के आडंबर, पादरियों की अभ्‍यस्‍त प्रार्थना और बाह्य गंभीरता के साथ सेंटक्‍लेयर की अंत्‍येष्टि-क्रिया समाप्‍त हुई। फिर सदा से जो होता आया है, वही प्रश्‍न सबके सामने आया - इसके बाद क्‍या करना होगा?

उदास दास-दासियों से घिरे, शोकसूचक काले वस्‍त्रों के नमूने देखते हुए, मेरी के मन में यही सवाल पैदा हुआ। मिस अफिलिया के मन में यह बात उठी तो उसने उत्तर में अपने पिता के घर लौट जाने की ठानी। पर उन अनाथ गुलामों के मन में यह प्रश्‍न उठते ही उनकी जान सूख गई। अब जिसके हाथ में उनकी लगाम आई थी, उसकी कठोरता किसी से छिपी न थी। वे खूब जानते थे कि अब तक वह सेंटक्‍लेयर के कारण ही उनपर अत्‍याचार नहीं करने पाती थी, पर अब जान बचने की कोई सूरत न रही।

सेंटक्‍लेयर की अंत्‍येष्टि-क्रिया के पंद्रह दिन बाद की बात है। एक दिन मिस अफिलिया अपने कमरे में बैठी हुई कुछ काम कर रही थी, इतने में किसी ने धीरे-से उसका दरवाजा खटखटाया। उसने दरवाजा खोल कर देखा कि बाहर वर्ण-संकर सुंदरी युवती रोजा खड़ी है। उसके बाल बिखरे हुए थे और रोते-रोते उसकी आँखें सूज गई थीं।

रोजा मिस अफिलिया के पैरों पर गिर पड़ी और उसके कपड़े का कोना पकड़कर रोते-रोते कहने लगी - "मिस फीली, मेरी तरफ से मेरी मालकिन को कुछ कहिए, मेरी जान बचाइए। वह बेंत लगवाने के लिए मुझे दंड-गृह भेज रही हैं। यह देखिए!" इतना कहकर उसने मिस अफिलिया के हाथ में एक कागज थमा दिया। इस कागज में दंड-गृह के अध्‍यक्ष को लिखा गया था कि रोजा को पंद्रह कोड़े लगाए जाएँ।

मिस अफिलिया ने कहा - "बात क्‍या थी?"

रोजा बोली - "मिस फीली, आप जानती हैं, मेरा मिजाज बड़ा खराब है। मुझे जरा सी बात में गुस्‍सा आ जाता है। मैं मालकिन का कपड़ा अपने बदन पर पहन कर देख रही थी। इस पर उन्‍होंने मेरे गाल पर एक थप्‍पड़ जमा दिया। इससे मुझे गुस्‍सा आ गया। बिना सोचे-विचारे जो भला-बुरा मेरे मुँह से निकला, मैं बक गई। इस पर मालकिन ने कहा, 'देख, अब तेरा सिर चढ़ना कैसे उतारती हूँ। तब तू समझेगी कि मैं कौन हूँ। तेरा यह घमंड अधिक दिन तक नहीं टिकेगा'।"

कागज हाथ में लिए हुए खड़ी मिस अफिलिया सोचने लगी।

रोजा ने कहा - "मिस फीली, देखिए, मैं मार से नहीं डरती। यदि मालकिन या आप घर बिठाकर पचास बेंत लगावें तो कोई शर्म नहीं। पर मर्द के पास भेजना, और वह भी ऐसे भयंकर नीच के पास - कैसी शर्म की बात है!"

मिस अफिलिया ने पहले भी यह सुन रखा था कि गुलामी की प्रथावाले प्रदेशों में, दासों के मालिक युवती दासियों को बड़ी नीच प्रकृतिवाले पुरुषों के पास दंड देने को भेजते हैं। इन अभागिनों को इस तरह दंड मिलने में लज्‍जा, शील और यहाँ तक कि मनुष्‍यता को भी तिलांजलि दे देनी पड़ती थी। पर इस प्रकार दंड मिलने से स्त्रियों को कैसा भयंकर कष्‍ट होता था, यह बात कानों से सुनकर भी हृदय में बैठी नहीं थी। आज भय और दु:ख से थर-थर काँपती हुई रोजा को देखकर सब बातें हृदय में अंकित हो गईं।

घृणा से मिस अफिलिया का चेहरा लाल हो गया। किंतु उसने कागज को मजबूती से अपने हाथ में थाम रख रोजा से कहा - "बच्‍ची, तुम यहाँ बैठो। मैं तुम्‍हारी मालकिन के पास जाती हूँ।"

अफिलिया ने मेरी के पास जाकर देखा, वह कुर्सी पर बैठी हुई है, उसकी आँखें अधखुली हैं। मामी पीछे खड़ी उसके बाल झाड़ रही है और जेन जमीन पर बैठी उसके पैर दबा रही है।

मिस अफिलिया ने उससे पूछा - "कहिए, आज आपकी तबीयत कैसी है?"

सुनते ही मेरी ने ठंडी साँस लेकर आँखें बंद करते हुए कहा - "जैसी हमेशा रहती हूँ वैसी ही हूँ।" यह कहकर उसने एक बढ़िया रूमाल से आँखें पोंछीं।

मिस अफिलिया ने इस ढंग से, जैसे कोई मुश्किल बात कहता हो, सूखे गले से कहा - "मैं रोजा के बारे में तुमसे कुछ कहने आई हूँ।"

अब मेरी की आँखें खुल गईं, मुँह लाल हो गया। कर्कश स्‍वर में बोली - "रोजा के बारे में क्‍या कहना है?"

"वह अपने अपराध के लिए बहुत पछता रही है।"

"पछता रही है! पछता रही है? इसका क्‍या माने! अभी उसे बहुत पछताना पड़ेगा। मैं थोड़े में छोड़नेवाली नहीं हूँ। मैंने बहुत दिनों तक इस छोकरी की धृष्‍टता सही है। अब मैं इसे दुरुस्‍त करूँगी, धूल में मिला दूँगी।"

"क्‍या तुम उसे और किसी प्रकार की सजा नहीं दे सकती हो, जो इससे कम लज्‍जाजनक हो?"

"मेरा तो मतलब ही उसे शर्म दिलाने से है।... यही तो मैं चाहती हूँ। यह छोकरी जन्‍म से ही शेखी के मारे ऐंठकर अपनी असलियत को भूल गई है। अब मैं इसकी सारी शेखी और अकड़ निकाल दूँगी।"

"पर बहन, सोचकर देखने की बात है। किसी जवान लड़की की लज्‍जा नष्‍ट करना, उसके पतित होने के मार्ग को साफ कर देना है।"

घृणा के साथ हँसकर मेरी ने कहा - "लज्‍जा! मैं उसे बताऊँगी कि फटे कपड़े पहनकर राह में जो स्त्रियाँ ठोकरें खाती फिरती हैं, उनसे वह किसी तरह अच्‍छी नहीं है... मेरे सामने उसकी अब शेखी नहीं चलेगी।"

मिस अफिलिया ने जोर के साथ कहा - "इस निर्दयता के लिए तुम्‍हें ईश्‍वर के यहाँ जवाब देना पड़ेगा।"

"निर्दयता? मुझे बताओ, इसमें क्‍या निर्दयता है? मैंने तो बस पंद्रह कोड़े लगाने को लिखा है, सो भी हल्‍के-हल्‍के। मैं इसमें कुछ भी निर्दयता नहीं देखती।"

मिस अफिलिया ने कहा - "निर्दयता नहीं है? मेरा विश्‍वास है कि इस दंड की अपेक्षा स्त्रियाँ मृत्‍यु को कहीं अच्‍छा समझेंगी।"

मेरी बोली - "तुम्‍हारे जैसा दिल जिसका है, उसमें ऐसा भाव आ सकता है, पर इन दासियों को ऐसा दंड भोगने का अभ्‍यास है। उनकी अक्‍ल को ठिकाने रखने का यही एकमात्र उपाय है। एक बार माफ कर देने से तो ये सिर पर चढ़ जाते हैं। मैं अब तक इन्‍हें छोड़ती रही हूँ, इसी से ये बिगड़ गए। मैं अब इन्‍हें ठीक करूँगी। जो कसूर करेगा, उसे तुरंत दंड-गृह में कोड़े लगवाने भेज दूँगी।"

जेन, जो मेरी के पैर दबा रही थी, यह बात सुनकर एकदम चौंक उठी। उसने सोचा, यह अंतिम बात उसी को सुनाकर कही गई है। शायद रोजा के बाद उसी की बारी आए।

मिस अफिलिया को मेरी की बात पर बड़ा क्रोध आया। उसका शरीर काँपने लगा। पर उसने सोचा, उसके साथ झगड़ा करने का कोई नतीजा न होगा। वह वहाँ से उठकर अपने कमरे में चली गई। रोजा के दु:ख से वह इतनी दुखी हुई कि लौटकर रोजा से यह बात नहीं कह सकी कि मेरी ने उसकी बात नहीं मानी।

कुछ देर के बाद एक काला गुलाम मेरी की आज्ञा से रोजा को पकड़कर दंड-गृह में ले गया। रोजा रोई-चिल्‍लाई, पर मेरी का वज्र-हृदय न पसीजा।

एडाल्‍फ पर मेरी खार खाए हुई थी। परंतु सेंटक्‍लेयर की वजह से किसी दास-दासी पर उसका बस न चलता था, इसी से अब तक एडाल्‍फ को किसी प्रकार का दंड न दे सकी थी। सेंटक्‍लेयर की मृत्‍यु से एडाल्‍फ एकदम निराशा के सागर में डूब गया। अब वह हरदम मेरी के डर से काँपा करता था। मेरी ने सेंटक्‍लेयर के भाई अल्‍फ्रेड और अपने वकील से सलाह करके निश्‍चय किया कि वह सेंटक्‍लेयर के मकान और सब गुलामों को बेच डालेगी। बस उन गुलामों को जो उसके निजी हैं, अपने साथ लेकर पिता के घर जा कर रहेगी। एडाल्‍फ ने यह बात सुन ली। इसलिए एक दिन टॉम से जाकर कहा - "टॉम, क्‍या तुम्‍हें मालूम है कि मालकिन हम लोगों को बेच डालेंगी?"

टॉम ने पूछा - "तुमने किससे सुना?"

एडाल्‍फ बोला - "मेरी जब वकील से बातें कर रही थी, तब मैंने पर्दे की ओट से सब बातें सुनी थीं। टॉम, अब कुछ ही दिनों में हम लोग नीलामघर भेज दिए जाएँगे।"

टॉम ने ठंडी साँस लेकर कहा - "जो ईश्‍वर की मर्जी होगी।"

एडाल्‍फ बोला - "अब ऐसा दयालु मालिक नहीं मिलेगा। लेकिन इस मालकिन के पास रहने से तो दूसरे के हाथ बिकना ही अच्‍छा है।"

टॉम घूमकर खड़ा हो गया। उसका हृदय विषाद से भरा हुआ था। कहाँ तो वह स्‍वाधीन होने की खुशियाँ मना रहा था, और शीघ्र ही अपने बाल-बच्‍चों से मिलने की आशा में फूले न समाता था और कहाँ यह एकाएक विपत्ति का पहाड़ उस पर टूट पड़ा! नाव किनारे लगते-लगते डूब गई! आजाद होने की जो आशाएँ उसने सँजो रखी थीं, वे धूल में मिल गईं। टॉम स्‍वाधीनता को बड़ा मूल्‍यवान समझता था, फिर भी ईश्‍वर के भरोसे उसने धीरज न छोड़ा। उसने ऊपर को सिर उठाया और हाथ जोड़कर कहने लगा - "प्रभो, तुम्‍हारी इच्‍छा पूर्ण हो!" पर यह वाक्‍य कहते समय उसका हृदय विदीर्ण होने लगा।

कुछ देर बाद वह मिस अफिलिया के कमरे में गया। इवा की मृत्‍यु के उपरांत मिस अफिलिया टॉम पर विशेष स्‍नेह रखती थी।

टॉम ने कहा - "मिस फीली! मालिक सेंटक्‍लेयर ने मुझे गुलामी से मुक्‍त कर देने का वचन दिया था। वकील से इस मामले में उन्‍होंने मसविदा बनाने को भी कह दिया था। अब आप मालकिन से कहें तो वह मालिक के वचनों को पूरा कर सकती हैं।"

मिस अफिलिया बोली - "टॉम, मैं तुम्‍हारे लिए कहूँगी, भरसक प्रयत्‍न करूँगी, पर मुझे आशा नहीं कि मेरी कुछ करेंगी। कोशिश बेकार ही होगी।"

टॉम को विदा करके मिस अफिलिया सोचने लगी कि शायद रोजा के लिए अनुरोध करते समय मेरे मुँह से कुछ कठोर बातें निकल गई थीं। इसी से उसने मेरी बात पर ध्‍यान नहीं दिया। आज मैं उसे मीठी-मीठी बातों से राजी करूँगी। शायद इस तरह वह टॉम को छोड़ने पर राजी हो जाए। यह सोचकर वह मेरी के कमरे में गई।

मेरी खाट पर लेटी हुई थी और जेन उसे तरह-तरह के काले कपड़ों के नमूने दिखा रही थी। मेरी ने उन नमूनों में से एक चुनकर कहा - "यह ठीक है, लेकिन मैं कह नहीं सकती कि यह पूरी तरह शोकसूचक होगा या नहीं।"

जेन ने कहा - "आप क्‍या कहती हैं? अभी उस दिन जनरल डरबन के मरने पर उनकी मेम ने यही कपड़ा पहना था। पहनने पर साहब यह बहुत जोरदार लगता है। इससे दर्शकों का मन खिंच उठता है।"

मेरी ने मिस अफिलिया से कहा - "आपकी समझ में यह कपड़ा कैसा है?"

मिस अफिलिया बोली - "यह अपने-अपने यहाँ की रीति पर निर्भर है। मेरी अपेक्षा तुम इस बात को अच्‍छी तरह जानती हो।"

मेरी ने कहा - "असल में मेरे लायक एक भी पोशाक नहीं है, पर अगले ही हफ्ते मैं जानेवाली हूँ। इससे कोई एक पसंद कर लेना है।"

मिस अफिलिया ने कहा - "तुम इतनी जल्‍दी जाओगी?"

मेरी बोली - "हाँ, अल्‍फ्रेड और वकील की राय है कि घर का माल-असबाब तथा दास-दासी सबको नीलाम कर डालना ही ठीक है।"

मिस अफिलिया ने गंभीर स्‍वर में कहा - "मैं तुमसे एक बात कहनेवाली थी। अगस्टिन ने टॉम को आजाद कर देने का वचन दिया था, यहाँ तक कि उसके लिए मसविदा बनवाने की भी बातचीत हो गई थी। मैं आशा करती हूँ कि तुम वकील से जल्‍दी ही आजादी की सनद लिखवा लोगी।"

"नहीं, मैं ऐसा कभी नहीं करूँगी। टॉम के पूरे दाम आएँगे। वह इस तरह कैसे भी नहीं छोड़ा जा सकता। फिर उसे आजादी की ऐसी जरूरत ही क्‍या है? आजाद होने पर वह मौजूदा हालत से अच्‍छा तो रह न सकेगा।"

"पर आजाद होने की उसकी बड़ी इच्‍छा है, और उसके मालिक ने उसे आजाद कर देने का वचन दिया था।"

"हाँ, टॉम की यह इच्‍छा हो सकती है। ये लोग तो जन्‍म भर असंतुष्‍ट ही बने रहते हैं। जो इन्‍हें नहीं मिलता, उसकी ये बराबर इच्‍छा किया करते हैं। मैं सदा से गुलामी को खत्‍म करने के खिलाफ हूँ। जब तक ये हब्‍शी किसी मालिक की अधीनता में रहते हैं तब तक अच्‍छे रहते हैं। लेकिन आजादी मिलते ही ये आलसी हो जाते हैं। शराब पीना आरंभ कर देते हैं। नीचे गिरते चले जाते हैं। मैंने सैकड़ों बार यही बात देखी है। इन्‍हें आजाद करने में इनका भला नहीं, उल्‍टे इनका बिगाड़ करना है।"

मिस अफिलिया बोली - "पर टॉम तो भलामानस, मेहनती और धार्मिक है।"

"ओह, मुझे तुम्‍हारे समझाने की जरूरत नहीं है। मैंने ऐसे सैकड़ों देख डाले हैं। सौ बात की एक बात यह है कि वे गुलामी में ही अच्‍छे रहते हैं।"

"पर खयाल करो, जब तुम इसे नीलाम करोगी तब हो सकता है कि कोई बेरहम आदमी इसे खरीद ले जाए।"

"ये सब फिजूल की बातें है। नौकर अच्‍छा हो तो सैकड़ों में एक भी मालिक बुरा नहीं मिलता। मालिकों की लोग नाहक झूठी शिकायत करते हैं। मैं जन्‍म से इसी दक्षिणी क्षेत्र में हूँ। पर अब तक ऐसा एक भी मालिक नहीं देखा, जो अपने दासों के साथ अच्‍छा व्‍यवहार न करता हो। मैं इस पर विश्‍वास नहीं करती कि टॉम का होनेवाला मालिक उससे बेरहमी का बर्ताव करेगा।"

अफिलिया ने कहा - "खैर, मैं जानती हूँ कि तुम्‍हारे पति की अंतिम इच्‍छा टॉम को मुक्‍त कर देने की थी। उसने इवा की मृत्‍यु के समय उससे भी इस बात की प्रतिज्ञा की थी कि टॉम को बहुत शीघ्र आजाद कर दिया जाएगा। कोई कारण नहीं कि तुम अपने स्‍वामी और कन्‍या की इच्‍छा को इस तरह ठुकरा दो।"

मेरी ने रूमाल से अपना चेहरा ढक लिया और सिसक-सिसककर रोने लगी। बेहोशी के डर से बार-बार एमोनिया की शीशी सूँघते-सूँघते भरे हुए गले से कहने लगी - "जो आता है, मुझसे ही लड़ने चला आता है। कोई मेरे दु:ख का खयाल नहीं करता। मैंने कभी नहीं सोचा था कि तुम मुझे शोक की याद दिलाकर कटे पर नमक छिड़कने आओगी। तुम्‍हें भी मुझे ही सताने की सूझी। तुम्‍हें मेरा जी दुखाने में तनिक भी दया नहीं आई! पर मेरी सोचता कौन है? मेरी दशा को समझता कौन है? सबको अपने-अपने सुख की पड़ी है। मेरी एक लड़की थी, उसे भी भगवान ने उठा लिया। उसके बाद मेरे पति चल बसे। तुम्‍हारे मन में जरा भी मोह-माया नहीं है। इसी से तुमने भी मेरी बेटी और स्‍वामी की मौत की बात कहकर मेरे दु:ख की आग में घी डाल दिया।"

मेरी और जोर-जोर से रोने लगी। बेहोशी के लक्षण दिखाई देने लगे। वह मामी से कहने लगी - "अरे खिड़की खोल दे! कपूर की शीशी ला! मेरे सिर पर पानी डाल। मेरे कपड़े ढीले कर दे।"

चारों ओर बड़ा शोर मचा। इसी बीच मिस अफिलिया किसी तरह जान बचाकर अपने कमरे की ओर भागी।

मिस अफिलिया ने देखा कि मेरी से बहस करना फिजूल है। बेहोशी बुलाने की उसमें अदभुत क्षमता है। इसके बाद जब कभी दास-दासियों के संबंध में सेंटक्‍लेयर और इवा की इच्‍छा की चर्चा की जाती, वह बखेड़ा कर देती थी। मिस अफिलिया ने टॉम के छुटकारे का कोई उपाय न देखकर मिसेज शेल्‍वी को टॉम के दु:ख की सारी बातें साफ-साफ लिख दीं और उसे शीघ्र छुड़ा ले जाने का विशेष अनुरोध किया।

इसके दूसरे ही दिन, टॉम, एडाल्‍फ तथा दूसरे छ: दास नीलाम करने के लिए नीलाम-घर भेज दिए गए।

33. गुलामों की बिक्री के हृदय-विदारक दृश्य

"गुलामों के बेचने की आढ़त?" शायद यह नाम सुनकर ही लगे कि यह बड़ा विकट स्‍थान होगा और माल गोदामों की तरह न मालूम कितना अंधकार से भरा और मैला-कुचैला होगा। पर नहीं, यह बात नहीं है। सभ्‍यता की उन्‍नति के साथ-साथ लोग सभ्‍य प्रणाली और चतुराई से बुरे काम करना सीखते हैं। दासों का व्‍यापार करनेवाले इस बात की बड़ी फिक्र रखते थे कि मानव-संपदा, अर्थात जीवात्‍मा-रूपी माल के दाम बाजार में किसी प्रकार कम न आएँ। वे लोग बिकने के पहले गुलामों को अच्‍छा खाने और अच्‍छा पहनने को देते थे। उन्‍हें कोई रोग न होने पाए, इस ओर भी उनका पूरा ध्‍यान रहता था। इसी से गुलामी का धंधा करनेवाले आढ़तिए अपने स्‍थानों को बड़ा साफ-सुथरा रखते थे। इन आढ़तघरों के सामने सजे-सजाए खुले बरामदे होते थे। वहाँ गुलामों को एक कतार में खड़ा किया जाता था। बाहरी आदमी देखते ही समझ लेता था कि इस घर में नर-नारियों का सौदा होता है। खरीदारों को आढ़तिए बड़ी आव-भगत से बुलाकर गुलामों को दिखाते थे। पर अंदर जाकर लोग देखते थे कि स्‍वामी, स्‍त्री, पिता, माता, बालक - ये एक-दूसरे से सदा के लिए बिछुड़ जाने की बात सोच-सोचकर बिलख रहे हैं। पति के कंधे पर सिर रखकर स्‍त्री कह रही है - "हे ईश्‍वर अब जन्‍म भर के लिए हम लोगों का बिछोह हो जाएगा। ईश्‍वर करे, हम दोनों को एक ही आदमी खरीद ले।" कहीं स्‍त्री का कंधा पकड़कर पति कह रहा है - "मेरा यह जीवन वृथा है। मैंने क्‍यों यह नर-तन पाया?" बच्‍चे को हृदय से चिपकाकर माँ बार-बार उसका मुख चूमती है और सिर पीटकर कहती है - "हे भगवान, तूने मुझे संतान क्‍यों दी? मृत्‍यु, तू कहाँ छिप गई है?" बच्‍चे मजबूती से अपनी माताओं के कपड़े पकड़े हुए हैं। सोचते हैं, बस, वे कपड़े पकड़े रहेंगे तो उन्‍हें कोई अलग नहीं कर सकेगा। इन दृश्‍यों को देखकर पत्‍थर का कलेजा भी पिघल जाता है। पर उन अर्थलोलुप नर-पिशाच अंग्रेज बनियों के हृदय की कठोरता की कोई हद नहीं है।

जो मानव-आत्मा अमृत की अधिकारी है, विश्‍वपति की अमृतगोद जिसके लिए खुली हुई है, धन के लोभ से आज उन्‍हीं आत्‍माओं के सौदे हो रहे हैं। यह घृणित सौदा करनेवाली वही गोरी जाति है, जो सभ्‍यता की लंबी-लंबी डीं‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌गें हाँकती है और दूसरी जातियों को ठग बताकर स्‍वयं बड़ी शहंशाह बनती है।

टॉम और एडाल्‍फ के सिवा सेंटक्‍लेयर के और भी आधे दर्जन दास-दासी स्‍केग नामक आढ़तिए के यहाँ पहुँचाए गए। वहाँ और भी बहुतेरे दास-दासी आए हुए थे। इन सबको हर समय खुश रखने के लिए आढ़त के मालिकों की बड़ी चेष्‍टा रहती थी। उदास मुख देखने से कहीं ग्राहक कम दाम न लगाएँ, इसी लिए भाँति-भाँति के उपायों से इन्‍हें हँसाने का यत्‍न किया जाता था। चारों ओर हँसी-मजाक तथा तमाशे हो रहे थे। पर क्‍या टॉम-जैसे आदमी को इस दशा में हँसी आ सकती थी? एक तो इवा और सेंटक्‍लेयर का शोक ही उसके हृदय को साल रहा था, उस पर उसकी यह दुर्दशा हो रही थी! कोई भी, जिसमें आत्‍मा है, इस दशा में हँस नहीं सकता था।

टॉम दूसरे दास-दासियों से कुछ दूर घर के एक कोने में, अपने संदूक का सहारा लेकर बैठ गया। वह बहुत ही उदास था, पर आढ़तवाले किसी को उदास बैठने देनेवाले न थे। वे इन्‍हें खुश रखने के लिए बजाने को बाजा देते और नाचने-गाने का हुक्‍म देते थे। इनमें जो दु:ख के कारण हँसी-खुशी मनाने में असमर्थ होते, वे 'बदमाश' गिने जाते थे। इन सब बदमाशों को नाना प्रकार का दंड भोगना पड़ता था। खरीदारों के सामने जो हँसते हुए खड़े न होते, उनकी जान मुसीबत में कर दी जाती थी।

स्‍केग की आढ़त का सहकारी कार्याध्‍यक्ष सांबो नामक एक हब्‍शी था। यह सदा सबको खुश करने की फिक्र में रहता था और जिनको उदास बैठे पाता, उनपर कोड़े फटकारता था। पूछा जा सकता है कि हब्‍शी होकर वह यह अपने स्‍वजा‍तीयों पर इतना अत्‍याचार क्‍यों करता था? बात यह है कि संसार में जो जाति पराधीन और पराजित होती है, उस जाति के लोगों का पतन हो जाता है। वे परम स्‍वार्थी और नीच हो जाते हैं। स्‍वयं कोई पद या अधिकार पा जाने से वे भिन्‍न जातीय मालिक को खुश करने के लिए खुशामद के मारे अपने ही भाइयों को अकारण सताने में अपनी शान और बड़प्‍पन समझते हैं। इसी से यहाँ सांबो अपने ही भाइयों पर जो अत्‍याचार करता था, उसके लिए हम उसे अपराधी नहीं समझते।

सांबो ने जब देखा कि टॉम अलग एक कोने में उदास बैठा है, तो वह फौरन उसके पास पहुँचकर बोला - "तुम क्‍या कर रहे हो?"

टॉम ने शांति से कहा - "कल मेरी नीलामी होगा।"

उसको हँसाने के लिए सांबो खिलखिलाकर हँसते हुए बोला - "हमारी भी कल नीलामी होगा।"

सांबो ने समझा कि उसने एक बड़े मजाक की बात कही है और टॉम इस पर जरूर हँस पड़ेगा। इसके बाद सांबो एडाल्‍फ के कंधे पर हाथ रखकर बोला - "इन सब लोगों की कल नीलामी होगी।"

एडाल्‍फ ने छिटककर कहा - "मेहरबानी करके मुझसे अलग रहो।"

इस पर सांबो बोला - "बाप रे बाप! यह तो गोरा हब्‍शी है। इसे तो तमाखूवाले के यहाँ तमाखू बेचने बैठा दिया जाए, तो बड़ा अच्‍छा रहे।"

एडाल्‍फ ने गुस्‍से में भरकर कहा - "तुमसे कहता हूँ कि हट जाओ। क्‍या नहीं हटोगे?"

"हमारे गोरा हब्‍शी लोगों को बड़ा जल्‍दी गुस्‍सा आता है।" यह कहकर वह हाथ नचा-नचाकर एडाल्‍फ की नकल करने लगा और व्‍यंग्‍य से बोला - "मालूम होता है, यह किसी बड़े आदमी के यहाँ था।"

"हाँ, मैं जिसके यहाँ था, वह तेरे जैसे छप्‍पन गुलाम खरीद सकता था।"

"बाबा, तब तो वह कोई बहुत ही बड़ा आदमी होगा।"

एडाल्‍फ ने अभिमान के साथ कहा - "मैं सेंटक्‍लेयर के परिवार में था।"

सांबो ने मजाक में कहा - "हाँ, बड़े आदमी न होते तो उस घर की ये टूटी-फूटी चायदानियाँ यहाँ क्‍यों बिकने आती!"

इस मजाक से एडाल्‍फ को बड़ा क्रोध आया। वह सांबो पर तेजी से झपटा। दूसरे लोग यह देखकर तालियाँ बजाने लगे, इससे बड़ा शोर-गुल मचा। शोर सुनकर आढ़त का प्रधान अध्‍यक्ष हाथ में चाबुक लिए वहाँ पहुँचा। उसे देखकर सब अपनी-अपनी जगह पर जा हटे। सांबो ने उसे देखकर कहा - "सरकार, पहलेवाले लोगों में कोई गुल-गपाड़ा नहीं करता। हमने सबको सीधा कर दिया। ये जो नए गुलाम आए हैं, बड़ा उत्‍पात करते हैं।"

इस पर अध्‍यक्ष साहब बिना पूछताछ के टॉम और एडाल्‍फ को दो चार लात-घूंसे जमाकर चलता बना। जाते-जाते कह गया कि सब चुपचाप सो जाओ, शोर मत मचाना।

दासों के घर का दृश्‍य देखने के बाद अब दासियों की दशा जानने का कौतूहल हो सकता है। आइए, हमारे साथ इस घर में चलिए। यहाँ आपको बहुत-सी दासियाँ दिखाई देंगी। इनमें बूढ़ी भी हैं, जवान भी; अधेड़ भी हैं, लड़कियाँ भी। सभी तरह की हैं। अस्‍सी बरस की बुढ़िया से लेकर तीन वर्ष की लड़कियाँ तक यहाँ देखिए, यह एक दस बरस की लड़की किस तरह बिलख-बिलखकर रो रही है। कल इसकी माता नीलामकर दी गई है, आज कोई इसकी ओर आँख उठाकर भी देखनेवाला नहीं। बालिका 'माँ-माँ' कहकर चिल्‍ला रही है, पर कोई उसे पूछनेवाला नहीं।

और देखिए, यह अस्‍सी पार किए, कठोर मेहनत के कारण वातरोग से पीड़ित, बुढ़िया बैठी हुई चुपचाप रो रही है। तीन बार इसकी डाक बोली गई, लेकिन बेकाम समझकर किसी ने इसे नहीं खरीदा। इसके पाँच-छह लड़के-लड़कियों को लोग खरीद ले गए हैं। शोक से व्‍याकुल जननी उन्‍हीं के लिए आँसू बहा रही है।

और देखिएगा? चलिए, देखते चलिए। अभी आपने देखा ही क्‍या है? इधर देखिए, दो स्त्रियाँ साधारण स्त्रियों से कुछ दूर बैठी हैं। ये कपड़े-लत्ते से भलीमानस-सी जान पड़ती है। रंग भी इनका करीब-करीब अंग्रेजों-जैसा है। इनमें एक की उम्र 45 साल की होगी, इसके अंग खूब गठीले हैं। इसके पासवाली दूसरी युवती की उम्र पंद्रह बरस की होगी। इन दोनों के चेहरों से जान पड़ता है कि दूसरी पहली की बेटी है। पहली स्‍त्री अंग्रेज पिता और हब्‍शी माता से है। लड़की भी अंग्रेज से ही पैदा हुई जान पड़ती है। इनके कपड़ों के रंग-ढंग तथा हाथों की कोमलता पर ध्‍यान देने से पता चलता है कि इन्‍होंने कभी परेशानी नहीं उठाई है। कल इन दोनों की नीलामी होगा।

न्‍यूयार्क-निवासी क्रिश्चियन-चर्च के एक धर्मात्‍मा मेंबर साहब की ओर से ये नीलामी के लिए आई हैं। इनके दाम के हकदार वही धर्मात्‍मा मेंबर साहब होंगे। पर वह साहब जैसे धार्मिक क्रिश्चियन हैं, उससे इस बात में कोई शक नहीं रह जाता कि इन रुपयों में से वह कुछ तो गिर्जाघर बनाने के लिए और कुछ लार्ड बिशप साहब के खर्च के लिए अवश्‍य देंगे।

उन दोनों स्त्रियों में माता का नाम सूसन और कन्‍या का एमेलिन है। ये न्‍यू अर्लिंस की एक सहृदय और संभ्रांत महिला की दासियाँ थीं। उसने इन्‍हें बड़ी लगन से लिखाया-पढ़ाया था। पर फिजूल-खर्ची के कारण उसका इकलौता लड़का न्‍यूयार्क की बी.एंड-कंपनी का कर्जदार हो गया। उस कंपनी ने नालिश करके उस पर डिग्री करा ली। डिग्री में अचल संपत्ति की कुरकी और नीलामी में बड़ा खर्चा और परेशानी की बात बताकर कंपनी के वकील ने चल संपत्ति कुर्क कराकर नीलाम कराने की सलाह दी। चल संपत्ति में दास-दासी ही सबसे ज्‍यादा कीमती होते हैं। पर एक बड़ी अड़चन थी। कंपनी के साहब उत्तरी प्रदेश के और एक खास तरह के क्रिश्चियन हैं। वह भला नर-नारियों का सौदा करने की प्रथा का सहारा कैसे लें! इस मामले को लेकर बड़ी लिखा-पढ़ी होने लगी। चल संपत्ति बेचे बिना तीस हजार रुपयों के जल्‍दी उतरने की संभावना नहीं थी। एक ओर तीस हजार की रकम और दूसरी ओर क्रिश्चियन धर्म; दोनों की होड़ लगी थी। अंत में तीस हजार की ही जीत रही। कंपनी के साहब ने वकील को चल संपत्ति कुर्क कराकर नीलाम कराने का पत्र लिखा। पत्र पाते ही वकील से सूसन और उसकी कन्‍या एमेलिन को कुर्क करके नीलामी में भेज दिया। उन्‍हीं दोनों माँ-बेटियों को आप यहाँ गोदाम में बैठी बिलखती देख रहे हैं।

एमेलिन कहती है - "माँ, तुम जंघे पर सिर रखकर थोड़ा आराम कर लो।"

"नहीं, बेटी, मुझे नींद नहीं आएगी। जान पड़ता है, हम लोगों के मिलन का यह आखिरी दिन है।" सूसन ने सिसकते हुए कहा।

एमेलिन ने धीरज से कहा - "माँ, तुम ऐसा क्‍यों कहती हो? शायद हम दोनों को कोई एक ही आदमी खरीद ले।"

सूसन आँसू पोंछते हुए बोली - "नहीं बेटी, इसकी कोई उम्‍मीद नहीं। मैं झूठी उम्‍मीद दिलाकर मन को भुलाना नहीं चाहती।"

"क्‍यों वह नीलामवाला तो कहता था कि हम दोनों एक ही-सी हैं। इससे दोनों की एक ही डाक कर देगा।"

सूसन की उम्र अधिक होने के कारण उसका अनुभव भी बहुत था। वह आदमियों को देखकर ताड़ जाती थी कि कौन कैसा है। उस आदमी के चेहरे का रंग-ढंग देखकर, उसकी बातें सुनकर, सूसन के होश उड़ गए। उस गोदाम का रक्षक जब एमेलिन का हाथ पकड़कर और उसके सुंदर बालों को हिला-डुला कर देखते हुए कहने लगा कि "यह माल बड़ा बढ़िया है, इसके खूब दाम आएँगे," तभी सूसन की जान निकल गई। सूसन का हृदय बहुत ही धार्मिक था। इससे यह सोचकर उसका हृदय दहकने लगा कि उसके गर्भ से जन्‍मी हुई कन्‍या को कोई लंपट पिशाच अंग्रेज खरीदकर उपपत्‍नी बनाएगा।

एमेलिन ने फिर कहा - "माँ, तुम रसोई बहुत अच्‍छी बनाना जानती हो। किसी भले घर में तुम्‍हें रसोईदारिन का और मुझे दरजिन का काम मिल जाए, तो हम लोगों के दिन बड़े मजे में कटेंगे।"

सूसन ने कहा - "बेटी, मैं चाहती हूँ कि तेरे सिर के सब बाल पीछे की ओर सीधे-सीधे कर दूँ।"

एमेलिन ने पूछा - "क्‍यों माँ, ऐसा करने से तो मैं अच्‍छी नहीं लगूँगी। क्‍या कोई भला आदमी ऐसे बाल देखकर खरीदेगा?"

सूसन ने कहा - "हाँ, खरीद सकता है।"

"कैसे?"

"भले आदमी साफ और सीधे-सादे लोगों को अधिक पसंद करते हैं, बनाव-शृंगार और ठाट-बाट उन्‍हें नहीं रुचता। ठाट-बाट देखकर तो लंपट ही रीझकर खरीदते हैं। बेटी, ये सब बातें मैं तुझसे ज्‍यादा जानती हूँ। मैं तुझसे कहती हूँ कि अगर हम लोग अलग-अलग बिके तो तू जहाँ रहे, अपने धर्म से रहना। मेरी इस बात को याद रखना कि प्राण दे देना, पर धर्म न खोना। अगर कोई गोरा तेरा धर्म भ्रष्‍ट करने पर तुल जाए तो आत्‍म-हत्‍या करके अपने धर्म की रक्षा करना। मेम साहब के उपदेशों को मत भूलना। अपनी बाइबिल और भजनों की पुस्‍तक हमेशा साथ रखना। ईश्‍वर को मत भूलना, वह सदा तेरी रक्षा करेगा।"

सूसन बड़े निराश-हृदय से कन्‍या को उपदेश दे रही थी। वह सोचती थी कि कल उसकी परम-सुंदरी पवित्र-हृदया कन्‍या को वही नीच अंग्रेज खरीद लेगा, जिसके पास धन होगा। वह बार-बार कहने लगी - "मेरी आँखों की पुतली एमेलिन आज यदि सुंदर न होकर कुरूप होती और शिक्षित न होकर मूर्ख होती तो अच्‍छा था।"

ऐसे समय में ईश्‍वर की प्रार्थना करने और उस पर भरोसा रखने के सिवा और किसी तरह धीरज नहीं आ सकता। पर आज-तक इस गोदाम में से न मालूम ईश्‍वर से ऐसी कितनी ही जीवित प्रार्थनाएँ और पुकारें हुई हैं, जिनका कोई ठिकाना नहीं? क्‍या ईश्‍वर इनकी प्रार्थनाएँ नहीं सुनता? क्‍या वह इन्‍हें भूल गया? कदापि नहीं। वह परम न्‍यायी, परम करुणामय, दीनदयाल भगवान किसी छोटी-से-छोटी आत्‍मा तक को एक पल के लिए नहीं भूलता। अरे पाखंडी, निर्मोही, अर्थपिशाच गोरे बनियों, तुम सबको निश्‍चय ही इस पाप का फल भोगना पड़ेगा। तुम नहीं तो तुम्‍हारी संतानें अपने रक्‍त से इस पाप का प्रायश्चित करेंगी। जिस बाइबिल को तुम लोग अपना धर्मशास्‍त्र कहते हो, उसी बाइबिल में लिखा है, 'गले में पत्‍थर बाँधकर समुद्र में डूब जाने से जो हानि होती है, उससे भी अधिक हानि उन लोगों को उठानी पड़ेगी, जो एक छोटी-से-छोटी आत्मा का भी अपमान करते हैं।'

देखते-देखते रात गहरी हो चली। सूसन और उसकी कन्‍या हृदय के पट खोलकर ईश्‍वर को पुकारने लगीं। नाना प्रकार के भजन गाने लगीं।

ओ सूसन, ओ एमेलिन, तुम जन्‍म भर के लिए एक-दूसरे से बिदा माँग लो। आज की रात समाप्ति के साथ-साथ तुम्‍हारे भाग्‍य का सूर्य भी सदा के लिए अस्‍त हो जाएगा।

सवेरा हुआ। सब लोग अपने-अपने काम में लग गए। स्‍केग नाम का साहब आज की नीलामी का प्रबंध करने लगा। बिकने के लिए आए हुए दास-दासियों को वह तरतीब से खड़ा करने लगा। नीलामी बोलने से पहले खरीदारों के अंतिम दिखावे के लिए उसने सबको एक पंक्ति में खड़ा किया।

स्‍केग साहब एक हाथ में चुरुट और दूसरे में नीलाम की पुस्‍तक लिए हुए इधर-से-उधर टहलकर देखने लगा। देखते-देखते सूसन और एमेलिन के पास जाकर बोला - "तेरे वे घुँघराले बाल क्‍या हुए?"

एमेलिन ने सकपकाकर उसकी ओर देखा। उसकी माता ने कहा - "मैंने इसे बाल साफ करके जूड़ा बाँधने को कहा था। बिखरे और बलखाए हुए बाल उड़-उड़कर मुँह पर पड़ते थे। जूड़ा उससे साफ और अच्‍छा दीखता है।"

स्‍केग ने चाबुक सँभालकर उसे धमकाते हुए कहा - "जा जल्‍दी! जैसे बाल थे, वैसे करके ला।" फिर उसकी माता से कहा - "तू जाकर ठीक करा दे। घुँघराले बाल रहने से सौ रुपए ज्‍यादा मिलेंगे।"

धीरे-धीरे नीलाम-घर भर गया। खरीदार आपस में तरह-तरह की बातें करने लगे। एक खरीदार एडाल्‍फ का बदन जाँच कर देख रहा था। तब तक किसी ने कहा - "ओहो, अल्‍फ्रेड! कहो, तुम कहाँ चले?"

अल्‍फ्रेड ने कहा - "भाई, मुझे एक अरदली की जरूरत है। मैंने सुना कि सेंटक्‍लेयर के गुलाम बिक रहे हैं। इससे यहाँ खरीदने आया हूँ।"

उस आदमी ने कहा - "सेंटक्‍लेयर के गुलाम खरीदोगे? मैं तो कभी ऐसा नहीं कर सकता।" सेंटक्‍लेयर के यहाँ के गुलाम आदर पा-पाकर, बिगड़कर, दो कौड़ी के हो गए हैं।

अल्‍फ्रेड बोला - "इसका मुझे डर नहीं। मेरे हाथ में पड़ते ही इनका बाबूपन हवा हो जाएगा। दो दिन में समझ जाएँगे कि मैं सेंटक्‍लेयर नहीं हूँ। यह आदमी शक्‍ल-सूरत का अच्‍छा है, इसी को लूँगा।"

उस आदमी ने कहा - "यह बड़ा फिजूल खर्च है।"

अल्‍फ्रेड ने जवाब दिया - "हमारे यहाँ इसकी दाल नहीं गलेगी। दो बार दंडगृह की हवा खिलाई कि इसके होश ठिकाने आ जाएँगे।"

टॉम बड़ी विन्रम दीनता से हर एक खरीदार का मुँह देखने लगा। वह देखना चाहता था कि इनमें कोई दयालु खरीदार भी है या नहीं। पर जितने आदमियों को उसने देखा, उनमें कोई अच्‍छा नहीं जान पड़ा। किसी के चेहरे पर क्रोध झलक रहा था, तो कोई देखने में बड़ा निर्दयी मालूम पड़ता था, कोई कामी दिखाई देता। यों ही सैंकड़ों मुख देखे, पर सेंटक्‍लेयर की-सी मधुर और शांत मूर्ति कहीं न दिखाई दी।

नीलामी आरंभ होने ही को थी कि एक मजबूत-सा नाटा आदमी आया और गुलामों को टो-टोकर, बदन में हाथ लगा-लगा कर देखने लगा। इसके चेहरे से मालूम होता था, मानो नरक का द्वारपाल हो। इसे देखते ही टॉम का हृदय भयभीत हुआ और बड़ी घृणा पैदा हुई। इस आदमी ने एक-एक करके सब दास-दासियों को परखा और अंत में टॉम के पास पहुँचकर तथा उसके मुँह में उंगली डाल कर देखने लगा, फिर पैरो की ताकत देखने के लिए उसे कुदवाया। परीक्षा समाप्‍त होने पर टॉम से बोला - "सबसे पहले तू कहाँ के दास-व्‍यापारी के यहाँ था?"

टॉम ने कहा - "केंटाकी में, साहब!"

"क्‍या क्‍या करता था?"

"अपने मालिक के खेत का काम देखता था।"

"ठीक है।"

टॉम से हटकर वह एडाल्‍फ के पास पहुँचा, पर घृणा से उसके मुख की ओर देखकर वहाँ जा पहुँचा, जहाँ सूसन और एमेलिन खड़ी थीं। उसने अपना व्रज-सा कठोर हाथ फैलाकर एमेलिन को अपने निकट खींच लिया। एमेलिन भय से काँप उठी। उसने एमेलिन के कंधे, छाती और भुजाओं पर हाथ लगाकर उसकी शारीरिक दशा देखी, फिर सतृष्‍ण नयनों से बारंबार उसकी ओर ताकने लगा। इसके बाद उसे उसकी माता की ओर धकेलकर चलता बना।

जिस समय वह नर-पिशाच जैसा खरीदार एमेलिन को देख रहा था, उस समय उसकी माता का हृदय भय और शंका से काँप रहा था। एमेलिन स्‍वयं भी उसका मुख देखकर बहुत डर गई और रोने लगी। उसका रोना देखकर नीलामवाले बहुत बिगड़े और बोले - "यहाँ रोना-झींकना मचाएगी तो डंडे पड़ेंगे।"

अब नीलाम आरंभ हुआ। नीलाम की चौक पर पहले एडाल्‍फ खड़ा किया गया। दो-चार डाक बोलने के बाद उसे अल्‍फ्रेड ने खरीद लिया। यों एक-एक करके सेंटक्‍लेयर के सब दास-दासियों को भिन्‍न-भिन्‍न लोगों ने खरीद लिया। अंत में टॉम की बारी आई।

नीलाम की चौकी पर खड़ा होकर टॉम इधर-उधर देखने लगा। पाँच-छह डाक होने के बाद वह भी बिक गया। जिस नाटे-से आदमी को देखकर टॉम को भय और घृणा हुई थी, उसी ने उसे खरीदा। दाम चुकाकर उसे नीचे उतारा और गला पकड़कर एक किनारे थोडी दूर बिठा दिया।

इसके बाद सूसन का नीलाम हुआ। पर नीलाम की चौकी से उतरते समय वह सतृष्‍ण नयनों से पीछे घूमकर अपनी कन्‍या की ओर देखने लगी। उसकी कन्‍या ने उसकी ओर हाथ फैलाया। सूसन ने अपने खरीदार से बड़ी दीनतापूर्वक कहा - "स्‍वामी, कृपा करके मेरी कन्‍या को भी आप ही खरीद लीजिए।"

उसका खरीदार औरों की निस्‍बत सहृदय जान पड़ता था। उसने कहा - "कोशिश करूँगा। पर इसके दाम ऊँचे जाएँगे। मुझे उम्‍मीद नहीं कि मैं उतने दाम दे सकूँगा।"

एमेलिन नीलाम की चौकी पर खड़ी की गई। उसका वह सरलतापूर्ण मुख-कमल डर से पीला पड़ गया, किंतु उसके सौंदर्य में कुछ कमी नहीं आई थी, उलटे एक अनुपम नवीन सौंदर्य का भाव उसके मुख पर छा गया। यह देखकर उसकी माता मन-ही-मन, पछताकर कहने लगी, इससे तो अच्‍छा था कि यह कुरूप होती। एमेलिन को खरीदने की इच्‍छा से बहुत लोगों ने डाकें बोलीं। एमेलिन की माँ का खरीदार भी दोन-तीन डाक बढ़ा, पर देखते-ही-देखते डाक इतनी बढ़ी कि उसने अपनी हिम्‍मत के बाहर दाम बढ़े देखकर मौन साध लिया। यों ही धीरे-धीरे कई खरीदार चुप हो गए। अंत में केवल दो आदमियों की बोली रह गई। इनमें एक वही टॉम का खरीदार था और दूसरा था इस प्रदेश का एक धनी और कुलीन पुरुष। अंत में आखिरी डाक में टॉम के खरीदार ने ही एमेलिन को खरीदा। नर-पिशाच साइमन लेग्री ही उस सरल-हृदय सच्‍चरित्र पंचदश-वर्षीया बालिका के जीवन का मालिक हुआ। इस दुरात्‍मा के हाथ से एमेलिन की रक्षा करनेवाला दीनबंधु भगवान के सिवा और कोई नहीं था।

एमेलिन सावधान! अपनी माता का अंतिम उपदेश सदा याद रखना! प्राण देना, पर धर्म मत खोना।

एमेलिन के इस प्रकार बिक जाने पर उसकी माता बिलख-बिलखकर रोने लगी। उसकी माता का खरीदार कुछ सहृदय था। इससे वह मन-ही-मन में कुछ दु:खित हुआ। पर ऐसे दृश्‍य आठ पहर चौंसठ-घड़ी इन लोगों की आँखों के सामने फिरा करते थे। इससे इनका कलेजा पक जाता था।

अत: वह आनंदपूर्वक अपनी खरीदी हुई संपत्ति सूसन को लेकर अपने घर ओर रवाना हुआ।

इस नीलाम के दो-तीन दिन बाद क्रिश्चियन फर्म बी.एंड. के वकील ने सूसन और एमेलिन की बिक्री के रुपयों में से अपना कमीशन और नीलाम खर्च काटकर बाकी रुपए उस कंपनी के क्रिश्चियन मालिक को भेज दिए।

34. नाव में

रेड नदी में एक छोटी-सी नाव पाल डाले दक्षिण की ओर बढ़ी चली जा रही है। नाव में कई दास-दासियों के रोने और सिसकने की आवाजें आ रही हैं। टॉम इन्‍हीं के बीच बैठा है। उसके हाथ-पैर जंजीर से जकड़े हुए हैं, पर उसका हृदय जिस दु:ख से दबा जा रहा है, उस दु:ख का बोझ हथकड़ी-बेड़ियों से भी अधिक है। उसकी सारी आशा-आकांक्षाओं पर पानी फिर गया है। पीछे छूटते हुए नदी-तट के वृक्षों की भाँति उसके सामने जो कुछ था, वह एक-एक करके पीछे छूट गया। अब वे नहीं दीख पड़ेंगे, अब वे नहीं लौटेंगे। केंटाकी का घर, स्‍त्री, पुत्र, कन्‍या और उस उदार स्‍वामी का परिवार आज कहाँ है? सेंटक्‍लेयर का घर। उस घर की वह विपुल शोभा-समृद्धि, इवा का वह देवोपम मुखचंद्र। वह उन्‍नतचेता सुंदर प्रफुल्‍लमूर्ति, कोमल-प्राण सेंटक्‍लेयर, वह परिश्रम-रहित जीवन, वह सुख के विश्राम दिवस - सब एक-एक करके जाते रहे, अब उनकी जगह रह गई है स्‍वप्न की-सी स्‍मृति।

टॉम ने नए खरीदार लेग्री साहब ने न्‍यू अर्लिंस की कई आढ़तों से आठ दास-दासी खरीदे थे। इनमें दो-दो को एक बंधन में जकड़ रखा था। लेग्री साहब कुछ दूर नाव पर चलने के बाद, राह में नदी के मुहाने पर, सबको साथ लेकर 'पॉट्रेस्‍ट' नामक जहाज पर सवार हुआ। सब दास-दासियों को सवार करा लेने के बाद वह टॉम के पास आया। सेंटक्‍लेयर के यहाँ टॉम सदा अच्‍छे कपड़े पहना करता था। बेचने के पहले आढ़तवालों ने टॉम को अपना सबसे बढ़िया कपड़ा पहनने का हुक्‍म दिया था। उस समय का पहना बढ़िया कपड़ा अभी तक उसके बदन पर था। लेग्री ने आकर उससे कहा - "खड़ा हो!"

टॉम खड़ा हो गया।

अब लेग्री ने उससे वह बढ़िया कपड़ा उतार देने को कहा। टॉम उतारने लगा। पर हाथ जंजर में जकड़े होने से वह झटपट उतार न सका। इस पर लेग्री ने स्‍वयं जोर से उसके कपड़े खींचकर उतारे। फिर वह सेंटक्‍लेयर के दिए हुए उसके बक्‍से की ओर घूमा। इसे उसने पहले ही खोल कर देख लिया था। उसमें से पुराना कोट और पतलून निकालकर टॉम को पहनने को दिया। टॉम इस पतलून को घूड़साल में काम करने के वक्‍त के सिवा और कभी न पहनता था। इस समय लेग्री की आज्ञानुसार वह फटीपुरानी पतलून उसे पहननी पड़ी। फिर लेग्री ने उसके बूट उतरवाकर एक जोड़ी फटा जूता पहनने को दिया। वह भी उसने पहन लिया।

इस जल्‍दी में भी, कपड़ों की अदला-बदली में, टॉम ने अपने कोट की पॉकेट से बाइबिल निकाल ली, नहीं तो उसे इससे भी हाथ धोना पड़ता। कपड़े उतारते ही लेग्री उसकी जेबें टटोलने लगा कि उनमें क्‍या रखा है। कोट की पाकेट से इवा का दिया हुआ एक रेशमी रूमाल निकला। उसे तुरंत उसने अपनी जेब के हवाले किया। फिर दूसरी जेब से एक प्रार्थना-पुस्‍तक निकाली। टॉम जल्‍दी में इसे निकालना भूल गया था। इस पुस्‍तक को देखते ही लेग्री क्रोध से जल उठा। बोला - "क्‍यों रे, तेरा गिर्जे से ताल्‍लुक रहता है?"

टॉम ने दृढ़ता से कहा - "जी सरकार!"

लेग्री ने आग-बबूला होकर कहा - "मैं तेरे यह सब पाखंड जल्‍दी ही निकाल दूँगा। मैं अपने खेत के कुली-कुबाड़ियों को भजन या उपासना नहीं करने देता। इसे अच्‍छी तरह समझ ले। अब तू अपने मन में जान ले कि मैं ही तेरा गिर्जा और मैं ही तेरा सब-कुछ हूँ। जो मैं कहूँगा, वही तुझे करना पड़ेगा।"

लेग्री ने बड़ी लाल-पीली आँखें करके टॉम से ये बातें कहीं। उस समय टॉम चुप था, पर उसकी अंतरात्‍मा कह रही थी - नहीं, कभी नहीं, न तू मेरा गिर्जा है, न कुछ है। इस समय बाइबिल का वह वाक्‍य, जो सदा इवा उसके सामने पढ़ा करती थी, उसे याद आया - जान पड़ा, मानो उसे धीरज दिलाने के लिए कहीं से आवाज आ रही है - "डरना मत; क्‍योंकि मैंने तेरा उद्धार किया है।... मैंने तुझे अपना नाम दिया है। तू मेरा ही होगा!"

पर लेग्री के कानों में यह ध्‍वनि नहीं पड़ी। पाप-पूर्ण कर्णों में यह ध्‍वनि प्रवेश नहीं कर सकती थी। टॉम के नीचे किए हुए चेहरे की ओर जरा देर लेग्री देखता रहा, फिर दूसरी ओर को चल दिया। सेंटक्‍लेयर ने टॉम को कुछ कीमती कपड़े दिए थे। अर्थपिशाच लेग्री ने लोभ में पड़कर टॉम का सब-कुछ नीलाम कर डाला, यहाँ तक कि संदूक भी बेच दिया और जो कुछ मिला, सब हड़प गया। कानून से दासों का किसी चीज पर अधिकार नहीं है। इसी से जब टॉम को लेग्री खरीद चुका तो उसके सारे माल-असबाब का भी वही मालिक हो गया। इस नीलाम के समय टॉम पर क्‍या बीती, यह वही जानता था।

माल-असबाब को नीलामकर चुकने पर लेग्री फिर टॉम के पास पहुँचकर बोला - "टॉम, तेरा जो कुछ असबाब का झंझट था, सब मैंने नीलाम में पार कर दिया। अब जो कपड़े तेरे पास हैं, उन्‍हें सँभालकर रखना। एक बरस के पहले मेरे यहाँ दूसरे कपड़े नहीं मिलेंगे। मैं अपने यहाँ के हब्शियों को साल में बस एक बार कपड़े देता हूँ।"

इसके बाद जहाँ एमेलिन दूसरी स्‍त्री के साथ जंजीर में बँधी बैठी थी, वहाँ लेग्री पहुँचा। उसने एमेलिन की ठोड़ी पकड़कर कहा - "मेरी प्‍यारी, उदासी को छोड़ो!"

वह सच्‍चरित्र बालिका भय और घृणा से उसकी ओर देखने लगी। यह देखकर उसने कहा - "इस तरह मुँह बनाने से काम नहीं चलेगा। यह सब छोड़ो। मेरे सामने सदा खुश रहना पड़ेगा। सुनती है न?"

फिर एमेलिन के साथ जंजीर से बँधी हुई दूसरी स्‍त्री को धक्‍का देकर बोला - "अरी बुढ़िया, यह हांडी-सा मुँह बनाए क्‍या पड़ी है? तुझसे कहता हूँ, जरा हँसकर बोल। यह मुँह बनाना छोड़ दे।"

दो-चार कदम पीछे हटकर और फिर आगे बढ़कर वह बोला - "मैं तुम सभी से कहता हूँ, मुँह इधर करके एक बार मेरी ओर देखो, ठीक मेरी आँखों की ओर ताको। (जोर से पृथ्‍वी पर पैट पटककर) एक बार, एक नजर मेरी ओर देखो।"

मारे डर के सबकी आँखें उसकी ओर लग गईं। फिर वह लोहे का मुग्‍दर-सा अपना मुक्‍का दिखाकर कहने लगा - "जरा इस मुक्‍के की ओर देखो। यह मुक्‍का लोहे से भी सख्‍त है। हब्शियों को ठोकते-ठोकते ही हाथ ऐसा कड़ा हो गया है।"

इतना कहते-कहते अपना वह मुक्‍का बँधा हुआ हाथ टॉम के मुँह के पास ले गया। टॉम डरकर पीछे सरक गया। फिर लेग्री कहने लगा - "मैं तुम सबको समझाए देता हूँ, मैं खेत में रखवाला नहीं रखता, सब काम खुद ही देखता-सुनता हूँ। तुम सभी को अच्‍छी तरह काम करना पड़ेगा। जब जो बात बोलूँगा, उसकी तामील तुरंत करनी पड़ेगी। इसी ढंग से मैं काम लेता हूँ। मेरे यहाँ दया-माया से कोई सरोकार नहीं। इसे तुम लोग खूब समझ लो। मुझे वह सब दया-माया दिखलाना पसंद नहीं है।"

उसकी बातें सुनकर दास-दासियों की जान सूख गई और सब ठंडी साँसें लेने लगे। कुछ देर बाद वह शराब पीने के लिए जहाज के दूसरे कमरे में जाने लगा। उसके पास ही कोई भलामानस आदमी खड़ा था। उससे वह कहने लगा - "मैं अपने हब्शियों के साथ इसी तरह का बर्ताव आरंभ करता हूँ। मेरी यह चाल है कि खरीदकर लाते ही मैं इन्‍हें सब समझा देता हूँ कि किस तरह से इन्‍हें मेरे साथ रहना होगा।"

उस अपरिचित भलेमानस ने बड़े गौर से उसकी ओर इस तरह देखा, मानो कोई पंडित किसी नई वस्‍तु की जाँच कर रहा हो। फिर कहा - "बेशक!"

लेग्री ने और आगे कहा - "हाँ, मैं ऐसे नाजुक-नाजुक हाथोंवाला खेतिहर नहीं हूँ कि कुलियों को कोड़े लगाने का काम रखवाले को सौंपूँ। यह देखिए, मेरी मुट्ठी और अंगुलियाँ एकदम फौलाद की मानिंद है। इस जगह का हाथ का मांस पत्‍थर-सा कड़ा हो गया है। और कोई बात नहीं, यह हब्शियों को ठोकते-ठोकते ऐसा हो गया है।"

उस अपरिचित ने लेग्री का हाथ देखकर कहा - "बेशक, बहुत कड़ा हो गया है; पर मैं समझता हूँ कि इस अभ्‍यास से तुम्‍हारा हृदय इससे भी ज्‍यादा सख्‍त हो गया है।"

लेग्री ने हँसते हुए कहा - "हाँ, क्‍यों नहीं, यह तो ठीक ही है। मैं काम में दया-माया के चक्‍कर में नहीं पड़ता।"

"तुमने बहुत अच्‍छे दास-दासी खरीदे हैं।"

"हाँ, अच्‍छे ही हैं। यह जो टॉम दीख पड़ता है, इसकी सब लोगों ने तारीफ की थी। इसके लिए मुझे कुछ ज्‍यादा देना पड़ा, पर इससे काम भी खूब लूँगा। लेकिन इसने कुछ बुरी बातें सीख रखी हैं। धर्म की ओर इसका बड़ा झुकाव है, पर यह सब मैं जल्‍दी ही निकाल बाहर करूँगा। यह अधेड़ दासी खूब सस्‍ते में हाथ लगी। मैं समझता हूँ, इसे कोई बीमारी होगी। सोचता हूँ, दो बरस तो चलेगी, और दो बरस में मैं खूब मेहनत लेकर अपनी कीमत वसूल कर लूँगा। बहुत-से खेतिहर, बीमार पड़ जाने पर मर जाने के डर से, कुलियों से अधिक काम नहीं लेते। पर मेरा वैसा हिसाब नहीं है। बीमार हो या अच्‍छा, बँधा हुआ काम करना ही पड़ेगा। थोड़ा काम करके चार बरस जीने से जो नतीजा निकला है, ज्‍यादा मेहनत करके दो बरस जीने से भी वही नतीजा निकलता है। एक हब्‍शी से थोड़ा काम लेकर ज्‍यादा दिन जिलाने से कोई फायदा नहीं होता। ज्‍यादा मेहनत लेने से जल्‍दी मर जाए तो फिर उसके बदले में एक और नया गुलाम खरीद लेने से अधिक नफे की उम्‍मीद रहती है।"

अपरिचित ने पूछा - "तुम्‍हारे खेत में गुलाम साधारणत: कितने वर्ष जीते हैं?"

लेग्री ने जवाब दिया - "इसका कोई हिसाब नहीं। कोई कुछ कम, कोई कुछ ज्‍यादा! लेकिन मामूली तौर से जवान हो तो छ:-सात बरस और चालीस के पार हो तो दो-तीन बरस से ज्‍यादा नहीं टिकते। पहले बीमार पड़ने पर मैं भी हब्शियों को दवा दिया करता था और कंबल देता था। लेकिन आखिर में नतीजा कुछ नहीं निकला, नाहक में चीजों की बरबादी होती थी। अब इन अड़ंगों से मैं दूर रहता हूँ। बीमारी में भी काम लेता हूँ। मर जाने पर और नए खरीद लेता हूँ। इससे हर तरह की सहूलियत रहती है।"

वह अपरिचित आदमी लेग्री के पास से हटकर थोड़ी दूर पर बैठे हुए एक युवक के निकट जाकर बैठ गया। वह देर से इन लोगों की सारी बातें सुन रहा था।

उस पहले आदमी ने इस युवक से कहा - "दक्षिण प्रदेश के सभी खेतिहर इस आदमी की भाँति सख्‍त नहीं हैं।"

युवक ने कहा - "ऐसा न होना ही अच्‍छा है।"

पहला आदमी बोला - "यह आदमी तो महानीच और बदमाश है। इसका बर्ताव तो सचमुच ही पशुओं-जैसा है।"

युवक ने कहा - "पर आपके देश के कानून की यह खूबी है कि वह ऐसे ही निष्‍ठुर और नीच आदमियों को अनगिनत नर-नारियों के जीवन का अधिकारी बनने का अवसर देता है। ऐसा कोई कानून आपके यहाँ नहीं है, जिसकी रू से ऐसे निष्‍ठुर आदमियों के अत्‍याचार से इन बेचारे गुलामों की रक्षा हो सके। खेतवालों में अधिकांश ऐसे ही हृदयहीन होते हैं।"

पहला आदमी बोला - "खेतवालों में जहाँ बुरे बहुत हैं, वहाँ कुछ भले भी हैं।"

युवक ने कहा - "दलील के लिए मान भी लिया जाए कि आपके खेतवालों में भले भी हैं, तो भी मैं कहता हूँ कि अत्‍याचार और निष्‍ठुरता के लिए वही पूरी तरह दोषी हैं, क्‍योंकि ऐसे ही दो-चार भलेमानसों के कारण यह घृणित प्रथा अब तक दूर नहीं हुई। यदि सभी खेतवाले लेग्री-सरीखे होते, तो क्‍या फिर भी यह प्रथा बनी रहती?"

इधर जब इन दोनों में ये बातें हो रही थीं, उधर जहाज में दूसरे स्‍थान पर एक जंजीर में जकड़ी हुई एमेलिन और लूसी भी आपस में बातें कर रही थीं।

एमेलिन ने कहा - "तुम किसके यहाँ रही थी?"

लूसी बोली - "एलिस साहब के यहाँ थी। तुमने शायद उन्‍हें देखा हो।"

"क्‍या वह तुम्‍हारे साथ अच्‍छा बर्ताव करते थे?"

"बीमार पड़ने के पहले तो वह बहुत ही अच्‍छा बर्ताव करते थे पर बीमार होने के बाद उनका स्‍वभाव बहुत चिड़चिड़ा हो गया, और सबसे रूखा व्‍यवहार करने लगे। मुझे रात-रात भर उनकी टहल के लिए जागना पड़ता था। पर एक दिन मुझे नींद आ गई, इस पर उन्‍होंने गुस्‍सा करके कहा कि तुझे किसी खूब सख्‍त आदमी के हाथ बेचूँगा।"

"तुम्‍हारे दु:ख-दर्द का कोई साथी है?"

"मेरा पति है। वह लुहार का काम करता है। मालिक ने उसे एक दूसरी जगह किराए पर दे रखा है। मेरे चार लड़के हैं, लेकिन मुझे ऐसी जल्‍दी में नीलाम-घर में भेज दिया कि मैं अपने स्‍वामी या लड़कों से एक बार भी नहीं मिल पाई।"

यह कहते-कहते लूसी रोने लगी। किसी का दु:ख देखकर मनुष्‍य के मन में स्‍वभावत: उसे धीरज देने की इच्‍छा होती है। लूसी की दु:खगाथा सुनकर एमेलिन उसे कुछ धीरज दिलानेवाली बात कहना चाहती थी, पर उसकी समझ में न आया कि क्‍या कहे। इस भयंकर मालिक के डर से वे दोनों इतनी डरी हुई थीं कि हृदय से कोई बात ही न उठती थी।

घोर संकट के समय मनुष्‍य को धार्मिक विश्‍वास बड़ी सांत्‍वना देता है। लूसी अपढ़ होने पर भी धर्म में बड़ा विश्‍वास रखती थी। एमेलिन ने भी धर्म के विषय में नियमित शिक्षा पाई थी और उसका हृदय धर्म की भावना से भरा था। पर ये ऐसी दुर्दशा में पड़ गई थीं, ऐसे राक्षस-प्रकृति लंपट अंग्रेज के हाथ में पड़ी थीं कि इस दशा में धार्मिक मनुष्‍य भी ईश्‍वर पर भरोसा रखकर सांत्‍वना प्राप्‍त कर सकता है या नहीं, इसमे संदेह है।

जहाज धीरे-धीरे बढ़ने लगा। अंत में एक छोटे कस्‍बे के पास आकर उसने लंगर डाला। लेग्री अपने दास-दासियों को साथ लेकर वहीं उतर गया।

35. नरक-स्थली

बड़े ही दुर्गम और बीहड़ रास्‍ते से एक गाड़ी चली आ रही है। उसके पीछे-पीछे टॉम और कई गुलाम बड़ी कठिनाई से मार्ग पार कर रहे हैं। गाड़ी के अंदर हजरत लेग्री साहब बैठे हुए हैं। पीछे की ओर माल-असबाब से सटी दो स्त्रियाँ बँधी हुई बैठी हैं। यह दल लेग्री साहब के खेत की ओर जा रहा है।

यह जन-शून्‍य मार्ग मुसाफिरों के लिए वैसे ही कष्‍टकर था; पर स्‍त्री, पुत्र और पिता-माता से बिछुड़े हुए गुलामों के लिए तो यह और भी दु:खदायक था। इस दल में अकेला लेग्री ही ऐसा था, जो मस्‍त चला जा रहा था। बीच-बीच में वह ब्रांडी का एकाध घूँट लेता जाता था। कुछ दूर आगे बढ़ने पर उसको नशा चढ़ आया। उससे उत्तेजित होकर अपने गुलामों को गाने का हुक्‍म दिया। भला उन दु:खी हृदयों से कहीं संगीत की ध्‍वनि निकल सकती थी? वे सब एक-दूसरे का मुँह ताकने लगे। लेकिन लेग्री ने उनपर चाबुक फटकारते हुए कहा - "गाओ सूअरो, देर क्‍यों करते हो।"

तब टॉम ने गाना आरंभ किया :

मेरे यरूशलम सुख-धाम,

कितना मधुर तुम्‍हारा नाम।

नाश जब होगा दु:ख का फंद,

लूँगा तब दर्शन-आनंद!

लेग्री को टॉम का गाना बिल्‍कुल पसंद नहीं आया, उल्‍टा वह गुस्‍से से उस पर चाबुक चलाकर बोला - "रहने दे अपने भजन-वजन! मैं नहीं सुनना चाहता। मैं एक मजेदार गीत सुनना चाहता हूँ।" अब लेग्री के साथ उसका जो एक पुराना नौकर था, वह गाने लगा-

तुमको कहता कौन मनुज, बाबा, तुम राक्षस-अवतार।

हरते हृदय-हारिणी निज पत्‍नी की गर्दन मार ।।बाबा.।।

कपि-स्‍वभाव हनुमत के चेले, ये सब हैं तब पापड़ बेले।

स्वाँग सभ्‍यता के वश खेले, केवल सभा-मंझार ।।बाबा.।।

ईसा मूसा का सिर खाया, और सकल उपदेश भुलाया।

इब्राहीम दास दल भाया, थे जो कई हजार ।।बाबा.।।

उस हब्‍शी गुलाम के इस तरह गला फाड़-फाड़कर चिल्‍लाने पर लेग्री ऐसा मस्‍त हुआ कि खुद भी उसी के सुर-में-सुर मिलाकर चीखने लगा। रास्‍ते भर मालिक और नौकर दोनों यों ही गाते हुए चले जाते थे।

थोड़ी देर बाद लेग्री ने एमेलिन की ओर घूम-घूमकर उसके कंधे पर हाथ धरते हुए कहा - "प्‍यारी जान, अब हमारा घर आ पहुँचा।"

लेग्री ने जब एमेलिन का तिरस्‍कार किया था, तब वह बहुत ही डरी थी। पर अब, जब इस नीच ने, प्‍यारी जान कहकर उसके कंधे पर हाथ रखा, तब उसने सोचा कि इस मधुर व्‍यवहार की अपेक्षा लेग्री यदि उसे ठोकर मारता तो कहीं अच्‍छा था। लेग्री की आँखों का भाव देखते ही एमेलिन की छाती धड़कने लगी। लेग्री के छूने से वह और पीछे हट गई और पूर्वोक्‍त रमणी के साथ सटकर उसकी ओर ऐसी कातर दृष्टि से देखने लगी जैसे संकट के समय बच्‍चा माँ की ओर देखता है।

फिर लेग्री ने उसके कान छूकर कहा - "तुमने कभी झुमका नहीं पहना?"

"जी नहीं! डरत हुए एमेलिन बोली।"

"तुम यदि मेरी बात सुनो और मानो तो मैं घर चलकर तुम्‍हें एक जोड़ा झुमका दूँगा। तुम्‍हें इतना डरने की जरूरत नहीं। मैं तुमसे कोई बहुत मेहनत का काम नहीं लूँगा। तुम मेरे साथ मौज में रहोगी, बड़े आदमियों की तरह रहोगी - सिर्फ मेरी बात माननी पड़ेगी।"

यों ही बातें होते-होते गाड़ी लेग्री के खेत के पास जा पहुँची। पहले इस खेत का मालिक एक अंग्रेज था। वह लेग्री-जैसा नीच नहीं था। उस समय यह जगह भी देखने में आज-जैसी बेडौल न थी। लेकिन उसका दिवाला निकल जाने पर लेग्री ने बड़े सस्‍ते दामों में यह खेत खरीद लिया था। इस समय यह जगह बिल्‍कुल नरक के समान दिखाई पड़ती थी।

गाड़ी जब घर के फाटक पर पहुँची, तब तीन-चार दासों के साथ शिकारी कुत्ते खड़खड़ाहट सुनकर भौंकते हुए बाहर निकले। पीछे से यदि वहाँ का एक हब्‍शी गुलाम इन कुत्तों को न डाँटता और लेग्री उतरकर इन्‍हें न पुकारता, तो जरूर ये कुत्ते टॉम और नए आए दासों को नोच डालते।

लेग्री ने टॉम तथा दूसरे गुलामों की ओर घूमकर कहा - "देखते हो, कैसे बेढब कुत्ते हैं। अगर किसी ने यहाँ से भागने की कोशिश की, तो ये कुत्ते बोटी-बोटी नोच डालेंगे।"

फिर लेग्री ने पुकारा "सांबो!"

एक नर-पिशाच-सा हब्‍शी सामने आकर खड़ा हो गया।

लेग्री ने पूछा - "काम-काज तो खैरियत से चल रहा है?"

"जी हुजूर, बड़ी खैरियत से।"

फिर "कुइंबो" कहते ही एक और नर-पिशाच वहाँ आ पहुँचा। वह अब तक एक किनारे खड़ा अपने मालिक का मन अपनी ओर खींचने की चेष्‍टा कर रहा था।

लेग्री ने पूछा - "उस दिन तुझसे जो काम करने को बताया था, वह सब हुआ?"

"जी हाँ, सब हो गया।"

ये दो काले पिशाच लेग्री के खेत के प्रधान कार्याध्‍यक्ष थे। बहुत दिनों से निर्दयी आचरण करते-करते अब ये ऐसे नृशंस हो गए थे कि कोई भी नीच-से-नीच काम करने में नहीं हिचकते थे। लेग्री ने इन्‍हें शिकारी कुत्तों से भी बढ़कर खूंखार बना दिया था। गुलामी की प्रथा के देश में ये हब्‍शी अंग्रेजों से भी अधिक अत्‍याचार करने लगे थे। और कोई कारण नहीं, केवल इन हब्शियों की आत्‍मा का बेहद पतन हो गया था। संसार में चाहे जिधर नजर उठा कर देखिए, अत्‍याचार-पीड़ित या चिर-पराजित जाति के लोगों के मन में किसी प्रकार का वीरोचित भाव नहीं जमने पाता। ऐसी जाति के हृदय में नीचता, ईर्ष्‍या, द्वेष और हिंसा आदि अनेक प्रकार के दोष अपना घर कर लेते हैं।

अपने खेत का काम खूबी से चलाने के लिए लेग्री ने एक बड़ी चाल खेल रखी थी। वह इस बात को अच्‍छी तरह जानता था कि अत्‍याचार-पीड़ित जाति के लोगों में परस्‍पर किसी प्रकार की सहानुभूति नहीं होती। कुइंबो सांबो से खार खाता था और जलता था और सांबो कुइंबो से। मौका मिलने पर कोई किसी की बुराई करने से न चूकता था और खेत के और गुलाम इन दोनों से द्वेष रखते थे। लेग्री सांबो का कुसूर कुइंबो से और कुइंबो का सांबो से जान लेता था।

लेग्री के सामने उसके दोनों पार्षद सांबो और कुइंबो के खड़े होने पर ऐसा जान पड़ता था, मानो तीन भयानक दानव खड़े हैं। जंगल के खूंखार पशुओं से भी इनकी प्रकृति निकृष्‍ट थी। उनकी वे भयावनी शक्‍लें, डरावनी आँखें और कर्कश आवाज सर्वथा इस स्‍थान के उपयुक्‍त जान पड़ती थीं।

लेग्री ने कहा - "सांबो, इन सबको ठिकाने पर ले जा। यह औरत तेरे लिए लाया हूँ। मैंने तुझसे वादा किया था कि अबकी बार तेरे लिए एक गोरी मेम लाऊँगा। इसे ले जा।" इतना कहकर एमेलिन की जंजीर से बँधी हुई लूसी को खोलकर सांबो की ओर ढकेल दिया।

लूसी चौंककर पीछे हटी और बोली - "सरकार, नव अर्लिंस में मेरा बूढ़ा पति है।"

लेग्री ने कहा - "तो इससे क्‍या हुआ? यहाँ तुझे एक पति नहीं चाहिए? मैं वे सब बातें नहीं सुनता। (चाबुक उठाकर) जा, चुपचाप सांबो के साथ हो ले।"

फिर एमेलिन से बोला - "प्‍यारी, आओ, तुम मेरे साथ अंदर चलो!"

लेग्री ने आँगन में खड़े होकर जब एमेलिन को 'प्‍यारी' कहा, तब घर के झरोखे में से एक स्‍त्री का चेहरा बाहर झाँकते हुए दिखाई दिया। दरवाजा खोलकर लेग्री के अंदर जाते ही उस स्‍त्री ने गुस्‍से से दो-चार बातें सुनाई। इस पर लेग्री ने कहा - "तेरा साझा, चुप रह! जो मेरे जी में आएगा, करूँगा। एक छोड़कर तीन लाऊँगा।"

टॉम अश्रुपूर्ण नेत्रों से एमेलिन की ओर देख रहा था। उसने लेग्री की सब बातें सुनी थीं, पर आगे न सुन सका, क्‍योंकि वह शीघ्र ही सांबो के साथ चला गया।

लेग्री के दासों के रहने का स्‍थान बड़ी ही मैला-कुचैला और गंदा था। घुड़साल की तरह फूस की छोटी-छोटी झोपडियाँ थी। उन सब गंदी झोपड़ियों को देखकर टॉम की जान सूख गई। वह पहले खुद ही एक झोपड़ी में इधर-उधर घूमकर अपनी बाइबिल रखने के लिए कोई जगह ढूँढ़ने लगा। फिर सांबो से बोला - "इनमें से मुझे कौन-सी झोपड़ी मिलेगी?"

सांबो ने कहा - "अभी तो मालूम नहीं, सारी झोपड़ियाँ बंद पड़ी हैं। तुमको कहाँ रखा जाएगा, सो मैं नहीं जानता।"

बड़ी देर के बाद टॉम को एक जगह मिली, पर वह ऐसी जगह थी, जिसके बारे में कुछ कहने की आवश्‍यकता नहीं।

शाम को सब दास-दासी खेत से अपनी-अपनी झोपड़ी को लौटे। इनमें से हर एक के बदन पर फटे-पुराने कपड़े थे, शरीर धूल से लथपथ और मुँह बिल्‍कुल पिचके हुए। अकाल-पीड़ित लोगों की भाँति भूख-प्‍यास से घबराकर वे झोपड़ियों में घुसे। सुबह से शाम तक ये खेत में काम पर पिसे, बीच-बीच में कितनी ही बार कारिंदे की लातें और चाबुकों की मार खाई। अब इस वक्‍त यहाँ आकर इन्‍हें खाने के लिए एक-एक पाव गेहूँ दिया गया। उसी गेहूँ को पीसकर इन्‍हें रोटियाँ पकानी पड़ेंगी। अपना साथी होने लायक कोई आदमी ढूढ़ने की गरज से टॉम हर एक पुरुष और स्‍त्री का मुँह ध्‍यान से देखने लगा, पर यहाँ उसे एक बालक तक में मनुष्‍यात्‍मा की गंध न मिली। पुरुष पशुओं की तरह खूँखार, खुदगर्ज और बेरहम थे; स्त्रियाँ बहुत सताई गई और कमजोर थीं। उनमें दूसरी जो कुछ सबल थीं वे निर्बलों को धकेलकर अपना काम बनाती चली जा रही थी। किसी के मुख पर दया का नामोनिशान तक न था। हर एक दूसरे को वैर-भाव से घूर रहा था। सबको अपने-अपने पेट की चिंता पड़ी थी। वास्‍तव में घोर अत्‍याचार सहते-सहते उनका कलेजा पत्थर जैसा कठोर हो गया था। भूख-प्‍यास के सिवा मानव-प्रकृति की अन्‍य सब प्रकार की आकांक्षाएँ मिट गई थीं। संध्‍या-समय हर एक को जो गेहूँ मिलता, उसे सब अलग-अलग पीसते। दासों की संख्‍या के हिसाब से चक्कियों की संख्‍या बहुत कम थी। इससे बड़ी रात तक चक्कियों की घरघराहट चला करती। जो बलवान थे वे सबसे पहले अपना काम बना लेते, और निर्बलों की भोजन बनाने की बारी सबके अंत में आती।

लेग्री ने सांबो को जो अधिक अवस्‍थावाली स्‍त्री सौंपी थी, उसकी ओर सांबो ने एक थैली गेहूँ फेंककर पूछा - "तेरा नाम क्‍या है?"

स्‍त्री ने कहा - "लूसी।"

"अच्‍छा, लूसी, आज से तुम मेरी औरत हो। यह गेहूँ ले जाकर मेरे और अपने खाने के लिए रोटियाँ पका लो।"

"मैं तुम्‍हारी स्‍त्री नहीं हूँ, कभी होने की भी नहीं। तुम यहाँ से जाओ।"

"फिर ऐसा कहेगी तो डंडे से सिर फोड़ दूँगा।"

"तेर खुशी! अभी मार डाल! जितनी जल्‍दी मौत आए उतना ही अच्‍छा। अब तक मर गई होती तो अच्‍छा था।"

सांबो जब उसे मारने चला तब कुइंबो ने, जो कई स्त्रियों को धकेलकर अपना गेहूँ पीस रहा था, कहा - "खबरदार सांबो, आदमी मारकर तुम काम का नुकसान करते हो। मैं मालिक से कह दूँगा।"

इस पर सांबो ने कहा - "मैं मालिक से कह दूँगा कि तू चार स्त्रियों को धकेलकर अपना गेहूँ पीस रहा था।"

टॉम को सारे दिन पैदल चलना पड़ा था, इससे वह थककर चूर हो गया था। भूख से तबियत परेशान थी, पर ठिकाना नहीं था कि कब खाना नसीब होगा। कुइंबो ने उसके हाथ में एक थैली गेहूँ थमाकर कहा - "ले यह गेहूँ, जा रोटी बना-खा। यह एक हफ्ते की खुराक है।"

करीब आधी रात तक टॉम देखता रहा, पर उसकी गेहूँ पीसने की बारी न आई। रात के एक बजे जब चक्‍की खाली हुई तो उसने देखा कि दो रोगी स्त्रियाँ चक्‍की के पास बैठी हुई हैं। वे बहुत थकी हुई थीं, उनके शरीर में ताकत नहीं थी। यहाँ बहुत पहले आने पर भी अब तक उन्‍हें किसी ने गेहूँ नहीं पीसने दिया।

टॉम ने उठकर पहले उनके गेहूँ खुद पीस दिए और फिर अपने पीसे। यह पहला मौका था। इसके पहले कभी किसी ने दया नहीं दिखाई थी। यहाँ के लिए यह एक अलौकिक बात थी। बहुत मामूली दया का काम होने पर भी टॉम का यह आचरण देखकर उन दोनों स्त्रियों का हृदय कृतज्ञता से भर गया। उनका श्रम-खिन्‍न कठोर मुँह स्‍त्री-सुलभ ममता के भाव से चमक उठा। बदले में उन्‍होंने टॉम की रोटियाँ बना दीं। जब वे दोनों रोटियाँ बना रही थी, टॉम ने चूल्‍हे के पास बैठकर अपनी बाइबिल निकाली। उसके हाथ में पुस्‍तक देखकर एक स्‍त्री ने कहा - "तुम्‍हारे हाथ में यह क्‍या है?"

टॉम ने कहा - "बाइबिल।"

"दीनबंधु, केंटाकी छोड़ने के बाद अब तक बाइबिल के दर्शन नहीं हुए थे।"

टॉम ने चाव से कहा - "तुम क्‍या पहले केंटाकी में थी?"

"हाँ, वहीं थी, और अच्‍छी थी। कभी सोचा भी नहीं था कि ऐसी दुर्दशा में पड़ना होगा।"

दूसरी स्‍त्री ने कहा - "वह कौन-सी पुस्‍तक बताई?"

टॉम बोला - "बाइबिल।"

दूसरी स्‍त्री ने कहा - "बा‍इबिल क्‍या होती है?"

पहली स्‍त्री बोली - "तुमने क्‍या कभी इस पुस्‍तक का नाम नहीं सुना? केंटाकी में मेरी मालकिन कभी-कभी यह पुस्‍तक पढ़ा करती थी। तब मैं भी सुना करती थी। यहाँ तो केवल गाली-गलौज सुनने में आती है। अच्‍छा, तुम पढ़ो, जरा मैं भी सुनूँ।"

टॉम बाइबिल में से पढ़ने लगा- "थके मांदे, भार से दबे हुए मनुष्‍यों, तुम मेरे पास आओ, मैं तुम्‍हें विश्राम दूँगा।"

पहली स्‍त्री ने कहा - "वहा, ये तो बड़ी बढ़िया बात है। ये बातें कौन कहता है?"

टॉम बोला - "ईश्‍वर!"

पहली स्‍त्री ने पूछा - "ईश्‍वर कहाँ मिलेंगे? पता लग जाता तो मैं उनके पास जाती। उनके पास गए बिना मुझे विश्राम नहीं मिलेगा। मेरा शरीर बहुत थक गया है। इस पर सांबो मुझे नित्‍य धमकाता और कोड़े लगाता है। कोई दिन ऐसा नहीं होता कि आधी रात के पहले खाना नसीब हो जाए। खाकर जरा आँख झपकी कि सवेरा हुआ ही दीखता है और चट से खेत में जाने का घंटा बज जाता है। अगर परमेश्‍वर का पता मालूम हो जाता तो उनसे ये सब बातें जाकर कहती। हाय भगवान, अब तो यह कष्‍ट नहीं सहा जाता।"

टॉम ने कहा - "ईश्‍वर यहाँ भी है, और सब जगह है।"

स्‍त्री बोली - "तुम्‍हारी बात पर मेरा विश्‍वास नहीं जमता, ऐसी बातें बहुत बार सुनी हैं कि ईश्‍वर यहाँ है, वहाँ है; पर न मालूम कहाँ है कि हम लोगों का दु:ख देखकर भी वह क्‍यों कुछ नहीं करता। मैं अब झोपड़ी में लेटकर सोती हूँ, यहाँ ईश्‍वर हर्गिज नहीं है।"

यह कहकर वह स्‍त्री चली गई। टॉम अकेला बैठा प्रार्थना करने लगा।

नीले आकाश में जैसे यह चंद्रमा उदय होकर चुपचाप, गंभीरतापूर्वक जगत का निरीक्षण कर रहा है, उसी प्रकार परमात्‍मा चुपचाप गंभीर भाव से जगत् के पाप, ताप और अत्‍याचारों को देख रहा था। जिस समय यह काला गुलाम हाथ में बाइबिल‍ लिए हुए असहाय दशा में उसको पुकार रहा था, उस समय उसकी हर बात उस परमात्‍मा के कानों तक पहुँच रही थी। वह घट-घट व्‍यापी अंतर्यामी है। पर ईश्‍वर यहाँ मौजूद है, इसका विश्‍वास उस अनपढ़ स्‍त्री को कोई कैसे कराए? भला इस अत्‍याचार और यंत्रणा में पड़ी हुई ऐसी स्‍त्री के लिए ईश्‍वर पर विश्‍वास करना कब संभव हो सकता था?

टॉम के मन को आज उपासना के अंत में पूरी शांति नहीं मिली। वह बड़े अशांत चित्त से सोने गया। किंतु झोपड़ी की गंदी हवा और दुर्गंध के मारे उसकी वहाँ ठहरने की इच्‍छा न होती थी, लेकिन करता क्‍या? बेतरह थका हुआ था, जाड़ा भी सता रहा था, लाचार जाकर पड़ रहा। सोते ही आँख लग गई, स्‍वप्‍न आया, मानो झील के किनारे बाग में वह चबूतरे पर बैठा हुआ है और इवा बड़ी गंभीरता से उसके सामने बाइबिल पढ़ रही है।

"जब तुम जल पर से पैदल जाओगे तब मैं तुम्‍हारे साथ रहूँगा और जल तुम्‍हें डुबा न सकेगा। जब तुम अग्नि में कूदोगे, तब भी मैं तुम्‍हारे साथ रहूँगा, इससे अग्नि तुम्‍हें जला न सकेगी। मैं तुम्‍हारा एकमात्र विधाता और परमेश्‍वर हूँ।"

ये शब्द मधुर संगीत की भाँति टॉम के कानों में गूँजने लगे, मानो इवा सोने के रथ पर चढ़ी हुई बार-बार स्‍नेह-दृष्टि से उसकी ओर देखती हुई आकाश में उड़ रही थी और रथ में से उस पर फूलों की वर्षा कर रही थी।

टॉम की आँख खुल गई। लेकिन यह कैसा स्‍वप्‍न है? अविश्‍वासी इसे स्वप्‍न समझकर झूठा मान सकता है, पर जिस दयालु बालिका ने जीते-जी सदा, दूसरों के दु:ख पर आँसू बहाए, क्‍या वह मृत्‍यु के बाद दु:खी को धीरज देने नहीं आ सकती? क्‍या यह संभव है? कदापि नहीं!

36. अत्याचारों की पराकाष्ठा

टॉम ने थोड़े ही समय में लेग्री के खेत के काम ढंग और यहाँ का रवैया समझ लिया। कार्य में वह बड़ा चतुर था, और अपने पुराने अभ्यास तथा चरित्र की साधुता के कारण किसी कार्य में भूल अथवा लापरवाही न करता था। उसका स्‍वभाव भी शांत था, इससे उसने मन-ही-मन सोचा कि यदि मेहनत करने में हीला-हवाला न किया जाए तो कदाचित कोड़ों की मार न सहनी पड़े। यहाँ के भयानक अत्‍याचार और उत्‍पीड़न देखकर उसकी छाती दहल गई। पर वह ईश्‍वर को आत्म-समर्पण करके धीरज के साथ काम करने लगा। उसका मन कभी एकदम निराश न होता था। उसका दृढ़ विश्‍वास था कि ईश्‍वर सदा उसकी रक्षा करेगा। किसी-न-किसी तरह वह मंगलमय पिता मेरा बेड़ा अवश्‍य पार लगाएगा।

लेग्री साहब टॉम का काम-काज विशेष ध्‍यान देकर देखने लगा। उसने शीघ्र ही समझ लिया कि काम में टॉम बड़ा चतुर है, पर टॉम के प्रति उसका जो विद्वेष-भाव था, वह किसी तरह न टला। इसका मूल तत्‍व क्‍या था, यह लेग्री-सरीखे मनुष्‍य की समझ के बाहर था। झूठे का सच्‍चे पर, पापी का पुण्‍यात्‍मा पर और अधर्मी का धर्मात्‍मा पर एक प्रकार का सहज द्वेष-भाव होता है। यही कारण है कि संसार में परम धार्मिक देश सुधारक अपने ही देशवालों की दृष्टि में खटकते हैं। जिनके लिए वे अपनी जान न्‍यौछावर करने को तैयार रहते हैं, वही लोग उनकी जान के ग्राहक बन जाते हैं।

लेग्री इस बात को भली भाँति समझ गया था कि वह गुलामों के साथ जो कठोर बर्ताव और अत्‍याचार करता है, उसे टॉम बड़ी घृणा की दृष्टि से देखता है। पर संसार का नियम है कि भले-बुरे सभी प्रकार के लोग दूसरे की प्रशंसा के भूखे रहते हैं। जब तक दूसरे लोग उनके आचरण और मत का अनुमोदन न करें, तब तक उनके जी को संतोष नहीं होता। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि एक गुलाम तक का प्रतिकूल मत असह्य हो जाता है। इसके सिवा लेग्री ने यह भी देखा कि टॉम जब-जब दूसरे दास-दासियों पर दया प्रकट करता है, उनको कोई कष्‍ट होने पर स्‍वयं दु:खित होता है। लेग्री के खेत में दास-दासियों में परस्‍पर कभी सहानुभूति के चिह्न दिखाई नहीं पड़े थे। इससे टॉम का आचरण उसे असह्य हो गया। टॉम को परिदर्शक के काम पर नियुक्‍त करने के लिए ही लेग्री इतने अधिक दाम देकर उसे खरीदकर लाया था; लेकिन जिस आदमी की प्रकृति अत्‍यंत कठोर न हो वह परिदर्शक के काम के लिए नहीं चुना जा सकता। परिदर्शक को सदा कुलियों की पीठ पर कोड़े लगाने का काम करना पड़ता था। टॉम अन्‍य सब कामों में पक्‍का होने पर भी इस अत्‍यावश्‍यक गुण से सर्वथा वंचित था। इससे लेग्री साहब ने सोचा कि टॉम का हृदय कठिन और निष्‍ठुर बनाने के लिए शीघ्र ही उपाय करना होगा। हृदय को निष्‍ठुर बनाने की नवीन शिक्षा-प्रणाली का उपयोग अविलंब किया गया।

एक दिन प्रात: काल जब सब दास-दासी खेत पर जाने के लिए जुटे, उस समय टॉम ने इस दल में आश्‍चर्य के साथ एक नई स्‍त्री को देखा। टॉम का ध्‍यान उसकी ओर खिंच गया। स्‍त्री लंबी और कमनीय थी। उसके हाथ-पैर कोमल थे और उसके वस्‍त्र भलेमानसों के-से थे। उम्र चालीस-पैंतालीस के लगभग होगी। इसके मुख पर ऐसा भाव था कि जिसने एक बार देख लिया, वह सहज ही भूल नहीं सकता था। इसके भाव से ऐसा जान पड़ता था, मानो इसके जीवन का इतिहास अनेक कष्‍टकर और अदभुत घटनाओं से भरा हुआ है। इसका प्रशस्‍त ललाट, विशाल उज्‍ज्‍वल नेत्र, टेढ़ी और घनी भौंहें मुखमंडल को शोभायमान कर रही थीं। इसके अंगों के गठन से जान पड़ता था कि यह रमणी युवावस्‍था में बड़ी सुंदर रही होगी। लेकिन शोक और दु:ख के चिह्नों ने अब उस सौंदर्य को बिगाड़ दिया था। उसके चेहरे पर घोर विद्वेष, नैराश्‍य और अहंकारजन्‍य एक अद्भुत सहिष्‍णुता का भाव झलक रहा था। वह स्‍त्री कहाँ से आई और कौन है, टॉम को इसका कुछ भी पता न था। पर वह स्‍त्री खेत को जाते समय बराबर टॉम की बगल में चल रही थी। मालूम होता था कि खेत के अन्‍य दास-दासी इसे भली भाँति जानते थे, क्‍योंकि उन नीच-प्रकृति के जीर्ण-शीर्ण कपड़ों से ढके कुलियों में कोई उसे देखकर मुस्‍कराया, किसी ने मजाक उड़ाया, कोई उसे घूरने लगा और किसी-किसी ने बड़ा आनंद मनाया। एक ने कहा - "क्‍यों बीवी, अंत में आ न गई ठिकाने पर! मुझे बड़ी खुशी हुई।"

दूसरे ने कहा - "अब मालूम होगा, बीवी, कि यहाँ गुलछर्रें नहीं उड़ते हैं।"

तीसरा बोला - "देखना है, कैसा काम करती है। काम न करने पर इसकी भी कोड़ों से खबर ली जाएगी।"

चौथे ने कहा - "इसकी पीठ पर कोड़े लगें तो मैं बड़ा खुश होऊँगा।"

उस स्‍त्री ने इस सबकी कुछ भी परवा न की। वह अपनी उसी गंभीर चाल से चलती रही, मानो वह कुछ सुनती ही नहीं। टॉम सदा से सभ्‍यों में रहा था। स्‍त्री की चाल-ढाल से उसने समझ लिया कि जरूर यह कोई सभ्‍य स्‍त्री होगी। पर इसकी यह दुर्दशा क्‍यों हो रही है, इसका कुछ निर्णय न कर सका। स्‍त्री यद्यपि बराबर टॉम के पास चल रही थी, पर टॉम से एक शब्‍द भी न बोली।

टॉम शीघ्र ही खेत पर पहुँचकर काम में लग गया। वह स्‍त्री उससे बहुत दूर न थी। इससे वह बीच-बीच में आँख उठाकर उसके काम की ओर देखता जाता था। उसने देखा कि वह बड़ी फुर्ती से काम कर रही है। औरों की अपेक्षा वह बहुत शीघ्रता और आसानी से कपास चुनने लगी; पर जान पड़ता था कि वह बड़ी विरक्ति, घृणा और अभिमान के साथ यह काम कर रही है।

टॉम के बगल में ही, नीलामी में उसके साथ खरीदी हुई, लूसी नाम की दासी बैठी कपास बीन रही थी। यहाँ आने के बाद यह स्‍त्री बहुत ही कमजोर और बीमार हो गई। वह कपास बीनती जाती थी और क्षण-क्षण में मृत्‍यु को बुलाती जाती थी। कभी-कभी एकदम धरती पर पसर जाती थी। टॉम ने उसके पास सरककर चुपके से अपनी डलिया में से थोड़ी कपास निकालकर उसकी डलिया में डाल दी।

लूसी ने आश्‍चर्य के साथ देखते हुए कहा - "अरे, नहीं-नहीं, ऐसा मत करो। इसके लिए तुम आफत में पड़ जाओगे।"

ठीक इसी समय वहाँ सांबो आ पहुँचा। लूसी को एक ठोकर मारी। इससे लूसी बेहोश हो गई।

तब सांबो टॉम के पास जाकर उसके मुँह और पीठ पर चाबुक फटकारने लगा।

टाप चुपचाप अपना काम करता रहा। पर लूसी को अचेत हुई देखकर परिदर्शक का एक दूसरा साथी नौकर कहने लगा - "अभी इस हरामजादी को होश में लाता हूँ।"

इतना कहकर उसने जेब से एक आलपिन निकालकर उसके सिर में चुभो दी। इससे लूसी कराह उठी। परिचालक बोला - "उठ हरामजादी, मुझसे यह सब ढोंग नहीं चलेगा। मैं तेरी सब बदमाशी निकाल दूँगा।"

लूसी होश में आकर कुछ उत्तेजित-सी होकर तेजी के साथ कपास इकट्ठी करने लगी।

उस आदमी ने कहा - "देख, अगर इसी तरह जल्‍दी-जल्‍दी काम नहीं करेगी तो तुझे यमराज के घर पहुँचा दूँगा।"

टॉम ने सुना, लूसी ने कहा - "जल्‍दी भेज दो तो जान बचे!" फिर सुना - "हे भगवान, हे परमात्‍मन्, अब कितना सहना पड़ेगा! क्‍या इस दुनिया से मुझे नहीं उठा लोगे?"

टॉम जानता था कि यदि शाम तक लूसी डलिया भर कपास न दे सकी, तो इसकी जान की खैरियत नहीं। लेग्री मारे कोड़ों के इसकी चमड़ी उधेड़ देगा। अत: उसके लिए अपनी आफत की कुछ भी परवा न करके उसने अपनी सारी कपास उसकी डलिया में डाल दी।

लूसी ने कहा - "अरे, ऐसा मत करो।… तुम नहीं जानते कि इसके लिए वे तुम्‍हारी कितनी आफत करेंगे।"

"मैं तुम्‍हारी निस्‍बत अच्‍छी तरह सह सकता हूँ।" इतना कहकर टॉम फिर अपनी जगह पर जा डटा। यह एक क्षण भर की बात थी।

एकाएक पूर्वोक्‍त अपरिचित रमणी काम करते-करते टॉम के इतने निकट आ गई कि उसने टॉम के अंतिम शब्‍द सुने, और फिर पल भर अपनी बड़ी-बड़ी काली आँखें उन लोगों पर गड़ाकर देखने लगी। इसके बाद अपनी डलिया से थोड़ी-सी कपास लेकर टॉम की डलिया में डालकर बोली - "तुम अभी यहाँ का कायदा बिल्‍कुल नहीं जानते हो। यहाँ एक महीना तो बीतने दो, फिर दूसरे की सहायता करना तो दूर रहा, तुम्‍हें अपनी ही जान बचानी मुश्किल हो जाएगी।"

एक परिचालक थोड़ी दूर पर उस स्‍त्री की यह कार्रवाई देख रहा था। वह चाबुक लिए हुए वहाँ पहुँचा और विजय के स्‍वर में बोला - "हाँ हाँ, क्‍या करती हो? मैं तुम्‍हारी सारी हरकतें देखता हूँ। तुम इस समय मेरे वश में हो, यह सब चाल नहीं चलेगी।"

उस स्‍त्री ने बड़ी कड़ी नजर से परिचालक की ओर देखा। उसके ओंठ फड़कने लगे और आँखों से चिनगारियाँ बरसने लगीं। वह परिचालक को डाँटकर बोली - "सूअर, पाजी! आ तो एक बार मेरे पास। देखूँ तेरी हिम्‍मत! अब भी मुझमें इतनी क्षमता है कि शिकारी कुत्तों से तेरी बोटी-बोटी नुचवाकर जिंदा गड़वा दूँ। तू मेरे सामने रौब दिखाने आया है!"

उसकी बातों से सहमकर परिचालक बोला - "शैतान की बच्‍ची, तब तू यहाँ काम करने क्‍यों आई है? मिस कासी, तुम मेरा कोई नुकसान न करना।"

रमणी बोली - "तू, यहाँ से दूर हट!"

परिचालक वहाँ से हटकर दूसरी ओर कुलियों का काम देखने चला गया।

वह स्‍त्री फिर तेजी से अपने काम में लग गई। उसका गजब का फुर्तीलापन देखकर टॉम चौंधिया गया। दिन डूबने के पहले ही उसकी डलिया फिर भर गई और तारीफ यह कि बीच में उसने कई बार अपनी कपास टॉम की डलिया में भी डाल दी थी। संध्‍या के बाद अधिक अंधकार हो जाने पर सब कुली सिर पर अपनी डलिया रखे हुए कपास के गोदाम पर, जहाँ तौल होता था, पहुँचे। लेग्री वहाँ बैठा दो परिचालकों से घुल-घुलकर बातें कर रहा था।

लेग्री ने कहा - "इस काले गुलाम टॉम को ठीक करना चाहिए। यह जल्‍दी रास्‍ते पर नहीं आएगा, बड़ी मेहनत लेगा।"

हब्‍शी परिचालक खीसें निकालकर हँसने लगा। पर कुइंबो बोला - "हुजूर ही से यह ठीक होगा। आप जिस जोर से चाबुक लगाना जानते हैं, शैतान भी वैसा नहीं जानता।"

लेग्री बोला - "इसे सिखाने का सबसे अच्‍छा और सीधा उपाय यह होगा कि इसे दूसरी स्त्रियों को कोड़े लगाने का काम सौंपा जाए।"

कुइंबो ने कहा - "हाँ, सरकार, लेकिन यह बात वह कभी मंजूर नहीं करेगा। मार-पीट करने के लिए वह कभी तैयार न होगा। उसका वह धरमपना दूर करना सरल नहीं है।"

लेग्री बोला - "मैं आज ही उसका धरमपना निकाले देता हूँ।"

इतने में सांबो ने कहा - "यह देखिए, लूसी ने कोई काम नहीं किया। दिन भर बैठी रही, यह बड़ी बदजात है। कुलियों में ऐसा और पाजी नहीं है।"

कुइंबो बोला - "खबरदार सांबो, मैं जानता हूँ कि लूसी से तू क्‍यों खार खाता है।"

सांबो ने लेग्री की ओर देखकर कहा - "सरदार, आप ही ने तो उसे मेरी औरत बनाने को कहा था, पर वह आपकी बात नहीं मानती।"

लेग्री ने बहादुरी से कहा - "मैं मारते-मारते उसकी चमड़ी उधेड़ देता। लेकिन आज-कल काम की भीड़ है, इससे नुकसान होगा।"

"लूसी बड़ी बद है, कुछ नहीं करना चाहती। सिर्फ दिक करती है और यह टॉम उसकी मदद करता है।" कुइंबो ने कहा।

"टॉम ने इसकी मदद की है? अच्‍छा, तो टॉम ही इसको कोड़े भी लगावे। इससे टॉम खूब सीख जाएगा। यह शैतान यों ही अधमरी हो रही है। तुम लोगों की मार से तो मरने का भी डर है, पर टॉम उतने जोर से कोड़े नहीं लगावेगा, इससे वह भी डर नहीं है।"

यह बात सुनकर सांबो और कुइंबो खीसें निकालकर हँसने लगे।

परिचालकों ने कहा - "लेकिन सरकार, टॉम ने और मिस कासी ने लूसी की डलिया में बड़ी कपास डाली है।"

लेग्री बोला - "मैं अभी तौले लेता हूँ।" वे दोनों परिचालक फिर ठठाकर हँसे।

लेग्री ने पूछा - "मिस कासी ने अपना दिन भर का काम तो पूरा कर लिया है न?"

परिचालक ने जवाब दिया - "सरकार, काम तो वह शैतान की तरह करती है।"

लेग्री ने सबकी कपास तौलने की आज्ञा दी। कुली बहुत थक गए थे। इससे बड़े कष्‍ट से अपनी-अपनी डलिया उठाकर काँटे पर रखने लगे। लेग्री हाथ में स्‍लेट लेकर तौल और नाम लिखने लगा।

टॉम की टोकरी का तौल हुआ और उसका काम संतोषजनक पाया गया। अपनी टोकरी तुल जाने के बाद टॉम बड़ी उत्‍कंठा से लूसी की टोकरी की ओर देखने लगा।

लूसी ने डरते और काँपते हुए अपनी टोकरी लाकर रखी। तौल में वह पूरी थी, पर लेग्री ने उसे धमकाने की नीयत से बनावटी गुस्‍से से कहा - "यह हरामजादी बड़ी सुस्‍त है। आज भी कपास कम है। इसे किनारे खड़ा करो, अभी इसकी खबर ली जाती है।" लूसी ने निराशा से एक ठंडी साँस ली और एक तख्‍ते पर बैठ गई।

फिर उस कासी नाम की स्‍त्री ने बड़ी अवज्ञा और उद्धतता के सा‍थ अपनी टोकरी लाकर रखी। लेग्री विद्रूप और कौतूहल से उसका मुख देखने लगा।

कासी आँखें गड़ाकर लेग्री की ओर घूरने लगी। उसके होठ फड़कने लगे। उसने फ्रेंच भाषा में लेग्री से कुछ कहा। बात किसी की समझ में न आई, पर लेग्री का चेहरा पिशाच-सा हो गया, और उसने कासी को मारने के लिए हाथ उठाया। रमणी घृणा दिखाती हुई निर्भीकतापूर्वक वहाँ से चल दी।

कुछ देर बात लेग्री ने टॉम को बुलाकर कहा - "टॉम, मैंने तुझे साधारण कुली का काम करने के लिए नहीं खरीदा है। मैं तुझे परिचालक का ओहदा दूँगा और ठीक काम करने पर तू तरक्‍की पाकर परिदर्शक भी हो सकेगा। कुलियों को किस तरह कोड़ों से पीटा जाता है, यह तूने इतने दिन देख-सुनकर खूब सीख लिया होगा। जा, इस लूसी को कोड़े लगा! यह हरामजादी बड़ी शरारती है।"

टॉम ने कहा - "मुझे माफ कीजिए। कृपा करके मुझे इस काम में मत लगाइए। यह मुझसे नहीं हो सकेगा। न मैंने कभी ऐसा काम किया है, न करूँगा।"

टॉम की बात सुनकर लेग्री क्रुद्ध होकर कहने लगा - "तू जरूर कर सकेगा।"

इतना कहकर और चमड़े का चाबुक लेकर वह टॉम को पीटने और उसके मुँह पर घूँसों की वर्षा करने लगा। करीब पंद्रह मिनट तक लात, घूँसे और कोड़े बरसाकर बोला - "बोल, अब भी इनकार करता है?"

टॉम की नाक से खून बहने लगा। उसे पोछते हुए उसने कहा - "सरकार, मैं दिन-रात काम करने को तैयार हूँ। इस शरीर में जितने दिन तक प्राण हैं, आपकी नौकरी बजाऊँगा; लेकिन इस काम को मैं अनुचित समझता हूँ। सरकार, यह मुझसे कभी नहीं होगा - मैं कभी नहीं करूँगा, कभी नहीं।"

टॉम बोलने में सदा से विनयी था। उसके बोलने का ढंग विशेष सम्‍मान-सूचक था। लेग्री ने सोचा कि टॉम डर गया है, शीघ्र ही वश में आ जाएगा। पर उसके अंतिम शब्‍द सुनकर कुली लोग चौंक पड़े। लूसी हाथ जोड़कर बोली - "हे भगवान!"

सब लोग एक-दूसरे का मुँह देखने लगे, सब शंकित मन से आनेवाली विपत्ति की प्रतीक्षा करने लगे।

लेग्री कुछ देर निस्‍तब्‍ध-सा और हतबुद्धि-सा रहा, लेकिन थोड़ी देर बाद गरजकर बोला - "क्‍यों रे हरामी के बच्‍चे, बोल, तू मेरी बात को अनुचित समझता है? तुझे उचित और अनुचित का विचार करने की क्‍या पड़ी है? क्‍यों बे, तू अपने को क्‍या समझता है? सूअर, तू अपने को बड़ा शरीफ का बच्‍चा समझता है कि अपने मालिक के सामने उचित-अनुचित करता है! इस छोकरी को कोड़े लगाने को तू अन्‍याय समझने का बहाना लगाता है।"

टॉम ने कहा - "सरकार, मैं इसे मारना अन्‍याय समझता हूँ। यह स्‍त्री रोगी और कमजोर है, इसे मारना निर्दयता है। मैं ऐसा काम नहीं करूँगा। सरकार, मुझे मारना चाहें तो मार डालें। मुझे मरना कबूल है, लेकिन इनमें से किसी को मारने के लिए मेरा हाथ नहीं उठेगा।"

टॉम ने धीमे स्‍वर में बातें कही थी; पर उसके वाक्‍यों से उसके हृदय की दृढ़ता और अटल प्रतिज्ञा का पता चलता था। लेग्री क्रोध से काँपने लगा। उसकी आँखों से चिनगारियाँ निकलने लगीं, पर जैसे कुछ भयंकर जंतु अपने शिकार को एकदम न मारकर धीरे-धीरे खिला-खिलाकर मारते हैं, वैसे ही लेग्री ने भी टॉम को तत्‍काल कोई जबरदस्‍त सजा नहीं दी। क्रोध के वेग को तनिक रोककर वह उस पर तीव्र व्‍यंग्‍य-बाण छोड़ते हुए कहने लगा - "चलो, अंत में हम पापियों के दल में यह एक धर्मात्‍मा कुत्ता आ गया। यह किसी महात्‍मा और किसी सज्‍जन से कम नहीं। हम सब पाखंडी हैं। यह हम लोगों को यहाँ हमारे पापों की जानकारी कराने आया है। वाह, कैसा धर्मात्‍मा है! क्‍यों रे बदजात, तू धर्म का तो बड़ा ढोंग रचता है पर क्‍या तूने बाइबिल से यह बात नहीं सुनी - 'अरे नौकरो, अपने मालिक के हुक्‍म की तामील करो।' मैं क्‍या तेरा मालिक नहीं हूँ? तेरे इस काले शरीर के बारह सौ डालर नकद नहीं गिने? बोल, इस समय तेरी आत्‍मा और शरीर मेरा है या नहीं?" उसने टॉम को अपने डबल जूतों की जोर से ठोकर लगाते हुए कहा - "बोल, बोल, बता!"

इस भयंकर शारीरिक यंत्रणा में, इस घोर पाशविक अत्‍याचार से मुर्दार हुए रहने पर भी, टॉम के हृदय में लेग्री के इस प्रश्‍न से आनंद और जयोल्‍लास की धारा बह निकली। वह एकाएक सिर ऊँचा करके खड़ा हुआ। उसके घायल मुख से जो खून की धार बह रही थी, उस खून के साथ आँसुओं की धारा का मेल होने लगा। टॉम आँखें उठाकर विश्‍वासपूर्वक कहने लगा - "नहीं, नहीं, नहीं, सरकार, मेरी आत्‍मा आपकी कभी नहीं है। आपने इसे नहीं खरीदा है - तुम इसे नहीं खरीद सकते। यह उसी एक के हाथ बिकी हुई है, जो इसकी रक्षा करने में समर्थ है। कोई परवा नहीं, कोई परवा नहीं! इस शरीर को तुम जितना चाहो, उतना सता लो, आत्‍मा का तुम कुछ नहीं बिगाड़ सकते।"

लेग्री ने त्‍यौरी चढ़ाकर कहा - "मैं कुछ नहीं बिगाड़ सकता? देखता हूँ, देखता हूँ। अरे सांबो, कुइंबो, लो, इस सूअर को दुरुस्‍त करो। ऐसी मार मारो कि महीने भर खाट से सिर न उठा सके।"

दोनों यमदूत-सरीखे नर-पिशाच तत्‍काल टॉम को बाहर खींचकर ले गए और पीटने लगे। यह देखकर लूसी बार-बार चीखने लगी।

37. कासी की करुण कहानी

रात के दो पहर बीत चुके होंगे। चारों ओर घनघोर अँधियारी छाई हुई है। सड़ी-गली कपास और इधर-उधर फैली टूटी-फूटी चीजों से भरी हुई एक तंग कोठरी में टॉम अचेत पड़ा है। दिन भर अन्‍न-पानी नसीब नहीं हुआ। इससे उसके प्राण कंठ में आ लगे हैं। इस पर कोठरी में मच्‍छरों की भरमार। जरा आँखें बंद करने तक का आराम नहीं है।

टॉम जमीन पर पड़ा पुकार रहा है - "हे भगवान! दीनबंधु! एक बार दीन की ओर आँख उठा कर देखो! पाप और अत्‍याचार पर विजय पाने की शक्ति दो!"

तभी उसे अपनी कोठरी की ओर आते किसी के पैरों की आहट सुनाई पड़ी और लालटेन की मद्धिम रोशनी उसके मुँह पर पड़ी।

टॉम ने कहा - "कौन है? ईश्‍वर के लिए मुझे एक घूँट पानी पिला दो!"

कासी ने, जिसके पैरों की आहट सुनाई दी थी, लालटेन को जमीन पर रखकर, अपने साथ लाई हुई बोतल से थोड़ा पानी एक गिलास में निकाला और टॉम का सिर उठाकर उसे पिलाया। बुखार की तेजी के कारण टॉम ने और दो गिलास पानी पिया।

कासी ने कहा - "जितना चाहो, पानी पी लो। मैं काफी लाई हूँ। जानती थी कि ऐसी हालत में तुम्‍हें पानी की कितनी जरूरत होगी। तुम्‍हारी जैसी हालत होने पर मैं कुलियों को अक्‍सर पानी पिलाने जाती हूँ। आज तुम्‍हारे लिए पानी लेकर पहली बार नहीं आई हूँ।"

टॉम ने पानी पीकर कहा - "श्रीमतीजी, आपको बहुत धन्‍यवाद!"

कासी दु:खित स्‍वर में बोली - "मुझे 'श्रीमतीजी' मत कहो। मैं भी तुम्‍हारी तरह एक अभागिन गुलाम हूँ, बल्कि तुमसे भी गई-बीती हूँ।"

फिर कासी ने वह खाट और बिछौना भी टॉम के सामने रखा, जिन्‍हें वह अपने साथ लाई थी। उसने एक चादर को ठंडे जल से भिगोकर टॉम की चारपाई पर बिछाया और बोली - "मेरे अभागे साथी, किसी तरह हिम्‍मत करो और गिरते-पड़ते भी आकर इस खाट पर लेट जाओ।"

टॉम का सारा बदन लहू-लुहान था। उसमें हिलने-डुलने की तनिक भी शक्ति नहीं थी, परंतु बड़े कष्‍ट से जैसे-तैसे सरकते-सरकते वह उस ठंडे बिछौने पर जा लेटा। उस पर पहुँचते ही उसे कुछ आराम मालूम हुआ।

बहुत समय से इस नरक-जैसे अत्‍याचारपूर्ण स्‍थान में रहते-रहते कासी घावों की सफाई और उनकी परिचर्या के काम में अनुभवी हो गई थी। वह टॉम के घावों पर अपने हाथ से मलहम लगाने लगी। मलहम के लगते ही टॉम की पीड़ा और कम हो गई। इसके बाद उसने टॉम का सिर ऊँचा उठाकर उसके नीचे थोड़ी-सी रुई रख दी। फिर बोली - "तुम्‍हारे लिए मैं जो कुछ कर सकती थी, उतना करने की मैंने कोशिश की है।"

टॉम ने इसके उत्तर में अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट की। कासी अब जमीन पर बैठ गई और दोनों हाथ घुटनों पर लपेटकर तीव्र यंत्रणा व्‍यंजक भाव से एकटक सामने की ओर देखने लगी। उसके सिर का कपड़ा पीठ पर गिर गया, और उसके लंबे-लंबे काले बाल उदासी भरे मुँह के चारों ओर बिखर गए।

कुछ देर बाद कासी बोली - "इसका कोई नतीजा नहीं, अभागे साथी, तुम्‍हारी सारी कोशिशें बेकार हैं। तुमने आज बड़ा विलक्षण साहस दिखलाया है। न्‍याय भी तुम्‍हारी ही ओर था, पर यह लड़ाई व्‍यर्थ है। इसमें तुम्‍हारी जीत होगी, ऐसा नहीं लगता। तुम अबकी बार साक्षात् शैतान के पंजे में फँस गए हो। वह बहुत ही निर्दयी है। अंत में तुम्‍हें हारकर आत्म-समर्पण करना होगा-न्‍याय का पक्ष छोड़ना होगा।"

न्‍याय का पक्ष छोड़ना होगा। क्‍या मेरी मानसिक निर्बलता और शारीरिक यंत्रणा ने भी कुछ देर पहले चुपके से मेरे कानों में यही बात नहीं कही थी? टॉम काँप उठा। जिस प्रलोभन के साथ टॉम आज तक बराबर लड़ता चला आया था, विषाद-भरी कासी उसे उसी प्रलोभन की 'जिंदा तस्‍वीर' जान पड़ने लगी। टॉम आर्त होकर बोला - "हे भगवान! हे परम दयालु पिता! मैं न्‍याय का पक्ष कैसे छोड़ सकता हूँ?"

कासी ने स्थिर स्‍वर में कहा - "ईश्‍वर से पुकार करने का कोई नतीजा नहीं निकलेगा। ईश्‍वर कुछ सुनता-सुनाता नहीं है। मेरा विश्‍वास है कि ईश्‍वर है ही नहीं, और यदि है तो वह हम-जैसे लोगों का विरोधी है। लोक और परलोक, सभी हम लोगों के विरोधी हैं। दुनिया की हर चीज हमें नरक की ओर धकेल रही है। फिर हम नरक में क्‍यों न जाएँ?"

टॉम ने आँखें मूंद ली। कासी के मुँह से ऐसी नास्तिकता-भरी बातें सुनकर उसका हृदय दहल उठा। कासी फिर कहने लगी - "देखो, यहाँ के बारे में तुम कुछ नहीं जानते, पर मैं यहाँ की हर चीज को जानती हूँ। मुझे यहाँ रहते पाँच बरस बीत गए हैं। मेरे शरीर और आत्‍मा सब इसी के पैरों के नीचे हैं, फिर भी इस नर-पशु को हृदय से घृणा करती हूँ। यहाँ पर अगर तुम जीवित ही गाड़ दिए जाओ, आग में डाल दिए जाओ, तुम्‍हारे शरीर की बोटी-बोटी कर दी जाए, तुम्‍हें कुत्तों से नुचवा डाला जाए, या पेड़ से लटकाकर कोड़ों से तुम्‍हारी जान तक ले ली जाए, तो भी उस पर कोई कार्रवाई नहीं होगी। किसी अंग्रेज को गवाह बनाए बिना कोई अपराध सिद्ध नहीं किया जा सकता। और यहाँ पाँच-पाँच मील तक कोई अंग्रेज नहीं है। हो भी तो क्‍या? यह झूठी अंग्रेज कौम क्‍या किसी भी बुरे काम से परहेज करती है? वे क्‍या तुम्‍हारे-हमारे लिए अदालत में सच्‍ची बात कहेंगे? ईश्‍वर का या मनुष्‍य का बनाया ऐसा कोई कानून यहाँ नहीं है, जिससे हम लोगों का कुछ भला हो सके। और यह नराधम! संसार का ऐसा कोई पाप नहीं है, जिसे करने में संकोच करे। मैंने यहाँ आकर जो कुछ देखा है, उसे अगर मैं पूरा-पूरा कह सकूँ तो कोई भी आदमी मारे डर के पागल हो जाएगा। इस पाखंडी की इच्‍छा के विरुद्ध कोई भी काम करने का कुछ नतीजा नहीं निकलेगा। मैं क्‍या अपनी इच्‍छा से इस नीच के साथ रह रही हूँ? क्‍या यहाँ आने से पहले मैं एक सभ्‍य महिला नहीं थी? और यह - हे ईश्‍वर, यह व्‍यक्ति क्‍या था और क्‍या हो गया! फिर भी पाँच साल से इसके साथ हूँ। इन पाँच सालों में मैं दिन-रात हर घड़ी अपने भाग्‍य को कोसती रही हूँ। लेकिन अब यह पामर पशु मुझे छोड़कर, एक पंद्रह साल की कन्‍या को पत्‍नी बनाने को ले आया है। उसी के मुँह से मैंने सुना कि उसकी भलीमानस मालकिन ने उसे बाइबिल पढ़ना सिखाया है और वह अपनी बाइबिल यहाँ भी साथ लाई है - नरक में अपने साथ बाइबिल लेकर आई है!"

इतना कहते-कहते कासी पागल की तरह हँस पड़ी।

कासी की बातें सुनकर टॉम की आँखों के सामने अंधकार छा गया। वह हाथ जोड़कर बोल उठा - "हे नाथ, तुम कहाँ हो? क्‍या हम दीन-दुखियों की सुध एकदम ही बिसार दी? हे पिता, तुम्‍हारे सहायक हुए बिना निस्‍तार नहीं है।"

कासी फिर सूखेपन से कहने लगी - "और तुम्‍हें क्‍या पड़ी है जो तुम इन अभागे कुत्तों-जैसे नीच गुलामों के लिए इतना कष्‍ट सहते हो! इन्‍हें जरा-सा मौका मिलना चाहिए, फिर ये कभी तुम्‍हारी बुराई करने से नहीं चूकेंगे। तुम इनमें से किसी को बेंत लगाने के लिए राजी नहीं हो; पर इन्‍हें मालिक का इशारा मिल जाए तो ये तुरंत तुम्‍हें पीट डालेंगे। ये एक-दूसरे के लिए बड़े निर्दयी हैं। इनके लिए तुम्‍हारे कष्‍ट उठाने का कोई नतीजा नहीं होगा।"

टॉम बोला - "हाय! ये इतने निर्दयी कैसे हो गए? अगर मैं भी इन्‍हीं की तरह दूसरे साथियों को बेंत लगाने को तैयार हो जाऊँ, तो मैं भी धीरे-धीरे इन्‍हीं-जैसा हो जाऊँगा। नहीं-नहीं, मेम साहब, मैं सब कुछ खो चुका हूँ - पत्‍नी, पुत्र, कन्‍या, घर-द्वार सब जाता रहा। एक दयालु मालिक मिले थे, सो वे भी परलोक सिधार गए। यदि एक सप्‍ताह मौत उन्‍हें और छुट्टी दे देती तो मुझे वह गुलामी से मुक्‍त कर देते। इस संसार में मेरा अब कुछ नहीं रहा, कुछ नहीं रहा - मैं अपना सब-कुछ खो चुका हूँ। अब मैं अपना परलोक नहीं बिगाडूँगा। नहीं-नहीं, मैं कभी पाप नहीं कमाऊँगा।"

कासी ने कहा - "यह नहीं हो सकता कि इन पापों को ईश्‍वर हमारे हिसाब में दर्ज करे। जब हमें मजबूर करके पाप कराया जाता है तो इसके लिए वह हमें अपराधी नहीं ठहराएगा। वह उन्‍हीं के सिर पाप का बोझा लादेगा, जो हमें दबाकर पाप कराते हैं।"

टॉम ने कहा - "तुम्‍हारी बात ठीक है, लेकिन हाथों से पाप करते-करते हमारा हृदय कलुषित हो जाएगा। अगर मैं सांबो जैसा कठोर हृदय और दुराचारी हो जाऊँ - इससे क्‍या कि मैं वैसा कैसे हुआ हूँ - मेरा हृदय एक बार भी दुराचारी बना कि फिर दुराचारी ही बना रहेगा। तुम्‍हारे तर्क से हृदय का दुराचारी होना रोका नहीं जा सकता, मुझे सबसे बड़ा डर इसी का है।"

टॉम की बातें सुनकर कासी पागल की तरह उसकी ओर देखने लगी। लगा, जैसे सहसा किसी नए विचार ने उसके हृदय पर आघात किया हो। वह ठंडी साँस लेकर बोली - "हे भगवान, मैं भी कैसी पापिन हूँ! टॉम, तुमने सच्‍ची बात कही है। हाय-हाय-हाय!" … कहते-कहते गहरे मानसिक दुख से कातर होकर वह जमीन पर गिर पड़ी।

इसके बाद दोनों कुछ देर तक चुप रहे। अंत में टॉम ने क्षीण स्‍वर में कहा - "मेम साहब कृपा करके…"

कासी तुरंत उठ खड़ी हुई। उसका मुँह पहले-जैसा ही उदास था।

टॉम ने कहा - "मुझे पीटते समय उन लोगों ने मेरा कोट इस कोने में फेंक दिया था। उसकी जेब में मेरी बाइबिल है। आपकी बड़ी कृपा होगी, यदि आप उसे उठा दें।"

कासी कोने में गई और बाइबिल ले आई। टॉम ने बाइबिल को खोला और उसमें अपनी एक निशान-लगी हुई जगह दिखाते हुए कासी से कहा - "मेम साहब, यदि आप कृपा करके मुझे इसे पढ़कर सुना दें तो पानी पीकर मैं जितना सुखी हुआ हूँ, उससे अधिक सुखी होऊँगा।"

कासी ने सूखे हृदय और अश्रद्धा से बाइबिल को हाथ में लेकर टॉम द्वारा निशान लगाई हुई जगह से आगे पढ़ना शुरू किया। वह पढ़ना-लिखना खूब जानती थी, अत: ईसा को सूली पर चढ़ाए जाने का हाल बड़ी स्‍पष्‍टता तथा मधुरता से पढ़ने लगी। पढ़ते हुए बार-बार उसका दिल काँपने लगा। बीच-बीच में वह रुकने लगी। दो क्षण ठहरकर सँभल जाती और फिर आगे पढ़ने लगती। अंत में जब वह पढ़ते-पढ़ते "पिता, इन्‍हें क्षमा करना, क्‍योंकि ये नहीं जानते कि हम क्‍या कर रहे हैं।" - इस वाक्‍य पर पहुँची तो पुस्‍तक बंद करके रोने लगी। टॉम भी रो रहा था।

कुछ देर बाद टॉम ने कहा - "अगर हम लोग ईसा के दृष्‍टांत का अनुसरण कर सकते, तो क्‍या इस तरह दु:खों और कष्‍टों से हार मान लेते? ईसा का यह दृष्‍टांत तो हमें कठिनाइयों का सामना करना सिखलाता है। मेम साहब, मैं देखता हूँ कि आप खूब पढ़ी-लिखी हैं। हर बात में मुझसे बढ़-चढ़कर हैं, पर एक विषय में आपको इस गँवार टॉम से भी शिक्षा मिल सकती है। आपने कहा है कि ईश्‍वर गोरों के पक्ष में हम लोगों के विरुद्ध है, नहीं तो हमपर इतना अत्‍याचार होने पर भी वह इसका विचार क्‍यों नहीं करता? आपका यह संस्‍कार गलत बुनियाद पर टिका है। आप ध्‍यानपूर्वक देखें कि ईसा ने अपनी संतान के लिए कैसे-कैसे भारी कष्‍ट सहन किए। किस तरह ईसा ने दोनों की भाँति जीवन बिताया, और यहाँ तक कि पापियों ने अंत में उनके प्राण तक ले लिए। लेकिन क्‍या हममें से किसी की भी दशा उनकी-सी हुई है? निश्‍चयपूर्वक कहता हूँ कि ईश्‍वर हम लोगों को भूले नहीं है। हमें यह नहीं सोच लेना चाहिए कि हमारे दु:ख और कष्‍ट में पड़े रहने से ईश्‍वर हमारा सहायक नहीं रहा। उस पर विश्‍वास रखकर यदि हम अपने को पापों से दूर रख सकें तो अंत में अवश्‍य हमें स्‍वर्ग मिलेगा। यह विपत्ति, यह दु:खों और कष्‍टों के पहाड़, हमें अग्नि में तपाए हुए सोने के समान शुद्ध करके, ईश्‍वर के साथ रहने योग्‍य बना रहे हैं।"

कासी ने कहा - "पर जिस दुर्दशा में पड़ने से हमारे लिए पाप के रास्‍ते से हटकर चलना मुश्किल हो जाता है, वैसी दुर्दशा में वह हमें क्‍यों डालता है?"

टॉम ने उत्तर दिया - "कैसा भी संकट क्‍यों न हो, मेरी समझ में, हम उसे पार कर सकते हैं। किसी भी दशा में पाप के मार्ग से हटकर चलना हमारे लिए असंभव नहीं है।"

कासी बोली - "सो तो तुम्‍हारे सामने आएगा। वे कल फिर तुम्‍हें सताएँगे, तब क्‍या करोगे? मैं यहाँ की सब बातें जानती हूँ। तुम्‍हें वे जैसी-जैसी तकलीफें देंगे, उनका विचार-मात्र करने से रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ऐसी तकलीफें दे-देकर अंत में वे तुम्‍हें पापकर्म करने पर मजबूर करेंगे।"

टॉम कुछ क्षण चुप रहा, फिर बोला - "हे भगवान! क्‍या तुम मेरी रक्षा नहीं करोगे? प्रभो, आप मेरे सहायक हो। देखना, तुम्हारा दास पीड़ा और अत्‍याचार के डर से कुमार्गी न होने पाए!"

कासी फिर बोली - "मैं यहाँ पहले ही क्रंदन और कितनी प्रार्थनाएँ सुन चुकी हूँ; पर अंत में होता यही है कि लोगों का संकल्‍प टूट जाता है। ये पापी उन्‍हें अपने वश में लाने में सफल हो जाते हैं। देखो न, उधर एमेलिन जी-जान से चेष्‍टा कर रही है और इधर तुम भी पूरी ताकत से अपनी कोशिश में लगे हो, पर इसका नतीजा क्‍या होगा- या तो तुम्‍हें इनकी बात माननी पड़ेगी या तुम कुत्तों से नुचवाए जाओगे।"

टॉम ने कहा - "अच्‍छा, तो मुझे मरना ही मंजूर है। उन्‍हें जी चाहे उतना सता लेने दो। एक-न-एक दिन मरना तो अवश्‍य ही है। उसे तो कोई टाल नहीं सकता। मार डालने के सिवा वे मेरा कुछ और बिगाड़ ही नहीं सकते। मरने पर इनके हाथों से मुक्‍त हो जाऊँगा। ईश्‍वर मेरे साथ है, वही मुझे इस परीक्षा में उत्तीर्ण करेगा।"

कासी ने इस बात का कोई उत्तर नहीं दिया। वह अपनी आँखें गड़ाए पृथ्‍वी की ओर देखती रही।

कुछ देर बाद वह आप-ही-आप बुदबुदाने लगी - "यह हो सकता है! पर जो अत्‍याचार और उत्‍पीड़न से अधीर होकर आगे बढ़ चुके हैं, उनके लिए तो कोई आशा ही नहीं है, कुछ भी नहीं है। अपवित्रता में पड़े-पड़े हमारा यहाँ तक पतन हो जाता है कि हमें अपने-आप से ही घृणा हो जाती है। मरने की इच्‍छा होती है, पर आत्‍महत्‍या करने का साहस नहीं होता। कोई आशा नहीं है! हाय-हाय! कोई आशा नहीं है! यह बालिका एमेलिन… उस समय ठीक मेरी भी यही उम्र थी।"

बड़ी शीघ्रता से बोलते हुए, उसने टॉम से कहा - "तुम देखते हो, आज मैं क्‍या हो गई हूँ। मैं भी कभी ऐश्‍वर्य की गोद में पली थी। मुझे याद है कि मैं बचपन में गुड़िया की तरह सज-धजकर मौज से खेलती फिरती थी। सभी संगी-साथी और हमारे घर आनेवाले मेरे रूप की प्रशंसा किया करते थे। हमारे यहाँ एक बाग था। उसमें मैं अपने भाई-बहनों के साथ नारंगियों के पेड़ों के नीचे आँख-मिचौनी खेला करती थी। मुझे ग्‍यारह साल की उम्र में एक पाठशाला में भेजा गया। वहाँ मैंने गाना-बजाना, फ्रेंच भाषा तथा अन्‍य कितनी ही बातों की शिक्षा पाई। लेकिन पिता की मृत्‍यु के कारण, मुझे चौदह साल की उम्र में घर वापस आना पड़ा। उनकी मृत्‍यु अकस्‍मात् हो गई थी। उनके पीछे जब सारी संपत्ति का हिसाब लगा कर देखा गया, तब मालूम हुआ कि इतने से तो कर्ज भी मुश्किल से चुकेगा। लेनदारों ने जायदाद की सूची बनाते समय मेरा नाम भी उसमें चढ़ा दिया। मैं मोल ली हुई दासी के गर्भ से जन्‍मी थी, पर मेरे पिता सदा मुझे मन-ही-मन स्‍वतंत्र कर देने की इच्‍छा रखते थे। किंतु उन्‍होंने यह किया नहीं था, इससे मैं भी जायदाद की सूची में चढ़ाई गई। मैं सदा से जानती थी कि मैं कौन हूँ, पर इस संबंध में मैंने कभी अधिक नहीं सोचा। किसी को भी यह आशंका नहीं थी कि ऐसा हट्टा-कट्टा और तंदुरुस्‍त आदमी इतनी जल्‍दी मर जाएगा। मेरे पिता की देखते-देखते, हैजे से मृत्‍यु हो गई थी। उनकी अंत्‍येष्टि-क्रिया के दूसरे ही दिन उनकी विवाहिता स्‍त्री सब बाल-बच्‍चों को लेकर अपने पिता के घर चल दी और मुझे वहीं वकील के जिम्‍मे छोड़ दिया। उनके इस व्‍यवहार से मैं बड़ी चकित हुई, पर इसका कारण मेरी समझ में नहीं आया। जिस वकील को अन्‍य सब चीजों के साथ मुझे सौंपा गया था, वह हमारे घर के पास-पड़ोस में ही रहता था और नित्‍य ही एक बार घर आया करता था। मुझसे उसका व्‍यवहार बड़ी सज्‍जनता का था। एक दिन वह अपने साथ एक रूपवान युवक को लाया। वह युवक मुझे इतना सुंदर मालूम हुआ कि वैसा सुंदर आदमी मैंने इससे पहले नहीं देखा था। मैं उस संध्‍या को कभी नहीं भूलूँगी। मैं बाग में उसके साथ टहली थी। मैं रंज और दु:ख से अकेली मुर्दा-सी पड़ी रहती थी। उसने मेरे साथ ऐसी दया और सज्‍जनता का व्‍यवहार किया कि मैं क्‍या कहूँ! उसने मुझसे कहा कि मदरसे में जाने से पहले उसने मुझे देखा था और तभी से मुझपर उसका प्रेम हो गया था। अब वह मेरा बंधु और रक्षक बनना चाहता था। असल बात यह थी, यद्यपि उसने मुझसे कही नहीं थी कि उसने मुझे दो हजार डालर में खरीद लिया था, और मैं उसकी संपत्ति थी, फिर भी इच्‍छा से मैंने उसे आत्‍म-समर्पण कर दिया, क्‍योंकि मैं उससे प्रेम करती थी। हाय! मेरा उस पर कितना प्रेम था! अब मेरा उस पर कितना प्रेम है, और जब तक मेरी साँस है तब तक रहेगा भी। वह कितना सुंदर, कितना उदार और कितने महान दिल का था। उसने मुझे दास-दासी, घोड़ा-गाड़ी, बाग-बगीचे, कपड़े-जेवर तथा अन्‍य प्रकार की सामग्रियों से भरे, एक बहुत सजे हुए मकान में रखा था। धन से जो भी चीजें मिल सकती हैं वे सब उसने मुझे दीं। पर मैं उन चीजों की कुछ भी कदर नहीं करती थी - मैं तो केवल उसी को चाहती थी और उसकी जरा-सी इच्‍छा पर सर्वस्‍व वार सकती थी।

"मेरी केवल एक ही इच्‍छा थी - मैं चाहती थी कि वह मुझे शास्‍त्रविधि से ब्‍याह ले। मैं सोचती थी कि जब वह मुझसे इतना प्रेम करता है, तो विवाह करके वह मुझे अवश्‍य दासता की बेड़ियों से मुक्‍त कर देगा। पर जब भी मैं उसके सामने यह बात उठाती, वह कहता कि यह बात लोकाचार और देशाचार की दृष्टि में निषिद्ध होने के कारण असंभव है। वह मुझे समझाता - यदि हम दोनों एक-दूसरे से विश्‍वासघात न करें, तो, यहाँ न सही, ईश्‍वर के यहाँ हम दोनों विवाहित ही हैं। अगर यह सच है तो क्‍या मैं उसकी पत्‍नी न थी? क्‍या मैंने उससे कभी विश्‍वासघात किया था? क्‍या सात बरस तक मैं उसकी प्रकृति का अध्‍ययन नहीं करती रही? एक बार उसे मियादी बुखार हो गया था, उस समय लगातार इक्‍कीस दिन तक मैं उसकी सेवा करती रही। मैंने अकेले अपने हाथ से उसका सारा दवा-पानी और पथ्‍य आदि सब-कुछ किया। अच्‍छा होने पर वह मुझे अपनी मंगलकारिणी देवी कहा करता और कहता कि मैंने ही उसकी जान बचाई है। हमारी दो सुंदर संताने हुईं। पहला पुत्र था और पिता के नाम पर उसका नाम हेनरी रखा गया। उसकी सूरत-शक्‍ल ठीक अपने पिता-जैसी थी। सुंदर नेत्र, चौड़ा और खुला माथा, लटकते घुँघराले बाल सब उसके पिता-जैसे ही थे। रूप के साथ ही उसने अपने पिता का तेज और दूसरे गुण भी पाए थे। छोटी संतान एलिस नाम की कन्‍या थी, जिसे वह मुझसे मिलती हुई बताया करता था। उसे मुझपर और अपनी दोनों संतानों पर बड़ा गर्व था। वह मुझे और अपने दोनों बच्‍चों को कपड़ों और जेवरों से खूब सजा-सजाकर अपने साथ खुली गाड़ी पर हवा खिलाने ले जाता था। रास्‍ते में मिलनेवाले लोग मेरे और मेरी संतानों के रूप की जो प्रशंसा करते, उसे वह हवाखोरी से लौटकर मुझे रोज सुनाता था। वे कैसे सुख के दिन थे! मैं संसार में अपने को सबसे अधिक सुखी मानती थी। पर अचानक ही वह सुख मुझसे छिन गया। दु:ख की घड़ियाँ शुरू हो गईं। उसका एक चचेरा भाई, जिसे वह अपना बड़ा मित्र और संसार भर में एक ही मित्र समझता आया था, वहाँ आया। न जाने क्‍यों, उसे प्रथम बार देखते ही मुझे डर मालूम हुआ। मुझे मेरी आत्‍मा ने बताया कि यह हम लोगों पर मुसीबत ढाएगा। वह व्‍यक्ति हेनरी को रोज घुमाने ले जाता और घर लौटते प्राय: रात के दो-दो तीन बज जाते। इसके लिए मेरा एक शब्‍द कहने का साहस न होता, क्‍योंकि मैं जानती थी कि वह बड़ा अभिमानी है। इसी से मुझे बड़ा भय मालूम होता था। वह दुराचारी उसे जुओं के अड्डों की हवा खिलाने लगा और धीरे-धीरे उसे उसमें बिल्‍कुल लिप्‍त कर दिया। उसका तो स्‍वभाव था कि किसी चीज में फँस जाने के बाद उससे निकलना असंभव था। इसके बाद उसने उसका एक और अंग्रेज युवती से परिचय करा दिया। मैंने शीघ्र ही देख लिया कि उसका हृदय मेरे हाथ से निकल गया है। उसने मुझसे खुलकर कभी कहा तो नहीं, पर मैंने सब समझ-बूझ लिया। दिन-दिन मेरी छाती फटती जाती, पर मैं मुँह खोलकर कुछ न कह पाती। इधर जुए में हारते-हारते वह कर्जदार हो गया। तब उस पाजी ने उसे सलाह दी कि वह मुझे मेरी संतानों सहित बेचकर पहले ऋण चुकाए और बाद में उस अंग्रेज युवती से विवाह कर ले। और स्‍वयं आगे बढ़कर वह हम लोगों को खरीदने को तैयार हो गया। तब हेनरी ने दोनों संतोनों सहित मुझे उस सत्‍यानाशी के हाथ बेच डाला। एक दिन हेनरी ने मुझसे कहा कि किसी काम से दो-तीन हफ्तों के लिए उसे बाहर जाना है। उसने आज और दिनों की अपेक्षा अधिक प्रेम दिखाया और कहा कि मैं शीघ्र ही लौट आऊँगा। पर मैं भुलावे में नहीं आई। मैंने समझ लिया कि सत्‍यनाश का समय आ पहुँचा है। मैं बोल न सकी, आँखों ने आँसू बहाए। उसने मुझे और बच्‍चों को बार-बार चूमा, फिर बाहर खड़े घोड़े पर सवार होकर चला गया। मैं एकटक उसकी ओर देखती रह गई। उसके आँखों से ओट होते ही मैं अचेत गिर पड़ी।"

"उसके दूसरे दिन वह पाखंडी बटलर मेरे पास आया और बोला कि मैंने तुम्‍हें तुम्‍हारी दोनों संतानों सहित खरीद लिया है। उसने मुझे लिखे हुए कागज भी दिखलाए। मैंने उसे बार-बार शाप देकर कहा कि मैं जीते-जी कभी तेरे साथ नहीं रहूँगी।"

"बटलर ने कहा, ठीक है! तुम्‍हारी जैसी इच्‍छा! पर देख लो। अगर नहीं मानती हो तो मैं तुम्‍हारी दोनों संतानों को ऐसी जगह बेच डालूँगा, जहाँ तुम फिर कभी उन्‍हें नहीं देख सकोगी।"

"उसने आगे कहा कि मुझे मोल लेने के अभिप्राय से ही उसने जाल रचकर हेनरी को कर्जदार बनाया और एक दूसरी स्‍त्री के साथ उसे लगाकर मुझे बेचने की सलाह दी। वह पाखंडी कहने लगा - "मैं दो-चार बूँद आँसुओं अथवा तिरस्‍कारों से हटनेवाला नहीं हूँ। तुम मेरी मुट्ठी में हो। मेरी बात न मानने में तुम्‍हारी भलाई नहीं है।"

मैंने देखा कि मेरे हाथ-पैर बँधे हैं - मेरी दोनों संतानें उसी के हाथ में थीं। मैं जब उसकी इच्‍छा के खिलाफ कुछ करती तो वह उन्‍हें बेच डालने की धमकी देता। संतानों की रक्षा के लिए मैं उसके वश में हो गई। पर वह कैसा घृणित जीवन था। हृदय में दिन-रात मर्मभेदी यंत्रणा की आग धधकती रहती थी। जिस नर-पशु को मैं रोम-रोम से घृणा करती और जिसे देखकर हर समय मेरी क्रोधाग्नि भभक उठती थी, उसी के पैरों में मुझे देह, आत्‍मा, और सर्वस्‍व की आहुति देनी पड़ी! हेनरी के सामने मैं सदा खुशी से पढ़ती, नाचती और गाती थी, पर इस व्‍यक्ति की खुशी के लिए मुझे जो कुछ करना पड़ता था वह मैं बड़े भय और अनिच्‍छा से करती थी। किंतु जिन दो संतानों के लिए मैं उस पापी के वश में हुई, उनसे वह बड़ा ही रूखा व्‍यवहार करने लगा। मेरी कन्‍या बड़ी भयभीत थी, वह उसके डर से सदा सशंक रहती। पर मेरा पुत्र अपने पिता की भाँति तेजस्‍वी और स्‍वाधीनता-प्रिय था। वह सदा उस नीच के साथ लड़ता-झगड़ता रहता था। यह देखकर मैं सदा डरा करती और अपनी दोनों संतानों को सदा उससे दूर रखती। पर मेरे सब कुछ करते रहने पर भी उस निर्दयी ने मेरी दोनों प्रिय संतानों को बेच डाला। कब और किसके हाथ बेचा, यह मुझे मालूम नहीं हो सका। एक दिन वह पापी मुझे साथ लेकर घूमने गया, परंतु फिर घर लौटने पर मुझे अपनी संतान का मुँह देखने को नहीं मिला। पूछते ही उस नर-पिशाच न बिना किसी हिचक-संकोच के कहा कि उन दोनों को बेच दिया गया है। उसने मुझे रुपए-उनके खून के दाग-दिखाए। संतान की बिक्री की बात सुनकर मैं पागल-सी हो गई। मेरा भले-बुरे का ज्ञान जाता रहा, मैं उसे ईश्‍वर के नाम पर शाप देने लगी और उस पर तरह-तरह की गालियों की वर्षा करने लगी। मेरी यह दशा देखकर वह पाखंडी कुछ भयभीत हुआ। पर जिन्‍होंने षड़यंत्र, धोखादेही, चालाकी और जालसाजी को ही अपना अस्‍त्र बना रखा है, उनका हृदय कभी नहीं हारता, कभी नहीं पसीजता। ये लोग ऐसे जाल फैला करके ही लोगों को फुसलाने की चेष्‍टा करते हैं। वह धूर्त फिर मुझे कौशल द्वारा वशीभूत करने के लिए कहने लगा कि यदि मैं उसकी आज्ञा में नहीं रहूँगी तो मेरी संतानों को और भी बड़ी तकलीफें सहन करनी पड़ेंगी; लेकिन यदि मैं उसके आदेशों को मानकर चलूँगी तो वह कभी-कभी संतानों को देखने का अवसर देगा और व‍ह फिर से खरीदकर भी ला सकता है। किसी स्‍त्री की संतान को कब्‍जे में कर लेने के बाद फिर उस स्‍त्री से आप चाहे जो करा सकते हैं। उस पाखंडी ने इस प्रकार भय दिखाकर और आशा बँधाकर फिर वश में कर लिया। इस प्रकार दो-तीन सप्‍ताह एक प्रकार से निर्विरोध बीते। फिर एक दिन जब मैं दंड-गृह के पास होकर घूमने जा रही थी, वहाँ भीड़ देखकर तथा एक बालक की चीख-पुकार सुनकर मैं कुछ दूर पर खड़ी हो कर देखने लगी। तत्‍काल उस घर में से मेरा हेनरी तीन-चार आदमियों को धक्‍के देकर चिल्‍लाता हुआ निकला और दौड़कर उसने मेरा कपड़ा पकड़ लिया। वे तीनों-चारों आदमी बड़ी बुरी गालियाँ बकते हुए उसे पकड़ने के लिए दौड़े आए। उनमें एक नर पिशाच-सा अंग्रेज था। वह कहने लगा कि मैं हैनरी को दंड-गृह को ले जा रहा था कि वह हाथ छुड़ाकर भाग आया है और अब उसे चौगुनी सजा दी जाएगी। उस आदमी का चेहरा मुझे जीवन भर न भूलेगा। वह हृदय-हीनता का साक्षात् अवतार लगता था। मैं उस समय अत्‍यंत विनयपूर्वक उन लोगों से पुत्र हेनरी को छोड़ देने के लिए कहने लगी, पर मेरी कातरता देखकर उलटे वे सब हँसने लगे। हेनरी बड़ी निराश दृष्टि से मेरी ओर देखकर रोने लगा। उसने मजबूती से मेरा कपड़ा पकड़ लिया। दंड-गृह के वे निर्दयी मनुष्‍य उसे खींच ले जाने के लिए मेरे कपड़े का भी कुछ अंश फाड़कर ले गए। जब उसे जबर्दस्‍ती ले जाया जाने लगा तो वह 'माँ! माँ' कहकर चीखने लगा। मेरे पास एक भलामानस आदमी खड़ा था। मैंने उससे कहा, 'मेरे पास जो कुछ रुपए हैं, उन्‍हें मैं तुम्‍हें देती हूँ। तुम कृपा करके किसी तरह मेरे पुत्र को बेंत की सजा से बचा लो।' वह सिर हिलाकर बोला, 'नहीं-नहीं, जो आदमी इसे यहाँ लाया है, वह किसी तरह इसे माफ नहीं करेगा। वह कहता है कि यह कैसे भी काबू में नहीं आता, कोड़े लगवाने के सिवाय और कोई उपाय इसे काबू में लाने का नहीं है।' मैं दौड़ती-दौड़ती घर आई। पूरे रास्‍ते हेनरी का क्रंदन और उसकी चीख-पुकार मेरे कानों में आती रही। मैंने घर पहुँचते ही उस नराधम बटलर के कमरे में जाकर बहुत घिघियाते हुए, बड़ी विनय के साथ, हेनरी को इस संकट से बचाने के लिए कहा। वह पामर हँसते हुए बोला, 'बहुत ठीक हुआ! हेनरी जैसी शरारतें करता है, वैसा ही नतीजा भी है। बिना कोड़ों के वह दुरुस्‍त होने का भी नहीं।'

उस निष्‍ठुर नीच का यह हृदयहीन व्‍यवहार देखकर और उसके मुँह से ऐसे मर्मबेधी वचन सुनकर मैं उन्‍मत्त-सी हो गई। मुझे लगा, मानो मेरे सिर पर वज्र गिरा हो। मेरा सिर घूम गया। मैंने भयंकर मूर्ति धारण की। इसके बाद क्‍या हुआ, सो मुझे याद नहीं। केवल इतना याद है कि सामने मेज पर पड़ी छुरी उठाकर मैं उसका सिर धड़ से जुदा कर देने को झपटी थी। इसके बाद मैं बेहोश हो गई और फिर कई दिन तक उसी दशा में पड़ी रही।

जब मुझे होश आया तो मैंने देखा कि एक अपरिचित सुंदर कमरे में पड़ी हुई हूँ। एक काली स्‍त्री मेरी सेवा-सुश्रूषा में लगी हुई है। एक डाक्‍टर मुझे रोज देखने आता है। मेरे लिए बड़ी सावधानी बरती जा रही है। थोड़ी देर बाद मुझे मालूम हुआ कि वह पापी मुझे यहाँ बेचने के लिए छोड़कर चला गया है और यही कारण है कि ये लोग मेरे लिए इतना कष्‍ट उठा रहे हैं।

अब मुझे जीने की कोई साध न थी। मैं हमेशा मौत को बुलाती थी, पर उसने मुझे अपनाया नहीं। अनिच्‍छा होते हुए भी मैं दिन-ब-दिन ठीक होने लगी और अंत में फिर पहले तरह चंगी हो गई।

इसके बाद वहाँवाले मुझे अच्‍छे और कीमती वस्‍त्र पहनने को देते। कई धनी लोग वहाँ आते, मेरे पास आकर बैठते, मेरे शरीर की जाँच करते, मेरे साथ तरह-तरह की बातें करते और वहाँवालों से मेरे मूल्‍य को लेकर मोल-तोल करते। पर मैं ऐसी उदासीन बनी बैठी रहती कि कोई मुझे खरीदने का आग्रह न करता। यह देखकर वहाँवाले मुझे कोड़े लगाने को तैयार होते और हँसी-खुशी से बातें करने को कहते। अंत में एक दिन कप्‍तान स्‍टुअर्ट नाम का एक साहब आया। वह कुछ सहृदय जान पड़ा। उसने समझ लिया कि किसी गहरे शोक के कारण मेरी यह दशा हो गई है। उसने अनेक बार अकेले में भेंट करके मुझसे अपनी दु:खों की कहानी सुनाने के लिए कहा। आखिर उसने मुझे खरीद लिया और वचन दिया कि जहाँ तक होगा, वह मेरी दोनों संतानों की तलाश करके खरीदने की चेष्‍टा करेगा। हेनरी की तलाश करने पर उसे पता चला कि वह पर्ल नदी के पार किसी खेतिहर के हाथ बेच दिया गया था। इस प्रकार हेनरी को फिर से खरीदे जाने की आशा समाप्‍त हो गई। पुत्र के संबंध में मैंने वही अंतिम बात सुनी थी, तब से आज अठारह वर्ष हो गए, कुछ नहीं सुना। फिर वह मेरी कन्‍या की खोज में गया और देखा कि एक वृद्ध स्‍त्री उसका पालन कर रही है। स्‍टुअर्ट ने एक बड़ी रकम देकर उसे खरीदना चाहा, किंतु नर-पिशाच दुष्‍टात्‍मा बटलर जान गया कि मेरे ही लिए स्‍टुअर्ट मेरी कन्‍या को खरीद रहा है, अत: मुझे कष्‍ट देने की इच्‍छा से उसे स्‍टुअर्ट के हाथ नहीं बेचा। कप्‍तान स्‍टुअर्ट बहुत ही नरम दिल का था। वह मुझे साथ लेकर अपने कपास के खेतवाले मकान में जाकर रहने लगा। मैं भी वहाँ उसके साथ ही रहने लगी। एक वर्ष के भीतर ही स्‍टुअर्ट से मेरा एक लड़का पैदा हुआ। ओह! कैसा सुंदर था वह। मैं उसे कितना प्‍यार करती थी। देखने में वह ठीक हेनरी-जैसा था। परंतु मैंने पहले ही निश्‍चय कर लिया था कि संतान को पाल-पोसकर बड़ा नहीं करूँगी। पंद्रहवें दिन मैंने उस बालक को बार-बार चूमा, बार-बार उसकी ओर देखा, और तब उसे अफीम खिलाकर छाती से चिपटाकर सो गई। बालक चिरनिद्रा में डूब गया। दो ही घंटे बाद उसकी साँस बंद हो गई। सारी रात मैं उसे छाती से लगाए रही। फिर मैंने कई बार उसका मुँह चूमने के बाद कहा, 'बेटा, मैंने तुझे इन पाखंडी गोरों के हाथों से मुक्‍त कर दिया। अब तुझे दासी के गर्भ से जन्‍म लेने के कारण कोई कष्‍ट न उठाना पड़ेगा।' इस तरह अपने ही हाथों अपने पुत्र के मारे जाने से मुझे कोई कष्‍ट न हुआ, बल्कि उलटे इस खयाल से कि मैंने उसे अत्‍याचार और उत्‍पीड़न से बचा दिया, मुझे कुछ संतोष ही हुआ। और यह अच्‍छा ही हुआ। गुलाम अपनी संतान को मौत के सिवा अधिक सुखदायी और शांतिप्रद दूसरी क्‍या चीज दे सकते हैं? कुछ दिनों के बाद कप्‍तान को हैजे की बीमारी हुई और वह मर गया। संसार की कैसी उलटी गति है! जो लोग जीना चाहते हैं, वे मर जाते हैं और मुझ-जैसे अभागे, जो बार-बार मौत माँगते हैं, जीवित रहते हैं।

"स्‍टुअर्ट के मरने के बाद, उसके उत्तराधिकारियों ने मुझे बेच डाला। इस प्रकार मैं एक-एक करके कई आदमियों के हाथों में रही। उसके बाद यह नर-पिशाच मुझे खरीद लाया और पाँच बरस से मैं यहाँ हूँ।"

यह कहते-कहते कासी का कंठ सूख गया, वह और आगे नहीं बोल सकी। मालूम होता है, लेग्री का ख्‍याल आते ही उसके हृदय में एक विशेष प्रकार का शोक, दु:ख तथा विद्वेष का भाव जाग उठा था।

यह कहानी सुनाते समय कासी कभी टॉम को संबोधन करके कह रही थी और कभी अपने-आप ही, पागलों की तरह बोलती चली जा रही थी।

कासी की जीवन-कहानी सुनते-सुनते टॉम अपने शारीरिक दु:ख को एकदम भूल गया। वह अपनी आँखों से एकटक कासी को देखे जा रहा था। उसने अपने हाथों का सहारा लिया हुआ था।

कुछ देर ठहरने के बाद कासी ने फिर कहा - "टॉम तुम मुझसे कहते हो कि पृथ्‍वी पर परमेश्‍वर है और वह सब-कुछ देखता है। हो सकता है कि ईश्‍वर हो। मैं जब शिक्षाश्रम में थी, तब वहाँ की भगिनियाँ (सिस्‍टर्स) मुझसे कहा करती थीं कि एक दिन मनुष्‍यों के पाप और पुण्‍य का विचार होगा। पर क्‍या उस दिन गोरों को अपने पापों का नतीजा नहीं भोगना पड़ेगा? क्‍या वे अपने पापों के लिए दंड नहीं पाएँगे? उनकी समझ में हम लोगों को कोई कष्‍ट नहीं है। हम लोगों के दिलों में अपने बाल-बच्‍चों के लिए कुछ दु:ख नहीं होता है। हम लोगों की संतानों को भी कोई कष्‍ट नहीं होता है किंतु मुझे मालूम होता है कि केवल मेरे हृदय में शोक की जो आग दबी हुई है, उससे ही यह सारा देश भस्‍म हो सकता है। मैं ईश्‍वर से यह प्रार्थना करती हूँ कि मुझ सहित यह सारा देश पृथ्‍वी के गर्भ में समा जाए, पृथ्‍वी से आग निकले और यह पूरा देश जलकर खाक हो जाए। वह विचार का दिन शीघ्र आए। जिन अत्‍याचारी अंग्रेजों ने मेरा और मेरी संतान का सत्‍यानाश किया है, जिन्‍होंने न केवल हमारे शरीरों बल्कि आत्‍माओं तक का निर्मम विनाश किया है, उन लोगों के विरुद्ध मैं राजाधिराज ईश्‍वर के सामने खड़ी होकर अपील करूँगी, उनसे विनयूपर्वक न्‍याय करने की प्रार्थना करूँगी।"

"बचपन में धर्म पर मेरी विशेष भक्ति थी, ईश्‍वर पर मेरा प्रेम था और मैं उसकी उपासना करती थी। अब तो मेरे शरीर और आत्‍मा का बिल्‍कुल पतन हो गया है। शैतान सदा मेरे सिर पर सवार रहता है। वह मुझे अपने हाथ से अत्‍याचारों और कठोरताओं का प्रतिफल देने को उकसाता है। इसी बीच में किसी दिन इस अत्‍याचार का फल दूँगी। इस नर-पिशाच लेग्री को ठिकाने लगाऊँगी। किसी रात्रि को मौका मिलते ही अपना मनोरथ सिद्ध करूँगी।"

यह कहकर कासी अकस्‍मात खिल-खिलाकर हँस पड़ी, और तभी सहसा वह अचेत होकर गिर पड़ी। कुछ देर बाद वह होश में आई और सँभलकर उठ बैठी। फिर टॉम से बोली - "बोलो, तुम्‍हारे लिए और क्‍या करना होगा? और पानी दूँ?"

जब कासी के मुँह से दया की बात निकली, तब तो वह साक्षात दया की देवी जान पड़ती; पर जब वह प्रतिहिंसा से उत्तेजित होती तो ठीक राक्षसी-जैसा रूप धारण कर लेती। इस संसार में सभी मनुष्‍यों का यही हाल है। वे कभी देव और कभी दानव का स्वाँग करते रहते हैं। जब दया, प्रेम और भक्ति की लहर चढ़ी रहती है तब मनुष्‍य देवता जान पड़ता है; पर द्वेष और प्रतिहिंसा का भाव आते ही वह दानव की शक्‍ल में बदल जाता है।

टॉम ने पानी पिया और दयापूर्ण हृदय तथा व्‍याकुल नेत्रों से उसकी ओर देखकर कहा - "मेम साहब, मैं चाहता हूँ कि आप उस ईश्‍वर की शरण लें जो दु:खी, पापी, ज्ञानी, सबको बिना भेद-भाव के शांति का अमृत प्रदान करता है।"

कासी ने कहा - "टॉम, बताओ, वह ईश्‍वर कहाँ है? कौन है? मैं उसके पास जाना चाहती हूँ।"

टॉम बोला - "उसके संबंध में अभी आपने मेरे सामने पढ़ा है।"

कासी ने कहा - "बचपन में कभी मैंने उसका सिंहासन पर बैठे हुए चित्र देखा था, पर वह यहाँ नहीं है। यहाँ पाप और अत्‍याचार के सिवा और कुछ नहीं दीख पड़ता है।"

इतना कहकर कासी छाती पीटने लगी। टॉम ने फिर कुछ कहना चाहा, परंतु कासी ने उसे रोककर कहा - "बस, अब सो जाओ, बातें न करो!"

यह कहकर उसने पानी का पात्र उसके पास रखा और फिर उसके आराम का इंतजाम करके उस कोठरी से चली गई।

38. भभकती यंत्रणा

लेग्री अपने घर में बैठा ब्रांडी ढाल रहा है और गुस्‍से से आप-ही-आप भनभना रहा है - यह इसी सांबो की बदमाशी है।... इसी का उठाया हुआ सब बखेड़ा है। टॉम एक महीने में भी उठने-बैठने लायक होता नहीं दिखाई देता। इधर फसल का कपास चुनने का समय आ गया। कुलियों की कमी से बहुत नुकसान होगा, कारोबार ही बंद हो जाएगा। सांबो अगर शिकायत न करता तो यह बखेड़ा ही न उठता।

लेग्री की ये बातें समाप्‍त भी न होने पाई थीं कि पीछे से किसी ने कहा - "असल में यही बात है! इन बखेड़ों में हानि के सिवा कोई लाभ नहीं है।"

लेग्री ने पीछे को घूम कर देखा तो वहाँ कासी को खड़े पाया। लेग्री ने कहा - "क्‍यों री चुड़ैल, तू फिर आ पहुँची।"

कासी ने कहा - "हाँ, आ तो गई हूँ।"

लेग्री बोला - "तू बड़ी झूठी है, बड़ी कुलटा है। मैं कहता हूँ, मेरा कहना मान, शांति से रहा कर, नहीं तो मैं तुझसे कुली का काम कराऊँगा।"

कासी ने उत्तर दिया - "एक बार नहीं, हजार बार मैं कुली का काम करूँगी। मुझे कुलियों की तरह टूटी झोपड़ी में रहना मंजूर है, पर आगे से मैं तेरी छाया में नहीं रहना चाहती।"

लेग्री बोला - "तू मेरे पैरों-तले तो अब भी है। खैर, जाने दे, झगड़े की जरूरत नहीं (कासी की कमर में हाथ डालकर और उसकी कलाई पकड़कर) मेरी प्‍यारी, मेरी जान, इधर आ और मेरी जाँघ पर बैठ! सुन मैं तेरे फायदे की बात कहता हूँ।"

कासी ने कड़ककर कहा - "खबरदार! मुझे छूना मत। मुझपर शैतान सवार है।"

कासी की लाल-लाल आँखें और कड़कती आवाज सुनकर लेग्री थोड़ा सहम गया। वास्‍तव में लेग्री के डरने का कुछ विलक्षण कारण है। पर उसने डरने पर भी अपने मन का भाव छिपाते हुए पहले तो कासी को धमकाया - "जा, जा, चल यहाँ से!" फिर कुछ देर के बाद बोला - "कासी, तू ऐसा व्‍यवहार क्‍यों करती है? पहले जैसे तू मुझपर प्रेम किया करती थी, मित्रता का बर्ताव करती थी, वैसे अब क्‍यों नहीं करती?"

कासी ने रुखाई से कहा - "क्‍या कहा? मैं तुमसे प्रेम करती थी!" किंतु इतना कहते-कहते उसका गला रुक गया।

पशुओं-जैसा आचरण करनेवाले पुरुषों को उन्‍मत्त स्त्रियाँ सहज में दबा सकती हैं। कासी भी जब चाहती, लेग्री को दबा लेती। पर आजकल कासी के साथ लेग्री का झगड़ा हो रहा था। वह एमेलिन को उपपत्‍नी बनाने की गरज से लाया था, पर वह किसी तरह अपना धर्म छोड़ने को राजी नहीं होती थी। इससे दुराचारी लेग्री एमेलिन पर तरह-तरह के अत्‍याचार करता था, जब-तब उस पर आक्रमण करने की भी इच्‍छा करता था। एमेलिन की दुर्दशा देखकर कासी के हृदय की सहानुभूति जाग उठती थी। इससे वह एमेलिन का पक्ष लेकर तरह-तरह की चतुराइयों से उसे लेग्री के आक्रमणों से बचाती थी। इसी लिए कासी और लेग्री का विवाद बढ़ गया था। लेग्री ने कासी को तंग करने के लिए अन्‍य कुलियों के साथ खेत पर भेज दिया। उसने सोचा, इससे कासी की अक्‍ल ठिकाने आ जाएगी। पर वह इससे भी उसके वश में न हुई और उसकी उपेक्षा करके खेत का काम करने को तैयार हो गई। यही कारण था कि इसके पहले दिन कासी कुलियों के साथ खेतों पर काम करने गई थी। कासी का यह आचरण देखकर लेग्री के मन में बड़ी बेचैनी पैदा हो गई। पहले दिन खेत में किए हुए काम की जाँच के समय लेग्री ने उसके साथ मेल करने की इच्‍छा से, कुछ सांत्‍वना-मिश्रित घृणा के भाव से, उससे बातें की थीं। पर कासी उससे मुँह फेरकर चली गई। आज फिर लेग्री कहने लगा - "कासी, तुम सीधी-सादी होकर रहो, उत्‍पात मत बढ़ाओ।"

कासी ने जवाब में कहा - "मुझी को क्‍यों कहते हो? तुम स्‍वयं क्‍या कर रहे हो? तुम सिर्फ दूसरों को कहना जानते हो। तुम्‍हें खुद तो जरा-सी भी अक्‍ल नहीं है। इन काम के दिनों में तुमने एक परिश्रमी और काम-काजी आदमी को अपनी सनक में आकर पीट-पाटकर निकम्‍मा बना दिया। इस काम में तुमने कौन-सी अक्‍लमंदी की?"

लेग्री बोला - "सचमुच मैंने बेवकूफी की है, लेकिन यह भी तो सोचो कि कोई आदमी जिद पकड़ ले तो उसे दुरुस्‍त भी तो करना चाहिए!"

कासी ने कहा - "मैं कहती हूँ, इस विषय में वह तुम्‍हारे किए कभी दुरुस्‍त नहीं होने का।"

लेग्री ने तब क्रोध से उठते हुए कहा - "मुझसे दुरुस्‍त नहीं होने का? मैं करके देखूँगा, होता है कि नहीं। ऐसा तो आज तक कोई गुलाम मुझे नहीं मिला, जो मेर हाथ से दुरुस्‍त न हुआ हो। मैं उसकी हड्डी-पसली चूरकर दूँगा!"

उसी समय कमरे का द्वार खोलकर सांबो अंदर आया। वह हाथ में एक काली-सी पोटली लटकाए हुए था। उसे देखकर लेग्री ने कहा - "क्‍यों बे सूअर, तेरे हाथ में क्‍या है?"

सांबो ने कहा - "सरकार जादू की पुड़िया!"

लेग्री बोला - "वह क्‍या होती है?"

सांबो ने उत्तर दिया - "हब्‍शी लोग जादू की पुड़िया पास रखते हैं। इसके पास रहने से कोड़ों की मार असर नहीं करती। टॉम ने काले डोरे से इसे गले में बाँध रखा था।"

ईश्‍वर-शून्‍य हृदय कायरता और कुसंस्‍कारों के पनपने के लिए उपयुक्‍त होता है। लेग्री को ईश्‍वर पर जरा भी विश्‍वास न था, इसी से उसका मन नाना प्रकार के कुसंस्‍कारों का घर बना हुआ था।

ज्‍योंहि उसने पोटली को हाथ में लेकर खोला, त्‍योंही उसमें से एक चांदी का सिक्‍का और लंबे-घुँघराले बालों का एक गुच्‍छा निकला। सुवर्ण की तरह चमकता हुआ वह बालों का गुच्‍छा, किसी जीवित पदार्थ की तरह, लेग्री की उँगलियों से चिपट गया। वह भय से चिल्‍लाकर बोल उठा - "चूल्‍हे में जाए!" उसका तात्‍कालिक भाव देखकर मालूम हुआ, मानो बालों के इस गुच्‍छे के छू जाने से उसका हाथ जल रहा है। वह जोर से जमीन पर लात पटककर, अँगुलियों से बालों को छुड़ाकर फेंकते हुए सांबो से बोला - "तुझे ये बाल कहाँ मिले? ले, अभी तुरंत ले जाकर जला डाल?" इतना कहकर सामने जलती हुई आग में उन बालों को फेंक दिया और सांबो से बोला - "खबरदार, जो ऐसी चीजें फिर कभी मेरे पास लाया!"

सांबो आश्‍चर्य से देखता खड़ा रह गया। कासी भी यह देखकर विस्‍मय से लेग्री का मुँह ताकने लगी। लेग्री ने कुछ स्थिर होकर सांबो को घूँसा दिखाते हुए कहा - "फिर कभी मेरे सामने यह जंजाल मत लाना!" लेग्री का ऐसा रुख देखकर सांबो वहाँ से नौ-दो-ग्‍यारह हो गया। उसके चले जाने पर लेग्री यह सोचकर कि ऐसी छोटी-सी बात पर मुझे इतना गुस्‍सा नहीं करना चाहिए, कुछ लज्जित-सा हो गया और फिर गिलास में ब्रांडी ढालकर गले में उड़ेलने लगा। कासी बाहर आकर चुपके-से टॉम को कुछ दवा-पानी देने चली गई।

यहाँ यह जानने की उत्‍कंठा होगी कि बालों के इस गुच्‍छे को देखकर लेग्री का क्रोध इतना क्‍यों भड़क उठा। वह उन्‍हें देखकर इतना क्‍यों डर गया! इसका मूल कारण जानने के लिए लेग्री के पूर्व जीवन की दो-चार घटनाओं का उल्‍लेख करना आवश्‍यक है।

इस पापात्मा लेग्री की माता अत्‍यंत सच्‍चरित्र और स्‍नेहमयी थी। अत: कितनी ही बार उत्तम-उत्तम भजनों के शब्‍द और ईश्‍वर का नाम लेग्री के कानों में बचपन में पड़ता रहा था। किंतु माता जितनी धार्मिक थी, पिता उतना ही दुष्‍टात्‍मा था। लेग्री की उम्र बढ़ने के साथ-साथ उसके स्‍वभाव पर उसके दुष्‍ट पिता के संस्‍कार गहरे होने लगे। लेग्री की माँ आयलैंड के एक किसान की बेटी थी। उस सहृदय रमणी का भाग्‍य दैवेच्‍छा से इस पाशविक प्रकृतिवाले हृदयहीन मनुष्‍य के साथ बँध गया। युवावस्‍था शुरू होने के पहले ही लेग्री ने नाना तरह के नीच कर्मों में हिस्‍सा लिया था और इस विषय में अपनी साध्‍वी माँ के रोने-झींकने की भी कोई चिंता नहीं की थी। धन कमाकर उसके द्वारा भोग-विलास करना ही उसके जीवन का एकमात्र लक्ष्‍य था। सत्रह-अठारह वर्ष की उम्र में ही उसने घर छोड़कर अपने को जहाज के काम में लगाया। उस समय से वह जल-मार्ग से जानेवाली महिलाओं पर, समय-असमय घोर अत्‍याचार करता था। इसके बाद लेग्री केवल एक बार ही अपने घर गया था। उस समय उसकी माता ने उसे घर पर रहकर ही भले लोगों की तरह जीवन बिताने को कहा। माँ के रोने-धोने से लेग्री का मन क्षण भर के लिए पसीजा। उसकी जिंदगी में केवल यही क्षण उसके सुधार के लिए उपयुक्‍त था। यदि इस क्षण का उपयोग वह कर पाता तो शायद सुधर जाता। पर उसके हृदय पर पाप की ही विजय रही। उसने माँ के वचनों को नहीं माना। तब वह स्‍नेहमयी जननी बेटे के गले से लगकर रोने लगी, किंतु वह अपनी माँ को पैर से धकेलकर घर से चला आया। उसकी माँ बेहोश होकर जमीन पर पड़ी रही। विदेश जाकर फिर कभी उसने अपनी माँ की खोज-खबर नहीं ली।

एक दिन की बात है। वह अपने ही जैसे दुराचारी मित्रों के साथ बैठकर शराब पी रहा था और दो-तीन अनाथ कुली औरतों की अस्‍मत को जबरदस्‍ती बिगाड़ने की तैयारी कर रहा था कि इसी बीच एक नौकर ने आकर उसके हाथ में एक पत्र दिया। पत्र खोलते ही उसमें से बालों का एक गुच्‍छा निकला। वह बालों का गुच्‍छा उसकी अँगुलियों से लिपट गया। इस पत्र में उसकी माँ की मृत्‍यु की खबर थी और लिखा था कि मृत्‍यु के समय उसने पुत्र के सारे अपराधों को क्षमा करके ईश्‍वर से उसके कल्‍याण की प्रार्थना की थी। पत्र को पढ़कर लेग्री के मन में भय का संचार हुआ। अपनी माँ के वे सजल नेत्र उसे याद आए, जब वह उसे अंतिम बार पैर से धकेलकर चला आया था। माता द्वारा मृत्‍यु के समय की गई प्रार्थना का स्‍मरण करते ही उसका हृदय काँप उठा। परंतु ब्रांडी की बोतल और कुली युवतियाँ सामने बैठी थीं, यदि जल्‍दी ही जननी-संबंधी सारी स्‍मृति को हृदय से दूर नहीं किया तो सारा मजा ही किरकिरा हो जाएगा। उसने तुरंत अपनी जननी के बालों का गुच्‍छा और वह चिट्ठी आग में डाल दी। पर बालों के उस गुच्‍छे के जलते ही उसे फिर उसी भयंकर नरक की याद आई। उसका हृदय फिर काँप उठा, किंतु वह सामने रखी हुई बोतल से ब्रांडी ढाल-ढालकर पीने लगा, और किसी तरह इस भयानक चिंता से अपने को बचाने की फिक्र करने लगा। कुछ देर के लिए ब्रांडी ने उसके हृदय से वह स्‍मृति दूरकर दी। पर तब से प्राय: वह रात्रि के समय अपनी माँ को अपनी चारपाई के पास ही खड़ी देखा करता था। माँ का चेहरा उदास होता और उसकी आँखों में आँसू होते। माँ के वे बाल आकर उसकी अँगुलियों में लिपट जाते और वह भय तथा त्रास से काँप जाता। बाल जलाने के संबंध में लेग्री के जीवन में एक ऐसी ही घटना घट चुकी है, इसी से आज फिर बाल जलाने के समय उसे बड़ा डर लगा। इसी कारण वह सांबो पर इतना गुस्‍सा हुआ था। सांबो और कासी के चले जाने पर भी वह अपने मन को स्थिर नहीं कर सका। कुछ ही पलों के बाद बोला - "भाड़ में जाएँ ये सब बातें! इनको सोचकर क्‍या होगा!" वह फिर ब्रांडी के प्याले-पर-प्‍याले ढालने लगा। फिर मन-ही-मन सोचने लगा - "क्‍या बात है? वे बाल जैसे अँगुलियों से लिपट गए थे, वैसे ही ये बाल भी क्‍यों लिपट गए? क्‍या बालों में भी जान होती है? वे बाल क्‍या आग में जले नहीं?" वह फिर सोचने लगा - "मैं अब इन चिंताओं को मन में नहीं आने दूँगा। चलता हूँ एमेलिन के पास... बंदरिया मुझसे घिन करती है, पर मैं उसे हत्‍थे पर लाऊँगा। आज मैं उसे किसी भी तरह नहीं छोड़ने का!"

इतना कहकर लेग्री ऊपर के कमरे में एमेलिन के पास जाने लगा। सीढ़ी पर पाँव रखते ही उसके कानों ने एक गीत की कड़ी सुनी। गीत सुनकर वह ठिठक गया। केशों को जलाने से उसका मन अस्थिर हो गया था, अब गीत सुनकर वह और भी घबराया।

कोई अत्‍यंत करुण स्‍वर में गा रहा था :

हाय! कब छूटेगा संसार?

कब तक रोऊँगी अभाग्‍य पर, पड़कर नरक-मंझार।

शोक-निशा है ग्रसने वाली, हैं पीड़ा अपार।।

हाय! कब छूटेगा संसार?

गीता को सुनकर लेग्री का मन और भी उद्विग्‍न तथा अस्थिर हो गया। वह मन-ही-मन कहने लगा, भाड़ में जाए वह अभागी! मैं इसका गला घोंटकर मार डालूँगा। इसके बाद जल्‍दी-जल्‍दी पुकारने लगा - "एम!एम!" परंतु कहीं से कोई उत्तर न आया। केवल माँ! माँ! की प्रतिध्‍वनि ही उसे सुनाई पड़ रही थी। गीत अभी चल रहा था :

महाभयंकर वह दिन होगा, हा विधि! हा कर्तार!

जब पापानल में जल-भुनकर, होऊँगी मैं छार।।

हाय! कब छूटेगा संसार?

लेग्री फिर ठहरा। उसके सिर से पसीना निकलने लगा। उसका हृदय काँपने लगा। उसे मालूम होने लगा, मानो उसके सामने आँसू बहाती हुई उसकी माँ ही खड़ी है। तब वह मन में सोचने लगा - यह क्‍या हुआ? सचमुच ही यह टॉम जादू करना जानता है क्‍या? चलो, आगे उसे नहीं मारूँगा। लेकिन यह बालों का गुच्‍छा उसने कहाँ से पाया? क्‍या वे मेरी माँ के ही बाल थे? वे कैसे हो सकते हैं? उन्‍हें जलाए तो मुझे कई साल बीत गए! यह बालों का गुच्‍छा ठीक वैसा ही क्‍यों जान पड़ता था? अगर उन जले हुए बालों में जान आ गई, तो यह बड़ा मजाक होगा!

अरे ओ नराधम लेग्री! तू इन केशों की महिमा क्‍या जाने! तेरे-जैसे पापी इसे नहीं समझ सकता। इन केशों ने ही आज तेरे हाथ-पैरों में बंधन डाल दिए। ऐसा न होता तो इसी घड़ी तू उस निर्दोष निर्मल-चरित्र एमेलिन का जीवन-सर्वस्‍व हरण करके उसके परम पवित्र शरीर को अपवित्र कर देता। उसके निर्मल जीवन में कलंक की कालिमा लगा देता।

आज लेग्री के मन में भभकी हुई यंत्रणा की ज्‍वाला किसी भी उपाय से शांत नहीं हो रही है। अत: उसने मन-ही-मन निश्‍चय किया कि आज मैं अकेला नहीं रहूँगा। सांबो और कुइंबो को बुलाकर वह सारी रात उनके साथ शराब-कबाब उड़ाता रहा और हल्‍ला मचाता रहा। इनके शोरगुल के मारे दूसरे लोगों की नींद हराम हो रही थी। टॉम को पथ्‍य-पानी देकर कासी रात को एक बजे के बाद घर लौट रही थी। घर में घुसते ही उसे इनका शोर सुनाई पड़ा। उसने देखा कि शराब के नशे में चूर होकर लेग्री, सांबो और कुइंबो तीनों हाथापाई कर रहे हैं। कासी ने बरामदे में आकर, पर्दे को थोड़ा खिसकाकर इन लोगों की ओर देखा। उसकी आँखों में उस समय घोर द्वेष और घृणा के भाव दिखाई पड़े। वह मन-ही-मन सोचने लगी-क्‍या इस नर-पिशाच से मानव-समाज को मुक्त करने की कोई सूरत निकलेगी? यही सोचते हुए वह सीढ़ियाँ चढ़कर दुमंजिले पर पहुँची और धीरे-धीरे एमेलिन का दरवाजा खटखटाने लगी।

39. संवेदना का प्रभाव

कासी ने कमरे के अंदर पहुँच कर देखा कि एमेलिन एक कोने में दुबकी हुई भयभीत बैठी है। उसका चेहरा पीला पड़ा हुआ है। कासी के आने की आहट सुनकर वह चौंक उठी। पर उसने जब कासी को देखा तो दौड़कर उसकी बाँहें पकड़ लीं और बोली - "कासी! तुम हो? मैंने सोचा था, कोई और आ रहा है। बड़ा अच्‍छा हुआ जो तुम आ गई। मुझे डर बहुत ही सता रहा था। तुम नहीं जानती हो कि नीचे के कमरे में कितना भयंकर शोर हो रहा है।"

कासी ने कहा - "मैं सब जानती हूँ, बहुत दिनों से सुनती आई हूँ।"

एमेलिन बोली - "कासी, क्‍या यहाँ से हम लोगों के निकल चलने का कोई उपाय नहीं है? इस जंगल में साँपों और शेरों के बीच रहना अच्‍छा है, पर यहाँ नहीं।"

कासी ने कहा - "कब्र के लिए और कोई जगह नहीं है।"

दो क्षण ठहरकर एमेलिन बोली - "तुमने कभी चेष्‍टा की है?"

कासी ने उत्तर दिया - "मैंने खूब चेष्‍टा कर देखी है, पर कोई नतीजा नहीं।"

एमेलिन ने कहा - "मुझे वन में, दलदल में, पेड़ों के पत्ते खाकर रहना मंजूर है। मैं भयंकर साँपों से भी इतना नहीं डरती, जितना लेग्री- जैसे नर-पशुओं के निकट रहने से डरती हूँ।"

कासी बोली - "बहुतों ने तुम्‍हारी ही भाँति यहाँ से भाग निकलने की बात सोची, पर भागने से कहाँ छुटकारा है? वह तुम्‍हें दलदल में भी नहीं टिकने देगा। शिकारी कुत्तों से पता लगवा लेगा, पकड़वा, और-तब..."

एमेलिन ने पूछा - "और तब क्‍या करेगा?"

कासी बोली - "इसके बदले यह पूछो कि क्‍या नहीं करेगा। जलदस्‍युओं में रहकर यह अपने पेशे से क्रूर हो गया है। यदि मैं तुम्‍हें उसकी कभी-कभी मजाक में कही हुई बातें सुनाऊँ और यहाँ का अपना आँखों देखा हाल बताऊँ तो तुम्‍हें रात में नींद आना भी मुश्किल हो जाएगा। इस घर के पिछवाड़े एक अधजला पेड़ है। उस पेड़ के नीचे की जमीन काली राख से ढकी पड़ी है। यहाँ के किसी आदमी से पूछो कि यहाँ क्‍या हुआ है? देखो, फिर वह कहने की भी हिम्‍मत करता है या नहीं।"

एमेलिन ने जिज्ञासा से पूछा - "तुम्‍हारे कहने का मतलब मैं नहीं समझी।"

तब कासी ने बताया - "मैं तुमसे वह सब नहीं कहूँगी। मैं उन बातों को मन में लाना भी बुरा समझती हूँ। और मैं तुमसे कहती हूँ कि यदि कल भी टॉम अपनी जिद पर अड़ा रहा और उसने लेग्री की बात नहीं मानी, तो परमात्‍मा ही जानता है कि हमें कल कैसा भयानक दृश्‍य देखना पड़ेगा।"

एमेलिन भय से पीली पड़कर बोली - "ओफ! कितना भयंकर है। अरी कासी, मुझे रास्‍ता बता। मैं अब क्‍या करूँ?"

कासी ने समझाया - "जो मैंने किया है, और अंत में झख मारकर जो तुम्‍हें भी करना पड़ेगा, वही करो!"

एमेलिन ने अपनी व्‍यथा सुनाई - "वह मुझे अपनी घिनौनी ब्रांडी पिलाना चाहता है और मैं उससे हद से ज्‍यादा नफरत करती हूँ।"

कासी ने बताया - "ब्रांडी पीना अच्‍छा रहेगा। पहले मैं भी ब्रांडी से घृणा करती थी, लेकिन अब तो मैं उसके बिना जी नहीं सकती। यह सब-कुछ खाए-पिए बिना काम नहीं चलता। जब तुम पीने लगोगी, तब इतनी बुरी भी नहीं लगेगी।"

एमेलिन बोली - "माँ मुझे बराबर कहा करती थी कि ऐसी चीजों को छूना तक नहीं चाहिए।"

कासी ने कहा - "तुम्‍हारी माँ तुम्‍हें ऐसा कहती थी, यह अचरज की बात है। माँ की कही हुई इन बातों का क्‍या नतीजा होना है? जिसने हमें मोल लिया है, वह हमारे शरीर और आत्‍मा का मालिक है। उसकी कही बात हमें माननी होगी। मैं कहती हूँ तुम ब्रांडी पीओ! जितनी पी सको, उतनी पीओ! इससे तुम्‍हारी मानसिक पीड़ा बहुत-कुछ दूर हो जाएगी।"

एमेलिन ने प्रार्थना की - "कासी! कासी! मुझपर दया करो!"

कासी चौंककर बोली - "क्‍या मैं नहीं करती हूँ? तुम्‍हारी-जैसी एक मेरी भी बेटी थी। ईश्‍वर जाने, वह अब कहाँ है! कैसी है! संभव है, जिस रास्‍ते का उसकी माता ने सहारा लिया है, वह भी उसी पर चली हो, और उसकी संतानें भी उसी पर जाएँगी। हाय, इस बदकिस्‍मती का क्‍या ठिकाना है!"

एमेलिन ने अपने हाथों को ऐंठते हुए कहा - "मेरा जन्‍म ही न होता तो अच्‍छा था।"

कासी बोली - "मेरे लिए तो यह पुरानी इच्‍छा है। बहुत बार मैंने ऐसी इच्‍छा की है। मन में आता है कि जान दे दूँ, पर हिम्‍मत नहीं होती।"

एमेलिन ने कहा - "आत्महत्या करना पाप है।"

"मैं नहीं जानती कि आत्महत्या को क्‍यों पाप बताया जाता है?" कासी ने दुखी स्‍वर में कहा - "हम नित्‍य जिन पापों में लिप्‍त रहती हैं, उनसे भी बड़ा क्या कोई पाप है? पर जब मैं शिक्षाश्रम में थी, तब वहाँ की भगिनियों से मैंने इस विषय में जो बातें सुनी थीं, उन्‍हें याद करके आत्महत्या करने में डर लगता है। यदि आत्महत्या के साथ आत्‍मा का लोप हो जाता, तो फिर..."

एमेलिन ने यह सुनकर, पीछे हटकर, दोनों हाथों से मुँह ढँक लिया।

यहाँ जब ये बातें हो रही थीं, उस समय लेग्री शराब के गहरे नशे में मस्‍त होकर नीचे के कमरे में पड़ा नींद में खर्राटे भर रहा था।

नींद की दशा में वह स्‍वप्‍न देख रहा था कि सफेद कपड़े पहने हुए कोई मूर्ति उसके पास खड़ी है और बरफ जैसे ठंडे हाथों से उसके शरीर को छू रही है। यह मूर्ति उसे कुछ परिचित-सी जान पड़ी। डर के मारे उसका सारा शरीर जड़ हो गया। फिर उसे ऐसा लगा, जैसे वह बालों की लट आकर उसकी अँगुलियों के चारों ओर लिपट गई। देखते-देखते वह लट गले तक जा पहुँची और उसने गले को सब ओर से लपेटकर बाँध लिया। लेग्री की साँस रुक गई। तब वह श्‍वेत वस्‍त्रधारी मूर्ति उसके कान में कुछ कहने लगी। उसकी बात सुनकर लेग्री को लगा की उसके हृदय की गति रुकने लगी है। उसने फिर देखा कि वह किसी कुएँ के किनारे खड़ा हुआ है। कासी वहाँ हँसती हुई आई और उसे कुएँ में धकेल दिया। फिर उसने उसे श्‍वेत वस्‍त्रधारी मूर्ति को अपने सामने देखा। उस मूर्ति ने अपने मुँह पर से पड़ा पर्दा हटा लिया। लेग्री ने देखा, यह तो उसकी माँ है! उसे देखकर माँ वापस चली गई और वह एक बड़े गहरे खड्ड में जा गिरा। वहाँ चारों ओर शोरगुल, चिल्‍लाहट, आर्त्तनाद और भूत-प्रेतों की विकट हास्‍य-ध्‍वनि सुनकर लेग्री की नींद खुल गई।

इधर सवेरा हो गया था।

प्रतिदिन प्रात:कालीन सूर्य मानव-हृदय में नई-नई भावनाएँ जगाता है। प्रात:कालीन समीर मधुर स्‍वर में कहता है - "अरे मनुष्‍यों, अपने पापासक्‍त मन को सुमार्ग पर लाने के लिए, अपने हृदय का मैल धो डालने के लिए, ईश्‍वर ने तुम्‍हें फिर यह एक नया अवसर दिया है।" लेकिन न तो प्रात:कालीन सूर्य, और न प्रात:कालीन पवन, कोई भी, लेग्री सरीखे पाप-पंक में लिप्‍त व्‍यक्ति के मन में शुभ भावना जगा सका। लेग्री के मन में प्रभात-काल किसी प्रेरणा का उदय नहीं कर पाता था। वह बिस्‍तर से उठा नहीं कि शराब की बोतल हाथ में ले लेता था।

कासी को, जो उसी समय दूसरे दरवाजे से कमरे में आई थी, देखकर लेग्री बोला - "कासी, आज रात को मुझे बड़ी तकलीफ हुई।"

कासी ने रूखेपन से कहा - "आज ही क्‍या, अभी आगे-आगे और भी कष्‍ट भोगना होगा।"

लेग्री ने पूछा - "तुम्‍हारे ऐसा कहने का क्‍या मतलब है?"

कासी ने कहा - "अभी नहीं, बाद में समझोगे। लेग्री, मैं तुम्‍हारे भले के लिए एक सलाह देती हूँ।"

लेग्री बोला - "क्‍या?"

कासी बोली - "वह सलाह यही है कि अब तुम टॉम को सताना बंद कर दो।"

लेग्री गुर्राकर बोला - "इस बात से तुम्‍हारा क्‍या संबंध है?"

कासी ने धीरज से जवाब दिया - "मेरा इस बात से सीधा कोई संबंध नहीं है, लेकिन मैं तुम्‍हें जो समझाना चाहती हूँ वह यह है कि ये काम के दिन हैं, इस वक्‍त मारपीट करने से तुम्‍हारा ही नुकसान है। आखिर तुम बारह सौ डालर नकद गिनकर एक आदमी लाओ और उसे इस तरह बेकार ही मार डालो, तो सोचो, कितना नुकसान होगा। तुम्‍हारी हानि के खयाल से ही मैं उसे जल्‍दी चंगा करने की कोशिश करती हूँ।"

लेग्री ने क्रोध के साथ कहा - "तू उसे ठीक करने क्‍यों गई? मेरे मामले में तेरे टाँग अड़ाने का क्‍या मतलब है?"

कासी बोली - "सचमुच कुछ भी नहीं। पर मैंने इसी तरह कई बार तुम्‍हारा रुपया बचा दिया। अगर फसल अच्‍छी न हुई तो तुम्‍हारी आँखें खुल जाएँगी।"

कपास की फसल के लिए लेग्री जी-जान से कोशिश करता था। इसी से कासी ने टॉम की मार टालने के खयाल से, बड़ी चतुराई से बात शुरू की थी।

लेग्री बोला - "खैर, मैं इस बार उसे छोड़ दूँगा। लेकिन शर्त यह है वह मुझसे क्षमा माँगे और भविष्‍य में मेरी बात पर चलने का वादा करे।"

कासी ने तुरंत कहा - "यह वह नहीं करेगा।"

लेग्री ने पूछा - "नहीं करेगा?"

कासी ने दृढ़ता से कहा - "नहीं करेगा।"

लेग्री बोला - "मुझे मालूम तो हो, कि क्‍यों नहीं करेगा?"

कासी ने समझाया - "उसका विश्‍वास है कि उसने जो कुछ किया है, ठीक ही किया है। वह कभी नहीं कहेगा कि उसने अनुचित किया है।"

लेग्री झुँझलाकर बोला - "हब्‍शी गुलामों का भी क्‍या कोई न्‍याय-अन्‍याय होता है? मैं जो कहूँगा, वही उसे करना होगा।"

कासी ने स्थिर स्‍वर में उत्तर दिया - "तब वह काम के समय खाट पर ही रहेगा और इस साल तुम्‍हारी फसल खराब होगी।"

लेग्री अकड़ से बोला - "लेकिन वह जरूर माफी माँगेगा, जरूर माँगेगा। मैं क्‍या इन हब्शी गुलामों को नहीं पहचानता?"

कासी ने उसे पुन: वही उत्तर दिया - "लेग्री, मेरी इस बात को गाँठ बाँध लो, वह कभी माफी नहीं माँगेगा। तुम उसे मामूली गुलाम मत समझना। तुम उसकी बोटी-बोटी काट डालोगे, तब भी वह अपनी बात से नहीं टलेगा।"

लेग्री बोला - "मैं उसे देखूँगा। वह इस समय कहाँ है?"

कासी ने बताया - "जिस कोठरी में सड़ी रुई और पुराना माल-असबाब पड़ा है, उसी में है।"

लेग्री ने कासी के सामने इस तरह हेकड़ी तो जाहिर की, किंतु उसके मन में भी शंका होने लगी कि टॉम क्षमा नहीं माँगेगा। उसने सोचा कि यदि वह टॉम से क्षमा नहीं मँगवा सका तो साथ रहनेवाले लोगों में उसकी हेठी होगी, रौब में फर्क पड़ेगा, इसलिए वह अकेला ही टॉम की कोठरी की ओर गया। उसने मन-ही-मन सोचा कि यदि टॉम क्षमा नहीं माँगेगा तो भी उसे इस वक्‍त नहीं मारूँगा, फसल का मौसम बीत जाने पर उसे दुरुस्‍त करूँगा।

हम पहले ही कह आए हैं कि सवेरे की हवा और सवेरे का सूर्य लोगों की भिन्‍न-भिन्‍न प्रकृति के अनुसार उनमें भिन्‍न-भिन्‍न प्रकार के भाव जगाता है। किंतु लेग्री जैसे भावहीन चिंताशून्‍य, अर्थलोलुप, इंद्रियासक्‍त पिशाच के हृदय में किसी प्रकार का भाव प्रवेश नहीं कर सकता। उसका ध्‍यान केवल कपास के खेत, पैसा इकट्ठा करना, शराब और कुली औरतों में लगा है। किंतु अपढ़ होने पर भी टॉम का मन भावों और चिंताओं से शून्‍य नहीं है। प्रभातकालीन सजीवता ने उसके हृदय में नवीन बल का संचार किया। उसे मालूम होने लगा-मानो शुक्र तारा आकाश से उतरकर उससे कह रहा है - "टॉम, डरना नहीं। ईश्‍वर तुम्‍हारे साथ है।" टॉम को मन-ही-मन बड़ी प्रसन्‍नता होने लगी। विशेषकर इस बात से कि लेग्री उसे जान से मार डालेगा। पहले उसे इस बात को नहीं सोचा था, परंतु कासी की पहले दिन की बातचीत के ढंग से वह समझ गया था कि अब उसकी मृत्‍यु बहुत निकट है। अत: इस मृत्‍यु-संवाद को पाकर उसकी आत्‍मा विमल आनंद से पूर्ण हो गई। वह सोचने लगा, मृत्‍यु के उपरांत वह ईश्‍वर के उस प्रेम-राज्‍य में जाकर विश्राम करेगा, जहाँ द्वेष, हिंसा और अत्‍याचार की गंध भी नहीं है। वहाँ प्राणों से प्रिय इवान्‍जेलिन का मुख-कमल देखेगा और यह भी देखेगा कि परम दयालु मालिक सेंटक्‍लेयर की नास्तिकता परलोक में जाकर दूर हो गई है। अहा, टॉम के लिए इससे बढ़कर सुख और संतोष की बात और क्‍या हो सकती है? वह अपने शारीरिक कष्‍टों को भूलकर आनंद से विह्वल हो गया। उसके मुखमंडल पर प्रसन्‍नता एवं किंचित हास्‍य का आभास दिखाई दे रहा था। इसी समय नर-पिशाच लेग्री ने वहाँ पहुँचकर उसे पुकारा और पैरों से ठुकराते हुए कहा - "कहो बच्‍चू, कैसे हो? मैंने तुझसे नहीं कहा था कि तुझे सिखा दूँगा? बोल, यह शिक्षा कैसी लगती है? अभी कुछ जिद बाकी है कि निकल गई? आज इस पापी को कुछ धर्म नहीं सिखाएगा।"

टॉम ने इसका कोई उत्तर नहीं दिया।

इस पर लेग्री ने उसे फिर ठोकर मारते हुए कहा - "उठ सूअर!"

पिछले दिन की मार से टॉम बहुत शक्तिहीन हो गया था, इससे बोला - "क्‍यों, तुझे क्‍या हो गया है? मालूम होता है, रात की ठंडी हवा से सर्दी खाकर अकड़ गया है।"

टॉम बड़े कष्‍ट से उस पापी उत्‍पीड़क के सामने निडर होकर खड़ा हो गया।

लेग्री कहने लगा - "अरे शैतान, मैं समझता हूँ कि अभी तुझे काफी सजा नहीं मिली है। मेरे सामने घुटने टेककर माफी माँग, नहीं तो और पीटता हूँ। जल्‍दी कर! माफी माँगता है कि नहीं?" इतना कहकर हाथ में लिए कोड़े से वह उसे सड़ासड़ पीटने लगा।

टॉम ने कहा - "सरकार, लेग्री साहब, यह मुझसे नहीं होगा। मैंने केवल वही किया है, जिसे मैंने उचित समझा है। आगे भी, काम पड़ने पर, मैं ऐसा ही करूँगा। चाहे कुछ भी हो जाए, मैं किसी को मारने-पीटने का हृदयहीन काम कभी नहीं करूँगा।"

लेग्री बोला - "ठीक है। लेकिन हजरत, अभी आपको यह पता नहीं कि इसके बाद आपकी क्‍या दुर्गति होगी। तू समझता है कि कल जो कुछ हुआ, वह काफी हो गया पर मैं तुझे बताता हूँ कि वह तो बस बानगी था। जरा उस मजे का खयाल करके देख, जब तुझे पेड़ से बाँध दिया जाएगा और नीचे धीमी-धीमी आग जलाकर तुझे भूना जाएगा।"

टॉम ने कहा - "सरकार, मैं जानता हूँ कि आप भयंकर-से-भयंकर काम कर सकते हैं।"

इतना कहते-कहते उसकी आँखों में आँसू आ गए और वह ऊपर को हाथ उठाकर कहने लगा - "किंतु इस शरीर का नाश कर डालने के बाद आप और कुछ अधिक नहीं कर सकेंगे - उसके बाद तो मैं अनंत में मिल जाऊँगा।"

अनंत! कैसा चमत्‍कारी शब्‍द है! प्रेम और आनंद, दोनों इस में समाए हुए हैं। काले टॉम के हृदय में इसने शांति और आनंद का स्रोत बहा दिया। और यही शब्‍द लेग्री को भीतर-ही-भीतर बिच्‍छू के डंक-जैसा लगा। इस पर वह दाँत किचकिचाने लगा।

टॉम फिर स्‍वाधीनतापूर्वक कहने लगा - "लेग्री साहब, तुमने मुझे खरीदा है, इससे मैं तुम्‍हारा दास हूँ। अवश्‍य ही मैं जी-जान से तुम्‍हारा काम करूँगा। मेरा शारीरिक बल और समय तुम्‍हारे काम के लिए है, परंतु अपनी आत्‍मा को मैं कभी तुम्‍हारे हाथ में अर्पण नहीं करूँगा। जान रहे या जाए, चाहे इधर की दुनिया उधर हो जाए, लेकिन मैं ईश्‍वर के आदेश का पालन अवश्‍य करूँगा। मेरी यह आत्‍मा उसी के चरणों में समर्पित है। मैं उसके आदेश का उल्‍लंघन करके कभी हृदयहीन व्‍यवहार नहीं करूँगा!- कभी नहीं! तुम्‍हारा जी चाहे, मुझे कोड़ो से मारो, लाठियों से मारो, आग में जलाकर बिल्‍कुल खत्‍म कर दो-कुछ भी करो, परंतु मैं धर्म को नहीं छोडूँगा। हर्गिज नहीं-हर्गिज नहीं!!"

लेग्री ने क्रोध से उबलते हुए कहा - "देखता जा, मैं तेरी सब बदमाशी निकाल दूँगा। जब तुझे ठिकाने से मार पड़ेगी, तब तू समझेगा।"

टॉम बोला - "मुझे मदद मिलेगी!"

लेग्री ने पूछा - "कौन तेरी मदद करेगा?"

टॉम ने कहा - "सर्वशक्तिमान ईश्वर मेरी मदद करेंगे।"

लेग्री ने एक घूँसा मारकर टॉम को जमीन पर धकेल दिया और कहा - "देखूँगा, तेरा ईश्‍वर कैसे तेरी मदद करता है।"

इसी समय पीछे से एक ठंडा और कोमल हाथ लेग्री के शरीर पर लगा। उसने फिर देखा, कासी है, परंतु ठंडे हाथ के स्‍पर्श से उसे पिछली रात के सपने की याद हो आई और वह कुछ भयभीत हो गया।

कासी ने फ्रेंच भाषा में कहा - "लेग्री, तुम भी कैसे अहमक हो! छोड़ो इसे। काम के वक्‍त तुम नाहक का टंटा लेकर खड़े हो गए हो। तुम्‍हें मैं कई बार समझा चुकी हूँ। मैं इसकी दवा-पानी करके देखती हूँ कि किसी तरह जल्‍दी अच्‍छा होकर खेत के काम लायक हो जाए।"

यह सही है कि मगर और गैंडे के चमड़े पर गोली असर नहीं करती, लेकिन उनके शरीर में भी एक ऐसा स्‍थान होता है, जिसे भेदकर गोली उनका काम तमाम कर सकती है। उसी भाँति नीच, लंपट, निर्दयी, अविश्‍वासियों और नास्तिकों को डराने का भी एक-न-एक रास्‍ता होता है। भ्रांत संस्‍कारों से पैदा हुआ भय सदा ही उनके मनों में घर किए रहता है। पिछली रात के सपने में देखी हुई अपनी माँ की दृष्टि का स्‍मरण आते ही लेग्री का हृदय काँप गया।

लेग्री ने कासी से कहा - "अच्‍छा इसे तुम्‍हीं सँभालो!"

फिर वह टॉम से बोला - "इस वक्‍त तो मैं तुझे छोड़ता हूँ, क्‍योंकि आजकल काम के दिन हैं। पर याद रखना, इसके बाद मैं तुझे समझूँगा। तुझे सीधा न किया तो मेरा नाम लेग्री नहीं!"

इतना कहकर वह चला गया।

कासी मन-ही-मन बोली - "अब तो तुम यहाँ से सरको, फिर देखा जाएगा। तुम्‍हारे भी तो दिन नजदीक ही आ रहे हैं।"

फिर कासी ने टॉम से पूछा - "कहो तुम्‍हारे, क्‍या हाल हैं?"

टॉम ने कहा - "इस समय ईश्‍वर ने अपना दूत भेजकर सिंह का मुँह बंद कर दिया है।"

कासी बोली - "हाँ, इस समय तो सचमुच मुँह बंद कर दिया। लेकिन अब वह तुमसे बुरी तरह मात खाकर गया है। धीरे-धीरे तुम्‍हारा खून चूस-चूसकर वह तुम्‍हारी जान लेगा। मैं इस पाजी को भली-भाँति जानती हूँ।"

40. स्वततंत्रता का नव-प्रभाव

टॉम लोकर एक वृद्ध क्‍वेकर रमणी के घर पर शारीरिक यंत्रणा से कराह रहा था। आपने साथी मार्क को गालियाँ दे रहा था और कभी फिर उसका साथ न देने के लिए सौ-सौ कसमें खा रहा था।

वह दयालु बुढ़िया लोकर के पास बैठी माता की तरह उसकी सेवा-टहल कर रही है। वृद्ध का नाम डार्कस है। सब लोग उसे 'डार्कस मौसी' कहकर पुकारते हैं। वृद्ध कद में जरा लंबी है। उसके मुँह पर दया, ममता, स्‍नेह और धर्म के चिह्न लक्षित होते हैं। उसके कपड़े भी एकदम सादे और सफेद हैं, वह दिन-रात बड़े ध्‍यान से लोकर के पथ्‍य-पानी की सार-सँभाल करती है।

लोकर बिछौने की चादर को इधर-उधर लपेटते हुए कह रहा है - "ओफ! कैसी गरमी है! यह कमबख्त चादर भी खाए जाती है।"

वृद्ध डार्कस मौसी ने उसे बिस्‍तर की सलवटों को ठीक करते हुए कहा - "टॉमस बाबा, तुम्‍हें ऐसी भाषा का व्‍यवहार नहीं करना चाहिए।"

लोकर ने कहा - "मौसी, मेरा शरीर जल रहा है, मुझसे सहा नहीं जाता।"

डार्कस ने समझाया - "गालियाँ बकना, सौगंध खाना और गंदे शब्‍दों का व्‍यवहार करना भले आदमियों का काम नहीं। इन गंदी आदतों को छोड़ने की चेष्‍टा करो!"

लोकर ने कहा - "यह कमबख्त मार्क बड़ा शैतान का बच्‍चा है। पहले वकालत करता था, इसी से इतना लालची है। ऐसा गुस्‍सा आता है कि बदमाश को फाँसी पर लटका दूँ।"

इतना कहकर लोकर ने फिर सारे बिछौने को सिकोड़-सिकोड़कर उलट-पुलट कर डाला।

क्षण भर के बाद फिर वह कहने लगा - "वे भगोड़े दास-दासी भी यहीं हैं क्‍या?"

डार्कस ने बताया - "यहीं हैं।"

लोकर ने कहा - "उनसे कह दो कि जितनी जल्‍दी झील के किनारे जाकर जहाज पर सवार हो जाएँ, उतना ही अच्‍छा है।"

डार्कस बोली - "शायद वे ऐसा ही करेंगे।"

लोकर ने सावधान किया - "उन्‍हें बड़ी होशियारी से जाने को कहना! सेनडस्‍की के जहाज के आफिस में हमारे आदमी लगे हैं। वे कड़ी पूछताछ करेंगे। मैं यह सब इसलिए बता रहा हूँ कि उस नामाकूल मार्क को कौड़ी भी हाथ न लगे।"

डार्कस ने कहा - "फिर तुम गंदे शब्‍द मुँह से निकालते हो!"

लोकर बोला - "डार्कस मौसी, मुझे इतना कसकर मत बाँधो। बहुत कसने से सब टूट जाएगा। मैं धीरे-धीरे अपने को सुधार लूँगा। लेकिन उन भगोड़ों की बाबत मैं जो कहता हूँ, उसे ध्‍यान से सुनो। उस औरत से कह देना कि वह मर्दाना वेश बनाकर जहाज पर चढ़े और बालक को बालिका-जैसे कपड़े पहना दे। उन लोगों का हुलिया सेनडस्‍की भेजा जा चुका है।"

डार्कस ने कहा - "हम लोग सावधानी से काम करेंगे।"

टॉम लोकर तीन सप्‍ताह तक वहाँ बीमार पड़ा रहा। फिर नीरोग होकर घर चला गया। वहाँ पहुँचने के बाद उसने गुलामों को पकड़ने का धंधा एकदम छोड़ दिया और किसी अच्‍छे धंधे में लग गया। तीन सप्‍ताह तक क्‍वेकर परिवार के सत्‍संग में रहने के कारण उसके स्‍वभाव में बड़ा परिवर्तन हो गया था। क्‍वेकर समुदायवालों को वह बड़ी भक्ति और श्रद्धा की दृष्टि से देखता था। डार्कस मौसी की तो वह अपनी माँ से भी अधिक भक्ति करने लगा था।

लोकर के मुँह से यह सुनकर कि सैनडस्‍की में उनका हुलिया पहुँच चुका है और वहाँ कड़ी जाँच होगी, उन्‍होंने विशेष सावधानी से काम लेने का निश्‍चय किया। साथ जाने से पकड़े जाने का खतरा देखकर जिम और उसकी माता दो दिन पहले चल पड़े। उसके बाद जार्ज और इलाइजा अपने बालक सहित रात को सैनडस्की पहुँचे।

रात बीच चली थी। स्‍वतंत्रता का सुख-सूर्य हृदयाकाश में उदित होने को ही था। स्‍वतंत्रता-आह, कैसा जादू-भरा शब्‍द है! इसका उच्‍चारण करते ही हृदय आनंद से नाच उठता है। देवि स्‍वतंत्रते! तुम साथ रहो तो खप्‍पर में माँगकर खाना और वृक्षों के नीचे जीवन बिताना भी सुखकर है; परंतु तुम्‍हारे बिना तो राज-भोग भी उच्छिष्‍ट-जैसा है। तुम्‍हें पाने के लिए अमेरिका के अंग्रेजों ने जान की बाजी लगा दी और अपने कितने ही वीरों की रण में आहुति दी। सारा संसार तुम्‍हारे लिए लालायित है। पर जहाँ वीरता और एकता है, वहीं तुम्‍हारा निवास होता है। भीरुता, कायरता, स्‍वार्थपरता तथा फूट के तो तुम पास भी नहीं फटकती हो। इनसे तुम्‍हें बड़ी नफरत है। इस संसार में निर्बल, भीरु और स्‍वार्थंध जातियाँ तुम्‍हारे मुख-दर्शन की आशा नहीं कर सकतीं, और जिस जाति से तुम दूर हो, उसमें जीवन कहाँ? संसार का कोई सुख पराधीन जाति को सुखी नहीं कर सकता। उसके लिए संसार की सब चीजें दुखदायी हैं। परंतु देवि! तुमसे नाता जोड़ते ही स्‍वार्थपरता का अंधकार और निर्बलता की मार देखते-ही-देखते काफूर हो जाती है। तब हताश और संकीर्ण मानव-हृदय में सार्वभौम प्रेम का चंद्रमा उदय होता है।

संसार में क्‍या कोई ऐसी वस्‍तु है, जिसे कोई जाति तो अत्‍यंत सुख और प्रिय समझती हो, किंतु कोई मनुष्‍य उसे प्रिय न समझता हो? स्‍वतंत्रता जितनी किसी जाति को प्रिय होती है, दूसरे मनुष्‍य को भी वह उतनी ही प्रिय होती है। जातीय और व्‍यक्तिगत स्‍वतंत्रता में भेद ही क्‍या है? अलग-अलग व्‍यक्तिगत स्‍वतंत्रता के समूह को ही जातीय स्‍वतंत्रता कहते हैं। व्‍यक्तिगत स्‍वतंत्रता के बिना जातिगत स्‍वतंत्रता भी कब संभव है? यह युवक जार्ज हेरिस, जो यहाँ मुँह लटकाए विषाद-मग्‍न बैठा है, किस तरह स्‍वतंत्रता के लिए व्‍याकुल है? यह व्‍यक्ति कैसा अधिकार चाहता है! केवल इतना ही अधिकार-कि वह अपनी स्‍त्री को अपनी समझ सके; दूसरों के अत्‍याचारों से उसकी रक्षा कर सके; अपनी संतान को अपनी समझकर अच्‍छी शिक्षा दे सके; अपनी मेहनत की कौड़ी को अपनी मशक्‍कत की कमाई को अपने लिए खर्च कर सके, और अपने धार्मिक विश्‍वास के अनुसार काम कर सके। बस, इससे अधिक वह और कुछ नहीं चाहता।

स्‍वार्थी नर पिशाचो! क्‍या तुम उसे इतना भी अधिकार नहीं दोगे? क्‍या इन अधिकारों के बिना भी मनुष्‍य जीवित रह सकता है? मनुष्‍य के कुछ स्‍वभाव-सिद्ध अधिकारों को पाने के लिए आज जार्ज तुम्‍हारे देश से भागने का उद्योग कर रहा है। अपनी स्‍त्री का मर्दाना-वेश बना रहा है- उसके लंबे सुंदर बाल काट रहा है।

बाल कट जाने के बाद इलाइजा मुस्‍कराकर बोली - "कहो जार्ज, क्‍या अब मैं एक सुंदर युवक-सी नहीं दीख पड़ती?"

जार्ज ने कहा - "तुम किसी भी वेश में हो, मुझे हमेशा बहुत सुंदर लगती हो।"

इलाइजा ने उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहा - "जार्ज, तुम इतने उदास क्‍यों हो रहे हो? अब तो कनाडा यहाँ से केवल चौबीस घंटों की दूरी पर है। सिर्फ एक दिन और एक रात का सफर बाकी है और उसके बाद, अहा! उसके बाद..."

जार्ज ने इलाइजा को अपनी ओर खींचकर धीरे-से कहा - "इलाइजा, मुझे बड़ा डर मालूम हो रहा है। कहीं इतनी दूर आए हुए पकड़े गए, तो सारी मेहनत और सारा किया-धरा मिट्टी में मिल जाएगा। किनारे लगकर भी नाव डूब जाएगी। ऐसा होने पर मैं जीवित नहीं रह सकूँगा।"

इलाइजा ने उसे धीरज बँधाया - "जार्ज, डरो मत। उस दयामय को यदि हम लोगों को पार न लगाना होता तो वह हमें हर्गिज इतनी दूर न लाता। जार्ज, मुझे लगता है कि वह हम लोगों के साथ है। फिर डरने की क्‍या बात है?"

जार्ज बोला - "इलाइजा, तुम देवी हो! तुम ईश्‍वर का साथ अनुभव करती हो। पर बोलो, क्‍या जन्‍म से सहते आए हमारे इन दु:खों का अंत हो जाएगा? क्‍या हम स्‍वतंत्र हो जाएँगे?"

इलाइजा ने कहा - "जार्ज, मुझे तो इसका निश्‍चय है। मुझे मालूम हो रहा है कि ईश्‍वर ही हम लोगों को स्‍वतंत्र करने के लिए यहाँ से जा रहा है।"

जार्ज बोला - "ठीक है, मुझे तुम्‍हारी बात पर विश्‍वास हो रहा है।"

इसके बाद जार्ज ने इलाइजा को मर्दानी टोपी ओढ़ाकर कहा - "गाड़ी का समय हो चुका हो तो चलें। मुझे आश्‍चर्य हो रहा है कि मिसेज स्मिथ हेरी को लेकर अब तक क्‍यों नहीं आईं।"

इतने ही में दरवाजा खुला और एक अधेड़ अवस्‍था की महिला बालक हेरी को बालिका के वेश में सजाए हुए, साथ लेकर अंदर आई।

इलाइजा ने उसे देखते ही क्‍या - "वाह, क्‍या खूबसूरत लड़की बनी है। अब हम लोग इसे हैरियट के नाम से पुकारेंगे। क्‍यों, ठीक होगा न!"

माता को मर्दाने कपड़ों में, बाल कटाए हुए देखकर, बालक हतबुद्धि हो गया। वह बार-बार ठंडी साँसें लेने लगा। इलाइजा ने उसकी ओर हाथ बढ़ाकर कहा - "क्‍यों हेरी, अपनी माँ को पहचानता है?"

बालक शर्माकर उस अधेड़ स्‍त्री से चिपक गया।

जार्ज ने कहा - "इलाइजा, जब तुम जानती हो कि उसे तुमसे अलग रखने की व्‍यवस्‍था की गई है, तो अब उसे नाहक क्‍यों अपने पास बुलाने की कोशिश करती हो?"

इलाइजा बोली - "मैं जानती हूँ। यह मेरी मूर्खता है। लेकिन इसे अलग रखने को मेरा जी नहीं मानता। खैर, लबादा कहाँ है?"

इसके बाद जब इलाइजा मर्दाना लबादा पहनकर तैयार हो गई तब जार्ज ने मिसेज स्मिथ से कहा - "अब से हम लोग आपको बुआ कहेंगे और लोगों पर यह प्रकट करना होगा कि हम लोग अपनी बुआ के साथ जा रहे हैं।"

मिसेज स्मिथ ने कहा - "मैंने सुना है कि जो लोग तुम्‍हें पकड़ने आए हैं, वे टिकटघर में बैठे बाट देख रहे हैं।"

जार्ज ने कहा - "वे लोग बैठे हैं! खैर, चलो, देखा जाएगा। अगर हम लोगों की उनसे भेंट हो गई तो हम उन्‍हें बता देंगे।"

इसके बाद ये लोग एक किराए की गाड़ी पर सवार होकर चले। जिस आदमी ने इन्‍हें अपने घर में शरण दी थी, वह गाड़ी तक इनके साथ आया और चलते समय उसने इनके उद्धार के लिए ईश्‍वर से प्रार्थना की।

इन सब लोगों का छद्म-वेश ऐसा बन गया था कि कोई इन्‍हें पहचान नहीं सकता था। असल में यह टॉम लोकर के साथ भलाई करने का नतीजा था। कभी-कभी भलाई का फल हाथों-हाथ मिलता है। यदि इन्‍होंने, वैर चुकाने की नीयत से, लोकर को जंगल में ही रहने दिया होता, उसे ये डार्कस के घर न उठा लाए होते, तो आज अपने सामान्‍य वेश में आने पर यहाँ जरूर पकड़े जाते। टॉम लोकर के साथ इन्‍होंने जो भलाई की, इन्‍हें उसका बहुत अच्‍छा फल मिला।

मिसेज स्मिथ कनाडा की एक प्रतिष्ठित महिला नागरिक थीं। वह कनाडा लौट रही थीं। इन लोगों की दुर्दशा देखकर उन्‍हें दया आ गई और उन्‍होंने इनकी सहायता करने की ठान ली। दो दिन पहले ही हेरी उनके जिम्‍मे कर दिया गया था। इन दो दिनों में मेवा-मिठाई और खिलौने वगैरह देकर उन्‍होंने हेरी को ऐसा मिला लिया था कि वह उनका साथ ही नहीं छोड़ता था।

इनकी गाड़ी जहाज-घाट के किनारे जा लगी। जार्ज उतरकर टिकट लेने गया, तो उसने दो आदमियों को अपने संबंध में आपस में बातें करते सुना। उनमें से एक दूसरे से कह रहा था - "भाई, मैंने एक-एक करके सब मुसाफिरों को देख लिया, तुम्‍हारे भगोड़े इनमें नहीं है।" फिर जार्ज ने देखा कि इनमें पहला मार्क है, और दूसरा एक जहाज का क्‍लर्क है।

मार्क बोला - "उस स्‍त्री को तो तुम मुश्किल से पहचान सकते हो कि वह दासी है, क्‍योंकि वह अंग्रेजों-जैसी गोरी है और पुरुष भी वैसा ही है, पर उसके एक हाथ पर जलने का दाग है।"

जार्ज उस समय हाथ बढ़ाकर टिकट ले रहा था। उसका हाथ काँप उठा, पर वह सँभलकर धीरे-धीरे वहाँ से हट गया और वहाँ जा पहुँचा, जहाँ इलाइजा और मिसेज स्मिथ बैठी हुई थीं।

मिसेज स्मिथ हेरी को साथ लेकर स्त्रियों के कमरे में चली गईं।

जहाज ने जब चलने की सीटी दी और घंटा बजा तो जार्ज के हृदय में आनंद की लहरें उठने लगीं और मार्क ठंडी साँसें लेता हुआ जहाज से उतरकर किनारे आया। वह मन-ही-मन निराश होकर कहने लगा कि वकालत के धंधे में आमदनी की सूरत न देखकर दूसरी तरह से उसी देश के प्रचलित कानून की रक्षा के लिए यह नया धंधा किया, पर इसमें भी कुछ होता-जाता नजर नहीं आ रहा है। यही सब सोचते-सोचते मार्क खिन्‍न मन से अपने देश को लौट गया।

दूसरे दिन जहाज ने एमहर्स्‍टबर्ग जाकर लंगर डाला। यह कनाडा का एक छोटा-सा कस्‍बा है। जार्ज, इलाइजा आदि सब आकर किनारे पर उतरे। स्‍वाधीन भूमि पर पैर रखते ही उनका हृदय आनंद से भर गया। आज उन्‍हें गुलामी से छुट्टी मिली। आज स्‍त्री और पुत्र को अपना कहने का मानवीय स्‍वत्‍व जार्ज को प्राप्‍त हुआ। स्‍वामी और स्‍त्री, दोनों एक-दूसरे के गले से लिपट गए। दोनों के नेत्रों से आनंद के आँसू बहने लगे और घुटने टेककर उन्‍होंने ईश्‍वर की प्रार्थना में यह गीत गया-

विपत्ति-सिंधु में तुम्‍हीं जहाज!

कौन बचावे दीन-हीन को तुम बिन हे महाराज!

निपट निराशा अंधकार था मम-हित महा कुसाज।

उदय हुआ सुख-भानु पूर्व में, तब करुणा से आज।।

जैसे तुम्‍हें पुकारा दुख में, वैसा पा सुख-साज।

ध्‍यान तुम्‍हारा ही करते हैं, गाते सुयश दराज।।

प्रार्थना के बाद सब लोग उठे और मिसेज स्मिथ उन्‍हें उसी नगर के निवासी एक सज्‍जन पादरी साहब के पास ले गईं। यह उदार पादरी अपने घर ऐसे ही निराश्रित और भागे हुए दास-दासियों को शरण दिया करता था।

जार्ज और इलाइजा के आज के आनंद का पारावार नहीं है। भला भाषा के द्वारा इनके इस स्‍वतंत्रता के आनंद का वर्णन कैसे हो सकता है? आज रात भर उन्‍हें नींद नहीं आई। सारी रात आनंद की उमंगों में बीत गई। इस आनंद में इन लोगों ने एक बार भी यह सोचने तक का कष्‍ट न उठाया कि आखिर यहाँ करना क्‍या होगा, जिंदगी कैसे कटेगी! न इनके घर-द्वार है, न कोई साज-सरंजाम। कल तक के खाने के लिए इनके पास कोई ठिकाना नहीं है। फिर भी यह स्‍वतंत्रता-प्राप्ति के आनंद में ऐसे फूले हुए हैं कि उन्‍हें और किसी बात की चिंता ही नहीं है। वास्‍तव में पूछिए तो मनुष्‍य-जीवन में स्‍वतंत्रता की अपेक्षा और अमूल्‍य वस्‍तु है ही क्‍या, जिसकी मनुष्‍य परवाह करे? जो लोग प्रभुत्‍व अथवा धन के लोभ से किसी व्‍यक्ति अथवा जाति-विशेष को ऐसे अनमोल रत्‍न से वंचित करते हैं, उन्‍हें अवश्‍य ईश्‍वर का कोप-भाजन बनना पड़ेगा - उसके सामने जवाबदेह होना पड़ेगा, पीढी-दर-पीढ़ी उन्‍हें अत्‍याचारों का फल चखना पड़ेगा।

  • टॉम काका की कुटिया (उपन्यास; अध्याय 41-47) : हैरियट बीचर स्टो
  • टॉम काका की कुटिया (उपन्यास; अध्याय 21-30) : हैरियट बीचर स्टो
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