टॉम काका की कुटिया (उपन्यास) : हैरियट बीचर स्टो

अनुवाद : हनुमान प्रसाद पोद्दार

Uncle Tom's Cabin (Novel in Hindi) : Harriet Beecher Stowe

11. दारुण बिछोह

गोरे बनियों की अर्थ-लोलुपता के कारण अफ्रीकी उपनिवेशों के जो अभागे काले हब्‍शी अमरीका में ले जाकर दास बनाकर बेचे जाते थे, उनकी स्‍वभाव-प्रकृति से हम भारतवासियों की किसी-किसी विषय में बड़ी समानता है। भारतवासियों की भाँति इन अभागे क्रीत दास-दासियों में भी संतान-वात्‍सल्‍य, दांपत्‍य-प्रेम, पारिवारिक स्‍नेह और कृतज्ञता की मात्रा बहुत अधिक दिखाई पड़ती थी। परिवार से किसी एक व्‍यक्ति को पृथक करके बेचने में इन्‍हें कैसा भयानक कष्‍ट होता था, इसे वज्र हृदय अर्थ-पिशाच गोरे बनिए क्‍या समझ सकते थे?

शेल्‍वी साहब ने टॉम को हेली के हाथ बेच तो डाला ही था, पर इलाइजा की खोज से हेली के लौटने तक, कम-से-कम दो तीन दिन, टॉम को अपने परिवार में रहने का सुअवसर मिल गया। जिस दिन हेली के साथ उसके जाने की बात थी उस दिन उसने बड़े तड़के उठकर अपने बाल-बच्‍चों और स्‍त्री के कल्‍याण के लिए ईश्‍वर से प्रार्थना की, फिर उपासना के उपरांत अपने सोए हुए बालकों के बिस्‍तर के पास खड़ा होकर वह एकटक उनकी ओर देखने लगा। उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी। कुछ देर बाद एक आह भरकर वह बोला - "जान पड़ता है, तुम लोगों से मेरी यही अंतिम भेंट है।" उसकी यह बात क्‍लोई के कान में जा पड़ी और उसका हृदय भर आया। उसने रोते हुए पति से कहा - "तुम मुझे ईश्‍वर पर भरोसा रखकर शोक न करने को कहते हो, पर मैं ईश्‍वर पर भरोसा नहीं रख सकती। मेरे मन में कितनी ही आशंकाएँ उठ रही हैं। न मालूम वह तुम्‍हें कहाँ-का-कहाँ ले जाएगा, और जब-तब कितना दु:ख देगा। मेम दो-एक बरस में रुपए इकट्ठे करके तुम्‍हें फिर मोल लेने का प्रयत्‍न करेंगी, पर उतने ही दिनों में न जाने तुम पर कितनी आफतें आ सकती हैं। दक्षिण गए हुओं में बहुत थोड़े ही लौटकर आते हैं। दक्षिण के चाय के बगीचों और तंबाकू के खेतों में बेहद परिश्रम करके सैकड़ों दास-दासी असमय काल के गाल में चले जाते हैं। तुम्हीं कहो, यह सब जानते हुए मैं अपने हृदय के आवेग को कैसे रोक सकती हूँ।"

टॉम ने कहा - "दीनबंधु भगवान सब जगह मौजूद है। वह मेरे साथ रहकर सदा मेरी खबर लेगा।"

"परमेश्‍वर के साथ रहते हुए भी तो समय-समय पर कितनी ही घोर विपदाएँ आ पड़ती हैं। इसी से परमेश्‍वर पर भरोसा रखकर मैं अपने मन को नहीं समझा सकती।" क्‍लोई ने रुँधे गले से कहा।

"हम सब मंगलमय ईश्‍वर के मंगल-शासन में हैं। उनकी मर्जी के बिना पत्ता भी नहीं हिलता। जिसे लोग विपदा समझते हैं, वही संपदा का मूल कारण है। देखो, मुझे बेचकर मालिक ने तुमको और बाल-बच्‍चों को बचाने की चेष्‍टा की। तुम लोग तो निरापद रहोगे। हम सब-के-सब जहाँ-तहाँ तीन-तेरह नहीं बिके, यही क्‍या कम सौभाग्‍य की बात है। मालिक ने केवल मुझे ही बेचा, इसके लिए मैं उनका बड़ा अनुगृहीत हूँ।"

"मुझे तो इसमें मालिक के अनुग्रह की कोई बात नहीं दीख पड़ती। तुम्‍हारे जैसे प्रभुभक्‍त और विश्‍वासी दास को बेचना कभी उचित नहीं कहा जा सकता। वह तुम्‍हारी प्रभुभक्ति से प्रसन्‍न होकर एक बार तुम्‍हें दासत्‍व से मुक्‍त कर देने का वचन दे चुके हैं, पर आज उसे भूलकर ऋण से छुटकारा पाने के लिए बेखटके तुम्‍हें बेच डाला! गोरी जाति दूसरे के दु:ख का खयाल कभी नहीं करती। वह सदा अपने ही सुख में मस्‍त रहती है। जो मनुष्‍य स्‍त्री को पति-हीन और बालकों को पितृ-हीन करता है उसका विचार ईश्‍वर के यहाँ अवश्‍य होगा।"

"क्‍लोई मालिक के बारे में ऐसी बातें मुँह से न निकालो। इससे मेरे हृदय को बड़ी वेदना होती है। मेरे साथ यही तुम्‍हारी अंतिम भेंट है। इस समय मेरे सम्‍मुख ऐसी बातें मत कहो। दूसरे दासों के मालिकों से हमारे मालिक कहीं अच्‍छे हैं। वह दास-दासियों को कभी व्‍यर्थ तंग नहीं करते। वह किसी को बेंत नहीं मारते। किसी की विवाहिता स्‍त्री को कभी रखैल बनाकर उसका धर्म नहीं बिगाड़ते। इसी लिए ईश्‍वर के सामने ऐसे मालिक के कल्‍याण के लिए प्रार्थना करना अपना कर्तव्‍य है। इसी केंटाकी में देख लो; सैकड़ों लोगों के असंख्‍य दास-दासियाँ हैं। जरा उनकी दु:ख-दायक घोर यंत्रणा से अपना मिलान तो करो।"

क्‍लोई फिर कुछ नहीं बोली। मन-ही-मन वह सोचने लगी कि आज सदा के लिए उसके स्‍वामी का सुख-सूर्य अस्‍त हो जाएगा। अब ऐसी एक भी संध्‍या आने की आशा नहीं, जब उसको अच्‍छा भोजन मिलेगा। इसी से क्‍लोई ने अपने स्‍वामी के भोजन के निमित्त भाँति-भाँति की चीजें बनाई और तैयार हो जाने पर बड़े प्रेम से उसको खिलाई। भोजन कर चुकने पर टॉम ने अपनी दो बरस की छोटी कन्‍या को गोद में उठा लिया और बार-बार उसका मुँह चूमने लगा। क्‍लोई उस बालिका का हाथ पकड़कर कहने लगी - "न जाने कब इसको भी माँ की गोद छोड़कर अलग हो जाना पड़ेगा। दास-दासियों की संतान होना केवल एक खेल ही है।" क्‍लोई की बातें समाप्‍त न होने पाई थीं कि शेल्‍वी साहब की मेम वहाँ आ पहुँची। टॉम और क्‍लोई को आँसू बहाते देखकर उनकी भी आँखें डबडबा आईं। ज्‍यों-त्‍यों धीरज रखकर वह कहने लगीं - "टॉम, मैं चाहती थी कि तुम्‍हें कुछ रुपए दूँ। पर विचार कर देखा कि उससे तुम्‍हारा कोई फायदा न होगा। तुम्‍हारे पास जो कुछ होगा, उसे वह अर्थ-पिशाच दास-व्‍यवसायी हेली कभी हड़प लिए बिना न छोड़ेगा। टॉम, तुमसे मैं अब क्‍या कहूँ! मैं कुछ भी कहने के योग्‍य नहीं। पर मैं तुमसे इतनी प्रतिज्ञा अवश्‍य करती हूँ कि रुपए जुड़ते ही मैं तुम्‍हें तत्‍काल छुड़ा लूँगी। जब तक रुपया इकट्ठा नहीं होता, तब तक अपने को ईश्‍वर के हाथों में सौंपकर धीरज रखना!"

इसी समय वहाँ हेली आ पहुँचा। आते ही टॉम से बोला - "चलो बच्‍चू, और देर करने की जरूरत नहीं।"

टॉम यह सुनते ही उसके पीछे जाकर गाड़ी पर सवार हो गया। क्‍लोई इत्‍यादि घर के सब दास-दासी उस गाड़ी के पास जमकर खड़े हो गए। हेली ने टॉम को गाड़ी में बैठाकर लोहे की जंजीर से उसके दोनों पैर कस दिए। यह देखकर सब दास-दासियों के हृदय को बड़ी भारी चोट लगी। वे सब मन-ही-मन हेली को गालियाँ देने लगे। उन लोगों की टॉम पर बड़ी श्रद्धा और भक्ति थी, उसे वे अंत:करण से प्‍यार करते थे। इससे टॉम को लोहे की सांकल से बाँधे जाते देखकर वे बार-बार लंबी साँसें भरने लगे। टॉम के दो बड़े लड़के भी पिता की यह दशा देखकर चिल्‍लाने लगे। तब शेल्‍वी साहब की मेम ने हेली से कहा - "महाशय, टॉम भागनेवाला आदमी नहीं है। इसे आप नाहक बाँध रहे हैं। इसके बंधन खोल दीजिए।" हेली ने उत्तर दिया - "मेम साहब, बस, अब आप माफ कीजिए। आपके यहाँ सौदा करके मैं पाँच सौ रुपया दंड भुगत चुका हूँ। अब मैं इसे ढीला नहीं छोड़ने का!"

इतना कहकर उसने गाड़ी हाँकने की आज्ञा दी। जाते-जाते टॉम ने कहा - "मेम साहब, मुझे इस बात का बड़ा दु:ख है कि चलते समय मास्‍टर जार्ज से भेंट नहीं हुई।"

टॉम के बिकने की बातचीत प्रकट होने के पहले ही जार्ज कुछ दिनों के लिए किसी आत्‍मीय के यहाँ चला गया था। टॉम के बिकने के संबंध में अभी तक उसे कुछ पता न था। टॉम को ले जाने के समय शेल्‍वी साहब ने पहले ही वहाँ न रहने का निश्‍चय कर लिया था और तदनुसार वे कहीं दूसरी जगह चले गए थे। टॉम को साथ लेकर हेली पहले एक लोहार की दुकान पर आया। वहाँ जेब से दो हथकड़ियाँ निकालकर लोहार से बोला कि इसके हाथ में पहना दो। टॉम को देखते ही लोहार चौंककर बोला - "ऐं, यह तो शेल्‍वी साहब का टॉम है! क्‍या इसे बेच डाला? भला ऐसे स्वामिभक्त दास को भी क्‍या कोई बेचता है!" फिर हेली से बोला - "साहब, आप अपनी हथकड़ी अपने हाथों में ही रखिए, इसे डालने की आवश्‍यकता नहीं। मैं इसे खूब जानता हूँ। यह बड़ा ईमानदार आदमी है।"

हेली बोला - "ज्‍यादा ईमानदार ही धोखा देते हैं। तुम अपनी बातें रहने दो। इसे हथकड़ियाँ पहना दो।"

लोहार ने पूछा - "टॉम, अपनी स्‍त्री को छोड़ चला क्‍या?"

उसके उत्तर में हेली ने कहा - "जहाँ यह बिकेगा, वहाँ क्‍या और दासियाँ नहीं मिलेंगी? इन लोगों को औरतों की क्‍या कमी है? दक्षिण देश में पैर रखते ही एक-न-एक को तुरंत पटा लेगा।"

हेली से जब लोहार की ये बातें हो रही थीं, उसी समय बड़े वेग से एक घोड़ा दौड़ाता हुआ और एक तेरह वर्ष का लड़का वहाँ आया। वह घोड़े से उतरकर एकदम टॉम के गले से लिपट गया। टॉम उसे गोद में लेकर कहने लगा - "मास्‍टर जार्ज, मुझे बड़ा आनंद हुआ कि जाते समय तुमसे भेंट हो गई।"

टॉम के पैर लोहे की जंजीर से बँधे देखकर जार्ज की आँखें लाल हो गईं। वह क्रुद्ध होकर बोला - "मैं अभी बदमाश हेली का सिर फोड़ता हूँ।"

टॉम ने उसे मना करके कहा - "अब तुम हेली के साथ झगड़ोगे तो वह मुझे और सताएगा। इसलिए तुम कुछ मत बोलो।"

यह सुनकर जार्ज सिर झुकाकर चुप रह गया, लेकिन उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी। कुछ देर बाद शांत होकर जार्ज कहने लगा - "कैसी लज्‍जा का विषय है... कितनी कठोरता का व्‍यवहार है! बाबा ने तुम्‍हारे बेचने की बात मुझसे एक बार भी नहीं कही, यदि मेरा साथी लिंकन मुझसे तुम्‍हारे विक्रय की बात न करता, तो मुझे कुछ भी पता न चलता। मेरा जी चाहता है कि मैं अपना घर-द्वार सब फूँक दूँ। यह कष्‍ट तो सहा नहीं जाता।"

टॉम ने कहा - "जार्ज, ऐसी बात मत कहो। अपने पिता के विषय में तुम्‍हें ऐसी बात कहना उचित नहीं।"

टॉम के लिए जार्ज एक मोहर साथ लाया था, किंतु टॉम ने मोहर लेने से इनकार करके कहा - "जार्ज, यह मोहर मेरे किस काम आएगी? हेली साहब देखते ही ले लेंगे।"

जार्ज ने कहा - "मैंने इसे हेली के हाथ से बचाने का उपाय सोच लिया है। इसमें डोरा डालकर तुम्‍हारे गले में बाँध देने से यह हेली की नजर से बची रहेगी। तुम्‍हारे कपड़ों के नीचे छिपी रहेगी।" इतना कहकर जार्ज ने मोहर तागे में पिरोकर टॉम के गले में लटका दी। टॉम बड़े स्‍नेह से जार्ज को उपदेश देने लगा और बोला - "बच्‍चा जार्ज, सदा ध्‍यान से अपनी माता के सद्विचार और सदाचार पर चलना। परमात्‍मा संसार में सारी चीजें दो बार दे सकते हैं, पर 'माँ' दुबारा नहीं मिलती। इस प्रदेश में दया-धर्म और सद्गुणों से भूषित कोई दूसरी स्‍त्री तुम्‍हारी माँ के समान नहीं है। ऐसी स्‍नेहमयी जननी संसार में दुर्लभ है। तुम कभी अपने मन-वचन-कार्य द्वारा उनके हृदय को मत दुखाना। देखना, उनके आदर-सत्‍कार में कभी त्रुटि न करना, उनकी आज्ञा का उल्‍लंघन न होने पाए। मनुष्‍य का स्‍वभाव है कि युवावस्था में उसका मन पाप की ओर ढलता है। लेकिन सत्‍संग मनुष्‍य को उससे हटाकर सत्‍य-पथ की ओर ले जाता है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है कि अपनी माता के आदर्श चरित्र और सत्‍कर्मों के प्रभाव से तुम एक बड़े पवित्र, साधु-प्रकृति मनुष्‍य बन सकोगे। बचपन में ईश्‍वर की भक्ति करना सीखोगे तो निर्विघ्‍न संसार में आगे बढ़ते जाओगे।"

जार्ज ने टॉम का उपदेश सुनकर कहा - "टॉम काका, तुम मुझे सदा सदुपदेश देते रहे हो। तुम्‍हारे आज के उपदेश का मैं तन-मन से पालन करूँगा और सदैव सन्‍मार्ग पर चलने की चेष्‍टा करूँगा। जब मैं बड़ा होकर स्‍वयं काम-काज करूँगा, तब तुम्‍हारे रहने के लिए एक अच्‍छा घर बनवा दूँगा। वृद्धावस्‍था में तुम उसमें भले आदमियों की भाँति रहना। फिर तुम्‍हें गुलामी का दु:ख नहीं भोगना पड़ेगा।"

जार्ज की बात समाप्‍त होने के पहले ही हेली हथकड़ी लेकर गाड़ी के पास आया। उसने टॉम के हाथों में हथकड़ी डाल दी। इस पर जार्ज ने कहा - "हेली, तुमने टॉम को बेड़ी और हथकड़ी से जकड़ दिया है, यह बात मैं अभी जाकर पिता और माता से कहूँगा।"

"जाओ, कह दो, हमारा उससे क्‍या बनता-बिगड़ता है?"

जार्ज ने फिर कहा - "हेली, क्‍या तुम जन्‍म-भर यही नीच काम करते रहोगे? क्‍या सदा तुम नर-नारियों का क्रय-विक्रय करोगे और कैदियों की भाँति उन्‍हें हथकड़ी-बेड़ी से जकड़कर यंत्रणा देते रहोगे? क्‍या तुम्‍हें इस व्‍यवसाय को करने में जरा भी शर्म नहीं आती?"

हेली बोला - "तुम लोगों जैसे अमीर आदमी जब तक दास-दासी खरीदना नहीं छोड़ेंगे, तबतक हम लोगों का यह पेशा बंद नहीं होगा। तुम लोग खरीद सकते हो तो फिर हम लोग बेच क्‍यों नहीं सकते? जो खरीदें वे तो बड़े अच्‍छे, बड़े धर्मात्‍मा रहे... उनका तो कोई कसूर ही नहीं... और सारा दोष हम बेचनेवालों के सिर!"

जार्ज ने कहा - "ईश्‍वर से यही मनाता हूँ कि मुझे यह दास-दासियों के लेने-बेचने का नीच काम न करना पड़े!"

इतना कहकर जार्ज चला गया। हेली ने भी टॉम को साथ लेकर गाड़ी हाँकने का हुक्‍म दिया। जार्ज जिस मार्ग से जा रहा था, उसी ओर टॉम की टकटकी लगी थी। वह मन-ही-मन कहने लगा - "ईश्‍वर इस बालक को चिरंजीवी करें। केंटाकी प्रदेश में इसके समान उच्‍च हृदयवाले थोड़े ही लोग निकलेंगे।"

थोड़ी दूर आगे जाकर हेली ने टॉम का बंधन खोल दिया और उससे कहा - "देखो, भागने की कोशिश नहीं करोगे तो अब तुम्‍हें हथकड़ी नहीं पहनाएँगे।" टॉम ने कहा - "मैं कभी नहीं भागूँगा।"

12. दास की रामकहानी

दिन ढल चुका है। आकाश मेघाच्‍छन्‍न है। थोड़ी बूँदा-बाँदी हो रही है। बटोही संध्‍या का आगमन देखकर होटलों में आश्रय लेने लगे। एक होटल केंटाकी प्रदेश के सदर रास्‍ते के बहुत निकट था। यहाँ सदैव लोगों का आना-जाना बना रहता था। इस होटल के सामने की कोठरियाँ औरों की निस्‍बत अधिक गंदी थीं। बड़े आदमियों के नौकर-चाकरों तथा मजदूरों से ही ये कोठरियाँ भरी हुई थीं। पीछे की ओर की कोठरी में राह की थकावट मिटाने के लिए दो आदमी बैठे हुए हैं। उनमें एक का नाम विलसन है। विलसन ने जवानी बिताकर बुढ़ापे में पैर रखा है। इसी से उसमें जवानी का जोश नहीं है। अधिक जाड़े के कारण वह सिकुड़ गया है। दूसरे आदमी में उतनी भलमनसाहत नहीं है और न उतना पढ़ा-लिखा है। वह भेड़ें चराकर अपनी जिंदगी बिताता है। थोड़ी ही देर बाद भेड़वाले ने इस प्रकार बातचीत का सिलसिला शुरू किया:

"आपने यह विज्ञापन देखा है?"

विलसन ने कहा - "कैसा विज्ञापन?"

भेड़वाला बोला - "यह देखिए!"

इतना कहकर उसने विलसन के हाथ में एक छपा हुआ विज्ञापन दे दिया। विलसन चश्‍मा लगाकर उस विज्ञापन को पढ़ने लगा -

"कुछ दिन हुए, मेरा जार्ज नामक एक दास भाग गया है। कद में साढ़े तीन हाथ लंबा और रंग में गोरा है। अंग्रेजी खूब अच्‍छी बोलता है और समझ लेता है। उसके पेट और गले में बेंतों की मार के निशान हैं। उसके बाएँ हाथ की कलाई पर लोहे की दहकती हुई छड़ से दागकर 'एच' का निशान कर दिया गया है। जो कोई उसे पकड़वा देगा उसे 400 रुपया इनाम दिया जाएगा। यदि कोई उसे जीता न पकड़ पाए तो मारकर कम-से-कम उसकी लाश हमारे यहाँ पहुँचाने से भी इतना ही इनाम मिलेगा।"

यह विज्ञापन पढ़कर विलसन कहने लगा - "इस विज्ञापन में उल्लिखित गुलाम को मैं अच्‍छी तरह पहचानता हूँ। वह छह साल तक मेरी अधीनता में काम कर चुका है। उसकी तीव्र बुद्धि, भलमनसी और सुशीलता देखकर मैं उस पर बहुत प्रसन्‍न था। उस आदमी ने पाट साफ करने के लिए अपनी अक्‍ल से एक बड़ी अच्‍छी कल बनाई थी। उसकी बनाई हुई कल का बड़ा आदर हुआ। आज वह प्राय: सर्वत्र काम में लाई जाती है। कल बनाने का ठेका उसके मालिक को मिला हुआ है और इससे वह मालामाल हो गया है।"

यह सुनकर भेड़वाला अचंभे में आ गया। बोला - "साहब, देखिए, उसमें इतने गुण और यह अन्‍याय! आप लोगों की चाल-ढाल भी बड़ी अजीब है। आप लोग अपने गुलामों को जितना दु:ख देते हैं, उतना तो मैं भेड़ों को भी नहीं देता। ओफ, आप लोगों के बड़े घरों की स्त्रियाँ अपने दास-दासियों की संतानों पर जरा भी दया नहीं दिखातीं। आप कहते हैं कि विज्ञापन में जिस गुलाम का जिक्र है वह बड़ा बुद्धिमान है। उसने अपनी अक्‍ल से एक कल बना डाली है। लेकिन इस तीव्र बुद्धि का उसे क्‍या फल मिला? कल के बनाने का ठेका मालिक को मिला और उसके सद्गुणों के बदले में मालिक ने लोहे की छड़ से उसका हाथ दाग दिया! वाह री भलमनसी!"

वहीं एक तीसरा आदमी और बैठा था। वह कहने लगा - "इसमें बेजा क्‍या किया! गुलाम पर मालिक का अधिकार है, उसके साथ चाहे जैसा व्‍यवहार करे। गुलाम मालिक की मर्जी के मुताबिक चलें तो क्‍यों मारे जाएँ, पर गोरे दास सहज में दुरुस्‍त नहीं होते!"

इस आदमी की बात समाप्‍त नहीं होने पाई थी कि होटल के दरवाजे पर एक गाड़ी आ लगी। उसमें से बहुत बढ़िया कपड़े पहने हुए एक गोरा नवयुवक उतरकर होटल में आया। विलसन आदि जहाँ बातें कर रहे थे, वहाँ पर वह पहुँच गया। उसने घर के दरवाजे पर चिपका हुआ वह विज्ञापन देखकर अपने दास से कहा - "जिम, कल उस होटल में जिस आदमी को देखा था, वही इस विज्ञापनवाला गुलाम जान पड़ता है।"

जिम बोला - "जी हाँ। उसे पकड़ लेता तो इनाम मिलता। पर इस विज्ञापन का हाल ही नहीं मालूम था।" फिर नवागंतुक युवक ने होटल के मालिक को अपना नाम हेनरी बटलर बताया और रात भर ठहरने के लिए एक अलग कमरे का प्रबंध कर देने को कहा। होटलवाला उधर अलग कमरे का प्रबंध करने चला गया, इधर विलसन साहब उस व्‍यक्ति के चेहरे को बार-बार घूरकर सोचने लगे कि मैंने इसे कहीं-न-कहीं देखा है। यह परिचित-सा जान पड़ता है।

विलसन के मन की बात को युवक ताड़ गया और उसके पास जाकर बोला - "साहब कहिए, पहचानते हैं? मैं बेक लैंग ग्राम का रहनेवाला बटलर हूँ।"

विलसन कुछ निश्‍चय न कर सका कि उसकी बात का क्‍या उत्तर दे, पर सभ्‍यता के लिहाज से बोला - "पहचानता हूँ।"

फिर बटलर उसका हाथ पकड़कर एकांत कमरे में ले गया। कमरे के किवाड़ भीतर से बंद कर लिए और वह विलसन के मुँह की ओर ताकने लगा। कुछ देर बाद विलसन बोला - "जार्ज!"

बटलर - "जी हाँ।"

विलसन - "मुझे संदेह तक नहीं हुआ कि तुम ऐसे गुप्‍त वेश में आए हो।"

बटलर - "अच्‍छा कहिए, विज्ञापन पढ़कर मुझे कोई मेरे इस वेश में पहचान सकता है?"

विलसन - "जार्ज, तुमने बड़े ही भयंकर मार्ग पर पैर रखा है। मैं तुम्‍हें कभी ऐसा करने की सलाह न देता।"

बटलर - "इसके सिवा और कोई चारा ही नहीं है।"

विलसन - "तुम्‍हारे इस प्रकार भागने पर मुझे बड़ा दु:ख हुआ।"

बटलर - "मैं तो तुम्‍हारे दु:ख का कोई कारण नहीं देखता।"

विलसन - "क्‍यों, क्‍या तुम नहीं जानते कि तुम अपने देश में प्रचलित कानून के विरुद्ध जा रहे हो?"

बटलर - "मेरा देश? कहाँ है मेरा देश? क्‍या इस पृथ्‍वी पर कोई ऐसा स्‍थान भी है, जिसे मैं अपना देश कह सकूँ? मेरा देश कब्रिस्‍तान है। जहाँ मुझे समाधि मिलेगी, वही मेरा देश है। ईश्‍वर से प्रार्थना करता हूँ कि वह शीघ्र ही मुझे उस देश में पहुँचा दे।"

विलसन - "राम-राम, जार्ज, मुँह से ऐसी बात निकालना बाइबिल के विरुद्ध है। मैं इससे इनकार नहीं करता कि तुम्‍हारा मालिक बड़ा अत्‍याचारी है, पर बाइबिल की आज्ञा को मानो तो दास-दासियों को मालिक के वशीभूत होकर रहना पड़ेगा।"

बटलर - "विलसन, दासत्‍व-प्रथा के समर्थन में बाइबिल या अन्‍य किसी धर्मशास्‍त्र की दुहाई मत दो। यदि गुलामी की प्रथा जैसी घृणित प्रथा भी बाइबिल के मत से ठीक है तो लानत है उस बाइबिल पर। मैं उसे हजार बार पैरों से रौंद दूँगा। ऐसी बाइबिल का नाम संसार से जितनी जल्‍दी मिट जाए, उतना ही अच्‍छा है। मैं सर्व-शक्तिमान परमात्‍मा से पूछता हूँ कि अपनी स्‍वाधीनता की रक्षा के लिए और अत्‍याचार से अपना निस्‍तार करने के लिए भागना क्‍या धर्म-विरुद्ध है? मुझे विश्‍वास है कि मेरा यह कार्य ईश्‍वर की दृष्टि में कभी धर्म-विरुद्ध न होगा।"

विलसन - "तुम पर जैसे घोर अत्‍याचार हुए हैं उनसे तुम्‍हारा यों जोश में आ जाना, तुम्‍हारे मन में ऐसे भावों का उठना स्‍वाभाविक है, पर फिर भी मैं तुम्‍हारे इस कार्य को धर्मानुकूल नहीं कह सकता। क्‍या तुम्‍हें नहीं मालूम है कि ईसाई धर्म में महात्‍माओं ने मनुष्‍य को अपनी भली-बुरी चाहे जैसी स्थिति हो, उसी में संतुष्‍ट रहने का उपदेश दिया है? हम सबको अपनी स्थिति में संतुष्‍ट रहना चाहिए।"

बटलर - "ठीक है, मैं भी यदि तुम्‍हारी भाँति स्‍वाधीन होता तो अपनी स्थिति में ही संतुष्‍ट रहता। मनुष्‍य धनी हो अथवा दरिद्र, यदि प्रकृति के दिए हुए मनुष्‍य के स्‍वाभाविक अधिकार उससे कोई न छीने तो वह ईश्‍वर पर भरोसा करके संतोष कर सकता है। पर मनुष्‍य को प्रकृति तो मनुष्‍य की दी जाए और उसे जीवन बिताना पड़े पशुओं का-सा, और मनुष्‍य के स्‍वाभाविक अधिकारों से उसे सर्वथा वंचित रखा जाए, तो ऐसी दशा में सृष्टिकर्ता की करुणा में उसे अवश्‍य ही संशय होने लगेगा। तुम लोगों को शर्म नहीं आती कि प्रमाण देकर गुलामों को संतुष्‍ट रहने की सीख देते हो! तुम्‍हारे स्‍त्री-पुत्रों को तुमसे छीनकर यदि कोई जहाँ-तहाँ बेच डाले तो क्‍या फिर भी तुम संतुष्‍ट बने रहोगे?"

'बटलर' नामधारी छद्मवेशी जार्ज की ऐसी बातें सुनकर विलसन एकदम अचंभे में आ गया। उसके मुँह से बात न निकली। थोड़ी देर बाद कहने लगा - "जार्ज, मैंने सदैव तुम्‍हारे साथ मित्र-जैसा व्‍यवहार किया है। तुम्‍हें विपत्ति से बचाने की चेष्‍टा की है। पर अब मैं देखता हूँ कि तुम विपत्ति के घोर समुद्र में कूद रहे हो। पकड़े गए तो फिर तुम्‍हारे बचने की क्‍या सूरत है? तब तो इससे भी अधिक दुर्दशा में पड़ोगे। ताज्‍जुब नहीं कि तुम्‍हारा मालिक तुम्‍हें जान से भी मार डाले।"

जार्ज - "विलसन, यह मैं खूब जानता हूँ। पर पकड़े जाने पर मेरे छुटकारे का उपाय मेरी जेब में है।"

यह कहकर उसने जेब से पिस्‍तौल निकालकर कहा - "यदि पकड़ा गया तो इसी पिस्‍तौल से तुम लोगों के इस केंटाकी प्रदेश में साढ़े तीन हाथ जगह लेकर दासत्‍व-शृंखला से इस शरीर को मुक्‍त करूँगा।"

विलसन - "जार्ज, तुम तो बिल्‍कुल पागल हो गए हो। ओफ! कैसी भयंकर बातें कर रहे हो। तुम आत्‍महत्या करना चाहते हो? तुम अपने देशीय कानून के विरुद्ध काम करने पर तुले हुए हो।"

जार्ज - "फिर तुम मेरे देश का नाम लेते हो? कहाँ है मेरा देश? यह तो तुम्‍हारा देश है। क्रीत दासी के गर्भ से उत्‍पन्‍न मेरे जैसे मनुष्‍यों के लिए क्‍या कहीं स्‍वदेश है? हम लोगों के लिए न कहीं अपना देश है न अपना घर है। हम लोगों का अपनी स्‍त्री पर भी कोई अधिकार नहीं है। यहीं तक नहीं, हमारे शरीर पर भी हमारा अधिकार नहीं है। बिना अपराध के मालिक हमें हजार बार पीट सकता है, पर ऐसा कोई कानून नहीं जो हम लोगों के शरीर की रक्षा कर सके। देश में जितने कानून हैं, सभी हम लोगों के नाश के लिए हैं। ये सब कानून हम लोगों के बनाए हुए नहीं हैं और न उनके बनाने में हम लोगों की राय ही ली गई है। फिर ऐसे कानून के विरुद्ध चलने से क्‍या कोई कभी धर्म-भ्रष्‍ट होता है? विलसन, मुझे बिल्‍कुल गँवार मत समझो। चौथी जुलाई का भाषण मुझे खूब याद है। तुम्‍हारे कानून-विधाता साल में एक बार कहा करते हैं न कि प्रजा की सम्‍मति के बिना राजा या शासनकर्ता कोई कानून नहीं बना सकते। पर तुम्‍हीं बताओ, यहाँ जितने कानून प्रचलित हैं उनमें किसी कानून के बनने या प्रचार करने के पहले क्‍या कभी उसके विषय में हम लोगों का मत लिया गया है? जिस कानून के बनाने में हम लोगों का मत नहीं लिया गया, उस कानून को मानने के लिए भी मैं कभी मजबूर नहीं। विलसन, मेरी जो दुर्दशा हो चुकी है, उन सबका तुम्‍हें पता नहीं है, इसी से तुम ऐसा कहते हो। जन्‍म से आज तक मैंने कैसे दु:ख झेले हैं, इसका वर्णन करना असंभव है। तुम्‍हारे इस केंटाकी प्रदेश के एक रईस अंग्रेज के वीर्य से मेरा जन्‍म हुआ था। मेरी माता उस गोरे की क्रीत दासी थी। क्रमश: उसके सात बच्‍चे हुए। मैं उनमें सबसे छोटा हूँ। मेरी छह बरस की उम्र में उस पाषाण हृदय गोरे की मृत्‍यु हो गई। उसका कर्ज अदा करने के लिए उसके घर की और सब चीजों के साथ-साथ हम लोगों की भी नीलामी हुई। एक-एक करके मेरे छह भाई-बहनों को भिन्‍न-भिन्‍न लोगों ने खरीदा। इसके बाद माता मुझे छाती से चिपटाकर रोते-रोते मेरे वर्तमान मालिक से बोली, 'महाशय, मुझे और इस बालक को एक साथ खरीद लीजिए। मेरी छाती से इस अबोध बालक को अलग न कीजिए।' वह नर-पिशाच भला क्‍यों मानता! उसने बारंबार मेरी माता को ठोकरों से पीछे हटाकर उसकी छाती से मुझे छीन लिया, और तुरंत मुझे बाँधकर अपने घर की ओर ले गया। मैं एक बार आँख उठाकर माता की ओर देखने भी न पाया। दो-तीन बार केवल उसके आर्त्त-नाद के शब्‍द मेरे कानों में पड़े। इसके कई दिनों बाद मेरा मालिक मेरी बड़ी बहन को उस व्‍यक्ति से, जिसने उसे नीलामी में खरीदा था, मोल ले आया। इस बात से पहले मैं बड़ा प्रसन्‍न हुआ। सोचने लगा कि बड़ी बहन के साथ रहकर माँ के वियोग का शोक कुछ हल्‍का पड़ पड़ जाएगा। पर शीघ्र ही मेरी वह आशा बेकार सिद्ध हुई। बड़ी बहन मेरी माता की भाँति बहुत ही सुंदर थी। धर्म-अधर्म का उसे बड़ा खयाल था। मेरा मालिक उसे उपपत्‍नी बनाने की बहुत चेष्‍टा करने लगा। पर वह किसी तरह धर्म छोड़ने को राजी न हुई। इससे मालिक को बड़ा क्रोध आता और वह उसे रोज बेंतों से खूब पीटता। एक दिन उसकी मार देखकर मैं शोक और दु:ख से अधीर हो गया। अंत में मेरे मालिक ने जब देख लिया कि मेरी बहन जान निकल जाने पर भी धर्म नहीं छोड़ेगी तो उसे किसी दक्षिण-देशीय अंग्रेज-बनिए के हाथ बेच डाला। पर अब वह कहाँ है, जीती है या मर गई, मुझे मालूम नहीं। इस जन्‍म में फिर उससे भेंट होने की आशा नहीं। इसके बाद मैं अकेला उस कठोर-हृदय मालिक के यहाँ रहने लगा, कभी-कभी मुझे भूखे ही दिन काटने पड़ते। कभी-कभी उसकी खाकर बाहर फेंकी हुई हड्डियों को भूख मिटाने के लिए चूसता था, पर मैं भोजन या और किसी शारीरिक कष्‍ट की परवा न करता था।"

"मैं दिन-रात माता और भाई-बहनों के शोक में पागल हुआ रहता था। ध्‍यान आता था कि मुझे प्‍यार करनेवाला, मुझपर दया करनेवाला, मुझसे मीठा बोलनेवाला अब इस संसार में कोई नहीं। बचपन में मेरी माता कहा करती थी कि विपत्ति में ईश्‍वर का स्‍मरण करने से वह सब दु:ख दूर कर देता है। माता की वह बात याद करके कभी-कभी ईश्‍वर को पुकारता था। इससे मन में कुछ आशा का संचार होने से जीता रहा। कुछ दिनों बाद मालिक ने मुझे तुम्‍हारे कारखाने में लगा दिया। तुम्‍हारे यहाँ ही पहले-पहल इस जन्‍म में मैंने दया और स्‍नेह का अनुभव किया। तुम्‍हीं ने पहले मेरे लिखने-पढ़ने का सुभीता कर दिया था, और तुम्‍हारे कारखाने में रहते समय ही शेल्‍वी साहब की दासी इलाइजा से मेरा विवाह हुआ था। क्रीत दासी होने पर भी इलाइजा का हृदय स्‍वच्‍छ और धर्म-पूर्ण था। उसके उस अकृत्रिम और अकपट प्रणय ने मुझमें फिर जान डाल दी। उसके सहवास से माता और बहनों का शोक कुछ-कुछ हल्‍का होता गया। पर जब तक यह देश में फैला घृणित कानून दूर न हो, तब तक क्रीत-दासों को सुख की संभावना कहाँ! मेरे निर्दयी मालिक से मेरा यह सुखी जीवन नहीं देखा गया। वह द्वेष की अग्नि से जल उठा और इलाइजा को छोड़कर उसने मुझे अपने घर की, अपनी पुरानी उपपत्‍नी, मीना नाम की क्रीत दासी से विवाह करने की आज्ञा दी। भला मैं इलाइजा को छोड़कर मीना से कैसे विवाह करता! क्‍या यह काम धर्म या बाइबिल के मत के अनुकूल है? धिक्‍कार है तुम्‍हारे ईसाई धर्म को! धिक्‍कार है तुम्‍हारी बाइबिल को! और सौ-सौ धिक्‍कार हैं तुम्‍हारे देश में प्रचलित कानू को! इस घृणित कानून की आड़ में नित्‍य लाखों मनुष्‍यों का नाश हो रहा है और तुम मुझे इसी घृणित कानून का पालन करने को समझाते हो। यदि सचमुच ही इस संसार की रचना करनेवाला कोई न्‍यायी मंगलमय ईश्‍वर है तो इस घृणित कानून के विपरीत चलकर मैं उसका प्रिय कार्य पूरा कर रहा हूँ। मैं भागकर कनाडा जा रहा हूँ। यदि किसी ने मुझे पकड़ने की हिम्‍मत की तो मैं तुरंत उसकी जान ले लूँगा, और यदि हारकर पकड़ा गया तो अपनी जान देकर साढ़े तीन हाथ भूमि पर आनंद-पूर्वक अनंत काल के लिए सुख की सेज बिछाकर सोऊँगा। मुझे पूर्ण विश्‍वास है कि स्‍वाधीनता की रक्षा के लिए युद्ध करने में कोई पाप नहीं है। तुम्‍हारे बाप-दादे भी तो स्‍वाधीनता की रक्षा के लिए लड़े थे। उस युद्ध में यदि उन्‍हें कोई पाप नहीं लगा तो अपनी स्‍वाधीनता की रक्षा के लिए किसी आदमी को मार डालने में मुझे भी कोई पाप नहीं लगेगा।"

जार्ज की यह रामकहानी सुनकर विलसन का हृदय पसीज गया। उसके दिल पर यह बात जम गई कि गुलामी की इस प्रथा के उठ जाने में ही कल्‍याण है। वह फिर बोला - "जार्ज, इस दशा में मैं तुम्‍हें भागने से नहीं रोकूँगा, पर किसी की जान मत लेना। हाँ, यह तो कहो कि अपनी स्‍त्री के विषय में क्‍या करोगे? तुम्‍हारी स्‍त्री इस समय कहाँ है?"

जार्ज ने कहा - "मैं नहीं जानता कि मेरी स्‍त्री इस समय कहाँ है। पर सुना है कि उसके मालिक ने उसके बच्‍चे को बेचने का प्रस्‍ताव किया था, इससे वह अपने बच्‍चे को लेकर भाग गई है। मालूम नहीं कि उससे कब भेंट होगी, अथवा इस जन्‍म में भेंट होगी भी या नहीं।"

विलसन - "यह बड़े अचंभे की बात है। ऐसे दयालु परिवार ने तुम्‍हारे बच्‍चे को बेचने की बात ठान ली!"

जार्ज - "अक्‍सर होता है कि दयालु परिवार भी कर्ज में फँसकर धर्म-अधर्म की कुछ भी परवा नहीं करता और सामाजिक मर्यादा को बचाने के लिए माता की गोद से शिशु को छीनकर बेच देता है, क्‍योंकि देश में प्रचलित इस घृणित कानून ने इस प्रकार की कठोरताओं को सदा आश्रय दिया है। केवल दयालु परिवार मिलने से ही किसी दास का कोई उपकार नहीं हो सकता।"

विलसन के हृदय पर जार्ज की इन बातों का बड़ा असर हुआ। उसने जेब से कुछ नोट निकालकर जार्ज को दिए और कहा - "ये रुपए बहुत काम आएँगे।"

जार्ज ने रुपए लेने से इनकार करते हुए बहुत नम्रतापूर्वक कहा - "विलसन, तुमने समय-समय पर मेरा बहुत उपकार किया है। मैं तुमसे और रुपए नहीं लेना चाहता। यों रुपए देते रहने से तुम स्‍वयं कर्ज में फँस जाओगे।"

पर विलसन ने उसकी एक न सुनी और जबरदस्‍ती उसकी जेब में रुपए डाल दिए। लाचार जार्ज को लेने पड़े। जार्ज ने विलसन से कहा - "यदि मैं कभी तुम्‍हारे रुपए चुकाने लायक हुआ, तो तुम्‍हें वापस लेने पड़ेंगे।"

विलसन - "तुम कितने दिनों तक इस प्रकार गुप्‍त वेश में रहोगे? तुम्‍हारे साथ यह काला आदमी कौन है?"

जार्ज - "यह आदमी भी गुलाम था। एक बरस हुआ, यह किसी तरह भागकर कनाडा चला गया था। इसके भाग जाने से इसका मालिक मारे गुस्‍से के पागल होकर इसकी माता को दिन-रात मारने और सताने लगा। माता के दु:ख की बात सुनकर उसे चुपके से भगा ले जाने के लिए यह फिर आया है।"

विलसन - "तो क्‍या इसकी माता का उद्धारकर लाए?"

जार्ज - "अभी मौका नहीं मिला। पहले यह मुझे किसी सुरक्षित स्‍थान में पहुँचा देगा और फिर अपनी माता के उद्धार के लिए इस प्रदेश में आकर उसे ले जाएगा।"

विलसन - "यह तो बड़ा हिम्‍मतवाला बहादुर आदमी है, भाई! पर जार्ज, देखना तुम बड़ी सावधानी से रहना, कहीं पकड़े न जाना।"

जार्ज - "मैं गुलामी से छूट चुका हूँ। भागकर बच गया तो भी स्‍वाधीनता है हाथ और पकड़ा गया तो भी समाधि में जाकर पूरी स्‍वाधीनता से सुख की नींद सोऊँगा। यदि तुम कभी सुनो कि मैं पकड़ा गया हूँ तो निश्‍चय ही मन में समझ लेना कि मैं मर गया हूँ।"

इन बातों के बाद विलसन ने जार्ज से विदा माँगी, पर घर के बाहर पैर रखते ही जार्ज ने फिर पुकारकर कहा - "विलसन, मेरी एक बात सुनकर जाओ। यदि मैं पकड़ा गया तो अवश्‍य ही मेरी जान जाएगी और मालिक मुझे मुर्दे कुत्ते की तरह कहीं फिंकवा देगा। उस समय इस संसार में मेरे लिए मेरी स्‍त्री के सिवा और कोई एक बूँद आँसू भी न गिराएगा। मैं तुम्‍हें अपना एक चित्र देता हूँ। मेरी स्‍त्री से भेंट हो जाए तो उसे दे देना और कहना कि जीते-मरते मैं उसी का हूँ। उसे बच्‍चे को लेकर कनाडा जाने को समझा देना और बच्‍चे को गुलामी की जंजीरों से बचाए रखने की चेष्टा करने का मेरी ओर से अनुरोध कर देना। उससे कहना कि दासों के मालिक चाहे जितने दयालु हों, पर उनके दासों के दु:ख-कष्‍ट दूर नहीं हो सकते, क्‍योंकि मालिक के कर्जे के लिए दूसरों के हाथ में जाने का सदा ही खटका बना रहता है।"

विलसन - "तुम्‍हारी स्‍त्री से भेंट होने पर मैं अवश्‍य ही ये सब बातें कहूँगा। मैं ईश्‍वर से प्रार्थना करता हूँ कि वह निर्विघ्‍न तुम्‍हें निरापद स्‍थान पर पहुँचने में समर्थ करें। तुम सदा ईश्‍वर का स्‍मरण करते रहना।"

जार्ज - "क्‍या संसार में कहीं कोई ईश्‍वर है? संसार में सदा यह अविचार और अन्‍याय देखकर मेरे मन में शंका होती है कि इस संसार में न्‍यायी परमेश्‍वर नहीं है। हाँ, यदि कोई ईश्‍वर हो भी तो वह तुम्‍हीं लोगों का रक्षक है। ईश्‍वर के अस्तित्‍व पर मुझे विश्‍वास नहीं होता।"

विलसन - "जार्ज, ऐसी बातें मुँह से न निकालो। मन में कभी ऐसे संशय को स्‍थान मत दो। परमेश्‍वर प्रत्‍यक्ष इस संसार का शासन करता है। वह सर्वत्र व्‍यापक है। उस पर विश्‍वास करो। अपने को उसी के सहारे छोड़कर न्‍याय और सत्‍पथ पर बढ़ते जाओ। निश्‍चय ही उसकी करुणा से निर्विघ्‍न सुरक्षित स्‍थान पर पहुँच जाओगे। इस संसार में व्‍यक्ति-विशेष को जो कष्‍ट और यंत्रणाएँ मिलती हैं, वे सब उनके कर्मों का फल हैं। मनुष्‍यों को कभी-कभी अपने बाप-दादों के पाप का फल भी भोगना पड़ता है। मंगलमय ईश्‍वर पर अटल विश्‍वास, पूर्ण भरोसा और उसके हाथों में आत्म-समर्पण किए बिना उन कर्मों के फल से छुटकारा नहीं मिल सकता।"

विलसन की बात सुनकर जार्ज बोला - "मैं तुम्‍हारे इस उपदेश के अनुसार कार्य करने की चेष्‍टा करूँगा।"

यह कहकर वे दोनों एक-दूसरे से बिदा हुए।

13. नीलाम की मार्मिक घटना

टॉम को साथ लिए हुए हेली चलते-चलते एक नगर के निकट पहुँचा। मार्ग में दोनों ही चुप थे। कोई किसी से कुछ न बोलता था। दोनों अपनी-अपनी धुन में मस्‍त थे। देखिए, इस संसार में लोगों की प्रकृति में कितना निरालापन दिखाई पड़ता है। दोनों एक ही जगह बैठे हुए थे। आँखों के सामने का दृश्‍य भी दोनों के लिए एक ही-सा था, पर विचारों की लहर एक-दूसरे से बिल्‍कुल ही भिन्‍न थी। उनके पृथक्-पृथक् विचारों का नमूना देखिए। हेली सोच रहा था कि खूब लंबा-चौड़ा और ताकतवर मर्द है। इसे दक्षिण के देश में बेचूँगा तो कम-से-कम दो-तीन सौ रुपए नफे के तो जरूर ही मिल जाएँगे। फिर तरंग जो उठी तो सोचने लगा कि दास-व्‍यवसायियों में मुझ जैसे दयालु मनुष्‍य विरले ही निकलेंगे। देखो न, मैंने थोड़ी ही दूर आकर टॉम के हाथ खोल दिए, केवल पैर भर बाँध रखे हैं। फिर संसार का व्‍यवहार सोचकर मन-ही-मन कहने लगा कि मैंने टॉम के साथ इतनी भलमनसी की है, पर वह अकृतज्ञ क्रीत दास है। वह कभी मेरी इस भलमनसी की दाद न देगा।

उधर टॉम के विचार देखिए, वे और ही तरह के थे। टॉम सोच रहा था कि मंगलमय परमात्‍मा इस संसार का शासन करता है। इसलिए अपने को उसी पूर्ण ब्रह्म के हाथों में सौंप देना चाहिए। फिर किसी अमंगल का कोई डर न रहेगा। मनुष्‍य ईश्‍वर के उद्देश्‍य को समझने में सर्वथा असमर्थ है। इसी से वह जीवन की किसी-किसी घटना को विपत्ति या दुर्घटना समझ बैठता है। पर जब मनुष्‍य का मोह दूर हो जाता है तब वह समझने लगता है कि ईश्‍वर जो कुछ करता है, सब उसके भले के लिए ही करता है।

ऐसे ही भावों के सहारे टॉम अपने उमड़े हुए शोक को रोकता था। टॉम और हेली के ये चिंता-स्रोत अभी समाप्‍त न होने पाए थे कि वे सामने के नगर में आ पहुँचे। वहाँ हेली ने अपनी जेब से एक गजट निकाला और बड़ी तत्‍परता से उसमें छपा हुआ एक विज्ञापन इस प्रकार पढ़ने लगा:

नीलाम

अदालत की आज्ञानुसार आगामी मंगलवार, 20वीं फरवरी को वाशिंगटन नगर की दीवानी कचहरी के सामने, परलोकवासी ब्रांसन- साहब का ऋण चुकाने के लिए, नीचे लिखे हुए दास-दासी सबसे ऊँची डाक बोलनेवाले के हाथ बेचे जाएँगे:

नीलाम की सूची

नंबर दास-दासी उम्र

1 हागर (दासी) 60 बरस

2 जॉन 30 बरस

3 बेंजमिन 21 बरस

4 सेल 25 बरस

5 अलबर्ट 24 बरस

20 जनवरी, दस्‍तखत

1850 सेमुअल नरिश, टॉमस फ्लिट "मुंशी अदालत"

विज्ञापन पढ़कर हेली ने टॉम से कहा - "यहाँ हम कई और दास-दासी खरीदेंगे। इसलिए तुम्‍हें थोड़ी देर को जेलखाने में रखकर हम कचहरी जाते हैं।"

यह कहकर वह टॉम को जेल में रखकर खुद नीलाम-घर की ओर चला गया।

दोपहर हो चली है। कचहरी में लोगों की भीड़ जमा हो रही है। वहाँ से थोड़ी ही दूर, बिना छत का, लोहे की छड़ों से घिरा हुआ माल-गोदाम-सरीखा एक घर था। पैरों की धूल से वह घर भरा हुआ था। इस घर के एक कोने में कई काले दास-दासी बैठे बात कर रहे थे। इनमें हागर नाम की जो दासी थी, उसकी उम्र अस्‍सी से ऊपर जान पड़ती थी। पर असल में वह 60 से अधिक की न थी। दिन-रात की बेहिसाब मेहनत और भाँति-भाँति के कष्‍टों तथा भूख के दु:ख से वह ऐसी जीर्ण हो गई थी। चलने में लकवे के रोगी की भाँति उसका सारा शरीर काँपता था। उस हतभागिनी की बगल में एक 14 बरस का लड़का बैठा हुआ था। हागर के और सब लड़के-लड़कियों को उसके मालिक ने पहले ही जहाँ-तहाँ बेच डाला था। कम से कम 10-12 संतानों में केवल यही लड़का आज तक इसके साथ है। हागर बालक के गले में बाँह डाले बैठी थी। जब कोई खरीदार बालक के शरीर की जाँच करने आता, तब वह बुढ़िया चौंक जाती और कहती - "हम दोनों एकसाथ ही बेचे जाएँगे।" इतना कहकर बालक को और भी जोर से जकड़ लेती थी। वहीं तीस वर्ष का एक और दास बैठा था। वह बोला - "हागर मौसी, तुम क्‍यों डरती हो? मुंशीजी तो कह चुके हैं कि वह तुम्‍हें और अलबर्ट को एक ही साथ बेचने का यत्‍न करेंगे।"

इसी समय हेली वहाँ आया। वह एक-एक दास के शरीर की जाँच करके देखने लगा। उसने हर एक के मुँह में अँगुली डालकर पहले दाँत गिने, फिर खड़ा करके शरीर की लंबाई नापी। वह शरीर को जगह-जगह से टटोल कर देखने लगा। अंत में देखते-दिखाते हागर के पास पहुँचा और उसके चौदह वर्ष के पुत्र अलबर्ट की जाँच करने के लिए झटके से उसका हाथ खींचकर उठाया। यह देखकर वृद्ध माता बोली - "साहब, हम दोनों साथ ही बेचे जाएँगे, मैं अभी खूब काम-काज करने लायक हूँ।"

हेली ने हँसकर पूछा - "तुम तंबाकू के खेतों या चाय के बगीचों में काम कर सकोगी?"

बुढ़िया ने कहा - "हाँ-हाँ, खूब कर सकूँगी।"

हेली ने हँसते हुए एक दूसरे खरीदार के निकट जाकर कहा - "हम इस छोटे छोकरे को लेना चाहते हैं। लड़का खूब मजबूत है।"

इस पर उस दूसरे खरीदार ने कहा - "मैंने सुना है कि बुढ़िया और लड़का दोनों साथ ही बेचे जाएँगे।"

तब हेली बोला - "बुढ़िया की कीमत तो कोई एक पैसा भी नहीं देगा, हवा से इसकी कमर टेढ़ी हो गई है। एक आँख की कानी अलग है। ऐसी मरी हत्‍या को लेकर कौन अपनी पूँजी नष्‍ट करेगा। हमें तो कोई मुफ्त में दे तो भी नहीं लें। अगर बालक और बुढ़िया साथ बिकें तो बालक के दाम भी घट जाएँगे।"

हेली की बातें समाप्‍त न होने पाई थीं कि नीलाम का घंटा बजा। अदालत के मुंशी सेमुअल नरिश और टॉमस फ्लिट नाक पर चश्‍मा चढ़ाए नीलाम-घर में आए। नीलामवालों ने डाक की हाँक लगाई। वृद्ध हागर ने अलबर्ट से कहा - "बेटा, मुझे पकड़कर बैठ जा, जिससे हम दोनों एक ही हाँक में बिक जाएँ।" बालक ने आँखों में आँसू भरकर कहा - "माँ तू नाहक यों क्‍यों कह रही है? हम लोग एक साथ नहीं बेचे जाएँगे।"

हागर बोली - "जरूर बेचे जाएँगे, जरूर! तू मुझे पकड़कर बैठ जा।"

कुछ देर बाद जब कई नीलाम हो चुके, तब उस बालक को हाथ पकड़कर खड़ा किया। यह देखकर बुढ़िया चिल्‍लाकर बोली - "दोनों को एक साथ बेचो। हम दोनों को एक साथ नीलाम करो!"

पर नीलामवालों ने धक्‍का देकर उस बेचारी बुढ़िया को दूर धकेल दिया। बालक की बोली आरंभ हुई। एक-दो-तीन के बाद अंत में हेली ने बालक को खरीदा। तब बालक की माता ने हेली के पास आकर कहा - "साहब, मुझे भी आप ही खरीद लीजिए। बालक से अलग होने पर मेरी जान नहीं बचेगी।"

हेली बोला - "तुम्‍हें खरीदा जाए चाहे न खरीदा जाए, मरोगी तुम जल्‍दी ही। तुम्‍हारे मरने में अब बहुत दिन नहीं हैं।"

इसके बाद बुढ़िया की बोली आरंभ हुई। एक आदमी ने बहुत थोड़े दामों में उसे खरीद लिया, पर बुढ़िया ने बड़ा रोना मचाया। 'हाय-हाय'कर कहने लगी - "मेरे एक बच्‍चे को भी मेरे संग नहीं छोड़ा! मालिक ने मरते समय कह दिया था कि इस बच्‍चे को वह मेरी गोद से अलग नहीं करेंगे। पर हाय, लोगों ने उसे भी न छोड़ा- मुझसे छीन लिया!"

उनमें एक बूढ़ा गुलाम था। उसने कहा - "हागर मौसी, ईश्‍वर की मर्जी ऐसी ही समझकर तुम संतोष करो। अब रोने-धोने से क्‍या होगा! हम लोगों के लिए और कोई चारा नहीं है।"

पर हागर को शांति कहाँ? वह और अधिक रोने लगी, बोली - "बताओ, ईश्‍वर कहाँ है? एक बार उसे देखूँ तो सही। एक-एक करके तेरह लड़के मेरी गोद से छिन गए, पर ईश्‍वर ने इसका कुछ भी विचार न किया!"

तब बालक अलबर्ट कातर होकर कहने लगा - "माँ, रोओ मत, अपने मालिक के साथ चली जाओ। यह लोग कहते हैं कि तुम्‍हें खरीदनेवाला भला आदमी है।" किंतु उस शोक-संतप्‍त माता के मन को इतने से कब ढाढ़स होता। उसने फिर दौड़कर बालक को पकड़ लिया। पागल की भाँति चिल्‍लाकर कहने लगी - "यही मेरा आखिरी लड़का है। मेरा सबसे छोटा बच्‍चा है। इसे छोड़कर मैं कहीं नहीं जाऊँगी।" बड़ी मुश्किल से हेली ने उसके हाथ से बालक को छीनकर अपना रास्‍ता लिया। इधर वह स्त्री अचेत होकर पड़ गई।

इन नीलाम में हेली ने उस बालक के सिवा और भी चार गुलामों को खरीदा था। उन्‍हें साथ लेकर वह जेल में आया। और वहाँ से टॉम को लेकर सबको नदी की ओर ले गया। फिर दक्षिण देश की ओर जाने के लिए हेली अपने दासों सहित एक स्‍टीमर पर सवार हुआ।

जहाज के ऊपरी हिस्‍से में दस-बारह सजे-सजाए कमरे थे। इन कमरों को धनाढ्य यात्रियों ने किराए पर ले रखा था। हंसी-ठट्ठे और दिल्‍लगी-मजाक से ये कमरे गूँज रहे थे। एक कमरे में हँसी के फुहारे-से छूट रहे थे। जान पड़ता था, मानो इस कमरे में किसी नए दुलहे-दुलहिन का दखल है। दूसरे कमरे में संतान-वत्‍सला माता अपने बच्‍चे का मुख चूम-चूमकर आनंद-मग्‍न हो रही थी। किसी-किसी कमरे में शूपर्नखा की बहनें अंग्रेज कुल-कामिनियाँ कई अन्‍य यात्रियों को अपने से अच्‍छे कमरों में बैठा देखकर अपने स्वामीयों से लड़-भिड़ रही थीं, अपने भाग्‍य को कोसती थीं और कार्य-कारण भाव की कड़ी मिलाकर समालोचना करते हुए अंत में अपने इस दुर्भाग्‍य की जड़ अपने वर्तमान स्‍वामी को ही ठहराती थीं।

पर इस प्रकार के सजे हुए कमरों और इस आनंद-बहार को देखकर मन केवल क्षण भर के लिए आनंदित हो सकता है। यह बाहरी ठाठ-बाट, यह बनाव-ठनाव और कारीगरी के दृश्‍य मनुष्‍य के हृदय में कोई जीती-जागती कविता की तस्‍वीर नहीं खींच सकते।

पाठक, हमारे साथ आइए, हम आपको एक बार जहाज के गोदाम का दृश्‍य दिखाएँ। जरा लोहे की जंजीर से जकड़े हुए और अपनी प्‍यारी पत्‍नी तथा बाल-बच्‍चों से जन्‍म भर के लिए बिछुड़े हुए शोक-विह्वल टॉम के मुख की ओर देखिए। माता की गोद से बिछुड़े हुए मातृ-वत्‍सल चौदह साल के बालक की आहें कान देकर सुनिए। साथ ही हेली के दूसरे चार गुलामों की ओर तनिक ध्‍यान देकर देखिए कि वे क्‍या कह और कर रहे हैं। यहाँ आपको जीती-जागती कविता की छवि दिखाई देगी। इस प्रत्‍यक्ष काव्‍य के रस से आपका हृदय भर उठेगा।

हेली के चारों गुलाम इस अंधेरे गोदाम में बैठे आँसू बहा रहे हैं और एक-दूसरे को अपने दु:ख की मार्मिक कहानी सुना-सुनाकर धीरज रखने की चेष्‍टा कर रहे हैं। इनमें तीस साल की उम्र का जान नामक एक गुलाम था। उसने टॉम के जंजीर से जकड़े घुटनों पर अपना हाथ टेककर कहा - "भाई, मेरी स्‍त्री यहाँ से थोड़ी दूरी पर रहती है। मेरे बिकने के विषय में उसे कुछ भी नहीं मालूम है। बहुत जी चाहा है कि जन्‍म भर के लिए चलते-चलते एक बार उसे देख आऊँ। अब इस जिंदगी में तो फिर उससे भेंट नहीं होगी।"

इतना कहकर जान रोने लगा। आँसुओं से उसकी छाती भीग गई। टॉम उसे ढाढ़स दिलाने का यत्‍न करने लगा, पर उसको सूझ ही नहीं रहा था कि जान को कैसे समझाए। इसी समय एक बालक जहाज के कमरे से उतरकर नीचे आया। वह इन गुलामों को देखते ही अपनी माँ के पास दौड़ा गया और कहने लगा - "माँ, इस जहाज के गोदाम में चार गुलाम बँधे बैठे हैं। वे बहुत रो रहे हैं।"

बालक की माता ने उसके मुँह से यह बात सुनकर बड़े दु:ख से कहा - "यह गुलामी की प्रथा हमारे देश के लिए बड़ा भारी कलंक है। जिस मनुष्‍य के पास हृदय है, वह क्‍या ऐसी शोचनीय स्थिति देख सकता है?"

पास ही कमरे में एक और अंग्रेज स्‍त्री बैठी थी। आँखें उसकी बिल्‍ली की-सी थीं। यह बात सुनकर वह बोल पड़ी - "आपकी समझ में क्‍या गुलामी की प्रथा बहुत बुरी है? मैं तो नहीं समझती कि इसमें केवल दोष-ही-दोष हैं, कोई गुण नहीं है। इसमें गुण भी हैं, और दोष भी हैं। भलाई भी है और बुराई भी। मान लीजिए कि आज ही सारे गुलामों को गुलामी की जंजीर से मुक्‍त कर दिया गया तो क्‍या आप कह सकती हैं कि इससे उन्‍हें अधिक सुख मिलेगा! आप अच्‍छी तरह गौर से देखिए तो आपको मालूम हो जाएगा कि गुलाम लोग जिस हालत में हैं, उसे वे बहुत पसंद करते हैं, उसमें उन्‍हें स्‍वच्‍छंदता का आनंद आता है। यदि इन्‍हें स्‍वाधीनता दे दी जाए तो इनकी दशा बहुत ही खराब हो जाएगी।"

इस सभ्‍य रमणी की बात सुनकर बालक की माता ने कहा - "यदि यह घृणित गुलामी की चाल न होती तो माता की गोद से बालक को और स्‍वामी से स्‍त्री को बिछुड़कर जबरदस्‍ती दूसरे आदमी के साथ न रहना पड़ता। इन सब भयानक नृशंस व्‍यवहारों को स्‍मरण करके हृदय काँप उठता है। आप एक बार विचार करके देखिए कि यदि आपकी गोद से आपके बच्‍चे को कोई जबरदस्‍ती अलग कर दे तो आपको कितना अखरेगा, कैसा असहनीय कष्‍ट होगा?"

बालक की माता की बात समाप्‍त होने पर वह सभ्‍य स्‍त्री हँसकर बोली - "जो स्त्रियाँ आपकी भाँति हृदय के उच्छवास के वश में होकर काम करती हैं, उनमें कई विषयों के गुण-दोषों की परख करने की शक्ति नहीं रहती। हृदय का उच्छवास विचारशक्ति को निस्‍तेज बना देता है और मनुष्‍यों के भले-बुरे का ज्ञान हर लेता है। आपके हृदय में जैसा प्रेम-भाव है वैसे प्रेम का संचार क्‍या काले दास-दासियों के हृदय में भी हो सकता है? केवल अपने हृदय के अनुसार उनके सुख-दु:ख और भले-बुरे का अंदाज न कीजिए। गुलामी की प्रथा पर मैंने बहुतेरी पुस्‍तकें पढ़ डाली हैं। इस विषय पर मेरी बहुत बड़े-बड़े विद्वानों से भी बातचीत हुई है। मेरी समझ में गुलामी की प्रथा में किसी प्रकार की कठोरता नहीं है। यदि गुलामों को गुलामी की बेड़ी से मुक्‍त कर दिया जाए, तो इसमें संदेह नहीं कि वे इससे भी अधिक आफत में पड़ जाएँगे! मेरा तो खयाल है कि गुलामों की वर्तमान दशा बहुत अच्‍छी है।"

यह सभ्‍य स्‍त्री एक गोरे पादरी की स्‍त्री थी। इसका स्‍वामी सिर से पाँव तक काले कपड़े पहने हुए पास ही खड़ा था। अपनी स्‍त्री को एक दूसरी स्‍त्री से दासत्‍व-प्रथा के संबंध में बातें करते देखकर उससे न रहा गया। उसने झट जेब से बाइबिल की पोथी निकाली और उनके पास जाकर कहने लगा - "नाहक आप लोग तर्क-वितर्क कर रही हैं। गौर से आप लोगों ने बाइबिल पढ़ी होती तो इस झूठे तर्क-वितर्क की नौबत ही न आती। बाइबिल में तो लिखा है कि कैनान देश के आदमियों को दासों के दास बनकर रहना पड़ेगा। दासत्‍व-प्रथा का विरोध करना बाइबिल का विरोध करना है, ईसा के धर्म का अपमान करना है। ऐसे धर्म-विरोधी नास्तिक भावों को आप लोग कभी अपने हृदयों में स्‍थान न दीजिए। ध्‍यान से बाइबिल पढ़िए, फिर इसमें संदेह ही नहीं रहेगा कि दासत्‍व-प्रथा ईश्‍वरीय आज्ञा है।"

पास ही एक लंबा आदमी खड़ा हुआ इन लोगों की बातें सुन रहा था। पादरी साहब की बातें सुनकर उसने हँसते हुए वहाँ आकर कहा - "क्‍यों पादरी साहब, सचमुच गुलामी की प्रथा ईश्‍वरीय आज्ञा है? तब हम सभी लोगों को एक-एक दो-दो गुलाम खरीदने चाहिए।"

फिर वही आदमी हेली से बोला - "सुन लीजिए भाई साहब, पादरी महाशय क्‍या कहते हैं। आप दासत्‍व-प्रथा को ईश्‍वरीय आज्ञा बताते हैं। यदि पादरी साहब की बात सच्‍ची हो तो इसमें जरा भी संदेह नहीं हो सकता कि अपनी इस नई आज्ञा का प्रचार करने के लिए ही ईश्‍वर ने खुद आपको हमारे देश में भेजा है। नित्‍य ही तो आप हजारों स्‍त्री-पुरुषों को यहाँ खरीदकर वहाँ बेचा करते हैं और यही कार्य करके महान पुण्‍य लूट रहे हैं। न जाने आप कितनी ही माताओं की गोद से शिशुओं को छीन लेते हैं, कितनी ही स्त्रियों का सदा के लिए स्‍वामी से बिछोह करा देते हैं। भाई साहब, आप-सरीखे पुरुषों की तो देवताओं की-सी पूजा होनी चाहिए।"

हेली ने उत्तर दिया - "जनाब, हम बाइबिल की कुछ परवा नहीं करते। हमने तो अपनी जिंदगी में कभी बाइबिल पढ़ी नहीं। बाइबिल पढ़ने का काम पादरियों का है। हमें तो दो पैसे के नफे से काम है, उसी के लिए रोजगार करते हैं। इस पेशे से जब तक फायदा है, कभी नहीं छोड़ेंगे- चाहे बाइबिल नहीं, बाइबिल का बाप कहे, नफा होते यह काम नहीं छोड़ते। हाँ, अगर यह रोजगार बाइबिल के मत से भी ठीक है तो हम लोगों के लिए और भी अच्‍छा है।"

केंटाकी प्रदेश के राजमार्ग के पास के होटल में जिस भेड़वाले से गुलामी की प्रथा के संबंध में विलसन की बातें हुई थीं, यह लंबा-सा आदमी वही भेड़वाला है। यह भेड़ें चराकर अपना जीवन-निर्वाह करता है, इसी से पादरी साहब की तरह बाइबिल का विशेष जानकार नहीं है। जब पादरी साहब ने बाइबिल निकालकर तर्क शुरू किया तब इसने हार मान ली और पास ही जो एक युवा पुरुष बैठा था, उसके पास जाकर बैठ गया। उससे बोला - "क्‍यों साहब, क्‍या बाइबिल में दास रखने की आज्ञा है? अभी पादरी साहब ने बाइबिल के आधार पर बताया है कि काबुल देश के लोगों पर ईश्‍वर नाराज है। इसलिए वे दासों के दास होंगे।"

युवक पहले जरा मुस्‍कराया, फिर बोला - "पादरी साहब ने काबुल नहीं कैनान कहा है।" फिर बड़ी घृणा प्रकट करके वह कहने लगा - "भाई, इन धर्म-ध्‍वजी पादरियों की बातें बस रहने ही दो। जिस बात से देश के धनी बनियों और राजा-रईसों को सुभीता पहुँचे, उसी को पादरी साहब की बाइबिल समझिए। जिन धनवानों के टुकड़ों से इन धर्म-ढोंगियों का पेट भरता है, उनके स्‍वार्थ को सिद्ध करनेवाले मतों को ही ये पादरी ईश्‍वर का आदेश बताते हैं। क्‍या ये कभी बाइबिल के सच्‍चे धर्म-प्रचार का भी साहस करते हैं? म‍हर्षि ईसा की नजरों में काले-गोरे सब समान थे, कोई भेदभाव न था। उन्‍होंने साफ-साफ कहा है कि संसार की समस्‍त जातियों के अधिकार समान हैं। बाइबिल में इस मत का कहीं उल्‍लेख नहीं है कि एक जाति दूसरी जाति पर अत्‍याचार करे। आजकल तो स्‍वार्थपरता ही बाइबिल है। गुलामों के नीलाम-घर को गिरजा समझिए। जुआड़ी-खाना न्‍यायालय है। चोरों का सम्मिलन-स्‍थल व्यवस्थापिका-सभा है। उस समदर्शी परमात्‍मा के यहाँ क्‍या कभी काले और गोरे में भेद समझा जा सकता है? पर इन काले वस्‍त्रधारी-ऊपर से गोरे और अंदर से दिल के काले-पादरी साहबों ने बाइबिल की दुहाई देकर फतवा दे दिया कि परमेश्‍वर ने कालों को गोरों के दास होने के लिए पैदा किया है। और उसी मत का सहारा लेकर व्यवस्थापिका-सभा के माननीय सदस्‍य खुल्‍लमखुल्‍ला भाषण देते हुए नई-नई आज्ञाएँ निकालकर कहते हैं कि गोरों के दास होने के लिए ही काले बनाए गए हैं।"

इस आदमी की बात समाप्‍त होने के पहले ही जहाज एक नगर के पास जा पहुँचा। वहाँ किनारे लगने पर कई यात्री उतरने की तैयारी करने लगे। इसी समय घाट पर से एक काली स्‍त्री बड़ी तेजी से दौड़ती हुई आकर गोदाम में घुसी और जंजीर से जकड़े हुए जान नामक गुलाम के गले से लिपटकर रोने लगी। पाठक समझ गए होंगे कि यह काली स्‍त्री जान की पत्नी थी। जान ने टॉम से इसी की बात कही थी। स्‍वामी के बिकने की बात सुनकर वह तीस कोस पैदल दौड़ी आई थी और किनारे पर बैठी जहाज की बाट देख रही थी। इसकी दुख-भरी बातों और विलाप का विशद वर्णन अनावश्‍यक है। दास-दासियों के जीवन में ऐसे हृदय-भेदी दृश्‍य सदैव दिखाई देते हैं। जहाज खुलने की तैयारी हुई। युवती सदा के लिए विदा होते समय स्‍वामी से रोती हुई कहने लगी - "जान! अब इस जन्‍म में तुमसे भेंट होने की आशा नहीं। मैं ईश्‍वर पर भरोसा करके इस दु:ख को सह लूँगी। लेकिन अपने भविष्‍य की ओर देखकर मेरा कलेजा फटा जाता है। तुम्‍हारे चले जाने पर, बच्‍चों को बेचकर रुपए बटोरने के लिए, मालिक अवश्‍य ही मुझे दूसरे आदमी के साथ रहने को मजबूर करेगा। पर मैं तुमसे कहे देती हूँ कि मुझे आत्‍महत्‍या स्‍वीकार है, मार खाते-खाते मर जाना मंजूर है; पर मालिक की मार के डर से दूसरा पति करके मैं उसे बच्‍चे बेचने का मौका न दूँगी।"

इतना कहकर जान की स्‍त्री चली गई। जहाज लंगर उठाकर दक्षिण देश की ओर रवाना हुआ। चलते-चलते जहाज एक दूसरे नगर के पास पहुँचा। हेली यहाँ उतरा और थोड़ी देर बाद एक क्रीत दासी को साथ लेकर जहाज पर आ गया। उस दासी की गोद में एक साल भर का शिशु था। स्‍त्री बड़ी प्रसन्‍न दिखाई पड़ती थी। पर जब जहाज चलने लगा, तब हेली ने फिर उस स्‍त्री के पास आकर कुछ कहा। इस पर वह स्‍त्री अत्‍यंत उदास हो गई। कहने लगी - "मैं तुम्‍हारी इस बात पर विश्‍वास नहीं करती।"

हेली बोला - "इस कागज को देख तो मुझे मेरी कही बात का विश्‍वास हो जाएगा। जहाज में बहुतेरे पढ़े-लिखे आदमी हैं। जिससे तेरा जी चाहे, पढ़वाकर सुन ले।"

स्‍त्री ने कहा - "मुझे विश्‍वास नहीं होता कि मालिक ने मेरे साथ ऐसा छल-कपट किया है। मुझसे तो उन्‍होंने कहा था कि तेरे स्‍वामी को लूविल नगर का होटल किराए पर दिया है, वहीं जाकर मुझे मजदूरिन का काम करना पड़ेगा। तुम्‍हारे हाथ मुझे लड़के सहित बेच डाला, यह तो बिल्‍कुल नहीं कहा।"

हेली बोला - "तू दक्षिण देश के बनिए के हाथ बिकना सुनकर चिल्‍लाएगी, इसी से तेरे मालिक ने तुझे यह पट्टी पढ़ा दी है। तू इस कागज को जहाज के किसी पढ़े-लिखे आदमी को दिखा ले। तुझे सच-झूठ का पता चल जाएगा।" फिर हेली ने एक दूसरे आदमी से कहा - "जरा इस कागज को पढ़कर इस औरत को सुना दीजिए।" उस आदमी ने पढ़कर बताया कि जान फरसडिक नाम के साहब ने अपनी क्रीत दासी लूसी और उसके बच्‍चे को हेली के हाथ बेचा है, उसी का यह दस्‍तावेज है।

यह बात सुनकर वह स्‍त्री चीख उठी। उसका चीखना सुनकर जहाज के बहुत-से आदमी वहाँ जमा हो गए। तब स्‍त्री कहने लगी - "मेरे मालिक ने मुझे तो इसके साथ यह कहकर भेजा है कि तुझे तेरे स्‍वामी के पास भेजते हैं। पर अब भेद खुला कि यह निरी झाँसेबाजी थी। हाय, न जाने मेरे भाग्‍य में क्‍या दु:ख लिखे हैं।"

बस, वह स्‍त्री आगे एक शब्‍द भी न बोली। हेली ने मन-ही-मन कहा कि चलो, इतने ही में इसका झगड़ा खत्‍म हो गया।

उस स्‍त्री की गोद का बच्‍चा देखने में खूब हष्‍ट-पुष्‍ट था। जहाज में एक आदमी था। उसने हेली से कहा - "जान पड़ता है, तुम इस स्‍त्री को दक्षिण देश में रूई के खेतवालों के हाथ बेचने को लिए जा रहे हो। पर यह समझ लो कि वे लोग लड़के समेत इस स्‍त्री को कभी नहीं खरीदेंगे, क्‍योंकि बालक साथ रहने से कुलियों को खेत का काम करने में बड़ी अड़चन पड़ती है। इससे तुम्‍हें लड़के को कहीं-न-कहीं दूसरी जगह बेचना ही पड़ेगा। अगर सस्‍ते दाम में बेचो तो मैं ही इस लड़के को ले लूँ।" हेली ने कहा - "हाँ-हाँ, खरीदार होना चाहिए, हमें बेचने में कोई उज्र नहीं है।"

उस भलेमानस ने पूछा "अच्‍छा, बोलो, इसके क्‍या दाम लोगे?"

हेली - "यह लड़का खूब तैयार है। कीमत बहुत होगी। माल बड़ा चोखा है।"

भलामानस - "लेकिन छोटा कितना है, जरा इसे भी तो देखो। लेनेवाले को कई बरस तो इसे यों ही खिलाना-पिलाना पड़ेगा।"

हेली - "ऐसे लड़कों के पालने में खर्च ही क्‍या होता है? जैसे कुत्ते-बिल्‍ली के बच्‍चे जरा बड़े होने पर चलने-फिरने लगते हैं, वैसे ही ये भी चलने-फिरने लगते हैं।"

भलामानस - "मेरी एक क्रीत दासी के साल भर का एक बच्‍चा था, जो पानी में डूबकर मर गया है। वह इस बालक को पाल लेगी। इसी से मैं इसे लेना चाहता हूँ। दस रुपए लो तो दे डालो।"

हेली - "यह माल दस रुपए में! कभी नहीं बेचूँगा। तुम्‍हें खबर भी है, इसे छ: महीने पाल करके सौ रुपए खड़े करूँगा। तुम्‍हें लेना हो तो पचास से एक कौड़ी कम न लूँगा।"

भलामानस - "अच्‍छा, तीस रुपए ले लेना।"

हेली - "अच्‍छा, तुम इतना दबाते हो तो इस तरह करो, न हमारे न तुम्‍हारे तीस, पैंतालीस कर लो।"

भलामानस - "खैर पैंता‍लीस ही सही।"

हेली - "तुम कहाँ उतरोगे?"

भलामानस - "मैं लूविल नगर में उतरूँगा।"

हेली - "तो ठीक है। शाम के वक्‍त जहाज लूविल पहुँचेगा। उस वक्‍त बालक नींद में रहेगा। मजे में ले जाना। रोवे-चिल्‍लावेगा नहीं।"

संध्‍या हो गई। जहाज ने लूविल नगर में पहुँचकर लंगर डाला। जहाज में "लूविल नगर, लूविल नगर" की धूम मच गई। जो यात्री यहाँ उतरनेवाले थे वे हड़बड़ाकर अपना माल-असबाब बाँधने लगे। लूसी का स्‍वामी इसी नगर में काम करता था। लूसी अपने बच्‍चे को गोदाम में सुलाकर जहाज के किनारे जा खड़ी हुई। नदी के किनारे सैकड़ों आदमी आते-जाते थे। शायद उनमें उसका स्‍वामी भी हो। इसी आशा पर चाह-भरी आँखों से टकटकी लगाकर वह नदी की ओर देखने लगी। खयाल करने लगी कि संभव है, पानी भरने के लिए उसका स्‍वामी भी वहाँ आया हो। कोई घंटे भर तक जहाज किनारे पर ठहरा रहा पर लूसी ने अपने स्‍वामी को न देखा। इससे निराश होकर वह गोदाम में लौट आई, यहाँ देखा तो बच्‍चा नदारद। अब वह पागल की तरह अपने बच्‍चे को इधर-उधर जहाज में ढूँढ़ने लगी। यह दशा देखकर हेली साहब ने धीरे-धीरे उसके पास आकर कहा - "लूसी, तेरी फिक्र की कोई बात नहीं। तेरे लड़के को हमने एक बड़े दयावान आदमी के हाथ बेच दिया है। वह उसे बहुत मजे में पालेगा। लड़का साथ लेकर दक्षिण देश में जाने पर तुझे बड़ी दिक्‍कत होती। उसके लालन-पालन के लिए जरा भी फुर्सत न मिलती। अब मैंने तेरी सारी चिंता मिटा दी। जहाँ तक होगा हम तेरे भले ही का उपाय करेंगे।"

हेली की बात सुनकर स्त्री पर वज्रपात-सा हो गया। उसके मुँह में बात नहीं, काटो तो बदन में खून नहीं। उसे ज्ञान न रहा कि वह बैठी हुई है या खड़ी, सोई हुई स्‍वप्‍न देख रही है या जागती है। उसका मुँह सफेद पड़ गया। ऐसी सोचनीय दशा देखकर पत्‍थर का हृदय हो तो वह भी पिघल जाए। पर दिन-रात दास-दासियों की ऐसी विह्वल अवस्‍था देखते-देखते हेली का दिल पत्‍थर से भी सख्‍त हो गया था। उसे डर था कि स्‍त्री कहीं चिल्‍ला न उठे, जिससे जहाज भर में हुल्‍हड़ मच जाए। पर उसका वह डर जाता रहा, क्‍योंकि ऐसे भयानक शोक की हालत में कंठ और हृदय दोनों सूख जाते हैं। उस दशा में गले से आवाज नहीं निकलती, आँखों में आँसू नहीं आते। उस स्‍त्री की ऐसी दशा हो गई मानो किसी ने उसका हृदय बरछी से छेदकर उसे भारी पत्‍थर से दबा दिया हो। न तो वह चिल्‍लाई न उसकी आँखों से एक बूँद पानी ही गिरा। कठपुतली की तरह उसके हाथ जैसे-के-तैसे रह गए। आँखों की पलकें ऊपर को चढ़ गईं। यह नहीं जान पड़ता था कि वह आँखों से कुछ देख रही है।

उसकी यह निस्‍तब्‍ध दशा देखकर हेली मन-ही-मन प्रसन्‍न हुआ। उसने सोचा कि यह स्‍त्री शोरगुल नहीं मचाएगी। फिर हजरत उस स्‍त्री को इस तरह समझाने लगे - "लूसी, हम समझते हैं कि तेरे मन को कुछ दुख होता है। पर तू समझदार है। ऐसी मामूली-सी बात को लेकर खामखा उदास होने से क्‍या फायदा है। तू खुद ही समझ सकती है कि ऐसा किए बिना काम नहीं चलता, क्‍योंकि दक्षिण देश में रूई के खेतों पर काम करनेवाला मजदूर बच्‍चे को साथ में नहीं रख सकता।"

लूसी का कंठ रुक गया था। इससे वह अस्‍फुट स्‍वर में बोली - "मुझे माफ करो, मैं और कुछ नहीं सुनना चाहती।"

हेली इतने पर भी चुप न रहा, फिर बोला - "लूसी, तू बड़ी अक्‍लमंद है। जिसमें तेरा भला हो, वही हम करेंगे। दक्षिण देश में चलकर तुझे शीघ्र ही एक नया शौहर जुटा देंगे।"

इस पर वह स्‍त्री बाण से बिंधी सिंहनी की भाँति कर्कश स्‍वर में बोल उठी - "मुझसे आप न बोलिए, मैं आपकी कोई बात नहीं सुनना चाहती।"

हेली समझ गया कि उसका तीर निशाने पर नहीं लगा। इसलिए वह अपने कमरे में चला गया और वह स्‍त्री अपने को सिर से पैर तक कपड़े से ढँककर वहीं पड़ी रही।

उस स्‍त्री की ऐसी असहनीय मनोवेदना देखकर टॉम अपना दु:ख एकदम भूल गया और शोक भरे हृदय से उसके लिए ठंडी साँसें लेने लगा। टॉम का हृदय आप-ही-आप इस प्रकार भर आता था। उसने ईसाई पादरियों की भाँति बाइबिल से स्‍वार्थपरता की शिक्षा नहीं पाई। वह नीति-निपुण पंडितों की बखानी हुई राजनीति के गूढ़ तत्‍वों से बिल्‍कुल बेखबर है। वह अमरीका-वासी श्‍वेतांग-शार्दूलों के नैतिक व्‍यवहार का मर्म समझने में सर्वथा असमर्थ है। वह मौखिक सहानुभूति प्रकट करना नहीं जानता। शोक-विह्वला जननी के दु:ख से उसका हृदय विदीर्ण होने लगा, और वह उसे धीरज बँधाने का उपाय सोचने लगा। बहुत सोच-विचार के बाद उस स्‍त्री के सिरहाने बैठकर टॉम कहने लगा - "माता, तुम ईश्‍वर पर भरोसा रखकर अपनी हृदय-वेदना घटाने की चेष्‍टा करो। तुम्‍हारी इस दु:ख-मंत्रणा का कुछ ही दिनों बाद अवश्‍य अंत हो जाएगा।"

स्‍त्री शोक से अधीर हो गई थी। उसका हृदय स्‍तंभित हो गया था। टॉम के सांत्‍वना वाक्‍य उसके कानों में पड़े। टॉम की सहानुभूति उसके हृदय तक नहीं पहुँची।

देखते-देखते घोर अँधेरी रात आ पहुँची। सारे संसार में सन्‍नाटा छा गया। संसार के सब जीव-जंतु निद्रा में लीन हो गए और अपने-अपने हृदय के सुख-दु:खों को उसी अनंत तिमिर सागर में डुबो दिया। पर संतान-शोक से विह्वल जननी के हृदय की आग न बुझी। पुत्र-शोक से विदग्‍ध लूसी की आँखों में नींद नहीं है। पर-दु:ख प्रमीड़ित टॉम के हृदय में भी शांति नहीं है। जहाज के बालक, वृद्ध, युवा, नर-नारी सभी नींद में मस्‍त पड़े हैं, पर लूसी को चैन कहा? वह बार-बार पुकारती है - "हे परमात्‍मन्, इस यातना से उद्धार करो, अपनी गोद में स्‍थान दो।" लूसी के शब्‍द टॉम के सिवा दूसरों के कानों में नहीं पड़े। जहाज पर उस समय और कोई नहीं जागता था। इसके कुछ देर बाद जहाज से नदी में, धम से किसी चीज के गिरने का शब्‍द टॉम को सुनाई दिया।

रात बीती। तड़का हुआ। गुलामों को देखने के लिए हेली गोदाम में पहुँचा। वहाँ लूसी न दिखाई दी। लूसी को उसने एक हजार में खरीदा था। इससे उसे न देखकर हेली पागल-सा हो गया और जहाज में इधर-उधर ढूँढ़ने लगा। कहीं पता न पाकर अंत में टॉम के पास आकर बोला - "तू जरूर लूसी की बात जानता होगा।"

टॉम बोला - "साहब, मैं और तो कुछ नहीं जानता। हाँ, थोड़ी रात थी तब नदी में किसी के कूदने का-सा शब्‍द सुना था।"

यह सुनकर हेली ने समझ लिया कि लूसी ने आत्‍महत्‍या कर ली है। पर इससे उसे कुछ दु:ख न हुआ, क्‍योंकि वह बहुत बार दास-दासियों को आत्‍महत्‍या करते देखता था। इसी से इस घटना से उसके हृदय में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। उसे केवल अपने घाटे-मुनाफे का ही खयाल हुआ। वह मन-ही-मन में कहने लगा कि इस बार काम में घाटा छोड़ मुनाफा नहीं दिखता। शेल्‍वी के यहाँ के काम-काज में पाँच सौ मिट्टी में मिले और अब पूरे एक हजार पर पानी फिर गया।

पाठक, आप कहते होंगे कि हेली बड़ा निर्दयी है। आप हेली को मन-ही-मन बार-बार धिक्‍कारते और कोसते होंगे। पर इसके पहले एक बार वास्‍तविकता पर विचार कीजिए। हेली अनपढ़ है और अभी तक वह सामाजिक जगत के गहरे अंधकूप में पड़ा हुआ है। सभ्‍य समाज से उसका वास्‍ता नहीं है। वह दास-व्‍यवसायी है। पर बताइए किसने उसे दास-व्‍यवसायी बनाया है? क्‍या दासत्‍व-प्रथा का बनानेवाला हेली है? कभी नहीं। जो सुशिक्षित हैं; शिष्‍ट कहलाते हैं, सब से आदर पाते हैं, देश के शासन की बागडोर अपने हाथ में लिए हुए हैं, जो देश के उपकार के निमित्त कानून गढ़ते हैं और न्‍यायासन पर बैठकर इन कानूनों को काम में लाते हैं, वही हेली को दास-व्‍यवसायी बनानेवाले हैं, उन्‍हीं ने आज लूसी के बच्‍चे को गोद से अलग कराके उस निरपराध अबला के प्राण लिए हैं। देश के शासनकर्ताओं, विचारकों, तुम ठगों को सजा देते हो, चारों को जेलखाने भेजते हो और खूनियों को सूली पर चढ़ाते हो; पर तुम लोग स्‍वयं नित्‍य जो नर-हत्‍याएँ करते हो, नर-नारियों पर घोर अत्‍याचार करते हो, दूसरों का धन-दौलत हरते हो, उन बातों पर क्‍या भूलकर भी ध्‍यान नहीं देते? समझ रखो, परम न्‍यायी परमेश्‍वर के न्‍यायदंड से कोई बचा नहीं रह सकता। पुत्र-शोक में प्राण खोकर लूसी उसी अमृतमय के अमृतधाम को चली गई है। वह अब मंगलमय ईश्‍वर की गोद में विराज रही है। उस न्‍यायमूर्ति के निकट उसकी सुनवाई हो रही है। वहीं उसका न्‍याय होगा। पर अरे, ज्ञान-विज्ञानाभिमानी शासनकर्ताओं और विचारकों, तुम लोग ऐसे विषयांध हो रह हो कि पल भर भी उस अंतिम दिन की सुध नहीं करते। नहीं जानते कि लूसी की हत्‍या के अभियोग में तुम लोगों में से हरएक को उसी राजाधिराज के दरबार में कभी अभियुक्‍त होना पड़ेगा और वहाँ जवाबदेही करनी पड़ेगी।

14. दास-प्रथा का विरोध

समय सदा एक-सा नहीं रहता। आज जिस प्रथा को सब लोग अच्‍छा समझते हैं, कुछ दिनों बाद कितने ही उसका विरोध करने लगते हैं। धीरे-धीरे दासत्‍व-प्रथा की बुराइयाँ कितनों ही को खटकने लगीं। उन्‍होंने इस प्रथा का विरोध करना आरंभ कर दिया। सन् 1865 ईसवी में अमरीका से यह प्रथा दूर हो गई। पर पहले दासत्‍व-प्रथा के विरोधियों को समय-समय पर बड़े-बड़े सामाजिक अत्‍याचार सहने पड़ते थे, और लोगों के ताने और गालियाँ सुननी पड़ती थीं। जो लोग गिरजों में या और कहीं इस घृणित प्रथा का समर्थन करते थे, वे ही सच्‍चे देश-हितैषी समझे जाते थे। अमरीका में नोयर और वेस्‍टर सरीखे सुशिक्षित और ज्ञानी पुरुष भी इस दास-प्रथा के हिमायती थे। सच तो यह है कि स्‍वार्थपरता को तिलांजलि दिए बिना मनुष्‍य सच्‍ची देश-हितैषिता का मर्म नहीं समझ सकता। स्‍वार्थपरता पढ़े-लिखे आदमियों की बुद्धि पर भी पर्दा डाल देती है। सच्‍चे देशहितैषी जीते-जी कभी देश-हितैषी नहीं कहलाते। समाज में प्रचलित पाप और कुसंस्‍कारों से उन्‍हें जन्‍म भर लड़ाई लड़नी पड़ती है, इसी से वे समाज के प्रिय नहीं हो सकते। इधर सैकड़ों यश के लोभी, स्‍वार्थ-परायण मनुष्‍य उनके मार्ग में काँटे बोते रहते हैं। लोगों में प्रचलित पापों और कुसंस्‍कारों का समर्थन करके वे देश-हितैषी की पदवी धारणकर समाज में अनुचित सम्‍मान पाते हैं।

महात्‍मा ईसा मनुष्‍य-जाति के सच्‍चे हितैषी थे, पर उनके हाथ-पैरों में कीलें ठोंककर उन्‍हें सूली दी गई। लूथर सच्‍चा धर्म-सुधारक था, इसी से उसे बड़े-बड़े सामाजिक अत्‍याचार सहने पड़े। ऐसे सच्‍चे देश-हितैषी और समाज-सुधारकों के लिए इस जीवन में दु:ख, कष्‍ट और दरिद्रता ही एकमात्र पुरस्‍कार है। किंतु जो लोग और व्‍यवसायों की भाँति देश हितैषिता को भी एक व्‍यवसाय-सा बना लेते हैं तथा लोकप्रिय आडंबर रचते हैं, वे इस व्‍यवसाय की बदौलत खूब धन कमाते और मौज उड़ाते हैं।

पर-दु:ख कातर, स्‍वार्थहीन, अनासक्‍त, दरिद्र क्‍वेकर-मंडली के जिस उदार सज्‍जन ने भगोड़ी दासी इलाइजा को शरण दी थी, उसे क्‍या कोई देश-हितैषी अथवा परोपकारी समझता था? संसार के लोगों की आँखों पर अज्ञान का पर्दा पड़ा हुआ है, वे भला कैसे क्‍वेकर-दल को परोपकारी समझेंगे? उक्‍त दल के लोग देश-हितैषिता का जामा पहनकर, गले में देश-हितैषिता का ढोल डालकर तथा सिर पर देश-हितैषिता का झंडा फहराते हुए नहीं घूमते। हाँ, दूसरे का दु:ख देखकर उनका हृदय भर आता है, परंतु परमात्‍मा के सिवा उनके हार्दिक भावों को कौन देख सकता है? वे आफत में फँसे हुए नर-नारियों के आँसू अपने हाथ से पोंछ देते थे। दुखियों की आँखों में पानी देखकर उनकी भी आँखें भर आती थीं। वे चुपचाप सच्‍चा काम करते थे। कभी- "परोपकार, परोपकार" का ढोल नहीं पीटते थे। यही कारण है कि दुनिया के लोग उन्‍हें नहीं पहचानते थे और उनकी लानत-मलामत करते थे।

ऐसी ही एक पर-दु:ख-कातर राचेल नाम की बुढ़िया के पास बैठी हुई इलाइजा बातें कर रही है थी। उक्‍त बुढ़िया क्‍वेकर-मंडली के एक धार्मिक ईसार्इ साइमन हालीडे की पत्‍नी थी। वृद्ध राचेल कहती थी - "बेटी इलाइजा, क्‍या तुमने कनाडा ही जाने का निश्‍चय कर लिया है? यहाँ तुम जितने दिन चाहो, निर्भय होकर रह सकती हो।"

इलाइजा - "नहीं, मैं कनाडा ही जाऊँगी। यहाँ ज्‍यादा ठहरने में डर लगता है कि कहीं कोई बच्‍चे को मेरी गोद से छीन न ले। कल रात ही मैंने स्‍वप्‍न देखा कि एक मनुष्‍य आया और मेरे बच्‍चे को गोद से छीन लिया। इससे मैं बहुत भयभीत हो गई हूँ।"

राचेल - "बेटी, तुम यहाँ बेखटके रहो। यहाँ कोई तुम्‍हारे बच्‍चे का बाल तक बाँका नहीं कर सकता। यहाँ हम लोग चार-पाँच परिवारों के बहुत-से आदमी रहते हैं। सताए हुए मनुष्‍य को शरण देना ही हम लोगों के जीवन का एकमात्र उद्देश्‍य है। यहाँ जितने लोग हैं, वे सब अपनी जान देकर भी तुम्‍हारे बच्‍चे की रक्षा करेंगे।"

इतने में वहाँ रूथ नाम की एक युवती आई। वह इलाइजा के पुत्र को गोद में लेकर प्‍यार करने लगी और उसे कई प्रकार के खाने की चीजें दी और बहन की भाँति इलाइजा से बातें करने लगी।

रूथ बोली - "प्‍यारी बहन इलाइजा, तुम्‍हें बच्‍चे समेत सकुशल यहाँ पहुँचे देखकर मुझे बड़ा आनंद हुआ।"

अभी इलाइजा के हृदय का दु:ख दूर नहीं हुआ था। इससे वह बातचीत के द्वारा प्रकट रूप में रूथ के प्रति कुछ कृतज्ञता प्रदर्शित न कर सकी। पर इन क्‍वेकर-दल की स्त्रियों के सद्व्‍यवहार को देखकर उसका हृदय कृतज्ञता से भर गया।

इलाइजा को चुप देखकर वृद्ध राचेल बोली - "रूथ, अपने लड़के को कहाँ छोड़ी?"

रूथ - "साथ ही लाई हूँ। तुम्‍हारी मेरी ने उसे ले लिया है। वह उसे खिला रही है।"

राचेल - "छोटे बच्‍चों को मेरी बहुत प्‍यार करती है।"

तभी दरवाजा खुला और प्रफुल्‍लमुखी मेरी रूथ के छोटे बच्‍चे को गोद में लिए वहाँ आ पहुँची।

मेरी की गोद से लड़के को अपनी गोद में लेकर वृद्ध राचेल ने कहा - "रूथ, बड़ा सुंदर बच्‍चा है!"

रूथ ने लजाकर कहा - "माँ, इसे ऐसा ही सब कहते हैं।"

वृद्ध राचेल ने पूछा - "रूथ, अविगेल पीटर्स कैसे हैं?"

रूथ - "अब तो वह बहुत अच्‍छे हैं। सवेरे मैं उनका कमरा झाड़-बुहार आई थी, दोपहर को श्रीमती लियाहिल ने वहाँ जाकर उनके पथ्‍य और आहार का प्रबंध कर दिया। संध्‍या-समय मुझे फिर जाना होगा।"

राचेल - "मेरा भी कल जाने का विचार है। मेरी ने उनके छोटे लड़के के लिए एक जोड़ी मोजा बुन रखा है।"

रूथ ने कहा - "माँ, मैंने सुना है कि हमारे हानस्‍टन उड की तबियत बहुत खराब हो गई है। जॉन कल सारी रात वहीं था। कल मैं भी उनके यहाँ अवश्‍य जाऊँगी।"

राचेल - "कल रात को अगर तुम्‍हें वहाँ जागना पड़े तो उनको यहाँ भोजन करने के लिए कह देना।"

रूथ - "अच्‍छा, मैं यहीं भोजन करने को कह दूँगी।"

इसी समय वृद्ध राचेल के स्‍वामी साइमन हालीडे वहाँ आ पहुँचे। साइमन हालीडे लंबे-चौड़े और बड़े ताकतवर जान पड़ते थे। चेहरे से उनके दया और स्‍नेह टपकता था। साइमन ने पूछा - "रूथ, कहो, तुम अच्‍छी हो? जॉन अच्‍छी तरह है?"

रूथ - "जी हाँ, सब सकुशल हैं।"

राचेल ने अपने स्‍वामी को देखते ही पूछा - "क्‍यों, कोई नई खबर मिली?"

साइमन ने उत्तर दिया - "पीटर स्‍टीवन ने कहा है कि वे आज ही तीन भागे हुए दास-दासियों को साथ लेकर यहाँ पहुँचेंगे।"

राचेल ने स्‍वामी के मुख से यह शुभ संवाद सुनकर इलाइजा की ओर देखते हुए प्रसन्‍न मुख से पूछा - "सच्‍ची बात है?"

साइमन ने उस प्रश्‍न का कोई उत्तर न देकर बदले में पूछा - "क्‍या इलाइजा के पति का नाम जार्ज हेरिस है?"

उनका प्रश्‍न सुनकर इलाइजा शंकित होकर बोली - "जी हाँ!"

उसे खटका हुआ कि कहीं विज्ञापन तो नहीं निकला है। राचेल ने इलाइजा का यह भाव ताड़ लिया और अलग ले जाकर अपने स्‍वामी से पूछा - "इस प्रश्‍न से तुम्‍हारा क्‍या मतलब था?"

साइमन ने कहा - "आज ही रात को इसका पति सकुशल यहाँ पहुँच जाएगा। हमारे आदमियों की सहायता से इसका पति, एक और गुलाम और उसकी माता भागने में सफल होकर शरण लेने के लिए यहाँ आ रहे हैं। मुझे जैसे ही खबर मिली, मैंने तुरंत उनके लिए गाड़ी और आदमी भेज दिए हैं कि उन्‍हें निर्विघ्‍न यहाँ ले आएँ।"

राचेल - "क्‍या इलाइजा को यह खबर नहीं सुनाओगे? यह सुनकर तो उसके आनंद की सीमा न रहेगी।"

इलाइजा को खबर सुनाने की सम्‍मति देकर साइमन अपने कमरे में चले गए। राचेल ने तुरंत इलाइजा को बुलाकर कहा - "बेटी, मैं तुम्‍हें एक खबर सुनाती हूँ।"

यह सुनकर इलाइजा बहुत घबराई। सोचने लगी - न जाने क्‍या आफत आ पड़ी है। पर राचेल ने उसे धीरज देकर कहा - "खबर अच्‍छी है, डरो मत। तुम्‍हारा स्‍वामी भागने में सफल हो गया है। आज रात को यहाँ आ जाएगा।"

इलाइजा के दिल पर उस समय क्‍या बीत रही थी, यह वही जानेगा जिसने कभी ऐसी दशा का सामना किया हो। एकाएक यह शुभ संवाद सुनने से उसके हृदय में इतना आनंद हुआ कि वह उसके वेग को सँभाल न सकी। देखते-देखते इलाइजा बेसुध हो गई। रूथ और राचेल उसे होश में लाने के लिए उसके मुँह पर पानी छिड़कने लगीं। बहुत रात बीतने पर उसे होश आया। चेत होने पर जब इलाइजा ने आँखें खोलीं तो देखा कि उसके स्‍वामी की गोद में उसका सिर है। देखते-देखते सवेरा हो गया और सूर्य निकल आया। राचेल सबके भोजन का प्रबंध करने लगी। दोपहर को सबने मिलकर एक साथ भोजन किया। इसके पहले जार्ज ने कभी किसी पुरुष के साथ भोजन नहीं किया था। घर के पालतू कुत्ते-बिल्लियों की तरह उसे खाना पड़ता था। दास-व्‍यवसायी के यहाँ जार्ज मनुष्‍य के आकार का एक पशु विशेष था, किंतु यहाँ पर दु:ख-कातर साइमन हालीडे की दृष्टि में वह वास्‍तविक मनुष्‍य है। हालीडे के अकृत्रिम स्‍नेह और सहृदयता ने आज जार्ज के हृदय में ईश्‍वर के अस्तित्‍व पर दृढ़ विश्‍वास ला दिया। संसार के अन्‍याय और अविचारों को देखकर जार्ज को ईश्‍वर की करुणा पर विश्‍वास नहीं होता था। उसकी यह धारणा हो गई थी कि इस संसार में ईश्‍वर नहीं है, पर ईश्‍वर भक्‍त हालीडे का सदाचरण देखकर उसकी नास्तिकता दूर हो गई। इतने दिन बाद जार्ज को ईश्‍वर पर भरोसा हुआ।

साइमन हालीडे के बारह वर्ष का एक छोटा लड़का था। उसने पिता से कहा - "बाबा, अगर पुलिस तुम्‍हें पकड़ ले तो वह तुम्‍हारा क्‍या करेगी?"

साइमन ने कहा - "पकड़ लेगी तो सजा देगी। तब क्या तुम और तुम्‍हारी माता मिलकर खेती से अपनी जिंदगी बसर नहीं कर सकोगे? ईश्‍वर सबका रक्षक है, वह तुम लोगों की भी रक्षा करेगा।"

उनकी बातें सुनकर जार्ज ने बड़ी घबराहट से पूछा - "क्‍यों साहब, क्‍या मुझे बचाने में आप लोगों पर कोई आफत आने का डर है?"

साइमन ने कहा - "तुम इससे बेफिक्र रहो। अच्‍छे कामों के लिए मैं सदा अपनी जान देने को तैयार रहता हूँ। बलवान के अत्‍याचार से निर्बल की रक्षा करना ही मेरे जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्‍य है। मेरी विपत्ति के लिए तुम्हें संकोच करने की आवश्‍यकता नहीं। मैंने तुम्‍हारे उपकार के लिए कुछ नहीं किया है। जिस परमात्‍मा की कृपा से हमें दोनों समय रोटियाँ मिलती हैं, केवल उसी का यह प्रिय कार्य है। तुम यहाँ आराम करो। आज ही रात को हमारे दो आदमी तुम्‍हें पास के दूसरे ठिकाने पर पहुँचा आएँगे। मुझे खबर लगी है कि पकड़नेवाले और पुलिस के लोग तुम्‍हारी खोज में यहाँ आ रहे हैं।"

जार्ज ने शंकित होकर कहा - "साहब, तब तो अभी चल देना अच्‍छा होगा।"

साइमन हालिडे ने उसे धीरज देकर कहा - "डरो मत! मंगलमय ईश्‍वर की कृपा से हमारे आदमी तुम्‍हें रात को सुरक्षित स्‍थान में पहुँचा आएँगे। दिन में यहाँ किसी आफत का खटका नहीं है।"

15. आशा की नई किरण

जिस जहाज पर दास-व्‍यवसायी हेली सवार था वह चलते-चलते मिसीसिपी नदी में पहुँच गया। इस जहाज पर रूई के ढेर-के-ढेर लदे हुए थे। इस कारण दूर से यह एक सफेद पहाड़-सा दिखाई देता था। जहाज के डेकों पर बड़ी भीड़ थी। सबसे ऊँचे डेक के एक कोने में एक रूई के गट्ठे पर टॉम बैठा हुआ था।

कुछ तो शेल्‍वी साहब के कहने से और कुछ टॉम का सीधा स्‍वभाव देखकर, हेली का उस पर विश्‍वास हो गया था। पहले वह उसे हर समय अपनी आँखों के सामने रखता था और जंजीर से जकड़े रहता था। पर जब उसने देख लिया कि टॉम अपनी वर्तमान दशा में कोई असंतोष नहीं प्रकट करता तब उसके बंधन खोल दिए और उसे इच्‍छानुसार घूमने का अधिकार दे दिया। दूसरे दासों के साथ यह रियायत नहीं थी। काम न रहने पर टॉम ऊपर डेक के एक रूई के गट्ठे पर जाकर बैठ जाता और एकाग्रचित होकर बाइबिल पढ़ा करता। इस समय भी वह बाइबिल पढ़ रहा था।

नदी के किनारे खेत-ही-खेत दिखाई पड़ रहे थे। उनमें हजारों दास-दासी फूस की झोपड़ी डालकर रहते थे। इनसे थोड़ी ही दूर पर खेत के मालिकों के सुंदर बंगले और आराम-बाग थे। यह हृदय-स्‍पर्शी दृश्‍य देखते-देखते टॉम के हृदय में पिछली बातें जाग उठीं। उसे केंटाकी के मालिक के खेत और उससे सटी हुई अपनी हवादार कुटिया का ध्‍यान आ गया। संगी-साथियों की दावतें उसकी आँखों के सामने नाचने लगीं। उसकी स्‍त्री संध्‍या-समय का भोजन बना रही है। उसके पुत्र हँस-हँसकर खेल रहे हैं। सबसे छोटा लड़का उसकी गोद में बैठा हुआ अपनी तोतली बोली से उसे खुश कर रहा है। टॉम एकाएक चौंक पड़ा, देखा, पेड़-पल्‍लव, खेती-बाड़ी सब एक-एक करके पीछे छूटे जा रहे हैं। जहाज के कल-पुरजों की आवाज फिर सुनाई देने लगी। तब उसे अपनी वर्तमान अवस्‍था का स्‍मरण हुआ और जान पड़ा कि अब वे सुख के दिन सदा के लिए उसे छोड़ गए। उसके हाथ में जो बाइबिल थी, उस पर आँसू टपकने लगे। आँखें पोंछकर टॉम बाइबिल में शांति के उपदेश ढूँढ़ने लगा। उसने बड़ी उम्र में पढ़ना सीखा था, इससे उसे जल्‍दी-जल्‍दी पढ़ने का अभ्‍यास नहीं था। वह एक-एक शब्‍द का अलग-अलग उच्‍चारण करते हुए पढ़ रहा था - "अपने हृदय में... अशांति मत पैदा होने दो। पिता के यहाँ बहुत स्‍थान है। मैं वहाँ... तुम्‍हारे लिए जगह... करने... जा रहा हूँ।"

"इस संसार में तुम्‍हारा जीवन चाहे किसी दशा में क्‍यों न कटे, किंतु परम-पिता की मंगलमय भुजाएँ तुम्‍हारे लिए सदा फैली हुई हैं।" बाइबिल में यह शांतिप्रद और आशाप्रद उपदेश पढ़कर टॉम के हृदय में धीरज आ गया। वह बड़ा पक्‍का विश्‍वासी है। कुटिल दर्शनशास्‍त्र की विषाक्‍त युक्तियाँ और जटिल विज्ञान के तर्क-वितर्क उसके स्‍वभाव-सिद्ध विश्‍वास की जड़ पर कुठार नहीं चला सकते। यह तो वह स्‍वप्‍न में भी नहीं सोचता कि बाइबिल की बात भी झूठी हो सकती है। यही कारण है कि हजार निराशा रहने पर भी उसे आशा है, हजार कष्‍टों के रहते भी उसके हृदय में शांति है। पुस्‍तक इस समय भी उसके सामने खुली रखी है। उसकी प्रत्‍येक पंक्ति में अतीत जीवन की सुख-स्‍मृति जड़ी हुई है। भावी जीवन की सारी आशाएँ उसी पर निर्भर हैं।

इस जहाज के यात्रियों में एक अर्लिंस-निवासी धनवान सज्‍जन थे। वह वारमंट प्रदेश से अपने घर को लौट रहे थे। उनके साथ पाँच-छ: वर्ष की एक बालिका और एक आत्‍मीया रमणी थी। टॉम इस बालिका को बीच-बीच में इधर-से-उधर फिरते देखता था। वह एक जगह नहीं ठहरती थी, इससे वह मन भरकर उसे नहीं देख सकता था। लेकिन बालिका की सूरत इतनी मनोहारी थी कि उसे जो एक बार देखता, उसका जी बार-बार उसे देखने को करता था। बालिका का शरीर शैशव की सुकुमारता और अनुपम सौंदर्य से चमक रहा था। पर सौंदर्य के सिवा इस बालिका में और भी कुछ विशेषताएँ थीं। सौंदर्य से भी अधिक शोभाप्रद किसी अलौकिक माधुर्य से इस बालिका की मूर्ति चमचमा रही थी, जिससे देखने में वह साक्षात देव-कन्‍या जान पड़ती थी। उसके मुख पर एक अपूर्व एकाग्रता का भाव था। उस पर एक विलक्षण कांति थी, जिसे देखकर प्रभु के उपासक भावुक व्यक्ति का मन स्‍वयं मोहित हो जाता था। जो निरे नीरस और भावहीन हैं, उनके नेत्र भी आकर्षित हो जाते थे। यद्यपि उस आकर्षण का मतलब उनकी समझ में नहीं आता था, तथापि उनके हृदय में उस मुख की छाया प्रतिबिंबित होने लगती थी। इन भावों के होते हुए भी बालिका के मुख पर विशेष गंभीरता या विषाद के चिह्न नहीं दीख पड़ते थे, बल्कि वह चपल और खिलाड़ी जान पड़ती थी। वह देर तक एक जगह नहीं टिकती थी। अलमस्‍त, मन-ही-मन गाती हुई, कभी इधर तो कभी उधर फिर रही थी। पिता और वह आत्‍मीया रमणी बराबर उसकी ताक में लगे थे। जहाँ वह उनके पास पहुँची कि वे उसे पकड़ लेते थे, पर वह फिर अपने को छुड़ाकर भाग जाती थी, लेकिन वे उसे कहते कुछ नहीं थे। वह सदा ही सादे सफेद वस्‍त्र पहने रहती थी और मजा यह कि बराबर नाना स्‍थानों में दौड़-धूप करते रहने पर भी उसके उन स्‍वच्‍छ-सफेद वस्‍त्रों में दाग या धब्‍बा नहीं लगने पाता था।

जहाज के मल्‍लाह और खलासी अपने-अपने कामों में लगे हुए हैं। बालिका एक-एककर हर एक के पास जाकर खड़ी होती है, सरल नेत्रों से उसकी ओर देखती है और सोचती है कि इसे कोई दु:ख तो नहीं है, इसे कोई पीड़ा तो नहीं है। बालिका कभी-कभी भीड़ में घुस जाती है और उसे देखकर कितने ही कोमलता-रहित शुष्‍क अधरों पर स्‍नेहमयी मुस्‍कराहट छा जाती है। यदि कहीं बालिका को जरा भी ठोकर लगी या फिसलने की संभावना हुई, तो तत्काल कितने ही कठोर हाथ उसे पकड़कर उठा लेने के लिए फैल जाते हैं। जब वह सामने से निकलती है तो सब उसके लिए मार्ग छोड़ देते हैं।

टॉम का हृदय स्‍वभाव से ही कोमल था। सुकुमारता पर मोहित होना सहृदय नीग्रो लोगों का एक जातीय गुण है। पहली बार देखते ही टॉम इस बालिका को मन-ही-मन प्‍यार करने लगा। वह इस सुकुमारी बालिका को देवदूत समझने लगा। बालिका कभी-कभी जंजीर से बँधे हुए हेली के दासों के पास खड़ी होकर खिन्‍न-चित्त से उनकी ओर देखती है, उनकी जंजीरों को हाथ में लेकर हिलाती-डुलाती है, अंत में ठंडी साँस लेकर वहाँ से हट जाती है। बालिका की ओर टॉम बड़ी उत्‍सुकता से देखता था और जब वह पास आती तब उससे बातें करना चाहता था, पर ऐसा करने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी।

बालक-बालिकाओं को खुश करने में टॉम बहुत ही कुशल था। वह तरह-तरह के बाजे, गुड़ियाँ और खिलौने बनाने में बड़ा उस्‍ताद था। जब वह शेल्‍वी साहब के यहाँ था तब बालक-बालिकाओं के लिए खिलौने बनाने की सामग्री अपनी जेब में रखता था। उनमें से कुछ चीजें अब तक उसकी जेब में पड़ी थीं।

एक दिन वह बालिका उसके पास आकर खड़ी हो गई। मौका देखकर टॉम बातचीत करने की इच्‍छा से एक-एक करके जेब से तरह-तरह की चीजें निकालने लगा। बालिका शर्मीली थी। पहले तो वह कुछ न बोली, पर धीरे-धीरे उसके मन में कौतूहल और प्रसन्‍नता का रंग जम गया। टॉम जब खिलौने बना रहा था, तब वह कुछ दूर बैठी बड़े ध्‍यान से उसके बनाने के ढंग देख रही थी। जब खिलौने बनकर तैयार हो गए तब टॉम एक-एक करके बालिका के हाथ में देने लगा। बालिका संकोच सहित उसके हाथ से खिलौने लेने लगी। धीरे-धीरे बालिका की लज्‍जा दूर हुई और दोनों में परिचितों की भाँति बातें होने लगीं।

टॉम ने पूछा - "तुम्‍हारा क्‍या नाम है?"

बालिका बोली - "मेरा नाम इवान्‍जेलिन सेंटक्‍लेयर है। पर मुझे बाबा तथा सब लोग 'इवा' कहते हैं। तुम्‍हारा क्‍या नाम है?"

टॉम - "मेरा नाम तो टॉम है, किंतु केंटाकी में मुझे लड़के 'टॉम काका' कहते थे।

बालिका - "तो मैं भी तुम्‍हें टॉम काका ही कहा करूँगी। टॉम काका, तुम्‍हारा नाम तो बड़ा प्‍यारा है। अच्‍छा काका, तुम कहाँ जाओगे?"

टॉम - "मुझे मालूम नहीं, कहाँ जाना होगा।"

बालिका - (आश्‍चर्य करके) "ऐं! अपने जाने का ठिकाना भी नहीं जानते?"

टॉम - "दास-व्‍यवसायी मुझे जिसके हाथ बेचेगा, उसी के घर जाऊँगा और मुझे यह क्‍या मालूम कि वह किसके हाथ बेचेगा?"

बालिका - "मेरे पिता तुम्‍हें खरीद सकते हैं। हमारे यहाँ तुम सुख से रहोगे। मैं अभी जाकर पिता से तुम्‍हें खरीद लेने के लिए कहूँगी।"

टॉम - "अच्‍छा, कहना।"

इन बातों के जरा ही देर बाद जहाज लकड़ी लाने के लिए रुक गया। कुलियों के काम में सहायता करने के लिए टॉम किनारे पर जा रहा था। इसी समय इवा अपने पिता से बातें करते-करते अकस्‍मात् जहाज से नदी में गिर पड़ी। उसका पिता उसके पीछे कूदने ही वाला था कि पीछे से एक आदमी ने उसे पकड़ लिया। इधर टॉम ने इसके पहले ही पानी में कूदकर इवा को पकड़ लिया था। इवा धारा में कुछ दूर बह गई थी, पर टॉम अच्‍छा तैराक था। वह उसे पकड़कर तैरकर जहाज पर चढ़ आया। इवा बेहोश हो गई थी। उसके पिता उसे कमरे में ले जाकर होश में लाने के लिए नाना प्रकार के उपाय करने लगे। इधर भिन्‍न-भिन्‍न कमरों से स्त्रियों का दल सेंटेक्‍लेयर के कमरे में पहुँचकर बनावटी सहानुभूति प्रकट करने लगा। इस सहानुभूति से होना तो क्‍या था, उल्‍टा इवा को होश में लाने के कार्य में कुछ देर के लिए व्‍याघात पहुँचा। वास्‍तव में इस संसार में बहुतेरे रोगियों को रोग-शैया पर इन सब परोपकारियों के ही कारण असामयिक मृत्‍यु का शिकार बनना पड़ता है।

इवा बहुत शीघ्र होश में आ गई, पर उसके शरीर में कमजोरी कई दिनों तक बनी रही। चलते-चलते जहाज अर्लिंस पहुँचा। यात्रियों ने अपना सामान बाँधना आरंभ किया। टॉम ने नीचे के गोदाम से देखा कि इवान्‍जेलिन का हाथ पकड़े हुए सेंटक्‍लेयर साहब हेली के पास खड़े बातें कर रहे हैं और जब-तब हेली की बातें सुनकर हँस पड़ते हैं। कुछ पल के बाद सेंटक्‍लेयर ने कहा - "अजी, समझ लिया कि तुम्‍हारा यह काला गुलाम बड़ा धर्मात्‍मा है। देश भर का सारा ईसाई धर्म इसी काले चमड़े में भरा है। अब यह बोलो कि इस मरक्‍को चमड़े में भरे हुए ईसाई धर्म के क्‍या दाम लोगे? ज्‍यादा-से-ज्‍यादा मुझे कितना ठगना चाहते हो?"

हेली - "साहब, आपसे हम मजाक नहीं करते। तेरह सौ से एक कौड़ी कम नहीं लेंगे। आप के सर की कसम खाकर कहते हैं, हमें इन तेरह सौ में कोई बड़ा नफा नहीं है, लेकिन..."

सेंटक्लेयर - "लेकिन जान पड़ता है, आप तेरह सौ में बेचकर मुझपर बड़ी मेहरबानी कर रहे हैं।"

हेली - "यह बालिका इस गुलाम को खरीदने के लिए आग्रह कर रही है, इसी से तेरह सौ में दे देते हैं।"

सेंटक्लेयर - (हँसते हुए) "जी हाँ, तो यह कहिए न कि मुझपर नहीं, आप इस लड़की पर मेहरबानी कर रहे हैं। खैर, तो अब यह बताइए कि टॉम के ठीक दाम क्‍या लीजिएगा?"

हेली - "साहब, जरा एक बार माल की तो परख कीजिए। कैसा हट्टा-कट्टा-चौड़ा मजबूत आदमी है! क्‍या बड़ी खोपड़ी है! जान पड़ता है, अक्ल से भरी हुई है। आपकी सौगंध, चीज आला दर्जे की है। ऐसे गुलामों के बड़े दाम होते हैं। अपने मालिक का सारा काम यह बड़ी ईमानदारी से करता था। बड़े काम का आदमी है। एक बार इसके पहले मालिक का सर्टिफिकेट देख लीजिए, फिर कहिएगा। यह बड़ा धर्मात्‍मा है। इसे केंटाकी भर के गुलाम अपना पादरी मानते थे।"

सेंटक्लेयर - (हँसते हुए) "खूब तब तो! हम इसे अपने घर का पादरी बना लेंगे। लेकिन हमारे यहाँ धर्म का आडंबर बहुत थोड़ा है। इससे शायद पादरी साहब के लिए काम न मिले।"

हेली - "आप तो सभी बातें मजाक में उड़ा देते हैं। हम आपसे क्‍या कहें?"

सेंटक्लेयर - "यह कैसे? हमने आपकी कौन-सी बात मजाक में उड़ाई है? आप ही ने तो अभी फरमाया कि यह आदमी पादरी का काम करने की योग्‍यता रखता है। हाँ, जरा दिखलाइएगा तो इसके पास किस विश्‍वविद्यालय या किस लर्डबिशप का सर्टिफिकेट है?"

इसी समय इवान्‍जेलिन ने चुपके से अपने पिता के कान में कहा - "बाबा, इसे खरीद लो। ये थोड़े-से रुपए तुम्‍हारे लिए कुछ नहीं हैं। इस आदमी को खरीदने की मेरी बड़ी इच्‍छा है।"

इस पर सेंटक्‍लेयर ने इवा की ठोड़ी पकड़कर हँसते हुए पूछा - "क्‍यों इवा, इसका क्‍या करोगी? क्‍या इसे घोड़ा बनाकर खेलेगी?"

इवा - "बाबा, मैं इसे सुख से रखूँगी। इसका दु:ख दूर करने के लिए इसे खरीदना चाहती हूँ।"

सेंटक्लेयर - "वाह, यह नई बात सुनी। इसे सुखी करने के लिए तू खरीदना चाहती है!"

इतने में हेली ने शेल्‍वी साहब के दिए हुए टॉम के सर्टि‍फिकेट को निकालकर सेंटक्लेयर के हाथ में दिया। सेंटक्‍लेयर ने अक्षर देखकर कहा - "लिखावट तो भले आदमी की-सी है।" फिर सर्टिफिकेट में 'धर्म' शब्‍द देखकर हँसते हुए कहा - "अरे भाई, इस धर्म के मारे तो देश का सत्‍यानाश हो जाएगा। अब इस देश की खैर नहीं जान पड़ती। क्रिश्चियन-धर्मावलंबी भाईयों के धर्म-व्‍यवहार से तो नाकों दम आ ही रहा था, अब ये गुलाम भी धार्मिक बनने चले तो कहिए कुशल कहाँ! हमारे देश में धार्मिक पादरी, व्यवस्थापिका-सभा के धार्मिक मानवीय सदस्‍य, धार्मिक शासन-कर्ता, धार्मिक वकील और धार्मिक विचारपति, नित्‍यप्रति धर्म का ढोंग रच कर देश भर के लोगों को चकमा दे रहे हैं। नित नई जालसाजी और फरेब के फंदे देखने में आते हैं। पर ये गुलाम भी अब धार्मिक बनने चले हैं, यह बड़ी कठिनाई है। लगता है, अब धार्मिक बनकर काम करना मुश्किल हो जाएगा। आजकल तो गोरे इन गुलामों के लिए धर्म का काम करते हैं। इससे काम की कमी नहीं, परंतु अब जब ये गुलाम भी धार्मिक होने लगे तो देश में ऐसा कोई आदमी ही नहीं रह जाएगा, जिस पर धर्म की मूठ चलाई जा सके। खैर, बोलिए इस धर्म की आप क्‍या कीमत चाहते हैं? क्‍या धर्म का भाव आजकल कुछ बढ़ गया है? किसी समाचार-पत्र में तो नहीं देखा। हाँ, तो कहिए जनाब, इसके लिए क्‍या भेंट चढ़ानी पड़ेगी?"

हेली - "असल में आप इसे खरीदना नहीं चाहते, यों ही मजाक कर रहे हैं। हम आपकी इस बात को मानते हैं कि इस दुनिया में कितने ही आदमी धर्म का जामा पहनकर लोगों पर हाथ साफ करते हैं, लेकिन सच्‍चे आदमी भी दुनिया से निर्बीज नहीं हुए हैं। जो सच्‍चा धार्मिक है, वह दुनिया को कभी धोखा नहीं देता। आप इस सर्टिफिकेट पर गौर क्‍यों नहीं करते? टॉम के पहले मालिक ने इसकी कितनी बड़ाई की है, देखिए!"

सेंटक्‍लेयर- "यदि आप निश्‍चयपूर्वक मुझसे यह कह सकें कि धार्मिक आदमी को खरीदने से परलोक में भी मैं उसके धर्म का मालिक हो सकूँगा, उसके धर्म का फल भोग सकूँगा, तो मैं धर्म के नाम पर तुम्‍हें कुछ अधिक रुपए दे सकता हूँ।"

हेली - "वाह साहब, भला ऐसा भी कहीं हुआ है? परलोक में एक के धर्म का मालिक दूसरा कैसे हो सकता है? जीते-जी यह आपका गुलाम है, इसलिए आपका माल है, लेकिन परलोक में इसका धर्म आपका माल कैसे होने लगा? हम तो ऐसा ही समझते हैं। आपको अधिक पूछताछ करनी हो तो पादरियों से सलाह कीजिए।"

सेंटक्लेयर - मिस्‍टर हेली, तब देखिए, जब इसका धर्म इसी के साथ रहेगा, मेरा उससे कोई संबंध न होगा, तब उस धर्म के लिए अधिक दाम माँगना अनुचित है।"

इतना कहकर सेंटक्‍लेयर ने हँसते हुए हेली के हाथ में नोटों की गड्डियाँ पकड़ा दीं। कहा - "लीजिए, गिन लीजिए।"

हेली ने नोट गिनकर प्रसन्‍नापूर्वक जेब के हवाले किए और बिक्री का दस्‍तावेज लिखकर सेंटक्‍लेयर को दे दिया। सेंटक्‍लेयर इवा को साथ लेकर टॉम के पास आया और मुस्‍कराते हुए उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा - "आज से मैं तुम्‍हारा मालिक हुआ। कहो, अपने नए मालिक को कैसा समझते हो?"

टॉम ने घूमकर ज्यों ही सेंटक्‍लेयर की ओर देखा, उसकी आँखों से आनंद के आँसू टपकने लगे। वास्‍तव में जो कोई सेंटक्‍लेयर के सदा हँसमुख, प्रसन्‍न, स्‍नेहमय चेहरे की ओर देखता था, उसका हृदय आनंद से भर जाता था। टॉम ने कुछ देर बाद सेंटक्‍लेयर के प्रश्‍न के उत्तर में कहा - "श्रीमान्, परमात्‍मा से आपके कल्‍याण के निमित्त प्रार्थना करता हूँ। वह आपको सुखी रखे।"

सेंटक्‍लेयर ने टॉम से पूछा - "तुम्‍हारा नाम टॉम है न! तुम गाड़ी हाँकना जानते हो?"

टॉम ने कहा - "मैं अपने पुराने मालिक शेल्‍वी साहब के यहाँ बराबर गाड़ी चलाता था।"

यह सुनकर सेंटक्‍लेयर ने कहा - "तो ठीक है, तुम्‍हें गाड़ी हाँकने का काम दिया जाएगा। लेकिन देखना, बिना जरूरत सप्‍ताह में एक बार से ज्‍यादा शराब मत पीना। रोज शराब पीकर गाड़ी हाँकोगे तो किसी-न-किसी दिन जान से हाथ धोना पड़ेगा।"

पहले तो टॉम को यह बात सुनकर बड़ा अचंभा हुआ, फिर उसने दु:ख भरे शब्‍दों में बड़ी नम्रता से कहा - "जी, मैं शराब नहीं पीता"

सेंटक्‍लेयर ने टॉम के ये कातर वचन सुनकर कहा - "हाँ,... मैंने सुना है कि तुम शराब नहीं पीते। यह बहुत अच्‍छा है। पर तुम्‍हारे दु:खित होने की कोई बात नहीं है। मैंने तो यों ही कह दिया था। तुम्‍हारी बातचीत से मालूम होता है कि तुम सब काम अच्‍छी तरह निभा लोगे।"

टॉम ने कहा - "जी, कोई भी काम हो, उसे मैं जी से करने की चेष्‍टा करता हूँ।"

इसी बीच इवान्‍जेलिन ने टॉम का हाथ पकड़कर कहा - "टॉम काका, तुम्‍हें कोई डर नहीं। हमारे यहाँ तुम बड़े आनंद से रहोगे। बाबा कभी किसी को कष्‍ट नहीं देते। बाबा से कोई बात करने आता है तो वे हँसते ही रहते हैं।"

सेंटक्‍लेयर ने प्‍यार से इवा के सिर पर हाथ फेरकर कहा - "इस प्रशंसा के लिए मैं तेरा कृतज्ञ हूँ।"

16. टॉम का नया मालिक

यहाँ से टॉम के जीवन के इतिहास के साथ और भी कई व्‍यक्तियों का संबंध आरंभ होता है। अत: उन लोगों का कुछ परिचय देना आवश्‍यक है।

अगस्टिन सेंटक्‍लेयर के पिता लुसियाना के एक रईस और जमींदार थे। इनके पूर्वज कनाडा-निवासी थे। अगस्टिन के पिता जन्‍मभूमि छोड़कर लुसियाना चले आए और वहाँ कुछ जमीन लेकर बहुत से गुलामों से काम लेने लगे और धीरे-धीरे एक अच्‍छे जमींदार हो गए। अगस्टिन के चाचा वारमंट में जा बसे और वहाँ खेती करने लगे।

अगस्टिन की माता का जन्‍म हिउग्‍नो संप्रदाय के एक फ्रांसीसी उपनिवेशी के घर हुआ था। अगस्टिन का शरीर जन्‍म से ही अपनी माता की भाँति दुर्बल था। वारमंट की जलवायु बड़ी अच्‍छी समझी जाती थी, इससे बहुत बचपन में ही अगस्टिन को अपने चाचा के यहाँ भेज दिया गया था।

अगस्टिन सेंटक्‍लेयर में बचपन से ही कोमलता, उदारता और दयालुता के चिह्न स्‍पष्‍ट झलकते थे। ज्‍यों-ज्‍यों सेंटक्‍लेयर की उम्र बढ़ती गई, उसके इन गुणों में भी वृद्धि होती गई। उसकी बुद्धि बड़ी प्रखर थी। उदारता और महत्ता उसके हृदय के स्‍वाभाविक गुण थे। क्षुद्रता और नीचता आदि भाव उसके पास नहीं फटकने पाते थे। काम-काज में उसका मन नहीं लगता था। इससे उसके पिता ने सारे काम का भार अपने दूसरे लड़के अलफ्रेड पर डाल दिया था।

अगस्टिन की विश्‍वविद्यालय की पढ़ाई शीघ्र ही समाप्‍त हो गई। फिर उसके जीवन में उस लहर का संचार हुआ, जो एक बार सबके हृदयों को चंचल बना देती है। उस लहर से उसका प्रेमी हृदय नवीन अनुराग से उमड़ उठा, उसके जीवन-सरोवर में नया कमल खिल गया। जो हो, रूपक जाने दीजिए, संक्षेप में सुनिए, क्‍या बात थी। सेंटक्‍लेयर एक बुद्धिमती, रूप-गुणशीला रमणी के विशुद्ध प्रेम का पात्र हो गया। दोनों का विवाह तय हो गया। युवक अपने घर बड़े उत्‍साह से विवाह की तैयारियाँ करने लगा। इसी बीच उसकी प्रेमिका के अभिभावक का पत्र आया। लिखा था:

'यह पत्र तुम्‍हारे पास पहुँचने के पहले ही तुम्‍हारी मनोनीता कुमारी किसी दूसरे की पत्‍नी हो जाएगी।'

इसी के साथ सेंटक्‍लेयर के वे सब प्रेम-पत्र भी वापस आए, जो समय-समय पर उसने अपनी प्रेमिका कुमारी को भेजे थे।

इस पत्र को पाकर सेंटक्‍लेयर दु:ख और आहत अभिमान से पागल-सा हो गया। हृदय की अनिवार्य यंत्रणा के वेग से अधीर होकर उसने निश्‍चय किया कि अब सारी पिछली बातों को हृदय से एकदम भुला देगा। अदम्‍य अभिमान के कारण उसने इस बेढंगी कार्रवाई का कारण भी न पूछा। उस पत्र के पाने के दो सप्‍ताह के भीतर ही उसी नगर के एक धनवान वणिक की अति रूपवती कन्‍या से उसका विवाह ठीक हो गया। यह संसार एकमात्र खरीद-फरोख्‍त का बाजार है। विशुद्ध प्रेम और अकृत्रिम परिणय का सौदा इस बाजार में बहुत कम होता है, शायद ही कभी होता हो। अगस्टिन इसका अपवाद न था। उसे लाचार होकर संसार-प्रचलित क्रय-विक्रय की प्रथा का अवलंबन करना पड़ा। देखते-देखते उसका विवाह हो गया। जिस स्‍त्री से सेंटक्‍लेयर का विवाह हुआ था, उसकी जमा-पूँजी बस रुपया और सौंदर्य, यही दो चीजें थीं।

विवाह के उपरांत नव-दंपति इष्‍ट-मित्रों के बीच हँसी-खुशी में दिन बिताने लगे।

किंतु एक महीना भी न होने पाया था कि एक दिन अगस्टिन के नाम एक पत्र आया। पत्र के सिरनामे पर वही परिचित अक्षर थे। पत्र देखकर सेंटक्‍लेयर का मुँह पीला पड़ गया। काँपते हाथों से उसने पत्र लिया। जिस समय सेंटक्‍लेयर को पत्र मिला था, उस समय मित्रों से उसका घर भरा हुआ था। वह एक आदमी से हँस-हँसकर बातें कर रहा था। ज्‍यों-त्‍यों अपनी बातें समाप्‍त करके वह चुपके से निकल पड़ा। एकांत में जाकर उसने पत्र खोला। हाय! आज इस पत्र को पढ़ने से ही क्‍या लाभ है?

वह पत्र सेंटक्‍लेयर की पूर्व प्रेमिका के पास से आया था। उसे पढ़कर विवाह का पूरा रहस्‍य मालूम हो गया।

पहले जिस अभिभावक का उल्‍लेख किया गया है, उस नर-पिशाच ने अपनी अधीनस्‍थ इस कुमारी को अपने पुत्र के साथ ब्‍याहने की बड़ी चेष्‍टा की; पर जब कन्‍या किसी तरह राजी न हुई तब वह उस पर मनमाने अत्‍याचार करने लगा। इससे भी जब सफलता न मिली, तो इस दगाबाज ने ऊपरवाली चाल चलकर सेंटक्‍लेयर से उसका पवित्र नाता तोड़ दिया। इधर सेंटक्‍लेयर का पत्र न पाने के कारण वह दिन-पर-दिन चिंतित रहने लगी। पत्र पर पत्र लिखे, पर उत्तर न मिला। हजार बार सोचा, पर कोई कारण समझ में नहीं आया। धीरे-धीरे उसके मन में तरह-तरह के संदेह और आशंकाएँ उठने लगीं। इसी सोच में वह दिन-पर-दिन सूखने लगी। अंत में एक दिन उस पापी अभिभावक की शठता उसे मालूम हो गई। वह जान गई कि इस नराधम ने उनके पारस्‍परिक प्रेम में बाधा डालने की कुचेष्‍टा की है।

पत्र पढ़कर सेंटक्‍लेयर को सब बातों का पता चला। पत्र का अंतिम भाग आशापूर्ण वाक्‍यों और प्रेमोक्तियों से भरा हुआ था। रमणी ने लिखा था- "मैं जीते-जी तुम्‍हारी ही हूँ।" अभागा युवक उसे पढ़कर छटपटाकर रह गया। उसे मौत से भी अधिक दु:ख हुआ। पर क्‍या करता! सोचा, अब दु:ख करने से पुरानी बात नहीं लौटती। उसने तुरंत उत्तर दे दिया। लिखा:

"तुम्‍हारा पत्र मिला, किंतु समय पर नहीं। अब मिलना न मिलना दोनों बराबर है। मुझे जो खबर मिली थी, उसे मैंने सच मान लिया। मैं उस समय पागल-सा हो गया था। मेरा विवाह हो गया। जो कुछ होना था, हो गया। कुछ भी बाकी नहीं रहा। अब सब बातें मन से भुला दो। जो हो गया सो हो गया।"

इस घटना से सेंटक्‍लेयर का सुख-स्‍वप्‍न भंग हो गया। उसका प्रेमी हृदय शुष्‍क हो गया। उस काल्‍पनिक सुख-शांति-पूर्ण संसार को कल्‍पना से बिना कर देने पर सेंटक्‍लेयर को प्रकृत संसार-पथ का पथिक होना पड़ा। वह कल्‍पनानुरंजित संसार यथार्थ संसार से कितना भिन्‍न है, इसका अनुभव उस संसार में प्रवेश किए बिना नहीं हो सकता।

उपन्‍यासों में प्रणय-निराशा और मृत्‍यु मानों एक साथ ही डोर में बँधे रहते हैं। ज्यों ही कोई प्रणय से निराश होता है, तुरंत मृत्‍यु महारानी पहुँचकर उसके भग्‍न हृदय की दारुण जलन को सदा के लिए ठंडा कर देती है।

परंतु प्रकृत जीवन और उपन्‍यास में बड़ा भेद है। प्रकृत जीवन में उपन्‍यास की भाँति मृत्‍यु इतनी पास नहीं खड़ी रहती। संसार में नित्‍य कितने ही लोगों का प्रणय टूटता है, पर कितने आदमी हैं, जो उसके लिए प्राण देते हैं? जीवन चारों ओर से दु:खों और यंत्रणाओं से घिर जाता है, सारी आशाओं पर पानी फिर जाता है। हृदय घोर निराशा में डूब जाता है। इतने पर भी मनुष्‍य नहीं मरता। जैसे समय पर पहले खाता-पीता था, काम करता था, सोता-घूमता था, वैसे ही अब भी सारे-के-सारे काम करता है। अगस्टिन के हृदय को बहुत गहरी चोट लगने पर भी संसार की इसी गति के अनुसार उसे काम करने पड़ते थे। किंतु उसकी पत्‍नी मेरी योग्‍य होती तो उसका अंधकारमय जीवन फिर भी प्रकाशमान हो सकता था, पर मेरी की अदूरदर्शी दृष्टि अगस्टिन के हृदय तक न पहुँचती थी। उसने यह बात जानने की कोशिश तक नहीं की कि उस हृदय पर कोई घाव लगा है। हम पहले ही कह आए हैं कि विपुल संपत्ति और रूप-लावण्‍य के सिवा मेरी में और कोई भी गुण न था। पर इन दोनों में एक भी गुण जी की जलन को ठंडा नहीं कर सकता था, हृदय के घाव को नहीं भर सकता था।

पत्र पाने के बाद अगस्टिन एक निर्जन कमरे में जाकर लेट गया। बड़ी देर के बाद पत्‍नी ने आकर पूछा - "तुम्‍हें क्‍या हो गया है?"

सेंटक्‍लेयर ने कहा - "मेरा सिरदर्द कर रहा है।"

बुद्धिमती मेरी ने इसी को सच मान लिया, फिर कोई और बात न पूछकर औषधि की व्‍यवस्‍था कर दी। किंतु वह सिरदर्द क्‍या एक दिन का था? उसके बाद अक्‍सर सेंटक्‍लेयर को उसी प्रकार सिरदर्द हुआ करता था। जब देखते-देखते कई दिन बीत गए, तब एक दिन मेरी ने कहा - "विवाह के पहले नहीं जानती थी कि तुम ऐसे रोगी हो। मैं देखती हूँ कि तुम्‍हें तो बराबर ही सिरदर्द हुआ करता है। मेरे फूटे भाग! अभी हाल में हम लोगों का विवाह हुआ है और अभी से मुझे लोगों के घर अकेले घूमने जाना पड़ता है। तुम साथ नहीं जा सकते। मुझे बड़ा नागवार मालूम होता है।"

पत्‍नी की मोटी बुद्धि देखकर पहले-पहल तो सेंटक्‍लेयर मन-ही-मन संतुष्‍ट हुआ, परंतु जब विवाहित जीवन के कुछ आरंभिक दिन बीत गए और आदर-सत्‍कार का बंधन कुछ ढीला पड़ने लगा, तब सेंटक्‍लेयर ने देखा कि रूप और गुण दोनों एक साथ नहीं रहते और लावण्य तथा सौंदर्य मनुष्‍य को अधिक दिनों तक सुख नहीं दे सकते। उनका आनंद शीघ्र ही फीका पड़ जाता है। उसने अनुभव किया कि ऐश्‍वर्य की गोद में पली हुई और पिता की लाडली सुंदरी से इस जीवन-यात्रा में सुख पाने की कोई संभावना नहीं है। जिसे लोग प्रेम कहते हैं, उस प्रेम की मात्रा मेरी के हृदय में एक तो थी ही बहुत थोड़ी, और जो नाममात्र को थी भी वह तो अपने ही ऊपर थी, दूसरों पर नहीं। मेरी अपने पिता की इकलौटी बेटी थी। पिता के घर नौकर-चाकरों तथा कुटुंबियों पर हुकूमत करती आई थी। उसे जब जिस बात की चाह होती थी, वह तुरंत पूरी होती थी। उसने जब चाहा, वह सुलभ हो या दुर्लभ, पिता ने उसे देकर राजी किया। दास-दासियों पर वह जैसा रौब-दाब रखती थी और दबाव डालती थी, उसका ठिकाना न था। वे बेचारे हर घड़ी मालिक की लड़की को खुश करने की चिंता में लगे रहते थे। कहीं जरा-सी भी भूल हो जाती थी, तो वह उन्‍हें बड़ा कठोर दंड देती थी। ऐसी दशा में पलकर मेरी का हृदय केवल अहमन्‍यता और स्‍वार्थपरता का घर हो गया था। अपने सुख के सिवा उसे और कुछ सुहाता ही न था। अपनी बात के सामने उसे पल भर के लिए भी दूसरे की बात का ध्‍यान न आता था। साथ ही उसे अपने परम सुंदरी होने का पूरा भान था।

उसका विचार था कि यदि वह असामान्‍य रूपवती न होती तो लुसियाना प्रदेश के असंख्‍य नवयुवक उससे विवाह करने के लिए इतनी व्‍याकुलता क्‍यों दिखाते? पर मूल कारण कुछ और ही था। असल बात यह थी कि उससे विवाह करने की इच्‍छा रखनेवाले युवक यह सोचकर उसके आगे शीश झुकाते थे कि जो उससे विवाह करेगा, वही उसके पिता के अपार धन का मालिक होगा। मेरी अपने स्‍वामी का बड़ा सौभाग्‍य समझती थी कि उसे उस जैसा स्‍त्रीरत्‍न मिला। स्‍वामी के साथ व्‍यवहार में भी उसका यह आंतरिक विश्‍वास पग-पग पर झलकता था। कभी-कभी वह बातों-बातों, में बड़े साफ शब्‍दों में, स्‍वामी से यह कह भी डालती थी।

ऐसी स्‍त्री के साथ रहकर गृहस्‍थी चलाना सेंटक्‍लेयर के लिए बड़ा कठिन हो गया। एक ओर तो वह अपनी पूर्व प्रेमिका को अपने हाथों दिए आघात का स्‍मरण करके दु:खी हो रहा था, अपने को मन-ही-मन बराबर धिक्‍कारता था और दूसरी ओर इसी समय श्रीमती मेरी महारानी के वचन-बाण उसके हृदय को बेंधते थे। इससे वह प्राय: काम का बहाना करके घर से चला जाया करता था। पर ऐसी स्‍वार्थ-परायण स्‍त्री सदा स्‍वामी के अंदर का सारा प्रेम सोखने की इच्‍छा किया करती है। जो स्‍त्री स्‍वामी को प्‍यार करना नहीं जानती, वह उतना ही अधिक स्‍वामी का प्रेम चाहती है। अत: सेंटक्‍लेयर को घर से भागकर भी छुटकारा नहीं मिलता था।

विवाह के एक साल बाद मेरी को एक कन्‍या हुई। इस कन्‍या का मुख-कमल देखते ही दयालु सेंटक्‍लेयर का हृदय गंभीर संतान-वात्‍सल्‍य से भर गया। वह कन्‍या ज्‍यों-ज्‍यों बढ़ने लगी, सेंटक्‍लेयर का प्रेम भी उस पर बढ़ता गया। किंतु सेंटक्‍लेयर का इस कन्‍या को प्राणों से अधिक प्‍यार करना उसकी स्‍त्री मेरी को असह्य हो गया! वह मन-ही-मन विचार करने लगी कि सेंटक्‍लेयर के हृदय में एक तो यों ही प्रेम नहीं है, फिर मुश्किल से जो थोड़ा बहुत था भी, सो वह इस कन्‍या ने ले लिया। मैं तो अब स्‍वामी के प्रेम से बिल्‍कुल ही खाली रह गई। यह सब सोचकर वह कन्‍या का जैसा चाहिए, वैसा लालन-पालन नहीं करती थी। कन्‍या के जन्‍म लेने के उपरांत मेरी को प्राय: सिरदर्द बना रहता था। वह सदा पलंग पर पड़ी रहती थी। कन्‍या के पालन-पोषण का भार दास-दासियों के जिम्‍मे कर दिया गया। बीच-बीच में सेंटक्‍लेयर स्‍वयं उसको सँभाल लिया करता था।

चार-पाँच वर्ष की हो जाने पर बालिका के प्रत्‍येक कार्य और आचरण से विशेष दया, स्‍नेह और ममता का भाव प्रकट होने लगा। सेंटक्‍लेयर ने कन्‍या की ऐसी कोमल प्रकृति और सहृदयता देखकर अपनी माता के नाम पर उसका नामकरण किया। सेंटक्‍लेयर की जननी बड़ी दयालु थी। दूसरे का जरा भी दु:ख देखकर उसका हृदय भर आता था। अगस्टिन अपनी माता पर असीम श्रद्धा और भक्ति रखता था। उसकी माता का नाम इवान्‍जेलिन था। इससे उसने अपनी कन्‍या का भी वही नाम रखा।

इधर मेरी की हालत सुनिए। उसे नित्‍य एक नया मन गढ़ंत रोग होने लगा। दिन भर अलहदी की तरह पलंग पर पड़े-पड़े शरीर में पीड़ा होने लगती थी और वह सोचती थी कि उसे कोई नया रोग हो गया है। उन रोगों की चिकित्‍सा और सेवा उसकी इच्‍छा के अनुकूल नहीं होती, इसकी उसे सदा ही शिकायत बनी रहती और इसके लिए वह सदैव स्‍वामी पर चिड़चिड़ाया करती। कभी-कभी अभिमान के वशीभूत होकर रोने लगती और कभी अपने भाग्‍य को कोसती। वह अपने मन में इसे केवल विधि की विडंबना ही समझती थी कि जो उसकी-सी रूपवती, गुणवती, पुण्‍यवती और बुद्धिमती नारी को ऐसी दुरवस्‍था में पड़ना पड़ा। कभी-कभी तो ऐसा होता था कि किसी-किसी मनोकल्पित रोग के कारण वह लगातार तीन-तीन, चार-चार दिन तब बिस्‍तर न छोड़ती थी। इसलिए घर का सब काम दास-दासियों के ही भरोसे था। इसके सिवा इवा का भी लालन-पालन अच्‍छी तरह न होने के कारण वह भी कुछ दुबली हो गई थी। यह देखकर सेंटक्‍लेयर घर के प्रबंध एवं इवा के लालन-पालन के लिए वारमंट से अपने चाचा की लड़की मिस अफिलिया को लाने के लिए वारमंट रवाना हो गया। जहाज में सेंटक्‍लेयर के साथ जिस महिला की बात पहले कही गई है, वह मिस अफिलिया ही थी। उसे साथ लेकर अगस्टिन इस जहाज में घर लौट रहा था।

चलते-चलते जहाज नवअर्लिंस आ पहुँचा। इन लोगों के उतरने के पहले मिस अफिलिया के संबंध में दो-एक बातें कहना उचित जान पड़ता है। मिस अफिलिया की अवस्‍था 45 वर्ष की है। घर के कामकाज में वह बड़ी होशियार है। उसके हर काम से उसकी सहनशीलता और फुर्तीलेपन का परिचय मिलता है। उसके सारे काम और व्‍यवहार नियमपूर्वक तथा उत्‍कृष्‍ट प्रणाली एवं परिपाटी के होते हैं। काम के लिए यदि वह कोई नियम बना लेती है तो उसे कभी नहीं तोड़ती। नियम की तो वह बड़ी ही पक्‍की है। असावधानी को वह बहुत बड़ा पाप समझती है। वह औरों को भी किसी काम में लापरवाही करता देखकर बड़ी झुँझलाती और उनपर घृणा प्रकट किया करती है। कर्तव्‍य-पालन में वह बड़ी कठोर है। जिस काम को वह अपना कर्तव्‍य समझती है, उसे पूरा करने में कोई कसर नहीं रखती। वह सदा विवेक से काम लिया करती है। यदि उसे 'विवेक की दासी' कहा जाए तो अत्‍युक्ति न होगी।

वास्‍तव में अंग्रेज-ललनाओं में बहुतेरी विवेक के वश में होती हैं, पर उनका वह विवेक-यंत्र अंकुश की भाँति उन्‍हें चलाता है। मनुष्‍य-समाज में दो तरह के प्राणी दिखाई पड़ते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो केवल कर्तव्‍य मानकर विवेक के आदेश का पालन तो करते हैं, पर उसका पालन करने से उनके हृदय में आनंद की धारा नहीं बहती। कुछ ऐसे होते हैं, जो हृदय के वेग में पड़कर विवेक के आदेश पालन करने में उन्‍मत्त हो जाते हैं। पहली प्रकार के विवेक का आदेश लोहे के चने चबाने से भी कठिन काम है। जो लोग पहली प्रकार के विवेक के आदेश पर काम करते हैं, उन्‍हें दुनियाँ कर्तव्‍य-परायण कहती है। पर दूसरी प्रकार का विवेक मनुष्‍य को कर्तव्‍य-प्रमत्त बना देता है। ऐसी दशा में विवेक और आवेग इन दोनों में कोई भेद नहीं रह जाता। महाराजा जयसिंह को कर्तव्‍य-परायण कहा जा सकता है, पर वह कर्तव्‍य-मत अथवा कर्तव्‍य-नेता कहलाने के अधिकारी नहीं हो सकते। दूसरी पवित्र श्रेणी में बुद्ध, ईसा और चैतन्‍य आदि के पवित्र नाम गिनाने योग्‍य हैं। कर्तव्‍य-परायण मनुष्‍य मशीन की भाँति कर्तव्‍य के अनुरोध का पालन करता है, परंतु कर्तव्‍य-मत्त व्‍यक्ति हृदय के उमड़े हुए वेग से तन्‍मय होकर कर्तव्य को पूरा करता है।

17. नई मालकिन

> मिस अफिलिया कर्त्तव्य-परायण थी। हम उसे कर्त्तव्य-मत्त नहीं समझते। कर्त्तव्य-पालन में वह कभी पीछे नहीं हटती, दुर्गम पर्वत उसके कर्त्तव्य-मार्ग में कभी बाधा नहीं डाल सकता। अगाध समुद्र या प्रचंड अग्नि कर्त्तव्य-पालन से विमुख नहीं कर सकती। हृदय की अनिवार्य निर्बलता के साथ वह सदा घोर संग्राम किया करती थी। यदि वह उस विकट संग्राम में कभी हार जाती तो अपनी निर्बल प्रकृति का ध्यान करके बहुत खिन्न होती थी।

 अत: इन कारणों से उसका हार्दिक धर्म-विश्वास उसे प्रसन्न बनाकर उल्टा कभी-कभी उसके अंत:करण को विषाद के अंधकार से पूर्ण कर देता था।

 पर बड़ा आश्चर्य तो यह देखकर होता था कि अफिलिया जैसी कर्त्तव्य-परायण, धीर-गंभीर प्रकृतिवाली और विवेकशील स्त्री, चंचलमति अगस्टिन को प्यार करे। इन दोनों की प्रकृति में जरा-भी समता नहीं थी। दोनों के स्वाभाव में 36 का-सा संबंध था। लेकिन मिस अफिलिया लड़कपन से ही बड़े चाव से अगस्टिन को धर्म-शिक्षा दिया करती और अपने सगे छोटे भाई की भाँति उसका दुलार करती थी। अगस्टिन का स्वाभाव चंचल होने पर भी वह बड़ा स्नेहशील था। इसी से मिस अफिलिया लड़कपन से उसे प्यार करती थी और यही कारण था कि अगस्टिन के प्रस्ताव पर वह तुरंत उसके घर आने को राजी हो गई। अगस्टिन के घर का काम-काज सँभालने तथा इवान्जेलिन के पालन-पोषण का भार उठाने के लिए वह बड़ी खुशी से अगस्टिन के साथ नवअर्लिंस आ गई। जहाज नवअर्लिंस पहुँचने को हुआ तो मिस अफिलिया बड़ी फुर्ती से माल-असबाब बाँधने लगी। इधर इवा से बार-बार कहने लगी- "तेरी गुड़िया कहाँ है? कैंची कहाँ है! खिलौने कहाँ हैं? अपने सब खिलौने गिन डाल। कितनी लापरवाही रखती है। अभी तक इन चीजों को नहीं गिना?"

 इवा ने कहा - "बुआ, अब तो हम लोग घर ही चलते हैं, इन सब चीजों को लेकर क्या होगा?"

 अफिलिया - "क्या होगा? घर ले चल, वहाँ ठिकाने से रख देना। बच्चो को अपनी वस्तुएँ सावधानी से रखनी चाहिए।"

 इवा - "बुआ, मुझे यह सब रखना नहीं आता।"

 अफिलिया - "अच्छा, तू देख, मैं सब ठीक कर देती हूँ। एक यह तेरा बक्स है। यह खिलौना दो; कैंची तीन और फीता चार। सब चार चीजें हुईं। बेटी, मैं जानती हूँ, तू अकेली अपने बाबा के साथ आती तो ये सब चीजें खो जातीं।"

 इवा - "हहं, मैंने यों ही कितनी ही बार कितनी चीजें खो दीं और बाबा ने सब चीजें मुझे फिर खरीद दीं।"

 अफिलिया - "वाह, कैसी अच्छी बात है। एक बार एक चीज को खो देना और फिर उसी को खरीद लेना।"

 इवा - "बुआ, यह तो बड़ी सीधी बात है।"

 अफिलिया - "सीधी बात है! यह हद दर्जे की लापरवाही है। घोर लापरवाही।"

 यों ही बार-बार "लापरवाही, लापरवाही" करते हुए मिस अफिलिया सारी वस्तुएँ बक्स में भरने लगी। जब बक्स भर गया तो इवा ने कहा - "बुआ, बक्स तो भर गया, अब इसमें और चीजें नहीं समाएँगी। अब क्या करोगी?"

 यह सुनकर अफिलिया बोली - "नहीं समाएँगी। जरूर समाएँगी; क्यों नहीं समाएँगी?"

 इतना कहकर बक्स के कपड़ों को जोर से दबाने लगी। अफिलिया का रुख देखकर मानो संदूक बेचारा डर गया। अफिलिया ने सारी चीजों को संदूक में रखकर हँसते हुए कहा - "अभी तो संदूक में और भी चीजें रख देने को जगह खाली है। तू इस संदूक पर खड़ी हो जा, मैं चाबी से बंद कर दूँ।"

 इस प्रकार अफिलिया संदूक से संग्राम में जीतकर इवा से बोली - "तेरे बाबा कहाँ हैं? जा, उन्हें बुला ला। कह दे, हम लोग तैयार हैं।"

 इवा - "बाबा तो नीचे के कमरे में खड़े एक आदमी से बातें कर रहे हैं और नारंगियाँ खा रहे हैं।"

 अफिलिया - "जा, दौड़कर बुला ला। जहाज अब घाट-किनारे पहुँचने ही वाला है।"

 इवा - "बाबा कभी जल्दी नहीं करते। बुआ, तुम इधर आओ। वह देखो, अपना घर दिखाई पड़ता है।"

 अफिलिया - "हाँ, देख लिया। जा, झटपट अपने बाबा को बुला ला। लो, जहाज किनारे आ गया और अगस्टिन अभी भी देर कर रहा है।"

 जहाज घाट पर आ लगा। सैकड़ों कुली जहाज पर चढ़ आए। उनमें से एक मिस अफिलिया से बोला - "मेम साहब, अपना बक्स मुझे दीजिए।" दूसरा कुली बोला - "मेम साहब, ये बिस्तरे मैं उठाता हूँ।" तीसरा बोला - "मेम साहब, यह संदूक मेरे सिर पर उठा दीजिए।" कुलियों का तो यह हाल था और मिस अफिलिया अपनी सारी चीजों को अपने सामने रखकर खड़ी खजाने के संतरी की भाँति पहरा दे रही थी। उसके मुख का रुख और तीव्र दृष्टि देखकर कुली डर के मारे वहाँ से खिसकने लगे। इधर अगस्टिन को देर करते देखकर अफिलिया छटपटाने लगी। कोई पंद्रह मिनट के बाद बिना किसी घबराहट के अगस्टिन ने अफिलिया के पास आकर अन्यमनस्क भाव से पूछा - "बहन, तुम तैयार हो?"

 अफिलिया बोली - "मैं एक घंटे से तैयार बैठी हूँ। मैं तुम्हारे देर करने से बहुत उकता रही थी।"

 अगस्टिन ने कहा - "उकताने की कौन-सी बात थी! अपनी गाड़ी किनारे खड़ी है। भीड़ छँट जाने दो तो आराम से उतरकर चल चलेंगे।"

 इतना कहकर अगस्टिन ने एक कुली से कहा - "अरे, हमारा सामान गाड़ी पर रखवा देना।"

 यह सुनकर मिस अफिलिया ने कहा - "मैं उसके साथ जाकर अपने सामने सब चीजें ठीक से गाड़ी पर रखवाती हूँ। तुम यहाँ खड़े रहो।"

 अगस्टिन - "तुम्हारे साथ जाने की आवशकयता नहीं है। यह सब आप ही ठीक से रख देगा। हम लोग साथ ही चलते हैं।"

 अफिलिया - "लेकिन यह बैग और बक्स तो मैं कुली को नहीं दूँगी। मैं इन दोनों को स्वयं ही ले चलूँगी।"

 अगस्टिन - "अपनी वह उत्तर प्रदेश की चाल छोड़ दो। इस देश की रीति-नीति सीखो। बक्स और बैग तुम ढोओगी तो लोग तुम्हें दासी समझेंगे। डरो मत! सब चीजें इस आदमी को उठाने दो। वह सब चीजें बड़ी सावधानी से गाड़ी पर रख देगा।"

 इसी समय इवा बोली - "टॉम कहाँ है?"

 अगस्टिन ने उत्तर दिया - "टॉम नीचे है। इवा, टॉम को अपनी माँ के पास ले जाना। कहना कि टॉम को गाड़ी हाँकने के लिए लाए हैं। अब उस शराबी कोचवान को गाड़ी नहीं हाँकने दी जाएगी।"

 इवा - "बाबा, टॉम बड़ा अच्छा कोचवान रहेगा। वह कभी शराब नहीं पीएगा।"

 इसके बाद मिस अफिलिया और इवा को साथ लेकर अगस्टिन जहाज से उतरकर अपनी गाड़ी पर चढ़ा। मिस अफिलिया ने गाड़ी पर चढ़ने के पहले सब चीजें एक-एक करके सँभाल लीं। थोड़ी ही देर में गाड़ी एक सजे-सजाए द्वार पर पहुँच गई। बाहरी दरवाजा पारकर गाड़ी के भीतर पहुँचते ही इवा उतरने के लिए छटपटाने लगी और अफिलिया से बार-बार कहने लगी - "बुआ, देखो, हमारा घर कैसा सुंदर है? तुम्हारे घर ऐसा बगीचा नहीं है।"

 अफिलिया मुस्कराकर बोली - "हाँ घर तो सुंदर है, पर ईसाई का-सा घर नहीं जान पड़ता। मालूम होता है, किसी गैर-ईसाई का घर है।"

 सेंटक्लेयर को अपने लिए "गैर-ईसाई" शब्द सुनकर बड़ी प्रसन्नता हुई। गाड़ी दरवाजे पर लगते ही टॉम सबसे पहले उतरा और घर की शोभा देखकर आश्चर्य से चारों ओर देखने लगा। मिस अफिलिया के साथ सेंटक्लेयर के गाड़ी से उतरने पर घर के बहुत-से हब्शी दास-दासी दरवाजे पर आकर जमा हो गए। सेंटक्लेयर दास-दासियों पर कभी अत्याचार नहीं करता था। उसके घर इन दास-दासियों को किसी प्रकार की तकलीफ न थी। खाने-पीने का सब तरह से आराम था। इससे उसके लौटने पर सबको विशेष आनंद हुआ। उसका हँसमुख चेहरा देखने के लिए वे सब बड़े उत्सुक थे। इन दास-दासियों में एक लंबा पुरुष था। वह बड़ा ठाट-बाट बनाकर दरवाजे पर सबके आगे आकर खड़ा हुआ। उसके पहनावे और रौब-दाब से लग रहा था कि वह इस घर के गुलामों का सरदार है। अपने पीछे बहुत-से दास-दासियों को एकत्र देखकर, उनपर रौब झाड़ने के लिए उसने तोबड़ा-सा मुँह बनाकर कहा - "अरे काले भाई-बहनों, तुम लोगों की करतूतों से मुझे कभी-कभी बहुत ही शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। अपने पैर मिलाकर, एक लाइन में खड़े होओ। आजतक तुम लोगों ने विलायती ढंग पर खड़े होना तक भी नहीं सीखा। तुम लोगों के इस तरह खड़े रहने से मालिक के घर में जाने का रास्ता रुक गया है।"

 यह वक्तव्य सुनकर सब दास-दासी एक किनारे हटकर खड़े हो गए।

 सेंटक्लेयर ने दरवाजे पर पहुँचते ही एडाल्फ नामक इस प्रधान से हाथ मिलाया और उसका नाम लेकर कहा - "एडाल्फ, अच्छे तो हो?"

 इस प्रकार सेंटक्लेयर द्वारा आदर पाने पर एडाल्फ ने मालिक के स्वागत के लिए जो भाषण रट रखा था, वह सुनाना शुरू किया। एडाल्फ का भाषण सुनकर सेंटक्लेयर ने हँसते हुए कहा - "भाषण तो खूब तैयार किया है।"

 इतना कहकर वह तुरंत घर में चला गया।

 मकान में जाते ही इवा दौड़ती हुई अपनी माँ के कमरे में पहुँची। पलंग पर लेटी अपनी माता के गले से लिपट गई और बार-बार उसका मुख चूमने लगी। पर उसकी माता ने अपने कल्पित रोग के कारण कमजोर बनी रहने की वजह से उसको गोद में तो लिया ही नहीं, बल्कि गले से लिपटकर इवा के बार-बार मुँह चूमने से कुछ झुझलाकर बोली - "जा-जा, बहुत हो गया, बहुत हो गया! ठहर जा, मेरे सिर में दर्द बढ़ जाएगा।"

 सेंटक्लेयर ने अपनी स्त्री के कमरे में पहुँचकर उसका मुँह चूमा और मिस अफिलिया की ओर उँगली करके कहा - "प्यारी! देखो तुम्हारी रोग की बात सुनकर अफिलिया बहन आई हैं।"

 मेरी पलंग से नहीं उठ सकी। केवल अधखुले नेत्रों से अफिलिया की ओर एक बार देखकर धीमे स्वर में उसका स्वागत किया। सब दासियाँ जब कमरे के द्वार पर आकर खड़ी हुईं तो उनमें मामी नाम की एक दासी के गले लिपटकर इवा उसका मुँह चूमने लगी। उस वृद्ध ने इवा को अपनी छाती से लगाकर उसका मुँह चूमा। उसकी आँखों से आनंद के आँसू बहने लगे। वह बड़ी चाह से इवा के मुँह की ओर देखने लगी। उसने जिस प्रकार इवा को अपनी छाती से लगाया था, उससे तो यही जान पड़ता था कि वही इवा की माता होगी। कुछ देर के बाद इवा ने मामी की गोद से उतरकर घर की हर दासी का मुख चूमा।

 इवा को इस भाँति दासियों का मुँह चूमते देखकर मिस अफिलिया को बड़ा अचंभा हुआ। इस पर वह सेंटक्लेयर से बोली - "अगस्टिन, क्या तुम्हारे इस दक्षिण देश में दास-दासियों के साथ ऐसा ही व्यव्हार किया जाता है? भाई, हम लोग तो दास-प्रथा के विरोधी होते हुए भी नौकरों को इतना मुँह नहीं लगाते, इतना आदर नहीं देते। हम लोग वेतनभोगी चाकरों को कभी अपने समान नहीं समझते। दास-दासियों पर दया करना उचित है पर मुँह लगाना ठीक नहीं।"

 अफिलिया बहन के ईसाई धर्म संबंधी भाषण का स्मरण करके सेंटक्लेयर मन-ही-मन हँसा, पर प्रकट में कुछ नहीं बोला। फिर वह कमरे से बाहर निकलकर मामी, जिमी, पली, सूकी इत्यादि हर एक दासी का हाथ पकड़कर कुशल पूछने लगा। किसी-किसी दासी के गोद के बच्चे के सिर पर हाथ रखकर दुलार करने लगा। सेंटक्लेयर के चले जाने पर इवा ने नारंगी की टोकरी उठाकर उसमें से एक-एक नारंगी सब दास-दासियों के बच्चो को दी। उन लोगों को वे खिलौने भी बाँट दिए, जो वह उनके लिए लाई थी। फिर सेंटक्लेयर ने बरामदे में आकर एडाल्फ से कहा - "एडाल्फ, यह जो नया आदमी मेरे साथ आया है, इसका नाम टॉम है। सब पर तुम बड़ी हुकूमत दिखाया करते हो, पर देखना, खबरदार, इस आदमी पर कभी रौब न गाँठना। तुम्हारे-जैसे काले बंदरों के मूल्य की अपेक्षा इसके दूने दाम लगे हैं।"

 एडाल्फ ने कहा - "सरकार, आप तो मजाक करते हैं।"

 सेंटक्लेयर ने एडाल्फ के कोट की ओर देखकर कहा - "वाह-वाह! तुमने मेरा यह कोट कैसे पहन लिया।"

 एडाल्फ कुछ शरमाकर बोला - "हुजूर, इस कोट में ब्रांडी के बहुत दाग लग गए थे। इससे बड़ी बदबू आती थी। मैंने सोचा, अब आप इसे थोड़े ही पहनेंगे। इसे आप जरूर ही फेंक देते, इसी से मैंने पहन लिया।"

 एडाल्फ की बात पर सेंटक्लेयर हँसने लगा। इसके बाद वह टॉम को लेकर अपनी स्त्री के कमरे में गया। स्त्री से कहा - "प्यारी, तुम सदा शिकायत किया करती हो कि मैं तुम्हारे आराम का खयाल नहीं करता। यह देखो, तुम्हारी गाड़ी हाँकने के लिए एक अच्छा कोचवान लाया हूँ। यह आदमी कभी शराब मुँह से नहीं लगाता। गाड़ी हाँकने में बड़ा निपुण है। यह इस तरह गाड़ी हाँकेगा कि गाड़ी में चढ़ने पर तुम्हें जरा भी तकलीफ न होगी। आराम से ले जाएगा।"

 सेंटक्लेयर की स्त्री मेरी ने फिर आँखें खोलकर एक बार टॉम की ओर देखा और दबे स्वर से बोली - "कुछ दिन हमारे यहाँ रहा कि शराब पीना सीखा।"

 सेंटक्लेयर - "नहीं, यह कभी शराब नहीं पीएगा। यह शराब के पास नहीं फटकता।"

 मेरी - "न पीता तो अच्छा ही है। पर मुझे यकीन नहीं आता।"

 फिर सेंटक्लेयर ने एडाल्फ को बुलाकर कहा - "एडाल्फ! टॉम को रसोईघर में ले जाओ। देखो, मैंने जो कहा है, सो याद रखना। टॉम पर बहुत हुकूमत मत जताना।"

 एडाल्फ के चले जाने पर सेंटक्लेयर ने अपनी अपनी स्त्री को बुलाकर कहा - "प्यारी, जरा इधर आओ।"

 मेरी - "रहने दो अपना यह बनावटी प्यार। तुम्हें यहाँ से गए पंद्रह दिन से ज्यादा हो गए, बीच में कभी खोज-खबर भी ली कि मैं मरती हूँ कि जीती हूँ।"

 सेंटक्लेयर - "क्या इन पंद्रह दिनों में मैंने तुम्हें पत्र नहीं लिखा?"

 मेरी - "बस, वही दो लाइनों का कार्ड। ऐसी चिट्ठियाँ तो नौकरों को लिखी जाती हैं। इतने दिनों में बस दो लाइनों का एक कार्ड मिला था।"

 सेंटक्लेयर - "डाक निकलने ही वाली थी, इससे जल्दी में कार्ड लिखकर डाल दिया था। अब उस बीती बात पर झगड़ने से क्या लाभ है? देखो, यह फोटो देखो। मैं इवा का हाथ पकड़े खड़ा था। क्यों, तस्वीर अच्छी आई है या नहीं?"

 मेरी - "यों हाथ पकड़कर क्यों खड़े हुए? कोई लड़की का हाथ इस तरह पकड़कर खड़ा होता है?"

 सेंटक्लेयर - "खैर, मान लो खड़े होने का ढंग बुरा था, पर देखो, तस्वीर अच्छी आई है या नहीं?"

 मेरी - "मेरी राय से तुम्हें क्या लेना-देना! तुम्हें क्या मेरी राय कभी पसंद आती है?"

 इतना कहकर मेरी ने तस्वीर उठाकर सिरहाने पटक दी। सेंटक्लेयर मन-ही-मन कहने लगा - "पापिनी का मन किसी तरह नहीं भरता। चूल्हे में जाए ऐसी स्त्री। (प्रकट रूप में) अच्छा, बोलो, तस्वीर अच्छी आई है या नहीं?"

 मेरी - "सेंटक्लेयर, मुझे परेशान न करो। तुम्हें अक्ल तो कुछ है नहीं। तुम मेरा दु:ख नहीं समझते। मैं इधर तीन दिन में बड़ी कमजोर हो गई हूँ। मुझे हल्ला-गुल्ला बिलकुल नहीं सुहाता। घर में तुम्हारे आने से मानो बाजार-सा लग गया है। मेरा दम निकल जाता है। सिर-दर्द के मारे मरी जाती हूँ।"

 मिस अफिलिया अभी तक बिलकुल चुपचाप बैठी थी। सिर-दर्द की बात सुनकर उसे बातें करने का मौका मिला। वह बोली - "क्या यों ही बराबर आपको सिर-दर्द सताया करता है? मैं समझती हूँ, आप सवेरे उठते ही यदि चिरायते का काढ़ा पीएँ तो आपको कुछ आराम हो सकता है। इब्राहिम साहब की स्त्री इन सब रोगों की खूब दवाइयाँ जानती हैं। उनसे मैंने सुना कि इस रोग के लिए चिरायते का काढ़ा बड़ा गुणकारी है।"

 यह सुनकर सेंटक्लेयर ने कहा - "तो कल ही मैं एक बोतल चिरायते का अर्क ला दूँगा। अच्छा, दीदी, अब तुम अपने कमरे में जाकर कपड़े बदल डालो।"

 मामी को बुलाकर कहा - "अफिलिया बहन के लिए जो कमरा ठीक की हो वह बता दो। देखो, बहन को किसी तरह की तकलीफ न होने पाए। बहुत अच्छी तरह से इसकी सेवा करना।"

18. गुलामी का समर्थन!

आज रविवार है। मेरी इन दिनों मन गढ़ंत रोगों से सदा खाट पर पड़ी रहने पर भी हर रविवार को गिर्जा अवश्‍य जाया करती थी। इससे गिर्जे के पादरी साहब मेरी की बड़ी तारीफ किया करते थे। वह मेरी की तारीफ में सदा कहा करते - "स्त्रियों में मैडम सेंटक्‍लेयर आदर्श-धर्मपालिका है। रोग, शोक, आँधी, पानी चाहे जो हो, वह गिर्जा जाने से नहीं चूकती। उसकी प्रबल धर्म-तृष्‍णा रविवार के दिन उसके दुर्बल शरीर में बिजली की तरह बल भर देती है।"

रविवार को मणि-मुक्‍ता खचित बड़े सुंदर कपड़े पहनकर मेरी गिर्जा जाने की तैयारी करने लगी। उसका यह स्‍वभाव था कि गिर्जा जानेवाले दिन यदि कोई दास या दासी उसके कपड़े लाने में विलंब कर देती, तो वह कोड़ों की मार से उसकी पीठ लाल करके मानती। उस समय उसके हाथ मशीन की तरह चलते थे। बाहर गाड़ी खड़ी हुई है। अफिलिया और इवा को साथ लिए हुए मेरी कमरे से उतर रही थी। बीच ही में मामी मिल गई, इवा उससे बातें करने लगी। मेरी और अफिलिया गाड़ी में जा बैठी। इवा को देर करते देखकर मेरी उसे बार-बार पुकारने लगी। मामी के साथ इवा की बातें सुन लीजिए:

इवा - "मामी, मैं जानती हूँ, तुम्‍हारे सिर में बड़ी भयानक पीड़ा है।"

मामी - "मिस इवा, ईश्‍वर तुम्‍हें सुखी करें। मेरे सिर में बड़ा दर्द होता है, पर तुम इसके लिए रंज मत करो।"

इवा - "मामी, आज तुम्हें गिर्जा जाने की छुट्टी मिल गई, यह जानकर मुझे बड़ी खुशी हुई।" यह कहकर उसने मामी के गले में हाथ डाल दिया। फिर बोली - "मामी, तुम मेरी यह नासदानी ले लो, इसके सूँघने से तुम्‍हारे सिर का दर्द मिट जाएगा।"

मामी - "नहीं बच्‍ची, मैं तुम्‍हारी यह सोने की सुंदर नासदानी लेकर क्‍या करूँगी? मेरे पास क्‍या यह अच्‍छी लगेगी? मैं इसे हर्गिज नहीं लूँगी।"

इवा - "मामी, तुमको इससे बहुत फायदा होगा, और मेरे पास यह बेमतलब पड़ी हुई है। माँ सिरदर्द के लिए इसे सदा काम में लाया करती थीं। और तुम्‍हें भी यह लाभ पहुँचाएगी। मेरी प्रसन्‍नता के लिए तुम्‍हें अवश्‍य लेनी पड़ेगी।"

इतना कहकर मामी की चोली में नासदानी डालकर और उसे चूमते हुए इवा अपनी माँ के पास भाग गई।

उसकी माँ ने बड़े क्रोध से पूछा - "इतनी देर कहाँ खड़ी रही?"

इवा - "मैं मामी को अपनी नासदानी देने को ठहर गई थी। मैंने वह नासदानी उसे दे दी।"

मेरी बहुत बिगड़कर बड़ी अधीरता से बोली - "इवा, वह अपनी सोने की नासदानी मामी को दे दी। कब तुझे अक्‍ल आएगी। जा और उसे अभी लौटा ला।"

इवा की आँखें नीची हो गई। उसे बड़ा दुख हुआ। वह धीरे-धीरे लौटी। सेंटक्‍लेयर वहीं मौजूद था। उसने कहा - "मेरी, मैं कहता हूँ, इवा को अपनी इच्‍छानुसार कार्य करने दो। वह जो करे, उसे कर लेने दो।"

मेरी - "सेंटक्‍लेयर, संसार में उसका कैसे बेड़ा पार होगा?"

सेंटक्लेयर - "सो तो ईश्‍वर जानता है। पर स्‍वर्ग में वह मुझसे और तुमसे अच्‍छी रहेगी।"

इस पर इवा ने धीरे से सेंटक्‍लेयर के कान में कहा - "आह बाबा, ऐसा मत कहो। इससे माँ को बड़ी वेदना होती है।"

मिस अफिलिया ने सेंटक्‍लेयर की ओर घूमकर कहा - "क्‍यों, भैया तुम भी गिर्जा चलते हो?"

सेंटक्लेयर - "इस प्रश्‍न के लिए तुम्‍हें धन्‍यवाद। मैं नहीं जाऊँगा।"

मेरी - "मैं बहुत चाहती हूँ कि सेंटक्‍लेयर मेरे साथ गिर्जे जाया करें। पर उनका हृदय बिल्‍कुल धर्म-हीन है। वास्‍तव में यह बड़े खेद की बात है।"

सेंटक्लेयर - "मैं तुम लोगों के गिर्जा जाने का मतलब खूब जानता हूँ। लोगों में वाहवाही लूटने और धार्मिक कहलाने की इच्‍छा से तुम गिर्जा जाती हो। यदि मैं कभी गिर्जा गया भी तो उसी गिर्जे में जाऊँगा, जहाँ मामी जाती है। कम-से-कम उस गिर्जे में जाकर सोने की गुंजाइश तो नहीं रहती।"

मेरी - "ओफ, मेथोडिस्‍टों का गिर्जा? बड़ा भयंकर है। वहाँ के गुलगपाड़े की भी कोई हद है। वहाँ के पादरी कितना शोर मचाते हैं।"

सेंटक्लेयर - "पर तुम्‍हारे उस सूने मरुभूमि सरीखे गिर्जे से तो वह कहीं अच्‍छा है।"

फिर इवा से पूछा - "बेटी, तू भी क्‍या गिर्जा जाती है? आओ, यहीं घर रहो, हम दोनों खेलेंगे।"

इवा - "बाबा, मैं भी गिर्जा जाऊँगी।"

सेंटक्लेयर - "क्‍या वहाँ बैठे-बैठे तेरा जी नहीं घबराता?"

इवा - "हाँ, कुछ-कुछ घबराता है और कभी-कभी नींद भी आने लगती है, पर मैं जागते रहने की चेष्‍टा किया करती हूँ।"

सेंटक्लेयर - "तब वहाँ क्‍यों जाती है?"

इवा - "बाबा, बुआ कहती है कि हमें ईश्‍वर की प्रार्थना करनी चाहिए। वह हम लोगों को बहुत प्‍यार करते हैं। वही हम लोगों को सब-कुछ देते हैं। गिर्जे में ईश्‍वर की प्रार्थना के समय जी नहीं घबराता, केवल पादरी साहब के प्रवचन के समय ऊँघ आने लगती है।"

कन्‍या की बात सुनकर और उसका सरल विश्‍वास देखकर सेंटक्‍लेयर बहुत प्रसन्‍न हुआ। उसने कन्‍या का मुँह चूमकर कहा - "जाओ बेटी, जाओ! मेरे लिए भी ईश्‍वर से प्रार्थना करना।"

इवा - "वह तो मैं सदा से करती हूँ।"

यह कहकर वह गाड़ी पर अपनी माँ के पास बैठ गई। सेंटक्‍लेयर ने पायदान पर खड़े होकर उसका हाथ चूमा। फिर गाड़ी गिर्जे की ओर चली गई। सेंटक्‍लेयर की आँखों से हर्ष के आँसू बहने लगे। वह मन-ही-मन बोला - "इवान्‍जेलिन, तुमने अपने इवान्‍जेलिन नाम को सार्थक किया। तुम मेरे लिए वास्‍तव में एक इवान्‍जेलिन (स्‍वर्गीय बाला) हो।"

गाड़ी में मेरी इवा को समझाने लगी - "इवा, देख, नौकरों पर दया दिखाना मुनासिब जरूर है, पर यह ठीक नहीं कि उनसे अपने बराबर अथवा संबंधियों का-सा व्‍यवहार किया जाए। मान ले, आज अगर मामी बीमार पड़ जाए तो तू क्‍या उसे अपने बिछौने पर लेटने देगी?"

इवा - "हाँ, यह तो बड़ा अच्‍छा होगा, क्‍योंकि मेरे बिछौने पर रहने से मैं बड़े आराम से उसकी दवा तथा पथ्‍य-पानी की खबर रख सकूँगी। मेरा बिस्‍तर मामी के बिस्‍तर से अच्‍छा और नरम है, उस पर उसे अच्‍छी नींद आएगी।"

इवा का यह उत्तर सुनकर मेरी अपने भाग्‍य को कोसने लगी। बोली - "मैं इसे कैसे समझाऊँ? मैंने क्‍या कहा और यह क्‍या समझी।"

अफिलिया - "तुम्‍हारी बात को इसने कुछ नहीं समझा।"

इवा कुछ देर तो उदास-सी दिखलाई दी, पर सौभाग्‍य से बच्‍चों के मन पर किसी बात का प्रभाव देर तक नहीं रहता। इससे जरा-सी देर में गाड़ी की खिड़की से इधर-उधर की चीजें देखकर उसका मन बदल गया और वह फिर पूर्ववत प्रफुल्लित हो गई।

ये लोग जब गिर्जे से लौटे और सब लोग भोजन करने बैठे, तब सेंटक्‍लेयर ने मेरी से पूछा - "कहो, आज गिर्जे में किस विषय पर प्रवचन हुआ?"

मेरी - "आज पादरी साहब का धर्मोपदेश बड़ा ही हृदयग्राही था। यह उपदेश सुनने लायक था। वह बिल्‍कुल मेरे मत से मिलता हुआ था।"

सेंटक्लेयर - "तो मैं समझता हूँ, आज का उपदेश किसी गंभीर विषय पर हुआ होगा?"

मेरी - "हहं, सामाजिक बातें और ऐसे विषयों पर जो मेरा मत है, बस उसी से मेरा मतलब है। पादरी साहब ने बताया कि ईश्वर हर चीज को उपयुक्‍त समय पर प्रस्‍फुटित करते हैं। बाइबिल के वचन की उन्‍होंने व्‍याख्‍या की। अपनी व्‍याख्‍या में उन्‍होंने बड़ी स्‍पष्‍टता से बताया कि ईश्‍वर ने ही दुनिया में दरिद्र और धनी दोनों बनाए हैं। इसलिए इस बात को मानना चाहिए कि संसार में ऊँच-नीच का भेद-भाव ईश्‍वर का बनाया हुआ है। उसकी इच्‍छा से कुछ आदमी प्रभुत्‍व करने को और कुछ उनकी गुलामी करने को पैदा हुए हैं।" पादरी साहब ने अकाट्य युक्तियों द्वारा इस विषय पर बड़ी खूबी के साथ प्रतिपादन करते हुए कहा - "जो लोग गुलामी की चाल की बुराइयाँ दिखलाकर उसके विरुद्ध शोर मचाते हैं, वे भूलते हैं। वे ईश्‍वर की शासन-प्रणाली को बिल्‍कुल नहीं समझते। उन्‍हें बाइबिल का बिल्‍कुल ज्ञान नहीं है। उन्‍होंने बड़ी अच्‍छी तरह से यह ईश्‍वरीय नियम भी दिखाया कि मनुष्‍यों में विभिन्‍नता सदा रहेगी। कालों को गोरों की सेवा करनी चाहिए। न करेंगे तो उन्‍हें पाप का भागी बनना पड़ेगा। ईश्‍वर जो करते हैं, सबके भले के लिए करते हैं। अत: यह गुलामी की चाल गुलाम और मालिक दोनों के ही भले के लिए है। सेंटक्‍लेयर, तुमने आज का उपदेश सुना होता तो बहुत-कुछ सीखते।"

सेंटक्लेयर - "मुझे उपदेशों की आवश्‍यकता नहीं है। मुझे यहीं बैठे-बैठे चुरुट पीते हुए विचार करने में बड़ी शांति मिलती है। तुम्‍हारे गिर्जे में तो चुरुट पीने की मुमानियत है, यह बड़ी आफत है।"

मिस अफिलिया - "क्‍यों? क्‍या तुम इन विचारों से सहमत नहीं हो?"

सेंटक्लेयर - "कौन, मैं? मैं ऐसे विषयों में धार्मिक विचारों की जरा भी परवा नहीं करता। मैं ऐसे धर्म से कोई वास्‍ता नहीं रखता। यदि मुझे इस गुलामी-प्रथा पर कुछ कहना पड़े तो मैं साफ कहूँगा कि हम लोग अपने लाभ की दृष्टि से ही इसका समर्थन करते हैं। हमें आराम है, इससे इसका रहना बहुत आवश्‍यक और उचित है। दासों के बिना काम नहीं चलता, बिना मेहनत-मशक्‍कत के धन की गठरी हाथ नहीं आती, इससे दासता की प्रथा को हम नहीं हटाना चाहते।"

मेरी - "अगस्टिन, मैं समझती हूँ कि धर्म पर तुम्‍हारी तनिक भी श्रद्धा नहीं है। तुम्‍हारी बातें सुनकर हृदय काँपता है।"

सेंटक्लेयर - "हृदय काँपता है! सच है, पर मैं तो सच्‍ची-सच्‍ची कहना जानता हूँ। ये सब अपने मतलब की बातें हैं। अच्‍छा, पादरी लोग कहते हैं कि दास-प्रथा ईश्‍वर की इच्‍छा से है और इसकी जरूरत है, इसी से इसकी उत्‍पत्ति हुई है। ठीक है, मुझे भी पादरी साहब से एक चीज की व्‍यवस्‍था लेनी है। जब मैं किसी दिन ताश खेलने में अधिक रात तक जागता रहता हूँ तो मुझे ब्रांडी पीने की जरूरत पड़ती है। पादरी साहब बतावें कि जब ब्रांडी पीने की जरूरत पड़ती है तब वह जरूरत भी ईश्‍वर ही की बनाई हुई है, इसी लिए ब्रांडी क्‍यों नहीं पीनी चाहिए? फिर पादरी साहब कहते हैं कि सब चीजों का उपयुक्‍त समय होता है, उपयुक्‍त समय पर सभी चीजें अच्‍छी होती हैं। मेरी समझ में ब्रांडी पीने के लिए संध्‍या का समय ही बड़ा उपयुक्‍त होता है। संध्‍या और ब्रांडी दोनों ही ईश्‍वर की बनाई हुई चीजें है। दोनों में जब इतना मेल है तब मैं समझता हूँ कि पादरी साहब जरूर ब्रांडी पीने की आज्ञा देंगे।"

अफिलिया - "खैर, इन बातों को जाने दो। यह कहो कि तुम दास-प्रथा को उचित समझते हो या अनुचित?"

सेंटक्लेयर - "मैं तो दास-प्रथा की भलाई-बुराई पर कुछ भी नहीं कहना चाहता। यदि मैं इस प्रश्‍न का उत्तर दूँ तो मैं समझता हूँ कि तुम मुझे बहुत कोसोगी। मैं उन आदमियों में से हूँ, जो आप शीशे के घर में बैठकर ढेला फेंके हैं, पर मैं स्‍वयं कभी ऐसा घर नहीं बनाता कि दूसरा उस पर ढेला फेंकें। कहने का मतलब यह है कि मैं स्‍वयं दोषी होते हुए भी दूसरों के दोषों को देखता हूँ, किंतु मैं कभी किसी के सामने अपना मत नहीं प्रकट करता कि जिसमें कोई मुझपर दोषारोपण कर सके।"

मेरी - "बस, इनकी सदा ऐसी ही बातें करने की आदत है। तुम्‍हें इनसे किसी बात का ठीक उत्तर नहीं मिलेगा। सच तो यह है कि धर्म से इनका कुछ वास्‍ता नहीं है। जिसका धर्म पर प्रेम होगा, वह क्‍या कभी ऐसी बातें मुँह से निकाल सकता है?"

सेंटक्लेयर - "धर्म! देख लिया तुम्‍हारा धर्म! क्‍या तुम लोग सचमुच गिर्जे में धर्म की बातें सुनने जाती हो? समाज-प्रचलित स्‍वार्थपरता का तथा मनुष्‍य के अभ्‍यस्‍त पापों का बाइबिल से जोड़-तोड़ बिठाना ही हमारे देश का ईसाई धर्म है! देश में फैले हुए किसी भी अत्‍याचार या अन्‍याय को बाइबिल में लिखा बता दिया कि वह धर्म का भाग बन गया, तुम लोग मनुष्‍य के पापों को धर्म का रूप देने की फिक्र करते हो, पर मैं जब धर्म की ओर दृष्टि डालता हूँ तो धर्म को अपने से ऊपर ही, न कि नीचे देखता हूँ। मैं अपने पापों को कभी धर्म का जामा पहनाने की चेष्‍टा नहीं करता। जो पाप है, वह पाप ही रहेगा, चाहे तुम करती हो चाहे मैं, उसे बाइबिल से लाख बार सिद्ध करने की चेष्‍टा करो, तो भी वह कभी पुण्य नहीं हो सकता।"

अफिलिया - "तो तुम विश्‍वास नहीं करते कि गुलामी की प्रथा बाइबिल की रूह से ठीक है?"

सेंटक्लेयर - "जिस स्‍नेहमयी जननी की प्रतिमूर्ति सदा मेरे हृदय में बसी रहती है, बाइबिल उसकी बड़ी प्‍यारी पुस्‍तक थी। बाइबिल पर उनकी अटल श्रद्धा और भक्ति थी। बाइबिल द्वारा उनका जीवन गठित हुआ था, परंतु दास-प्रथा से उन्‍हें बड़ी घृणा थी। इससे दास-प्रथा बाइबिल से सिद्ध है, इसे मैं कभी नहीं मानता। विचार किया जाए तो क्‍या यूरोप, क्‍या अमरीका और क्‍या अफ्रीका, ऐसा कोई देश न ठहरेगा, जहाँ के मनुष्‍य-समाज में किसी-न-किसी प्रकार की बुराइयाँ घुसी हुई न हों। समाज में फैले हुए नीति-विरुद्ध व्‍यवहारों को बाइबिल से सिद्ध करने में जो लोग अपनी सारी शक्ति खर्च करते हैं और इन्‍हें धर्म-संगत ठहराते हैं, वे लोग सचमुच अपनी गाढ़ी स्‍वार्थपरता के कारण मोह के दलदल में फँसे हुए हैं। दास-प्रथा के बिना सहज में हम लोग धनी नहीं हो सकते, मौज नहीं कर सकते, इसी से अपने सुख के लिए, अपने स्‍वार्थ की दृष्टि से, हम लोग दास-प्रथा को आवश्‍यक बताते हैं। पर जो लोग सच्‍ची बात पर पर्दा डालकर गुलामी के बाइबिल-सम्‍मत होने की पुकार मचाते हैं, मेरी समझ में वे सरासर सत्‍य की हत्‍या करते हैं।"

मेरी - "तुम बड़े नास्तिक हो गए हो!"

सेंटक्लेयर - "यदि आज रूई का चालान रुक जाए और हमारे देश की रूई का भाव एकदम गिर जाए, तो फिर दास-प्रथा की जरूरत न रहेगी। उस समय बाइबिल का अर्थ भी बदल जाएगा। आज बाइबिल के मत से दास-प्रथा उचित है, पर रूई का बाजार मंदा हो जाए तो गुलामों को सीधा अफ्रीका लौटा देना ही ईश्‍वर-वाक्‍य माना जाने लगेगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि रूई के भाव के साथ-साथ बाइबिल का मत भी बदल जाएगा।"

मेरी - "मैं दास-प्रथा को धर्म-विरुद्ध नहीं मानती। ईश्‍वर को धन्‍यवाद है कि मेरे हृदय में तुम्‍हारी भाँति नास्तिकता के भाव नहीं भरे हैं।"

इसी समय हाथ में एक सुंदर फूल लिए हुए इवा वहाँ आई। सेंटक्‍लेयर ने उससे पूछा - "अच्‍छा, इवा, तू बता कि तुझे वारमंट का दास-दासी-शून्‍य अपनी बुआ का घर अच्‍छा लगता है या अपना घर, जहाँ गुलाम भरे पड़े हैं।"

इवा - "निश्‍चय ही अपना ही घर अच्‍छा है।"

सेंटक्लेयर - "वह कैसे?"

इवा - "हमारे घर में बहुत आदमी हैं। वे सब मुझे प्‍यार करते हैं, और मैं उन्‍हें प्‍यार करती हूँ, इसी से हमारा घर अच्‍छा है।"

मेरी - "बस, इसे प्‍यार-ही-प्‍यार की सूझी रहती है। हर घड़ी प्‍यार! ऐसी बेअक्‍ल लड़की तो मैंने कहीं नहीं देखी। कहती है, दास-दासियों को प्‍यार करती हूँ। दास-दासियों से, और प्‍यार!"

इवा - "क्‍यों बाबा, मेरी यह प्‍यार की बात बेजा है?"

सेंटक्लेयर - "संसार इसे बुरी समझता है। यहाँ निस्‍वार्थ प्रेम का कोई पारखी नहीं है। अच्‍छा, तू बता, भोजन के समय से अब तक कहाँ थी?"

इवा - "मैं टॉम के कमरे में थी, उसका गाना सुन रही थी वहीं दीना चाची ने मुझे भोजन दे दिया था।" "

सेंटक्लेयर - "टॉम का गाना सुन रही थी?"

इवा - "हाँ, वह बहुत अच्‍छे गीत गाता है।"

सेंटक्लेयर - "सचमुच?"

इवा - "हाँ-हाँ। और वह मुझे भी अपने गीत सिखाएगा।"

सेंटक्लेयर - "टॉम तुम्‍हें गाना सिखाएगा? गाने के लिए उस्‍ताद तो बड़ा अच्‍छा मिला है।"

इवा - "हाँ-हाँ, वह मुझे अपना गाना सुनाता है। मैं उसे अपनी बाइबिल पढ़कर सुनाती हूँ और वह मुझे उसका अर्थ समझाता है।"

मेरी ने हँसते हुए कहा - "टॉम बाइबिल सिखाएगा! क्‍या मजे की बात है।"

सेंटक्लेयर - "ऐसा मत कहो। धर्म की शिक्षा देने के लिए टॉम मेरी समझ में अवश्‍य उपयुक्‍त आदमी है। धर्म के लिए वह बहुत व्‍याकुल रहता है और उसका हृदय भी बड़ा धार्मिक है। कल मुझे घोड़े की जरूरत थी। इससे मैं धीरे-धीरे उसके कमरे की ओर गया। वहाँ जाकर देखा कि टॉम आँखें बंद किए हुए ईश्‍वर के ध्‍यान में मग्‍न है। मुझे यह जानने की बड़ी उत्‍कंठा हुई कि टॉम कैसे ईश्‍वर की आराधना करता है, पर मैंने अब तक कभी ऐसी सरल प्रार्थना नहीं सुनी थी। बड़ी व्‍याकुलता से उसने ईश्‍वर से मेरे कल्‍याण की प्रार्थना की। उस समय उसका चेहरा देखने से सचमुच पूरा महात्‍मा जान पड़ता था। मैंने बहुतेरे पादरियों के मुँह से प्रार्थना सुनी है, किंतु ऐसी विश्‍वासपूर्ण प्रार्थना कभी नहीं सुनी।"

मेरी - "शायद उसने जान लिया होगा कि तुम सुन रहे हो, इससे तुम्‍हें खुश करने के लिए उसने ढोंग रचा होगा। मैंने पहले भी कई बार उसकी ठग-विद्या की बात सुनी है।"

सेंटक्लेयर - "उसने मेरे मन को संतुष्‍ट करने की कोई बात मुँह से नहीं निकाली। उसने निष्‍कपट मन से ईश्‍वर के सम्‍मुख अपने मनोभाव प्रकट किए। उसने ईश्‍वर से इसी बात की प्रार्थना की कि मुझमें जो दोष हैं, वे दूर हो जाएँ। इससे यह बात मन में नहीं लाई जा सकती कि वह ढोंग करता था।"

अफिलिया - "मैं आशा करती हूँ कि तुम्‍हारे हृदय पर इसका अच्‍छा असर होगा।"

सेंटक्लेयर - "मैं समझता हूँ, तुम्‍हारी और टॉम की राय मेरे विषय में मिलती-जुलती है। अच्‍छा, मैं अपना चरित्र सुधारने की चेष्‍टा करूँगा।"

19. दासता के बंधन तोड़ने का प्रयास

अब हम थोड़ी देर के लिए टॉम से विदा होकर जार्ज, इलाइजा, जिम और उसकी वृद्ध माता का वृत्तांत सुनाते हैं।

संध्‍या का समय निकट है। जार्ज अपने लड़के को गोद में लिए हुए और अपनी स्‍त्री इलाइजा का हाथ अपने हाथ में पकड़े हुए बैठा है। दोनों चिंता-मग्‍न और गंभीर जान पड़ते हैं। उनके गालों पर आँसुओं के चिह्न दीख पड़ते हैं।

जार्ज ने कहा - "हाँ, इलाइजा, मैं जानता हूँ कि तुम जो कहती हो, सब सच है। तुम्‍हारा हृदय स्‍वर्गीय भावों से पूर्ण है। इसके विपरीत, मेरा हृदय बिल्‍कुल शुष्‍क है, लेकिन मैं तुम्‍हारे वचन-पालन की चेष्‍टा करूँगा। मैं तुमसे निश्‍चय कहता हूँ कि स्‍वतंत्र हो जाने पर मैं एक ईसाई का-सा श्रद्धालु हो जाऊँगा। सर्वशक्तिमान ईश्‍वर जानता है कि मैंने कभी अपने मन में बुरे विचारों को स्‍थान नहीं दिया। जब-जब मुझपर घोर अत्‍याचार हुए, तब-तब मैंने उसी का नाम लेकर अपने मन को धीरज दिया। अब मैं सारी पिछली सख्तियों और अत्‍याचारों को मन से भुला दूँगा। अपनी बाइबिल पढूँगा और सज्‍जन बनने की चेष्‍टा करूँगा।"

इलाइजा - "और जब हम कनाडा पहुँच जाएँगे, तब मैं तुम्‍हारी सहायता करूँगी। मैं बहुत अच्‍छे कपड़े सीना जानती हूँ। मैं बढ़िया धुलाई और इस्‍तरी का काम भी कर सकती हूँ। हम दोनों वहाँ कुछ-न-कुछ करके अपना जीवन-निर्वाह कर लेंगे।"

जार्ज - "हाँ, इलाइजा, मुझे पेट की इतनी चिंता नहीं है। इस बच्‍चे को और तुम्‍हें साथ लेकर जहाँ-कहीं रहूँगा, वहीं मेरे लिए स्‍वर्ग है। मैं अधिक नहीं चाहता। ईश्‍वर से इतनी ही प्रार्थना है कि तुमसे वियोग न हो। इस बालक को कोई हमसे छीन न सके। सोचने की बात है कि ये नर-पिशाच गोरे माता की गोद से बच्‍चों को छीनकर और पति से स्‍त्री को अलग करके बेच डालते हैं। इससे अभागे गुलामों के हृदयों को कितना कष्‍ट पहुँचता है। मैं ऐसी दशा में यही चाहता हूँ कि तुम पर और इस बच्‍चे पर मेरा अपना कहने का अधिकार हो जाए। इसके सिवा मैं ईश्‍वर से और कुछ नहीं माँगता। मैंने गत पच्‍चीस वर्ष की अवस्‍था तक प्रतिदिन कठिन परिश्रम किया है और उसके लिए कौड़ी भी नहीं पाई। न मेरे रहने के लिए झोपड़ी थी और न अपनी कहने के योग्‍य एक बालिश्‍त जमीन ही। इतने पर भी वे यदि मेरा पिंड छोड़ दें तो मुझे संतोष है। मैं उनका कृतज्ञ रहूँगा। मैं कमाकर तुम्‍हारे मालिक को तुम्‍हारा और अपने इस लड़के का मूल्‍य भेज दूँगा। अपने पुराने मालिक का तो मैं एक कोड़ी का भी कर्जदार नहीं। उसने मुझे जितने में खरीदा था, उससे पाँच गुना उसने मेरे द्वारा वसूल कर लिया। इलाइजा, स्‍वाधीनता बड़ा अमूल्‍य रत्‍न है, पर चिरपराधीन व्‍यक्ति स्‍वाधीनता के सुख को नहीं जान सकता। मिश्री खाए बिना उसका स्‍वाद नहीं जाना जा सकता। इसी भाँति जो सदा से पराधीन है, वह स्‍वाधीनता की महिमा नहीं समझ सकता। इस विपत्ति की दशा में रहते हुए भी मैं तुमसे स्‍वाधीनतापूर्वक बातें कर रहा हूँ, इतने ही से मेरा हृदय आनंद से नाच रहा है। आज स्‍वाधीनता ने मुझमें फिर जान डाल दी है। परमात्‍मा करे, संसार में कोई भी पराधीन न रहे, कोई स्‍वाधीनता के स्‍वाद से वंचित न हो। संसार में किसी जाति को पराधीनता की जंजीर से न जकड़ा रहना पड़े। इलाइजा, पराधीनता की बेड़ी से सर्वथा मुक्‍त हो जाने के लिए मैं बहुत छटपटा रहा हूँ।"

इलाइजा - "पर हम अभी संकट से पार नहीं हुए हैं। अभी कनाडा दूर है।"

जार्ज - "यह सत्‍य है, पर स्‍वाधीनता की वायु मंद-मंद लहराती जान पड़ती है और उसके स्‍पर्श मात्र से मैं सजीव-सा जान पड़ता हूँ।"

इसी समय बाहर किसी के बातचीत करने की आवाज सुनाई दी। तुरंत ही किसी ने दरवाजा खड़खड़ाया। इलाइजा ने जाकर दरवाजा खोल दिया।

बाहर से साइमन हालीडे एक क्‍वेकर-संप्रदाई भाई को साथ लिए हुए अंदर आए। इस दूसरे आदमी का नाम साइमन हालीडे ने फीनियस बताया। फीनियस लंबा-चौड़ा आदमी था। चेहरा देखने से कार्यदक्ष, चालाक और लड़ाका जान पड़ता था। साइमन हालीडे की भाँति इसके मुख पर शांत भाव न था। यह उस ढंग के आदमियों में था जो जितना होते हैं उससे अपने को अधिक समझते और प्रकट करने की कोशिश करते हैं। पर दिल का साफ था।

साइमन हालीडे ने अंदर आकर कहा - "जार्ज, बड़ी आफत है। तुम्‍हें पकड़ने के लिए आदमी तैनात हुए हैं। फीनियस ने उनकी कुछ-कुछ बातें सुनी हैं। अच्‍छा होगा कि इसी के मुँह से सारी बातें सुनो।"

फीनियस ने कहना आरंभ किया - "मेरा सदा से यह मत है कि आदमी को सर्वदा एक कान खुला रखकर सोना चाहिए। उससे बड़ा लाभ होता है। पिछली रात मैं एक होटल में ठहरा था। वहाँ एक कमरे में बिस्‍तर पर पड़ा हुआ था, पर अपने सिद्धांत के अनुसार मैं नींद में ऐसा बेहोश नहीं हो गया था, जैसे कि अक्‍सर लोग हो जाया करते हैं कि कोई उनके सिरहाने का तकिया भी खींच ले जाए तो उन्‍हें पता न लगे। हाँ, तो मुझे मालूम हुआ कि मेरे कमरे के बगलवाले कमरे में बैठे कुछ लोग शराब पी रहे हैं और बातें कर रहे हैं। उनकी बातें सुनने की मुझे उतनी परवा नहीं थी, पर जब मैंने उन्‍हें क्‍वेकर-मंडली का नाम लेते सुना तो मेरे जी में खटका हुआ और मैं ध्‍यान से उनकी बातें सुनने लगा। उनमें से एक ने कहा, 'जरूर वे भगोड़े दास-दासी क्‍वेकरवालों के गाँव में ही छिपे हैं। जल्‍दी चलकर उस नौजवान को गिरफ्तार करना चाहिए। उसे केंटाकी ले चलकर उसके मालिक को सौंपना होगा। उसका मालिक जरूर ही उसे मार डालेगा। उसको ऐसी सजा हो जाने पर फिर गुलाम लोग भागने का दुस्‍साहस नहीं करेंगे। पर उस युवक के लड़के को जिस दास-व्‍यवसायी ने खरीदा था, उसी को दिया जाएगा, खूब माल मिलेगा और उस युवक की स्‍त्री को दक्षिण में बेचकर सहज में सोलह-सत्रह सौ मार लिए जाएँगे। वह स्‍त्री बड़ी सुंदरी है। जिम और उसकी माता को यदि उनके पहले मालिकों के यहाँ ले जाएँ तो वे जरूर हमें खूब इनाम देंगे। उस आदमी की बातों से मुझे यह भी जान पड़ा कि उनके साथ पुलिस के दो सिपाही भी हैं और तुम लोगों की गिरफ्तारी के लिए उनके पास वारंट है। इनमें से एक जो नाटा है, वह जरूर वकील है, क्‍योंकि बड़ी कानूनी बातें बनाता है। उसने निश्‍चय किया है कि वह अदालत में जाकर झूठमूठ कह देगा कि इलाइजा उसी की खरीदी हुई दासी है। फिर उसकी बात पर जब इलाइजा उसकी हो जाएगी तब वह उसे दक्षिण में ले जाकर बेच डालेगा। पुलिस के सिपाहियों के सिवा उनके साथ और भी कई आदमी हैं। मैं बड़ी तेजी से यहाँ आया हूँ। मैं समझता हूँ कि वह सवेरे सात या ज्‍यादा-से-ज्‍यादा आठ बजते-बजते यहाँ पहुँच जाएँगे। इसलिए अब जो करना हो, जल्‍दी किया जाए।"

इस वार्तालाप के उपरांत यह मंडली जिस विचित्र ढंग से खड़ी थी, वह दृश्‍य चित्र लेने योग्‍य था। हालीडे के चेहरे पर काफी चिंता छा गई थी। फीनियस भी बड़ी गहरी चिंता में मग्‍न जान पड़ता था। इलाइजा अपने स्वामी के गले में हाथ डाले खड़ी हुई उसकी ओर देख रही थी। जार्ज की आँखों में सुर्खी छा गई थी। उसकी ऐसी दशा हो गई थी, मानो उसकी आँखों के सामने उसकी स्‍त्री की नीलामी हो रही हो और उसका लड़का किसी दास-व्‍यवसायी को बेचा जा रहा हो।

इलाइजा बड़ी दीनता से बोली - "जार्ज, अब क्‍या उपाय होगा?"

"मैं उपाय जानता हूँ।" - यह कहकर जार्ज कोठरी के अंदर गया और अपनी पिस्‍तौल लाकर बोला - "जब तक मेरे हाथ में पिस्‍तौल है, किसी का कुछ डर नहीं। जब तक मुझ में जान है, कोई गोरा तुम्‍हारा बाल बाँका नहीं कर सकता।"

साइमन हालीडे ने एक ठंडी साँस लेते हुए उससे कहा - "मैं तुमसे प्रार्थना करता हूँ कि ऐसा मत करना।"

इस पर जार्ज ने साइमन से कहा - "महाशय, आपने पिता की भाँति हम लोगों को शरण दी है, इसके लिए हम सब आपके कृतज्ञ हैं, परंतु यदि पकड़नेवालों से यहाँ हम लोगों का किसी प्रकार का झगड़ा हो गया तो देश-प्रचलित घृणित कानून के अनुसार आपको भी दंड-भागी होना पड़ेगा। इसलिए मैं चाहता हूँ कि आगे जाकर पकड़नेवालों से मुकाबला हो, जिससे आप पर किसी तरह की आपत्ति आने का अंदेशा न रहे। पकड़नेवालों से भेंट होने पर हम उनके छक्‍के छुड़ा देंगे। उन स्‍वार्थी, नर-पिशाच, विवेकहीन गोरों के खून की नदी बहा देंगे। जिसमें दैत्‍य का-सा बल है, वह बड़ा साहसी तथा मरने-मारने को सदा तैयार है। मुझे भी किसी का भय नहीं है।"

फीनियस अब तक खड़ा बातें सुन रहा था। उसने कहा - "हाँ, भाई, तुम बहुत ठीक कहते हो। पर तुम्‍हें एक गाड़ी हाँकनेवाले की तो जरूरत पड़ेगी ही, क्‍योंकि तुम्‍हें तो रास्‍ता मालूम नहीं। मैं तुम्‍हारे साथ चलूँगा।"

जार्ज- "पर मैं नहीं चाहता कि तुम इस आफत में पड़ो।"

फीनियस - (आश्‍चर्य से) "आफत! जब आफत आए तो जरा कृपा करके मुझसे भी उसकी जान-पहचान करा देना।"

साइमन ने कहा - "फीनियस बड़ा साहसी और बुद्धिमान आदमी है। वह जी-जान से तुम लोगों की रक्षा करेगा। जार्ज, इतनी जल्‍दबाजी की जरूरत नहीं है। जरा धीरज से काम लो, युवकों का खून बहुत जल्‍दी उबल उठता है।"

जार्ज - "मैं पहले किसी पर आक्रमण नहीं करूँगा। मैं उनसे केवल इतना ही कहूँगा कि वह मुझे इस देश से जाने दें और मैं शांतिपूर्वक चला जाऊँगा। हाँ, यदि उन्‍होंने मेरे कार्य में किसी प्रकार की बाधा डाली तो वे हैं और यह पिस्‍तौल, मैं बिना उनकी जान लिए नहीं छोडूँगा। उनकी जान लेने पर उस दु:ख की शांति हो जाएगी, जो माता और बहन का वियोग होने से मुझे हरदम सताया करता है।" माता और बहन का स्‍मरण होते ही उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह निकली। उमड़े हुए शोक से उसका गला भर आया। वह अस्‍फुट-स्‍वर में कहने लगा - "बीती बात याद करके मेरा कलेजा फटा जाता है। मेरी एक बड़ी बहन थी। उसे मेरे नीच मालिक ने दक्षिण में बेच डाला। अब स्‍त्री और पुत्र से अलग करके मेरी दुर्दशा करना चाहता है। जब ईश्‍वर ने मुझे स्‍त्री-पुत्र की रक्षा के लिए ये दो दृढ़ भुजाएँ दी हैं तब यदि मैं उनके लिए इनका उपयोग न करूँ, तो ये व्‍यर्थ हैं। मैं निश्‍चय के साथ कहता हूँ कि मेरी देह में प्राण रहते मेरी स्‍त्री और पुत्र को कोई मुझसे अलग नहीं कर सकता। क्‍या आप इस आचरण के लिए मुझे दोषी कहेंगे?"

साइमन - "कभी नहीं! इन स्‍वार्थी नर-पिशाच गोरों के सिवा और कोई तुम्‍हारे इस आचरण को बुरा नहीं कह सकता। दुर्बल से दुर्बल आदमी भी इतना अत्‍याचार सहन नहीं कर सकता। धिक्‍कार है इस पाप और अत्‍याचार-पूर्ण संसार को! पर उससे अधिक धिक्‍कार है उन पाखंडियों को, जिनकी स्‍वार्थपरता और अर्थ-तृष्‍णा के कारण इस संसार में पाप और अत्‍याचार फैला हुआ है।"

फीनियस अब तक खामोश बैठा हुआ था। साइमन की बात समाप्‍त होने पर वह बोला - "भाई जार्ज, ईश्‍वर ने मेरी इन दो भुजाओं में भी कुछ बल दिया है। मित्र, मुझे विश्‍वास है कि काम पड़ने पर ये भुजाएँ तुम्‍हारे लिए इस शरीर से अलग हो जाने को भी तैयार रहेंगी।"

साइमन ने कहा - "फीनियस, जार्ज पर जैसे-जैसे अत्‍याचार हुए हैं, उससे उसके मन में बदला चुकाने की प्रवृत्ति का आना स्‍वाभाविक है, लेकिन तुम तो शांत रहो। हाँ, सताए हुए अपने भाई-बंधुओं की सहायता के लिए सदा प्राण देने को प्रस्‍तुत अवश्‍य रहना चाहिए और अत्‍याचार के विरुद्ध इसी प्रकार कटिबद्ध रहना ठीक है। पर अब तो नेताओं ने इस विषय में इससे बहुत अच्‍छे मार्ग का अनुसरण करने की सलाह दी है। उनका कहना है कि मनुष्‍य को कोई कार्य क्रोधांध अवस्‍था में नहीं करना चाहिए। क्रोध और द्वेष दोनों मन के विकार हैं। अत्‍याचार को दूर करने के लिए इन दोनों शत्रुओं के वश में होकर कोई काम करना उचित नहीं है। क्रोध के समय मनुष्‍य को भले-बुरे का ज्ञान नहीं रहता है। अतः कुछ सोचना हो, करना हो, सब शांति में होना चाहिए। ईश्‍वर से हम लोगों को प्रार्थना करनी चाहिए कि हम भटकने न पाएँ।"

फीनियस पर इस उपदेश का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा, किंतु फिर भी वह अपनी प्रचंड प्रकृति को वश में करने की चेष्‍टा करने लगा। हम पहले कह आए हैं कि फीनियस एक भीम-प्रकृति का मनुष्‍य है, बड़ा संग्राम-प्रिय है, अवसर आने पर वह साक्षात यमराज की भाँति लड़ता है। विपदा किसे कहते हैं, यह तो वह स्‍वप्‍न में भी नहीं सोचता। असल में युद्ध के लिए शारीरिक बल की ही आवश्‍यकता नहीं है बल्कि मा‍नसिक बल भी इसके लिए बहुत जरूरी है। जो मौत के मुँह में जाने से डरता है, वह कायर संग्राम के उपयुक्‍त नहीं। उसे कभी देव-दुर्लभ वीर की पदवी नहीं मिल सकती। वीर की जान हथेली पर रहती है, मौत उसके लिए खेल की वस्‍तु है। फीनियस मृत्‍यु से कभी नहीं डरता था। पहले तो वह और भी आग-बबूला था, किंतु अब कुछ शांत प्रकृति का हो गया है। प्रेम की छूत वज्र-हृदय को भी कोमल बना देती है। क्‍वेकर-संप्रदाय की किसी सुशिक्षिता, सहृदया युवती के प्रेम में फँसने के बाद फीनियस की प्रकृति कुछ ठंडी हो गई है। इसकी परोपकार-वृत्ति बड़ी प्रबल है। दूसरे का भला होता हो तो यह अपनी जान दे सकता है। पर अब पहले का-सा भाव नहीं है। पहले वह बिना सोचे-विचारे, बिना बात की, लड़ाई मोल ले लेता था; किंतु अब अपनी प्‍यारी के शांत मुख कमल का स्‍मरण आते ही फीनियस अपनी दुर्दम्‍य प्रकृति को वश में करने की चेष्‍टा करता है। अब वह सदुपदेश के सम्‍मुख सिर झुकाता है। ज्ञानी और महात्‍माओं के वाक्‍यों पर बड़ी श्रद्धा रखता है।

फीनियस को गरम होते देखकर साइमन की सहधर्मिणी वृद्ध राचेल ने मुस्‍कराकर कहा - "फीनियस किसी काम के लिए कमर कस ले तो किसी की मजाल है कि उसे उसके इरादे से हटा दे लेकिन अब उसका हृदय प्रेम की पवित्र डोर से बँधा हुआ है। इस समय उसका दुर्दम्‍य मन कैदी बना हुआ है।"

राचेल की बात समाप्‍त हो जाने पर जार्ज ने साइमन से कहा - "खैर, आप जो कहते हैं, वह सब भी ठीक है, पर यहाँ से भागने के सिवा बचने की और क्‍या सूरत है? जहाँ तक हो, यहाँ से जल्‍दी ही हट जाना अच्‍छा है।"

इस पर फीनियस ने कहा - "हाँ, यह ठीक है। अभी यहाँ से निकल चलने से फिर पकड़नेवालों की दाल न गलेगी। मैं तो दो घंटा रात रहे ही वहाँ से चल दिया था। वे सब आज सवेरे तुम लोगों की तलाश में निकलेंगे। यहाँ से अभी निकल चलें तो वे हम लोगों से चार कोस पीछे रहेंगे। मैं अभी जाकर माइकल क्रास को बुला लाता हूँ। वह पीछे रहकर पकड़नेवालों का भेद लेता रहेगा। हम लोग कुछ आदमी गाड़ी पर चढ़कर आगे बढ़ चलेंगे।"

फीनियस जब माइकल क्रास को बुलाने चला गया, तब साइमन ने कहा - "जार्ज, फीनियस बड़ा चतुर और कामकाजी आदमी है। तुम इसी की सलाह पर चलना। वह अपनी सामर्थ्‍य भर तुम्‍हारी भलाई करने से नहीं चूकेगा।"

जार्ज - "और तो कुछ नहीं, मुझे इस बात का बड़ा खेद हो रहा है कि कहीं हम लोगों के लिए आपको किसी आफत में न फँसना पड़े।"

साइमन - "हम लोगों के लिए तुम कोई चिंता मत करो। हमने जो कुछ किया है, अपने कर्तव्य के अनुरोध से किया है। कर्तव्य-पालन में हमारे प्राण भी जाएँ तो कोई चिंता नहीं।"

फिर साइमन ने अपनी स्‍त्री की ओर घूमकर कहा - "राचेल, अब शीघ्र ही इन लोगों के खाने-पीने का प्रबंध हो जाना चाहिए। हम अपने घर से इन लोगों को भूखा नहीं जाने देंगे।"

राचेल जब अपने बाल-बच्‍चों को लेकर जल्‍दी-जल्‍दी भोजन बनाने में लगी हुई थी, उसी समय जार्ज और उसकी स्‍त्री अपने छोटे कमरे में एक-दूसरे के गले में बाँहें डाले हुए बैठे कुछ ही देर में होनेवाले अपने वियोग के संबंध में बातें कर रहे थे। उनकी आँखों में आँसू भरे थे।

जार्ज ने कहा - "इलाइजा, जो लोग मित्रों से घिरे हुए हैं, और धन-धान्‍य, गृह तथा अनेकानेक संपत्तियों से पूर्ण हैं, उन्‍हें स्‍त्री-पुत्र का वियोग ऐसा दु:खदायी नहीं होता होगा। उनके सुख के अनेक साधन हैं, पर तुम्‍हारे और इस संतान के सिवा संसार में मेरे लिए तो और कुछ नहीं है। तुमसे ब्‍याह होने के पूर्व इस जगत में मेरी उस दुखियारी माता और बहन के अलावा और कोई प्राणी मुझे प्‍यार की निगाह से देखनेवाला न था। जिस दिन प्रात: काल मेरी बड़ी बहन एमिली को सौदागर खरीदकर ले गया, उस दिन की याद करके मुझे अपार दु:ख होता है। मैं दालान में पड़ा सो रहा था। उस समय उसने रोते हुए आकर मेरा हाथ पकड़कर उठाया और कहा, 'जार्ज, आज तेरी अंतिम हिताकांक्षिणी जा रही है। अभागे बालक, तेरी क्‍या गति होगी?' मैं उठ खड़ा हुआ और उसके गले से लिपटकर रोने-चिल्‍लाने लगा। वह भी बहुत रोई। वे अंतिम स्‍नेह के शब्‍द सुने आज मुझे दस वर्ष हो गए। मेरा हृदय जल-जलकर खाक हो गया। तुम्‍हारे प्रेम से मेरे मुर्दा शरीर में कुछ जान आ गई थी। बीती बातों को भुलाकर मैं नया मनुष्‍य बन गया। इलाइजा, अब मुझे मरना कबूल है, पर मैं उन लोगों को तुझे अपने पास से कदापि न ले जाने दूँगा। मुझे इस जीवन की कोई परवा नहीं है। जीना है तो सुख से, अपने स्‍त्री-पुत्र सहित, नहीं तो इनसे बिछुड़कर जीने में क्‍या आनंद रखा है? यों कुत्ते की मौत मरने की अपेक्षा वीरों की भाँति, अत्‍याचारियों को, जो हमें सताते हैं, उन नर-पिशाच गोरों को मारकर मरना हजार दर्जे अच्‍छा है।"

इलाइजा ने सिसकते हुए कहा - "हे परमात्‍मन् दीनबंधु, हमपर दया करो। हम इतना ही माँगते हैं कि हम सबको इस देश से निर्विघ्‍न पार कर दो।"

जार्ज - "ईश्‍वर की इन अत्‍याचारियों से सहानुभूति है? क्‍या वह इनके अत्‍याचारों को देखता है? वह क्‍यों हम लोगों पर इतना अन्‍याय होने देता है? और वे अत्‍याचारी गोरे हमसे कहते हैं कि बाइबिल में गुलामी लिखी है। वास्‍तव में शक्ति ही सब कुछ है। उनके पास धन है, जन है, वे स्‍वस्‍थ हैं और सब तरह से सुखी हैं। इससे जो चाहते हैं, करते हैं। संसार की बुरी-से-बुरी बात को ये धर्म का फतवा दिला लेते हैं। इनका धर्म केवल ढोंग के सिवा और कुछ नहीं है। क्रिश्चियन कहलाने पर भी इनमें क्रिश्चियन का एक भी गुण नहीं है। जो बेचारे गरीब सच्‍चे क्रिश्चियन हैं, जिनमें ईसा की-सी सहनशीलता है, उन्‍हें ये धूल में लुटाते हैं और ठोकरें लगाते हैं। जहाँ तक बनता है, उन्‍हें सताते हैं। ये उन्‍हें खरीदते हैं और फिर बेचते हैं। उनके जिगर के खून का, उनकी आहों का, और उनके आँसुओं का सौदा करते हैं और ईश्‍वर उन्‍हें इसकी आज्ञा देता है।"

जार्ज की ये बातें सुनकर रसोईघर से साइमन ने पुकारकर कहा - "भाई जार्ज धीरज रखो। मेरी बात सुनो। ईश्‍वर बड़ा न्‍यायी है। सांसारिक माया-मोह में फँसे रहने के कारण हम उसकी लीलाओं को नहीं समझ सकते। तुम यह मत समझो कि जो बड़ा धनी है, ऐश्‍वर्यवान है, और जो बहुत लोगों पर हुकूमत करता है, वह बड़ा सुखी है। धन के नशे में बावले बने हुए विषय-मदांध अत्‍याचारी और दूसरों पर प्रभुता करनेवालों को इस संसार में तनिक भी सुख नहीं मिलता। आठों पहर चौसठ घड़ी उनके हृदय में अशांति की आग जला करती है। यदि तुम्‍हें उनके हृदय की वास्‍तविक स्थिति का पता होता तो तुम यों धन-संपत्ति और ऐश्‍वर्य के लिए ईश्‍वर से शिकायत न करते। तुम नहीं जानते कि अनेक अवसरों पर विपत्ति, दु:ख और दरिद्रता ही मनुष्‍य को पवित्र सुख और शांति प्रदान करती है। ऐश्‍वर्य के मद में मतवाला होकर मनुष्‍य ईश्‍वर को भूल जाता है और अंत में दुर्लभ मानव-जीवन के महत्‍व को खो बैठता है। विपत्ति और संकट मनुष्‍य को बहुधा ईश्‍वर की ओर ले जाते हैं। वह दरिद्रता और वह विपत्ति, जो मनुष्‍य को ईश्‍वर की याद करा दे, उस ऐश्‍वर्य और प्रभुत्‍व से हजार गुनी अच्‍छी है, जो मनुष्‍य को ईश्‍वर का स्‍मरण नहीं होने देती। विश्‍वास और भक्ति की भी क्‍या अनोखी शक्ति है!"

साइमन ने अपने हृदय के गंभीर विश्‍वास के साथ जार्ज को यह उपदेश दिया था। अतः जार्ज के मन पर इसका असर हुआ और उसे इससे शांति मिली। इससे पहले जार्ज ने कितने ही क्रिश्चियन पादरियों के कितने ही उपदेश सुने थे, पर उसके मन पर उनका कोई प्रभाव न पड़ा। इस कान से सुना और उस कान से निकाल दिया। सत्‍य तो यह है कि यदि स्‍वयं उपदेश देनेवाले के मन में विश्‍वास और भक्ति न हो, तो वह चाहे जितना गला फाड़-फाड़कर उपदेश दिया करे, किसी पर उसका कुछ असर नहीं होता। और जो अपने सिद्धांत पर स्‍वयं चलता है, जिसे अपने सिद्धांतों से पूरी लगन है, उसकी बात में, उसके उपदेश में जादू का असर होता है। सच्‍चा उपदेशक अपने विश्‍वास की तस्‍वीर खींचकर रख देता है, क्‍या मजाल कि किसी के हृदय पर उसकी बात का असर न हो। साइमन ऐसे ही आदमियों में थे। उनका जीवन ही परोपकार के निमित्त था। ईश्‍वर पर उनकी अगाध भक्ति और श्रद्धा थी। वह संपूर्ण कार्यों को ईश्‍वर के निमित्त ही करते थे, फिर भला उनके उपदेश का असर जार्ज के हृदय पर क्‍यों न होता! ऐसे परोपकारी के उपदेश तो पत्‍थर को भी मोम बना देते हैं।

फिर राचेल प्रेम से इलाइजा का हाथ पकड़कर उसे भोजन कराने ले गई। वे सब लोग भोजन करने बैठे ही थे कि रूथ वहाँ आ पहुँची। रूथ और इलाइजा के परिचय का उल्‍लेख पहले हो चुका है। रूथ अपने साथ ऊनी मोजे और कुछ भोजन की सामग्री लाई थी। उसे इलाइजा को देकर बोली - "बहन, तुम्‍हारे बच्‍चे के पैर खाली देखकर कई दिन हुए मैंने ये मोजे बना रखे थे। अभी सुना कि तुम लोग यहाँ से चले जाओगे। इसी से जल्‍दी-जल्‍दी में हेरी के लिए मोजे और कुछ खाने को भी बनाकर लाई हूँ। बच्‍चों को हर वक्‍त कुछ-न-कुछ खाने को चाहिए ही।"

इतना कहकर रूथ ने हेरी को गोद में लेकर उसका मुँह चूमा और खाने की चीजें उसकी जेब में डाल दी।

इलाइजा बोली - "बहन, मुझपर तुम बड़ी कृपा करती हो। मैं इसके लिए तुम्‍हारी बड़ी कृतज्ञ हूँ और हृदय से तुम्‍हें धन्‍यवाद देती हूँ।"

राचेल ने कहा - "रूथ, आओ, तुम भी कुछ खा लो।"

रूथ - "नहीं, मैं इस समय ठहर नहीं सकती। मैं लड़के को जान को देकर आई हूँ और चूल्‍हे पर भात चढ़ा आई हूँ। मेरे जरा भी देर करने से जान की बेपरवाही से भात खराब हो जाएगा। और जो बच्‍चा रोया तो पास पड़ी हुई सारी चीनी वह उस लड़के को ही दे देगा। जब-तक वह ऐसा ही करता है।" जान रूथ का स्‍वामी था। इतना कहकर वह इलाइजा और जार्ज से विदा लेकर चली गई।

थोड़ी देर में सब के खा-पी चुकने पर एक बड़ी गाड़ी आई। सब लोग उसी में बैठ गए। फीनियस ने सबको ठीक से बैठा दिया। इलाइजा और जिम की वृद्ध माता गाड़ी के अंदर बैठीं। जिम और जार्ज सामने बैठ गए। फीनियस पीछे बैठा। जार्ज ने जरा मंद पर दृढ़ स्‍वर में पूछा - "जिम, तुम्‍हारी पिस्‍तौल तो ठीक है न!"

जिम - "जी हाँ, सब ठीक है।"

जार्ज - "उन लोगों से भेंट होने पर अवश्‍य तुम उसका उपयोग करोगे?"

जिम - (छाती फुलाकर और एक गहरी साँस ले कर) "इसमें भी क्‍या शक है? तुम क्‍या सोचते हो कि प्राण रहते मैं उन्‍हें अपनी माँ को फिर ले जाने दूँगा?"

गाड़ी चलने की तैयारी होने पर साइमन ने कहा - "मेरे बंधुओ, ईश्‍वर तुम्‍हारी रक्षा करे! तुम लोगों के सकुशल पहुँच जाने की खबर पाकर मुझे बड़ा आनंद होगा।"

इस पर गाड़ी में से सब बोले - "ईश्‍वर आपका भला करे।"

गाड़ी में बातचीत करने का सुभीता न था। एक तो रास्‍ता खराब था, दूसरे पहियों की घड़घड़ाहट भी कम न थी। हेरी अपनी माता की गोद में शीघ्र ही सो गया, पर भय के मारे बुढ़िया और इलाइजा की आँखों में नींद कहाँ! बड़ी दुविधा और उत्‍कंठा में उनका समय बीत रहा था। थोड़ी रात रहे मालूम हुआ कि गाड़ी पाँच-सात कोस निकल आई है। तब धीरे-धीरे उन लोगों की चिंता घटी। इस समय इलाइजा को कुछ तंद्रा-सी आ रही थी। फीनियस सारी रात गाड़ी के पीछे खड़ा रहा। रास्‍ते की थकावट दूर करने के लिए वह रात भर तरह-तरह के गीत गाता रहा।

रात को तीन बजे के करीब पीछे से जार्ज को घोड़ों की टापें सुनाई दीं। जार्ज ने फीनियस को यह बात बताई। उसने भी ध्‍यान से सुना। सुनकर कहा - "मैं समझता हूँ, माइकल होगा, मैं उसके घोड़े की टापों को पहचानता हूँ।" फिर वह सिर उठाकर पीछे घूम कर देखने लगा। एक सवार सरपट घोड़ा दौड़ाए दूर से आता दिखाई दिया।

फीनियस बोला - "हाँ-हाँ, वही तो है।"

जार्ज और जिम दोनों उछलकर गाड़ी से बाहर आ गए। सब चुपचाप खड़े आगंतुक की बाट देख रहे थे। अब वह एक दर्रे से उतर गया, जहाँ से वह उसे देख न सके, पर शीघ्र ही फिर वह उन्‍हें पहाड़ की चोटी पर दिखाई दिया।

फीनियस बोला - "है-है, माइकेल ही है। लो, यह आ गया।"

माइकेल ने पास आकर कहा - "फीनियस, तुम लोग यहाँ तक आ गए?"

फीनियस - "कहो, क्‍या खबर है? वे आ रहे हैं?"

माइकेल - "हाँ, वे पीछे चले आ रहे हैं। दस-बारह हैं। शराब के नशे में चूर हैं, लाल-लाल आँखें हैं। मुझे तो जंगली भेड़िए-जैसे लगते हैं।" ये बातें समाप्‍त हुई थीं कि पीछे से घोड़ों की टापों की खटखट सुनाई देने लगी।

फीनियस गाड़ी से कूद पड़ा। घोड़ों की लगाम जोर से खींचते हुए वह गाड़ी को रास्‍ते से हटाकर एक पहाड़ की तलहटी में ले गया। अब वे सब पीछा करनेवाले साफ-साफ दिखाई देने लगे। इलाइजा चिल्‍लाने लगी और बड़ी दृढ़ता से लड़के को अपनी गोद में चिपका लिया। जिम की वृद्ध माता कहने लगी - "हे भगवान बचाओ, हे भगवान, बचाओ! बचाओ!" जार्ज और जिम पिस्‍तौल तान करके नीचे खड़े हो गए। फीनियस ने सबसे कहा - "तुम लोग सब गाड़ी से उतर आओ और इस चट्टान पर चढ़ जाओ।" माइकेल से कहा कि तुम शीघ्र गाड़ी लेकर आमारिया के घर की ओर चले जाओ और उसे तथा उसके पुत्रों को साथ ले आओ।

फिर फीनियस ने हेरी को इलाइजा की गोद से लेकर अपने कंधे पर चढ़ा लिया और जल्‍दी-जल्‍दी चट्टान पर आगे-आगे चढ़ने लगा। बहुत शीघ्र ये लोग चट्टान पर चढ़ गए। वहाँ पहुँचकर फीनियस बोला - "अब तो तुम लोग रास्‍ते से मेरे गाड़ी हटा लेने और इस चोटी पर चढ़ आने का मतलब समझ गए होगे। यहाँ के सब घाट मेरे जाने हुए हैं। यह चोटी ऐसी है कि यहाँ एक आदमी पिस्‍तौल लेकर खड़ा हो जाए तो सौ आदमियों को हरा सकता है। इस चोटी पर एक साथ दो आदमियों के चढ़ने का रास्‍ता ही नहीं है। जो कोई हिम्‍मत करके आने की कोशिश करेगा, उसी को गोली मारकर गिरा दिया जाएगा।"

जार्ज ने कहा - "ठीक है, मैं तुम्‍हारी चतुराई की प्रशंसा करता हूँ। पर अब तुम बैठ जाओ। हमारा मामला है, जो कुछ बुरा-भला होगा, हम समझें-बूझेंगे, हम लड़-भिड़ लेंगे।"

फीनियस ने हँसकर कहा - "अच्‍छा, तुम अकेले ही लड़ना। यहाँ से लड़ने में कई आदमियों की आवश्‍यकता भी नहीं पड़ेगी। एक आदमी ही काफी होगा। मैं खड़ा-खड़ा तमाशा देखूँगा। देखो, जरा नीचे की ओर देखो, वे सब खड़े-खड़े क्‍या सलाह कर रहे हैं। सब बिल्‍ली की-सी आँखें निकाल रहे हैं। उनके घूरने से ऐसा जान पड़ता है मानो एक ही छलांग में ऊपर आकर हम लोगों को खा लेंगे। अच्‍छा, पहले जरा इनसे पूछा तो जाए कि ये हजरत क्‍यों तशरीफ लाए हैं और क्‍या चाहते हैं? अगर कहें कि तुम लोगों को गिरफ्तार करने आए हैं, तो कह दिया जाए कि सीधी तरह अपना रास्‍ता नापो, नहीं तो सब अपनी जान से हाथ धो बैठोगे। इस बात पर अगर लौट जाएँ तो फिर झगड़ा बढ़ाने की जरूरत नहीं रहेगी।"

पकड़ने को आनेवालों में दो तो पाठकों के पूर्व-परिचित टॉम लोकर और मार्क ही थे। ये दोनों सबसे आगे खड़े थे। उनके पीछे दो सिपाही थे। साथ में और भी कई मतवाले थे। इनमें से एक मतवाले ने कहा - "दादा, लोग अच्‍छी जगह पहुँच गए हैं।"

टॉम लोकर - "यह रहा रास्‍ता। सब इसी रास्‍ते पर चढ़े हैं। मैं भी इसी रास्‍ते चढ़ता हूँ। आज वे नहीं भागने पाएँगे। जल्‍दी में कहीं कूदे तो हड्डियाँ चूर-चूर हो जाएँगी।"

मार्क - "अरे लोकर, जरा सँभलकर आगे बढ़ो। चट्टान की आड़ से किसी ने गोली दागी तो सीधे जहन्‍नुम पहुँचोगे।"

टॉम लोकर - "अहं, तुम्‍हें जब देखो तब जान ही की पड़ी रहती है, मारे डर के मरे जाते हो। क्‍या खतरा है? ये हब्‍शी गुलाम बेचारे क्‍या खाकर गोली चलाएँगे! एक धमकी में ही रोते-रोते नीचे उतर आएँगे।"

मार्क - "क्‍यों, जान की क्‍यों नहीं पड़ी रहेगी। रुपयों के लिए जान दूँगा? जान है तो जहान है। गुलाम समझकर मत भूलो। कभी-कभी ये काले गुलाम ही दैत्‍य की तरह युद्ध करते हैं। एक काला तीन गोरों को जहन्‍नुम की राह दिखा सकता है।"

इसी समय जार्ज ने उनके सामने की एक चोटी पर आकर बड़े धीरे और शांत भाव से स्‍पष्‍ट शब्‍दों में कहा:

"सज्‍जनों, आप लोग कौन हैं? क्‍या चाहते हैं?"

लोकर - "हम लोग भगोड़े गुलामों के एक दल को पकड़ने आए हैं। भगोड़ों के नाम हैं जार्ज हेरिस, इलाइजा और उनका लड़का, तथा जिम सेलडन और उसकी बूढ़ी माँ। हमारे साथ गिरफ्तारी के परवानों सहित पुलिस के कर्मचारी आए हैं। तुम केंटाकी प्रदेश के शेल्‍वी परगने के हेरि साहब के गुलाम जार्ज हेरिस हो न?"

जार्ज - "जी हाँ, मैं ही जार्ज हेरिस हूँ। केंटाकी के एक हेरिस साहब मुझे अपनी संपत्ति समझते हैं, किंतु इस समय स्‍वतंत्र हूँ, परमेश्‍वर के राज्‍य में स्‍वाधीनतापूर्वक विचरता हूँ और मेरी स्‍त्री-पुत्र पर भी मेरे सिवा और किसी का अधिकार नहीं है। जिम और उसकी माता भी यहीं हैं। अपनी रक्षा के लिए हम लोगों के पास शस्‍त्र हैं और जरूरत हुई तो हम लोग उनका उपयोग भी करेंगे। तुम्‍हारी खुशी हो तो ऊपर आओ। पर याद रखो, जो कोई पहले ऊपर चढ़ा, वह हमारी गोली का निशाना बनकर यमपुर की राह नापेगा। उसके बाद फिर जो कोई आएगा, उसकी भी यही गति होगी। और अंत में एक-एक करके सबको जान से हाथ धोना पड़ेगा।"

मार्क बोला - "आओ-आओ, जल्‍दी नीचे उतर आओ, खड़े-खड़े बकवाद मत करो। तुम्‍हारे बोलने की जगह नहीं है। तुम देखते नहीं कि पुलिस-कानून हमारे साथ है। हम लोग कानून से चले हैं, तुम लोगों को पकड़ने का हमें अधिकार है। बहुत चीं-चपड़ न करो, जल्‍दी नीचे उतर आओ।"

जार्ज - "अजी, मैं खूब जानता हूँ कि तुम लोग कानून से चले हो और तुम्‍हारे हाथ में शक्ति है। तुम चाहते हो कि मेरी स्‍त्री को ले जाकर नवअर्लिंस में बेच डालो, मेरे बच्‍चे को बकरी के बच्‍चे की भाँति किसी व्‍यवसायी के कसाईखाने में बेच डालो और जिम तथा उसकी माता को उसके उसी नरपिशाच मालिक को सौंप दो। वहाँ पर वह इस बुढ़िया पर बेंत फटकारेगा और इसी के सामने इसके लड़के की जान लेगा। बस, यही तुम्‍हारा मतलब है। जहन्‍नुम में गया तुम्‍हारा कानून। मैं ऐसे कानून पर लात मारता हूँ, जो केवल गरीबों को सताने और धनिकों को फायदा पहुँचाने के लिए बना हो। लानत है तुम्‍हारे उस कानून पर और उस कानून के अनुसार चलनेवालों और विचार करनेवालों पर। हम इस कानून की जरा भी परवा नहीं करते। और न हम इसे अपना कानून मानते हैं, न तुम्‍हारे मुल्‍क ही को अपना देश समझते हैं। हम लोग यहाँ विस्‍तीर्ण आकाश के नीचे खड़े हुए उतने ही स्‍वाधीन हैं, जितने तुम लोग। हम भी उसी ईश्‍वर के बनाए हुए हैं जिसने तुमको बनाया है। हम मरते दम तक अपनी स्‍वाधीनता के लिए लड़ेगें। हमारा मूल मंत्र है - स्‍वाधीनता या मृत्‍यु।"

उपर्युकत बातों को करते समय जार्ज को बड़ा जोश आ गया। उसका चेहरा बहुत भयंकर हो गया। उसकी आँखों में क्रोध की लाली छा गई, मानो उनसे आग की चिनगारियाँ बरस रही हों। उसके ओठ फड़कने लगे और उसके दाहिना हाथ उठाकर बोलने के समय ऐसा जान पड़ने लगा, मानो वह देश में फैले हुए अत्‍याचार और अन्‍याय के विरुद्ध परमपिता जगदीश्‍वर के सिंहासन के सम्‍मुख अपील करता हुआ न्‍याय का पक्ष समर्थन करता हो। यदि किसी अंग्रेज युवक ने इंग्‍लैंड से अमेरीका को भगाते हुए ऐसी वीरता प्रकट की होती तो इतिहास में स्‍वर्णाक्षरों में उसका नाम लिखा जाता, पर क्रीत दासी के गर्भ से उत्‍पन्‍न गुलाम जार्ज की वीरता को गोरे इतिहास-लेखक कब स्‍वीकार करने लगे?

जार्ज की बातें सुनकर और उसके मुख का विकट भाव देखकर पकड़नेवाले सहम गए। वास्‍तव में कभी-कभी साहस और दृढ़ प्रतिज्ञा बड़े-बड़े बलवानों की छाती भी दहला देती है। मार्क को छोड़कर और सबकी हिम्‍मत जाती रही। अब मार्क ने निशाना ताककर जार्ज पर गोली चलाई। वह मन-ही-मन सोचने लगा कि इसकी लाश इसके मालिक को देकर उससे विज्ञापन में लिखा हुआ इनाम वसूलकर लूँगा।

इधर जार्ज उछलकर पीछे हट गया। इलाइजा चीख उठी। गोली उसके पास से सनसनाती हुई निकल गई। जार्ज ने कहा - "इलाइजा, डरो मत। कोई खतरे की बात नहीं।"

फीनियस ने आगे बढ़कर जार्ज से कहा - "इलाइजा को समझाने-बुझाने का यह समय नहीं है। इन दुष्‍टों का मार्ग बंद करना चाहिए। ये बड़े ही कमीने हैं।"

जार्ज - "जिम, देखो तुम्‍हारी पिस्‍तौल ठीक है? जो कोई पहला आदमी चढ़ने की चेष्‍टा करेगा, उस पर मैं गोली दाग दूँगा। दूसरे को तुम लेना, यही क्रम रहेगा। एक मैं और एक तुम। एक आदमी के लिए दो गोलियाँ बेकार खर्च नहीं की जाएँगी।"

जिम - "अगर तुम्‍हारा निशाना चूक गया तो फिर क्‍या करना होगा?"

जार्ज ने जोश से कहा - "ऐसा नहीं होगा। मेरा निशाना बिल्‍कुल ठीक बैठेगा।"

फीनियस ने मन-ही-मन जार्ज के साहस को सराहा।

मार्क का निशाना चूका देखकर उसका दल सोचने लगा कि अब क्‍या किया जाए!

लोकर बोला - "मैं इन काले हब्शियों से कभी नहीं डरा और न इस समय डरता हूँ।"

इतना कहकर वह पहाड़ पर चढ़ने लगा। और लोग उसके पीछे-पीछे चलने लगे। कुछ दूर जाते ही जार्ज ने लोकर को ताककर गोली मारी, जो उसकी भुजाओं में लगी। किंतु चोट खाकर भी वह लौटा नहीं। पागल सांड की तरह आगे ही बढ़ता गया। तब फीनियस ने कहा - "मित्र, यहाँ तुम्‍हारी जरूरत नहीं, नीचे ही चलो।" यह कहकर उसने उसको धकेल दिया। लोकर एकदम वहाँ से लड़खड़ाता हुआ नीचे गिरा। इतनी ऊँचाई से गिरने पर वह अवश्‍य मर जाता, परंतु बीच में एक पेड़ से अटक जाने के कारण उसके ऊपर से गिरने का वेग कुछ घट गया। इससे वह मरा तो नहीं, पर जख्‍मी होकर बेहोश हो गया।

मार्क - "ईश्‍वर कुशल करे, सब-के-सब साक्षात दैत्‍य हैं। भागो, भागो, लौट चलो।"

अब तक सिपाही देवता चुप थे, पर लौटते समय भागने में वे भी बड़ी तेजी दिखाने लगे। यह उस श्रेणी के व्‍यक्ति थे, जो मारनेवालों के तो पीछे और भागनेवालों के आगे रहते हैं। फिर मार्क ने सिपाहियों को बुलाकर कहा - "भाई, तुम लोग जरा देखना, मैं अभी और सिपाहियों को लेकर आता हूँ।"

इतना कहकर वह घोड़े पर चढ़कर नौ-दो-ग्‍यारह हो गया।

उनमें से एक ने कहा - "क्‍या तुमने कभी ऐसा अधम कीट देखा था? बेईमान अपने ही काम के लिए हम लोगों को लाया और हम लोगों को इस आफत में फँसाकर आप साफ चलता बना। खैर, चलो, उसे बेचारे वीर लोकर की तो खबर ली जाए कि मरता है या जीता।"

लोकर के पास आकर उनमें से एक बोला - "कहो, हम लोगों के साथ चल सकोगे? क्‍या तुम्‍हें चोट ज्‍यादा लगी है?"

लोकर - "क्‍या पता, एक बार मुझे उठाकर तो देखो। यह क्‍वेकर न होता तो मैं और सभी को आनन-फानन में पकड़ लेता।"

फिर दोनों ने किसी तरह सहारा देकर लोकर को घोड़े पर लादा। इधर घोड़े का हिलना था कि वह धड़ाम से जमीन पर आ रहा। यह दशा देखकर दोनों सिपाहियों ने सोचा कि यह तो बड़ी आफत है। इसे लेकर सारी रात मुसीबत में भी कौन फँसे!

यह सोचकर उन दोनों सिपाहियों ने लोकर को उसी दुर्दशा में छोड़कर अपनी-अपनी राह पकड़ी। लोकर मुर्दे की भाँति वहीं पड़ा रहा।

लोकर को छोड़ और सबके चले जाने पर वह दल नीचे उतरा। इधर स्‍टीपन, आमारिया और दूसरे दो क्‍वेकरों को साथ लेकर माइकेल गाड़ी समेत वहाँ पहुँच गया। इलाइजा ने पहाड़ के नीचे आते ही लोकर को देखकर कहा - "देखना चाहिए कि इसमें साँस बाकी है या नहीं? मैं तो भगवान से यही मनाती हूँ कि यह मरा न हो।"

फीनियस - (मुस्‍करा कर) "बुरे काम का नतीजा बुरा ही होता है। लेकिन इसके उन नालायक साथियों को क्‍या कहा जाए, जो इस बेचारे को इस दशा में छोड़कर चल दिए!"

इलाइजा - "यह बेचारा घावों की पीड़ा से छटपटा रहा है। हम लोगों को इसकी सेवा का प्रयत्‍न करना चाहिए।"

जार्ज - "इसकी जीवन-रक्षा का उपाय अवश्‍य किया जाएगा। दुश्‍मन पर दया करना ईसाई धर्म का एक अंग है।"

फीनियस - "मैं इसे लेकर किसी क्‍वेकर के यहाँ रखूँगा। फिर सेवा-शुश्रूषा और दवा-पानी से आराम हो जाने पर इसे इसके घर पहुँचा दूँगा। इसे यों छोड़ चलना बड़ी नीचता का काम होगा। देखो तो, इसकी क्‍या दशा है?"

लोकर के निकट जाकर फीनियस ने उसके शरीर की जाँच की। पहले फीनियस एक नामी शिकारी था। इससे वह घाव की मरहम-पट्टी तथा बहते हुए रक्‍त-प्रवाह को रोक देने की विधि खूब जानता था। वह अपनी जेब से रूमाल निकालकर पट्टी फाड़-फाड़कर लोकर के घावों पर बाँधने लगा। लोकर ने कहा - "मार्क!"

फीनियस हँसकर बोला - "मार्क कहाँ है? वह तो तुम्‍हें छोड़कर भाग गया। सिपाही भी चलते बने। हम लोग अब तक तुम्‍हारे शत्रु थे, पर अब हम लोगों को अपना शुभचिंतक समझो। जहाँ तक हो सकेगा, तुम्‍हारी पीड़ा दूर करने का यत्‍न करेंगे।"

लोकर - "मैं बचता नहीं जान पड़ता। नीच कुत्ते मुझे छोड़कर चले गए। मेरी माँ मुझसे सदा करती थी कि ये साथी विपदा में तेरा साथ न देंगे। उसकी बात आज सच निकली।"

जिम की माता ने कहा - "इसकी माँ है। ओफ, उसे कितना कष्‍ट होगा? हे ईश्‍वर, इसे जीवन-दान दो।"

लोकर ने फीनियस से अपना हाथ झटककर छुड़ा लिया और तेज होने लगा। तब फीनियस ने कहा - "मित्र, जरा धीरज रखो। बहुत लाल-पीले मत पड़ो।"

लोकर बोला - "तुम्‍हीं ने तो मुझे धकेल दिया था।"

फीनियस - "जी हाँ, अगर मैं तुम्‍हें धकेल न देता तो तुम हम सबों को धकेल देते। अब उन बातों को जाने दो। मैं चाहता हूँ कि तुम्‍हारे घावों पर फौरन पट्टी बाँध दी जाए। अब धक्‍का-मुक्‍की का काम नहीं है। अब मैं तुम्‍हारी भलाई ही करूँगा। चलो, तुम्‍हें किसी क्‍वेकर के परिवार में पहुँचा दूँ। वहीं तुम्‍हारी बहुत अच्‍छी सेवा होगी - इतनी अच्‍छी कि शायद तुम्‍हारी माता भी उससे बढ़कर न करती।"

शारीरिक यंत्रणा के कारण लोकर अचेत हो गया। सबने उसे पकड़कर गाड़ी में लिटाया। फिर सब लोग गाड़ी पर बैठे। गाड़ी चल पड़ी। जिम की माँ ने अपनी गोद में लोकर का सिर रख लिया। इलाइजा, जार्ज और जिम सब उसके लिए काफी जगह छोड़कर बैठे।

जार्ज ने फीनियस से पूछा - "आप क्‍या सोचते हैं कि लोकर अवश्‍य बच जाएगा?"

फीनियस - "हाँ, जरूर बच जाएगा। बेहोश तो वह ज्‍यादा खून निकल जाने की वजह से हो गया है। इसमें शक नहीं कि यह बहुत जल्‍दी अच्‍छा हो जाएगा।"

जार्ज - "आपकी बात सुनकर मुझे बड़ा हर्ष हुआ। यद्यपि मैंने अपनी जान बचाने के लिए इस पर गोली चलाई थी, फिर भी यदि मेरे हाथ से इसकी मौत हो जाती तो सदा के लिए मेरे माथे पर इसका कलंक लग जाता। अब कहो, इसका करोगे क्‍या?"

फीनियस बोला - "हमारे क्‍वेकर संप्रदाय में ग्रांडमय स्‍टीफन नाम की एक वृद्ध स्‍त्री है। वह बड़ी दयालु है। इसे उसके यहाँ पहुँचा देने से इसकी खूब सेवा होगी।"

घंटे भर में सब लोग एक साफ-स्‍वच्‍छ घर के सामने पहुँचे। लोकर को सब लोगों ने पकड़कर उतारा और वहाँ उस घर में उसे बहुत अच्‍छे और मुलायम बिस्‍तरे पर लिटा दिया। बड़ी मुस्‍तैदी से उसकी सेवा होने लगी।

20. सच्ची प्रभु-भक्ति

सदाचार और सुशीलता का सभी जगह आदर होता है। जिसके हृदय में धर्मभाव और साधुभाव का राज्‍य है, उसके लिए इस संसार में, किसी दशा में, विपत्ति और कष्‍ट का भय नहीं है। ऐसे आदमी को सभी प्‍यार करते हैं। सचमुच सद्भाव के प्रभाव से पाषाण-हृदय भी नरम पड़ जाता है। दया, उदारता, स्‍नेह, सच्‍चे त्‍याग और नि:स्‍वार्थ प्रेम के सम्‍मुख लोगों का सिर सदा झुका रहता है। इसी से टॉम अपने निष्‍कपट सरल व्‍यवहार के कारण दिन-प्रति-दिन अपने मालिक की आँखों में चढ़ता गया।

रुपए-पैसे के मामले में सेंटक्‍लेयर बड़ा लापरवाह था। वह अपने आय-व्‍यय का कोई लेखा-जोखा नहीं रखता था। उसका एडाल्‍फ नामक गुलाम ही हाट-बाजार तथा खर्च आदि का काम किया करता था। वह भी अपने मालिक के समान लापरवाह आदमी था, बेहिसाब खर्च करता था। पर टॉम के आने पर सेंटक्‍लेयर मौके-मौके से उससे काम लेने लगा। उसकी चतुराई और ईमानदारी देखकर सेंटक्‍लेयर ने शीघ्र ही अपने रुपए-पैसे एवं खर्च का कुल काम उसको सौंप दिया।

अपने हाथ से खर्च का अधिकार निकल जाने के कारण एडाल्‍फ कुछ उदास हुआ और मुँह बनाने लगा। इस पर सेंटक्‍लेयर ने कहा - "नहीं-नहीं, एडाल्‍फ, यह काम तुम टॉम को ही करने दो। तुम केवल खर्च करना जानते हो और टॉम खर्च और आमद, दोनों को समझता है। इस काम के लिए यदि हम किसी ऐसे आदमी को नियत न करें तो यों ही करते-करते एक दिन रुपयों का तोड़ा हो सकता है।"

टॉम सेंटक्‍लेयर का काम बड़ी ही ईमानदारी से करता था। उससे कभी किसी खर्च का हिसाब नहीं पूछा जाता था। वह यदि चाहता तो बेईमानी से बहुत रुपए बना लेता; पर वह अधर्म की कौड़ी लेना महापाप समझता था।

सेंटक्‍लेयर को मालिक जानकर टॉम उसका बड़ा सम्‍मान करता था, पर इस सम्‍मान के भाव में दूसरा ही रंग पकड़ा। टॉम बूढ़ा और सेंटक्‍लेयर नौजवान था। टॉम गंभीर और सेंटक्‍लेयर चंचल-चित्त था। इससे सेंटक्‍लेयर के संबंध में टॉम के हृदय में पितृ-वात्‍सल्‍य का संचार होने लगा। टॉम ने देखा कि सेंटक्‍लेयर का हृदय तो बड़ा दयालु है, किंतु वह न कभी बाइबिल पढ़ता है, न कभी उठते-बैठते ईश्‍वर का भजन ही करता है, न गिर्जे में जाकर कभी ईश्‍वर की वंदना करता है। वह तो सदा हँसी-खुशी में मग्‍न रहता है। थियेटर जाने का उसे शौक है। कभी-कभी अपने जैसे चंचल-चित्तवाले युवकों में बैठकर खूब शराब पीकर पागल बन जाता है। ये बातें देखकर टॉम के मन में बड़ा दु:ख होता था। ऐसा दयालु, सरल-प्रकृति, सहृदय व्‍यक्ति ईश्‍वर से अलग पड़ा है, उपासना-हीन जीवन व्‍यतीत कर रहा है, टॉम के लिए यह बड़े ही कष्‍ट का विषय था। वह नित्‍य अपनी प्रार्थना में ईश्‍वर से विनती करता - "भगवान, इस युवक की मति सुधार दो, उसका हृदय पलट दो! इसके हृदय में धर्म तथा अपनी भक्ति की तृष्‍णा उत्‍पन्‍न कर दो!"

एक दिन की बात है। सेंटक्‍लेयर ने कहीं बहुत अधिक शराब पी ली और बड़ी रात गए गिरता-पड़ता घर आया। उस समय टॉम और एडाल्‍फ ने उसे गाड़ी से उतारकर खाट पर सुलाया। सेंटक्‍लेयर की यह दशा देखकर एडाल्‍फ हँसने लगा। पर टॉम कुछ न बोल सका। उसकी आँखों से आँसू झरने लगे। टॉम का यह भाव देखकर एडाल्‍फ और भी हँसने लगा। किंतु टॉम को उस रात बिल्‍कुल नींद नहीं आई। वह रात भर बैठा-बैठा ईश्‍वर से मालिक के सुधार के लिए प्रार्थना करता रहा। सबेरे सेंटक्‍लेयर ने टॉम को कहीं भेजने के लिए बुलाया। टॉम जब आकर खड़ा हुआ तो उसकी आँखें डबडबाई हुई थीं। उसको कुछ रुपए देकर सेंटक्‍लेयर ने किसी काम के लिए जाने को कहा, किंतु टॉम वहीं खड़ा रहा। तब सेंटक्‍लेयर ने पूछा - "टॉम, मैं कुछ भूल गया हूँ?"

टॉम - "नहीं, मुझे कहते डर लगता है।"

सेंटक्‍लेयर ने हाथ का अखबार मेज पर पटक दिया तथा चाय का प्‍याला भी छोड़ दिया और टॉम की ओर देखने लगा। उसने पूछा - "क्‍यों टॉम, मामला क्‍या है? तुम्‍हारा चेहरा देखकर तो जान पड़ता है, मानो कोई बड़ी भारी विपदा आ पड़ी है।"

टॉम - "प्रभु, मुझे बड़ा दु:ख हो रहा है। मैं समझता था कि मालिक सदा सबके साथ समान व्‍यवहार करते हैं।"

सेंटक्‍लेयर - "तो क्‍या तुम्‍हारा यह खयाल ठीक नहीं उतरा? अब बोलो, तुम क्‍या चाहते हो? मैं समझता हूँ कि तुम कोई चीज चाहते होगे और वह तुम्‍हें नहीं मिली होगी, यह उसी की भूमिका है।"

टॉम - "प्रभु, इस दास पर तो आपकी सदा ही कृपा बनी रहती है। अपने विषय में मुझे आपसे कोई शिकायत नहीं करनी है, किंतु एक आदमी से आपका बर्ताव अच्‍छा नहीं होता?"

सेंटक्‍लेयर - "क्‍यों, मैंने किससे बुरा बर्ताव किया? अपना मतलब खोलकर कहो।"

टॉम - "कल रात की घटना का स्‍मरण करने से मुझे बड़ा खेद होता है। आप सब पर तो दया करते हैं, केवल अपने ऊपर आप बड़े निर्दयी हैं।"

सेंटक्‍लेयर ने मुस्‍कराकर कहा - "ओह, यह बात है!"

टॉम ने सिर झुकाकर बड़ी नम्रता से आँखों में आँसू भरकर, पैरों पर पड़कर कहा - "प्रभु, यही बात थी, जो मैं आपसे कहना चाहता था। मेरे प्‍यारे नवयुवा प्रभु! मुझे भय है कि यह सबकुछ, सबकुछ, शरीर-आत्‍मा का सत्‍यानाश कर देगा। बाइबिल में लिखा है कि यह बला सर्प से भी भयंकर और बुरी है, मेरे प्‍यारे प्रभु!"

टॉम का गला भर आया और उसकी आँखों से आँसुओं की धारा बह चली।

सेंटक्‍लेयर की भी आँखें भर आईं। उसने कहा - "टॉम, उठो। तुम भी कितने नासमझ हो। तुम्‍हें जरा भी अक्‍ल नहीं है। मैं इस योग्‍य नहीं कि मेरे लिए कोई रोए।"

पर टॉम नहीं उठा। वह सेंटक्‍लेयर की ओर इस तरह ताकने लगा, मानो उसके नेत्र विनती कर रहे हों।

टॉम की यह दशा देखकर कोमल-हृदय सेंटक्‍लेयर बोला - "टॉम, लो, मैं आज से प्रतिज्ञा करता हूँ कि फिर कभी इतनी शराब नहीं पीऊँगा। फिर कभी बुरों का साथ नहीं करूँगा। मैं अपने चरित्र से स्वयं घृणा करता हूँ। मैं अपने जीवन को पापमय समझता हूँ। तुम बेफिक्र रहो, मैं अब फिर बुरा काम नहीं करूँगा।"

इतना कहकर सेंटक्‍लेयर ने टॉम का हाथ पकड़कर उसे उठाया।

सेंटक्‍लेयर की प्रतिज्ञा सुनकर टॉम को बड़ा संतोष हुआ और आँखों का पानी पोंछता हुआ चला गया।

टॉम के चले जाने पर सेंटक्‍लेयर कहने लगा कि मैंने आज जो प्रतिज्ञा की है, उसे कभी नहीं तोड़ूँगा।

सचमुच उस दिन से सेंटक्‍लेयर ने मद्यपान छोड़ दिया। वह स्‍वभावतः इंद्रियासक्‍त अथवा कुप्रवृत्ति के अधीन न था। लड़कपन से ही लोग उसे सच्‍चरित्र समझते थे। पर इधर संसार से उसे विराग-सा हो गया था। संसार की टेढ़ी गति देखकर किसी काम में उसका मन न लगता था। उसके जीवन का कोई लक्ष्‍य न था। उसका यह लक्ष्‍य-शून्‍य जीवन घटना-चक्र के अनुसार चलता था। इसी से समय काटने के लिए उसे जब जैसा संग मिलता, वह उसी में रम जाता और हँसी-खुशी मनाता था। महीनों की कौन कहे, लगातार वर्ष-के-वर्ष यों ही बिना कष्‍ट के बीत जाते थे।

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