अंकल केन के पंखवाले दुश्मन (अंग्रेज़ी कहानी) : रस्किन बॉन्ड
Uncle Ken Ke Pankhwale Dushman (English Story in Hindi) : Ruskin Bond
अंकल केन संतुष्ट और अपनी जिंदगी से खुश लग रहे थे। उन्होंने । अभी-अभी किशमिशवाले बन का बड़ा सा टुकड़ा खाया था (जिसमें ढेर सारा मक्खन लगा था और स्ट्रॉबेरी जैम भी भरा हुआ था) और दूसरा टुकड़ा खाने जा ही रहे थे कि अचानक साफ, नीले आसमान से एक बाज नीचे उतरा और उनके हाथ पर झपट्टा मारकर एक ट्रॉफी की तरह बन लेकर उड़ गया।
अंकल केन का समय बहुत खराब चल रहा था। वे सताए जा रहे थे-अपनी बहनों या बाकी दुनिया द्वारा नहीं, बल्कि हमारे परिसर में रहनेवाले पक्षियों द्वारा।
यह सब तब शुरू हुआ जब एक दिन उन्होंने अपनी हवाई गन से शोर मचाते कौओं के एक झुंड पर गोलियाँ चला दीं और उनमें से एक कौआ निष्प्राण होकर बरामदे की सीढ़ियों पर गिर गया।
कौओं ने इस बात के लिए उन्हें कभी माफ नहीं किया।
वे जैसे ही घर से बाहर निकलते, कौए उनपर टूट पड़ते। दसपंद्रह शोर मचाते कौओं का झुंड अपने पंख फड़फड़ाते हुए और चोंचें बाहर निकाले हुए नीचे आता, उनकी हैट गिराता और उनके हाथों पर पंजे मारता। यदि अंकल केन को अहाते से बाहर जाना होता तो वे छिपकर पीछेवाले बरामदे से निकलते, फुरती से अपनी साइकिल पर पहुँच जाते। फिर भी दो या तीन क्रोधित कौए उनका तब तक पीछा करते, जब तक कि वे उनके इलाके से पूरी तरह बाहर न निकल जाते।
यह उत्पीड़न दो-तीन हफ्ते तक चलता रहा और फिर परेशान होकर अंकल केन ने अपना भेस बदल लिया। उन्होंने नकली दाढ़ी लगाई, हिरण के शिकारियों जैसा कैप पहना (जैसा शरलॉक होम्स पहनता था), एक लंबा व काला चोगा पहना (काउंट डैकला की तरह) और दादाजी के घुड़सवारी के पुराने जूते पहने। इस प्रकार सज-धज के वे घर के बाहर चक्कर काटने लगे। उन्हें देखकर दादाजी से मिलने आई दो बुजुर्ग महिलाएँ डर भी गईं। कौए भी उन्हें देखकर चकरा गए और उनके पास नहीं फटके। लेकिन दादी का पालतू कुत्ता क्रेजी उन्हें देखकर जोर-जोर से भौंकने लगा-और उनका चोगा भी उसने अपने दाँतों में दबोच लिया और तब तक नहीं छोडा, जब तक मैं उनकी मदद के लिए नहीं पहुँच गया।
आम का मौसम आने वाला था और हम सब इन गरमियों में अपने बाग के आमों का स्वाद चखने का इंतजार कर रहे थे।
हमारे अहाते में आम के तीन-चार पेड़ थे और अंकल केन उन्हें बंदरों, तोतों, फ्लाइंग फॉक्स (लोमड़ी जैसी शक्लवाला बड़ा सा चमगादड़, जो फल खाकर जीता है) और अन्य फल खानेवाले जीव-जंतुओं से बचाने के प्रति विशेष रूप से चिंतात्र थे। उनका अपना एक प्रिय आम का पेड था, जिसके नीचे वे रोज दोपहर को एक खटिया बिछा लेते और जैसे ही उन्हें कोई पंख या फरवाला घुसपैठिया पेड़ के पास दिखता, वे अपने मुँह में एक छोटी सी तुरही डाल लेते और उसमें से तीखी व चुभनेवाली आवाज निकालते, जो इतनी तेज होती कि सब घरवालों के साथ-साथ पेड़ों के निवासियों को भी चौंका देती।
खैर, तुरही के कुछ कर्णभेदी हमले करने के बाद अंकल केन को झपकी आ जाती और लगभग एक घंटे बाद जब वे उठते तो पेड़ पर रहनेवाले तोते, कबूतर, गिलहरियाँ और अन्य जीव-जंतु उनके ऊपर अपनी लीद से चित्रकारी कर चुके होते। दो-तीन दिन पक्षियों का ये प्रसाद ग्रहण करने के बाद अंकल केन एक बड़ी सी छतरी ले आए. ताकि ऊपर से होनेवाली इस बमबारी से उनका बचाव हो सके।
एक दोपहर को जब वे गहरी नींद में थे (दादाजी की नींद तुरही की आवाज से खराब कर चुकने के बाद) तो दादी ने मेरा हाथ पकड़कर कहा, "तुम अच्छे बच्चे हो न! वहाँ जाकर वह तुरही ले आओ।"
मैंने वही किया, जो मुझसे कहा गया था। मैंने अंकल केन के खर्राटों के बीच उनके हाथ से तुरही सरका ली और दादी को दे दी। मझे पक्का तो नहीं मालूम कि उन्होंने उसके साथ क्या किया, लेकिन कुछ हफ्तों के बाद, जब हमारे घर के बाहर से शादी का एक बैंड गुजरा, जिसमें तरह-तरह के ढोल-नगाड़े बज रहे थे तो मुझे लगा, मैंने अंकल केन की तुरही को पहचान लिया था। एक साँवला, अच्छी शक्लसूरतवाला लड़का पूरी ताकत से उसमें फूंक मार रहा था, लेकिन उसका सुर बाकी सबसे अलग जा रहा था। उस तुरही की शक्ल और आवाज अंकल केन की तुरही जैसी ही लग रही थी।
गरमी का मौसम आया और चला गया और साथ में आम भी चले गए। फिर बरसात आई। हमारे घर के पीछे का तालाब लबालब भर गया और पूरे बरामदे में मेंढक फुदकते हुए दिखाई देने लगे।
एक सुबह दादाजी ने मुझे पीछेवाले बगीचे में बुलाया और फिर मुझे तालाब तक ले गए। वहाँ उन्होंने मुझे दो नए मेहमान दिखाए। रंगबिरंगे सारसों का एक जोड़ा, जो अपनी लंबी टाँगों के सहारे पानी में चल रहा था और अपनी बड़ी सी चोंच से मछलियाँ, मेढक और जो कुछ भी पसंद आ रहा था, झपट रहा था। हमारी उपस्थिति से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ रहा था और हम भी उन्हें उनका काम करते देखकर संतुष्ट थे।
लेकिन अंकल केन को तो वहाँ जाकर कोई बखेड़ा खड़ा करना ही था। वे अपने कोडक बेबी ब्राउनी कैमरे से लैस होकर (उस समय उस कैमरे के प्रति लोगों में बहुत दीवानगी थी) तालाब में उतर गए (दादाजी के जूते पहनकर) और मेहमान सारसों की तसवीरें खींचने लगे।
कुछ सारस, विशेष रूप से वे जो जोड़े में घूमते हैं, एक-दूसरे के प्रति बहुत आसक्त हो जाते हैं और अकसर अनाड़ी इनसानों की तरफ से दोस्ती की पहल पसंद नहीं करते।
जब नर सारस ने अंकल केन को कुमुदिनी के फूलों से ढके पानी को चीरते हुए अपनी ओर आते देखा तो उसे उनका इरादा कुछ प्रेम संबंधी लगा। हैट और चोगे में अंकल केन को देखकर किसी को भी धोखा हो सकता था कि वह कोई हिंसक पक्षी या शुतुरमुर्ग परिवार के सदस्य हैं।
नर सारस अपने सामने किसी प्रतिद्वंद्वी को बरदाश्त नहीं कर सकता था, इसलिए मादा सारस को मछली पकड़ने के लिए छोड़कर वह आश्चर्यजनक फुरती से अंकल केन की तरफ बढ़ा, उनके ऊपर झपटा और कैमरा उनके हाथ से गिरा दिया।
अपना कैमरा नन्हे मेढकों के लिए छोड़कर अंकल केन कुमुदिनी के तालाब से बाहर भागे। गुस्से से भरा सारस भी उनके पीछे आने लगा, जिसे अंकल केन ने अपने बरामदे की सुरक्षा में पहुँचने के पहले एकाध कुंगफू की किक्स भी लगा दीं।
अंकल केन अपना कैमरा और अपनी इज्जत खोने का शोक मनाते हए दो दिन तक उदास बैठे रहे और फिर उन्होंने घोषणा की कि वह अपनी एक आंटी के साथ कुछ दिन बिताने के लिए पांडिचेरी जा रहे हैं।
सबने राहत की साँस ली और दादाजी और मैं तो उन्हें स्टेशन तक छोड़ने भी गए, सिर्फ यह सुनिश्चित करने के लिए कि कहीं वे अपना विचार बदलकर रात के खाने के समय घर वापस न आ जाएँ।
बाद में हमने सुना कि पांडिचेरी में उनकी छुट्टियों के दो दिन तो बहुत आराम से बीत गए, क्योंकि उनकी आंटी का घर समुद्र-तट पर था और वहाँ आस-पास पेड़ नहीं थे। उन्होंने बीच पर खूब मजे लेकर ढेर सारी आइसक्रीम खाई और फ्रेंच फ्राइज की अनगिनत प्लेटें खाईं, क्योंकि वहाँ उन्हें परेशान करने के लिए न कौए थे, न तोते, बंदर या छोटे बच्चे।
फिर एक सुबह उन्होंने बीच के पास बने एक ओपन एयर कैफे में नाश्ता करने का फैसला किया और वहाँ जाकर उन्होंने बेकन, अंडे, सॉसेज, टोस्ट, चीज और मामलेड- सब मँगाया।
उन्होंने अपने मक्खन लगे टोस्ट का एक टुकड़ा ही खाया था कि पता नहीं आसमान के किस कोने से एक सीगल तेजी से नीचे उतरा और एक सॉसेज लेकर उड़ गया।
अंकल केन इस झटके से उबरे भी नहीं थे कि दसरा सीगल आया और बेकन का टुकड़ा लेकर उड़ गया।
कुछ ही सेकंड बाद तीसरा सीगल आया और बचा हुआ सॉसेज ले गया और जाते-जाते अंकल केन की पतलून पर टोस्ट और फ्राइड अंडे भी गिराता गया।
अब उनके पास सिर्फ आधा टोस्ट और थोड़ा सा मामलेड बचा था।
जब उन्होंने घर जाकर अपनी आंटी को सब बताया तो उन्होंने अफसोस जताया और उन्हें एक गिलास दूध व पीनट बटर सैंडविच बनाकर दे दी।
अंकल केन को दूध से चिढ़ थी और पीनट बटर सैंडविच भी बिलकुल पसंद नहीं थी, लेकिन जब उन्हें भूख लगती थी; तो वो कुछ भी खा सकते थे।
आंटी ने कहा, "इन सीगल्स का कोई भरोसा नहीं है। ये सब मांसाहारी होते हैं। पालक और सलाद पत्ता खाया करो, तब वे तुम्हारे पास भी नहीं फटकेंगे।"
"छी!" अंकल केन चिढ़कर बोले, "इससे अच्छा तो मैं भी एक सीगल ही बन जाऊँ?"