उम्र की दस्तक (संस्मरणात्मक कहानी) : ज्योति नरेन्द्र शास्त्री

Umar Ki Dastak (Hindi Story) : Jyoti Narendra Shastri

किसी काम से मेरा एक दिन उदयपुर जाना हुआ । देहली गेट पर उतरना था । उतरकर चारो तरफ नजरें दौड़ाई तों मेरी निगाहे एक वृद्धा दादी पर पड़ी जिनकी उम्र का अंदायजा उनके चेहरे पर पड़ी झुर्रियों से लगाया जा सकता था । दादी जी एक बड़े मूढ़े का सहारा लेकर उनींदी आँखो से कभी आँखो को खोलती तों कभी मिचकाती । आख़िरकार माजरा क्या है ? इतनी उम्र में जब इन्हे आराम सैया पर होना चाहिए तब ये इस दुकान पर बैठी है । वो दुकान एक फर्नीचर की छोटी और पुरानी सी दुकान थी । यह जानने के लिए मै कुछ खरीदने की इच्छा न होते हुए भी उनके पास गई । प्रणाम दादी माँ । मेरे प्रणाम करते ही उन्होंने बड़ी देर तक मुझे देखा । जैसे अपनी उम्र की आँखो से मेरा एक्सरे कर रही हो । काफी देर तक गौर से देखने के बाद उन्होंने बोलने की कोशिश की । उनके पेपले मुँह में एक भी दाँत शेष नहीं रहा था । जीभ लड़खड़ा रही थी । आँखे बार बार चौंधिया रही थी । दादीजी मैने अपनी बात को फिर से दोहराया । मै उनसे कुछ पूछना चाह रही थी किन्तु बुढ़ापा ज्यादा होने की वजह से वह सुन नहीं पा रही थी । बुढ़ापा अकेले कहा आता है , अपने साथ उम्र का वसंत छीन ले जाता है । जीभ में खादय वस्तुओ के परीक्षण करने की क्षमता होती है किन्तु उन्हे चभा कर स्वाद का अहसास करवा सके उन दांतो का बुढ़ापा आते ही गिरना शुरु हो जाता है । बलिष्ठ से बलिष्ठ शरीर भी झुककर दुसरो पर आश्रित हो जाता है ।जो लोग अपनी भरी जवानी के मद में कभी किसी के सामने नहीं झुके वो भी मोहताज हो जाते है ।आँखे देखना चाहती है किन्तु दृष्टि साथ छोड़ जाती है । किसी का तों मन और वासनाये अंतिम समय तक तृप्त नहीं होते केवल शरीर असहाय हो जाने से मन मसोसकर रह जाना पड़ता है । हजारों को सहारा देने वाला भी एक छोटी सी लठिया के सहारे से चलता है । शरीर जो कभी सौंदर्य का दमदमाता प्रतिबिम्ब हुआ करता था उसकी जगह चेहरे पर गहरी झुर्रिया पड़ जाती है । मांसल भुजाये जीर्ण शीर्ण कपड़े की तरह ढीली होकर लटक जाती है । पलभर में रूटिंग करने वाली गर्दन मुड़ भी नहीं पाती । नींद आँखो से ओझल रहती है । व्यक्ति भाग्यवादी हो जाता है । वह उसे दैवीय विधान मानकर भोगता है । इस प्रकार समय आने पर बुढ़ापे के सैकड़ो लक्षण प्रकट होते है ।

बुढ़ापा अभिशाप नहीं है। बीमारियों की बात अलग है। वृद्धों के पास जीवन्त अनुभवों का कोष होता है। वे आदरणीय हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण वाले निष्कर्ष भौतिक रूप में सही होते हैं लेकिन माता पिता व वरिष्ठों से आत्मीयता की व्याख्या वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ही संभव नहीं है। वरिष्ठों से हमारे रिश्ते अव्याख्येय हैं। ऋग्वेद के रचनाकाल से लेकर रामायण महाभारत होते हुए आधुनिक काल तक इन रिश्तों की प्रीति ऊष्मा एक जैसी है। इनका समाज विज्ञान अनूठा है। लेकिन आधुनिक समाज में वरिष्ठों के प्रति श्रद्धा का अभाव है। वैदिक संस्कृति में माता पिता देवता हैं। दुनिया की किसी भी संस्कृति व सभ्यता में माता अदृश्य ईश्वर या मान्य देवों से पिता बड़ा नहीं है लेकिन भारत में माता पिता सुस्थापित देवों से भी बड़े हैं।

कवि भर्तृहरि ने भी कहा है गात्रं सङ्कुचितं, गतिः विगलिता, दन्तावलिः च भ्रष्टा, दृष्टिः नश्यति, बधिरता वर्धते, वक्त्रं च लालायते, बान्धवजनः च वाक्यं न आद्रियते, भार्या न शुश्रूषते, पुत्रः अपि अमित्रायते, हा जीर्णवयसः पुरुषस्य कष्टं ।

(वृद्धावस्था में आदमी की ऐसी दुर्गति होती है कि) शरीर सिकुड़ने लगता है (उसमें झुर्रिया पड़ जाती हैं), चाल-ढाल में विकार आ जाता है (व्यक्ति लड़खड़ाते हुए चलता है), दंतपंक्ति गिर जाती है (दांत सड़-गल जाते हैं), आंखों की ज्योति क्षीण हो जाती है, श्रवण-शक्ति का ह्रास हो जाता है, मुंह से लार चूने लगती है (मुख पर भी नियंत्रण नहीं रह जाता है), सगा-संबंधी या नाते रिश्तेदार भी कहे गये वचन का सम्मान नहीं करता है ।

मै उन दादीजी को देखकर सोच ही रही थी क्या बुढ़ापा वास्तव में इतना दारुण्य और कष्टदायक है और बदलती ऋतुओ की तरह उसका भी आना शाश्वत है किन्तु फिर भी लोग ना जाने किस मद से इतराते है ।

सोचते सोचते कब ध्यानमग्न हो गई पता ही नहीं चला । ट्रिन ट्रिन दादी माँ अपने हाथों से किसी घंटी को बजा रही थी जो शायद संकेत था की दुकान पर कोई ग्राहक है । तभी अंदर से एक आदमी आया देखने में वो काफी मस्टंडा लग रहा था जो शायद उस वृद्धा दादी का बेटा था । बुढ़ापे में जहाँ हमे वृद्धों को आराम व सम्मान देना चाहिए वही किसी-किसी जगह उन्हे तिरस्कार भी मिलता है । हमे उनका आदर करना चाहिए । श्रोतव्यम खलु वृद्धानामिति शास्त्रनिदर्शनम ।

वृद्धों की बात सुननी चाहिए ऐसा शास्त्र कहते है । किन्तु दुर्भाग्यवश कुछ मूर्ख लोग उन्हे इसलिए लतियाते है क्योकि वो निस्तेज हो चुके है जबकि वो भूल जाते है उम्र की इस दहलीज पर तों आख़िरकार एक दिन उन्हे भी आना है । क्या चाहिए उसने सवाल किया । जी आई तों मै कुछ और लेने थी लेकिन लेखिका हु इसलिए यहां से कहानी का एक पात्र ले जा रही हु ।

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