त्याग का फल : मुंडारी/झारखण्ड लोक-कथा
Tyag Ka Phal : Lok-Katha (Mundari/Jharkhand)
बहुत पहले की बात है। एक गाँव में एक बूढ़ा और बुढ़िया रहते थे। उन्हें एक बेटा था।
उन्होंने उसका नाम चतुर रखा था। वे बहुत गरीब थे। चतुर बहुत कम ही उम्र का था, तभी
उसके माता-पिता मर गए। छोटी उम्र में ही चतुर को नौकरी करनी पड़ी। गाँव के कुछ
दयालु लोगों ने चतुर की मदद करनी चाही, परंतु स्वाभिमानी चतुर को वह मंजूर नहीं
हुआ। उसने किसी की दया नहीं चाही। वह एक आदमी के यहाँ गया और उससे नौकरी
के लिए बोला। उस आदमी ने उसे एक पैसा वार्षिक की नौकरी पर रख लिया। चतुर को
खुशी हुई कि वह अपने पाँव पर खड़ा है। खाने-कपड़े के साथ वर्ष में एक पैसे मजूरी की
नौकरी पाकर उसने संतोष की साँस ली।
चतुर खूब लगन से काम करके अपने मालिक को खुश रखने की चेष्टा करता। समय
बीतने लगा। तीन वर्ष बीत गए। उसे अपने गाँव के साथी याद आने लगे। अपना घर वाद
आने लगा। उसने अपने मालिक से अपनी मजदूरी के तीन पैसे लिए और अपने गाँव की
ओर चल पड़ा। उसने कुछ महीनों की छुट्टी ले ली थी।
रास्ते में उसे एक बूढ़ा मिला। चतुर को देखकर उस बूढ़े ने गिड़गिड़ाकर कहा, “सुनो
बालक, मैं कई दिनों से भूखा हूँ। मुझे कुछ खाने के लिए दो, नहीं तो मैं भूख से मर
जाऊँगा।”
बूढ़े की बात सुनकर चतुर ने बहुत नम्न स्वर में कहा, “मेरे पास खाने की कोई वस्तु
नहीं है। मैं क्या दूँ? मेरे पास मेरी कमाई के तीन पैसे हैं। यही ले लो और कुछ खरीद कर
खा लो। उसने अपनी जेब से तीनों पैसे निकालकर उसे दे दिए।”
चतुर ने जैसे ही आगे बढ़ना चाहा, वैसे ही उसने देखा कि उस बूढ़े के चेहरे पर
बड़ी-बड़ी मुँछे निकल आई हैं। यह देखकर चतुर के होश उड़ गए। वह पीपल की पत्ती
की तरह थर-थर कौंपने लगा। उसे भयभीत देखकर उस आदमी ने कहा, “डरते क्यों हो ?
आदमी को हिम्मत से काम लेना चाहिए। मैं तुम्हारी दया की भावना से बहुत खुश हूँ।
बिना लोभ रखे तुमने अपनी पूरी कमाई के पैसे मुझे दे दिए। तीन पैसे की जगह मैं भी
तुम्हें तीन चीजें देता हूँ। आओ, मेरे साथ चलो। त्याग करना बहुत बड़ी बात होती है।"
चतुर डरते-डरते उस आदमी के साथ चलने लगा। अपने घर ले जाकर उस आदमी
ने चतुर को एक सारंगी दी। बताया कि इसे तुम जैसे ही बजाओगे, तो लोग नाचने लगेंगे।
एक तीर-धनुष देकर कहा, “तुम जिस पर निशाना लगाओगे, वह खाली नहीं जाएगा।
और तीर लौटकर तुम्हारे पास आ जाएगा।” तीसरी चीज थी सच्चाई। उस आदमी ने
वरदान में सच्चाई दी। बताया कि तुम जो कुछ कहोगे, लोग उसी बात को सच मान लेंगे।
तीनों चीजें देकर वह आदमी गायब हो गया। चतुर पहले तो बहुत घबराया, लेकिन
फिर उसने हिम्मत से काम लिया। थोड़ी देर वह वहीं रुका रहा। इसके बाद चतुर वहाँ से
आगे बढ़ा। वह गायब हुआ आदमी काफी देर तक वापस नहीं लौटा।
चतुर ने कुछ दूर जाने पर देखा कि एक व्यापारी पेड़ की छाया में विश्राम कर रहा
है। उस पेड़ पर एक खूबसूरत-सी चिड़िया बैठी थी। उसे देखकर व्यापारी का मन ललचा
उठा। उसने कहा, “ओह, कोई उस चिड़िया को मेरे लिए मार देता, तो मैं उसे ढेर-सारे
रुपए देता।"
चतुर ने कहा, “आप चिंता मत कीजिए।” और उसने निशाना साध कर तीर मारा।
वह चिड़िया झाड़ी में गिर गई। चतुर बहुत खुश हुआ। खुशी से उसने सारंगी बजाई।
व्यापारी हड़बड़ा कर चिड़िया पकड़ने के लिए झाड़ी में घुस गया। चतुर खुशी से अपनी
सारंगी बजाने लगा। सारंगी की आवाज पर व्यापारी भी थिरक-धिरक कर नाचने लगा।
झाड़ी से उलझ कर उसके कपड़े फट गए। वह अधनंगा हो गया। उसके शरीर पर काफी
खरोंच लगी थी। उनसे खून बहने लगा था।
व्यापारी की हालत देख, चतुर को दया आ गई। उसने एकाएक सारंगी बजाना बंद
कर दिया। सांरगी का बजाना बंद होते ही व्यापारी का नाचना बंद हो गया। व्यापारी ने
उसे थैली-भरकर रुपए दे दिए। इनाम पाकर वह खुशी-खुशी घर की ओर बढ़ने लगा।
व्यापारी को लोभ सताने लगा। हाथ से रुपये निकल जाने के कारण वह हाय-हाय
कर उठा। कुछ सोचकर वह चतुर के पीछे-पीछे दौड़ने लगा। निकट पहुँचते ही उसने शोर
मचाया, “यह छोकरा सोए में मुझ पर प्रहार करके मेरी पैसों की थैली छीन कर भाग रहा
है। गाँव वालो इसे पकड़ो...."
गाँव वालों ने चतुर को पकड़कर मारा-पीटा और थाने ले गए।
थानेदार ने चतुर से पूछताछ की। चतुर ने बताया कि व्यापारी झूठ बोल रहा है।
चिड़िया मारने के एवज में इसने मुझे इनाम में रुपये दिए हैं।
थानेदार ने कहा, “एक चिड़िया मारने के बदले में थैली-भर रुपया कौन इनाम
देगा? इनाम देने वाले के शरीर में खरोंच कैसे लगेंगे, इसके कपड़े कैसे फटेंगे ?” चतुर
जरूर चोरों के साथ का लड़का है, यह सोचकर उसने सिपाही से कहा इसे हाजत में डाल दो।
हाजत में बंद करने के लिए सिपाही चतुर को ले चले। चतुर ने मन ही मन कहा,
“उस बूढ़े ने तीसरी बात गलत बताई। फिर सोचा, जरा सारंगी बजाकर फिर आजमाऊँ।
मुसीबत के समय हिम्मत खोने से काम नहीं चलेगा। वह सारंगी बजाने लगा। वहाँ
उपस्थित सभी लोग नाचने लगे। सभी लोग नाचते-नाचते पस्त होने लगे। थानेवार ने
कहा, “अरे, तुम सारंगी बजाना तो बंद करो। मैं अनुनय-विनय करता हैँ। तुम्हारी बात
पर विश्वास करता हूँ।” चतुर ने सारंगी बजाना बंद कर दिया। जैसे ही सारंगी बजाना
बंद हुआ, वैसे ही सबका नाचना भी बंद हो गया।
चतुर ने थानेदार को बताया कि “मैंने इसी तरह से सारंगी बजाई थी और इस तीर
से चिड़िया को मारा था। चिड़िया झाड़ी में गिरी और व्यापारी चिड़िया लेने गया। खुशी
से मैंने अभी की तरह सारंगी बजाई और यह व्यापारी बेसुध होकर नाचने लगा था। झाड़ी
में इसके कपड़े फटे और शरीर पर खरोंचें लगीं। मैंने सारंगी बजाना बंद किया तो इसने
यह थैली दी। अगर विश्वास न हो तो मुझे उस झाड़ी के पास ले चलिए। आप लोग मैदान
में नाचे थे, इसलिए कपड़े नहीं फटे।"
चतुर की बातों से थानेदार प्रभावित हुआ। उसने व्यापारी को झाड़ी के पास चलने
को कहा। थानेदार की बात सुनकर व्यापारी के होश उड़ गए। वह ठिठक गया और सारी
बातें सच-सच बता दीं। चतुर की सच्चाई से खुश होकर थानेदार ने चतुर को एक थैली
रुपये अपनी ओर से इनाम में दिए। व्यापारी को झूठी नालिश करने के जुर्म में जेल में बंद कर विया।
इसके बाद चतुर खुशी-खुशी अपने घर की ओर चल पड़ा।
(सत्यनारायण नाटे)