तुम्हारे दिल में मैं हूँ? (उपन्यास) : एस.भाग्यम शर्मा
Tumhare Dil Mein Main Hoon ? (Hindi Novel) : S Bhagyam Sharma
अध्याय 1
सुराणा ज्वैलर्स।
शहर का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध आभूषण की दुकान।
हमेशा चहल-पहल यहां रहती है।
अच्छा स्तरीय, शुद्ध, के.डी.एम. सोना और चांदी दोनों ही यहाँ मिलती है इसलिए यहाँ बहुत भीड़ रहती है। सोने का भाव तो तीस हजार से ज्यादा हो गया है। 500 रूपये और ज्यादा भी हो जाए फिर भी लोग खरीदते रहेंगे।
सुराणा ज्वेलर्स की दुकान तीन मंजिली है।
प्रथम स्थल पर चांदी के बर्तन।
दूसरी मंजिल में सोने के आभूषण।
तीसरी मंजिल में हीरे, नवरतन जड़े आभूषण रखें होते हैं। सभी मंजिल में ए.सी. हैं जो बहुत आरामदायक है। रात के 8:30 बजे सोने के आभूषण के दूसरी मंजिल में बड़ी भीड़-भाड़ थी वहां गीता बड़ी फुर्ती से ग्राहक को उनकी पसंद की आभूषण को दिखा रही थी। वह हरे रंग का सलवार और लाल रंग का कुर्ता और हरे-लाल रंग के चुन्नी ओढ़े हुई थी। बालों को पोनीटेल से बांधी थी।
उसके कानों में नकली झुमके, गले में मोतियों का हार और नाक में छोटी सी लौंग चमक रही थी। हाथों में खूब सारी कांच की चूड़ियां पहने थी। वह गांव की खूबसूरत और सीधी-साधी लड़की थी।
उसका चेहरा बिना किसी छल-कपट के साफ सुथरा था । आंखें हिरणी जैसी और आवाज में मिश्री घुली हुई ।
वह ग्राहकों से आदर और सहनशीलता से बात करती थी। गीता जिस विभाग में थी वहां से लड़कियां कुछ ना कुछ खरीद कर ही ले जातीं थीं।
"दीदी यह चेन आपके गले में बहुत सुंदर लगेगा।"
"कौन सा ? तीन ग्राम का दिखाया था वह?"
"नहीं ! तीन ग्राम क्यों? मैं छ: ग्राम वाले को ही कह रही हूं।"
"इतने रुपए हम लेकर नहीं आए..." जो महिला आभूषण लेने आई थी उसके पति ने कहा।
"ले रहे हो तो थोड़ा मजबूत ही लो.…! आज आप अपने वस्तु को पसंद कर लिखकर रख दो, जो पैसे हैं उसे दे दो। फिर एक हफ्ते के अंदर आकर बाकी को देकर आप उसे ले जा सकते हो।"
यह स्वयं ही योजनाएं बताती थी।
"क्यों जी, वह लड़की कह रही है वैसे ही कर लेते हैं। तीन ग्राम की चेन बड़ी जल्दी घिस जाएगी टूट जाएगी। छ: ग्राम की ही ले लेते हैं। कई साल तक ऐसा ही रहेगा।" गहने खरीदने आई लड़की बोली।
"तुम्हारी इच्छा हो गई ! बोलो तो तुम सुनोगी नहीं? नाराज हो जाओगी! “तुम्हारी इच्छा जैसी है वैसे करो।" ऐसा पति बोलेगा।
"अरे इसे खुशी से भी कह सकते हो ना ?" अपनी सफलता के खुशी में, झट से गीता हंस देती ।
सुराणा ज्वेलर्स में वही सिर्फ एक गांव की लड़की है। गीता के निष्कपट ग्रामीण भाषा को मालिक के सिवाय वहां काम करने वाले भी बहुत पसंद करते थे ।
गीता को सब लोग पसंद करते थे। सुबह के 9:30 से रात के 8:30 बजे तक काम होता था । उसका 4000 मासिक वेतन था। वह उसे वैसे ही ले जाकर पूरा मौसी के हाथ में दे देती है। गीता की मां नहीं थी। गीता जब छोटी थी तब ही पीलिया से उसकी मां मर गई थी।
गीता के पिताजी राकेश के पास थोड़ी सी जमीन थी उस पर वे खेती करते थे।
वह गीता के देखभाल करने में असमर्थ थे। अतः रितिका से उन्होंने दूसरी शादी कर ली।
शुरू में रितिका गीता को बहुत प्यार करती थी। उसे बहुत चाहती थी।
कभी उसे छाती पर सुलाती तो कभी अपने पैरों पर। सारा दिन उसे खेल खिलाती। खाना उसे तारों और चंद्रमा को दिखाकर खिलाती।
परंतु यह सब सिर्फ थोड़े दिन ही रहा । उसकी अपनी दो बेटियां हो गई। तब वह तुरंत बदल गई। वह गीता पर हमेशा बिच्छू जैसे डंक मार कर उसे तड़पाती थी। शब्दों के तीर चलाती रहती थी । उसको भरपेट खाना भी नहीं देती।
वह धारदार चाकू से उसे जख्मी करती रहती थी । यही नहीं हजारों विषैले सांपों जैसे जहर उगलती रहती थी । गीता को उसने दसवीं के बाद पढ़ाने से मना कर दिया और उसे उस आभूषण के दुकान पर काम करने के लिए भेज दिया। पाँच साल से उस दुकान पर गीता काम कर रही थी।
गीता की छोटी बहनें मनाली और कमला दोनों अच्छी गुणवान लड़कियां थी। वे दोनों गीता से बड़े प्रेम से रहती थी । उनमें अपनत्व था। वे दोनों दीदी-दीदी कहती रहती थी ।
मनाली बारवीं में और कमला दसवीं में पढ़ती थी। अपनी बहनों के लिए गीता मौसी के सारे कष्टों को सहन करती थी।
राकेश मुंह नहीं खोलते थे। रितिका के विरोध में एक शब्द भी मुंह से नहीं निकाल सकते थे ।
यदि वे कुछ बोल दे तो बस शांति भंग हो जाती थी । गला फाड़ कर चिल्लाना, गालियां देना, रोना रितिका शुरु कर देती थी ।
"मैं और मेरी लड़की जहर खाकर मर जाते हैं। तुम और तुम्हारी लड़की गीता आराम से जियो।"I
ऐसी बात बोल कर उन्हें डरा धमका कर दबा देती थी । उसके बाद धीरे-धीरे राकेश की आदत वैसे ही हो गई। अपनी दोनों बेटियों को रोज पराठे, घी लगाकर रोटियां, कभी पूरी आदि बना-बना कर खिलाती।
गीता को सिर्फ सूखी रोटी देती। सब्जी के बदले मिर्ची और प्याज दे देती। गीता बिना कुछ कहें सूखी रोटी को स्कूल लेकर जाती थी । वह कभी रोती भी नहीं थी।
उसने अपने दुख को किसी से बांटा भी नहीं था । जो हो गया है वह बदल नहीं सकता। जो अपनी तकदीर में है वह बदल नहीं सकता। अच्छा बुरा जो हो रहा है होने दो । वह किसी से कुछ भी अपेक्षा नहीं करती थी । किसी भी चीज की इच्छा भी नहीं करती थी ।
बिना कोई खुशी के वह यंत्र जैसे अपने दिन को काट रही थी।
"गीता" कहकर सलोनी ने उसके कंधे को धक्का दिया जो उसके साथ काम करती थी ।
"हां"
"8:30 बज गए"
"बजने दो।"
"8:40 पर तुम्हारे गांव जाने वाली मिनी बस निकल जाएगी। यदि तुम उसे छोड़ दो तो मेन रोड से तीन किलोमीटर तालाब के किनारे से तुझे चलना पड़ेगा ना। अंधेरे में तुम कैसे अकेली जाओगी?"
सलोनी ने फिक्र से पूछा।
आभूषण लेने आए ग्राहक को वह सोने की चूडियां दिखा रही थी।
"यह डिजाइन पसंद है क्या देखिए।"
"इसी डिजाइन में पाँच ग्राम की एक चूड़ी ही चाहिए। जिसके बीच-बीच में ओरिजिनल मोती जड़े हुए होना चाहिए ।"
चूड़ियां लेने आई अमीर महिला ने यह साफ कह दिया। कुछ भी डिजाइन दिखाओ तो वह होंठ को पिचकाती थी। उसे संतुष्ट करना ही नहीं हुआ। गीता बिना चिड़चिड़ाए एक-एक डिजाइन को दिखाती रही। 8:30 से ज्यादा समय हो गया।
"मैडम, आप जो मोतियों के बीच-बीच में लगे हुए डिजाइन की चूड़ियां चाहती हैं तो आपको तीसरे मंजिल पर जाना पड़ेगा।"
"फिर तुम ही आकर दिखा दो बेटी।"
वह महिला गीता को छोड़ने वाली नहीं लगी।
"गीता तुम रवाना हो। मैं मैडम को तीसरी मंजिल पर लेकर जाती हूं।" सलोनी बोली।
सलोनी का इसी शहर में घर था। वह दुकान में ताला लगने तक रहती थी। गीता से सहानुभूति रखने वाली सिर्फ सलोनी ही थी ।
"सलोनी तुम्हें परेशानी होगी ?"
"इसमें कोई परेशानी नहीं है। यही तो अपना काम है ? बातें करते मत रहो, जल्दी से रवाना हो। पुरानी बस स्टैंड में जाकर खड़ी रहो।"
उसको एक युक्ति सलोनी ने बताई।
"थैंक्स सलोनी"
गीता हैंडबैग को टांग कर अपनी जगह से उठी।
"लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट गया होगा या नहीं गया होगा ?"
"चला गया होगा तो क्या करें ?"
"दूसरी बस में चढ़कर आमेर रोड तक जाऊंगी। वहां से एक बस गांव के बाहर छोड़ती है। वहां से तीन किलोमीटर तालाब के किनारे पैदल चलना पड़ेगा ?"
सेकंड फ्लोर से फटाफट उतर कर पुराने बस स्टैंड की तरफ जल्दी-जल्दी गीता चलने लगी।
अध्याय 2
अपनी हाथ की घड़ी को गीता ने देखा। आठ बजकर पैंतालीस मिनट हुए।
साधारणतया आठ पैंतालिस तक लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट के मिनी बस पुरानी बस स्टैंड को पार कर लेती है।
आज अभी तक नए बस स्टैंड से ही रवाना नहीं हुई।
"बड़े भाई साहब..."
क्लीनर पप्पू ने संकोच से बोला।
"क्या है रे ?"
"समय हो गया भैया..."
"होने दे"
"गाड़ी को निकालिए भाई साहब ! भारत ट्रांसपोर्ट की बस, स्टैंड के अंदर आ गई है। हम अभी भी रवाना नहीं हुए तो समस्या आ जाएगी। आज मूछों वाला कल्लू ही उसका ड्राइवर है। वह उतर कर मारने आ जाएगा ना।"
"कुछ भी हो मैं देख लूंगा। तुम अपने काम को करो।" चिड़चिड़ाते हुए मोती बोला।
पता नहीं कौन-कौन उस लक्ष्मी मिनी बस में आकर बैठे।
पर अभी तक गीता नहीं आई।
गीता के आने पर ही उसकी गाड़ी रवाना होगी।
साधारणतया 8:30 बजे दुकान का काम खत्म हो जाता है। 8:35 तक जल्दी से आकर गीता खड़ी हो जाती है ।
ड्राइवर अपने सामने वाली सीट पर एक तोलिया को बिछाकर रखता है। ताकि गीता के आते ही वह वहां बैठे यह उसकी इच्छा होती थी। उसकी यह बहुत दिनों की इच्छा है।
परंतु गीता एक दिन भी वहां नहीं बैठी। कोई भी बड़ी बुजुर्ग औरत को वहां वह बैठा देती।
वह अपने झुके हुए सर को ऊपर नहीं उठाती। मोती उसे तिरछी निगाहों से देखते हुए बस को चलाता। बस के स्पीकर में तेज आवाज में ह्रदय को उकसाने वाले प्रेम गीत को चलाता था।
किसी पर भी गीता ध्यान नहीं देती थी। आधे घंटे में मनोहरपुर आ जाएगा। वह उतर कर बिना मुड़े ही सीधी चली जाती थी । उसने कभी मोती से एक शब्द भी बात नहीं की। उसने कभी उस पर एक नजर नहीं डाली। कभी मुस्कुराई तक नहीं। चूड़ियों के दुकान में काम करने वाली नम्रता, फोटोस्टेट की दुकान में काम करने वाली अर्पिता, मोबाइल की दुकान में काम करने वाली आरती सभी इसी मिनी बस में ही चढ़ते थे। वे सब बस से उतरने तक हंसती रहती थीं।
हर एक का मजाक बनाकर मस्ती से रहती थी । मोती से भी जबरदस्ती बात करती थीं ।
"ड्राइवर को हम लड़कियां अच्छी ही नहीं लगती है । उस नकचढ़ी को ही देवी मानता हैं।"
"रोज उसके लिए जगह रिजर्व करके रखता है देखा ?"
"वह नखरे वाली तो बैठती ही नहीं।"
"तुम चूड़ी की दुकान में..., यह फोटोस्टेट की दुकान में... मैं मोबाइल की दुकान में काम करते हैं। सिर्फ वही कीमती आभूषण के दुकान में काम करती है। ड्राइवर को ब्रेसलेट, चैन, अंगूठी आदि भी ले कर दे सकती है। उस लालच में पड़ा है दिखता है।"
वे जान बूझकर इस तरह की बातें करतीं थीं ।
ड्राइवर के पीछे खड़े होकर इस तरह व्यंग्य बाणों को चलाते हुई मोती को परेशान करतीं थीं ।
मोती, गीता से प्रेम करता है यह सच है।
तीन साल से गीता को अपने प्राणों से भी ज्यादा चाहता था। उसके लिए तड़पता था। उसके लिए अपने आप को गलाता रहता भी था।
उसके लिए दुखी भी होता था।
गीता को कुछ पता नहीं था । वह मुड़कर देखती भी नहीं। ये बात उन जवान लड़कियों को मालूम थी। इसीलिए व्यंग्य बाण छोड़ती रहती थी।
"मनोहरपुर आने तक ही प्रेम गीत बजता हैं। फिर...."
"फिर...?"
"बाद में विरह के गीत ही....."
"इसका अंत कहां जाकर होगा ?"
"ड्राइवर दाढ़ी बढ़ाए तो अच्छा लगेगा ?"
मोती बात ही नहीं करता। मुस्कुरा देता। उसे गीता के साथ मिला कर बात करना उसको अच्छा लगता था।
"इन युवा लड़कियों को मेरा दुख समझ में आता है। मेरे प्रेम का पता चलता है। परंतु जिस को मालूम होना चाहिए उसको मालूम नहीं हो रहा हैं । सचमुच पता नहीं है ? या नहीं मालूम होने का नाटक कर रही है?" भारत ट्रांसपोर्ट भारी आवाज के साथ बस स्टैंड के अंदर घुसी। लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट के मिनी बस के पास टकराते हुए खड़ी हुई।
"मोती.... बस को चलाओ भाई"
बस कंडक्टर हनुमान परेशान हो दौड़कर आया।
"भैया.... पाँच मिनट ठहर जाओ "
"खेल रहे हो क्या मोती ? अब एक मिनट भी यहां ठहर नहीं सकते।" हनुमान घबराया।
मोती जवाब ना दे सकने के कारण परेशान हुआ।
"गीता तुम्हें क्या हुआ ? जल्दी आ जाओ ना। तुम्हें छोड़कर चले जाए तो तुम्हें तीन किलोमीटर चलना पड़ेगा।"
"मोती वह लड़की अभी भी नहीं आई क्या ?"
"हां भैया"
"तुम गाड़ी को चलाओ। धीरे-धीरे चलते रहो। सामने आए तो चढ़ जाएगी। नहीं तो पुराने बस स्टैंड में खड़ी होगी" वह बोला।
हनुमान को मोती के प्रेम के बारे में पता था। उन्होंने भी बहुत समझाया।
"मोती तुम्हें यह प्रेम नहीं करना चाहिए ! मैं भी देखता ही रहता हूं। वह लड़की तो तुम्हें मुड़ कर भी नहीं देखती। क्यों तड़प रहे हो ? दूसरी लड़की.... नहीं मिलेगी ?"
"दूसरी लड़की मिल जाएगी। परंतु गीता जैसी लड़की नहीं मिलेगी।"
"जब तुम उस पर इतना मरते हो तो तुम्हें उस लड़की को अपने प्रेम के बारे में बताना तो चाहिए ना ?"
"बताना है"
"कब"
"समय आने पर बताऊँगा।"
"वह समय कब आएगा ?"
"मालूम नहीं"
मोती अपने होंठ को पिचका देता।
"तुमसे बात करूँ तो मैं पागल हो जाऊंगा। छोड़ो।" हनुमान बात करके परेशान हो गया। मोती के दृढ़ता और विश्वास पर उसे आश्चर्य हुआ।
"बीड़ी, सिगरेट, शराब कोई भी तो गलत आदत उसमें नहीं है। ऐसा एक आदमी को ढूंढ निकालना मुश्किल है। उस लड़की का भाग्य ही खराब है। इसीलिए तो वह मोती को मुड़ कर भी नहीं देखती।"
वे अपने अंदर ऐसे गुनगुनाती।
बिना गीता के आए ही मिनी बस को मोती ने रवाना किया। देर से रवाना होने के लिए जान बूझकर पूरे बस स्टैंड का एक चक्कर लगाकर तब रवाना हुआ।
फिर भी गीता नहीं आई।
मिनी बस धीरे-धीरे रवाना हुई।
"क्यों री बस कछुए की चाल चल रही है !" मोती के पीछे खड़ी आरती बोली।
"जिसे आना चाहिए वह नहीं आई ना। इसीलिए ड्राइवर सर का मूड ऑफ हो गया ऐसा लगता है।" अर्पिता व्यंग्य से हंसी।
"क्यों री आज आभूषण के दुकान वाली नहीं आई क्या ?" नम्रता बोली।
"सुबह तो काम पर आई थी।"
"फिर आधे दिन की छुट्टी लेकर चली गई होगी "
"ऐसे ही होगा।"
"ड्राइवर साहब कोई गाना लगाओ ना ? हम नहीं सुनेंगे क्या? हमारे भी कान हैं?"
मोती को आरती छेंड़ती ।
"डी. वी. डी. प्लेयर खराब है।" मिनी बस पुराने बस स्टैंड पहुँच गई।
"झूठ बोल रहे हो।"
"रिपेयर है तो छोड़ो ना। क्यों परेशान कर रही हो। चाहे तो उतर जाओ। गाने बजाने वाले बस पर चढ़ जाओ।"
अचानक चिड़चिड़ा कर वह बोला।
"क्यों आरती तुम्हें इसकी जरूरत थी क्या ? वह देवी नहीं आई तो दुख में हैं। तुम अलग परेशान कर रही हो।" अर्पिता उसके कंधे से टकराकर बोली।
मिनी बस पुराने बस स्टैंड में आकर खड़ी हुई, भाग कर आ कर गीता चढ़ी।
वह पसीने से तरबतर हो गई थी।
वह बुरी तरह हांफ रही थी। गीता को देखकर एकदम से मोती का चेहरा खिल गया। उसका गुस्सा एकदम से गायब हो गया।
करोड़ों-करोड़ों तितलियां उसके चारों ओर उड़ रही है ऐसा उसे महसूस हुआ।
'बसंत ऋतु आ.. आ.. आ.. इस गाने को चलाया।
डी.वी.डी. प्लेयर ऑन किया।
"डी.वी.डी. प्लेयर खराब है आपने बोला? अब कैसे ठीक हो गया? हम भी पैसे देकर ही इस बस में आते हैं। पता है?" आरती गुस्से से बड़बड़ाई ।
मोती कंधों को उचकाते हुए हंसा।
उसके अंदर उत्साह आ गया था अब वह मिनी बस को तेज दौड़ा रहा था।
गीता के लिए जो जगह उसने रिजर्व कर रखा था वह खाली पड़ी थी वहाँ कोई नहीं बैठा।
गीता के आते ही अपने तौलिए को मोती ने उठा लिया।
गीता उस पर नहीं बैठी।
"दादी.... तुम आकर बैठो।"
उसने एक बुढ़िया को वहां बैठाया। ऊपर के राड को कस कर पकड़ लिया।
"मैं जिस फूल को ढूंढ रहा था... एक दिन शाम को खिला" बस का दूसरा गाना शुरू हो गया। आरती, अर्पिता और नम्रता एक दूसरे को इशारा करके हंसने लगीं।
"चुप रह री ! हमें क्या करना है?"
जलन की वजह से नम्रता बोली ।
किसी भी बात की परवाह ना करके कंडक्टर हनुमान से "एक मनोहरपुर टिकट" खुल्ले पैसे गीता ने दे दिए।
अध्याय 3
एक दिन छोड़कर एक दिन ही उसका काम होता है। मिनी बस से उतर कर मोती घर पर ही था।
घर के सामने आम के पेड़ की छाया के नीचे एक खटिया थी। उस पर मोती लेटा था ।
आम के पेड़ पर गिलहरियां इधर से उधर भाग रही थीं। अचानक खूब सारे हरे तोते अपने पंखों को फड़-फड़ाते हुए, की की... की आवाज करते हुए एक से दूसरे टहनी पर जा रही थी।
गिलहरियों ने जिन कैरियों को काटा था वे धड़ाधड़ नीचे गिर रहे थे।
"अरे मोती"
हाथ में चाय का कप लेकर आई सविता।
वह कॉटन की साड़ी पहनी हुई थी। माथे पर चंदन का टीका था। गले में सोने की चेन कानों में सोने के बड़े-बड़े टॉप्स पहनी थी। 60 साल की होने के कारण उसका शरीर ढलक गया था। सविता को देख मोती उठ कर बैठ गया।
"यह ले अदरक की चाय।" प्यार से उसे पकड़ाया।
चाय के कप को लेकर मोती चाय की चुस्की लेने लगा।
"खाने पर क्या बनाऊं ?"
"राबड़ी बना दो अम्मा उसे खाये बहुत दिन हो गए।"
"ठीक है बना दूंगी।"
कहकर उसने दीर्घ श्वास छोड़ा। उससे चाय के कप को लेकर उसके बगल में ही वह खाट पर बैठ गई।
"मोती" झिझकते हुए संकोच से बात शुरू की।
"हां" मोती ने अपने भौंहों को चढ़ाया।
"क्या हुआ रे ?" उत्सुकता से पूछा।
"क्या होना है?" समझा नहीं जैसे पूछा।
"दो दिन पहले मैंने तुम्हें एक फोटो दिया था ना"
"बाबा जी की फोटो ही तो ? उसे मैंने कांच का फ्रेम करने के लिए दुकान में दे दिया। उसे लेकर आना भूल गया। गाड़ी ले जाते समय लेकर आ जाऊंगा।"
"मैं उसके बारे में नहीं पूछ रही।"
"फिर ?"
"कल सुबह जब तुम काम पर रवाना हो रहे थे उस समय एक लड़की की फोटो तुम्हें दिखाया था | देखा तुमने, तुम्हें पसंद है ?"
"उसे मैंने नहीं देखा। वह तुम्हारे लकड़ी के अलमारी के ऊपर के खाने में रखा है। उसे निकालकर जिससे लिया था उसी को संभलवा देना अम्मा।"
"मोती तू अपने मन में क्या सोच रहा है ? वह लड़की कितनी सुंदर है तुम्हें पता है? सबसे मैंने अच्छी तरह पूछताछ कर ली। बहुत अच्छे स्वभाव वाली गुणी लड़की है। खाना बनाना और घर के कामकाज में एक्सपर्ट है। वह अपने घर की बहू बन के आए तुम्हारे लिए अच्छा रहेगा और मेरे लिए भी। तुम दोनों खुशी से अपना जीवन यापन कर के एक पोता-पोती मुझे दे दो तो मैं भी उस बच्चे के साथ खुशी से अपनी आंखें बंद कर लूंगी।" जल्दी-जल्दी बोलने के कारण वह हांफने लगी।
"मुझे अभी शादी नहीं करनी मां"
"अभी तो तू 28 साल का हो गया रे"
"लड़कों की 30 साल में भी शादी होती है मां।"
"तुम्हारी कोई भाई बहन कोई भी होता है तो इस परिवार की परिस्थिति अलग होती। फिर 40 साल में भी शादी कर सकते थे। तुझे मैंने बिना किसी समस्या के बड़ा किया । एक ही लड़का है इसीलिए कोई समस्या नहीं। समय पर शादी हो जाए तो मुझे खुशी होगी । तुझसे तीन साल छोटा है पुनीत, उसकी शादी हो कर दो बच्चे भी हो गए। यही शहर और यही गली हैं। सिर्फ पुनीत की मां ही नहीं सभी औरतें तुम्हारे बेटे की शादी अभी तक क्यों नहीं हुई? लड़की नहीं मिली क्या? नहीं तो किसी से प्रेम करता है क्या? मैं जवाब न दे पाने से सिर झुका कर रह जाती हूं।"
"अम्मा हम दूसरों के लिए नहीं जी सकते।"
"तुम्हारे मन के अंदर क्या है? कुछ तो बोलो । वह कोई भी लड़की हो उसके घर जाकर मैं बात करके पक्का कर दूंगी।" मोती से सविता बोली।
"तुमसे हो जाएगा क्या मां ?"
"मैं कर सकती हूं। कौन है रे लड़की ?" उत्सुकता से पूछी।"
"अभी बता नहीं सकता अम्मा।"
"क्यों रे ?"
"थोड़ी दिन और ठहरो मां"
"इस में ठहरने की क्या जरूरत है रे ? लड़की कौन है बताएं तो तुरंत उससे बात करके फैसला ही करना है ना?"
"बोलो तो तुम्हारे समझ में नहीं आएगा"
"समझूंगी ! तुम बताओं तो सही ।"
"मैं ही उस लड़की को चाहता हूं। वह लड़की मुझे पसंद नहीं करती।"
"मोती क्या तू सच कह रहा है ? ऊंचा पूरा, हष्ट पुष्ट, बढ़िया नाक नक्शा, राजकुमार जैसे दिखने वाले को वह पसंद नहीं करती? घमंडी लड़की होगी?" सविता गुस्से से पूछी।
"वह लड़की बहुत अच्छी है अब अम्मा ! उसकी मां नहीं है। उसके पिताजी, मौसी, दो छोटी बहनें ही हैं। उस लड़की की मौसी बहुत खराब राक्षसी जैसी है। इसलिए वह लड़की किसी से भी बात नहीं करती। सिर ऊंचा करके भी नहीं रहती। अपने सुराणा ज्वैलर्स में ही काम करती है और रोज मैं जो बस चलाता हूं उसी में आती-जाती है। मनोहरपुर में उतर कर चुपचाप चली जाती है।"
बिना किसी लाग-लपेट, लुकाव-छिपाव के सब कुछ साफ-सुथरा मोती ने बता दिया।
"तुमने उस लड़की से बिल्कुल बात नहीं की क्या ?"
"एक शब्द भी बात नहीं की ।"
"कितनी साल से उसे पसंद करता है ?"
"तीन साल से।"
"उस लड़की का नाम क्या है रे ?"
"गीता"
"नाम सुंदर है। वह कैसी है ?" आंखों में एक चमक के साथ सविता ने बेटे को देखा।
"तुम उसे एक बार देख लो तो.... तू ही मेरी बहू है ऐसा कह के तुम हाथ पकड़ कर घर ले कर आओगी मां।"
"तुम्हारी इच्छा ही मेरी इच्छा है । उस गीता को ही अपनी घर की बहू बनाकर लेकर आती हूं।" सविता की आवाज में एक उत्साह दिखाई दिया।
"पहले उस लड़की से मेरे मन में जो है उसे कह देता हूं। फिर तुम जाकर बात करो।"
"बिना समय गवाएं जल्दी से बात कर ले।"
"बात करूंगा।"
शर्माते हुए मोती हंसा।
उसके मन के अंदर गीता इधर से उधर दौड़ रही थी। अपनी पोनीटेल को हिलाते हुए झुमको को पहने, हिरनी जैसी आंखों पर काजल लगाए वह दिखाई दे रही थी।
'मेरी प्यारी गीता ! मेरी राजकुमारी, मेरी सपनों की रानी मेरी प्यारी तितली तुम्हारे दिल में मैं हूं क्या?"
'तुम्हारे दिल में मैं हूं क्या ?'
'तुम्हारे दिल में मैं हूं क्या ?"
बड़बड़ाते हुए अपने मन में बार-बार यही पूछ रहा था।
"क्यों नहीं अपने आप में क्या बात कर रहे हो ?" सविता ने पूछा।
"नहीं तो।"
"झूठ मत बोल ! तुझे अपने आप बोलते हुए, अकेले में अपने आप हंसते हुए मैं देख ही तो रही हूं। पागल होने के पहले उस लड़की से बात करके शादी करने की बात सोच।"
ऐसा मजाक कर रही थी सविता।
अध्याय 4
"मनाली यहां आना।" गीता बड़े प्यार से बुलाई।
"क्या बात है दीदी।"
"आ बच्चे में बताती हूं।"
हाथ में रखे पुस्तक को उल्टा रखकर मनाली उठी। एक छोटे से आभूषण की डिबिया को मनाली को गीता ने पकड़ाया।
"यह ले लो ।"
"यह क्या है दीदी ?" असमंजस से पूछा मनाली ने।
"ले कर देखो।"
आभूषण के डिब्बे को लेकर खोला।
डिब्बे में दो ग्राम का सोने की चेन थी।
शुद्ध के. डी. एम. सोना होने के कारण चमाचम चमक रहा था।
"किसके लिए है यह चेन ?"
"तुम्हारे लिए ही है।"
गीता ने उसके हुक को उतार कर मनाली के गले में पहना दिया।
"दीदी जो रुपए तुम कमाती हो उसे लाकर पूरे के पूरे कवर को ही अम्मा को दे देती हो। फिर आपके पास चेन लेने के लिए पैसे कहां से आए ?"
"रोजाना जो ग्राहक आते हैं वे जो सोना खरीदते हैं उसमें से कुछ परसेंटेज मालिक हम लड़कियों को देता है। जो रोजाना कम से कम 50 तो होता है। उसी मैं लेती नहीं थी और मालिक को ही जमा करने को कह दिया था। अब एक साल हो गया उन रुपयों से तुम्हारे लिए मनाली मैंने चेन खरीद ली।"
"तुम्हारे पैसे से तुम ने खरीदा उसको मुझे क्यों दे रही हो दीदी ? दीदी आप ही अपने गले में पहनों।" मनाली ने अपने गले में पहने हुए चेन को उतारने की कोशिश करने लगी।
"नहीं मनाली।"
"दीदी"
"मुझे तो मोती के माला ही पसंद है। अब तुम सफेद मोती के हार मत पहनो ! तुम्हारे गले में ही यह हार सुंदर लगता है।"
इन दोनों की बातों को सुनकर रसोई के अंदर काम करने वाली रितिका भाग कर बाहर आई।
वह काली, मोटी, और उसके सारे बाल सफेद थे और उसका चेहरा भी बहुत भयंकर लग रहा था। जिसमें शांति का भाव बिल्कुल नहीं था। चेहरे पर गुस्सा और कठोरता छाई हुई थी।
"अरी.... उस हार को उतार।"
मनाली को डांटते हुए उसने कहा।
"अम्मा।"
"उतारने को कह रही हूं ना ?"
मनाली जल्दी से उसे उतारने के लिए रितिका के पास आई।
उसे लेकर छूकर घूर कर रितिका ने देखा। फिर नफरत से गीता की तरफ घूमी।
"निकम्मी तेरे में अक्ल है क्या ?"
"मौसी"
"खरीदा तो खरीदा, तीन ग्राम का तो खरीदती और नगीने जड़े हुए होते तो कम से कम मैं पहनती ? केवल दो ग्राम का लेकर आई है?" रितिका चिड़चिड़ाते हुए बोली।
"तीन ग्राम के लिए बहुत ज्यादा रुपए चाहिए ना मौसी।"
"अच्छा छोड़। अब कुछ भी लेकर आए तो मेरे हाथ में देना। तू बहुत बड़े आदमी जैसे उसके गले में पहना दिया। पढ़ने वाली लड़की कहीं घुमा कर आ जाएं तो वह फिर मिलेगा क्या ?"
उसने उस चेन को आभूषण के बक्से में रखा और उसे अपने लोहे के संदूक में रखकर ताला लगा दिया।
"दीदी"
कमला ने गीता के कंधे को झकझोरा। बड़ी फ्रॉक पहनी हुई थी। दो चोटी की हुई थी और जिसे मोड़ कर बांधा हुआ था।
"बोल कमला"
"सिर्फ मनाली को चेन लेकर आई हो ! मैं भी तुम्हारी छोटी बहन हूं ना मेरे लिए कुछ नहीं?"
"तुमको क्या चाहिए कमला ?"
"अंगूठी"
"तीन महीने ठहर जाओ जरूर ले कर दूंगी"
"सचमुच में दीदी ?"
"सचमुच में कमला"
"हाय मुझे दीदी ने अंगूठी लेकर देने को बोला है" जोर से चिल्लाते हुए कूदते-फांदते भागी कमला।
उसे स्वयं को प्रेम, प्यार नहीं मिला है इस वेदना को छोड़कर जितना वह दूसरों को दे सकती है उतना प्रेम, प्यार और खुशी बांटती है।
यह एक समझौते का विषय है।
यह एक तृप्ति कारक भाव है।
मनाली और कमला दोनों निष्कपट हैं। रितिका जैसे वे दोनों खराब नहीं है।
वे दोनों जोर से बोलने से भी डर जाती थी।
उन दोनों को गीता ने ही बचपन से गोदी में खिलाया है।
गीता अपनी दोनों बहनों पर जान छिड़कती थी। उन्हें अपने आंखों का तारा समझती थी।
"अरे गीता वहां पर क्यों स्तंभित होकर खड़ी है री ? सोने की चेन लेकर आ गई है इसीलिए झूले में बैठाकर नहीं झूला सकते। गधा हमेशा गधा ही होता है। आकर पिछवाड़े में पड़े जूठे बर्तनों को साफ कर दे ।" कर्कश आवाज में बोली रितिका।
"अभी आई मौसी ।"
डर कर भागी गीता।
मोती के लेकर दिए हुए बिरयानी को कंडक्टर हनुमान, पप्पू क्लीनर दोनों ने बड़े चाव से खाया।
"भाई साहब आज कोई विशेष बात है ?" बड़ी उत्सुकता से पप्पू ने पूछा।
"हां"
"आपका जन्मदिन है ? वह उछलने लगा।
"नहीं"
"और क्या है भाई साहब?" वे पीछे पड़ गए।
"और क्या ? वह लड़की गीता ने तुम्हारे प्रेम को मान लिया?"
"नहीं रे"
"जन्मदिन भी नहीं है, उस लड़की गीता ने तुम्हारे प्रेम को स्वीकार भी नहीं किया। फिर किसलिए यह सब ? कोई खुशी की बात हो तो ही खा सकते हैं। मिल रहा है इसीलिए पूरे मन से नहीं खा सकते भैया।"
बिना खाए आधे में ही पप्पू उठा तो उसके पीठ पर प्रेम से एक मुक्का मोती ने मारा।
"अबे बहुत नखरे मत कर ? चुपचाप बैठ कर खा। शांति से बैठ कर खा रहे हनुमान ने भी गर्दन को ऊपर किया।
"हमें वैसे ही बिरयानी लेकर खिलाया क्या मोती ? कोई खुशखबरी नहीं है क्या?"
"खुशखबरी तो है।"
"उसे पहले बताओ।"
"मेरे प्रेम को मेरी मां ने स्वीकृति दे दी। गीता से मेरी शादी करने के लिए माँ तैयार हो गई।"
फुले हुए गाल पर नए खून का प्रवेश हुआ जैसे मोती शरमाया ।
"बस इतनी सी बात ? मैंने तो कुछ और ही सोचा? तुम्हारी मां की बात दूसरी है। पहले उस लड़की के मन में क्या है मालूम करो। पहला प्रेम हमेशा सफल नहीं होता है।"
"भैया ! डायलॉग्स ज्यादा मत मारो। मेरा प्रेम जीतेगा।"
"जीतना चाहिए सिर्फ मुंह से बोलने से हो जाएगा ? उस लड़की से मुंह खोल कर बातें करो भाई।"
"डर लगता है भाई"
"तेरी बात सुने तो हंसी आती है"
"शर्म भी आती है।"
"तू आदमी है ना मोती ? निडर होकर बात कर। शर्माए तो बात नहीं बनेगी । वह लड़की तुम्हें गर्दन उठाकर भी नहीं देखती। मुझे पता नहीं क्यों संदेह हो रहा है।"
"संदेह ?"
"हां संदेह ही। उस लड़की के गांव में कोई रिश्ता तय होगा ऐसा लगता है। इसीलिए वह तुम्हें गर्दन उठाकर भी नहीं देखती। नहीं तो इन तीन सालों में कभी तो तुम्हें नजर उठाकर देखा होता, तुमसे बात की होती, हंसी होती।"
"अरे नहीं भैया तुम बोल रहे हो ऐसा कुछ भी नहीं है। मैंने उसके बारे में अच्छी तरह पूछताछ कर ली हैं । अपनी मौसी के डर के कारण ही वह ऐसा सब करती है।"
"उस लड़की से प्रेम निवेदन करने के अलावा सब काम अच्छी तरह से निभा रहे हो।"
हनुमान और पप्पू दोनों खाना खा चुके थे ।
"आज कैसे भी कह दूंगा।"
"बस में बोलोगे ?"
"और क्या करूं ?"
"तुम्हारे मन में जो है लेटर में लिखकर तुम मत दो अपने पप्पू से देने के लिए बोलो ! पढी की नहीं उसका जवाब वह लड़की दूसरे दिन तुम्हें बता देंगी।"
हनुमान जो बोल रहा है उसे सही लगा।
"ठीक है भैया जैसे तुम कह रहे हो वैसे कर दूंगा।" बड़े उत्साह से मोती ने सिर हिलाया।
मोती अच्छी कविता लिखता था।
दसवीं में पढ़ रहा था तब से उसको कविता में एक रुचि जागृत हुई और कविता लिखने लगा।
कॉलेज में कई बार कविताएं लिखने से उसकी बहुत प्रशंसा हुई थी ।
कॉलेज में उसने गणित लेकर बीएससी की। पर गणित में वह बहुत कमजोर था। गणित उसकी समझ में नहीं आता था।
दो साल के बाद वह पढ़ नहीं सका। उसने कॉलेज छोड़ दिया। उसे सफलता ना मिलने से उसे छोड़कर ड्राइवरी की ट्रेनिंग ली। लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट मिनी बस ड्राइवर के काम में आ गया।
उसके बाद कविता लिखने का कोई मौका उसे नहीं मिला। अब फिर उसने एक सुंदर कविता लिखी और उसके द्वारा गीता को अपने प्रेम के बारे में अपनी इच्छा जाहिर कर दी।
गीता कविता पसंद करती है क्या?
मालूम नहीं।
फिर भी अपने मन की बात को कविता के रूप में बता दिया। ट्रांसपोर्ट के शेड में रहते हुए पप्पू को सफेद कागज लाने को बोला और कविता लिखकर खत्म की। फिर एक बार पढ़ कर देखा। उसे तृप्ति हुई। उसमें से छोटी-मोटी गलतियों को ठीक किया। और उसे अपने जेब में रख लिया।
इसे गीता को कब देना चाहिए?
रात को ही काम खत्म करके घर जाते समय दे देंगे ? नहीं।
हाथ में लेकर वह बिना पढे तालाब के किनारे फेंक देगी तो ।
सुबह काम पर आते समय पुराने बस स्टैंड पर रोक कर उतरते समय पप्पू को देने को बोले तो।
दिन में देंगे तो भी पढ़कर फाड़ेगी।
मोती ट्रांसपोर्ट शेड से बाहर आया। कंडक्टर हनुमान और क्लीनर पप्पू दोनों पहले ही मिनी बस में चढ़ गए थे।
"चलें भैया ?"
"अरे पप्पू"
"बोलिए भैया" उनके पास जाकर खड़ा हुआ।
"इस पत्र को मैंने दिया कहकर गीता को दे दो।"
"दे दूंगा भैया।" कहते हुए उसके चेहरे पर एक खुशी का प्रकाश दिखाई दिया।
"बस से उतरते समय देना है। मोती भैया ने दिया है कह कर देना।"
"ठीक है भैया।"
"गीता को ना देकर किसी और लड़की को मत दे देना । नहीं तो समस्या खड़ी हो जाएगी।"
"मैं क्या बच्चा हूं क्या ? मैं सब कुछ जानता हूं। मैं देख लूंगा।"
"यह मेरी जिंदगी का सवाल है ध्यान रखना।"
"डरो मत ! मैं सब ठीक-ठाक कर लूंगा। मेरे हाथों की रेखा बड़ी भाग्यशाली है। कल ही देखना लड़की तुम्हारी गोद में आकर गिर जाएगी।"
"मेरे गोद में भी ना आए न कंधे पर आए। मेरे प्रेम को स्वीकार कर ले तो बस है। मैं अपनी मां से कह कर उसके मौसी से लड़की मांगने के लिए कह दूंगा।" कहकर मोती बस को स्टार्ट किया।
अध्याय 5
"पुरानी बस स्टैंड वाले सब लोग उठ जाइए।"
कॉन्टैक्टर हनुमान ने आवाज दी।
उसके पहले स्टाप पर ही बहुत से लोग उतर गए थे ।
गीता और कुछ लोग ही सिर्फ उस बस में बैठे थे। पुराने बस स्टैंड में मिनी बस के रुकते ही गीता दोनों हाथ को फैला कर उठी।
"जल्दी से ले जा कर दे रे" क्लीनर पप्पू से धीरे से बोला मोती।
मोती के दिए पत्र को अपने शर्ट के पोकेट से बाहर निकाला पप्पू ने और गीता के पीछे जल्दी-जल्दी जाने लगा।
"दीदी" धीरे से बुलाया।
नीचे उतरी गीता तुरंत मुड़ी।
"इसे ड्राइवर मोती भैया ने आपको देने के लिए बोला।"
जल्दी में ही गीता के हाथों में देकर लपक के मिनी बस में चढ़ गया।
"भैया ठीक चलो"
बड़े उत्साह से उसने सीटी बजाई।
गीता पसीने से तरबतर हो गई।
उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। पप्पू के दिए हुए, मुड़े हुए कागज को डरते हुए, चौंक कर देखा।
उसकी कुछ भी समझ में नहीं आया।
किसी ने देखा होगा क्या?
कुछ भी समझ में नहीं आया।
"ड्राइवर मोती भैया ने आपको देने के लिए बोला दीदी"
पप्पू की आवाज साफ उसके कानों में गूंज रही थी।
लोगों की भीड़ थी।
नहीं तो उसी जगह उस पत्र को फाड़ कर फेंक देती।
जल्दी से उस पत्र को अपने हैंडबैग के अंदर रख दिया।
सुराणा ज्वैलर्स की तरफ चलने लगी। दोपहर को 2:00 बजे से 3:30 बजे तक आभूषण की दुकान पर बहुत भीड़ थी।
वहां काम करने वालों का लंच टाइम वही होता है।
सभी को भूख लगने लगी।
गीता ने जल्दी से खाना खाया। टिफिन बॉक्स को वाश बेसिन में धोया। पप्पू के दिए हुए कागज हैंड बैग में रखा था। उसे चुपचाप बाहर निकाली। नीचे के मंजिल में जो बाथरूम था उधर जाने लगी। उसे फाड़कर फेंकने के लिए खोला। उसके टुकड़े-टुकड़े करने के पहले उसमें क्या लिखा है देखने की उसे उत्सुकता हुई।
'पढ़े या ना पढ़े ?'
कई-कई बार सोचा।
उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसकी उंगलियां कांपने लगी। मौसी रितिका उसकी आंखों के सामने आकर खड़ी हुई उसे ऐसा लगा । उसकी धड़कन बढ़ गई।
'यह सब मौसी को पता चले तो मुझे नौकरी पर नहीं भेजेगी'
'बाहर भी जाने नहीं देगी।'
'साधारणतया अपने शब्दों से हृदय को छेदने वाली, यह बात पता चले तो चुप रहेगी क्या ? मुझे मार डालेगी। जिंदा जला देगी।
'मौसी को पता चले हैं तभी समस्या है ? मैं तो पढ़ते ही उसे फाड़ कर फेंक दूंगी?"
उसने कागज को खोला।
टेढ़े मेढ़े अक्षरों में मोती के लिखे कविता पर उसकी आंखें चली गई।
'मेरा हृदय !
इसे टुकड़े टुकड़े करने के पहले
एक बार इसे पढ़ लो!
उसके बाद मोटे अक्षरों में शुरू हुआ।
आगे पढ़ी।
आंखों के रास्ते
कब तुम
दिल में उतर गई
मैं जान ही न पाया।
तुम्हारी झुकी आंखों ने
कभी ना देखा
मेरी आंखों के दर्पण में
अपना चेहरा।
एक बार भर नजर
देखो मुझे
तो जान पाऊं मैं
क्या मैं भी
तुम्हारे दिल में हूं?
यह जान तुम्हारे लिए
यह शरीर तुम्हारे लिए
यह पूरा संसार हम दोनों के लिए ही है
गीता तुम्हारे मन में मैं हूं कि नहीं?
आज ही बता दो
तुम्हारे जवाब को!
हजारों-हजारों सोच में
मोती
ड्राइवर, लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट।
पूरा पढ़ने के बाद उसके चेहरे पर पसीने की बूंदे मोती जैसे चमकने लगी।
कविता लिखे हुए कागज को जल्दी से टुकड़े टुकड़े किया। फटे हुए कागज के टुकड़ों को टॉयलेट में डाल दिया और पानी चला दिया।
'गीता तुम्हारे दिल में मैं हूं या नहीं?
आज ही बोल दो तुम्हारे जवाब को।
हजारों-हजारों सोच के साथ तुम्हारा मोती'
आखिर के शब्द बार-बार उसके कानों में गूंज रहे थे। मोती उसके आंखों के सामने आकर गया।
सुंदर गोल चेहरा, घूंगराले बाल जो माथे पर मंडराते हैं।
हमेशा कुछ कहती हुई विशाल आंखें। तीखी, लंबी नाक।
ऐठी हुई मूछें। नीचे का होंठ थोड़ा मोटा।
हंसते समय चमकते हुए सफेद दांत।
टाइट आधी बाहों का शर्ट। गले से चिपका एक सोने की चेन।
पता नहीं कभी एक बार उसे गीता ने देखा था। उसका नाम मोती है यह भी उसे पता नहीं था ।
उसकी निगाहें, नटखट हंसी, अपने से जबरदस्ती बोलना, उसे उत्तेजित किया था ।
उसके समझ में नहीं आया ऐसा नहीं।
समझती है।
मैं उसके लिए लालायित हूँ उसकी समझ में आता है।
मोती सुंदर है।
मोती बीड़ी सिगरेट कुछ भी नहीं पीता।
मोती किसी भी लड़की से हंसकर बातें नहीं करता।
मोती साफ सुथरा आदमी। रोजाना मिनी बस में चढ़ते हुए,
उसका ह्रदय उसकी तरफ जाते हुए उसने महसूस किया, दूसरे ही क्षण उसे कठोर लोहे के सांकलों से अपने आप को बांध लिया था ।
मिलेगा तो सोच सकते हैं।
बात पूरी होगी तो इच्छा रखनी चाहिए।
यह प्रेम नहीं मिलेगा।
यह इच्छा पूरी नहीं होगी।
सोच कर, मिलकर, आशा रखकर, फिर निराशा में डूबो तड़पो परेशान हो आखिर में सिर में चोट लगने के सिवाय कुछ नहीं....
पूरी जिंदगी ठीक ना होने वाली वेदना से आंसू बहाने से...…
शुरू में ही दूर रहना अच्छा है।
इसलिए गीता उसे कभी भी नहीं देखती थी।
'उसे पनपने नहीं देना चाहिए'
'मेरे मन में कुछ भी नहीं है आज ही पप्पू से बोल देना चाहिए'
गीता ने सोच कर अपने आप में एक फैसला कर लिया ।
अध्याय 6
रात 9:00 बजे।
अंधेरे को चीरते हुए मिनी बस जसवंतपुरा के पास पहुंच रही थी।
गांव का रास्ता सकरा खड्डे वाला उबड़-खाबड़ रास्ते से जाने के कारण लोग उछल-उछल पड़ते। जसवंतपुरा में जाकर बस खड़ी हुई।
अब दूसरे दिन सवेरे ही यहां से चलेगी।
आज मोती ने ही बस चलाई थी।
कल दूसरा आदमी आएगा।
कल पूरे दिन मोती को आराम है। घर में ही रहेगा। गीता उसके बात को मान ले तो बस सब हो जाएगा।
कल ही अम्मा के साथ जाकर लड़की मांग लेंगे। 'बार-बार तिरछी आंखों से गीता को देखते हुए मिनी बस को चला रहा था मोती। मिनी बस में भीड़ बिल्कुल नहीं थी।
गीता और कुछ लोग ही बस में बैठे थे। बस में भीड़-भाड़ नहीं थी। गीता अपने सर को झुकाए ही बैठी रही। थोड़ी देर पहले ही खिले कमल के फूल जैसा चेहरा। मछली की जैसी आंखें।
हिल-हिल के ही हजारों कहानी बोलने वाली उसके झुमके और कानों पर आए लटे। ऊपर से पोनीटेल।
कभी सिर पर एक गुलाब लगा लेती है तो भी अच्छा लगता है नहीं लगाए तो भी अच्छा लगता है। उसके गले में 5 रुपये की मोती की माला। पहने मोती को लगता वह करोड़ों रुपए का है।
'गीता मेरे पत्र को लेकर पढ़ी होगी क्या ? मेरी कविता समझ में आई होगी क्या?
मेरे प्रेम को समझी होगी क्या?
मेरी तड़प, मेरी आसक्ति के एहसास को समझेगी?
अपनी सहमति देगी क्या?
मोती को बहुत घबराहट हो रही थी।
"जसवंतपुरा के लोग उतरिए..." सीटी बजाकर हनुमान ने आवाज दी।
एक-एक करके उतरने लगे।
"अरे... जाकर पूछ। जाकर पूछ..." क्लीनर पप्पू से धीरे से बोला मोती।
गीता उठी।
वही आखिरी यात्री थी।
वह सीढ़ी पर खड़ी हुई।
"दीदी.... मोती भैया के पत्र को पढ़ा क्या.." धीमी आवाज में पूछा।
गीता बिना जवाब दिए मिनी बस से नीचे उतरी।
"जवाब देकर जाओ दीदी..."
जसवंतपुरा में सिर्फ एक लाइट पीली हल्की जल रही थी। पास में रहे ठेली वाले दुकानों को बंद कर रहे थे।
बस से उतरे यात्री अपने-अपने रास्ते चलने लगे, गीता के पीछे ही गया पप्पू।
"दीदी... मोती भैया को मैं क्या जवाब दूं....."
"मेरे मन में कुछ भी नहीं है जाकर बोल दो...."
"दीदी..."
"दूसरी बार इस तरह का लेटर दें...
तो फिर मैं इस बस में नहीं चढ़ुगीं। दूसरी बस में चढ़कर पैदल आ जाऊंगी।"
गुस्से से बोल कर, मुड़ कर भी ना देख, अपने घर के दिशा की ओर चलने लगी।
स्तंभित होकर खड़ा रहा पप्पू।
जसवंतपुरा में मिनी बस को आधा रोड काट कर मोती ने घुमाया।
अब मिनी बस के सेंटर जाने तक इसमें कोई यात्री नहीं चढ़ेगा बस खाली ही जाएगी।
सीटी बजाने के साथ ही आखिर के यात्री के उतरते ही पैरों को लंबा करके हनुमान कंडक्टर लेट गया।
मूर्ति के सामने एक सीट पर आकर क्लीनर पप्पू बैठा।
"गीता ने क्या बोला रे"
"मेरे मन में कुछ नहीं है वह बोली..."
"फिर..."
"अब इस तरह का पत्र कोई दें... तो अपने बस में वह नहीं चढ़ेगी....।"
"ऐसी बोली क्या ?"
"हां भैया... वह लड़की तुम्हारे लिए ठीक नहीं.... उसे भूल जाओ भैया..."
"अबे..." वह गुस्से में आ गया।
"अम्मा को बोलकर दूसरी लड़की देखने को बोलो भैया...."
"नहीं हो सकता। इस जिंदगी में मेरी शादी होगी... तो सिर्फ गीता से...!"
मोती बड़े वैराग्य से बोला।
"तुमको हम सुधार नहीं सकते भैया" कहकर पप्पू भी दूसरी जगह जाकर सो गया।
तालाब के रोड पर मिनी बस तेज चल रही थी।
'हो सकता है क्या ?
गीता को फिर से बोल सकते हैं क्या ?
सोच भी नहीं सकता ऐसे ही छोड़ सकते हैं क्या?
अभी तक दिल में ताला लगा कर रखें इच्छाओं का क्या करें?
भूलने के लिए मैंने प्यार किया?
मिटाने के लिए ही मैंने सपनों को संग्रहित किया?
जलाने के लिए क्या मैंने फूलों को इकट्ठा किया?
तोड़ने के लिए कि मैंने कांच का प्रेम महल बनवाया?'
अब मोती के मन में एक तूफान सा छा गया।
"खाना खाओ, मोती" घर के अंदर से सविता ने पूछा।
"नहीं चाहिए मां"
"क्यों नहीं चाहिए रे... आते समय होटल पर कुछ खाकर आ गया क्या ?"
"नहीं अम्मा"
"तझसे तो भूख सहन नहीं होती..."
असमंजस में लड़के को सविता ने देखा।
उसने रुपयों को भगवान के आले में रखकर संदूक से एक लूंगी लेकर मोती ने कपड़े बदले।
उसका चेहरा असामान्य था।
"तुझे पसंद है इसीलिए आज पूरी और आलू मटर की सब्जी मैंने बनाई है। तू मना कर रहा है..."
सविता ने बहुत मनोहार किया।
"भूख नहीं है..."
"क्यों भूख नहीं है ? बस में कोई समस्या थी क्या? कोई पीकर परेशानी खड़ी किया क्या?"
"नहीं"
"फिर?"
"मन ठीक नहीं है।"
"मन ठीक नहीं ? उस लड़की ने डांटा क्या?"
मोती बिना बोले चुप रहा।
"बोल रे.... उस लड़की से बात कर ली ?"
"मैंने बात नहीं की... पप्पू से बात करने को बोला"
"क्या बोली.."
"उस लड़की के मन में कुछ भी नहीं है ऐसा बोल दिया..."
जो हुआ उसको मोती ने पूरे विस्तार से बता दिया।
"यही तेरी समस्या है क्या ? इसीलिए भूख नहीं लग रही... खाना नहीं चाहिए बोल रहा है क्या?"
"हां"
"गीता एक वयस्क लड़की है। बड़ी समझदार पारिवारिक लड़की है। अपनी मौसी से डरने वाली लड़की है। वह हमेशा सिर झुका कर रहती है। तुमने ही मुझसे कई बार कहा। ऐसी लड़की से प्रत्यक्ष में जाकर पूछो तो उसे पसंद नहीं आया, मेरे मन में कुछ नहीं है यही बोलेगी..."
"फिर क्या करें अम्मा ?"
"उस लड़की से अब कुछ मत पूछो। कल तुम और मैं दोनों उसके घर जाकर, गीता के मौसी से लड़की मांगेंगे...."
"अम्मा..."
उसकी आंखों में फुलझड़ी जलने लगी।
उसकी आवाज में तबले की ध्वनि सुनाई दी। उसके मन में वर्षा होने लगी।
उसके शरीर में एक उत्साह फैल गया।
"अब खुश है ना ?"
"खुश हूं..."
"बड़े लोगों के पास पूछने वाली बात को एक छोटे लड़के से कहकर पूछवाना बहुत गलत है।"
सविता ने एक दीर्घ विश्वास छोड़ा।
"मुझे नहीं बोलना चाहिए इसलिए पप्पू से पूछने को बोला..."
"ठीक है अब फिक्र छोड़...! वैसे भी कल उनके घर हम जा रहे हैं ना...."कहते हुए हाल ही में दो पूरी और सब्जी रख कर उसे सविता ने दिया।
"खा ले रे"
"अम्मा..." उसने अम्मा को देखा।
"सब अच्छी तरह से होगा। मैं सब कुछ कर दूंगी...." आश्वासन देने वाली अम्मा को आंखों से देखते हुए उसने खुशी से पूरी खाना शुरू कर दिया ।
अध्याय 7
घर में कोई नहीं था।
राकेश जी खेत पर चले गए।
सिर्फ रितिका ही थी। जर्सी गाय के दूध को निकाल रही थी। इसका दूध बहुत ही स्वादिष्ट और शरीर के लिए अच्छा होता है।
इसको वह खूब उबालकर गाढ़ा कर पूरा स्वयं पी जाती थी।
उसकी जो राक्षसी शक्ति थी शायद उसका कारण यही था।
गाय ने तीन बछड़े को जन्म दिया | इस गाय जिसका नाम लक्ष्मी था।
इन बछड़ों के लिए भी दूध ना छोड़ कर पूरे दूध को दोह लेती थी।
बाहर से कोई आवाज आई।
वह जल्दी से बाहर आई।
एक बाइक बाहर खड़ी थी। मोती और सविता नीचे खड़े हुए थे।
मोती को और सविता को रितिका ने भौंहों को ऊंचा कर उन्हें देखा।
मोती को वो जानती थी।
जब कभी मिनी बस से आती-जाती तब उसे देखा था।
'यह आदमी मिनी बस का ड्राइवर है ! यह अपने घर क्यों आए हैं?'
उसके मन में असमंजस था।
अपने कमर में हाथ रखकर उन्हें उसने घूर कर देखा।
सामान्य शिष्टाचार वश भी उन्हें 'आइए' कहकर भी नहीं बुलाया।
"किसे ढूंढ कर आए हो...?"
"आपसे मिलने ही आए हैं।" सविता बोली।
थैले भर के लाए हुए फलों और मिठाई को उन्हें दी।
"इसे ले लीजिएगा।"
"यह सब क्यों ?"
"अच्छी बात शुभ बात करने आए तो फल मिठाई लेकर ही तो आते हैं ना...?"
"शुभ समाचार...? रितिका ने अपने भौंहों को फिर ऊपर चढ़ाया।
"अंदर चलकर बात करें...?"
दोनों अंदर आए।
बड़ा सा खपरैल वाला घर था।
चौड़ाई लंबाई खूब थी। काफी खुली जमीन थी । कुर्सी वगैरह कुछ नहीं था। एक बेंच पड़ा था।
दीवार पर ब्लैक एंड वाइट के बहुत से फोटो लगी हुई थी।
मोती और उसकी मां सविता बेंच पर बैठ गए। रितिका नफरत से उन्हें देख रही थी।
"मेरा नाम सविता है। यह मेरा लड़का मोती है। आपकी गांव की तरफ से आने वाले लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट में मेरा बेटा मिनी बस का ड्राइवर है..."
"मैंने देखा है।
उसका दिल धड़कने लगा।
'सुंदर दामाद, प्यारी सास... दोनों ही बहुत अच्छे दिख रहे हैं। छोड़े तो अभी यह लोग तुरंत गीता को लेकर चले जाएंगे ऐसा लगता है ! उस दरिद्र का ऐसा एक सौभाग्य? नहीं। ऐसा नहीं होना चाहिए। गीता को एक ऐसे परिवार में शादी करके नहीं भेजना चाहिए.... बिना किसी समस्या के उसे शांति से जीने नहीं देना चाहिए....'
उसमें ईर्ष्या की भावना जागृत हो गई थी ।
खराब सोच भी जागृत हुई।
उनको भगाने की तैयारी करने लगी।"
"क्या.. पहने कपड़े से ही भेजना है? रूपए, पैसे होने पर कुछ भी बात करोगी क्या? खपरैल के मकान को देखकर इनके पास कुछ भी नहीं है ऐसे सोच लिया क्या? पहले लड़की दे दो बस कहोगे.... फिर घर में रहने वाले सभी चीजों पर निगाहें रहेगी.... तुम्हारे जैसे बहुत से लोगों को मैंने देखा है...." वह सांप जैसे फुफकारने लगी।
हम लोगों को तड़पाने के लिए ही ऐसी बातें कर रही है उनके समझ में आ गया।
"आप गलत समझ रही हो ?”
"कैसे भी बोलो तो मुझे क्या है ? मैं अभी उसकी शादी नहीं करने वाली। 20 साल की तो है। और सात-आठ साल बाद ही उसकी शादी करूंगी। मुझे छोड़ो भाई। पहले इस जगह को खाली करो...."
"आप एक लड़की हैं। आपकी दो लड़कियां और हैं। आप मन के विरोध को त्याग कर, समानता से आप बात करें तो सभी के लिए अच्छा है..."
"श्राप दे रही हो क्या ?"
"अरे अरे नहीं... मैं क्यों श्राप दूंगी ? मुझे जो लगा मैंने कह दिया। हम आपके यहाँ लड़की मांगने आए हैं। झगड़ा करने नहीं आए।"
शांति से सविता ने बात की।
"क्यों झगड़ा करके तो देखो...."
"आप ऐसे कैसे बोल रही हो ?"
"फिर कैसे बोलूं ? लड़की नहीं है तो चुपचाप चले जाना चाहिए ना? दुनिया में कोई और लड़की नहीं है क्या?"
"थोड़ा सोच कर देखो मां.. गीता की मेरे लड़के से शादी करवा दो तो वह... सिर्फ दामाद ही नहीं आपका बेटा बनकर रहेगा ।"
सविता ने बहुत ही नम्रता से बात की।
ताकि किसी तरह भी रितिका मान जाए । मोती के इच्छा को पूरा कर देना चाहिए । गीता मेरी बहू बन कर आना चाहिए उसने ऐसा सोचा ।
मोती के प्रेम के आगे वह सब अपमानों को सहने के लिए तैयार थी।
"मिनी बस चलाने वाले को चरवाहा बनने की क्या जरूरत ? नहीं हो सकता है तो छोड़ दो?"
"कांट कर फेंक दिया जैसे बातें मत करो अम्मा.... कहो तो हम गीता के लिए एक साल... या दो साल... रुक सकते हैं।"
"एक बार बोले तो आपकी समझ में नहीं आता ? गीता की अभी मैं शादी करने वाली नहीं! आप भले ही कितने साल रुकी रहो मैं आपको गीता नहीं दूंगी। आने दो उस गधी को यह सब उसका किया धरा है।" वह दांतों को पीसने लगी।
"गीता को कुछ भी नहीं पता। हम अपने आप आए। आप मेरा रिश्ता गीता से मत करो तो कोई बात नहीं परंतु जो मुंह में आए मत बोलिए। गीता के मन को मत दुखाओ।"
मोती दोनों हाथों को जोड़कर बोला।
"अरे रे ! ड्राइवर साहब को गीता के ऊपर बहुत ही प्यार टपक रहा है । उसको खिला-पिला कर बड़ा मैंने किया है। उसे डांटने का, उसे मारने का मुझे अधिकार है। आभूषण के दुकान पर जा रही हूं कहकर आप लोगों को उसने प्रभावित किया है! कांटे के पेड़ को काट के ही बढ़ाना चाहिए। लड़कियों को ठोक बजाकर ही बड़ा करना चाहिए। नहीं तो कुल का ही नाश हो जाएगा।" रितिका जोर-जोर से चिल्लाई।
"अम्मा... चलो मां चलते हैं।
मोती और उसकी मां उठ गए।
"इसे पहले ही कर देते तो।"
उनके साथ बाहर तक रितिका स्वयं भी आई।
सविता ने उसे आंख उठाकर भी नहीं देखा।
"वह लड़की कितने साल इसके साथ कैसे रही होगी....?"
उसे गुस्सा और रोना एक साथ आ रहा था उसने बाइक को किक मारकर स्टार्ट किया।
अध्याय 8
आकाश फटने को हुआ
चांदनी भी फटनी की सोचने लगी
इधर-उधर आई मछलियां तमाशा देख रहीं थीं।
चल रही हवा भी फटने की सोचने लगी।
सब कुछ असामान्य।
भयंकर चित्कार किया गीता ने।
"बहुत दर्द हो रहा है मौसी..."
रितिका के हाथ में जो बांस की लकड़ी थी उससे गीता के पीठ पर जोर-जोर से मार रही थी।
"मत मारो मौसी.... मत मारो... मौसी...."
काम खत्म होते ही मिनी बस पर चढ़कर, जसवंतपुरा में उतर, अभी गीता घर आई थी।
आते ही उसे मारना शुरू कर दिया।
लात मारने लगी।
"मौसी मैंने क्या गलती की ?"
"इसके अलावा और क्या करना है ?"
"समझ में आए ऐसे बताइए मौसी ?"
"मोती बस ड्राइवर को... तुमने ही तो लड़की मांगने के लिए आने को बोला ?" गीता के बालों को मुट्ठी में पकड़ के दीवार से टकराई।
"मौसी मुझे कुछ भी नहीं पता ?"
"बिना मालूम हुए ही वह इतनी दूर आएगा ? उसको तुम बहुत पसंद हो। अपनी अम्मा को भी बुला कर ला लड़की मांग रहा था! पहने हुए कपड़ों के साथ ही भेज दो बोलता है। एक रुपया भी खर्चा मत करो मैं सारा खर्चा खुद उठा लूंगा। ऐसा सब बात करने के लिए तुम ही ने तो उसे सिखाया होगा ।"
"मौसी... मैं उस आदमी से एक शब्द भी कभी नहीं बोली" आंसू बहाते हुए गीता बोली।
"नाटक मत कर रे... मैं सब जानती हूं। तुम्हें खड़ा करके तुम्हारे दोनों पैरों को जलाना चाहिए"
"मौसी..."
"तू रोज पोनीटेल कर, गुलाब का फूल लगा मटकती हुई उसी के लिए तो जाती थी ? उस को आकर्षित करने ही तो जाती थी? तेरे दो छोटी बहनें हैं तूने सोच कर कभी देखा? कुछ भी हो मैं दूसरी माँ हूं ना! यदि मुझसे पैदा हुई होती.... ऐसा एक काम तू करती... ? किसी से भी प्रेम कर आकर खड़ी हो गई.... किसी एक दिन तू उसके साथ नहीं भाग जाएगी क्या? फिर मेरी दोनों लड़कियों को मैं कैसे ब्याह कराऊंगी? सिर उठाकर बाहर जा सकती क्या?" रितिका के सांस फूलने लगी।
चटाई पर सो रही मनाली और कमला घबराकर उठ बैठी।
उनको कुछ भी समझ में नहीं आया। आंखें फाड़ कर देखने लगी। इन बातों से अपना कोई भी संबंध नहीं है ऐसे राकेश बेंच पर सो रहा था।
"मौसी मुझ पर विश्वास करो.. किसी से भी मैंने प्यार नहीं किया... किसी को भी लड़की मांगने के लिए आने को मैंने नहीं कहा...."
"झूठ मत बोल री..."
दोबारा उसके ऊपर के सिर पर जोर से मारा।
"मौसी आप चाहे तो मैं मर जाऊं ?"
"अरी बदमाश तेरे मन में ऐसी सोच भी है ? जिंदा रहके मेरे प्राणों को खा रही है वह कम नहीं है क्या अब मर के पूरी जिंदगी मुझे अपमानित करने की सोच रही है....? बेवकूफी से कुछ भी खा कर मर जाए तो लोग मुझे ही दोष देंगे..."
"मुझे कोई दूसरा रास्ता पता नहीं है मौसी..."
मौसी के पैरों को पकड़ कर रोई।
मनाली और कमला को भी बुरी तरह रोना आया।
अपनी मां के बीच में बोले तो वे उन्हीं को पीटेगी डर के मारे तमाशा देख रहीं थीं।
"अरी... रोकर, नाटककर.. दुनिया को इकट्ठा मत कर ! तू सचमुच में उस ड्राइवर को नहीं चाहती है ना?"
"सचमुच में नहीं चाहती।"
"तो फिर एक काम कर"
"करती हूं..."
"कल से तुम उस ड्राइवर के मिनी बस में नहीं चढ़ोगी..." उसने फैसला किया।
"मौसी" गीता थोड़ी देर के लिए स्तंभित हो गई ।
"मेन रोड तक पैदल जा।
वहां से दूसरी बस लेकर अपने काम पर जा..."
"ठीक है मौसी" बहुत मुश्किल काम था फिर भी गीता ने कुछ नहीं कहा।
"ऐसे ही वापस आते समय भी मिनी बस में नहीं आओगी। दूसरे बस में आकर उस रोड में उतर आंखें बंद कर पैदल आओ।"
"ठीक है मौसी.."
"मुझे धोखा देने की सोची तुमने... तो तुम्हें काट कर गड्ढे में दबा दूगीं। समझ में आया ?"
"मैं समझ गई।" वह थूक को निगल गई।
"दूसरी बार ऐसी बात हुई तो... मैं मनुष्य नहीं रहूंगी.."
अपने कठोर शब्दों से रितिका ने चेतावनी दी।
इतनी मार खाने के बाद गीता उठ भी नहीं पाई।
भूख से पेट में खलबली मच गई।
बुरी तरह प्यास लग रही थी।
धीरे से लड़खड़ाते हुए उठ कर पानी पिया। हमेशा ठंडी रोटी होती थी। आज वह भी नहीं थी।
"क्यों री ? रोटी नहीं है देख रही है क्या? तेरी रोटी को मैंने गाय को खिला दी। आज भूखी रह तभी तुझे अक्ल आएगी.." जल रहे एक धीमी रोशनी को भी रितिका ने बंद कर दिया ।
घर के अंदर अंधेरा हो गया।
उसी जगह पर लेट गई गीता।
आंखों से आंसू बहते रहे।
'मैं क्यों पैदा हुई'
'मैंने कोई पाप नहीं किया फिर मुझे यह दंड क्यों'
'लड़की पैदा ही नहीं होना चाहिए। पैदा हो तो बिना मां के तो जिंदा नहीं रह सकते'
'अम्मा ! मुझे पैदा करने वाली मां दस महीने मुझे अपने गर्भ में रखने वाली मां! मुझे क्यों इस मिट्टी में छोड़ कर तू चली गई?'
सवेरे तक गीता को नींद ही नहीं आई।
'आएगी ?
गीता आएगी?
आज गीता आएगी?
मिनी बस में चढ़ेगी?'
मोती को हर एक दिन धोखा ही रहा।
मोती बेमन से ही मिनी बस चला रहा था।
उसको अपनी जिंदगी ही बेकार लगाने लगी।
'गीता से मैंने प्यार किया क्या गलती है ?
उसके मना करने पर भी उसके घर जाकर लड़की मांगना गलत था?
मैंने ही अपने देवी के लिए आफत ढूंढ कर दे दी क्या?'
मोती ने गीता के घर जाकर आने के बाद जो घटना घटी उसके बारे में पप्पू से कहा तू मालूम कर उनके घर क्या हुआ।
"वह लड़की अब हमारे बस में नहीं आएगी भैया.... उसकी मौसी ने गीता की बहुत पिटाई की... और बड़े रोड तक पैदल जा कर वहां से दूसरी बस में जाने के लिए बोला...."
"तुझे किसने बोला ?"
"गीता के घर के पड़ोस में एक लड़का टीवी शोरूम में काम करता है ना... उसी ने मुझे कह कर बहुत दुखी हुआ।
'मुझे पसंद नहीं बोले तभी छोड़ देना चाहिए था ना। क्यों वह ड्राइवर भैया ने मां को लेकर उनके घर गए ? गीता के कहने पर ही उसके घर आए ऐसा आरोप उसके ऊपर लगाकर गीता को उसकी मौसी ने अपमानित कर खूब पिटाई की। बेचारी वह लड़की, अब तो आप ड्राइवर भैया को बता देना। अब बहुत सोच समझ कर काम करें। इस लड़की की मौसी नाग है नाग। मुझे बहुत बुरा लगा.. रोज सवेरे तो ठीक है। काम खत्म होने के बाद रात में तीन किलोमीटर चलकर सुनसान जगह से तालाब के किनारे होकर पैदल आना...?"
पप्पू की आंखें नम हुई।
इसको सुनकर मोती के मन के अंदर कांटे चुभे जैसा जख्म हुआ।
"मेरी वजह से ही ?"
'सब कुछ मेरी वजह से ही हुआ ?' उसे बहुत दुख हुआ पश्चाताप हुआ।
"गीता को इस समस्या से किसी न किसी तरह ऊपर उठाना पड़ेगा।
'कैसे करें ?'
'गीता को नहीं रोना चाहिए। उसे किसी तरह की तकलीफ नहीं होना चाहिए। उसको हमेशा हंसती हुई और खुश रहना चाहिए'
'मेरी वजह से ही उसे कष्ट हुआ उसे मुझे ही मिटाना पड़ेगा।'
'क्या कर सकते हैं ?'
'गीता तो एक देवी है। जिसे गुलाब के फूलों पर सोना चाहिए। उसे कांटों के जंगल में बर्बाद होने के लिए नहीं छोड़ना चाहिए।'
'गीता एक देवी है वह सिर्फ मेरी है।'
'गीता एक वीणा है जिसे सिर्फ मैं ही बजा सकता हूं।'
'आखिर में सिर्फ एक बार गीता से पूछ लूं।'
अपने सपने को स्वयं ही सच करना होगा।
अपने जीवन को हमें ही संभालना होगा। अपने भाग्य में लिखे हुए को हमें ही बदलना होगा।
"मोती भैया...." कंडक्टर हनुमान ने धीरे से बुलाया।
"कहिए..."
"तुमसे मैं उम्र में बड़ा हूं... तुम्हारे साथ पाँच साल से काम कर रहा हूं। उस अधिकार से मैं तुमसे कुछ कह सकता हूं मोती ?"
"पहले बोलो।"
"तुम इसे गलत मत लेना।"
"नहीं लूंगा।"
"अभी भी तुम गीता के बारे में ही सोच रहे हो ?"
"हां।"
"मैं तुमसे पूछ रहा हूं.... तुम कितने सुंदर हो.…., तुम इतने होशियार बड़े अच्छे गुण वाले, तुम्हारे इन सब गुणों से क्या तुम्हें दूसरी लड़की नहीं मिलेगी ? उस लड़की ने तुम्हें पसंद नहीं कह दिया। अब वह लड़की हमारे बस में भी नहीं आती है। तुम्हारी वजह से ही उस लड़की को समस्या हो गई । उसकी मौसी ने भी तुम्हें लड़की नहीं दूँगी कह दिया। चुपचाप उस लड़की को भूल जा मोती।"
"भैया...." वह अधीर हो गया ।
"मिलेगी मालूम हो तो रुक सकते हैं। इच्छा कर सकते हैं। वह लड़की तुम्हें नहीं मिलेगी। सच को तुम मत झूठलाओ। हमेशा की तरह हंसते हुए खुश रहो।"
"बड़े भैया..."
"उम्र हो गई तुम्हारी मां के बारे में सोचो। तुम उनके इकलौते बेटे हो। तुम्हारी शादी करके तुम्हारे बच्चे के साथ थोड़े दिन रहने की ठुमरी माँ की इच्छा हो रही होगी । उस मां की इच्छा की कद्र करो मोती..."
"मैं नहीं कर पा रहा....! हमेशा गीता की याद आती है।"
"तुम्हारे सोचने का कोई फायदा नहीं। वह लड़की तुम्हारे बारे में सोचती नहीं।"
"वह मौसी से डरती है भैया"
"आगे तुम क्या करोगे ?"
"मैं स्वयं की उससे बात करूंगा..."
"वह लड़की अपने बस में चढ़ती ही नहीं है.... बस में चढ़कर तुम्हारे पास में खड़े रहे बात करने की नहीं सोचती। वहां जाकर तुम बात नहीं कर सकते। उस लड़की के घर की तरफ सिर रखकर भी तुम सो नहीं सकते। कहां जाकर मिलोगे?"
"रोज गीता मेन रोड पर उतर कर वहां से तालाब के किनारे ही तो पैदल जाती है ना ? वहां जाकर मिलता हूं। और बात करता हूं।"
अपने कंधों को मोती ने झटका दिया।
"मुझको तो लगता है तुम उस लड़की के लिए अच्छा नहीं कर रहे हो..."
कंडक्टर हनुमान ने दीर्घ विश्वास छोड़ा।
अध्याय 9
तालाब के किनारे दोनों तरफ गड्ढे और पत्थर पड़े थे। कच्ची पगडंडी में हो कर चलना पड़ता था। वह भी नुकीली पत्थरों से भरा था। दस रुपये का टॉर्च लेकर गीता ने अपने हाथ में रखा। मेन रोड से उतर कर धीरे-धीरे तालाब के पगडंडी से चलना शुरू किया। उसके साथ कोई नहीं था।
कोई विपत्ति आए तो चिल्लाने पर भी कोई नहीं आ सकता था। वहां सियारों, लोमड़ियां आ जाती थी। उनके चिल्लाने की आवाज सुनाई देती थी। ज्यादातर लोग लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट के मिनी बस से सीधे ही गांव आ जाते थे। मिनी बस छूट जाए तो मेन रोड में उतरकर लोग यहां से पैदल आते। गीता ने पीछे की तरफ मोटर बाइक की आवाज सुनी।
मोटरसाइकिल में आने वाला सोनू पोस्टमैन था।
उसने गीता को देखकर मोटरसाइकिल को धीमा किया।
"क्यों गीता.... इस समय अकेली जा रही हो? मिनी बस छूट गई क्या..?" बड़े अपनत्व से पूछा।
"नहीं.... मैं मेन रोड से उतर कर पैदल ही आती हूं...!"
"आभूषण की दुकान में काम करके देर हो जाती है क्या बच्ची ?"
"हां भैया..."
"ठीक है ठीक है.... मेरे बाइक पर बैठ जा मैं ले जाकर घर छोड़ता हूं..."
"नहीं भैया..." उसने जल्दी से मना किया।
"क्यों बच्ची ?"
"मौसी डांटेगी.... मैं पैदल ही आ जाऊंगी।"
"रितिका के जुबान से तो भूत-पिशाच सब डरते हैं...? तुम बिना डरे रह सकती हो क्या? पता नहीं तुम्हारा अच्छा दिन कब आएगा?" सोनू बड़े हमदर्दी के साथ बोले।
गीता बिना कुछ जवाब दिए चुपचाप चल रही थी।
"क्यो बेटी... मैं भी तेरे साथ बाइक को धकेलते हुए आऊं ?"
"मुझे कोई डर नहीं है.... आप जाइए भैया..."
गीता के साधारण बातचीत, और उसकी हिम्मत से सोनू आश्चर्यचकित हुआ।
उसके मना करने पर वह अपने मोटरसाइकिल को लेकर चला गया।
उस गांव में गीता को सब लोग पसंद करते थे।
गीता के बारे में सोच कर सब लोगों को दुख होता था ।
रितिका को देखकर रोने वाला बच्चा भी अपना मुंह बंद कर लेता।
उसकी ज़ुबान बहुत खराब और वह निष्ठुर महिला थी ।
गंदी-गंदी गाली देना।
रितिका के डर से गीता के बारे में कोई भी कुछ नहीं कहता। गीता तेज-तेज चलने लगी।
वह पसीने से तरबतर हो गई।
उसी समय गीता के पास एक बाइक आकर खड़ी हुई।
गीता घबराकर मुड़ कर देखी।
मोटरबाइक को एक किनारे पर खड़ा करके गीता के पास आकर मोती खड़ा हुआ।
अंधेरे में गीता उसको पहचान न पाई।
बदमाश ? लूटेरा ? कामुक ? यह कौन है?
उसका ह्रदय जोर-जोर से धड़कने लगा।
भाग जाऊं क्या? या चिल्लाऊं?
भागूं तो बच सकती हूं ? चिल्लाऊं तो कोई आएगा क्या ? गीता डर कर सोचने लगी।
"गीता” प्रेम से मोती ने बुलाया।
"आप कौन....?"
गुस्से और चिड़चिड़ाते हुए उसने पूछा। उसके आंखों में डर समाया था।
"ड्राइवर मोती आया हूं ! मुझे नहीं पहचाना गीता?"
"आप ? क्यों आए? कृपया यहां से चले जाइए..." करीब-करीब रोती सी आवाज में वह बोली।
"तुम्हें देखना है... बात करना है इसलिए आया।"
"मुझे क्यों देखना है ? मुझसे क्या बात करनी है?"
"बहुत बात करनी है।"
"बात करते हुए गीता के पीछे-पीछे चलने लगा।
"बात करने के लिए कुछ नहीं है।"
"है गीता मुझे समझो गीता।"
"उसी दिन पप्पू से मैंने कह दिया था ना ! मेरे मन में कुछ नहीं है। उसके बाद यह सब बंद कर देना चाहिए था ना? क्यों हमारे घर आना चाहिए? क्यों लड़की मांगना चाहिए? मैंने ही तुम्हें लड़की मांगने के लिए आने को भेजा था ऐसा मौसी को संदेह हुआ । जो पूछना नहीं चाहिए उन प्रश्नों को पूछ कर उससे क्या हुआ पता है? आपसे सामना ही ना हो इसीलिए मैं मिनी बस में नहीं आती। मैं अपने रास्ते पर जा रही हूं। आप मेरे पीछे इस तरह आ रहे हो... किसी ने देख लिया और जाकर मौसी को कह दिया तो क्या होगा पता है?
मैं जिंदा आ-जा रही हूं आपको पसंद नहीं है?" कहकर वह बिलख-बिलख कर रोने लगी।
"गीता... मत रो.. मैं तुम्हारे लिए अपनी जान दे सकता हूं... तुम मुझे चाहिए... पूरी जिंदगी तुम्हें रानी बनाकर रखूंगा" बहुत प्रेम से मोती बोला।
गीता का रोना उसे बहुत बुरा लगा। उसके अंदर तक दर्द हुआ।
"नहीं... आप कुछ भी मत बोलिए।"
"गीता... तुम्हारे बिना मैं जी नहीं सकता... तुम्हारे सिवाए मैं किसी दूसरी लड़की के बारे में सोच भी नहीं सकता। तीन साल से तुम्हारे लिए ही सोच-सोच कर तड़पता रहता हूं। तुम्हारे बारे में मेरी अम्मा को बताया। उन्होंने तुम्हें अपनी बहू बनाने के लिए पूरे मन से तैयार हो गई। इसीलिए तुम्हारे घर पर लड़की मांगने हम आए। तुम्हारी मौसी ने हमें अपमानित करके घर से निकाला फिर भी मैं तुम्हें भूल नहीं सका! मुझे एक बात मालूम होना चाहिए तुमको ढूंढ कर मैं यहां आया हूं।"
"मैंने आपको आने के लिए नहीं कहा...
"यह मेरे जीवन का प्रश्न है गीता।"
"आप आपके जीवन के बारे में सोच रहे हैं... मैं अपने परिवार के बारे में सोच रही हूं।" गीता बोली।
"मैं आपसे प्रेम करूँ, आपके बारे में सोचूं, तो उससे मेरे परिवार को परेशानी होगी ? निष्ठुर मौसी के कारण, उनके दो बच्चे हुए हैं! परिवार की बड़ी लड़की मैं ही गलत रास्ते पर चलूं तो मेरी बहनों के भविष्य पर प्रश्नचिन्ह लग जाएगा?"
गीता...!
मौसी ने ही इतने सालों से मुझे खिला-पीला कर बड़ा किया मेरे लिए वहीं मुख्य है। मेरी बहनों का भविष्य भी जरूरी है।"
"तुम कह रही हो वह ठीक है। न्याय संगत भी है।"
"फिर दूर चले जाइएगा।"
"तुम घरवालों को बताए बिना भाग जाओ तभी ना आपके परिवार का अपमान होगा। छोटी बहनों के भविष्य पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगेगा। तुमसे मैं रीति-रिवाज के साथ शादी करने की इच्छा रखता हूं। तुम्हारी मौसी इस पर राजी नहीं है तो मैं क्या कर सकता हूं? इसीलिए तुम्हें अकेले में मिलकर तुम्हारे इच्छा को जानने आया हूँ ।"
"भाग के चले जाएं ऐसा पूछने आए हो क्या ?"
"भागेंगे ऐसा नहीं पूछ रहा हूँ। तुम्हें मेरे साथ ले जाकर हमारी मां के सहमति से रिश्तेदारों के सामने शादी करूंगा । यही कहने आया।"
"प्राण भी चले जाएं पर यह नहीं होगा..."
"आखिर कब तक उस नर्क में ही रहोगी ?"
"उसे मैंने नर्क नहीं समझा.. मेरी मां का मंदिर है वह।"
"गीता मेरी बात को सुनो..."
"तुमसे इतनी देर मैंने बात की वही ज्यादा है। कोई हमें देखें उसके पहले यहाँ से चले जाओ।"
"तुम्हारा फैसला बताओ।"
"वह तो मैंने पहले बता दिया..."
"अब बोलो..."
"क्या बोलना है...? चिड़चिड़ाते हुए पूछा।
"तुम्हारे दिल में मैं हूं ?"
"नहीं है"
"झूठ बोल रही हो... डरकर बोल रही हो..."
"सच में मेरे मन में कुछ नहीं है...."
"गीता..."
"मुझसे बात नहीं किया जा रहा... चला भी नहीं जा रहा... थकावट लग रही है... आपसे रिक्वेस्ट कर रही हूं... मुझे छोड़ दीजिए... बड़ी थकी हुई सी बोली गीता..
"गीता..." परेशान हो गया मोती।
"चले जाइए.. आपके बराबर की कोई अच्छी लड़की देख कर शादी कर लीजिएगा..."
"चले जाओ बोलो... चला जाऊंगा.. परंतु दूसरी लड़की से शादी कर लो ऐसा मत बोलो.. वह अधिकार तुम्हें नहीं है... इस जन्म में मेरी शादी होगी तो सिर्फ तुमसे ही होगी... नहीं तो नहीं होगी...." भावनाओं में डूब कर मोती बोला ।
गीता ने किसी भी बात को नहीं सुना। तेज-तेज कदमों से चलने लगी।
"कितने भी साल हो जाएं मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा गीता... वह तेज आवाज में बोला।
मोती इसके बाद गीता के पीछे ना जाकर, अपनी मोटरसाइकिल को जहां खड़ा किया था उस और चलने लगा।
मेरे इतना अनुनय-विनय करने के बावजूद भी उसका हृदय नहीं बदला।
जो कुछ बात करना था सब कुछ कर लिया। जो होना है होने दो कहता हुआ बाइक को किक मारा।
इस जगह।
इस रात में
स्वयं उसके रास्ते को रोककर बात करने से कितनी बड़ी विपत्ति आ सकती है इसके बारे में मोती को महसूस नहीं हुआ।
अध्याय 10
"अरे रितिका।" हड़बड़ाते हुए दौड़ी आई द्रौपदी। द्रौपदी और रितिका एक ही गली में रहती थी। रितिका और द्रौपदी में बहुत समानताएं थी। तराजू में तौले तो दोनों बिल्कुल सामान होंगी।
रितिका को एक धारधार नुकीली चाकू माने तो द्रौपदी बंदूक |
इन दोनों को दूसरों के जीवन को बर्बाद करना है तो लड्डू खाए जैसे स्वाद आता था।
'द्रौपदी आओ'
दोपहर का समय।
इस समय कोई काम नहीं होता ।
चटाई को बिछाकर आराम से लेटी हुई थी।
मूंगफली को खाकर बाकी वहां रखा हुआ था।
"मूंगफली खाओ द्रोपदी..."
बड़े प्रेम से उसे मनुहार करने लगी।
"तुम्हारे सिर पर तो बिजली गिरने वाली है.... तू मुझे मूंगफली खाने को बोल रही है क्या ?" रितिका के पास में चटाई पर बैठते हुए द्रौपदी बोली।
"क्या बोल रही हो ?"
"तू बर्बाद होने वाली है।"
"दीदी...."
"तेरे चेहरे पर गीता कालिक पोतने वाली है...."
"समझा कर बोलो दीदी..."
"उस करतूत को मैं अपने मुंह से कैसे बोलूं...."
"कुछ भी हो बोलो दीदी..."
"कल रात को मेरे पति शहर से आते समय.... तालाब के रास्ते में गीता को देखा... मेरे पति साइकिल पर आ रहे थे उन पर भी ध्यान न देकर दोनों जने... अपने आप को भूल कर बात करने में मग्न थे...."
"दीदी..."
"दोनों क्या बात कर रहे थे मेरे पति को समझ में नहीं आया... परंतु आखिर में उस ड्राइवर ने ‘तुम्हारे लिए मैं इंतजार करूंगा गीता’ ऐसा बोल कर गया वह इनके अच्छी तरह से सुनाई दिया ।”
"दीदी"
"मुझे तो लगता है गीता उस ड्राइवर के साथ जल्दी ही भाग जाएगी.... धोखा ना खाकर सावधानी से रह.... तेरी दो जवान लड़कियां भी हैं भूल मत जाना !"
धुआं को फूंककर उसे जलाकर आग लगा गई द्रोपदी।
"तू बहुत ज्यादा बोलने वाली है वाचाल है पर तेरे मन में रोष तो बहुत है। पर तू ऐसी तो नहीं है कि कुल का अपमान होने दें ।"
"वह बात मुझे मालूम है दीदी..."
"मालूम है ?"
"वह ड्राइवर गीता को अपने प्राणों से ज्यादा चाहता है.…जिऊं तो उसी के साथ नहीं तो तड़पता रहूँगा... अपनी अम्मा को साथ में लेकर खूब सारे फल और मिठाई लेकर लड़की मांगने आए थे.. पहने हुए कपड़े के साथ ही भेज दो। मैं छोड़ देती क्या.. जो मुंह में आया डांट कर उनको भगा दिया..."
"मुझे तुमने यह कहानी सुनाई नहीं..."
"इससे शादी करके इसे महारानी जैसे रखेगा ऐसा बोलता है... यह सब बदमाशी की बात को आपसे क्या कहूं...?"
रितिका ने दीर्घ श्वास छोड़ा।
"तुमने क्यों नहीं माना, किसलिए... गीता को लेकर भागना चाहिए.. ऐसे फैसला कर लिया क्या?"
"वही ठीक..."
"उसे भागने के लिए छोड़ देगी...?"
"छोड़ दूंगी मैं ? आज ही उसके पैर तोड़ दूंगी!"
रितिका फुफकारने लगी।
"अरे पागल... ऐसा कुछ मत कर देना..."
"फिर क्या करें दीदी..."
"बिना मारे, बिना पीटे मैं जो कह रही हूं वह कर..."
"बोलिए..."
"गीता की शादी तुरंत कर दो..."
"किसके साथ करूं ? उस ड्राइवर से? मेरा कुल ही खत्म हो जाए उसके लिए राजी नहीं होंऊगी..." रितिका जोर से चिल्लाई।
"तू तो मिट्टी की माधो है..."
"दीदी..."
"तुझे कौन ड्राइवर से शादी कराने की बोल रहा है ? तुम्हारा परिवार अभी कैसा जी रहा है वैसे ही तुम्हारी लड़कियों को भी आराम रहने लायक एक आदमी को देखकर शादी कर दो....."
"ऐसे एक आदमी को मैं कहां जाकर ढूंढूं ?"
"तुझे ढूंढने की जरूरत नहीं है मैं लेकर आती हूं !. कल्याणपुरा के बाबूलाल भी लड़की ढूंढ रहा है। मैं और मेरा पति जाकर बात पक्का करके आ जाए?" आंखें फाड़ते हुए द्रौपदी बोली ।
"बाबूलाल के लड़के के लिए लड़की ?"
"उनको लड़का कहां है ? कोई बच्चा नहीं है उनके... उनकी औरत भी 6 महीने पहले टीबी से मर गई... वह अकेला है... मैं और मेरा पति उनके बगीचे में काम करते थे... तुम्हारे गांव में कोई लड़की है तो बताओ द्रौपदी.. मैं पूरी प्रॉपर्टी उसके नाम करके उससे शादी कर लूंगा। उसकी शादी गीता से कर दो.…. प्रॉपर्टी तुम्हारे नाम से लिखवा लेना... आम का बगीचा, नारंगी का बगीचा, केले का बगीचा और खेती बाड़ी सब कुछ तुम्हारा। मैं भी इधर-उधर ना जा कर तुम्हारे बगीचे में ही काम कर लूंगी ?"
"यह सब होगा क्या ?"
"क्यों नहीं होगा ? हम कोशिश करें सब कुछ हो सकता है..."
"ठीक है दीदी तुम जाकर बाबूलाल से बात करो... मैं गीता को ठीक कर देती हूं।"
"उसको डांटना नहीं, मारना नहीं, प्यार से बात कर.. गीता को हां करने के लिए राजी करवा देना।"
गीता ने रीतिका के कहीं बातों को ध्यान से सुना ।
"गीता विश्वास ना कर सकी।
उसे बहुत आश्चर्य हुआ।
उसे एक भ्रम, आश्चर्य और खुशी तीनों एक साथ हुई।
यह वही मौसी है क्या?
मीठा-मीठा बोल रही है क्या यह मेरी मौसी ही है।
प्रेम की वर्षा करने वाली यह मेरी मौसी? यह सब सपना तो नहीं है? उसने अपने आप को चुंटी काटी। उसे दर्द हुआ।
उसे लगा यह सपना नहीं सच है।
मौसी को क्या हो गया।
किस वजह से बदली? कोई माया जादू हो गया क्या?
"क्या सोच रही हो...? तुम्हारे लिए ही खीर बनाई है... पीओ गीता..."
"नहीं चाहिए मौसी.... मुझे तो सिर्फ पानी ही चाहिए बस...."
"अब इस घर में... तुम्हें ही पहले खाना मिलेगा... तुम्हारी खाने के बाद ही... हम सब खाएंगे। तुम नहीं खाओगी तो हम भी नहीं खाएंगे.."
"मौसी..."
"इतने दिनों मुझे गाली देने वाली.. अचानक कैसे बदल गई देख रही हो क्या...?"
"नहीं मौसी... आप अच्छी हैं..."
"मैं अच्छी हूं.. शुरू में तुम्हें बहुत प्रेम करती थी... फिर जब यह दो लड़कियां पैदा हुई तब मैं बदल गई... तुम्हारा पिता भी बेकार आदमी... एक के बदले तीन लड़कियों को रखकर क्या करेंगे ऐसे उन्हें चिंता है, चिड़चिड़ाहट, क्या-क्या करेंगे इस वजह से मैं गुस्से वाली बन कर बदल गई। और मेरे सारे गुस्से को मैंने तुम पर दिखाया। गाली-गलौज से ही नहीं से मार-पीट से भी तुम्हें परेशान किया..."
"मौसी.... आपको क्या हुआ ?"
"मैंने तुमसे जो निष्ठुर व्यवहार किया है उसके लिए मैं तुमसे माफी मांग रही हूं गीता।"
"मौसी, बड़ी-बड़ी बातें मत बोलो.... मैंने कभी भी आपको मौसी नहीं समझी.. मौसी-मौसी बोलूं फिर भी मन के अंदर मां ही समझती थी....
आप मुझे कितनी भी गाली देती मारती कोई गलती नहीं... बस आप यह सब कुछ मेरे अच्छाई के लिए ही करती होंगी... आपको सारे अधिकार है मौसी..."
"मेरी राजकुमारी... तुम मुझ से इतना प्रेम और सम्मान रखती हो मुझे पता ही नहीं चला। अब सपने में भी तुमसे नाराज नहीं होंगी..."
उसने गीता को अपनी छाती से लगाया और उसे चूमा...
"गीता सिहर गई।
उसका शरीर रोमांचित हो गया।
मैं इसी प्यार के लिए तो तड़पती थी उसने ऐसा महसूस किया!
इस प्यार के लिए ही तो तड़पती थी!
इस बदलाव का ही तो मैं इंतजार कर रही थी!
रितिका का एक ही चुंबन गीता के मन को पिघला दिया... वह झूठा चुंबन था।
वह जलाने वाला।
जहरीला चुंबन।
अपने को गहरे खड्डे में डालने वाला विपक्ति कारक चुंबन है इस बात को गीता समझ नहीं सकी। उसे लगा इसी क्षण मेरा शरीर चला जाए अच्छा है।
गीता... तुम लड़का पैदा होती तो यहां वहां उधार लेकर तुम्हें मैं विदेश में पढ़ने के लिए भेज देती... तुम भी बहुत कमा कर... मुझे और तुम्हारी बहनों को गहने, कपड़े खरीद कर देती... हमें भी बिना दुख दिए बिना कष्ट के रखती और मेरे बेटियों का भी ध्यान रखती। क्या करें तुम लड़की पैदा हो गई! फिर भी... तुम ही इस घर की बड़ी लड़की हो... कुल की दीपक हो... सारे कर्तव्य और जिम्मेदारियाँ तुम पर ही है, तुम्हारे बहुत सारे कर्तव्य हैं..."
"हां... ठीक है मौसी..."
"मेरे लिए... तुम्हारी छोटी बहनों के लिए तुम्हें एक काम करना है..."
रितिका ने अपने जाल को फेंका ।
"करूंगी मौसी..."
"कुछ भी हो तो करोगी क्या ?"
"हां..."
"बात से पलट तो नहीं जाओगी...?"
"आपके लिए, मेरी बहनों के लिए मैं अपनी जान भी दे सकती हूं मौसी..."
"जान देने की जरूरत नहीं.."
"फिर क्या करना है ?"
"तुम्हारी मां के फोटो के सामने शपथ लेकर... बोलो.."
टीन के संदूक में पड़े गीता की मां की एक पुरानी काली सफेद चित्र को बाहर निकाल कर रितिका लेकर आई।
"मेरी मां की शपथ खाकर मैं कहती हूं आप जो बोलेंगी मैं करूंगी।"
"तुम्हें अपनी मां के सामने लिए शपथ को छोड़ना नहीं चाहिए।"
"कौन सी बात है बोलिए ना मौसी।"
"मैं जिसे कहूं उससे तुम्हें शादी करनी है..."
"कौन है बताइए मौसी..."
"कल्याणपुरा के बाबूलाल से ।"
"कर लूंगी मौसी..."
बिना कुछ सोचे फट से गीता ने बोला...
"सच कह रही हो क्या गीता..."
"मैंने अम्मा की शपथ लिया है मौसी ! कल ही कहो तो मैं तैयार हूं...."
गंभीर आवाज से गीता के बोलते ही आश्चर्यचकित रह गई रितिका।
उसने पति के द्वारा शादी की तैयारियां करना शुरू कर दिया।
अध्याय 11
सब बड़े खुश हुए।
मनाली और कमला बहुत ही खुश हुए।
गीता दीदी की शादी है।
जसवंतपुरा के बाबूलाल से शादी थी। वे 45 वर्ष के थे।
वे सफेद धोती और कुर्ता पहनते थे। उनके मुंह में हमेशा पान रहता था। वे हमेशा उसे मुंह में रखकर ही बात करते हैं। गले में मोटी रस्सी वाली सोने की भारी चेन पहने रहते थे।
दोनों हाथों में अंगूठे को छोड़कर सभी उंगलियों में मोटी-मोटी अंगूठियां पहने रहते थे ।
जहां जाओ कार से ही जाते थे। सब काम करने के लिए नौकर थे । महल जैसे मकान... करोड़ों की संपत्ति थी।
पत्नी की मृत्यु हो गई थी।
कोई वारिस नहीं था।
मधुमेह की बीमारी, ब्लड प्रेशर सब कुछ था।। दूसरी शादी करें तो बच्चे होने की कोई गुंजाइश नहीं थी।
बाबूलाल को फिर भी इच्छाएं बहुत थी। गीता के शादी के लिए राजी होते ही द्रौपदी ने उन्हें लाकर लड़की देखने की रस्में निभाई।
राकेश का मन तड़पा फिर भी उसके विरोध में ना बोल सका।
एक तरफ खड़ा होकर तमाशा देखता रहा।
बाबूलाल गीता को निगल जाएगा इस तरह से देखा।
दुबली पतली काया...
हिरन जैसी चाल
घाघरा चोली में धीरे-धीरे चल कर भव्यता के साथ चाय लेकर आई गीता।
दीदी की शादी?
इस बूढ़े से शादी?
मनाली और कमला को अभी बात समझ में आई।
वे दोनों तड़पी।
"गीता, ये ही तुमसे शादी करने वाले हैं। इनके पैरों को छूओं।" बड़ी प्यार से मौसी बोली।
गीता ने उनके बोले अनुसार किया।
"कोई बात नहीं है... उठ जाओ..." गीता के कंधे को बाबूलाल ने छूकर उठाया ।
"यहां आ जाओ।" अपने पास बुलाया।
"इसे अपने गले में पहनो" अपने कुर्ते के जेब में से चमचमाते हुए चेन निकाल कर उसे दी।
"साहब आप ही... अपने हाथों से उसके गले में डाल दीजिए....! इसमें कोई बुराई नहीं है।"
द्रौपदी बीच में अपनी टांग अड़ा रही थी।
"सोने की चेन को पहना दीजिए गीता के गले में आप ही पहना दीजिए।" हंसते हुए रितिका ने बोला।
"गीता के गले में डाल दीजिए साहब..,'
गीता बिना हिले डुले एक मूर्ति जैसे खड़ी हुई थी। बिना जान के चित्र जैसे खड़ी थी।
उसके चेहरे पर किसी तरह का भाव नहीं।
उसके आंखों में आंसू नहीं।
बाबूलाल ने अपने हाथों से गीता के गले में चेन को पहना दिया। ‘मुझसे तीन साल ही छोटा होगा बाबूलाल उसकी शादी मेरी बेटी से होगा क्या? मेरी पहली पत्नी जिंदा होती तो ऐसा होता?’
पापी।
चांडाल।
राक्षसी।
इसका कोई मन ही नहीं है इसने गीता की बलि चढ़ा दी। राकेश की आंखें लाल हुई। उसकी नाड़ियों मैं झनझनाहट होने लगी।
रितिका ने उसे घूर कर देखा। वह शांत हो गया।
ठीक से कमा ना सकने वाले आदमी !
ठीक से मेहनत ना करने वाले आदमी!
शुरू में ही अपनी पत्नी को दबाकर न रख सकने वाले आदमियों का हाल राकेश जैसे ही होता है। अब गूंगा बन कर हाथों को बांधकर चुपचाप खड़ा देखता रहा।
सुई के नोक के बराबर भी गुस्से से देख ले तो आज खाना नहीं मिलेगा। पीने को पानी भी नहीं मिलेगा।
राकेश जैसे बेवकूफ आदमियों की वजह से ही लड़कियां पुराने समय से बर्बाद होती रहीं हैं ।
आंखों से आंसू बहने के कारण उसे तौलिए से पोंछ कर राकेश पीछे की तरफ चले गए।
"साहब... शादी कब रखें ?" द्रौपदी ने पूछा।
"ज्योतिष जी से बात करके अच्छा दिन देखकर फिर बताता हूं..."
गीता को आंखें फाड़ कर बाबूलाल देख रहे थे।
"प्यारी..." बड़े प्रेम से गीता को बुलाया।
"हां.."
"तुम अच्छा खाना बना लेती हो ?" अपने मूछों पर ताव देते हुए पूछा।
"हां.."
"मटन, मुर्गा और मछली सब पका लेती हो ?" आंखों को गोल-गोल मटका कर पूछा।
"हां.."
"हमारी जोड़ी बहुत जोरदार है... अभी आ जाओगी क्या मेरे साथ ?"
पान और सुपारी मुंह में रखे हुए मुंह फाड़कर हंसे तो उसके बाद वहाँ ना खड़ी होकर गीता अंदर भाग कर चली गई।
"साहब को गीता के ऊपर बहुत ही प्यार उमड़ रहा है लगता है ? हम गरीब हैं फिर भी सब कुछ रीति-रिवाज से ही होना चाहिए ऐसा सोचते हैं। उसी में गौरव है! जल्दी से कोई अच्छा दिन देख लीजिएगा..."
व्यंग्य और प्रेम से द्रोपदी ने बात की।
"अब मैं सीधे ज्योतिष जी के पास ही जा रहा हूं। तेरे आदमी को भी मेरे साथ भेज दे द्रौपदी।"
द्रोपदी ने सिर हिलाया।
"यह खर्चे के लिए रख लो ! शादी होने के बाद परंपरा से निभा लूंगा"
50 रुपये के नोट की गड्डी को द्रौपदी को पकड़ाया।
जल्दी से उसे लेकर उसने ब्लाउज के अंदर रख पति से छुपा लिया।
"मैं चलता हूं ! शादी के खर्चे के जरूरत के पैसों को कल भिजवा दूंगा और गीता को अब नौकरी के लिए मत भेजना... समझ में आया?"
रितिका को देखकर बात कर रहे थे।
"समझ रही हूं साहब..."
प्यारी सी लड़की को आपको मैंने दिखा दिया। मन बदलने के पहले अपने घर के सोने के पिंजरे में उसे कैद कर लीजिएगा..."
द्रौपदी धीरे से बुदबुदाई ।
"सब कुछ मैं देख लूंगा.. यह परी अब मेरी ही है..."
बाहर खड़े कार के पास पहुंचे।
रितिका और द्रौपदी बाहर तक उनके साथ जाकर उनसे विदा ली।
"क्यों अम्मा ऐसे कर रही हो ?"
मनाली और कमला रितिका को नफरत से देखा।
"कैसे ?"
"एक बूढ़े से गीता दीदी की शादी करना की तैयारी कर रही है ? यह तो पाप है?"
"इसे पाप माने तो हमें भूखा मरना पड़ेगा।"
"वही तुम्हारी लड़की होती तो तुम ऐसा करती ?" कमला रोने लगी। गीता ही मान गई फिर तू क्यों उछल रही है?"
"गीता दीदी पूरे मन से नहीं हां बोली होगी ! उसे डरा-धमका कर तुमने कबूलने के लिए मजबूर किया होगा! तुम्हारे बारे में मुझे पता नहीं है?" मनाली फट पड़ी।
"मेरे बारे में तुझे क्या पता है रे ?"
"रुपया के लिए तो कुछ भी कर सकती हो..?"
"कल मुझे और कमला को भी ऐसे ही किसी बूढ़े से शादी कर दोगी क्या?" मनाली बंदूक जैसे फट पड़ी।
उसके गाल में जोर से चाटा लगाया रितिका ने।
"तेरी जुबान बहुत चलने लगी है ! खींच कर काट दूंगी!"
"मनाली दीदी के पूछने में क्या गलती है.... सच ही तो कह रही है" कमला ने भी प्रश्न दागा।
रितिका सहन नहीं कर सकी।
"मुंह बंद कर गधी"
कमला को भी जोर से चांटा लगाया।
कमला गिर गई।
दीवार के किनारे चटाई पर उदास लेटी हुई गीता एकदम से उठी।
"उनको मत मारो मौसी !"
बीच में आकर रोकी।
"देखा गीता... इन दोनों के बर्ताव को देखा ?"
"छोटी लड़कियां ही तो है.…मुझसे जो प्यार है... इस वजह से... इसके लिए मार रही हो..." उसने मनाली और कमला को अपने आगोश में ले लिया।
"नहीं दीदी... नहीं आपको यह शादी नहीं करनी चाहिए ?" मनाली अनुनय विनय करने लगी।
"उस बूढ़े आदमी के लिए आपने हां क्यों भरी ?" जोर से कमला चिल्लाई।"
"मनाली और कमला तुम दोनों पहले रोना बंद करो.…."
दीदी...
"कल्याणपुरा के बाबूलाल मुझे बहुत पसंद है। मैं अपनी इच्छा से ही शादी कर रही हूं। तुम लोग मौसी से बहस करके मार क्यों खा रही हो ?"
"दीदी झूठ मत बोलो ?"
"मेरी अम्मा नहीं है जो पिता है वह भी बिना जिम्मेदारी वाला। बेचारी मौसी क्या करेगी ? युवा हो या बूढ़ा किसी के साथ मेरी शादी करने की सोच रही हैं यही बहुत बड़ी बात है नहीं?"
दीदी...
"मुझे रोज रोज रोटी-रोटी प्याज खा-खा कर मेरी जीभ मर गई । कल्याणपुरा के बाबूलाल के साथ सात फेरे लूं... तो मांस, मच्छी, बकरा मुर्गा आदि तो रोज खाने को मिलेगा ? नहीं मौसी...."
सिर झुका कर रितिका को देखा।
"हां... हां सही..."
रितिका ने थूक को निगला।
"बाबूलाल की पत्नी होने पर रोज एक सिल्क की साड़ी पहन सकती हूँ। गले में खूब सारे गहने पहन सकती हूँ और महल जैसे मकान में रानी जैसे रह सकते हूँ। जहां जाए तो वहाँ कार से जाकर उतर सकती हूँ । ऐसे ही है ना मौसी।"
फिर से उसने रितिका को देखा।
"हां..."
"मेरे अच्छाई के लिए जो शादी मौसी करवा रही है उसके बारे में कोई गलत मत सोचो।"
"नहीं दीदी तू अम्मा से डरती है...."
"मैं नहीं डर रही..."
"तुम इस तरह बोल रही हो तो अम्मा ने तुम्हें कुछ कह कर धमकी दी है..."
"मनाली... दीदी ने तो तुम्हें सब कुछ विस्तार से बता दिया ना ? उसी को बार-बार ना कह तुम दोनों जल्दी से खाना खाने आ जाओ...."
"तुम उस बूढ़े से शादी करने के बदले मोती ड्राइवर के साथ भाग जाती ना दीदी वह बहुत अच्छे आदमी हैं वह तुम पर जान छिड़कते हैं ! परंपरा के अनुसार घर आकर उन्होंने लड़की मांगी! खराब ख्यालों वाली मेरी मां ने ही उन्हें डांट डपट कर गाली-गलौज कर भगा दिया..."
"यह सब तुम्हें किसने कहा ?"
"चूड़ी के दुकान में काम करने वाली वंदना की बहन मेरे साथ ही पढ़ती है। उसी ने मुझे बताया...."
"यह सब झूठ है मनाली..."
"झूठ, सच होने दो। पर तुम उस बूढ़े से शादी मत करो दीदी..... उससे तो तुम्हारा मर जाना ही ठीक है...."
मनाली फूट-फूट कर रोने लगी।
"क्यों री। तेरा मुंह बंद ही नहीं होगा क्या ? उसको जो नहीं मालूम वह भी तुम सिखा दोगी लगता है! तुम स्कूल में पढ़ने जाती हो? या तरह-तरह की गप हांकने के लिए?"
गुस्से से बांस के टुकड़े को लेकर आ मनाली के पीठ में जोर-जोर से रितिका मारने लगी।
उसे बचाने गई गीता को भी दो-चार पड़ गए ।
अध्याय 12
बहुत महत्वपूर्ण प्रेम
इस प्रेम में जो शक्ति है वह इस दुनिया में और किसी में नहीं होता।
गहरे समुद्र में गिरे हुए को भी बचा सकते हैं।
रेत में फंसे हुए भी बचा सकते हैं।
परंतु प्रेम में डूबे आदमी को बचना बहुत ही मुश्किल है।
शरीर और प्राणों को थोड़ा-थोड़ा खत्म कर देता है। प्रेम के वेदना के कारण, अपने सारे उत्साह को मोती ने खत्म कर दिया।
उसके चेहरे पर हमेशा एक उत्साह आंखों में एक चमक आवाज में एक अपनापन भरपूर रहता था।
अब वह बिल्कुल बदल गया।
उसे अपने चेहरे को आईने में देखना ही पसंद नहीं।
ठीक से किसी काम को भी नहीं कर पाता।
ठीक से खाना नहीं खाता।
ठीक से सोता नहीं है।
हमेशा गीता के याद में ही रहता है।
अपने स्वयं जाकर उससे मिलकर बात कर, उससे अनुनय विनय करने के बावजूद उसका ह्रदय नहीं पसीजा यही बात थोड़ी-थोड़ी करके उसे खाए जा रही थी।
उसे पता था गीता मेरे बस में क्यों नहीं चढ़ती।
गीता की मौसी ने उसका अपमान किया है यह वह जानता था।
गीता को उसकी मौसी ने बहुत मारा-पीटा यह भी वह जानता था।
अपनी प्रेम को गीता ने स्वीकार नहीं किया उसे यह भी पता है।
बाकी बातें मुझे पता नहीं।
सुराणा ज्वेलर्स के दुकान पर से काम छोड़ दिया यह बात उसे पता नहीं। कल्याणपुरा के बाबूलाल से वह शादी करने वाली है उसे पता नहीं। शादी की तैयारियां बड़े जोर शोर से हो रही है उसे पता नहीं।
आज नहीं।
कल नहीं।
किसी एक दिन गीता का मन नहीं बदलेगा?
उसके बदलने तक मैं इंतजार करूंगा।
बदल सकता है।
बिना बदले भी रह सकता है।
कुछ भी होने दो, ऐसे एक फैसले पर मोती आ गया था।
"भैया... 8:30 हो गया। गाड़ी को चलाइए ! भारत ट्रांसपोर्ट की बस स्टैंड के अंदर आ गई।"
गीता की शादी के बात को रीतिका ने रहस्य बना कर रखा था। गांव में द्रोपदी के सिवाय किसी को भी यह बात पता नहीं था। कितना भी छुपा कर रखो पर बात थोड़ी बहुत पता चल ही जाती है। चूड़ी की दुकान में काम करने वाली वंदना की बहन और मनाली साथ पढ़ने से वे एक दूसरे के दोस्त थे अत: मनाली उससे कहकर रोई ।
नम्रता ने आज सुबह ही गीता की शादी के बात को अपनी बहन को बताया। भाग-भाग कर आ कर हांफते हुए आपका नम्रता मिनी बस में चढ़ी।
नम्रता के द्वारा अर्पिता और आरती दोनों को पता चल गया था।
उनकी उम्र की ही गीता युवा लड़की थी ।
इस तरह की एक बेरहमी जो होने जा रही थी उसको वह भी सहन कर पाई।
ड्राइवर मोती को यह समाचार देकर किसी तरह इस शादी को रुकवाने के लिए वे तड़पने लगीं।
नई बस स्टैंड से रवाना होकर धीरे-धीरे बस जा रही थी।
इस जिंदगी में गीता इस मिनी बस में नहीं चलेगी यह सोच कर वह इधर-उधर देखे बिना रास्ते में ही मोती का पूरा ध्यान था।
"ड्राइवर साहब को बात पता है ?"
अर्पिता धीरे से बोली।
"मालूम होने के कारण ही तो इन्होंने दाढ़ी रखी है... बहुत दुखी लग रहे हैं... बस में प्रेम गीत बजाना ही बंद कर दिया।"
"इसका मतलब उनको मालूम है..."
"मालूम होगा"
उनकी बातों को सुनते हुए मोती बस चला रहा था।
"मालूम हो कर भी चुप है..."
"और क्या कर सकते हैं वे ? अपने स्वयं के काम से मतलब रखने वाली लड़की की जिंदगी खराब कर दी..."
नम्रता बोली।
"इसीलिए दाढ़ी रखी है क्या ?"
"दाढ़ी बढ़ाए तो क्या किए हुए पाप चला जाएगा ? बेचारी वह लड़की..."
उसके पीछे खड़े होकर तीनों लड़कियां उसको ही सुनाई दे ऐसे कह रही थी तो उसे चिड़चिड़ाहट हुई।
सड़क पर चार आदमी फटाफट आ कर बस में चढ़े।
सामने आ रहे ट्रक ड्राइवर को और दूसरे मिनी बस ड्राइवर के बीच कोई झगड़ा हो गया।
ट्रक ने बस को धक्का दे दिया।
समस्या बड़ी होकर ट्रैफिक जाम हो गया।
मिनी बस को एक तरफ खड़ा कर दिया। जो लोग मिनी बस में थे वे आधे से ज्यादा उतर गए।
अपने दोनों हाथों को छोड़कर मोती उतरा नहीं। नम्रता की ओर मुड़कर देखा।
"तुम तीनों क्या बात कर रही हो ? मैंने क्या पाप किया? मेरे साथ आ जाओ मैंने उससे बहुत अनुनय-विनय किया। वह लड़की नहीं आई। मैं क्या कर सकता हूं? जब कभी भी तुम आओ तो मेरी पत्नी हो.... तुम्हारे मन बदलने तक मैं इंतजार करूंगा यह कह कर मैं आ गया।"
दुख से धीमी आवाज में बोला।
"फिर आपको समाचार ही नहीं मालूम ?"
"क्या बात है?"
"गीता की शादी होने वाली है...."
"क्या... शादी? मैंने लड़की मांगी तो मना कर दिया..." और सात-आठ साल शादी नहीं करूंगी बोला... उसे सदमा लगा।
"गीता की मौसी एकदम राक्षसी है ! अब रुपयों के लालच में उस लड़की की जिंदगी को बर्बाद करने वाली है।"
"लड़का कौन है ? उसी गांव का है?"
"कल्याणपुरा के बाबूलाल जो 45 साल का बूढ़ा है.... उसकी पत्नी मर गई.. सब प्रॉपर्टी लड़की के नाम कर उससे शादी करेगा।"
नम्रता ने सब कुछ धड़ाधड़ बोल दिया।
मोती का ह्रदय तेजी से धड़कने लगा।
"मजाक कर रही हो ? या सचमुच में कह रही हो?"
"भगवान की कसम सच कह रही हूं।"
"शादी कब है ?"
"अभी आने वाले शुक्रवार को कल्याणपुर में जो देवी का मंदिर है वहां पर शादी होगी...."
नम्रता ने बोल कर खत्म किया।" उस लड़की के मौसी ने गांव में किसी को भी बोला नहीं है।"
"ऐसा है ?"
"उस लड़की की बहन और मेरी बहन दोनों साथ में पढ़ते हैं इसीलिए मुझे पता चला। नहीं तो हमें भी पता नहीं चलता। आप उस लड़की से शादी नहीं करें तो भी कोई बात नहीं। उस होने वाली शादी को तो रोकिए।"
तीनों बड़े दुखी होकर निवेदन करने लगी।
"शादी करना है इसीलिए तो तड़प रहा हूं। वह लड़की ही तो नहीं मान रही है।"
मोती की आह निकल गई।
इतने में लारी ड्राइवर और मिनी बस ड्राइवर के समस्या का समाधान हो गया।
ट्राफिक जाम ठीक हो गया ।
"भैया समस्या का समाधान हो गया... गाड़ी को निकालो"
मिनी बस में बैठे हुए एक लड़का मोती को देखकर बोला। कंडक्टर हनुमान ने भी सिटी बजाईं।
"राइट-राइट चलो भैया"
क्लीनर पप्पू ने भी चिल्लाया।
गीता की शादी है
बूढ़े के साथ शादी है
कैसे उसे रोकूंगा।
अरे यह क्या बेरहमी है?
मोती थोड़ा-थोड़ा टूट कर अपने को ही भूल गया था।
"भैया... गाड़ी को चलाओ ! सो गया क्या ? क्या हुआ ?" क्लीनर उसके पास आकर उसके पीठ को थपथपाया तब उसे ध्यान आया। बेमन से मिनी बस को मोती ने स्टार्ट किया।
मोती बिलखने लगा।
"अभी क्या हुआ ?" कंडक्टर हनुमान ने उसे सांत्वना देते हुए पूछा।
"मर जाऊं ऐसा लगता है।"
"अरे रे... आदमी जैसे बात कर। डरपोक जैसी बात मत कर...."
"मुझसे नहीं हो रहा है भैया ! गीता मुझे ना मिले तो कोई बात नहीं। यह शादी तो नहीं होनी चाहिए। उसे रोकना ही पड़ेगा।"
"मैं एक योजना बताऊं क्या ?"
"बोलो।"
"चमनपुरा का जयपाल का भाई वहां के पुलिस स्टेशन का इंस्पेक्टर है। बहुत अच्छा आदमी है... बहुत सज्जन आदमी है। बहुत बढ़िया डिसिशन लेते हैं.... तुम जाकर उनसे मिलो।"
"क्या बात है बोलूं ?"
"मैं गीता नाम की एक लड़की से प्रेम करता हूं... परंपरा के अनुसार उनके घर गया था लड़की का हाथ मांग कर शादी करने की कोशिश की थी । परंतु मुझे अपमानित करके भेज दिया। अब उस लड़की गीता की शादी रुपयों पैसों जायदाद के लालच में एक बूढ़े आदमी से कर रहे हैं। उस बूढ़े की पत्नी मर गई। उस शादी को रोकने के लिए एक पत्र लिख कर दो... पक्का कोई कदम उठाएंगे...."
हनुमान के कहे योजना को मोती ने माना।
हनुमान को भी लेकर पुलिस स्टेशन गया।
इंस्पेक्टर बड़े दयालु दिखे। मोती के कहे बातों को शांति से सुना।
"शादी कब होगी...?"
"आने वाले शुक्रवार को। देवी के मंदिर में...."
"ठीक है... इन सबको एक कंप्लेंट के रूप में लिखकर दे दो..." वे बोले।
"थैंक यू सर...."
मोती बड़े उत्साह से कंप्लेंट को लिखना शुरू किया।
अध्याय 13
कल्याणपुरा देवी का मंदिर। वहाँ एक छोटा टेंट डाला हुआ था। बहुत जरूरी लोगों को ही बुलाया गया था। बाबूलाल बढ़िया कपड़ों में वर दिखाई दे रहा था ।
बहुत महंगी बनारसी साड़ी पहने सिर पर फूलों से सजे वधू के वेष में बलि के बकरे जैसे गीता बैठी हुई थी। हवन कुंड में थोड़ा और घी डाल कर उसे मंत्रों के उच्चारण कर उसे जलाने पंडित जी मग्न थे।
रितिका आने वाले लोगों की आवभगत कर रही थी। राकेश एक नए शर्ट को पहने हुए मंदिर के एक तरफ कोने में खड़ा हुआ था।
मनाली और कमला रोते-रोते दोनों एक तरफ बैठी हुई थी।
द्रोपदी गीता की सहेली जैसे उसी के पास खड़ी हुई थी।
"ऐसे दूर बैठे तो कैसे ? साहब के पास चिपक के बैठना चाहिए..." गीता के कानों में फुसफुसाई।
किसी भी बात की परवाह किए बिना स्टेचू जैसे गीता बैठी थी।
उसका ह्रदय पत्थर बन गया था।
कान बहरे हो गए जैसे, आंखें अंधी हो गई उसके शरीर से प्राण चले गए हो ऐसे लकड़ी जैसे बैठी हुई थी।
हंसी भी नहीं।
रोना भी नहीं।
"बच्ची शर्मा रही है... आप ही पास बैठ जाइए साहब...."
द्रौपदी हंसते हुए बाबूलाल के पास आकर बोली।
मुहूर्त का समय नजदीक आ रहा था।
फेरे लगने में बस थोड़ी देर ही शेष था।
उसी समय... देवी के मंदिर के सामने एक पुलिस की जीप आकर खड़ी हुई।
उसमें से इंस्पेक्टर दामोदर उनके साथ दो और पुलिस वाले नीचे उतरे।
उनके साथ मोती, हनुमान और पप्पू तीनों आए थे।
पुलिस वालों के साथ यह क्यों आए हैं?
मोती को देखते ही रीतिका को गुस्सा आया । शादी में आए हुए लोग धड़ाधड़ उठ गए।
"कौन है रितिका ? तेज आवाज में पूछा।
"मैं हूं।"
साड़ी को अच्छी तरह से ओढ़कर सामने आई रितिका।
"गीता..." अपने भौंहों को ऊंचा किया इंस्पेक्टर ने
"वही है..." बाबूलाल के पास में बैठी हुई गीता की ओर इशारा किया।
"उस लड़की की जबरदस्ती शादी हो रही है ?"
अपने मूछों को ताव दिया। अपने अंग वस्त्र रख कंधे पर डाला।
"इंस्पेक्टर साहब आपको क्या चाहिए...?"
"इस लड़की की जबरदस्ती शादी हो रही है ऐसा कंप्लेंट आया है..." इंस्पेक्टर दामोदर बोले।
"साहब किसी ने जानबूझकर ऐसा कंप्लेंट दिया है। हम सब ने पसंद करके ही लड़की की इनके साथ शादी करवा रहें हैं...." रितिका बोली।
"यह बात तुम्हारी लड़की को बोलने दो..."
"कंप्लेंट करने वाला कौन था ?" बाबूलाल ने पूछा।
"मैं ही हूं..." मोती सामने आया।
"यह सब क्या है ?" बाबूलाल ने द्रोपदी को देखा।
"इनका नाम मोती है। हमारी तरह आने वाले मिनी बस में यह ड्राइवर हैं। इनको इस लड़की से प्रेम है। इन्होंने परंपरा के अनुसार घर आकर लड़की को मांगा। इस महिला ने हमें गालियां देकर अभी शादी नहीं करूंगी ऐसा बोलकर हमें वापस भेज दिया | अब जबरदस्ती आपके साथ शादी करवा रहे हैं ऐसी कंप्लेंट आई है। उसके संबंध में ही मैं पूछताछ करने आया हूं। आप अमीर पैसे वाले हो सकते हैं। बड़े आदमी हो सकते हैं। उसके लिए एक छोटी लड़की को जबरदस्ती कर शादी करवाने की अनुमति नहीं हो सकती। हमें बीच में रोके बिना पूछताछ करने दीजिए..."
"इंस्पेक्टर मेरी ताकत को जाने बिना आए हो।" बाबूलाल गुर्राये ।
"आप बहुत बड़े आदमी होंगे वह यहां काम नहीं आएगा। एक युवा लड़की की जिंदगी जरूरी है !"
इंस्पेक्टर दामोदर बिना घबराये, बिना डरे साफ बात की।
गीता को बुलाया।
"यहां आओ बेटी..."
गीता उठकर आई।
उसकी गर्दन झुकी हुई थी उसने सिर ऊंचा नहीं किया। मोती की तरफ मुड़ी भी नहीं। परंतु मोती उसे ही देख रहा था। नई बनारसी साड़ी सिर में फूल गले में बड़ी सी फूल की माला वधु के रूप में गीता बहुत ही सुंदर लग रही थी।
पंडित जी के हाथ में जो मंगलसूत्र था उसे देखकर मोती को लगा उनके हाथ से छीन कर मैं गीता के गले में डाल दूं? ऐसा भी उसे लगा।
"तुम्हारा नाम क्या है बेटी ?"
गीता से इंस्पेक्टर दामोदर ने पूछा।
"गीता..." थूक को निगली।
"आज तुम्हारी जबरदस्ती की शादी हो रही है क्या ?"
गीता को अब ही सब बात समझ में आई।
यह सब मोती का ही काम है। मेरी जबरदस्ती शादी हो रही है कहकर मोती पुलिस को बुलाकर लाया है। मेरी जिंदगी बर्बाद नहीं होनी चाहिए ऐसा सोचकर मोती की उत्सुकता, उसकी जिंदगी बर्बाद नहीं होनी चाहिए, उसके लिए दुख, उसका अपनत्व उसकी कोशिश उसके समझ में आ गई।
पर बोल न सकने के कारण चुपचाप खड़ी रही।
"बोलो बेटी.... मौसी ने तुम्हें धमका कर जबरदस्ती करके इस शादी के लिए राजी किया है क्या ? तुम एक बार हां बोलो बेटी। अभी मैं सबको अंदर डाल देता हूं...."
"कहीं वह सच बोल तो ना देगी ? कहीं मैं फंस ना जाऊं?" रितिका परेशान हुई।
नाक को पूछती हुई गीता के पास दौड़ कर आई।
"गीता... तुमने देखा यह अन्याय ? मैं तुम्हें धमकी दूंगी.... जबरदस्ती करूंगी, मैंने जबरदस्ती नहीं की तुम्हें शादी के लिए सहमत होने को नहीं बोला... झूठी शिकायत कर पुलिस को बुलाकर ले आया यह ड्राइवर....! सच को बता दो गीता। किसी ने मुझे नहीं धमकाया... किसी ने जोर जबरदस्ती नहीं की... तुम स्वयं ने अपनी इच्छा से शादी के लिए हामी भरी। बोल दे गीता। तेरे बोलने में ही अपने परिवार का मान मर्यादा सब कुछ निहित है... तुमने उल्टा सीधा कुछ कह दिया तो.... मैं और तुम्हारी बहने जिंदा नहीं रहेंगी.... सही..."
"आप चुप रहिए... उस लड़की को बोलने दो..." रितिका को पुलिस वाले ने डांटा।
"गीता... बोलो गीता ! बिना डरे बोलो! तुम अभी जो फैसला करोगी वही तुम्हारे आगे के जीवन के लिए अच्छा होगा..." कंडक्टर हनुमान बोले।
"गीता तुम मुझे पसंद नहीं करती हो तो कोई बात नहीं... परंतु इस शादी को तो नहीं होना चाहिए... हिम्मत से बात करो... दया करके सच बोलो...."
मोती ने बहुत अनुनय-विनय किया। गीता से बहुत जिद करने लगा ।
उसकी तड़प का पता लगा उसका प्रेम भी समझ में आया उसके आंसू भी समझ में आया उसकी परेशानी भी समझ में आई।
"बोलो बेटी...." इंस्पेक्टर दामोदर फिर से बोले।
गीता ने अपने मौसी और बहनों को देखा। ‘फिर मैं और तुम्हारी बहन जिंदा नहीं बचेगी’ रितिका के शब्द उसके कानों में गूंजने लगे।
"इंस्पेक्टर सर... यह शादी मेरी इच्छा अनुसार ही हो रही है.... मुझे किसी ने धमकाया या जबरदस्ती नहीं थी..." साफ शब्दों में बोल दिया।
मोती स्तंभित रह गया।
"गीता.. कृपा करके... सच बोलो... तुम अपने आप को धोखा मत दो..." फटी आवाज में मोती चिल्लाया।
"यह कौन है तुम जानती हो ?" मोती को दिखाया इंस्पेक्टर ने।
"मालूम है... हमारे गांव के लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट के मिनी बस के ड्राइवर हैं।"
"तुम दोनों एक दूसरे को प्रेम करते हो ?"
"उन्होंने मुझसे प्रेम किया होगा। परंतु मैंने उन्हें कभी नहीं चाहा। मुझे मेरे कुटुम्ब का गौरव, मेरी मौसी और मेरी बहनों की खुशी ही जरूरी है।"
कृपा करके यहां से चले जाइए।"
आंखों में लबालब आंसू के साथ दोनों हाथों को उसने जोड़ा।
मोती बहुत ही शर्मिंदा हुआ।
उसके आंखों के आगे अंधेरा छा गया।
बड़े आराम से रितिका ने दीर्घ श्वास छोड़ा। उसका डर गायब हो गया उसके चेहरे में चमक आ गई। उसने व्यंग्य से घूर कर मोती को देखा।
"मोती... सुन लिया ? उस लड़की ने अपने मुंह से कहा... अब हम कुछ नहीं कर सकते... हमारे समय को तुम खराब मत करो। चलो चलते हैं"
कहते हुए अपने जीप की तरह इंस्पेक्टर चले।
"तुमने अपने आप को अपमानित कर लिया मोती... चलो चलते हैं... उसके हाथ को पकड़ा कंडक्टर हनुमान ने।
"भैया..."
मोती बोल नहीं पाया।
"अब हम आ रहे यहां खड़े रहने में मर्यादा नहीं है।"
मोती को खींचकर हनुमान बाहर लेकर आया। "जा रहे हैं क्या? शादी खत्म होने के बाद.. खाना खाकर जाइएगा?" भाग कर आकर रितिका ने नीचता से बोली।
मोती ने कोई जवाब नहीं दिया।
बिना मुड़कर देखें अपनी बाइक रखी हुई जगह पर चलने लगा।
"भैया मैं गाड़ी चलाता हूं.. आप जिस मनोदशा में हैं उस पर गाड़ी चला नहीं सकते.." पप्पू ने किक मारकर गाड़ी स्टार्ट की।
पुलिस की जीप, उनकी बाइक दोनों मंदिर से बाहर निकल गए।
"मुहूर्त के समय खत्म होने के पहले ही फेरे शुरू कर दो।" द्रोपदी ने पंडित जी से कहा।
बाबूलाल और गीता दोनों फिर से हवन कुंड के सामने बैठे। पंडित जी मंत्रों का उच्चारण करने लगे।
फेरे शुरू हुए। बाबूलाल से चला नहीं जा रहा था। अचानक उसका हृदय जोर-जोर से धड़कने लगा। बाएं कंधे में जोर का दर्द हुआ। तेज पसीने से वह भीग गया।
"छाती में दर्द... छाती में दर्द..."
फेरे नहीं हुए। ना ही मंगलसूत्र पहनाया गया। सिंदूर का रस्म भी पूरा नहीं हुआ। बाबूलाल गिर गए। एक क्षण में ही सब कुछ खत्म हो गया। वे गीता के ऊपर ही गिर गए।
लोगों ने उनके मुंह पर पानी के छींटे मारे । परंतु बाबूलाल नहीं उठे। उनके प्राण पखेरू उड़ गए।
"अरे... अरे... हमें धोखा दे गए..." जोर से चिल्ला कर द्रोपति रोने लगी।
अध्याय 14
आकाश में चंद्रमा दिख रहा था। आकाश में नवरत्नों को बिखेर दिया हो ऐसे नक्षत्र चमक रहे थे।
पेड़ के नीचे खटिए पर मोती लेटा था। ‘उन्होंने मुझे चाहा होगा पर मैंने कसम से उन्हें नहीं चाहा। देवी के मंदिर में गीता की शादी को रोकने के लिए पुलिस के साथ जब गया तब गीता ने जो बातें बोली उसे मैं भूल नहीं पा रहा ।’
उन्होंने मुझे चाहा होगा। परंतु कसम से मैंने उन्हें नहीं चाहा।
उसके मन के अंदर यही बात बार-बार गूंज रही थी ।
चाकू से वार किया जैसे दर्द हो रहा था।
इस घटना को घटे एक हफ्ता हो गया था।
उसके बाद भी वह उसे भूल नहीं पा रहा था।
दिल फट जाएगा जैसे लग रहा था।
मैं शादी को नहीं रोक पाया फिर भी गीता की शादी नहीं हुई। पर शादी हो ना सकी |
सात फेरे लिए बिना ही बाबूलाल हार्ट अटैक से मर गया।
वहां के आस-पास के गांव वाले इसी बारे में बात करते रहते थे।
"भैया उस लड़की की शादी रुक गई....."
पप्पू ने ही आकर मोती को यह बात बताई। गीता की शादी के रुक जाने से मोती को खुशी नहीं हुई।
बाबूलाल के मरने से क्या हुआ?
घासी लाल ,राम लाल जाने कितने बूढ़े, और नहीं होंगे क्या?
अबकी बार शादी रुक गई तो क्या हुआ ?
फिर से इस तरह ही बड़ी उम्र के बूढ़े को पकड़ कर मौसी गीता से उसकी शादी करवा देगी।
यही होने वाला है।
इसे कोई नहीं रोक सकता।
'इससे संबंधित व्यक्ति मुंह नहीं खोलें तो फिर हम क्या कर सकते हैं।
उसे बहुत बुरा लग रहा था।
ठीक से खाना भी नहीं खा पा रहा था।
बड़े बेमन से काम पर जा रहा था।
अर्द्ध रात्रि का समय हो रहा था। अभी तक उसे नींद नहीं आई। वह सो नहीं पा रहा था।
"रात के 12:00 बजने वाले हैं.. अंदर आ कर सो जाओ मोती।"
घर के अंदर से बाहर आकर उसकी अम्मा सविता ने बोला।
लड़के की वजह से उसने भी ठीक से खाना नहीं खाया।
वह भी नहीं सो पाई।
"तुम जाकर सो जाओ अम्मा"
"मैं सो नहीं पा रही हूं मोती।"
"क्यों अम्मा.."
"उस लड़की ने तुम्हारा इतना अपमान किया फिर भी तुम उसी के बारे में ही क्यों सोचते रहते हो... ऐसा मत करो मोती। उसके बारे में मत सोचो। उसने ही अपने सिर पर मिट्टी उठाकर डाल ली... उसे छोड़ो... उसे कुछ भी होने दो...."
"अपने मुंह से उस लड़की को बददुआ मत दो।" मोती बोला।
"मेरी कोशिश भले ही सफल न हुई... गीता की शादी तो नहीं हुई.... आखिर रुक ही गई। इससे आपको क्या पता लगता है.."
"मुझे कुछ नहीं लगता... मेरा जी जल रहा है... मेरे बेटे का जीवन ऐसे अधर झूल में लटक गया है सोच कर जी जल रहा है..."
"नहीं अम्मा... मुझे क्या लगता है पता है ?"
"क्या लगता है ?"
"गीता मेरे लिए ही पैदा हुई है ऐसा लगता है... तुम चाहे तो देखो... एक दिन वह लड़की मुझे ढूंढ कर जरूर आएगी..."
बड़े विश्वास के साथ उत्सुकता से मोती बोला।
"ऐसे आ जाएं तो तुमसे ज्यादा खुश मैं ही होऊंगी। अभी आ जा रे... आ कर सो जा..." ऐसा कहते हुए सविता ने उसके हाथ को पकड़ कर प्रेम से खींचा।
मनाली और कमला दोनों ही सचमुच में बहुत खुश हुई। राकेश हमेशा की तरह यंत्र जैसे ही व्यवहार कर रहे थे।
उनके लिए दुख भी वैसा ही था जैसे खुशी....
रितिका के डर के कारण उनमें किसी प्रकार की कोई संवेदना ही नहीं बची।
"मौसी मैं फिर से आभूषण के दुकान में काम पर जाती हूं।" गीता रोने वाली आवाज से अनुनय-विनय करने लगी।
"तू कहीं नहीं जाएगी | जो गाय हैं उनको खेत में ले जाकर चरा कर ले आ..."
गीता को वह पहले से ज्यादा डांटने लगी। और ज्यादा गालियां देने लगी।
मेरी आंखों के सामने ही मत आ बोलती थी ।
ठीक से खाना ना देकर उसे परेशान करती थी ।
गीता किसी भी चीज पर ध्यान ना दे कर गाय और बकरियों को चराने के लिए ले जाने लगी।
"अरे रितिका। तुम कैसी हो... कहती हुई आई द्रौपदी।
"मैं मर गई हूं या जिंदा हूँ यहीं देखने आई है क्या....
गुस्से से सविता बोली ।
"तुम गुस्से से उबल रही होगी मुझे मालूम है... इसीलिए थोड़ा ठंडा करने के लिए आई हूं"
"दीदी क्या बोल रही हो ?"
"अपने गांव की ताई जो यहाँ की लड़कियों को बाहर ले जाकर धंधा कर रही है मालूम है ?"
"वह बात मेरे कानों में भी पडी थी... वह कपड़े का व्यापार करती है ऐसा बोला..."
"झूठ... अभी भी वह दो लठैत के साथ कार में आकर उतरी है... दो हफ्ते से यहां ठहरी हुई है। तीखे नाक नक्शे वाले लड़कियों को देखकर धंधे के लिए लेकर जाती है... तुम चाहो तो गीता को उनके साथ भेज दो। हाथ में पूरे तीस हजार पूरा देगी... वहां गीता उनका कितना साथ देती है उसके ऊपर निर्भर है। हर महीने तुम्हारे नाम से 6000 या 5000 पोस्ट ऑफिस के द्वारा भेज दिया जाएगा..."
रुपयों का नाम सुनते ही रितिका फट से उठ कर बैठ गई ।
"गीता इसके लिए मान जाएगी ?"
"उसको इसके बारे में मत बताओ। उसे वहां जाकर मालूम होने दो।"
"ताई के बारे में तो पूरे गांव को पता है। उसके साथ जाने वाली कोई भी लड़की अच्छी नहीं है। कोई भी लड़की सुरक्षित वापस नहीं आई.... पूछो तो कहती है वह किसी के साथ भाग गई.... गीता को इन कहानियों के बारे में पता है? उसके साथ जाने के लिए तो वह कभी नहीं मानेगी...."
"तुम्हें उसे मनाना होगा। उसे यहीं रख कर क्या अचार डालोगी ? फेरे पड़ने के पहले ही बाबूलाल मर गया। चारों तरफ बात फैल गई। अब कोई भी लड़का गीता से शादी नहीं करेगा.... एक दिन वह अपने आप उस ड्राइवर के साथ भाग जाएगी.... तब तुम क्या करोगी? इसीलिए तो बोल रही हूं... गीता को ताई को सौंप दो... आने वाले पैसों को हाथ आगे बढा कर ले लो... उसे लेकर जाना फिर उसकी जिम्मेदारी है। रात के समय लेकर चली जाएगी...."
रितिका ने द्रोपति की बात को आराम से सुना।
धूप में गाय को चराने गई गीता का गला सूखने से उसे प्यास लगी। पानी पीने के लिए घर आई। बरामदे में रितिका सोई थी। सामने दिखाई देने पर डांटेगी सोच पीछे की तरफ से घर के अंदर घुसी।
बिना आवाज के पानी लेकर पिया।
तभी द्रौपदी और रितिका की बातें उसने पूरी सुनी।
वह बुरी तरह से परेशान होने लगी।
उसे ताई के बारे में अच्छी तरह से पता था।
मीठी-मीठी बातें करती थी।
कभी-कभी ही गांव की तरफ आती थी।
रोबदार व्यक्तित्व। दो लठैत साथ में होते।
गरीब और लालची परिवार को छांट कर वहां की जवान लड़कियों को काम देने का कहकर लेकर जाती।
हर महीना सिर्फ रुपए ही आता।
ताई के साथ गई लड़कियां कभी वापस नहीं आती।
इसी गांव की, सोने जैसे प्यारी लड़की 16 साल की अपने परिवार के विपरीत परिस्थितियों के कारण उसे भेज दिया। जब वह वापस आई तो सिर्फ तीन महीने में उसे पहचान न सके ऐसी बदल गई थी फिर उसने आत्महत्या कर ली। यह बात पूरे गांव को मालूम थी।
उसके बाद ताई का आना बंद हो गया था।
अब फिर से आ गई ।
"ताई के पास मेरी मौसी मुझे भेज देगी क्या ?"
चुपचाप रोती हुई वहां से गीता चली गई।
बिल्कुल दया, ममता के बिना गीता को द्रोपदी से कहकर तीस हजार में गीता को ताई के हाथों बेच दिया।
अध्याय 15
सुबह 3:30 बजे के करीब ताई अपने दो लठैत के साथ कार से आकर उतरी। उन लोगों का इंतजार करते हुए रितिका जाग रही थी, जल्दी जल्दी उठी।
"आओ.. दीदी बरामदे में आकर बैठो...."
"बैठने की फुर्सत नहीं है..…जल्दी से बच्ची को भेज दे... हमें जाना है..." ताई बहुत नम्रता से बोलती हुई जल्दी में थी।
घर के अंदर नहीं आई, घर के बाहर ही खड़ी हुई थी।
"ठीक है दीदी.... अभी बुला कर ला रही हूं।"
रितिका अंदर आई। हल्की रोशनी थी। मिट्टी के तेल का दीया जल रहा था। राकेश खर्राटे भर कर सो रहे थे। मनाली और कमला पास-पास सोए हुए थे। गीता नीचे जमीन पर सिमटी हुई पड़ी थी।
"अरी... गीता.." उसके गाल को थपथपाया । मौसी कहकर बुदबुदाई।
मौसी.. बुदबुदाई।
"उठ रे..."
रितिका डांटने लगी। उसके कंधे पर जोर से मारा। हड़बड़ा कर उठी गीता। आंखें फाड़-फाड़ कर देखने लगी।
"मौसी... क्यों जगा रही हो...?"
"मेरे पीछे आ री...."
उसे खींचते हुए बाहर की तरफ लाई।
"यह लीजिए दीदी...."
गीता को ताई के हाथ सौंपा। ताई के दिए रुपयों को रितिका ने ले लिया।
"आजा प्यारी बिटिया चलते हैं।"
गीता के गाल को चूम कर ताई अपने कार के सामने गई ।
"नहीं मौसी.... मैं इनके साथ नहीं जाऊंगी..." गीता बिलखने लगी।
"यहां रहकर क्या करने वाली है ? गाय चराने के लिए धूप में मरना है क्या? दीदी तुझे रानी जैसे रखेगी। दीदी के साथ कपड़े का व्यापार करके मुझे सिर्फ हर महीने रुपये भेज देना?" रितिका ने डांटा।
"मौसी..." गीता स्तंभित रह गई। मौसी इतनी जल्दी मेरा सौदा कर देगी उसने नहीं सोचा।
"एक थप्पड़ लगाऊँ तो सारे दांत गिर जायेंगे... जिद्द ना करके दीदी के साथ चली जा... दीदी को देर हो गई।"
रुपयों को गिनते हुए घर के अंदर रितिका जाने लगी।
"आ जाओ बिटिया हम चलें।"
ताई के दोनों लठैतों ने उसके हाथों को पकड़कर ले गए। गीता घबराई।
पूरा गांव सो रहा था।
'मैं चिल्ला कर आवाज दूँ तो कोई भी इस वक्त नहीं आएगा ऐसा उसको लगा।'
वैसे भी कोई भाग कर आ जाएं तो मुझे नहीं बचाएगा वह बात उसके समझ में आई।
रितिका के डर से वे पीछे हट जाएंगे।
मुझे तो इस ताई के साथ जाकर बर्बाद होना पड़ेगा।
मान, अपमान, परिवार का गौरव और मनाली कमला के भविष्य के बारे में सोच कर ही तो मैं इतने दिनों से सहन करती हुई रही?
उस गौरव और सम्मान की ही बलि चढ़े तो चुप रहना चाहिए क्या?
"अबे ऐसे कैसे खड़े हो..? लड़की को खींचकर कार के अंदर डालो..." कहते हुए आगे के सीट पर जाकर ताई बैठ गई। दोनों लठैत गीता को गाड़ी के अंदर करने की कोशिश करने लगे।
"छी: छी:... छोड़ो रे.."
अपने पूरे बल को समेट कर, उन्हें जोर से धक्का देकर घर के अंदर भागकर गीता चली गई।
"यह... क्या है.. यहां कहां भाग कर आ रही है?"
रितिका ने डांटा।
भागकर रसोई में घुसकर हँसिये को गीता ने हाथ में उठा लिया।
"गीता..." घबराकर रितिका ने उसे देखा।
"थू... तुम एक औरत हो क्या ?"
"रितिका के मुंह पर गीता ने थूका।
"क्या बात है तेरी जुबान बहुत चल रही है ?"
"चुपचाप ताई से जो रुपए लिए उसे वापस कर दे... नहीं तो इस हँसिये से ही तुझे काट दूंगी...." बिना सम्मान दिए बिना आवेश में चिल्लाती हुई हँसिये को ऊपर उठाने लगी।
वह बिल्कुल बदल गई।
उसकी आवाज ही बदल गई।
आंखें लाल हो गई।
उसकी नस और नाडिया बुरी तरह फड़फड़ाने लगी।
"कल्याणपुरा वाले बाबूलाल से मेरी शादी कराने की तुम्हारी हिम्मत पर मैं क्यों चुपचाप सहन की पता है ? बूढ़ा भी हो तो वह परंपरा होने वाली शादी थी। मेरे मुताबिक वह एक गौरव वाली शादी थी। इसीलिए मैंने विरोध नहीं किया। परंतु अब तुम जो कर रही हो वह काम तो माफ करने लायक नहीं है। मैं इसे सहन नहीं कर सकती।"
गीता के जोर से चिल्लाने के कारण हड़बड़ा कर मनाली और कमला उठ गए।
"वह ड्राइवर मोती बहुत अच्छा आदमी है। परंपरा के अनुसार लड़की मांगने आए। तुमने उसको अपमानित करके भेजा। फिर भी वे मेरे साथ भाग के आ जाओ ऐसा उन्होंने बहुत अनुनय-विनय किया। जिद्द भी की। मैं चाहती तो उसी समय भाग सकती थी!... ऐसा मैंने क्यों नहीं किया सोच कर देख? उसी से नहीं छोड़ा? कल्याणपुरा में देवी के मंदिर पर बाबूलाल जी के साथ मेरी शादी को रोकने के लिए पुलिस को लेकर आए! उस समय भी मैं चाहती तो पुलिस को कह सकती थी यह शादी मुझे पसंद नहीं! क्यों नहीं बोला तुमने सोच कर देखा?"
गीता...
"मेरी वजह से इस परिवार का गौरव खराब नहीं होना चाहिए.…. मनाली और कमला के भविष्य पर एक प्रश्नवाचक चिन्ह नहीं लगना चाहिए। उसके लिए.... इसके लिए इतने दिनों मेरे मन को पत्थर बना कर रखी... अब नहीं हो सकता... अब मैं सहन नहीं कर सकती..."
गीता आगे बोली "यदी तुम्हारी लड़की होती तो ताई को तुम सौंपती क्या?"
"गीता.…"
"मेरा नाम मत ले.... तुम जैसे लोगों को जिंदा ही नहीं रहना चाहिए..."
बाहर की तरफ रितिका दौड़ने लगी।
गीता भी हँसिये को लेकर बाहर आई।
इतने में पड़ोसियों की खिड़कियां खुल गई। बड़ी फुर्ती से लोग तमाशा देखने आ गए। द्रोपदी भी आगे आई।
"गीता... यहां क्या हो रहा है..."
"तुझे ही पहले मारना चाहिए। तुम्हारे जैसे लोगों को जिंदा नहीं रहने देना चाहिए.…तू भी औरत है ना... मेरी मौसी भी औरत है.. मुझे बेचने के लिए तूने उसे योजना बताई... उसके लिए उसने मुझे ताई को बेच दिया.." द्रौपदी के चेहरे पर उसने थूका। एकदम से द्रौपदी अपने आप को अपमानित महसूस किया ।
गीता काली माता बन गई।
ताई भीड़ को देखकर डर गई। पहले से ही उस गांव में वह बदनाम थी। गीता को चोरी छुपे ले जाने के लिए ही ताई रात के अंधेरे में आई। गीता ऐसे चिल्लाएगी, काली माता का रूप धारण करेंगी उसे उम्मीद नहीं थी।
"मेरे रुपए वापस करो।"
रितिका से रुपए छीनकर, अपनी जान बचाकर वह अपने लठैतों के साथ कार में चढ़कर चली गई।
"मुझे ही काटने आई तू...? अब तू इस घर में कैसे रहती है मैं देखती हूं...? रितिका चिल्लाई।
"तू बोले तो भी इस घर में मैं नहीं रहूंगी...
"कहां जाएगी...?
"तुम्हें क्या कहीं भी जाऊं...?
"वह दांतो को पीसी।"
"मुझे रोकी तो सचमुच में काट दूंगी....! मैं एक लड़की हूं... युवा लड़की हूं... मेरे मन में भी इच्छाएं होंगी। प्रेम है। तड़प है। उम्मीदें हैं। इतने दिनों मैं अपने आप को धोखा देती रही.... अब मैं अपने आपको धोखा नहीं दूंगी...."
गीता का तमाशा देखने जो आसपास के लोग आए वे स्तंभित रह गए। उन्हें बहुत खुशी हुई।
मनाली और कमला दोनों की आंखें लबालब भर आई और उन्होंने गीता को बड़े गर्व से देखा। राकेश ने भी बेटी को आश्चर्य से देखा।।
"एक लड़की हमेशा ही फूल जैसे नहीं रहेगी..."
कोई जोर से ऐसा बोला। हंसिए को नीचे फेंक कर अंधेरे में पैर जहां चले उसी तरफ गीता चली गई ।
अध्याय 16
सबेरा हुआ।
बड़े पीपल के पेड़ पर पक्षी चह-चहा रहे थे।
वहां एक पिलर के पास सहारा लेकर गीता खड़ी थी।
लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट की मिनी बस कब आएगी उत्सुकता से वह देख रही थी।
आज बृहस्पतिवार है।
आज मोती ही मिनी बस का ड्राइवर होगा।
आने दो।
आते ही भाग कर बस में चढ़ना है।
वहां जो एक सीट है उस पर बैठूँगी ।
आ जाओ! आ जाओ! आपने ज़िद की थी ना! अब मैं आ गई।
सबको लात मार कर आ गई। मुझे अब ले जाइए। मेरे दिल में अब आप ही हो.... आपके प्यार को, आपकी तड़प को, आपकी इच्छा को मैंने अच्छी तरह समझ लिया। इतने दिनों परिवार के गौरव की चिंता मेरे मन में थी। अब इस पत्थर में फूल उगा है... मुझे बात करना है... मैं आज बात करते नहीं थकूँगी।
आंखों को चमकाते-चमकाते बात करना है।
दिल को ठंडक पहुंचे इतनी बात करनी है।
मेरे शरीर में सिहरन होना चाहिए।
अब मेरे सब कुछ तुम ही हो!
मैं आपको समझ गई।
मुझे लेकर जाइए...
इतने दिनों आपका अपमान करने के लिए आप को रुलाने के लिए मुझे माफ कर दीजिएगा....
फूट-फूट कर रोना चाहिए ऐसा उसे लगा ।
यदि बस में भीड़ ना हो तो उनके कंधे पर सर रख देना चाहिए।
यह सब बातें गीता अपने मन में सोच रही थी।
यह सब बातें उसके मन में उठ रही थीं।
हमेशा मिनी बस 8:30 बजे बराबर आ जाती है।
इस बस स्टैंड में आकर पाँच मिनट खड़ी रहती है।
यात्री उतरे और चढ़ने पर रवाना हो जाती है।
आज 8:45 हो गए फिर भी मिनी बस नहीं आई। क्या हो गया?
क्या हुआ होगा ?
क्यों नहीं आया।
तड़पते हुए उस रास्ते को ही गीता देख रही थी। मिनी बस से शहर जाने वाले यात्री अपने सामान को उठाकर बड़बड़ाते हुए खड़े थे ।
गीता अपने प्रेम को स्वीकारने के लिए उसका इंतजार कर रही थी।
9:00 बज गए।
लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट की मिनी बस नहीं आई।
एक आदमी बाइक पर तेजी से वहां आया। वह बोला "आज मिनी बस नहीं आएगी। आप सभी लोग मेन रोड तक पैदल जा कर... दूसरे बस से जाइए.."
"मिनी बस को क्या हुआ ? टायर फट गया क्या..? रिपेयर हो गया क्या?" बस का इंतजार कर रही एक महिला ने पूछा।
"एक्सीडेंट हो गया..." वह बोला। गीता एकदम परेशान हो गई।
"क्या...?"
"मेन रोड से उतरते समय सामने से ट्रक आकर भीड़ गया।
मिनी बस वहां के तालाब में ही गिर गई। बस में भीड़ नहीं थी। कंडक्टर और क्लीनर के थोड़ी ही लगी है। ड्राइवर को बहुत ज्यादा चोट आई। उसका जिंदा रहना मुश्किल है बोल रहे हैं। एंबुलेंस आई.. तीनों को गवर्नमेंट अस्पताल में लेकर गए हैं।" उस बाइक वाले ने बोला।
"आज का ड्राइवर कौन था...?"
"अपना मोती ही था.."
"अरे..! वह तो जवान है.. अभी शादी भी नहीं हुई है.. हमेशा हंसते हुए रहता था... उस आदमी की ऐसी दशा...?"
एक बूढ़ी औरत बेचारी आंखों में आंसू लाकर ‘बेचारा’ बोली।
गीता के सिर पर बिजली गिर गई है ऐसा लगा। बुरी तरह तड़पी। मुंह खोल कर रो भी नहीं सकती बड़े मुश्किल से अपने आप को जप्त किया।
मोती बचेंगे नहीं क्या?
मोती को गहरी चोट लगी है?
उसका दिल फट जाएगा जैसे धड़कने लगा। उसकी आंखों से आंसू बहने लगे।
मोती.... मोती.....
वह बहुत तड़पी।
उसके आंखों के सामने अंधेरा छाया। चक्कर आएगा जैसे हुआ।
आप मुझे ढूंढ कर आए... मैं सब कुछ भूल गई। मैंने ही आपको वापस भेज दिया। परंतु अब मैं ही आपको ढूंढ कर आई हूं। आप नहीं जीए! ऐसा क्यों? यही विधि का विधान है? यही मेरे तकदीर में लिखा है? क्या मैं पापी हूं? मैं तिरस्कृत हुई जीव हूं? आखिर में मुझे कभी खुशी नहीं मिलेगी? मैं अभागिन हूं क्या? इसीलिए ऐसा हुआ?
लड़खड़ाते हुए उठी।
दूसरी बस पकड़ने के लिए मेन रोड में जा रहे लोगों के पीछे जाने लगी। हाथ में एक रुपया भी नहीं था। साथ में आ रही उसके गांव की लड़की से पाँच रुपया उधार लिया।
"शहर जाने के लिए दीदी... मेरे हाथ में पैसे नहीं है। पाँच रुपया दे दो कल मैं वापस लौटा दूंगी।"
"टिकट ही तो चाहिए... मैं ले लूंगी बेटे। तुम्हें वापस देने की जरूरत नहीं है।" वह लड़की बोली। बीस मिनट में मेन रोड पर आ गए।
मोती के जिंदा रहते समय ही मैं एक बार उन्हें देख लूं। मेरे दिल में आप ही हो मुझे बोलना है।
आंखों में आंसू के साथ सामने आ रही भारत ट्रांसपोर्ट को हाथ दिखा कर सब लोग उसमें चढ़े गीता भी चढ़ गई।
राजकीय चिकित्सालय।
मोती आईसीयू में भर्ती था।
समाचार मिलते ही भाग कर आई सविता।
अस्पताल के बरामदे में ही गिरकर बिलखने लगी। लक्ष्मी ट्रांसपोर्ट के मालिक और उनका लड़का उसको आश्वासन दे रहे थे।
"अम्मा मत रोइए... मोती को कुछ नहीं होगा..."
"यहां कुछ नहीं हो सकता। अब जयपुर ही ले जाना पड़ेगा बोल रहे हैं..?"
"डॉक्टरों से जहां तक हो सकेगा अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं... मोती के सर पर जबरदस्त चोट लगी है...? डॉक्टर ने जो ट्रीटमेंट दिया है उससे वह आधे घंटे में होश में आ जाएगा। यदि नहीं आया तो उन्हें जयपुर ले जाना पड़ेगा।"
"क्या है साहब... आप ऐसे कैसे बोल रहे हो ....?" सविता बिलखने लगी।
"फिकर मत करो अम्मा... मोती मेरा छोटा भाई जैसे हैं.... कितने भी रुपए खर्च हो जाए खर्च करके मैं उसे बचाऊंगा। ... आप मत रोइए, जयपुर ले जाना पड़ेगा तो मैं ले जाऊंगा। आप इस तरह रोएंगी तो कुछ नहीं कर पाएंगी।"
"मेरा लड़का नहीं बचे... तो मैं भी अपनी जान छोड़ दूंगी।"
"आप चुप रहिए अम्मा.."
सब लोग घबराए हुए नीम के पेड़ के नीचे ही बैठे थे।
धड़कते हुए हृदय से।
रोते हुए वहां आ पहुंची गीता।
वह बुरी तरह से हांफ रही थी।
आंखों में आंसू लबालब भरा था।
ड्राइवर मोती जिंदा हो गए...?
हर एक से गीता पूछ रही थी। अस्पताल में बहुत भीड़ थी। गीता के प्रश्न का किसी ने जवाब नहीं दिया... मालूम नहीं बेटा.. नर्स से जाकर पूछो...
"ड्राइवर मोती जिंदा है क्या...?"
रो रही सविता के पास उसने जाकर पूछा। वही मोती की अम्मा है वह न जानते हुए पूछा।
"तुम.. कौन हो.." सरिता ने गर्दन ऊंची करके पूछा।
"मेरा नाम गीता है.. ड्राइवर मोती जिंदा रहेंगे ना... वे जिंदा हो गए अम्मा..."
रोते हुए प्रेम से पूछने वाली को सविता ने आश्चर्य से देखा।
"तुम जाकर चाहो तो देखो... 'गीता मुझे ढूंढ कर एक दिन आएगी...?' मोती के बोले हुए शब्द उसके कानों में गूंजने लगे।
'ऐसे आए तो तुमसे ज्यादा मैं खुश होंगी' अपने कहे हुए शब्दों को उसने सोच कर देखा।
"अरे... तुम आ गई बेटी ?"
गीता को उन्होंने गले लगाया।
"आप ?" बिना समझे गीता ने पूछा
"मैं मोती की मां हूं।"
"मोती कैसा है अम्मा ?"
"तुम आ गई... अब वह निश्चित रूप से जिएगा। मुझे यह विश्वास आ गया..." सविता अपने भावनाओं को प्रदर्शित करते हुए उसके चेहरे में एक प्रकाश सा चमका। उसी समय "अम्मा आपके बेटे होश में आ गए। अब कोई डर नहीं है। आप जाकर मिलिए... उनसे बात करिए..." नर्स ने आकर सूचना दी तो उनकी खुशी का ठिकाना न रहा।
"देखा... तुम्हारे आते ही मेरे बेटे को होश आ गया। तुम ही पहले उससे मिलो। तुम्हें देखते ही वह तुरंत उठ कर बैठ जाएगा। वह चलना भी शुरु कर देगा..."
आंखों में आंसू के साथ ही हंसी सविता।
गीता को गले लगाते हुए उसका हाथ पकड़ कर आईसीयू की तरफ चलें।
गीता अपने अंदर संचित किए हुए पूरे प्रेम को मोती पर उड़ेलना चाह रही थी। बड़ी उत्सुकता के साथ उसने आईसीयू में प्रवेश किया। आंखों को बंद कर मोती पड़ा था।
उसके पूरे शरीर में पट्टियां बंधी थी। पूरे 35 टांके लगे थे। ड्रिप चल रही थी। गीता उसके पास गई।
"मोती..."
मोती ने आंखें खोल कर देखा। उसकी आंखें इधर-उधर देखने लगी।
"मोती"
झुक कर "गीता... गीता..."
"मैं आ गई। अब मेरे सब कुछ आप ही है ऐसा सोच मैं आ गई। मेरे दिल में अब आप ही हो..."
ऐसे चित्कार करते हुए उसने मोती के माथे को चूमा।
मोती की आंखें लबालब भर आई।
सबको देखकर खड़ी सविता का मन भी भर आया।
कुछ भी अपने पास नहीं है।
सब कुछ भाग्य के हाथ में ही हैं।
उसी भाग्य ने दोनों के दिलों को एक साथ में मिलाया।
समाप्त