टीपू सुल्तान के ख़्वाब (कन्नड़ नाटक) : गिरीश कर्नाड - अनुवाद : जफ़र मुहीउद्दीन
Tipu Sultan Ke Khwaab (Kannada Play in Hindi) : Girish Karnad
[टीपू सुल्तान ने अपने जीवन का ज़्यादातर समय जंग के मैदान में घोड़े की पीठ पर बिताया. पर इस दौरान टीपू के बारे में यह कम ही लोगों को पता है कि वह सपने भी बहुत देखता था, जिनका पता उसके आसपास के कुछ लोगों को ही था. पूरे जीवन उसके सपनों के बारे में किसी को पता नहीं चला, पर उसके आखिरी दिनों में इस राज़ से पर्दा उठ गया. टीपू सिर्फ योद्धा ही नहीं था, वह एक दृष्टिसम्पन्न राजनीतिज्ञ भी था जिसका आभास हमें इस प्रेरणास्पद नाटक से मिलता है. ]
ऐक्ट-1 : दृश्य-1
मेकेंज़ी : काम कैसा चल रहा है?
किरमानी : ठीक नहीं चल रहा है।
मेकेंज़ी : क्यों?
किरमानी : इतना आसाँ नहीं। तकलीफ़ होती है।
मेकेंज़ी : जनाब किरमानी, आप हमेशा ये ही कहते हैं। अब छोड़ो ये सब - इतने सालों के बाद भी...।
किरमानी : ज़ख़्म नहीं भर रहे हैं। सच है, एक अरसा हुआ कि ख़ून और आँसू, दोनों ख़ुश्क हो गए लेकिन ज़ख़्म अभी ताज़ा हैं।
मेकेंज़ी : हाँ, मैं समझ सकता हूँ, आप उनके बहुत क़रीब थे। लेकिन आप एक मुवर्रिख़ भी हैं। आपको एक ऑब्जेक्टिविटी के साथ काम करना होगा।
किरमानी : हाँ, मेकेंज़ी साहब, यही बात आप एक अरसे से कह रहे हैं- ऑब्जेक्टिविटी, लातआल्लुक़ी का फ़ासला, लेकिन क्या ऐसा मुमकिन है ?
मेकेंज़ी : अज़हद ज़रूरी है। मैं तो कहूँगा, आपका फ़र्ज़ भी है।
किरमानी : तब तो आपको मुझे इस काम से बरखास्त करना पड़ेगा। आप मुझे तारीख़ लिखने के पैसे दे रहे हैं, और मैं हूँ कि बीमारी का बहाना बना रहा हूँ।
मेकेंज़ी : मेरा मतलब नहीं था। ख़ैर, तुम्हारा कोई मुतबादिल नहीं है। तुम सठिया गए हो। अरे नासमझ, दरबार से जुड़े मुवर्रिख़ को बाज़ार से नहीं खरीदा जा सकता!
किरमानी : शायद आप ये सोचते हैं, बहाना बनाना भी दरबारियों की बीमारी है।
मेकेंज़ी : नहीं, मैं ऐसा नहीं सोचता, बल्कि मेरा ख़याल है, आप उनकी मौत से बहुत ज़्यादा दिलगीर हो गए हैं।
किरमानी : उनकी मौत से नहीं बल्कि जिस तरीके से उन्हें बरबाद किया गया।
मेकेंज़ी : आप इसे ड्रामाई शक्ल दे रहे हैं। हर सबूत चिल्लाकर कह रहे हैं कि उन्होंने ख़ुद अपनी मौत चाही थी।
किरमानी : हाँ, आपके लिए, ये सब कुछ शवाहिद, कुछ मुबाहसों ने किया। उन्हें ऐसा बनाया, और ये साबित भी करते हैं कि आप उन्हें ख़त्म करने में हक़ बजानिब थे। और मैं समझ नहीं पा रहा हूँ, आपके पास तारीख़ का एक पहलू है जो आपने गढ़ दिया है। फिर आप इसका दूसरा पहलू मुझसे क्यों देखना चाहते हैं?
मेकेंज़ी : हाँ; मेरी दिलचस्पी इसी दूसरे पहलू से है। हाँ, तुम कह सकते हो, ये फ़िरंगियों (यूरोपियों) की जहानत है, जो बात के दूसरे पहलू में ही दिलचस्पी रखते हैं और शायद यही हमारी ताक़त का राज़ भी है।
किरमानी : यहाँ तो ख़ुद को समझने के लिए पूरी ज़िन्दगी नाकाफ़ी है। मेरी ज़िन्दगी उनके वालिद और उनकी ख़िदमत में गुज़री है। और अब आपके लिए काम कर रहा हूँ, जो उनके दुश्मन हैं। ये मेरे किस पहलू की निशानदेही करते हैं? दगाबाज़? क्या अब भी मैं भरोसेमन्द हूँ, इस बात से आप परेशान नहीं हैं? मैं खुद परेशान हूँ ।
मेकेंज़ी : हमारी वफ़ादारी सिर्फ़ तारीख़ के साथ है जनाब किरमानी ! अपने जज़्बात को इसमें शामिल न करें। सिर्फ़ दलायल और हक़ीक़त पर तवज्जो दें - समझ गए न ।
किरमानी : आपका मतलब याददाश्त पर यही वो नुक़ता है जहाँ असली दगाबाज़ी पाई जाती है। देखिए, मैं ये याद करने की कोशिश कर रहा हूँ कि वो अपने आखिरी दिनों में कैसे नज़र आ रहे थे, लेकिन मुझे याद नहीं आ रहा है।
मेकेंज़ी : हाँ, ये भी इक बात है जिसे आपने नज़रअन्दाज़ किया है - उनका आख़िरी दिन ।
किरमानी : मुझे हर चीज़ अच्छी तरह तफ़सील से याद है। लेकिन जो असल तफ़सील है, वो याद नहीं आ रही है। शुमालि बुर्जियों में जो करवाने सराई है, उसमें वो ठहरे थे। वो कुछ दिन अपने सिपाहियों के साथ वहाँ ठहरकर देख रहे थे कि अंग्रेज़ उनके गिर्द फंदा कैसे कस रहे थे। बहुत शदीद गर्मी पड़ रही थी। हम बारिश की दुआ कर रहे थे ताकि गड्ढे हो जाएँ और हम पर अंग्रेज़ का हमला टल जाए। बादल घिरे हुए थे और हम खाना खा रहे थे। हमारा पसीना बहकर हमारे खाने की रकाबियों में बह रहा था इतने में आसमान फूट पड़ा। अंग्रेज़ों ने हमला बोल दिया। सुल्तान ने अपना हाथ धोया और खड़े हो गए। अपनी तलवार म्यान में रखी, अपनी जेब से एक लिफ़ाफ़ा निकाला और मुहरबन्द किया और मुझे देते हुए कहा, 'इसे अपने पास रखें, जब तक मैं ना आऊँ ।' उसी लम्हे ये ख़बर आई-सैयद ग़फ़्फ़ार, तोप का गोला लगने से मारे गए हैं। फिर उन्होंने कुछ दुआएँ पढ़ीं और बाहर चले गए। मुझे वो लम्हा याद है, जब मैंने सोचा था कि उनका चेहरा कभी नहीं भूलूँगा, लेकिन भूल गया। मैं जितनी भी कोशिश कर लूँ, अब मैं उस चेहरे का कर्ब कभी याद नहीं कर सकूँगा। ये तो ऐसी ग़द्दारी है...।
मेकेंज़ी : और फिर ?
किरमानी : और ज़ाहिर है, उसके बाद जो कुछ हुआ, उससे मैं उस लिफ़ाफ़े को ही भूल गया। दूसरे दिन जब मुझे वो लिफ़ाफ़ा अपनी जेब में मिला तो बहुत हिचकिचाते हुए मैंने वो खोला। अन्दर एक काग़ज़ मिला जिसमें उन्होंने एक दिन पहले देखे ख़्वाब की तफ़सील लिखी थी। इसके साथ ही मेरी तारीख़ ख़तम होती है, और आपका दौर शुरू होता है।
[विराम ]
मेकेंज़ी : मैंने उन्हें सबसे पहले टॉर्च की जलती - बुझती रोशनी में देखा था। उनका बदन अब भी गरम था। सोचा, जिन्दा हैं। वो दूसरी लाशों के अम्बार के नीचे दबे पड़े हुए थे। क़िले के वाटर गेट के पास 4 मई, 1799 की रात की ये बात थी।
दृश्य-1 समाप्त
दृश्य 2
[सेरिंगापटम की बुर्जियाँ या सिरीरंगापटना क़िला । आधी रात उस रात घमासान लड़ाई हुई थी। मरे हुए और मरते हुए लोगों से ज़मीन अटी पड़ी थी। अंग्रेज़ सिपाही उन लाशों के ढेर में टीपू की लाश तलाश कर रहे थे। टीपू के ख़ादिम लाए गए ताकि उनकी लाश की शिनाख़्त की जाए। पर वे सिपाही ज़मीन पर बैठे ऊँघ रहे थे ।]
सिपाही - 1 : क्या ये उनकी है?
सिपाही - 2 : हो सकता है। कोई तरीक़ा तो है नहीं कि यक़ीन से कहा जाए।
विल्क्स : एक फौजी जिसकी मूँछें ऊपर मुड़ी हुई हैं। गोल चेहरा है।
सिपाही - 2 : हाँ, सर । हमें अच्छी तरह याद है । आप जो नक्शा बता रहे हैं, वो तो यहाँ पड़े हर हरामी का लगता है।
विल्क्स : उस काले आदमी से पूछो । पूछो उससे ।
सिपाही -3 : सर! हम यहाँ अपना वक़्त बरबाद कर रहे हैं। मुझे यक़ीन है, चिड़िया कब की उड़ गई है। वो इतना बेवकूफ़ नहीं है कि भाग न निकले....
विल्क्स : (उसकी बात को नज़रअन्दाज़ करते हुए) उससे पूछेंगे।
सिपाही-2 :कोई फ़ायदा नहीं सर ! इन सूअरों ने एक दर्जन से ज्यादा लाशों को सुल्तान की लाश समझकर शिनाख़्त किया है। वो हमें बेवकूफ़ बना रहे हैं।
विल्क्स : वो उस तरफ़, दाएँ तरफ़ बैठे आदमी से पूछो। उससे नहीं पूछा हमने।
सिपाही - 2 : अरे सुनो... तुम नहीं- हाँ, तुम।
ज़फ़र : जी हुजूर !
सिपाही - 2 : यहाँ आओ।
ज़फ़र : जी!
सिपाही - 2 : नाम क्या है?
ज़फ़र : ज़फ़र ।
सिपाही - 2 : ये मुर्दा क्या सुल्तान का है?
ज़फ़र : दिखाई नहीं दे रहा है.... अँधेरा है।
सिपाही - 2 : वो कह रहा है, अँधेरे में दिखाई नहीं दे रहा है।
विल्क्स : सही है। अभी तक टॉर्च क्यों नहीं आए? हैलो, रिकेट्स?
आवाज़ : (दूर से) सर!
विल्क्स : टॉर्च कहाँ हैं? हम यहाँ कुछ भी नहीं देख पा रहे हैं।
आवाज़ : शायद ला रहे हैं। रास्ते में हैं, सर !
विल्क्स : ला रहे हैं? ठीक है। फ़ौरन !
आवाज़ : (एक लहज़ा) शायद यहाँ कुछ मिल जाए।
विल्क्स : यहाँ भी तो मिल सकती है, भेज दो ! जल्दी!
सिपाही - 3 : कित्ती अजीब बात है ! सारा दिन इन शैतानों से लड़ते रहे। इनको मारते रहे और फिर रात को इनकी सड़ी-सी लाशों को ढूँढ़ो। जैसे भंगी करते हैं।
सिपाही -1 : दर्जनों लोग भंगी बनकर इन लाशों को साफ़ कर रहे हैं और टॉर्च सिर्फ़ तीन हैं, बस !
आवाज़ : बहुत-सी टॉर्चें और मशालें आ रही हैं, सर ! वो देखो, कर्नल वेलेस्ली ।
वेलेस्ली : (दूर से) हैलो कैप्टन विल्क्स !
विल्क्स : यहाँ हूँ सर!
वेलेस्ली : (दूर से मार्क, तुम कहाँ हो?
विल्क्स : वाटर गेट के पास सर! क्या आप अपने साथ कुछ मशालें ला सकते हैं सर?
[ कर्नल अरथर वेलेस्ली और सिपाहियों के साथ दाख़िल होते हैं, जो टॉर्च लिये हुए हैं। ये टॉर्चें तक़सीम की जाती हैं।]
वेलेस्ली : यह जगह तो जहन्नुम लगती है।
विल्क्स : ये टीपू के आदमी हैं सर, जो कभी हार नहीं माननेवाले थे। यहाँ तो क़त्लेआम हुआ है।
सिपाही -1 : हाँ, सर, यहाँ तो जहन्नुम की गर्मी है।
विल्क्स : अब बारिश हो जाए तो हालात और भी बदतर हो जाएँगे ।
वेलेस्ली : बारिश के बग़ैर भी ये लाशें जल्द ही सड़ने लगेंगी। शहर में बेचैनी फैल जाएगी। सब लोग अपनों की लाशें माँगेंगे। उम्मीद करते हैं कि हम जल्द ही ढूँढ लेंगे। जहाँ तक इत्तला है, वो आख़िरी बार यहीं दिखाई दिया था। हम उसे जल्दी ढूँढ़ निकालेंगे, समझे?
सिपाही -3 : सर ! छोटा मुँह, बड़ी बात अगर वो बदमाश यहीं कहीं मरा हुआ पड़ा है तो उसे धूप में सड़ने छोड़ते हैं। उसकी बोटी-बोटी कुत्तों को खिलाएँगे।
वेलेस्ली : मैं तुम्हारे जज़्बात को समझता हूँ, लेकिन हम किसी भी लाश को चेक किये बगैर नहीं छोड़ सकते, समझे?
विल्क्स : (हँसकर ) जी, बिलकुल, सर!
वेलेस्ली : हमें अब अगला क़दम उठाने से पहले ये तय करना है कि क्या टीपू वाक़ई मर चुका है, या कहीं छुपा हुआ है? या फिर फ़रार हो गया है ? कर्नल मेकेंज़ी यहाँ क़िलेदार के साथ पहुँचने ही वाले हैं, तब तक हमें अपना काम जारी रखना होगा।
विल्क्स : कुछ तमाशा देखना है सर? फिर सिपाही - 2 से (ज़फ़र की तरफ़ इशारा करते हुए) इससे पूछो।
सिपाही-2 : अब देखो, इसको पहचानते हो? (वह पास पड़ी एक लाश पर टॉर्च डालता है। ज़फ़र देखता है और रोना शुरू करता है।)
ज़फ़र :हाँ-हाँ, यही हैं हमारे सुल्तान । यही हैं। अल्लाह, अब क्या होगा?
सिपाही - 2 : वो कह रहा है, यही है सुल्तान की लाश।
विल्क्स : वो देखो बाक़ी सब दूर से सर लटकाये ख़ामोश देख रहे हैं।
सिपाही - 3 : उन सब कमीनों को लात मारकर भगा क्यों नहीं देते? सब-के-सब कामचोर कहीं के!
वेलेस्ली : उनको इल्ज़ाम न दो।
विल्क्स : ठीक है, उन लाशों को भी दूसरी लाशों के साथ जोड़ दो।
सिपाही - 3 : मैं तो शर्त लगाने को तैयार हूँ। टीपू यहाँ से अपनी दुम दबाकर भाग गया।
सिपाही -2 : (हँसकर) पहले शहर का फ़ैसला करें फिर शर्त की सोचेंगे। तब शर्त लगाने के लिए कुछ होगा।
सिपाही-3 :अब मैं इस शहर को हासिल करने के लिए और इन्तज़ार नहीं कर सकता। मैं यहाँ क़ैदी था। मैंने शहर को देखा है। सारे शहर पर सोने की वरक़ चढ़ी हुई है।
विल्क्स : बकवास के ख़्वाब देखना बन्द करो, अपने काम पर लगे रहो ।
आवाज़ : (दूर से हेलो ! क्या कर्नल वेलेस्ली वहाँ हैं ?
वेलेस्ली : (चिल्लाते हुए) यहाँ वाटर गेट के पास ओह, कोलिन, तुम हो ?
मेकेंज़ी : (नदीम ख़ाँ के साथ आते हुए) कर्नल वेलेस्ली, ये हैं क़िलेदार नदीम ख़ान - क़िले के मुहाफ़िज़ ।
वेलेस्ली : आपसे मिलकर ख़ुशी हुई। काश, कि हालात ख़ुशगवार होते!
नदीम : ख़ुदा की यही मर्ज़ी है।
वेलेस्ली : हम आपकी मदद के लिए शुक्रगुज़ार होंगे।
नदीम : सुल्तान की जानिब ये मेरा फ़र्ज़ है साहब। मैंने आख़िरी बार यहीं लड़ते देखा था, जैसे कोई जिन्न लड़ रहा हो !
वेलेस्ली : क्या ये मुमकिन है कि टीपू सुल्तान यहाँ से फ़रार हो गया हो ?
नदीम : वो उनकी फ़ितरत नहीं है और करेंगे भी नहीं। इसके अलावा क़िले के सारे दरवाज़े अन्दर से बन्द थे। मैंने अच्छी तरह से देखा भी था। (न वेलेस्ली, न मेकेंज़ी इस बात पर गौर करते हैं) अगर आपकी इजाज़त हो तो... ( वो टीपू की लाश तलाश करने लगता है) ।
वेलेस्ली : कोलिन महल की क्या ख़बर है? सब ठीक तो है ?
मेकेंज़ी : उन्होंने खुद को सौंप दिया है। किसी ने एतराज नहीं किया। शहज़ादों ने बाहर निकलने में कुछ वक़्त लगाया। डर के मारे काँप रहे थे बच्चे। जनरल बेरड़ बेबस हो चुके थे।
वेलेस्ली : वाक़ई ! मैं अन्दाज़ा लगा लूँगा ।
मेकेंज़ी : कोई ख़ास बात नहीं। वो जल्द ही ठंडे हो गए।
वेलेस्ली : सुल्तान का कुछ पता चला?
मेकेंज़ी : वो महल में नहीं हैं। बताया गया कि वो दो दिन पहले ही वहाँ से जा चुके थे। जाने से पहले वो फ़ौजियों के साथ ही वहाँ बुर्जियों पर दिखाई दिये थे।
नदीम : साहेब, ये है - राजा ख़ाँ ।
सिपाही-2 : (बेचैनी से) नदीम खान ने राजा ख़ाँ की लाश को ढूँढ़ निकाला। राजा ख़ाँ, यहाँ ये सुल्तान का जाती ख़ादिम था।
[ सब दौड़ते हैं।]
मेकेंज़ी : यानी टीपू की लाश भी यहीं कहीं होगी। कहाँ? क़िलेदार साहिब, वहाँ हो सकती है। उन लाशों को हटाओ। ढूँढ़ो। अच्छी तरह देखो।
सिपाही - 2 : जल्दी! जल्दी !
नदीम : ठहरो! ठहरो! ये है ।
मेकेंज़ी : शायद हमें सुल्तान मिल गए। (आहिस्ता से ) लगता है, वो हैं ! जिसकी बेल्ट पर सोने की बकल है, उठाओ उसे ।
विल्क्स : (पुकारते हुए) हमें मिल गई! (सब मिलकर कहते हैं) लाश मिल गई, सारी टॉर्चें यहाँ लाओ।
आवाज़ : (दूर से) क्या सुल्तान की लाश मिल गई? ये तो कमाल है। उन्हें मिल गई । कहाँ है?
[हलचल मचती है। सारे सिपाही भागते हुए आते हैं, और लाश के अतराफ़ भीड़ जमा होती है।]
वेलेस्ली : ठहरो! इसके अतराफ़ सर्कल बना लो और अपनी टॉर्च नज़दीक करो! क़िलेदार साहब, क्या ये टीपू सुल्तान हैं?
नदीम : ( शिकस्त आवाज़ में) जी हाँ यही हमारे सुल्तान हैं।
वेलेस्ली : तो ये रहा मैसूर का शेर !
सिपाही - 2 : लाश अभी भी गरम है।
वेलेस्ली : क्या ये ज़िन्दा है? (वो लाश की हरारत को महसूस करता है)।
मेकेंज़ी : क्या ये ज़िन्दा है?
वेलेस्ली : जिस्म अभी गरम है। सर पर चोट लगी है, उसकी वजह से मौत हो गई।
[कुछ दूर से आवाज़ सुनाई देती है— ज़्यादातर रोती हुई औरतों की। सब सुनते हैं ।]
वेलेस्ली : (सुनते हुए) ये कैसी आवाज़ें हैं?
मेकेंज़ी : वो महल के हरम से आ रही हैं।
वेलेस्ली : महल की औरतें मातम कर रही हैं?
मेकेंज़ी : इतनी जल्दी उनको कैसे पता चला? महल तो एक मील दूर है!
विल्क्स : कुछ खुफिया इशारे ।
वेलेस्ली : इतने अँधेरे में भी ?
मेकेंज़ी : ताज्जुब है!
वेलेस्ली : अब हमें तसदीक़ का इन्तज़ार है। शायद मुझे यही लगता है।
[ रोने की आवाज़ तेज़ होती फैलती जाती है। अब पूरा शहर रो रहा है।]
सिपाही - 3 : (बेसाख़्ता होकर सब एक साथ कहते हैं) अब ये शहर हमारा हो गया सर?
वेलेस्ली : मेरा भी यही मानना है। अब तुम सबको रोक नहीं सकता।
वेलेस्ली : विल्क्स !
विल्क्स : जी सर ?
[सिपाही दौड़ते हुए बाहर निकलते हैं, ताकि शहर को लूट सकें। सबसे ग़मगीन चीज़ - लड़ाई में हार से बढ़कर उसे जीतना है। सबसे गम्भीर बात जंग की यह है कि वह हारकर भी जीत गया है ।]
वेलेस्ली : अब टीपू की लाश को जल्द अज़- जल्द महल में ले जाओ और उस पर नज़र रखना।
विल्क्स : जी सर ! (वे दोनों आगे बढ़ते हैं- कुछ बातें करते हुए)
सिपाही - 1 : एक्सक्यूज मी सर !
मेकेंज़ी : हाँ?
सिपाही-1 :क्या मैं आपका वो जेबवाला चाकू थोड़ी देर के लिए ले सकता हूँ सर? मेरा चाकू जंग में खो गया।
मेकेंज़ी : चाकू ? हाँ, ये लो!
सिपाही-1 :शुक्रिया जनाब। इसके पहले कि लाश को यहाँ से ले जाएँ, मैंने मेरे दोस्त डॉक्टर क्रूसो जो हमारे इस्टैब्लिश्मेंट के डॉक्टर हैं, उनको तोहफ़ा देने का वादा किया था।
[ वह टीपू की एक मूँछ काट लेता है।]
मेकेंज़ी : (चिल्लाते हुए) ये क्या शैतानी हरकत है? उस पागल को रोको।
[हर तरफ़ से डरावनी आवाज़ें- कन्नड़ और उर्दू में - अरे रोको, अय्यो! अय्यो! ये क्या किया?]
सिपाही - 1 : शेर की असली मूँछें! क़ीमती तोहफ़ा !
मेकेंज़ी : पकड़ लो उसे ।
[रोने की आवाज़ें तेज़ होते-होते, शहर के लूटने की चीख़ व पुकार पर हावी हो जाती हैं।]
दृश्य 2 समाप्त
दृश्य-3
[ किरमानी का मकान ।]
किरमानी : आख़िरकार मैसूर के शेर का शिकार कर ही लिया ! और जो पहली सलामी उन शिकारियों को मिली, वो थीं उनकी मूँछें, जो काट ली गईं।
मेकेंज़ी : हम गुंडागर्दी को भूलेंगे नहीं ।
किरमानी : और भूलेंगे भी कैसे? वो तो क़त्ल-ओ-ग़ारतगिरी की रात का सिर्फ़ एक आग़ाज़ था।
मेकेंज़ी : मैंने इससे पहले ब्रिटिश फ़ौजियों को इस तरह बे-लगाम होते हुए नहीं देखा।
किरमानी : घर-घर लूटा गया। जो भी औरत दिखती, उसकी इज़्ज़त लूटी गई। सिपाही क़ीमती हीरे-जवाहरात फेंकते चले जा रहे थे, क्योंकि बहुत ज़्यादा उठा ले जाना मुश्किल था ।
मेकेंज़ी : लूट और ग़ारतगिरी रोकने के लिए वेलेस्ली को तीन सिपाहियों को फाँसी देनी पड़ी। ख़ौफ़नाक । बेहतर यही होगा कि हम वो संस्कृत की किताब अर्थशास्त्र उठा लें, जो साइंस की तर्ज पर हुकूमत करने के मुतअल्लिक़ है। बड़ी अजीबोगरीब किताब है। ए तजुर्बेकार आदमी अपनी मायूसी से ऊपर उठो, लिखो ।
किरमानी : कोशिश करता हूँ। पर समझ नहीं आ रहा, क्या लिखूँ ।
मेकेंज़ी : किरमानी साब, सैकड़ों बार बोल चुका हूँ। आप टीपू के मौरिशस के सफर के बारे में कुछ लिखिए। और 'दि मालार्टिक एडवेंचर' के बारे में लिखिए। जहाँ से उनका ज़वाल शुरू हुआ, और हमें इसके बारे में कुछ नहीं मालूम।
किरमानी : ऐसा कभी कुछ नहीं हुआ न !
मेकेंज़ी : यही मैं समझ नहीं पा रहा। ये इतना बड़ा काम नहीं था जितना कि नेपोलियन की तरफ़ दोस्ती का हाथ बढ़ाना था। गवर्नर मालार्टिक की उतनी हैसियत नहीं। एक आसानी से भुलाया जानेवाला फ्रैंच मैन है अगर वो टीपू के ज़वाल का सबब बनता। और आप हैं कि इस बात से साफ इनकार कर रहे हैं, क्यों?
किरमानी : कर्नल साब! आप जिस मालार्टिक डील की बात करते हैं, वो कभी हुई ही नहीं।
मेकेंज़ी : (मानते हुए) तुम कहते हो तो मान लेते हैं। लेकिन लॉर्ड मोर्निंगटन के पास टीपू की शरारत का पुख़्ता सबूत था।
किरमानी : शायद हिज़ लॉर्डशिप ने ख़्वाब देखा हो ।
मेकेंज़ी : माफ कीजिए किरमानी साहब। आप गवर्नर जनरल ऑफ़ इंडिया पर इलज़ाम लगा रहे हैं कि वो झूठे हैं।
किरमानी : कर्नल साब, मैं ऐसा कैसे कर सकता हूँ? मैं ऑनरेबल जौन कम्पनी का मुलाज़िम हूँ। लेकिन क्या ख़्वाब देखना बे हुरमती है? मेरे मालिक टीपू सुल्तान अक्सर ख़्वाब देखा करते थे।
मेकेंज़ी : मुझे पता है। वो अपने सारे ख़्वाबों को महफूज़ रखते थे। ये बताओ, उनके आखिरी ख़्वाब का क्या हुआ?
किरमानी : जिस रात उनको दफ़नाया गया, तेज़ आँधी आई और तूफ़ानी बारिश हुई।
मेकेंज़ी : हाँ, मुझे याद है, बहुत ख़ून-खराबा हुआ। हाँ, हमारे भी दो आदमी मारे गए।
किरमानी : बरतानवी सिपाहियों ने शहर के सभी घरों के दरवाज़े और खिड़कियाँ पहले से ही तोड़-फोड़ दिये थे। बहुत सारे घरों पर तो छत भी नहीं थी। वैसे में तूफ़ानी बारिश के क़हर के सामने ब्रिटिश फ़ौजियों की लूट-पाट तो कुछ भी नहीं थी । मानो बच्चों का खेल हो ! सब कुछ बह गया। मेरे काग़ज़ात और मसौदों पर जो कुछ लिखा था, सब धुल गया। एक रात में मेरे सारे दस्तावेज़ बस मेरी याददाश्त बनकर रह गए।
मेकेंज़ी : अफ़सोस ।
किरमानी : क़ुदरत ने इस ख़्वाब का जो हश्र किया, वैसा ही मुंशी हसीबुल्लाह दूसरे ख़्वाबों के साथ करना चाहिए था।
मेकेंज़ी : क्या? तुम कहना क्या चाहते हो?