तिलिस्माती मुँदरी या कश्मीर के राजा की लड़की: श्रीधर पाठक
Tilismati Mundri : Shridhar Pathak
नोट
इस कहानी का बहुत सा प्रारंभिक भाग बनारस की प्रसिद्ध मासिक पत्रिका 'काशीपत्रिका' में सन् १८८७ और १८८८ में ऐसी भाषा में प्रकाशित किया गया था जो नागरी और फ़ारसी दोनों अक्षरों में लिखी जा सके और सुगमता से सब को समझ में आ सके। वह पत्रिका अपने कलेवर में ऐसी ही भाषा का व्यवहार करती थी और दोनों वर्णो को काम में लाती थी। यदि वह कुछ समय बाद बन्द न हो गई होती तो कहानी का शेष भाग भी उसमें छप जाता।
मुझे यह कहानी इतनी प्रिय थी और पत्रिका के पढ़नेवालों को भी इतनी पसन्द आई थी कि मैंने पक्का संकल्प कर लिया था कि कभी न कभी इसे समाप्त कर हिन्दी रसिकों के सामने पुस्तक रूप में अवश्य उपस्थित करूँगा। इसी से आज इसे सब की सेवा में समर्पित करने का साहसी होता हूं।
जिस प्रकार की भाषा में इसका प्रारंभिक भाग उक्त पत्रिका में प्रकाशित हुआ था उसी भांति की भाषा में शेष भाग भी लिखा गया है। इसमें फ़ारसी अरबी के अनेक शब्द आये हैं, परन्तु मैं आशा करता हूं कि उनके कारण हिन्दी के प्रेमी पाठक मुझ पर क्षुब्ध न होंगे, क्योंकि करीब २ वह सारे शब्द लाखों हिन्दी बोलने वालों की रोज़ की बोल चाल में आते हैं, इस कारण वह हिन्दी के कुनबे में संमिलित है और उनका हिन्दी पुस्तकों में विशेष कर कहानी की पुस्तकों में—व्यवहार करना मैं कोई अपराध की बात नहीं समझता।
श्रीपद्मकोट,प्रयाग
७ मार्च, १९१६
तिलिस्माती मुँदरी : अध्याय १
हरिद्वार से आगे उत्तर की तरफ़ पहाड़ों में दूर तक चले जाइये तो एक ऐसे मुक़ाम पर पहुंचियेगा जहां पानी की एक मोटी धारा, गाय के मुँह के मानिंद एक मुहरे की राह, बरफ़ के पहाड़ों से निकल कर बड़े ज़ोर और शोर के साथ एक नीची जगह में गिरती है। यह धारा हमारी गंगामाई है, उसके निकलने के मुहरे को गौमुखी कहते हैं और उस सारी जगह का नाम गंगोत्री है।
गंगोत्री बड़ी सुहावनी जगह है। बर्फ़िस्तान से आती हुई गंगाजी की सफ़ेद धारा देखने में बहुत खूबसूरत मालूम होती है और उसके उतरने की आवाज़, पहाड़ों में गूंजती हुई, कानों को बहुत प्यारी लगती है। गंगोत्री हिन्दुओं का बड़ा तीर्थ है। देस यानी मैदान के रहने वालों के लिये वहां जाने का पहाड़ी रास्ता बड़ा मुशकिल है और जिस ज़माने का किस्सा इस किताब में लिखा जाता है उस ज़माने में और भी मुशकिल था, क्योंकि अब तो कहीं कहीं सड़कें और पुल भी बन गये हैं, पहले सिर्फ तंग पगडंडियां थीं जिन पर से रास्तागीरों को पैर फिसल कर पहाड़ के नीचे खड्ड में गिर जाने का डर रहता था; और गहरी नदियों को उतरने के लिये उनके ऊपर एक किनारे से दूसरे किनारे तक मोटे रस्से लगे रहते थे जिन्हें झूला कहते थे, उनपर चलने से वह बहुत हिलते डुलते थे और उतरने वाले अक्सर पैर चूकने से उनपर से गिर कर मर जाते थे।
सैकड़ों बरस की बात है इस गंगोत्री के नज़दीक एक छोटी झोंपड़ी में एक योगी रहता था। उम्र उसकी ५० से ज़ियादा और ४५ से कम न थी, पर देखने में वह बहुत ही बूढ़ा जान पड़ता था। डील उसका लम्बा, रंग गोरा, चिहरा आर्यों का सा, माथा ऊँचा था, और एक बड़ी भूरी डाढ़ी उसकी चौड़ी छाती को ढकती हुई नाफ़ तक लटकती थी। उसके सारे बदन पर ग़ौर करने से ऐसा मालूम होता था कि वह जवानी में बड़े आराम से रहा होगा, मगर माथे पर की सिकड़ी हुई लकीरों से और भवों के भीतर गड़ी हुई आंखों से ऐसा ख़याल होता था कि कोई बड़ा भारी दुख इस आदमी के योगी हो जाने का सबब हुआ है।
यह योगी चिड़ियों और जानवरों पर बहुत मुहब्बत रखता था, उन्हें आदमी की तरह चाहता था और वह इसके मिज़ाज को यहां तक जान गये थे कि हत्यारे जानवर भी दूसरे जानवरों की तरह इसके पास आने में डर नहीं खाते थे और न इस को किसी तरह का नुकसान पहुंचाते थे।
एक दिन शाम को यह योगी आसन पर बैठा हुआ अस्ताचल के पीछे डूबते हुए सूरज की सजावट को देख रहा था कि उसकी नज़र दो कौओं पर पड़ी जो कि उड़ते उड़ते खिलवाड़ कर रहे थे। लड़ते लड़ते एक उनमें से गंगा जी की धारा में गिर पड़ा। वहां पर बहाव ज़ोर का था और उसके पंख भीग कर इतने भारी हो गये थे कि उड़ने की ताकत न रख कर वह बह चला और ज़रूर डूब जाता, लेकिन योगी ने पानी में धस झट अपनी कुबड़ी की चोंच से उसे बाहर निकाल लिया और किनारे पर रख दिया। जब उसके पंख सूख गये दोनों कौए एक ऊंची चट्टान की तरफ़ जो कि गौमुखी के ठीक ऊपर थी कांव कांव करते हुए उड़ गये। योगी ने उन्हें उस चट्टान के बीचों बीच एक छोटी सी खोह में घुसते हुए देखा और थोड़ी ही देर पीछे देखता क्या है कि दोनों कौए फिर उसकी तरफ़ आ रहे है और आकर उसके पैरों के पास बैठ जाते हैं। एक कौआ एक अंगूठी योगी के पैरों पर रख देता है और योगी उसको उठा कर अपनी उंगली में पहन लेता है। मगर उसे बड़ा तअज्जुब होता है जब कि वह अंगूठी को पहनते ही कौए को यों कहते सुनता है-“ऐ मिहर्बान बड़े योगी! आज आप ने मेरी जान बचाई है। और सब चिड़ियों और जानवरों पर आप हमेशा बड़ी मिहर्बानी रखते हैं। इस लिये यह अंगूठी मैं आप को भेट करता हूं, इसे कबूल कीजिये। यह मुँदरी जादू की है और इस में यह तासीर है कि जो कोई इस को पहनता है सब चिड़ियों की बोली समझ सकता है और उन्हें जिस काम का हुक्म देता है उसे वह इसके दिखाने से उसी वक्त करने को तैयार हो जाते हैं। अगर इस वक्त हमारे लायक कोई काम हो तो हुक्म दीजिये"।
यह सुन कर योगी ने कहा-"हां, मेरा एक काम है। मैं पहले कश्मीर का राजा था, पर मेरे दामाद ने मुझे गद्दी से उतार कर राज छीन लिया और मैं यहां योगी के भेस में छुपा हुआ हूं। मैं चाहता हूं कि मरने के पहले अपनी लड़की की जो कि वहां रानी है कुछ ख़बर सुन लू और राज की हालत भी जान लूं। अगर तुम पहाड़ों के पार कश्मीर जाकर ख़बर ले आओ तो बड़ा एहसान मानूं"।
"बहुत अच्छा" कह के दोनों कौए वहां से उड़ चले और पल भर में योगी की नज़र से गायब हो गये। कई दिन तक योगी ने उनको न देखा। एक दिन वह शाम को अपनी मढ़ी के दरवाज़े पर बैठा था, उसे दो काले दाग़ से दूर आसमान में दिखाई दिये, वह उसकी तरफ़ आ रहे थे और जब नज़दीक आ गये वही दोनों कोए निकले। आकर वह उसके पास एक तिपाई पर जो वहां पड़ी थी बैठ गये और उनमें से एक अपने कश्मीर जाने का नतीजा यों सुनाने लगा-
"ऐ महाराज, हम आप के लिये बुरी ख़बर लाये हैं। रानी यानी आप की बेटी तो इस दुनिया से कूच कर गई है और एक लड़की छोड़ गई है। राजा ने दूसरा ब्याह कर लिया है। पर पहली रानी के तोते से जो कुछ हमने सुना उस से जाना कि नई रानी आप की दोहती को विलकुल नहीं चाहती, बल्कि उसे दुश्मनी की नज़र से देखती है और यह भी डर है कि जब राजा अब की बार शहर से दूर शिकार हो जायगा यह बेरहम सनी उस बग़ैर मां की बेगुनाह बच्ची को मरवा डालेगी या किसी दूसरी तदबीर से अलहदा कर देगी"।
उस बूढ़े बैरागी को यह बात सुन कर बड़ा दुख हुआ और फ़िक से रात को नींद न आई। सवेरा होने पर राज़ की तरह वह कौए नदी किनारे जब फिर उड़ने आये, योगी ने उन्हें फौरन अपने पास बुलाया और कहा-“ऐ नेक चिड़ियो, यह अंगूठी मेरी दोहती को जाकर दो और कहो कि जब उसे किसी तरह की मदद या सलाह की ज़रूरत पड़े वह इसके ज़ोर से चाहे जिस चिड़िया को बुला लिया करे हर एक चिड़िया उसे अपनी ताक़त भर मदद देगी-बस मैं अपनी प्यारी दोहती को सिर्फ़ इतनी ही मदद पहुंचा सकता हूं"-और आंखों में आंसू भर अंगूठी कौओं को देदी-कौए यह कह कर कि- "बहुत अच्छा महाराज़, हम आपके हुक्म के बमूजिब अंगूठी लड़की को दे देंगे और उसके पास रह कर मक़दूर भर उसकी मदद करेंगे और हो सका तो आप के पास उसे ले भी आवेगे," वहां से उड़ दिये और पहाड़ और बन और पटपरों को तै करते हुएं थोड़े ही दिनों में कश्मीर के राजा के महलों में दाखिल हुए-और सीधे उसी जगह पर पहुंचे जहां राजा की बेटी बैठी हुई अपने तोते को चुगा रही थी और मुंँदरी को लड़की के आगे रख दिया। लड़की उसे छूते ही चिड़ियों की बोली समझने लगी।
कौओ ने उसे उसके नाना मे जो कहला भेजा था सब सुना दिया और तोते ने जिस तरह उसका राज छिन गया था सब बयान किया। राजा की लड़की सुन कर बहुत रोई और बोली-“ऐ परिन्दो, मुझे जैसे बने मेरे नाना के पास ले चलो, क्योंकि रानी मुझ पर इतना कड़ापन रखती है कि बाप के साथ सिवा अपने सामने के मुझे बात तक नहीं करने देती, इस से मैं उसकी बातें बाप से नहीं कह सकती-अलावा इस के वह हर एक को मेरे ख़िलाफ़ बनाये रहती है और सिवा इस प्यारे तोते के कोई मुझे नहीं चाहता और न मेरी ख़बर लेता है।
इस पर तोता अपनी बैठक से झुक, चेांच से लड़की के हाथ को चूम, कहने लगा-"मेरी प्यारी बच्ची, तू पूरा यक़ीन रख कि जो कुछ मैं तेरे लिये कर सकूंगा उससे कभी बाहर न हूंगा, क्योंकि मैं तुझे अपने बच्चे के बराबर मानता हूं-मैंने तेरा और तेरी मां दोनों का पैदा होना अपनी आंखों से देखा है। रही तेरे नाना के पास तेरे जाने की बात, मेरी समझ में यह काम मुशकिल और ख़तरे का है, पर साथ ही यह भी अंदेशा है कि राजा के शिकार को चले जाने के बाद, इस सखदिल रानी के पास रहने में हमारे राजा की प्यारी लड़की का किसी तरह बचाव नहीं"।
इसके बाद यह तै हुआ कि दोनों कौए तो महल के बाग़ में बसेरा करें और हमेशा ऐसी जगह रहे कि काम पड़ने पर झट बुला लिये जा सके और तोते ने महलों के भीतर ख़बरदारी रखने का काम लिया और यह मालूम करने की कोशिश में रहा कि रानी लड़की को तकलीफ़ पहुंचाने की कोई तदबीर तो नहीं करती।
तिलिस्माती मुँदरी : अध्याय २
इसके थोड़े ही दिनों बाद राजा शिकार खेलने को पहाड़ों में चला गया और उसके जाने के दूसरे ही दिन कौओं ने तोते को ख़बर दी कि उन्होंने रानी के ख़ास गुलाम बब्बू को बाग़ में कुछ जड़ी बूटी उखाड़ कर इकट्ठा करते देखा था जिनमें कई ज़हरीली बूटियां थीं। यह ख़बर सुनते ही तोता खिड़की की राह बाहर आ, बब्बू के करतब को देख, सीधा रानी के कमरे में चला गया और वहाँ छिप कर देखने लगा कि रानी क्या करती है। थोड़ी देर बाद वह देखता है कि बब्बू उन ज़हरदार पत्तियों को लाकर रानी के हाथ में दे देता है और रानी उनको काट कर एक देग़ची में रख अंगीठी पर उबालने को चढ़ा देती है; बाद इसके उसने देखा कि रानी ने एक बरतन में से थोड़ा सा आटा और कुछ मिठाई निकाल उबली हुई पत्तियों के अर्क में गूंध कर एक रोटी पोई और उसे आग पर सेक डाला। तोता यह देख कर वहां से चुपके से उड़ फ़ौरन राजा की लड़की के कमरे में पहुंचा जहां उसने दोनों कौओ को भी पाया और उनसे कहने लगा-“ऐ कौओ, अब देर करने का वक्त नहीं है, अगर राजा की लड़की अब यहां रहेगी तो उसे ज़रूर ज़हर दे दिया जायगा-रानी इस वक्त उसके लिये एक ज़हर की रोटी बना रही है। प्यारी बेटी!चलो यहां से अभी भाग चले" राजा की लड़की इस बात को सुनते ही बड़ी दहशत के साथ वहां से उठ कर दरवाज़े की तरफ दौड़ी, पर किवाड़ों में ताला लगा, था। खिड़की को देखा तो वह इतने ऊंचे पर थी कि लड़की का उसकी राह से निकलना नहीं हो सकता था। सिवा इसके खिड़की के सामने ही एक संतरी पहरा दे रहा था, लेकिन जब कि वह सब सोच विचार कर रहे थे कि क्या किया जाय, दरवाज़ा खुल गया और रानी रिकाबी में एक उमदा सी रोटी लिये हुए आ पहुंची। इस लिये कि रानी उनको न देख सके कौए उसके अन्दर आते ही खिड़की की राह से उड़ गये। रानी लड़की से बोली-“ऐ प्यारी, मैं तेरे खाने के लिए यह रोटी अपने हाथ से बना के लाई हूं" और इतना कह रोटी उसके आगे रख, दरवाजे का ताला बंद करके चली गई। रानी के चले जाने के बाद तोते ने झट कौओं को बुलाया और कहा कि "इस रोटी को दीवार के बाहर झील में गिरा दो"; कौओं ने वैसा ही किया। राजा की लड़की उस रोज़ दिन भर और रात भर उसी कमरे में बंद रही और उसके लिये खाना भी और कुछ न आया; लेकिन कौए उसके वास्ते कई तरह के फल और बहुत सी मेवा महल के बाग़ीचे से ले आये और लड़की और सब चिड़ियों ने मिल कर खूब अच्छी तरह ब्यालू की। सुबह होते ही रानी यह देखने को आई कि लड़की मर गई या नहीं और जब उसे जीता पाया निहायत गुस्से में आ उसके बाल खींच कर उसे मारने लगी और दोनों हाथों से गर्दन दबा कर गला घोटने का इरादा किया। इस हरकत को देख कर तोते ने क्या किया कि खिड़की की राह उड़कर सीधा उस जगह पहुंचा जहां पर रानी का छोटा बच्चा पालने में लेटा हुआ था और अंगीठी में से जो कि वहां जल रही थी एक जलती लकड़ी लेकर उस कमरे की खिड़की के परदे में आग लगा दी, और "आग लगी, आग लगी; पालने वाले घर में आग लग गई,” यों पुकारता हुआ राजा की लड़की के कमरे तक जा पहुंचा और महल के सब नौकर "आग, आग" चिल्लाने लगे। यह सब होने में इतनी थोड़ी देर लगी कि रानी राजा की लड़की का गला घोटने न पाई और उसे वहीं ज़मीन पर पड़ी हुई छोड़ अपने बच्चे को बचाने के लिये दौड़ी।
राजा की लड़की किसी तरह मुशकिल से ज़मीन से उठी और तोते के कहने पर कि इस मौके पर ज़रूर भाग चलना चाहिये उसके साथ दरवाजे की राह जो कि अब खुला हुआ था, बाहर निकल गई और सीढ़ियां उतर कर बाग़ में दाख़िल हुई, जहां दोनों कौए भी मिल गये। तोता आगे हुआ और कौए पीछे और वह सब दीवार के एक छोटे दरवाजे पर पहुंचे। लड़की ने कुछ मुशकिल के साथ किवाड़ों की कुन्दी खोल ली और जब सब बाहर हुए अपने तई ऐन झील के किनारे पर पाया। उस वक्त झील के दूसरे किनारे के पास दो हंस तैर रहे थे; तोते ने राजा की लड़की से कहा कि “इन को अंगूठी दिखा कर हुक्म दे कि तुझे झील के पार पहुंचा दें"। ज्यों ही लड़की ने हंसों को अंगूठी दिखाई वह उसके पास आकर सिर झुका कर पूछने लगे-"क्या हुक्म है?" वह बोली-"मुझे झील के उस पार ले चलो"-हंसे ने उसी दम अपनी जोड़ी बना ली और राजा की लड़की ने पानी में धस अपने दोनों बाजुओं को दोनों हंसों की पीठ पर लगा लिया। धड़ उसका कंधों के नीचे तक पानी में हो गया, सिर्फ़ सिर ऊपर रहा और दोनों हंस उसे ले चले। तोता बड़े आराम से राजा की लड़की के कंधे पर बैठा था और कौए सभी के ऊपर उड़ते चलते थे।
जब वह सब झील के पार हुए, राजा की लड़की उतर पड़ी और हंस उसका हुक्म पाकर लौट गये। राजा की लड़की ने वहां चट्टानों में एक अलहदा जगह पाकर अपने भीगे कपड़े धूप में सूखने को डाल दिये और तोते ने एक कौए को चट्टान की चोटी पर खबरदारी के लिये बैठा दिया और दूसरे को राजा की लड़की के कहने से यह मालूम करने के लिए महलों को रवाना किया कि आग लगने से रानी के बच्चे को किसी तरह की तकलीफ़ तो नहीं पहुंची।
जब तक कपड़े सूखे, यह कौआ महलों से लौट आया और यह ख़बर लाया कि बच्चे को किसी तरह का नुकसान नहीं पहुंचा, और आग भी सब बुझ गई है। लेकिन राजा की लड़की के बाबत महल में बड़ा शोर मच रहा है। बब्बू वगैरह सब नौकर उसकी खोज कर रहे हैं और जो कोई राजा की लड़की को रानी के पास ले आवे, उसके लिये ५० अशर्फ़ी का इनाम मुकर्रर हुआ है।
तोते ने राजा की लड़की से कहा कि कपड़े पहन कर अब जल्दी उसके पीछे २ चल दे क्योंकि अभी ऐसी जगह बहुत दूर थी जहां उसके खोजने वालों की पहुंच न हो। पस उन्होंने कूच कर दिया। कौए आसमान की राह चारों तरफ निगाह रखते चलते थे और तोता राजा की लड़की के आगे २ रास्ता बताता जाता था। थोड़े ही अर्से में वह एक बड़े बन में पहुंचे। यहां एक कौआ तो ऊंचा आसमान में दरखों की चोटियों से ऊपर २ उड़ता हुआ चला, और दूसरा कौआ नीचे उतर कर राजा की बेटी के आगे हो लिया। उन्हें बहुत से आदमी उस बन में मिले, लेकिन जब कोई आता दिखाई देता नीचे वाला कौआ अपनी बोली में कह कर लड़की को ख़बरदार कर देता और जब तक वह आदमी निकल नहीं जाता लड़की किसी झाड़ो या पेड़ या पत्तों की आड़ में छिप रहती; और उन चिड़ियों पर कोई ध्यान नहीं देता था।
इस तरह वह बराबर चले गये जब तक कि राजा की लड़की थकी नहीं। पर अब वह थक भी गई और उसे भूख भी लगी; तोते ने तब ऊपर वाले कौए को बुला कर पूछा कि कहीं उसे पानी का निशान भी दिखाई दिया कि नहीं। कौए ने कहा कि एक छोटा सा झरना दाहिनी तरफ़ को थोड़ी दूर पर एक चट्टान से गिर रहा है। फिर तोते ने कौओं को हुक्म दिया कि राजा की लड़की के वास्ते बन में से अच्छे २ फल चुन कर झरने पर लावे और राजा की लड़की का, हालांकि वह थकी हुई थी, अपने साथ झरने की तरफ़ ले चला। उन्हें थोड़े ही देर में पानी के गिरने की आवाज़ सुनाई दी वह, उसी तरफ को चले जिधर से वह आवाज़ आती थी और एक पत्थर की चट्टान के पास पहुंचे जिसमें से पानी की एक छोटी सी धारा एक बड़े गहरे और पथरीले खडु में गिर रही थी। राजा की लड़की ने खूब जी भर के पानी पिया और तोते ने भी पिया। तोता पानी पीकर घास पर, बैठ कौओं की राह देखने लगा। कौए भी जल्द आ पहुंचे। जितने उनसे चल सके, अंजीर और अंगूर साथ लाये। यह फल जब राजा की लड़की और तोते ने सब खा लिये, कौए बड़ी आसानी से पास ही से और ले आये। यों उन सभी ने मिलकर खूब अच्छी तरह खाना खाया। यह जगह ऐसी सुंदर और अलहदा थी कि उन्होंने वहां दूसरे रोज़ तक ठहरने का इरादा कर लिया। चिड़ियां राजा की लड़की के बिस्तर के लिये नर्म २ पत्ते चुन कर ले आई और राजा की लड़की ने भी इस काम में मशक्कत की और रात होने के पहले ही एक उमदा पलंग एक छप्परनुमा चट्टान के नीचे तैयार हो गया, जहां ओस और सर्दी से बचकर वह रात भर खूब आराम से सोई। तीनों पखेरू पास के एक पेड़ पर बसे, और बारी २ से रात भर पहरा देते रहे।
सुबह को उन सभों ने वहां अंजीरों और अंगूरों का कलेवा करके मामूली तौर से कूच फिर शुरू कर दिया। अब दोपहर के क़रीब जब कि वह कुछ देर तक चल चुके थे, आगे वाले कौए को एक आदमी उनकी तरफ़ आता नज़र आया, और कौआ राजा की लड़की को आगाह करने के लिये फ़ौरन चिल्लाने लगा। लड़की ने कौए की आवाज़ को सुना, पर उसका मतलब न समझा। लेकिन जब उसको अपनी तरफ़ ज़ोर से कांव कांव करते हुए आता देखा, लड़की ने जाना कि कुछ अंदेशा है और भट एक झाड़ी के पीछे छिप गई। आदमी के चले जाने पर वह फिर चिड़ियों से मिल गई, लेकिन उनके कहने का एक लफ्ज़ भी नहीं समझ सकती थी। आख़िर को उसे मालूम हुआ कि जादू की अंगूठी उसके पास नहीं है। अंगूठी उसकी पतली उंगली के लिये बहुत बड़ी होने से सुबह के चलने में कहीं रास्ते में बेमालूम गिर गई थी। उसने हाथ उठा कर तोते को जताया कि मुंँदरी नहीं है, इस बात से उन सब को बहुत अफ़सोस हुआ, और लड़की के रोने, तोते के चीखने और कौओं की कांव कांव से एक ग़मगीन राग उस जंगली जगह में सुनाई देने लगा। आख़िरश तोते ने राजा को लड़की को अपने पीछे २ आने का इशारा किया और तमाम काफ़िला वहां से लौट चला। रास्ते में बड़ी होशियारी से खोई हुई अंगूठी ढूंढ़ते जाते थे, मगर ढूंढ़ना बेफ़ायदा हुआ और वह उसी चश्मे पर पहुंच गये जहां से कि सुबह को कूच किया था।
इस वक्त शाम हो गई थी। कौए खाने को कुछ अंजीर और अंगूर ले आये और राजा की लड़की अपने पुराने बिस्तर पर लेट रही। वह बहुत रोई कि अब अपनी प्यारी चिड़ियों से बात नहीं कर सकती थी, लेकिन रोते २ जल्द ही नींद आ गई। सुबह होते ही वह फिर अंगूठी की तलाश में निकले, और जब कि उसकी खोज में लगे हुए थे कौओं ने देखा कि एक सिपाही एक पेड़ के नीचे पड़ा सो रहा है। एक कौआ दूसरे से कहने लगा “देख यहां एक आदमी लेटा हुआ है। जा, राजा की लड़की को ख़बरदार कर दे"। लेकिन इतने में “कौन जाता है" यों कहता हुआ सिपाही उठ खड़ा होता है और जैसे वह उठता है कौए उसकी उंगली पर जादू की मुँदरी चमकती हुई देखते हैं। जादू उसी दम अपना असर करता है और कौओं को सिपाही के सवाल का जवाब देना पड़ता है-"हम दो कमनसीब कौए हैं और आप के ताबेदार हैं"। सिपाही को उन चिड़ियों की बोली समझने से बड़ा तअज्जुब हुआ और उनसे पूछने लगा "तुम चिड़ियां होकर इस तरह बात क्योंकर कर सकते हो?" एक कौए ने जवाब दिया "साहब, आप की उंगली में एक जादू की अंगूठी है जिसके ज़ोर से आप हमारी बोली समझ सकते हैं और हम को मजबूरन आप के हर सवाल का जवाब देना पड़ता है"। “हां! यह बात है? अच्छा तो बतला किस राजा की लड़की का तू अभी जिक्र कर रहा था"। कौआ बोला “कश्मीर के राजा की लड़की का"। इस पर सिपाही कहने लगा “क्या खुब, उस लड़की के पकड़ने वाले को तो ५० अशर्फ़ी का इनाम है। क्या वह लड़की इस वक्त कहीं यहीं पर है?" बेचारे कौए राजा की लड़की को दुश्मन के कब्जे में लाना नहीं चाहते थे, मगर मुंँदरी के जादू के आगे बेकाबू थे। इसलिये उन्हें कबूल करना पड़ा कि लड़की पास ही है। सिपाही ने लड़की को झट ढूंढ कर पकड़ लिया, और उसके रोने और चिल्लाने पर कुछ भी ध्यान न दे, रास्ते में घसीटता हुआ ले चला। तीनों चिड़ियां बेचारी ग़मगीन आवाज़ करती हुई पीछे २ साथ हुई। थोड़े अर्से में वह झील केमकिनारे पहुंचे। उसमें इस वक्त एक कश्ती पड़ी थी। सिपाही ने राजा की लड़की को उसमें जबरदस्ती बैठा दिया और आप भी चढ़ लिया। तोता भी किसी तौर से नाव में घुस गया और एक तख्ते के नीचे छिप रहा। सिपाही ने लाव का खेना शुरू किया, कौए ऊपर उड़ते चले। वह सब महल के पीछे की खिड़की पर जा उतरे जिसका दर्वाज़ा सिपाही के खटखटाने पर बब्बू गुलाम ने फ़ौरन खोल दिया। गुलाम राजा की लड़की को दांत निकाल कर बुरी तरह देखने लगा और रानी के कमरे में ले गया। चिड़ियाँ महल के बाग़चे में छिप रहीं।
रानी ने सिपाही को वादा किया हुआ इनाम दिया और बब्बू से कहा कि लड़की को उसके कमरे में बन्द करके दुरवाज़ो और खिड़कियों के सामने पहरा बैठा दे ताकि लड़की फिर न भाग जावे। फिर वह सिपाही से पूछने लगी कि उसने लड़की को कैसे पाया, सिपाही ने, जिस तरह उसे जंगल में जादू की अंगूठी मिली थी जिसके जरिये से वह चिड़ियों की बोली समझने लगा था और जिस तरह उन्हीं चिड़ियों से लड़की का पता लगा था, सब सुना दिया।
तिलिस्माती मुँदरी : अध्याय ३
जादू की अंगूठी हाथ आने से रानी बहुत खुश हुई। उसने छुटपन में इसका बहुत कुछ हाल सुना था। उसे मालूम था कि यह अंगूठी पेश्तर के ज़माने में गुरु गोरखनाथ के पास थी जिन्होंने कि इसकी ताक़त से तमाम चिड़ियों को ताबे कर उन पर अपनी हुकूमत कायम कर ली थी। गोरखनाथ जी के मरने पर चिड़ियों ने अंगूठी को कहीं छिपा दिया था ताकि कोई दूसरा शख़्स उसके ज़रिये से उन पर अमल- दारी न कर सके। रानी ने अपने कमरे की खिड़की से देखा कि दो कौए बाग़चे में एक दरख़ की टहनी पर ग़मगीन बैठे हुए है (यह कौए वही थे जिनका ज़िक्र इस कहानी में शुरू से है) रानी ने उन्हें अंगूठी दिखा कर पास बुला लिया और हुक्म दिया कि वह झील के पार जो जंगल है वहां जांय, उसके भीतर एक बड़ी भारी पत्थर की चट्टान मिलेगी जिसकी कि चारों बग़लें बिलकुल सीधी हैं। इस चट्टान की जड़ पर एक अनार का दरख़ उगा हुआ है जिसकी पीड़ में एक मैंडक बन्द है। रानी ने कौओं से कहा कि वह इस पेड़ का एक अनार उसके वास्ते लावें और वह भी एक एक दाना उस फल का निगल जावें क्योंकि उसके दाने ज़हर मुहरे की खासियत रखते हैं, यानी उनके खाने से किसी किस्म का ज़हर असर नहीं करता, और अगर कौए उसके दाने न खायेंगे तो इसके बाद जो काम उनसे लिया जायेगा उसमें वह मर जायेंगे। वह काम यह है कि वह दोनों उस चट्टान की चोटी पर जायें, वहां एक ज़हर का दरख़ है, उसका गोंद लावें। कौए हुक्म के मुताबिक़ वहां से जंगल को उड़े और थोड़े ही अर्से में उस अनार के पेड़ पर पहुंचे जो कि चट्टान की जड़ में उगा हुआ था, उन्होंने अपनी चोंच से पेड़ की पीड़ में खोंटें मार कर उस पर कान लगाया तो उसके अन्दर मैंडक के बोलने की आवज़ सुनाई दी। तब उन्होंने उस अनार के चन्द दाने जो कि नीचे बिखरे हुए थे निगल लिये और एक २ फल साथ लेकर चट्टान की चोटी पर पहुंचे, जिसे उन्होंने सब्जी या जानवरों से बिलकुल खाली पाया और जिस पर कि उन चिड़ियों की ठटरियां और हड्डियां तमाम फैली हुई थीं जो कि चट्टान के ऊपर उड़ने में उस ज़हर के पेड़ की बू से मर गई थीं। चट्टान के सब से ऊंचे हिस्से पर कौओं ने देखा कि एक छोटा सा अधूरा उगा हुआ पेड़ है जिसकी छाल से एक स्याह रंग का गोंद टपक रहा है। एक कौए ने उसमें से थोड़ा सा गोंद ले लिया और मय अनारों के दोनों कौए महल की तरफ़ रवाना हुए। एक अनार उन्होंने महल के बाग़चे में एक झाड़ी के अन्दर गिरा दिया और दूसरा मय गोंद के जाकर रानी को दिया। रानी ने उसी दम अनार का एक दाना निगल लिया और एक दाना बब्बू को जो कि उसके पास था दिया, ताकि गोंद की बू से उसे ज़हर न चढ़ जाय। गोंद को रानी ने एक सोने की डिब्बी में बन्द करके रख लिया।
रानी से जब छुट्टी पाई, कौए सीधे राजा की लड़की के कमरे की खिड़की का दौड़े, वहां उन्होंने तोते को पाया और उसे ज़हरीले, गोंद और अनारों का सब हाल सुना दिया। उन सभी को यकीन हो गया कि अब राजा की लड़की को दुबारा ज़हर देने की तदबीर की जावेगी और उस तदबीर को बेकाम करने के लिये उन्होंने भी तजवीज़ की। कौए उस अनार को जो कि वह जंगल से लौटती दफ़ा बाग़चे में एक झाड़ी में गिरा पाये थे, उठा लाये, तोते ने उस में एक छेद करके एक दाना आप खा लिया और फिर उस अनार को राजा की लड़की के पास ले गया। लड़की एक कोने में बैठी हुई रो रही थी। तोते ने इशारे से ज़ाहिर किया कि वह एक दाना अनार का खा ले। राजा की लड़की का जी उसके खाने को न चाहा क्योंकि अनार का रंग ठीक मैंडक के चमड़े का सा था और देखने में बिलकुल अच्छा न था। लेकिन तोते ने इतने इशारे और इतनी खुशामद की कि अख़ीर को लड़की ने एक दाना निगल लिया। बाद इस के अनार को तोते ने लड़की के बिस्तर के तले छिपा दिया। लेकिन वह उसे मुशकिल से छिपाने पाया था कि दरवाज़े की कुन्दी खुलने की आवाज़ आने से उसे अपने तई भी छिपाना पड़ा। और बब्बू गुलाम एक रोटी और एक लोटे में पानी लिये हुए अन्दर आ पहुंचा। वह इन चीज़ों को लड़की के आगे रख कर चला गया। उसके जाते ही तोता चरपाई के नीचे से झट निकल आया। राजा की लड़की को इस वक्त बहुत ही भूख और पियास लग रही थी, पर वह खाने और पीने से डरती थी, हालां कि तोता यह जान कर कि अनार का दाना खाने के सबब से ज़हर कुछ असर नहीं कर सकेगा, इशारों से बहुत कुछ ज़ाहिर कर रहा था कि वह उस रोटी को शौक़ से खाले लेकिन जिस वक्त कि वह यह इशारे कर रहा था, यानी कभी रोटी में चोंच मारता था, कभी पानी आप चोंच से पीता था, कभी ज़ोर से चीख़ता था, और इसी किस्म के बीसों दूसरे इशारे कर रहा था, दोनों कौए जादू की अंगूठी चोंच में लिये हुए आ पहुंचे।
राजा की लड़की ने जो अंगूठी को छूआ, चिड़ियों की बोली फिर समझने लगी। उन्होंने अंगूठी फिर हाथ लगने का हाल बयान किया, कहा कि जिस वक्त बब्बू को उन्होंने रोटी लेकर कमरे के अन्दर आते देखा था खिड़की की राह से बाहर उड़ गये थे और रानी की खिड़की के ऐन सामने एक पेड़ पर जा बैठे थे। रानी उस वक्त खिड़की के पास बैठी हुई अपने बच्चे से खेल रही थी कि बच्चे ने अंगूठी को उसकी उंगली से खींच लिया और खिड़की के दरवाज़े की तरफ़ लुढ़का दिया और वह बाहर की तरफ़ ज़मीन पर जा पड़ी। रानी यह देख वहां से फ़ौरन उठकर किसी गुलाम को उसके उठा लाने का हुक्म देने के लिए चली गई। इतने में कौओं ने झट अंगूठी को बगैर किसी को मालूम हुए ले लिया और राजा की लड़की के पास दाखिल किया। राजा की लड़की को बड़ी खुशी हुई कि अब वह फिर अपनी प्यारी चिड़ियों से बखूबी बात चीत कर सकती थी और जब उसने ज़हरीले गोंद और उसका असर रफ़ा करने वाले ज़हरमोहरे का हाल सुना, उस चपाती के खाने में कुछ भी खौफ़ न किया और खूब अच्छी तरह खा कर अपने विस्तर पर सो रही।
सुबह को बब्बू देखने आया कि लड़की मरी या नहीं और उसे बड़ा तअज्जुब हुआ जब कि उसको ज़हर देने के बाद भी जीता पाया। वह वहां से चुपका ही लौट गया और रानी से जो कि उस वक्त बाग़ में अपनी खिड़की के नीचे अंगूठी की तलाश में लगी हुई थी हाल बयान किया। इधर तोते ने एक कौए को रानी और बब्बू की बात चीत सुनने को रवाना किया और कौआ चालाकी से रानी के पास एक झाड़ी में छुपकर उनकी गुत्फगू सुनने लगा। रानी को लड़की के ज़हर के असर से बच जाने पर बहुत ही तअज्जुब हुआ और बोली कि लड़की के पास ज़रूर कोई तिलिस्म या जादू होगा और बब्बू को हुक्म दिया कि “कुछ हो, तू आज रात को उसे महल के उत्त छज्जे पर ले जाकर जो कि ऐन झील के ऊपर है वहां से नीचे झील में ढकेल दे और गर्दन में एक पत्थर बांध दीजो जिससे जल्द डूब जाय।। सुबह को मशहूर कर देंगे कि लड़की रात में मर गई और झूठ मूठ की लाश बना कर नदी में बहा देंगे।
कौए ने रानी का यह बुरा इरादा अपनी साथिन चिड़ियों को फ़ौरन सुना दिया और वह सब राजा की लड़की से कहने के पेश्तर ही ताकि वह ख़ौफ़ न खा जाय, आपस में सलाह करने लगीं। जब उन्होंने अपनी तजवीज़ों को पक्का कर लिया, तब उसको भी रानी का इरादा जाहिर किया। पर उसको पूरा इतमीनान करा दिया कि कुछ दहशत की बात नहीं है, वह उसकी जान बचाने की पूरी कोशिश करेगी।
महल की दीवार के बाहरी तरफ़ ठीक झील के किनारे पर एक झोपड़ी में एक गरीब माहीगीर यानी धींवर रहता था जो अपना जाल महल की दीवार के ऐन नीचे डाला करता था। राजा की लड़की जब कभी अपने साथियों के साथ महल के छज्जे पर बैठती थी उसके मछली पकड़ने का तमाशा देखा करती थी और अकसर उसकी मछलियां ख़रीद कर एक रस्सी से ऊपर खींच लेती थी और उसी तरकीब से उनकी कीमत भी पहुंचा देती थी। इस वजह से उस बूढ़े के साथ उसका गोया एक पूरा दोस्ती का रिश्ता हो गया था। तोता भी इस काम में राजा की लड़की के साथियों में शरीक हुआ करता था क्योंकि उसे मछली का बड़ा शौक था और उसकी और मछुए की खूब अच्छी तरह मुलाक़ात थी। पस इस बुड्ढे के पास तोता और दोनों कौए अंगूठी को लेकर पहुंचे और अंगूठी उसकी उंगली में पहना कर जिससे कि वह उनकी बोली समझ सके उससे बोले कि “ऐ नेक बुड्ढे, राजा की लड़की की जो कि तेरी इतनी बड़ी मुरब्बी है आज जान ख़तरे में है और उसके बचाने के लिये तेरी मदद दरकार है"। उस नेक आदमी ने फ़ौरन वादा किया कि वह राजा की लड़की के बचाने के लिये जो काम होगा बड़ी खुशी से करेगा, बल्कि अपनी जान का भी कुछ ख़याल न करेगा। तब उसको सब हाल सुना दिया गया और उसने तोते के सब हुक्मों को बजा लाने का इकरार किया।
तोते और माहीगीर ने अब इस बात का मंसूबा किया कि राजा को लड़की को बचाने की सब से अच्छी क्या तरकीब होगी। बुड्ढे ने कहा कि "मैं अपना जाल ठीक छज्जे के नीचे डाल दूंगा ताकि जिस वक्त लड़की गिराई जाय, उसी में आ जाय" और उसे डूबने से बचाने के लिये जो तजवीज़ सोची गई वह यह थी कि माहीगीर ने एक पुराने जाल से बहुत से काग (यानी एक निहायत हल्की लकड़ी के छोटे २ टुकड़े जो कि अकसर जालों में लगाये जाते हैं) निकाले और तोते और कौओं से कहा कि "इन को एक एक करके राजा की लड़की के पास ले जाओ और उससे कहो कि इनके छोटे २ हिस्से कर के एक डोरी में पिरो लेवे और फिर उस डोरी को अपने बदन पर चारो तरफ़ इस तौर से लपेट ले कि उसकी एक जाकट बन जाय। इस जाकट के बाइस राजा की लड़की का बदन पानी के ऊपर तैरता रहेगा, बावजूद उस पत्थर के जो कि रानी और बब्बू को उसकी गर्दन से बांधने का मंसूबा करते हुए तुमने सुना है"। सिवा इसके माहीगीर ने एक और भी हिफाज़त का काम किया कि एक तेज़ चाकू तोते के ज़रिये से राजा की लड़की के पास पहुंचा दिया और कहला भेजा कि वह उसे अपनी आस्तीन के अन्दर छिपा रखे और अपनी गर्दन से पत्थर काटने के काम में लावे।
जब यह तजवीज़ तै हो गई, तोता मय जादू की अंगूठी और काग के टुकड़े के राजा की लड़की के पास पहुँचा और कौए भी जितने काग उनसे चल सके लेकर उसके पीछे हुए और वह तीनों वफ़ादार चिड़ियां लड़की के पास कागों के पहुंचाने में बराबर लगी रहीं जब तक कि उसके पास उतने काग हो गये जितने दरकार थे। राजा की लड़की ने कागों को काट २ कर एक मज़बूत डोरी में पिरो लिया और फिर माहीगीर ने जैसा कहला भेजा था वैसा ही किया, यानी उनको अपने बदन से खूब लपेट लिया और ऊपर से कुर्ती पहन ली। जब यह सब हो चुका शाम का अंधेरा चारों तरफ़ छा गया था और बब्बू ने आकर राजा की लड़की से कहा "मेरे साथ आओ"।
बब्बू राजा की लड़की को हाथ पकड़ कर बाग़ के रास्ते झील के ऊपर वाले छज्जे पर ले गया। बाग़ में होकर जब वह दोनों जा रहे थे उसने एक बड़ा पत्थर उठा कर एक रूमाल में लपेट लिया और जब वह छज्जे पर पहुंचे झट वह रूमाल राजा की लडकी की गर्दन में बांध दिया और साथ ही मुंह पर हाथ रख दिया ताकि लड़की चिल्ला न सके और बस उसे उठा कर झील में गिरा दिया। लेकिन वह इसके लिये पेश्तर ही से तैयार थी। जिस वक्त कि बब्बू ने उसे नीचे गिराने को उठाया उसने एक लमहे में चाकु से रूमाल को काट डाला और पत्थर और वह दोनों पानी में एक साथ ही गिरे। पत्थर तो झील की थाह में चला गया मगर राजा की लड़की अपनी ज़ाकट की बदौलत पानी की सतह पर तैरती रही। इस वक्त बिलकुल अंधेरा था। बब्बू ने जो उसके गिरने की आवाज़ सुनी और उसके बाद पूरी ख़ामोशी देखी समझा कि लड़की झील की तह में दाख़िल हुई और रानी को अपनी बदकारी का हाल सुनाने चला गया। उधर ऐन छज्जे के नीचे माहीगीर अपनी कश्ती लिये छुपा हुआ था और उसका जाल ऐसे तौर से फैला हुआ था कि जो चीज़ छज्जे से गिरे उसी के अन्दर आ जावे। पर जो उसने पानी में आवाज़ सुनी आहिस्ता से जाल खींचना शुरू किया और थोड़े ही अर्से में तैरती हुई राजा की लड़की को कश्ती पर लाकर उसमें बैठा लिया और वहां से चुपके ही नाव को अपनी झोपड़ी तक ले जाकर लड़की को उसके अन्दर पहुंचा दिया। उसे वह एक छोटे से कोठे में ले गया जहाँ कि एक आराम का बिस्तर उसके लिए सजा हुआ था और जहाँ कि तोता और दोनों कौए पहले ही से पहुंच गये थे। यह वफ़ादार चिड़ियां अंधेरे में राजा की लड़की के साथ छज्जे तक आई थीं और जब उन्होंने देख लिया कि लड़की कश्ती में साफ़ पहुंच गई वह वहां से उड़ कर माहीगीर की झोपड़ी में आ गई थीं। राजा की लड़की फ़ौरन बिस्तर पर चली गई क्योंकि उसके कपड़े सब भीग गये थे और ज्यों ही वह विस्तर पर पहुंची माहीगीर उसके वास्ते एक रिकाबी में कुछ रोटी और मछली खाने को ले आया जिसमें से थोड़ी आप खा कर और थोड़ी सी अपनी तीनों चिड़ियों को दे कर राजा की लड़की सो रही।
तिलिस्माती मुँदरी : अध्याय ४
सुबह को माहीगीर राजा की लड़की को झोपड़ी में बन्द छोड़ मछली पकड़ने चला गया और कौए महल की तरफ़ को यह देखने कि वहां क्या हो रहा है, उड़ दिये। वहां उन्होंने देखा कि बड़ी दौड़ धूप मच रही है। राजा की लड़की के मरने की खबर फैल गई है, बड़ा मातम हो रहा है और लाश को नदी में प्रवाह देने के लिये तैयारियां हो रही हैं। वह वहां से उड़ कर फिर झोंपड़ी पर आये और तोता लड़की से कहने लगा “ऐ मेरी प्यारी, अब तू यहां बेखटके रह सकती है जब तक कि हमको कोई मौक़ा तेरे नाना के पास भाग चलने का न मिले, क्योंकि रानी ने यही समझा है कि तू पानी में डूब गई, और माहीगीर का हम पूरा ऐतिबार कर सकते हैं"। जब कि तोता यह कह रहा था माहीगीर मय एक टोकरी मछलियों के आ पहुंचा। उनमें से उसने अच्छी २ राजा की लड़की के लिये छांट ली और बाकी लेकर शहर में बेचने को चला गया। मछलियों के बेचने से जो दाम उसे मिले उनसे उसने खाने की दूसरी चीजें खरीदी और राजा की लड़की के वास्ते सादा लिबास बनाने के लिये कुछ कपड़ा मोल लिया।
पहली रानी ने लड़की को सीना पिरोना सिखा दिया था, इससे उसने थोड़े ही अर्से में एक साफ़ पोशाक अपने लिए तैयार कर ली जैसी कि ग़रीबों के बालक पहना करते हैं, क्योंकि बुड्ढे माहीगीर और तोते ने सोचा कि ग़रीबी लिबास में वह ज़ियादा बचाव से रहेगी। उन्होंने उससे यह भी कह दिया कि तू घर के भीतर ही रह जिससे कोई तुझे देख और पहचान न सके। लेकिन माहीगीर के झोपड़े के पिछवाड़े एक छोटा सा बाग़चा था जिसमें उसे जाने की इजाज़त थी। वह अपना वक्त घर का काम काज करने, जालों की मरम्मत करने (जो कि उसे माहीगीर ने सिखा दिया था) और चिड़ियों के साथ खेलने में बिताने लगी। हर रोज़ माहीगीर मछली पकड़ने जाता था और जो दाम उसे उनके बेचने से मिलता था उससे घर के लिए ज़रूरत की चीजे मोल ले आता था। यों हर बात में उनका गुज़र कुछ दिनों तक अच्छी तरह चला। लेकिन जब उमदा मछलियों का मौसिम गुज़र गया और उसे अपने पेशे में कम कामयाबी होने लगी तो ख़र्च की तकलीफ़ पेश आई। फलों का मौसिम भी ख़तम हो गया था, इससे कौए कोई फल नहीं ला सकते थे। एक रोज़ माहीगीर को एक भी मछली न मिली और घर यों ही लौट आया। उस वक्त घर में सिर्फ़ एक मोटी रोटी का टुकड़ा था। राजा की लड़की और वह उसे खाने को बैठने जाते थे कि दोनों कौए खिड़की की राह उनके पास आ पहुंचे। हर एक की चोंच में एक एक अशर्फी थी जो कि उन्होंने ज़मीन पर रख दी, और फिर राजा की लड़की से उनके पाने का हाल कहने लगे कि “हम दोनों महल के बाग़ में सब तरफ़ चक्कर लगाते फिरे कि कहीं कोई फल बचा हुआ हो तो ले चले और जब थक गये तो सुस्ताने के लिए एक पुरानी चिमनी की चोटी पर जा बैठे। चिमनी की नली चौड़ी और कम नीची थी। उसमें जो झांका तोतले कोई चीज़ चमकती सी नज़र आई। हममें से एक नीचे उतर गया। देखा कि वहां सरकारी खज़ाना है और रुपयों अशर्फीयां और जवाहिरात के चारों तरफ़ गंज लगे हुए हैं। उसने वहां दूसरे को भी बुला लिया और दोनों अपनी चोंच में एक एक अशर्फ़ी लेकर ऊपर उड़ आये और वहां से सीधे यहां आये। बुड्ढा सोने को देख कर बहुत खुश हुआ और कहनेलगा कि यह ज़र असल में राजा की लड़की ही का है क्योंकि अगर राजा को मालूम होता कि मेरी लड़की को ख़र्च की ज़रूरत है तो वह इसका हज़ार गुना ख़ुशी से भेज देता। पस वह अशर्फीयां लेकर फ़ौरन बाहर गया और खाने का सामान और जिन चीज़ों की ज़रूरत थी ख़रीद लाया। जब तक ख़र्च उनके पास रहता वह बड़े आराम से रहते और जब चुक जाता कौए राजा के ख़ज़ाने से और ले आते।
एक दिन राजा की लड़की फुलवाड़ी में अकेली खेल रही थी, उसने ऊपर को जो निगाह की तो देखा कि एक कंजरी बागीचे की नीची दीवार पर झांक रही है। जैसे ही उस औरत को मालूम हुआ कि मुझे लड़की ने देख लिया है उसने सिर झुका कर सलाम किया और बड़े अदब और आजिज़ी से अपना हाथ लड़की की तरफ़ चूमने लगी-फिर उसने यों अर्ज़ की कि “ऐ प्यारी बेटी, मुझे थोड़ा सा कुछ खाने को दे, मैं भूख के मारे मरी जाती हूं"-लड़की फ़ौरन घर के भीतर दौड़ गई और एक टुकड़ा रोटी का लाकर उसे दीवार के पास से देने लगी कि कंजरी ने झट एक कपड़ा उसके सिर पर डाल दिया और उसके चेहरे के चारों तरफ लपेट कर कि वह देख या बोल न सके उसकी बांड पकड़ कर दीवार के ऊपर होकर खींच लिया। फिर उसे लबादे में लपेट कर गठरी की तरह अपनी पीठ पर डाल लिया और कह दिया कि अगर तू शोर करेगी तो तेरा गला काट डालूंगी। लड़की को इस हालत में वह औरत बहुत दूर ले गई और लड़की बेचारी का लबादे के अन्दर दम घुटने लगा। अख़ीर को जब उसे उतारा और लबादे खोल डाला उसने अपने तई एक जंगल में पाया जहां कि कंजरों का एक बड़ा कुनबा पड़ा हुआ था। वह लोग ज़मीन पर लकड़ियों से आग जला रहे थे। दो तीन छोटे से ख़ेमे गड़े हुए थे और कई एक गधे पास ही चर रहे थे। जो औरत राजा की लड़की को वहां ले गई थी उससे बोली कि "तू रो मत, तुझको कोई तकलीफ़ न दी जायगी। तुझे किसी बड़े शहर में ले जायंगे और वहां किसी अमीर के हाथ बेच देंगे जिसके यहां तू ज़िंदगी भर सुख और चैन से रहेगी। लेकिन अगर तू यहां से भागने की कोशिश करेगी या अपनी मदद के लिये किसी को पुकारेगी तो मार डाली जोयगी। जब वह बुढ़िया लड़की से यों कह चुकी कंजरों ने अपने देरे उखाड़ डाले और गधों पर सब असबाब लाद कर फ़ौरन वहां से चल दिये। राजा की लड़की को उन्होंने एक गधे की पीठ पर कि जिस पर उनका बिस्तर लदा हुआ था बैठा दिया। उस पर वह बड़े आराम से बैंठी चली गई, पर बहुत डरी हुई और रंजीदा थी।
वह चारों ओर निगाह करती जाती थी कि उसके कौए कहीं दिखाई दे पर वे कहीं नज़र नहीं आये। उसे यह भी डर था कि कंजर कहीं उसकी अंगूठी न चुरा लें, इस लिए उसने मौका पाकर उसे अपने सिर के बालों की तह में छिपा लिया। वह लोग सूरज छिपने के कुछ देर बाद तक चलते रहे और फिर एक अलहदा जंगल में ठहर गये, जहां कि उन्होंने आग जलाई और देरे गाड़ दिये। वहां उन्होंने खूब अच्छी तरह ब्यालू की और राजा की लड़की ने भी की और फिर वह एक तम्बू में सो रही।
राजा की लड़की बड़े सवेरे ही जाग गई और जब देखा कि कंजरी और उसके बालक जो उसके देरे में सोये थे अभी नहीं उठे हैं और देरे का दरवाज़ा भी खुला है तो आहिस्ता पैर रखती हुई बाहर निकल आई और चाहा को भाग जाऊं पर एक बड़े कुत्ते के गुर्राने की आवाज़ ने जो कि देरे के दरवाजे से कुछ दूर पर बैठा हुआ था उसे आगे बढ़ने से रोक दिया। उसने देखा कि अगर मैं भागने की कोशिश करूँगी तो कुत्ता मेरी तरफ़ ज़रूर दौड़ेगा या भूकं कर सब कंजरों को जगा देगा, इस लिए वह चुपकी उसी जगह खड़ी रही और कुत्ता भी चुपका बैठा रहा, सिर्फ़ उस पर अपनी निगाह जमाये रहा। उस वक्त एक जंगली कबूतर की आवाज़ उसके कान में पड़ी। यह आवाज़ उसी पेड़ पर से कि जिसके नीचे वह खड़ी हुई थी आ रही थी उसने ऊपर जो निगाह की तो उस चिड़िया को ठीक अपने सिर के ऊपर एक शाख पर बैठा देखा और फ़ौरन अंगूठी अपने जूड़े में से निकाल कर उसकी तरफ़ दिखलाई और उतर आने का इशारा किया। उसका हुक्म पाते ही कबूतर तुरन्त उसकी बांह पर आ बैठा। उससे आहिस्ता से ताकि कंजर न सुन ले लड़की ने कहा कि “तू बुडढे माहीगीर के घर जाकर तोते और कौओं से मेरा सब हाल कह दे" और अपने सिर में से एक लट बालों की काट कर अपनी निशानी दे दी कि जिससे माहीगीर समझ जाय कि यह मुखबिर सचमुच राजा को लड़की ही ने भेजा है। कबूतर उसी दम उड़ दिया और लड़की ख़ेमे में जाकर फिर लेट रही और अंगूठी को बड़ी खबरदारी के साथ सिर के बालों के अन्दर छिपा लिया। धीरे धीरे कंजर उठे और खाना बनाया; बाद उसके सब चीज़ों को लाद कर फिर कूच शुरू किया। राजा की लड़की कभी कभी कंजरों के बालकों के साथ पैदल चलती थी और जब थक जाती थी गधे पर सवार हो लेती थी। जो कंजरी उसे चुरा लाई थी उससे अक्सर बातें करती चलती थी और कहती थी कि “अगर किसी बड़े शाहज़ादे ने लाहौर में जहां को कि हम चल रहे हैं तुझे ख़रीद लिया तो तू उसके यहां कितने आराम से रहेगी"। यों वह दिन भर चले, सिर्फ़ खाने और सुस्ताने के लिये, जब कि धूप निहायत तेज़ हो, कहीं पेड़ों की छांह में ठहर लें। सूरज छिपने के थोड़ी देर पहले वह एक जंगल में पहुंचे जहां कि एक पानी का झरना था-उन्होंने इस जगह गधों से असबाब उतार कर रख दिया और रात को बसने का सामान किया। राजा की लड़की को यहां पर इधर उधर अकेली घूमने की इजाज़त दे दी गई, पर जो कुत्ता कि सवेरे उसके पहरे पर था इशारे से सिखा दिया गया था कि लड़की के साथ रहे। वह अच्छी तरह समझता था कि मेरा यह काम है कि लड़की भाग न जावे, क्योंकि जभी वह जल्दी जल्दी चलने लगती या बहुत दूर चली जाती वह गुर्राने लगता था।
अख़ीर को वह जंगल की हद के पास एक पेड़ के नीचे बैठ गई और वहां बैठी हुई जिस तरफ़ से आई थी उस तरफ़ को देख रही थी कि उसे ऐसा मालूम हुआ कि एक अजीब सूरत की चिड़िया उसकी तरफ़ उड़ती हुई आ रही है। ज्योंही वह नज़दीक आई उसने देखा कि वह एक चिड़िया नहीं है, बल्कि तीन चिड़ियों का झुंड है और जब वह और भी पास आ गई तो मालूम हुआ कि उसका प्यारा बुड्ढा तोता और दोनों कौए हैं। कौए एक लकड़ी के दोनों सिरों को अपने पंजों से पकड़े हुए थे और तोता उसे बीच में अपनो चोंच में थामे हुए था, यों कुछ उस लकड़ी के सहारे और कुछ अपने परों की मदद से वह बुड्ढा पखेरू अच्छी तरह उड़ा चला आ रहा था। ज्योंही ये चिड़ियां लड़की के इतनी पास आ गई कि उसकी आवाज़ सुन सके वह उन्हें पुकारने लगी और जब तोते ने उसका बोल सुना लकड़ी को छोड़ दिया और लड़की की तरफ ज़ोर से उड़ा और उसके कंधे पर बैठ गया और बार बार बोसा लेने लगा-कौओं ने भी लकड़ी गिरा दी और नीचे आकर एक झाड़ी पर जा बैठे जहां कि कुत्ता न पहुंच सके और राजा की लड़की से फिर मिलने की खुशी जाहिर की। उन्होंने सब कह सुनाया कि किस तरह जंगल के कबूतर ने माहीगीर के घर पर जाकर लड़की का संदेशा दिया और फिर किस तरह वह फ़ौरन वहां से उड़ कर रास्ते में जो चिड़ियां मिलीं उनसे पूछते हुए कि कहीं राजा की लड़की को तो नहीं देखा बग़ैर बहुत दिक्कत के उसके पास आ पहुंचे। और कहा कि जब हम चलने लगे बुड्ढा माहीगीर समझ गया कि लड़की की तलाश में जाते हैं और बालों की लट जो तूने भेजी थी उसने ले ली और उससे समझा कि तू जीती है और हिफ़ाज़त से है।
जब वह इस तरह प्यार के साथ अपनी चिड़ियों से बातें। कर रही थी, उसने देखा कि कंजरों के दो बालक जो कि उससे उम्र में कुछ बड़े थे और चुपके से उसके पीछे पीछे पाकर झाड़ियों की आड़ में छिप रहे थे यकायक झपट कर निकल आये और उन्होंने झट तोते को पकड़ लिया और उसे लेकर अपने देरों की तरफ़ दौड़ चले और चिल्लाते जांय कि एक तोता पकड़ा है। राजा की लड़की उनके पीछे पीछे रोती हुई और तोते को मांगती हुई दौड़ी पर उन्होंने कुछ ध्यान न दिया। लेकिन जैसे ही वह देरों के पास पहुंचे और कंजर लोग देखने को दौड़े कि क्या बात है तोते ने उनकी उंगलियों को अपनी चोंच से काटना शुरू किया, यहां तक कि उन्हों ने उसे छोड़ दिया और वह उड़ कर एक पेड़ पर जहां कि वह पहुंच न सकें जा बैठा। कंजरी ने पूछा क्या है? राजा की लड़की ने कहा कि "वह तोता मेरा है और मेरा पता लगाता हुआ मेरे पास आया है-इन लड़कों ने वह मुझसे छीन लिया है," और इतना कह कर खूब रोने लगी-और कहा कि “सिर्फ़ यह तोता ही मेरा दुनियां में एक दोस्त है" और मिन्नत की कि वह उसे मिल जाय। इस पर बढ़िया बोली-"अच्छा, अगर तू अच्छी तरह रहेगी और रंज न करेगी कि जिस्से उमदा और मोटी ताज़ी मालूम पड़े जब कि हम तुझे लाहौर में बेचने के लिये ले जायं तो तेरा तोता तुझको मिल जायगा"- फिर उसने उन बालकों से कह दिया कि वह तोते से न बोलें तब तोता पेड़ से उतर आया और लड़की के साथ रहने लगा। दोनों कौए हमेशा क़रीब ही कहीं बने रहते थे कि ज़रूरत पड़ने पर काम आवें।
उस रात को सोने के पेश्तर वह कंजरी जंगल में से कुछ पत्ते तोड़ लाई और उन्हें एक बरतन में उबाल डाला और उनके अर्क़ से राजा को लड़की का चिहरा और बाहे और टांगे धो दी जिससे कि उसका रंग ठीक कंजरों का सा गंदुसी यानी गेहुआं हो गया और कहने लगी-"बस मेरी प्यारी, अब तू कंजरी समझी जायगी-अगर लोग तेरा खूबसूरत गोरा चिहरा देखते तो वह शायद ख़याल करते कि तू हम में से नहीं है और हमें तुझको अपने साथ न रखने देते"-जब राजा को लड़की बिस्तर पर गई तोता उसके पास सोया और सोने के पेश्तर उसने उसे दिलासा दी और समझाया कि कंजरों से उसे डरना न चाहिये क्योंकि वह जरूर उसके साथ ख़ातिर से पेश आवेंगे ताकि वह बिकने के वक्त अच्छी मालूम हो और उन्हें उसकी अच्छी क़ीमत मिले।
और ऐसा ही हुआ। कंजर उससे बड़ी मिहर्बानी से पेश आये और उसे बड़ी ख़ातिर से रक्खा। वह कई रोज़ तक सफर करते रहे- रात को अपना देरा किसी अलहदा जगह में कर लिया करें कि जहां आम लोगों का आना जाना बहुत न होता हो। राजा की लड़की अक्सर दोनों कौओं को ऊपर उड़ते देखती थी पर कुछ ध्यान नहीं देती थी, क्येंकि डर था कि कंजर लोग ताड़ न जायं। एक दिन दोपहर के बाद जब कि वह सब छांह में सो रहे थे राजा की लड़की को तोते ने कान में अपनी चोंच से नोच कर जगा दिया। जैसे ही उसने आंखे खोली देखा कि दोनों कौए पास ही झाड़ी में ज़ोर से कांव कांव कर गुल मचा रहे हैं कि “शेर शेर, जागो जागो!" तोते ने कहा-"कंजरों को जगा दे, नहीं तो शेर अभी हम सब के ऊपर आ जायगा"। राजा की लड़की झट उठ खड़ी हुई और जितने ज़ोर से उससे हो सका चिल्लाने लगी-"शेर शेर, जागो जागो!" और कंजर जल्द जाग गये।
इस वक्त राजा की लड़की ने शेर की आंखों को एक झाड़ी के नीचे से चमकते हुए देखा, मगर जैसे ही वह उसके ऊपर झपटने को हुआ, एक कंजर ने एक झूठा सूखे सरकंडों का चूल्हे से जला कर शेर के मुंह पर फेंक दिया जिससे कि वह ऐसा डर गया कि बड़ी आवाज़ से गरजता हुआ उलटा भाग गया और मैदान में कुलांच मारता हुआ थोड़ी ही देर में नज़रों से गायब हो गया।
दूसरे दिन उन्होंने उस बन को छोड़ एक बयाबान में पैर रक्खा और उसी रास्ते दिन भर चले। वहां कोई जानवर या पेड़ न मिला, क्योंकि वह बड़ा भारी रेत का मैदान था जिसे रेगिस्तान कहते हैं और जाबजा ऊंट और घोड़ों की और एक मुक़ामा पर आदमी की ठटरियां रेत में आधी गड़ी हुई देखने में आई! वह जहां तक उनसे हो सका तेज़ी से चले क्योंकि जानते थे कि करीब से करीब कुआ भी उनसे बहुत दूर है और उस पर न पहुँचे तो ज़रूर प्यास से मर जायंगे। उन्हें पहले ही बहुत प्यास लगी हुई थी और बेचारे गधे भी मारे प्यास के घबरा रहे थे कि एक ताड़ के पेड़ों का झुंड दूर नज़र आया और बुढ़िया कंजरी ने राजा की बेटी से कहा कि खुश होवे क्योंकि कुआ उन्हीं पेड़ों के नीचे है। गधे भी समझ गये मालूम होते थे कि कुआ पास है, क्योंकि उन्हों ने अपने कान ऊंचे कर लिये और रेंकने और तेज़ कदम चलने लगे। लेकिन वहां तक पहुँचने में देर लगी और पहुँचने तक सब इतने थक गये कि बड़ी मुशकिल से कुआ पकड़ा। जो कंजर सब ने पहले कुए पर पहुंचा उसने भीतर झांख के देखा तो उसमें ज़रा भी पानी नज़र न आया। कूआ सूखा था! अब ये लोग निहायत ना-उम्मेद हुए, क्योंकि जानते थे कि कई कोसों तक उसके बाद कोई कुआ नहीं है। प्यास के मारे जान निकली जाती थी और एक कदम चल नहीं सकते थे। तोते को इस वक्त बहुत फ़िक्र और अंदेशा हुआ, लेकिन उसने देखा कि दोनों कौए एक ताड़ के पेड़ पर बैठे हुए हैं, वह उनके पास उड़ गया और उनसे बोला कि "तुम चारों तरफ़ उड़ कर देखो कि कहीं पानी का ठिकाना है या नहीं, नहीं तो राजा की लड़की ज़रूर प्यास से मर जावेगी"। कौए सब तरफ़ देख आये पर पानी कहीं नज़र न पड़ा, लेकिन उन्होंने कहा कि "एक जगह पर जो यहां से दूर नहीं है कई तरबूज़ पड़े हुए हमने देखे हैं"। तोते ने राजा की लड़की से जो एक पेड़ के नीचे अकेली लेटी हुई थी कहा कि उठ के कौओं के पीछे पीछे जावे। कौए उसे जहां तरबूज थे वहां ले गये। कंजर उस वक्त निहायत थक गये थे और अपनी मुसीबत में ऐसे मर रहे थे कि किसी ने ध्यान न दिया कि लड़की कहां जाती है और न किसी ने उसे जाने से रोका। वह बड़ी मुशकिलों से उस गरम रेत में पैदल तरबूजों तक पहुंची, और पहुंचते ही पहला ही तरबूज़ जो उसके हाथ लगा फाड़ डाला और उसका ठंडा और मीठा रस पीकर प्यास बुझाई और कुछ अपनी तीनों चिड़ियाओं को भी पिलाया। बाद इसके जब उसे ताज़गी और ताक़त आ गई, दो तरबूज़ और तोड़े और उन्हें लेकर फुर्ती के साथ कुए पर लौट आई। बुढ़िया कंजरी तरबूज़ों की सूरत देख कर ऐसी खुश हुई कि राजा की लड़की को उसने ज़ोर से छाती से लगा लिया और मारे बोसों के हैरान कर दिया-वह दोनों तरबूज़ कंजरों के बालकों को बांट दिये गये, फिर राजा की लड़की ने उन सब को तरबूज़ों का रास्ता बता दिया और सभी ने खूब ही उन फलों की दावत उड़ाई, यहां तक कि उस जगह ज़मीन पर सब तरफ़ तरबूज़ों के टुकड़े पड़े नज़र आते थे। बेचारे कुत्ते बहुत प्यासे मरे थे, जब उनको तरबूज़ दिये गये और वह उनके पानी को जीभ से चाटने लगे तो एक अजब कैफ़ियत मालूम होती थी। देरा तरबूजों के पास ही डाला गया और दूसरे रोज़ सुबह को, बाद तरबूज़ों को दूसरी ज़ियाफ़त के, वहां से कूच हुआ और गधों पर जितने आ सके तरबूज़ लाद लिये गये, क्योंकि डर था कि शायद दूसरे पड़ाव का कुआ भी सूखा निकले, लेकिन वह सूखा न था। वह लोग बाकी रेगिस्तान को बग़ैर किसी मुसीबत के तै कर गये। अब वह कंजर राजा की लड़की पर दुचंद मिहर्ब्बन थे, क्योंकि उसने उनकी जान बचाई थी; और कंजरी ने उस से कहा कि “मैं तो तुझे छोड़ दूं लेकिन मेरा खाविंद मना करता है, मगर तू अंदेशा मत कर, मैं ऐसा करूंगी कि तू सिर्फ़ किसी नेक बीबी के हाथ बेची जायगी जो तेरी खूब परवरिश करेगी और तुझे खुश रक्खेगी"।
थोड़े दिनों बाद यह लोग लाहौर के क़रीब आन पहुंचे और उन्हें उस शहर की मीनारें और बुर्ज और आलीशान मकान दिखाई देने लगे। शहर के दरवाजे से कुछ हट कर दरखों के नीचे इन्होंने अपना डेरा किया। कंजरी ने एक सफ़ेद बुकनी अपने सन्दूक में से निकाल कर थोड़े पानी में मिला लड़की को उससे नहला दिया तो लड़की फिर वैसी ही गोरी हो गई जैसी कि बूटी का रंग लगने से पहले थी।
तिलिस्माती मुँदरी : अध्याय ५
दूसरे रोज़ सुबह को कंजरी उसे शहर के अंदर ले गई। तोता बदस्तूर उसके बाजू पर बैठा हुआ साथ गया। बहुत सी गलियों में गुज़रते हुए वह वहां पहुंचे जहां कि लौंडी-गुलामों का बाज़ार था। उस जगह बहुत से गुलाम एक बड़े बरामदे में ज़मीन पर बैठे हुए थे, और बीच में एक सफेद डाढ़ी वाला बुड्ढा एक कालीन पर बैठा हुआ हुक्का पी रहा था। सामने उसके हिसाब की किताबे यानी बही खाते और कलम दावात रक्खी हुई थीं। राजा की लड़की को कंजरी उसके पास ले गई और कान में उससे कुछ कहा। फिर लड़की को वह दालान के एक किनारे ले गई जहां कि बहुत सी लड़कियां, कोई गोरी और कोई काली, बैठी हुई थीं। उनके ऊपर एक तुंद-मिज़ाज बुढ़िया तैनात थी; वह राजा की लड़की के साथ एक तोता देख कर बहुत बड़बड़ाई, लेकिन कंजरी ने उससे कह दिया कि तोता और लड़की दोनों साथ बिकेंगे और कहा कि अगर लड़की न बिकी तो मैं शाम को आके उसको ले जाऊंगी और उसे बुढ़िया को सपुर्द कर आप चली गई।
उस बेचारी बच्ची को जब वह इस तरह पर गैरों के हाथ में छोड़ दी गई बहुत डर और रंज हुआ और ज़मीन के ऊपर दूसरे गुलाम बालकों के साथ ऐसी जगह बैठ गई जहां उसपर हर एक की नज़र न पड़े। तोते को उसने गोदी में बैठा के अपने कपड़े के अन्दर छिपा लिया इस डर से कि कोई उसे उससे ले न ले। कई शख्सों ने जो कि लौंडी ख़रीदने आये उसकी तरफ़ देखा और क़ीमत पूछी, लेकिन बुड्ढे ने जो दाम मांगा वह न दे सके। अख़ीर को एक बीबी जो दूसरे रोज़ सुबह को कंजरी उसे शहर के अंदर ले गई। तोता बदस्तूर उसके बाजू पर बैठा हुआ साथ गया। बहुत सी गलियों में गुज़रते हुए वह वहां पहुंचे जहां कि लौंडी-गुलामों का बाज़ार था। उस जगह बहुत से गुलाम एक बड़े बरामदे में ज़मीन पर बैठे हुए थे, और बीच में एक सफेद डाढ़ी वाला बुड्ढा एक कालीन पर बैठा हुआ हुक्का पी रहा था। सामने उसके हिसाब की किताबे यानी बही खाते और कलम दावात रक्खी हुई थीं। राजा की लड़की को कंजरी उसके पास ले गई और कान में उससे कुछ कहा। फिर लड़की को वह दालान के एक किनारे ले गई जहां कि बहुत सी लड़कियां, कोई गोरी और कोई काली, बैठी हुई थीं। उनके ऊपर एक तुंद-मिज़ाज बुढ़िया तैनात थी; वह राजा की लड़की के साथ एक तोता देख कर बहुत बड़बड़ाई, लेकिन कंजरी ने उससे कह दिया कि तोता और लड़की दोनों साथ बिकेंगे और कहा कि अगर लड़की न बिकी तो मैं शाम को आके उसको ले जाऊंगी और उसे बुढ़िया को सपुर्द कर आप चली गई।
उस बेचारी बच्ची को जब वह इस तरह पर गैरों के हाथ में छोड़ दी गई बहुत डर और रंज हुआ और ज़मीन के ऊपर दूसरे गुलाम बालकों के साथ ऐसी जगह बैठ गई जहां उसपर हर एक की नज़र न पड़े। तोते को उसने गोदी में बैठा के अपने कपड़े के अन्दर छिपा लिया इस डर से कि कोई उसे उससे ले न ले। कई शख्सों ने जो कि लौंडी ख़रीदने आये उसकी तरफ़ देखा और क़ीमत पूछी, लेकिन बुड्ढे ने जो दाम मांगा वह न दे सके। अख़ीर को एक बीबी जो चिहरे से गुस्से वाली मालूम होती थी वहां होकर गुज़री" और राजा की लड़की को देख कर उस बुड्ढे के पास क़ीमत दरयात्फृ करने गई। जब यह उस निगहबान बुढ़िया ने देखा तो कहने लगी कि "मैं चाहती हूं कि यह बीबी तुझे न खरीदे क्योंकि यह शहर में सब से बदमिज़ाज औरत है। सिर्फ़ गये हत्फे की बात है कि इसने एक ग़रीब छोटी उम्र की हबशी लौंडी की अपने बुरे बरताव से ऐसी हालत कर दी कि वह उसके घर की चहार दीवारी डांक कर भाग जाने की कोशिश में ज़मीन पर गिर पड़ी और मर गई"। यह सुन कर राजा की लड़की बोली-"अजी, मिहर्बानी करके मुझे उसके हाथ मत बिकने देना"-बुढ़िया ने कहा कि “जहां तक मेरा बस चलेगा मैं ऐसा नहीं होने दूंगी, मगर वह बुड्ढा अगर चाहेगा तो बेच डालेगा" तब लड़की ने कहा-"ख़ैर, लेकिन इतना तो तुम मेरे लिए करना कि बग़ैर उस कंजरी के जाने हुए मैं इस औरत के हाथ न बिकने पाऊं, क्यों कि मैं ने एक दफ़ा उसकी और उसके सारे घर वालों की जान बचाई थी, इससे मुझे यकीन है कि वह मुझे उस बेदर्द औरत के पास न जाने देगी"-यह सब बात चीत तोते ने सुन ली और लड़की के लबादे के अन्दर से सिर निकाल के उसके कान में कहा कि “मैं अभी उड़ के जाता हूं और कंजरी को लाता हूं" और यों कह कर सीधा बाज़ार के दरवाज़े की तरफ़ उड़ा और वहां से मकानों के ऊपर होता हुआ शहर के उस फाटक पर पहुंचा कि जिसमें होकर वह सब आये थे। वहां से थोड़ी ही दूर पर उसने कंजरों का डेरा पाया। वह सीधा बुढ़िया कंजरी के पैरों के पास उतर के चोंच से उसके घांघरे का दामन खींचने लगा और फिर ज़मीन पर परों को फट-फटाता हुआ शहर के फाटक की तरफ़ चलने लगा और चुह-चुहाअट मचाने और अपने सिर से हर तरह के इशारे करने लगा कि कंजरी उसके साथ चले। कंजरी समझ गई और उसके पीछे पीछे फाटक तक चली गई। तोता उसके आगे आगे उड़ता जाता था और कभी किसी जगह बैठ जाता था। यों वह बाज़ार तक पहुंचे और वहां क़दम ही रक्खा था कि उन्होंने उस बद मिज़ाज बीबी का राजा की लड़की का हाथ पकड़े हुए नाते देखा। लड़की बेचारी रोती आती थी और बाज़ार के फाटक के पास लोगों की भीड़ लग गई थी जो कि उस औरत को लानत देते थे और हल्यारी कहके तरह तरह के नाम रखते थे, और कहते थे कि अफ़सोस है यह लड़की इसके हाथ आ गई क्योंकि यह इसे ज़रूर मार डालेगी जिस तरह कि इतने और लौंडी गुलाम मार डाले हैं। जैसे ही राजा की लड़की ने, कंजरी को देखा एक बारगी अपने तई उस बद बीबी से छुड़ा कर कंजरी की गोदी में चली आई और उससे मिन्नत करने लगी कि उसे उस ख़ौफ़नाक औरत के हाथ न बिकने दे। कंजरी को रहम आया और उसने लड़की को दिलासा दी कि ऐसा नहीं होने पावेगा, लेकिन बीबी बोली-"मैं तो इसे ख़रीद भी चुकी हूं और क़ीमत भी दे चुकी हूं, देख यह रसीद है" और अपनी कुर्ती से एक टुकड़ा काग़ज़ को निकाल कर दिखलाने लगी कि तोता यकायक सारी भीड़ के ऊपर से उड़ता हुआ आकर झट उसके हाथ से कागज को छीन ले गया और सब की नज़रों से गायब हो क़रीब की एक मीनार में जा घुसा जहां उसने रसीद को छुपा दिया और फिर वहाँ से आकर बाज़ार के दरवाज़े के ऊपर बैठ गया जहां से कि वहां जो कुछ हो रहा था देख सके। इस वक्त शोरो गुल इतना बढ़ मया था कि कोतवाल जिसका मकान पास ही था सुन कर साथ अपने सिपाहियों के वहां पर आन पहुंचा और दर्याफ करने लगा कि इस सब" झगड़े का क्या बाइस है। किसी ने कुछ कहा, किसी ने कुछ। उस बोबी ने कहा कि यह लड़की मैंने मोल ले ली है और कंजरी ने कहा-"नहीं, मैंने इसे नहीं बेचा," लोग जो वहां जमा थे कहते थे कि अफ़सोस है अगर इस बदज़ात हत्यारी ने लड़की को खरीद लिया है। कोतवाल ने सब को अपने सामने बुलवाया और उस बीबी से कहा-"अगर तुमने इस लड़कों को खरीद लिया है तो रुपयों की रसीद दिखलाओ"-वह बोली कि "रसीद मेरे हाथ से एक तोता छीन ले गया है और न जाने वह कहां उड़ गया है। कोतवाल ने कहा- मैं इस बात का यकीन नहीं कर सकता, और अगर तुम रसीद नहीं दिखला सकोगी तो मैं लड़की को कंजरी ही के हवाले कर दूंगा"। बीबी ने फिर वही कहा जो पहले कहा था, मगर सब बेफ़ायदा हुआ। जिन लोगों ने तोते को नहीं देखा था उन्होंने कुछ न कहा। बस लड़की कंजरी को मिल गई और वह बीबी बुरा मुंह बनाये अपने घर गई। उस वक्त उसका चिहरा और भी बुरा हो गया था क्योंकि लौंडी उसके हाथ से निकल गई और रुपया भी गया।
कोतवाल ने झगड़े का फ़ैसला ऐन अपने मकान के नीचे गली में किया था। जैसे ही कि लड़की कंजरी को दी गई कोतवाल के घर से एक काली लौंडी ने आकर कंजरी से कहा कि कोतवाल की बीबी साहिबा उससे कुछ कहना चाहती हैं। कंजरी लड़की को लिये हुए लौंडी के साथ भीतर गई और कोतवाल की बीबी के सामने पेश हुई। बीबी छज्जे पर अपनी लड़की के साथ जो उमर में राजा की लड़की के बराबर थी बैठी हुई थी। उसकी लड़की ने राजा की लड़की को देख लिया था और उसकी सूरत पर लुभा कर अपनी मां से कहा था कि उसे ख़रीद ले। सौदा फ़ौरन हुआ। बीबी ने बहुत अच्छी क़ीमत लगाई और राजा की लड़की ने कोतवाल की बेटी और उसकी मां को सूरत शकल से इतना पसन्द किया कि कंजरी से कहा कि उसे उन्हीं के यहां बेच दे। कंजरी ने ऐसा ही किया और अपना रुपया लेकर रवाना हुई। और राजा की लड़की से कह गई कि "तू अच्छे लोगों के हाथों बिकी है और उनके यहां सुख से रहेगी"। उसके चले जाने के बाद दोनों लड़कियां छज्जे पर आके लोगों की भीड़ को जाते हुए देखने लगी कि तोता जो बाज़ार के दरवाज़े पर बैठा हुआ सब हाल देखता रहा था राजा की लड़की को छज्जे में देख उसके कंधे पर आ बैठा-कोतवाल की बेटी को यह देख कर बड़ा तअज्जुब हुआ, लेकिन राजा की लड़की ने जल्द तोते का सारा हाल सुना दिया और उसे अपने पास रखने की इजाज़त मांगी जो कि फ़ौरन मिल गई। दोनों लड़कियों में आपस में बहुत मुहबत हो गई और दोनों साथ, साथ बड़े सुख से रहने लगीं। एक ही साथ खेलती और खाती, एक ही सबक़ पढ़तीं, एक ही कमरे में सोती और हालांकि राजा की लड़की हक़ीक़त में कोतवाल की बेटी की लौंडी थी, उसके साथ बहन का सा बर्ताव किया जाता था। थोड़े दिनों के बाद राजा की लड़की ने अपना सारा असली किस्सा उसे सुना दिया, बल्कि तिलिस्माती मुँदरी का भेद भी बता दिया। एक मर्तबा रात के वक्त बाद खाने के तोते ने राजा की लड़की से कहा-“ऐ प्यारी, मैं समझता हूं कि बिहतर हो कि तेरे नाना को ख़बर कर दी जाय कि तू कहां है, वह तेरे लिए बहुत फ़िक्र करता होगा। कल सुबह मैं दोनों कौओं को जो रोज़ रात के वक्त पड़ौस के मंदिर के बुर्ज में आकर रहते हैं तेरे नाना के पास तेरी ख़बर देने को भेजूंगा और यह भी पुछवाऊंगा कि तेरा नाना तेरे लिये क्या चाहता है"। राजा की लड़की ने कहा “अच्छा" और दूसरे रोज़ सवेरे ही एक ख़त लिख कर तोते के हाथ दिया। तोते ने उसे कौओं के हवाले किया और ताकीद कर दी कि बहुत जल्द उसे गंगोत्री पर जाके बुड्ढ़े योगी को दें और उसका जवाब लावें। बुड्ढ़ा योगी अपनी दोहती के बाबत सचमुच, बहुत फ़िक्रमन्द हो रहा था और चाहता था कि किसी तरह उसकी खबर मिले कि एक रोज़ शाम को दोनों कौए उसे नज़र आये और उन्होंने उसे लड़की की चिट्ठी दी। योगी ने पढ़ कर उसका जवाब लिख दिया। और कौए अपनी थकावट दूर करने को वहां एक दिन ठहर कर लाहौर की जानिब को फिर उड़ दिये और सीधे उन दोनों लड़कियों के रहने के कमरे के अंदर दाख़िल हुए। योगी की चिट्ठी यह थी-
"मेरी प्यारी दोहती, तुझे मैं ने कभी नहीं देखा लेकिन तेरी मां के इस दुनिया से चले जाने से मैं तुझे दुचंद प्यार करता हूं। मुझे बड़ी खुशी हुई कि तू इतनी तकलीफ़ो और ख़तरों के बाद खुशहाल है और नेक शख्सों के साथ है। तेरे लिये शायद यही बिहतर होगा कि तू अपनी नौ-उम्र सहेली के साथ जहां अब है वहीं रहे। लेकिन अगर कभी कोई बात ऐसी हो जावे कि जिससे तू वहां न रह सके और जिसमें तुझे तेरा वफ़ादार तोता सलाह और मदद न दे सके तो मेरे पास फ़ौरन फिर ख़बर भेजना"।
दोनों लड़कियां बड़ी खुशी से एक साथ रहने लगी और दोनों में बहुत मुहब्बत हो गई। कोतवाल और उसकी बीबी को भी लड़की का असली हाल मालूम हो गया कि वह एक राजा की बेटी है और वह उसके साथ निहायत मिहर्बानी और इज्ज़त से पेश आने लगे। लेकिन उन्होंने दोनों लड़कियों से कह दिया कि यह सारा हाल बिलकुल पोशीदा रक्खें ताकि कश्मीर की रानी को लड़की की ख़बर न हो जावे कि वह इस बेचारी के पीछे फिर पड़े। और यह मस्लहत समझी गई कि राजा की बेटी चांदनी के नाम से पुकारी जावे जिस नाम से कि वह लौंडी के तौर पर ख़रीदी गई थी। कोतवाल की बेटी का नाम दयादेई था।
तिलिस्माती मुँदरी : अध्याय ६
एक रोज़ जब कि दोनों लड़कियां दयादेई की मां के कमरे में बैठी हुई अपने सीने पिरोने के काम में लगी हुई थीं कोतवाल, जो राजा का दरबार करके लौटा था, वहां चला आया। उसके चिहरे पर उदासी और ग़म सा छाया हुआ था। उसकी बीबी ने दर्याप्फृ किया कि क्या माजरा है तो कहने लगा कि कश्मीर से एक बहुत बुरी ख़बर आई है-वह यह है कि अफ़वाह उड़ रहा है कि वहां के राजा की यकायक मौत हो गई है और रानी ने अपने छोटे बेटे को गद्दी पर बैठा के राज का इंन्तिज़ाम अपने हाथ में ले लिया है। बेचारी राजा की लड़की अपने बाप के मरने की ख़बर सुन कर बहुत रंजीदा और दुखी हुई और अपना ग़म छिपाने को कमरे के बाहर चली गई और उसे दिलासा देने के लिए दयादेई भी उसके पास उठ गई। थोड़े दिनों बाद जब कि कोतवाल की बीबी और यह दोनों लड़कियांँ कमरे की खिड़की के पास बैठी हुई थीं एक बड़ी भीड़ लोगों की गली में आती हुई नज़र आई और जब वह क़रीब आ पहुंची तो उन्होंने देखा कि ज़र्क बर्क कपड़े पहने हुए आदमियों का एक बड़ा गिरोह है, कुछ घोड़ों और ऊंटों पर सवार हैं और कुछ पैदल हैं। उनके दर्मियान एक सांडनी पर कि जिस पर ज़री की झूल पड़ी हुई थी वह बदसूरत बब्बू था जो कि इस वक्त ज़ेवर से सब तरफ़ लदा हुआ था। हाथ में उसके सुनहली लिफ़ाफ़े में बन्द एक ख़त था। राजा की लड़की को उसे देख कर बहुत दहशत हुई और वह छिप गई जब तक कि वह काफ़िला वहां से निकल न गया। उस रोज़ जब कोतवाल घर आया पहले दिन से ज़ियादा सुस्त और, रंजीदा मालूम होता था और जब उसकी बीबी ने पूछा कि यह काफ़िला क्या था तो कहाकि कश्मीर की रानी का एलची आया हुआ है, यह उसी की सवारी थी। रानी ने एक बहुत सख्त़ ख़त लाहौर के राजा को लिखा है कि वह खिराज यानी कर दे, वरना लाहौर पर चढ़ाई की जावेगी; और कहा कि राजा ने गुस्से से उस ख़त को फाड़ कर ज़मीन पर फेंक दिया और एलची को हुक्म दिया कि लाहौर से चला जावे। अब दोनों तरफ़ से लड़ाई की तैयारी हो रही है।
कोतवाल की बीबी और दोनों लड़कियाँ अक्सर खिड़की से, फ़ौज में शामिल होने के वास्ते जाती हुई पलटनों को देखा करती थीं। उस वक्त कभी कभी तोता भी उनके साथ रहा करता था, क्योंकि हालांकि वह बुड्ढ़ा हो गया था उसे सिपाहियों की पलटन देखने का बड़ा शौक था और जब वह पलटन के ढोल और झांझ की आवाज़ सुनता अपने परों को फुला लेता और खुशी के मारे चीख़ उठता। एक रोज़ सब से आख़िरी पलटन के निकल जाने के बहुत देर बाद जब कि वह सूनी गली को देख रहे थे तोता एक सुस्त आवाज़ से कहने लगा-“मैं चाहता हूं कि इन सबजंगी जवानों की जो कि हमारे वास्ते लड़ने को गये हैं कुछ ख़बर मालूम हो,” और फिर यकायक खुश होकर बोला-"आह, मैं कैसा बेवकूफ़ हूं कि कौओं को बिलकुल भूल गया, कौए आसानी से सब ख़बर ला सकेंगे" यों कह के फ़ौरन वहां से उड़ दिया और कौओं को ढूंढ कर उन्हें फ़ौज के पीछे, लड़ाई की ख़बर लाने को, रवाना किया।
इस के तीसरे दिन शाम को दोनों कौए खिड़की की राह भीतर आ दाख़िल हुए। थके हुए और डरे हुए से थे। राजा की बेटी ने उन्हें कुछ खाने को और पानी पीने को दिया। खा कर और सुस्ता कर, जो कुछ उन्होंने देखा था उसका बयान करने लगे। कहा कि "दोनों तरफ़ की फ़ौजों में बड़ी भारी लड़ाई हुई जिसमें कि लाहौर के राजा की हार हुई और उसकी फ़ौज भी तीन तेरह हो गई। अब रानी की फ़ौज लाहौर की तरफ़ आ रही है और कल यहां पहुंच जायगी"। राजा की बेटी ने यह हाल कोतवाल की बीबी से जब कहा तो वह बहुत रंजीदा हुई और घबराई और अपने खाविंद को जो कि उस वक्त कचहरी में था बुलवा कर सब हाल सुना दिया। जब कोतवाल ने पूछा कि उसे कैसे मालूम हुआ तो कह दिया कि "जादू के ज़ोर से दर्याफृ कर लिया, मगर मैं जियादा नहीं बतला सकती"। पहले तो कोतवाल ने उसका यकीन नहीं किया और समझा कि उसे सपना हुआ होगा; लेकिन जब देखा कि वह बहुत ख़ौफ़ कर रही है, उसकी बात को सच समझा। वह यह भी जानता था कि उसकी बीबी दाना और नेक है। वह फ़ौरन राजा की सभा में मशवरा करने को गया कि अब क्या करना मुनासिब है। वहां से वह बहुत देर बाद रात को वापस आया और यह ख़बर लाया कि यह सलाह तै पाई है कि अगर शिकस्त की अफ़वाह सच्ची है तो रानी की अताअत कबूल कर लेनी चाहिये ताकि शहर लुटने से बच जाय। कोतवाल ने यह ख़बर राजा की लड़की को फ़ौरन सुनाई और कहा कि “रानी की फ़ौज कल इस शहर पर कब्ज़ा कर लेगी इस लिये तुम्हारा यहां रहना ख़तरे से ख़ाली नहीं। हम तुम्हें किसी हिफ़ाज़त की जगह भेजे देते हैं"।
जब कि कोतवाल की बीबी राजा की लड़की से बातें कर रही थी और राजा की लड़की अपने मिहर्बानों से जुदा होने के ग़म और खौफ से रो रही थी कोतवाल को राजा का बुलावा आया। राजा उस वक्त लड़ाई के मैदान से भाग कर अपने महलों में आ सभा के दर्मियान सुलह की शर्तों का बिचार कर रहा था। सभा बहुत थोड़ी देर तक रही और कोतवाल जल्द वापस आया और यह ख़बर लाया कि दुश्मन ने यह शर्त की है कि अगर इस वक्त उसे बहुत सा रुपया दिया जाय और आगे को खिराज देने का क़रार किया जाय तो शहर पर चढ़ाई न की जायगी। लेकिन रुपया जो मांगा था इतना ज़ियादा था कि वह तमाम शहर का ज़र, ज़ेवर और दूसरा असबाब देने से पूरा हो सकता था। कोतवाल कहने लगा कि "अपना सारा माल दे डालने से हम सब बिल-कुल ग़रीब हो जायंगे लेकिन हमारी जान और शहर बच जायगा"। इस बात को सुन कर दयादेई बोली--"तो ऐ पिता, चांदनी को अब दूसरी जगह भेजने की ज़रूरत नहीं है, यहां अब उसको कुछ खौफ़ न रहेगा"-यह सुन कर कोतवाल बहुत उदास हुआ और कहने लगा कि "हमारे सारे पड़ोसी जानते हैं कि हमने बहुत रुपया देकर एक लौंडी ख़रीदी है, इस लिये हमारे असबाब के साथ वह भी ले ली जायगी, क्योंकि माल के वास्ते शहर में हर एक घर की जब तलाशी होगी हम उसे घर के भीतर कहां छिपा सकेंगे और शहर के बाहर भी कहीं नहीं भेज सकते क्योंकि शहर को फ़ौज के सिपाही सब तरफ़ घेरे पड़े हैं"। इतना कह कर कोतवाल बाहर चला गया और उनका सोच उसकी बात को सुनकर और भी बढ़ा। मगर तोता जो उनकी बात चीत सुनता रहा था अपनी बैठक से उतर कर राजा की लड़की के कंधे पर आ बैठा और उसका बोसा लेकर बोला "प्यारी रो मत, मुझे एक ऐसी जगह मालूम है जहां तू छिप सकती है। हमारे दोनों कौए बाग़ के पिछवाड़े वाले पुराने खंडहर में रहते हैं। इस खंडहर की एक मीनार साबित है उसकी चोटी पर जो एक छोटी कोठरी सी है उसमें तू छिप सकती है। लेकिन उसके जीने का निचला हिस्सा गिर गया है, इस लिए सिर्फ सिड्ढी के ज़रिये तू वहां पहुंच सकती है। मैं देखता हूं कि इस कमरे के सामान में कई एक रेशम की रस्सियां लगी हुई हैं, अगर यह हमारे मिहर्बान दोस्त इन में से कुछ रस्सियों की एक सिड्ढी बना दें तो दोनों कौए उसे लेकर मीनार की चोटी तक उड़ जायँगे- मैं तब उसका एक सिरा लटकती हुई सिड्ढी में लपेट के अटका दूंगा और दूसरा सिरा तेरी तरफ़ गिरा दूंगा लेकिन सिड्ढी इतनी हलकी बननी चाहिये कि कौए उसे उड़ा ले जा सकें"-राजा की लड़की ने यह सारी बात कोतवाल की बीबी से कह दी और वह तीनों जनी रस्सी की सिड्ढी बनाने लगी। तोता एक धागे का छोटा गोला अपने पंजे में लेकर मीनार के जीने की बची हुई सिढ्डियों में सब से निचली सिड्ढी तक उड गया और धागे के ऊपर के सिरे को थाम कर गोला उसने नीचे को छोड़ दिया और साथ ही आप भी उसके पीछे उड़ता हुआ नीचे उतर गया और उसे पंजों से उठा कर राजा की लड़की के पास ले गया और उसे बता दिया कि उसमें से कितना खुल गया था जिससे मालूम हो गया कि सिड्ढी में कितनी लम्बी रस्सी लगेगी। दयादेई छज्जे में बैठ कर गली की तरफ़ देखने लगी कि जब राजा के अफ़सर उस घर की तलाशो के वास्ते आवे उसे मालूम हो जाय। लेकिन उन्हें बहुत से मकानों को पहले तलाशी लेनी थी और शाम का अंधेरा होने के पहले ही कोतवाल की बीबीं और राजा की लड़की ने रेशम की रस्सी से एक खासी काफ़ी लम्बी सिड्ढी बना ली जो इतनी मज़बूत थी कि लड़की का बोझा बरदाश्त कर सके। जैसे ही अंधेरा हुआ कोतवाल की बीबी और वह दोनों लड़कियांँ तोते के साथ पोशीदा तौर से बाग़ में गईं और वहां एक ऊंची जगह पर चढ़ गई जहां से कि मंदिर के खंडहर में पहुंच सकती थीं। जो कि बाग़ की चहारदीवार से बिलकुल मिला हुआ था। बाग़ में उन्हें एक लकड़ी की सिड्ढी मिल गई जिसके ज़रिये से वह बाग़ के बाहर उतर गई। तोते ने कौओं से पहले ही दिखवा लिया था कि बाग़ में कोई नहीं है और वह जगह सब तरह महफूज़ है। जब वह मीनार के नीचे पहुंचे राजा की लड़की ने रेशम की सिड्ढी जो कि उसने एक छोटी लकड़ी पर लपेट ली थी कौओं को दे दी और उन्हें उसे लेकर ऊपर उड़ जाने को कहा। दोनों कौओं ने दोनों सिरे लकड़ी के अपने पंजों में पकड़ लिये और ऊपर ले जाने की कोशिश की लेकिन हालां कि रेशम की रस्सी इतनी पतली थी सिड्ढी का एक बहुत छोटा बंडल बन गया था, तो भी उन बेचारी चिड़ियों के लिये वह बहुत भारी था इस से वह फटफटाती हुई नीचे आ पड़ीं। तोता उनको मदद देने चला, लेकिन वह ऐसा भद्दा उड़ने वाला था कि उन के बीच में आ गया और मुआमिला और भी बिगाड़ दिया। तब वह बड़े नाउम्मेद हो गये और बाग़ को लौटने ही को थे कि उन्हों ने एक बड़ी चीख़ ठीक अपने सिर के ऊपर सुनो और जो ऊपर को नज़र की तो देखा कि एक बड़ा परन्द बुर्ज की तरफ़ उड़ा जा रहा है और जाकर उसकी चोटी पर बैठ जाता है। वह परन्द एक डरावनी शकल का उल्लू था। उसे देख कर तोता बोला "तिलिस्माती अंगूठी कहां है, मुझे दो" और राजा की लड़की से अंगूठी को छीन कर झट उल्लू के पास पहुंचा और अंगूठी उसे छुला दी जिस से उल्लू बड़ी हैरत में आया। तोते ने तब उसे तेज़ी के साथ हाकि माना आवाज़ से रेशम की सिड्ढी को मीनार की चोटी के ऊपर ले जाने का हुक्म दिया। उल्लू हुक्म को फ़ौरन बजा लाया और फिर बड़े अदब से सिर झुका कर कहने लगा- "कुछ और हुक्म?" "कुछ नहीं, सिवा इसके कि तुम रात भर मीनार पर पहरा दो और अगर कोई ख़तरे की बात नज़र नावे तो फ़ौरन हम को आगाह कर दो" तोते ने इतना कह कर उसे वहां से बरखास्त कर दिया-तोता तब उस रस्सी की सिड्ढी को टूटे जी़ने के नीचे के हिस्से तक ले गया और वहां उसने उसका एक सिरा एक कील से जो वहां गड़ी हुई थी लपेट दिया और दूसरा सिस नीचे ज़मीन पर गिरा दिया। राजा की लड़की और उसकी साथिनें वहां खड़ी थीं, उनसे अब उसने बिदा लो और उस रेशमी सिड्ढी पर आहिस्ता २ चढ़ कर ऊपर पहुंच गई-और फिर सिड्ढी को ऊपर खींच लिया। उसकी दोस्त साथिनें उसे उसकी तीनों चिड़ियाओं के साथ वहां छोड़ कर अपने मकान को वापस गईं। राजा की लड़की यह न देख सकी कि वह जगह कैसी है, अपने लबादे से जो कि साथ लाई थी बदन लपेट कर पड़ रही और जल्द ही उसे नींद आ गई-
सुबह के वक्त जब सूरज की किरनें दीवार के एक दरवाजे से उस कोठड़ी में पहुंची तब वह लड़की जागी और उसने देखा कि वह कोठड़ी छोटो और गोल है और उसके चारों ओर छज्जा है और एक तरफ़ उसके पत्थर के फर्श में ज़ीने में उतरने को रास्ता है जिससे कि वह वहां चढ़ी थी-वह छज्जे पर जाने से डरती थी क्योंकि वहां से दिखलाई दे सकती थी और कोतवाल की बीबी और तोते ने उससे कह दिया था कि अगर उसे वहां कोई देख लेगा तो अच्छा न होगा इस लिये उसे वहां पर लोगों की नज़र से बचना चाहिये। कौए खाने की तलाश में गये हुए थे और तोता राजा की लड़की के साथ कुछ कलेवा कर के कि जिसके वास्ते पहले दिन वह कुछ चीज़ें लेता आया था, बाग़ में यह देखने को उड़ गया कि वहां क्या हो रहा है। वहां उस वक्त बड़ा हंगामा हो रहा था-राजा के अफ़सर कोतवाल के घर में क़ीमती चीज़ों की तलाश कर रहे थे। कोतवाल ने अपने तमाम सोने चांदी के ज़ेवर, जवाहिरात, नक़दी और जो कुछ उसके घर में क़ीमती माल था सब उनके सामने रख दिया था, उसके घोड़े घुड़साल से मंगाये जाकर सामने खड़े किये गये थे और सारे गुलाम और लौंडियां आंगन में एक पंगत में खड़ी की गई थीं कि अफ़सर जिनको पसन्द करें ले जायं। जो कुछ उन्होंने ले जाने लायक समझा उसे इकट्ठा कर के वह जा रहे थे कि एक लौंडी उनमें से कि जिन्हें वह ले जा रहे थे अफ़सरों से कहने लगी-"अजी, एक और लौंडी इस घर में कहीं छुपी हुई है वह हम सब से ज़ियादा क़ीमती है लेकिन इनको वह बहुत पसन्द है इस लिये इन्होंने उसे छुपा दिया है"-अफसरों ने पूछा “उसका नाम क्या है?"-लौंडी ने जवाब दिया "उसे हम तोते वाली कहते हैं, क्योंकि उस के पास हमेशा एक वाहियात बुड्ढा तोता रहता हैं" और तोते की तरफ़ हाथ कर के कहा- देखो तोता वह है और तोते वाली भी ज़रूर कहीं नज़दीक ही होगी”–उस लौंडी ने यह सब जलन के मारे बता दिया था-कोतवाल अफ़सरों से कहने लगा-"मेरे यहां एक ऐसी लौंडी है तो सही, लेकिन मुझे मालूम नहीं वह कहां है, मेरा घर सारा खुला हुआ है तलाश कर लो"-यह बात सच थी कि उसे नहीं मालूम था कि राजा की लड़की उस वक्त़ कहां थी, उसकी बीबी ने उससे सिर्फ इतना ही कहा था कि वह एक महफूज़ जगह को चली गई हैं और ज़ियादा उसने सुनना नहीं चाहा था। अफ़सरों ने घर में उसे हर जगह तलाश किया लेकिन तलाशी फुजूल हुई। अख़ीर को उन्होंने कहा कि “वह भाग गई होगी और शायद जल्द ही पकड़ ली जायगी"-यों कहते हुए वह अपनी लूट का माल लेकर चले गये, सिवा चंद बुड्ढ़े गुलामों और लौंडियों के सारा असबाव और माल ले गये। जैसे ही वह चले गये दयादेई अपनी मां के पास दौड़ के बोली “ऐ मा, चांदनी अब तो आ सकती है?” उसकी मां ने जवाब दिया-"नहीं अभी वह जहाँ है वहाँ यहाँ से ज़ियादा बचाव से है-उसका यहाँ लाना तब तक मुनासिब नहीं जब तक कि दुश्मन की फ़ौज यहाँ से न चली जाय"-दयादेई यह सुन कर बड़ी उदास हुई, मगर कहने लगी-"अच्छा मुझे रोज़ रात को उसके पास हो आने दिया करो"-मां ने यह मंजूर कर लिया, लेकिन कहा कि जब कोई ख़तरा नज़र न आता हो तब तू ऐसा कर सक्ती है"। इसपर उसने जवाब दिया "अजी, वह प्यारी चिड़ियां निगहबानी रखेंगी, और हम पर यकायक हमला न हो सकेगा"-उसने तब राजा की लड़की को तोते के ज़रिये से एक रुक़्का भेजा कि "मैं अंधेरा होने पर तुझ से मिलने आऊंगी और साथ कुछ खाने की चीजें लाऊंगी"।
तिलिस्माती मुँदरी : अध्याय ७
क़रीब २ सारे दिन राजा की लड़की अपनी कोठड़ी ही मैं रही, कभी तोते से बात चीत कर लेती थी, कभी सीने लगती थी, और कभी एक किताब जो अपने साथ ले गई थी पढ़ने लगती थी। अख़ीर को उसने एक उकसा हुआ सा पत्थर कोठड़ी की दीवार में देखा, और उसको जो अपनी तरफ़ खींचा तो वह गिर पड़ा और उसकी जगह एक चौकोर छेद हो गया जिसमें से वह कोतवाल के मकान का बाग़ देख सकती थी, इससे वह निहायत खुश हुई और इस बात को जान कर उसे और भी ज़ियादा खुशी हुई कि वह उस सूराख़ से उस कमरे की खिड़की को देख सकती थी जिसमें दयादेई और वह सोया करती थीं-रात आने तक वक्त बहुत बड़ा मालूम पड़ा, लेकिन अख़ीर को शाम का अंधेरा शुरू हुआ और तोता, बड़े मियां उल्लू और दोनों कौओं को खंडहर के चारों तरफ़ ख़बर्दारी रखने का हुक्म देकर, दयादेई के लेने को जो कि अपनी मां के साथ बाग़ में टीले पर खड़ी हुई थी उड़ कर उनके पास पहुंचा। तब दयादेई से उसकी मां ने कहा-"मैं तेरे लिए यहीं ठहरी रहूंगी-तोते को अभी मेरे पास भेज दीजो, जब तेरे लौटने का वक्त होगा मैं उसे तेरे बुलाने को भेज दूंगी"-दयादेई अब उस सिड्ढी से बाग़ के पार उतर गई और मीनार के नीचे जा पहुंची। तोते के इशारे पर रेशमी सिड्ढी तले गिरा दी गई और दयादेई उस पर चढ़ के ऊपर पहुंच गई; सब तरह की खाने की चीजें एक टोकरी में लिये हुए थी। दोनों लड़कियां एक दूसरे से गले लिपट के खूब मिलीं-बाद थोड़ी देर के टोकरी खोली गई और दोनों ने खूब खाने को खाया, उन्हें भूख भी खूब लग रही थी क्योंकि एक दूसरे से मिलने की खुशी में एक ने भी शाम का खाना नहीं खाया था-तोता कोतवाल की बीबी के पास उड़ गया और राजा की लड़की ने दयादेई को दीवार का सूराख़ दिखाया और उससे अपने सोने के कमरे की खिड़की पर अक्सर पाने के लिये कहा ताकि वह उसे देख सके और उसकी तरफ इशारे कर सके। इतने में तोता वापस आया और बोला कि "अब चलने का वक्त है”। दयादेई राजा की लड़की के बहुत से बोसे लेकर अपनी मां के पास लौट आई।
ख़िराज जो उस शहर से मांगा गया था इतना ज़ियादा था कि उस के वसूल होने में बहुत रोज़ लग गये, क्योंकि बहुत लोगों ने अपनी क़ीमती चीज़े छिपाने की कोशिश की और राजा के अफ़सरों को तमाम मकानों की तलाशी में बहुत वक्त लगा।
यह सब वक्त राजा की लड़की ने मीनार के ऊपर उस छोटी कोठड़ी ही में अपनी तीनों चिडियाओं के साथ गुज़ारा। वह अक्सर कौओं के ज़रिये से बातों और संदेशे के रुक्के दयादेई के पास भेजा करती थी और दयादेई अपने सोने के कमरे की खिड़की में आ बैठा करती थी जहां कि राजा की लड़की उसे अपनी कोठड़ी की दीवार के छेद से देख सके। और उसमे से अपने हाथ बाहर निकाल कर उंगलियों के इशारे से बात कर सके। वह हाथों को इतना बाहर नहीं निकालती थी कि कोई गैर शख्स़ देख सके, और मीनार पर एक घनी बेल छाई हुई थी जिसके सबब से दयादेई की खिड़की के सिवा और कहीं से वह सूराख नहीं दीख सकता था। तीनों चिड़ियां उसके लिये के दयादेई पास से खाने की चीज़ लाने में भी बहुत कुछ लगी रहती थीं, क्यों दयादेई दो तीन दिन तक उसके पास फिर नहीं जाने पाई थी, क्योंकि जल्दी जल्दी। जाने से डर था कि कोई जान जायगा। अब की बार वह वहां कुछ रात गुज़र जाने पर गई, क्योंकि चांद रोशन हो रहा था, उसके छिप जाने तक उसे रुका रहना पड़ा। और वहां उनको बातें करते करते करीब करीब सवेरा हो गया, तब दयादेई गई। उस वक्त राजा की लड़की को इतनी नींद आ रही थी कि वह दयादेई के उतर जाने के बाद रेशम की सिड्ढी को ऊपर खींच लेना भूल गई। सुबह को तोता उससे पहले जाग गया और कौओं को कश्मीर की फ़ौज की ख़बरें लाने के लिये भेज कर आप कोतवाल के घर को, लड़की के वास्ते खाना लाने के लिये, उड़ गया। तोते को गये बहुत देर नहीं हुई थी कि राजा की लड़की को आंख किसी के हंसने की आवाज़ से खुल गई। यह आवाज़ उसके नज़दीक ही सुनाई दी और बेचारी के होश उड़ गये जब उसने एक काली सूरत को ज़ीने से निकल कर अपनी तरफ़ आते हुए देखा। लेकिन वह उस सूरत से खूब वाकिफ़ थी, क्योंकि वह उसी लौंडी की थी जिसने उसका ज़िक्र कोतवाल के मकान की तलाशी के वक्त उसे पकड़वाने की ग़रज़ से राजा के अफ़सरों से किया था। वह लौंडी उसकी हमेशा दुश्मन रही थी।
वह उससे तनूज़ के साथ कहने लगी-“हये, हये, तोते- वाली, मैं ने आज तुझे पकड़ लिया! मैं अब तुझे जल्द उन लोगों को सपुर्द कर दूंगी जो तुझे पाकर खुश होंगे और मुझे इनाम देंगे"-और फुरती से अंदर आकर राजा की लड़की को पकड़ लिया और उसकी चद्दर फाड़ के उसके दो टुकड़े कर उनसे उसके हाथ पैर बांध दिये-और यह कहती हुई कि "मुझे यक़ीन है तू मेरे लौट आने तक यहां से भाग न सकेगी" डोरी की सिड्ढी के रास्ते नीचे उतर गई और ज़ोर से उसे झटका दिया कि वह कील समेत नीचे जा पड़ी। उसको झट पट समेट कर और साथ लेकर वह बदज़ात लौंडी वहां से बड़ी फुरती के साथ दौड़ती हुई चली गई; राजा की लड़की को उसी तरह बंधी हुई पड़ी छोड़ गई। अगर उसके हाथ बंधे हुए न भी होते तो भी अब वह वहां से कहीं नहीं जा सकती थी।
लौंडी ने राजा की लड़की को वहाँ इस तरह पाया था- वह उस मकान से कि जिसमें पकड़े हुए लौंडी गुलाम रक्खे गये थे किसी तरकीब से उसी रात को भाग आई थी। और मंदिर के खंडहरों में छुपने को जगह ढूंढ रही थी। ढूंढते में उसे मीनार से लटकती हुई वह रेशमी रस्सी की, सिड्डी दिखाई दी; उस पर वह चढ़ गई यह देखने को कि वह ऊपर कहां लगी हुई है, और जब उसने राजा की लड़की को वहां सोता देखा तो फ़ौरन उसके जी में आया कि उसे राजा के अफ़सरों के हवाले कर दे, क्योंकि अलावा इसके कि वह उसले जलती थी वह यह भी जानती थी कि भागे हुए लौंडी गुलामों के पकड़ लाने वालों और पता बताने वालों को इनाम मिलता है और उसे यकीन था कि राजा को लड़की के मानिन्द उमदा लौंडी को पकड़वाने के इनाम में वह सिर्फ़ भाग आने के लिये मुआफ़ ही नहीं कर दी जायगी बल्कि क़ैद से छोड़ भी दी जायगी।
वह लौंडिया बराबर दौड़ती ही गई जब तक कि उस मकान में न पहुंची जहां कि उसके साथ के लौंडी गुलाम बन्द थे और वहां पहुंच कर दरबान से कहा कि उसे गुलामों के दारोग़ा के पास ले चले; जब वह दारोग़ा के पास पहुंची दारोग़ा उससे बहुत नाराज़ हुआ और भाग जाने के कुसूर पर सज़ा देने को धमकाने लगा, लेकिन वह बीच ही में बोल उठी कि "आप मुझे क्या इनाम देंगे अगर मैं आप को एक हज़ार अशर्फी की कीमत की छिपी हुई लौंडी का पता बता दूं"? उसने कहा “अगर तू ऐसा कर सकती है तो तू छोड़ दी जायगी और १० अशर्फी इनाम पाएगी लेकिन अगर तू ने मुझे धोखा दिया तो तेरे पैर के तलुओं पर इतने चाबुक पड़ेंगे कि तू चलने और खड़ी होने के काम की न रहेगी"-वह बोली, "मंजूर, लेकिन देर न कीजिये, मेरे साथ चलिये और अपने साथ एक सिड्ढी, इतनी लम्बी जितनी कि यह रस्सी की सिड्ढी है, लेते चलिये; मैं आप के हवाले उस लौंडी को कर दूंगी जिसे कोतवाल इतना चाहता है और जो हज़ार अशर्फी से कम दाम की नहीं है"-दारोग़ा ने फ़ौरन दो तीन सिपाही मय एक सिड्ढी के लौंडी के साथ किये, और वह उन्हें मीनार की जड़ पर ले गई। उस पर सिड्ढी लगाई गई और एक सिपाही ऊपर चढ़ गया, लेकिन कोठड़ी को उसने खाली पाया, राजा की लड़की का वहां नामोनिशान भी न था, सिर्फ कुछ असबाब था जो कि दयादेई ने उसके आराम के लिये पहुंचा दिया था और कुछ कपड़े की धज्जियां पड़ी हुई थीं जो कई जगह खून से सनी थीं। ये चीज़ वह आदमी नीचे ले आया और खंडहरों में लड़की को हर जगह तलाश कर नाकामयाब हो, वह लोग दारोग़ा के पास वापस गये। दारोग़ा निहायत गुस्सा हुआ और लौंडी को उसे धोखा देने के वास्ते उसके पैर के तलुओं पर कोड़ों की मार लगाने का हुक्म दिया। लेकिन वह ज़ोर से कहने लगो कि-"मैंने धेाखा नहीं दिया है, अगर कोतवाल के घर की तलाशी फिर ली जायगी तो तोते वाली लौंडी वहां ज़रूर मिलेगी, क्योंकि इतने थोड़े वक्त में वह दूर नहीं भाग सकती, ज़रूर उसी के यहां फ़िर आ गई होगी, चाहे जिस तरह से वह खंडहर से निकल गई हो”। जिस वक्त कि यह सब हो रहा था, राजा खुद वहां आ पहुंचा, वह अपनी आंखों से देखना चाहता था कि कितने लौंडी गुलाम इकट्ठे किये जा चुके हैं। जब उसने पूछा कि क्या माजरा है तो दारोग़ा ने सब किस्सा सुना दिया। राजा ने जब यह सुना कि कोतवाल की लौंडी छुपा दी गई थी तो बहुत नाराज़ हुआ, और सख़ हुक्म दिया कि जब तक वह लौंडी न मिले कोतवाल की लड़की दयादेई उसके बजाय पकड़ ली जाय और कई सिपाहियों के साथ एक अफ़सर को फौरन राजा की लड़की को तलाश करने के लिये रवाना किया और ताकीद कर दी कि अगर वह न मिले तो दयादेई को पकड़ लावें। हुक्म के मुताबिक़ वह उसी वक्त कोतवाल के मकान पर गये और उसकी और बाग़ की खूब अच्छी तरह तलाशी ली लेकिन राजा की लड़की वहां न मिली। दयादेई और उसकी मां को बड़ा ख़ौफ़ पैदा हुआ कि कहीं राजा की लड़की का मीनार के अन्दर छिपा हुआ होना उन्हें मालूम न हो जावे, लेकिन उनको जल्द मालूम हो गया कि मीनार की तलाशी तो पहले ही हो चुकी थी और वहां वह नहीं मिली थी। इस बात को जान कर उनका ख़ौफ़ कुछ कम हुआ लेकिन जब उन्हों ने लोहू में सने उसकी चादर के टुकड़े सिपाही के पास देखे उन की फ़िक्र कि उस बेचारी पर न जाने क्या नई आफ़त पड़ी होगी, और ज़ियादा बढ़ गई। लेकिन जब उन से अफ़सर ने कहा कि राजा ने दयादेई को पकड़ ले जाने का हुक्म दिया है उनके दिल की हालत क्या हुई होगी कहा नहीं जा सकता और बावजूद दोनों मां बेटियों के रोने चिल्लाने और मिन्नत करने के दयादेई को वह लौंडी बना कर ले गये। जब वह लौंडीख़ाने के आंगन में हो कर अपनी कोठड़ी में पहुंचाई जा रही थी उस ने वहां उस काली लौंडी को देखा जो उससे कीना रखती थी-दो सिपाही उसे उसकी बदज़ाती की सज़ा देने के लिए लिये जाते थे, हालांकि दारोग़ा ने वह सज़ा बेइंसाफ़ी से दी थी।
तिलिस्माती मुँदरी : अध्याय ८
राजा की लड़की मीनार में जहां कि काली लौंडी उस के हाथ पैर बांध कर उसे पड़ा छोड़ गई थी सिपाही का जो न मिली उसका किस्सा यों है-जिस वक्त वह बेबसी की हालत में कोठड़ी के अन्दर पड़ी हुई थी उसे उस सूराख़ में जिसमें से कि वह दयादेई की खिड़की को देखा करती थी दो बड़ी २ आंखें चमकती हुई दिखाई दीं। पहले तो वह डर गई लेकिन पीछे से वह फ़ौरन समझ गई कि दीवार पर बाहर जो बेल लिपटी हुई थी उसकी एक शाख पर बैठा हुआ, वह उल्लू जो कि मीनार की चोटी पर निगहबानी के लिये मुक़र्रिर था, सूराख़ से भीतर को देख रहा है। उसे उस वक्त अपनी तिलिस्माती अंगूठी की याद आई और जिस हाथ की उंगली में वह उस्को पहने हुए थी वह हाथ किसी तरह उल्लू की तरफ़ करके अंगूठी को उसकी नज़र के सामने कर दिया और उससे कहने लगी-“ऐ उल्लू, इस अंगूठी के लिहाज़ से इस वक्त मेरो मदद कर"-उल्लू ने जैसे ही अंगूठी को देखा और उसकी बात को सुना वह लड़की की खिदमत में अन्दर हाज़िर हुआ और बोला "क्या हुक्म है?" लड़की ने कहा- "मेरे हाथों और पैरों को खोल दे, अगर खोल सके तो"-उल्लू कपड़े के बन्धनों को जिनसे कि वह जकड़ी हुई थी खोल नहीं सकता था लेकिन उसने अपनी नुकीली चोंच और पैने पंजों से उन्हें फाड़ डाला, उसके ऐसा करने से मजबूरन लड़की को कुछ ज़ख़्म आ गई जिस से उसकी चादर के टुकड़ों पर खून के दाग़ पड़ गये जिनको कि उस सिपाही ने देखा था जो मीनार पर लड़की को पकड़ने के लिये चढ़ा था। जैसे ही उसके बन्धन अलग हुए वह मीनार से उतर जाने का कोई वसीला ढूढ़ने लगी, लेकिन कुछ नज़र न आया सिड्ढी को तो लौंडी ले ही गई थी-क्या वह वहां से नीचे ज़मीन पर कूद सकती थी? नहीं, नहीं मीनार बहुत ऊंची थी, कूदना अपनी जान को मौत के हवाले करना था-वह यकायक उल्लू की तरफ़ मुखातिब होकर पुकारने लगी “ऐ उल्लू , ऐ उल्लू , क्या तू मुझे किसी तरकीब से यहां से नीचे पहुंचा सकता है, पेश्तर इसके कि मेरे दुश्मन फिर यहां आ सके?” वह उल्लू बड़ी ज़ात का था जो क़रीब क़रीब उक़ाब या गीध के क़द की होती है, मगर वह इतना मज़बूत न था कि उस लड़की के बोझ को अधर में सम्हाल सके, वरना वह उसे अपनी पीठ पर सवार करा के अकेला ही नीचे उतार देता, इस लिये वह बोला-"ऐ प्यारी लड़की ज़रा ठहर जा, मैं अपनी बीबी को बुला लाऊं जो कि इसी खंडहर में रात के जागने की थकावट दूर करने को इस वक्त सो रही है मैं उम्मेद करता हूं कि मैं और वह दोनों मिल कर तुझ को अपने डैनों के सहारे आसानी से नीचे पहुंचा देंगे"-यों कह कर वह छज्जे पर जा बैठा और वहां से ऐसे ज़ोर से चीखा कि तमाम खंडहर गूंज उठा और थोड़ी ही देर में एक मोटी ताज़ी उल्लन परों को फटफटाती हुई छज्जे पर आन पहुंची और कहने लगी-"क्या मामला है, ऐ शौहर, जो आप ने मुझ को इस वक्त दिन में जगाया है?" उल्लू ने जवाब में अपनी चोंच से उस अंगूठी की तरफ़ इशारा किया जो राजा की बेटी अपनी उंगली में पहने हुए थी, लड़की भी उस वक्त छज्जे पर आ गई थी। वह उससे बोला-"अब वक्त खाना न चाहिये-एक हाथ से मेरी और दूसरे हाथ से मेरी बीबी की टांगें पकड़ ले, फिर फुरती से उस घने पत्तों वाली झाड़ी पर जो मीनार की जड़ के नज़दीक दिखाई देती है कूद पड़, हमारे डैनों के सबब से तू ज़ोर से गिरने न पावेगी" राजा की लड़की ने फ़ौरन वैसा ही किया-उल्लू और उल्लन की टांगों को ज़ोर से थाम कर छज्जे से झट कूद पड़ी और परों की बड़ी फटफटाहट के साथ झाड़ी की मुलायम शाखो पर बगैर ज़रा भी चोट लगे जा पड़ी, वहां पर उसने उनकी टांगे छोड़ दी और झाड़ी की टहनियों और शाखो को पकड़ती हुई नीचे ज़मीन पर उतर गई, और वहां चारों तरफ़ देखने लगी कि किस तरफ़ को जाना बिहतर होगा कि दुश्मन उसका पीछा न कर सकें। उसी वक्त उसे वह सिपाही जो उसे पकड़ने को खंडहर की तरफ़ आ रहे थे दिखाई दिये। लेकिन उसकी खुशनसीबी थी कि वह उसे देख न पाये; और जिधर से वह आ रहे थे उसकी दूसरी तरफ़ वह फ़ौरन निकल गई और उनकी नज़रों से बचती हुई बड़े ज़ोर से एक छोटी सी गली की मोड की तरफ जो उसे वहां से दिखाई दे रही थी बेतहाशा दौड़ी। उस गली के दोनों तरफ़ बाग़ो की चहारदीवारियां थीं; उस तंग गली में वह थोड़ी ही दूर आई थी कि बांई तरफ़ की दीवार में एक दरवाजे के पास जब पहुंची दरवाज़ा किसी ने आहिस्ता और होशियारी से खोला। उस वक्त वह एक अंजीर के पेड़ की आड़ में छिप गई, जो कि दीवार में उगा हुआ था। उसने देखा कि एक लौंडी उस दरवाजे से निकल कर और चारों तरफ़ ऊपर नीचे देख कर फुरती से गली के सिरे की तरफ़ चली गई-जैसे ही वह नज़र से ग़ायब हुई राजा की लड़की पेड़ की आड़ से बाहर निकल आई और दरवाज़े के पास पहुंच कर उसने देखा कि वह पूरी तरह बंद नहीं है; उसने किवाड़ आहिस्ता से खोल लिये और भीतर को झांका तो देखा कि वहां एक बड़ा साबाग़ है जिसमें घने पेड़ लगे हुए हैं और वहां कोई शख़्स नहीं है। उसने सोचा कि इस वक्त यहां छिप जाना बनिस्बत उस गली में जाने के बिहतर होगा, क्योंकि क्या मालूम गली कहां को गई है। बस वह बाग़ के भीतर घुस गई और दरवाज़े को वैसा ही अधखुला छोड़ कर सब से नज़दीक के पेड़ों की कुंज में छिपने को लपकी। वहां पहुंची ही थी कि उसको उस दरवाजे के बंद होने की आवाज़ सुनाई दी और उस तरफ़ को झांकने से मालूम हुआ कि वही लौंडी बाहर से वापस आ कर उसको बंद कर रही है और फिर मकान की तरफ कि जिसकी छत बाग़ के दूसरे सिरे पर दिखाई दे रही थी जा रही है। उसने देखा कि यहां कोई खतरा नहीं है, लेकिन तो भी वह एक सर्व के पेड़ पर चढ़ गई जिसकी घनी डालियों में उसे कोई नहीं देख सकता था। और रात होने तक वहीं छिपी रहने का इरादा कर लिया और मन में कहने लगी कि “रात होने पर मैं कोतवाल के घर चली जाऊंगी, उसकी मिहर्बान बीबी और दयादेई मुझको ज़रूर अपनी पनाह में ले लेंगी, अगर ले सकेंगी तो। सिवा उनके यहां के मैं और कहां जा सकती हूं?"
दिन बहुत बड़ा मालूम पड़ा और मुशकिल से कटा, अख़ीर को रात आई; मगर राजा की लड़की का आधी रात से पेश्तर वहां से जाने का हियाव नहीं पड़ा, उसने ख़याल किया कि रात ज़ियादा गुज़र जाने पर कोतवाल के घर के रास्ते में किसी से भेट होने का कम डर होगा। इस लिये आधी रात के बाद वह दरख़ से उतरी और बाग़ का दरवाज़ा खोल कर जिस रास्ते आई थी उसी रास्ते खंडहर के पास की खुली जगह में पहुंच गई। वहां से अंधेरे में टटोलती हुई कोतवाल के बाग़ की चहार दीवारी की तरफ़ चली और चाहती थी कि किसी तरकीब के दीवार को लांघ जावे और बग़ैर आहट के कोतवाल के मकान के अन्दर पहुंच जावे कि उसे उसके पुराने दोस्त उल्लू उल्लन पंख फटफटाते उस के सिर के ऊपर सितारों को कमजोर रोशनी में दिखाई दिये। उसने उनको पुकारा और पूछा कि कहीं उन्होंने उसका तोता या दोनों कौए तो नहीं देखे हैं-उल्लू दीवार पर बैठ कर बोला-"हां हां, वह तीनों इसी खंडहर में बसेरा कर रहे हैं, और दिन भर चारों तरफ़ तेरी तलाश में उड़ते फिरे थे" लड़की ने मिन्नत की-"ओह, मझे उन के पास ले चलो" उल्लू तुरन्त खंहडर के अन्दर उड़ गया और तोते को अपने पीछे पंख फटफटाते हुए साथ लेकर फ़ौरन फिर हाज़िर हुआ। तोता बड़े जोश के साथ चीख मार कर राजा की लड़की की गोद में उड़ कर जा बैठा और बोला-"ऐ मेरी प्यारी बच्ची, क्या सचमुच तू मुझ को फिर मिल गई, मैं ने तो समझ लिया था कि तू किसी बड़ी मुसीबत में फंस गई है और अब न मिलेगी!” लड़की ने उसको सारा किस्सा सुना दिया कि वह खंडहर से किस तरह भाग गई थी और कहा कि “अब मैं कोतवाल के बाग़ के अन्दर पहुंचने की कोशिश कर रही हूं, मगर तोते ने उसे रोक दिया और बतला दिया कि बजाय उसके वह लोग दयादेई को पकड़ ले गये हैं। यह सुन कर राजा की लड़की को बहुत अफ़सोस और फ़िक्र हुआ और कहने लगी कि "मैं दयादेई के बचाने के लिये अभी अपने तई अफ़सरों के हवाले कर दूंगी," और अपना इरादा पूरा करने को फ़ौरन वहां से चल दी, क्योंकि वह इस बात का खयाल बरदाश्त नहीं कर सकती थी कि दयादेई और दयादेई की मां की इस मुसीबत का बाइस वही थी। मगर तोते ने उससे कहा-"अच्छा, मेरी प्यारी, अगर तू इस तरह अपने को ज़ाया करने पर आमादा है, तो मैं भी तेरे साथ चलता हूं, मगर मुझे कौओं से कह आने दे कि वह दोनों इसी खंडहर के आस पास रहें ताकि अगर जरूरत पड़े तो मिल सके। कौओं को इस तरह हिदायत करके तोता लड़की के लबादे के अन्दर आ दबका और वह उसी वक्त वहां से चल दी और नज़दीक की गली के रास्ते सीधी कोतवाल के मकान के दरवाजे पर पहुंची और जोर से उले खटखटाने लगी-कुछ देर बाद एक बुढ़िया लौंडी ने खिड़की से अपना सिर निकाल कर पूछा-"कौन है?"-"मैं हूं चांदनी, मुझे भीतर आने दो"-यह जवाब पाकर लौंडी ने दरवाज़ा खोल दिया और राजा की लड़की के कहने से उसे ज़नाने कमरे में ले गई। वह लौंडी दयादेई की दाई थी, राजा की लड़की को देखते ही वह फूट फूट कर रोने लगी और दयादेई पर जो मुसीबत गुज़री थी सुनाने लगी, लेकिन राजा की लड़की ने कहा कि "मुझको सब मालूम है, लेकिन मेरे सबब से वह इस बिपत को न भोगने पावेगी, मैं अपने को पकड़वाने के लिये आई हूं"-और कहा कि "मुझे दयादेई की मां के पास ले चल"-जब उसके पास पहुंची उस के सीने से लिपट गई और बोली कि "मैं अपने को पकड़वाने और दयादेई को छुड़वाने के लिए आई हूं"। कोतवाल की बीबी उसके बोसे लेने लगी और उसे गले से लगा के रोने लगी, लेकिन उसने राजा की लड़की को अपने इरादे से रोका नहीं, क्योंकि दूसरी कोई सूरत उसकी लड़की के रिहाई पाने की न थी, लेकिन उस वक्त राजा की लड़की कि जिसे दिन भर कुछ खाने को नहीं मिला था और जो कि मिहनत और तकलीफ़ उठाने के बाइस निहायत थक गई थी, फ़र्श पर ग़श में आकर गिर पड़ी। कोतवाल की बीबी ने उसे चारपाई पर लिटा दिया और जब वह होश में आई उसने थोड़ा खाने को मांगा जो कि उसको दिया गया, उस के बाद वह सो गई और सुबह को खूब दिन निकल आने पर उठी। खाने के बाद कोतवाल की बीबी उसे अपने शौहर के पास ले गई और उससे उसके ऊंचे इरादे का बयान किया जिसकी कि कोतवाल ने बड़ी तारीफ़ की। तब उसकी बीबी से बहुत रंज और अफ़सोस के साथ रुख़सत होकर राजा की लड़की कोतवाल के हमराह गुलामों के कैदखाने को रवाना हुई। वहां वह दोनों फ़ौरन गुलामों के दारोगा के पास पहुंचाये गये और कोतवाल उस से अपने आने की ग़रज़ बयान करने लगा। लेकिन उसी वक्त राजा का वज़ीर जो गुलामों का मुआइना करने को आया था वहां आ पहुंचा और दारोगा ने कोतवाल से कहा कि "जो कुछ अर्ज़ करना हो, वज़ीर से करो"। वज़ीर उसका काई दोस्त न था, उसने जब सब हाल सुन लिया, कहा कि दयादेई को छोड़ देना बिलकुल नामुकिन है, क्योंकि ख़िराज इकट्ठा करने में इतनी मुशकिल पड़ रही है कि राजा ने हुक्म दिया है कि लौंडी और गुलाम बनाने लायक जो कोई लड़कियां और लड़के मिलें सब को पकड़ लेना चाहिये, इस लिए दयादेई और यह लड़की दोनों को लौंडियों में शामिल होना पड़ेगा। कोतवाल ने बहुत मिन्नत की और धमकियां भी दी और ग़म और गुस्से में अपनी डाढ़ी नोच डाली लेकिन वजीर पर कुछ असर न हुआ। तब कोतवाल वहां से सीधा राजा के महलों को गया और फ़ार्यद की कि उसकी बेटी को वज़ीर ने लौंडियों में दाख़िल कर दिया है, लेकिन राजा ने जवाब दिया कि क्या किया जाय कुछ बस नहीं है, ख़िराज के वास्ते काफ़ी रुपया इकट्ठा करना ज़रूरी है और वह लौंडी और गुलामों के ज़रिये ही से हो सकता है।
दोनों लड़कियों को इस मुसीबत में सिर्फ़ यह एक तसल्ली का बाइस था कि दोनों एक ही कोठड़ी में रक्खी गई थीं। कोठड़ी बहुत छोटी थी और उसमें सिर्फ़ एक खिड़की थी जिसमें होकर तोता आ जा सकता था। इस खिड़की से तोता शहर की ख़बरें दर्याफ़्त करने को गया और दयादेई की एक चिट्ठी उसको मां के पास ले गया। जब वह शहर से लौटा तो राजा की लड़की से उसने कहा कि दयादेई के छुड़ाने के वास्ते कोतवाल काफ़ी रुपया इकट्ठा न कर सका और एक दो दिन में सारे लौंडी गुलाम कश्मीरी लशकर में भेज दिये जायेंगे और वहां से उन्हें दुशमन की फ़ौज के साथ फ़ौरन कश्मीर को रवाना होना होगा। इस लिये राजा की लड़की को कश्मीर की खुंखार रानी के पंजे में फिर फसने का ख़ौफ़ है। "मगर,” तोता बोला "मुसीबत से छुटकारा पाने की एक सूरत है, या उमेद है-मुझे अपनी अंगूठी दे दे मैं उसे लेकर कौओं को तेरे नाना के पास भेजता हूं वह उससे सब हाल कह देंगे और वह बड़ा अक्लमन्द है, अगर कुछ हो सकेगा तो ज़रूर करेगा। लेकिन बग़ैर तिलिस्माती अंगूठी के वह कुछ नहीं कर सकेगा। क्योंकि उसके ज़रिये से वह आस्मान के तमाम परिन्दों पर हुक्म चला सकता है। राजा की लड़की ने अंगूठी तोते को दें दी-उसे लेकर वह खंडहर में पहुंचा और वहां दोनों कोओं को बुला कर अंगूठी एक के सपुर्द की और हुक्म दिया कि वह उसे लेकर जितनी जल्दी हो सके गंगोत्री के नज़दीक उस बुड्ढे योगी के पास जावे और उसको देकर उससे सारा हाल बयान करे। दूसरे कौए से उसने कहा कि वह अभी खंडहर ही में रहे और जब फ़ौज लाहौर से रवाना हो उसके साथ साथ उड़े। दोनों कौओं को हुक्म देने के बाद तोता राजा की लड़की के पास वापस आया।
दूसरे रोज़ सुबह को सब लौंडी गुलाम कश्मीरी लशकर को भेज दिये गये और वहां पर सिपहसालार के सपुर्द कर दिये गये और फ़ौज का फ़ौरन कूच हो गया। वह दोनों लड़कियां एक बांसों की खुली डोली में साथ बैठाई गई। तोता उनके साथ रहा, लेकिन अंगूठी के न होने से राजा की लड़की से अब वह बात नहीं कर सकता था, और इसका दोनों का बड़ा अफ़सोस था।
तिलिस्माती मुँदरी : अध्याय ९
इस तरह वह कई दिनों तक सफ़र करते रहे ओर अख़ीर को कश्मीर से एक रोज़ के रास्ते पर पहुंचे। यहां फ़ौज ठहर गई और रानी मय अपने तमाम दरबारियों के, अपनी फ़तहयाब फ़ौज को लेने के लिये और यह देखने के लिये कि लूट में क्या क्या माल आया है, आई। फ़ौज बड़ी सज धज के साथ खड़ी की गई और रुपये, अशर्फियां, सोने चांदी के जेवर, जवाहिरात, कीमती रेशमी कपड़े, शाल दुशाले, खूबसूरत घोड़े और लौंडी गुलाम जो लूट में आये थे सिपह-सालार के ख़ेमे के सामने नुमाइश के वास्ते बड़े ठाट बाट से सजाये गये। यह नुमाइश बड़ी शानदार थी। रानी एक हाथी पर जिस पर बेशकीमती सुनहली झूल पड़ी हुई थी एक सोने के हौदे में बैठी हुई थी, उसके दरबारी और मुसाहिब उसके पीछे घोड़ों पर सवार थे, उनके पोछे पलटनों की कतारें थीं। जब वह उस जगह के सामने पहुंची जहां लौंडी और गुलाम लाइन में खड़े किये गये थे, उसकी नज़र राजा की लड़की पर पड़ी; उसे देखते ही वह चौंक पड़ी, और उसका चिहरा पीला पड़ गया। बब्बू हौदे में उसके पीछे बैठा हुआ था; उसकी तरफ मुड़ कर रानी ने उसके कान में कुछ कहा और राजा की लड़की की तरफ़ इशारा किया। पहले तो वह हैरत में आ गया, लेकिन चंद लमहों के बाद हाथी से उतर कर सिपहसालार के पास गया, और उससे बोला कि "लौंडियों में एक को रानी साहिबा ने बहुत पसंद किया है और उसे वह अपनी ख़िदमत में रखना चाहती हैं-उसे वह साथ ले जायेंगी। बाकी को लूट के असबाब के साथ बेच देना चाहिये ताकि लड़ाई का खर्च पूरा हो सके”। बब्बू तब सीधा राजा को लड़की के पास गया-लड़की ख़ौफ़ से कांप रही थी क्योंकि वह जान गई थी कि रानी ने उसे पहचान लिया है। बब्बू ने उस की बांह पकड़ कर उसे अपने साथियों के हवाले किया और हुक्म दिया कि उसे अपने साथ रक्खें। लेकिन उस वक्त एक अजब नज़ारा नज़र आया।
बहुत ऊपर आस्मान में एक झुंड पहाड़ी उक़ाबों का जो चील की शकल के होते हैं उड़ता हुआ पा रहा था। उस झुंड के बीच में एक काली सी कोई बड़ो चीज़ थी। वह तेजी से उस मैदान के ऊपर आ पहुंचा जहां कि फ़ौज और रानी वगैरह थीं। नज़दीक आने पर देखा गया कि उन चिड़ियों के चक्कर के दर्मियान एक आदमी एक किस्म की पीढ़ी पर बैठा हुआ है, पीढ़ी लम्बे पतले बांसों और रस्सियों से जिनको कि उकाब अपने पंजों में पकड़े हुए हैं लटक रही है। जो आदमी कि पीढ़ी पर बैठा था बुड्ढा था और फ़क़ीर का लिबास पहने हुए था। चिड़ियों को जो हुक्म वह देता था वह उसे बिला तअम्मुल बजा लाने को मुस्तइद नज़र आती थीं। वह योगी अपनी जगह पर उकाबों के साथ अधर में कुछ देर तक मंडलाता रहा-लोग तअज्जुब में डूबे हुए उसकी तरफ़ एक टक चुपचाप देख रहे थे कि यकायक बुलन्द आवाज़ से वह बोल उठा-"ऐ सिपहसालार, मेरे मुलाज़िम वफ़ादार, मुरार सिंह-ऊपर नज़र कर और देख अपने पुराने आक़ा को। मैं जानता हूं कि जिस वक्त और सब मुझ से सरकश और बेवफ़ा हो गये थे और मैं अपने राज से निकाल दिया गया था, तू उस वक्त भी मेरा सच्चा वफ़ादार था और मेरी शिकस्त उस वक्त सिर्फ़ तेरी गैरमौजूदगी से हुई थी। मुझ को यह भी मालूम है कि मेरा राज दबा लेने वाले की मुलाज़िमत तैने तब तक इख़ियार नहीं की थी जब तक कि मैं कश्मीर छोड़ कर योग साधन करने के लिये गंगोत्री की तरफ़ नहीं चला गया था। मैं चाहता हूं कि तू अपने पुराने मालिक का हुक्म मान और उसे इस बद औरत का जो कि मेरी गद्दी को बेइज्ज़त कर रही है मुक़ाबिला करने में मदद दे"। पहले तो सिपहसालार ने उसे सिर्फ़ ख़याली सूरत या ख़्वाबी शकल समझा, मगर जब उसने अपने पुराने महाराज को आवाज़ और सूरत से पहचान लिया, फ़ौरन अपनी तलवार मियान से खींच ली और ऊंची आवाज़ से कहने लगा-"सिपाहियो, हमारे पुराने महाराज आज बैकुंठ से हमारे पास वापस आये हैं। वह सिपाही जो मेरी और उनकी तरफ़ हों अपने अपने हाथ उठावें"। सारी सिपाह एक आवाज़ से ज़ोर से कहने लगी-"महाराज की जय!" और हर एक सिपाही जोश में आकर अपने हथियारों को घुमाने लगा। बब्बू उस वक्त रानी के पास को दौड़ा और झट-पट हाथी पर अपनी जगह में पहुंच फ़ीलवान को हुक्म दिया कि "जितना तेज़ हो सके शहर को चलो"। फ़ीलवान ने हाथी दौड़ाया और रानी और बब्बू भाग गये होते लेकिन सिपह-सालार ने कुछ सवारों को उनका पीछा करने का हुक्म दिया। सवार बहुत जल्द उनके पास पहुंच गये और तीरन्दाज़ों ने फ़ीलवान की तरफ़ तीर खींच कर उससे कहा कि "रुक जाओ, वरना तीर तुम पर छोड़ दिये जायंगे"। फ़ीलवान ने देखा कि भागना फुजूल होगा इस लिये हाथी को रोक दिया। उसके बाद रिसाला वहां पर आ पहुंचा और बब्बू और रानी दोनों कैद कर लिये गये।
महाराज तब लौंडी गुलामों की तरफ़ मुखातिब हो कर पूछने लगे “मेरी प्यारी दोहती कहां है?" उसी वक्त राजा की लड़की उनके पैरों पर आकर गिर पड़ी। उन्होंने उसे उठा कर छाती से लगा लिया और बोसे लिये, फिर उसे अपने साथ हाथी पर सवार करा कर ले जाने की तैयारी की, लेकिन लड़की ने अर्ज़ की कि "मेरी मुसीबत की साथन और दोस्त दयादेई को भी ले चलिये" पस वह भी बैठा ली गई और कश्मीर के बुड्ढे महाराज अपनी फ़ौज के साथ अपनी पुरानी राजधानी पर क़ाबिज होने के लिए आगे बढ़े। तोता राजा की लड़की के बाजू पर बैठा हुआ शहर के लोगों की जयकार पर बड़ी खूबी के साथ सिर झुकाता जाता था, कौए दोनों खुशी से भरे हुए ऊपर उड़ते चलते थे। वह राज-महल के बाग़ में अपने पुराने बसेरे को चले गये। और उकाबों का गिरोह, अपनो ड्यूटी अदा करके अपने पहाड़ी मुक़ामो को रवाना हुआ।
राजा की लड़की ने महलों में पहुंचते ही पहला काम जो किया यह था कि अपने नाना से अर्ज़ की कि दयादेई की मां और बाप को कि जिन्हों ने उस के साथ ऐसा नेकी का सलूक किया था लाहौर से बुलवा लिया जाय। पस यह बुलवा लिये गये और उन्हें महलों के पास एक उमदा मकान रहने। के लिये दे दिया गया ताकि राजा की लड़की दयादेई से रोज़ मिल सके और दोनों अपना बहुत सा वक्त एक दूसरी की लुहबत में बिता सकें। अपने पुराने मददगार मिहर्बान बुड्ढे माहीगीर को-भी वह नहीं भूली-उसे उसने महाराज से सिफ़ारिश करके राजघराने की कश्तियों का दारोग़ा बनवा दिया।
लेकिन सब से ज़ियादा तारीफ़ का काम जो राजा की लड़की ने किया यह था कि अपने नाना से कह कर उन सब लड़कियों और लड़कों को जो लौंडी और गुलाम के तौर पर लाहौर से लाये गये थे फिर लाहौर को वापस भिजवा दिया। कश्मीर की रानी को कि जिसकी शरारत से उस लड़की को इतनी मुसीबतें उठानी पड़ी थीं राज के कानून से उसकी बुरी हरकतों के वास्ते फांसी की सजा मिलनी चाहिये थी लेकिन राजकुमारी ने इतनी सख्त सज़ा उसको न होने दी, उसे सिर्फ़ जनम कैद दी गयी और राजधानी से बहुत दूर एक पुराने किले में आराम के साथ उसके रहने का बन्दोबस्त करा दिया गया, और उसका लड़का संस्कृत का इल्म हासिल करने के लिये बनारस भेज दिया गया। बब्बू की भी जान बख़्श दी गयी-लेकिन वह कश्मीर से निकाल दिया गया।
महाराज अपनी दोहती के शादी के लायक होने तक कश्मीर में राज करते रहे। जब वह १८ बरस की हुई उसकी शादी लाहौर के राजा के बड़े लड़के से कर दी गयी। जब से राजकुमारी की सिफ़ारिश से वह लौंडी गुलाम जिन्हें लाहौर से कश्मीर की रानी की फ़ौज पकड़ लाई थी फिर लाहौर को भेज दिये गये थे तब से लाहौर के राजा और कश्मीर के महाराज में बड़ी दोस्ती पैदा हो गयी थी, और लाहौर का बड़ा राजकुमार जो कभी २ कश्मीर आकर महाराज के यहां रहा करता था महाराज को बहुत पसन्द। आ गया था-वह हर बात में लायक था। महाराज ने उसको अपनी दोहती से शादी के काबिल हर सूरत से समझा। इस लिये उसी के साथ उस राजकुमारी को ब्याह दिया और दूसरा कोई वारिस न होने से उसी को अपना सारा राज दे दिया।
बाद इसके महाराज फिर योग-साधन करने के लिये गंगोत्री को चले गये।
(इति)