शादी की रात (कहानी) : गाय दी मोपासां
The Wedding Night (French Story) : Guy de Maupassant
मेरी प्यारी जेनवीव, तुमने मुझसे कहा है कि मैं तुम्हें अपने हनीमून के सफर के बारे में बताऊँ । तुमने सोच कैसे लिया कि मैं इसकी हिम्मत भी करूँगी? आह मक्कार ! तुमने मुझे कुछ भी नहीं बताया , तुमने मुझे कुछ अनुमान भी नहीं करने दिया लेकिन वहाँ ! किसी से कुछ भी नहीं ।
अब तुम्हारी शादी को अट्ठारह महीने हो चुके हैं । हाँ , अट्ठारह महीने । तुम मेरी सबसे अच्छी दोस्त , जो पहले कहती थी कि तुम मुझसे कुछ नहीं छिपा सकतीं और तुममे इतनी उदारता भी नहीं रही कि मुझे आगाह कर देतीं । काश! तुम बस इशारा ही कर देतीं । काश! तुमने मुझे होशियार ही कर दिया होता । काश! तुमने मेरे मन में एक हलका, मामूली सा शक ही पैदा कर दिया होता । तुमने मुझे उस विचित्र भयंकर भूल करने से रोक लिया होता , जिस पर मैं आज भी शर्मसार हो जाती हूँ और जिस पर मेरे पति अपने मरते दम तक हँसेंगे । अकेली तुम ही जिम्मेदार हो इसके लिए! मैंने अपने आपको भयंकर रूप से हमेशा के लिए हास्यास्पद बना लिया है । मैंने ऐसी भूल की है, जो स्मृति से कभी नहीं मिटती और यह सब तुम्हारी गलती से , दुष्ट ! ओह ! काश मैं जानती होती!
रुको! मुझे लिखने से हिम्मत मिल रही है और मैंने तय कर लिया है कि मैं तुम्हें सब कुछ बता दूँगी लेकिन वादा करो, तुम बहुत ज्यादा नहीं हँसोगी और किसी प्रहसन की उम्मीद मत करना । यह एक नाटक है ।
तुम्हें मेरी शादी की याद है । मुझे उसी शाम हनीमून के सफर पर निकलना था । बेशक मैं पॉलेट जैसी बिलकुल भी नहीं थी , जिसके बारे में जीप ने हमें अपने आध्यात्मिक रोमांस के हास्यकर विवरण एबाउट मैरिज में बताया है । अगर मेरी माँ ने मुझसे वही कहा होता , जो मैडम ओत्रेतां ने अपनी बेटी से कहा था , तुम्हारा पति तुम्हें अपनी बाँहों में लेगा और । तो मैंने सचमुच पॉलेट की तरह हँसते हुए जवाब नहीं दिया होता कि और आगे मत बताओ माँ , आपकी तरह मुझे भी सब पता है ।
जहाँ तक मेरा सवाल है तो, मुझे कुछ भी नहीं पता और माँ , मेरी बेचारी माँ , जो हमेशा डरी रहती हैं , इस नाजुक मसले को उठाने की हिम्मत ही नहीं करतीं ।
हाँ, तो शाम को पाँच बजे, नाश्ते के बाद, उन्होंने हमें बताया कि गाड़ी इंतजार कर रही है । मेहमान जा चुके थे; मैं तैयार थी । मेरे कानों में अभी भी गूंजती है सीड़ियों पर, वह संदूकों की आवाज और पापा का वह नाक छिनकना , जो इस बात का संकेत था कि वह रो रहे थे। मुझे सीने से लगाते हुए उन्होंने कहा था
हिम्मत रखना! मानो मैं दाँत निकलवाने जा रही थी । जहाँ तक माँ का सवाल है तो उनका तो फुहारा चल रहा था । मेरे पति मुझे कष्टपूर्ण विदाई की इन रस्मों को जल्दी से निबटाने को कह रहे थे और मैं खुद आँसुओं में डूबी थी । हालाँकि बहुत खुश थी । इसे समझाना आसान नहीं है, लेकिन है यह बिलकुल सच । अचानक मुझे लगा, कोई मेरी पोशाक खींच रहा है । यह बीजू था , जिसे सुबह से बिलकुल भुला ही दिया गया था । बेचारा अपने अंदाज में मुझे विदा कह रहा था । इससे मेरे दिल को हलका सा झटका लगा और मुझे अपने कुत्ते को सीने से लगाने की तीव्र इच्छा हुई । मैंने उसे पकड़ लिया ( तुम्हें तो याद है, वह मुट्ठी बराबर है ) और उसे बेतहाशा चूमने लगी । मुझे जानवरों को सहलाना बहुत अच्छा लगता है । इससे मुझे मधुर आनंद मिलता है और मुझे एक तरह की सुखद कँपकँपी होती है ।
जहाँ तक उसका सवाल है तो वह बिलकुल पागल जैसा हो रहा था । वह अपने पंजों को लहरा रहा था, मुझे चाट रहा था और दाँत मार रहा था , जैसा कि वह बहुत संतुष्ट होने पर करता है । अचानक उसने मेरी नाक को अपने दाँतों में ले लिया और मुझे लगा, उसने सचमुच मुझे काट लिया है । मैंने धीमे से चीख निकाली और कुत्ते को नीचे छोड़ दिया । उसने काट तो लिया था , लेकिन खेल- खेल में । सारे लोग परेशान हो गए । वे पानी , सिरका और सूती कपड़े के कुछ टुकड़े लेकर आए । मेरे पति ने खुद दवा की । आखिर कुछ नहीं हुआ था , बस उसके दाँतों से तीन छोटे - छोटे छेद बन गए थे। पाँच मिनट बाद खून बंद हो गया और हम चल दिए । तय यह हुआ था कि हम करीब छह हफ्तों के लिए नॉरमंडी होते हुए सफर पर जाएँगे ।
उस शाम हम डीएप पहुँचे। शाम से मेरा मतलब आधी रात है । तुम्हें तो पता ही है, मुझे समुद्र कितना अच्छा लगता है । मैंने अपने पति से कह दिया कि जब तक उसे देख नहीं लेती , सोने नहीं जाऊँगी। वह जैसे इसके विपरीत सोच रहे थे। मैंने हँसते हुए उनसे पूछा कि क्या नींद आ रही है ?
उन्होंने जवाब दिया, नहीं मेरी जान , लेकिन तुम्हें जरूर समझना चाहिए कि मैं तुम्हारे साथ अकेला होना चाहूँगा।
मुझे आश्चर्य हुआ। मेरे साथ अकेले ? मैंने जवाब दिया, लेकिन आप पेरिस से सारे रास्ते ट्रेन में मेरे साथ अकेले ही तो थे ।
वह हँस दिए , हाँ, लेकिन ट्रेन में वह हमारे कमरे में होने से बिलकुल अलग है । मैं हार मानने वाली नहीं थी , अच्छा- अच्छा! ठीक है । मैंने कहा, हम समुद्र किनारे अकेले होंगे और इससे ज्यादा कुछ नहीं हो सकता! तय था कि वह खुश नहीं थे। उन्होंने कहा, ठीक है, जैसा तुम चाहो ।
वह रात भव्य थी , वह उन रातों में से थी, जो मन में शानदार , अस्पष्ट विचार लाती है, खयालों से अधिक शायद सनसनी लाती है, जो यह इच्छा लाती है कि अपनी बाँहें इस तरह खोलें , जैसे वे पंख हों और आसमान को बाँहों में भर लें , लेकिन कैसे व्यक्त कर सकती हूँ मैं इसे ? हमें हमेशा ऐसा लगता है कि इन अज्ञात चीजों को समझा जा सकता है ।
वातावरण में एक स्वप्निलता थी , एक कविता थी , एक अलग तरह की खुशी थी , जो धरती पर नहीं होती , एक तरह का अनंत नशा था , जो सितारों , चाँद, रुपहले , चमकते पानी से आता है । ये जीवन के सर्वश्रेष्ठ क्षण होते हैं । वे एक अलग अस्तित्व , एक अलंकृत, रोचक अस्तित्व की झलक होते हैं । वे उसकी अभिव्यक्ति हैं , जो हो सकता है या शायद जो होगा ।
फिर भी , मेरे पति लौटने को अधीर लग रहे थे। मैंने उनसे कहा, आपको ठंड लगी है क्या ? नहीं । तो फिर वहाँ उस छोटी सी नाव को देखिए, जो पानी पर सोई सी लगती है । क्या इससे अच्छा भी कुछ हो सकता है? मैं तो यहाँ खुशी - खुशी भोर होने तक रुकूँगी । बताइए, क्या हम यहाँ रुककर भोर की लालिमा को देखेंगे ?
उन्होंने शायद सोचा कि मैं उनका मजाक उड़ा रही हूँ और बहुत जल्दी ही वह मुझे जबरदस्ती होटल वापस ले गए! काश मैं जानती होती! ओह, बेचारे वह !
जब हम अकेले हो गए तो न जाने क्यों , मुझे शर्म महसूस हुई, जैसे मेरे साथ जबरदस्ती हुई हो । कसम खाकर कहती हूँ मैं । आखिर में मैंने उन्हें बाथरूम में भेज दिया और खुद बिस्तर में घुस गई ।
ओह , मेरी प्यारी, आगे कैसे बताऊँ ? खैर , कहे देती हूँ । इसमें कोई शक नहीं कि उन्होंने मेरी मासूमियत को शरारत समझा, मेरी बेहद सादगी को बदचलनी समझा, मेरी विश्वासपूर्ण बेपरवाही को किसी तरह की चालबाजी समझा और उस नाजुक बंदोबस्त की तरह कोई ध्यान नहीं दिया था , जो इसलिए जरूरी होता है कि जो व्यक्ति इसके लिए बिलकुल भी तैयार नहीं हो, वह इन रहस्यों को समझे और स्वीकार कर सके ।
अचानक मुझे विश्वास हो गया कि उनका दिमाग खराब हो गया है, फिर भय ने मुझे जकड़ लिया । मैंने उनसे पूछा कि मुझे मारना चाहते हैं क्या ? जब आतंक का आक्रमण होता है तो व्यक्ति तर्क नहीं करता, आगे नहीं सोचता ; वह पागल हो जाता है । एक सेकंड में मैंने न जाने क्या - क्या भयावह कल्पनाएँ कर डाली थीं । मैंने अखबारों में छपने वाली तमाम तरह की कहानियों के बारे में , रहस्यमय अपराधों के बारे में , कमबख्त मरदों से ब्याही कमसिन लड़कियों को लेकर होने वाली कानाफूसी के बारे में सोच डाला! मैं उनसे लड़ पड़ी, उन्हें दूर छिटका दिया , डर मुझ पर हावी हो गया । मैंने उनकी मूंछ का एक बाल भी उखाड़ दिया और इस कोशिश से आजाद होकर मैं उठ गई और बचाओ! बचाओ! चिल्लाती हुई दरवाजे की तरफ भागी, मैंने सिटकनी खोली और लगभग नंगी ही जल्दी- जल्दी सीढ़ियाँ उतर गई ।
दूसरे दरवाजे खुल गए । नाइट ड्रेस पहने आदमी हाथों में बत्तियाँ लिये दिखाई दिए । मैं उनमें से एक आदमी की बाँहों में जा गिरी, उससे सुरक्षा की गुहार करने लगी । उसने मेरे पति पर हमला कर दिया ।
इससे अधिक इस बारे में मुझे कुछ पता नहीं रहा । वे लड़ पड़े और चिल्लाए; फिर वे हँस पड़े, इस अंदाज में हँसे कि तुम कभी कल्पना भी नहीं कर सकतीं । तहखाने से लेकर दुछत्ती तक , वहाँ रह रहे सारे लोग हँसने लगे । मैंने अपने आसपास के कमरों और गलियारों में हँसी के ठहाके सुने । रसोई में काम करनेवाली छत के नीचे हँस रही थी और चपरासी ड्योढ़ी में अपनी बेंच पर हँस-हँसकर दोहरा हुआ जा रहा था ।
जरा सोचो तो! एक होटल में !
जल्दी ही मैं अपने पति के साथ अकेली थी । उन्होंने मुझे सरसरी तौर पर थोड़ा- बहुत समझाया, जैसे कोई ऑपरेशन होने से पहले उसके बारे में समझाता है । वह बिलकुल भी संतुष्ट नहीं थे। मैं भोर का प्रकाश होने तक रोती रही और दरवाजा खुलते ही हम चल दिए ।
बात यहीं खत्म नहीं होती । अगले दिन हम पूरविल पहुँचे, जो स्नान के लिए महज एक कच्चा घाट है । मेरे पति ने मेरी छोटी - छोटी बातों पर खूब ध्यान दिया और मेरी खूब परवाह की , खूब प्यार दिखाया । उस पहली गलतफहमी के बाद वह सम्मोहित दिखाई दे रहे थे। पिछली शाम की अपनी उस करतूत पर शर्मिंदा और अत्यंत दुखी भी । मैं भी अपनी कोशिश पर शांत और सीधी हो गई थी , लेकिन तुम अंदाजा नहीं लगा सकती कि जब मुझे उस बदनाम रहस्य के बारे में पता चला, जिसे ये लोग कमसिन लड़कियों से छिपाते हैं तो हेनरी को लेकर मुझमें कितना आतंक , कितनी अरुचि और लगभग घृणा पैदा हो गई । मैं निराश हो गई, मौत सी उदास हो गई और हरेक बात पर ध्यान देने लगी । अपने बेचारे माता- पिता के पास होने की चाह ने मुझे खूब सताया । अगले दिन के बाद हम एट्रिएट पहुँचे। सभी स्नान करने वाले उत्तेजित थे । एक जवान औरत को किसी छोटे कुत्ते ने काट लिया था और हाल ही में रेबीज से उसकी मौत हो गई थी । जब मैंने होटल की मेज पर यह चर्चा होते सुनी तो मेरी पीठ पर जोर की कँपकँपी दौड़ गई । मुझे फौरन लगा कि मेरी नाक दुख रही थी और मेरे तमाम अंगों में मुझे अजीब सा अहसास हुआ ।
उस रात मैं सो नहीं पाई । मैं अपने पति को बिलकुल भूल चुकी थी । क्या होगा अगर मैं भी रेबीज से मर गई तो ? अगले ही दिन मैंने होटल के मालिक से इस बारे में थोड़ी जानकारी माँगी । उसने मुझे कुछ भयानक जानकारियाँ दीं । वह दिन मैंने समुद्र किनारे टहलते हुए गुजारा । मैंने सोचा, अब मैं बोल नहीं पाऊँगी । जलभीत्ति ! हाइड्रोफोबिया ! कैसी भयानक मौत !
हेनरी ने मुझसे पूछा, क्या बात है ? उदास दिख रही हो ।
मैंने जवाब दिया, नहीं तो ! कुछ नहीं हुआ! कुछ भी तो नहीं हुआ!
मेरी घूरती आँखें समुद्र पर जमी थीं , लेकिन मैं उसे देख नहीं रही थी और मेरी आँखें जमी थीं फार्मों पर , खेतों पर और मैं बता नहीं सकती थी कि मेरी आँखें क्या देख रही थीं । जिस खयाल ने मुझे प्रताड़ित किया, मैंने उसका इकबाल नहीं किया है । एक दर्द, सच्चा दर्द मैंने महसूस किया अपनी नाक में । मैं लौट जाना चाहती थी ।
होटल में वापस पहुँचते ही मैं कमरे में बंद हो गई, ताकि घाव की जाँच कर सकूँ । मुझे कुछ दिखाई नहीं दिया । फिर भी मैं इस बात पर शक नहीं कर सकी कि इससे मेरा बहुत नुकसान हो रहा था । मैंने फौरन माँ को एक छोटा सा खत लिखा, जो शायद पढ़ने - सुनने में अजीब था । मैंने उनसे कुछ मामूली सवालों के फौरन जवाब माँगे । अपने दस्तखत करने के बाद मैंने लिखा, खास तौर पर मुझे बीजू की खबर देना न भूलें ।
अगले दिन मुझसे कुछ खाया नहीं गया , लेकिन मैंने डॉक्टर के पास जाने से इनकार कर दिया । सारा दिन मैं समुद्र किनारे बैठी रही , पानी में नहाने वालों को देखती रही । पतले - मोटे , वे सभी अपने भयंकर ( नहाने के ) कपड़ों में आए । वे सभी भद्देदिखाई दे रहे थे, लेकिन मैंने कभी हँसने की नहीं सोची । मैंने सोचा, कितने खुश हैं , ये लोग ! इन्हें किसी ने नहीं काटा है! वे जिंदा रहेंगे । उन्हें किसी बात का डर नहीं है । वे जैसे चाहें मनोरंजन कर सकते हैं , क्योंकि वे शांतिपूर्ण हैं !
उस पल मैं अपना हाथ अपनी नाक पर ले गई , मैंने इसे छुआ; वह सूजी नहीं थी क्या ? जल्दी ही मैं होटल में घुस गई । मैं अपने कमरे में बंद हो गई और आईने में इसे देखा । अरे , इसका तो रंग ही बदल गया था । अब तो मैं बहुत जल्दी मर जाने वाली हूँ ।
उस शाम अचानक मैंने अपने पति के लिए एक तरह का कोमल अहसास किया । यह निराशा का कोमल अहसास था । वह मुझे भले लगने लगे । मैं उनकी बाँह पर झुक गई । बीस बार मैंने उन्हें अपने कष्टकारी रहस्य के बारे में बताने का इरादा किया, लेकिन फिर खामोश ही रह गई ।
उन्होंने बड़ी बुरी तरह से मेरी अस्थिरता , मेरी आत्मिक कमजोरी को कोसा । मुझमें उनका प्रतिरोध करने की ताकत नहीं थी, संकल्प भी नहीं था । मैं सबकुछ सह लूँगी, सारे कष्ट झेल लूँगी ।
अगले दिन मुझे माँ का एक खत मिला । उन्होंने मेरे सवालों के जवाब दिए थे, लेकिन बीजू के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा था । मेरे मन में फौरन यह खयाल आया — वह मर गया है और वे लोग इस बात को मुझसे छिपा रहे हैं । मेरी इच्छा हुई कि टेलीग्राफ दफ्तर दौड़ जाऊँ और एक तार भेज दूं, लेकिन फिर एक खयाल ने मुझे रोक दिया कि अगर वह सचमुच मर गया है तो वे लोग मुझे बताएँगे नहीं । फिर मैंने अपने आपको दो दिन और दुख- दर्द के हवाले कर दिया । मैंने फिर खत लिखा। मैंने उन्हें लिखा कि वे मेरा ध्यान हटाने के लिए मुझे कुत्ता भेज दें, क्योंकि मैं कुछ अकेली महसूस कर रही हूँ ।
दोपहर बाद मुझे कँपकँपी का दौरा पड़ा । मैं पूरा गिलास उठाती तो उसमें से आधा तो जरूर छलक जाता । मेरी आत्मिक दशा विलाप- योग्य थी । मैं झुटपुटे के समय अपने पति से बचकर चर्च भाग गई । मैंने बहुत देर तक प्रार्थना की । लौटते समय मेरी नाक में एक नए तरह का दर्द महसूस हुआ और मैं एक कैमिस्ट के पास चली गई , जिसकी दुकान में रोशनी हो रही थी । मैंने उससे इस तरह से बात की जैसे मेरी एक दोस्त को कुत्ते ने काट लिया था और उससे इस बारे में सलाह माँगी । वह एक मिलनसार व्यक्ति था और उपकार करने को तत्पर था । उसने मुझे खुलकर सलाह दी, लेकिन मैं उसकी बात पर गौर करना ही भूल गई ; मेरा दिमाग इतना परेशान जो था । मुझे बस इतना याद है कि अकसर सफाई की सलाह दी जाती है । मैंने पता नहीं , किस दवा की ढेरों बोतलें इस बहाने से खरीद लीं कि उन्हें अपनी दोस्त को भेज दूंगी ।
मुझे जो कुत्ते मिलते , वे मुझमें आतंक भर देते , मेरे अंदर यह इच्छा जगा देते कि मैं पूरी रफ्तार से वहाँ से भाग खड़ी होऊँ । कई बार मुझे यह भी लगा कि मैं उन्हें काटना चाहती हूँ । उस रात मैं भयंकर तौर पर परेशान रही । उसका फायदा मेरे पति ने उठाया ।
अगले दिन मुझे माँ का जवाब मिला । उन्होंने कहा , बीजू बहुत अच्छी हालत में है, लेकिन अगर हमने उसे ट्रेन से भेजा तो उसे बहुत हवा लग जाएगी । तो वे उसे मेरे पास नहीं भेजेंगे... । तो वह मर चुका है ।
मैं फिर भी नहीं सो पाई । जहाँ तक हेनरी का सवाल है तो वह खर्राटे भर रहे थे। वह कई बार जागे । मैं ध्वस्त कर दी गई ।
अगले दिन मैंने समुद्र में स्नान किया । पानी में घुसकर मैं तो जैसे अभिभूत ही हो गई । मैं भयंकर तौर पर ठंडी हो रही थी । इस ठंडेपन के अहसास से मैं पहले कभी इतनी स्तब्ध नहीं हुई थी । मेरा अंग- अंग काँप रहा था , लेकिन अब मेरी नाक में बिलकुल भी दर्द नहीं हो रहा था ।
संयोगवश उन्होंने मेरा परिचय हम्मामों के मेडिकल इंस्पेक्टर से करवाया । वह एक आकर्षक व्यक्ति था । मैं बेहद होशियारी से अपने विषय पर आई, तब मैंने उससे कहा कि मेरे छोटे कुत्ते ने मुझे कई दिन पहले काटा था और उससे पूछा कि अगर हमें कोई सूजन दिखाई दे तो क्या करना जरूरी होगा । उसने हँसते हुए जवाब दिया, आपके मामले में मैडम मुझे बस एक ही इलाज दिखाई देता है कि आप एक नई नाक बनवा लें ।
जब मैं नहीं समझ पाई तो उसने कहा , वह आपके पति देख लेंगे। और जब मैं उससे मिलकर हटी तो मैं पहले जितनी ही अज्ञानी थी ।
उस शाम हेनरी बहुत मस्त, बहुत खुश दिखाई दे रहे थे। हम कैसिनो गए, लेकिन उन्होंने खेल खत्म होने का इंतजार नहीं किया और मुझसे लौटने को कह दिया । वहाँ मेरी दिलचस्पी का कुछ भी नहीं था, इसलिए मैं उनके पीछे हो ली , लेकिन मैं बिस्तर में नहीं रह पाई ; मेरी सारी नसें ढीली हो गई थीं और झनझना रही थीं । वह भी नहीं सो पाए । उन्होंने मुझे गले लगाया, मुझे सहलाया, मुझसे इतने प्यार और कोमलता से पेश आए मानो आखिरकार उन्होंने अनुमान लगा लिया था कि मैं कितने कष्ट में थी । मैंने उनकी सहलाहटों को स्वीकार कर लिया । मैं न तो उन्हें समझ रही थी और न ही उनके बारे में सोच रही थी ।
अचानक एक असाधारण भयावह विपत्ति ने मुझे जकड़ लिया । मेरे मुँह से भयंकर चीख निकली, अपने पति को पीछे धकेला, जिन्होंने मुझे पकड़ रखा था । मैं अपने कमरे में भाग गई और दरवाजे पर अपना सिर और चेहरा पटकने लगी । यह आक्रोश था! भयंकर आक्रोश! मैं घबरा गई थी !
हेनरी ने मुझे उठाया । वह खुद डर गए थे और समझने की कोशिश कर रहे थे कि आखिर परेशानी क्या है । मैं खामोश रही । अब मैं उदासीन हो चुकी थी । मैं मौत का इंतजार कर रही थी । मैं जानती थी कि कुछ घंटों की राहत के बाद एक और विपदा मुझे जकड़ लेगी और वह अंतिम थी, जो जानलेवा होगी ।
उन्होंने मुझे बिस्तर पर लिटाया और मैंने कोई प्रतिरोध नहीं किया । भोर होने के क्षण में मेरे पति की झुंझला देनेवाली खब्त ने एक और आवेश का दौर शुरू कर दिया, जो पहले से भी लंबे समय तक चला। मेरी इच्छा हुई कि उनके कपड़े फाड़ दूं और उन्हें काट दूँ और गुर्रा पइँ ; यह भयंकर था और फिर भी , इसमें इतना दर्द नहीं हुआ जितना मैं मानकर चल रही थी ।
सुबह आठ बजे के करीब जाकर मैं चार रातों में पहली बार सोई । ग्यारह बजे एक प्यारी आवाज ने मुझे जगा दिया । यह माँ थीं , जिन्हें मेरे खतों ने डरा दिया था और जो तुरंत मुझसे मिलने निकल पड़ी थीं । उनके हाथ में एक बड़ी सी टोकरी थी , जिसमें से हलकी- हलकी भौंकने की आवाजें आ रही थीं । मैंने उसे ले लिया, मुझमें एक मूर्खतापूर्ण उम्मीद थी । मैंने उसे खोल दिया और बीजू कूदकर पलंग पर आ गया , मेरे सीने से लग गया , उछल - कूद मचाने लगा, मेरे तकिए पर लोट मारने लगा, वह खुशी से उन्मत्त था ।
ओह , मेरी प्यारी, तुम चाहो तो मेरा विश्वास कर सकती हो; अगले दिन तक मेरी समझ में सब कुछ नहीं आया ! ओह, वह कल्पना , कैसे काम करती है यह ! और कैसा लगता है यह सोचकर कि मैंने ऐसा विश्वास किया - बोलो , यह कुछ ज्यादा ही मूर्खतापूर्ण नहीं था क्या ?
उन चार दिनों की यातनाओं के बारे में मैंने किसी को कभी नहीं बताया है; तुम समझ ही जाओगी कि क्यों ? सोचो, अगर मेरे पति को पता होता ! वह पहले ही मुझे पोरविल की मेरी करतूतों के बारे में काफी छेड़ चुके हैं । जहाँ तक मेरा सवाल है तो मैं उनके मजाक पर बहुत अधिक गुस्सा नहीं हो सकती । मेरा तो काम हो गया । जिंदगी में हमें हर चीज के हिसाब से अपने आपको ढालना ही होता है ।