चोर (कहानी) : गाय दी मोपासां
The Thief (French Story) : Guy de Maupassant
" सचमुच! " डॉ. सोरब्ये ने अचानक कहा । लग तो ऐसा रहा था जैसे वह किसी और विषय पर सोच रहे थे, लेकिन असल में वह चुपचाप चोरियों और दुस्साहिक कृत्यों की आश्चर्यजनक दास्तानों को सुन रहे थे, " सचमुच , मैं इससे अधिक गंदा पाप और इससे अधिक नीच काम किसी और को नहीं मानता, जितना इसे कि किसी लड़की की मासूमियत पर कोई हमला करे, उसे भ्रष्ट करे , अनजाने की कमजोरी और पागलपन के उस लम्हे का फायदा उठाए, जब उसका दिल एक डरी हुई कमसिन हिरनी की तरह धड़क रहा होता है, जब उसका अब तक बेदाग जिस्म इच्छा से स्पंदित हो रहा होता है और उसके निर्मल होंठ उसे फुसलाने वाले के होंठों को छूना चाहते हैं जब उसका पूरा वजूद तपता है और समर्पण की हालत में होता है, वह अपने आपको समर्पित कर देती है और वह उसके असाध्य तनाव या अपने पतन या अगले दिन जागने पर होने वाले दर्द के बारे में नहीं सोचती ।
" जो आदमी धीरे - धीरे और गंदे तरीके से इसे अंजाम देता है, कोई उसके शैतानी तरीके को नहीं बता सकता, जिसमें इतना धीरज और संयम नहीं होता कि उस ज्वाला को चंद बरफीले शब्दों से बुझा दे, जिसमें दोनों के लिए समझदारी नहीं होती , जो अपने आपको फिर से संयत नहीं कर पाता , अपने अंदर के भगोड़े पशु को काबू में नहीं कर पाता, जो उस खड़ी चट्टान के सिरे पर आकर अपना आपा खो बैठता है, जिससे वह लड़की गिरने वाली होती है, यह आदमी उतना ही घृणित होता है, जो ताला तोड़ता है या उस पाजी जितना जो इस तलाश में रहता है कि मकान ऐसा मिले, जिसकी सुरक्षा कोई नहीं कर रहा या ऐसे किसी दुस्साहसी की तरह , जो आसान और फायदे वाले धंधे की फिराक में रहता है या उस चोर की तरह, जिसके कई कारनामों के बारे में आपने अभी- अभी हमें बताया है ।
" जहाँ तक मेरा सवाल है तो मैं उसे बिलकुल भी माफ नहीं करूँगा, भले ही उसके पाप को कम करने वाले हालात उसके पक्ष में हों , भले ही वह ऐसे खतरनाक रोमांस में लगा हो, जिसमें आदमी अपना संतुलन बनाए रखने की और लॉन टेनिस की तरह ही खेल की सीमाओं से बाहर न जाने की नाकाम कोशिश करता है, भले ही किरदार पलट जाए और आदमी के सामने कोई उम्र से पहले जवान हो गई कोई उत्सुक , फुसलाने- बहकाने वाली लड़की हो, जो आपको फौरन यह जता देती है कि उसे कुछ नहीं सीखना और कुछ अनुभव नहीं करना, सिवा प्यार के अंतिम अध्याय के - ऐसी एक लड़की, जिससे नियति हमारे बेटों को बचाकर रखे और जिसे एक मनोवैज्ञानिक उपन्यास लेखक ने अर्धकुआँरी का नाम दिया है ।
" प्रत्येक पुरुष में वह जो भोथरा और अथाह अहंकार होता है और जिसे पुरुषवाद कहा जा सकता है, उसके लिए यह सचमुच मुश्किल और कष्टकर होता है कि वह ऐसी मीठी आग को न भड़काए । यूसुफ और मूर्ख की तरह करे , अपनी नजरें घुमा ले । जैसे यूलिसिस और उसके साथियों ने मायावी जलपरियों सायरन के अलौकिक और भरमा देने वाले गीतों से बचने के लिए अपने कानों में मोम डाल लिया था, वैसे ही करे । मुश्किल होता है एक कोरे कपड़े से ढकी उस सुंदर मेज को न छूना , जिस पर सबसे पहले बैठने के लिए आपको बहुत ही मादक आवाज में दावत दी जाती है । आपसे गुजारिश की जाती है कि आप अपनी प्यास बुझाएँ और उस नई शराब को चखें, जिसका नया और अनूठा स्वाद आप कभी नहीं भूलेंगे, लेकिन कौन हिचकिचाएगा ऐसा संयम बरतने से , अगर वह समझदारी के किसी पल में फटाफट अपने जमीर को जाँचे, जिसमें कोई पुरुष साफ - साफ सोचता है और अपना आपा वापस पा लेता है, अगर वह पाप की गंभीरता को समझे, गलती के बारे में सोचे, उसके नतीजों के बारे में सोचे, उसकी प्रतिक्रिया के बारे में सोचे, उस बेचैनी के बारे में सोचे; जिसे वह भविष्य में हमेशा महसूस करेगा और जिससे उसकी जिंदगी की शांति और खुशी नष्ट हो जाएगी ।
" आप अंदाजा लगा सकते हैं कि जब मेरे जैसी सफेद दाढ़ीवाला कोई शख्स इस तरह के नैतिक विचार व्यक्त करता है तो उसमें कोई कहानी छिपी होती है, क्योंकि इस कहानी में दर्द है तो मुझे यकीन है कि इस अजीब बहादुरी वाले किस्से में आपको मजा आएगा । "
वह कुछ पल के लिए चुप हो गए, मानो अपनी यादों को समेट रहे हों और आरामकुरसी के हत्थों पर कुहनियाँ टिकाए शून्य में ताकते हुए उन्होंने अस्पताल के प्रोफेसर की तरह धीमी आवाज में कहना जारी रखा, जैसे प्रोफेसर मरीजों वाले पलंग के पास अपने विद्यार्थियों को किसी बीमारी के बारे में समझाता है
" वह उन आदमियों में से था , जिसकी मुलाकात , जैसा कि हमारे दादा- परदादा कहा करते थे, कभी किसी बेरहम औरत से नहीं हुई थी । वह एक किस्म का दुस्साहसी सूरमा था , जो हमेशा शिकार की तलाश में रहता था । उसमें बदमाशों वाली कोई बात थी , लेकिन खतरे से उसे नफरत थी ; वह लापरवाही की हद तक निडर था । आनंद की खोज वह जोश से करता था । उसमें गजब का आकर्षण था और वह उन आदमियों में से था , जिनकी बड़ी- से- बड़ी ज्यादती को हम दुनिया की सबसे अधिक स्वाभाविक चीज मानकर माफ कर देते हैं । अपना सारा पैसा उसने जए में और खूबसूरत लड़कियों पर लुटा दिया था और अब वह भाग्य का सिपाही बन गया था , जो जब भी और जैसे भी संभव होता , अपना मनोरंजन करता था । उस समय वह वर्साय में रह रहा था ।
" मैं उसे उसके बच्चों जैसे दिल की गहराइयों तक जानता था जिसे बहुत ही आसानी से भेदा और नापा जा सकता था । मैं उसे वैसे ही प्यार करता था जैसे कोई बूढ़ा कुँआरा चाचा अपने उस भतीजे से करता है, जो उसके साथ शैतानियाँ करता है, लेकिन वह उसे फुसलाना और बहलाना जानता है । उसने मुझे सलाहकार से ज्यादा अपना हमराज बना रखा था और अपनी छोटी - से- छोटी चाल के बारे में बता देता था; हालाँकि वह इसे इस तरह बताता था जैसे अपनी नहीं , किसी दोस्त की बात कर रहा हो । मैं यह मानता हूँ कि उसकी जवाँदिल जल्दबाजी, उसकी लापरवाह मस्ती और उसका कामुक जोश कभी- कभी मेरे खयालों को भटका देता था , मुझे ईर्ष्या हो जाती थी । उस खूबसूरत , दमदार नौजवान से, जो जिंदा रहकर इतना खुश था । मुझमें इतनी हिम्मत नहीं होती थी कि उसे टोकूँ, उसे उसका सही रास्ता दिखाऊँ और उससे कहूँ – सँभलकर ! जैसे बच्चे किसी अंधे से कहते हैं ।
" एक दिन , उस सामूहिक नाच के बाद जहाँ घोड़े एक - दूसरे को घंटों के लिए नहीं छोड़ते बल्कि उन्हें पूरी छूट रहती है और वे किसी की नजर में आए बिना एक साथ गायब हो सकते हैं । उस बेचारे को आखिर पता चल ही गया कि प्यार क्या होता है, वह सच्चा प्यार जो दिल के बीचोबीच और दिमाग में अपना घर बना लेता है । वहाँ होने पर गर्व करता है और एक सम्राट और अत्याचारी मालिक की तरह राज करता है । वह एक खूबसूरत, लेकिन ऐसी लड़की पर दीवाना हो गया, जिसको अच्छी तरह से पाला नहीं गया था । जो इतनी ही परेशान करने वाली और बिगडैल थी, जितनी वह सुंदर थी ।
" लेकिन वह उसे प्यार करती थी, बल्कि वह बेलगाम और पागल होकर अपनी पूरी आनंदित आत्मा से और अपने पूरे उत्तेजित शरीर से उसे पूजती थी । उसके नासमझ और मूर्ख माँ - बाप ने उसे उसकी मनमानी करने की आजादी दे रखी थी । वह कॉन्वेंट की बुरी सोहबत में रही थी । उससे उसकी दिमागी हालत भी खराब हो गई थी । वह अपने आसपास, जो कुछ होता हुआ देखती - सुनती और जानती थी , उसी से सीखती थी । उस लड़की ने अपने कपट भरे और नकली व्यवहार के बावजूद यह जानते हुए भी कि उसके नस्ल के अभिमान में डूबे और लालची माँ - बाप कभी इस बात पर राजी नहीं होंगे कि वह अपनी पसंद के उस लड़के से शादी करे , उस खूबसूरत लड़के से , जिसके पास दूरदर्शी विचारों और कों के अलावा और कुछ नहीं था और जो मध्यम वर्ग का था उसने अपनी तमाम सूझ - बूझ को किनारे कर दिया , बस पूरी तरह से उसकी हो जाने के अलावा उसे अपना प्रेमी बनाने के अलावा और उसके विरोध पर काबू पाने के अलावा सब खयालों को छोड़ दिया ।
“ धीरे- धीरे उस अभागे आदमी की हिम्मत जवाब दे गई । उसका दिल कोमल हो गया । उसकी नसें उत्तेजित हो गई । वह उस धारा में बह चला, जिसने उसे थपेड़े मारे, उसे घेर लिया और उसे एक अनाथ तथा भटके हुए की तरह किनारे पर छोड़ दिया । "
" वे एक - दूसरे को प्रलोभन और पागलपन से भरे पत्र लिखने लगे । एक दिन भी ऐसा नहीं जाता था , जब वे एक तरह से अनजाने में ही या किसी पार्टी या नाच में नहीं मिलते हों । लड़की ने उसे लंबे प्रगाढ़ आलिंगनों में अपने होंठ दिए और अपनी दोतरफा वासना पर चाहत और उम्मीद की मुहर लगा दी थी । आखिर में वह उसे अपने कमरे पर लेकर आई, हालाँकि वह ऐसा चाहती नहीं थी । "
डॉक्टर यहाँ आकर रुक गए । उनकी आँखों में अचानक आँसू भर आए , क्योंकि इन्हें याद कर वह परेशान हो गए थे, फिर वह जो बताने जा रहे थे, उसकी भयावहता से आहत होकर उन्होंने भर्राई आवाज में कहना शुरू किया-
" महीनों तक हर रात वह बगीचे की दीवार फाँदकर किसी सेंधमार की तरह उससे मिलने जाता रहा । दीवार फाँदकर वह अपनी साँस रोककर किसी हलकी सी आवाज पर भी कान लगाता और नौकरों के दरवाजे से अंदर घुसता था, जिसे वह खुला छोड़ देती थी, फिर वह नंगे पाँव एक लंबे गलियारे से होता हुआ बीच-बीच में चरमराती चौड़ी सीढ़ियाँ चढ़कर दूसरी मंजिल पर जाता था , जहाँ उसकी प्रियतमा का कमरा था । वहाँ वह करीब पूरी रात ठहरता था ।
" एक रात जब और दिनों से ज्यादा अँधेरा था और वह हड़बड़ी में था कि कहीं तय समय से देर न हो जाए तो सामने के कमरे में वह फर्नीचर से टकरा गया और वह गिर गया । हुआ यह कि लड़की की माँ सिरदर्द की वजह से या देर तक कोई उपन्यास पढ़ते रहने के कारण अभी तक सोई नहीं थी । घर की खामोशी को तोड़ने वाली उस असामान्य आवाज से वह डर गई और बिस्तर से कूद पड़ी । उसने दरवाजा खोला और धुंधला सा देखा कि कोई भाग रहा था और दीवार के पास खड़ा हुआ था । उसने एकदम सोचा कि घर में चोर घुस आए हैं , उसने चीख चीखकर अपने पति और नौकरों को उठा दिया । अभागे आदमी की समझ में आ गया कि क्या हो रहा है । अपने संकट को देखकर उसने ठान लिया कि वह अपनी पूज्य प्रियतमा को बेइज्जत करने और दोनों के इस अपराधी प्यार का राज उगलने के बजाय एक साधारण चोर की तरह पेश होगा । वह भागकर बैठक में घुस गया । उसने मेजों पर और न जाने कहाँ- कहाँ टटोला, जो कुछ भी कीमती या और कुछ हाथ में आया, उसे जेब में भर लिया, फिर वह एक बड़े कमरे के कोने में रखे एक शानदार पियानो के पीछे दुबक गया ।
" जली मोमबत्तियाँ लिये वहाँ पहुँचे नौकरों ने उसे वहाँ देख लिया और उस पर लानत बरसाते हुए उन्होंने उसे कॉलर से पकड़ लिया । उसे घसीटते हुए सबसे पास के पुलिस थाने ले गए । वह हाँफ रहा था और शरम तथा दहशत के मारे अधमरा हो गया था । जब उसे मुकदमे के लिए पेश किया गया तो उसने जान- बूझकर अटपटे ढंग से अपना बचाव किया । उसने पूरी तरह से अपने आप पर काबू रखते हुए अपना किरदार निभाया । अपने दिल में वह जिस निराशा और पीड़ा को महसूस कर रहा था , उसको उसने बिलकुल दिखने नहीं दिया । एक मर्द और एक सिपाही के तौर पर उसकी निंदा हुई, अपमान हुआ और फिर वह बलिदान हो गया, लेकिन उसने कोई विरोध नहीं किया बल्कि एक ऐसे अपराधी की तरह जेल चला गया, जिसे समाज जहरीले कीड़े की तरह नष्ट कर देता है ।
" वहाँ वह दुःख और मन की कड़वाहट साथ लिये मर गया । मरते समय वह उस सफेद बालों वाली प्रतिमा का नाम ही लेता रहा, जिसके लिए उसने अपना बलिदान कर दिया था मानो वह कोई परम आनंद देने वाली प्रार्थना हो । उसने अपनी वसीयत उस पुरोहित को सौंप दी, जिसने उसका मृत्यु - पूर्व संस्कार किया और उससे गुजारिश की कि उसे मुझे दे दे। इसमें उसने किसी का नाम लिये बिना और राज पर से परदा उठाए बिना आखिर ये में उस रहस्य का खुलासा किया था और अपने आपको उन आरोपों से, उस भयंकर बोझ से मुक्त किया था , जिसे वह अपनी आखिरी साँस तक ढोता रहा था ।
" मैं पता नहीं क्यों , हमेशा से यह सोचता रहा हूँ कि उस लड़की ने जरूर शादी कर ली होगी । उसके कई प्यारे बच्चे हुए होंगे, जिन्हें उसने सादगी और सख्ती से तथा पुराने दिनों की गंभीर पवित्रता में पाला होगा! "