नेक छोटे लड़के की कहानी (कहानी) : मार्क ट्वेन

The Story of the Good Little Boy (English Story in Hindi) : Mark Twain

किसी जमाने की बात है। एक नेक छोटा लड़का था। नाम था जैकब ब्लीवेंस। वह हमेशा अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करता, चाहे आदेश कितना ही बेतुका और अनुचित क्यों न हो। वह हमेशा अपने सबक याद करता, रविवार की प्रार्थना के लिए कभी देर न करता। कभी ताश न खेलता, हालाँकि उसे लगता था कि यह बहुत मनोरंजक है। उसका व्यवहार ऐसा ही विचित्र था। दूसरे लड़के उसे कभी ठीक से समझ नहीं पाते। वह कभी झूठ नहीं बोलता था, चाहे झूठ बोलना कितना आसान क्यों न हो। वह कहता, झूठ बोलना बुरी बात है और इतना ही उसके लिए काफी है। वह इतना ईमानदार था कि सब उसकी खिल्ली उड़ाते। जैकब की विचित्र आदतों का जवाब न था। वह इतवार की छुट्टी में भी कंचे न खेलता वह चिड़ियों के घोंसले न तोड़ता वह किसी तरह के भी मनोरंजन में दिलचस्पी न लेता। बाकी लड़के उसे समझने की कोशिश करते, लेकिन किसी संतोषजनक निष्कर्ष पर न पहुँच पाते। वह इस अस्पष्ट से खयाल तक पहुँचते कि वह ‘सताया हुआ’ था। इसलिए वे उसे अपने संरक्षण में रखते और कभी कोई कष्ट न होने देते।

वह नेक छोटा लड़का अपनी धार्मिक स्कूल की सभी किताबें रविवार को बड़े ध्यान से पढ़ता। उसमें उसे बहुत आनंद आता। सारा रहस्य इसी में था। रविवार-स्कूल की किताबों में जिन नेक छोटे लड़कों की कहानियाँ होती हैं, वह उन पर पूरा विश्वास करता था। वह चाहता था कि उनमें से कोई उसे कभी सजीव मिल जाए। लेकिन ऐसा कभी हुआ नहीं। शायद उसका समय आने तक वे सब मर चुके थे। जब कभी वह किसी नेक लड़के की कहानी देखता, जल्दी उसके पन्ने पलटकर देखने की कोशिश करता कि अंत में उसका क्या हुआ। वह उसकी एक झलक पाने के लिए हजारों मील का सफर तय करने को तैयार था। लेकिन यह संभव न था, क्योंकि वह नेक छोटा लड़का अंतिम अध्याय में हमेशा मर चुका होता। उसमें उसके अंतिम संस्कार की तसवीर होती। उस तसवीर में उसके रिश्तेदार और रविवार-स्कूल के बच्चे उसकी कब्र के चारों तरफ खड़े होते। उनकी पतलूनें छोटी और टोपियाँ बड़ी-बड़ी होतीं। सब अपने रूमाल लिये रो रहे होते। उसके साथ हमेशा ऐसा ही होता। वह कभी भी ऐसे किसी नेक छोटे लड़के को न देख पाता, क्योंकि वे हमेशा आखिरी अध्याय में मर जाया करते थे।

जैकब का नेक इरादा था कि उसे भी रविवार की पुस्तक में स्थान मिले। वह चाहता था कि उसकी कहानी के साथ अपनी माँ से झूठ बोलने से इनकार करते हुए उसकी तसवीर हो। उसमें उसकी माँ उसके इस व्यवहार पर खुशी के आँसू बहा रही हो। उसकी एक तसवीर अपने घर की ड्योढ़ी पर खड़े होकर छह बच्चोंवाली भिखारिन को एक पैसा भीख में देते हुए हो। वह उसे बता रहा हो कि इसे खुले हाथों खर्च करना। लेकिन फिजूलखर्ची न करना, क्योंकि फिजूलखर्ची पाप है। उसकी वह गर्वीली तसवीर भी हो, जिसमें वह उस लड़के का नाम नहीं बताता, जो स्कूल के एक कोने में उसके इंतजार में खड़ा रहता है, उसके सिर पर पटिया दे मारता है और उसके घर तक ‘ही...-ही...’ चिल्लाता हुआ उसे खदेड़ता है। यह थी किशोर जैकब ब्लीवेंस की महत्त्वाकांक्षा। वह चाहता था कि रविवार-स्कूल की किताब में उसकी नेकी की भी कहानी हो। उसे यह सोचकर परेशानी होती कि छोटे नेक लड़के हमेशा मर जाते थे। वह जीना चाहता था। लिहाजा रविवार-स्कूल की किताब में होने में यही खराब बात थी। वह जान गया था कि अच्छा होना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। वह जान गया था कि रविवार-स्कूल की पुस्तक में होना टी.बी. की बीमारी से भी ज्यादा जानलेवा है। वह जान गया था कि उनमें से कोई भी अधिक नहीं जी सका। वह जान गया था कि अगर उसकी कहानी रविवार-स्कूल की किताब में छपे भी तो वह उसे देखने के लिए जिंदा नहीं होगा। अगर ऐसा हुआ तो वह कहानी लोकप्रिय नहीं हो सकती, क्योंकि उसके आखिरी अध्याय में उसकी अंतिम क्रिया का चित्र नहीं होगा। अगर उसमें उसके अंतिम समय में समाज को संदेश देने का जिक्र न हुआ तो वह कहानी अधूरी ही होगी। इसलिए उसने इरादा कर लिया कि जहाँ तक हो सके, नेकनीयती की जिंदगी गुजारे; जब तक हो सके, जीवित रहे और अपने अंतिम समय का भाषण तैयार रखे।

लेकिन पता नहीं क्यों, इस नेक छोटे लड़के के साथ कुछ भी अच्छा नहीं होता था। उसके साथ ऐसा कुछ भी अच्छा नहीं होता था, जैसा कि किताबोंवाले नेक छोटे लड़कों के साथ होता था। वह हमेशा मजे में रहते और टाँगें बुरे लड़कों की टूटतीं। लेकिन उसके मामले में कहीं-न-कहीं कोई पेंच जरूर ढीला था, क्योंकि उसके साथ तो सबकुछ उलटा ही होता था। जब उसने जिम ब्लेक को सेब चुराते देखा और पेड़ के नीचे उसे छोटे बुरे लड़के की कहानी पढ़कर सुनाने गया, जो पड़ोसी के सेब के पेड़ से गिर गया था और उसकी बाँह टूट गई थी। तब जिम भी पेड़ से गिर पड़ा। लेकिन वह उसपर गिरा और जैकब की बाँह टूटी। जिम को जरा भी चोट नहीं आई। जैकब की समझ में नहीं आया कि आखिर माजरा क्या है। किताब में तो ऐसा कुछ न था।

एक बार कुछ बुरे लड़कों ने एक अंधे व्यक्ति को कीचड़ में धकेल दिया। जैकब उसकी सहायता करने और दुआएँ लेने दौड़ पड़ा। अंधे ने उसे दुआएँ देने के बजाय अपनी छड़ी उसके सिर पर दे मारी। अंधे ने कहा कि ‘पहले तू मुझे धक्का देता है और फिर मदद करने का नाटक करता है। अगली बार मौका मिला तो तेरा सिर फोड़ दूँगा।’ जैकब ने अपनी किताबों में खोजा, लेकिन किसी में भी ऐसा परिणाम न था।

जैकब चाहता था कि कोई लँगड़ा, भूखा, बेसहारा कुत्ता मिले तो उसे घर लाकर खिलाए-पिलाए और प्यार करके उसकी अनश्वर कृतज्ञता हासिल करे। एक दिन ऐसा ही कुत्ता पाकर वह बहुत खुश हुआ। वह कुत्ते को घर ले आया, उसे खिलाया-पिलाया। लेकिन जब वह उसके सिर पर प्यार का हाथ फेरने लगा तो कुत्ता भड़क गया। वह जैकब पर टूट पड़ा। सामने के छोड़ उसके सारे कपड़े फाड़ डाले। बेचारे लड़के का अच्छा-खासा तमाशा बन गया। उसने ग्रंथों में खोजा, पर समझ नहीं पाया कि ऐसा क्यों हुआ। यह उसी नस्ल का कुत्ता था, जो किताब में था। लेकिन उसका व्यवहार कितना अलग था! यह लड़का जब भी कुछ करता, किसी-न-किसी मुसीबत में फँस जाता। जिन कारनामों को करके किताब के लड़के पुरस्कृत होते थे, वही काम जैकब के लिए सबसे अधिक हानिकारक सिद्ध होते।

एक बार जब वह अपने रविवार-स्कूल के लिए जा रहा था, कुछ बुरे लड़कों पर उसकी नजर पड़ी। वे लड़के नौका विहार की मौज-मस्ती के लिए एक नाव में सवार थे। वह हैरान-परेशान हो गया। अपने अध्ययन के कारण वह जानता था कि जो लड़के रविवार के दिन नौका विहार को जाते हैं, वे अवश्य डूबते हैं। वह लकड़ी के लट्ठों के बेड़े पर सवार होकर उनकी तरफ बढ़ा। लेकिन उसके चढ़ते ही एक लट्ठा पलटा और वह नदी में जा गिरा। एक आदमी ने जल्दी ही उसे निकाला।

डॉक्टर ने उसके पेट से पानी निकाला। वह डॉक्टर की डाँट खाकर भाग खड़ा हुआ। सर्दी ने जकड़ लिया और वह नौ सप्ताह तक बिस्तर पर पड़ा रहा। इसमें सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह थी कि नाववाले बुरे लड़कों ने दिन भर खूब मस्ती की और सही-सलामत अपने घरों को लौटे। जैकब ब्लीवेंस बोला कि किताबों में तो ऐसा कुछ नहीं था। उसकी तो बोलती बंद हो गई।

ठीक होने तक वह कुछ निरुत्साहित हो चुका था। लेकिन फिर भी उसने प्रयत्न जारी रखने का इरादा किया। उसे पता था कि उसके अब तक के अनुभव पुस्तक में स्थान पाने के लिए पर्याप्त न थे। लेकिन वह अभी पुस्तक के अच्छे बच्चों की उम्र तक नहीं पहुँचा था। वह सोचता था कि अगर उसे भी उतना समय मिल जाता है तो वह कोई कीर्तिमान बनाने में सफल रहेगा। अगर सबकुछ विफल ही रहा तो भी उसने अपनी मृत्यु के समय का भाषण तो तैयार कर ही रखा था।

पुस्तकों में देखकर वह इस निर्णय पर पहुँचा कि अब जहाज में मेरा केबिन ब्वाय बनने का समय आ गया है। उसने एक जलपोत के कप्तान से मुलाकात करके अपना प्रार्थना-पत्र दिया। कप्तान की सिफारिश के बारे में पूछने पर उसने गर्व से एक पुस्तिका निकालकर उसकी तरफ बढ़ा दी। उसपर लिखा हुआ था, ‘जैकब ब्लीवेंस को, उसके स्नेही अध्यापक की ओर से।’ लेकिन कप्तान एक रुखा व बेहूदा आदमी था। वह बोला, ‘‘ओह, यह सब बकवास है! इससे यह कहाँ साबित होता था कि तुम्हें बरतन धोने आते हैं या कीचड़ भरा डोल उठाना आता है। मुझे ऐसे लड़के की जरूरत नहीं।’’

यह जैकब के जीवन में होनेवाली सबसे अनहोनी घटना थी। किसी शिक्षक की पुस्तिका पर लिखी अनुशंसा तो जलपोत के कप्तानों का दिल पिघलाने के लिए काफी थी। ऐसी कोई किताब न थी, जिसमें उसने यह न पढ़ा हो। उसे अपनी समझ-बूझ पर ही विश्वास नहीं हो रहा था।

यह लड़का हमेशा ही परेशानियों में घिरा रहता था। उसके पास जो भी मान्य ग्रंथ थे, उनके अनुरूप कुछ भी नहीं हो रहा था। आखिरकार एक दिन जब वह बुरे लड़कों को नसीहत देने के लिए खोज रहा था, तभी उसे लोहे की पुरानी भट्ठी के पास ऐसे बहुत से लड़के दिखाई दिए। वे 14 या 15 कुत्तों के साथ भद्दा मजाक करने की तैयारी में थे। उन्होंने उन कुत्तों को एक कतार की शक्ल में आपस में बाँध दिया था और अब उनकी दुमों में खाली कनस्तर बाँध रहे थे। जैकब का दिल पसीज उठा। वह उनमें से एक कनस्तर पर बैठ गया; क्योंकि जब कर्तव्य सामने हो तो वह गंदे कनस्तर पर लगी चिकनाई की भी परवाह नहीं करता था। उसने सबसे आगेवाले कुत्ते का पट्टा पकड़ा और उन बदमाशों की टोली की तरफ एक झिड़कनेवाली नजर डाली। लेकिन तभी गुस्से से आगबबूला मुखिया मैकवाल्टर न जाने कहाँ से प्रकट हो गया। सब बुरे लड़के सिर पर पाँव रखकर भाग गए। लेकिन निरपराध जैकब वहाँ डटा रहा। उसने अपना रविवारवाला भाषण देना आरंभ किया, जो हमेशा 'ओह, सर' से शुरू होता है। यह उस तथ्य के विपरीत था कि कोई भी अच्छा या बुरा लड़का अपनी बात 'ओह सर' से शुरू नहीं करता। लेकिन मुखिया ने बाकी बात सुनने का इंतजार नहीं किया। उसने जैकब ब्लीवेंस को कान से पकड़ा और उसके पिछवाड़े ऐसी जोरदार चपत लगाई कि वह भला नेक लड़का हवा में उड़ता हुआ सूरज की तरफ जाता दिखाई दिया। 15 कुत्तों की वह टोली उसके पीछे पतंग की डोर की तरह दौड़ती हुई चल रही थी। उसके बाद धरती पर न तो लोहे की पुरानी भट्ठी नजर आ रही थी, न ही वह मुखिया। जहाँ तक जैकब का सवाल था, उसे सारी परेशानियाँ झेलने के बाद अपना अंतिम भाषण देने का अवसर न मिला। वह तो पक्षियों तक जा पहुँचा था। हालाँकि उसका अधिकांश भाग पास के गाँव में नीचे एक पेड़ की फुनगी पर आ गिरा था; लेकिन उसके बाकी शरीर के चार हिस्से समान भागों में विभक्त होकर चार कस्बों में जा गिरे थे। अत: उनको यह जानने के लिए पाँच जाँच-दल बनाने पड़े कि वह जिंदा था या मर चुका था? आखिर यह हुआ कैसे? क्योंकि किसी लड़के को कभी इस तरह बिखरा हुआ नहीं देखा गया था।

इस तरह उस अच्छे व नेक लड़के का अंत हुआ, जिसने अपनी तरफ से भरसक प्रयास किया; लेकिन कभी भी परिणाम धर्म पुस्तिकाओं के अनुरूप न निकला। सिवाय उसके, ऐसे कर्म करनेवाले सभी दूसरे लड़के फले-फूले थे। शायद इस मामले को कोई कभी समझ नहीं पाएगा।

(अनुवाद : सुशील कपूर)