अवशेष (कहानी) : गाय दी मोपासां

The Relics (French Story) : Guy de Maupassant

उन्होंने उसका अंतिम संस्कार सार्वजनिक रूप से बड़े शानदार ढंग से किया था, जैसे वे उन विजेता सिपाहियों का करते हैं , जिन्होंने अपने देश के गौरवशाली इतिहास में कुछ चमचमाते पन्ने जोड़े होते हैं , जिन्होंने बुझे हुए दिलों में हिम्मत जगाई होती है और जिन्होंने दूसरे राष्ट्रों पर अपने देश के ध्वज की अभिमानी छाया इस तरह डाली होती है , जैसे एक जुआ, जिसके नीचे वे लोग जोते जाते हैं , जिन्हें फिर कभी एक देश या स्वतंत्रता नसीब नहीं होनी होती ।

एक पूरी चमकदार खामोश रात के दौरान , जब गिरते तारों को देखकर लोग अज्ञात देहांतरण और आत्माओं के पुनर्जन्म के बारे में सोच रहे थे, तब कवच पहने बुतों की तरह अपने घोड़ों पर अचल बैठे सैनिकों ने मृतक के ताबूत की निगरानी की थी , जो पुष्प-चक्रों से ढका वीरों की ड्योढ़ी के नीचे रखा था, जिसके हरेक पत्थर पर एक वीर पुरुष और एक लड़ाई का नाम खुदा होता है ।

पूरा शहर शोक में डूबा था , मानो उसने उसे खो दिया था , जिसने उनके दिल और प्यार पर कब्जा कर रखा था । भीड़ शां जे ली जे के छायादार मार्ग पर खामोशी से और सोच में डूबी आगे बढ़ रही थी । लोग उन यादगार तमगों और आम तसवीरों के लिए झगड़ से रहे थे, जो फेरी वाले बेच रहे थे या उन स्टैंडों पर चढ़े हुए थे, जो गली के छोकरों ने यहाँ - वहाँ खड़े कर रखे थे, जिन पर से वे भीड़ के सिरों के ऊपर से देख सकते थे।

प्लेस द ला कंकोर्ड में कुछ गंभीरता थी , जहाँ सिर से पाँव तक क्रेप से ढके बुतों का घेरा था , जो दूर से रोती और प्रार्थना करती विधवाओं जैसे दिखाई देते थे।

जां रामेल की अंतिम इच्छा के अनुसार , उसे विशिष्ट लोगों के समाधि -स्थल तक अभागे कंगालों की मुरदा- गाड़ी में ले जाया गया था , जो उन्हें आम कब तक किसी मरियल और थके- हारे घोड़े की टेढ़ी -मेढ़ी दुल्की चाल से वहाँ तक ले जाती है ।

उस भयानक , काली गाड़ी में कोई सजावटी वस्त्र , पंख या फूल नहीं लगे थे और उसके पीछे-पीछे मिनिस्टर और डिप्टी थे, कई सैनिक टुकड़ियाँ और उनके बैंड थे, उनके हेलमेट और तलवारों के ऊपर उनके झंडे लहरा रहे थे, राष्ट्रीय स्कूलों के बच्चे थे, प्रांतों से आए हुए प्रतिनिधि थे और कुरती पहने असंख्य पुरुषों-स्त्रियों व हर दिशा से आए दुकानदारों की भीड़ थी , ये सब बड़ा नाटकीय प्रभाव पैदा कर रहे थे। समाधि - स्थल की सीड़ियों पर , ड्योढ़ी के विशाल खंभों के नीचे खड़े वक्ता लोग एक के बाद एक रामेल का महिमा -मंडन करते हुए अपनी आवाज को शोर से ऊपर रखने की कोशिश करते रहे , अपने शानदार समय पर जोर देते रहे और बड़े लचर तरीके से अपनी बात खत्म की ; इससे लोग जम्हाई लेने लगे और धीरे- धीरे भीड़ छंट गई । लोगों ने याद किया कि वह कौन आदमी था , जिसकी मृत्यु के बाद उसे इतना सम्मान दिया जा रहा था और जिसे ऐसी अंतिम विदाई दी जा रही थी — वह था जां रामेल ।

यह मधुर शब्दों वाला नाम याद दिलाता है एक ऐसे आदमी की , जिसके शेर जैसे चेहरे पर सफेद बाल बेतरतीब अयाल की तरह पीछे को पड़े रहते थे, नाक - नक्श ऐसे जैसे छैनी से तराशे गए हों , लेकिन जो इतने सशक्त थे और जिनमें इतनी सजीवता झलकती थी कि लोग उनका गँवारूपन और भद्दापन भूल जाते थे; घनी भौंहों के नीचे काली आँखें थीं, जो बिजली की तरह फैलती और चमकती थीं, कभी उन पर जैसे आँसुओं का परदा सा पड़ जाता था और कभी सौम्य कोमलता भर जाती थी; आवाज ऐसी, जो कभी ऐसे गरजती थी कि सुनने वालों में दहशत पैदा कर दे और तेज पाइपों से निकलते घने धुएँ से भरे कामगारों के किसी क्लब के हॉल को उससे प्रभावित हुए बिना भर दे और कभी उस पुरोहित की आवाज की तरह कोमल, प्रोत्साहित , प्रेरित करने वाली और स्निग्ध होती थी , जो स्वर्ग भेजने का वादा करता है या हमारे पापों से मुक्ति दिलवाता है ।

यह उसका सौभाग्य रहा था कि उसे सताया गया, लोगों की नजरों में वह उस मिथ्या सूत्र की साक्षात् मूर्ति रहा , जो सभी सार्वजनिक भवनों में दिखता है, जो स्वर्णिम युग के उन तीन शब्दों, स्वतंत्रता , बंधुत्व और समानता से बना है और जो उन लोगों के होंठों पर कुछ-कुछ दुख भरी मुसकान ला देता है — जो सोचते हैं , जो कष्ट उठाते हैं और जो शासन करते हैं । भाग्य उस पर मेहरबान रहा था , भाग्य ने उसे पाला था , कंधे पकड़कर आगे बढ़ाया था और जब वह अन्य तमाम मूर्तियों की तरह ही गिर गया था तो उसे फिर से उसके आधार -स्तंभ पर स्थापित कर दिया था ।

वह बोलता था लिखता था और वह यह करता था हमेशा उन तमाम दुखियों तक सुसमाचार पहुँचाने के लिए चाहे वे समाज के किसी भी तबके के हों, उन लोगों का हाथ थामने के लिए और उनका बचाव करने के लिए, अन्याय और सख्ती की उस किताब संहिता के अपमानजनक वचनों पर प्रहार करने के लिए, सच को साहस के साथ बोलने के लिए, भले ही यह उसके दुश्मनों पर कोड़े की तरह पड़े ।

उसकी किताबें इंजील की तरह थीं , जिन्हें अध्याय - दर- अध्याय पढ़ा जाता है और अत्यंत निराश व दुःखी दिलवालों को गरमाहट देती थीं ; उनमें से हरेक को तसल्ली, उम्मीद देती थीं और सपने दिखाती थीं ।

उसने जीवनपर्यंत बहुत सादगी का जीवन जिया था । लगता था उसका कोई खर्चा नहीं था , उसने केवल एक बूढ़ा नौकर रखा हुआ था, जो उससे बास्क बोली में बात करता था ।

वह जीवन - भर औरतों के फंदों- फरेबों से डरता रहा और प्यार के बारे में यह सोचता रहा कि यह केवल अमीरों और काहिलों के ऐश के लिए होता है और दिमाग को अस्थिर कर देता है तथा खयालों की तेजी में बाधा डालता है । जिंदगी के आखिरी दौर में , जब उसके बाल सफेद हो गए और माथे पर झुर्रियाँ पड़ गई, तब यही शीलवान दार्शनिक एक मामूली आदमी की तरह खुद ही पकड़ में आ गया ।

जैसे एकाकी संन्यासियों के दर्शन में होता है, वह कोई विचित्र रानी या जादूगरनी नहीं थी , जिसकी आँखों में सितारे और आवाज में जादू होता है, न ही कोई कुलटा औरत थी, जो देदीप्यमान और अपनी मीठी सुगंध वाली त्वचा के गुलाबी- सफेद पुष्पगुच्छ को रोशन करने के लिए उस प्रतीकात्मक दीपक को पकड़ती है, न ही वह भोग विलास के सुखों की तलाश करती कोई औरत थी , जिसके कामुक आग्रहों को अपने वजूद की गहराइयों तक उत्तेजित हुए बिना सुनना किसी भी मर्द के लिए असंभव होता है । वह किसी परी - कथा की राजकुमारी भी नहीं थी

और ऐसी कोई कमजोर सुंदरी भी नहीं थी, जो बूढ़े मरदों के जोश को फिर से जगाकर उन्हें सही रास्ते से भटकाने में दक्ष हो । वह अपने आदर्शों से चिढ़ी कोई औरत भी नहीं थी , जिसे सारे - के - सारे लोग एक से लगते हैं और जो सपने देखती है उन पुरुषों में से किसी के दिल को जगाने के, जो कष्ट उठाते हैं , जो इनसानी बदहाली को इतना झेलते हैं , जो एक अलौकिक प्रकाश के चक्र से घिरे दिखाई देते हैं और जो सत्य , सुंदर और शिव के अलावा और कुछ नहीं जानते ।

वह तो बस बीस बरस की एक लड़की थी , जो किसी जंगली फूल सी प्यारी थी, जिसकी हँसी में खनखनाहट थी, जिसके दाँत धवल थे और मन ऐसा निर्मल था जैसे एक नया आईना , जिसमें अभी तक किसी का अक्स नहीं पड़ा था ।

उस समय वह अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के जुर्म में निर्वासन झेल रहा था और एक इतालवी गाँव में रह रहा था । वह गाँव शाहबलूत के पेड़ों में छिपा था , एक इतनी सँकरी और पारदर्शी झील के किनारे बसा था कि कोई भी इस झील को किसी अमीर की मछलियों का तालाब या किसी बड़े उद्यान में पड़ा एक पन्ना समझने की भूल कर सकता था । इस गाँव में लाल खपरैल वाले करीब बीस मकान थे; चकमक पत्थर से खड़ी ढलानों पर बने रास्ते लताओं के बीच पहाडियों के पार्श्व तक जाते थे, जहाँ कृपा और भलाई से भरी माता मरियम उन पवित्र स्थलों से अपना अनुग्रह बिखेरती थी , जिनमें धूल अँटे गोटे के फूलों के गुच्छे रहते थे ।

अपनी जिंदगी में पहली बार रामेल ने यह माना कि कुछ होंठ थे, जो दूसरों के मुकाबले अधिक वांछनीय, अधिक मुसकराते हुए थे। ऐसे केश थे, जिनमें उँगलियाँ फिराना रेशम की तरह ही रोचक होता होगा और जिन्हें चूमना भी सचमुच आनंददायक होता होगा, ऐसी आँखें थीं , जिनमें अनंत दुलार था । वह भटकता हुआ सीधे उस ग्राम्य कविता में चला गया, जिसने आखिर में उसे सच्चे सुख के दर्शन कराए और उस लड़की ने उसे एक बच्चा, एक लड़का दिया ।

यही अकेला एक राज था , जिसे रामेल ने साथ छिपाया था और जिसके बारे में उसके दो - तीन पुराने दोस्तों के अलावा किसी को भी जानकारी नहीं थी । जहाँ वह अपने ऊपर दो पैसे खर्च करने में भी हिचकिचाता था और इंस्टीट्यूट व चैंबर ऑफ डिप्टीज जैसी जगहों पर जाने के लिए बस ( ऑम्नीबस ) के बाहर सफर करता था , वहीं पेपा किसी अमीर की तरह सुख की जिंदगी जीती थी, जिसे कल की चिंता नहीं थी । उसने अपने बेटे को एक नन्हे राजकुमार की तरह पाला, उसके लिए एक शिक्षक और तीन नौकर रखे, जिनका काम बस उसकी देखभाल करना था ।

रामेल जो कुछ भी कमाता, उसकी प्रियतमा के हाथों में जाता था । जब उसे लगा कि उसका आखिरी समय नजदीक है और उसके बचने की कोई उम्मीद नहीं है तो उसने अपने पूरे होश -हवास में , अपनी बुझी- बुझी आँखों में आनंद के साथ पेपा को अपना नाम दे दिया और अपने तमाम दोस्तों के सामने उसे अपनी जायज विधवा बना दिया । पेपा को विरासत में अपने पूर्व प्रेमी का छोड़ा सबकुछ मिला, उसकी किताबों की रॉयल्टी और उसकी पेंशन की सारी रकम मिली, जो सरकार उसे देती रही ।

नन्हा रामेल इस संपूर्ण वैभव के बीच अद्भुत तरीके से फूला-फला। उसने अपने मन और अपनी सनक को कोई लगाम नहीं लगाई और उसकी माँ में उसे थोड़ा सा भी फटकारने की हिम्मत कभी नहीं हुई, जां रामेल जैसा उसमें कुछ भी नहीं था ।

वह शरारतों का पुतला, लड़कियों जैसा एक बेहतरीन छैला और अपनी उम्र के हिसाब से कुछ ज्यादा ही दुष्ट था । वह फ्लोरेंस के दरबार में पाए जाने वाले उन चाकर लौंडों की याद दिलाता था , जो हमें डेकामेरन कथा संग्रह में मिलते हैं और जो कुलीन महिलाओं के निकम्मे हाथों के खिलौने होते हैं ।

वह बहुत अज्ञानी था , बहुत भाव में रहता था और बड़ी- बड़ी बाजियाँ लगाकर अपने बाप की उम्र के पुराने जुआरियों के साथ ताश खेलता था । जब यह उस व्यक्ति की याद का मखौल उड़ाता था , जिसे वह बूढ़ा आदमी कहता था और अपनी माँ को इसलिए सताता था, क्योंकि वह जां रामेल की पूजा और सराहना करती थी तो यह सुनकर बहुत दुःख होता था । उसकी माँ तो जां रामेल के बारे में इस तरह बात करती थी जैसे वह मरकर अर्धदेवता बन गया था , जैसा कि रोमन देवोत्पत्ति शास्त्र में होता है ।

वह तो उस पवित्र स्थल यानी बैठक की पूरी व्यवस्था ही बदल देना चाहता था , जहाँ पेपा अपने पति की कुछ पांडुलिपियाँ , उसके बारंबार इस्तेमाल किए गए फर्नीचर , उसके उस पलंग को , जिस पर उसकी मौत हुई थी , उसकी कलमों को , उसके कपड़ों और उसके हथियारों को रखती थी । एक शाम जब उसकी समझ में यह नहीं आया कि स्थूलकाय टॉइनेट दानिशेफ की ओर से गृह प्रवेश के मौके पर दी जाने वाली मुखौटा पार्टी में वह ऐसी क्या पोशाक पहने जो बाकी सबसे मौलिक हो , तो अपनी माँ से एक भी शब्द कहे बिना , उसने शिक्षा-विद्वानों की वह पोशाक , तलवार , और कनटोप उतार लिये, जो जां रामेल के हुआ करते थे और उन्हें इस तरह पहन लिया जैसे प्रायश्चित्त मंगलवार का छद्म वेश हो ।

वह दुबला- पतला और पतली-पतली बाँहों तथा टाँगों वाला तो था ही , वे चौड़े कपड़े उस पर लटक गए । वह ऐसा लग रहा था कि देखकर हँसी आए; उसके कोट का कढ़ा हुआ घेर कालीन पर झाड़ लगा रहा था और उसकी तलवार उसकी एडियों से टकरा रही थी । कुहनियाँ और कॉलर बहुत पहनने की वजह से चमकीले और चीकट हो रहे थे, क्योंकि मालिक ने इन्हें तब तक पहना था , जब तक यह चीथड़ा नहीं बन गया था, ताकि दूसरा न खरीदना पड़े, इसे बदलने के बारे में तो उसने कभी नहीं सोचा था ।

वह जबरदस्त कामयाब रहा । गोरी लीलीन ऐबलेट को तो उसकी मुद्राओं पर और उसके भेष पर इतनी हँसी आई कि उस रात उसने उसके लिए प्रिंस नूरूद्दीन को भी छोड़ दिया , हालाँकि प्रिंस ने उसके मकान का , उसके घोड़ों का और उसकी बाकी हर चीज का भी पैसा दिया था और उसे फालतू चीजों और जेबखर्च के लिए हर महीने छह हजार फ्रैंक देता था ।

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