किसान (उपन्यास) : ओनोरे द बाल्ज़ाक
The Peasantry (French Novel in Hindi) : Honore de Balzac
अध्याय तीन : मधुशाला
बूरे द्वारा निर्मित ब्लांगी का प्रवेशद्वार खुरदुरे पत्थर के दो चौड़े भित्तिस्तम्भों से बना था । दोनों स्तम्भों के ऊपर अपने पिछले पैरों पर बैठे कुत्ते की मूर्ति लगी थी जिसने अपने अगले पंजों में कुलचिन्ह थाम रखा था। पास में ही स्थित गुमाश्ते के छोटे से मकान के कारण यहाँ रक्षक के लिए कोठरियाँ बनाने की जरूरत नहीं समझी गयी थी। दोनों भित्तिस्तम्भों के बीच लगा लोहे का भव्य फाटक एक छोटे से पक्के रास्ते पर खुलता था जो कुछ दूर जाकर कोंशे, सेर्नो, ब्लांगी और सुलांश को विल-ओ-फाये से जोड़ने वाली कच्ची सड़क में मिल जाता था (पहले इस सड़क की देखभाल लेस ऐग्यू और सुलांश की जागीरें करती थीं) । पूरी सड़क के किनारे फूलदार झाड़ियों और गुलाब, हनी-सकल और दूसरी लताओं से ढंके मकानों की कतारें होने से ऊपर से देखने पर यह एक बहुत बड़ी फूलमाला जैसी लगती थी ।
वहीं, घाटी की ओर जाने वाली दीवार के किनारे सड़ी हुई लकड़ी के खम्भे, पुराना चरखा और ऊपर से चिमटेनुमा खूँटे लगे हुए हैं - यही कुल मिलाकर गाँव के रस्सी -निर्माता का कारखाना है।
मध्याह्न के थोड़ी ही देर बाद, जब ब्लोंदे मेज पर एबे ब्रोसेत के सामने बैठा काउण्टेस की मीठी झिड़कियाँ सुन रहा था, पेर फूर्शों और मूश अपने इस प्रतिष्ठान पर पहुँचे। इस अनुकूल स्थान से पेर फूर्शो रस्सी बनाने के बहाने लेस ऐग्यू पर नजर रख सकता था और वहाँ आने-जाने वाले हर व्यक्ति को देख सकता था। उसकी पैनी निगाह से कुछ नहीं छुपता था; खिड़कियों की झिलमिली का खुलना-बन्द होना, एकान्त में टहलते जोड़े, छोटी से छोटी घटनाओं की वह बूढ़ा जासूसी करता था। उसने पिछले तीन साल में ही यह कारोबार शुरू किया था - यह एक अदना सा इत्तफाक था जिसकी ओर न तो लेस ऐग्यू के नये मालिकों का ध्यान गया था, न नौकरों का और न ही रक्षकों का।
“तू घूमकर एवोन के फाटक से गढ़ी में जा; तब तक मैं अपने शिकार को छुपाता हूँ,” पेर फूर्शों ने अपने शार्गिद से कहा, “और जब तू अपनी बक-बक से सारे मामले की पोल-पट्टी खोल चुका होगा, तो पक्की बात है कि वे मुझे बुलाने के लिए किसी को ग्रां - इवेर में भेजेंगे। मैं थोड़ा गला तर करने के लिए वहीं जा रहा हूँ, क्योंकि इस तरह पानी में उछल-कूद करने से आदमी को प्यास तो लग ही आती है। जैसा मैंने बताया है, अगर तूने वैसा ही किया, तो तू उनसे बढ़िया नाश्ता ऐंठ सकता है । काउण्टेस से मिलने की कोशिश करना, और मेरी खूब बुराई करना; तब उसके दिमाग में नैतिकता पर और न जाने किस-किस चीज पर भाषण पिलाने का फितूर आयेगा! देखना, उससे भी मैं कैसे अपने लिए बढ़िया दारू खींच निकालूँगा।”
इस आखिरी निर्देश की कोई जरूरत नहीं थी, यह मूश की आँखों से झाँकते काइयाँपन से साफ जाहिर था। उसे चलता करने के बाद बूढ़ा अपनी काँख में ऊदबिलाव को दबाये हुए कच्ची सड़क पर आँख से ओझल हो गया ।
फाटक और गाँव के आधे रास्ते में उस तरह का एक मकान था जो फ्रांस के उन्हीं हिस्सों में दिखायी देते हैं जहाँ पत्थर मुश्किल से मिलता है। इधर-उधर से बटोरे गये ईंटों के टुकड़ों और मिट्टी के गारे में हीरों की तरह जड़े छोटे-छोटे गोल पत्थरों से बनी दीवारें काफी ठोस थीं, हालाँकि कई जगहों पर वे झरने लगी थीं। छत मोटी टहनियों की कड़ियों पर बिछे सरपत और फूस से बनी थी, जबकि फूहड़ से पल्ले और टूटा दरवाजा - बल्कि उस कुटिया की हर चीज किस्मत से मिली हुई या इधर-उधर से माँगकर जुटायी हुई थी।
अपनी रिहाइश के बारे में किसान भी वैसी सहजवृत्ति का धनी होता है जैसी किसी जानवर में अपनी माँद या घोंसले को लेकर होती है, और यह सहजवृत्ति इस कुटिया की हर व्यवस्था में झलक रही थी। पहले तो, दरवाजे और खिड़की का रुख उत्तर की ओर था । अंगूर के एक बगीचे के थोड़े उभरे हुए पथरीले हिस्से पर बना यह मकान सेहत के नजरिये से बहुत अच्छा था। उस तक पहुँचने के लिए तीन सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती थीं जिन्हें खूँटों पर पटरे ठोंककर और खाली जगह में टूटे पत्थर और बजरी भरकर बड़े जतन से बनाया गया था ताकि पानी तेजी से बहकर निकल जाये। चूँकि बर्गण्डी में उत्तर की ओर से बारिश शायद ही कभी आती है, इसलिए बुनियाद कमजोर ही सही, पर इसके नमी से सड़ने का कोई खतरा नहीं था। सीढ़ियों के नीचे, सड़क के किनारे-किनारे अनगढ़ लकड़ी के खम्भों की बाड़ थी जो हाथॉर्न और जंगली गुलाब की झाड़ियों से ढँकी हुई थी। कुटिया और सड़क के बीच की जगह में एक कुंज था जिसमें पड़ी कुछ बेडौल मेजें और लकड़ी की बेंचें आते-जाते लोगों को ठहरकर सुस्ताने के लिए आमंत्रित करती थीं। घर के किनारे की ऊँची जगह पर गुलाब और गेंदे और वॉयलेट और तमाम दूसरे फूल खिले थे जिनपर कोई खर्च नहीं आता था । चमेली और हनी-सकल की लतायें छत पर फैल रही थीं जो ज्यादा पुरानी नहीं होने के बावजूद काई से ढँकी थी।
मकान के दाहिनी ओर गृहस्वामी ने दो गायों के लिए तबेला बना रखा था। पुराने पटरे जोड़-जाड़कर खड़े किये गये इस सायबान के सामने धँसी हुई जमीन का टुकड़ा बाड़े का काम करता था जिसके एक कोने में गोबर की खाद का बड़ा सा ढेर पड़ा था। मकान और कुंज के दूसरी ओर पेड़ों के तनों पर टिके फूस के छप्पर के नीचे किसानी के काम आने वाले सामान- अंगूर बटोरने के टोकरे, खाली पीपे और औजार पड़े हुए थे । मिट्टी से बनी बड़ी अंगीठी के चारों ओर लकड़ी के कुन्दे एक-दूसरे पर जमाकर रखे हुए थे । किसानों के सभी घरों की तरह अंगीठी का मुंह रसोई में चिमनी के नीचे खुलता था ।
घर से लगी हुई करीब एक एकड़ जमीन थी। सदाबहार की झाड़ी से घिरी हुई इस जमीन में अंगूर की बेलें लगी हुई थीं जिनकी ऐसी देखभाल हुई थी जो सिर्फ किसान ही कर सकते हैं - यानी, उनमें अच्छी तरह खाद दी गयी थी और हर बेल की जड़ के पास थाला बना हुआ था जिसके चलते दस मील के घेरे में किसी भी बड़े भूस्वामी की बेलों से बहुत पहले उनमें फल आ जाते थे । इस घेरे के भीतर बादाम, आडू और खूबानी के कुछ पेड़ों की नाजुक फुनगियाँ कहीं-कहीं दिखायी देती थीं। बेलों की कतारों के बीच में आलू और सेम बोयी हुई थी। इस सबके अलावा बाड़े के आगे, गाँव की तरफ नम नीची जमीन का एक टुकड़ा था जिस पर बन्दगोभी और प्याज (कमेरे वर्गों की प्रिय सब्जियाँ) की अच्छी पैदावार होती थी। जब सब्जियाँ नहीं होती थीं तो लकड़ी का फाटक खोलकर गायों को अन्दर हाँक दिया जाता था जो अपने पैरों से नम मिट्टी खोद डालती थीं और उसे गोबर से ढँक देती थीं।
घर की निचली मंजिल पर दो कमरे थे और इसका दरवाजा अंगूर की बगिया की ओर खुलता था। इस ओर से दीवार के सहारे फूस की छत वाला जीना दुछत्ती में जाता था जहाँ रोशनी के लिए बस एक गोल रोशनदान था । इस बेडौल जीने के नीचे बर्गण्डी ईंट का बना तहखाना था जिसमें शराब से भरे लकड़ी के कई पीपे रखे थे ।
हालाँकि किसानों की रसोई में दो ही बर्तन होते हैं, एक फ्राइंगपैन और एक लोहे की बटलोई, जिनसे वे अपना हर तरह का खाना पका लेते हैं, लेकिन इस नियम के अपवाद के रूप में दो बहुत बड़े सॉसपैन इस कुटिया में देखे जा सकते थे; एक बड़े चूल्हे के पास टँगा था और एक छोटी अँगीठी के ऊपर रखा था। लेकिन विलासिता के इस चिन्ह के बावजूद बाकी साज-सामान घर की बाहरी शक्ल-सूरत के मुताबिक ही था । पानी मिट्टी के कूड़े में रखा था, चमचे लकड़ी या जस्ते के थे, बाहर से लाल और भीतर से सफेद तामचीनी की तश्तरियाँ ऊबड़-खाबड़ थीं और कई की जस्ते से मरम्मत भी की गयी थी; भारी सी मेज और कुर्सियाँ चीड़ की लकड़ी की थीं और फर्श पीट-पीटकर सख्त की गयी मिट्टी का था। हर पाँचवे साल दीवारों के साथ-साथ छत की पतली कड़ियों पर भी सफेदी पोती जाती थी जिनसे प्याज के गट्ठर, नमक लगाकर सुखाया हुआ सुअर का मांस, चर्बी की मोमबत्तियों के बण्डल और बीजों के थैले लटक रहे थे। रोटी रखने के बक्से के पास अखरोट की लकड़ी की पुरानी-सी आलमारी खड़ी थी जिसमें घर की दो-चार चादरें, एक जोड़ी अतिरिक्त कपड़े और पूरे परिवार की त्योहारों में पहने जाने वाली पोशाकें रखी जाती थीं।
चिमनी की जगह के ऊपर शिकार चोरों वाली पुरानी बन्दूक की चमक दिख रही थी, हालाँकि उसके कोई पाँच फ्रैंक भी नहीं चुकाता - कुँदे की लकड़ी झुलसी हुई थी और नाल देखकर ही लगता था कि उसे आजतक कभी साफ नहीं किया गया। कोई बाहरी आदमी उसे देखकर सोच सकता था कि जिस झोंपड़ी में ताले के नाम पर बस एक साँकल हो और लकड़ी के दो डण्डों से बना बाहरी फाटक कभी बन्द ही न होता हो, उसकी सुरक्षा के लिए इससे बेहतर हथियार की जरूरत भी क्या थी । वह सोच सकता था कि आखिर इसका क्या इस्तेमाल होता था । असलियत यह थी कि कुन्दे की लकड़ी भले ही मामूली किस्म की हो पर नाल बड़े ध्यान से चुनी गयी थी और पहले किसी महँगी बन्दूक का हिस्सा रह चुकी थी जो शायद जंगलात के रक्षक को दी गयी थी। इसके अलावा हथियार का मालिक कभी अपना निशाना नहीं चूकता था। उसके और उसकी बन्दूक के बीच वैसी ही अन्तरंग जान-पहचान थी जैसी कारीगर और उसके औजार के बीच होती है। निशाना साधने के लिए नाल को बाल बराबर भी ऊपर-नीचे या दायें-बायें करने की जरूरत होती है तो शिकार चोर को इसका पता चल जाता है; वह निशानेबाजी के नियमों का पालन करता है और कभी नहीं चूकता। तोपखाने का कोई अफसर अगर इस हथियार की जाँच करता तो पाता ऊपर से गन्दा दिखने के बावजूद इसके सभी जरूरी कल-पुर्जे बढ़िया हालत में हैं। किसान जिस भी चीज को अपने इस्तेमाल के लिए हड़पता है, जिस चीज से भी वह काम लेता है, उसमें वह बस उतनी ही ताकत खर्च करता है जितनी जरूरी होती है, न कम न ज्यादा; वह सिर्फ बिल्कुल जरूरी चीजों पर ध्यान देता है, फालतू कुछ नहीं करता। बाहरी रूप चमकाने की उसे फिक्र नहीं होती। सभी चीजों में जरूरी पहलू को वह बिना चूके पहचान लेता है। वह समझता है कि कब, कहाँ, कितनी कम या ज्यादा ताकत लगायी जाये और किसी मालिक के लिए काम करते समय बखूबी जानता है कि कैसे कम से कम देकर ज्यादा से ज्यादा हासिल किया जाये। यह बेकार सी लगने वाली बन्दूक इस कुटिया में रहने वाले परिवार के जीवन में एक गम्भीर भूमिका निभायेगी और जल्द ही आप जान जायेंगे कि यह क्यों और कैसे होगा ।
अब तो आप लेस ऐग्यू के सुन्दर प्रवेशद्वार से करीब पाँच सौ फीट की दूरी पर जमी इस कुटिया के सभी ब्योरों को दिमाग में बिठा चुके होंगे। आपको वह दिख रही है न, वहाँ, महल के पास खड़े भिखारी की तरह दुबकी हुई? मखमली काई से ढँकी इसकी छत, इसकी कुड़कुड़ाती मुर्गियाँ, इसके घुरघुराते सुअर, इसका कुलाँचे भरता बछड़ा-ग्राम्य जीवन के इसके सभी दृश्यों के पीछे एक डरावना अर्थ छुपा हुआ है।
बाड़ के फाटक के पास जमीन में गड़ी एक बल्ली में चीड़ की तीन मुरझायी हुई टहनियाँ और शाहबलूत की कुछ सूखी पत्तियों का गुच्छा एक चिथड़े से बँधा हुआ था । घर के दरवाजे के ऊपर किसी घुमन्तू चित्रकार ने, शायद नाश्ते के बदले में, दो फीट वर्गाकार सफेदी पुते हिस्से पर हरे रंग से बहुत बड़ा सा 'आई' अक्षर बना दिया था और पढ़ना जानने वालों के लाभार्थ यह मजाकिया वाक्यांश लिखा था : “ Au Grand I - Vert" । दरवाजे के बायीं ओर टँगे भद्दे-से साइनबोर्ड पर रंगीन अक्षरों में 'गुड मार्च बियर' लिखा था और बियर से उफनते पात्र की तस्वीर बनी थी जिसके एक तरफ बेहद नीचे कट का ब्लाउज पहने एक औरत और दूसरी तरफ एक हुस्सार खड़ा था। दोनों ही फूहड़ ढंग से रंगे हुए थे। और खिले हुए फूलों और देहात की ताजा हवा के बावजूद इस कुटिया से शराब और खाने की वैसी ही तेज और उबकाई लाने वाली गंध फूटती थी जो पेरिस के उपनगरों के सस्ते ढाबों के सामने से गुजरते समय आपके नथुनों पर हमला करती है।
अब आप परिवेश से परिचित हो गये हैं। अब इसके निवासियों को देखिये और उनका इतिहास भी सुन लीजिये जिसमें परोपकारियों और समाजसेवियों के लिए कई सबक छिपे हैं।
ग्रां - इवेर के मालिक ने जिसका नाम फ्रांस्वा तोंसार है, अकर्मण्यता और कर्मशीलता की समस्या को जिस ढंग से हल किया है, उसपर दार्शनिकों को ध्यान देना चाहिए। उसने अकर्मण्यता को लाभदायक बना दिया है और कर्म को अपने जीवन से शून्य कर दिया है।
वह हरफनमौला था और खेती के काम में माहिर था, पर सिर्फ अपने लिए। दूसरों के लिए वह गड्ढे खोदता था, जलावन की लकड़ी बटोरता था, पेड़ों की छाल उतारता था या उन्हें काटने का काम करता था। ऐसे सभी कामों में मालिक मजदूर की दया पर रहता है। तसार को यह जमीन मदमोज़ाल लागुएर की उदारता के चलते मिली थी । तरुणाई के दिनों में वह लेस ऐग्यू के माली के लिए काम करता था और झरबेरी, चमखरक, पांगल और दूसरी झाड़ियों और पेड़ों की कटाई-छँटाई के काम में उसका कोई सानी नहीं था । उसके नाम से ही इस मामले में खानदानी प्रतिभा का पता चलता था। सुदूर देहाती इलाकों में भी रियायतें वैसी ही चतुराई से अर्जित और संरक्षित की जाती हैं जैसी शहर के व्यापारी अपने लिए रियायतें हासिल करने में प्रदर्शित करते हैं। एक दिन बगीचे में चहलकदमी करते समय मदमोजाल ने तोंसार को, जो उस समय एक हट्टा-कट्टा जवान था, किसी से यह कहते सुना, “बस मुझे एक एकड़ जमीन मिल जाये तो मैं खुशी से जिन्दगी बसर कर सकता हूँ।” दूसरों को खुशियाँ बाँटने की आदी भली औरत ने सौ दिनों के काम के बदले (उसकी भावनाओं का ख्याल करके, जिसे समझा ही नहीं गया) उसे ब्लांगी के फाटक के पास अंगूर की एक एकड़ जमीन दे दी और लेस ऐग्यू में रहने की इजाजत भी । वहाँ वह मदाम के नौकरों के साथ रहता था जो उसे बर्गण्डी के सबसे बढ़िया लोगों में गिनते थे ।
बेचारे तसार (सब उसे यही कहते थे) ने सौ में से करीब तीस दिन काम किया; बाकी समय वह मटरगश्ती करने और मदमोज़ाल की नौकरानियों के साथ बतियाने और ठिठोली करने में मगन रहता था। उसका ज्यादा समय मालकिन की खास नौकरानी मदमोज़ाल कोशे के साथ बीतता था हालाँकि वह सुन्दर अभिनेत्रियों की सभी विश्वासपात्र नौकरानियों की तरह बदसूरत थी । मदमोजाल कोशे के साथ हँसी-ठिठोली करने के इतने अर्थ निकलते थे कि सूद्री, जिस सौभाग्यशाली पुलिसवाले का ब्लोंदे के पत्र में जिक्र है, करीब पच्चीस साल बीत जाने के बावजूद अब भी तोंसार को सन्देह की दृष्टि से देखता था। अखरोट की लकड़ी की आल्मारी, पर्दों वाला बड़ा सा पलंग और सोने के कमरे की दूसरी सजावटें निस्सन्देह उपरोक्त हँसी-ठिठोली के ही फल थे।
जमीन हाथ में आने के बाद जिस पहले आदमी ने बातों में जिक्र किया कि मदमोज़ाल लागुएर ने उसे यह दिया है, उसे तोंसार ने जवाब दिया, “मैंने बड़ी मुश्किल से इसे खरीदा है, और इसके लिए अच्छी कीमत चुकायी है। क्या अमीर लोग हमें कुछ भी ऐसे ही दे देते हैं? सौ दिन के काम का कोई मोल ही नहीं क्या ? मुझे यह जमीन तीन सौ फ्रैंक में पड़ी है और जमीन बिल्कुल पथरीली है।" लेकिन ये बातें उसके अपने वर्ग के दायरे के बाहर कभी नहीं गयीं।
तोंसार ने इधर-उधर से बटोरी गयी सामग्री से अपना मकान खुद बनाया। कभी-कभी किसी को पटाकर वह एकाध दिन काम करवा लेता, फेंके हुए कचरे में से कुछ न कुछ बीनता-बटोरता रहता और अकसर किसी से कुछ माँग लाता क्योंकि उसे इन्कार करना बड़ा मुश्किल था। एक बेकार पड़ा दरवाजा तबेले का फाटक बन गया क्योंकि उठाकर लाने के लिए उसे दो हिस्सों में काट दिया गया था। किसी पौधाघर के चौखटे से खिड़की बन गयी थी । संक्षेप में, गढ़ी के कचरे से ही वह घातक कुटिया बनी थी ।
तोंसार को लेस ऐग्यू के गुमाश्ते गोबर्ते ने फौजी भरती से बचा लिया था जिसका बाप इलाके का सरकारी वकील था और जो मदमोज़ाल कोशे की कोई बात टाल नहीं सकता था। जैसे ही उसका मकान बनकर तैयार हुआ और उसकी बेलों में अंगूर के दाने आने लगे, तोंसार ने शादी कर ली। वह तेईस साल का गबरू जवान था, लेस ऐग्यू में सब उसे मानते थे, मदमोज़ाल ने अपनी एक एकड़ जमीन उसे दान में दी थी, वह मेहनती दिखता था और उसे अपनी बुराइयों का भी गुणगान करने की कला आती थी। इसलिए लेस ऐग्यू के जंगल के पार रोंकेरोल की जागीर पर बसे एक किसान ने खुशी-खुशी उसे अपनी बेटी ब्याह दी।
उस किसान के पास एक छोटे फार्म के आधे हिस्से का पट्टा था जो किसी सहायक के अभाव में बर्बाद हो रहा था । पत्नी के मरने के बाद भी वह उसे भुला नहीं पाया और, अँग्रेजों की तरह, उसके गम को शराब में डुबोने की कोशिश करने लगा; और फिर जब वह बेचारी मृतका को अपने दिमाग से निकाल देने में कामयाब हो गया तो, जैसा कि गाँववाले शरारती लहजे में कहते थे, उसने पाया कि ब्वासों नाम की एक औरत से उसकी शादी हो चुकी है। वह फार्मर से एक बार फिर मजदूर बन गया, लेकिन एक काहिल और पियक्कड़ मजदूर, झगड़ालू और प्रतिशोधी, कोई भी दुष्टतापूर्ण काम करने के लिए तैयार - अच्छी-भली जिन्दगी से अचानक गरीबी में धकेल दिये गये अपने वर्ग के ज्यादातर लोगों की तरह। उसकी व्यावहारिक जानकारी और लिखने-पढ़ने का ज्ञान उसे बाकी मजदूरों से काफी ऊपर रखते थे जबकि उसकी बुरी आदतें उसे दरिद्रता के स्तर पर बनाये रखती थीं। इस आदमी को एवोन के तट पर पेरिस के सबसे अक्लमन्द व्यक्तियों में से एक के साथ अक्ल के पेंच लड़ाते हुए आप पहले ही देख चुके हैं, एक ऐसे दृश्य में जिसे 'अहा, ग्राम्य - सुषमा' की बातें करने वाले वर्जिल ने कभी नहीं देखा होगा ।
पेर फूर्शों पहले ब्लांगी में स्कूली शिक्षक था लेकिन अपनी हरकतों और सार्वजनिक शिक्षा को लेकर अपने विलक्षण विचारों के कारण उसकी नौकरी चली गयी। बच्चों को हिज्जे सिखाने से ज्यादा समय वह उन्हें अपनी किताबों के पन्नों से नावें बनाना सिखाने में खर्च करता था और बगीचों से फल चुराने के लिए वह उन्हें ऐसे अनूठे तरीके से डाँट लगाता था कि उसके भाषणों को सुनकर भ्रम होता था कि वह दीवार फाँदने के श्रेष्ठ उपायों का पाठ पढ़ा रहा है। शिक्षक से वह डाकिया बन गया। इस पद पर जो प्रायः बूढ़े सिपाहियों का आश्रय होता है, पेर फूर्शों को रोज झिड़कियाँ सुननी पड़ती थीं। कभी वह चिट्ठियों को शराबखाने में भूल आता था तो कभी जेब में ही रखे रह जाता था। जब वह नशे में होता था तो एक गाँव की चिट्ठियाँ दूसरे गाँव में देता और जब होश में रहता था तो उन्हें खोलकर पढ़ता था । परिणामस्वरूप, उसे जल्दी ही बर्खास्त कर दिया गया।
शासन की सेवा से वंचित कर दिये जाने पर पेर फूर्चे अन्ततः एक कारखानेदार बन गया। देहात में गरीब आदमी को हमेशा ही कोई न कोई काम मिल जाता है, कम से कम वह ईमानदारी से रोजी कमाने का दिखावा तो कर ही सकता है। अड़सठ साल की उम्र में बूढ़े ने रस्सी बनने का अपना कारखाना लगाया, जिसके लिए बेहद मामूली पूँजी की दरकार थी । वर्कशॉप के नाम पर, जैसा कि हम देख ही चुके हैं, कोई भी सुविधाजनक दीवार काफी थी, और मशीनरी पर दस फ्रैंक की लागत आती थी। शागिर्द अपने उस्ताद की तरह किसी भुसौरे में सो रहता था और इधर-उधर से मिली चीजों पर गुजारा करता था। पहलेपहल रस्सी बनाने के लिए सन उधार लिया जा सकता था । लेकिन पेर फूर्शों और उसके पिछलग्गू मूश, उसकी एक अवैध बेटी का अवैध बेटा, की - असली कमाई तो ऊदबिलावों से होती थी। इसके अलावा अनपढ़ किसान चिट्ठी-पत्री लिखवाने या पढ़वाने के लिए बूढ़े की क्षमताओं के इस्तेमाल के बदले अकसर उन्हें नाश्ता-खाना दे देते थे। इस सबके अलावा वह क्लैरिनेट बजाना जानता था और अपने दोस्त, सुलांश के चक्कीवाले वेर्मिशेल के साथ वह गाँव की शादियों और सुलांश के मेलों में होने वाली शानदार नाच पार्टियों में जाता था ।
मिशेल का नाम मिशेल वेर था लेकिन यह क्रम परिवर्तन इतना प्रचलित हो गया था कि सुलांश की कचहरी का क्लर्क ब्रूने भी उसका नाम इस तरह लिखता था : मिशेल - जां- जेरोम वेर, उर्फ वेर्मिशल, आमील । पुराने दिनों में बर्गण्डी रेजिमेण्ट के मशहूर वायलिनवादक वेर्मिशेल ने पेर फूर्शों की कतिपय सेवाओं के बदले में उसे भी आमील का पद दिला दिया था, जो सुदूर देहाती इलाकों में आम तौर पर ऐसे लोगों को मिल जाता है जो अपना नाम लिखना जानते हैं। इसलिए पेर फूर्शों ने अपने उपव्यवसायों में गवाही देना और सम्मन और वारण्ट तामील के काम को भी शामिल कर लिया और जब भी सेर्नो, कोंशे और ब्लांगी की जिला कचहरियों में ब्रूने को उसकी जरूरत पड़ती, वह अपनी सेवाएँ अर्पित करने पहुँच जाता था। बीस साल की पियक्कड़ी की दोस्ती से बँधे वेर्मिशेल और फूर्शों को बाकायदा एक व्यापारिक फर्म माना जा सकता था ।
मूश और फूर्शों को दुर्गुणों ने एक-दूसरे से वैसे ही जोड़ रखा था जैसे मेंटर और टेलेमाकस सद्गुणों से जुड़े थे ।
वे ग्रां- इवेर और गढ़ी की खुरचनें बटोर कर काम चलाते रहते थे क्योंकि अपने व्यस्ततम और समृद्धतम वर्षों में भी उन्होंने कुल मिलाकर तीन सौ साठ फैदम (फैदम - छह फुट) से ज्यादा रस्सी नहीं बनायी थी। अव्वलन तो, पचास मील के घेरे में कोई भी व्यापारी मूश या फूर्शो के भरोसे अपना सन नहीं दे सकता था। आधुनिक रसायनशास्त्र के चमत्कारों को भी मात देते हुए बूढ़ा सन को अंगूर के सर्व-सुपाचक रस में घोलकर पी जाने की कला में माहिर था । इससे भी बढ़कर, तीन गाँवों के पत्रलेखक, एक कस्बे के आमील और इलाकेभर के क्लैरिनेट वादक के रूप में उसके तीन-तीन काम उसके कारोबार की उन्नति में बाधक थे- ऐसा उसका कहना था ।
इस प्रकार, विवाह से सम्पत्ति बढ़ने और ऐशो-आराम की जो उम्मीदें तोंसार ने पालथीं, वे शुरू में ही धूल-धूसरित हो गयीं। एक अत्यन्त सामान्य दुर्घटनावश निकम्मे दामाद को खुद से भी बढ़कर निकम्मा ससुर मिल गया था। हालात इसलिए और बिगड़ गये क्योंकि लम्बी- तगड़ी और एक किस्म के गंवारू सौन्दर्य की धनी तोंसार की पत्नी को बाहर खुले में काम करना पसन्द नहीं था । तोंसार अपनी पत्नी को उसके बाप की खामियों के लिए दोषी ठहराता था और उसके साथ बदसलूकी करता था; आम लोगों की प्रतिशोधी भावना के साथ, जो सिर्फ नतीजे को देखते हैं, उसके कारणों पर शायद ही कभी ध्यान देते हैं ।
जब उस औरत को ये बन्धन ज्यादा ही सख्त लगने लगे तो उसने उन्हें ढीला करने का इन्तजाम कर लिया। उसने तोंसार से पार पाने के लिए उसी के दुर्गुणों का इस्तेमाल किया। उसे खुद भी आराम और बढ़िया खाना-पीना पसन्द था, इसलिए उसने तोंसार की काहिली और पेटूपने को बढ़ावा दिया। सबसे पहले, उसने गढ़ी के नौकर-चाकरों का दिल जीतने में कामयाबी पायी, और इसके फलों को देखते हुए तोंसार ने साधनों पर कोई आपत्ति नहीं की। अगर उसकी पत्नी उसकी इच्छाएँ पूरी करती रहती थी तो बाकी वह और क्या करती थी, इसकी उसे ज्यादा फिक्र नहीं थी । बहुतेरी गृहस्थियाँ इसी गुप्त समझौते पर चलती हैं। मदाम तोंसार ने ही ग्रां- इवेर का शराबखाना खोला और उसके पहले ग्राहक थे लेस ऐग्यू के नौकर-चाकर और जागीर के वनरक्षक और शिकारी ।
मदमोज़ाल लागुएर के पुराने गुमाश्ते और ला तोंसार के खास ग्राहकों में से एक, गोबर्तें ने उसे ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए गढ़ी की बढ़िया शराब के कई पीपे दिये। इन उपहारों (जो तब तक जारी रहे जब तक गोबर्ते कुँवारा रहा) और मदाम तोंसार के उच्छृंखल सौन्दर्य की प्रसिद्धि ने उसे जल्दी ही घाटी के दिलफेंक आशिकों में लोकप्रिय बना दिया और ग्रां - इवेर का शराबखाना भरा रहने लगा। बढ़िया खाने की शौकीन होने के चलते ला तोंसार स्वाभाविक रूप से पकाती भी अच्छा थी। हालाँकि उसकी प्रतिभा भुना खरगोश, माँस की चटनी, तली मछली और आमलेट जैसे आम देहाती व्यंजनों पर ही खर्च होती थी पर आसपास के पूरे इलाके में वह उस किस्म की चीजें बहुत बढ़िया बनाने के लिए मशहूर थी. जो चलते-चलाते खायी जाती हैं और जिनमें ऐसा तेज मसाला होता है कि खाते ही कुछ पीने की तलब महसूस हो। दो साल बीतते-बीतते उसने पति को अपने काबू में कर लिया था और उसे बुरे रास्तों पर मोड़ दिया था जिन पर चलने में तोंसार को भी कोई संकोच नहीं था ।
वह बदमाश लगातार और बेधड़क अवैध शिकार में लगा रहता था । गोबर्तें और वनरक्षकों और देहात के कर्मचारियों के साथ अपनी पत्नी के मधुर सम्बन्धों के चलते तथा उन दिनों की ढिलाई के कारण उसे पकड़े जाने का कोई डर नहीं था। जैसे ही उसके बच्चे कुछ करने लायक हुए उसने उन्हें भी अपने आराम के लिए काम में लगा दिया। वह उनकी नैतिकता की भी उतनी ही फिक्र करता था जितनी अपनी पत्नी की। उसके दो बेटे और दो बेटियाँ थीं। तोंसार और उसकी पत्नी दोनों ही बचत की परवाह किये बगैर सारी कमाई खा-पीकर उड़ा देते थे और अगर उसने अपने परिवार में एक तरह का फौजी शासन नहीं लागू कर रखा होता तो उसकी यह आराम की जिन्दगी कब की खत्म हो चुकी होती । हमारे ड्रामें में घटी घटनाओं के समय तक उसके बच्चे बड़े हो चुके थे- उन लोगों की कीमत पर जिनसे उसकी पत्नी तोहफे ऐंठती रहती थी और इस समय ग्रां- इवेर में निम्नलिखित नियम-कानून और बजट लागू था।
तोंसार की बूढ़ी माँ और दोनों बेटियाँ, कैथेरीन और मारी खास-खास मौसम में दिन में दो बार जंगल में जाती थीं और इतनी ढेर सारी लकड़ियाँ लाद कर लाती थीं कि उनकी बहँगी की बल्ली चरमरा जाती थी। हालाँकि ढेरी के बाहर की ओर सूखी टहनियाँ होती थीं, पर भीतर हरे पेड़ों से काटी गई ताजा लकड़ी रहती थी। सीधे कहें तो तोंसार की सर्दियाँ लेस ऐग्यू के जंगल से चुरायी लकड़ी के सहारे कटती थीं। इसके अलावा बाप-बेटे लगातार शिकारचोरी में जुटे रहते थे । सितम्बर से मार्च तक खरहे, खरगोश, बनमुर्गी, काकड़, यानी वह सब शिकार जो गढ़ी में नहीं खाया जाता था, ब्लांगी और सुलांश में बिकता था जहाँ तोंसार की दोनों बेटियाँ सुबह-सुबह दूध बेचने जाती थीं। वहाँ से वे लेस ऐग्यू, सेर्नो और कोंशे के किस्सों और गप्पों के बदले दिनभर की खबरें लेकर लौटती थीं। जिन महीनों में तोंसार परिवार के तीनों पुरुष बन्दूक से शिकार नहीं कर पाते थे, उस दौरान वे जंगल में फन्दे बिछाते थे। अगर इन फन्दों में उनके खाने भर से ज्यादा शिकार फँस जाता तो ला तसार उसकी कचौड़ियाँ बनाकर विल-ओ-फाये के बाजार में भेज देती थी। फसल कटाई के समय सात तोंसार - बूढ़ी माँ, दोनों बेटे (सत्रह साल के होने तक), दोनों बेटियाँ और फूर्शों तथा मूश - जागीर के खेतों में सीला बटोरते1 थे और आम तौर पर हर तरह के अनाज, जई, जौ और गेहूँ के सोलह बुशल2 रोजाना ले आते थे ।
(1 सीला बटोरना - फसल काटने के दौरान खेतों में गिरा अनाज गरीबों को बटोरने दिया जाता था। फ्रांस में यह प्रथा सदियों पुरानी है और इसे लेकर भूस्वामियों तथा गरीब किसानों के बीच अकसर झगड़े होते रहते थे ।
2 बुशल-आठ गैलन की माप, लगभग एक मन - अनु.)
दोनों गायें, जिन्हें छोटी लड़की सड़क किनारे तक ले जाती थी, हमेशा ही बहककर लेस ऐग्यू के चरागाह में घुस जाने की आदी हो गयी थीं। अगर कुछ ज्यादा ही खुल्लमखुल्ला अतिक्रमण रक्षकों को इस ओर ध्यान देने पर बाध्य कर देता था तो इस लापरवाही के लिए बच्चों की या तो बेंत से पिटाई होती थी या उन्हें किसी प्रिय चीज से वंचित कर दिया जाता था, इसलिए उन्होंने दुश्मन के कदमों की आहट सुनने की ऐसी विलक्षण क्षमता विकसित कर ली थी कि लेस ऐग्यू के कारिन्दे या बाग के रखवाले को कभी-कभार ही उनका पता लग पाता था। इसके अलावा इन मानिन्द अफसरों के तोंसार और उसकी पत्नी से रिश्ते उनकी आँखों पर पट्टी बाँध देते थे। लम्बी रस्सियों से बँधी गायें हल्के से झटके या धीमी आवाज में एक खास पुकार सुनते ही वापस सड़क पर चली आती थीं, क्योंकि उन्हें पता था कि खतरा टलते ही वे अपना चरना अगले खेत में पूरा कर सकती हैं। जब फूर्शो ने अपने नाती को पढ़ाने-लिखाने के बहाने उसे अपने पास रख लिया तो बुढ़िया तोंसार ने, जो दिनोंदिन जर्जर होती जा रही थी, मूश का काम सम्भाल लिया, जबकि मारी और कैथेरीन जंगल में चारे के लिए सूखी घास तैयार करती थीं। इन लड़कियों को वे सारी जगहें मालूम थीं जहाँ बढ़िया जंगली घास उगती थी और वे बेधड़क उसे काटकर, सुखाकर घर ले आती थीं जिससे सर्दियों के दौरान चारे की दो तिहाई जरूरत पूरी हो जाती थी। इसके अलावा उन्हें जंगल में वे सारे ढँके-छुपे कोने मालूम थे जहाँ सर्दियों में भी हरी घास मिल जाती थी। पर्वतों की शृंखला की ओट में रहने वाली सभी जगहों, उदाहरण के लिए पीदमोंत और लोम्बार्थी की तरह लेस ऐग्यू की घाटी के कुछ हिस्सों में ऐसी जगहें हैं जहाँ घास बारहों महीने हरी रहती है। ऐसे मैदान, जिन्हें इटली में 'मार्सिती' कहा जाता है, बहुत कीमती होते हैं, हालाँकि फ्राँस में कई बार वे बर्फबारी की चपेट में आ जाते हैं।
बछड़ों को बेचकर करीब अस्सी फ्रैंक मिल जाते थे। गायों के ब्याने या दूध सूख जाने के समय को छोड़कर दूध से परिवार की जरूरतें पूरी होने के अलावा सालाना एक सौ फ्रैंक मिल जाते थे। तोंसार खुद किसी न किसी तरह के छिटपुट काम करके एक सौ साठ फ्रैंक और कमा लेता था ।
शराबखाने में खाने और शराब की बिक्री से, सारे खर्चे निकालने के बाद करीब तीन सौ फ्रैंक का मुनाफा होता था क्योंकि जमकर पीने-पिलाने के दौर कुछ खास समय और खास मौसम में ही चलते थे । उनमें शामिल होने वाले नशेबाज पहले से तोंसार और उसकी पत्नी को खबर कर देते थे इसलिए वे पड़ोस के कस्बे से बस जरूरत भर का ही सामान खरीद लाते थे। तोंसार के अंगूर के बाग से पैदा होने वाली शराब सामान्य वर्षों में बीस फ़्रैंक फी पीपे की दर से सुलांश के एक शराब व्यापारी को बेची जाती थी जिससे तोंसार की गहरी छनती थी। अच्छी फसल के वर्षों में वह अपनी बेलों से बारह पीपे तक पा जाता था लेकिन औसत आठ का था; और इसमें से आधा तोंसार अपने ग्राहकों के लिए रखता था। अंगूर पैदा करने वाले सभी जिलों में बड़े बागों से सीला बटोरने से अच्छी अतिरिक्त आय हो जाती थी और इससे तोंसार परिवार आम तौर पर शराब के तीन और पीपे हासिल कर लेता था। लेकिन, जैसा कि हम देख चुके हैं, रखवालों से खुली छूट और सरपरस्ती पाकर वे अपने काम में नैतिकता का रत्तीभर भी लिहाज नहीं बरतते थे ओर कटाई करने वालों के निकलने से पहले ही बाग में घुस पड़ते थे, ठीक वैसे ही जैसे वे गेहूँ की पूलियाँ बाँधे जाने से पहले ही टिड्डों की तरह खेतों पर टूट पड़ते थे। इस तरह, अपने बाग और बटोरने से मिले अंगूरों से बनी शराब के सात-आठ पीपे अच्छे दाम पर बिकते थे। लेकिन ग्रां - इवेर की इस तमाम आमदनी का अच्छा-खासा तोंसार और उसकी पत्नी के निजी उपभोग के लिए हड़प लिया जाता था जो अच्छी से अच्छी चीज खाना और अपने यहाँ बिकने वाली शराब से बेहतर शराब पीना चाहते थे- इसे वह सुलांश में अपने दोस्त से अपनी शराब के भुगतान के तौर पर हासिल करते थे । संक्षेप में, यह परिवार कुल मिलाकर साल भर में करीब नौ सौ फ्रैंक कमा लेता था क्योंकि वे हर साल दो सुअर भी पालते थे, एक अपने लिए और एक बेचने के वास्ते ।
तमाम निठल्लों और लालबुझक्कड़ों और साथ ही मजदूरों के बीच ग्रां- इवेर का शराबखाना खासा लोकप्रिय था, कुछ तो ला तोंसार की खूबियों के चलते और कुछ इस परिवार तथा घाटी के निम्न वर्गों के बीच मेलजोल के रिश्तों की वजह से। दोनों बेटियाँ खासी सुन्दर निकली थीं और नैतिकता के मामले में अपनी माँ के पदचिह्नों पर चलती थीं। इसके अलावा 1795 से ही चली आ रही ग्रां इवेर की प्रसिद्धि ने इसे आम लोगों की नजरों में एक सम्मानजनक स्थान बना दिया था। कोंशे से लेकर विल-ओ-फाये तक से कारीगर और किसान मिलने-जुलने, सौदे तय करने और तोंसार औरतों या मूश और बूढ़े फूर्शों द्वारा जुटाई गई खबरें सुनने के लिए यहाँ आते थे। कई बार वेर्मिशेल और ब्रूने द्वारा मुहैया करायी गयी खबरें भी उन्हें सुनने को मिल जाती थीं, जब वह प्रसिद्ध अधिकारी अपने आमील की तलाश में शराबखाने में आता था । वहाँ पुआल और शराब के दाम तय किये जाते थे; और दिन भर के या पीस - वर्क के काम की मजदूरी भी। ऐसे मामलों में पंच की भूमिका में तोंसार ग्राहकों के साथ बैठकर पीते हुए अपनी राय और मशविरे देता था । इस इलाके में यह प्रचलित था कि सुलांश सिर्फ सोसायटीबाजी और मौज-मस्ती का शहर था जबकि ब्लांगी कारोबारी कस्बा था; हालाँकि अब वह विल-ओ-फाये के बड़े वाणिज्यिक केन्द्र के आगे दब गया था जो पिछले पच्चीस वर्षों के दौरान इस समृद्ध घाटी की राजधानी बन गया था। मवेशियों और अनाज की मण्डी ब्लांगी के मुख्य चौक में लगती थी, और वहाँ तय हुए दाम पूरे हलके में मानक दरों का काम करते थे ।
घर के भीतर रहने और बाहर का कोई काम नहीं करने से ला तोंसार उन औरतों की तुलना में अब भी गोरी और ताजगीभरी थी, जो खेतों में काम करती हैं और फूलों की तरह मुरझा जाती हैं, तीस की उम्र तक पहुँचने से भी पहले बूढ़ी और मरियल दिखने लगती हैं। वह अच्छे कपड़े पहनना पसन्द करती थी । दरअसल, वह बस साफ-सुथरी रहती थी, लेकिन गाँव में सफाई भी एक विलासिता है। अपने साधनों से बढ़-चढ़कर अच्छे कपड़े पहने बेटियाँ अपनी माँ के नक्शे-कदम पर चलती थीं। अपनी बाहरी पोशाक, जो तुलनात्मक रूप से सुन्दर होती थी, के भीतर वे धनी से धनी किसान औरत से ज्यादा बारीक सूत के कपड़े पहनती थीं। मेले वाले दिनों पर वे वाकई खूबसूरत पोशाकें पहनकर जाती थीं जो भगवान ही जानता होगा कि उन्होंने कैसे जुटायी थीं। एक तो, लेस ऐग्यू के नौकर मालकिन की खास नौकरानियों के फेंके हुए कपड़े उन्हें बेच देते थे - ऐसे दामों पर जिन्हें चुकाने में उन्हें कोई उम्र नहीं था । मारी और कैथेरीन के मुताबिक काट-छाँट दिये जाने के बाद कभी पेरिस की सड़कों को बुहारनेवाली ये पोशाकें ग्रां- इवेर के आसपास धूल भरे रास्तों पर नजर आने लगती थीं। इन लड़कियों को अपने माँ-बाप से एक छदाम भी नहीं मिलता था; वे उन्हें बस खाना देते थे और सूखी घास से भरी फटेहाल गुदड़ियाँ जिन पर वे अपनी दादी के साथ कोठार में सोती थीं। उनके भाई भी वहीं पुआल में जानवरों की तरह गुड़-मुड़ी होकर सोते थे। इस प्रत्यासन्नता पर न तो बाप का ध्यान जाता था न माँ का ।
लौह युग और स्वर्ण युग के बीच हमारे अनुमान से कहीं ज्यादा समानता है। पहले वाले में कोई भी चीज सतर्कता की जरूरत नहीं पैदा करती थी; दूसरे में हर चीज सतर्क रहने के लिए बाध्य करती है; समाज के लिए दोनों का ही परिणाम शायद एक जैसा होता है। तोंसार की बुढ़िया अम्माँ की मौजूदगी, जो एहतियात से ज्यादा एक जरूरत थी, अपनेआप में एक और अनैतिकता ही थी । इसीलिए पादरी ब्रोसेत ने अपने धर्मक्षेत्र के निवासियों की जीवनचर्या का अध्ययन करने के बाद अपने बिशप से यह अर्थपूर्ण टिप्पणी की : “महामहिम, जब मैं किसानों को अपनी गरीबी पर इस कदर जोर देते हुए देखता हूँ, तब मेरी समझ में आता है कि वे अपनी अनैतिकता के इस बहाने को गँवा बैठने से कितना डरते हैं।"
हालाँकि हर कोई जानता था कि उस परिवार के कोई उसूल नहीं हैं और न वे धर्मभीरु हैं पर ग्रां- इवेर की जीवनचर्या के विरुद्ध कोई कुछ नहीं कहता था। इस पुस्तक की शुरुआत में ही, मध्यवर्गीय जीवन की शिष्टताओं के अभ्यस्त लोगों को यह बता देना आवश्यक है कि यहाँ के किसानों की घरेलू आदतों और तौर-तरीकों में शिष्टता की कोई जगह नहीं होती । अपनी बेटियों के फँसाये जाने पर वे नैतिकता का कोई रोना नहीं रोते, जब तक कि फँसाने वाला अमीर या दब्बू व्यक्ति न हो। बच्चे अकसर आरामदेह जिन्दगी के उपकरण या पूँजी के बतौर इस्तेमाल किये जाते हैं। खासकर 1789 के बाद से स्वार्थ जनसाधारण की एकमात्र प्रेरकशक्ति बन गया है; वे कभी यह नहीं पूछते कि कोई कार्रवाई विधिसम्मत या नैतिक है या नहीं, बस इतना जानना चाहते हैं कि इसमें फायदा है नहीं। नैतिकता, जिसका धर्म से कोई लेना-देना नहीं है, एक निश्चित स्तर की योग्यता पर ही आरम्भ होती है-ठीक वैसे ही, जैसे एक उच्चतर धरातल पर, हम देखते हैं कि आत्मा में कोमल भाव तभी पनपते हैं जब जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण हो । किसानों के बीच बिल्कुल खरा, नैतिक और ईमानदार व्यक्ति दुर्लभ ही होता है। आप पूछेंगे ऐसा क्यों ? इस दशा के लिए कई कारण गिनाये जा सकते हैं जिनमें प्रमुख यह है : अपने सामाजिक कार्य की प्रकृति के चलते किसान एक विशुद्ध दैहिक जीवन जीते हैं, और निरन्तर प्राकृतिक परिवेश में रहना इसे और बढ़ाता है। जब शारीरिक श्रम शरीर को निचोड़ डालता है तो यह मन के शुद्धिकारी कार्य के लिए कोई गुंजाइश नहीं छोड़ता, खासकर अनपढ़ अज्ञानी लोगों में पादरी ब्रोसेत यह सही कह रहा था कि किसान की राजकीय नीति उसकी दरिद्रता ही है ।
हर किसी के मामलों में दखल देते हुए तोंसार हर किसी की शिकायतें सुनता था और अकसर जरूरतमन्दों के लाभ के लिए उन्हें धोखाधड़ी के तरीके सुझाता था । भली दिखने वाली उसकी औरत गलत काम करने वालों की प्रशंसा करती थी और अमीरों के खिलाफ कुछ भी करने में अपने ग्राहकों को समर्थन या निजी मदद देने में पीछे नहीं रहती थी । यह भटियारखाना मालिकान और अमीरों के खिलाफ किसानों और मजदूरों की नफरत को सुलगाने वाला एक अड्डा था; उनके लिए यह जगह तेज, फुर्तीले, फुफकारते और जहरीले साँपों की बाँबी थी।
इसलिए, तोंसार परिवार का समृद्ध जीवन एक बुरा उदाहरण था। दूसरे किसान खुद से पूछते थे कि क्यों न वे भी तोंसार की तरह अपनी लकड़ी जंगल से बटोरें; क्यों न उन्हीं की तरह अपनी गायें चरायें और इतना शिकार करें कि खाने के बाद बेचने को भी रह जाये; और बिना बोये अनाज और अंगूर की फसल वे भी क्यों न बटोरें। धीरे-धीरे जंगल और खेतों और चरागाहों और अंगूर के बागों में होने वाली चोरियाँ इस घाटी का आम रिवाज बन गया, और जल्दी ही ब्लांगी, कोंशे और सेर्नो-लेस ऐग्यू की जागीर से लगे इन तीनों जिलों में यह एक अधिकार के रूप में स्थापित हो गया। कुछ निश्चित कारणों से इस नासूर ने रोंकेरोल या सुलांश की जागीरों के मुकाबले लेस ऐग्यू को ज्यादा नुकसान पहुँचाया जिनकी चर्चा आगे की जायेगी। लेकिन आपको कतई यह कल्पना नहीं करनी चाहिए कि तोंसार, उसकी पत्नी और बच्चे और बूढ़ी माँ कभी जानबूझकर खुद से यह कहते थे, "हम चोरी करके जियेंगे और यह काम खूब होशियारी से करेंगे।” ऐसी आदतें धीरे-धीरे बनती हैं। पहलेपहल, उन्होंने सूखी टहनियों के साथ ताजा लकड़ी का एक टुकड़ा उठाया था; फिर यह आदत सी बन गयी और पकड़े जाने से बचने के लिए बड़ी सावधानी से किये गये इन्तजामात (जो आने वाली योजनाओं के लिए आवश्यक थे) के चलते निडर होकर अन्ततः वे "अपनी लकड़ी काटने लगे और लगभग सारी आजीविका ही चोरी से चलाने लगे । जागीर में गायों का चराना और खेतों व बागों से सीला बटोरना धीरे-धीरे करके रिवाज के बतौर स्थापित हुए।
जिस वक्त यह इतिहास शुरू होता है, तोंसार की उम्र करीब पचास साल थी। वह लम्बा और ताकतवर, दोहरे बदन का आदमी था। घुँघराले काले बाल, कहीं-कहीं बैंगनी से दागों वाली ईंट के रंग की चमड़ी, पीली आँखें, बड़े-बड़े लटके हुए कान, मजबूत काठी जिस पर माँसपेशियाँ थुलथुल हो गयी थीं, सामने से गंजा हो रहा सिर और लटका हुआ निचला होंठ - ऐसा दिखता था तोंसार । वह मूर्खता के आवरण में अपने असल चरित्र को छिपाये रखता था। बीच-बीच में वह अनुभव का प्रदर्शन करता था जो इसलिए और भी बुद्धिमत्तापूर्ण लगता था क्योंकि उसने अपने ससुर की सोहबत में बातचीत का परिहासपूर्ण लहजा विकसित कर लिया था। उसकी नाक का सिरा इस तरह चपटा था मानो ईश्वर ने लोगों का ध्यान खींचने के लिए उस पर उँगली रख दी हो। इस वजह से वह नकियाती सी आवाज में बोलता था। उसके ऊपरी दाँत एक-दूसरे पर चढ़े हुए और कुत्ते के दाँतों जैसे सफेद थे । उन्मुक्त और काहिली भरा मजाकिया स्वभाव और गँवारू पियक्कड़ों जैसी मिलनसारी न होती तो उस आदमी का हुलिया सबसे असावधान व्यक्ति को भी चौकन्ना कर देता ।
तोंसार, उसके भटियारखाने और उसके ससुर की तस्वीरें इतने ब्योरों के साथ इसलिए खींची गयी हैं क्योंकि इस इतिहास में उसकी, उसके भटियारखाने की और उसके परिवार की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। एक तो, उनका जीवन लेस ऐग्यू की घाटी के सैकड़ों दूसरे घरों के जीवन जैसा ही है। दूसरे, तोंसार हालाँकि अनेक गहरी और सक्रिय नफरतों का एक उपकरण मात्र था, पर निचले वर्गों के सभी फरियादियों का मित्र और सलाहकार होने के चलते भावी संघर्ष पर उसका जबर्दस्त प्रभाव था। उसका भटियारखाना, जैसा कि हम अभी देखेंगे, न केवल हमलावरों के मिलने का अड्डा था, बल्कि वह उनका मुखिया बन गया था - इसका एक कारण यह भी था कि पूरी घाटी में लोग उसके नाम से घबराते थे । यह डर उसकी वास्तविक हरकतों का उतना नहीं था जितना इस बात का कि वह कभी भी, कुछ भी कर सकता था। इस आदमी की धमकी से ही लोग इतना घबराते थे कि उसे कभी इस पर अमल करने की जरूरत नहीं पड़ती थी ।
हर विद्रोह, चाहे वह खुला हो या गुप्त, उसका अपना झण्डा होता है। ऐग्यू घाटी के निठल्लों, पियक्कड़ों, काहिलों का झण्डा था ग्रां- इवेर का भीषण शराबखाना । वहाँ आने वालों को अपनी थकान उतारने और दिल बहलाने का मौका मिल जाता था जो देहात में भी उतना ही दुर्लभ है जितना शहर में। इसके अलावा उस कच्ची सड़क पर बारह मील तक और कोई भटियारखाना नहीं था; इसलिए कोंशे से विल-ओ-फाये जाने वाले हमेशा ही ग्रां - इवेर पर रुकते थे, भले ही सिर्फ थोड़ा ताजादम होने लिये । लेस ऐग्यू का चक्कीवाला, जो सहायक मेयर भी था, अपने आदमियों के साथ वहाँ आता था। जनरल के सईस और घरेलू नौकरों को भी तोंसार की शराब नापसन्द नहीं थी जिसका आकर्षण उसकी बेटियों के कारण और बढ़ जाता था। इस तरह ग्रां- इवेर ने नौकरों के जरिये गढ़ी के भीतर अपना भूमिगत संचारतंत्र फैला रखा था और उसे तुरन्त ही वह सब पता चल जाता था जो वे जानते थे। किसी बड़े घर के नौकरों, और जिन लोगों से वे आते हैं उनके बीच की आपसी समझदारी और एकजुटता को चन्द फायदों या उनके निजी स्वार्थों को बढ़ावा देकर तोड़ पाना नामुमकिन है। घरेलू नौकर जनसाधारण से आते हैं और वे हमेशा जनसाधारण से जुड़े रहेंगे । ब्लोंदे के साथ गढ़ी के पास पहुँचने पर सईस चार्ल्स के आखिरी मुख्तसर जवाब का अर्थ इसी घातक बन्धुत्व में छिपा है।
अध्याय चार : एक और ग्रामगीत
“अहा !... पापा!” अपने ससुर को आता देखकर तोंसार चिल्लाया। उसे भोजन की तलाश में आया जानकर वह बोला, “सुबह से तुम्हारे पेट में चूहे कूद रहे हैं? पर हमारे पास तुम्हें देने के लिए कुछ नहीं है। उस रस्सी का क्या हुआ - अरे, वही रस्सी जो तुम हमारे लिए बनाने वाले थे? तुम्हारा कमाल भी मानना पड़ेगा, रात भर तुम लगे रहते हो और सुबह हाथ में कुछ नहीं आता ! तुम्हें तो बहुत पहले वह रस्सी बटनी चाहिए थी जो तुम्हारी गर्दन मरोड़कर तुम्हें दुनिया से चलता कर दे; तुम हमारे लिए बहुत खर्चीले होते जा रहे हो ।”
किसान या मेहनतकश का हास्य जरा बारीक होता है। वह अपने मन की बात बोल देता है और जानबूझकर उसे भोंडे ढंग से अभिव्यक्त करता है । यही चीज हम पेरिस के बैठककक्षों में पाते हैं। वहाँ इस चित्रात्मक फूहड़ता का स्थान महीन वाक्विदग्धता ले लेती है, बस और कोई फर्क नहीं होता ।
“अपने ससुर से बात करने का यह क्या तरीका है ?" बूढ़े ने कहा । "काम की बात करो, मुझे सबसे बढ़िया वाली एक बोतल चाहिए।"
यह कहते हुए फूर्शों ने अपने हाथ में चमकते पाँच फ्रैंक के सिक्के को उस पुरानी मेज पर ठोंका जिस पर वह बैठा था । चिकनाई की कई पर्तों से ढंकी, जलने के काले निशानों, शराब के धब्बों और जगह-जगह खरोंचों से भरी यह मेज देखने लायक थी। सिक्के की आवाज सुनते ही, यात्रा पर निकलने को तैयार डोंगी की तरह मुस्तैद मारी ने अपने नाना को ऐसी लालसापूर्ण दृष्टि से देखा जो उसकी आँखों में चिन्गारी की तरह कौंध गयी। धातु की खनक से आकर्षित होकर ला तोंसार भी अपने कमरे से बाहर आ गई।
“तुम हमेशा मेरे बेचारे बाप के साथ बदसलूकी करते हो,” उसने अपने पति से का, "लेकिन उसने इस साल काफी पैसे कमाये हैं; भगवान की दया से उसने ईमानदारी से कमाई की है। जरा मुझे देखने तो दो,” कहते हुए वह सिक्के पर झपटी और फूर्शों की उँगलियों से उसे छीन लिया ।
"मारी," तोंसार ने भारी आवाज में कहा, “पटरे के ऊपर बोतलबन्द शराब रखी है। जाओ, एक बोतल ले आओ।"
देहात में शराब सिर्फ एक क्वालिटी की होती है लेकिन यह दो किस्मों के तौर पर बिकती है - पीपे वाली शराब और बोतलबन्द शराब ।
"तुम्हें यह कहाँ मिला, पापा” सिक्के को अपनी जेब में सरकाते हुए ला तोंसार ने पूछा ।
“फिलिप्पाइन! तुम्हारा अन्त अच्छा नहीं होगा,” बूढ़े ने सिर हिलाते हुए कहा, पर अपना पैसा वापस लेने की कोशिश नहीं की । निस्सन्देह उसने बहुत पहले ही अपनी बेटी, अपने प्रचण्ड दामाद और खुद के बीच संघर्ष की निरर्थकता को समझ लिया था।
"तुमने फिर एक बोतल दारू के लिए मुझसे पाँच फ्रैंक झटक लिये,” चिड़चिड़े स्वर में उसने कहा । "लेकिन यह आखिरी बार होगा। अब मैं कफे द ला पाइ में जाया करूँगा।"
“अरे चुप भी रहो, पापा!” उसकी गोरी और मोटी बेटी ने कहा जो किसी रोमन मेट्रन जैसी लगती थी। “तुम्हें एक कमीज और साफ पतलून और एक टोप की जरूरत है; और मैं तुम्हें वास्कट पहने देखना चाहती हूँ। मैंने इसी के लिए तो पैसे लिये हैं ।”
"मैं तुम्हें बार-बार बता चुका हूँ कि ये सब चीजें मुझे बरबाद कर डालेंगी,” बूढ़े ने कहा। “लोग सोचेंगे कि मैं पैसे वाला हूँ और मुझे कुछ भी देना बन्द कर देंगे।"
मारी द्वारा लायी गयी बोतल ने बूढ़े की वाचालता पर रोक लगा दी जो उन लोगों में से था जिनकी जुबान सबकुछ उगल देने को तैयार रहती है और जो अपने किसी भी विचार को प्रकट करने में हिचकते नहीं हैं, चाहे वह कितना भी बेहूदा क्यों न हो ।
"तो तुम नहीं बताओगे कि तुम ये पैसे कहाँ से मूस के लाये हो?" तोंसार ने कहा । "हम जाकर वहीं से और भी ला सकते हैं - हम सब जायेंगे ।"
वह खरगोश पकड़ने का एक फन्दा बना रहा था और जैसे ही उसने यह काम पूरा किया, उस निर्दय भटियारे की निगाह अपने ससुर की पतलून पर पड़ी और उसने वहाँ एक उभरे हुए गोल हिस्से को ताड़ लिया जो पाँच फ्रैंक के एक और सिक्के का स्पष्ट संकेत था।
“पूँजीपति बन जाने की खुशी में मैं तुम्हारी सेहत का जाम पीता हूँ,” पेर फूर्शों ने कहा।
“तुम पूँजीपति बनाना चाहो तो बन सकते हो,” तोंसार ने कहा; “तुम्हारे पास साधन हैं, जरूर हैं ! लेकिन शैतान ने तुम्हारी खोपड़ी के पीछे एक छेद कर दिया है जिसमें से सब बहकर निकल जाता है।"
"अरे! मैंने तो बस उस नये लौण्डे के साथ ऊदबिलाव वाली चाल चली थी जो लेस ऐग्यू में आया हुआ है। वह पेरिस का है। बस इतनी सी बात है ।"
“अगर लोगों की भीड़ एवोन के स्रोतों को देखने आने लगे तो तुम तो रईस हो जाओगे नाना," मारी ने कहा।
“हाँ,” बोतल खाली करते हुए उसने कहा, “और मैं नकली ऊदबिलाव का खेल इतने दिनों से खेल रहा हूँ कि असली ऊदबिलाव नाराज हो गये हैं और उनमें से एक आज सीधे मेरी टाँगों के बीच आ गया; मूश ने उसे पकड़ लिया और मुझे उसके लिए बीस फ्रैंक मिलने वाले हैं।
"मैं शर्त बद सकता हूँ कि तुम्हारा ऊदबिलाव सन से बना हुआ है," तोंसार ने अपने ससुर की ओर काइयाँपन से देखते हुए कहा ।
"अगर तुम मुझे एक पतलून, वास्कट और गेलिस दे दो ताकि मेले के संगीत मंच पर वेर्मिशेल को शर्मिन्दा न होना पड़े ( वह सोकार का बच्चा हमेशा मेरे कपड़ों के लिए डाँटता रहता है), तो मैं तुम्हें वो पैसे रखने दे सकता हूँ मेरी बिटिया; तुम्हारा ख्याल अच्छा है। मैं लेस ऐग्यू के उस रईस लौण्डे को निचोड़ सकता हूँ; हो सकता है उसे ऊदबिलावों का शौक लग जाये।"
"जाकर एक और बोतल ले आओ,” तोंसार ने अपनी बेटी से कहा । "अगर तुम्हारे बाप के पास सचमुच कोई ऊदबिलाव है तो वह हमें दिखायेगा जरूर" फूर्शों को चढ़ाने की कोशिश करते हुए उसने अपनी पत्नी से कहा ।
"मुझे डर है कि वह तुम्हारी कड़ाही में पहुँच जायेगा,” अपनी छोटी-छोटी हरी आँखों से बेटी की ओर आँख मारते हुए उसने कहा । "फिलिप्पाइन पहले ही मेरा पाँच फ्रैंक का सिक्का झटक चुकी है; और मुझे कपड़े-लत्ते देने और खिलाने के नाम पर तुम लोगों ने मुझसे कितने पैसे हड़पे हैं, इसका कोई हिसाब है? और अब तुम कहते हो कि मेरा पेट कभी भरता ही नहीं और मैं अधनंगा घूमता हूँ।”
" तुमने कफे द ला पाइ में उबली वाइन पीने के लिए अपने पिछले कपड़े बेच दिये थे-पापा,” उसकी बेटी ने कहा, "हालाँकि वेर्मिशेल ने तुम्हें रोकने की कोशिश की थी।”
"वेर्मिशेल ! जिसकी मैंने खातिरदारी की थी ! वेर्मिशेल मेरी दोस्ती से दगाबाजी नहीं कर सकता। यह जरूर उसकी औरत, उस दो टाँगों वाले चर्बी के लोंदे का काम होगा।"
" वह या उसकी औरत," तोंसार ने जवाब दिया, “ या फिर बोनबाल ।”
“अगर ये बोनबाल होगा,” फूर्शों चीखा, “जो खुद वहाँ हर वक्त पड़ा रहता है, तो मैं-मैं- बस बहुत हो चुका!”
“अरे बूढ़े बेवड़े, इस सबका तुम्हारे कपड़े बेचने से क्या मतलब? तुमने उन्हें बेचा है क्योंकि तुमने वाकई उन्हें बेचा है; तुम सठिया गये हो !” तोंसार ने बूढ़े के घुटने पर चपत लगाते हुए कहा। “चलो, मेरी शराब को इज्जत बख्शो और गला तर कर लो ! मदाम तोंसार के बाप को ऐसा करने का हक है; और क्या यह सोकार के यहाँ जाकर अपनी चाँदी खर्च करने से बेहतर नहीं है। ?"
" कितनी शर्म की बात है कि तुम्हें तिवोली में लोगों के नाच के लिए बाजा बजाते पन्द्रह साल हो गये और तुम आज तक ये पता नहीं लगा सके कि सोकार अपनी शराब कैसे पकाता है - और तुम बड़े चालाक बनते हो !” उसकी बेटी ने कहा; "जबकि तुम अच्छी तरह जानते हो कि अगर हमें यह राज पता चल जाये तो हम जल्दी ही रिगू की तरह अमीर बन जायेंगे ।"
पूरे मोर्वन और उसकी तलहटी में बसे बर्गण्डी के पेरिस की तरफ वाले क्षेत्र में यह उबली वाइन, जिसे लेकर मदाम तोंसार अपने बाप को झिड़क रही थी, जरा महँगे किस्म का मादक पेय होता है। यह किसानों के जीवन में एक बड़ी भूमिका निभाता है और सभी दुकानदार, शराब व्यापारी और भटियारे इसे बनाते हैं। चुनिन्दा वाइन, चीनी और दालचीनी तथा दूसरे मसालों से बनी यह शराब अर्क - बादाम, एक-सौ-सात, मुनक्के की शराब, वेस्पेत्रो, स्पिरिट-ऑफ-सन जैसे तरह-तरह के नामों से बिकनेवाली उस मदिरा से बेहतर होती है जो वास्तव में ब्राण्डी के ही अलग-अलग मिश्रण होते हैं। उबली वाइन पूरे फ्रांस और स्विट्जरलैण्ड में पायी जाती है। जूरा की पहाड़ियों और उन दूर-दराज के इलाकों में जहाँ कुछ खास सैलानी ही पहुँच पाते हैं, सरायवाले इसे गर्व से साइराक्यूस की मदिरा कहते हैं। बेशक यह बहुत उम्दा चीज होती है और ऊँची पहाड़ियाँ पार करके पहुँचे उनके प्यासे मेहमान खुशी-खुशी इसकी एक बोतल के तीन-चार फ्रैंक दे देते हैं। मोर्वन और बर्गण्डी के घरों में मामूली सी बीमारी या बेचैनी उबली वाइन पीने का बहाना बन जाती है। जच्चगी के पहले और बाद में औरतें खाण्ड के साथ इसे लेती हैं। बहुत से किसानों की सम्पत्ति उबली वाइन में डूब चुकी है और अनेक घरों में यह मादक द्रव वैवाहिक कलह का कारण बन चुका है।
“ना ! वह राज़ चुराने की कोई गुंजाइश नहीं है,” फूर्शों ने जवाब दिया, “शराब उबालते समय सोकार हमेशा कमरा भीतर से बन्द कर लेता है; उसकी बीवी बेचारी यह जाने बिना ही मर गयी। वह अपनी सामग्रियाँ भी पेरिस से मँगवाता है ।"
" अपने बाप की जान मत खाओ," तोंसार चिल्लाया; “उसे मालूम नहीं ? तो ठीक है, उसे नहीं मालूम! लोग हर चीज तो नहीं जान सकते!”
अपने दामाद के शब्दों के साथ ही उसकी मुखमुद्रा भी नरम पड़ते देख फूर्शों को एकदम से घबराहट होने लगी ।
“अब तुम मुझसे क्या लूटना चाहते हो ?” उसने सीधे पूछ लिया ।
“मैं?” तोंसार ने कहा, “मैं अपने कानूनी हक के अलावा किसी से कुछ नहीं लेता हूँ। अगर तुमसे मैं कुछ लेता हूँ तो वह तुम्हारी बेटी के हिस्से के बदले होता है जो तुमने मुझे देने का वादा किया था और कभी नहीं चुकाया ।”
इस जवाब के तीखेपन से आश्वस्त होकर फूर्शों ने अपना सिर अपने सीने पर गिरा दिया मानो उसकी बात का कायल होकर घुटने टेक दिये हों।
“देखो कितनी बढ़िया फाँस बनायी है," तोंसार ने फिर बोलना शुरू किया और अपने ससुर के पास खिसककर फन्दा उसके घुटने पर रख दिया। “जल्दी ही किसी दिन लेस ऐग्यू में उन्हें शिकार की जरूरत पड़ेगी और हम उन्हीं के जंगल का शिकार उनको बेचेंगे, वरना समझो कि गरीबों का कोई पालनहार नहीं है।"
"बढ़िया चीज बनायी है," उस धूर्ततापूर्ण यंत्र को परखते हुए बूढ़े ने कहा ।
"अभी थोड़ी बहुत कमाई कर लेने के लिए तो यह बहुत अच्छा है, पापा,” मदाम तोंसार ने कहा, “लेकिन तुम्हें पता है कि लेस ऐग्यू के बँटवारे में हमें भी हिस्सा मिलने वाला है?"
"अरे, ये औरतें कितनी बकबकिया होती हैं !” तोंसार चीखा। “अगर मुझे फाँसी हुई तो मेरी बन्दूक की गोली के कारण नहीं, तेरी जुबान की बकबक के कारण होगी ।"
“क्या तुम वाकई मानते हो कि लेस ऐग्यू के टुकड़े कर दिये जायेंगे और उन्हें तुम जैसों के लिए बेचा जायेगा ?” फूर्ची ने पूछा। “बकवास है ! पिछले तीस सालों में वह दुष्ट रिगू तुम्हारी हड्डियाँ निचोड़ता रहा है फिर भी क्या तुम्हारी समझ में नहीं आया है कि ये मध्यवर्ग के लोग सामन्तों से भी बदतर हैं? मेरी बात गाँठ बाँध लो, मेरे बच्चो, जब ऐसा होगा भी तो ये सूद्री, ये गोबर्तें, ये रिगू सब हड़प जायेंगे और तुम धूलं चाटते नजर आओगे । ‘सबसे बढ़िया तम्बाकू मेरे पास है, तुझे यह कभी नहीं मिलेगा,' यह अमीर आदमी का राष्ट्रगान है, समझे? किसान हमेशा किसान ही रहेगा। तुम्हें दिखाई नहीं देता (लेकिन तुम्हें तो राजनीति की कोई समझ है नहीं!) कि सरकार शराब पर इतने भारी टैक्स इसीलिए लगाती है ताकि हमारा मुनाफा कम रहे और हम हमेशा गरीब रहें? ये मध्यवर्ग और सरकार, सब एक हैं। अगर हर कोई अमीर हो गया तो उनका क्या होगा ? क्या वे अपने खेत खुद जोतेंगे? क्या वे अपनी फसल खुद काटेंगे? नहीं, उन्हें गरीबों की जरूरत है! मैं भी दस साल तक अमीर था और मैं जानता हूँ कि मैं कंगालों के बारे में क्या सोचता था । "
" लेकिन फिर भी हमें शिकार में उनके साथ लगे रहना चाहिए," तोंसार ने जवाब दिया, "क्योंकि वे बड़ी जागीरों के टुकड़े करवाना चाहते हैं; और एक बार जब यह काम हो जायेगा तो हम पैंतरा पलटकर उनके खिलाफ हो सकते हैं। अगर मैं कुर्तेक्विस की जगह होता, जिसे वह हरामी रिगू बरबाद कर रहा है, तो मैंने बहुत पहले उसका हिसाब अपनी गोलियों से चुका दिया होता।"
" ठीक ही कह रहे हो,” फूर्शों ने जवाब दिया। जैसा कि पेर निसेरों कहता है ( और वह बाकी सबके काफी बाद तक रिपब्लिकन बना रहा), 'जनता बड़ी चीमड़ होती है; वह मरती नहीं है; उसके पास बहुत समय होता है।"
फूर्शों जैसे किसी दिवास्वप्न में डूब गया; उसका ध्यान कहीं और होने का फायदा उठाकर तोंसार ने अपना फन्दा वापस उठा लिया, और ऐसा करते हुए उसने अपने ससुर की जेब में दिख रहे सिक्के के नीचे हल्का-सा चीरा लगा दिया; यह ठीक उसी समय हुआ जब बूढ़ा गिलास उठाकर होंठों से लगा रहा था और पाँच फ्रैंक का सिक्का नीचे गिरते ही तोंसार ने उस पर अपना पैर रख दिया। सिक्का मिट्टी के फर्श पर गिरा था जो ग्राहकों द्वारा अपने गिलास में बची तलछट फेंके जाने से हमेशा गीला रहता था। हालाँकि यह काम फुर्ती और सफाई से किया गया था फिर भी बूढ़े को शायद इस चोरी का पता चल जाता, अगर ठीक उसी समय वेर्मिशेल वहाँ न पहुँचा होता ।
"तोंसार, तुम्हें पता है तुम्हारा बाप कहाँ है?" कचहरी के उस कर्मचारी ने सीढ़ियों के नीचे से आवाज लगायी।
वेर्मिशेल का चिल्लाना, पैसे की चोरी और बूढ़े फूर्शो का गिलास खाली होना, ये सब एक साथ हुआ।
“हाजिर हूँ, कप्तान !” सीढ़ियों पर वेर्मिशेल को सहारा देने के लिए उसकी ओर हाथ बढ़ाते हुए फूर्शो चिल्लाया।
तमाम बर्गण्डीवासियों में वेर्मिशेल आपको सबसे ज्यादा बर्गण्डियन लगता। वह लाल नहीं था, उसका रंग सिन्दूरी था । उसका चेहरा, धरती के कई कटिबन्धीय इलाकों की तरह विदरों से भरा था, उस पर यहाँ-वहाँ छोटे-छोटे सुषुप्त ज्वालामुखी थे जिनके इर्दगिर्द चपटे और हरे से धब्बे थे जिन्हें फूर्शो "मदिरा के फूल" कहता था। यह आग्नेय चेहरा, जिसके नाक-नक्श लगातार पियक्कड़ी के चलते बेतरह सूजे रहते थे, एक आँख वाले दैत्य की तरह दिखता था, क्योंकि इसका दाहिना हिस्सा एक चमकती आँख से रोशन था और दूसरा हिस्सा बांयीं पुतली के ऊपर एक पीले धब्बे के चलते मुरझाया हुआ था। हमेशा अस्त-व्यस्त रहने वाले लाल बाल और जूडस जैसी दाढ़ी वेर्मिशेल को देखने में उतना ही डरावना बनाते थे जितना वह वास्तव में कायर था। उसकी उभरी हुई नाक एक प्रश्नचिह्न की तरह लगती थी और उसका चौड़ा फटा हुआ-सा मुँह जैसे हमेशा इस प्रश्न का जवाब देता रहता था, उस समय भी जब वह खुला नहीं होता था । वेर्मिशेल एक छोटे कद का आदमी था और तली में घुण्डीदार कीलों वाले जूते, गहरे हरे रंग की मखमली पतलून, मोटे नीले कपड़े की जैकट और चौड़ी किनारी का धूसर रंग का टोप पहने रहता था । उसकी पुरानी वास्कट पर विभिन्न कपड़ों के पैबन्द लगे हुए थे जो शायद मूलतः किसी पलंगपोश के हिस्से थे । यह सारा तामझाम सुलांश शहर के लिए जरूरी था जहाँ वेर्मिशेल टाउनहाल के दरबान, ड्रमवादक, जेलर, संगीतकार और कचहरी के कारकुन के मिलेजुले काम करता था । इस सबकी देखभाल मदाम वेर्मिशेल करती थी, करीब एक गज चौड़ी और एक सौ बीस किलो वजनी (लेकिन बेहद सक्रिय), मूँछोंवाली यह चण्डिका वेर्मिशेल पर सख्ती से राज करती थी । पिये होने पर तो वह उससे पिटता ही था, होश में रहने पर भी वह उसे खुद को पीटने देता था, जिस पर पेर फूर्शों वेर्मिशेल के कपड़ों को हिकारत से देखते हुए कहता था, "यह एक गुलाम की वर्दी है ।"
" सूरज का नाम लो और तुम्हें उसकी किरणें दिख जायेंगी," फूर्शो चिल्लाया। वह वेर्मिशेल के चमकदार चेहरे को लेकर प्रचलित जुमला दोहरा रहा था जो वाकई छोटे कस्बों में शराबखानों के साइनबोर्डो पर बने ताँबे के सूरज से मेल खाता था। “क्या मदाम वेर्मिशेल ने तुम्हारी पीठ से कुछ ज्यादा ही धूल झाड़ दी है कि तुम इस तरह अपने चार बटा पाँच से भागे फिर रहे हो—उसे मैं तुम्हारी अर्द्धांगिनी तो कह नहीं सकता, बाप रे क्या औरत है ! इस घड़ी तुम यहाँ कैसे आ पहुँचे, ड्रम - मेजर ?”
" राजनीति, हमेशा की तरह राजनीति,” वेर्मिशेल ने जवाब दिया, जो शायद ऐसी प्रशस्तियों का आदी था।
"ओह! ब्लांगी में कारोबार की हालत अच्छी नहीं है, और इसलिए विरोधपत्र लिखे जा रहे होंगे और आदेश जारी हो रहे होंगे,” अपने दोस्त के लिए गिलास भरते हुए पेर फूर्शों ने टिप्पणी की।
"हमारा वह बन्दर मेरे ठीक पीछे है," पीछे की ओर इशारा करते हुए वेर्मिशेल ने जवाब दिया।
कामगारों की बोलचाल की जुबान में “बन्दर" का मतलब होता है मालिक । हमारी इस सम्मान्य जोड़ी के शब्दकोश में भी इसका यही मतलब था ।
"मोस्यू ब्रूने यहाँ आने की जहमत क्यों उठा रहे हैं?" तोंसार ने पूछा।
“अरे, शैतान की औलादो, तुम लोगों की वजह से !” वेर्मिशेल ने कहा, “पिछले तीन साल में तुम उसे अपनी औकात से ज्यादा फायदा पहुँचा चुके हो। अहा ! लेस ऐग्यू के उस मालिक की नजर तुम पर है; वह तुम्हारी ढिबरी टाइट कर देगा; वह बनिया तुम्हारे पीछे पड़ गया है ! ब्रूने कहता है कि अगर घाटी में ऐसे तीन जमींदार भी होते तो वह अमीर हो जाता।"
"अब वे गरीबों को और क्या नया नुकसान पहुँचाने जा रहे हैं?" मारी ने पूछा ।
"वे अपने लिए बड़ी होशियारी का काम कर रहे हैं,” वेर्मिशेल ने जवाब दिया । “कसम से! आखिरकार तुम्हें हार माननी ही पड़ेगी। और कोई चारा नहीं । उनके पास ताकत है। पिछले दो साल से क्या उनके पास तीन वनरक्षक और एक घुड़सवार गश्तीदल नहीं है जो चींटियों की तरह हर वक्त सक्रिय रहते हैं, और वह फील्डकीपर, वह अपनेआप में आतंक है। इसके अलावा, पुलिसवाले अपना गन्दा काम करने के लिए हर समय तैयार हैं। वे तुम्हें कुचल डालेंगे —”
“अरे छोड़ो!” तोंसार ने कहा, “हम बिल्कुल चपटे हैं। पेड़ों को कुचला जा सकता है, जमीन को नहीं ।"
“इसके भरोसे अपनी सम्पत्ति मत छोड़ना,” फूर्शो ने अपने दामाद से कहा ।
"ये अमीर लोग जरूर तुमसे प्यार करते होंगे,” वेर्मिशेल बोलता रहा, “क्योंकि वे दिनो-रात बस तुम्हारे बारे में सोचते हैं! आजकल वे खुद से कह रहे हैं : 'उनके मवेशी हमारे चरागाह चर जाते हैं; हम उनके मवेशियों को जब्त कर लेंगे; फिर वे खुद तो घास खा नहीं सकते।' तुम सबका फैसला हो चुका है, वारण्ट जारी हो चुके हैं, और उन्होंने हमारे लंगूर तुम्हारी गायें पकड़ने के लिए कहा है। हमें आज सुबह कोंशे से शुरू करना है जहाँ हमें बुढ़िया बोनबाल की गाय और गोदाएं की गाय और मितां की गाय पकड़नी हैं। "
बोनबाल का नाम आते ही, मारी, जो बुढ़िया के पोते से प्रेम करती थी, अपने बाप और माँ की ओर सिर से इशारा करके अंगूर के बाग में कूद पड़ी । झाड़ियों की बाड़ के बीच छूटी संकरी - सी जगह से वह ईल मछली की तरह सरककर निकली और पिछुआये जाते हुए खरगोश की रफ्तार से कोंशे की ओर रवाना हो गयी।
“वे बस इतना ही कर पायेंगे,” तोंसार ने शान्ति के साथ टिप्पणी की, “कि वे अपनी हड्डिया तुड़वा लेंगे; और यह बड़े दुख की बात होगी क्योंकि उनकी माँएँ उनके लिए नई हड्डियाँ नहीं बना सकतीं।”
“हाँ, शायद ऐसा ही होगा,” बूढ़े फूर्शों ने कहा, "लेकिन देखो, वेर्मिशेल, मैं करीब एक घण्टे या उससे ज्यादा तक तुम्हारे साथ नहीं जा सकता, क्योंकि मुझे गढ़ी में कुछ जरूरी काम है।"
“पाँच-पाँच सू के बदले तीन वारण्ट तामील कराने से भी ज्यादा जरूरी काम है? घर आयी लक्ष्मी को क्यों लौटाते हो?"
“मैंने तुम्हें बताया न, वेर्मिशेल, कि मुझे कारोबार के सिलसिले में ऐग्यू की गढ़ी में जाना जरूरी है,” बूढ़े ने महत्त्वपूर्ण दिखने की हास्यास्पद कोशिश करते हुए कहा ।
"और वैसे भी मेरा बापू इस मामले से अलग ही रहे तो अच्छा,” मदाम तोंसार ने कहा । "क्या तुम वाकई गायों को ढूँढ़ने वाले हो ?"
"मोस्यू ब्रूने बहुत बढ़िया आदमी है, और वह तो शायद उनके गोबर के सिवा कुछ भी न ढूँढ़े,” वेर्मिशेल ने जवाब दिया । "जिस आदमी को दिन-रात बाहर ही रहना होता है उसे इतना ध्यान तो रखना ही चाहिए।"
"अगर वह ध्यान रखता है तो इसके वाजिब कारण हैं,” तोंसार ने अर्थपूर्ण ढंग से कहा।
“इसलिए,” वेर्मिशेल बोलता रहा, “उसने मोस्यू मिशॉ से कहा, 'कचहरी लगते ही मैं चल पहूँगा।' अगर वह वाकई गायों को पकड़ना चाहता तो वह सुबह सात बजे निकल पड़ता। लेकिन मिशॉ को यह बात जँची नहीं, और ब्रूने को अभी चल देना पड़ा है। तुम मिशॉ को चकमा नहीं दे सकते, वह शिकारी कुत्ते जैसा चालाक है! साला, डाकू कहीं का!”
“उसके जैसे शेखीबाज को फौज में ही रहना चाहिए था," तोंसार ने कहा । "वह बस दुश्मनों से ही निपटने लायक है। मैं तो मनाता हूँ कि वह जरा आकर मेरा नाम तो पूछे । वह अपने को बड़ा सूरमा समझता होगा, लेकिन मैं जानता हूँ कि अगर मुझसे दो-दो हो जायें तो आखिर तक मैं ही खड़ा रहूँगा।”
“अरे सुनो!” मदाम तोंसार ने वेर्मिशेल से कहा, “सुलांश की नाच पार्टी की नोटिस कब निकलने वाली है? आज आठ अगस्त हो गयी।"
"मैं कल उसे छपाने के लिए विल-ओ-फाये में मोस्यू बूर्निए के पास ले गया था, " वेर्मिशेल ने जवाब दिया; "इस बार झील पर आतिशबाजी की भी चर्चा है । "
“वाह, क्या भीड़ होगी यहाँ !” फूर्शों चीख पड़ा।
" सोकार पैसे बटोरेगा!" तोंसार ने ईर्ष्या के साथ कहा ।
“अगर बारिश न हुई तो,” उसकी बीवी ने सांत्वना देते हुए कहा ।
ठीक इसी समय सुलांश की दिशा से दुलकी चाल से आते घोड़े की टापें सुनाई पड़ीं और पाँच मिनट बाद शेरिफ के अफसर ने गायों को बाहर निकालने के लिए बने लकड़ी के फाटक के पास लगे खम्भे में अपना घोड़ा बाँधा । फिर ग्रां इवेर के दरवाजे में उसका सिर नजर आया।
“चलो, लड़को, हमें बिल्कुल समय बरबाद नहीं करना चाहिए," हड़बड़ी में होने का दिखावा करते हुए उसने कहा ।
“अरे रुकिये !” वेर्मिशेल ने कहा। “एक अड़चन है मोस्यू ब्रूने, पेर फूर्शो इससे हटना चाहता है ।"
"वह पहले ही कई बार हट चुका है,” शेरिफ ने कहा; "लेकिन इस मामले में कानूनन यह जरूरी नहीं है कि वह पिये हुए न हो।"
“मुझे माफ करिए मोस्यू ब्रूने," फूर्शों ने कहा, “मेरा कारोबार के सिलसिले में ले स ऐग्यू में इंतजार हो रहा है; उनका मेरे साथ एक ऊदबिलाव के लिए करार हुआ है । "
ब्रूने एक मुरझाया हुआ सा छोटा-सा आदमी था जो सर से पाँव तक काले कपड़े पहनता था । पित्त की बीमारी उसकी चमड़ी से झलकती थी, उसकी आँखें चोरों की तरह चकर-पकर करती रहती थीं, उसके बाल घुँघराले थे, होंठ कसकर खिंचे रहते, नाक चपटी थी, चेहरे पर उद्विग्नता का भाव रहता और बोलने में वह बिल्कुल अक्खड़ था । उसका चरित्र और हुलिया पूरी तरह उसके पेशे से मेल खाता था। उसे कानून की, बल्कि ठीक-ठीक कहें तो कानून की बाल की खाल निकालने की इतनी बढ़िया जानकारी थी कि वह पूरे इलाके के लोगों का कानूनी सलाहकार भी था और उनके लिए आतंक भी। किसानों के बीच भी उसे थोड़ी लोकप्रियता हासिल थी जिनसे वह आमतौर पर जिन्सों में अपनी फीस वसूलता था। उसके सक्रिय और नकारात्मक गुणों के योग और मामलों को हल करने की उसकी महारत के चलते इलाके के सारे मुवक्किल उसी के पास जाते थे जिससे उसके प्रतिद्वन्द्वी प्लिसू का धंधा चौपट हो रहा था। उसके बारे में हम आगे कुछ कहेंगे। शेरिफ का एक अफसर जो सब कुछ करता है, और शेरिफ का एक अफसर जो कुछ नहीं करता है, ऐसी जोड़ियाँ देश की कचहरियों में कतई दुर्लभ नहीं हैं ।
" तो मामला गरमा रहा है, क्यों?" तोंसार ने ब्रूने से कहा ।
"तुम और क्या उम्मीद करते हो? तुम लोगों ने उस आदमी को लूटने की हद पार कर दी है और अब वह अपना बचाव करने जा रहा है,” अफसर ने जवाब दिया । "तुम्हारे लिए इसका नतीजा बुरा होगा; सरकार को दखल देना पड़ेगा।"
“तब तो हम जैसे बेचारे गरीबों को मर ही जाना चाहिए !” मदाम तोंसार ने एक तश्तरी पर रखकर ब्राण्डी का गिलास उसकी ओर बढ़ाते हुए कहा ।
“सारे अभागे मर जायेंगे, फिर भी इस देश में उनकी कमी नहीं होगी," फूर्शों ने अर्थपूर्ण ढंग से कहा।
"तुम लोग जंगल को भारी नुकसान पहुँचाते हो,” शेरिफ ने खीझकर जवाब दिया। “इस बात पर यकीन मत करिये, मोस्यू ब्रूने,” मदाम तोंसार ने कहा; “वे चन्द मामूली सूखी टहनियों को लेकर ऐसा शोर मचाते हैं!"
"हमने क्रान्ति के दौरान अमीरों को पर्याप्त नीचे नहीं दबाया, यही सारी गड़बड़ की जड़ है," तोंसार बोला ।
तभी एक भयानक, और बिल्कुल अबूझ सा शोर सुनाई पड़ा। लगता था कि यह जल्दी-जल्दी भागते कदमों की आवाज है, जिसके साथ हथियारों के खड़कने, पत्तों के सरसराने, टहनियों के खींचे जाने और किसी और के भागते कदमों की आहट सुनाई दे रही थी। दोनों अलग-अलग पदचापों जितनी ही भिन्न दो आवाजों की चीख - चिल्लाहट भी कानों तक पहुँच रही थी। सराय के भीतर बैठे हर किसी ने तुरन्त अनुमान लगा लिया कि कोई आदमी किसी औरत का पीछा कर रहा है; पर क्यों? अनिश्चितता ज्यादा देर तक नहीं रही ।
"यह तो अम्मा है !" उछलकर खड़े होते हुए तोंसार ने कहा; “मैं उसकी चीख पहचानता हूँ।”
तभी अचानक तोंसार की बुढ़िया माँ ग्रां इवेर की टूटी सीढ़ियों पर झपटती हुई ऊपर आयी, अपना सारा जोर लगाकर, जैसा सिर्फ तस्करों की मांसपेशियाँ ही कर सकती हैं; और कमरे के बीचोबीच फर्श पर मुँह के बल गिर पड़ी। वह अपने सिर पर लकड़ी का जो बड़ा साढेर लादे हुए थी वह दरवाजे की चौखट से टकराया और जोर की आवाज करते हुए ज़मीन पर गिर पड़ा। हर कोई कूदकर किनारे हट गया। मेज, बोतलें और कुर्सियाँ पलट गयीं और इधर-उधर बिखर गईं। शोर इतना जबर्दस्त था मानो पूरी कुटिया ही भहराकर गिर पड़ी हो ।
"हाय दइया ! मर गई ! उस बदमाश ने मुझे मार डाला !”
बुढ़िया के शब्दों और उसके भागने का कारण तुरन्त ही समझ में आ गया क्योंकि दहलीज पर एक वनरक्षक प्रकट हुआ; वह हरी वर्दी में था, सिर पर रुपहली किनारी वाला टोप पहने और बगल में तलवार लटकाये; उसके सीने पर चमड़े की तिरछी पट्टी पर मोंतकोर्ने का कुलचिह्न बना हुआ था, वह वनरक्षकों की लाल वास्कट पहने था और हिरन की खाल के गेटर उसके घुटनों के ऊपर तक आ रहे थे ।
एक पल हिचकिचाने के बाद वनरक्षक ने ब्रूने और वेर्मिशेल की ओर देखते हुए कहा, "ये रहे गवाह ।"
"काहे के गवाह ?" तोंसार ने कहा ।
“उस औरत ने उन सूखी टहनियों के बीच सिर्फ दस साल के एक ओक के कुन्दे छुपा रखे हैं; यह सरासर जुर्म है ! "
जैसे ही “गवाह” शब्द बोला गया वेर्मिशेल अंगूर के खेतों की ताजा हवा खाने बाहर निकल गया ।
"काहे के ? काहे के गवाह ?" तोंसार वनरक्षक के सामने खड़ा होकर चिल्लाया जबकि उसकी बीवी ने बुढ़िया को उठकर खड़ा होने में मदद की। "तुम हमें अपने पंजे दिखाना चाहते हो, वातेल? लोगों पर कोई भी इल्जाम ठोंक दो और उन्हें उठाकर बन्द कर दो, डाकू कहीं के - ये सब तुम अपने इलाके में करना; लेकिन अभी यहाँ से निकलो ! हर आदमी का घर उसका किला होता है।"
“मैंने उसे रंगे हाथ पकड़ा है, और तुम्हारी माँ को मेरे साथ चलना पड़ेगा।”
“मेरी माँ को मेरे घर में गिरफ्तार करोगे ? तुम्हें ऐसा करने का कोई हक नहीं है । मेरा घर अभेद्य है-सारी दुनिया कम से कम इस बात को जानती है। क्या तुमने मोस्यू गुएर्बे, मजिस्ट्रेट से वारण्ट लिया है? यहाँ आने से पहले तुम्हारे पीछे कानून होना चाहिए। तुम खुद कानून नहीं हो, भले ही तुमने हम लोगों को भूखा मारने की कसम खा रखी है।"
वनरक्षक इस कदर आगबबूला था कि वह झपटकर लकड़ियों का गट्ठर अपने कब्जे ने ही वाला था लेकिन तभी बुढ़िया उस पर चिल्लायी, “उसे हाथ मत लगाना, वरना मैं तेरी आँखें निकाल लूँगी !”
“ठीक है, तो इस गट्ठर को मोस्यू ब्रूने की मौजूदगी में खोला जाये,” वनरक्षक ने कहा ।
हालाँकि शेरिफ के अफसर ने ऐसा उदासीन रुख अपना लिया था जो रोजमर्रा के कामकाज से उसके दर्जे के अफसरों में आ ही जाता है, पर उसने तोंसार और उसकी पत्नी की ओर कनखी से ऐसी नजर से देखा जो साफ कहती थी, “बुरे फँसे!" बूढ़े फूर्शों ने अपनी बेटी की ओर देखा और चुपके से चिमनी के नीचे पड़ी राख की ढेरी की ओर इशारा किया। मदाम तोंसार ने, जो इस इशारे से पल भर में अपनी सास पर आये खतरे और अपने बाप की सलाह दोनों को समझ गई, झट से मुट्ठीभर राख उठाई और वनरक्षक की आँखों में झोंक दी। वातेल दर्द से चिग्घाड़ उठा; तोंसार ने उसे टूटी हुई सीढ़ियों पर जोर से धक्का दिया और वह लड़खड़ाकर गिर पड़ा और फिर लुढ़कते हुए लगभग फाटक तक पहुँच गया; उसकी बन्दूक रास्ते में ही गिर पड़ी। पलक झपकते लकड़ियों का गट्ठर खोला गया, और ओक के कुन्दे बाहर खींचकर ऐसी फुर्ती से छुपा दिये गये जिसका शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। ब्रूने, जो इस कारनामे का गवाह नहीं बनना चाहता था, जिसका उसने फौरन पूर्वानुमान कर लिया था, वनरक्षक को उठने में मदद करने के लिए उसके पीछे भागा। उसने उसे किनारे बैठा दिया और अपना रूमाल पानी में भिगाकर उस बेचारे की आँखें पोंछने लगा जो दर्द के बावजूद सोते तक पहुँचने की कोशिश कर रहा था ।
"तुम गलती पर हो, वातेल," ब्रूने ने कहा; "तुम्हें घरों में घुसने का कोई हक नहीं है, तुम समझते नहीं?"
झुकी हुई पीठ वाली बुढ़िया दरवाजे की चौखट पर दोनों हाथ कूल्हों पर रखे खड़ी थी; उसकी आँखों से चिंगारियाँ और झाग फेंकते होंठों से गालियाँ फूट रही थीं। वह इतनी तीखी आवाज में चिल्ला रही थी जो शायद ब्लांगी तक सुनायी दे रही होगी ।
"दुष्ट कहीं के, अच्छा हुआ ! तू नरक में जायेगा ! मुझ पर पेड़ काटने का शक करता है ! - मुझ पर, पूरे गाँव की सबसे ईमानदार औरत पर कीड़े-मकोड़ों की तरह मेरा पीछा करता है! अच्छा हो तेरी आँखें फूट जाये, तब हम चैन से जियेंगे। तुम सब दुष्टों की मण्डली हो; तुम लोग अपने मालिक और हमारे बीच झगड़ा पैदा करने के लिए बेहूदा कहानियाँ गढ़ते हो।"
वनरक्षक चुपचाप शेरिफ से अपनी आँखें धुलवाता रहा और ब्रूने पूरे समय उसे समझाता रहा कि वह कानूनन गलत था ।
“चोर बुढ़िया ! उसने हमें थका मारा है," आखिरकार वातेल ने कहा । "वह सारी रात जंगल में अपना काम करती रही है।"
पूरा परिवार हरे पेड़ की लकड़ी छुपाने और कुटिया में चीजें ठीक-ठाक करने में जुटा था और तोंसार चेहरे पर उद्धत भाव लिए दरवाजे पर नमूदार हुआ। “वातेल, कान खोलकर सुन लो, आईन्दा से अगर तुमने मेरे इलाके में जबर्दस्ती घुसने की कोशिश की तो मेरी बन्दूक तुम्हें जवाब देगी,” उसने कहा । "आज तुम्हें राख मिली है, अगली बार तुम आग का मजा चखोगे। तुम अपने काम से काम रखो। उतना ही काफी है। अब अगर तुम्हें इस सबके बाद गर्मी महसूस हो रही हो तो थोड़ी वाइन ले लो, यह मेरी ओर से रहेगी । और तुम अन्दर आकर देख सकते हो कि मेरी बूढ़ी माँ के लकड़ी के गट्ठर में ताजी लकड़ी की एक छिपी भी नहीं है, सारी की सारी सूखी टहनियाँ हैं ।"
"लुच्चा कहीं का!" वनरक्षक ने धीमी आवाज में शेरिफ से कहा। अपनी आँखों की जलन से ज्यादा तोंसार की बातों ने उसे भड़का दिया था ।
ठीक उसी समय लेस ऐक्यू का सईस चार्ल्स, ग्रां- इवेर के फाटक पर पहुँचा । “क्या बात है, वातेल?” उसने पूछा ।
“आह!” वनरक्षक ने अपनी आँखें पोंछते हुए कहा जिन्हें ठीक से धोने के लिए उसने -अपना चेहरा पानी में डुबा दिया था। "मेरे कुछ कर्जदार वहाँ भीतर हैं जिनकी मैं वो हालत करूँगा कि वे पछतायेंगे कि पैदा क्यों हुए।"
“अगर आप इसे इस ढंग से लेंगे, मोस्यू वातेल,” तोंसार ने ठण्डेपन से कहा, "तो आपको पता चल जायेगा कि बर्गण्डी में भी हिम्मतवालों की कमी नहीं है।"
वातेल चला गया। चार्ल्स को यह जानने की ज्यादा उत्सुकता नहीं महसूस हुई कि गड़बड़ किस बारे में थी । वह सीढ़ियों से ऊपर गया और मकान के भीतर झाँका । “अपने ऊदबिलाव को लेकर गढ़ी चलो - अगर तुम्हारे पास वाकई है तो,” उसने पेर फूर्शों से कहा ।
बूढ़ा झट से उठकर उसके पीछे चल दिया।
“हूँ, कहाँ है वह - तुम्हारा वह ऊदबिलाव ?” चार्ल्स ने सन्देह से मुस्कुराते हुए कहा ।
"इधर आओ,” थ्यून की ओर चलते हुए बूढ़े ने कहा ।
यह पनचक्की की नहर से बहकर आये पानी और लेस ऐग्यू के बाग के कुछ सोतों से बने हुए नाले का नाम है । यह देहाती सड़क के किनारे-किनारे सुलांश की छोटी झील तक बहता है और फिर उसे पार कर सुलांश जागीर की पनचक्कियों और पोखरियों को पानी देता हुआ एवोन में गिर जाता है।
“यह रहा; मैंने इसके गले में पत्थर बाँधकर नाले में छुपा दिया था । "
जैसे ही वह झुका और फिर खड़ा हुआ, बूढ़े को अपनी जेब से गायब हुए सिक्के का पता चल गया, क्योंकि वहाँ धातु का होना इतनी असामान्य बात थी कि उसकी मौजूदगी या गैरमौजूदगी का एहसास उसे फौरन हो ही जाना था ।
“आह, चोर कहीं के!” वह चिल्लाया । "मैं तो ऊदबिलावों का शिकार करता हूँ लेकिन वे तो अपने ससुर का शिकार कर डालते हैं ! जो कुछ भी मैं कमाता हूँ वे मुझसे झटक लेते हैं और मुझे बताते हैं कि यह मेरी भलाई के लिए है! अगर बेचारा मेरा मूश न होता, जो मेरे बुढ़ापे का सहारा है तो मैं पानी में डूबकर जान दे देता । आजकल के बच्चे ! अरे वे अपने बापों को बरबाद कर डालते हैं । तुमने शादी तो नहीं की है न, मोस्यू चार्ल्स ? तो कभी मत करना; कभी शादी मत करना, और तब तुम्हें कभी पछतावा नहीं होगा तुमने गन्दा खून क्यों फैलाया। मैं उस पैसे से सन खरीदने वाला था, और अब वह हड़पा जा चुका है, चोरी हो गया है! लेस ऐग्यू के उस मेहमान ने, कितना बढ़िया नौजवान है वह, उसने मुझे दस फ्रैंक दिये थे। ठीक है ! अब मेरे ऊदबिलाव की कीमत और चढ़ जायेगी ।”
चार्ल्स को इस बूढ़े पर इतना गहरा अविश्वास था कि उसने उसकी शिकायतों को (जो इस बार बिल्कुल सच्ची थीं) उस चीज की भूमिका के रूप में लिया जिसे वह नौकरों की बोलचाल की जुबान में " वार्निश" कहता था, और वह अपनी इस राय को एक व्यंग्यपूर्ण मुस्कान के रूप में प्रकट करने की गलती कर बैठा, जिसे बूढ़े ने ताड़ लिया ।
“चलो, चलो ! पेर फूर्शों, अब जरा तमीज से पेश आओ! तुम मदाम से मिलने जा रहे हो,” चार्ल्स ने उस बूढ़े पियक्कड़ की नाक और गालों पर कौंधी गुस्से की लाली को देखते हुए कहा ।
“मुझे मालूम है कि कारोबार कैसे किया जाता है, चार्ल्स और इसका सबूत यह है कि अगर तुम मुझे रसोई से बचा हुआ नाश्ता और स्पेनी वाइन की एक-दो बोतलें निकाल दो तो मैं तुम्हें ऐसी चीज बताऊँगा जो तुम्हें मुश्किल में पड़ने से बचा सकती है।"
“मुझे बताओ, और फ्रांस्वा खुद मालिक के हुक्म से तुम्हें एक गिलास बढ़िया वाइन पिलायेगा," सईस ने कहा ।
"वादा ?"
" पक्का वादा ।"
“तो सुनो, मैं जानता हूँ कि तुम मेरी नातिन कैथेरीन से एवोन के पुल के नीचे मिलते हो। गोदाएं उससे प्रेम करता है; उसने तुम्हें देख लिया और वह इतना बेवकूफ है कि तुमसे जलने लगा है - मैं बेवकूफ इसलिए कहता हूँ कि क्योंकि एक किसान में ऐसी भावनाएँ नहीं होनी चाहिए जो सिर्फ अमीरों को ही रास आती हैं। अगर तुम तिवोली में सुलांश की नाच पार्टी में जाओगे और कैथेरीन के साथ नाचोगे, तो तुम्हें ऐसा नाच नाचना पड़ेगा जो तुम्हें पसन्द नहीं आयेगा। गोदाएं पैसेवाला और खतरनाक है; वह तुम्हारा हाथ तोड़ डालेगा और तुम उसे गिरफ्तार भी नहीं करवा पाओगे ।"
"यह तो ज्यादा ही महँगा सौदा होगा; कैथेरीन अच्छी लड़की है, लेकिन इतनी भी नहीं,” चार्ल्स ने जवाब दिया। “गोदाएं इतना नाराज क्यों होता है? दूसरे तो नहीं होते ?"
"वह कैथेरीन से इतना प्यार करता है कि उससे शादी करना चाहता है । "
"अगर ऐसा हुआ, तो वह उसे पीटेगा," चार्ल्स ने कहा ।
"मैं इसके बारे में कुछ कह नहीं सकता,” बूढ़े ने कहा । " वह अपनी माँ पर गई है जिसके खिलाफ तोंसार ने कभी एक उँगली भी नहीं उठाई - वह डरा रहता है कि वह सब छोड़कर चल देगी, बड़े गर्म तेवर की है वह । ऐसी औरत बड़े काम की होती है जो खुद को सँभालना जानती है। और इसके अलावा, अगर कैथेरीन के साथ हाथापाई की नौबत आ ही गयी, तो भले ही गोदाएं काफी तगड़ा है, पर आखिरी बार उसका नहीं होगा।"
“शुक्रिया पेर फूर्शों; ये लो चालीस सू, मान लो अगर मैं तुम्हें शेरी नहीं दिला सका तो मेरी सेहत के लिए इससे दो जाम पी लेना ।"
पैसे जेब में डालते हुए पेर फूर्शों ने अपना सिर एक ओर घुमा लिया ताकि चार्ल्स उसके चेहरे पर आयी व्यंग्य का भाव न देख सके जिसे वह कोशिश करके भी दबा नहीं पाया था।
"कैथेरीन,” उसने फिर कहना शुरू किया, "बड़ी नखरीली है; उसे शेरी बहुत पसन्द है। अच्छा होगा कि तुम उसे बता दो कि वह खुद लेस ऐग्यू में जाकर उसे ले लिया करे।”
चार्ल्स ने पेर फूर्शों को अनाड़ियों वाले प्रशंसा भाव से देखा, उसे इस बात का जरा भी भान नहीं हुआ कि जनरल के दुश्मन गढ़ी में एक और जासूस चुपके से घुसा देने में कितनी दिलचस्पी लेते हैं ।
“अब तो जनरल को खुश होना चाहिए,” फूर्शों बोलता रहा; “सारे किसान बिल्कुल शान्त हैं। क्या कहते हैं वह ? क्या वह सिबिले से सन्तुष्ट हैं ?"
“सिर्फ मोस्यू मिशो ही हैं जो सिबिले की गलतियाँ निकालते रहते हैं । कहते हैं कि वह उसे हटवा देंगे।"
“पेशेवर जलन है, और कुछ नहीं!” फूर्शों ने कहा । "मैं शर्त बद सकता हूँ कि तुम भी फ्रांस्वा की छुट्टी कर उसकी जगह लेना चाहते होगे ।”
"अरे छोड़ो ! उसे बारह सौ फ्रैंक तनख्वाह मिलती है," चार्ल्स ने कहा; “और वे उसे चलता नहीं कर सकते - वह जनरल की गोपनीय बातें जानता है ।"
"वैसे ही जैसे मदाम मिशो काउण्टेस के बारे में जानती है," फूर्शों ने सईस को ध्यान से देखते हुए कहा। “सुनो बेटे, क्या तुम जानते हो कि मोस्यू और मदाम अलग-अलग कमरों में सोते हैं?"
"जाहिर है; अगर ऐसा नहीं होता तो मोस्यू को मदाम इतनी प्यारी न होती।” “क्या तुम्हें बस इतना ही मालूम है ?” फूर्शों ने कहा ।
अब वे रसोई की खिड़कियों के पास पहुँच गये थे इसलिए और कुछ नहीं कहा गया ।
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(अनुवाद : सत्यम)
(साभार : राजकमल प्रकाशन)