किसान (उपन्यास) : ओनोरे द बाल्ज़ाक
The Peasantry (French Novel in Hindi) : Honore de Balzac
समर्पण
मोस्यू1 पी. एस. बी. गावोल के लिये ।
अपनी 'नुवंज हेलुआस' के आरम्भ में जां-जाक रूसो ने ये शब्द लिखे थे : "मैंने अपने समय की नैतिकताओं को देखा है और इसलिए मैं ये पत्र प्रकाशित कर रहा हूँ।" उस महान लेखक की नकल करते हुए क्या मैं आपसे नहीं कह सकता, "मैंने अपने युग के बढ़ते हुए कदमों का अध्ययन किया है और इसलिए मैं यह कृति प्रकाशित कर रहा हूँ" ?
इस अध्ययन - जिसकी सच्चाई तब तक लोगों को चौंकाती रहेगी जब तक समाज लोकोपकार को एक दुर्घटना के रूप में लेने के बजाय इसे एक सिद्धान्त मानता रहेगा - का उद्देश्य उस वर्ग के प्रमुख चरित्रों को प्रकाश में लाना है जो लम्बे समय से उन लेखकों के कलमों से अनछुआ रहा है जो अपने विषय के रूप में बस नयेपन की तलाश करते रहते हैं। राजतंत्र के चाटुकारों के उत्तराधिकारियों से भरे इस समय में संभवतः यह विस्मरणशीलता बुद्धिमानी ही हो। हम अपराधियों पर कविताएं रचते हैं, हम जल्लाद के प्रति सहानुभूति प्रकट करते हैं, हमने सर्वहारा को लगभग देवता ही बना दिया है । अनेक पंथ पैदा हो गये हैं और अपनी हर कलम से आवाज लगा रहे हैं, “उठो, मेहनतकशो !” ठीक वैसे ही जैसे पहले वे “तियेर एता” से “उठो!” की गुहार लगाते थे। लेकिन इन बिना चोंच के पंछियों ने कभी यह हिम्मत नहीं जुटायी कि देहात का अकेलापन झेलकर वहाँ रहें और वहाँ जारी अनवरत षड्यंत्र का अध्ययन करें। हम जिन्हें कमजोर समझते हैं, उनका षड्यंत्र, उन लोगों के विरुद्ध जो खुद को मजबूत माने बैठे हैं - यानी मालिक के विरुद्ध किसान का षड्यंत्र | यह जरूरी है कि सिर्फ आज के ही नहीं बल्कि कल के विधि-निर्माता की भी आँखें खोली जायें। वर्तमान लोकतांत्रिक उफान, जिसमें हमारे बहुत से लेखक अंधाधुंध पिल पड़े हैं, के बीच यह एक आवश्यक कर्तव्य बन जाता है कि उस किसान को दर्शाया जाये जिसने कानून को लागू होने लायक नहीं छोड़ा है, और जिसने भूस्वामित्व को एक ऐसी चीज बना दिया है, जो है भी और नहीं भी है।
आप अब उस कभी न थकने वाले छछूंदर के दर्शन करने वाले हैं, उस चूहे के, जो भीतर ही भीतर धरती को खोदकर खण्ड-खण्ड कर डालता है, उसके हिस्से करता है और एक एकड़ को सौ टुकड़ों में बांट देता है - और इस उत्सव के लिए उसे लगातार उस रहता है वह मध्यवर्ग जो एक ही साथ उसे अपना सहायक और अपना शिकार दोनों बना रहा है। यह मूलतः असामाजिक तत्व, जो क्रान्ति की पैदावार है, एक दिन मध्यवर्गों को हजम कर जायेगा, उसी तरह जैसे मध्यवर्गों ने सामन्तों को तबाह किया है। अपनी महत्वहीनता के चलते कानून से ऊपर उठ चुका, एक सिर और दो करोड़ हाथों वाला यह रोब्सपिएर अविरत अपने काम में जुटा है; वह देहाती जिलों में घात लगाये है, नगरपालिका परिषदों में घुसा है, फ्रांस की हर छावनी के नेशनल गार्ड में हथियार बांधे खड़ा है। यह उसी सन् 1830 का एक परिणाम है जो इस बात को याद नहीं रख सका कि नेपोलियन जनसाधारण को हथियारबन्द करने के खतरे के बजाय हार का खतरा उठाना बेहतर समझता था ।
पिछले आठ वर्षों के दौरान अगर मैंने बार-बार इस पुस्तक (अब तक की मेरी सबसे महत्त्वपूर्ण पुस्तक) को लिखने का इरादा छोड़ा है, और उतनी ही बार मैं इस पर वापस लौटा हूँ, तो जैसा कि आप और दूसरे मित्र अनुमान लगा ही सकते हैं, इसका कारण यह था कि इस कदर भयावह और इतने क्रूर, रक्तरंजित ड्रामा की तमाम कठिनाइयों, तमाम जरूरी ब्योरों को देखकर मेरी हिम्मत जवाब दे जाती रही है। जिन कारणों से मैंने यह दुस्साहस किया है, उनमें से एक यह भी है कि मैं इस कृति को जल्दी पूरा करना चाहता था ताकि मैं इसे दुर्भाग्य के दिनों के अपने सबसे बड़े सहारों में से एक, आपकी दोस्ती के लिए अपनी गहरी और स्थायी कृतज्ञता के प्रमाण के रूप में आपको समर्पित कर सकूं ।
-द बाल्ज़ाक
(1 मोस्यू=श्रीमान । - अनु.)
भाग एक
जिसके पास जमीन है, उसके पास कलह भी है ।
अध्याय एक : गढ़ी1
लेस ऐग्यू, 6 अगस्त, 1823
मोस्यू नथान के लिए,
मेरे प्रिय नथान - तुम, जो अपनी कल्पना के जादू से जनता को ऐसे आनन्ददायी स्वप्न उपलब्ध कराते हो, अब देखोगे कि कैसे मैं तुम्हारे स्वप्न को एक सच्चा स्वप्न बनाता हूँ । फिर तुम मुझे बताना कि क्या वर्तमान शताब्दी वर्ष 1923 के नाथनों और ब्लोंदेओं के लिए ऐसे ही स्वप्नों की वसीयत छोड़ जायेगी; तुम इस बात का भी अनुमान लगाना कि हम उन दिनों से कितनी दूर हैं जब अठारहवीं शताब्दी की फ्लोरिनों ने जागने पर पाया था कि उनके सौदे के तहत उन्हें लेस ऐग्यू जैसी एक गढ़ी मिली है।
(1 शैतो- फ्रांस में जागीरदार की गढ़ी या हवेली। मध्ययुगों में विद्रोहों किसानों और लुटेरों के हमलों से बचने के लिए इसके चारों ओर मजबूत किलेबन्दी की जाती थी । लुई चौदहवें के शासनकाल में शैतो बनवाने का सिलसिला कम हो गया क्योंकि कुलीन ज्यादा समय पेरिस में बिताने लगे । - अनु.)
मेरे प्यारे, अगर तुम्हें यह पत्र सुबह मिलता है, तो बिस्तर में लेटे-लेटे ही अपने मन को पेरिस से करीब पचास लीग दूर की यात्रा पर ले जाओ, उस शानदार डाक सड़क से होते हुए जो बर्गण्डी की सीमा तक जाती है । वहाँ तुम्हें लाल ईंटों से बने दो देहाती बंगले दिखाई देंगे जिन्हें हरे पेंट से रंगी हुई एक बाड़ जोड़ती है, या अलग करती है। यही वह जगह थी जहाँ कर्तव्यपरायणता ने तुम्हारे दोस्त और पत्रलेखक को ला पटका ।
मण्डपों के इस जोड़े के दोनों ओर घनी झाड़ी की बाड़ है जिसमें जगह-जगह कँटीली लताओं के गुच्छे आवारा बालों की लटों की तरह झूल रहे हैं । यहाँ-वहाँ कोई पेड़ दिलेरी से सिर उठाये खड़ा है; किनारे की खाई की ढलान पर खिले फूल इसके हरे - से, ठहरे हुए पानी में अपने पाँव पखारते हैं। झाड़ी के दोनों सिरे जंगल की दो पट्टियों को जोड़ते हैं और इस तरह से घिर कर बना दोहरा मैदान निस्सन्देह जंगल काटकर जमीन साफ किये जाने का नतीजा है।
धूलभरे और उजाड़ मण्डप सौ-सौ साल पुराने एल्म वृक्षों के बीच से गुजरती एक भव्य वीथिका का प्रवेशद्वार है। इन वृक्षों के छतनार सिरे एक-दूसरे की ओर झुके हुए हैं। जिससे एक लम्बा और शानदार छायादार मार्ग बन गया है। इस वीथिका पर घास उगी हुई है और दोहरे रास्ते भर की इसकी चौड़ाई में कुछ ही गाड़ियों के पहियों की लीक दिखती है। इन पेड़ों की पुरानी उम्र, वीथिका की चौड़ाई, मण्डपों का ठाठदार स्थापत्य, उनके पथरीले रास्तों की भूरी रंगत, ये सब जैसे बता रहे हों कि आप किसी अर्द्ध- राजसी आवास की ओर जा रहे हैं।
मैं इस अहाते तक एक ऐसी ऊँची जगह से होकर पहुँचा जिसे हम फ्रांसीसी लोग किंचित घमण्ड के साथ शायद पहाड़ का नाम दे दें। इसकी तलहटी में कोंशे गाँव (इस मार्ग की आखिरी डाकचौकी) बसा है। इससे पहले मैंने ऊँचाई से ऐग्यू की लम्बी घाटी को देखा था जिसके दूर वाले सिरे पर डाक सड़क मुड़कर सीधी ला विल-ओ-फाये के छोटे-से सब-प्रीफेक्चर में चली जाती है, जहाँ पर, जैसा कि तुम जानते ही हो हमारे मित्र दे ल्यूपोल के भतीजे का राज चलता है। दूर क्षितिज पर, एक नदी के किनारे फैले विस्तृत ढलानों पर पसरे हुए ऊँचे जंगल इस समृद्ध घाटी की पहरेदारी करते हैं। और दूर, निचले स्विट्जरलैण्ड की मोर्वन पर्वतमाला इस दृश्यावली के एक भव्य चौखटे का काम कर रही है। ये जंगल लेस ऐग्यू के और मार्क्यू द रोंकेरोल और कोम्त द सुलांश के हैं। इस ऊँचाई से दूरी पर दिखाई दे रहे उनके किले और बागीचे और गाँव इस पूरे दृश्य को वेल्वेत ब्रुग़ल की काल्पनिक लैण्डस्केप पेण्टिंगों जैसा बना रहे हैं।
अगर ये ब्योरे तुम्हें उन तमाम हवाई किलों की याद नहीं दिलाते जिन्हें फ्रांस में हासिल करने की तुम इच्छा रखते हो, तो तुम एक भौचक्के पेरिसवासी का यह वृतान्त सुनने के हकदार नहीं हो सकते। आखिरकार मैंने एक ऐसा भूदृश्य देखा है जिसमें कला प्रकृति के साथ इस तरह घुली मिली है कि दोनों में से कोई भी एक-दूसरे को बिगाड़ता नहीं है; यहाँ कला प्राकृतिक है, और प्रकृति कलात्मक । उपन्यासों को पढ़ते हुए तुम और मैं जिस नखलिस्तान का सपना देखते थे, वह मुझे मिल गया है - हरी-भरी, सजी-धजी प्रकृति, लहरदार उठती-गिरती रेखाएँ जो कहीं टूटती नहीं हैं, सबकुछ किसी बेलगाम, अनछुई रहस्यमय चीज का अहसास कराता हुआ, जो सामान्य तो कतई नहीं है। बस अब वह हरी बाड़ फाँदो और चले आओ!
इस वीथिका की घनी छत को सूरज भेद नहीं पाता सिवाय सूर्योदय और सूर्यास्त के समय के, जब पेड़ों के तनों के बीच से आती इसकी तिरछी किरणों से सड़क पर जेब्रा जैसी धारियाँ बन जाती हैं। जब मैंने इस वीथिका पर दूर तक देखने की कोशिश की तो बीच में जमीन के एक उभरे हुए हिस्से ने मेरी नजर का रास्ता रोक लिया। उसे पार करने के बाद इस लम्बी वीथिका के रास्ते में पेड़ों का एक झुरमुट आ जाता है जिसके भीतर दो सड़कें एक-दूसरे को काटती हैं और बीचोबीच खड़ा है पत्थर का एक सूच्याकार स्तम्भ, एक शाश्वत विस्मयादिबोधक चिन्ह की तरह । इस स्तम्भ के ऊपर पत्थर की एक कीलदार गेंद बनी है। ( क्या कल्पना है ! ), और इसकी बुनियाद के पत्थरों की दरारों से नीले-पीले मौसमी फूलों के पौधे लटक रहे हैं। लेस ऐग्यू को जरूर किसी स्त्री ने बनवाया होगा या यह किसी स्त्री के लिए बनवायी गयी होगी; किसी पुरुष के दिमाग में ऐसे नज़ाकत भरे ख्याल नहीं आ सकते। बिलाशक, आर्किटेक्ट को स्पष्ट निर्देश दिये गये थे ।
संतरी के बतौर वहाँ मौजूद छोटे से वन को पार करके मैं एक मनमोहक ढलान पर पहुँचा जिसके नीचे छोटा सा सोता झाग उठाते हुए बह रहा था। मैंने काई से ढँके पत्थरों की एक पुलिया से इसे पार किया जिसके अद्भुत रंग समय के हाथों से रची लाजवाब पच्चीकारी का नमूना पेश कर रहे थे । वीथिका सोते के किनारे-किनारे एक सुतवाँ उभार पर चढ़ती जाती है। दूर, पहली झाँकी अब दिखाई देने लगी है-एक पनचक्की और उसका छोटा सा बाँध, नहर के किनारे बनी सड़क और पेड़, सूखने के लिए फैलाये कपड़े, चक्कीवाले की फूस की झोपड़ी, उसके मछली पकड़ने के जाल और मछलियाँ पालने के लिए छोटी सी पोखरी- और चक्कीवाले का लड़का, जो मुझे ध्यान से देख रहा है। देहात में तुम चाहे जहाँ जाओ, तुम चाहे खुद को कितना भी एकाकी महसूस करो, यह पक्का है कि किसी गँवार की दो आँखें तुम पर लगी होंगी; कोई मजदूर अपने फावड़े की टेक लगाकर खड़ा हो जायेगा, कोई अंगूर की बेलें छाँटने वाला अपनी झुकी कमर सीधी करेगा, कोई बकरियाँ चराने वाली लड़की, या गड़ेरिन या ग्वालिन तुम्हें घूरने के लिए विलो के पेड़ पर चढ़ जायेगी ।
यह वीथिका जाकर अकासिया की झाड़ियों के बीच से गुजरते गलियारे में मिल जाती है जो लोहे के एक जंगले तक जाता है। यह जंगला उन दिनों में बना हुआ लगता है जब लोहार ऐसी नाजुक नक्काशी करते थे जो बचपन में हमें सुलेख शिक्षक द्वारा दिये गये काम जैसी लगती है। जंगले के दोनों तरफ पानी में डूबी हुई एक बाड़ है जिसके ऊपर तनी डरावनी छोटी-छोटी बर्छियाँ पानी से निकली धातु की साहियों की कतार जैसी लग रही हैं। जंगले के दोनों सिरों पर वर्साई के महल की तरह द्वारपालों की दो कोठरियाँ हैं और बड़े से फाटक के दोनों ओर दो विराटकाय कलश बने हैं। अरबी शैली के बेलबूटों का सुनहरा रंग जंग लगने से ललछौंह हो गया है लेकिन इसके बावजूद इस प्रवेशद्वार की खूबसूरती में मुझे कोई कमी नजर नहीं आती। इसे बस “ वीथिका का द्वार" कहा जाता है जो महान दोफें वंश के प्रभाव का सूचक है (वास्तव में उन्हीं की बदौलत तो लेस ऐग्यू बना है) । पानी में डूबी बाड़ के दोनों सिरों पर खुदुरे कटे पत्थरों से बनी बागीचे की दीवारें शुरू हो जाती हैं। लाल मिट्टी के गारे से जुड़े ये पत्थर तरह-तरह के आकार और रंगों के हैं-कहीं पीले चकमक पत्थर, कहीं सफेद चूना पत्थर, तो कहीं भूरे बलुआ पत्थर । भीतर प्रवेश करने पर बागीचा कुछ मनहूस सा लगता है। दीवारें लताओं से और ऐसे पेड़ों से ढंकी हैं जिन्होंने पचास साल से कुल्हाड़े की आवाज भी नहीं सुनी। कोई सोच सकता है कि यह एक अछूता जंगल है जो किसी रहस्यमय परिघटना के चलते फिर से आदिम युग का जंगल बन गया है। पेड़ों के तने लाइकेन से ढंके हैं जो एक से दूसरे पेड़ के बीच भी लटकी हुई है । लसीली पत्तियों वाले परजीवी मिसलटो पौधे पेड़ों की शाखाओं के ऐसे हर जोड़ से लटक रहे हैं। जहाँ नमी इकट्ठा हो सकती है। मैंने ऐसी दैत्याकार आइवी लताएँ और जंगली बेलें देखी हैं जो सिर्फ यहाँ, पेरिस से पचास लीग दूर ही, पनप सकती हैं जहाँ जमीन की कीमत इतनी नहीं कि उसका किफायतशारी से इस्तेमाल किया जाये। ऐसी मुक्त रेखाओं से बनी लैण्डस्केप पेंटिंग बहुत दूर तक पसरी है। यहाँ कुछ भी सुघड़ सुनिश्चित नहीं है; ढलानें अचानक सामने आ जाती हैं, गड्ढे और खाइयाँ पानी से भरी हैं, मेंढक बड़ी शान्ति से बच्चे दे रहे हैं, जंगली फूल चारों ओर खिले हुए हैं और हीदर के चटख लाल फूल उतने ही सुन्दर हैं जितने मैंने जनवरी में तुम्हारे मेंटलशेल्फ पर फ्लोरीन द्वारा भेजे दिलकश गुलदस्ते में देखे थे । यह रहस्यमयता मादक है, यह मन में अबूझ सी इच्छाएँ जगाती है। जंगल की गन्धे, काव्यविलासियों की आत्माओं की प्रिय गन्धें- शैवाल के नन्हे गुच्छे, जहरीले कुकुरमुत्ते, नम हरी फफूँद, पानी में झुके विलो वृक्ष, गुलमेंहदी, जंगली अजवायन, पोखर का हरा पानी, पीली जल- लिली का सुनहरा तारक - इन सबसे उठती ऊर्जस्वी साँसें मेरे नथुनों तक आती हैं और मेरे मन में बस एक ही ख्याल छा जाता है; क्या उन काव्यविलासियों की आत्मा अभी यहाँ थी? ऐसा लगा कि मैंने अभी गुलाब की रंगत वाला एक गाउन बल खाते गलियारे में लहराता देखा है।
रास्ता एक और झुरमुट में पहुँचकर अचानक खत्म हो गया जहाँ बर्च और पोपलर और तमाम लहराते हुए पेड़ स्पन्दित हो रहे थे - यह सुघड़ शाखाओं वाले गरिमापूर्ण वृक्षों का कुनबा था जिसके हर सदस्य की बड़ी प्यार से देखभाल की गयी लगती थी। यही वह जगह थी मेरे प्यारे, जहाँ से मैंने एक तालाब देखा जिसकी सतह सफेद जल- लिली और चौड़े चपटे या फिर पतले- नाजुक पत्तों वाले दूसरे पौधों से ढंकी थी। उसमें काले और सफेद रंग से रंगी एक नाव, हौले-हौले डोल रही है । यह नाव बादाम के छिलके - सी हल्की और पेरिस के नाववाले की नौका जैसी सजीली है। उसके आगे दिखती है 1560 में निर्मित भव्य गढ़ी, बढ़िया लाल ईंटों से बनी हुई जिसमें पत्थर के रदे और मुंडेरें हैं और खिड़कियों के चौखटों में छोटे-छोटे शीशों वाले पल्ले हैं (ओ वर्साई) । पत्थर हीरे की आकृति की तरह तराशे गये हैं और उन्हें गहरा कर दिया गया है, ठीक वैसे ही जैसे वेनिस में ड्यूकल पैलेस के ब्रिज ऑफ साइस की ओर वाले हिस्से में किया गया है। इस किले में कहीं भी सीधी-सादी रेखाएँ नहीं हैं, सिवाय बीच की इमारत के, जहाँ से एक राजसी-सा पोर्टिको बाहर निकला हुआ है। घुमावदार सीढ़ियाँ दो ओर से ऊपर जाती हैं और पोर्टिको टिका है गोल खम्भों पर, जो नीचे तो पतले हैं पर बीच में चौड़े हो गये हैं। मुख्य इमारत के इर्द-गिर्द घण्टाघर की मीनारें और आधुनिक किस्म के बुर्ज हैं जिनमें कई दीर्घाएँ बनी हैं और जगह-जगह यूनानी किस्म के बड़े-बड़े गुलदान रखे हैं । यहाँ कोई सामंजस्य नहीं है, मेरे प्यारे नथान! इन ऊँची-नीची इमारतों को अनेक सदाबहार पेड़ों ने एक तरह से लपेट रखा है जिनकी टहनियाँ अपनी भूरी सुइयाँ छतों पर गिराती रहती हैं, लाइकेन को पोषण देती हैं और उन दरारों और गड्ढों को एक रंगत देती हैं जहाँ आँखें बार-बार खुद ही पहुँच जाती हैं। देखो, इधर लाल छाल और शानदार छतरी वाला इतालवी पाइन या स्टोन पाइन है; उधर दो सौ साल पुराना देवदार है, बेद-मजनूं के पेड़ हैं, नार्वे का एक फर है और उन सबसे ऊँचा उठा हुआ बीच वृक्ष है; और वहाँ, मुख्य मीनार के सामने कुछ बेजोड़ झाड़ियाँ हैं - यू की ऊँची झाड़ी इस तरह से तराशी गई है कि वह पुराने फ्रांस के किसी उजड़े बाग की याद दिलाती है और उसके नीचे मैग्नोलिया और होर्तेन्सिया के बेहद खूबसूरत फूल खिले हैं। संक्षेप में, यह जगह बागबानी के नायकों की प्रतिभा का नमूना है, जो एक समय फैशन में थे और अब सभी दूसरे नायकों की तरह भुला दिये गये हैं ।
विचित्र से कंगूरों वाली एक चिमनी से ढेर सारा धुआँ निकलता देख मैं आश्वस्त हुआ कि यह आनन्ददायी दृश्य किसी आपेरा का सेट नहीं है। रसोई इंसानों के होने का गवाह होती है। अब जरा कल्पना करो कि मैं, जो पेरिस में इस तरह ठिठुरता हूँ जैसे सैं- क्लू के ध्रुवीय प्रदेश में हूँ, यहाँ बर्गण्डी के इस गर्म, धूपभरे माहौल में कैसा महसूस कर रहा होउंगा। सूरज अपनी सबसे गर्म किरणें फेंक रहा है, किंगफिशर तालाब के किनारे चौकन्ना खड़ा , टिड्डे टिरटिरा रहे हैं, अनाज की बालियाँ पककर फटने को हैं, पोस्ते के फूलों से उनका मादक रस मोटे-मोटे आँसुओं की तरह बह रहा है, और यह सब गहरे नीले आसमान की पृष्ठभूमि में साफ चटख दिख रहा है। सीढ़ीदार खेतों की लाल मिट्टी के ऊपर उस आह्लादपूर्ण प्राकृतिक मदिरा के भभूके उठ रहे हैं जिनसे तितलियाँ और फूल मदमस्त हो रहे हैं और हमारी आँखें चुँधिया जा रही हैं। अंगूर की लताओं में मोतियों से दाने आने लगे हैं और इनकी पतली-पतली लतरों से ऐसा हरा पर्दा बन गया है जिसकी नजाकत देखकर पेरिस के लेस बुनने वाले भी शर्मा जायें। मकान के बगल में नीले लार्कस्पर, नेस्टरशियम और स्वीटपी के फूल खिले हैं। थोड़ी दूर से संतरे के पेड़ और ट्यूबरोज अपनी खुशबू हवा में बिखेर रहे हैं। जंगल के काव्यात्मक उच्छवास के बाद इस वनस्पतिशास्त्रीय खजाने की सुखद सुगन्धियों ने मेरा मन ताजा कर दिया।
पोर्टिको की छत पर फूलों की रानी की तरह श्वेत वस्त्रधारी एक स्त्री खड़ी है, खुले बालों वाली । वह सफेद रेशम की एक छतरी लिये हुए है और वह खुद रेशम से भी ज्यादा सफेद है, नीचे खिले लिली के फूलों से भी ज्यादा सफेद, पोर्टिको के खम्भों पर लिपटी चमेली के फूलों से भी ज्यादा साफ रंग की है। वह एक फ्रांसीसी स्त्री है जिसका जन्म रूस में हुआ । पास पहुँचने पर वह मुझसे कहती है, “मैंने तो तुम्हारे आने की आशा छोड़ ही दी थी।" पेड़ों के झुरमुट से निकलते समय ही उसने मुझे देख लिया था । सरल से सरल स्त्री भी कितनी खूबी से इस बात को समझ लेती है कि एक प्रभावित करने वाला दृश्य कैसे तैयार किया जाये। नाश्ता लगाने की तैयारी कर रहे नौकर-चाकरों के हाव-भाव मुझे बता रहे थे कि कर्तव्यनिष्ठ पत्रकार के आगमन तक नाश्ते को जानबूझकर टाला गया था। मैं रास्ते के दृश्यों को भरपूर देख सकूं, इसलिए वह गेट पर मुझसे मिलने नहीं आयी थी ।
क्या यह हमारा स्वप्न नहीं है- सौन्दर्य के हर रूप के सभी प्रेमियों का स्वप्न; वह दिव्य सौन्दर्य जिसे लुइनी ने सरोनों के अपने उस भव्य भित्ति चित्र 'मैरिज ऑफ दि वर्जिन' में प्रस्तुत किया है; वह सौन्दर्य जिसे रूबेन्स ने " बैटल ऑफ दि थर्मोदोन" के कोलाहल में ढूँढ़ निकाला है; वह सौन्दर्य जो पिछली पाँच शताब्दियों से सेविल और मिलान के कैथेड्रल की शोभा बढ़ा रहा है; ग्रेनाडा में सारासेंस का सौन्दर्य, वर्साई में लुई चौदहवें का सौन्दर्य, आल्प्स का सौन्दर्य और इस नन्दनकानन का सौन्दर्य जहाँ मैं इस वक्त खड़ा हूँ?
इस जागीर में न तो अत्यधिक राजसीपन है और न ही अत्यधिक कारोबारीपन । यहाँ राजकुमार और फार्मर-जनरल दोनों रह चुके हैं (यही इसकी वजह है)। इस जागीर में चार हजार एकड़ वन्यभूमि है, करीब नौ सौ एकड़ में फैला बाग है, एक चक्की है, पट्टे पर दिये हुए तीन फार्म हैं, कोंशे में एक और बहुत बड़ा फार्म है और काफी जमीन में फैले अंगूर के खेत हैं- कुल मिलाकर इनसे करीब सत्तर हजार फ्रैंक सालाना आमदनी होती है। मेरे प्यारे, अब तुम लेस ऐग्यू को जान चुके हो, जहाँ पिछले दो हफ्तों से मेरा इंतजार हो रहा था, और जहाँ मैं इस क्षण मौजूद हूँ, सबसे खास दोस्तों के लिए रखे गये छींटदार वालपेपर से सजे इस कमरे में।
बाग के ऊपर, कोंशे की दिशा में, मोर्वन पहाड़ों से आने वाले दर्जन भर सोतों की निर्मल पारदर्शी धाराएँ बाग की घाटियों और गढ़ी के चारों ओर के खूबसूरत बगीचों को अपने रुपहले रिबनों से सजाने के बाद तालाब में आकर गिरती हैं। इस जगह का नाम लेस ऐग्यू इन्हीं मोहक जलधाराओं से निकला है। मालिकाने के पुराने कागजात में मूलतः इस जागीर का नाम "लेस ऐग्यू- वीव्स" लिखा है ताकि इसे "ऐग्यू-मोर्ते” से अलग किया जा सके, लेकिन "वीव्स" अब शब्द हटा दिया गया है। तालाब से दूसरी तरफ एक जलधारा निकलती है जो वीथिका के समान्तर बहती है। इस चौड़ी और सीधी नहर के दोनों तरफ इसकी पूरी लम्बाई में बेदमजनूं के पेड़ लगे हुए हैं। इन हरी-भरी मेहराबों के बीच से बह नहर अत्यन्त सुखद प्रभाव छोड़ती है। उस छोटी सी नाव के पटरे पर बैठ कर नहर की काँच जैसी स्थिर सतह पर फिसलते हुए कोई यह कल्पना कर सकता है कि वह एक विशाल कैथेड्रल के बीच वाले गलियारे में है। नहर के सिरे पर दिखाई देने वाली मुख्य इमारत कैथेड्रल के मंच जैसी लगती है। ढलता हुआ सूरज जब अपनी नारंगी, लाल और सुनहरी रोशनी गढ़ी के चौखटों पर डालता है तो गिरजे की रंग-बिरंगे शीशों वाली खिड़कियों से आती रोशनी जैसा ही प्रभाव उत्पन्न होता है। नहर के दूसरे सिरे पर हम इस काउण्टी के मुख्य कस्बे ब्लांगी को देख सकते हैं जिसमें करीब साठ घर हैं। गाँव का गिरजा भी दिखाई देता है जो एक टूटी-फूटी सी इमारत है जिसके लकड़ी के घण्टाघर की छत की खपरैल टूटी हुई है। उससे लगा हुआ एक आरामदेह घर और पुरोहिताश्रम भी पहचाने जा सकते हैं। वैसे पूरी बस्ती काफी बड़ी है - इधर-उधर छितरे हुए करीब दो सौ घर हैं और बीच के साठ घर जैसे उसकी राजधानी हों। सड़कों के किनारे फलदार पेड़ हैं और अनेक छोटे बगीचे यहाँ-वहाँ फैले हुए हैं। ये असली देहाती बगीचे हैं जिनमें तुम्हें हर चीज मिलेगी; फूल, प्याज, बन्दगोभी, अंगूर की लताएँ, कई किस्म की झरबेरियाँ और ढेर सारी गोबर की खाद । गाँव कुछ आदिम लगता है। सब कुछ बिल्कुल गंवारू - अपरिष्कृत सा है और इसमें कुछ ऐसी सजावटी सरलता है जिसकी तलाश हम कलाकारों को हमेशा ही रहती है। काफी दूरी पर नदी के चौड़े पाट पर झुका हुआ-सा सुलांश का छोटा सा कस्बा है ।
बाग के चार गेट हैं और हरेक शानदार शैली में बना है। इस बाग में टहलते हुए तुम महसूस करोगे कि ग्रीक पुराण कथाओं में वर्णित आर्केडिया के अद्भुत उद्यान इसके आगे सपाट और बासी से हैं, कि आर्केडिया बर्गण्डी में है, ग्रीस में नहीं; आर्केडिया और कहीं नहीं लेस ऐग्यू में है। बीसियों छोटे-छोटे सोतों से मिलकर बनी एक नदी बल खाती हुई बाग में शोखी और खुशमिजाजी से भरे दृश्य हैं। दरवाजों और खिड़कियों, दोनों के चौखटों के बाहर संगमरमर के रंगबिरंगे टुकड़ों से बनी पट्टी का घेरा है। कमरे को नीचे से गर्म करने का इंतजाम है। हर खिड़की से कोई मन प्रफुल्लित करने वाला दृश्य दिखाई देता है ।
(मदमोज़ाल - कुमारी । - अनु.)
इस कमरे के एक ओर बाथरूम है और दूसरी ओर स्त्रियों का शृंगारकक्ष, जिसका द्वार आगन्तुक कक्ष में खुलता है। बाथरूम में सेब्रे की मशहूर टाइल्स लगी हैं, फर्श मोजैक का है और बाथटब उम्दा संगमरमर से बना है। एक तरफ ताँबे की बड़ी सी प्लेट पर बनी तस्वीर लगी है। यह अपनी धुरी पर घूम जाती है और इसके पीछे एक कोष्ठ है जिसमें असली पोम्पिदू शैली का मुलम्मेदार लकड़ी का कोच बिछा है। बाथरूम की छत नीलोपल से बनी है जिसमें सुनहले सितारे जड़े हुए हैं। टाइलों पर बुशेर के डिजाइनों की चित्रकारी है।
आगन्तुक कक्ष लुई चौदहवें के जमाने की शानोशौकत प्रदर्शित करता है । इसे पारकर आप एक ऐसे बढ़िया बिलियर्ड रूम में प्रवेश करते हैं जिसकी टक्कर की जगह मैंने अब तक पेरिस में नहीं देखी है। निचली मंजिल के इन कमरों में प्रवेश एक अर्द्ध चन्द्राकार बरामदे से होकर है जिसके एक सिरे पर सीढ़ियाँ बनी हुई हैं। ऊपर से आती रोशनी के कारण परिकथाओं की याद दिलाने वाली ये सीढ़ियाँ मकान के दूसरे हिस्सों में ले जाती हैं, जो अलग-अलग दौरों में बने हैं - और जरा सोचो कि उन्होंने 1799 में धनवानों के सिर उड़ा दिये थे! हे भगवान! लोग यह क्यों नहीं समझते कि जिस देश में अथाह समृद्धि नहीं है, सुरक्षित, विलासपूर्ण जीवन नहीं है, वहाँ कला के चमत्कार भी असम्भव हैं? अगर वामपक्ष राजाओं को मारने पर आमादा ही है तो कम से कम हमारे लिए कुछ छोटे रजवाड़े ही छोड़ दे जिनकी जेबों में पैसे हों।
फिलहाल इस खजाने की स्वामिनी कलात्मक हृदय वाली एक मोहक स्त्री है जो इसकी शानोशौकत को बहाल करके ही सन्तुष्ट नहीं है बल्कि इस जगह की बड़े प्यार से देखभाल करती है। छद्म दार्शनिक, जो मानवता का अध्ययन करने का दावा करते हुए दरअसल खुद के ही अध्ययन में लगे रहते हैं, इन गौरवशाली चीजों को फिजूलखर्ची बताते हैं । वे आधुनिक उद्योग के छींटदार सूती कपड़ों और सुरुचिहीन डिजाइनों के आगे नाक रगड़ते हैं मानो हम हेनरी चतुर्थ, लुई चौदहवें और लुई सोलहवें के दिनों की तुलना में आज ज्यादा महान और ज्यादा प्रसन्न हैं । इन तीनों बादशाहों ने लेस ऐग्यू पर अपने शासनकाल की छाप छोड़ी है। आज कौन सा महल, कौन सा शाही किला, कौन सी हवेली, कौन सी भव्य कलाकृतियाँ और सुनहले जरी के काम से सजी कौन सी ऐसी चीजें हैं जो पवित्र रह गयी हैं? इस पतनशील समय में हमारी दादियों के शानदार लहँगों का हश्र यही है कि उनसे कुर्सियों के कवर बना दिये जाते हैं। हम हर चीज को तोड़ और गिरा रहे हैं और जहाँ एक समय शानदार इमारतें खड़ी थीं वहाँ पत्तागोभियाँ बोयी जा रही हैं। कल ही की तो बात है। जब पर्सा के उस शानदार इलाके को हलों ने चौरस कर दिया जो पुरानी पार्लियामेण्ट के सबसे समृद्ध परिवारों में से एक की जागीर थी। मोंतमोरेंसी, जिसे नेपोलियन के एक इतालवी अनुयायी ने अकूत दौलत खर्च कर बनवाया था, रेनाल्ट द सैं-जां देंजली द्वारा निर्मित वॉल, और प्रिंस द कोंती की एक मिस्ट्रेस द्वारा निर्मित कैसन को हथौड़ों ने ढहा दिया है - कुल मिलाकर अकेले वास घाटी में ही चार शाही महल लुप्त हो चुके हैं। पेरिस के चारों ओर एक किस्म का रोमन अभियान जारी है और कभी भी वह दिन आ सकता है जब उत्तर से एक जबर्दस्त तूफान आयेगा और हमारे प्लास्टर के महलों और सजावटी इमारतों को उलट-पलट कर रख देगा ।
तुम देख रहे हो न प्यारे, कि अखबारों में शब्दाडम्बर रचने की आदत का क्या अंजाम होता है? तुम्हें पत्र लिखते-लिखते मैं अखबारी लेख लिखने लगा। क्या सड़कों की तरह दिमाग में भी लीक बन जाती है? यहाँ मैं रुकता हूँ क्योंकि मैं डाक विभाग पर काफी बोझ बढ़ा रहा हूँ और तुम भी जम्हाई ले रहे होगे - बाकी बातें अगले पत्र में लिखूंगा। दूसरी घण्टी की आवाज सुनाई दे रही है जो मुझे ऐसे भरपूर नाश्ते के लिए आमंत्रित कर रही है जिसका चलन पेरिस के भोजनकक्षों में काफी पहले खत्म हो चुका है।
मेरे इस अर्काडिया का इतिहास इस प्रकार है। 1815 में पिछली शताब्दी के प्रसिद्ध विलासियों में से एक की लेस ऐग्यू में मृत्यु हुई। वह एक गायिका थी जो सरकारी खजाने, साहित्यकारों और कुलीन वर्गों को चूस कर ऐश करती रही और फाँसी के तख्ते के करीब पहुँचते-पहुँचते रह गई; पर सामन्त शाही ने उसे भुला दिया और इसीलिए गिलोतीन भी उसे भूल गई वह उन तमाम अद्भुत बूढ़ी औरतों की तरह भुला दी गयी थी जो अपने स्वर्णिम यौवन का प्रायश्चित देहात के एकाकीपन में करती हैं और अपने अनगिनत पुरुष प्रेमियों के खोये हुए प्यार की भरपाई प्रकृति से प्रेम करके करती हैं। ऐसी स्त्रियाँ फूलों के साथ, जंगल की खुशबुओं के साथ, खुले आसमान के साथ, चमकती धूप के साथ, गाती और उछलती और चमकती और अंखुआती हर चीज के साथ चिड़ियों, गिलहरियों, फूलों और घास के साथ हैं; वे इन चीजों के बारे में कुछ नहीं जानती हैं, वे इनकी व्याख्या नहीं कर सकतीं, लेकिन वे इनसे प्यार करती हैं; वे इनसे इतना प्यार करती हैं कि वे ड्यूकों, मार्शलों, प्रतिद्वंद्विताओं, फाइनेन्सियरों, मूर्खताओं, विलासिताओं, अपने नकली जवाहरात और असली हीरों को, अपनी ऊँची एड़ी की चप्पलों और अपने गालों के रूज को भूल जाती हैं। ग्राम्य जीवन की मिठास के लिए वे सब कुछ छोड़ देती हैं।
मेरे प्यारे, मैंने मदाम लागुएर के बुढ़ापे के दिनों बारे में काफी कीमती जानकारी इकट्ठा की है क्योंकि - तुमसे क्या छिपाना - फ्लोरीन, मैरिएत, सुज़ेन द वाल नोबल और त्यूलिया जैसी स्त्रियों के बाद के दिनों का जीवन अकसर ही मेरी उत्सुकता बढ़ाता रहा है, मानो मैं कोई छोटा बच्चा हूँ जो यह जानना चाह रहा हो कि पुराने चाँद कहाँ चले जाते हैं।
1790 में देश के घटनाक्रम से घबराकर मदमोज़ाल लागुएर आकर लेस ऐग्यू में बस गयी जो बूरे ने खरीदकर उसे भेंट की थी। बूरे ने उसके साथ गढ़ी में कई गर्मियाँ बितायीं । मदाम दुबारी के हश्र से आतंकित मदमोज़ाल लागुएर ने अपने हीरे-जवाहरात जमीन में गाड़ दिये। उस समय उसकी उम्र तिरपन साल थी और उसकी नौकरानी, जो इस समय सूद्री नाम के पुलिसवाले की बीवी है, के मुताबिक, “मदाम पहले हमेशा से अधिक सुन्दर लगती थीं।” मेरे प्रिय नथान, निस्सन्देह प्रकृति के अपने ही कुछ कारण हैं कि वह इस किस्म की स्त्रियों को अपने बिगड़े हुए बच्चों की तरह पालती हैं; हर किस्म की अतियाँ उन्हें मारने के बजाय और सेहतमन्द बनाती हैं, उन्हें सुरक्षित रखती हैं और उन्हें नये सिरे से युवा बना देती हैं। ऊपर से वे चाहें जितनी उन्मत्त सी दिखें, उनमें ऐसी आन्तरिक शक्ति होती है जो उनके अद्भुत शरीर को सुन्दर बनाये रखती है; जो चीजें किसी पतिव्रता स्त्री को ढली हुई और मरियल बना डालती हैं वही चीजें उनके सौन्दर्य को सुरक्षित रखती हैं। नहीं, मेरी बात मानो, प्रकृति कतई नैतिक नहीं है !
मदमोज़ाल लागुएर ने लेस ऐग्यू में अनिंद्य जीवन बिताया, और उसके साथ हुई उस मशहूर घटना के बाद तो इस किस्म के जीवन को संत जैसा कहा जा सकता है- तुम्हें याद है उस घटना की ? एक शाम हताशा भरे प्यार के आवेग में वह अपनी मंचीय पोशाक में ही ऑपेरा हाउस से भाग खड़ी हुई, भागती हुई देहाती इलाके में पहुँच गई और सारी रात रास्ते के किनारे रोते हुए बितायी। (आह! लोगों ने लुई पन्द्रहवें के काल के प्रेम को किस कदर बदनाम किया है!) बरसों बाद सूरज को उगता हुआ देखकर वह इतना चकित हुई कि उसने अपने सबसे सुन्दर गीतों में से एक से इसका स्वागत किया। उसके हाव-भाव और उसकी पोशाक की चमक-दमक किसानों को उसके पास खींच लायी। उसकी मुद्राओं, उसकी आवाज और उसके सौन्दर्य से अचम्भित उन्होंने उसे कोई फरिश्ता समझा और उसके चारों ओर नतमस्तक हो गये। अगर वोल्तेयर न हुआ होता तो हम शायद इसे एक नया चमत्कार मान बैठते । मदमोज़ाल लागुएर 1740 में जन्मी थीं और उसका जादू 1760 में अपने शिखर पर था जब मोस्यू (मैं उसका नाम भूल गया) को उसके साथ अपने चक्कर के चलते "मिनिस्टर द ला गुएर” कहा जाता था। उसने अपना पुराना नाम छोड़ दिया, जिसे यहाँ कोई जानता भी नहीं था, और खुद की मदाम द ऐग्यू कहने लगी मानो वह अपनी पहचान को इस जागीर के साथ जोड़ देना चाहती हो । अत्यन्त कलात्मक और सुरुचिपूर्ण ढंग से जागीर को सुधारने में उसे आनन्द आने लगा। जब बोनापार्ट प्रथम कौंसुल बन गया तो उसने अपने हीरे फिर निकाले और उन्हें बेचकर चर्च की जमीनें खरीद लीं। चूंकि ऑपेरा के उस जैसे कलाकार कभी नहीं जान पाते कि अपनी सम्पत्ति का ध्यान कैसे रखा जाये, इसलिए उसने जागीर के प्रबन्ध का जिम्मा एक गुमाश्ते को सौंप दिया और खुद अपने फूलों और फलदार पेड़ों और बाग को सुन्दर बनाने में मशगूल हो गयी ।
मदमोज़ाल के निधन और ब्लांगी में दफनाये जाने के बाद सुलांश - विल-ओ-फाये और ब्लांगी के बीच बसा छोटा सा कस्बा के नोटरी ने उसकी सम्पत्ति की एक विस्तृत सूची बनायी और गायिका के वारिसों को ढूँढ़ निकाला, जिसे यह नहीं पता था कि उसका कोई वारिस भी है। एमिएन्स के पास रहने वाले गरीब मजदूरों के ग्यारह परिवारों ने एक सुबह जागने पर पाया कि वे अमीर हो गये हैं । सम्पत्ति नीलाम कर दी गयी । लेस ऐग्यू को मोंतकोर्ने ने खरीदा जिसने स्पेन और पोमेरेनिया के अभियानों के दौरान खासी कमाई की थी। फर्नीचर सहित जागीर उसे एक लाख दस हजार फ्रैंक में मिली। निस्सन्देह इन भव्य विलासितापूर्ण कक्षों का असर जनरल पर हुआ; अभी कल ही मैं काउंटेस से बहस कर रहा था कि उनकी शादी लेस ऐग्यू के खरीदे जाने का सीधा परिणाम थी ।
प्रिय नथान, काउंटेस को ठीक से समझने के लिए तुम्हें यह पता होना चाहिए कि जनरल एक उग्र स्वभाव का व्यक्ति है, आग की तरह लाल, पाँच फीट नौ इंच ऊँचा कद, पत्थर की मीनार की तरह ठोस और गोल, जिसकी गर्दन मोटी और कंधे लुहारों जैसे हैं जिनसे उसके जिरहबख्तर अच्छी तरह भर जाते होंगे। मोन्तकोर्ने एसलिंग की लड़ाई में बख्तरबन्द पैदल सैनिकों का कमाण्डर था और जब डेन्यूब के पास इन बहादुर लड़ाकुओं को हार कर पीछे धकेल दिया गया तो वह मरते-मरते बचा था। वह लकड़ी के एक कुन्दे पर सवार होकर नदी पार करने में सफल रहा था। पुल को टूटा पाकर बख्तरबन्द सैनिकों ने मोन्तकोर्ने के आदेश पर पलट कर समूची आस्ट्रियाई सेना का मुकाबला करने का संकल्प किया। अगले दिन आस्ट्रियाई सेना युद्ध के मैदान से तीस गाड़ियों में भरकर मृत सैनिकों के जिरहबख्तर ले गयी थी । जर्मनों ने इस मौके पर अपने दुश्मनों को एक नाम दिया था जिसका मतलब होता है "लोहे के इंसान" । मोन्तकोर्ने का बाहरी रंगरूप प्राचीन काल के नायकों जैसा है। उसकी बाँहें तगड़ी और ऊर्जस्वी हैं, उसका सीना उभरा हुआ और चौड़ा है; उसका सिर बबर शेर की याद दिलाता है और उसकी आवाज में उन कमाण्डरों जैसी कड़क है जो घमासान लड़ाई के बीच हमले का आदेश दे सकते हैं; लेकिन उसमें एक दुस्साहसी व्यक्ति की हिम्मत के अलावा और कुछ नहीं है, दिमाग और व्यापक दृष्टि का उसमें अभाव है। पहली मुलाकात में मोन्तकोर्ने आप पर जबर्दस्त प्रभाव छोड़ता है। ऐसा उन सभी जनरलों के साथ होता है जिन्हें सैनिक व्यवहारबुद्धि, खतरों के बीच जीने से उत्पन्न स्वाभाविक साहस और आदेश देने की आदत श्रेष्ठता का आभास देती है। देखने में वह दैत्य लगता है पर उसके भीतर एक बौना छुपा है । वह भावावेशी लेकिन नर्मदिल है, और उसमें शाही दर्प कूट-कूट कर भरा है। उसकी जुबान सिपाहियों की तरह तीखी है और वह किसी भी बात का फौरन जवाब दे सकता है लेकिन अकसर जवाब से पहले उसका हाथ चल जाता है। युद्ध के मैदान में उसकी भूमिका शानदार रही होगी लेकिन घर में वह बिल्कुल असहनीय होता है। प्रेम के नाम पर वह बस बैरकों में होने वाले प्रेम को जानता है-वैसा प्रेम जिसका देवता प्राचीन काल के समझदार मिथक रचयिताओं ने मार्स और वीनस के पुत्र इरोस को बनाया था। पुराने धर्मों का दिलचस्प वर्णन करने वाले इन लेखकों ने दर्जन भर भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रेम का उल्लेख किया है। अपने पूर्वजों और इन 'प्रेमों' के गुणों का अध्ययन करो तो तुम्हें पता चलेगा कि इसमें एक पूरी सामाजिक नामावली छिपी हुई है - और फिर भी हम यह कल्पना करते हैं कि हम फ्रांसीसी नई चीजों के जन्मदाता हैं ! जब यह दुनिया तघड़ी की तरह पलट जायेगी, जब सागर महाद्वीप बन जायेंगे तो फ्रांसीसी लोगों को आज के हमारे महासागर के तल में शैवाल में लिपटी हुई तोपें, भाप की नौकाएँ, अखबार और नक्शे मिलेंगे।
यहीं पर, मैं तुम्हें बता दूँ कि कोम्तेस द मोन्तकोर्ने एक तन्वंगी, शर्मीली, नाजुक सी स्त्री है। इस तरह के विवाह के बारे में तुम क्या सोचते हो? जो लोग समाज को जानते हैं उनके लिए ऐसी चीजें आम हैं; सुसंगत जोड़ी वाला विवाह तो एक अपवाद ही है । फिर भी मैंने देखा है कि यह कोमल छोटी सी स्त्री इस भारी-भरकम, कठोर और भोंदू जनरल को चतुराई से अपने इशारों पर चलाती है, ठीक वैसे ही जैसे वह खुद अपने बख्तरधारी सैनिकों का नेतृत्व करता था ।
अगर कभी अपनी वर्जीनी के सामने मोंतकोर्ने गर्जन-तर्जन शुरू करता है तो मदाम होठों पर एक उंगली रखती है और वह चुप हो जाता है। वह अपनी पाइप और सिगार गढ़ी से पचास फीट दूर एक गुमटी में बैठ कर पीता है और घर वापस लौटने से पहले हवाखोरी करके आता है। इस तरह वशीभूत होने में उसे गर्व का अनुभव होता है। जब भी कोई चीज करने की बात चलती है तो वह खूब सारे अंगूर खाकर मदमत्त हुए भालू की तरह अपनी बीवी की ओर मुड़ता है और कहता है, "अगर मदाम राजी हों तो ।” अपने भारी कदमों से फर्श की टाइलों को तख्तों की तरह चरमराते हुए जब वह अपनी बीवी के कमरे के पास आता है और वह भीतर से ही आवाज लगाती है: “अन्दर मत आना !” तो वह सैनिक अन्दाज में खट से एड़ियों पर वापस घूम जाता है और विनम्रता से कहता है : “आप मुझे बता देंगी कि मैं कब आपसे मिल सकता हूँ?” हालाँकि यह बात भी वह उसी आवाज में कहता है जिस आवाज में उसने डेन्यूब के तट पर अपने सैनिकों से चिल्लाकर कहा था : “सिपाहियो, हमें अपनी जान देनी होगी और लड़ते-लड़ते जान देनी होगी क्योंकि दूसरा और कोई रास्ता नहीं है!” मैंने उसे अपनी बीवी के बारे में यह कहते सुना है, "मैं उससे प्रेम ही नहीं करता, मैं उसकी पूजा करता हूँ।" कभी-कभी जब वह आपा खो बैठता है और उसका गुस्सा संयम और मर्यादा के सभी बाँध तोड़ डालता है तो वह कोमल स्त्री चुपचाप अपने कमरे में चली जाती है और उसे चिल्लाने के लिए छोड़ देती है। लेकिन चार या पाँच घण्टे बाद वह उससे कहती है: “अपना आपा मत खोया करो मेरे प्यारे, तुम्हारी कोई नस फट सकती है; और इसके अलावा तुम मुझे भी ठेस पहुँचाते हो।" तब एसलिंग का शेर अपनी गीली आँखें पोंछने के लिए उसके सामने से हट जाता है। कभी-कभी जब मैं और काउंटेस बातें कर रहे होते हैं तो वह बैठककक्ष में आ जाता है और अगर वह कहती है: “बीच में खलल मत डालो, यह मुझे कुछ पढ़कर सुना रहा है," तो वह बिना कुछ कहे वहाँ से चला जाता है ।
ऐसे मजबूत आदमी, भावावेशी और शक्तिशाली, युद्ध के सूरमा, यूनानी देवों के सदृश सिरों वाले राजनयिक या फिर महान प्रतिभाशाली व्यक्ति ही इस प्रकार का चरम आत्मविश्वास, कमजोरी के प्रति ऐसा उदारतापूर्ण समर्पण, ऐसा अनवरत संरक्षण, ऐसा ईर्ष्यारहित प्रेम और एक स्त्री के प्रति ऐसी सहज खुशमिजाजी प्रदर्शित कर सकते हैं। कसम से, काउंटेस द्वारा अपने पति के प्रबन्धन के विज्ञान को मैं तमाम तुनकमिजाज और शुष्क पतिव्रताओं के व्यवहार से ऊँचा दर्जा देता हूँ, ठीक वैसे ही जैसे कॉज़वे (पुराने दिनों की भारी गद्देदार कुर्सी - अनु.) का साटिन एक गन्दे बूर्ज्वा सोफा पर मढ़े यूट्रेख्ट के मखमल से श्रेष्ठ होता है।
मेरे प्यारे, मैंने देहात के इस खुशनुमा घर में छह दिन बिताये हैं और बाग की खूबसूरती को सराहते हुए मैं कभी थकता नहीं हूँ, जिसके चारों ओर जंगल है जिसमें सोतों के इस साथ-साथ बड़ी प्यारी पगडंडियाँ बनी हुई हैं। प्रकृति और इसका मौन, यह शान्त सुख, ग्रह कोलाहल रहित जीवन - यह सब मुझे आकर्षित कर रहा है। आह ! असली साहित्य तो यही है; विस्तृत घास के मैदानों में कहीं कोई शैलीगत त्रुटि नहीं है। भीतर से फूटने वाली खुशी यहाँ हर चीज को भुला देती है - यहाँ तक कि तमाम वाद-विवादों को भी ! आज पूरी सुबह बारिश होती रही है और जिस दौरान काउंटेस सो रही थीं और मोन्तेकोर्ने अपने इलाके का चक्कर लगा रहा था, मैंने खुद को बाध्य किया है कि तुम्हें पत्र लिखने के अपने उतावले और अदूरदर्शितापूर्ण वादे को पूरा कर सकूं।
हालाँकि मैं अलांकों में एक जज और प्रीफेक्ट के घर पैदा हुआ था, और हालाँकि मैं खेती के बारे में थोड़ा-बहुत जानता हूँ, फिर भी अब तक मुझे लगता था कि हर महीने चार-पाँच हजार फ्रैंक की आमदनी लाने वाली जागीरें किस्से-कहानियों की बातें हैं । मेरे लिए पैसे का मतलब था कुछ डरावनी चीजें - काम और प्रकाशक के पीछे भागना, पत्रकारिता और राजनीति । हम जैसे गरीब लोगों को वह देश कब मिलेगा जहाँ सोना घास के साथ जमीन से उगता है? थिएटर और प्रेस और किताबें लिखने में लगे तुम्हारे और मेरे जैसे लोगों के लिए मैं ऐसी ही ख्वाहिश रखता हूँ। आमीन!
क्या फ्लोरिन दिवंगत मदमोजाल लागुएर के प्रति ईष्यालु होगी? हमारे आधुनिक फाइनेंसियरों के पास ऐसे कोई सामन्त नहीं हैं जो उन्हें जीने का ढंग दिखा सकें; वे तीन मिलकर एक ऑपेरा बाक्स भाड़े पर लेते हैं; वे किश्तों में अपने सुख खरीदते हैं। वे अपने पुस्तकालय में अठपेजी किताबों से मैच कराने के लिए शानदार चमड़े की बाइन्डिंग वाली बड़ी किताबों को काटकर नहीं सजाते; बल्कि वे तो अब कागज की जिल्द वाली सिली हुई किताबें भी शायद ही खरीदते हैं। इस देश का क्या होगा ?
विदा; अपना और अपने ब्लोंदे का ख्याल रखना।
अगर इस सदी की सबसे काहिल कलम से लिखा गया यह पत्र सौभाग्य से बचा न रह गया होता तो लेस ऐग्यू का वर्णन करना लगभग असम्भव होता और इस वर्णन के बिना वहाँ हुई भयावह घटनाओं का इतिहास निश्चित ही कम दिलचस्प लगता ।
इस टिप्पणी के बाद कुछ लोग यह उम्मीद कर रहे होंगे कि अब उन्हें भूतपूर्व कर्नल की चमकती तलवार और अपनी छोटी सी बीवी पर बरसते उसके गुस्से की लपटों का वर्णन मिलेगा; और इस इतिहास का अन्त भी तमाम आधुनिक ड्रामों की तरह शयनकक्ष की त्रासदी में होगा। शायद अन्तिम दृश्य नीली दीवारों वाले उस मोहक शयनकक्ष में घटित हो जहाँ छत और किवाड़ों पर खूबसूरत पंछियों की तस्वीरें बनी हैं, जहाँ मेण्टेल शेल्फ पर चीनी दैत्य मुंह फाड़े हंसते हैं और विशाल गुलदानों के चारों ओर हरे और सुनहरे ड्रैगन लिपटे हैं, और अनेक रंगों और डिजाइनों में जापानी कसीदाकारी के नमूने हैं; जहाँ आरामदेह सोफे और आरामकुर्सियाँ और गद्देदार शैया आपको आमंत्रित करती है कि बिना कुछ किये बस बैठे-बैठे ख्यालों में डूबे रहें ।
नहीं; यहाँ विकसित होने वाला ड्रामा निजी जीवन का नहीं है; यह इससे ऊपर (या नीचे) की चीजों से सम्बन्धित है। भावावेगों से भरे दृश्यों की आशा न कीजिये; इस इतिहास की सच्चाई ही अत्यन्त नाटकीय है और याद रखिये कि इतिहासकार को हरेक के साथ न्याय करने का अपना मिशन कभी भूलना नहीं चाहिए। निर्धन और सम्पत्तिवान सब उसकी कलम के आगे बराबर हैं; उसके सामने किसान अपनी दरिद्रता की भव्यता के साथ उपस्थित होता है, और धनवान अपनी मूर्खता की क्षुद्रता के साथ। इससे भी बढ़कर, धनी आदमी के पास भावावेग होते हैं, और किसान के पास सिर्फ जरूरतें होती हैं इसलिए किसान दोहरी निर्धनता का मारा है; और भले ही, राजनीतिक रूप से उसकी आक्रामकताओं का निष्ठुरता के साथ दमन आवश्यक हो, मानवता और धर्म की नजरों में वह पवित्र है ।
अध्याय दो : एक ग्राम्य कवि जो वर्जिल1 से भी अनदेखा रहा
जब कोई पेरिसवासी देहात में पहुँच जाता है तो वह अपनी सभी सामान्य आदतों से कट जाता है और उसके मित्र चाहे कितना भी ख्याल रखें जल्दी ही उसे समय काटना मुश्किल लगने लगता है। इसलिए, इधर-उधर की चीजों पर बातचीत को लम्बा खींचने की तमाम कोशिशों के बावजूद विषय खत्म हो जाते हैं और तब गृहस्वामी और गृहस्वामिनी प्रायः बड़ी शान्ति से कहते हैं, “तुम यहाँ बुरी तरह ऊब जाओगे।" यह सही है कि ग्रामीण जीवन का आनन्द लेने के लिए आपके पास करने को कुछ होना चाहिए, कुछ रुचियाँ होनी चाहिए; यहाँ होने वाले कामों के बारे में थोड़ी जानकारी होनी चाहिए और मानव जीवन के शाश्वत प्रतीक - श्रम और सुख की संगति की समझ होनी चाहिए ।
(1वर्जिल - प्राचीन रोमन कवि जिसने ग्रामीण जीवन का काफी गुणगान किया है। - अनु.)
जब पेरिसवासी अपनी थकान दूर कर चुका हो और देहात के तौर-तरीकों से परिचित हो चुका हो तब उसके लिए दिन का सबसे मुश्किल समय सुबह का वक्त होता है (खासकर तब जब वह नफीस जूते पहनने वाला हो और न तो खिलाड़ी हो और न ही कृषि में रुचि रखता हो) । सुबह उठने और नाश्ते के बीच के घण्टों के दौरान परिवार की औरतें या तो सो रही होती हैं या तैयार हो रही होती हैं और इसलिए वे पहुँच से बाहर होती हैं; घर का मालिक अपने कामकाज से बाहर निकला होता है; इसलिए सुबह आठ से लेकर देहात में नाश्ते के प्रचलित समय (धनी घरों में- अनु.) ग्यारह बजे तक पेरिसवासी को अकेले रहना पड़ता है। पहले वह खुद बड़े ध्यान से बन-ठन कर तैयार होने में मन लगाने की कोशिश करता है पर जल्दी ही यह स्रोत भी सूख जाता है फिर शायद वह अपने साथ लाया कोई काम पूरा करने की असफल कोशिश करता है पर इसकी कठिनाइयों को देखने के बाद वह ज्यों का त्यों उसके बैग में लौट जाता है। फिर लेखक के पास और कोई चारा नहीं होता कि वह बाग में इधर-उधर फिरे और विशाल पेड़ों की गिनती करे या यूं ही किसी किसी चीज को देखकर चकित होता रहे। अगर जागीरों के स्वामियों की तरह वाकई देहात में रहना पड़े तो कोई न कोई भूविज्ञानी, धातुविज्ञानी, कीटविज्ञानी या वनस्पतिविज्ञानी शौक पाल लेना अच्छा होगा; लेकिन कोई समझदार आदमी महज एक पखवारे का समय काटने के लिए तो कोई व्यसन नहीं पालेगा। भव्यतम जागीर और सबसे खूबसूरत गढ़ी भी जल्दी ही उन लोगों को उबा देगी जिनका इसके दृश्यों के अलावा इसकी और किसी चीज पर हक नहीं है। प्रकृति का वास्तविक सौन्दर्य ऑपेरा में किये जाने वाले इसके प्रस्तुतीकरण की तुलना में धूमिल लगने लगता है। यहाँ से देखने पर पेरिस का हर पहलू रौशन और चमकदार दिखता है। आप जल्दी ही चिड़ियों के पंखों से ईर्ष्या करने लगते हैं और पेरिस के अनवरत जोशीले दृश्यों और इसके तंग करने वाले झगड़ों के बीच वापस पहुँचने के लिए ललकने लगते हैं, बशर्ते किसी खास व्यक्ति के हल्के पदचाप और रौशन आँखों ने इन दृश्यों में आपकी विशेष रुचि न पैदा कर दी हो, जैसाकि ब्लोंदे के साथ था ।
युवा पत्रकार के लम्बे पत्र से ज्यादातर बुद्धिमान लोग यह अनुमान लगा लेंगे कि वह मानसिक और शारीरिक, दोनों ही रूप से तुष्ट इच्छाओं और सुखद आनन्दानुभूति की अवस्था में पहुँच चुका था । उसकी स्थिति उन अघाये हुए पेलिकन पक्षियों जैसी थी जो अपनी फूली हुई गर्दन में सिर को धँसाये हुए बढ़िया से बढ़िया खाने को भी देखना तक नहीं चाहते। इसलिए जब यह भारी-भरकम पत्र खत्म हुआ तो लेखक को इस नन्दनकानन के वर्णन से उबरकर कुछ ऐसा करने की जरूरत महसूस हुई जिससे सुबह के घंटों के असह्य शून्य को भरा जा सके। नाश्ते से लेकर रात के खाने तक का समय गृहस्वामिनी का होता था जिसे यह मालूम था कि इन घंटों को बिना बोझिल हुए कैसे बिताया जा सकता है। एक प्रतिभाशाली व्यक्ति को देहात में इस तरह रोके रखना, जैसा कि मदाम मोंतकोर्ने कर रही थी, कि उसके चेहरे पर तृप्ति की झूठी मुस्कान कभी दिखाई या न छुपायी जा सकने वाली उबासी मुँह पर आ जाये - यह एक स्त्री के ही बस की बात है। इस तरह के इम्तहान से गुजरकर भी बना रहने वाला प्रेम निश्चित ही शाश्वत होगा। यह आश्चर्य का विषय है कि अपने प्रेमियों की परीक्षा लेने के लिए स्त्रियाँ इसे अकसर क्यों नहीं इस्तेमाल करती हैं; कोई भी मूर्ख, अहम्मन्य या क्षुद्र व्यक्ति इसे कभी सहन नहीं कर पायेगा। स्वाँग भरने वालों के बेताज बादशाह फिलिप द्वितीय को भी अगर देहात में एक महीने के एकान्तवास में भेज दिया जाता तो वह सारे राज उगल देता। सम्भवतः यही कारण है कि राजा सदा ही निरन्तर चलायमान रहना चाहते हैं और किसी से भी एक बार में पन्द्रह मिनट से ज्यादा समय तक नहीं मिलते।
पेरिस की सबसे प्यारी स्त्रियों में से एक की स्नेहभरी देखभाल के आह्लाद के बावजूद एमिल ब्लों को एक बार फिर स्कूल से भागे शरारती बच्चे की तरह मटरगश्ती की इच्छा सताने लगी थी और अपना पत्र समाप्त करने के अगले दिन सुबह उसने मुख्य परिचारक फ्रांस्वा को बुला भेजा जिसे खास उसका ध्यान रखने के लिए लगाया गया था । उससे रास्तों की जानकारी लेकर ब्लोंदे एवोन की घाटी के अन्वेषण के लिए निकल पड़ा।
एवोन एक छोटी सी नदी है जिसमें कोंशे के पास कई नालों का पानी आकर मिलता है और फिर वह विल-ओ-फाये के पास सेन की एक प्रमुख सहायक नदी योन में मिल जाती है । एवोन की भौगोलिक स्थिति के चलते नदी के दोनों ओर की पहाड़ियों पर खड़े लेस ऐग्यू, सुलांश और रोंकेरोल के जंगलों में काटी जाने वाली लकड़ी का पूरा मोल मिलता है। लेस ऐग्यू का बाग नदी (जिसके दोनों ओर दे ऐग्यू कहलाने वाला जंगल स्थित है) और शाही डाक सड़क के बीच फैली घाटी के ज्यादातर हिस्से में स्थित है । एवोन पहाड़ों की ढलानों के किनारे-किनारे गुजरती इस सड़क को दूर से बूढ़े एल्म वृक्षों की कतार से पहचाना जा सकता है। ये पहाड़ दरअसल मोर्वन के भव्य एम्फीथिएटर की निचली पहाड़ियाँ ही हैं।
यह तुलना चाहे जितनी भोंड़ी क्यों न लगे, घाटी की तलहटी में पसरा बाग एक विराट मछली जैसा लगता है जिसका सिर कोंशे में और पूँछ ब्लांगी गाँव में है; क्योंकि बीच में इसकी चौड़ाई करीब 300 एकड़ हो जाती है जबकि कोंशे की तरफ यह पचास से कम और ब्लांगी में साठ एकड़ है। तीन गाँवों के बीच घिरी और सुलांश के छोटे कस्बे से तीन मील दूर इस जागीर की स्थिति भी शायद उस कलह और ज्यादतियों का कारण बनी हो जो इस जगह में लेखक की रुचि की मुख्य वजह है। डाक सड़क से या विल-ओ-फाये की ऊँचाई से देखने पर यहाँ से गुजरते हुए मुसाफिर भी लेस ऐग्यू की जन्नत से ईर्ष्या का पाप कर बैठते हैं, तो सुलांश और विल-ओ-फाये के अमीर बर्गर " उनसे ज्यादा सदाचारी क्यों होते जब कि वे रोज इसे अपनी नजरों के सामने देखते और सराहते हैं?
इस स्थान को ठीक से समझने के लिए यह अन्तिम भौगोलिक ब्यौरा देना जरूरी था । इसी से उन चार गेटों का इस्तेमाल भी समझा जा सकता है जिनसे होकर ही लेस ऐग्यू के बाग में प्रवेश हो सकता था; क्योंकि ये चारों ओर से ऊँची दीवार से घिरा हुआ है। सिर्फ उन जगहों पर दीवार नहीं है जहाँ से कोई खूबसूरत प्राकृतिक दृश्य दिखाई देता है और ऐसी जगहों पर खन्दकें खोदकर पानी में डूबी हुई नुकीली बाड़ लगायी गयी है। कोंशे का द्वार, एवोन का द्वार, ब्लांगी का द्वार और वीथिका का द्वार कहलाने वाले चारों प्रवेशद्वार अलग-अलग दौरों में बने थे और उनके निर्माण में उस दौर की खास शैली बखूबी झलकती है।
(1बर्गर - यूरोप के सामन्ती समाज में उभरे आरम्भिक बुर्जुआ तत्व । एक ऐसा व्यक्ति जिसके पास शहरी इलाके में अपना मकान हो और जो इतना सम्पन्न हो कि औरों को भाड़े पर काम पर रख सके। - अनु.)
काउंटेस के साथ आठ दिनों तक बाग में घूमने से “जूर्नाल द डिबेट्स” का यशस्वी सम्पादक अब तक चीनी शैली के मण्डप, पुलियों, नदी के कृत्रिम द्वीप, आश्रम, गोशाला, ढहे हुए मंदिर, बेबीलोनिया शैली के बर्फगृह और 900 एकड़ जमीन को सुन्दर बनाने के लिए लैण्डस्केप विशेषज्ञों द्वारा रचित तमाम अजूबों को देख चुका था। अब वह एवोन के उद्गम स्थल तक जाना चाहता था। जनरल और काउंटेस रोज शाम को उस जगह का गुणगान करते थे और वहाँ जाने की योजनाएँ बनाते थे जो हर अगली सुबह भुला दी जाती थी। लेस ऐग्यू के ऊपर एवोन वाकई आल्प्स के किसी शानदार प्रपात जैसी लगती थी । कहीं वह पत्थरों के बीच से बहती थी, कहीं वह भूमिगत हो जाती थी; इधर कई सोते ऊँचाई से उसमें गिरते थे तो उधर वे छिछले रेतीले तल पर बहते थे जहाँ बार-बार पलटती धाराओं के कारण किश्तियाँ नहीं गुजर सकती थीं। ब्लोंदे बाग की भूलभुलैयों के बीच से एक छोटा रास्ता पकड़कर कोंशे के द्वार पर पहुंचा। इस द्वार के बारे में कुछ बताना जरूरी है जिससे इस जागीर के बारे में कुछ जरूरी ऐतिहासिक ब्यौरे भी पता चलते हैं।
लेस ऐग्यू को सुलांश परिवार के छोटे बेटे ने विवाह में मिले धन से बसाया था, जिसकी मुख्य आकांक्षा अपने बड़े भाई को ईर्ष्यालु बनाने की थी । मध्य युग में लेस ऐग्यू का किला वो के तट पर स्थित था। प्रवेशद्वार के अलावा इस पुरानी इमारत का अब कोई अवशेष नहीं बचा है। किसी किलेबन्द शहर के सिंहद्वार जैसे लगने वाले इस फाटक के दोनों ओर मीनारें हैं। भारी पत्थरों से बनी प्रवेशद्वार की इमारत अब लताओं से ढँकी हुई है जिनके बीच से तीन बड़ी खिड़कियाँ दिखाई देती हैं। एक मीनार के भीतर कुण्डलाकार सीढ़ियाँ ऊपर की मंजिल पर बनी दो छोटी कोठरियों तक ले जाती हैं और दूसरी मीनार में रसोईघर है। मुख्य इमारत की लकड़ी की ढलवाँ छत पर लगे एक शहतीर के दोनों सिरों पर हवा का रुख बताने वाले दो मुर्गे बने हैं। इस प्रवेशद्वार के बाहर की ओर लगे पत्थर के फलक पर अब भी सुलांश का कुलचिन्ह बना हुआ है। लोहे की बड़ी-बड़ी कीलों से जड़ा हुआ लकड़ी का भारी सा फाटक एक सुन्दर लड़की ने ब्लोंदे के लिए खोला। चूलों के चरमराने की आवाज से जग गये रक्षक ने खिड़की से अपनी नाक बाहर निकाली और फिर रात की पोशाक पहने हुए ही बाहर आ गया।
"अच्छा, तो हमारे रक्षक इस समय तक सोते हैं।" पेरिसवासी ने सोचा, जो खुद को देहात के तौर-तरीकों का काफी जानकार समझता था ।
करीब पन्द्रह मिनट तक चलकर वह कोंशे के ऊपर नदी के उद्गम स्थल पर पहुँचा जहाँ उसकी मंत्रमुग्ध आँखों ने एक ऐसी दृश्यावली देखी जिसका वर्णन फ्रांस के इतिहास की तरह या तो एक हजार ग्रन्थों में किया जा सकता है या सिर्फ एक में । यहाँ हमें दो पैराग्राफ से संतोष करना होगा।
ठिगने पेड़ों से ढंकी और आगे को निकली हुई एक चट्टान सामने है जिसका निचला हिस्सा एवोन की धार से घिस गया है। नदी के बीच पड़े एक भीमकाय कछुए का सा भा देती यह चट्टान एक मेहराब बनाती है जिसकं दूसरी ओर शीशे सी साफ पानी की चादर दिखाई दे रही है। लगता है जलधारा यहाँ पहुँचकर कुछ देर के लिए सो जाती है-उस जगह पर पहुँचने से पहले जहाँ यह विशाल चट्टानों के बीच कई प्रपातों की श्रृंखला बनाते हुए गिरती हैं । वहाँ, नीचे उन चट्टानों के पास बेदमजनूं के पेड़ पानी के बहाव के साथ आगे-पीछे झूल रहे हैं।
इन प्रपातों के आगे हीदर की झाड़ियों और घास से ढंकी सीधी खड़ी पहाड़ी है। इसमें बीच-बीच में परतदार चट्टानों और अभ्रक की चौड़ी पट्टियाँ हैं और जगह-जगह से छोटे-छोटे झाग उठाते झरने बह रहे हैं जिनके लिए नीचे हमेशा सिंचित और हमेशा हरा-भरा घसियाला मैदान एक प्याले का काम करता है। और आगे की ओर, इस नयनाभिराम विशृंखलता से परे और इस उन्मुक्त, एकाकी प्रकृति के बरअक्स कोंशे के बाग और गाँव की छतें, घंटाघर की मीनार और फैले हुए खेत दिखाई दे रहे हैं।
ये रहे दो पैराग्राफ, लेकिन उगता हुआ सूरज, हवा की ताजगी, ओस से ढंकी हर चीज से फूटती आभा, वनों और जलधाराओं का मधुर संगीत - इनकी बस कल्पना ही की जा सकती है।
"उतना ही मनमोहक जितना ऑपेरा में दिखाते हैं,” ब्लोंदे ने सोचा और एवोन के अनौगम्य हिस्से के किनारे-किनारे चलने लगा जिसकी पत्थरों के बीच से उछलती - गिरती तेज तरंगें नीचे लेस ऐग्यू के जंगल के ऊँचे वृक्षों के बीच से बहती नदी की शान्त धारा के बिल्कुल विपरीत दृश्य उपस्थित कर रही थीं।
ब्लोंदे अपने प्रातः भ्रमण पर ज्यादा दूर नहीं जा सका क्योंकि एक किसान को देखकर वह ठिठक कर रुक गया- उन्हीं किसानों में से एक जिनकी बहुसंख्या इस ड्रामा की घटनाओं के लिए इस कदर महत्त्वपूर्ण है कि यह भी पूछा जा सकता है कि क्या वे ही दरअसल इसके प्रमुख अभिनेता नहीं हैं।
जब हमारा चतुर पत्रकार चट्टानों के एक समूह के पास पहुँचा जहाँ मुख्य धारा तोरणद्वार की तरह सीधी खड़ी दो चट्टानों के बीच से गुजरती है, तो उसने एक आदमी को इस तरह बिना हिले-डुले खड़े देखा कि उसकी उत्सुकता जाग उठी जब कि इस जीती-जागती मूरत के कपड़ों और हाव-भाव ने उसे उलझन में डाल दिया। उसके सामने स्थित विनीत व्यक्तित्व शार्ले के चित्रों में दर्शाये वृद्ध व्यक्तियों का जीता-जागता नमूना था । इन चित्रों के वृद्ध सैनिकों जैसी ही उसकी मजबूत काठी थी जो आसानी से कठिनाइयाँ झेल सकती थीं और उग्र, लाल, गठीला चेहरा था जिसे देखकर ही लगता था कि यह आसानी से हार मानने वाला नहीं है। सामने से लगभग गंजे हो चुके सिर को एक भद्दा सा नमदे का टोप ढंके हुए था जिसकी किनारी ऊपर वाले हिस्से से मोटे-मोटे टाँकों से सिली हुई थी। उसके नीचे से ऐसे घने और लम्बे सफेद बाल लहरा रहे थे जिनकी नकल करने के लिए कोई भी चित्रकार खुशी-खुशी एक घण्टे के चार फ्रैंक दे देता। उसके गाल जिस तरह धँसे हुए थे उससे यह आसानी से अनुमान लगाया जा सकता था कि यह दंतहीन बूढ़ा कठौ के बजाय बोतल का ज्यादा इस्तेमाल करता था। झाडू की सींकों जैसी सख्त उसकी छिदरी सफेद दाढ़ी से उसकी मुखाकृति का भाव कुछ-कुछ डरावना सा लग रहा था। उसके बड़े से चेहरे के मुकाबले बेहद छोटी और सुअर की तरह तिरछी आँखों से चालाकी और साथ ही आलस का पता चलता था; लेकिन इस वक्त वे नदी पर टिकी उसकी तीक्ष्ण दृष्टि से चमक रही थीं। इस विचित्र प्राणी की पोशाक थी एक पुरानी कमीज जो कभी नीली रही होगी, और उस मोटे टाट की पतलून जिसका इस्तेमाल पेरिस में कपड़े की गाँठें लपेटने के लिए किया जाता है। शहरी लोग उसके टूटे हुए लकड़ी के जूतों को देखकर सिहर जाते जिनकी दरारों से हवा बेरोकटोक भीतर जा सकती थी; और यह निश्चित था कि कमीज और पतलून की शहर में कोई कीमत नहीं मिलती सिवाय कबाड़ी वाले के ।
इस ग्रामीण डियोजेनिस को निरखते हुए ब्लोदे ने खुद से स्वीकार किया कि जिस किस्म के किसानों को उसने पुरानी तस्वीरों और पुराने मूर्तिशिल्पों में देखा था और जिन्हें वह अब तक काल्पनिक मानता था, वह वास्तव में मौजूद थे। उसने निश्चय किया कि भविष्य में कभी भी कला में कुरूपता का चित्रण करने वाली शैली की भर्त्सना नहीं करेगा क्योंकि क्या पता मनुष्य में सौन्दर्य एक भरमाने वाला अपवाद ही हो, एक मरीचिका हो जिसके पीछे मानव जाति भागती रहती है।
"ऐसे प्राणी के विचार, आदर्श, आदतें क्या हो सकती हैं? वह क्या सोच रहा है?" उत्सुकता से भरा ब्लोंदे सोचने लगा। "क्या वह मेरे ही जैसा इंसान है ? हममें कुछ भी एक जैसा नहीं है सिवाय हमारे शरीर के, और वह भी तो ! - "
अचानक उसका ध्यान बूढ़े आदमी के हाथों और पैरों की अजीब सी कठोरता की ओर गया, जो खुली हवा में रहने वाले और मौसम की ज्यादतियों और सर्दी-गर्मी सहने के आदी लोगों की खासियत होती है। उनकी चमड़ी जानवर की खाल जैसी सख्त हो जाती है और वे रूसियों या अरबों की तरह शारीरिक कष्ट का मुकाबला कर सकते हैं।
“ये रहा (फेनीमोर- अनु.) कूपर की कहानियों का लाल चमड़ी वाला,” ब्लोंदे ने सोचा, "जंगलियों का अध्ययन करने के लिए अमेरिका जाने की जरूरत नहीं ।"
हालाँकि पेरिसवासी उससे दस कदम से भी कम दूरी पर था पर बूढ़े आदमी ने सिर नहीं घुमाया और टकटकी बाँधकर सामने वाले तट की ओर देखता रहा। उसकी काँच जैसी निश्चल आँखें और अविचल शरीर हिन्दुस्तानी फकीरों की याद दिला रहा था। उस खास किस्म के चुम्बकत्व के वशीभूत, जो लोगों के अनुमान से कहीं ज्यादा छुतहा होता है, ब्लों को पता ही नहीं चला कि कब वह खुद नदी को एकटक देखने लगा ।
"क्यों जी, तुम आखिर देख रहे हो?" करीब पन्द्रह मिनट बीत जाने के बाद उसने पूछा, क्योंकि इस दौरान उसे इस एकाग्र ध्यानमग्नता का कोई कारण नजर नहीं आया ।
“श्श्श !” बूढ़ा फुसफुसाया और ब्लोंदे को चुप रहने का इशारा किया। "आप उसे डरा देंगे-"
"किसे ?”
“ऊदबिलाव को, हुजूर। अगर उसने हमारी आवाज सुन ली तो झट से पानी में भीतर चला जायेगा। मुझे पक्का यकीन है कि वह अभी वहाँ कूदा था; देखिये! देखिये ! वहाँ, जहाँ पानी में बुलबुले उठ रहे हैं ! अहा ! उसने एक मछली देख ली है और उसी के पीछे लगा है! लेकिन जैसे ही वह लौटेगा, मेरा छोकरा उसे पकड़ लेगा। आप जानते नहीं, ऊदबिलाव बहुत मुश्किल से मिलता है; इसका शिकार वैज्ञानिक ढंग से करना पड़ता है और यह खाने में भी बड़ा स्वादिष्ट होता है । लेस ऐग्यू में हर ऊदबिलाव के लिए मुझे दस फ्रैंक मिलते हैं। हर शुक्रवार को मालकिन उपवास रखती हैं और कल शुक्रवार है। उपवास के बाद रात के खाने में इसका मजा ही कुछ और होता है। कई साल पहले, पुरानी मालकिन, बेचारी अब रही नहीं, वह बीस फ्रैंक देती थीं और खाल भी मुझे दे देती थीं। "मूश,” उसने दबी आवाज में पुकारा, “उसे देखता रह ! "
ब्लोंदे को अब नदी के दूसरी तरफ एल्डर की झाड़ी के नीचे बिल्ली जैसी दो चमकदार आँखें दिखायी दीं; फिर उसे करीब दस साल के एक लड़के का धूप में झँवाया माथा और उलझे बाल दिखायी दिये जो पेट के बल लेटा हुआ था और ऊदबिलाव की ओर इशारे करके अपने उस्ताद को बता रहा था कि वह उस पर ठीक से नजर रखे है। ब्लोंदे अब पूरी तरह उस बूढ़े और लड़के की उत्कण्ठा की गिरफ्त में आ चुका था और शिकार का जोश- आशा और उत्सुकता के दो पंजों वाला जिन्न उस पर हावी हो गया था जो अपने शिकार को कहीं भी उठाकर ले जा सकता है।
“टोप बनाने वाले इसकी खाल खरीदते हैं,” बूढ़ा बोलता रहा; "यह इतना नर्म, इतना खूबसूरत होता है! वें इससे टोपियों को मढ़ते हैं।"
“क्या तुम वाकई ऐसा सोचते हो, बुढ़ऊ?" ब्लोंदे ने मुस्कुराते हुए पूछा ।
“हाँ हुजूर, आप मुझसे ज्यादा ही जानते होंगे, हालाँकि मैं सत्तर बरस का हो गया हूँ,” बूढ़े ने बड़ी विनम्रता और आदर के साथ जवाब दिया । पवित्र जल देने वाले भिक्षुकों वाली मुद्रा अपनाते हुए उसने कहा, "शायद आप मुझे बता सकते हैं कि संगीतकार और शराब के व्यापारी इसे इतना क्यों पसन्द करते हैं?"
अपने लेखन में व्यंग्योक्ति का माहिर ब्लोंदे "वैज्ञानिक" शब्द सुनकर पहले ही सतर्क हो गया था। उसने मार्शाल द रिशल्यू को याद किया और सोच में पड़ गया कि कहीं बूढ़ा उससे मजाक तो नहीं कर रहा है; लेकिन उसकी सरल मुद्रा और चेहरे पर विद्यमान मूर्खता के भाव ने उसे आश्वस्त कर दिया ।
"मेरी जवानी के दिनों में यहाँ खूब सारे ऊदबिलाव थे,” बूढ़ा फुसफुसाया, “लेकिन लोगों ने इस कदर इनका शिकार किया कि अगर सात साल में भी एक की पूँछ दिख जाये तो समझो किस्मत अच्छी है। और विल-ओ-फाये का सब- प्रीफेक्ट - मोस्यू तो उसे जानते ही होंगे? हालाँकि वह पेरिसवासी है लेकिन वह भी आपकी ही तरह बढ़िया नौजवान है, और वह दुर्लभ चीजों का शौकीन है - हाँ, तो जैसा कि मैं कह रहा था, ऊदबिलाव पकड़ने के मेरे हुनर के बारे में सुनकर, क्योंकि उन्हें तो मैं इस तरह जानता हूँ जैसे आप लोग ककहरा जानते हैं, उसने मुझसे कहा : 'पेर1 फूर्शों, जब भी तुम्हें कोई ऊदबिलाव मिले, उसे मेरे पास लाओ और मैं तुम्हें बढ़िया पैसे दूँगा; और अगर उसकी पीठ पर सफेद धब्बा हुआ तो मैं तुम्हें तीस फ्रैंक दूँगा ।' सच्ची, उसने यही कहा । यह बात उतनी ही सच है जितनी यह कि मैं परमपिता परमेश्वर, उसके पुत्र और पवित्र आत्मा में विश्वास करता हूँ। और सुलांश एक विद्वान है मोस्यू गुर्दों, हमारा डॉक्टर, लोग बताते हैं कि वह प्राकृतिक इतिहास का ऐसा अजायबघर बना रहा है जिसकी टक्कर का दिजों में भी नहीं है। वह इस इलाके का सबसे ज्ञानी आदमी है, और वह भी मुझे अच्छे दाम चुकायेगा; वह आदमियों और जानवरों को भरकर रखता है। देखो, उधर मेरा छोकरा बता रहा है कि इस ऊदबिलाव पर सफेद धब्बे हैं। ‘अगर ऐसा है,' मैंने उससे कह दिया है, 'तो आज सुबह परमेश्वर हम पर मेहरबान है।' अहा ! आपने पानी में बुलबुले नहीं देखे? हाँ, वहीं है वो, वहीं है! हालाँकि वह किनारे पर बिल बनाकर रहता है लेकिन कभी-कभी कई-कई दिन पानी के अन्दर ही बिता देता है। ओह, गया! उसने आपकी आवाज सुन ली हुजूर, अब वह चौकन्ना हो गया है, क्योंकि दुनिया में इससे ज्यादा शक्की जानवर कोई नहीं है; इस मामले में ये औरतों से भी बढ़कर होता है।"
(1पेर-उम्रदराज व्यक्ति के लिए आदरसूचक सम्बोधन । - अनु.)
"तो तुम औरतों को शक्की कहते हो, क्यों," ब्लोंदे ने कहा ।
"और नहीं तो क्या, मोस्यू, अगर आप पेरिस से आये हैं तो आप इस बारे में मुझसे बेहतर जानते होंगे। लेकिन आप अगर आज बिस्तर में ही रहते और सारी सुबह सोकर गुजारते तो मुझ पर बड़ा उपकार होता; वह लहर देख रहे हैं न? उसी जगह वह नीचे चला गया है। उठ जाओ, मूश! ऊदबिलाव ने मोस्यू को बोलते हुए सुन लिया है और अब वह इतना घबरा गया है कि हमें आधी रात तक इन्तजार करायेगा। आओ, अब चलें ! और अपने तीस फ्रैंक भी भूल जाओ!”
मूश हिचकिचाते हुए खड़ा हो गया; उसने उस जगह की ओर देखा जहाँ पानी में बुलबुले उठ रहे थे, उसकी ओर उँगली से इशारा किया; लग रहा था कि वह पूरी तरह उम्मीद छोड़ने के लिए तैयार नहीं था । पन्द्रहवीं शताब्दी की किसी तस्वीर में दिखाये फरिश्तों की तरह घुंघराले बालों और साँवले चेहरे वाला छोकरा बिरजिस पहने हुए लग रहा था क्योंकि उसकी पतलून घुटनों तक पहुँचकर खत्म हो गयी थी जिसके नीचे सूखी पत्तियों और कंटीले गुच्छों की झालर लटक रही थी। यह न्यूनतम आवश्यक पोशाक पटसन की रस्सी से बनी गेलिस के सहारे उस पर टिकी थी। जिस टाट की बूढ़े की पतलून थी, उसी से बनी कमीज वह पहने था, पर वह जगह-जगह लगे पैबन्दों से भारी हो गयी थी। सामने से खुली कमीज से छोकरे का धूप में झुलसा दुबला-पतला सीना झाँक रहा था। संक्षेप में, मूश नाम के प्राणी की वेशभूषा पेर फूर्शों से भी ज्यादा आश्चर्यजनक रूप से मामूली थी।
“यहाँ के लोग कितने अच्छे स्वभाव के हैं,” ब्लोंदे ने सोचा; "अगर पेरिस के आसपास के इलाके में कोई व्यक्ति लोगों के शिकार को डराकर भगा दे, तो उनकी जुबानें कोड़ों की तरह उस पर बरस पड़ेंगी।"
चूँकि उसने कभी कोई ऊदबिलाव नहीं देखा था, अजायबघर में भी नहीं, इसलिए सुबह की सैर की इस घटना से उसका दिल खुश हो गया। कोई हर्जाना माँगे बिना बूढ़े आदमी को जाते देख वह द्रवित हो गया और कहा, “सुनो, तुम कहते हो कि तुम ऊदबिलाव पकड़ने के लिए मशहूर हो। अगर तुम्हें पक्का यकीन है कि वहाँ नीचे कोई ऊदबिलाव है - "
पानी के दूसरी ओर से मूश ने एवोन के तल से ऊपर आकर सतह पर फूट रहे कुछ बुलबुलों की ओर उँगली से इशारा किया।
“वह वापस आ गया है!” पेर फूर्शों ने कहा; “देखते नहीं, वह साँस ले रहा है, बदमाश कहीं का। आपके ख्याल से वह पानी के तल में साँस कैसे ले सकता है? अरे, ये जानवर इतना चालाक होता है कि ये विज्ञान का भी मखौल उड़ाता है?"
"ठीक है," ब्लोंदे ने कहा, जिसे लगा कि किसान लोग 'विज्ञान' शब्द को यूँही बिना समझे इस्तेमाल करते हैं, “यहीं रुको और इसे पकड़ो।"
"और हमारे, मूश और मेरे दिनभर के काम का क्या होगा ?"
“दिनभर में तुम कितना कमा लेते हो?"
"हम दोनों, मेरा शार्गिद और मैं मिलकर ? - पाँच फ्रैंक,” बूढ़े ने कहा। ब्लोंदे की ओर देखती उसकी नजरों में हिचकिचाहट का भाव इस बात की पोल खोल रहा था कि उसने रकम बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बतायी है।
पत्रकार ने जेब से दस फ्रैंक निकाले और कहा, "ये रहे दस, और ऊदबिलाव के लिए मैं तुम्हें दस और दूँगा।”
“और अगर उसकी पीठ पर सफेद धब्बा हुआ तो ये सौदा आपको महँगा नहीं पड़ेगा, क्योंकि सब- प्रीफेक्ट ने मुझे बताया है कि किसी भी अजायबघर में ऐसी चीज नहीं है। हर चीज जानता है वह-हमारा सब - प्रीफेक्ट - वह कोई बेवकूफ नहीं है। अगर मैं ऊदबिलाव का शिकार करता हूँ तो वह, मोस्यू द ल्यूपोल मदमोज़ाल गोबर्ते का शिकार करता है, जिसकी पीठ पर एक छोटासा, सफेद तिल है। आइये हुजूर, हिम्मत करके एवोन में छलाँग मारिये और उस बीच वाले पत्थर तक पहुँच जाइये। अगर हम ऊदबिलाव को वहाँ से डराकर भगा दें तो थोड़ी देर में वह धारा के साथ नीचे की ओर आयेगा, क्योंकि उनका काइयाँपन तो देखिये, बदमाश कहीं के! खाने के लिए वे हमेशा अपनी माँद से उल्टी धारा में जाते हैं ताकि जब मछलियों से पेट भर जाये तो धार के साथ आराम से बहते हुए लौट आयें, बड़े घाघ होते हैं ये ! अहा ! अगर मैंने उनके स्कूल में पढ़ाई की होती तो आज मैं भी अच्छी आमदनी कर रहा होता; लेकिन मुझे तो यही पता लगाने में बहुत देर लग गयी कि अगर औरों से पहले शिकार पकड़ना चाहते हो तो बहुत सुबह ही धारा की उल्टी ओर चले जाना चाहिए। मुझे तो पैदा होते ही किसी की नजर लग गयी थी। कोई बात नहीं, हम तीन मिलकर तो ऊदबिलाव से ज्यादा चालाक हो सकते हैं।"
"वह कैसे, मेरे सयाने बुढ़ऊ ?”
“धन्य हो ! अरे, हम लोग जानवरों की तरह ही बेअकल हैं, और इसीलिए हम जानवरों को समझ जाते हैं। अब देखिये, हम ऐसे करेंगे। जब ऊदबिलाव घर लौटेगा तो मूश और मैं उसे इस जगह पर डरायेंगे और आप वहाँ पर उसे डरायेंगे; दोनों तरफ से डरकर वह कूदकर किनारे पर भागेगा और जैसे ही वह जमीन पर आया, समझो गया काम से ! वह दौड़ नहीं सकता; तैरने के लिए उसके पैर जालीदार होते हैं। हो, हो! उसे देखकर ही आपको हँसी आ जायेगी, ऐसा लदर-फदर चलता है। पानी में मछली मारने और जमीन पर शिकार खेलने, दोनों का मजा आ जायेगा ! लेस ऐग्यू के जनरल साहब, ऊदबिलाव पकड़ने के लिए वह इस कदर बेताब थे कि एक बार तो वह यहाँ लगातार तीन दिन तक रुके रहे।”
बूढ़े द्वारा उसके लिए काटी टहनी से लैस होकर ब्लोंदे एक से दूसरे पत्थर पर कूदता हुआ नदी के बीच में पहुँच गया। बूढ़े का इशारा पाते ही उसे इस टहनी से पानी को पीटना था ।
"हाँ, वहाँ ठीक है, हुजूर ।"
ब्लोंदे उसे बतायी गयी जगह पर मुस्तैद खड़ा था। उसे समय गुजरने का पता नहीं चल रहा था क्योंकि बीच-बीच में बूढ़ा उसे इशारे से बताता था कि सब ठीक चल रहा है; और इसके अलावा इस उम्मीद के आगे समय का ध्यान कहाँ रहता है कि चुपचाप घात लगाये रहने के बाद तेजी से कार्रवाई का मौका आयेगा ।
“पेर फूर्शो,” खुद को बूढ़े के साथ अकेला पाकर छोकरे ने फुसफुसाकर कहा, “यहाँ वाकई एक ऊदबिलाव है !"
" तूने देखा है उसे?"
"वह रहा, उधर देखो !”
पानी के नीचे असली ऊदबिलाव की लाल भूरी बालदार खाल देखते ही बूढ़े को हक्का मार गया।
"वो मेरी तरफ आ रहा है !" बच्चे ने कहा ।
"उसके सिर पर जोर से मारो और पानी में कूदकर उसे भीतर ही कसकर पकड़े रहो, जाने मत देना!"
मूश ने घबराये हुए मेंढक की तरह पानी में छलाँग लगा दी ।
“चलिये, चलिये, हुजूर,” अपने सैबोट (लकड़ी के जूते - अनु.) किनारे पर छोड़कर पानी में कूदते हुए पेर फूर्शों ने चिल्लाकर ब्लोंदे ने कहा, "डराइये उसे ! डराइये उसे ! आपको दिखता नहीं वो? वो तेजी से आप ही की ओर जा रहा है !"
बूढ़ा पानी में छपाक-छपाक करते हुए ब्लोंदे की ओर दौड़ा। वह ऐसी गंभीरता के साथ पुकार रहा था जो देहाती लोग अत्यन्त उत्तेजना के बीच भी बनाये रखते हैं- " आपको वो दिखता नहीं क्या, वहाँ, उन पत्थरों के पास?"
ब्लोंदे को बूढ़े ने इस तरह से खड़ा किया था कि सूरज सीधा उसकी आँखों में आ रहा था और वह अपने ही सन्तोष के लिए पानी को पीटे जा रहा था ।
“लगे रहिये, लगे रहिये !” पेर फूर्शो चिल्लाया; "उधर चट्टान के किनारे; उसकी माँद वहीं है, आपके बायीं ओर !”
देर तक इन्तजार करने से अकड़े घुटनों और उत्तेजना के कारण ब्लोंदे पत्थरों से फिसलकर पानी में गिर पड़ा।
“अहा ! आप भी बड़े बहादुर हैं हुजूर! अरे बाप रे! वो आपके पैरों के बीच है! बस, अब वह हो गया आपका! पकड़िये ! - ओह ! धत् तेरे की ! निकल गया-निकल गया!” बूढ़ा हताशा से चीखा ।
फिर वह गुस्से से उधर लपका और ब्लोंदे के सामने धारा के सबसे गहरे हिस्से में कूद पड़ा ।
"आपकी गलती से हमारे हाथ से निकल गया!” ब्लोंदे का हाथ पकड़कर बाहर निकलते हुए वह कातर स्वर में चीखा। “दुष्ट कहीं का, मैं उसे देख रहा हूँ, उन चट्टानों के नीचे छुपा है ! उसने अपनी मछली छोड़ दी है," सतह पर तैरती किसी चीज की ओर इशारा करते हुए पेर फूर्शों ने कहा । "चलो, ये तो हमें हर हाल में मिलेगी, टेंच मछली है, असली टेंच ।"
तभी सफेद वर्दी में एक सईस कोंशे वाली सड़क पर घोड़ा दौड़ाते हुए आता दिखाई दिया । वह एक और घोड़े की लगाम थामे हुए ला रहा था ।
"देखिये। गढ़ी वालों ने आपको बुला भेजा है,” बूढ़े ने कहा । " अगर आप वापस आना चाहें तो मेरा हाथ पकड़कर आ जाइये। मैं पानी में भीगने की फिक्र नहीं करता; इससे नहाने-धोने की जहमत बच जाती है।"
"और गठिया हो जाये तो?"
“गठिया ! आप देखते नहीं कि धूप में हमारे - मूश और मेरे पैर कैसे सख्त और भूरे हो गये हैं, तम्बाकू पीने वाले पाइपों की तरह । आइये हुजूर, मेरा सहारा लेकर आइये - आप पेरिस से हैं; हालाँकि आप बहुत कुछ जानते हैं, पर हमारे पत्थरों पर चलना नहीं जानते । अगर आप यहाँ देर तक रुकेंगे, तो आप कुदरत की किताब में लिखा बहुत कुछ सीख लेंगे - लोगों ने मुझे बताया है कि आप अखबारों में लिखते हैं । "
जब तक सईस चार्ल्स ने उसे पहचाना, तब तक ब्लोंदे तट पर पहुँच चुका था ।
“आह, मोस्यू!” वह चिल्लाया, “आपको पता नहीं कि जब से मदाम ने सुना है कि आप कोंशे के गेट से बाहर गये हैं, तब से वह कितनी परेशान हैं। उन्हें डर था कि कहीं आप डूब न गये हों। तीन बार बड़ी घण्टी बजायी जा चुकी है और पादरी महोदय बाग में आपको तलाश रहे हैं।"
“समय क्या हुआ है, चार्ल्स ?”
" पौने बारह बज रहे हैं।"
"घोड़े पर चढ़ने में मेरी मदद करो।”
“ओहो!” ब्लोंदे के बूटों और पतलून से टपकते पानी को देखकर सईस ने कहा, “क्या मोस्यू भी पेर फूर्शों के ऊदबिलाव के चक्कर में आ गये?"
ये शब्द सुनते ही पत्रकार की अक्ल पर पड़ा पर्दा हट गया ।
“इसके बारे में किसी से कुछ न कहना, चार्ल्स,” उसने अनुरोध किया, “मैं तुम्हें खुश कर दूँगा।”
“अरे, इसमें शर्म की क्या बात है?" सईस ने जवाब दिया, "मोस्यू ल कोम्त खुद इस ऊदबिलाव के झाँसे में आ चुके हैं। जब भी लेस ऐग्यू में कोई बाहरी मेहमान आ है, पेर फूर्शों घात लगा लेता है और अगर वह मेहमान एवोन का उद्गम देखने गया तो वह उसे अपना ऊदबिलाव बेच डालता है। वह इतनी मक्कारी से यह खेल खेलता है कि मोस्यूल कोम्त यहाँ तीन बार आ चुके हैं और सिर्फ पानी को घूरने के लिए छह दिन के काम के बराबर पैसे चुका चुके हैं।"
"हे भगवान!" ब्लोंदे ने सोचा। “और मैं कल्पना कर रहा था कि मैंने अभी-अभी आज के महानतम कामेडियन को देखा है ! - पोतिए, बैप्टिस्ट जूनियर, मिशो और मोंरोज़ - इस बदमाश बूढ़े के आगे वे सब पानी भरेंगे।"
“वह पेर फूर्शों, अपने धन्धे में माहिर है," चार्ल्स बोलता जा रहा था; “और इसके अलावा उसके तरकश में एक और तीर भी है। वह खुद को रस्सी बनाने वाला बताता है , और ब्लांगी के गेट के पास बाग की दीवार के बाहर अपनी चरखियाँ लगा रखी हैं। अगर आप बस उसकी रस्सी को छू भी लें तो वह आपको इतनी चालाकी से बातों में उलझायेगा कि आप खुद चरखी घुमाकर थोड़ी सी रस्सी बनाने के लिए बेताब हो जायेंगे, और इसके लिए आपको शागिर्दी की फीस चुकानी होगी। मदाम खुद इस चक्कर में आ गयी थीं और उसे बीस फ्रैंक दिये थे। अरे! वह बुढ़वा तिकड़मबाजों का राजा है !'
सईस की बातें सुनकर ब्लोंदे फ्रांसीसी किसान की अतिशय चालाकी और धूर्तता के बारे में सोचने लगा जिसके बारे में उसने अपने पिता, जो अलेंकों में जज थे, से काफी कुछ सुन रखा था। पेर फूर्शों की प्रकट निष्कपटता के पीछे छिपा उपहासपूर्ण अर्थ उसकी समझ में आने लगा ओर वह जान गया कि बर्गण्डी के उस बदमाश ने उसे कैसा उल्लू बनाया है।
“आप यकीन नहीं करेंगे, मोस्यू,” चार्ल्स ने कहा - तब तक वे लेस ऐग्यू के पोर्टिको के पास पहुँच गये थे, “कि देहात में किस कदर हर आदमी पर और हर चीज पर शक करना पड़ता है - खासकर यहाँ, जहाँ जनरल साहब को लोग ज्यादा पसन्द नहीं करते हैं-'
"ऐसा क्यों?"
"यह तो मुझे मालूम नहीं," चार्ल्स ने चेहरे पर मूर्खता का भाव लाते हुए कहा । नौकर-चाकर जब अपने मालिकों को उत्तर नहीं देना चाहते हैं तो वे इस भाव को ढाल की तरह बखूबी इस्तेमाल करते हैं। लेकिन उसकी बात से ब्लोंदे को सोचने का काफी मसाला मिल गया ।
“यह रहा हमारा भगोड़ा!” घोड़ों की टापें सुनकर बालकनी में आते हुए जनरल चिल्लाया । "वह आ गया है, परेशान मत हो !” उसने अपनी बीवी को आवाज लगायी जो अपने छोटे-छोटे कदमों से दौड़ी आ रही थी। “अब एबे ब्रोसे गायब हैं। जाओ, उन्हें ढूँढ़कर लाओ, चार्ल्स,” उसने सईस से कहा ।