आदमी, जो गैडबी में रहा (कहानी) : मार्क ट्वेन
The Man Who Put Up at Gadsby's (English Story in Hindi) : Mark Twain
जिन दिनों मैं और मेरा पुराना दोस्त रिले वाशिंगटन में समाचार-पत्र के संवाददाता थे, वर्ष 1967 की सर्दियों की एक रात हम पेनसिल्वेनिया एवेन्यू से आ रहे थे। आधी रात का समय था। बर्फ के तूफान के थपेड़े लग रहे थे। तभी खंभे की रोशनी में एक आदमी का चेहरा दिखाई दिया। वह सामने की दिशा से तेजी से चला आ रहा था। वह एकाएक रुककर बोला, "आह, मेरा सौभाग्य! आप श्री रिले हैं, हैं कि नहीं?"
सारे देश में रिले से बढ़कर धीर-गंभीर, औपचारिक व विवेकशील व्यक्ति दूसरा नहीं था। वह रुका और उस आदमी को सिर से पैर तक देखने के बाद बोला, "मैं ही रिले हूँ। क्या आप मुझे खोज रहे थे?"
"जी हाँ, बिलकुल यही कर रहा था।" वह आदमी खुशमिजाजी से बोला, "और यह तो दुनिया का सबसे बड़ा सौभाग्य है कि आप मिल गए। मेरा नाम लिकिंस है। मैं हाई स्कूल में शिक्षक हूँ, सैनफ्रांसिस्को में। जैसे ही मैंने सुना कि सैनफ्रांसिस्को के पोस्टमास्टर की जगह खाली है, मैंने वह नौकरी पाने का मन बना लिया। इसलिए मैं यहाँ हूँ।"
"जी।" रिले ने धीरे से कहा, "जैसा कि आपने कहा, श्री लिकिंस, आप यहाँ पधारे हैं। क्या आपको वह पद मिल गया?"
"नहीं, मिला तो नहीं, लेकिन उसके निकट हूँ। मैं अपने साथ जन निर्देश अधीक्षक, सभी शिक्षकों एवं 200 अन्य लोगों का हस्ताक्षरित, प्रतिवेदन लेकर आया हूँ। अब मैं चाहता हूँ कि आप मेरे साथ पेसेफिक डेलीगेशन तक चलें। मैं इस काम को जल्दी से निबटाकर घर लौटना चाहता हूँ।"
"अगर मामला ऐसा अत्यावश्यक है तो क्यों न हम लोग आज रात को ही पेसेफिक डेलीगेशन से मिलने चलें।" रिले ने ऐसे लहजे में कहा, जो किसी अनभ्यस्त को जरा भी व्यंग्यपूर्ण न लगे।
"ओह, आज रात को ही, अवश्य। मेरे पास इधर-उधर घूमने के लिए फालतू समय नहीं है। मैं सोने से पहले वादा चाहता हूँ कि काम हो गया। मैं बातें करनेवालों में नहीं, काम करनेवालों में से हूँ।"
"ठीक। आप सही ठिकाने पर पहुंचे हैं। आज कब आए?"
"कोई घंटा भर पहले।"
"वापस कब जाना चाहते हैं?"
"न्यूयॉर्क के लिए कल सुबह। सैनफ्रांसिस्को के लिए उससे अगली सुबह।"
"बेहतर है। आप कल क्या करना चाहते हैं?"
"क्यों? मुझे प्रतिनिधिमंडल और प्रतिवेदन के साथ राष्ट्रपति से मिलकर नियुक्ति पानी है कि नहीं?"
"जी, बिलकुल, सही कहा आपने। फिर उसके बाद?"
"दोपहर बाद दो बजे सीनेट का प्रशासनिक सत्र। उसमें नियुक्ति की पुष्टि होनी ही चाहिए। मुझे आशा है, आप इसका अनुमोदन करा देंगे।"
"हाँ, हाँ।" रिले ने सोचते हुए कहा, "आपने फिर ठीक फरमाया। फिर आप शाम को न्यूयॉर्क के लिए गाड़ी पकड़ेंगे और अगली सुबह सैनफ्रांसिस्को के लिए पानी का जहाज।"
"जी हाँ, मेरी यही योजना है।"
थोड़ी देर कुछ सोचने के बाद रिले ने कहा, "क्या आप एक दिन या दो दिन और नहीं रुक सकते?"
"प्रभु आपका भला करें। नहीं, मैं उनमें से नहीं, जो व्यर्थ ही इधर-उधर घूमते फिरते हैं। मैंने आपको बताया न कि मैं काम करनेवालों में से हूँ।"
तूफान बढ़ रहा था। गाढ़ी बर्फ के थपेड़े पड़ रहे थे। रिले कुछ देर के लिए चुपचाप खड़ा रहा। लगभग एक मिनट या कुछ अधिक समय तक सोचने के बाद उसने कहा, "क्या आपने गैडबी में ठहरनेवाले एक आदमी के बारे में सुन रखा है? मेरे खयाल में -नहीं।"
उसने श्री लिकिंस को सरिए की बाड़ के सहारे कील दिया, उसे अपनी नजरों से वहाँ टिकाए रखा और बड़े इत्मीनान से अपनी कहानी सुनानी शुरू की। इस तरह मानो हम आधी रात के जोरदार तूफान से घिरे न होकर ग्रीष्म में फूलोंवाले किसी हरे-भरे मैदान में बैठे हों।
"मैं आपको उस आदमी के बारे में बताता हूँ। यह जैक्सन के समय की बात है। गैडबी तब मुख्य होटल हुआ करता था। यह आदमी एक दिन सुबह करीब नौ बजे टेनेसे से आया था। वह अपनी चार घोड़ोंवाली घोड़ागाड़ी, अश्वेत कोचवान और शानदार कुत्ते के साथ आया था। यह जानवर उसे बहुत प्यारा था और उसे इस पर गर्व भी था। वह ठीक गैडबी के आगे आकर रुका। वहाँ का क्लर्क, मालिक और बाकी लोग भी उसकी अगवानी के लिए दौड़े आए। लेकिन वह घोड़ागाड़ी से कूदा, कोचवान को वहीं रुकने को कहा और बोला, 'जरूरत नहीं। मेरे पास कुछ खाने-पीने का भी समय नहीं है। मैं यहाँ सरकार से अपना कुछ भुगतान लेने आया हूँ। अभी भागकर खजाने तक जाऊँगा, अपना पैसा लेकर तुरंत टेनेसे के लिए चल पड़्गा, क्योंकि मैं बहुत जल्दी में हूँ।'
"वह रात करीब ग्यारह बजे लौटा। उसने एक बिस्तर देने का आदेश दिया, उनसे घोड़ों को बाँधने के लिए कहा और बोला कि भुगतान कल सुबह लूँगा। यह जनवरी 1834 की बात है। 3 जनवरी, बुधवार की।
"5 जनवरी को उसने अपनी शानदार घोड़ागाड़ी बेच डाली और उसकी जगह एक पुरानी सस्ती घोडागाड़ी खरीदी। उसने कहा कि पैसा घर ले जाने के लिए यह भी काम आएगी और मुझे दिखावे की परवाह नहीं।
"11 अगस्त को उसने अपने दो बढ़िया घोड़े बेच डाले। बोला कि मैंने बहुत बार सोचा था कि इन ऊबड़खाबड़ पहाड़ी रास्तों पर चलने के लिए चार के बजाय दो घोड़े ठीक रहते हैं। यहाँ गाड़ी बहुत सावधानी से चलानी पड़ती है। वह अपनी भुगतान की रकम दो घोड़ोंवाली गाड़ी में भी आसानी से ले जा सकता है।
"13 दिसंबर को उसने एक और घोड़ा बेच डाला। बोला कि इस पुरानी हलकी गाड़ी को खींचने के लिए एक घोड़ा ही काफी है। जाड़े के इस मौसम में सड़कों की हालत भी बेहतर है और एक घोड़े को ज्यादा आसानी से हाँका जा सकता है।
"17 फरवरी, 1835 को उसने पुरानी घोडागाड़ी भी बेच दी। उसके बदले में एक सस्ती पुरानी बग्घी खरीदी। उसने कहा कि वसंत की इन दलदली सड़कों पर चलने के लिए बग्घी बेहतर रहती है। वह तो हमेशा से इन पहाड़ी रास्तों पर बग्घी में सवारी करना चाहता था।
"पहली अगस्त को उसने बग्घी बेच डाली और एक पुरानी जर्जर-सी टमटम खरीदी। वह बोला कि मैं चाहता हूँ कि जब मैं इस हिचकोले खाती बग्घी में गुजरूँ तो टिनिसया के महान् नागरिक हैरानी से मुझे देखें। मेरे खयाल में, उन्होंने अपने जीवन में कभी बग्घी के बारे में सुना भी न होगा।
"29 अगस्त को उसने अपने हब्शी कोचवान को भी बेच डाला। बोला कि इस बग्घी के लिए कोचवान की क्या जरूरत थी। और इस छोटी सी गाड़ी में तो दो जने आराम से बैठ भी नहीं पाते। फिर रोज-रोज दैव योग ऐसा मूर्ख ग्राहक भी तो नहीं भेजता, जो इस तरह के घटिया हब्शी के लिए नौ सौ डॉलर की रकम देने को तैयार हो जाए। वह तो बरसों से उस प्राणी से छुटकारा पाना चाहता था, पर उसे अचानक कहीं भी फेंकने के हक में नहीं था।
"अठारह महीने बाद यानी 15 फरवरी, 1837 को उसने बग्घी बेच डाली और घोड़े की काठी खरीद ली। बोला कि डॉक्टर ने हमेशा मुझे घुड़सवारी करने की सलाह दी थी। उसने कहा कि जाड़े के इस मौसम में पहाड़ी सड़कों पर किसी पहिएवाली चीज में जाने का जोखिम वह नहीं उठाना चाहता।
"9 अप्रैल को उसने काठी बेच दी। बोला कि उस तंग काठी के साथ अप्रैल के मौसमवाली इन कीचड़ भरी बरसाती सड़कों पर सवारी करके वह अपनी जान खतरे में नहीं डालना चाहता था। वह जानता था कि घोड़े की नंगी पीठ पर सवारी करना कहीं अधिक सुरक्षित है। काठी से तो वैसे भी उसे हमेशा नफरत रही है।
"24 अप्रैल को उसने अपना घोड़ा बेच डाला। बोला, 'आज मैं 57 साल का स्वस्थ व प्रसन्न हूँ। मेरे लिए ऐसा खुशनुमा मौसम घोड़े पर सवारी करके खराब करना उचित नहीं, जबकि किसी आदमी के लिए पैदल चलकर वसंत के इन ताजे खुले जंगलों में घूमने से बेहतर दुनिया में कुछ और है ही नहीं। जहाँ तक मेरे भुगतान का सवाल है, मिलने पर उस नकदी की गठरी तो मेरा कुत्ता भी आसानी से ले जाएगा। इसलिए कल में सुबह-सवेरे तरोताजा उठूगा, भुगतान लूँगा, गैडबी को अलविदा कहूँगा और खुद अपने पैरों चलकर टेनेसे के लिए रवाना हो जाऊँगा।'
"22 जून को उसने अपना कुत्ता भी बेच डाला। बोला, 'लानत भेजो कुत्ते को। जब आप ग्रीष्म के इन जंगलों और पहाड़ों की आनंददायक यात्रा पर निकलते हैं तो कुत्ता परेशानी का कारण ही तो बनता है। वह गिलहरियों का पीछा करता है, हर किसी पर भौंकता है, घाटों पर उछलता-कूदता, दौड़ता-फिरता है। आपको प्रकृति की सुंदरता का आनंद लेने का अवकाश ही नहीं मिलता। इससे बेहतर तो यह है कि मैं खुद ही भुगतान की रकम लेकर चलूँ। कुत्ते पर लादने से तो यह कहीं अधिक सुरक्षित है। अच्छा दोस्तो, अलविदा। मैं सुबहसवेरे खुशी-खुशी पैदल टेनेसे के लिए रवाना हो जाऊँगा।'
इसके बाद गिरती बर्फ और हवा के थपेड़ों के अलावा कुछ देर खामोशी बनी रही।
फिर श्री लिकिंस बेसब्री से बोले, "तो?"
रिले ने कहा, "हाँ तो, यह तीस साल पहले की बात है।"
"ठीक है, ठीक है। लेकिन इससे क्या?"
"उस आदरणीय वृद्ध से मेरी बहुत गहरी मित्रता है। वह हर शाम को मुझे अलविदा कहने आते हैं। एक घंटा पहले मेरी उनसे मुलाकात हुई थी। वह हमेशा की तरह अगली सुबह टेनेसे जाने वाले होते हैं। उन्होंने बताया कि मैंने योजना बना ली है। मैं अपना भुगतान लूँगा और तुम्हारे जैसे देर रात तक काम करनेवालों के बिस्तर से उठने से पहले टेनेसे के लिए रवाना हो जाऊँगा। उनकी आँखों में आँसू थे। वह बहुत खुश थे कि एक बार फिर अपना पुराना टेनेसे देखेंगे और पुराने मित्रों से मिलेंगे।"
फिर कुछ देर के लिए चुप्पी छा गई। उस अजनबी ने ही सन्नाटा तोड़ा, "बस, इतनी ही बात है?"
"इतनी ही।"
"खैर, मेरे खयाल में रात के लिए और खासतौर पर इस तरह की रात के लिए यह कहानी जरा ज्यादा ही लंबी हो गई थी। लेकिन इसका मकसद क्या था?"
"ओह, कोई खास नहीं।"
"तो फिर, इसका उद्देश्य क्या हुआ?"
"ओह, इसमें कोई विशेष उद्देश्य या मकसद नहीं। श्री लिकिंस, अगर आप डाकघर के इस पद के साथ सैनफ्रांसिस्को जाने की बहुत जल्दी में न हों तो मेरी राय है कि आप जरा देर विश्राम के लिए गैडबी में ठहर जाएँ। अलविदा, भगवान् आपका भला करें।"
इतना कहने के बाद रिले स्कूल मास्टर को वहीं हैरान खड़ा छोड़कर मुड़ा और चलता बना। वह सड़क के लैंप की रोशनी में बर्फ के बुत-सा खड़ा दिखाई दे रहा था।
उसे डाकघर की वह नौकरी कभी नहीं मिली।
(अनुवाद : सुशील कपूर)