वह आदमी जो चमत्‍कार कर सकता था : ऍच. जी. वेल्स

The Man Who Could Work Miracles : H. G. Wells

इसमें सन्देह है कि वह अदभुत शक्ति जन्‍मजात थी। मुझ से पूछा जाए तो मैं तो यही कहूंगा कि यह उसमें अचानक आ गई। वास्‍तव में तीस साल की उम्र तक वह एक नास्तिक था और चमत्‍कारिक शक्तियों मे विश्‍वास नहीं करता था। वह एक छोटा-सा आदमी था, जिसकी आंखे भूरी थीं और सिर पर सीधे खड़े लाल बाल थे। अपनी मूंछों को वह सिरों पर ऐंठ कर रखता था। उसका नाम फरनैन्डिस भी कोई ऐसा नाम नहीं था जिसमें कुछ चमत्‍कार की सी संभावना लगे। एक छोटे से दफ्तर मे वह एक क्‍लर्क था। द्ढ़ता के साथ बहस करने की उसको लत थी। एक दफा जब वह चमत्‍कार की असंभवता पर ज़ोर दे रहा था तभी उसे अपनी अदभुत शक्ति का अहसास हुआ। यह विवाद दफ्तर के पास ही के कैफेटेरिया में चल रहा था। मिस्‍टर बीमिश विरोधी पक्ष की भूमिका में थे ओर बार-बार एक ही बात ‘तो आप ऐसा कहते है’ दोहरा रहे थे, लेकिन असरदार तरीके से, जिसने फरनैन्डिस को सहनशीलता की हद तक पहुंचा दिया था।

इन दोनों के अतिरिक्‍त वहां दो लोग और मौदूद थे। एक था धूल से लथपथ साइकिल सवार कॉक्‍स, और दूसरी थीं मिस मेब्रिज जो कि उस कैफेटेरिया में सेविका थीं।

मिस मेब्रिज, फरनैन्डिस की ओर पीठ किए खड़ी गिलास धो रही थीं। अन्‍य लोग फरनैन्डिस को देख रहे थे और उसकी बात की विफलता का कमोबेश मज़ा ले रहे थे। मिस्‍टर बीमिश की रणनीति से उत्‍तेजित होकर उसने लफ्फाज़ी का एक असाधारण प्रयास किया। उसने कहा, ‘’देखो मि. बीमिश, हमें स्‍पष्‍ट रूप से समझ लेना चाहिए कि चमत्‍कार क्‍या है। यह प्रकृति के विपरीत कोई चीज़ है जिसे इच्‍छा शक्ति से किया जाता है। खासतौर से प्रबल इच्‍छा शक्ति के बिना यह नहीं हो सकता।‘’

मि. बीमिश ने फिर वही कहा, ‘’तो आप ऐसा कहते हैं।‘’ जिससे फरनैन्डिस को वितृष्‍णा हुई।

फरनैन्डिस ने कॉक्‍स की ओर देखा जो कि अब तक मात्र मूक दर्शक था। कॉक्‍स ने मि.बीमिश की ओरएक नज़र डाली और हिचकिचाते हुए सहमति दे दी। उसने अपना विचार व्‍यक्‍त नहीं किया। फरनैन्डिस फिर से बीमिश की ओर घूमा और यकायक उसे अपनी चमत्‍कार की परिभाषा पर आशा के विपरीत सहमति प्राप्‍त हो गई।

फरनैन्डिस ने खूब उत्‍साहित होकर कहा, ‘’यहां एक चमत्‍कार होगा। उदाहरण के लिए इस लैम्‍प को अगर उल्‍टा कर दिया जाए तो प्रकृति के अनुसार तो यह इसी तरह नहीं जल पाएगा, क्‍यों बीमिश?

"तुम ऐसा कहते हो कि नहीं जलेगा,’’ बीमिश ने कहा।

"और आप कया कहते हैं? आपका मतलब कहीं ये तो नहीं कि - हहं?" फरनैन्डिस ने पूछा।

"नहीं," अनिच्‍छा से बीमिश ने कहा, ऐसा नहीं हो सकता।

"ठीक है," फरनैन्डिस बोला, "तो यहां कोई आता है, वह मैं भी हो सकात हूं। यहां कोई आता है, वह मैं भी हो सकता हूं। यहां पास में खड़ा होता है, जैसा कि मैं भी कर सकता हूं और अपनी सारी इच्‍छा शक्ति समेट कर लैम्‍प से कहता है, ‘उल्‍टे लटक जाओं, टूटना नहीं और ठीक से जलते रहना’ और - अरे।"

सभी के मुंह से निकला, ‘अरे।‘ असंभव और अविश्‍वसनीय घटते उन सभी को दि‍ख रहा था। लैम्‍प हवा में उल्‍टा लटका ठीक से जल रहा था, उसकी लौ नीचे की ओर जा रही थी। इसमें कोई सन्‍देह नहीं कि यह वही लैम्‍प था, उसी कैफेटेरिा का सीधा-सादा-सा लैम्‍प। फरनैन्डिस त्‍यौरियां चढ़ाए, एक हाथ आगे बढ़ाए ऐसे खड़ा रह गया जैसे किसी भीषण विपत्ति के आने की आशंका में हो। कॉक्‍स जो कि लैम्‍प के पास बैठा था झटके से झुका और दूर कूद गया। कमोबेश सभी कूदे। मिस मेब्रिज ने मुड़ कर देखा और ज़ोरो से चीखी। करीब तीन सैकंड तक लैम्‍प स्थिर रहा । फिर फरनैन्डिस की धीमी, मानसिक रूप से विचलित सी आवाज़ आई, ‘’मैं इसे और देर तक ऐसे ही नही रख सकता।‘’ वह लड़खड़ाकर पीछे हट गया, अचानक ही उल्‍टा लैम्‍प भभका, काउन्‍टर के काने से टकरा कर उछला, फिर फर्श पर गिर और लुढ़कता हुआ बहार चला गया। सौभाग्‍य से लैम्‍प पर धातु का आवरण था वरना तो सारे कैफेटेरिया में आग लग जाती।

सबसे पहले कॉक्‍स बोला। उसने जो कुछ भी बड़बड़ाया उसका आशय था कि कैसे फरनैन्डिस एक इतनी मौलिक बात पर भी विवाद का प्रश्‍न चिन्‍ह लगा सकता है। जो कुछ घटा था उससे वो इतना अवाक था कि जिसकी कोई सीमा नहीं थी। उसके बाद जो बातचीत हुई, उससे फरनैन्डिस की अपनी बात पर कोई प्रकाश नहीं पड़ा, सबने बड़े रोष के साथ कॉक्‍स की बात का समर्थन किया। सबने फरनैन्डिस पर मूर्खतापूर्ण चाल चलने का आरोप लगाया और उसे खुद का सबका अमन चैन हरने वाले की तरह देखने पर विवश कर दिया। फरनैन्डिस के दिमाग में आकुलता का एक तूफान-सा था। वह स्‍वयं उन लोगों की बात मानने को राजी था। उसे वहां से जाने को कहा गया और उसने इस प्रस्‍ताव का बहुत ही मरियल-सा विरोध किया।

जब वो घर को चला तो उसके बदन में से जैसे आग निकल रही थी।

कोट का कालर मुसा हुआ था, आंखों में पीड़ा थी और कान लाल हो रहे थे। सड़क से गुज़रते हुए उसने बिजली के सभी दसों खम्‍बों को घबराहट से देखा, घर पहुंच कर जब उसने अपने छोटे से शयन कक्ष में अपने आप को अकेल पाया तब वह कुछ संभला। जो घटा था उसको गम्‍भीरता से याद करते हुए उसने कहा,"

ये आखिर हुआ क्‍या?

उसने अपना कोट और जूते उतार दिए थे और जेब मे हाथ डाले पलंग पर बैठा सत्रहवीं बार अपने बचाव में मन ही मन कह रहा था, ‘’मैं नहीं चाहता था कि ऐसी चकित करने वाली चीज़ हो।" तभी उसे महसूस हुआ कि जब वह आज्ञा दे रहा था तब अनिच्‍छा से वह उस बात को चाह भी रहा था और फिर जब उसने लैम्‍प को हवा में देखा था तब उसे लगा था कि उसे वहां रोके रखना स्‍वयं उस पर ही निर्भर है, हालांकि उसे कुछ स्‍पष्‍ट नहीं था कि कैसे। उसका दिमाग ज्‍़यादा जटिल नहीं था वरना तो वह ‘अनिच्‍छा पूर्वक चाहने’ की बात सोचते हुए ऐच्छिक कार्य शक्ति से जुड़ी अति गूढ़ समस्‍याओं में उलझ जाता। यह विचार तो उसके दिमाग के धुधंलेपन से उपजा और तब उसने सोचा कि कोई तार्किक मार्ग तो है नहीं, क्‍यों न प्रयोग करके देखा जाए।

"ऊपर उठो" उसने अपने मन को एकाग्र कर मोमबत्‍ती की ओर इशारा करके कहा। हालांकि उसे लगा कि उसने बेवकूफी की है, लेकिन एक ही पल में यह विचार गायब हो गया। एक क्षण के लिए मोमबत्‍ती हवा में ऊपर उठी और फिर गिर कर मेज़ से टकराई, लौ एक बार भभकी और फिर बुझ गई। फरनैन्डिस का मुंह खुला रह गया। कितनी ही देर तक वह अंधेरे में स्थिर बैठा रहा। उसने कहा, "आखिर ये हुआ तो है, लेकिन कैसे हुआ, मैं नहीं जानता।" उएसने एक भारी आह भरी और अपनी जेब में माचिस टटोलने लगा। जब नहीं मिली तो उसने उठ कर मेज़ पर ढूंढी। "काश मेरे पास माचिस होती," उसने कहा। उसने अपने कोट में देखा, माचिस वहां भी नहीं मिली। तभी उसके दिमाग में कौंधा कि चमत्‍कार माचिस के साथ भी तो हो सकता है। उसने अपना हाथ आगे फैलाया और अंधेरे में ही उसकी ओर घूरते हुए कहा, ‘’हाथ में एक माचिस आ जाए।" उसे महसूस हुआ कि कोई हल्‍की-सी चीज़ उसक हाथ पर गिरी, उसने अपनी मुट्टी बद की, उसमें माचिस थी।

तीली जलाने की कई कोशिशों के बावजूद वो नहीं जली। उसने माचिस का नीचे फेंक दिया और तब उसे सूझा कि उसे तीली जलाने की इच्‍छा कर लेनी चाहिए थी। उसने ऐसा चाहा, और देखा कि तीली मेज़ पर पड़ी जल रही थी। उसने झपट कर उसे उठा लिया और तीली बुझ गई। उसके दिमाग में संभावनाओं का विस्‍तार हो रहा था। मोमबत्‍ती को मोमबत्‍ती दान मे लगा कर फरनैन्डिस ने कहा, "जल जाओ", और वह जल उठी। उसने देखा मेज़पोश में एक छोटा-सा काला छेद हो गया था जिसमे से धुंआ उठा रहा था। नज़र उठा कर उसने लौ को देखा और फिर वापस छेद की ओर। फिर उसने ऊपर देखा और शीशे में उसकी नज़र अपनी ही नज़र से मिल गई। खामोशी में वह स्‍वयं से ही बातें करने लगा।

अंत में फरनैन्डिस ने अपनी ही परछाई से कहा, "अब चमत्‍कारों के बारे में क्‍या कहा जाए?"

फरनैन्डिस क गहन मनन चिन्‍तन के प्रयास के बावजूद उसक उहापोह बढ़ती ही गई। जहां तक उसकी समझ में आया, यह पूरी तरह इच्‍छा शक्ति का परिणाम था। उसक पहले अनुभव ने उसे और आगे प्रयोग करने से निरूत्‍साहित किया, सिवाए कुछ बहुत सावधानी से किए गए प्रयोगों के। उसने कागज़ का ऊपर उठाया, गिलास के पानी को पहले हरा और फिर गुलाबी मे बदला, एक घोंघा बनाया जिसे फिर गायब कर दिया और अपने लिए एक चमत्‍कारी नया दांत साफ करने का ब्रश मंगाया। आधी रात के बाद वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि उसकी इच्‍छा शक्ति विशेष रूप से निराली और तीखी है, एक ऐसा तथ्‍य जिसका उसे पहले से कुछ अन्‍दाज़ तो था लेकिन निश्चित भरोसा नहीं था। उसकी इस खोज का शुरूआत का सहमापन और घबराहट अब गर्व और हो सकने वाले लाभ के आभास ने ले लिया था।

गिरिजाघर की घड़ी मे बजे एक के घंटे से उसका ध्‍यान टूटा। उसके मन में यह नहीं आया कि दफ्तर की ड्यूटी से भी चमत्‍कार द्वारा बचा जा सकता है। वह कपड़े बदलने लगा सिसे जल्‍दी बिस्‍तर मे जा सके। "मैं बिस्‍तर में पहुंच जाऊं," उसने कहा और अपने को बिस्‍तर में पाया। "मेरे कपड़े बदले जाएं," उसने सोचा लेकिन ऐसा होते ही उसे चादर कुछ ठंडी लगी। जल्‍दी से उसने कहा, "नहीं मेरी कमीज़ नहीं, एक अच्‍छी मुलायम ऊनी बण्‍डी," और फिर उसने बहुत प्रसन्‍नता के साथ कहा, "अब मैं आराम से सो जाऊं।" अगली सुबह वो रोज़ के वक्‍त ही जागा। नाश्‍ते के वक्‍त वह विचार मग्‍न रहा। सोचता रहा कि उसका रात का अनुभव क्‍या कोई स्‍वप्‍न ही था? उसने फिर से वही निर्णय लिया, कि बहुत सावधानी से प्रयोग करने चाहिए। उदाहरण के लिए नाश्‍ते में उसने तीन अंडे लिए। दो तो मकान मालकिन द्वारा दिए हुए, जो कि अच्‍छे थे, लेकिन बाजार से लाए हुए थे; और एक उसकी अदभुत इच्‍छा शक्ति के द्वारा पेश किया हुआ, एकदम ताजा, स्‍वादिष्‍ट, पका हुआ मुर्गी का अंडा। उसने गहन उत्‍तेजना में, जिसे वो सावधानी से छिपा रहा था, जल्‍दी से दफ्तर की ओर प्रस्‍थान किया। रात में जब मकान मालकिन ने पूछा तभी उसे तीसरे अंडे के छिलकों की याद आई। सारा दिन इस आश्‍चर्यजनक नए आत्‍मज्ञान के कारण वो कोई काम नहीं कर सका, लेकिन इससे उसे कोई असुविधा नहीं हुई, क्‍योंकि अन्तिम दस मिनटों में चमत्‍कार से उसका सब काम पूरा हो गया।

जैसे-जैसे दिन बीतता गया उसके मन मे आश्‍चर्य की जगह गर्व की भावना आती गई। फिर भी कैफेटेरिया से निकाले जाने की घटना को स्‍मरण करना उसे अच्‍छा नहीं लग रहा था और उसके सहकर्मियों तक उस घटना का जो अधकचा विवरण पहुंचा था उससे उसकी बदनामी हुई थी। यह साफ था कि नाजुक वस्‍तु का उठाने में उसे सावधानी बरतनी चाहिए थी लेकिन मन में उलटने पुलटने पर कई अन्‍य मायनो में उसे अपनी यह शक्ति एक-पर-एक संभावनाओं का रास्‍ता खोलती प्रतीत हुई। वह सोच रहा था कि अन्‍य चीजों के साथ-साथ अपनी व्‍यक्तिगत सम्‍पत्ति भी बढ़ानी चाहिए। उसने एक जोड़ा हीरे के शानदार बटन मंगाए और फौरन ही उन्‍हें गायब कर दिया, क्‍योंकि तभी दफ्तर के मालिक का युवा पुत्र उसकी मेज़ पर आ पहुंचा और फरनैनिडस डरा कि वह सोचेगा कि ये बटन उसके पास कहां से आए। उसे साफ नज़र आ रहा था कि सावधानी और सतर्कता की बहुत ज़रूरत है, लेकिन अब तक उसने यह भी जान लिया था कि इस क्रिया में महारत हासिल करने में उसे उतनी ही कठिनाई आएगी जितनी साइकिल चलाना सीखने में आई थी। यही विचार, और साथ ही शायद यह भी कि कैफेटेरिया में अब उसका स्‍वागत नहीं होगा, रात के भोजन के बाद उसे पीछे की सड़क पर ले गया, एकान्‍त में कुछ चमत्‍कारों का अभ्‍यास करके देखने के लिए।

संभवत: उसक प्रयत्‍नों में कुछ मौलिकता की ज़रूरत थी, चूंकि इच्‍छा शक्ति के अतिरिक्‍त उसमें और कोई खास काबिलियत तो थी नहीं। उसने अपनी छड़ी को फुटपाथ के किनारे लगी घास में गाड़ दिया और उस सूखी लकड़ी में फूल खिल जाने की आज्ञा दी। तुरन्‍त ही हवा में गुलाबों की सुगन्‍ध फैल गई। उसने माचिस जला कर इस सुंदर चमत्‍कार को अपनी आंखों से देखा। लेकिन तभी बढ़ते हुए कदमों की आहट से उसकी खुशी काफूर हो गई। कहीं उसकी शक्ति का समय से पहले लोगों को पता न चल जाए, इस डर से जल्‍दबाजी में उसने अपनी खिलती हुई छड़ी को आदेश दिया, ‘’वापस जाओ।‘’ उसका मतलब था, वापस बदल जाओ, पर वो थोड़ा घबरा गया था। छड़ी तेज़ी से पीछे की चल पड़ी और अन्‍धेरे मे से तीखी गुस्‍से भरी चीख उठी, कुछ अपशब्‍दों के साथ, ‘’बेवकूफ तुम किस पर चे कांटो की झाड़ी फेंक रहे हो? ये मेरे घुटने पर आकर इतनी ज़ोर से लगी है।‘’

"मुझे माफ कर देना भाई साहब।‘’ फरनैन्डिस ने कहा और फौरन अपनी दी हुई सफाई के पोचेपन का अहसास कर घबरा कर वह अपनी मूंछों को मरोड़ने लगा। उसे विंच नामक पुलिस वाला अपनी और आता नज़र आया। ‘’तुम्‍हारा मतलब क्‍या है?’’ पुलिसवाले ने पूछा, ‘’अच्‍छा, तो ये आप हैं जिन्‍होंने कैफेटेरिया में लैम्‍प तोड़ दिया था।"

"मेरा ऐसा मकसद नहीं था।‘’ फरनैन्डिस ने कहा, "जरा-सा भी नहीं।" "फिर तुमने ऐसा क्‍यों किया? विंच ने कहा।

"ओह-ह .... "फरनैन्डिस बुदबुदाया। "तुम जानते हो छड़ी लगने से दर्द होता है? तुमने ऐसा क्‍यों किया?"

उस समय फरनैन्डिस की समझ में कुछ नहीं आया कि उसने ऐसा क्‍यों किया था। उसकी चुप्‍पी से विंच और चिढ़ गया। ‘’इस बार तुमने पुलिस पर हमला किया है। समझे?’’

"देखिए विंच साहब," परेशान होकर फरनैन्डिस ने कहा, "मुझे बहुत अफसोस है। बात ये है ..." वह कोई बहाना नहीं सोच पाया और सच बात बोल गया, "मैं एक चमत्‍कार करने की कोशिश कर रहा था।" उसने हल्‍के फुल्‍के तरीके से कहने की कोशिश की लेकिन पूरे प्रयत्‍न के बावजूद ऐसा नहीं कर पाया।

"चमत्‍कार कर रहे थे?... क्‍या पागलपन है। चमत्‍कार...हुंह... तो ये कोई छोटा मोटा मज़ाक नहीं है।

तुम ही तो वो आदमी हो जो चमत्‍कार में विश्‍वास नहीं करते थे? असली बात तो ये है कि यह भी तुम्‍हारी कोई बेवकूफी भरी चाल है। अब मैं तुम्‍हें बताता हूं..."

लेकिन फरनैन्डिस ने वो कुछ नहीं सुना जो विंच उसे बताने जा रहा। उसे अहसास हो गया था कि उसने अपना कीमती रहस्‍य सारी दुनिया को बता दिया है। उसे ज़ोर से खीज हुई। उसने बाव देखा न ताव, और पुलिस वाले को ओर घूम कर तेज़ी से गरजा, ‘’मेरी बेवकूफी का खेल तो तुम अब देखो चले जाओ यहां से – जाओ सीधे जहन्‍नुम में।"

उसने अपने आप को अकेला पाया। फरनैन्डिस ने उस रात और कोई चमत्‍कार नहीं किया। बिना अपनी फूलों वाली छड़ी की ओर देखे वह सीधा घर आ गया। वह थोड़ा भयभीत था, मगर बहुत शांत था। उसने सोचा, "हे भगवान, यह एक शक्तिशाली देन है, बहुत ही शक्तिशाली मेरा मतलब इतने ज्‍़यादा से नहीं था।... न जाने जहन्‍नुम कैसा होता हो।"

जब वह बिस्‍तर पर बैठा जूते उतार रहा था, तभी उसे एक बात सूझी। उसने विंच का तबादला सैन फ्रैन्सिस्‍को करवा दिया, और फिर शांति से सो गया। स्‍वप्‍न में उसे विंच का क्रोध दिखाई दिया।

अगले दिन उसने दो अजीब समाचार सुने। किसी ने कैफेटेरिया के पिछवाड़े की गली में गुलाब का बहुत सुन्‍दर पौधा लगा दिया है, और पास की नदी में जाल घसीटा जाएगा अगले गांव तक, पुलिसमैन विंच की तलाश में।

फरनैन्डिस सारा दिन विचार मग्‍न रहा। उसने कोई चमत्‍कार भी नहीं किया, सिवाय विंच के लिए थोड़ी सहूलियतें जुटाने के, तथा अपना काम वक्‍त पर बहुत अच्‍छी तरह पूरा कर लेने के, हालांकि उसके दिमाग में विचारों का झंझावात घूम रहा था। उसकी असामान्‍य नम्रमा और खोए-खोएपन की ओर कुछ लोगों का ध्‍यान आकर्षित भी हुआ। दफ्तर में यह एक मज़ाक की बात बन गई। ज्‍़यादातर फरनैन्डिस विंच के बारे में ही सोचता रहा।

रविवार को वह चर्च गया। विचित्र बात ये हुई कि वहां मिस्‍टर मेडिग ने, जो कि तंत्र-मत्र में कुछ रूचि रखते थे, अपने उपदेश में ऐसी घटनाओं के बारे में जिक्र किया ‘जिनको तर्क से समझाया नहीं जा सकता’। फरनैन्डिस नियमित रूप से चर्च जाने वालों में से नहीं था, लेकिन उसका तर्क पर दृढ़ विश्‍वास अब तक काफी हिल चुका था। उस उपदेश ने सकी विचित्र शक्ति पर बिल्‍कुल ही नया प्रकाश डाला। उसने उपदेश के बाद मिस्‍टर मेडिग से मिलने का निश्‍चय किया। बल्कि उसे तो यह ताज्‍जुब होने लगा कि अब तक उसने ऐसा क्‍यों नहीं सोचा था।

मिस्‍टर मेडिग एक पतले-दुबले शीघ्र ही उत्‍तेजित हो जाने वाले व्‍यक्ति थे। उनकी कलाइयां और गर्दन कुछ अधिक ही लम्‍बी लगती थीं। जब उनसे एक ऐसे युवक ने, धार्मिक मामलों में जिसकी लापरवाही की चर्चा शहर भर में थी, मिलने की प्रार्थना की, तो उन्‍हें प्रसन्‍नता हुई। कुछ ज़रूरी कामों को निपटाने के बाद वे उसे चर्च के एक कमरे में ले गए और आराम से बिठा कर उसके आने का मकसद पूछा।

पहले पहल फरनैन्डिस को हिचकिचाहट हो रही थी, और बात शुरू करना भारी पड़ रहा था। ‘’मुझे डर है कि आप मेरी बात का विश्‍वास नहीं करेंगे..." कुछ समय तक वह इसी प्रकार के कथन कहता रहा। आखिरकार उसने मेडिग से पूछ लिया लिया कि चमत्‍कारों के बारे में उनका क्‍या विचार है। मेडिग कुछ कहना शुरू करें इतने में फरनैन्डिस फिर बोल पड़ा, "क्‍या आप विश्‍वास करेंगे कि एक साधारण आदमी, मान लीजिए मेरे जैसा ही, अपने अन्‍दर ऐसा कुछ परिवर्तन पा सकता है कि वह अपनी इच्‍छा शक्ति से जो चाहे कर सके।"

"यह संभव है," मेडिग ने कहा, "शायद इस तरह की बातें हो सकती हैं।"

"अगर आप एतराज़ न करें तो मैं यहां की किसी वस्‍तु से आपको प्रयोग करके दिखा सकता हूं।" फरनैन्डिस बोला, "सिर्फ आधे मिनिट की बात है मेडिग साहब, मैं यह जानना चाहता हूं कि उस तम्‍बाखू के डिब्‍बे से मैं जो करने जा रहा हूं क्‍या वह चमत्‍कार है?"

उसने अपनी दृष्टि को तम्‍बाखू के डिब्‍बे पर केन्द्रित किया, और भौंहें सिकोड़ कर कहा: "एक फूलों का गुलदस्‍ता बन जाओ।"

तम्‍बाकू के डिब्‍बे ने तुरन्‍त वैसा ही किया जैसा उसे आदेश मिला था।

मेडिग ज़ोर से चौंक पड़े। वे खड़े खड़े कभी फूलों की ओर देख रहे थे, तो कभी इस गजब ढाने वाले की ओर। वे कुछ बोले नहीं, पर उन्‍होंने झुक कर फूलों को सूंघा। बड़े अच्‍छे और एकदम ताज़ा फूल थे। फिर उन्‍होंने फरनैन्डिस को घूरते हुए पूछा, "तुमने ये कैसे किया?"

फरनैन्डिस ने अपनी मूंछों को खींचा, "अभी आपको बताया था। अब आप बताइए, ये चमत्‍कार है या काला जादू या कुछ और? आप क्‍या सोचते हैं, मुझे क्‍या हो गया है? मैं आपसे यही जानना चाहता हूं।"

"यह तो एक बहुत ही असाधारण घटना है।"

"और पिछले ही हफ्ते, आज के दिन तक मैं भी आप ही की तरह ज़रा भी नहीं जानता था कि मैं ऐसा कुछ कर सकता हूं। यह अचानक हो गया। मेरी इच्‍छा शक्ति के साथ कुछ विचित्र हो गया है।"

"क्या सिर्फ यही, या इसके अलावा तुम कुछ और भी कर सकते हो?"

"कुछ भी।" फरनैन्डिस ने कहा, "कैसा भी।" वह सोचने लगा और तभी उसे एक पुराना जादूगरी का खेल याद आया। "देखिए।" उसने फूलों के गुलदस्‍ते की ओर इशारा किया, "एक पानी से भरा कांच का बर्तन बन जाओ जिसमें सुनहरी मछलियां तैर ही हों। आपने देखा मेडिग सहब?"

"यह तो आश्‍चर्यजनक है। यकीन ही नहीं होता। या तो तुम एक बहुत ही असाधारण व्‍यक्ति हो या फिर..."

"मैं इसे किसी भी चीज़ में बदल सकता हूं," फरनैन्डिस ने कहा, "किसी में भी। कबूतर बन जाओ।"

अगले ही क्षण कमरे में एक नीला कबूतर चक्‍कर काटता उड़ रहा था। जब भी वह मेडिग के पास आता उन्‍हें दुबक कर अपना बचाव करना पड़ता। फरनैन्डिस ने कहा, "वही ठहर जाओ," और कबूतर हवा में स्थिर टंग गया। "मैं इसे फिर से फूलों के गुलदस्‍ते में बदल सकता हूं," उसने कहा, और कबूतर को मेज़ पर रख कर उसने यह चमत्‍कार कर दिखाया। "लग रहा है आपको अब अपने तम्‍बाखू की ज़रूरत है," और फूल वापस तम्‍बाखू का डिब्‍बा बन गये।

मेडिग इस पूरी घटना को बहुत ध्‍यान से चुपचाप देख रहे थे। उन्‍होंने फरनैन्डिस को घूरा और बहुत सावधानी से डिब्‍बे को उठा कर जांचा फिर मेज़ पर रख कर सिर्फ, ‘’हं हं... ‘’ कहा।

"अब इसके बाद बतलाना आसान हो गया है कि मैं आपके पास क्‍यों आया हूं, फरनैन्डिस बोला, और फिर उसने अपने अनोखे अनुभवों को विस्‍तार से बयान करना शुरू किया। उसने लैम्‍प की घटना से आरम्‍भ किया, फिर विंच के साथ घटी पेचीदा घटना का वर्णन किया। जैसे-जैसे वह आगे बताता गया, मेडिग के भौंचक्‍के रह जाने से जो क्षणिक गर्व उसमें आ गया था वह जाता रहा और वह रोज़ वाला साधारण आदमी बन गया। मेडिग बहुत ध्‍यान से सुन रहे थे, तम्‍बाखू का डिब्‍बा उनके हाथ में था, सुनते सुनते उनके चेहरे के भाव बदलते जा रहे थे। जब फरनैन्डिस तीसरे अंडे वाला चमत्‍कार बता रहा था तब मेडिग अपने कंपकंपाते हुए हाथ को झटकते हुए बीच में बोल पड़े, ‘’यह हो सकता है, इस पर विश्‍वास किया जा सकता है। यह आश्‍चर्यजनक ज़रूर है लेकिन इसमें बहुत-सी कठिनाइयों को दूर किया जा सकता है। चमत्‍कार करने की शक्ति एक वरदान है- जैसे एक विशेष प्रकार की अपूर्व बुद्धि – यह कदाचित ही किसी बिरले मानव में आती है। मुझे हमेशा से मोहम्‍मद और योगियों के चमत्‍कारों पर अचरज होता था। यह एक वरदान ही है। हम कुदरत के नियमों के ऊपर किसी और नियम में प्रवेश कर रहे हैं। चलो चलो... आगे बताओ, आगे बताओ।"

फरनैन्डिस विंच के साथ अपने कारनामों का वर्णन करने लगा, और मेडिग भी अब अपने डर और अविश्‍वास पर काबू पा लेने के बाद हाथ पांव झटकते हुए बैठे थे और हैरत प्रकट कर रहे थे। फरनैन्डिस ने कहा, ‘’ये बात मुझे सबसे ज्‍़यादा परेशान कर रही है, और इसी के लिए मुझे आपकी सलाह चाहिए। वह सैन फ्रैन्सिस्‍को में है – सैन फ्रैन्सिस्‍को है कहां भगवान जाने – और यह हम दोनों के लिए ही एक अजीब स्थिति है। वो तो सोच भी नहीं पा रहा होगा कि उसके साथ क्‍या हो गया है। वह डरा हुआ होगा, क्रोधित होगा, मेरे ऊपर खार खा रहा होगा। वह शायद बार-बार यहां आने के लिए रवाना होता होगा, और मैं प्रत्‍येक कुछ घंटों बाद चमत्‍कार से उसे वापस भेज देता हूं। इसे भी वह समझ नहीं पा रहा होगा। अगर हर बार वह टिकट खरीदता होगा ता अब तक उसका काफी पैसा बर्बाद हो चुका होगा। मैंने उसके लिए अच्‍छा-से-अच्‍छा करने की कोशिश की है पर उसके लिए खुद को मेरी जगह रख कर देख पाना तो सम्‍भव नहीं है। उसको जहन्‍नुम भेजने के बाद मैंने सोचा कि वहां की आग मं उसके कपड़े तो झुलस ही गए होंगे – अगर जहन्‍नुम वैसा ही है जैसा कि हम सोचते हैं – और तब तो हो सकता है कि सैन फ्रैन्सिस्‍को में उसे जेल में डाल दिया गया हो। मैंने इच्‍छा की कि सीधे उसक बदन पर एक नया सूट आ जाए। लेकिन देखिये मैं खुद कैसी उलझन में फंसा हुआ हूं ...’’

मेडिग गंभीर दिख रहे थे। ‘’मैं देख रहा हूं कि तुम उलझन में फंसे हुए हो। यह सचमुच बड़ी कठिन परिस्थिति है। तुम इसका अंत कैसे कर सकते हो.......... " लेकिन वे खुद ही अनिर्णायक स्थिति में थे।

"खैर हम कुछ देर के लिए विंच का छोड़ कर कुछ ज्‍़यादा महत्‍वपूर्ण प्रश्‍नों पर विचार करते हैं। मैं नहीं समझता कि यह काला जादू या ऐसा कुछ है। इसमें अपराध का पुट भी कतई नहीं दिखता – अगर तुम कुछ तथ्‍य छिपा नहीं रहे हो तो। नहीं, यह चमत्‍कार ही है, विशुद्ध चमत्‍कार, और वह भी उच्‍चतम श्रेणी का।"

वह कमरे में इधर उधर घूमने लगा, और फरनैन्डिस हाथ पर सिर रखे चिंतित बैठा रहा। उसने काह, ‘’मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं विंच के मामले को कैसे दुरूस्‍त करूं।‘’

मेडिग ने कहा, "चमत्‍कार करने की शक्ति, स्‍पष्‍टत: अत्‍यंत ही शक्तिशाली शक्ति, अपने आप कोई मार्ग खोज लेगी, डरो नहीं। तुम बहुत महत्‍वपूर्ण व्‍यक्ति हो, जिसमें अत्‍यधिक सम्‍भावनाएं हैं.... यह वास्‍तव में एक असीमित शक्ति है। हमें तुम्‍हारी शक्ति को परख कर देखना चाहिए अगर वो वाकई इतनी है जितनी प्रतीत होती है।"

और फिर, चाहे यह कितना ही अविश्‍वसनीय क्‍यों न लगे, 10 नवम्‍बर, 1896 को चर्च के पीछे एक छोटे से कमरे में मेडिग से प्रेरणा पाकर फरनैन्डिस ने चमत्‍कार करने शुरू किए। पाठको, आप तिथि पर विशेष ध्‍यान दीजिए। आपको शायद एतराज़ होगा, या हो सकता है कि आपने अब तक एतराज़ किया भी हो कि इस कहानी में कुछ असम्‍भावित बातें हैं। अगर ऐसा कुछ वास्‍तव में हुआ होता तो इसके बारे में अखबारों में ज़रूर छपा होता। आ्गे जो आने वाला है उस पर तो विश्‍वास करना आपके लिए और भी मुश्किल होगा, क्‍योंकि इसपर यकीन करनेका तात्‍पर्य तो यह होगा कि उस दिन पाठक स्‍वयं एक भीषण और अपरिहार्य दुर्घटना में खतम हो गया होगा। पर चमत्‍कार तो होता ही अविश्‍वसनीय है, और सच पूछिए तो पाठक उस भीषण दुर्घटना में मारा भी गया था।

फरनैन्डिस पहले विंच का मामला हल करना चाहता था, लेकिन मेडिग उसे छोड़ ही नहीं रहा था। लगभग एक दर्जन छोटे-छोटे घरेलू से प्रयोग करने के बाद उन दोनों में और जोश जागने लगा। उनकी कल्पना ने उड़ान भरनी शुरू की और उनकी महत्वाकांक्षा और बढ़ने लगी। उनका पहला साहसिक कार्य भूख, और मेडिंग की सेविका मिस मैरी की उपेक्षा एवं लापरवाही से प्रेरित हुआ। उन दोनों के लिए जो भोजन परोसा गया था वह एकदम नीरस लग रहा था, जिसे देख कर खाने की इच्छा ही नहीं हो रही थी। मेडिग को भोजन से ज्यादा तो अफसोस हो रहा था अपनी सेविका की नालायकी पर। तभी फरनैन्डिस को लगा कि उसके सामने एक अवसर है। "अगर आप बुरा न मानें तो, बताइए आप क्या खाना पसंद करेंगे?'' उसने हाथ नचा कर जोश से पूछा। मेडिग ने अपनी पसन्द की उम्दा-से उम्दा चीजें बता दीं, जो तुरंत हाज़िर हो गई। वे दोनों देर तक खाना खाते रहे और बातें करते रहे। फरनैन्डिस का चेहरा तो अब आगे आने वाले करिश्मों के बारे में सोच कर जगमगाने लगा था। वह बोला, "अब तो शायद मैं आपकी घरेलू तौर पर भी मदद कर सकता हूं।''

"मैं ठीक से समझा नहीं, मेडिग मदिरा का गिलास उठाते हुए बोला। फरनैन्डिस ने कहा, "मैं सोच रहा था कि शायद मेरा चमत्कार मिस मैरी के साथ भी काम करे - मेरा मतलब है उसे एक अच्छी सेविका बनाने के लिए।''

मेडिग ने गिलास नीचे रख दिया। वे थोड़ा शंक़ित लग रहे थे, “उसे दखलअंदाज़ी बिल्कुल पसंद नहीं है, और इस वक्त रात के ग्यारह बज रहे हैं। वो सो रही होगी, आप हर पहलू से सोचिए।''

फरनैन्डिस ने इन आपत्तियों पर विचार किया, फिर कहा, "मैं नहीं सोचता कि ऐसा उसके सोते हुए। नहीं हो सकता।''

मेडिग ने उसके विचार का कुछ विरोध तो किया, लेकिन अंततः राजी हो गए। फरनैन्डिस ने आज्ञा जारी कर दी, और फिर थोड़ी देर बेचैनी के साथ वे दोनों खाना खाते रहे। मेडिग अगले दिन अपनी सेविका में दिखने वाले बदलावों के बारे में इतनी लम्बी चौड़ी अपेक्षाएं कर रहे थे कि फरनैन्डिस को भी ये ज्यादती और जल्दबाज़ी भरी लगीं। तभी ऊपर की मंज़िल से कुछ अजीब-सी आवाजें आने लगीं। उन दोनों ने आंखों ही आंखों में एक दूसरे से कुछ पूछा, और फिर मेडिग शीघ्रता से ऊपर भागे। फरनैन्डिस ने उन्हें मिस मैरी को पुकारते और उनके कदमों को उसकी ओर जाते सुना।

एक ही मिनट में मेडिग जब लौटे तो लगा मानों वे उड़ रहे हों। उनका चेहरा चमक रहा था। “गजब!'' उन्होंने कहा, "मैं तो हिल गया हूँ!"

वे कालीन पर तेजी से इधर उधर चलने लगे। “दरवाज़े की दरार से मैंने पश्चाताप का दृश्य देखा - बहुत ही हृदयस्पर्शी पश्चाताप। बेचारी औरत! कैसा अद्भुत बदलाव! वह जाग गई थी। शायद अपने ट्रंक में छिपा कर रखी शराब की बोतल तोड़ने के लिए बिस्तर से उठ गई थी। खुदा से माफी मांग रही थी। लेकिन इस घटना ने हमारे समक्ष बहुत ही आश्चर्यजनक संभावनाओं का भंडार खोल दिया है। अगर हम इस औरत में चमत्कारिक बदलाव कर सकते हैं। तो"

"लगता तो ऐसा ही है," फरनैन्डिस ने कहा, "लेकिन विंच...?"

“पूरी तरह अपार और असीम।” और फिर विंच की समस्या को दरकिनार करते हुए मेडिग ने बहुत से शानदार प्रस्तावों की पूरी श्रृंखला ही खोलनी शुरू कर दी। हर क्षण उनके दिमाग में और भी हैरतअंगेज़ प्रस्ताव आ रहे थे। ये सब प्रस्ताव परोपकार की भावना से प्रेरित थे, उस तरह का परोपकार जो पेट भरा होने पर सूझता है। बेचारे विंच की समस्या बिना हल हुए ही रह गई। आश्चर्यजनक परिवर्तन होने शुरू हुए। पौ फटने से पूर्व के अंधेरे में आकाश में चमकता शांत चन्द्रमा उन दोनों को कड़कड़ाती ठंड में शहर की गलियों की परिक्रमा करते देख रहा था। हर्षोन्माद में मेडिग अपने हाथों-पैरों पर भी काबू नहीं रख पा रहे थे, और फरनैन्डिस में से जोश फूटा पड़ रहा था, और अब तो वह खुलकर अपनी शक्ति का इजहार कर रहा था। उन्होंने शहर के सभी शराबियों को सुधार कर सारी शराब को पानी में बदल दिया था, रेल यातायात को सुधरा हुआ रूप दे दिया था, पादरी के मस्से को ठीक कर दिया था, कस्बे के एक ओर के पुराने बड़े दलदल को सुखा दिया था, पहाड़ी की मिट्टी को सुधार दिया था। अब वो देखने जा रहे थे कि साऊथ ब्रिज के टूटे हुए घाट को कैसे ठीक किया जा सकता है। मेडिग ने हर्ष से कहा, “इस जगह की तो कल शक्ल ही बदली हुई होगी। सभी लोग कितने हैरान, और कितने अहसानमन्द होंगे!" उसी वक्त चर्च की घड़ी में तीन का घंटा बजा।

फरनैन्डिस ने कहा, “तीन बज रहे हैं, मुझे वापस जाना चाहिए, सुबह आठ बजे काम पर जाना है।"

"हमने तो अभी शुरुआत ही की है," मेडिग ने बहुत ही मीठे स्वर में कहा, "हम जो भलाई कर रहे हैं। उसके बारे में सोचो - कल जब लोग जागेंगे ...."

"लेकिन..." फरनैन्डिस ने कहा। मेडिग ने अचानक उसकी बांह पकड़ ली। उनकी आंखें चमक रही थीं। और उनमें एक जुनून-सा नज़र आ रहा था। उन्होंने आकाश में चांद की ओर इशारा करते हुए कहा, "ऐसा करो, इसे रोक दो।” फरनैन्डिस ने चांद की ओर देखा, और थोड़ा ठहर कर बोला, “ये तो कुछ ज्यादा ही होगा।''

"क्यों नहीं," मेडिग बोले, "बेशक, यह तो नहीं रुकता। तुम पृथ्वी का घूमना रोक दो। समय रुक जाएगा। ऐसा तो नहीं है कि हम कोई नुकसान कर रहे हों।"

"अम..हं...," फरनैन्डिस बुदबुदाया, “कोशिश करता हूं।''

उसने अपने कोट के बटन बंद किए और अपनी शक्ति में जितना विश्वास बटोर सकता था उतने विश्वास के साथ पृथ्वी को संबोधित करते हुए कहा, “घूमना बंद कर दो।''

और वह पूरा का पूरा असंयत हो कर एक मिनट में दर्जनों मील की रफ्तार से हवा में उड़ रहा था। प्रति सेकन्ड वह अनगिनत चक्कर खा रहा था, लेकिन इसके बावजूद भी उसने सोचा ‘विचार भी क्या गज़ब है, कभी इतना धीरे चलता है जैसे बहता हुआ कोलतार, और कभी प्रकाश की तीव्रता से।' उसने पल भर में सोचा और इच्छा की, "मैं सुरक्षित नीचे आ जाऊं। और चाहे जो कुछ भी हो लेकिन मैं । ठीक-ठाक सुरक्षित नीचे आ जाऊं।"

उसने यह इच्छा भी सही वक्त पर कर ली थी, क्योंकि उसके कपड़े इतनी तेजी से उड़ने की गर्मी से झुलसने लगे थे। वह प्रबल शक्ति से नीचे आ कर गिरा - नरम, मानों ताज़ी खोदी हुई मिट्टी पर, और उसे जरा भी चोट नहीं आई। धातु और इमारती मलबे का एक विशाल रेला, जो कि बहुत कुछ बाज़ार के बीच खड़े घण्टाघर-सा लग रहा था, उसके करीब धराशाई हुआ। फिर वापस हवा में उछला और ठीक उसी के ऊपर ईंटें, पत्थर, रोड़ी हवा में इस तरह उड़े जैसे कि बम फटा हो। तेज़ी से लुढ़कती हुई एक गाय एक बड़े से पत्थर के टुकड़े से टकराई और अण्डे की तरह फूट गई। तभी इतनी जोर का धमाका हुआ कि उसकी ज़िन्दगी के अब तक के बड़े-से-बड़े धमाके उसके सामने रेत के गिरने की आवाज़ के समान थे। उसके बाद धमाकों की झड़ी-सी लग गई लेकिन उनकी तीव्रता कम होती गई। एक विशाल हवा पृथ्वी और आकाश के बीच इतनी भीषण रफ्तार से गरजती हुई चल रही थी कि ऊपर देखने के लिए वह मुश्किल से अपना सिर उठा पा रहा था। कुछ समय तक तो उसे ऐसा महसूस होता रहा जैसे उसकी सांस ही रुक गई हो और उसके लिए यह देख या समझ पाना भी संभव नहीं हो पा रहा था कि वह कहां है और ये सब क्या हो गया है। सबसे पहले तो उसने अपने सिर को छुआ और तसल्ली की कि उसके सिर पर बाल अभी भी बरकरार हैं।

"हे भगवान, हवा की तेज़ी के कारण उसकी आवाज़ ही नहीं। निकल पा रही थी, "मैं तो बाल बाल बच गया। क्या गलती हो गई?

आंधी, तूफान और बवंडर! और एक क्षण पहले इतनी सुहानी रात थी। मेडिग ने मुझसे यह क्या करवाया? क्या भयंकर हुवा है। अगर मैं यों ही बेवकूफियां करता चला गया तो ज़रूर ही कोई बड़ी दुर्घटना हो जाएगी।''

"मेडिग कहां है? सब कुछ किस तरह अस्त-व्यस्त हुआ है।'' उसने अपने बेतहाशा उड़ते हुए कोट को सम्भालते हुए इधर-उधर देखने की कोशिश की। सभी कुछ वास्तव में बड़ा अजीबोगरीब लग रहा था। "आकाश अब ठीक है, कम-से कम,' फरनैन्डिस ने कहा। “सिर्फ यही है जो कुछ ठीक लग रहा है। लेकिन लगता है कि एक बड़ा तूफान आने वाला है। मगर सिर के ऊपर चांद भी निकला है। बिल्कुल वैसा ही, जैसा कि कुछ देर पहले था। इतना चमकदार मानों दोपहर हो। लेकिन बाकी सब कुछ - कस्बा कहां है? और भी सब कुछ... कहां है? और यह जोरों की हवा क्यों चलने लगी? मैंने तो इसे आज्ञा नहीं दी थी।''

फरनैन्डिस अपने पैरों पर खड़ा होने का व्यर्थ प्रयास करने के बाद, अपने चारों हाथों पैरों पर घोड़ा। बने टिका रहा। उसने चांदनी रात में हवा की दिशा में देखने का प्रयत्न दिया, उसका कोट उसके सिर के ऊपर से उड़ रहा था। कुछ गंभीर रूप से गलत हो गया है। भगवान जाने वो क्या है,'' वह मन ही मन सोच रहा था।

दूर-दूर तक रेत के बादल की सफेद चौंध में जो सनसनाती हुई आंधी के आगे आगे दौड़ रहा था, कुछ भी नजर नहीं आ रहा था, सिवाए मिट्टी,रेत और टूटे-फूटे मलबे के ढेरों के। कोई पेड़, कोई मकान, कोई भी जानी पहचानी आकृति नहीं थी, सिर्फ विनाश की लीला थी, जो अंततः अन्धकार में तेजी से उठते हुए तूफान, बिजली और गर्जन के नीचे लुप्त होती जा रही थी। फरनैन्डिस के करीब चौंधियाते प्रकाश में कुछ चीज़ थी जो शायद पहले एक नीम का पेड़ रही होगी, अब जड़ से। शाखाओं तक चूर-चूर हुई माचिस की तीलियों और खपच्चियों का ढेर मात्र थी। उसके सामने लोहे के सरियों का मुड़ा-तुड़ा ढांचा सा था, जो मलबे के ढेर में से ऊपर उठा हुआ था, शायद कभी एक पुल रहा होगा।

ऐसा हुआ कि जब फरनैन्डिस ने अपनी धुरी पर घूमती हुई ठोस पृथ्वी को रोका, तब उसकी सतह पर मौजूद मामूली चलती फिरती, हिल सकने वाली चीजों के बारे में कुछ नहीं कहा। पृथ्वी अपनी धुरी पर इतनी तेज़ी से घूमती है कि भूमध्य-रेखा पर उसकी रफ्तार एक घन्टे में हजार मील से भी ज्यादा होती है, तथा उस अक्षांश पर, जिस पर ये कस्बा बसा था, रफ्तार लगभग इसकी आधी होती है। जब पृथ्वी रुकी तब फरनैन्डिस को, सभी लोगों, सभी चीजों यानी कि उस पूरे कस्बे को, नौ मील प्रति मिनट की गति से आगे की ओर भारी धक्का लगा। अगर उन सबको तोप में से दागा गया होता तब जो धक्का लगता वो भी इसके सामने मामूली होता। और हर इंसान, हर जीवित प्राणी, हर घर, हर पेड़, तमाम दुनिया जिसके हम आदी हैं - इस चोट को खाने से टूट-टूट कर, चूर-चूर हो कर नष्ट हो गई। बस यही हुआ।

खैर इन चीजों को तो फरनैन्डिस पूरी तरह समझ नहीं पाया था। लेकिन उसने जान लिया था कि उसका चमत्कार असफल हो गया है, और चमत्कारों के लिए उसके मन में गहरी वितृष्णा हो गई थी। अब वह अन्धकार में था क्योंकि बादलों ने इकट्ठा हो कर चांद को ढक लिया था, और हवा में वर्षा की धाराएं और ओले आपस में प्रेतों के समान खतरनाक संघर्ष कर रहे थे। हवा और पानी की गर्जन ने पृथ्वी और आकाश को दहला दिया था। अपने हाथ की आड़ में से झांकते। हुए बिजली की चमक में, धूल और ओलों के बीच से उसने देखा पानी की एक विशाल दीवार उसकी ओर चली आ रही है।

मेडिग!'' इस प्रलयकारी तूफान में फरनैन्डिस अपनी दुर्बल आवाज़ में चीखा, “मेडिग, कहां हो!"

“ठहरो," वह उस बढ़ते हुए पानी पर चिल्लाया, "भगवान के लिए रुक जाओ!"

"एक क्षण के लिए रुक जाओ," उसने बिजली और गर्जन से कहा, "जिससे मैं कुछ सोच सकें।... अब मुझे क्या-क्या करना चाहिए? हे भगवान मैं क्या करूं? काश, मेडिग यहां होता।”

"हां, समझा," फरनैन्डिस बोला, “और ईश्वर के नाम पर इस बार कोई गलती नहीं होनी चाहिए।'

वह हवा के विरुद्ध चारों हाथों पैरों पर झुका रहा, पूरे मनोयोग से सब कुछ ठीक होने की कामना करते हुए। फिर उसने कहा, "मैं जो आज्ञा दें, जब तक मैं ‘समाप्त' न कहूं तब तक पूरी न हो। काश मैंने ऐसा पहले सोचा होता।”

उस बवंडर में अपनी आवाज़ को ऊंची, और ऊंची उठाते हुए, स्वयं को सुन लेने की व्यर्थ चाह के साथ वह चिल्लाया, “अब आगे मैंने जो अभी कहा है, उसका ध्यान रखा जाए। प्रथम तो यह कि मैं जो कहूं, जब वो पूरा हो जाए तब मेरी चमत्कारिक शक्ति खत्म हो जाए। मेरी इच्छा-शक्ति अन्य लोगों की इच्छा की तरह हो जाए, और ये सब खतरनाक चमत्कार रुक जाएं। मुझे ये अच्छे नहीं लगते। अच्छा होता कि मैंने इन्हें न किया होता - यह पहली बात हुई। और दूसरी यह है कि मैं चमत्कार शुरू होने के पहले की स्थिति में पहुंच जाऊं। हरेक चीज़ वैसी ही हो जैसी लैम्प उल्टा होने से पहले थी। यह एक बड़ा काम है, लेकिन अन्तिम है। समझ गए? और कोई चमत्कार नहीं, हर चीज जैसी पहले थी - मैं वापस कैफेटेरिया में, अपने चाय के प्याले के साथ। बस यही!''

आंखे मूंद कर, मुट्ठी भींच कर उसने कहा, “समाप्त।”

सब कुछ एकदम स्थिर हो गया। उसने पाया कि वह सीधा खड़ा है।

"तो आप ऐसा कहते हैं," एक आवाज़ आई।

उसने अपनी आंखें खोलीं। वह कैफेटेरिया में चमत्कारों के बारे में बीमिश से बहस कर रहा था। उसे महसूस हुआ कि जैसे कोई बहुत बड़ी चीज वो उसी क्षण भूल गया था, लेकिन यह भाव भी क्षण भर में गायब हो गया।

उसकी चमत्कारिक शक्ति को छोड़कर सब कुछ वापस पहले जैसा ही था - उसका दिमाग, उसकी याद्दाश्त भी वैसी ही थी जैसी इस कहानी की शुरुआत के वक्त थी। इसीलिए यहां ऊपर जो कुछ बताया गया है उसके बारे में वह कुछ नहीं जानता, आज तक भी उसे कुछ नहीं पता, और दूसरी चीज़ों के साथ-साथ वह चमत्कारों में भी विश्वास नहीं करता।

उसने कहा, "मैं आपको बताता हूं कि चमत्कार होना असंभव है। आप लोग चाहे कुछ भी सोचें मैं इस बात को अन्त तक सिद्ध करने को तैयार हूं।"

बीमिश ने कहा, “तुम ऐसा सोचते हो, तो अगर सिद्ध कर सकते हो तो करो।"

"बीमिश इधर देखो," फरनैन्डिस बोला, "हम लोगों को स्पष्टतः समझ लेना चाहिए कि चमत्कार क्या है, यह प्रकृति के विपरीत की गई कोई चीज़ है जिसे इच्छा-शक्ति ..."

(अनुवाद – पुष्‍पा अग्रवाल)

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