दृश्य चित्रकार का प्रेम (रूसी कहानी) : स्तेपान पेत्रोव स्कीटालिट्ज
The Love of a Visual Painter (Russian Story in Hindi) : Stepan Petrov Skitalets
दृश्य चित्रकार कोस्तोविस्की मौज-मस्ती के लिए ऐसे समय गया, जब उसे जाना नहीं चाहिए था। एक कौतुकपूर्ण नाटक प्रस्तुत करने के लिए तैयारियाँ जोरों पर थीं, जिसकी सफलता मंच की सुंदरता पर निर्भर थी । सारे शहर में बड़े-बड़े विज्ञापन-पत्र लगाए जा चुके थे। विभिन्न कामों को पूरा करना और जल्दी से पूरा करना अब जरूरी हो गया था और नए दृश्य को भी चित्रित करना था, परंतु वही हुआ जिसका डर मंच - प्रबंधक को लंबे समय से था— कस्तोविस्की शराब पीने चला गया था।
ऐसा हमेशा उसी समय होता था जब उसकी जरूरत होती थी; जैसे कोई प्रेतात्मा आकर उस समय उसे उकसाती हो और निषिद्ध शराब जैसे उसे पहले से अधिक प्रलोभन देती हो । उसने पापकर्म के एहसास का अनुभव करने के लिए अजेय इच्छा को महसूस किया - हर एक की इच्छा के विरुद्ध काम करना, अपने हितों के विरुद्ध काम करना; हाँ, केवल बुरे व्यक्ति के विरुद्ध नहीं, जिसने इस समय उसको बुरी तरह से काबू किया हुआ था।
शक्तिशाली प्रभावों के बिना ऐसे प्रतीत होता था कि उसका चातुरी से भरा स्वभाव ठहर नहीं सकता था और वह उनको केवल शराब पीने में ही ढूँढता था। उसके अति आनंद लेनेवाले दिन हमेशा रुचिकर मुठभेड़ों और अजीब साहसिक कामों से भरे होते थे, जो केवल उसी के लिए अनोखे थे, परंतु होश में आते ही वह संतुलित हो अपने काम में प्रचंड शक्ति के साथ जुट जाता था । ऐसे समय में उसके आसपास की हर वस्तु उत्तेजना का ज्वर-ताप बन जाती थी और वह स्वयं प्रेरणा की आग में जलता था । केवल इसलिए कि वह एक विलक्षण दृश्य बनानेवाला चित्रकार था और अपने कौशल में अपूर्व ज्ञान रखता था, उस काम से निकाला नहीं गया था । उसने कंपनी को अपने अपवादों, साहसी कामों, अपनी असावधानी, भद्दे कपड़ों और नीच आकृति से बुरी तरह अपमानित किया; परंतु इन सबके होते हुए भी उसके ब्रश से अत्यंत उत्कृष्ट और कारीगरी से बनाए गए दृश्य उभरते थे, जिसके लिए जनता उसको प्राय: रंगमंच पर बुलाया करती थी और जिसके बारे में बाद में प्रेसवाले भी लिखते थे।
परदे के पीछे कंपनी के सदस्य अपने आपको कोस्तोविस्की से पृथक् रखतेथे और कोई भी उससे अंतरंग संबंध रखना नहीं चाहता था। सामूहिक गान करनेवाले भी शराब पीते थे, परंतु वे अपने आपको सामान्य कारीगर, चित्रकार की अपेक्षा ऊँची श्रेणीवाले मानते थे और उसे अपने समाज में लेना नहीं चाहते थे। सामूहिक गान करनेवाली लड़कियाँ और नर्तकियाँ उसे नपुंसक समझती थीं तथा उसकी ओर मुँह बनाकर घृणा से देखती थीं। वह भी अपनी तरफ से इनमें कोई रुचि नहीं लेता था ।
वह तो केवल बैले नर्तकी जूलिया की ही प्रशंसा करता था - और उसे केवल कलाकार के रूप में प्यार करता था। वह रोशनी की किरणों से ढके हुए मंच पर नाच रही थी । यह रोशनी उसने स्वयं अपनी कुशलता से लगाई थी। वह उसके सुंदर छोटे सिर को घूमते हुए पसंद करता था, उसकी प्रशंसा करता था । वह उसपर विशेषकर तेज किरण डालकर उसको दूसरी नर्तकियों से जुदा करता था । वास्तविक जीवन में वह उससे बात नहीं करता था और वह भी बहाना बनाती थी कि उसने उसकी ओर कभी भी ध्यान नहीं दिया ।
मित्रों के प्रेम और कंपनी में किसी की सहानुभूति के बिना एक अजीब एकांत में रहते हुए - परंतु साथ-ही-साथ कंपनी के लिए अति आवश्यक माने जाने के कारण - उसे बहुत पीड़ा हुई, अतः वह शराब पीने लगा; जैसाकि इस समय हुआ, जब उसकी अत्यंत आवश्यकता थी।
नाटक के मंचनपूर्व अभ्यास के बाद मंच पर खड़े मंच - प्रबंधक ने हिब्रू प्रकार के काले कारोबारी प्रबंधक से कोस्तोविस्की के बारे में बातचीत की।
मंच-प्रबंधक के चौड़े, मोटे चेहरे से क्रोध, चिंता और शोक के चिह्न टपक रहे थे।
"ठीक है, कृपया मुझे जरा बताओ! " वह रोते हुए बोला, जबकि उसके दिल में तूफान उमड़ रहा था- "अब मैं करूँ तो क्या करूँ? क्या करूँ इस समय ?
और उसने असहाय रूप से अपने पेट पर, हाथ पर हाथ रखकर क्रोध और शोकपूर्ण दृष्टि से अपने साथी की ओर देखा।
"गंदगी, बस यही कुछ, 'कार्यकारी प्रबंधक ने उत्तर दिया – “ जब हम यहाँ आ रहे थे तो उसने स्टीमर पर पीना शुरू किया और अभी तक होश में नहीं आया । और जानते हो कि यहाँ आते हुए वह सागर में गिर गया था। वह मजाक था! मैं एकाएक चीख से जाग गया। मैं अपने पाँव पर उछला और पूछा, 'कौन है?' 'कोस्तोविस्की ।' 'आह, कोस्तोविस्की!' मैंने सोचा कि वही था, परंतु वह कोई और था । मैं अपने बिस्तर पर चला गया जैसे कुछ हुआ ही नहीं था, क्योंकि मेरी राय में कोस्तोविस्की आदमी नहीं, सूअर है । "
"वह पानी में गिरा कैसे ? क्या पिए हुए था ?"
“वस्तुतः वह पिए हुए था। वह डैक पर सोया हुआ था और भूल गया था। स्टीमर आकस्मिक रूप से एक ओर झुक गया और वह घूम गया । "
"हा, हा, हो, हो, हो!" मंच - प्रबंधक की गहरी हँसी गूँज उठी।
"ही, ही, ही, ही, ही!” कार्यकारी प्रबंधक ने अपनी पतली, तेज हँसी से साथ दिया- "परंतु इससे भी अधिक मजे की बात यह है कि सागर ऐसों को नहीं अपनाता; पूर्व इसके पहले कि वह पूरी तरह जागता उसको बाहर निकाला गया। वास्तव में एक अजीब घटना ! यहाँ तक कि ऐसे दुष्ट को सागर ने भी लेने से इनकार कर दिया ।"
"परंतु वह अब कहाँ है? " मंच प्रबंधक ने हँसी बंद करके तथा कोस्तोविस्की की सागर की दुर्घटना सुनकर नरम होते हुए पूछा।
"यहीं ड्रेसिंग रूम में अपने आपको थोड़ा होश में ला रहा है।" उन्होंने उसे शहर भर में तलाश किया और अंत में अपने मित्र को एक शराबखाने में कुछ नौसिखियों के साथ हाथापाई करते हुए देखा। इन्होंने उसकी मुक्केबाजी को समाप्त किए बिना उनसे अलग कर दिया और अपने साथ वहाँ से ले आए। अब वह अपनी चोट खाई सुंदर आँख को सेंक रहा था ।
"यहाँ लाओ इस दुष्ट को!"
युवक मंच के पार तेजी से दौड़ा और दृश्यों के पीछे लुप्त हो गया। तुरंत खाली थिएटर तीखी आवाजों से प्रतिध्वनित हो गया।
"कोस्तोविस्की, कोस्तोविस्की!"
"वह तुरंत आ जाएगा । " युवक ने लौटकर कहा और आँख मारी, मानो कहना चाहता हो - "अब तुरंत मजा आएगा।"
धीमे और अस्थिर कदम आते हुए सुनाई दिए और मंच पर वह व्यक्ति प्रकट हुआ, जो क्रोधावस्था और दुर्भाव का कारण बना था तथा जिसको सागर ने भी स्वीकार नहीं किया था ।
वह मध्यम कद का, ऐंठा हुआ, मांसल, कुछ-कुछ गोल कंधोंवाला था । उसने रोगन के धब्बोंवाली भद्दी नीली कमीज पहन रखी थी और उसके ऊपर चमड़े की पेटी बाँधी हुई थी । उसकी पतलून रोगन के धब्बों से छितरा गई थी और जिसको उसने लंबे जूतों में डाला हुआ था । गोरिल्ले की तरह लंबे, मांसल हाथों के साथ कोस्तोविस्की की आकृति एक सामान्य कारीगर जैसी थी; संभवतः उसके हाथ अधिक शक्तिशाली थे। उसका चेहरा सुंदरता से दूर, परंतु विचित्र था—गालों की ऊँची हड्डी और लंबी लाल मूँछें उसकी शक्ति के प्रतीक थे । सिकोड़ी हुई भौंहों के बीच विषादयुक्त और साथ-ही-साथ अच्छे स्वभाव के साथ देखती हुई बड़ी-बड़ी नीली आँखों का जोड़ा था। प्रचंडता और शक्ति की छाप उसके चेहरे की मुख्य विलक्षणता थी । उसकी बाईं आँख बड़े मलिनीकरण से सुशोभित थी— जो ठीक निशाने पर लगे मुक्के का निशान था । उसके रूखे लाल बाल विद्रोही रूप से चारों ओर फैले हुए थे। कुल मिलाकर कोस्तोविस्की एक साहसी - जंगली की आकृति प्रस्तुत करता था।
उसने स्वाभिमान से भरकर, किंतु लज्जित होकर अपना सिर झुकाया, मगर अपना हाथ पेश नहीं किया।
“तुम अब क्या करना चाहते हो, कोस्तोविस्की ?" मंच - प्रबंधक शांत स्वर में बोला, "कल के लिए नाटक की घोषणा हो चुकी है, परंतु हमें इसे टालना पड़ेगा । यह सारा कष्ट मुझे किस बात के लिए दे रहे हो? क्या यह तुम्हारे लिए उचित है? तुम शराब क्यों पीते हो? जरा देखो, आँखों के नीचे यह कौन सा गहना लिये फिरते हो! तुम्हें अपने आपपर शर्म आनी चाहिए!"
कोस्तोविस्की एक कदम पीछे हट गया और अपनी लंबी अंगुलियों को अपनी लटों में फेरते हुए हठी भाव से उत्तेजित हो गया।
“मार्क लूकिच!” उसने रूक्ष, परंतु प्रभावशाली आवाज में पुकारा- " मैंने पी, यह सच है ! परंतु अब - सब जरूरी काम कर दूँगा। आज शनिवार है और कोई खेल नहीं होगा । मैं कल तक यहाँ से बाहर नहीं जाऊँगा । सारी रात काम करूँगा...मैं... मैं... हे महाप्रभु !"
कोस्तोविस्की ने अपने हाथ हवा में हिलाए, ऐसा प्रतीत हुआ कि एकाएक उसने उदंड शक्ति को पा लिया था। उसने प्रायश्चित्त के लिए काम करने की इच्छा व्यक्त की ।
"परंतु क्या तुम जानते हो कि करना क्या है? बिलकुल नया दृश्य बनाना होगा और अच्छी तरह बनाना होगा। समझे या नहीं?"
“मैं उसको अच्छी तरह बनाऊँगा, डरने की कोई बात नहीं। " कोस्तोविस्की ने साहसपूर्वक और पुनः अपने रूक्ष बालों में अपनी दसों अंगुलियाँ फेरते हुए कहा । फिर मंच पर कुछ क्षण सोचते हुए चलकर मंच - प्रबंधक के सामने खड़ा हो गया।
"कृपया मुझे यह पूर्णतया बता दो कि किस प्रकार का दृश्य चाहते हो और यह किसके लिए चाहिए ?" उसने शांतिपूर्वक पूछा।
"तुम जानते हो, यह दूसरा अंक है! दो आदमी रात को बिना जोते हुए खेत में गुम हो गए हैं। यह स्थान भोथरा, अस्पष्ट और उजाड़ होना चाहिए। वे बुरी तरह भयभीत हैं और अलौकिक घटनाएँ घट रही हैं । तुम्हें इस प्रकार का मैदान चित्रित करना है, जिसमें हर चीज हो—दूरी का भाव, अँधेरा, बादल और स्पष्टतया इस प्रकार का कि देखते ही जनता के दिल में भय की लहर दौड़ जाए ।"
"यह काफी है। " कोस्तोविस्की ने टोका - " मैं मैदान बना दूंगा; मैं सारी रात लैंप की रोशनी में काम करूँगा और कल तैयार हो जाएगा। क्या तुम्हारे पास सामान है?"
"हर चीज तैयार है, जो भी काम के लिए जरूरी है ।" कार्यकारी प्रबंधक बोला।
परंतु कोस्तोविस्की पहले ही कलाकार की प्रेरणा अनुभव कर चुका था । उसने अपने विशिष्टों से मुँह मोड़ा और यह भी नहीं सोचा कि वे वहाँ उपस्थित थे और मंच के मध्य में खड़े थे। उसने अपनी अभिमानी आवाज में पुकारा ‘“पेवल! तुम उधर जाओ; वेनका ! यहाँ तुम्हारे साथ; ओ लिवली! तुम उधर, शैतान के बच्चो, कोस्तोविस्की अब काम करना चाहता है । "
कारीगर पेवल और नौसिखिया वेनका, एक चालाक और झुका- झुका व्यक्ति मंच के प्रति दृढ़ता से समर्पित, भागे हुए आए और तुरंत मंच पर काम में लग गए। उन्होंने परदे को फैलाया और रंग-रोगन तथा ब्रश लाए।
"ठीक है," कार्यकारी प्रबंधक ने मंच - प्रबंधक से कहा, 'परमात्मा को धन्यवाद है कि अंत में उसने होश संभाल लिया है। अब हमें खेल को टालने के लिए विवश नहीं होना पड़ेगा। आओ, चलें और खाना खाएँ; अब हमें उसके काम में बाधक नहीं होना चाहिए। "
सारी रात मंच पर तेज रोशनी रही और खाली थिएटर में कब्र - सा मौन छाया रहा। केवल कोस्तोविस्की के पैरों की आवाज थी। वह अपने लंबे ब्रश के साथ कभी परदे के उस तरफ, कभी इस तरफ लगातार आता-जाता था । हर तरफ रंग-रोगन की बाल्टियाँ और बरतन पड़े थे।
उसने अपने काम में लंबे-लंबे कदम भरे। अपनी आँख के नीचे नीले निशान के साथ, रंग लगे सूअर की तरह बाल और मूँछें लिये उसने अपने बड़े ब्रश के साथ दानव की तरह काम को पूरा किया। उसकी आँखें जल रही थीं और उसके चेहरे से प्रेरणा झलक रही थी । उसने निर्माण कर दिया।
दिन के ग्यारह बजे मंचनपूर्व अभ्यास के लिए एकत्र हुई सारी मंडली कोस्तोविस्की की निर्मित वस्तु के सामने आश्चर्य से मुँह खोले खड़ी थी । अभिनेता, सामूहिक गान करनेवाले स्त्री-पुरुष और सामूहिक नाच करनेवाले मंच से बड़े परदे को देख रहे थे । फिर उन्होंने मंच से नीचे उतरकर देखा और स्वतंत्र रूप से अपनी-अपनी राय दी। मंच की सारी पृष्ठभूमि को उस विशाल चित्र ने घेर रखा था । यह बिना जोता हुआ मैदान था । इसके एक किनारे पर बरडोक्स के वृक्ष और दूसरी और मैदानी घास लगी थी। इससे आगे आसपास उगी घास के बीचोबीच एक उजाड़ कब्र नजर आ रही थी और उसके आगे बिखरी उदासी । आश्चर्ययुक्त अपरिमित दृश्य के साथ भुथरा मैदान, परियों की कहानियों का मैदान, शूरवीरों के समय का मैदान — बिना किसी रास्ते के, उजाड़! देखनेवालों को ऐसा प्रतीत होता था कि प्रसिद्ध रूसी कहानी का शूरवीर इलिया मुशेमेटस अचानक मिट्टी के ढेर के पीछे से प्रकट होगा और जोर से चिल्लाएगा—‘क्या मैदान में कोई जीवित आदमी है?' परंतु रूखा मैदान शांत था, अंधकारमय, भयंकर रूप से शांत था। आकाश के विपरीत अँधेरी कब्रों के ढेर और कुरूप, काले, झाड़ीदार बादल उमड़ते हुए अस्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे थे। इन बादलों और कब्रों के ढेर का और इस मैदान के अपरिमित वृक्षों का अंत नहीं था। सारा चित्र अंधकारमय था और आत्मा को कष्ट देता था । ऐसा लगता था कि अभी-अभी कोई भयंकर घटना घटने वाली थी और कब्रों के ढेर तथा बादल इसके प्रतीक थे तथा एक तरह से उन्हें जीवित दिखाया गया था। यह सच था कि जब कोई कोस्तोविस्की के चित्र को पास से देखता था तो उसकी समझ में कुछ नहीं आता था - केवल बड़े ब्रश से की गई लीपा-पोती और मारे हुए छींटे दीख पड़ते थे - शीघ्र और तीक्ष्ण प्रहारों से अधिक कुछ नहीं, परंतु ज्यों ही देखनेवाला परदे से दूर जाता तो विशाल मैदान का चित्र साफ दिखाई देता था और उसको ध्यान से देखता था। सबसे अधिक वह अलौकिक डर की भावना से भर जाता था ।
"ठीक है, इसकी बाबत तुम क्या कहते हो? " भीड़ में भिनभिनाहट हुई— " प्रेत की तरह का कोस्तोविस्की ! वास्तव में बुद्धिमान, चतुर ! देखो तो, क्या आसुरी काम किया है!"
"यह तो कुछ भी नहीं है, " उसने स्वाभाविक रूप से कहा, "हम केवल कारीगर हैं; जब हम काम करते हैं तो काम करते हैं, परंतु जब हम आनंद मनाने में तत्पर होते हैं तो जी भरकर आनंद लेते हैं - हमें बनाया ही इस तरह का गया है।"
वे उसपर हँसे, परंतु सात दिनों तक उसकी ही चर्चा करते रहे । उसे पहले कभी ऐसी सफलता नहीं मिली थी जैसी अब मिली ।
उसने अपना काम जारी रखा। ऐसा लगा कि उसकी शक्ति अभी-अभी जागी हो । अब अभ्यास चल रहा था। उसने एक हिंदू मंदिर का चित्र बनाया, अपने सहायकों पर चिल्लाया और देवी प्रेरणा की गरमी में मंच - प्रबंधक की भी निंदा करने लगा, जब उसने इसका ध्यान किसी दूसरी तरफ लगाना चाहा था।
वह जंगली था, गैर-जिम्मेदार और महान् था!
पहले से अधिक गंदा और बिखरा हुआ वह मंच के पीछे अपने कमरे में अकड़ता हुआ गया; अत्यंत सुंदर, मनोहर मंदिर बनाया और प्रेरणा के आनंद में मस्त रहा। प्रेरणा से भरी निद्राहीन रात से उत्तेजित उसकी समस्त आकृति, उसकी शक्ति एवं योग्यता मूर्तिमत्ता थी; आँख के नीचे नीली मलिनता के साथ उसका पीला चेहरा, सूअर की तरह बाल और जलती आँखें, जो नीली किरणें छोड़ती प्रतीत होती थीं- इन सब चीजों से पता चलता था कि कोस्तोविस्की की प्रेरणा क्षणिक नहीं थी, बल्कि अनंत रोशनी में लंबे नैरंतर्य से बराबर जलती आ रही थी।
वह मंदिर बनाने में पूरी तरह से मग्न था। तभी उसने पास में एकाएक किसी के हलके कदमों को महसूस किया और जहाँ वह खड़ा था वहाँ अति उत्तम सुगंध फैल गई। वह पीछे मुड़ा - सामने जूलिया खड़ी थी।
वह सामूहिक नर्तकी की पोशाक पहने हुए थी, जो न के बराबर थी; क्योंकि उसको अभ्यास के लिए नाचना था। वह नन्ही सुंदर वस्तु थी। उसने लाल चुस्त कपड़े, सफेद साटन की स्लीपर और छोटी जाली की स्कर्ट पहनी हुई थी। उसकी ऊँची तथा दृढ़ छाती धैर्य और शांति से ऊपर-नीचे हो रही थी और उसका मलाई जैसा चेहरा मुसकरा रहा था। उसकी काली, बादाम जैसी शिथिल आँखें नम्रता और आशाजनक रूप से कोस्तोविस्की को देख रही थीं । वह नर्तकी की पोशाक में ऐसे लग रही थी मानो अभी-अभी परियों के देश से आई हो और ऐसे आदमी का अनुमान लगाना कठिन था, जो कोस्तोविस्की से इतना भिन्न हो, जितनी वह परी । उसमें विशिष्ट आकर्षण और मृदुता थी। वह उसके सामने विकल एवं घबराया हुआ खड़ा था और प्रसन्नतापूर्वक प्रशंसा से उसे घूर रहा था। उसने लंबे ब्रश को नीचा करके उसके पाँव के पास फर्श पर रख दिया।
कोस्तोविस्की अपना काम भूल गया और जूलिया खिलखिलाकर हँस पड़ी। वह अपने छोटे तेज दाँतों को चबाते हुए छोटे कदम भरती हुई उसके पास आई और अपना सुंदर छोटा हाथ उसकी तरफ बढ़ाते हुए साहसपूर्वक बोली, "कैसे हो कोस्तोविस्की ?"
* * *
कुछ महीने बीत गए । विशाल नाचघर में दरवाजों तक लोगों की भीड़ थी। एक-दूसरे को संकुलित करते, आपस में टकराते, धक्का देते वे दृश्यों के पीछे काम में लगे हुए थे। परदे में से लोगों की भिनभिनाहट और पवित्र वाद-वृंद की स्वर लहरियाँ आ रही थीं।
मंच के बढ़ई इधर-उधर भाग रहे थे; जैसे उनपर भूत सवार हो गया हो। वे दृश्य को इधर-उधर बदलते, व्यवस्थित करते तथा अँधेरे में कहीं से बड़े-बड़े परदों को ऊपर उठाते, नीचे गिराते — मंदिरों की दीवारें, बिना ढलान के जंगल और समुद्र की लहरें ।
इस सारे काम की देखभाल कोस्तोविस्की कर रहा था । वह पहचाना नहीं जा सकता था । वह अपनी आयु से कहीं छोटा और चमकीला नजर आता था । उसकी आँखें खुशी और आनंद से चमक रही थीं । उसने पैरों में चमकीले पेटेंट चमड़े बूट पहन रखे थे और आकर्षक तरीके से सिली स्वच्छ मखमल की वास्कट पहनी हुई थी, उसके बाल अब रूखे नहीं थे।
“समुद्र के पेंदे को नीचे आने दो!'' उसने तेज आवाज में आज्ञा दी।
विशाल परदा, जिसपर उसने समुद्र का पेंदा बनाया था, नीचे कर दिया गया। चित्रकार ने थोड़ा पीछे हटकर प्यार से ‘समुद्र के पेंदे' को देखा । यह उसका सबसे ताजा निर्माण था।
"सुनो पेवल!" वह चिल्लाया—– “जब जलपरियाँ तैरना शुरू करती हैं तो तुम जूलिया को पहले आने दो और बाकी सबको उसके पीछे, उसको पेंदे तक जाने दो।"
"ऐसा ही होगा।"
अंत में, समुद्र के पेंदे में जलपरियों के तैरने के लिए हर चीज तैयार हो गई । कोस्तोविस्की पहले ही ऊपर बैठा हुआ था। उसके हाथ में मंच की ओर किया हुआ प्रतिबिंब फेंकनेवाला शीशा था । दृश्य और अभिनेताओं पर रोशनी फेंकने का प्रबंध उसको स्वयं करना था । समुद्र का पेंदा कोमल, कवित्वपूर्ण रोशनी से भर दिया गया था। यह हलकी, हरी, चाँदी-सी रोशनी पानी में जाती हुई इस तरह नजर आ रही थी मानो उसके ऊपर धूप से जगमगाता दिन हो। और यहाँ पेंदे में रहनेवाले को रोशनी का पता नहीं चलता था। दूर एक ओर प्रवाल की चट्टान थी और हर तरफ आधी जीवित हरियावल ने लालसापूर्वक पानी में अपनी टहनियाँ फैला रखी थीं। हर तरफ पतली जैली मछलियाँ तैर रही थीं ।
पहले-पहल जो चीज नीचे आती थी, वह मुँह खोले पानी में डूबी गुफा थी, जिसमें भयंकर विशाल पिशाचनुमा मछली के हाथ निकले हुए थे। वह बिना हिले-डुले घूर रही थी।
इस प्राचीन और असामान्य संसार में लहराते हुए बालों, नंगे कंधों, कमर से नीचे मछली का आकार लिये तथा चमकीली चाँदी-से पंखों से ढकी एक सुंदर युवती प्रकट हुई। उसके सिर के माधुर्य और कंधों की सुंदरता को पानी में डूबे इस कुरूप संसार ने चार चाँद लगा दिए थे।
वह प्रभावी ढंग से इठलाती, बलखाती मछली की भाँति तैरी । उसकी परतें चमकती हुई चिनगारियाँ फेंक रही थीं। बाकी जलपरियों ने उसका पीछा किया।
उन सबको एक ने ढक लिया था। वह सबसे नीचे तैरी । वह अपनी सुंदरता की कांति से सबसे पृथक् दिखाई देती थी। औरों की अपेक्षा उसको प्रभावी ढंग से प्रकाशित किया गया था । प्रतिबिंब शीशे की कोमलतम किरणें उसपर प्यार की गरमी से गिर रही थीं; बाकी उसके पीछे दौड़तीं और प्यार से उसके शोभायमान शरीर को छूती थीं। किरणें उसके चेहरे पर नशीला प्रभाव डाल रही थीं और उसकी आँखें तारों की भाँति चमक रही थीं। ऐसा जान पड़ता था कि वह रोशनी से ही बनाई गई थी - और यह रोशनी उसकी प्रत्येक हलचल के साथ हजारों रंगों में बदलती थी । समुद्र की यथार्थ रानी! उसने महसूस किया कि मोहक कलाकार ने उसे अद्भुत सुंदरता प्रदान कर दी थी । प्रसन्न जनता इसी सुंदरी की प्रशंसा के लिए टूट पड़ने को तैयार थी । इसने कलाकार के निकट तैरते हुए कृतज्ञतापूर्ण मछली की अपनी चमकीली दुम को हिलाया, जिसपर अनुरक्त जादूगर की इच्छा से एकाएक कई रंगों के हीरों की बौछार हो गई।
वह दृश्यों के पीछे तैरी और अपने पाँव के पंजों पर खड़े होकर खुशी से मुसकराते हुए उसने प्रतिबिंब शीशे के पीछे से कोस्तोविस्की को हवाई चुंबन भेजा।
सारी मंडली परदे के पीछे इस प्रेम के मामले को जानती थी। जूलिया हमेशा कोस्तोविस्की के साथ थिएटर से जाती थी। दोनों एक ही होटल में रहते थे; उसका कमरा इसके कमरे के साथ रहता था । कोस्तोविस्की भरपूर आनंद लेता हुआ उसके साथ रहता था। यह आनंद उसे सुंदरता प्रदान करता था और वह मन से उसको मिलने का अवसर देती थी। उसने एक आज्ञाकारी कुत्ते की तरह उसका पीछा किया और महिलाओं के शृंगार-कक्ष के दरवाजे पर लंबी और शांतिपूर्वक प्रतीक्षा की; जबकि वह आराम से अपने चेहरे की सज्जा को उतारती रही, कपड़े पहनती रही और दूसरी लड़कियों के साथ बातचीत करती रही ।
इस बार नाटक के बाद उसे, विशेषकर सीढ़ियों पर लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ी थी। दूसरी लड़कियाँ अपने आपमें मग्न होकर एक के बाद एक करके उतरीं और प्रतीक्षा कर रहे अपने-अपने परिचितों के साथ चली गईं। दृश्य का चित्रकार जूलिया की प्रतीक्षा करता रहा, परंतु वह कहीं नजर नहीं आ रही थी।
शोकाकुल और दुःखी कोस्तोविस्की अपने स्थान पर खड़ा अपनी ओर उदासीनता से देखता हुआ शृंगार-कक्ष के दरवाजे की ओर अपनी आकांक्षी नजरें लगातार जमाए रहा। कभी - कभी दरवाजा थोड़ा-थोड़ा खुलता था, क्योंकि लगभग सारी लड़कियाँ जा चुकी थीं।
अंत में सामूहिक नाचनेवाली रोचक यहूदी लड़की रोजा बाहर निकली । "तुम यहाँ किसलिए खड़े हो ?" वह हैरानी से अपनी भौंहें उठाती हुई और कपटी ढंग से मुँह बनाती हुई भनभनाई - " मैं सबसे अंत में आनेवाली हूँ, वहाँ और कोई नहीं है, जूलिया काफी देर से जा चुकी है। ऐसा जान पड़ता है कि तुमने उसे जाते हुए नहीं देखा।"
"क्या वह चली गई है ? " कोस्तोविस्की ने पूछा। उसके चेहरे पर रंगा हुआ भाव नजर आया।
"हा, हा, हा, हा!" रोजा की चाँदी के सदृश हँसी खनखनाई – " बहुत सादे ढंग से नाटक समाप्त होने से पहले ही वह अपने नए प्रेमी के साथ चली गई और, मेरे प्यारे, तुमने उसे बहुत पहले की थका दिया था ।"
दृश्य चित्रकार पीछे हटा और अपना सिर पकड़ लिया । " यह सच नहीं है ।" उसने थकी आवाज में कहा।
"ठीक है, मैं भी ऐसा ही चाहती हूँ, रोजा ने उत्तेजित होकर कहा, "और यह सब तुम्हारी अपनी करनी है। वह आगे जाना चाहती थी । तुम उसपर इस प्रकार रोशनी फेंकते थे कि सारी अगली पंक्ति उसे दूसरी मालूम होती थी। उसने अपने लिए जीवन-वृत्ति बना ली है और अब आगे के लिए उसे तुम्हारी जरूरत नहीं ।" और रोजा हँसती हुई दौड़कर सीढ़ियाँ उतर गई ।
कोस्तोविस्की देर तक उसी स्थान पर निश्चल खड़ा रहा और खाली थिएटर की मौन और अँधेरे में लिपटा हुआ उन्हें पहले धीरे-धीरे, फिर तेजी से महसूस करने लगा। उसकी छाती पीड़ा से भर गई थी।
* * *
जब कोस्तोविस्की ने जूलिया के कमरे का दरवाजा खटखटाया तो जूलिया उससे उदासीनता से मिली। उसकी गीली आँखों ने अपनी मोटी पलकों के नीचे से शांत भाव और उदासीनता से देखा। उसके काले बाल, जो असावधानी से इकट्ठे किए गए थे, विलासी ताज की तरह पड़े थे और दो लटाटें उसके भूरे गालों पर लटक रही थीं। उसने सस्ते कपड़े का सफेद कीमोनो पहना हुआ था और पाँव में हलकी स्लीपर थी ।
“जूलिया!" कोस्तोविस्की ने हाँफते हुए उत्तेजित होकर धीमे से कहा।
“बैठ जाओ!” उसकी आकृति में कोई विशेषता न देखते हुए उसने असावधानी से कहा, "और अपने आपको स्वयं किसी चीज में लगाने का प्रयास करो। तुम्हारा मन लगाने के लिए मेरे पास कुछ नहीं है। "
“जूलिया!”
वह अपने बिस्तर पर आधी झुक गई और पुस्तक पढ़ने में मग्न हो गई।
वह इस औरत की व्यर्थ धूर्तता से चिढ़ गया । वह इस प्रकार की चालाकी का प्रयोग क्यों करती थी तथा उसको और क्रोधित करती थी; जबकि वह उसे सीधे-सीधे ढंग से बताकर मामले को निपटा सकती थी ।
"जूलिया, तुम मेरे साथ मेहमानों जैसी बात करती हो, जिनका मन बहलाया जाता है। यह किस प्रकार का शिष्टाचार है?"
"यह किसी शिष्टाचार की बात नहीं है, " उसने नाराजगी के स्वर में उत्तर दिया- 'यह हमारे संबंधों को सरल बनाता है, बस, यही कुछ; हर कोई अपने आपको उसमें लगाता है जिसको वह पसंद करता है । मैं पढ़ रही हूँ और तुम अपने आपको किसी दूसरे काम में लगाओ । यदि तुम मानसिक थकावट महसूस करते हो तो चले जाओ।" वह वास्तव में उसे बाहर निकाल रही थी ।
कोस्तोविस्की ‘संबंधों को सरल बनाने' पर क्रोध में आपे से बाहर हो गया।
“मेरी बात सुनो!” उसने संताप से भरी आवाज में कहा, "मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ, तुम्हारी पुस्तक समाप्त होने तक मैं प्रतीक्षा नहीं कर सकता । "
उसने कोई उत्तर नहीं दिया और बिस्तर पर आधी लेटकर पुस्तक पढ़ती रही । दुःखप्रद मौन छा गया।
कोस्तोविस्की मेज पर बैठ गया और चुपचाप जूलिया को देखने लगा । सिरहाने पर अपनी कुहनियों के सहारे झुकते हुए उसने अपने आपको बिल्ली के बच्चे जैसी सुशोभित स्थिति में डाल दिया था । हलकी, छोटी स्लीपरों में उसके छोटे पैर छिपे हुए थे और अपनी छिपनेवाली जगह से कोस्तोविस्की को चिढ़ा रहे थे। उसकी पोशाक में से उसके शरीर की सुंदर वक्र रेखाएँ नजर आ रही थीं । उसकी कमीज की चौड़ी बाँहों ने मछली की तरह उसके बाजुओं को कुहनियों तक नंगा रहने दिया था। कुल मिलाकर वह इतनी मधुर और सुंदर लग रही थी कि कोस्तोविस्की उससे घृणा करता हुआ भी उसे अपनी बाँहों में लेना चाहता था।
उसने अपनी दृष्टि उसकी तरफ से हटा ली । कमरा अव्यवस्थित था— एक सस्ते होटल का बिजली से रोशन कमरा। दरवाजे के पास उसके कपड़ोंवाली अलमारी थी, मध्य में मेज थी और खिड़की के पास शृंगार के लिए मेज तथा मुँह देखनेवाला शीशा था। कमरे में आनेवाले रास्ते के निकट टाँड़ पर उसकी कोमल कपड़े की वास्कट लटक रही थी, जिसके किनारों पर बिल्ली के पंजे काढ़े गए थे। उसने देर तक घृणापूर्वक बिल्ली के पंजोंवाली वास्कट को देखा और स्मरण किया कि पहले किस प्रकार वह इसको प्यार से मिलती थी और कुरसी पर बैठने के लिए विवश करके उसके तीखे बालों को कोमलता से सहलाती थी । उसके छोटे हाथ को कोमल अंगुलियों का कोमलता से छूना कितना आनंददायक होता था!
उसने जल्दी से अपनी पुस्तक फेंक दी और क्रोधित होकर बिस्तर से उठी - " तुम किसी चीज के बारे में मुझसे बात नहीं करोगे!'' वह लाल-पीली होकर बोली, "सब चीजें पहले ही तय हो चुकी हैं। अब समय आ गया है कि इस रसिक प्रकार के प्रेम को, इस भावुक बकवास को समाप्त कर दिया जाए। "
“रसिकता, भावुक बकवास!" उसने कड़वाहट से दोहराया – “जूलिया, हमारे बीच क्या चीज आ गई है?"
"हमारे बीच कुछ नहीं है, कुछ भी नहीं हो सकता, " उसने पुकारा - " हममें कुछ भी सामान्य नहीं है, कुछ भी, और अब अपनी जान-पहचान को समाप्त होना ही होगा । "
उसने मेज को धक्का दिया और कमरे के सबसे अँधेरे कोने में बैठकर वहाँ से अपनी बड़ी-बड़ी काली आँखों से उसे देखने लगी। उसकी आँखों में हमेशा एक-सा भाव रहता था । इससे कोई अंतर नहीं पड़ता था कि वे किसकी ओर देखती थीं, किसको आमंत्रित करती थीं या किसी चीज के स्वामी को जाने बिना उसका वचन देती थीं— उसका तिरस्कार करते हुए साथ-ही-साथ उसको लुभाती थीं!
"मैं सब समझता हूँ, " उसने उदास होकर कहा और अपनी कुरसी को उसके पास घसीट लिया — "तुम मुझसे जुदा होना चाहती हो। वे कहते हैं कि तुमने दूसरा - वादक वृंद की पहली पंक्ति में से किसी को अपना लिया है। चलो, हम जुदा हो जाते हैं, परंतु यह धोखा देकर दोषारोपण से भागना और झगड़ा किसलिए? मैं नहीं चाहता कि यह सब इस बुरी तरह से समाप्त हो – झगड़े से । मैं कम-से-कम इसकी स्मृति रखना चाहता हूँ, परंतु जूलिया, याद रखो, पहली पंक्ति के सभी लोग तुमसे घृणा करते हैं, तुम्हारा अनादर करते हैं और केवल तुम्हारे शरीर के लिए तुमसे प्यार करते हैं। और, मैं तुम्हें सच्चा प्यार करता हूँ ।"
उसने कुहनी के ऊपर से उसका बाजू पकड़ा और अपने बड़े पंजे से झँझोड़ा।
"आह, असभ्य, गाली देता है! छोड़ो, मुझे जाने दो। मैं कह रही हूँ, तुम मेरा बाजू उतार दोगे! हत्यारा!"
वह उससे झगड़ा करना चाहती थी और वह अपनी तरफ से अपने अंदर भयंकर क्रोध के तूफान को महसूस कर रहा था। उसको मार-पीटकर, चीर-फाड़कर बाहर फेंक देना चाहता था।
उसने इसका हाथ और जोर से पकड़ा। उसकी आँखों का रंग हरा हो गया और दाँतों के बजने से कर्कश आवाज आने लगी।
" ऊई ! " वह चिल्लाई, परंतु यह उसके सामने अपने घुटनों पर गिर गया।
" मेरी मधुरतम, अत्यंत प्यारी, मेरी सुवर्णमयी, मेरी सूर्य, मेरी प्रसन्नता ! तुम ही मेरी सबकुछ हो। मेरे समस्त विचार, मेरी सारी भावनाएँ, हर चीज तुम्हारे लिए है, तुमसे है और तुम्हारी बाबत है! ओह, मैं असभ्य और जंगली हूँ, परंतु मैं तुम्हें प्यार करता हूँ । तुम्हारे बिना मेरे लिए कोई जीवन नहीं है। मैं उसी पेंदे में डूब जाऊँगा जहाँ से तुमने उठाया था! ठीक है, मेरी प्यारी, मेरी प्रसन्नता, मुझे क्षमा कर दो। मैं तुम्हारे हाथ और पोशाक को चूमता हूँ । क्षमा!"
अपने झुके हुए घुटनों पर कोस्तोविस्की ने जूलिया के छोटे हाथों को थामा, उन्हें चूमा, फिर उसकी पोशाक को चूमकर रो दिया।
जब कोस्तोविस्की ने अपना सिर उठाया तो एकाएक जूलिया को अपनी तरफ दृष्टिपात करते हुए पाया—एक अजीब ध्यानपूर्वक दृष्टि ! उसकी गीली और काली आँखों की इस दृष्टि में उसके लिए प्यार नहीं था, दया नहीं थी और न ही घृणा थी, कौतूहल से मिलता-जुलता कुछ क्षतिकर था, परंतु कौतूहल से अधिक हृदयहीन ! यह जीवित प्राणियों की चीर-फाड़ करनेवाले का कौतूहल था, जिसका प्रदर्शन वह जीवित खरगोश की चीर-फाड़ करते समय करता है, या फिर एक प्रकृतिवादी का था, जो एक अनूठे गोबरैला को सूई चुभोकर उसकी ऐंठन को देखता है। वह अब भी उसमें रुचि लेता था, परंतु कुछ प्राचीन एवं मौलिक रूप में। उसकी असभ्यता का तेजी से नम्रता में बदलना, . घोषणा का अनोखापन और एकाएक भयंकर क्रोध के दौरे से अपने आपको इसके सामने विनीत बनाना और क्षण भर के बाद रो देना - यह सब अत्यंत रुचिकर था।
परंतु कोस्तोविस्की का दिमाग एकाएक रोशन हो गया जैसे दामिनी ने इसे किया हो। वह जूलिया के साथ अपने वास्तविक संबंधों को तुरंत समझ गया और उसने महसूस किया कि उसके व्यवहार से इसे गहरा धक्का लगा है। वह इसमें केवल रुचि लेती थी, प्यार नहीं करती थी— और न ही कर सकती थी; क्योंकि वह इसके संसार की बजाय किसी दूसरे संसार की जीव थी और यह उसके लिए पूर्णतया अजनबी था । ये शब्द उसके हृदय में भर गए । वह मौन हो गया। उसने अपनी टोपी उठाई और बिना जूलिया की ओर देखे शीघ्रता से कमरे और फिर होटल से निकल गया।
कोस्तोविस्की ने अनायास अपने आपको मधुशाला में पाया, जहाँ लगभग अचेतावस्था में उसके पैर उसे ले गए थे। उसने लंबे समय से शराब नहीं पी थी; परंतु अब शराबखाने के लिए उसने तीव्र इच्छा दिखाई। गिलासों की खनखनाहट के लिए और बुरी बोदका की गंध को उसके मन ने इनकी आवश्यकता को भयंकर रूप से महसूस किया।
वह शराबखाने के एक कोने में अकेला एक छोटी मेज के पास बैठ गया। उसके सामने बोदका की बड़ी बोतल रखी थी और हानिकारक खाने की चीज पड़ी थी, जो ऐसे स्थानों के लिए अनोखी होती है। मेज का कपड़ा गंदा और बोदका तथा बीयर के धब्बों से भरा हुआ था। मोमबत्ती ने कमरे में धुँधली-सी रोशनी की हुई थी । कमरा मतवाले आदमियों से भरा था। वे सब बकवास करते हुए इधर-उधर घूम रहे थे और साथवाले कमरे से बिलियर्ड की गेंदों की आवाज आ रही थी। खिलाड़ियों में से जब किसी एक ने गेंद को मारा तो उसने खुशी से प्रचलित स्वर में गाना गाया—
"जहाँ भी जाता हूँ या घूमता हूँ,
मैं तुम्हें ही, जूलिया, देखता हूँ ।"
"ओह, यह पिशाच!" कोस्तोविस्की अपना दसवाँ गिलास भरता हुआ और बुझे मन से पीता हुआ बड़बड़ाया। वह इस बात से चिढ़ गया था कि जूलिया की याद यहाँ शराबखाने में भी उसे तंग कर रही थी । उसने उसे हमेशा के लिए भूल जाने का निर्णय लिया था। अब वह उससे घृणा करता था और उसे बिलकुल याद करना नहीं चाहता था।
शराबखाने ने अपनी आवाजों, अपनी गंध और जाने-पहचाने रंग में इसको लपेट लिया था, क्योंकि इन चीजों के साथ वह पहले रह चुका था।
परंतु उसके विचार हौले-हौले शराबखाने की तरफ से हट गए और एक बार फिर वह उसके सामने आ गई, जैसे वह उसे कभी छोड़ेगी नहीं ।
अब उसने उसे जलपरी की पोशाक पहने देखा । उसका शरीर मछली का था, जो चाँदी जैसी परतों से ढका था और उसका प्रतिबिंब शीशे की किरणों के नीचे चमक रहा था। वह कसमसाती हुई बहुत सुंदर लग रही थी। उसने लुभानेवाली अपनी मुसकराहट से उसे लुभाया और दूर अथाह समुद्र में तैर गई । जलपरी के प्रेमी ने महसूस किया कि वह नष्ट हो गया है और फिर कभी भी अपनी पहले जैसी असावधानी, शक्ति तथा आत्मिक बल को प्राप्त नहीं कर सकेगा। उसने जलपरी और उसके चुंबनों को ध्यान देने से पहले अपने बीते जीवन को याद किया। यह सच है कि वह अधिक पीता था, परंतु उसमें शराबीपन नहीं था । वह साहसी था, क्योंकि उसकी शक्ति बाहर निकलने का तरीका ढूँढ़ रही थी। उसका दिल खिलवाड़ और मौज-मस्ती के लिए व्याकुल था । इसीलिए पौराणिक मछुआरे की तरह उसने अपने जाल में जलपरी को पाया था । उसने उसे अपने हाथों में उठाया, उसका चुंबन लिया और आलिंगन किया तथा असावधान जीवन को अलविदा कह दी। उस जलपरी ने इसका सत्यानाश कर दिया।
"ओह, पिशाच!" कोस्तोविस्की गिलास खाली करता हुआ गरजा, इसलिए भी गरजा कि इससे दुःखदायी विचार दूर हो जाएँगे, परंतु उसकी याद ने इसके सामने प्रकट होकर उसे लगातार निर्दयता से दुःख देना जारी रखा। हर क्षण नई पोशाक में वह सामने आती - परी की तरह, चरवाहिन बनकर और पुनः जलपरी के रूप में या फिर बड़े घरेलू चोगे में उसके निकट ही घूमती तथा उसकी घनी लटें उसके माथे एवं लाल गालों पर गिरी हुई होतीं। उसकी सारी आकृति ऐसी थी मानो दीप्तिमान कवित्व किरणों की बाढ़ आ गई हो।
“और जब मैं मित्रों के साथ शराब का लाल प्याला खाली करता हूँ तो मैं अपने सामने और किसी को नहीं, केवल जूलिया को देखता हूँ ।" बिलियर्ड रूम से प्रचलित रीति से प्रसन्न आवाज आई। धीरे-धीरे शराबखाना कुहरे से भर गया, जिससे बत्तियाँ धुँधली पड़ गईं और मौज-मेला मनानेवालों का शोर अस्पष्टता से सुनाई देने लगा मानो बहुत दूर से आ रहा हो -दूर से समुद्र की लहरों की तरह । शराबखाना समुद्री लहरों से भर गया - लहरें, जो ऊपर उठती थीं और नीचे गिरती थीं। इन लहरों से जलपरी तैरती हुई निकली, जो हँसते हुए कोस्तोविस्की को लुभा रही थी।
एक क्षण के लिए उसने अपना सिर उठाया और पुनः अपने सामने बोतल को देखा। उसने एक गिलास और बनाया तथा पी गया। कुहरा और गहरा हो गया — उसकी आँखों के सामने घूमने लगा, परंतु फिर भी बोतल के ऊपर उठते शराब के वाष्पकणों में उसकी कवित्व मधुर आकृति उसने देखी।
* * *
विभिन्न शराबखानों में कई दिनों की तलाश के बाद जब अंत में कोस्तोविस्की को ढूँढ़ लिया गया, उसे होश में लाया गया तो समुद्र के पेंदे और जलपरियों के साथ नृत्य-नाटिका को पुनः खेला गया।
अब कोस्तोविस्की एक बार फिर अपनी पुरानी स्थिति में दिखाई दिया। गंदी, अव्यवस्थित पोशाक पहने दृश्य चित्रकार पहले से भी अधिक उद्विग्न दिखाई देता था । उसके बाल नुकीले और मूँछें भद्दी तरह से खड़ी थीं। वह दृश्यों के पीछे चबूतरे पर उद्विग्न खड़ा हुआ जलपरियों को प्रतिबिंब शीशे की किरणों से रोशन कर रहा था। उसकी आत्मा कठोरता और निष्ठुरता से भर गई थी। उसने अपने आपको दूसरों से जुदा रखा, सारी मंडली से घृणा की।
और जलपरियाँ समुद्र के पेंदे में तैरती रहीं।
परंतु उनपर पड़ रही रोशनी पहले जैसी दीप्तिमान नहीं थी । जो रोशनी कलाकार उनपर फेंक रहा था, वह उदास और पीली थी, जिसके नीचे वे जीवनहीन, बीमार और अधमरी नजर आ रही थीं, परंतु जब जूलिया पहले की तरह सबसे नीचे तैरती हुई नजर आई तो कुरूप, गहरे नीले रंग की किरणें उसपर गिरीं और वह जलपरी की अपेक्षा अधिक कुरूप नजर आई । उसका चेहरा डरावना और नीला था; होंठ काले थे और शरीर ऐसा, मानो लिसलिसी मिट्टी में लपेटा गया हो!
थिएटर में अप्रसन्नता की बड़बड़ाहट फैल गई।
अपने दानवों के साथ रोशनी में कलाकार भी प्रकाशित हुआ और बुरे स्वप्न तथा उदासीनता की प्रतिरूप हरी आँखोंवाली मछली अँधेरे में से प्रकट हुई । हानिकारक अष्टभुजी मछलियाँ उसके आसपास घूमने लगीं।
जूलिया का शरीर हानिकारक ढेर में तैरता हुआ प्रतीत हुआ और अंत में एक जीवित राक्षसी बेढंगे प्राणी में बदल गया।
दृश्य चित्रकार ने प्रतिबिंब शीशे को धीरे से घुमाया और अपने द्वारा किए जा रहे रोशनी के काम को देखा। उसे ऐसा लगा कि उसने उस जलपरी के आकर्षण को सदा के लिए नष्ट कर दिया था - जलपरी, जिसको उसने प्यार किया था। कोस्तोविस्की को महसूस हुआ कि उसने उसको अब वास्तविक रोशनी में देखा था और वह केवल उसी समय दिव्य रूप से सुंदर नजर आती थी, जब उसपर प्रेम की तेज किरणें पड़ती थीं।
(अनुवाद : भद्रसैन पुरी)