मछुआरा और उसकी आत्मा (अंग्रेज़ी कहानी) : ऑस्कर वाइल्ड

The Fisherman and His Soul (English Story in Hindi) : Oscar Wilde

हर सुबह समुद्र में जाकर वह युवा मछुआरा अपना जाल पानी में फेंकता था। जब हवाएँ तट से समुद्र की ओर बहतीं तो उसके हाथ कुछ न लगता, या बहुत कम लगता । क्योंकि तब ये तीखी और काले पंखोंवाली हवाएँ होतीं, तब प्रचंड लहरें उनसे मिलने के लिए समुद्र से उठतीं, लेकिन जब हवाएँ तट की ओर बहतीं तो मछलियाँ समुद्र में से ऊपर आकर उसके जाल के डोरों में फँस जातीं। वह उनको मंडी में ले जाकर बेचता ।

हर शाम वह समुद्र से बाहर आता । एक दिन उसका जाल इतना भारी था कि उसे नाव खींचने में बहुत जोर लगाना पड़ रहा था। वह हँसकर बोला, "जरूर आज तो मैंने इधर तैरनेवाली सारी की सारी मछलियाँ पकड़ ली हैं। या फिर कोई ऐसा बड़ा जीव पकड़ा है, जो लोगों के लिए अजूबा होगा । या फिर कोई ऐसी भयानक चीज होगी, जिसे महारानी पसंद करेंगी।" उसने सारा जोर लगाकर रस्सियों को ऊपर खींचा जब तक कि किसी काँसे के फूलदान में नीले मीने की लकीरों की तरह उसकी बाँहों में नसें उभर नहीं आई।

वह पतली रस्सियों को खींचता चला गया, जब तक कि सपाट कार्कों का घेरा उसके पास नहीं आ गया। फिर अंत में जाल भी पानी की ऊपरी सतह पर आया ।

लेकिन उसमें एक भी मछली न थी । न ही कोई बड़े आकार का जीव । केवल एक छोटी मत्स्यकन्या थी, जो गहरी नींद में सो रही थी।

उसके बाल पानी में भीगे सोने के ऊन जैसे थे । उनमें से हरेक बाल ऐसा लगता था, जैसे शीशे के सुंदर प्याले में सोने की तार हो। उसका शरीर सफेद हाथी दाँत का सा था। उसकी पूँछ चाँदी और मोती की थी, जिसके चारों तरफ समुद्र की हरी लताएँ लिपटी हुई थीं। उसके कान समुद्र के शंखों जैसे थे और होंठ मूँगे जैसे । समुद्र की ठंडी लहरें उसके ठंडे सीने से टकरा रही थीं और उसकी पलकों पर नमक झिलमिला रहा था ।

वह इतनी सुंदर थी कि युवा मछुआरा उसे देखकर आश्चर्य से भर उठा। उसने हाथ बढ़ाकर जाल को अपने पास खींच लिया। फिर एक ओर झुककर मत्स्यकन्या को अपनी बाँहों में ले लिया।

उसके छूते ही मत्स्यकन्या किसी घबराए समुद्री पक्षी की तरह जोर से चीख पड़ी। उसने अपनी भयभीत नीललोहित आँखों से मछुआरे की तरफ देखा और अपने आपको उसकी पकड़ से छुड़ाने के लिए जोर मारने लगी, लेकिन मछुआरे ने उसे कसकर सटाए रखा और अपने से अलग नहीं होने दिया। जब उसने समझ लिया कि इस तरह छूटना संभव नहीं है तो रोकर बोली, "मैं आपसे प्रार्थना करती हूँ, मुझे छोड़ दीजिए। क्योंकि मैं राजा की एकलौती बेटी हूँ। मेरे पिता बूढ़े और बिलकुल अकेले हैं ।"

इस पर युवा मछुआरे ने जवाब दिया, "मैं तुम्हें तब तक नहीं छोडूंगा, जब तक यह वादा न करो कि जब भी मैं पुकारूँ तुम आकर मेरे लिए गाओगी, क्योंकि मछलियाँ जलजीवों के गाने से आकर्षित होती हैं, इसलिए तब मेरे जाल उनसे भर जाया करेंगे।"

"अगर मैं यह वादा करूँ तो क्या तब आप सचमुच मुझे छोड़ देंगे? " मत्स्यकन्या ने पूछा।

"मैं सच में तुम्हें मुक्त कर दूँगा ।" युवा मछुआरा बोला।

इसपर उसने जलजीवों की शपथ लेते हुए मछुआरे से वादा कर लिया। मछुआरे ने अपना बाहुपाश खोल दिया और वह किसी अज्ञात भय से काँपती हुई समुद्रतल में उतर गई ।

युवा मछुआरा हर शाम समुद्र पर जाकर मत्स्यकन्या को पुकारता । वह पानी में ऊपर आकर उसके लिए गाती । डाल्फिन मछलियाँ उसके चारों तरफ तैरती हुई चक्कर लगातीं और जलपक्षी उसके सिर पर मँडराते।

उसका गाना बहुत ही सुंदर होता । वह समुद्र जीवों का गाना गाती, जो अपने झुंड को एक गुफा से दूसरी तक ले जाया करते हैं। जो छोटे बच्चों को अपने कंधे पर बैठाकर ले जाते हैं । वह हरी दाढियों और बालों भरे सीनेवाले ट्रायटन का गीत गाती, जो राजा की सवारी निकलने पर शंखनाद करते थे । वह तृणमणि से बने राजा के महल का गीत गाती, जिसकी छत नीलम की थी और फर्श चमकदार मोतियों का था । वह समुद्र के बगीचों का गीत गाती, जहाँ दिनभर मूँगे की सुंदर जड़ाऊ झालरें डोलती थीं और मछलियाँ उनमें से होकर चाँदी की चिड़ियों की तरह आती-जाती थीं। जहाँ पवनपुष्प चट्टानों से सटे रहते थे और पीली रेत में गुलाब उगते थे। वह उत्तरी समुद्र से आनेवाली बड़ी ह्वेल मछलियों का गीत गाती, जिनके पंखों से बर्फ के लंबे कतरे चिपके होते थे।

और उन जलपरियों के बारे में गाती, जो ऐसी आकर्षक बातें बतातीं कि व्यापारी अपने कानों को मोम से भर लेते, ताकि वे उन्हें सुनकर पानी में कूदकर डूब न जाएँ। वह उन बड़े मस्तूलोवाले डूबे हुए जहाजों का गीत गाती, जिनके जमे हुए नाविक अभी भी पाल से चिपटे हुए थे और बाँगड़ा मछलियाँ उनके छिद्रों में से तैरती थीं । जहाज की पेंदी से चिपटकर दुनियाभर की सैर करनेवाले नन्हे जलजीवों के गीत और चट्टानों के अगल-बगल रहनेवाली समुद्रफेनी के गीत गाती, जो अपनी काली बाँहें दूर-दूर तक फैलाए रहती है और जब चाहे रात को बुला सकती है। उसने घोंघे का गीत गाया, जिसके पास अपनी रेशमी पालोंवाली उपल की नाव है और वीणा बजानेवाले मत्स्यपुरुषों का गीत गाया, जो अपनी मधुर तान से विशाल समुद्री दानव क्राकेन को सुला सकते थे । उन छोटे बच्चों का गीत गाया, जो हँसते हुए फिसलते सूँस को पकड़कर उसकी पीठ पर सवारी कर लेते हैं, उस मत्स्यकन्या का गीत गाया, जो सफेद झाग में लेटकर अपनी बाँहें नाविकों के लिए फैलाती है। उसने मुड़े हुए दाँतोंवाले जलसिंह और तैरती अयालवाले जलअश्वों के गीत गाए ।

जब वह गाती तो सभी बड़ी मछलियाँ समुद्र की गहराई से उसका गीत सुनने के लिए सतह पर आ जातीं । मछुआरा उनपर अपना जाल फेंककर उन्हें पकड़ लेता। जो बाकी बचतीं उनका अपने भाले से शिकार करता। जब उसकी नाव पूरी तरह भर जाती तो मत्स्यकन्या मुसकराती हुई नीचे समुद्र में चली जाती।

लेकिन वह कभी उसके पास न आती कि वह कहीं उसे छू न ले । वह अकसर उसे बुलाता या याचना करता, लेकिन वह उसकी बात न मानती । जब वह उसे पकड़ने की कोशिश करता तो सील मछली की तरह समुद्रतल में गोता लगाती और फिर उस दिन उसे दोबारा दिखाई न देती । दिन-दिन उसकी आवाज मछुआरे के कानों को और भी मधुर लगती। उसकी आवाज इतनी मधुर थी कि मछुआरे को अपने जाल या नाव की भी सुध न रहती । सिंदूरी पंखों और सुनहरी आँखोंवाली बड़ी टनी मछलियों के झुंड उसके सामने से गुजर जाते, पर वह उनकी तरफ ध्यान ही न देता। उसका भाला उसकी बगल में पड़ा रहता । उसकी मुलम्मा चढ़ी खपचियोंवाली टोकरियाँ खाली पड़ी रहतीं। वह हैरान आँखों और खुले होंठों के साथ अपनी नाव में खाली बैठा रहता और तब तक उसका गाना सुनता, तक कि समुद्री कुहरा उसे घेर न लेता और घुमक्कड़ चाँद उसके भूरे अंगों को चाँदी जैसा न रँग देता ।

एक शाम उसने मत्स्यकन्या को पुकारकर कहा, "छोटी मत्स्यकन्या, छोटी मत्स्यकन्या, मैं तुमसे प्यार करता हूँ । मुझे अपना दूल्हा बना लो, क्योंकि मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ ।"

इस पर मत्स्यकन्या ने इनकार में सिर हिलाकर कहा, “तुम्हारे पास इनसान की आत्मा है। अगर तुम अपनी आत्मा से छुटकारा पा लो तो मैं तुमसे प्यार कर सकती हूँ।"

तब युवा मछुआरे ने खुद से कहा, "मेरी यह आत्मा किस काम की है ? मैं इसे न देख सकता हूँ, न छू सकता हूँ। मैं तो इसे जानता तक नहीं । मैं जरूर इसे अपने से दूर भेज दूँगा । तब मुझे आनंद-ही-आनंद मिलेगा।"

इसके साथ ही उसके मुँह से खुशी की एक चीख निकली। अपनी रंगीन नाव में खड़ा होकर उसने मत्स्यकन्या की तरफ बाँहें पसार दीं। ‘“मैं अपनी आत्मा को अपने से दूर भेज दूँगा", वह बोला, "तब तुम मेरी दुलहन बनोगी और मैं तुम्हारा दूल्हा। फिर हम दोनों समुद्र की गहराई में साथ रहेंगे। जो कुछ तुमने अपने गीतों में सुनाया है, वह सब मुझे दिखाओगी और जो तुम चाहोगी, वह मैं करूँगा । हमारी जिंदगी अलग-अलग न होगी।"

छोटी मत्स्यकन्या खुशी से चहक उठी और उसने अपना चेहरा अपने हाथों में छिपा लिया ।

“पर मैं अपनी आत्मा को दूर कैसे भेजूँगा?" मछुआरा बोला, "मुझे बताओ मैं यह कैसे कर सकता हूँ तो मैं वैसा ही करूँगा।"

"आह! मुझे यह नहीं मालूम ", मत्स्यकन्या ने कहा, “जलजीवों की आत्मा नहीं होती ।" इतना कहकर वह उसकी तरफ ललचाई नजरों से देखती हुई समुद्र में चली गई।

अगली सुबह जब सूर्य पहाड़ी पर आदमी के हाथ के आकार का ही उगा था, मछुआरे ने पादरी के घर जाकर उसके दरवाजे पर तीन बार दस्तक दी। उसने खिड़की से झाँककर देखा कि कौन है। फिर कुंडी खोलकर बोला, "अंदर आ जाओ।" मछुआरा सुगंधित फर्श पर झुक गया। इसके बाद उसने पवित्र पुस्तक से कुछ पढ़ते पादरी से कहा, “फादर, मैं एक जलकन्या से प्यार करता हूँ, लेकिन मेरी आत्मा मेरी इच्छापूर्ति में बाधक है। मुझे बताइए कि मैं अपनी आत्मा को खुद से दूर कैसे भेज सकता हूँ। दरअसल मुझे इसकी कोई जरूरत भी नहीं । मेरी आत्मा मेरे किस काम की है? मैं उसे न देख सकता हूँ, न छू सकता हूँ। मैं उसे जानता तक नहीं।"

पादरी ने अपनी छाती पीट ली और बोला, “ओफ, ओफ ! तुम पागल हो गए हो या फिर तुमने कोई जहरीली बूटी खा ली है, क्योंकि आत्मा तो इनसान का नेक और उत्कृष्ट हिस्सा है। प्रभु ने हमें यह इसलिए दिया, ताकि हम नेकी के साथ इसका इस्तेमाल करें। मानव आत्मा से मूल्यवान् और कोई चीज नहीं होती । न ही किसी सांसारिक वस्तु से इनकी तुलना की जा सकती है। यह दुनिया में जितना भी सोना है और राजा के पास जितने माणिक हैं, उनसे भी कीमती है। इसलिए मेरे बच्चे, इस मामले में अब ऐसा कुछ कभी न सोचना । क्योंकि यह ऐसा पाप है, जिसकी माफी नहीं होती। जहाँ तक जलजीवों का सवाल है, समझो वे पतित हो चुके हैं। जो उनसे कोई संपर्क रखेंगे वे भी पतित होंगे। वे उन जानवरों की तरह हैं, जो नहीं जानते कि अच्छा क्या है और बुरा क्या है ।"

पादरी के इन कटु वचनों को सुनकर युवा मछुआरे की आँखों में आँसू भर आए। वह अपने घुटनों के बल से उठ खड़ा हुआ और बोला, "फादर, वन्यप्राणी जंगल में रहते हैं और वे बहुत खुश रहते हैं । मत्स्यपुरुष चट्टानों पर अपनी-अपनी सुनहरी वीणा के साथ बैठते हैं। मेरी आपसे प्रार्थना है कि मुझे भी उन जैसा ही बनने दो, क्योंकि उनके दिन फूलों जैसे हैं । जहाँ तक मेरी आत्मा का सवाल है, इससे मुझे क्या फायदा अगर यह मेरे और जिससे मैं प्यार करता हूँ, उसके बीच का रोड़ा है? "

"शारीरिक प्रेम बुरा है", पादरी त्योरी चढ़ाकर बोला, "इस तरह की बुरी और भ्रष्ट चीजों से प्रभु दूर रहते हैं । जंगली जानवर और समुद्र के गायक शापग्रस्त होते हैं। मैंने उनको रात को सुना है। वे मुझे आकर्षित करके माला जपने से मेरा ध्यान हटाने की कोशिश करते हैं । वे खिड़की पर दस्तक देकर हँसते हैं । वे अपने खतरनाक आनंद की कहानियाँ मेरे कानों में फुसफुसाते हैं। वे मुझे आकर्षक वस्तुओं का लालच देते हैं। जब मैं प्रार्थना करता हूँ तो वे मेरा मुँह चिढ़ाते हैं। मैं तुम्हें बता रहा हूँ, वे पतित हो चुके हैं। क्योंकि उनके लिए न कोई स्वर्ग है, न नरक । न ही वे इनमें से कहीं भी जाकर प्रभु का गुणगान करेंगे।"

"फादर, आप नहीं जानते कि आप क्या कह रहे हैं", युवा मछुआरा बोला, " एक बार मेरे जाल में राजा की बेटी फँस गई थी। वह भोर के तारे से भी सुंदर और चंद्रमा से भी अधिक गोरी है । उसके शरीर के लिए तो मैं अपनी आत्मा का भी बलिदान कर दूँगा । उसके प्रेम पर मैं स्वर्ग भी बलिदान कर दूँगा । जो मैंने आपसे पूछा है, वह बताइए ताकि मैं शांतिपूर्वक यहाँ से जा सकूँ ।"

“ओफ, ओफ!" पादरी बोला, "तुम्हारी प्रेमिका का पतन हो चुका है और उसके साथ तुम्हारा भी पतन होगा।" उसने मछुआरे को कोई आशीर्वाद नहीं दिया और दरवाजे से बाहर धकेल दिया।

युवा मछुआरा वहाँ से चलते-चलते मंडी में जा पहुँचा । वह किसी दुःखी प्राणी की तरह सिर नवाए बहुत धीरे-धीरे चल रहा था ।

जब व्यापारियों ने उसे आते देखा तो आपस में कानाफूसी करने लगे । फिर उनमें से एक उससे मिलने के लिए आगे आकर बोला, “तुम्हारे पास बेचने के लिए क्या है?"

“मैं आपको अपनी आत्मा बेचना चाहता हूँ", उसने जवाब दिया, "मेरी आपसे प्रार्थना है कि इसे खरीद लीजिए । क्योंकि मैं इससे तंग आ चुका हूँ। मेरी आत्मा मेरे किस काम की है? मैं इसे न देख सकता हूँ, न छू सकता हूँ। मैं इसे जानता तक नहीं।"

व्यापारी उसपर हँस पड़े और बोले, "किसी आदमी की आत्मा हमारे किस काम की? इसकी कीमत चाँदी के एक फूटे सिक्के जितनी भी नहीं। हमें अपना शरीर एक गुलाम की तरह बेच दो। हम तुम्हें हरित बैंगनी वस्त्र पहनाकर तुम्हारी उँगली में दासता का छल्ला पहना देंगे। फिर हम तुमको महारानी का सेवक बना देंगे, लेकिन हमारे सामने अपनी आत्मा की बात मत करो। हमारे लिए तो वह है ही नहीं, न ही वह हमारे किसी काम की है।"

इसपर युवा मछुआरे ने मन-ही-मन कहा, "कैसी अजीब बात है । पादरी कहता है कि आत्मा सारी दुनिया के सोने से भी अधिक मूल्यवान् है और व्यापारी कहते हैं कि इसका मोल चाँदी के एक फूटे सिक्के जितना भी नहीं। वह उन व्यापारियों से आगे बढ़ गया। इसके बाद वह समुद्रतट पर आ पहुँचा । वहाँ जाकर वह सोचने लगा कि अब क्या करना चाहिए। सोचते-सोचते दोपहर हो गई। तभी उसे अचानक याद आया कि व्यापारियों के एक सुगंधित बूटी इकट्ठी करनेवाले साथी ने उससे एक युवा जादूगरनी के बारे में बताया था । वह खाड़ी के मुहाने पर एक गुफा में रहती थी। वह जादू-टोने में बड़ी होशियार थी । वह तुरंत उधर दौड़ पड़ा। वह अपनी आत्मा से पिंड छुड़ाने के लिए बेचैन होकर इतनी तेज दौड़ रहा था कि उसके पीछे धूल के बादल उड़ रहे थे। अपने हाथ में होनेवाली खुजली से युवा जादूगरनी ने जान लिया कि वह आ रहा है। उसने हँसकर अपनी लाल जुल्फें नीचे की तरफ बिखेर लीं। इस तरह अपने लाल बाल नीचे को गिराए हुए वह गुफा के मुँह पर आ खड़ी हुई । उसके हाथ में विषगर्जर की पुष्पित टहनी थी।

"तुम्हें क्या चाहिए, तुम्हें क्या चाहिए?" वह चिल्लाई । वह हाँफता हुआ चढ़ाई से ऊपर आया और उसके सामने झुक गया। अपने जाल में उस समय मछलियाँ चाहते हो, जब हवा का रुख अनुकूल न हो? मेरे पास एक छोटी बाँसुरी है। जब मैं इसे बजाती हूँ तो बड़ी मुलेट मछलियाँ तैरती हुई खाड़ी में आ जाती हैं, लेकिन इसकी कीमत होगी, खूबसूरत लड़के, इसकी कीमत होगी । तुम्हें क्या चाहिए, तुम्हें क्या चाहिए? जहाजों को नष्ट करनेवाला तूफान ? समुद्र की लहरें, जो खजाने बहाकर किनारे पर ले आएँ? मेरे पास हवा से भी बड़े तूफान हैं। पानी के एक डोल और छलनी की मदद से मैं बड़े-बड़े जहाजों को समुद्रतल में भेज सकती हूँ, लेकिन इसकी कीमत होगी, खूबसूरत लड़के इसकी कीमत होगी । तुम्हें क्या चाहिए, तुम्हें क्या चाहिए? मैं वादी में उगनेवाले एक फूल के बारे में जानती हूँ, जिसका मेरे सिवा किसी और को पता नहीं । उसकी पत्तियाँ बैंगनी हैं और उसके दिल में सितारा है। उसका रस दूध सा सफेद होता है । अगर तुम रानी के होंठों से वह फूल छुआ दो तो दुनियाभर में तुम्हारे पीछे-पीछे चली आएगी। अपने राजा के बिस्तर से वह उठेगी और सारी दुनिया में तुम्हारे पीछे चलेगी, लेकिन इसकी कीमत होगी, खूबसूरत लड़के इसकी कीमत होगी । तुम्हें क्या चाहिए, तुम्हें क्या चाहिए? मैं भेक को खरल करके उसका शोरबा बना सकती हूँ। उस शोरबे को मरे हुए आदमी के हाथ से हिलाने के बाद जब मैं तुम्हारे सोए हुए दुश्मन पर उसे छिड़क दूँ तो वह जहरीले साँप में बदल जाएगा। फिर उसकी अपनी माँ ही उसे मार डालेगी। एक चक्र की मदद से मैं आसमान से चाँद को खींचकर नीचे ला सकती हूँ और तुम्हें एक बिल्लौर में मौत दिखा सकती हूँ । तुम्हें क्या चाहिए, तुम्हें क्या चाहिए? अपनी इच्छा मुझे बताओ और मैं तुम्हें वह दूँगी । तुम मुझे उसकी कीमत दोगे, खूबसूरत लड़के, उसकी कीमत दोगे।"

“मेरी आवश्यकता तो बहुत मामूली है", युवा मछुआरा बोला, "अगर पादरी मुझसे नाराज होकर मुझे अपने घर से न निकालता तो बहुत मामूली इच्छा थी । व्यापारियों ने भी मेरा मजाक उड़ाया और मुझे इनकार कर दिया । इसलिए मैं तुम्हारे पास आया हूँ, हालाँकि लोग तुम्हें बुरा कहते हैं । तुम्हारी जो भी कीमत होगी, मैं दूँगा ।"

"तुम क्या चाहते हो?" जादूगरनी ने उसके पास आकर पूछा।

"मैं अपनी आत्मा को खुद से दूर भेजना चाहता हूँ ।" युवा मछुआरे ने जवाब दिया।

जादूगरनी यह सुनकर पीली पड़ गई । वह काँप उठी । उसने चेहरा अपने नीले लबादे में छिपा लिया ।" खूबसूरत लड़के, खूबसूरत लड़के, ऐसा करना बहुत भयानक होता है।"

वह अपने भूरे बालों को झटककर हँस पड़ा, “मेरी आत्मा मेरे लिए बेकार है", उसने जवाब दिया, “मैं इसे न देख सकता हूँ, न छू सकता हूँ । मैं इसे नहीं जानता ।"

“अगर मैं बता दूँ तो मुझे क्या दोगे?" जादूगरनी ने अपनी सुंदर आँखों से उसकी तरफ देखते हुए पूछा।

"सोने के पाँच सिक्के", उसने कहा, "मेरे जाल और मेरा छप्पर छाया घर, जिसमें मैं रहता हूँ। मेरी रंगीन नाव, जिसमें मैं समुद्र में घूमता हूँ । सिर्फ मुझे इतना बता दो कि मैं अपनी आत्मा से कैसे पिंड छुड़ा सकता हूँ, फिर मेरे पास जो कुछ है, वह सब तुम्हें दे दूँगा ।"

वह हँस पड़ी। उसने अपनी विषगर्जर की टहनी से उसे मारा ।"मैं शरत की पत्तियों को सोने में बदल सकती हूँ", उसने जवाब में कहा, “और अगर मैं चाहूँ तो चंद्रमा की किरणों को चाँदी में बदल सकती हूँ। जिसकी मैं सेवा करती हूँ, वह दुनिया के सभी राजाओं से अमीर है।"

"तो फिर मैं तुम्हें क्या दूँ?" वह बोला, "अगर तुम्हारी कीमत न सोना है, न चाँदी है।"

जादूगरनी ने अपना सफेद हाथ उसके बालों पर फेरा।"तुम्हें मेरे साथ नाचना पड़ेगा खूबसूरत लड़के।" यह कहते हुए वह मुसकराई।

"सिर्फ यही, और कुछ नहीं?" युवा मछुआरा हैरानी से बोला और उठ खड़ा हुआ ।

"सिर्फ यही, और कुछ नहीं ।" जादूगरनी ने जवाब दिया और फिर से मुसकराई ।

"तो फिर शाम होने पर किसी गुप्त स्थान पर हम दोनों साथ नाचेंगे", वह बोला, "और नाचने के बाद तुम मुझे वह बताओगी, जो मैं जानना चाहता हूँ ।"

उसने न में सिर हिलाया और बोली, "जब पूर्णिमा का चाँद निकला हो, जब पूर्णिमा का चाँद निकला हो।", वह बुदबुदाई। इसके बाद उसने चारों तरफ देखा और सुनने की कोशिश की । एक नीली चिड़िया शोर मचाती हुई अपने घोंसले से निकली और उसने रेत के टीलों के चक्कर काटे । तीन चित्तीदार चिड़ियाँ खुरदरी धूसर घास से सरसराती हुई निकलीं और आपस में चहचहाई । वहाँ और कोई आवाज न थी, सिवा तट के कंकड़ों से टकराती लहरों की आवाज के। जादूगरनी ने अपना हाथ आगे बढ़ाकर उसे अपने पास खींच लिया और अपने सूखे होंठ उसके कान के पास ले गई।

"आज रात तुम पहाड़ की चोटी पर जरूर आना", वह फुसफुसाई, "आज विश्राम का दिन है, इसलिए वह वहाँ होगा ।"

युवा मछुआरे ने उसकी तरफ देखा तो वह अपने सफेद दाँत दिखाती हुई हँसी ।"वह कौन है, जिसकी तुम बात कर रही हो?" उसने पूछा ।

"तुम्हें इससे मतलब नहीं", उसने जवाब दिया, "तुम आज रात वहाँ जाकर पेड़ के साए में खड़े रहना और मेरे आने का इंतजार करना। अगर कोई काला कुत्ता दौड़ता हुआ तुम्हारी तरफ आए तो उसे भिसा के डंडे से मारना । वह भाग जाएगा। अगर कोई उल्लू तुमसे बात करना चाहे तो उसे जवाब न देना । जब चाँद पूरा निकल आएगा, तब मैं आऊँगी और हम घास पर इकट्ठे नाचेंगे ।"

"पर क्या तुम मुझे यह बताने की कसम खाती हो कि मैं अपनी आत्मा को कैसे अपने से दूर कर सकूँगा?” उसने सवाल किया।

वह धूप में निकल आई। उसने अपनी लाल जुल्फें लहराकर हवा में तरंगें पैदा कीं।"मैं बकरी के खुरों की कसम खाती हूँ।” उसने जवाब दिया।

"तुम सबसे अच्छी जादूगरनी हो”, युवा मछुआरा बोला, "आज रात मैं पहाड़ की चोटी पर तुम्हारे साथ अवश्य नाचूँगा। तुमने मुझसे न सोना माँगा, न चाँदी। सिर्फ यह मामूली सी चीज ।" उसने अपनी टोपी उतारकर और सिर झुकाकर उसके प्रति सम्मान प्रदर्शित किया । फिर खुशी से भरा वह शहर की तरफ वापस भागा।

जादूगरनी उसे जाते देखती रही। जब वह आँखों से ओझल हो गया तो वह वापस अपनी गुफा में आ गई। उसने देवदार की नक्काशीदार पेटी से एक आईना निकालकर फ्रेम पर टिका दिया। उसने अंगारों पर गंधबेन जलाया और धुएँ के छल्लों में से देखने लगी। थोड़ी देर बाद उसने गुस्से से अपनी मुट्ठियाँ भींच लीं।" उसे मेरा होना चाहिए था", वह बड़बड़ाई, “मैं भी उतनी ही सुंदर हूँ, जितनी वह है ।"

रात को चाँद निकलते ही युवा मछुआरा पहाड़ की चोटी पर आकर पेड़ के साए में खड़ा हो गया । धातु की विशाल चादर की तरह समुद्र नीचे फैला हुआ था। छोटी खाड़ी में नौकाओं के साए हिल रहे थे। एक गंधक के रंग की आँखोंवाले बड़े उल्लू ने उसका नाम लेकर पुकारा, लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया । एक काला कुत्ता दौड़ता हुआ आया और उसपर गुर्राया । मछुआरे ने उसे भिसा के डंडे से पीटा तो वह रिरियाता हुआ भागा।

आधी रात को जादूगरनियाँ चमगादड़ों की तरह हवा में उड़ती हुई आई ।"ओह, कोई यहाँ है, जिसे हम नहीं जानतीं।” वे धरती पर उतरते ही चिल्लाई। उन्होंने इधर-उधर सूँघा, आपस में खुसर- फुसर की और इशारे किए। सबसे बाद में वह लाल जुल्फोंवाली युवा जादूगरनी उड़ती हुई आई। उसने सुनहरे कामवाली मोर की आँखों से सजी पोशाक पहनी हुई थी । उसके सिर पर हरी मखमल की एक छोटी टोपी थी।

"वह कहाँ है, वह कहाँ है?" उसे देखते ही जादूगरनियाँ चिल्ला पड़ीं, लेकिन वह हँसकर पेड़ की तरफ दौड़ी। मछुआरे का हाथ पकड़कर वह उसे चाँदनी में ले आई और उसके साथ नाचने लगी।

वे चक्करों में घूम रहे थे । युवा जादूगरनी इतनी ऊँची उछल जाती थी कि वह उसके जूतों की लाल एडियाँ देख सकता था। फिर ठीक नाचनेवालों के बीच में घोड़े की टापों की आवाज आई, पर कोई घोड़ा दिखाई नहीं दिया। वह डर गया ।

"और तेज ।", जादूगरनी ने कहा और अपनी बाँहें उसके गले में डाल दीं। उसकी गरम साँसें वह अपने चेहरे पर महसूस कर रहा था। ‘“तेज, तेज", वह चिल्लाई । उसे लगा कि धरती उसके पैरों तले लट्टू की तरह घूम रही है। उसका दिमाग परेशान हो गया और एक अजीब तरह का डर उसके दिल में समा गया । उसे लगा कि कोई दुष्ट चीज उसे घूर रही है। क्योंकि चट्टान के पीछे उसे एक आकृति नजर आ रही थी, जहाँ कुछ देर पहले कोई न था। वहाँ पर स्पेन के फैशन में सिला काली मखमल का सूट पहने एक आदमी था । उसका चेहरा अजीब तरह का जर्द था, लेकिन उसके होंठ किसी चटक लाल फूल जैसे थे । वह बहुत थका हुआ लग रहा था। वह पीछे टेक लगाकर अपने खंजर के दस्ते से खेल रहा था । पास ही घास पर उसका पंख की कलगीवाला हैट रखा था। साथ ही घुड़सवारी के सोने की लेसवाले मोतियों जड़े दस्ताने रखे थे। उसके लबादे का अस्तर नेवले की खाल का बना था। उसके कोमल सफेद हाथों में रत्न जड़ी अँगूठियाँ थीं और उसकी आँखों पर झुकी पलकें बहुत बोझिल थीं।

युवा मछुआरा उसे किसी जादुई जाल में फँसे प्राणी सा विवश होकर देख रहा था। आखिरकार उनकी आँखें मिलीं। उसके बाद वह कहीं भी नाच रहा हो, उसे लगा कि उस आदमी की आँखें उसकी आँखों पर ही हैं। उसने जादूगरनी की हँसी सुनी तो उसे कमर से पकड़कर चक्कर -दर-चक्कर नाचने लगा ।

अचानक जंगल में एक कुत्ता भौंका और नाचनेवाले सभी रुक गए। वे जोड़ों में चलकर नीचे झुके और उस आदमी के हाथ चूम लिये। तब उस आदमी के गर्वीले होंठों पर एक हलकी सी मुसकराहट तैर गई । जैसे किसी चिड़िया के पंख पानी को छूकर उसमें हलकी लहरें जगा देते हैं, लेकिन उसमें तिरस्कार भी था। वह लगातार युवा मछुआरे को घूर रहा था ।

"आओ, हम पूजा करें।" जादूगरनी फुसफुसाई । वह उसे लेकर चली तो उसके पीछे-पीछे चलने की किसी प्रबल इच्छा से बँध वह उसके साथ हो लिया, लेकिन पास आने पर किसी अनजानी प्रेरणा से उसने अपने सीने पर सलीब का निशान बनाते हुए पवित्र नाम का उच्चारण किया।

उसके ऐसा करते ही जादूगरनियाँ बाज की तरह तेज आवाज में चीखकर भाग खड़ी हुई । उसे घूरनेवाले आदमी का पीला चेहरा पीड़ा से विकृत हो गया। पेड़ों के एक झुरमुट के पास जाकर उस आदमी ने सीटी बजाई । चाँदी के साजवाला एक घोड़ा दौड़ता हुआ उसके पास आ गया । काठी पर बैठने के बाद उसने मुड़कर युवा मछुआरे की तरफ उदास आँखों से देखा ।

लाल जुल्फोंवाली जादूगरनी ने भी भागने की कोशिश की, लेकिन मछुआरे ने उसे कसकर पकड़े रखा ।

"मुझे छोड़ दो और जाने दो", वह चिल्लाई, " क्योंकि तुमने वह नाम लिया है, नहीं लेना चाहिए था और वह निशान बनाया है, जो नहीं बनाना था ।"

"नहीं", वह बोला, "जब तक तुम मुझे वह राज नहीं बताओगी, मैं तुम्हें जाने नहीं दूँगा ।"

"कैसा राज ।" जादूगरनी उससे अपने को छुड़ाने के लिए किसी जंगली बिल्ली की तरह संघर्ष करते हुए और अपने झाग भरे होंठ काटते हुए बोली ।

"तुम जानती हो ।" उसने जवाब दिया।

उसकी हरी घास जैसी आँखों में आँसू आ गए। वह मछुआरे से बोली, "इसके अलावा मुझसे और कुछ भी माँग लो।"

वह हँस पड़ा। फिर उसे और भी कसकर जकड़ लिया।

जब वह समझ गई कि उससे अपने आपको मुक्त नहीं कर सकती तो फुसफुसाई, "मैं उन मत्स्यकन्याओं जैसी ही सुंदर और मनोरम हूँ ।" उसने अपना चेहरा उसके चेहरे से सटा लिया और प्रेम जताने लगी।

लेकिन उसने त्योरियाँ चढ़ाते हुए उसे पीछे हटा दिया । "अगर तुम अपना वादा पूरा नहीं करती हो तो मैं झूठी जादूगरनी मानकर तुम्हें मार डालूँगा।"

वह जूड़ा पेड़ के फूल की तरह पीली पड़ गई और काँप उठी ।" ऐसा ही सही", वह बड़बड़ाई, "यह तुम्हारी आत्मा है, मेरी थोड़े ही है। तुम जैसा चाहो, उसके साथ सुलूक करो।" उसने अपनी कमर से एक छोटा छुरा निकाला, जिसका दस्ता हरे साँप के चमड़े से मढ़ा हुआ था । उसने छुरा उसे दे दिया।

"यह मेरे किस काम आएगा?" उसने हैरान होकर जादूगरनी से पूछा।

वह जरा देर चुप रही। उसके चेहरे पर भय साफ नजर आ रहा था। उसने अपने माथे पर आई जुल्फें पीछे हटाई। फिर विचित्र प्रकार से मुसकराती हुई बोली, "लोग जिसे शरीर की छाया कहते हैं, वह शरीर की छाया नहीं होती। वह आत्मा का शरीर होता है । समुद्र के किनारे चंद्रमा की तरफ पीठ करके खड़े हो जाना। फिर अपने पैरों के पास से अपनी छाया को काट देना, जो तुम्हारी आत्मा का शरीर है। अपनी आत्मा से कहना कि तुम्हें छोड़ दे तो वह तुम्हें छोड़ देगी ।"

युवा मछुआरा काँप उठा ।" क्या यह सच है ?", वह बुदबुदाया ।

"यह सच है। काश मैंने तुम्हें यह न बताया होता?" वह बोली और उसके घुटनों से लिपटकर रोने लगी।

मछुआरे ने उसे खुद से अलग किया और उसे घनी घास में छोड़कर वहाँ से चल दिया। पहाड़ के किनारे की तरफ जाते हुए उसने छुरा अपनी कमर में खोंस लिया और नीचे उतरने लगा।

उसके अंदर बसी आत्मा ने पुकारकर कहा, "देखो! मैं इतने बरसों से तुम्हारे अंदर वास करती थी । मैं तुम्हारी सेवक थी। मुझे अपने से दूर मत करो । आखिर मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है?"

युवा मछुआरा हँसकर बोला, "तुमने मेरा कुछ बुरा नहीं किया । पर मुझे तुम्हारी कोई जरूरत नहीं । यह जगत् बहुत विशाल है। फिर स्वर्ग और नरक भी हैं। इनके बीच में आकाश गंगा भी है। तुम जहाँ चाहे जाओ, लेकिन मुझे परेशान न करो, क्योंकि मेरा प्यार मुझे पुकार रहा है।"

उसकी आत्मा ने बहुत अनुनय-विनय की, पर उसने उसकी एक न सुनी। वह किसी जंगली बकरी जैसे सधे पाँवों से एक ऊँची चट्टान से दूसरी पर फलाँगता हुआ चलता रहा। अंत में वह समतल धरातलवाले समुद्र के पीले तट पर पहुँच गया।

भूरे और गठे बदनवाला मछुआरा किसी यूनानी के तराशे बुत की तरह रेत पर चंद्रमा की तरफ पीठ करके खड़ा हो गया। फेनिल समुद्र से सफेद बाँहें उसे बुला रही थीं और लहरों से धुँधली आकृतियाँ उसके प्रति सम्मान प्रदर्शित कर रही थीं। उसके सामने उसकी छाया थी, जो उसकी आत्मा का शरीर था । उसके पीछे शहद रँगी फिजा में चंद्रमा टँगा हुआ था।

उसकी आत्मा उससे बोली, "अगर तुम वाकई मुझे अपने से अलग करना चाहते हो तो मुझे अपने दिल के बिना मत भेजो। दुनिया बहुत निर्दयी है। मुझे अपना दिल साथ ले जाने दो।"

वह अपना सिर झटककर मुसकराया और बोला, "अगर मैं तुम्हें अपना दिल दे दूँ तो अपनी प्रेमिका को प्यार किससे करूँगा?"

"नहीं, नहीं", आत्मा ने कहा, "मुझे अपना दिल दे दो । यह दुनिया बहुत निर्दयी है। मुझे डर लगता है।"

"मेरा दिल तो मेरी प्रेमिका का है", वह बोला, "इसलिए देर मत करो, जाओ।"

“क्या मैं प्रेम न करूँ?" आत्मा ने पूछा।

“तुम यहाँ से जाओ, क्योंकि मुझे तुम्हारी कोई जरूरत नहीं ।" युवा मछुआरा बोला। उसने हरे साँप की चमड़ीवाला छुरा निकाला और उससे अपने पैरों के पास से अपनी छाया को काट दिया । वह उठकर उसके सामने खड़ी हो गई। वह उसी के समान दिखती, एक युवा पुरुष सी ।

वह पीछे हटा और छुरा वापस अपनी कमर में खोंस लिया। एक भय की भावना उसमें जगी।

" जाओ यहाँ से", वह बुदबुदाया, "और फिर कभी अपनी शक्ल न दिखाना ।

"नहीं-नहीं, हमें फिर कभी जरूर मिलना चाहिए ।" उसकी आवाज बाँसुरी की तरह मद्धम थी और जब वह बोली तो उसके होंठ मुश्किल से हिल रहे थे।

"अब हम कैसे मिलेंगे?" युवा मछुआरा बोला, "तुम समुद्र की गहराइयों में तो मेरे पीछे नहीं आओगी।”

"हर साल में एक बार मैं इसी जगह पर आकर तुम्हें पुकारा करूँगी", आत्मा ने कहा, "हो सकता है, कभी तुम्हें मेरी जरूरत महसूस हो।"

"मुझे तुम्हारी क्या जरूरत हो सकती है?" युवा मछुआरा बोला, "लेकिन जैसा तुम चाहो कर सकती हो।" इतना कहकर वह समुद्र में कूद पड़ा। उसका स्वागत तुरही बजाकर किया गया और छोटी मत्स्यकन्या उससे मिलने के लिए ऊपर आई। उसने मछुआरे के गले में बाँहें डालकर उसका चुंबन लिया।

आत्मा सुनसान समुद्रतट पर खड़ी उन्हें देख रही थी। जब वे समुद्र की गहराइयों में अदृश्य हो गए तो वह रोती हुई दलदली क्षेत्र की तरफ चली गई।

ठीक एक साल बाद आत्मा ने फिर समुद्रतट पर आकर युवा मछुआरे को पुकारा । वह समुद्रतल पर आकर बोला, "तुमने मुझे क्यों पुकारा ?"

उसकी आत्मा ने जवाब में कहा, "मेरे पास आओ, ताकि मैं तुमसे बात कर सकूँ। मैंने बहुत सी अद्भुत चीजें देखी हैं ।"

वह नजदीक आकर उथले पानी पर लेट गया और अपना सिर अपने हाथ पर रखकर उसकी बात सुनने लगा। आत्मा ने उससे कहा, " तुम्हें छोड़ने के बाद मैंने पूर्व की यात्रा की । पूर्व से ही सबकुछ समझदारी और ज्ञानवाला आता है। छह दिनों की यात्रा के बाद सातवें दिन मैं तुर्कों के देश की एक पहाड़ी पर पहुँची । मैं धूप से बचने के लिए एक झाऊ के पेड़ के साए में बैठ गई । जमीन सूखी और गरमी से तपी हुई थी। लोग मैदान में इस तरह आ-जा रहे थे, जैसे ताँबे की चमकदार चकती पर चींटियाँ रेंग रही हों।

“दोपहर होते ही मैदान के सपाट किनारे से लाल धूल का एक बादल उठा। यह देखते ही तुर्कों ने रंगीन धनुषों पर डोरी चढ़ा ली और अपने छोटे घोड़ों पर सवार होकर उसका सामना करने के लिए चल पड़े। औरतें चिल्लाती हुई चौपहिया गाड़ियों की तरफ दौड़ीं और नमदे के परदों के पीछे छिप गईं।

"गोधूलि के समय तुर्क लौटे, लेकिन उनमें से पाँच गायब थे। जो बचे थे, उनमें से कुछ ही घायल नहीं हुए थे। उन्होंने अपने घोड़े गाड़ियों के आगे जोते और जल्दी से वहाँ से भाग निकले। तीन गीदड़ एक गुफा से निकलकर उनकी तरफ देखने लगे । फिर उन्होंने अपने नथुनों से हवा को सूँघा और विपरीत दिशा में भागे।

चाँद निकला तो मैंने देखा कि मैदान में एक अलाव जल रहा है । मैं उसकी तरफ चल दी । व्यापारियों का एक झुंड कालीनों पर उसके चारों तरफ बैठा था । उनके ऊँट उनके पीछे बँधे हुए थे । उनके हब्शी सेवक रेत में तंबू गाड़ रहे थे और ऊँची कँटीली बाड़ बना रहे थे।

"मेरे उनके पास आते ही व्यापारियों का मुखिया उठ खड़ा हुआ । उसने अपनी तलवार म्यान से निकाल ली और मेरे आने का कारण पूछा।

“मैंने जवाब में कहा कि मैं अपने देश का राजकुमार हूँ और तुर्कों के चंगुल से बच निकला हूँ, जो मुझे गुलाम बनाना चाहते थे। मुखिया मुसकराया। उसने मुझे बाँस पर टाँगे हुए पाँच सिर दिखाए।

“फिर उसने मुझसे सवाल किया कि खुदा का पैगंबर कौन है? मैंने जवाब दिया, मुहम्मद।"

"पैगंबर का नाम सुनते ही उसने सिर झुकाया और मेरा हाथ पकड़कर मुझे अपने पास बैठा लिया। एक हब्शी मेरे लिए एक कठौते में भैंस का दूध और उसके साथ भुने गोश्त का एक टुकड़ा ले आया।

"सुबह होने पर हम अपनी यात्रा पर निकल पड़े। मैं मुखिया के बगल में लाल बालोंवाले एक ऊँट पर सवार थी। हमारे आगे-आगे एक हरकारा भाला लिये दौड़ रहा था । हमारे दोनों तरफ सैनिक थे और माल से लदे खच्चर पीछे चल रहे थे। इस कारवाँ में चालीस ऊँट थे । खच्चर उनसे दोगुने थे।

"हम तुर्कों के देश से चंद्रमा को कोसनेवालों के देश पहुँचे। वहाँ हमने लोगों को अपने सोने की रखवाली करते हुए और विचित्र अजगरों को अपनी गुफाओं में सोते हुए देखा। जब हम पहाड़ों के बीच से गुजर रहे थे तो इस डर से साँस रोके हुए थे कि हम पर बर्फ न गिरे । हरेक ने अपने चेहरे के आगे जाली का नकाब ओढ़ लिया था। जब हम बौनों की घाटी में से गुजरे तो उन्होंने पेड़ों के खोखल से हम पर तीर छोड़े। रात को हमने जंगलियों को ढोल बजाते सुना। जब हम बंदरों के गढ़ पहुँचे तो हमने उनके सामने फल रख दिए । तब उन्होंने हमें कोई नुकसान नहीं पहुँचाया। जब हम साँपों के गढ़ पहुँचे तो हमने पीतल के कटोरों में उनके लिए गरम दूध रख दिया। तब उन्होंने हमें जाने दिया। तीन बार हम आक्सेस नदी के किनारे आए। हमने उसे लकड़ी की नावों में पार किया, जिनमें चमड़े के पाल लगे थे। दरियाई घोड़ों ने हम पर हमला करके हमें मारने की कोशिश की । हमारे ऊँट उन्हें देखकर काँपने लगे थे।

“हर शहर के राजा ने हम पर महसूल लगाया, लेकिन हमें अपने द्वार में प्रवेश नहीं करने दिया । वह हमारे लिए दीवार पर से रोटियाँ, शहद में पकाई टिक्कियाँ और खजूर से भरी आटे की टिक्कियाँ फेंकते । हर सौ टोकरियों के बदले हम उन्हें अंबर की एक माला देते ।

"जब गाँववासियों ने हमें आते देखा तो वह अपने कुओं में जहर डालकर पहाड़ों में भाग गए। हम मेगाडे लोगों से लड़े, जो बूढ़े पैदा होते हैं, हर साल जवान होते जाते हैं और जब छोटे बच्चे हो जाते हैं तो मर जाते हैं। हम लेक्ट्राइ जाति के लोगों से लड़े जो खुद को शेर की औलाद बताते हैं और अपने को पीले और काले रंग में रँगते हैं। अनंटी कबीलेवालों से लड़े, जो अपने मृतकों के शव अंतिम संस्कार के लिए पेड़ों की चोटी पर रख देते हैं। वे अँधेरी गुफाओं में रहते हैं, ताकि उनका आराध्य सूर्य देवता उन्हें मार न डाले। हम मगरमच्छ के उपासक क्रिमनियन लोगों से लड़े जो अपने देवता को हरे शीशे की मुद्राएँ देते हैं और उसे मक्खन और ताजी चिड़िया खिलाते हैं । हम कुत्ते के चेहरेवाले अजनबी कबीलेवालों से लड़े और घोड़े जैसे खुरोंवाले और घोड़ों से भी तेज दौड़नेवाले सीबान कबीले के लोगों से लड़े। हमारे साथ के एक तिहाई इन लड़ाइयों में मारे गए। एक तिहाई अभावग्रस्त होकर मर गए। बाकी मेरे बारे में बड़बड़ाए कि मैं उनके लिए दुर्भाग्य हूँ। मैंने एक चट्टान के पेंदे से जहरीला गेहुँअन साँप पकड़कर निकाला और उसे मुझे काटने दिया। जब उन्होंने देखा कि इसका मुझ पर कोई असर नहीं हुआ तो वे डर गए।

"चौथे महीने में हम इल्लेल शहर पहुँचे। जब हम नगर प्राचीर के पासवाले बाग में पहुँचे, रात हो चुकी थी। हवा में उमस थी, क्योंकि तब चंद्रमा वृश्चिक राशि में था । हमने पेड़ों से पके अनार तोड़े और उन्हें पकाया। हमने उनका रस पिया। फिर हम कालीनों पर लेटकर दिन चढ़ने का इंतजार करने लगे।

"सुबह होने पर हमने उठकर शहर द्वार पर दस्तक दी । यह काले काँसे का बना था । इस पर समुद्री अजगर और पंखोंवाले अजगर की आकृतियाँ खुदी थीं। संतरियों ने परकोटे से हमें देखकर हमारे आने का कारण पूछा। कारवाँ के दुभाषिए ने जवाब में कहा कि हम सीरिया से आए हैं और हमारे पास बहुत सा माल है । उन्होंने जमानत ली और हमसे कहा कि दोपहर को आपके लिए दरवाजा खोलेंगे। तब तक इंतजार करें।

"जब दोपहर हो गई तो उन्होंने द्वार खोल दिए । हमारे अंदर आते ही हमें देखने के लिए लोग अपने घरों से निकल आए और भीड़ लग गई। सारे शहर में शंखनाद के साथ मुनादीवाले ने सूचना दे दी । हब्शियों ने कपड़ों के गट्ठर और गूलर की नक्काशीदार पेटियाँ खोल दीं। जब उनका काम खत्म हो गया तो व्यापारियों ने अपना माल सजाना शुरू किया। उसमें आकर्षक सामान था। उनमें मिस्र की मोमी लिनन थी, इथियोपिया की रंगीन लिनन थी, टायरे के बैंगनी स्पंज थे और सीडोन की नीली झालरें थीं। उनमें अंबर के प्याले, शीशे के सुंदर बरतन और मिट्टी के पकाए हुए आकर्षक भाँड़े थे। एक घर की छत से बहुत सी औरतों का झुंड हमें देख रहा था। उनमें से एक ने सोने के कामवाला चमड़े का बुरका पहन रखा था।

“पहले दिन पुजारियों ने आकर हमारे साथ सौदा किया। दूसरे दिन सामंत आए। तीसरे दिन दस्तकार और गुलाम आए। जितने दिन भी व्यापारी उनके शहर में रहें, उनके यहाँ यही रिवाज है।

"हम एक पूरा चाँद होने तक वहाँ ठहरे। फिर जब चाँद घटने लगा तो मैं शहर के रास्तों में घूमता हुआ उनके देवता के बगीचे तक आ गया । वहाँ पीले लबादेवाले पुजारी हरे-भरे पेड़ों के बीच से चुपचाप आ-जा रहे थे । संगेमूसा के चबूतरे पर देवता का गुलाबी लाल मंदिर था । उसके दरवाजे लाख जड़े थे और उनपर साँड़ और मोर की सोने की उभरी हुई आकृतियाँ थीं। उसकी छत हरे रंग की चीनी मिट्टी की थी । उसके बाहर निकले छज्जों से टनटनानेवाली घंटियाँ बँधी थीं। जब सफेद फाख्ता वहाँ से उड़कर जातीं तो उनके पंखों से टकराकर घंटियाँ बज उठतीं । मंदिर के सामने साफ पानी का एक सरोवर था । उसकी पटरियाँ धारीदार सुलेमानी पत्थर की बनी थीं। मैं उसके पास लेट गया और अपनी पीली उँगलियों से चौड़ी पत्तियों को छुआ। एक पुजारी आकर मेरे पीछे खड़ा हो गया। उसके पैरों में सैंडल थे। एक साँप की नरम चमड़ी की और दूसरी चिड़िया के पंख की । उसके सिर पर चाँदी के नवचंद्रों से सजी टोपी थी। उसके लबादे पर सात पीली तितलियाँ कढ़ी हुई थीं । उसके घुँघराले बाल सुरमे से रँगे थे।

"थोड़ी देर बाद उसने मुझसे बात की और मेरी इच्छा पूछी।

“मैंने उसे बताया कि मेरी इच्छा देवता के दर्शन करने की है।

"देवता शिकार पर हैं।" पुजारी ने अपनी छोटी-छोटी झुकी हुई आँखों से मेरी तरफ देखते हुए जवाब दिया।

"मुझे बताओ वह किस जंगल में गए हैं। मैं भी उनके साथ शिकार खेलूँ", मैंने जवाब दिया।

“उसने अपने लबादे के किनारे को अपने लंबे नाखूनों से सीधा करते हुए कहा, "देवता सो रहे हैं।"

"मुझे बताओ किस पलंग पर और मैं उनकी पहरेदारी करूँ ।" मैंने जवाब में कहा।

"देवता भोज पर हैं।" उसने चीखकर कहा ।

"अगर शराब मीठी है तो मेरी उनके साथ पीने की इच्छा है, लेकिन अगर कड़वी तो भी उनके साथ पीने की इच्छा है ।" मेरा जवाब था ।

"उसने हैरानी से अपना सिर झुकाया । फिर हाथ पकड़कर मुझे उठाया और मुझे मंदिर में ले गया।

“पहले कक्ष में मैंने मोतियों के किनारों से सजे सूर्यकांतमणि के सिंहासन पर आसीन एक मूर्ति को देखा। आबनूस की वह मूर्ति एक आदमी की थी । उसके सिर पर एक माणिक था और बालों से चूकर तेल उसकी जाँघों पर टपक रहा था। उसके पैर हाल ही में बलि चढ़ाए मेमने के खून से लाल थे। उसकी कमर में ताँबे की पेटी थी, जिस पर सात लहसुनिया जड़े थे।

"मैंने पुजारी से पूछा, "क्या यही देवता हैं?" "हाँ, यही देवता हैं ।" उसने जवाब दिया।

"मुझे देवता के दर्शन कराओगे नहीं तो मैं तुम्हें मार डालूँगा।" इतना कहकर मैंने उसके हाथ को छुआ तो उसका हाथ मुरझा गया।

"इस पर पुजारी ने मुझसे प्रार्थना की, "मेरे प्रभु अपने सेवक को ठीक कर दीजिए, फिर मैं आपको देवता के दर्शन कराऊँगा ।"

“मैंने उसके हाथ पर फूँक मारी तो वह फिर से पहले जैसा हो गया । वह काँप गया और मुझे दूसरे कक्ष में ले गया। वहाँ मैंने बड़े-बड़े नीलमों से जड़े संगयशब के कमल पर खड़ी एक मूर्ति देखी । हाथीदाँत की यह मूर्ति आदमकद से दोगुने आकार की थी । उसके माथे पर एक लहसुनिया जड़ा था । उसके सीने पर गंधरस और दालचीनी का लेप था। उसके हाथ में जेड का एक टेढ़ा दंड था और दूसरे हाथ में एक गोल बिल्लौर था । उसने घुटने तक लंबे पीतल जूते पहने हुए थे। उसकी मोटी गरदन में चंद्रकांतमणि का घेरा था।

"मैंने पुजारी से पूछा, "क्या यही देवता हैं?"

"उसने जवाब दिया, "यही देवता हैं ।"

"मुझे देवता के दर्शन कराओ वरना मैं तुम्हें मार डालूँगा।" मैंने कहा । इतना कहकर मैंने उसकी आँखों को छुआ और वह अंधा हो गया।

"पुजारी ने मुझसे प्रार्थना की, "मेरे प्रभु अपने सेवक को चंगा कर दें। फिर मैं उनको देवता के दर्शन कराऊँगा ।"

“तब मैंने उसकी आँखों पर फूँक मारी और उसकी दृष्टि वापस आ गई। वह फिर काँपा और मुझे तीसरे कक्ष में ले गया। वहाँ कोई मूर्ति नहीं थी । न ही किसी तरह का कोई चित्र था। सिर्फ एक धातु के फ्रेम में जड़ा हुआ आईना वेदी पर रखा था।

"मैंने पुजारी से पूछा, "देवता कहाँ हैं?"

“उसने जवाब दिया, "यहाँ कोई देवता नहीं, सिवाय इस आईने के जो आप देख रहे हैं। क्योंकि यह ज्ञान का आईना है। इसमें धरती और आकाश की सभी वस्तुएँ प्रतिबिंबित होती हैं। सिर्फ इसे देखनेवाले का चेहरा इसमें प्रतिबिंबित नहीं होता। इसे वह प्रतिबिंबित नहीं करता, क्योंकि फिर इसमें देखनेवाला ज्ञानी हो जाएगा। इसके अलावा यहाँ और भी आईने हैं, लेकिन वे सम्मति के आईने हैं। केवल यही ज्ञान का आईना है और जिनके पास यह है, वे सबकुछ जानते हैं । न ही उनसे कोई बात छिपी रहती है। जिनके पास यह है, वे ज्ञानहीन नहीं होते। इसलिए यह देवता है और हम इसकी पूजा करते हैं।' मैंने उस आईने में देखा । वह वैसा ही था, जैसा उसने कहा था ।

"फिर मैंने एक विचित्र हरकत की। खैर, मैंने जो किया, अब वह बड़ी बात नहीं, क्योंकि जिस घाटी में मैंने वह ज्ञान का आईना छिपाकर रखा है, वह यहाँ से एक दिन की यात्रा की दूरी पर है। एक बार फिर मुझे अपने शरीर में प्रविष्ट होने दो और तुम सारी दुनिया में सबसे अधिक ज्ञानी बन जाओगे। मुझे अपने अंदर प्रविष्ट होने दो और फिर तुम्हारे जैसा ज्ञानी कोई दूसरा न होगा।

“लेकिन युवा मछुआरे ने हँसकर कहा, "प्रेम ज्ञान से बेहतर होता है और छोटी मत्स्यकन्या मुझसे प्रेम करती है।"

"नहीं । ज्ञान से बढ़कर और कुछ नहीं होता ।" आत्मा ने कहा।

"प्रेम बेहतर है ।" युवा मछुआरे ने जवाब दिया । वह वापस समुद्र की गहराई में कूद गया और उसकी पुरुषरूपधारी आत्मा रोती हुई दलदल की तरफ चली गई।

"जब दूसरा साल खत्म हुआ तो उसकी आत्मा एक बार फिर समुद्र तट पर आई। उसने फिर युवा मछुआरे को पुकारा तो वह गहराई से ऊपर आकर बोला, "तुमने मुझे क्यों बुलाया?"

"आत्मा ने जवाब दिया, "पास आओ, ताकि मैं तुमसे बात कर सकूँ। मैंने बहुत सी आश्चर्यजनक चीजें देखी हैं।"

"वह पास आकर उथले पानी में लेट गया। उसने अपना सिर अपने हाथ पर टिका लिया और सुनने लगा।

आत्मा ने उससे कहा, "तुमसे दूर जाने के बाद मैंने दक्षिण का रुख किया और उधर चल पड़ी। दक्षिण से वह आता है, जो बहुमूल्य है। छह दिनों तक मैंने अश्तेर नगर को जानेवाले राजमार्ग पर यात्रा की। मैं उस लाल धूल भरे मार्ग पर छह दिन चली, जिस पर से होकर तीर्थयात्री आते-जाते हैं। सातवें दिन जब मैंने अपनी नजर उठाकर देखा तो शहर मेरे पैरों तले था । यह एक वादी में था ।

"इस शहर के नौ दरवाजे हैं। इनमें से हरेक के सामने एक काँसे का घोड़ा है। जब भी बद्दू पहाड़ों से आते हैं, यह घोड़ा हिनहिनाता है। दीवारों पर ताँबे की परत चढ़ी है और उनपर बनी पहरे की मीनारों की छतें पीतल की हैं । हरेक मीनार पर एक तीरंदाज हाथ में कमान लिये खड़ा रहता है । सुबह होने पर वह एक तीर से घंटे पर चोट करता है और हर शाम एक तुरही बजाता है।

"जब मैं अंदर जाने लगी तो रक्षकों ने मुझे रोककर पूछा कि मैं कौन हूँ। मैंने जवाब में कहा कि मैं एक दरवेश हूँ और मक्का की यात्रा पर जा रहा हूँ। वहाँ एक हरा परदा है और चाँदी के अक्षरों में फरिश्तों के हाथ से लिखी कुरानशरीफ रखी है। वे आश्चर्य से भर उठे और उन्होंने मुझे अंदर जाने दिया।

"अंदर बाजार है। काश तुम मेरे साथ वहाँ होते । वहाँ सँकरे रास्तों में कागज के फानूस बड़ी तितलियों की तरह फड़फड़ाते हैं। जब छतों पर हवा चलती है तो वे इस तरह उठते गिरते हैं, जैसे रंगीन बुलबुले हों। अपनी-अपनी दुकानों के आगे व्यापारी रेशमी कालीनों पर बैठे रहते हैं । उनकी सीधी काली दाढियाँ हैं और वे सोने की जरीवाली पगड़ियाँ पहनते हैं। वे अपनी उँगलियों से कीमती मनकों की माला जपते रहते हैं । उनमें से कुछ लाक्षा, बालछड़ और भारतीय द्वीपों से लाए इत्र बेचते हैं। वे लाल गुलाबों का गाढ़ा तेल, नाखूनों के आकार के लौंग और गंधर भी बेचते हैं। जब कोई उनसे बात करने के लिए रुकता है तो वे अंगारों पर चुटकी भर लोबान छिड़ककर हवा को सुगंधित कर देते हैं। मैंने वहाँ एक सीरियावासी को देखा। उसके हाथ में नरकुल जैसा एक पतला डंडा था । उसमें से सलेटी रंग का धुआँ निकल रहा था। जब वह जलता था तो उसका रंग वसंत में बादामों के गुलाबी रंग जैसा हो जाता था ।

"दूसरे व्यापारी चाँदी के कंगन बेचते थे, जिन पर नीले रंग के फिरोजे जड़े होते हैं। वे पीतल की तार की छोटे मोतियों जड़ी पाजेब, स्वर्णजटित बघनखे और व्याघ्रनखे, छेद किए पन्ने के कर्णफूल और उँगली के लिए छेद करके बनाई गई जेड की अंगूठियाँ बेचते हैं। वहाँ के चायघरों से गिटार बजाने की आवाजें आती हैं। सफेद चेहरोंवाले अफीमची आने-जानेवालों को देखा करते हैं।

"सच में तुम्हें मेरे साथ होना चाहिए था । चतुर शराब बेचनेवाले काले चमड़े की मशकें लिये भीड़ में अपना रास्ता बनाते चाहते हैं। उनमें से अधिकांश शहद जैसी मीठी शीराज की शराब बेचते हैं। वे इसपर गुलाब की पंखड़ियाँ छिड़ककर धातु के छोटे प्यालों में अपने ग्राहकों को देते हैं। मंडी में खड़े फल विक्रेता तरह-तरह के फल बेचते हैं। वे बैंगनी छिलकेवाली पकी अंजीरें, टोपाज जैसे पीले कस्तूरी जैसी खुशबूवाले खरबूजे, गलगल और गुलाबी सेब, सफेद अंगूरों के गुच्छे, गोल सुनहरे - सुनहरे लाल संतरे, हरे- सुनहरी नींबू बेचते हैं। एक बार मैंने एक हाथी जाते देखा। उसकी सूँड़ हल्दी और सिंदूर से सजी थी और उसके कानों पर लाल रंग की रेशमी जाली थी। वह एक दुकान के सामने खड़ा हो गया और उसके संतरे खाने लगा। लोग सिर्फ हँस रहे थे । तुम सोच भी नहीं सकते कि वे लोग कैसे विचित्र हैं। जब वे खुश होते हैं तो वे पक्षी बेचनेवाले के पास जाकर पिंजरे में बंद पक्षी खरीदते हैं और उसे मुक्त कर उड़ा देते हैं, ताकि उनकी खुशी और भी बढ़ जाए। जब वे दु:खी होते हैं तो अपने आपको काँटों से कोंचते हैं, ताकि उनकी पीड़ा कम न हो जाए ।

"एक शाम मैंने कुछ हब्शी बाजार में एक भारी पालकी ले जाते देखे। यह सुनहरे कामवाले बाँसों की बनी थी और इसके डंडे लाख जड़े थे, जिन पर पीतल के मोर बने हुए थे । उसके झीने परदों पर नन्हे मोतियों से सुंदर कढ़ाई की हुई थी। जब वह पास से गुजरी तो एक पीले चेहरेवाली मायावी औरत ने मुसकराकर मेरी तरफ देखा । मैंने पालकी का पीछा करना शुरू कर दिया । हब्शियों ने अपनी चाल तेज कर दी और मुझ पर गुर्राए । पर मैंने इसकी परवा नहीं की। एक अजीब सी उत्सुकता मुझ पर हावी हो गई थी ।

"अंत में वे एक चौकोर से सफेद घर पर रुके । उसमें एक भी खिड़की न थी । सिर्फ एक दरवाजा था, जो किसी मकबरे के दरवाजे सा लगता था । उन्होंने पालकी नीचे रखी और दरवाजे को ताँबे के हथौड़े से तीन बार खटखटाया। हरे चमड़े का कफ्तान पहने एक अमेरिकन ने छोटे दरवाजे से बाहर झाँका । उन्हें देखने के बाद उसने दरवाजा खोल दिया। उसने जमीन पर एक कालीन बिछाया और वह औरत उसपर पैर रखते हुए उतरी। जब वह अंदर जा रही थी तो उसने एक बार फिर मुड़कर मेरी तरफ देखा और मुसकराई । मैंने कभी किसी का इतना पीला चेहरा नहीं देखा ।

"जब चाँद निकला तो मैं फिर से उसी जगह पर आकर उस घर को तलाशने लगा, लेकिन वह घर वहाँ था ही नहीं। तब मैं समझ गया कि वह औरत कौन थी और मुझे देखकर क्यों मुसकराई थी।

“निश्चय ही तुम्हें मेरे साथ होना चाहिए था। नए चाँद के दिन होनेवाली दावत के दिन युवा सम्राट् अपने महल से मसजिद में नमाज पढ़ने के लिए आया । उसके बालों और दाढ़ी को गुलाब की पंखड़ियों से रँगा गया था। उसके गालों पर सोने का महीन बुरादा मला गया था। उसकी हथेलियाँ और पैरों के तलवे केसर से पीले रँगे हुए थे।

"हर सुबह वह अपने महल से चाँदी की जरी की पोशाक पहने निकलता था। हर शाम वह वहाँ सोने की जरीवाल पोशाक में लौटता था। लोग धरती पर लेट जाते थे और अपने चेहरे ढक लेते थे। पर मैंने ऐसा कभी नहीं किया। मैंने एक खजूर बेचनेवाले की दुकान पर खड़े होकर उसका इंतजार किया । जब सम्राट् ने मुझे देखा तो रुक गया। मैंने शांत खड़े रहना पसंद किया और उसे झुककर सलाम भी नहीं किया। लोग मेरा यह साहस देखकर हैरान थे। उन्होंने मुझे शहर से भाग जाने की सलाह दी। मैंने उनकी बात पर जरा भी ध्यान नहीं दिया और जाकर विचित्र प्रकार के देवताओं की मूर्तियाँ बेचनेवालों के पास आसन जमाया, जिनसे उनकी इस दस्तकारी की वजह से नफरत की जाती थी। जब मैंने उनको बताया कि मैंने क्या किया है तो उनमें से हरेक ने एक देवप्रतिमा मुझे दी।

"उस रात जब मैं अनारवालों की गलीवाले चायघर में मसनद पर लेटकर चाय की चुस्कियाँ ले रही थी, सम्राट् के सिपाही आए और मुझे महल में ले गए। जब मैंने महल में प्रवेश किया तो वे मेरे अंदर जाते ही मेरे पीछे के हर दरवाजे को बंद करके उसमें जंजीर डाल देते थे । अंदर एक बहुत बड़ा अहाता था, जिसके चारों तरफ आच्छादित रास्ता बना हुआ था। उसकी दीवारें सफेद सेलखड़ी की थीं, जिनमें जगह-जगह नीली और हरी टाइलें जड़ी थीं । उसके खंभे हरे पत्थर के थे और फर्श किसी तरह के गुलाबी पत्थर का था । मैंने इससे पहले ऐसी कोई चीज नहीं देखी थी।

"जब मैं अहाते से होकर गुजरी तो छज्जे पर खड़ी दो बुरकेवाली औरतों ने मेरी तरफ देखकर मुझे गाली दी । सिपाही तेजी से आगे बढ़ रहे थे और उनके भालों के कुंदे चमकीले फर्श से टकराकर आवाज कर रहे थे। उन्होंने हाथी दाँत का एक जड़ाऊ दरवाजा खोला और मैंने खुद को सात तल के एक सींचे हुए बगीचे में पाया। वहाँ चंद्रकांत, कुमुदिनी और रुपहले अगरु थे। किसी बिल्लोर की पतली नली जैसा एक फव्वारा धुँधली फिजा में टँगा हुआ था। सरू के पेड़ बुझी मशालों से लग रहे थे । उनमें से एक पर बैठी बुलबुल गा रही थी।

“बगीचे के आखिरी छोर पर एक छोटा मंडप था। जब हम उसके पास पहुँचे तो दो हिजड़े हमें मिलने आगे आए। चलते समय उनके स्थूल शरीर डोलते थे। अपनी पीली पलकोंवाली आँखों से वे मेरी ओर उत्सुकता से देख रहे थे । एक ने सिपाहियों के प्रमुख को एक ओर ले जाकर उससे फुसफुसाहट में कुछ बात की। दूसरे ने आतंकित करनेवाले हाव-भाव से एक जामुनी रंग के मीनेवाली डिबिया से सुगंधित टिकिया निकाली और उसे चबाना शुरू कर दिया।

"कुछ देर बाद सिपाहियों के प्रमुख ने उनको जाने को कहा। वे महल लौट गए। उनके पीछे-पीछे हिजड़े भी धीमी चाल से चल दिए। वे पेड़ों से मीठे शहतूत तोड़ते हुए चल रहे थे। एक बार उनमें से जो बड़ा था, उसने मुड़कर मेरी तरफ देखा और कुटिलता से मुसकराया।

"सिपाहियों के मुखिया ने मुझे मंडप के द्वार की तरफ संकेत किया। मैं निडर होकर आगे बढ़ी और भारी परदा एक ओर सरकाकर अंदर दाखिल हुई।

"युवा सम्राट् शेर की खालवाले एक काउच पर अधलेटा था । उसकी कलाई पर एक बाज था । उसके पीछे पीतल का टोप पहने एक रक्षक खड़ा था, जो कमर तक उघाड़ बदन था । काउच के पास ही एक मेज पर इस्पात की भारी शमशीर रखी थी।

"मुझे देखकर सम्राट् ने भौंहें चढ़ाकर पूछा, "तुम्हारा नाम क्या है? क्या तुम्हें पता नहीं कि मैं इस शहर का सम्राट् हूँ।" मैंने उसे कोई जवाब नहीं दिया ।

"उसने शमशीर की तरफ अपनी उँगली से इशारा किया और रक्षक ने वह शमशीर उठा ली। फिर तेजी से मेरी ओर आते हुए उसने पूरे जोर से मुझ पर वार किया । वह मुझमें से होकर गुजर गई, लेकिन मुझे कुछ नहीं हुआ। वह आदमी फर्श पर गिर पड़ा। डर के मारे उसके दाँत बजने लगे और वह काउच के पीछे जा छिपा।

"सम्राट् तेजी से उठ खड़ा हुआ । उसने हथियारों के एक आधार से भाला लेकर मुझ पर फेंका। मैंने रास्ते में ही उसे पकड़ लिया और उसके फल को तोड़कर दो टुकड़े कर दिए। उसने मुझ पर एक तीर छोड़ा। मैंने अपना हाथ उठाया और तीर बीच रास्ते में रुक गया । फिर उसने सफेद चमड़े की एक पेटी से खंजर निकालकर अपने रक्षक की गरदन में भोंक दिया, ताकि वह जिंदा रहकर उसके इस अपमान की कहानी किसी से कह न सके। वह आदमी किसी कुचले साँप की तरह तड़पा और उसके होंठों से लाल झाग के बुलबुले निकलने लगे।

“उसके मरने के बाद सम्राट् मुझसे मुखातिब हुआ । उसने अपने माथे पर छलक आया पसीना एक गुलाबी रंग के गोटेदार रूमाल से पोंछा और बोला, "क्या आप कोई पैगंबर हैं, मुझे जिनको हानि नहीं पहुँचानी चाहिए, या आप किसी पैगंबर के बेटे हैं, जिनको मैं हानि नहीं पहुँचा सकता? मेरी आपसे विनती है कि इसी रात यह शहर छोड़ दें, क्योंकि जब तक आप यहाँ हैं, मैं इसका मालिक नहीं ।"

"मैंने उसे जवाब दिया, 'इसके लिए अपना आधा खजाना तुम्हें मुझे देना होगा ।'

"वह मेरा हाथ पकड़कर मुझे बगीचे में ले गया। सिपाहियों का मुखिया मुझे देखकर हैरान हो गया । जब हिजड़ों ने मुझे देखा तो उनके घुटने काँपने लगे और वे मारे डर के धरती पर गिर पड़े।

"महल में लाल पत्थर की आठ दीवारोंवाला एक कमरा है । उसकी छत पीतल की है, जिससे दीप लटके रहते हैं। सम्राट् ने उनमें से एक दीवार को छुआ तो वह खुल गई। हम मशालों से रोशन एक रास्ते से होकर गुजरे। दोनों तरफ के ताकों में बड़े-बड़े शराब रखनेवाले मटके रखे थे, जो चाँदी के सिक्कों से भरे थे। जब हम रास्ते के बीचोबीच पहुँचे तो सम्राट् ने एक गुप्त शब्द बोला, जिससे संगमूसा का एक दरवाजा खुल गया । उसने अपनी आँखों को चौंधे से बचाने के लिए उनपर अपना हाथ रख लिया।

"तुम विश्वास नहीं कर सकोगे कि जगह कितनी शानदार थी । वहाँ बड़े-बड़े कछुए के खोल मोतियों से भरे रखे थे। बहुत बड़े आकार के मूनस्टोन माणिकों के ढेर के साथ रखे थे। सोना हाथी की चमड़ी के थैलों में भरा रखा था। सोने का चूर्ण चमड़े की थैलियों में भरा था।

“वहाँ बिल्लौर के प्यालों में उपल थे, जेड के प्यालों में नीलम थे। हाथी दाँत की पतली रकाबियों में गोल हरे पन्ने तरतीबवार सजे हुए रखे थे। एक कोने में रेशम के थैले भरे हुए रखे थे । उनमें से कुछ में फीरोजे भरे हुए थे, कुछ में लहसुनिया। हाथी दाँत की तुरहियों में बैंगनी एमिथिस्ट भरे हुए थे तो पीतल की तुरहियों में काँचेडोंग स्फटिक भरे थे। देवदार के खंभों पर पीले लिंक्स की मालाएँ लटकी हुई थीं। अंडाकार ढालों में मदिरा के रंग के और घास जैसे हरे रंग के माणिक्य भरे रखे थे। और यह मैंने वहाँ जो कुछ था, उसका बहुत थोड़ा सा अंश ही बताया है।

"सम्राट् ने अपने चेहरे पर से हाथ हटाने के बाद मुझसे कहा, 'यह मेरा खजाना है। इसमें से आधा आपका है, जैसा कि मैंने आपसे वादा किया था। मैं आपको ऊँट और ऊँटसवार दूँगा, जो आपके आदेश का पालन करेंगे और आपके हिस्से का खजाना दुनिया के जिस भी कोने में आप ले जाना चाहेंगे, पहुँचाकर आएँगे। यह काम आज रात ही हो जाना चाहिए, क्योंकि मैं नहीं चाहता कि सूर्य, जो मेरे पिता हैं, यह देखें कि इस शहर में कोई ऐसा भी है, जिसे मैं मार नहीं सकता ।'

"लेकिन मैंने उसे जवाब दिया, "इस खजाने का सारा सोना आपका है। चाँदी भी आपकी है। सभी बहुमूल्य वस्तुएँ और जवाहरात भी आपके हैं। मुझे इनकी कोई आवश्यकता नहीं । मैं इनमें से कुछ भी आपसे नहीं लूँगा सिवाय उस अँगूठी, जो आपकी उँगली में है ।"

"सम्राट् ने मुँह बनाकर कहा, "यह तो सिर्फ सीसे की अँगूठी है। इसकी कोई कीमत नहीं । इसलिए अपना खजाना लेकर आप मेरे शहर से विदा हो जाएँ ।"

" 'हीं’, मैंने जवाब दिया, "मैं उस सीसे की अँगूठी के सिवाय और कुछ न लूँगा । मुझे मालूम है, उसपर क्या खुदा हुआ है और किस उद्देश्य से ।'

"सम्राट् काँप उठा। उसने मुझसे विनती की, "मेरा सारा खजाना लेकर यहाँ से चले जाओ । जो आधा मेरा है, वह भी आपका हुआ।"

"इसपर मैंने एक विचित्र हरकत की । क्या किया उस बात को जाने दो। उस गुफा में, जो यहाँ से एक दिन की यात्रा की दूरी पर है, मैंने वह समृद्धि की अँगूठी छिपाकर रखी है। वह जगह यहाँ से सिर्फ एक दिन की यात्रा की दूरी पर है और वह अँगूठी तुम्हारा इंतजार कर रही है। जिसके पास वह अँगूठी होगी, वह दुनिया के सभी राजाओं से भी अमीर होगा। आकर उसे ले लो, तब दुनिया की सारी दौलत तुम्हारी होगी ।"

युवा मछुआरा हँसकर बोला, “प्यार धन-दौलत से बेहतर है और छोटी मत्स्यकन्या मुझे प्यार करती है।"

"नहीं, धन-दौलत से बेहतर कुछ नहीं होता ।" आत्मा ने कहा ।

"प्यार बेहतर है।" युवा मछुआरे ने जवाब दिया और इसके साथ ही वह गहरे समुद्र में गोता लगा गया। उसकी पुरुषवेशधारी आत्मा रोते हुए दलदल की तरफ चली गई।

जब तीसरा साल गुजर गया तो आत्मा ने फिर समुद्र तट पर आकर युवा मछुआरे को पुकारा । वह गहरे समुद्र से ऊपर आकर बोला, “तुमने मुझे क्यों पुकारा?"

आत्मा ने जवाब दिया, “पास आओ, ताकि मैं तुमसे बात कर सकूँ, क्योंकि मैंने बहुत ही आश्चर्यजनक चीजें देखी हैं।"

वह पास आकर उथले पानी में अधलेटा हो गया । उसने अपने हाथ पर सिर टिका लिया और सुनने लगा।

आत्मा ने उससे कहा, "मुझे एक नए नगर की ऐसी सराय का पता है, जो नदी किनारे है। मैं वहाँ नाविकों के साथ बैठी। वे दो तरह की मदिरा पी रहे थे । वे जौ की रोटियाँ खा रहे थे । तेजपात पर सिरके के साथ परोसी छोटी मछलियाँ खा रहे थे। जब हम वहाँ बैठे मौज-मस्ती कर रहे थे, तभी वहाँ एक बूढ़ा चमड़े का कालीन लेकर आया । उसके हाथ में अंबर के दो शृंगोंवाली वीणा थी । कालीन जमीन पर बिछाने के बाद उसने पंख की कलम से वीणा के तारों को छेड़ा। तुरंत अपना चेहरा ढके एक लड़की दौड़ती हुई वहाँ आ गई। वह हमारे सामने नाचने लगी।

“उसने अपना चेहरा जाली से ढका हुआ था, लेकिन वह नंगे पाँव थी । वे कालीन पर छोटे सफेद कबूतरों की तरह नाच रहे थे। मैंने इससे बढ़कर शानदार दृश्य पहले कभी नहीं देखा और जिस शहर में वह नाचती है, वह यहाँ से सिर्फ एक दिन की यात्रा की दूरी पर है ।"

जब युवा मछुआरे ने आत्मा के ये शब्द सुने तो उसे याद आया कि छोटी मत्स्यकन्या के पैर नहीं थे और वह नाच नहीं सकती थी। उसके मन में एक प्रबल इच्छा जाग उठी। उसने मन-ही-मन कहा, 'यहाँ से एक दिन की यात्रा की दूरी ही तो है। उसके बाद मैं अपनी प्रेमिका के पास लौट सकता हूँ ।' वह हँसकर उथले पानी में खड़ा हो गया और तट की तरफ चलने लगा ।

सूखे किनारे पर पहुँचने के बाद वह एक बार फिर हँसा । उसने अपनी आत्मा की तरफ बाँहें फैला दीं। आत्मा ने खुशी की एक चीख मारी और उसमें समा गई। मछुआरे ने अपने सामने अपने शरीर की छाया देखी, जो आत्मा का शरीर था।

आत्मा ने उससे कहा, “हमें यहाँ रुकना नहीं चाहिए। तुरंत चल देना चाहिए, क्योंकि समुद्री देवता ईर्ष्यालु होते हैं। उनके पास आदेश पालन करनेवाले दानव भी होते हैं ।"

इसलिए वे फौरन चल दिए। सारी रात वे चाँदनी में चलते रहे। फिर अगला सारा दिन धूप में चलते रहे। उस दिन शाम को वे एक शहर में पहुँचे ।

युवा मछुआरे ने आत्मा से पूछा, "क्या यही वह शहर है, जिसमें वह नर्तकी नाचती है, जिसका तुमने जिक्र किया था?"

आत्मा ने कहा, "नहीं, यह वह शहर नहीं । वह दूसरा शहर है। फिर भी हम इसमें प्रवेश करेंगे।" वे लोग अंदर गए और सड़कों से होकर गुजरे। जब वे सर्राफा बाजार से गुजर रहे थे तो युवा मछुआरे ने एक दुकान में चाँदी का एक प्याला देखा। आत्मा ने कहा, "वह प्याला उठाकर अपने पास छिपा लो।"

उसने प्याला उठाकर अपने लबादे की तह में छिपा लिया । फिर वे तेजी से शहर से बाहर निकल गए।

जब वे शहर से तीन मील की दूरी पर आ गए तो युवा मछुआरे ने प्याला दूर फेंक दिया और आत्मा से त्योरी चढ़ाकर कहा, “तुमने मुझे प्याला उठाकर छिपाने के लिए क्यों कहा? ऐसा करना तो बहुत बुरा होता है।"

आत्मा ने जवाब में कहा, "शांत हो जाओ, शांत हो जाओ ।"

अगले दिन की शाम को वे एक और शहर पहुँचे । युवा मछुआरे ने अपनी आत्मा से पूछा, "क्या यही वह शहर है जिसमें वह नाचती है, जिसका तुमने जिक्र किया था?"

आत्मा ने जवाब दिया, “नहीं, यह वह शहर नहीं । यह दूसरा शहर है । फिर भी हम इसमें प्रवेश करेंगे।" फिर वे उसके अंदर चले गए। जब वे जूते बेचनेवालों के बाजार से गुजर रहे थे तो युवा मछुआरे ने एक बच्चे को पानी के एक बरतन के पास खड़े देखा। आत्मा ने कहा, " इस बच्चे को पीटो।" उसने बच्चे को पीटना शुरू कर दिया, जब तक कि वह रोने न लगा । ऐसा करने के बाद वे तेजी से उस शहर के बाहर निकल गए।

जब वे शहर से तीन मील की दूरी पर पहुँचे तो युवा मछुआरे ने खफा होकर आत्मा से कहा, “तुमने मुझसे बच्चे को पीटने को क्यों कहा? ऐसा करना तो बहुत बुरा होता है ।"

आत्मा ने जवाब दिया, "शांत रहो, शांत रहो ।"

तीसरे दिन की शाम को वे एक और शहर पहुँचे । युवा मछुआरे ने आत्मा से पूछा, "क्या इसी शहर में वह नाचती है, जिसका तुमने जिक्र किया था?"

आत्मा ने जवाब दिया, "शायद यही वह शहर है। आओ, इसमें प्रवेश करते हैं ।"

फिर वे उस शहर के अंदर गए और सड़कों पर घूमने लगे । पर कहीं भी युवा मछुआरे को नदी या उसके किनारे सराय नहीं दिखी। शहर के लोग विचित्र नजरों से उनकी तरफ देख रहे थे। वह डर गया और आत्मा से बोला, "चलो, यहाँ से चलते हैं, क्योंकि गोरे पैरों से नाचनेवाली यहाँ नहीं है।"

लेकिन आत्मा ने कहा, “यहाँ रुकते हैं, क्योंकि अँधेरी रात है और रास्ते में डाकू मिल सकते हैं।"

उसने उसे बाजार में बैठा दिया और वे विश्राम करने लगे। तभी वहाँ से एक व्यापारी अपनी कपड़ों की गाँठ लेकर निकला। उसने एक बाँस के डंडे पर अपनी लालटेन टाँग रखी थी । व्यापारी उससे बोला, "तुम यहाँ किसलिए बैठे हो, जबकि दुकानें बंद हो चुकी हैं और सबने अपने कपड़ों के गट्ठर बाँध लिये हैं?"

युवा मछुआरे ने जवाब दिया, "मुझे इस शहर में कोई सराय नहीं मिली, न ही मेरा कोई भाईबंद है, जिसके यहाँ ठहर सकूँ।”

"क्या हम सभी भाईबंद नहीं? " व्यापारी बोला, "क्या एक ही ईश्वर ने हमें नहीं बनाया? इसलिए तुम मेरे साथ आओ। मेरे पास एक मेहमान का कमरा है ।"

युवा मछुआरा उठकर उस व्यापारी के पीछे चल पड़ा। जब वे एक अनार के बगीचे से होकर उसके घर पर पहुँचे तो व्यापारी उसके हाथ धोने के लिए ताँबे के बरतन में गुलाबजल लेकर आया । फिर उसकी प्यास बुझाने के लिए पके खरबूजे लाया। फिर उसने उसके सामने एक प्याला चावल और मेमने के भुने मांस का टुकड़ा रखा। जब वह खा-पी चुका तो व्यापारी उसे मेहमान के कमरे में ले गया, ताकि वह आराम से सो सके। युवा मछुआरे ने उसे धन्यवाद दिया और उसके हाथ की अँगूठी को चूमा। फिर बकरी की खाल के कालीन पर लेट गया। जब उसने काले मेमने की ऊन का कंबल ओढ़ लिया तो उसे नींद आ गई।

सुबह होने से तीन घंटा पहले, जबकि अभी भी रात थी, उसकी आत्मा ने उसे जगाकर कहा, "उठो और व्यापारी के सोने के कमरे में जाओ। उसे मारकर उसका सारा सोना ले लो, क्योंकि हमें उसकी जरूरत है।"

युवा मछुआरा उठा। वह दबे पाँव व्यापारी के कमरे में गया । व्यापारी के पायताने एक तलवार रखी थी। उसके बगल में एक थाल में सोने से भरी नौ थैलियाँ रखी थीं । उसने तलवार पकड़ने के लिए हाथ आगे बढ़ाया, लेकिन जैसे ही उसने तलवार को छुआ, व्यापारी की नींद खुल गई। उसने लपककर अपनी तलवार उठा ली और बोला, "क्या तुम मेरी अच्छाई का बदला इस तरह बुराई से देना चाहते हो? और मेरी मेहरबानी के बदले मेरा खून बहाना चाहते हो?" आत्मा ने युवा मछुआरे से कहा, "उसपर प्रहार करो।" उसने व्यापारी पर जबरदस्त चोट की, जिससे वह बेहोश हो गया। फिर उसने सोने की नौ थैलियाँ ले लीं। वह अनार के बगीचे से होकर तेजी से भोर के तारे की दिशा में भाग निकला।

जब वे शहर से तीन मील की दूरी पर आ गए तो युवा मछुआरे ने अपनी छाती पीटते हुए आत्मा से कहा, " तुमने मुझसे व्यापारी को मारकर उसका सोना लेने के लिए क्यों कहा? तुम निश्चय ही बहुत दुष्ट हो ।"

उसकी आत्मा ने जवाब दिया, "शांत रहो, शांत रहो।"

"नहीं", युवा मछुआरा बोला, "मुझे चैन नहीं पड़ेगा। क्योंकि जो कुछ तुमने मुझसे कराया है, उससे मुझे घृणा है। मुझे बताओ, तुमने ये सब बुराइयाँ कहाँ से सीखीं?"

उसकी आत्मा ने जवाब दिया, "जब तुमने मुझे दुनिया में जाने को छोड़ा था तो मुझे साथ ले जाने को दिल नहीं दिया था। तब मैंने ऐसी करतूतें करना सीखा और मुझे ये अच्छी लगती हैं ।"

"यह सब बकवास है ।" युवा मछुआरा बुदबुदाया।

"तुम्हें पता है", आत्मा ने जवाब दिया, "तुम्हें अच्छी तरह पता है । क्या तुम भूल गए कि तुमने मुझे दिल नहीं दिया था? अब मुझमें कुछ भी सोच-विचार की आदत नहीं । इसलिए न तुम परेशान होओ, न मुझे परेशान करो। शांत रहो। कोई पीड़ा नहीं है, जो तुम किसी को देते हो, न ही कोई ऐसा आनंद है, जो तुम नहीं पा सकते ।"

युवा मछुआरा ये शब्द सुनकर काँप उठा। उसने आत्मा से कहा, "नहीं, तुम बहुत दुष्ट हो। तुमने मुझे अपने प्यार को भूलने के लिए तैयार कर लिया । तुमने मुझे लोभ में फँसाया और मेरे कदम पाप के रास्ते पर डाले।"

आत्मा ने कहा, “तुम भूले तो नहीं कि जब तुमने मुझे संसार में भेजा था तो साथ में दिल नहीं दिया था। आओ, एक और शहर में चलकर मजे करते हैं । हमारे पास नौ सोने की थैलियाँ हैं।”

युवा मछुआरे ने सोने की थैलियाँ जमीन पर फेंक दीं और उनको अपने पैरों से रौंदा।

"नहीं", वह चिल्लाया, "मैं तुमसे कोई वास्ता नहीं रखूँगा । न ही अब तुम्हारे साथ कहीं यात्रा करूँगा। जैसे मैंने तुमको पहले दूर भेजा था, वैसे ही अब भी भेज दूँगा। क्योंकि तुमने मेरा कुछ भी भला नहीं किया है।" इतना कहकर उसने अपनी पीठ चंद्रमा की तरफ कर ली। फिर उसने हरे साँप की चमड़ीवाला, चाकू निकालकर उससे अपने पैरों पर से ही अपनी वह छाया काटने का यत्न किया, जो उसकी आत्मा का शरीर था ।

लेकिन आत्मा उसके पास से हिली तक नहीं । न ही उसने उसके आदेश पर कुछ भी ध्यान दिया । उसने कहा, “जो मंतर तुम्हें उस जादूगरनी ने दिया था, उसका अब कोई असर नहीं होगा। अब मैं तुम्हें नहीं छोडूंगी । न ही तुम मेरा संचालन करोगे। कोई आदमी अपने जीवनकाल में एक बार ही अपनी आत्मा को खुद से दूर कर सकता है, लेकिन जो अपनी आत्मा को दोबारा स्वीकार कर लेता है, उसे आत्मा को आजीवन अपने साथ रखना होता है । यही उसकी सजा या उसका पुरस्कार है ।"

युवा मछुआरा पीला पड़ गया । वह अपनी मुट्ठियाँ भींचकर चिल्लाया, "वह जादूगरनी धोखेबाज थी । उसने मुझे यह कभी नहीं बताया ।"

"नहीं", आत्मा ने कहा, "वह उसके प्रति वफादार थी, जिसकी पूजा करती है और वह सदा उसकी सेविका रहेगी।"

जब युवा मछुआरे को पता चल गया कि वह कभी भी अपनी आत्मा से छुटकारा नहीं पा सकता और यह एक दुष्ट आत्मा है और सदा उसके साथ रहेगी तो वह जमीन पर गिर पड़ा और बिलख-बिलखकर रोने लगा।

जब दिन निकला तो युवा मछुआरे ने आत्मा से कहा, "मैं अपने हाथ बाँध लूँगा, ताकि तुम्हारे किसी आदेश का पालन न कर सकूँ। अपने होंठ बंद कर लूँगा, ताकि तुम्हारे बताए शब्दों का उच्चारण न कर सकूँ। और मैं उस स्थान पर लौट जाऊँगा, जहाँ मेरी प्रेमिका रहती है । मैं समुद्र के पास लौट जाऊँगा । उस छोटी खाड़ी में भी जाऊँगा, जहाँ वह गाने की अभ्यस्त है । मैं उसे पुकारूँगा और बताऊँगा कि मैंने क्या बुरे काम किए हैं और तुमने मुझसे क्या कुकृत्य कराए हैं।"

आत्मा ने उसे प्रलोभन देते हुए कहा, “तुम्हारी प्रेमिका कौन है, जिसके पास तुम जाओगे? इस दुनिया में उससे भी बढ़-चढ़कर कई सुंदरियाँ हैं । समेरिया की ऐसी नर्तकियाँ हैं, जो हर तरह की चिड़िया या वन्यप्राणी की तरह नृत्य कर सकती हैं। उनके पैर मेंहदी से रँगे होते हैं और उनके हाथों में ताँबे की छोटी घंटियाँ होती हैं । वे नाचते समय हँसती हैं और उनकी हँसी पानी के कलकल स्वर जैसी स्वच्छ है । मेरे साथ चलो तो मैं तुम्हें वे नर्तकियाँ दिखाऊँगा। तुम पाप-कर्म जैसी बात से क्यों परेशान हो ? जो चीज खाने में स्वादिष्ट हो क्या वह खानेवाले के लिए नहीं बनाई गई है? जो पीने में मीठी है, क्या उसमें जहर मिला होता है? परेशान मत होओ और मेरे साथ एक और शहर चलो। "पास में ही एक छोटा शहर है । उसमें नलिनी के फूलों का बाग है। उस मनोरम बाग में सफेद और नीले मोर पाए जाते हैं। जब वे सूर्य के प्रकाश में अपनी पूँछें फैलाते हैं तो वे हाथीदाँत की तश्तरी जैसी या सुनहरी तश्तरी जैसी लगती हैं। उनको चारा खिलानेवाली उन्हें खुश करने के लिए नाचती हैं। कभी वह अपने हाथों के बल नाचती है, कभी अपने पैरों से नाचती है।

"वह अपनी आँखों को सुरमे से सजाए रखती है । उसके नथुने अबाबील के पंखों के आकार के हैं। उसके एक नथुने में मोती का बना एक फूल है। वह नाचते समय हँसती है। उसके टखने की चाँदी की पाजेब से घुँघरूओं की झंकार निकलती है। इसलिए अपने आपको और परेशान मत करो और मेरे साथ उस शहर को चलो।"

लेकिन युवा मछुआरे ने उसकी बात का कोई जवाब न दिया । उसने अपने होंठों पर मौन का ताला लगा लिया और अपने हाथों को रस्सी से कसकर जकड़ लिया । वह वापस उस स्थान के लिए चल पड़ा, जहाँ से आया था। उस छोटी खाड़ी की तरफ भी, जहाँ उसकी प्रेयसी को गाने की आदत थी । उसकी आत्मा ने उसे रास्ते में भी प्रलोभन देने की कोशिश की, लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया । न ही उसने कोई ऐसा बुरा काम किया, जिसे करने के लिए आत्मा ने उसे उकसाया। उसके अंदर जो प्यार था उसकी शक्ति ऐसी जबरदस्त थी।

समुद्रतट पर पहुँचकर उसने अपने हाथों की रस्सी खोल दी। उसने अपने होंठों का मौन तोड़ाकर छोटी मत्स्यकन्या को पुकारा, लेकिन उसके पुकारने पर वह आई नहीं। हालाँकि वह उसे दिन भर पुकारता रहा और मिन्नतें करता रहा ।

आत्मा ने उसका मजाक उड़ाते हुए कहा, "तुम्हें निश्चय ही अपने प्रेम से थोड़ा ही आनंद मिला है। तुम उस आदमी की तरह हो, जो मरते समय किसी टूटे बरतन में पानी भरता है । तुम्हारे पास जो है, वह तुम दे डालते हो और बदले में तुम्हें कुछ नहीं मिलता । तुम्हारे लिए यही बेहतर होगा कि मेरे साथ आओ। क्योंकि मुझे पता है कि मौजमस्ती की घाटी कहाँ है और वहाँ क्या कुछ है ।"

लेकिन युवा मछुआरे ने आत्मा को कोई जवाब नहीं दिया। उसने एक चट्टान की दरार में अपना छप्पर का घर बना लिया। वहाँ वह साल भर रहा । हर सुबह उठकर वह मत्स्यकन्या को पुकारता था । उसके बाद हर दोपहर को उसे फिर पुकारता था। रात को वह उसका नाम लेता था, लेकिन फिर भी वह कभी उससे मिलने के लिए समुद्रतल पर नहीं आई। न ही वह उसे समुद्र में कहीं भी मिली। हालाँकि उसने उसे गुफाओं में, हरे पानी में, ज्वार की लहरों में और समुद्रतल के कुओं में खोजा।

उसकी आत्मा ने भी उसे किसी बुराई का प्रलोभन नहीं दिया । न ही उसने किसी भयानक चीज के बारे में उससे फुसफुसाकर बात की। फिर भी वह अपनी आत्मा के विरुद्ध ही था । उसका प्रेम इतना सशक्त था।

साल गुजर जाने के बाद आत्मा ने अपने-आप में सोचा, "मैंने अपने स्वामी को बुराई के लिए प्रलोभित किया है, लेकिन उसका प्रेम मुझसे अधिक सशक्त है । अब मैं क्यों न उसे अच्छाई का प्रलोभन दूँ! हो सकता है फिर वह मेरे साथ आ जाए।"

फिर उसने युवा मछुआरे से कहा, "मैंने तुम्हें संसार के आमोद-प्रमोद के बारे में बताया, लेकिन तुमने उसपर ध्यान नहीं दिया। अब मुझे संसार की पीड़ा के बारे में कुछ बताने की अनुमति दो। हो सकता है तुम वह सुनो, क्योंकि सच तो यह है कि पीड़ा इस संसार की स्वामिनी है । ऐसा कोई भी नहीं है, जो इसके पाश से बच निकला हो। कुछ के पास कपड़े नहीं होते तो कुछ के पास रोटी नहीं होती। कुछ विधवाएँ संभ्रांत परिवारों में रहती कुछ चीथड़ों में जिंदगी गुजारती हैं। कुष्ठरोगी आपस में लड़ते-मरते हैं और वे एक-दूसरे के प्रति निर्दय होते हैं। भिखारी राजमार्गों के चक्कर लगाते रहते हैं और उनकी जेबें खाली होती हैं। शहरों की सड़कों पर दुर्भिक्ष टहलता है और प्लेग उनके मुख्य द्वार पर बैठी रहती है। आओ, हम चलकर इन स्थितियों में कुछ सुधार करें और कोशिश करें कि ऐसा न हो। तुम यहाँ रुककर अपनी प्रेयसी को कब तक पुकारोगे, जबकि वह तुम्हारी पुकार सुनती तक नहीं ? फिर प्रेम है क्या, जो तुम उसे इससे भी बढ़कर तरजीह दोगे?"

लेकिन युवा मछुआरे ने इसका कोई जवाब नहीं दिया । उसका प्रेम इतना सशक्त था । हर सुबह वह मत्स्यकन्या को पुकारता था। हर दोपहर वह फिर उसे पुकारता था। रात होने पर वह उसका नाम लेता था, लेकिन फिर भी वह कभी उससे मिलने के लिए समुद्रतल से ऊपर नहीं आई। न ही वह उसे समुद्र में कहीं भी खोज पाया। हालाँकि उसने उसे समुद्र की लहरों में, लहरों के नीचे की घाटियों में, जिस समुद्र को रात बैंगनी बना देती है और जिस समुद्र को दिन सलेटी बना देता है, उसमें सब कहीं खोजा ।

दूसरा साल भी गुजर गया । युवा मछुआरा जब अपनी छप्परवाली झोंपड़ी में रात को अकेला बैठा था, आत्मा ने उससे फिर बात की।‘“देखो, मैंने तुम्हें बुराई से आकर्षित करने की चेष्टा की, मैंने तुम्हें अच्छाई से आकर्षित करने की चेष्टा की, लेकिन तुम्हारा प्रेम मुझसे सशक्त है । इसलिए अब मैं तुम्हें किसी चीज से आकर्षित करने की कोशिश नहीं करूँगी, लेकिन मेरी विनती है कि मुझे अपने दिल में प्रवेश करने दो, ताकि मैं पहले की तरह तुम्हारे साथ एकाकार हो जाऊँ।"

“हाँ, तुम प्रवेश कर सकती हो", युवा मछुआरा बोला, "क्योंकि जब तुम दुनिया में दिल के बगैर गई थी, तब तुमने बहुत कष्ट सहे ।"

"आह!” आत्मा ने कहा, "मैं तुम्हारे दिल में प्रवेश नहीं कर सकती, क्योंकि प्रेम ने तुम्हारे दिल को बुरी तरह घेर रखा है।"

“फिर भी मैं तुम्हारी सहायता करना चाहता हूँ ।" युवा मछुआरे ने कहा।

जब उसने यह कहा तभी समुद्र के अंदर से विलाप की भयंकर आवाजें आने लगीं। इस तरह की आवाज लोगों को तब सुनाई देती थी, जब किसी जलजीव की मृत्यु हो जाए। युवा मछुआरा उछलकर खड़ा हो गया। वह अपनी झुग्गी से समुद्रतट की तरफ भागा। समुद्र की काली लहरें तेजी से तट की तरफ आ रही थीं । उनके साथ चाँदी से भी सफेद कोई चीज थी। वह समुद्रफेन से भी सफेद थी और किसी फूल की तरह लहरों पर हचकोले खा रही थी । लहरों से वह समुद्रफेन पर आई और वहाँ से झाग पर आ गई। फिर वह तट पर आ गई। मछुआरे ने देखा कि उसके पैरों के पास छोटी मत्स्यकन्या का मृत शरीर पड़ा है।

पीड़ा से आहत होकर उसने खुद को उसके पास गिरा दिया। उसने उसके ठंडे लाल होंठों को चूमा और उसके अंबर जैसे बालों का स्पर्श किया। वह उसके पास रेत पर बिलखता हुआ पड़ गया और अपनी साँवली बाँहों में भरकर उसके शरीर को छाती से चिपटा लिया । उसके होंठ ठंडे थे, फिर भी उसने उनका चुंबन लिया। उसके बालों का शहद खारा हो चुका था, फिर भी उसने उसका स्वाद मानो किसी आनंद के साथ लिया। उसने बंद आँखों का चुंबन लिया और उसकी आँखों के कोटर से भी मछुआरे के आँसू बहुत खारे थे।

उसके मृत कानों में भी उसने अपनी करनी की कटु कथा कह डाली । उसने उसके छोटे हाथों को अपने गले में डाल लिया और अपनी उँगलियों से उसकी पतली गरदन का स्पर्श किया। उसकी इस खुशी में कड़वाहट थी और उसकी पीड़ा में विचित्र प्रकार की प्रसन्नता थी ।

काला समुद्र उसके और पास आ गया और सफेद फेन किसी कोढ़ी की तरह कराह उठी। अपने सफेद पंजों से समुद्र ने तट को चंगुल में लिया । समुद्र के राजा के महल से एक बार फिर विलाप की चीखें उठीं और सुदूर समुद्र समुद्री गायकों के तुरही बजाने की आवाजें आईं।

"दूर भाग निकलो", आत्मा ने चिल्लाकर कहा ? " क्योंकि समुद्र अगर और पास आ गया तो तुमको लील लेगा । दूर भाग चलो, क्योंकि मैं देख रहा हूँ कि तुम्हारा दिल तुम्हारे प्रेम की शक्ति से घबराकर मुझसे सट गया है। किसी सुरक्षित स्थान पर भाग निकलो।"

लेकिन युवा मछुआरे ने अपनी आत्मा की आवाज अनसुनी कर दी । उसने छोटी मत्स्यकन्या से कहा, " प्रेम ज्ञान और विवेक से भी बढ़कर है । वह धन-दौलत से अधिक मूल्यवान् और इनसानों की लड़कियों के पैरों से अधिक सुंदर है। इसे आग जला नहीं सकती। पानी इसे ठंडा नहीं कर सकता। मैंने तुमको सुबह पुकारा और तुम मेरी पुकार पर नहीं आई। चंद्रमा ने तुम्हारा नाम सुना, लेकिन तुमने नहीं । मैंने तुम्हें छोड़ने का बुरा काम किया और अपने ही नुकसान के लिए भटका । फिर भी तुम्हारा प्रेम सदा मेरे साथ रहा और यह सदा बहुत सशक्त रहा । कुछ भी इसके विरुद्ध सफल नहीं हुआ। जबकि मैंने बुराई पर भी नजर डाली, अच्छाई पर भी । अब तुम मर गई हो तो मैं भी अवश्य तुम्हारे साथ मर जाऊँगा ।"

आत्मा ने उसे वहाँ से हटने को कहा, लेकिन उसने इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया। इतना सशक्त था उसका प्रेम। समुद्र और पास आ गया और उसे अपनी लहरों की चपेट में लेने लगा। जब उसे लगा कि अंत निकट आ रहा है तो उसने अपने पागल होंठों से मत्स्यकन्या के ठंडे होंठों का चुंबन लिया। उसके अंदर उसका दिल टूट गया । जब उसका दिल टूटा तो उसने महसूस किया कि उसका प्रेम कितना परिपूर्ण था। तब आत्मा को उसमें प्रवेश करने का रास्ता मिला और वह अंदर दाखिल हो गई। अब वह पहले की तरह उसके साथ एकाकार हो गई। तभी समुद्र ने युवा मछुआरे को अपनी लहरों से ढक लिया।

सुबह होने पर पादरी समुद्र को आशीर्वाद देने के लिए तट पर आया, क्योंकि वह अशांत रहा था। उसके साथ कुछ अन्य मठवासी, संगीतकार, मोमबत्तीधारक और धूपदानीवाले तथा बहुत से अन्य लोग भी थे।

जब पादरी तट पर पहुँचा तो उसने डूबे हुए मछुआरे को समुद्र की झाग में पड़ा पाया। छोटी मत्स्यकन्या का शरीर उसकी बाँहों में जकड़ा हुआ था । वह तेवर चढ़ाता हुआ पीछे हट गया । फिर जोर से चिल्लाकर बोला, "मैं समुद्र को या उसमें जो कुछ है, उसे आशीर्वाद नहीं दूँगा। सभी जलजीव शापित हों और उनसे संबंध रखनेवाले सब लोग भी शापित हों। जहाँ तक उसका सवाल है, जिसने प्रेम के प्रभु को भी भुला दिया था, और जो अपनी प्रेयसी के साथ यहाँ प्रभु के न्याय के चलते मरा पड़ा है, उसके और उसकी प्रेमिका के शरीर को ले जाकर धोबीघाट के कोने में दफन कर दो और उसपर किसी तरह का कोई निशान मत बनाओ। किसी को उनकी कब्र की जानकारी नहीं होनी चाहिए। क्योंकि वे अपने जीवनकाल में शापित थे और अपनी मृत्यु में भी शापित रहेंगे।"

लोगों ने पादरी के आदेश का पालन किया । धोबीघाट के कोने में, जहाँ कोई मधुर बूटी नहीं उगती, उन्होंने एक गहरा गड्ढा खोदकर मृतकों को उसमें गाड़ दिया।

जब तीसरा साल गुजरा तो एक पवित्र दिन पादरी प्रार्थनागृह में आया, ताकि लोगों को प्रभु के घाव दिखा सके और उन्हें ईश्वर के कोप के बारे में बता सके।

जब उसने अपना चोगा पहन लिया और अंदर आकर वेदी के सामने सिर झुका लिया तो उसने देखा कि वेदी अनजाने किस्म के फूलों से सजी थी, जो पहले कभी नहीं देखे गए। वे देखने में विचित्र थे । उनमें अद्भुत रंगीनी और सौंदर्य था। उनकी सुंदरता से वह परेशान हो गया और उसकी मीठी सुगंध उसके नथुनों में समा गई। उसे खुशी तो हुई, पर यह नहीं समझ पाया कि क्यों ?

जब उसने मंदिर के द्वार खोलकर उसमें स्थित प्रदर्शिका को सुगंधित कर लिया, और वहाँ आए लोगों को उसमें रखी पवित्र रोटिका दिखाकर उसे वापस लपेटकर रख दिया तो उसने लोगों को ईश्वर के कोप के बारे में बताने के इरादे से संबोधित करना आरंभ किया, लेकिन उन सफेद फूलों की सुंदरता से उसे परेशानी हो रही थी। उनकी मीठी सुगंध उसके नथुनों में घुस रही थी । उसके मुँह से कुछ और ही शब्द निकले और वह ईश्वर के कोप के बारे में नहीं बोला। वह उस ईश्वर के बारे में बोला, जिसका नाम प्रेम है । वह ऐसा क्यों बोला, यह उसे खुद भी पता नहीं चला।

जब उसने अपना उपदेश खत्म किया तो लोग रोने लगे । पादरी पूजा - सामग्रीवाले कक्ष में वापस चला गया। उसकी आँखों में आँसू थे। उपयाजक आकर उसका पादरी का पहनावा उतारने लगे। उन्होंने उसका श्वेत उत्तरीय, कमरबंद और स्कंधपट ले लिया, लेकिन वह इस तरह खड़ा रहा, जैसे कोई सपने में हो ।

जब पहनावा उतारने का काम पूरा हो गया तो उसने उनसे पूछा, "वेदी पर कौन से फूल थे और कहाँ से आए थे?"

उन्होंने जवाब में कहा, " वे कौन से फूल हैं, यह तो हम नहीं बता सकते, लेकिन वे धोबीघाट के एक कोने से लाए गए थे।” पादरी काँप उठा। वह अपने निवास पर आकर प्रार्थना करने लगा।

सुबह-सवेरे जबकि अभी पौ फटी ही थी, वह मठवासियों, संगीतकारों, मोमबत्तीधारकों, और धूपदानीवालों तथा बहुत से अन्य लोगों के साथ समुद्रतट पर आया । उसने वहाँ के हर जीव को आशीर्वाद दिया । वन्यक्षेत्र में नर्तन करनेवाले नन्हे जीवों को भी । पत्तियों में से झाँकते चमकीली आँखोंवाले जीवों को भी । ईश्वर के संसार की प्रत्येक वस्तु को उसने आशीर्वाद दिया। लोग आश्चर्य और खुशी से भर उठे । उसके बाद कभी भी धोबीघाट के उस कोने में किसी तरह के फूल नहीं खिले । वह जमीन पहले की तरह बंजर ही रही । फिर कभी जलजीव उस छोटी खाड़ी में नहीं आए, . जैसा कि उनका स्वभाव था । वे समुद्र के किसी अन्य भाग में चले गए।

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