पिता (कहानी) : गाय दी मोपासां
The Father (French Story) : Guy de Maupassant
वह बतीन्यो में रहता था और सरकारी शिक्षा के दफ्तर में क्लर्क की नौकरी करता था । उसे रोज सुबह मध्य पेरिस के लिए बस पकड़नी होती थी । बस में उसके सामने एक लड़की बैठती थी , जिससे उसे प्यार हो गया ।
वह लड़की भी रोज उसी समय दुकान जाती थी , जहाँ वह नौकरी करती थी । वह एक छोटी सी , गहरे भूरे बालों वाली लड़की थी । वह दबे हुए रंग वाली उन लड़कियों में से थी, जिनकी आँखों का रंग इतना गाढ़ा होता है कि वे धब्बों जैसी दिखती हैं और उनके जिस्म की रंगत हाथी दाँत जैसी होती है । वह उसे हमेशा उसी सड़क के मोड़ पर आते देखता था । अकसर ही वह दौड़कर भरी बस को पकड़ती थी और घोड़ों के थमने से पहले ही वह उछलकर सीड़ियों पर चढ़ जाती थी , फिर अंदर जाकर वह थोड़ी हाँफती हुई सी बैठ जाती थी और इधर - उधर देखने लगती थी ।
पहली बार जब फ्रांस्वा तेस्ये ने उसे देखा तो उसे लगा था कि उसका चेहरा बेहद आनंदित करनेवाला है । कभी कभी किसी पुरुष को ऐसी महिला मिल जाती है, जिसे वह बिना जाने ही एकदम पागलों की तरह अपनी बाँहों में भर लेने की हसरत करता है । वह लड़की मन में दबी उसकी इच्छाओं का , उसकी गोपनीय आशाओं का , प्यार के उस आदर्श का जवाब थी, जिसे व्यक्ति अनजाने ही अपने दिल की गहराइयों में संजोकर रखता है ।
वह उसे एकटक देखता रहता था और चाहकर भी उस पर से अपनी निगाह नहीं हटा पाता था । वह उसके इस तरह देखने से उलझन में पड़ जाती थी और शरमा जाती थी । यह देखकर वह अपनी नजरें उस पर से हटाने की कोशिश करता था , लेकिन न चाहते हुए भी वह हर क्षण बार - बार उस पर अपनी नजरें गड़ा देता था । हालाँकि वह किसी और दिशा में देखने की कोशिश करता था । कुछ ही दिनों में वे एक - दूसरे को जान गए, जबकि उनमें कोई बात नहीं हुई थी । जब बस पूरी भर जाती थी तो वह उसे अपनी सीट दे देता था और खुद बाहर खड़ा हो जाता था , हालाँकि ऐसा करके उसे बड़ा मलाल होता था । अब तक वह इस हद पर आ चुकी थी कि हलका सा मुसकराकर उसका अभिवादन करने लगी थी । हालाँकि उसके देखने पर वह हमेशा अपनी नजरें झुका लेती थी , फिर भी इस तरह देखे जाने पर वह नाराजगी नहीं जताती थी ।
आखिर में उनमें बोलचाल शुरू हो गई । उनके बीच एक तरह की फटाफट अंतरंगता बन गई थी । यह आधेघंटे की हर दिन की अंतरंगता थी , जो फ्रांस्वा के लिए सचमुच उसकी जिंदगी के सबसे प्यारे आधे घंटों में से थे। बाकी सारे वक्त वह उसी के बारे में सोचता रहता था । दफ्तर में काम के लंबे घंटों के दौरान वह उसी को देखता रहता था , क्योंकि वह वहाँ न होती, फिर भी अडिग याद उसका पीछा करती और उसे सम्मोहित किए रहती थी , जो एक प्रियतमा की छवि हममें छोड़ देती है । उसे ऐसा लगता था कि उस छोटी सी लड़की को पूरा - का - पूरा पाना उसके लिए पागल कर देने वाली खुशी होगी, जो इनसानी समझ के लगभग परे होगी ।
अब हर सुबह वह उससे हाथ मिलाती थी और वह उस स्पर्श के अहसास को और उसकी छोटी- छोटी उँगलियों के कोमल दबाव की याद को अगले दिन तक के लिए सँजोकर रख लेता था । वह जैसे कल्पना करता था कि उसने इनकी छाप को अपनी त्वचा पर सँजो लिया है और बाकी सारे समय वह बस के इस छोटे से सफर के लिए आतुरता से प्रतीक्षा करता था , जबकि इतवार उसे दिल तोड़ने वाला दिन लगता था । बहरहाल, इसमें कोई शक नहीं था कि वह उससे प्यार करती थी , क्योंकि वसंत के मौसम में एक इतवार उसने वादा किया कि वह अगले दिन उसके साथ जाकर मेजन - लाफीत में लंच करेगी ।
वह रेलवे स्टेशन पहले ही पहुँच गई, जिससे फ्रांस्वा को ताज्जुब भी हुआ, लेकिन वह बोली, जाने से पहले मैं तुमसे बात करना चाहती हूँ । हमारे पास बीस मिनट हैं और मैं तुमसे जो कहना चाहती हूँ, उसके लिए ये काफी से ज्यादा हैं ।
उसकी बाँह पर झुकी वह काँप रही थी और नजरें झुकाए हुए थी । उसके गाल पीले पड़ रहे थे, लेकिन उसने कहना जारी रखा – “ मैं नहीं चाहती कि तुम मुझसे धोखा खाओ और मैं तुम्हारे साथ वहाँ तब तक नहीं जाऊँगी, जब तक तुम यह कसम नहीं खाते कि तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे — कुछ भी नहीं करोगे, जो गलत है । "
अचानक वह पॉपी के फूल जैसी लाल हो गई और आगे कुछ नहीं बोली । उसकी समझ में नहीं आया कि क्या जवाब दे, क्योंकि वह खुश भी था और निराश भी । अपने अंतरमन में तो शायद वह यही चाहता था कि ऐसा ही होना चाहिए, फिर भी रात - भर वह ऐसी उम्मीदें बाँधता रहा था कि उसकी नसों में गरम खून दौड़ने लगा था । यह सच था कि अगर उसे पता चलता कि उसका आचरण ठीक नहीं था तो वह उससे कम प्यार करता, लेकिन तब यह उसके लिए बहुत आकर्षक, बहुत मजेदार होता! उसने वे स्वार्थी आकलन कर डाले , जो पुरुष प्यार के मामलों में आम तौर पर करते हैं ।
जब वह कुछ नहीं बोला तो वह उत्तेजित स्वर और आँखों में आँसू भरकर फिर बोलने लगी, “ अगर तुम मुझे पूरी इज्जत देने का वादा नहीं करोगे तो मैं घर लौट जाऊँगी। "
तब उसने कोमलता से उसका हाथ दबाया और जवाब दिया , मैं तुमसे वादा करता हूँ कि मैं बस वही करूँगा , जो तुम्हें पसंद है । उसके मन को जैसे तसल्ली मिली, उसने मुसकराते हुए पूछा, तुम सच कह रहे हो ? उसने लड़की की आँखों में आँखें डालकर देखा और जवाब दिया, " मैं कसम खाता हूँ । "
" अब तुम टिकट ले सकते हो । " उसने कहा ।
सफर के दौरान वे बात भी नहीं कर पाए , क्योंकि डिब्बा भरा था और जब वे मेजन- लाफीत पहुँचे तो सेन नदी की तरफ चले गए । सूरज नदी, पत्तियों और घास के मैदान पर भरपूर चमक रहा था और जैसे उसने उनमें अपनी चमक भर दी हो । वे नदी के किनारे -किनारे हाथ में हाथ डालकर चल दिए । वे तट के पास तैरती छोटी - छोटी मछलियों के झुंडों को देखते जा रहे थे। वे खुशी से चहक रहे थे, मानो दिल की उमंग ने उन्हें धरती से ऊपर उठा दिया था ।
फिर वह बोली, "कितनी मूर्ख समझा होगा तुमने मुझे! "
" क्यों ? " उसने पूछा ।
" कि मैं ऐसे बिलकुल अकेली तुम्हारे साथ चली आई । "
"बिलकुल नहीं, यह तो बिलकुल स्वाभाविक है । "
" नहीं- नहीं, मेरे लिए यह स्वाभाविक नहीं है, क्योंकि मैं कोई गलती नहीं करना चाहती , लेकिन लड़कियाँ इसी तरह गिरती हैं । काश! तुम्हें पता होता कि यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है, हर दिन वही बात , महीने के हर दिन और साल के हर महीने । मैं माँ के साथ बिलकुल अकेली रहती हूँ और उन्होंने बहुत मुसीबत झेली है, जिस वजह से वह बहुत खुशमिजाज नहीं हैं । मैं भरसक कोशिश करती हूँ और सबकुछ के बावजूद हँसने की कोशिश करती हूँ , लेकिन मैं हर बार कामयाब नहीं होती, फिर भी मैंने यहाँ आकर गलती की , हालाँकि तुम तो किसी हाल में भी दुखी नहीं होगे । "
जवाब में फ्रांस्वा ने बड़े प्यार से उसके कान पर चुंबन जड़ दिया, जो उसके सबसे नजदीक था । लेकिन वह चौंककर एकदम से उससे दूर हट गई और अचानक गुस्सा होकर बोली, " अच्छा! फ्रांस्वा जनाब, मुझसे कसम खाने के बाद भी ! " और वे वापस मेजन- लाफीत चले गए ।
उन्होंने नदी के किनारे चिनार के चार बड़े- बड़े पेड़ों के नीचे दुबके एक होटल पेटी हावर में लंच लिया। हवा , गरमी, सफेद सुरा की छोटी बोतल और एक साथ इतने नजदीक होने के अहसास ने उन्हें लाल और उत्पीड़न की अनुभूति से खामोश कर दिया । लेकिन कॉफी के बाद उनकी उत्फुल्लता लौट आई और सेन पार करने के बाद , वे उसके किनारे -किनारे ला फ्रेत गाँव की ओर चल दिए । अचानक उसने पूछा, " तुम्हारा नाम क्या है? "
" लुईज । "
" लुईज । " उसने दोहराया और आगे कुछ नहीं कहा । लंबा मोड़ लेकर बहती नदी दूर सफेद मकानों की कतार को नहला रही थी और पानी में उनका अक्स पड़ रहा था । लड़की ने गुलबहार के फूल चुनकर उनका बड़ा सा गुच्छा बना लिया था , जबकि वह खूब दम लगाकर गा रहा था । वह उस जवान घोड़े की तरह उन्मत्त था , जिसे चरागाह में छोड़ दिया गया हो । उनके बाई ओर लताओं से ढकी एक ढलान नदी का अनुसरण कर रही थी । अचानक फ्रांस्वा आश्चर्य से ठिठककर खड़ा हो गया ।
" अरे ! उधर देखो! " वह बोला ।
लताएँ वहाँ जाकर खत्म हो गई हैं और पूरी ढलान को नीलक ( लाइलैक ) की झाड़ियों ने ढक लिया है, जिन पर फूल खिले हैं । यह बैंगनी रंग का कानन है! एक तरह का बड़ा सा गलीचा धरती पर बिछा हुआ था और दो मील से भी ज्यादा दूर गाँव तक पहुँच रहा था । वह भी चकित और आनंदित होकर खड़ी हो गई और बुदबुदाई - " हाय ! कितना खूबसूरत है! " एक चरागाह को पार कर वे उस विलक्षण नीची पहाड़ी की ओर बढ़ चले, जो हर बरस सारे नीलक के फूल उगाती है, जो फूल वालों के ठेलों पर सारे पेरिस में बेचे जाते हैं ।
एक सँकरा रास्ता पेड़ों के नीचे जा रहा था , वे उसी पर चल दिए और जब वे एक छोटे से सपाट मैदान पर पहुँचे तो वहीं बैठ गए ।
झुंड - की - झुंड मक्खियाँ उनके इर्द-गिर्द लगातार गुंजन करती भिनभिनाती हुई मँडरा रही थीं और सूरज बिलकुल शांत । दिन का चमकीला सूरज उजली ढलानों के ऊपर चमक रहा था और फूलों के उस कानन से एक दमदार गंध, सुवास की एक लहर , फूलों की साँस उनकी तरफ आ रही थी ।
दूर कहीं चर्च की घड़ी का घंटा बजा । उन्होंने धीरे से आलिंगन किया, एक - दूसरे को और पास चिपटा लिया । उस चुंबन के अलावा और किसी भी बात से अनजान वे घास पर लेट गए थे। लड़की ने अपनी आँखें बंद कर ली थीं और उसे अपनी बाँहों में जकड़कर बिना सोचे उसे अपने से चिपटा लिया था । उसकी सूझ- बूझ बिफर गई थी और सिर से पाँव तक वह वासना भरी अपेक्षा में डूब गई थी । उसने अपने आपको पूर्णतः अर्पित कर दिया, उसे पता भी नहीं रहा कि उसने अपने आपको उसे दे दिया है , लेकिन जल्दी ही वह होश में लौट आई और उसे एक बड़े दुर्भाग्य का अहसास हुआ । उसने अपना चेहरा अपने हाथों में छिपा लिया और दुःख के मारे रोने-सिसकने लगी ।
लड़के ने उसे तसल्ली देने की कोशिश की , लेकिन वह वहाँ से चल देना चाहती थी, लौट जाना चाहती थी और फौरन घर पहुँचना चाहती थी । तेज - तेज कदमों से चलती हुई वह यही कहती रही, " हे भगवान् ! हे भगवान् ! "
वह उससे बोला, “ लुईज! लुईज! मेहरबानी करके यहाँ रुक जाओ। " ।
अब उसके गाल लाल थे और आँखें सूनी थीं और जैसे ही वे पेरिस के रेलवे स्टेशन पहुँचे, वह उसे छोड़कर चली गई, गुड बाई भी नहीं कहा ।
जब वह अगले दिन उससे बस में मिला तो वह उसे बदली- बदली और पहले से दुबली लगी । उसने उससे कहा,
" मैं तुमसे बात करना चाहता हूँ; हम बड़ी सड़क पर उतर जाएँगे । "
जैसे ही वे खडंजे पर आए, वह बोली, " हमें एक - दूसरे को अलविदा कहना होगा; कल जो कुछ भी हुआ , उसके बाद मैं तुमसे दोबारा नहीं मिल सकती । "
" लेकिन क्यों ? " उसने पूछा ।
" क्योंकि मैं नहीं मिल सकती; मैंने गुनाह किया है और मैं उसे दोहराना नहीं चाहती । "
फिर वह उसके आगे गिड़गिड़ाया । वह उसकी चाहत में तड़प रहा था, प्यार की रातों की पूरी आजादी में उसे पूरा - का -पूरा पाने की ख्वाहिश में पागल हो रहा था, लेकिन उसने दृढ़ता से जवाब दिया - " नहीं , मैं नहीं मिल सकती ; नहीं मिल सकती मैं । "
वह तो और भी उत्तेजित हो गया । उसने लड़की से शादी करने का भी वादा किया, लेकिन वह बोली, " नहीं । "
वह उसे छोड़कर चली गई । उसने उसे नहीं देखा । वह उससे मिलने की जुगत भी नहीं कर पाया , क्योंकि उसे उसका पता भी नहीं मालूम था । उसने सोच लिया कि वह उसे हमेशा के लिए खो चुका है, लेकिन फिर नौवें दिन उसके दरवाजे की घंटी बजी । जब उसने दरवाजा खोला तो वह वहाँ खड़ी थी । वह एकदम से उसकी बाँहों में आ गई और उसने आगे कोई विरोध नहीं किया, फिर तीन महीनों तक वह उसकी होकर रही । वह उससे ऊबने ही लगा था कि उसने उसे वह गोपनीय खबर दी , जो किसी औरत के लिए सबसे अधिक कीमत रखती है । उसके बाद तो उसके मन में बस एक ही खयाल और एक ही इच्छा रही कि उस लड़की से किसी भी कीमत पर पीछा छुड़ाए , लेकिन अब वह ऐसा नहीं कर सका, क्योंकि उसकी समझ में ही नहीं आया कि कैसे शुरुआत करे या क्या कहे तो चिंता में भरकर उसने एक निर्णायक कदम उठाया । एक रात उसने अपना ठिकाना बदला और गायब हो गया ।
यह झटका इतना जबरदस्त था कि उसने उस आदमी को नहीं ढूँढ़ा, जो उसे छोड़कर भाग गया था , बल्कि अपनी माँ के घुटनों पर गिर पड़ी। उसने माँ को अपनी बदनसीबी के बारे में बता दिया और कुछ महीनों बाद उसने एक लड़के को जन्म दिया ।
बरस बीतते गए । फ्रांस्वा तेस्ये बूढ़ा हो चला था , लेकिन उसकी जिंदगी में कुछ नहीं बदला । वह नौकरशाहों की वही नीरस , एक ही ढर्रे की जिंदगी जीता रहा , जिसमें न कोई आशाएँ थीं और न कोई अपेक्षाएँ । रोज वह उसी समय उठता , उन्हीं सड़कों से जाता , उसी दरबार के पास से होकर उसी दरवाजे से घुसता, उसी दफ्तर में जाता , उसी कुरसी पर बैठता और वही काम करता था । वह दुनिया में अकेला था । दिन में अपने विभिन्न सहकर्मियों के बीच अकेला और रात में अपने कुँआरों के ठिकाने पर अकेला । वह अपने बुढ़ापे के लिए हर महीने सौ फ्रैंक बचाकर रखता था ।
हर इतवार वह ( पेरिस के मशहूर शानदार स्थल) शां जे ली जे जाता और वहाँ शानदार लोगों , गाड़ियों और सुंदर औरतों को निहारता था । अगले दिन अपने किसी सहकर्मी को बताता था , कल बोई द ब्लोन से लौटने वाली गाडियों का नजारा बहुत बढिया था । लेकिन एक इतवार की सुबह वह पारे मोंको में चला गया, जहाँ माँएँ और दाइयाँ, टहल -मार्गों के किनारे बैठीं बच्चों को खेलते देख रही थीं । अचानक वह चौंक गया । एक औरत दो बच्चों को हाथ से पकड़े हुए वहाँ से निकली, जिनमें करीब दस बरस का एक छोटा सा लड़का था और चार बरस की एक नन्हीं लड़की, यह वही थी ।
वह सौ गज और चहलकदमी करता रहा और फिर भावनाओं के वेग से अवाक् धम्म से एक कुरसी पर बैठ गया । वह उसे पहचान नहीं पाई थी । इसलिए उसे एक बार फिर से देखने की गरज से वह वापस आया । वह अब बैठी हुई थी । लड़का उसकी बगल में बिलकुल चुपचाप खड़ा था , जबकि लड़की रेत के घरौंदे बना रही थी । वही थी ; यह बिलकुल वही थी , लेकिन वह एक भद्र महिला की तरह गंभीर दिख रही थी । वह सादे कपड़े पहने थी और संयत और गरिमाशील दिख रही थी । उसने थोड़ी दूर से उसे देखा, क्योंकि पास जाने की उसकी हिम्मत नहीं हो रही थी , तभी उस लड़के ने अपना सिर उठाया और फ्रांस्वा तेस्ये जैसे काँप गया । यह उसका अपना बेटा था; इसमें कोई शक हो ही नहीं सकता था । जब उसने उसे देखा तो उसे लगा कि बरसों पहले लिये गए एक फोटोग्राफ में वह जैसा दिखता था , वह नन्हा लड़का वैसा ही है । उसमें वह अपने आपको पहचान पा रहा था । वह एक पेड़ के पीछे छिपा रहा और उसके जाने का इंतजार करता रहा, ताकि उसका पीछा कर सके ।
उस रात वह सो नहीं पाया । उस बच्चे का खयाल उसे जोरों से सताता रहा । उसका बेटा! ओह! काश ! उसे पता होता , पक्का पता होता , लेकिन वह क्या कर लेता ? फिर भी, वह उस मकान में गया , जहाँ वह पहले रहती थी और उसके बारे में पूछा । उसे पता चला कि एक पड़ोसी, सख्त नैतिक उसूलों वाले एक इज्जतदार आदमी को उसकी दुखद स्थिति पर तरस आ गया था , उसने उससे शादी कर ली थी । उसे पता था । फिर भी उसने उससे शादी की थी और उस बच्चे को , फ्रांस्वा तेस्ये के बच्चे को भी अपना लिया था ।
वह हर इतवार पारे मोंको में जाता रहा , क्योंकि तब वह हमेशा उसे देखता था और हर बार उसमें पागलों की सी एक अदम्य हसरत उठती थी कि अपने बेटे को अपनी बाँहों में ले , उस पर चंबनों की बौछार कर दे और उसे चरा ले, उसे ले जाए ।
उसका अभागा अकेलापन उसे बेहद परेशान करता था , क्योंकि वह एक कुँआरा बुजुर्ग था और उसकी देख -रेख करने वाला कोई नहीं था । वह अत्याचारी मानसिक यातना से भी परेशान था । वह एक पिता की उस कोमल भावना से भी त्रस्त था , जो ग्लानि , ललक और ईर्ष्या से उपजी थी और अपने खुद के बच्चों को प्यार करने की उस जरूरत से भी , जो कुदरत ने हम सबमें रोपी है । इस तरह आखिर में उसने हताशा भरी एक कोशिश करने का पक्का मन बना लिया । जब वह पार्क में घुसी तो वह उसके पास पहुँच गया और रास्ते के बीचोबीच खड़े होकर बोला, " मुझे नहीं पहचानतीं तुम ? " वह पीला पड़ गया था और उसके होंठ काँप रहे थे ।
उसने आँख उठाकर उसे देखा । उसके मुँह से भय और आतंक की एक चीख निकली और दोनों बच्चों का हाथ पकड़कर उन्हें घसीटती हुई वहाँ से भाग खड़ी हुई, जबकि वह घर चला आया और फूट - फूटकर रोने लगा ।
महीनों बीत गए । वह उसे फिर नहीं देख पाया । वह रात -दिन पीड़ित रहता , क्योंकि वह अपने पैतृक प्रेम का शिकार हो गया था । अगर वह अपने बेटे को चूम भर पाता तो खुशी से मर गया होता । वह खून भी कर सकता था , कोई भी काम कर सकता था , किसी भी खतरे का सामना कर सकता था , कोई भी दुस्साहस कर सकता था । उसने उसे पत्र लिखा, लेकिन उसने जवाब नहीं दिया और करीब बीस खत उसे लिखने के बाद उसकी समझ में आ गया कि उसका संकल्प बदलने की कोई उम्मीद नहीं है, तब उसने उसके पति को पत्र लिखने की हताशा भरा संकल्प किया । जरूरत पड़ी तो वह रिवॉल्वर से निकली गोली खाने को भी बिलकुल तैयार था । पत्र में उसने केवल चंद पंक्तियाँलिखीं, जो इस प्रकार हैं -
महोदय ,
आप मेरे नाम से आतंकित होंगे, लेकिन मैं इतना दुखी हूँ , दुःख में इतना डूबा हुआ हूँ कि मेरी इकलौती उम्मीद आप में है, इसलिए मैं आपसे यह गुजारिश करने की हिम्मत कर रहा हूँ कि मुझे केवल पाँच मिनट साक्षात्कार का मौका दें ।
सादर, इत्यादि
अगले दिन ही उसे जवाब मिल गया -
कल मंगलवार, पाँच बजे आपका इंतजार रहेगा ।
सीढ़ियाँ चढ़ते समय फ्रांस्वा तेस्ये का दिल इतने जोर- जोर से धड़क रहा था कि उसे कई बार रुकना पड़ा । उसके सीने में एक निरानंद और जबरदस्त शोर हो रहा था, जैसे कोई जानवर कुलाँचे मार रहा हो । वह बड़ी मुश्किल से साँस ले पा रहा था और उसे रेलिंग को पकड़ना पड़ रहा था कि वहीं गिर ही न पड़े ।
तीसरी मंजिल पर पहुँचकर उसने घंटी बजाई और जब एक नौकरानी ने दरवाजा खोला तो , उसने पूछा, " क्या फ्लामेल साहब यहाँ रहते हैं ? "
" जी साहब, मेहरबानी करके अंदर आ जाइए । "
नौकरानी उसे बैठक में ले गई । वह अकेला था । वह इस तरह परेशान होकर इंतजार करने लगा, जैसे किसी मुसीबत के बीच में हो । आखिर में एक दरवाजा खुला और एक आदमी अंदर आया । वह लंबा, गंभीर और थोड़ा स्थूलकाय था ; वह एक काला लंबा कोट पहने था । उसने हाथ से एक कुरसी की तरह इशारा किया । फ्रांस्वा तेस्ये बैठ गया और हाँफते हुए बोला, " जनाब- जनाब! पता नहीं आपको मेरा नाम पता है या नहीं ? "
फ्लामेल ने उसे टोकते हुए कहा, " आपको बताने की जरूरत नहीं है जनाब; मुझे पता है । मेरी पत्नी ने मुझे आपके बारे में बता दिया है । "
वह एक भले आदमी के गरिमापूर्ण लहजे में बोल रहा था , जो गंभीर होना चाहता है; उसमें एक इज्जतदार आदमी की सामान्य सी सादगी थी । फ्रांस्वा तेस्ये ने अपनी बात जारी रखी — “ देखिए जनाब, मैं यह कहना चाहता हूँ । मैं दुःख, ग्लानि , शर्म से मरा जा रहा हूँ । मैं एक बार , केवल एक बार बच्चे को चूमना चाहता हूँ । " ।
फ्लामेल ने उठकर घंटी बजाई और जब नौकरानी आई तो उसने कहा, " लुई को यहाँ लाओगी ? " वह निकल गई तो वे चुपचाप आमने- सामने बैठे रहे, उनके पास एक - दूसरे से कहने को कुछ नहीं था । वे इंतजार करते रहे , तभी अचानक दस बरस का एक छोटा सा लड़का दौड़ता हुआ कमरे में आया और जल्दी से उस आदमी के पास पहुँचा, जिसे वह अपना पिता मानता था , लेकिन एक अजनबी को देखकर वह रुक गया । फ्लामेल ने उसे चूम लिया और कहा, " अब जाओ और उन साहब को पप्पी दो बच्चे! "
वह बच्चा बड़े सलीके से तेस्ये के पास गया और उसे देखने लगा ।
फ्रांस्वा तेस्ये उठकर खड़ा हो गया था । उसने अपने बेटे को देखा तो उसका हैट नीचेगिर गया और वह खुद भी गिरने को हो रहा था , जबकि फ्लामेल एक नाजुक अहसास में वहाँ से हट गया था और खिड़की से बाहर देखने लगा था ।
बच्चा आश्चर्य में रुका रहा, लेकिन उसने हैट उठाया और अजनबी को पकड़ा दिया । तब फ्रांस्वा ने बच्चे को उठाया और उसके पूरे चेहरे को , उसकी आँखों को , उसके गालों को , उसके मुँह को , उसके बालों को चूमने लगा । बच्चा चुंबनों की उस बौछार से डर गया और उनसे बचने की कोशिश करने लगा । उसने अपना सिर घुमा लिया और अपने छोटे- छोटे हाथों से उसने आदमी के चेहरे को झटके से दूर हटा दिया ।
अचानक फ्रांस्वा तेस्ये ने उसे नीचे उतार दिया और रोते हुए गुड बाई ! गुड बाई! कहता हुआ कमरे से बाहर भागा, मानो वह कोई चोर हो ।