हाथी (रूसी कहानी) : अलेक्सांद्र कुप्रिन
The Elephant (Russian Story in Hindi) : Aleksandr Kuprin
१
नन्ही बच्ची बीमार है। हर रोज डाक्टर मिख़ाईल पेत्रोविच उसे देखने आते हैं। वह डाक्टर को बहुत दिनों से जानती है। कभी-कभी डाक्टर अपने साथ दो और डाक्टरों को भी लाते हैं। उन्हें वह नहीं जानती है। वे नन्ही लड़की को कभी पीठ के बल लिटाते हैं, कभी पेट के बल, फिर उसके शरीर पर कान लगाकर कुछ सुनते हैं, पलकें उठाकर आंखों में देखते हैं। और यह सब करते हुए वे मानो गहरी सांसें भरते हैं। उनके चेहरे सख्त होते हैं और वे ऐसी भाषा में बातचीत करते हैं, जिसे नन्ही बच्ची नहीं समझती है।
इसके बाद वे नन्ही बच्ची के कमरे में से बैठक में जाते हैं, वहां मां उनका इंतजार कर रही होती हैं। ऊंचे कद का, सफ़ेद बालों वाला डाक्टर सुनहरा चश्मा पहने होता है। वही सबसे बड़ा डाक्टर है। वह बड़ी गम्भीरता से मां को बहुत देर तक कुछ बताता रहता है। दरवाजा बंद नहीं किया होता, सो नन्ही बच्ची अपने बिस्तर से सब कुछ देखती और सुनती रहती है। वह उनकी बहुत सी बातें नहीं समझती, लेकिन उसे पता है कि बातचीत उसी के बारे में हो रही है। मां बड़ी-बड़ी, थकी हुई और रुआँसी लाल आंखों से डाक्टर को देखती हैं। विदा लेते समय बड़े डाक्टर ऊंची आवाज में कहते हैं :
"सबसे बड़ी बात, उसे उदास मत होने दीजिये। उसके सारे नखरे पूरे करते रहिये। "
"पर, डाक्टर, वह तो कुछ भी नहीं चाहती !”
"मैं क्या बताऊं... आप ही कुछ याद कीजिये । बीमारी से पहले उसे क्या अच्छा लगता था - कोई खास खिलौने... कोई मिठाई..."
"नहीं, नहीं, डाक्टर, वह कुछ भी नहीं मांगती... "
“खैर, किसी तरह उसका मन बहलाने की कोशिश कीजिये... किसी भी तरह, किसी भी चीज से...मैं आपसे पक्का वायदा करता हूं, अगर आप उसे किसी तरह से हंसा पायें, उसे खुश कर पायें, तो यह सबसे बढ़िया दवा होगी। आप समझती क्यों नहीं, आपकी बच्ची को कोई बीमारी नहीं है, वह बस उदास है।"
२
"प्यारी नाद्या, मेरी प्यारी बेटी, " मां कहती हैं, "तू क्या चाहती है?"
"कुछ नहीं, मां, किसी चीज़ के लिए मेरा मन नहीं होता । "
"ला, मैं तेरे बिस्तर पर तेरी सारी गुड़ियों को बिठा देती हूं। हम छोटी-छोटी कुर्सियां, मेज, सोफ़ा और टी-सेट रख देते हैं। गुड़ियां बैठकर चाय पियेंगी और गपशप लड़ायेंगी। "
"शुक्रिया, मां... मेरा जी नहीं करता... किसी चीज को मन नहीं..."
“ठीक है, बेटी, ठीक है। गुड़ियां न सही। बोल, कात्या या जेन्या को बुला दूं? तू तो उन्हें बहुत प्यार करती है, न।"
"नहीं, मां, नहीं । मैं कुछ नहीं चाहती । बिल्कुल किसी भी चीज को मन नहीं है !"
"अच्छा, तो तुझे चाकलेट ला देती हूं ?”
नन्ही बच्ची कोई जवाब नहीं देती है और अपनी अडोल, उदास आंखों से छत को निहारती रहती है। उसे कहीं भी दर्द नहीं है, बुखार भी नहीं है। लेकिन वह दिन पर दिन दुबली और कमजोर होती जा रही है। उसके साथ चाहे जो भी करें, उसके लिए सब बराबर है। उसे कुछ नहीं चाहिए। और इसी तरह वह शांत, म्लान सी सारे सारे दिन, सारी-सारी रातें लेटी रहती है। कभी-कभी उसे आधेक घंटे के लिए झपकी आ जाती है, किंतु नींद में भी उसे शरद ऋतु की वर्षा की तरह भीगा भीगा, उकता देने वाला, बहुत लंबा सा सपना दिखाई देता है।
जब नन्ही बच्ची के कमरे में से बैठक का दरवाजा खुला होता है और बैठक में से पापा के काम करने के कमरे का दरवाजा भी, तो वह पापा को देख पाती है। पापा तेज कदमों से कमरे में चक्कर लगाते रहते हैं और सिगरेट पीते रहते हैं। कभी-कभी वह बच्ची के कमरे में आते हैं, बिस्तर के किनारे पर बैठते हैं और नाद्या के पैर सहलाते हैं। फिर अचानक खड़े हो जाते हैं और खिड़की के पास चले जाते हैं। वह सड़क की ओर देखते हुए कुछ गुनगुनाते हैं, किंतु उस समय उनके कंधे हिल रहे होते हैं। फिर जल्दी से रूमाल को एक आंख से छुआते हैं, फिर दूसरी से, और मानो गुस्से से अपने कमरे को लौट जाते हैं। वहां वह फिर से एक कोने से दूसरे में चक्कर काटने लगते हैं और सिगरेट पीते रहते हैं...सिगरेट के धुएं से कमरा नीला पड़ जाता है।
३
एक दिन सुबह नन्ही बच्ची और दिनों से कुछ अधिक चुस्ती लिये उठती है। उसने सपने में कुछ देखा है, परंतु क्या देखा है, यह वह याद नहीं कर पा रही है। वह बड़े ध्यान से बहुत देर तक मां की आंखों में देखती रहती है।
"तुझे कुछ चाहिए, बेटी ?” मां पूछती है।
लेकिन नन्ही बच्ची को अचानक अपना सपना याद आ जाता है और वह मां के कान में फुसफुसाती है, मानो कोई रहस्य की बात कह रही हो:
"मां, मुझे... हाथी ला दोगी ? पर वह तस्वीर वाला नहीं... ला दोगी ?"
"क्यों नहीं, मेरी बिटिया, क्यों नहीं, जरूर ला दूंगी।"
मां पापा के कमरे में जाती हैं और पापा से कहती हैं कि नन्ही बच्ची हाथी मांग रही है। पापा फ़ौरन कोट और टोपी पहनते हैं और कहीं चले जाते हैं। आधे घंटे बाद वह एक क्रीमती सुंदर खिलौना लेकर लौटते हैं। यह एक स्लेटी रंग का बड़ा सा हाथी है। हाथी का सिर और सूंड हिलते हैं। उसकी पीठ पर लाल हौदा है, हौदे पर सुनहरा छत्र है और उसमें तीन नन्हे नन्हे, बित्ते भर के लोग बैठे हैं। लेकिन बच्ची खिलौने को भी वैसी ही उदासीन आंखों से देखती है, जैसे छत और दीवारों को, और मुरझायी आवाज में कहती है:
"नहीं, नहीं ! मुझे यह नहीं चाहिए। मुझे सचमुच का, जिंदा हाथी चाहिए । यह तो खिलौना है - इसमें जान थोड़े ही है।"
"जरा देख तो, नाद्या, " पापा कहते हैं। "अभी हम इसमें चाबी भरते हैं और यह एकदम सचमुच के हाथी जैसा हो जायेगा।"
पापा हाथी में चाबी भरते हैं और वह डोलता हुआ, सिर हिलाता हुआ धीरे-धीरे मेज पर चलने लगता है। बीच-बीच में वह सूंड़ झुलाता है। नन्ही लड़की को यह बिल्कुल भी नहीं भाता, उल्टे उसे उकताहट होती है। लेकिन पापा का दिल न दुखे, इसलिए वह धीमी आवाज में विनम्रता से कहती है:
"मेरे अच्छे पापा, बहुत-बहुत शुक्रिया । मेरे ख्याल में किसी के पास ऐसा खिलौना नहीं है। लेकिन ... पापा... याद है, एक बार तुमने कहा था कि मुझे जानवरों के तमाशे ले चलोगे, सचमुच का हाथी दिखाओगे... और फिर कभी नहीं ले गये।"
"पर, सुन तो, मेरी रानी बिटिया, हाथी यहां कैसे आ सकता है ? हाथी बहुत बड़ा है, छत जितना ऊंचा वह हमारे कमरों में नहीं आयेगा... और फिर मैं उसे लाऊंगा कहां से ?"
"मुझे इतना बड़ा हाथी नहीं चाहिए, पापा... तुम मुझे छोटा सा ही ला दो, पर सचमुच का... भले ही इतना छोटा सा, हाथी का बच्चा ला दो। "
"ओफ़्फ़ो, मेरी अच्छी बेटी, मैं खुशी-खुशी तेरे लिए सब कुछ करूंगा, पर हाथी मैं नहीं ला सकता। यह तो वैसे ही है, जैसे अगर कल तू मुझे कहे: पापा मुझे आसमान से सूरज ला दो।"
नन्ही बच्ची के चेहरे पर एक उदासी भरी मुस्कान आ जाती है।
"पापा, तुम भी कैसी बुद्ध जैसी बातें करते हो । भला मुझे पता नहीं कि सूरज को नहीं लाया जा सकता, क्योंकि उसमें आग है ! और चांद को भी नहीं लाया जा सकता। मुझे तो बस एक हाथी ला दो, छोटा सा सचमुच का हाथी ।"
और वह धीरे से आंखें बंद करके फुसफुसाती है:
"मैं थक गयी हूं, पापा... मुझे आराम करने दो..."
पापा झुंझलाहट में अपने बाल नोच लेते हैं और अपने कमरे में भागे चले जाते हैं। वहां वह कुछ देर तक तेज क़दमों से चक्कर काटते रहते हैं। फिर अचानक सुलगती सिगरेट फर्श पर फेंक देते हैं (मां हमेशा उन्हें इसके लिए डांटती हैं) और नौकरानी को आवाज देते हैं :
"ओल्गा ! कोट और टोपी लाओ !"
मां ड्योढ़ी में निकल आती हैं।
"साशा, तुम किधर चल दिये ?" वह पूछती हैं।
पापा कोट के बटन बंद करते हुए गहरी सांस लेते हैं।
"माशा, मैं खुद नहीं जानता, मैं कहां जा रहा हूं... पर लगता है, आज शाम तक मैं सचमुच ही यहां जिंदा हाथी ले आऊंगा।"
मां चिंतित नजरों से पापा को देखती हैं।
"तुम ठीक तो हो, न ? सिर में दर्द तो नहीं ? शायद आज रात को तुम्हें ठीक से नींद नहीं आयी ?"
"मैं बिल्कुल नहीं सोया, " पापा गुस्से से जवाब देते हैं। "तुम यही पूछना चाहती हो, न कि मैं ... कि मेरा सिर तो नहीं फिर गया ? अभी तक तो नहीं। अच्छा, मैं चला ! शाम तक सब पता चल जायेगा। "
और वह जोर से बाहर का दरवाजा बंद करके कहीं चले जाते हैं।
४
दो घंटे बाद पापा जानवरों के सर्कस में पहली कतार में बैठे हैं और सधे हुए जानवरों का तमाशा देख रहे हैं। मालिक के इशारों पर जानवर तरह-तरह के करतब दिखाते हैं। होशियार कुत्ते छलांगें लगाते हैं, कलाबाजियां खाते हैं, बाजे के साथ गाते, नाचते हैं और " पढ़े-लिखे " कुत्ते गत्ते के बड़े-बड़े अक्षरों से शब्द बनाते हैं। बंदरियों ने लाल घघरियां पहन रखी हैं, और बंदर नीली पतलूनें पहने हुए हैं। वे रस्सी पर चलते हैं और बड़े से कुत्ते पर सवारी करते हैं। बड़े-बड़े भूरे बबर शेर जलते हुए घेरों में से छलांगें लगाते हैं। बेढब सील पिस्तौल दागता है। आखिर में तीन हाथियों को लाया जाता है। एक बहुत ही बड़ा है और दूसरे दो छोटे बौने से हैं, फिर भी वे घोड़ों से तो ऊंचे ही हैं। यह देखकर तो अचम्भा ही होता है कि ये विशाल जानवर, जो देखने में बेडौल और भारी-भरकम हैं, ऐसे-ऐसे मुश्किल करतब दिखाते हैं, जो किसी फुर्तीले आदमी के बस की भी बात नहीं है। सबसे बड़े हाथी की तो बात ही न पूछो, वह पहले अपने पिछले पैरों पर खड़ा होता है, फिर बैठ जाता है और फिर सिर के बल खड़ा होकर पैरों को ऊपर उठा लेता है। वह लकड़ी की बोतलों पर चलता है, लुढ़कते गोल पीपे पर चलता है, गते की बड़ी सी किताब के पन्नों को सूंड से पलटता है और अंत में वह मेज पर बैठता है और नैपकिन बंधवाकर तहजीबदार बच्चे की तरह खाना खाता है। तमाशा खत्म होता है। दर्शक उठकर चले जाते हैं। नाद्या के पापा सर्कस के मालिक मोटे जर्मन के पास जाते हैं। मालिक लकड़ी के पट्टों की नीची सी दीवार के दूसरी तरफ़ खड़ा है। उसके मुंह में बड़ा सा काला सिगार है।
नाद्या के पापा उसे कहते हैं:
"माफ़ कीजिये ! मैं आपसे एक विनती करना चाहता हूं। क्या आप थोड़ी देर के लिए अपने हाथी को मेरे घर भेज सकते हैं?"
जर्मन आश्चर्य से आंखें फाड़ लेता है और मुंह भी, जिसमें से उसका सिगार जमीन पर गिर पड़ता है। वह कांखते हुए झुकता है, सिगार उठाता है, उसे मुंह में लगा लेता है और तब जाकर पूछता है:
"भेज दूं ? हाथी को ? आपके घर ? मैं कुछ समझा नहीं।"
जर्मन की आंखों से साफ़ जाहिर होता है कि वह भी यह पूछना चाहता है कि कहीं नाद्या के पापा के सिर में दर्द तो नहीं... पर पापा जल्दी-जल्दी समझाते हैं कि बात क्या है: उनकी इकलौती बेटी नाद्या को कोई अजीब सी बीमारी लग गयी है, जिसे डाक्टर भी ठीक से नहीं समझ पा रहे हैं। वह महीने भर से चारपाई पर लेटी हुई है, दिन पर दिन पतली और कमजोर होती जा रही है। उसे किसी चीज़ में भी रुचि नहीं है। वह ऊब रही है और धीरे-धीरे मुरझा रही है। डाक्टरों ने उसका दिल बहलाने को कहा है, पर उसे कुछ भी तो अच्छा नहीं लगता। डाक्टर कहते हैं, उसकी सभी इच्छाएं पूरी करो, पर उसकी कोई इच्छा ही नहीं है। आज उसे जीता जागता हाथी देखने की इच्छा हुई है। क्या उसकी यह बात किसी भी तरह पूरी नहीं की जा सकती ?
और वह जर्मन के कोट का बटन पकड़कर कांपती हुई आवाज में कहते हैं:
"देखिये न... मुझे पक्की उम्मीद है कि मेरी बेटी ठीक हो जायेगी। लेकिन ... लेकिन ... कहीं उसकी बीमारी ठीक न हुई... और अचानक बच्ची की मौत हो गई, तो ?.. जरा सोचिये तो सही: मुझे जीवन भर चैन नहीं मिलेगा कि मैं अपनी बेटी की आखिरी इच्छा पूरी न कर सका, उसकी सबसे आखिरी इच्छा ! .."
जर्मन नाक भौंह सिकोड़ता है और कुछ सोचता हुआ छोटी उंगली से बायीं भौंह को खुजलाता है। आखिर में वह पूछता है:
"हूं... आपका बेटी कितने साल का है ?"
"छह साल की। "
"हूं... मेरा बेटी लीजा भी छह साल का है... पर, जानता है, आपको बहुत पैसा देना पड़ेगा। हाथी को रात को ले जाना होगा और अगली रात को ही उसे वापिस लाया जा सकता है। दिन में यह हरगिज नहीं किया जा सकता। भीड़ इकट्ठा हो जायेगा और कोई झंझट खड़ा हो जायेगा... इस तरह हम एक सारा दिन खोता है और इस घाटे को आप ही को पूरा करना पड़ेगा।"
"हां, हां, जरूर आप इस बारे में फ़िक्र न कीजिए..."
"और फिर, क्या पुलिस एक हाथी को एक घर में ले जाने देगी ?"
"इसका प्रबंध मैं कर लूंगा।"
"एक बात और है। क्या आपका मकान मालिक अपने मकान में एक हाथी को लाने देगा ?"
"लाने देगा। मैं खुद ही इस मकान का मालिक हूं। "
"आहा । यह तो बहुत ही अच्छा बात है। बस एक सवाल और है: आप कौनसा मंजिल पर रहता है ?"
"दूसरी मंजिल पर । "
"हूं... यह बात इतना अच्छा नहीं...क्या आपके घर में चौड़ा जीना, ऊंचा छत, बड़ा कमरा, चौड़ा-चौड़ा दरवाजा और बहुत मजबूत फर्श है ? बात यह है कि हमारा टॉमी साढ़े सात फुट ऊंचा और तेरह फुट लंबा है। इसके अलावा उसका वजन पैंतालिस मन है।"
नाद्या के पापा क्षण भर के लिए सोच में पड़ जाते हैं। फिर वह कहते हैं:
"चलिये, एक काम करते हैं ! इसी समय हमारे यहां चलते हैं और वहीं सब कुछ देखदाख लेते हैं। अगर जरूरी होगा तो मैं दरवाजे चौड़े करवा लूंगा।"
"अच्छा बात है !” सर्कस का मालिक राजी हो जाता है।
५
रात हो गयी है। हाथी को बीमार बच्ची के यहां ले जाया जा रहा है।
सफ़ेद अंबारी से ढका हुआ, वह सड़क के बीचोंबीच शान से आगे बढ़ा जा रहा है। वह कभी सिर हिलाता है, तो कभी सूड़ को सिकोड़ लेता है और कभी उसे ऊपर उठा लेता है। इतनी रात है, फिर भी उसके चारों ओर भीड़ इकट्ठी हो गयी है। पर हाथी उसकी ओर बिल्कुल भी ध्यान नहीं दे रहा है: वह तो रोज ही सर्कस में सैकड़ों लोगों को देखता है। केवल एक बार उसे थोड़ा सा गुस्सा आ जाता है।
एक आवारा लड़का भागकर उसके पैरों के बीच खड़ा हो जाता है और देखने वालों को हंसाने के लिए मुंह बनाने लगता है।
तब हाथी चुपचाप अपनी सूंड से उसकी टोपी उठाता है और कांटेदार बाड़ के दूसरी ओर फेंक देता है।
पुलिस का सिपाही भीड़ के बीच चल रहा है और लोगों से कह रहा है:
"जनाब, यह भीड़ ख़त्म कीजिये। पता नहीं, क्या मजा आ रहा है आप लोगों को ? अजीब लोग हैं ! ऐसे मजमा लगा लिया है मानो कभी जीते-जागते हाथी को सड़क पर नहीं देखा है।"
घर आ गया है। जीने से लेकर खाने के कमरे तक हाथी के रास्ते में पड़ने वाले सभी दरवाजों को पूरी तरह से खोल दिया गया है।
पर जीने के सामने हाथी रुकता है और बेचैन होकर अड़ जाता है।
जर्मन कहता है:
"इसे कोई पकवान देना चाहिए... मीठी पाव-रोटी या कोई... चल... टॉमी ! हो, होहो... टॉमी !"
नाद्या के पापा दौड़े-दौड़े पास की दुकान में जाते हैं और पिस्तेवाला एक बड़ा गोल केक ले आते हैं। हाथी तो पूरा का पूरा केक गत्ते के डिब्बे समेत हड़प करना चाहता है, पर जर्मन उसे केवल एक चौथाई ही देता है। केक टॉमी को बहुत पसंद आता है और वह दूसरा टुकड़ा पाने के लिए सूंड आगे बढ़ाता है। परंतु जर्मन चालाक है। हाथ में केक का टुकड़ा पकड़े वह धीरे-धीरे ऊपर चढ़ने लगता है और हाथी न चाहते हुए भी अपनी सूड़ आगे बढ़ाए, कानों को फैलाकर उसके पीछे-पीछे चढ़ने लगता है। ऊपर चढ़ने के बाद टॉमी को दूसरा टुकड़ा मिलता है।
इस तरह उसे खाने के कमरे में लाया जाता है, जहां से मेज कुर्सियों पहले ही निकाली जा चुकी हैं और फर्श पर भूसे की मोटी तह बिछाई गयी है...हाथी के पैर को फर्श में जड़े कुंदे से बांध दिया जाता है। उसके सामने ताजी गाजरें, बंदगोभी और शलजम रखे जाते हैं। जर्मन उसके पास ही सोफे पर लेट जाता है। बत्तियां बुझाई जाती हैं और सब सो जाते हैं।
६
अगले दिन बच्ची बहुत सुबह ही जाग पड़ती है और जागते ही पूछती है:
"हाथी का क्या हुआ ? वह आ गया है ?"
"हां, आ गया है, " मां उत्तर देती हैं, "पर उसने कहा है कि नाद्या पहले हाथ मुंह धो ले, उसके बाद उबला अंडा खा ले और गर्म दूध पी ले ।"
"क्या हाथी भला है ?"
"हां, वह भला है। खा, मेरी बच्ची, खा । अभी हम उसके पास जायेंगे । "
"और उसे देखकर हंसी आती है ?"
" थोड़ी-थोड़ी । गरम जाकेट पहन ले।"
नाद्या जल्दी से अंडा खा लेती है, दूध भी पी लेती है। तब उसे बच्चा गाड़ी में बिठाया जाता है। जब वह बिल्कुल छोटी सी थी और चल नहीं सकती थी, तो उसे इसी बच्चा गाड़ी में बिठाते थे। गाड़ी में उसे खाने के कमरे में लाया जाता है।
हाथी तो बहुत ही बड़ा है। हाथी की तस्वीर देखकर तो नाद्या ने सोचा भी नहीं था कि वह इतना बड़ा हो सकता है। उसकी ऊंचाई तो बस दरवाजे से थोड़ी सी कम है और लंबा तो वह इतना है कि उसने खाने का आधा कमरा घेर रखा है। उसकी खाल तो एकदम सूखी और मोटी है और कितनी ही झुर्रियां हैं उसमें। पैर बिल्कुल खंभों की तरह मोटे हैं। लम्बी सी पूंछ के छोर पर झाड़न सा कुछ है। सिर पर बड़े-बड़े गुमटे हैं। अरबी के पत्तों जैसे बड़े-बड़े कान नीचे को लटके हुए हैं। आंखें तो एकदम छोटी-छोटी हैं, परंतु उनसे वह बहुत ही समझदार और दयालु लगता है। दांत उसके कटे हुए हैं। सूंड तो बड़े से सांप की तरह है और उसके आखिर में दो नथुने हैं, जिनके बीच में एक लचकीली उंगली सी है। अगर हाथी अपनी पूरी सूंड ऊपर उठा ले, तो वह खिड़की तक पहुंच जायेगी ।
बच्ची बिल्कुल भी नहीं डर रही है। हां, उसे थोड़ा आश्चर्य जरूर हो रहा है इतना बड़ा जानवर देखकर । पर सोलह साल की आया पोल्या तो डर के मारे चीख ही रही है।
हाथी का मालिक, जर्मन, बच्चा गाड़ी के पास आता है और कहता है:
“नमस्ते, मुनिया ! डरो नहीं । टॉमी बहुत अच्छा है। और बच्चों को तो बहुत ही प्यार करता है।"
बच्ची जर्मन की ओर अपना नन्हा सा, पीला सा हाथ बढ़ा देती है।
"नमस्ते जी, आप कैसे हैं ?" वह उत्तर में कहती है। "मैं तो रत्ती भर भी नहीं डरी हूं। इसका नाम क्या है ?"
" टॉमी ।"
“नमस्ते, टॉमी जी, " बच्ची सिर झुकाकर नमस्ते करती है। हाथी क्योंकि बहुत बड़ा है, इसलिए वह उसे "जी" कहकर ही बुलाती है। "आपको आज रात नींद कैसी आयी ?"
वह उसकी ओर भी अपना हाथ बढ़ाती है। हाथी बड़ी सावधानी से उसका हाथ लेता है और अपनी लचकीली उंगली से कोमलता के साथ उसकी पतली पतली उंगलियों को दबाता है। डाक्टर मिख़ाईल पेत्रोविच भी उसका हाथ इतनी कोमलता से नहीं दबाते । साथ ही हाथी अपना सिर भी हिलाता है और उसकी आंखें सिकुड़ जाती हैं, मानो वह हंस रहा हो ।
"यह तो सब कुछ समझता है, न ?” बच्ची जर्मन से पूछती है।
"हां, मुनिया, बिल्कुल सब कुछ। "
"बस वह बोलता नहीं है ?"
"हां, बस बोलता नहीं है। जानती हो, मुनिया, हमारा भी एक बेटी है, तुम्हारी तरह ही नन्हा सा। उसका नाम लीजा है। टॉमी और वह बहुत ही अच्छे दोस्त हैं।"
"टॉमी जी, आपने चाय पी ली है ?” बच्ची हाथी से पूछती है।
हाथी फिर से अपनी सूंड उठाता है और बच्ची के चेहरे पर गरम गरम, तेज फूंक मारता है, इससे बच्ची के हल्के हल्के बाल चारों ओर उड़ते हैं।
नाद्या जोर-जोर से हंसती है और तालियां बजाती है। जर्मन ठट्टाकर हंसता है।
वह भी हाथी की ही तरह बड़ा, मोटा और दयालु है। नाद्या को लगता है कि हाथी और जर्मन एक दूसरे से मिलते-जुलते हैं। क्या पता वे रिश्तेदार हों ?
"नहीं, मुनिया, उसने चाय नहीं पी है। पर वह बड़ी खुशी से मीठा पानी पीता है। और उसे मीठी पाव-रोटी बहुत अच्छी लगती है।"
मीठी पाव-रोटियों से भरी ट्रे लाई जाती है। बच्ची हाथी को पाव-रोटी देती है। वह बड़ी होशियारी से पाव-रोटी को अपनी उंगली से पकड़ता है और सूंड को छल्ले की तरह मोड़कर उसे अपने सिर के नीचे कहीं छिपा लेता है, जहां उसका अजीब सा, बालों वाला तिकोना होंठ चल रहा है। पाव-रोटी के सूखी चमड़ी के साथ रगड़ने की आवाज आती है। दूसरी पावरोटी को भी हाथी वैसे ही छिपा लेता है, फिर तीसरी को और चौथी को, और पांचवीं को भी और नाद्या को अपना आभार दिखाने के लिए वह सिर हिलाता है और उसकी छोटी- छोटी आंखें खुशी के मारे और भी सिकुड़ जाती हैं। और बच्ची खुशी से लोट-पोट होती जाती है।
जब सब पाव-रोटियां ख़त्म हो जाती हैं, तो नाद्या हाथी को अपनी गुड़ियां दिखाती है:
"देखिये, टॉमी जी, यह सजी हुई छोटी गुड़िया है न - इसका नाम सोन्या है। वैसे तो यह बहुत अच्छी है, पर कभी-कभी नखरे करती है और सूप नहीं पीना चाहती । और यह नताशा है - सोन्या की बेटी । यह अब पढ़ने लगी है और इसे लगभग सारे अक्षर आते हैं। और यह है मन्योश्का । यह मेरी सबसे पुरानी गुड़िया है। देखिये न, इसकी नाक भी नहीं है और सिर भी गोंद से जोड़ा हुआ है और बाल भी अब नहीं रहे। पर फिर भी बुढ़िया को घर से तो नहीं निकाला जा सकता । ठीक है न, टॉमी ? पहले यह सोन्या की मां थी और अब हमारे यहां रसोई में काम करती है। चलिये, टॉमी जी, खेलते हैं आप पापा होंगे और मैं मां और ये सब हमारे बच्चे होंगे।"
टॉमी राजी है। वह हंस रहा है। वह मन्योश्का की गर्दन पकड़कर उसे उठाता है और उसे अपने मुंह में डालता है। पर यह तो बस मजाक ही है। गुड़िया को हल्के से चबाकर, वह उसे वापिस बच्ची के घुटनों पर रख देता है, हां अब गुड़िया थोड़ी गीली और मुड़ी हुई सी जरूर है।
फिर नाद्या उसे तस्वीरों वाली बड़ी किताब दिखाती है और बताती है:
"यह घोड़ा है, यह है कनारी चिड़िया, यह बंदूक... यह रही पिंजड़े में बंद चिड़िया, यह है बाल्टी, शीशा, भट्टी, फावड़ा, कौआ ...और यह देखिये, यह हाथी है। बिल्कुल भी हाथी जैसा नहीं है, है न ? कहीं हाथी भी इतने छोटे होते हैं, क्यों टॉमी जी ?"
टॉमी का ख्याल है कि दुनिया में इतने छोटे हाथी कहीं नहीं होते । वैसे भी उसे यह तस्वीर बिल्कुल अच्छी नहीं लगती। वह अपनी लचकीली उंगली से पेज का कोना पकड़ता है और उसे पलट देता है।
खाने का समय हो गया है, पर बच्ची तो हाथी के पास से हटना ही नहीं चाहती है।
जर्मन को एक तरीका सूझता है। वह कहता है :
"मैं सब इंतजाम कर देता हूं। वे दोनों इकट्ठे खाना खायेंगे ।”
वह हाथी को बैठने को कहता है। हाथी उसका कहना मानकर बैठ जाता है। उसके बैठने से सारे मकान में फर्श हिल उठता है, अलमारी में बर्तन खड़खड़ा उठते हैं, और नीचे रहने वालों की छत का पलस्तर गिरता है। हाथी के सामने बच्ची बैठती है। उनके बीच में मेज रखी जाती है। हाथी की गर्दन पर मेजपोश बांधा जाता है और नये दोस्त खाना शुरू करते हैं। बच्ची मुर्गी का शोरबा और कटलेट खाती है और हाथी तरह-तरह की सब्जियां और सलाद । बच्ची को थोड़ा सा आसव दिया जाता है और हाथी को एक गिलास रम के साथ गरम पानी दिया जाता है और वह बड़े मजे से उसे अपनी सूंड से पीता है। फिर उन्हें मीठा दिया जाता है: बच्ची को एक कप कोको और हाथी को आधा केक, इस बार केक अखरोट वाला है। जर्मन भी इस समय बैठक में पापा के साथ बैठा हाथी की तरह ही मजे से बियर पी रहा है, पर हां, वह हाथी से कहीं ज्यादा पीता है।
खाने के बाद पापा के जान-पहचान के कुछ लोग आते हैं: उन्हें ड्योढ़ी में ही हाथी के बारे में बता दिया जाता है, ताकि वे डर न जायें। पहले तो उन्हें यकीन ही नहीं आता, पर बाद में टॉमी को देखकर वे दरवाजे से सटकर खड़े हो जाते हैं।
"डरिये नहीं, टॉमी बहुत अच्छा है !" बच्ची उन्हें समझाती है।
लेकिन वे लोग जल्दी-जल्दी बैठक में जाते हैं और पांच मिनट भी बैठे बिना चले जाते हैं।
शाम हो जाती है। बहुत देर हो गयी है। बच्ची के सोने का समय हो गया है। परंतु वह हाथी के पास से हिलना ही नहीं चाहती है। वह वहीं सो जाती है और उसे सोती सोती कमरे में ले जाया जाता है। उसे पता भी नहीं चलता कैसे उसके कपड़े उतारे जाते हैं।
इस रात को नाद्या सपने में देखती है कि उसकी शादी हाथी से हो गयी है और उनके बहुत सारे बच्चे हैं, छोटे-छोटे हंसते-खेलते हाथी के बच्चे । रात को हाथी को सर्कस वापिस ले जाया जाता है। वह भी सपने में प्यारी-प्यारी, लाड़ली बच्ची को देखता है। इसके अलावा उसे सपने में फाटक जितने बड़े-बड़े, अखरोट और पिस्ते के केक दिखाई देते हैं...
सुबह बच्ची उठती है, वह बिल्कुल चुस्त और ताजी है, ठीक वैसे ही जैसे कि वह बीमारी से पहले थी। उठते ही वह बड़े जोर से बेसब्री के साथ चिल्लाती है:
"दू - ऊ-ध लाओ !"
उसकी चीख सुनकर मां खुशी से भागी आती हैं।
लेकिन बच्ची को अचानक कल की याद आ जाती है और वह पूछती है:
"हाथी कहां गया ?"
मां उसे समझाती हैं कि हाथी अपने घर लौट गया है, वहां उसके बच्चे हैं, जिन्हें अकेले नहीं छोड़ा जा सकता और बताती हैं कि हाथी ने नाद्या को नमस्ते कहने को कहा है और कहा है कि जब वह ठीक हो जायेगी, तो उसके घर आये ।
बच्ची के होंठों पर चालाकी भरी मुस्कान आ जाती है। वह कहती है:
"टॉमी को बता दो, मैं बिल्कुल ठीक हो गयी हूं ! "