तीसरा आदमी (कहानी) : शौकत सिद्दीक़ी
Teesra Aadmi (Story in Hindi) : Shaukat Siddiqui
दोनों ट्रक, सुनसान सड़क पर तेज़ी से गुज़रते रहे!
पितंबर रोड, मशरिक़ की तरफ़ मुड़ते ही एक दम नशीब में चली गई है और झुके हुए टीलों के दरमियान किसी ज़ख़्मी परिंदे की तरह हांपती हुई मालूम होती है। रात अब गहरी हो चुकी है और आग़ाज़-ए-सरमा की बचरी हुई हवाएँ चल रही हैं। दोनों ट्रक ढलवान पर खड़ खड़ाते हुए गुज़र रहे हैं। उनका बेहंगम शोर पथरीली चट्टानों में धड़क रहा है। एका एकी अंधेरे में किसी ने चीख़ कर कहा, ऐ कौन जा रहा है, ट्रक रोक लो!
रात के सन्नाटे में ये आवाज़ बड़ी पुर-असरार मालूम हुई लेकिन ट्रकों के अंदर बैठे हुए लोगों ने उस पर कोई तवज्जो न दी। वो इस तरह ख़ामोश बैठे रहे और दोनों ट्रक झुकी हुई चट्टानों की गहराई में तेज़ी से गुज़रते रहे। इस दफ़ा ज़रा दूर से आवाज़ सुनाई दी, रोको, रोक लो ट्रकों को! और इसके साथ ही मोटर साईकल स्टार्ट होने की घरघराहट उभरने लगी। उसकी तेज़ रौशनी धूप-छाँव की तरह ट्रकों के पिछले हिस्सों पर लहरा जाती है लेकिन ट्रक रुक नहीं सकते। इसलिए कि ये ख़तरे का अलार्म है। उनकी रफ़्तार और तेज़ हो गई। सड़क बिल्कुल वीरान है और दोनों ड्राईवर बड़े एक्सपर्ट हैं!
मोटर साइकल की रौशनी क़रीब होती जा रही है और क़रीब! और क़रीब! और उसका शोर ट्रकों के नज़दीक ही धड़कने लगा है। उनकी रफ़्तार अब ज़्यादा नहीं बढ़ सकती है। इसलिए कि ढ़लवान पर ट्रकों के बेक़ाबू हो जाने का पूरा अंदेशा है। दोनों ड्राइवरों के सहमे हुए चेहरे ख़ौफ़ज़दा होते जा रहे हैं लेकिन नीली आँखों वाला वाँचू ख़ामोशी से बैठा हुआ सिगरेट पीता रहा और बराबर सोचता रहा कि अब क्या करना चाहिए। फिर एक बारगी मस्तानी टीलों की गहराई में रीवोलवर चलने की आवाज़ बड़े भयानक अंदाज़ से गरजने लगी और गोली ट्रक के पिछले पहियों के पास से सनसनाती हुई गुज़र गई। एक बार फिर किसी ने ऊंची आवाज़ में कहा, रोक लो, ट्रकों को, नहीं तो मैं टायर बर्स्ट कर दूँगा। और इस वार्निंग के साथ ही दोनों ट्रक ठहर गए। ट्रकों के अंदर से सिर्फ़ वाँचू उतर कर नीचे आया। बाहर पतझड़ की शोरीदा हवाएँ चल रही थीं और उनको तेज़ खुनकी जिस्म में चुभती हुई मालूम हो रही थी। वाँचू ने अपने लंबे ओवर कोट के कालरों को दुरुस्त किया और आहिस्ता आहिस्ता चलता हुआ मोटर साइकल के क़रीब पहुँच गया। फिर उसने जलती हुई सिगरेट को झुंझलाहट के अंदाज़ में सड़क पर फेंक कर जोर से मसल डाला और बड़े तीखे लहजे में पूछने लगा, इस तरह ट्रकों को रुकवा लेने का मक़सद, क्या चाहते हैं आप?
लेकिन मोटरसाईकल पर बैठा हुआ भारी भरकम जिस्म वाला इन्सपेक्टर वाँचू के इस अंदाज़ से ज़रा भी मुतास्सिर न हुआ बल्कि बड़ी बे-नियाज़ी से कहने लगा, मैं ऐन्टी करप्शन का इन्सपेक्टर हूँ और दोनों ट्रकों की तलाशी लेना चाहता हूँ।
वाँचू ने ग़ौर से उसकी तरफ़ देखा। धुँदली रौशनी में उसका चेहरा बड़ा करख़्त मालूम हो रहा था और रीवोलवर उसकी उंगलियों में दबा हुआ था। वाँचू ने पहली नज़र में अंदाज़ा लगा लिया था कि भारी भरकम जिस्म वाला इन्सपेक्टर पूरी तरह दहश्त ज़दा करने पर तुला हुआ है।
उसने झट से कारोबारी पैंतरा बदला और ज़रा बेतकल्लुफ़ी से कहने लगा, अच्छा तो आप हैं और फिर वो मुस्कुरा दिया, अगर आप आफ़ीशियली पूछते हैं तो देखिए दोनों ट्रकों पर आलुओं के बोरे लदे हुए हैं। मैं सबूत में डिस्ट्रिक्ट ऑकटराए ऑफ़िस की रसीद पेश कर सकता हूँ। चुंगी का ये महसूल अभी पिछले नाके पर ही अदा किया गया है और जो कुछ असलियत है वो तो आप जानते ही होंगे। इसलिए कि आइरीन टेट्स को इस तरह ले जाने का ये कोई पहला इत्तिफ़ाक़ तो नहीं है। ये सिलसिला तो एक मुद्दत से चल रहा है।
इन्सपेक्टर गर्दन हिला कर बोला, जी हाँ, सुना तो कुछ मैंने भी यही है और इसलिए कई घंटों से इस सड़क पर तपस्या कर रहा था। वाँचू हंसने लगा, ये तपस्या तो आप ने ख़्वाह मख़्वाह अपने सर मोल ली। मैंने आप को दो मर्तबा फ़ोन किया। अगर आप दफ़्तर में मिल जाते तो इस तरह क्यूँ परेशानी उठाना पड़ती और ख़ुद मुझे यहाँ सर्दी में न आना पड़ता। मगर चलिए ये भी ठीक रहा। इस बहाने आप के दर्शन तो हो गए! और वो तीन सौ रुपये अहमदपुर के उस ट्रिप में बचा लेना चाहता था। आख़िर उसने करंसी नोटों को अंदरूनी जेब में से निकाला और इन्सपेक्टर की तरफ़ बढ़ा कर कहने लगा, आप से पहली मुलाक़ात हुई है। इस लिए कुछ न कुछ नज़राना तो देना ही पड़ेगा। लीजिए इनको रख लीजिए। फ़रमाइए और क्या सेवा की जाए।
ऐन्टी करप्शन इन्सपेक्टर रूखेपन से बोला, इस मेहरबानी का शुक्रिया। अब इतनी और मेहरबानी कीजिए कि इनको अपने पास ही रहने दीजिए।
वाँचू ज़रा संजीदा हो कर ख़ामोश हो गया। दोनों अंधेरे में चुपचाप खड़े थे और काहिस्तानी चट्टानों में पतझड़ की बिफरी हुई हवाएँ चीख़ती रहीं। आगे खड़े हुए ट्रकों के अंदर सरगोशियों की दबी दबी आवाज़ें भिनभिना रही थी। वाँचू ज़रा ग़ौर करने लगा कि ये आसानी से मानने वाली आसामी नहीं है। इस साले को अभी कुछ और भी दक्षिना देना पड़ेगी। इसलिए कि वो जानता था कि हर कामयाब जुर्म की साज़िश पहले पुलिस स्टेशन के अंदर होती है। ये बात दूसरी है कि सौदा बाद में तय हो सकता है। सच तो ये है कि ये सब माया के खेल हैं और माया के रूप न्यारे हैं इसीलिए जराइम की नौइयतें जुदागाना हैं। जेब काटने वाला ज़्यादा से ज़्यादा हिस्ट्री शीटर बन सकता है और कारहा-ए-नुमायाँ अंजाम देने वाला सरमायादार हो जाता है। अलबत्ता इतना ज़रूर है कि हिस्ट्री शीटर बनने के लिए पुलिस की सरपरस्ती दरकार होती है और सरमायादारी के लिए गर्वनमेंट से साज़-बाज़ किए बगै़र काम नहीं चलता। वाँचू ने जेब के अंदर से कुछ और करंसी नोट निकाले और आहिस्ता आहिस्ता कहने लगा, इन्सपेक्टर तिवारी जब तक इस सर्किल में तैनात रहे हमारी इंडस्ट्री की तरफ़ से उनको इस हिसाब से उनका हक़ बराबर पहुँचता रहा। फिर ख़ुशामद करने के से अंदाज़ में वो मुस्कुरा कर बोला लेकिन आप को इस तरह जाड़े पाले में आकर परेशान होना पड़ा है। अब इस परेशानी का भी कुछ ख़याल करना पड़ेगा। लीजिए ये दो सौ और हैं। देखिए अब कुछ और न कहिएगा और अपना रीवोलवर तो आप अब अन्दर रख लीजिए। ख़्वाह मख़्वाह आप से ख़ौफ़ मालूम हो रहा है।
मगर भारी भरकम जिस्म वाला इन्सपेक्टर उसी तरह नाराज़गी के अंदाज़ में बोला, देखिए आप मुझे ग़लत समझ रहे हैं। मैं इन दोनों ट्रकों को पुलिस स्टेशन ले जाए बगै़र बाज़ नहीं आऊँगा। आप ख़्वाह मख़्वाह मेरा भी वक़्त ख़राब कर रहे हैं और ख़ुद भी परेशानी उठा रहे हैं और वो मोटर साईकल को स्टार्ट करने लगा।
इस दफ़ा वाँचू की मुस्कुराहट ने दम तोड़ दिया। उसने बड़ी तीखी नज़रों से इन्सपेक्टर को घूर कर देखा। इस अर्से में पहली बार उसको ख़तरे की नौइयत का एहसास हुआ था। इसलिए कि दोनों ट्रक किसी तरह भी पुलिस स्टेशन नहीं जा सकते थे। कंपनी का यही हुक्म था, यही हिदायत थी और इस ज़िम्मेदारी के लिए कंपनी से उसको नौ सौ रुपये माहवार तनख़्वाह के अलावा मैनेजिंग डायरेक्टर की तरफ़ से छः सौ रुपये एक्स्ट्रा अलाउंस भी मिलता था। वाँचू कई माह से अपनी इस ड्यूटी को बड़ी मुस्तैदी से अंजाम दे रहा था। कंपनी उसकी कार गुज़ारियों को सराहती रही है और बोर्ड आफ़ डायरेक्टर की मीटिंग में बहुत सी बातों के लिए उसको जवाबदेह भी होना पड़ता है और अक्सर ऐसे बेतुके सवालों से उसको साबक़ा पड़ा कि वो बदहवास हो जाता। इसलिए वो पाँच सौ रुपये से ज़्यादा दो ट्रकों के लिए रिश्वत नहीं दे सकता। वर्ना आइन्दा मीटिंग में अगर कोई डायरेक्टर उलझ गया तो बहुत मुम्किन है कि ज़ाएद रक़म उसको अपनी तनख़्वाह से अदा करना पड़े और बात भी कुछ ऐसी ही है। दरअसल अभी तक फ़ैक्ट्री की तामीर के लिए कंपनी अपने पास से सिर्फ़ रुपया लगा रही है। शूगर प्लाँट का कंस्ट्रक्शन अभी तक मुकम्मल नहीं हुआ है। अलबत्ता कंपनी के वो फ़ार्म जिन में ईख की काश्त होगी उनमें ट्रैक्टर चलने लगे हैं और आलू की फ़सलें तैयार की जा रही हैं और ये आलुओं के साथ सीमेंट की बोरियाँ और आयरन शीट्स भी ट्रकों में लाद कर पोशीदा तौर पर ब्लैक मार्केट में जाते हैं। कंपनी को अपनी इंडस्ट्री की तामीर के लिए सीमेंट और आयरन का बहुत बड़ा सरप्लस कोटा मिल गया है जिसकी स्मगलिंग सुनसान रातों में बड़े पुर-असरार तरीक़े पर होती है और इस साज़िश में पुलिस के अलावा दूसरे महकमे भी कंपनी के शरीक हैं।
वाँचू ग़ौर करने के अंदाज़ में ख़ामोश खड़ा रहा। उसकी घनी भवें आँखों पर झुकी हुई मालूम हो रही हैं और चेहरे के तीखे नुक़ूश मुजस्समों की तरह ठोस नज़र आ रहे हैं। फिर एक बारगी उसने तय कर लिया कि उसे क्या करना चाहिए। इन्हीं वहशतनाक मौक़ों के लिए वो हमेशा कहा करता था कि जो कुछ करना है उसके फ़ैसले के लिए मिनट भर का अर्सा बहुत है और जो लोग सिर्फ़ अंजाम ही पर ग़ौर करते हैं वो कभी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच सकते और फिर बोझल क़दमों से चलता हुआ वो आगे वाले ट्रक के पास पहुँच गया और सरगोशी के अंदाज़ में आहिस्ता आहिस्ता पुकारने लगा, नील कंठ आए नील कंठ, महाराज।
और ट्रक के अंदर से मज़बूत पट्ठों वाला नील कंठ धंसी हुई आवाज़ में बोला, क्या है सेक्रेटरी साब? फिर वो उतर कर नीचे आ गया। उसका आबनूसी जिस्म रात के गहरे अंधेरे में परछाइयों की तरह धुंदला नज़र आ रहा था। वाँचू कहने लगा,
देखो नील कंठ, ये साला इन्सपेक्टर तो किसी तरह मानता नहीं और तुम जानते हो कि दोनों ट्रक थाने पर भी नहीं जा सकते।
वो सीना तान कर बोला, तो हुक्म हो!
गहरी नीली आँखों वाले वाँचू ने उसको भरपूर नज़रों से देखा और फिर साज़िश करने के अंदाज़ में उसने एक आँख दबा कर आहिस्ता से कहा, मुझको तो सिर्फ़ लाइन क्लियर, की ज़रूरत है। ज़्यादा झंझट नहीं चाहिए। फिर मुड़ते हुए इतना और कहा, मैं जा कर उससे बातें करता हूँ। तुम ट्रकों की पुश्त पर से घूम कर आ जाना। समझ गए न! और नील कंठ जैसे सब कुछ समझ गया। उसकी आँखें जराइमपेशा लोगों की तरह ख़ूंख़ार नज़र आने लगीं। वाँचू वहाँ से सीधा ऐन्टी करप्शन के इन्सपेक्टर के पास चला गया। वो उसको आते हुए देख कर तेज़ी से बोला, आप ने ट्रकों को स्टार्ट नहीं करवाया, बिला वजह देर हो रही है।
वाँचू बड़ी संजीदगी से बोला, आप तलाशी लेंगे या ट्रक इसी तरह चलेंगे, वो कहने लगा।
बज़ाहिर तो अब ऐसी कोई ज़रूरत नहीं, यूँ जैसे आप की मर्ज़ी, वाँचू एक बार फिर कारोबारी अंदाज़ से मुस्कुराया, इन्सपेक्टर साहब! मर्ज़ी हमारी कहाँ? मर्ज़ी तो आप की है। हमने तो अपनी तरफ़ से कोई कसर उठा न रक्खी मगर आपकी नाराज़गी ख़त्म ही नहीं होती।
वो बे-नियाज़ी से बोला, देखिए इन बेकार बातों से कोई नतीजा नहीं निकलेगा। आपको जो कुछ कहना हो, आप थाने पर चल कर कह लीजिएगा।
वाँचू संजीदा हो गया, बहुत अच्छी बात है लेकिन इतना मैं आप को ज़रूर बता देना चाहता हूँ कि जो लोग आयरन शीट्स और सीमेंट का सरप्लस कोटा ले सकते हैं और जो उसको स्मगल भी करा सकते हैं। वो अपने बचाव के तरीक़े भी जानते ही होंगे। चोर चोरी करने जाता है तो बाहर निकलने का रस्ता पहले देख लेता है, और इस में शक भी नहीं कि वाँचू ठीक ही कह रहा था। इस लिए कि यूनाइटेड इंडस्ट्रीज़ लिमीटेड के बोर्ड डायरेक्टर एम.एल.ए हैं और उन में से एक तो रेवेन्यू मिनिस्टर का दामाद भी है और इसीलिए सरकारी महकमों में कंपनी का असर भी है और ज़ोर भी है लेकिन भारी भरकम जिस्म वाला इन्सपेक्टर इन राज़ हाय सरबस्ता को नहीं जानता। इस सर्किल में अभी उसका नया नया ट्रांसफ़र हुआ है इसलिए पूरे इलाक़े में वो अपनी धाक बिठा देना चाहता है और इसलिए एक आध बड़ा केस बनाए बगै़र बात नहीं बनती और पुलिस की मैकेनिक के मुताबिक़ एक बार जहाँ हवा बंध गई फिर तो लक्ष्मी आ कर ख़ुद क़दम चूमती है और इसीलिए वो किसी तरह बाज़ नहीं आ सकता। वाँचू की बातों पर झुंझुला कर उसने जवाब दिया,
मुम्किन है, आप ठीक कह रहे हों। अभी तो आप ज़रा चल कर हवालात में ठहरिए, फिर देखेंगे कि आप लोग अपने बचाव का कौनसा तरीक़ा जानते हैं।
इस दफ़ा वाँचू भी बिफर गया। उसने तेज़ी से कहा, इन्सपेक्टर साहब मुझे कैलाश नाथ वाँचू कहते हैं। मैं थाने जाने से पहले बात को यहाँ भी तय कर सकता हूँ। आपके ऐसे एंटी करप्शन के इन्सपेक्टरों से यहाँ अक्सर साबिक़ा पड़ा करता है। अगर इन में कोई मिल गया होता तो इस तरह मूंछ ऊंची करके आप को बात करने की जुरात न होती।
इन्सपेक्टर के चेहरे पर और अभी ख़ुशुनत आ गई। वो उसको बड़ी तीखी नज़रों से घूरने लगा और उसी वक़्त आबनूसी जिस्म वाले नील कंठ ने अंधेरे में से निकल कर उसके सर पर आहनी रॉड उठा कर ज़ोर से दे मारा। इन्सपेक्टर ने दबी हुई कराह के साथ हाय कर के फटी हुई भयानक आवाज़ निकाली और लड़खड़ा कर सड़क पर गिर पड़ा। उसकी उंगलियों में दबा हुआ रीवोलवर अभी तक काँप रहा था। वाँचू ने झपट कर उसके हाथ को अपने बोझल जोड़ी से रगड़ दिया और रीवोलवर को छीन कर टीलों की तरफ़ फेंक दिया और उसकी रीढ़ की हड्डी पर एक भरपूर लात मार कर बड़बड़ाने लगा।
धत तेरी की, साला किसी तरह मानता ही न था, और फिर वो नील कंठ से कहने लगा, महाराज डाल दो साले को इधर किनारे की तरफ़! और फिर इत्मिनान से एक सिगरेट सुलगा कर पूछने लगा, हाँ ये देख लो कि ज़ख़्म गहरा तो नहीं पड़ा है, वर्ना बिलावजह बात और बढ़ जाएगी।
नील कंठ कहने लगा, हाथ भरपूर नहीं पड़ा है, कोई घबराने की बात नहीं है। फिर नीलकंठ ने सड़क पर बेसुध पड़े हुए भारी भरकम जिस्म वाले इन्सपेक्टर का बाज़ू पकड़ा और उसको घसीटता हुआ दूर तक चला गया। उसका करख़्त चेहरा ख़ून में डूब कर बड़ा भयानक नज़र आ रहा था और सांस सहमी हुई चल रही थी। वो उसी तरह झुके हुए काहिस्तानी टीलों के दामन में किसी लाश की तरह बेजान पड़ा रहा और आग़ाज़-ए-सरमा की तीखी हवाएँ पथरीली चट्टानों में हांपती रहीं और एक बारगी कहीं नज़दीक ही गडरियों ने शोर मचाना शुरू कर दिया।
दोनों ट्रकों के स्टार्ट होने की घड़-घड़ाहट सुनसान रात में उभरने लगी और वो मोटर साइकल को बुरी तरह रौंदते हुए सड़क पर फिर चलने लगे लेकिन अहमदपुर जाने के बजाए, अब वो जुनूबी टीलों की तरफ़ मुड़ रहे थे और कोई सतरह मील का चक्कर काटने के बाद दोनों ट्रक फिर उसी चौराहे पर पहुँच गए जहाँ लोहे के खंबे पर लगे हुए बोर्डों पर लिखा था;
बलेर घाट, इक्यावन मील।
सजनवाँ कलाँ, अट्ठारह मील।
श्याम बाड़ा, चौरासी मील।
अहमदपुर, एक सौ बावन मील।
क़रीब ही डिस्ट्रिक्ट ऑकटराए टैक्स ऑफ़िस था जिसके झुके हुए साइबान के नीचे एक धुंदला सा लैम्प जल रहा था और बूढ़ा मुहर्रिर रजिस्टरों को खोले हुए खांस रहा था। अभी कुछ अर्सा क़ब्ल यहाँ पर दोनों ट्रकों की चुंगी का महसूल अदा किया गया था।
वाँचू ट्रक पर से उतरा और सीधा साइबान के नीचे चला गया और सरगोशी के लहजे में आहिस्ते से बोला,
“मुंशी जी मेरे ख़याल में, आपके रजिस्टरों में टाइम तो दर्ज नहीं होता होगा, फिर बगै़र जवाब का इंतिज़ार किए हुए उसने चौकन्नी नज़रों से चारों तरफ़ देखा और तीस रुपये के करंसी नोट निकाल कर उसकी तरफ़ बढ़ा दिए, लीजिए इनको रख लीजिए, अगर कोई दरियाफ़्त करने आए तो कह दीजिएगा कि दोनों ट्रक कोई साढे़ आठ बजे के क़रीब यहाँ आए थे, समझ गए न आप!
और बूढ़े मुहर्रिर ने गर्दन हिला दी, ऐसा ही हो जाएगा। पर कोई घबराने की बात तो नहीं!
वाँचू ड्रामाई अंदाज़ में क़हक़हा लगा कर कहने लगा, जब तक हम मौजूद हैं उस वक़्त तक भला आप पर कोई आंच आ सकती है,
वो भी हँसने लगा, सो बात तो ये है, पर बात इतनी है सरकार, अब ज़माना बड़ा ख़राब लग गया है। ज़रा ज़रा सी बात में ससुरे बाल की खाल निकालते हैं।
और फिर चुंगी के मुहर्रिर को मुतमइन कर के वो मुस्कुराता हुआ ट्रक के अंदर जा कर बैठ गया। दोनों ट्रक फिर रवाना हो गए। सामने पितंबरपुर रोड अंधेरे में बलखाती हुई चली गई है। मगर दोनों ट्रक फिर उस तरफ़ जाने की बजाय राहील रोड की तरफ़ मुड़ गए। वाँचू ने घड़ी में वक़्त देखा, अब डेढ़ बज रहा था और फिर दो बजने से पहले ही दोनों ट्रक अबीरगढ़ पुलिस स्टेशन के क़रीब जा कर ठहर गए। वाँचू थाने के अन्दर चला गया और ड्यूटी इन्सपेक्टर को डेढ़ सौ रुपये दे कर उसने एक ट्रक का चालान करा दिया। रोज़नामचे में दर्ज कर दिया गया।
ट्रक नंबर 3136, नौ बजे शब को राहील रोड पर से गुज़रते हुए बगै़र हैड लाइट्स के पाया गया। तफ़तीश करने पर मालूम हुआ कि उसकी बैट्री ख़राब थी। ट्रक ए मज़कूर यूनाइटेड इंडस्ट्रीज़ लिमीटेड की मिल्कियत है और उसमें आलू के बोरे लदे थे।
और इसी तरह हकीमपुर के थाना पर मज़ीद डेढ़ सौ रुपया रिश्वत दे कर दूसरे ट्रक का भी चालान करा दिया गया और हेडकांस्टेबल सरकारी रोज़नामचे में इंदिराज करने लगा,
पौने दस बजे शब को ट्रक नंबर 6228 राहील रोड, पर इतनी तेज़ रफ़्तार से गुज़र रहा था कि किसी भी हादिसा के हो जाने का ख़तरा था। ड्यूटी इन्सपेक्टर हरनाम सिंह ने उसको रुकवा कर तहक़ीक़ात की तो ये भी दरियाफ़्त हुआ कि ड्राईवर मुसम्मा नज़र के पास ड्राइविंग लाइसेंस भी मौजूद न था!
उसके बाद दोनों ट्रक फिर राहील रोड पर तेज़ी से गुज़रने लगे और सुब्ह-ए-काज़िब की गहरी धुन्द्ध में दोनों ट्रक बलेर घाट पर पहुंच गए। फिर छः बजे से पेश्तर ही वाँचू भारत इंजीनीयरिंग वर्क़्स की नई इस्टोडी बेकर पर वापस लौट पड़ा और अभी धूप भी अच्छी तरह फैलने भी न पाई थी कि उसकी कार फ़ैक्ट्री के फाटक के अंदर दाख़िल हो गई।
वाँचू अपने दफ़्तर में जा कर हस्ब-ए-मामूल कंपनी के कामों में उलझ गया और रात के हादसे की अहमियत सनीचर के रोज़ होने वाले उस डिरीलमेंट से ज़्यादा न रही जिस में रेलवे की एक गैरज फ़ैक्ट्री के यार्ड के अंदर डैमेज हो गई थी और इस नुक़्सान के लिए रेलवे ने कोई चार हज़ार रुपये का क्लेम किया था और अदालती कार्वाइयों के लिए हरिंदर प्रशाद, एडवोकेट कंपनी के मुशीर क़ानूनी ही मौजूद थे।
पुलिस तहक़ीक़ात करती रही, तफ़तीश बराबर होती रही और ऐन्टी करप्शन का भारी भरकम जिस्म वाला इन्सपेक्टर, हस्पताल में पड़ा कराहता रहा और मज़बूत पुट्ठों वाला नीलकंठ भंग चढ़ा कर ठाठ से गालियाँ बकता रहा और और अपने क्वार्टर के अंदर लेटा हुआ रात गए तक ऊंची आवाज़ में आल्हा गाया करता।
और अगर तुम्हारी बात न मानी जाए तो?
फिर तो कुंवर साहब इसका नतीजा कुछ अच्छा नहीं निकलेगा।
लेकिन दीप चंद तुम्हें मालूम होना चाहिए कि मैं कंपनी का मैनेजिंग डायरेक्टर हूँ। कमरे के अंदर उसी तरह तेज़ लहजे में बातें होती रहीं। आतिशदान में कोयले चटख़ रहे थे। दहकते हुए सुर्ख़ अंगारों की रौशनी में वाँचू का गंजा सर चमकने लगा था। मगर वो ख़ामोश बैठा हुआ अपना भद्दा सा पाइप पीता रहा। दरीचे से हवा के यख़बस्ता झोंके अंदर आ रहे थे और फ़ैकट्री के वर्कशॉप में धड़कती हुई लोहे की झनकारों का शोर सुनाई दे रहा था। बाहर हल्की नीलगूँ कहर के लच्छे मंडरा रहे थे और उस धुंद में लिपटी हुई मैनेजिंग डायरेक्टर की ख़ूबसूरत कोठी और निखरी हुई मालूम हो रही थी, जिसके बाहरी वरांडे में नीलकंठ दीवार से पीठ को टिकाए हुए चुपचाप बैठा हुआ था। वरांडे में बिल्कुल अंधेरा था और इस गहरी तारीकी में नीलकंठ का सियाह आबनूसी जिस्म आसेब-ज़दा साये की तरह डरावना मालूम हो रहा था।
नीलकंठ इस तरह अंधेरे में ख़ामोश बैठा रहा और जब कभी दीप चंद तेज़ी से बोलता तो वो चौंक कर कमरे के दरवाज़े की तरफ़ घबरा कर देखता जैसे अब कुछ न कुछ होने ही वाला है, लेकिन दीप चंद अंदर बैठा हुआ इत्मिनान से बातें करता रहा। उसके चेहरे पर टेबल लैम्प के शैड की परछाई पड़ रही है और उस धुंदली रौशनी में उसका मुनहनी जिस्म नाटक के किसी मसख़रे की तरह हक़ीर नज़र आ रहा है। मगर दीप चंद कंपनी का चीफ़ अकाउंटेंट है और कंपनी की गै़र क़ानूनी साज़िशों में उसका किरदार बहुत अहम है। ये बात नीली आँखों वाला वाँचू भी जानता है और उसकी अहमियत मैनेजिंग डायरेक्टर को भी मालूम है, जिसको फ़ैक्ट्री के अंदर सब लोग कुंवर साहब कहते हैं। इसलिए कि वो रानी बाज़ार के इलाक़े का जागीरदार है। वो कारोबारी मैकेनिक से ज़्यादा घोड़ों की नस्लें और औरतों की मुख़्तलिफ़ क़िस्मों के मुताल्लिक़ बहुत कुछ जानता है। इसलिए कि उसने ज़िंदगी भर रेस में घोड़े दौड़ाए हैं और औरत के जिस्म पर किसी कीमियागर की तरह कोक शास्त्री तजुर्बे किए हैं और जब से जागीरदारी पर ज़वाल आने की अफ़्वाहें सरकारी हल्क़ों में गश्त करने लगी हैं, उसने भी अपने सरमाए को महफ़ूज़ करने के लिए किसी इंडस्ट्री में दाख़िल हो जाना ही अपने हक़ में बेहतर समझा और इस दूर अंदेशी ने उसको कुंवर शिवराज सिंह से एक बारगी यूनाइटेड इंडस्ट्रीज़ का मैनेजिंग डायरेक्टर बना दिया है लेकिन कंपनी का चीफ़ अकाउंटेंट उसकी बातों से ज़रा भी मरऊब नहीं हुआ बल्कि उसने बड़ी बेनियाज़ी से कह दिया,
और आप को ये मालूम है कि मैं कंपनी का चीफ़ अकाउंटेंट हूँ। सारे रजिस्टर मेरे ही पास रहते हैं। मैनेजिंग डायरेक्टर एक बारगी बर अफ़रोख़्ता हो कर बोला, ठीक है कि तमाम रजिस्टर तुम्हारी निगरानी में रहते हैं मगर इस बात से तुम्हारा मतलब?
वो कहने लगा, चोट खाया हुआ इंसान बड़ा ख़तरनाक होता है, कुंवर साहब! आप मेरे साथ हक़ तलफ़ी करेंगे तो मैं भी सारे रजिस्टरों को कल डाइरेक्टरों की मीटिंग में पेश कर सकता हूँ।
मैनेजिंग डायरेक्टर के सांस की रफ़्तार एक दम से तेज़ हो गई और वो मुनहनी जिस्म वाले दीप चंद को उक़ाबी नज़रों से घूरने लगा लेकिन दीप चंद बैठा हुआ मज़े से अपनी कनपटी खुजाता रहा। इसलिए कि वो अच्छी तरह जानता है कि मैनेजिंग डायरेक्टर उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता। वो पूरी तरह उसके क़ाबू में है। दीप चंद उसकी साज़िश के इतने बड़े राज़ का मुहाफ़िज़ है कि वो जिस वक़्त भी चाहे उसको नुक़्सान पहुँचा सकता है। बात दर-अस्ल ये है कि सीमेंट और आयरन जिन दामों पर चोर बाज़ार में फ़रोख़्त होता है, कंपनी के रजिस्टरों में उनकी क़ीमत बहुत कम दर्ज की जाती है और इस तरह अब तक मैनेजिंग डायरेक्टर ने पोशीदा तौर पर कोई दो लाख रुपया ग़बन कर लिया है लेकिन दीप चंद को अपने एतिमाद में रखने के लिए उसने दस फीसदी का शरीकदार बना लिया था और उस बीस हज़ार रुपये की अदायगी के लिए उसकी नियत बदल गई और दीप चंद के अक्सर तवज्जो दिलाने पर भी वो बराबर टालता रहा लेकिन उसके लिए कायस्थों के रिवाज के मुताबिक़ अभी उसको दस हज़ार रुपया तिलक में देना है। वर्ना ये सगाई नहीं हो सकती लेकिन मैनेजिंग डायरेक्टर चाहता है कि बोर्ड आफ़ डायरेक्टर्ज़ से सिफ़ारिश कर के उसकी तनख़्वाह को ढाई सौ रुपये माहाना से साढे़ तीन सौ करवा दे। मगर दीप चंद को ये रिश्वत मंज़ूर नहीं है। उसे बीस हज़ार रुपया चाहिए इसलिए कि वो अपनी लड़की का ब्याह जल्द ही कर देना चाहता है।
मैनेजिंग डायरेक्टर का चेहरा झुंझलाहट के असर से बराबर ग़ज़बनाक होता जा रहा है। उसकी कारोबारी ज़िंदगी पर जागीरदारी का रूप बराबर हावी होता जा रहा है।
फिर यकबारगी वो कंपनी के मैनेजिंग डायरेक्टर से सिर्फ़ रानी बाज़ार के इलाक़े का कुंवर शिवराज सिंह रह गया। उसने मेज़ पर ज़ोर से घूँसा मार कर कहा,
तुम मेरे कमरे से बाहर निकल जाओ, और फिर वो चीख़ कर ज़ोर से बोला, जाओ जो तुम्हारे जी में आए करो।
और मुनहनी जिस्म वाला नाटक का मस्ख़रा मिस्कीन सी शक्ल बनाए हुए ख़ामोशी से उठ कर दरवाज़े के बाहर चला गया। कमरे के अंदर गहरी ख़ामोशी छा गई। आतिशदान में दहकते हुए कोयले कभी कभी चटख़्ने लगते हैं और बाहर लॉन में दीप चंद के क़दमों की आहट सुनाई दे रही है। फिर वाँचू ने अपना भद्दा पाइप मेज़ पर रख दिया और मैनेजिंग डायरेक्टर से कहने लगा, कुंवर साहब ये आप ने क्या कर दिया?
कुछ नहीं सब ठीक है। कल सवेरे ही उसको नोटिस दे कर नौकरी से अलाहिदा कर दो।
वाँचू घबरा कर बोला, लेकिन इस तरह से काम तो नहीं चलेगा। बल्कि अब तो वो और भी आसानी से हम को ब्लैकमेल कर सकता है, इसलिए कि उसके पास हमारे ख़िलाफ़ बहुत से डाक्यूमेंट्री सबूत मौजूद हैं।
कुंवर शिव राज सिंह गहरी ख़ामोशी में खो गया और ख़ुद को बड़ा बेबस महसूस करने लगा। फिर उसने बड़ी बेचारगी से कहा, अच्छा तो अब कुछ तुम ही करो।
वाँचू कहने लगा, आप ज़रा अंदर कोठी में तशरीफ़ ले जाएँ, सब कुछ ठीक हो जाएगा। मेरे होते हुए भला आप पर कोई हर्फ़ आ सकता है।
कुंवर शिव राज सिंह ने ख़ामोशी से उसकी तरफ़ देखा और फिर कुर्सी पर से उठ कर वो आहिस्ता आहिस्ता चलता हुआ कमरे से बाहर चला गया। उसके चले जाने के बाद वाँचू ने नील कंठ को अंदर कमरे में बुलाया और उससे कहने लगा,
नीलकंठ महाराज, देखो दीप चंद अभी ज़्यादा दूर न गया होगा। तुम जा कर उसको बुला लाओ, कहना कि सेक्रेटरी साहब ने बुलाया है, और नील कंठ तेज़ तेज़ क़दमों से कोठी के बाहर चला गया। थोड़ी देर बाद जब वो लौटा तो उसके हमराह दीपचंद भी था। नीलकंठ फिर जा कर वरांडे में ठहर गया और वाँचू दीप चंद से कहने लगा,
“अकाउटेंट साहब, आप भी ख़ूब आदमी हैं। बूढ़े होने को आ गए मगर मिज़ाज पहचानना आप को अभी तक नहीं आया। भला इस तरह भी कोई बात तय होती है।
लेकिन दीप चंद भी कम सयाना न था। वो पहले ही भाँप गया था कि उसका तुरुप ठीक पड़ा है और अब वो उसके क़ाबू से निकल कर जा नहीं सकते। इस दफ़ा वो भी ज़रा नरमी से बोला, मगर सेक्रेटरी साहब ये तो देखिए कि कुंवर साहब तो मेरा गला काटने पर तुले हुए हैं। आप ही बताइए कि मैं करता भी तो क्या।
वाँचू अपने ख़ास अंदाज़ में कहने लगा, कमाल कर दिया आप ने। इतना तो आप जानते ही हैं कि ज़िंदगी में पहली बार वो इस कारोबारी बखेड़े में आ कर फंसे हैं। उन्होंने तो हमेशा हुक्म चलाए हैं और अपनी जागीर में मनमानी हुकूमत की है। देखिए रईसों से बात करने का और ही गुर होता है। उनके सामने तो हर बात पर बस हाँ करते जाइए, फिर जो काम जी चाहे उनसे करा लीजिए।और दीपचंद ने जैसे अपनी ग़लती को तस्लीम कर लिया। ज़रा पशेमानी के से अंदाज़ में कहने लगा, अब क्या अर्ज़ करूँ सेक्रेटरी साहिब। मुझे भी उस वक़्त नामालूम क्या सूझी कि उनके सामने ज़रा तेज़ी से बात करने लगा। दरअस्ल मैं अपनी लड़की की सगाई के सिलसिले में इधर बड़ा परेशान हूँ। आप जानते ही हैं कि मैं बवासीर का पुराना मरीज़ हूँ। रोज़ ब रोज़ तंदुरुस्ती गिरती जा रही है। अपनी ज़िंदगी में ही उसके हाथ पीले कर दूँ, बस अब तो यही लगन है।
वाँचू हमदर्दी करने लगा, जी हाँ, लड़की का होना भी इस सोसाइटी में अच्छी ख़ासी मुसीबत ही है लेकिन बात के इसी पहलू पर आप ने ज़ोर दिया होता तो भला कुंवर साहब इनकार कर सकते थे। उन्होंने लाखों रुपया रेस बाज़ी पर तबाह किया है। क्या उस कन्या दान के लिए वो कुछ न करते।
अच्छा तो अब आप ही बताइए कि मैं क्या करूं?
वाँचू कहने लगा, करियेगा क्या। कुंवर साहब ने जब आप से वादा किया है तो आपको अपना रुपया मिलेगा।
मुनहनी जिस्म वाले दीप चंद के रूखे चेहरे पर एक बारगी ज़िंदगी की रमक़ पैदा हो गई। वो मुस्कुरा कर बोला, तो फिर इस काम को अब करा ही दीजिए सेक्रेटरी साहिब! आप का बहुत बड़ा एहसान होगा।
वाँचू जल्दी से बोला, आप ख़्वाह मख़्वाह मुझको शर्मिंदा कर रहे हैं, फिर उसने मेज़ की दराज़ में से कुंजी निकाली और दीपचंद के सामने उसको डाल कर कहने लगा, लीजिए ज़रा सेफ में से चेकबुक निकाल लीजिए। मैं आपके लिए अभी चेक तैयार किए देता हूँ। इस वक़्त तो कुंवर साहब का मूड बिगड़ा हुआ है। सवेरे ऑफ़िस पहुँचने से पहले ही मैं उनसे दस्तख़त करवा के आप को चेक दे दूँगा। आप बिल्कुल इत्मिनान रक्खें।
और दीपचंद जैसे वाक़ई मुतमईन हो गया। उसने कुछ भी न कहा और चुपचाप घबराए हुए अंदाज़ में कुंजी उठाई और दीवार के पास खड़े हुए आहनी सेफ के पास पहुँच गया। फिर दीपचंद ने उसके ऊपर लगे हुए गहरे सब्ज़ी माइल छोटे बल्ब को देखा। जो अपनी एक आँख से उसकी तरफ़ घूर रहा था। गोया ख़तरे की कोई बात नहीं है। उसने ताले को खोल कर दरवाज़े को बाहर की तरफ़ खींच लिया। आहनी सेफ का अंदरूनी हिस्सा मुँह फाड़े हुए नज़र आने लगा और वाँचू गर्दन मोड़े हुए मुजरिमाना नज़रों से ये सब कुछ देखता रहा और जैसे ही दीपचंद ने आहनी सेफ के निचले ख़ाने का हैंडल मज़बूती से पकड़ कर उसको खोलना चाहा उसी वक़्त वाँचू ने दीवार में लगे हुए स्विच को दबाया। दीपचंद एका एकी बड़ी भयानक आवाज़ से चीख़ा। फिर उसके कराहने की दबी-दबी आवाज़ें गहरी ख़ामोशी में हांपने लगीं और वाँचू ने झट से कमरे के अंदर अंधेरा कर दिया। आतिशदान की गहरी सुर्ख़ रोशनी में उसका बेहंगम साया सामने वाली दीवार पर बड़ा मुहीब नज़र आने लगा। दीपचंद के हलक़ के अंदर से बिल्लियों के गुर्राने की सी ख़ौफ़नाक आवाज़ें निकल रही थीं और बाहर फ़ैक्ट्री के वर्कशॉप में लोहे के टकराने की आसेब ज़दा तारीकी में खड़ा हुआ वाँचू बड़ा पुरअसरार मालूम हो रहा था। उसकी आँखों में दहश्त थी और उसके गंजे सिर पर पसीने की नमी आ गई थी। फिर वो ख़्वाब में भटकने वाले सायों की तरह आहिस्ता आहिस्ता क़दम रखता हुआ आहनी सेफ के क़रीब जा कर ठहर गया और ज़रा देर तक बिल्कुल साकित खड़े रहने के बाद उसने दीप चंद की तरफ़ देखा जिसका हाथ अभी तक हैंडल से उलझा हुआ था और वो फ़र्श पर ख़ामोश पड़ा हुआ था। धुंदली रौशनी में उसकी फटी हुई आँखें बड़ी डरावनी मालूम हो रही थीं लेकिन वाँचू ख़ूँख़ार निगाहों से खड़ा हुआ उसको चुपचाप देखता रहा। फिर उसने नीलकंठ को आवाज़ दी और नीलकंठ सहमी हुई आवाज़ में बोला, क्या हुक्म है सेक्रेटरी साब?
वाँचू कहने लगा, जाओ बरानडे में लगे हुए मेन स्विच को आफ़ कर दो और उसके बाद कमरे के अंदर चले आना।
बाहर क़दमों की आहट सुनाई दी। फिर आहनी सेफ पर जलता हुआ सुर्ख़ रंग का छोटा बल्ब भी बुझ गया। अब ख़तरे की कोई बात नहीं थी और इसके साथ ही दीपचंद का हाथ हैंडल पर से छूट गया और उसका बेजान जिस्म फ़र्श पर एक तरफ़ को लुढ़क गया। फिर ज़रा देर बाद कमरे का दरवाज़ा खुला और नीलकंठ अंदर आ गया। वाँचू उस से कहने लगा,
इसको उठा कर बाहर लॉन में ले जाओ। मैं अभी ज़रा देर में आता हूँ।” उसकी आवाज़ में दबी हुई थरथराहट थी।
नीलकंठ ने एक बार भरपूर नज़रों से वाँचू को देखा जैसे वो पूछ रहा हो कि क्या ये गया? फिर उसने दीपचंद की लाश को उठा कर अपनी चौड़ी चकली पीठ पर लाद लिया और किसी कपड़े की तरह कमर को झुकाए संभल संभल कर क़दम रखता हुआ कमरे से बाहर चला गया। फिर वाँचू ने दीवार पर लगे हुए आहनी सेफ के स्विच को एहतियातन दबा कर आफ़ कर दिया और अपनी कोट की जेब में से टार्च निकाल कर उसको रौशन किया। फिर उस तेज़ रौशनी में वो सेफ के पास पहुंचा और उसकी पुश्त पर लगे हुए फ़लैक्ज़िबल वायर को अलाहिदा कर दिया और दीवार पर लगे हुए ब्रहना इलैक्ट्रिक वायर पर लेड शीट चढ़ा कर दोनों स्क्रू, अच्छी तरह कस दिए लेकिन अभी तक आहनी सेफ का अंदुरूनी हिस्सा मुँह फाड़े हुए नज़र आ रहा था और जब वो उसके दरवाज़े को बंद करने लगा तो एकबारगी उसको दीपचंद की फटी हुई आँखें याद आ गईं। उसका सारा जिस्म लरज़ उठा और आतिशदान के अंदर दहकते हुए अंगारे किसी जलती हुई चिता की तरह चटख़्ने लगी। वाँचू की सांस अब तेज़ी से चलने लगी और वो बदहवास सा कमरे से बाहर चला गया। कोठी के अंदर बिल्कुल तारीकी छाई हुई थी। उसने जल्दी से मेन स्विच आन कर दिया और एक दम से दरीचों पर रोशनी की हल्की हल्की लहरें झिलमिलाने लगीं। उस वक़्त कोठी के अंदर से कुंवर साहब के खांसने की आवाज़ सुनाई दी। मगर उसने उधर कोई तवज्जो न दी और तेज़ी से बरानडे की सीढ़ियों पर से उतरता हुआ बाहर लॉन में चला गया, जहाँ नील कंठ खड़ा हुआ उसका इंतिज़ार कर रहा था। वाँचू ने सरगोशी के से अंदाज़ में उसको धीरे से आवाज़ दी और दोनों गहरी धुंद में खोए हुए आहिस्ता आहिस्ता चलने लगे। उनके क़दमों की दबी-दबी आहट सुनसान रास्ते पर दूर तक सुनाई देती रही।
रात गए जब नीलकंठ अपने क्वार्टर पर वापस आया तो धुंदली रौशनी में उसने एक दुबले पतले बच्चे को देखा जो सर्दी से सिकुड़ा हुआ खड़ा था। उसने पहली ही नज़र में पहचान लिया कि वो दीपचंद एकाउंटेंट का लड़का मुन्ना था और थरथराई हुई आवाज़ में बूढ़े चौकीदार को पुकार रहा था, प्रभू बाबा और फिर प्रभु बाबा अंदर से खांसता हुआ उसको देखते ही हैरत से बोला,
अरे तुम, इस समय कहाँ से निकल पड़े, हाय राम, कितने ज़ोरों का जाड़ा पड़ रहा है
सर्दी से सिकुड़ा हुआ मुन्ना कहने लगा, बाबू जी अभी तक घर नहीं गए। माँ जी घबराती हैं। सो उन्होंने मुझको पूछने के लिए भेजा है और कृष्णा देवी तो रात को निकलती नहीं।
बूढ़ा चौकीदार कहने लगा कि वो कुंवर साहब की कोठी पर गए होंगे। मैं अभी जा कर उनसे कह दूँगा। चलो पहले मैं तुम को क्वार्टर तक छोड़ आऊँ और वो लड़के को अपने हमराह लेकर चल दिया। नीलकंठ अंधेरे में खड़ा हुआ सब कुछ देखता रहा। फिर एक बारगी उसने सुना कि मुन्ना ठहर कर कहने लगा था,
प्रभु दादा, तुम जा कर बाबू जी को ले आओ, मैं क्वार्टर चला जाऊँगा। तुम जल्दी से आ जाना। वो नन्ही बिल्लू है ना! बाबू जी के बिना उसको नींद नहीं आती। ख़ूब ज़ोर ज़ोर से रोती है।
और जैसे नीलकंठ के कान के पास कोई सरगोशी के से अंदाज़ में कहने लगा। जाओ मुन्ना अब तुम्हारे बाबू जी कभी नहीं आएँगे और नन्ही बिल्लू रोते, रोते उनके बगै़र ही सो जाएगी। वो फ़ैक्ट्री के पावर हाऊस के अंदर चुपचाप पड़े हैं। न कुछ बोलते हैं, न किसी की कुछ सुन सकते हैं। तुम्हारी आवाज़ अब उस तक नहीं पहुँच सकती।
और नीलकंठ महसूस करने लगा कि जैसे वो बहुत दुखी किया गया है। उसका मज़बूत पुट्ठों वाला जिस्म मोमबत्ती की तरह पिघलने लगा है और उसके चारों तरफ़ जैसे दबी-दबी सिसकियाँ धड़क रही हैं। फिर वो ख़्वाब के से आलम में आहिस्ता आहिस्ता चलता हुआ अपने क्वार्टर के दरवाज़े पर पहुँचा और उसको खटखटाने लगा लेकिन इस शोर से वो अचानक चौंक पड़ा और उसको याद आ गया कि दरवाज़ा तो अंदर से बंद है। फिर क्वार्टर की पुश्त पर जा कर सहन की पिछली दीवार को फांद कर वो अंदर आ गया। बिल्कुल उसी तरह जैसे वो डिस्ट्रिक्ट जेल की पत्थरों वाली ऊंची दीवार को फांद कर रात के सन्नाटे में फ़रार हुआ था। उसके पीछे गश्त करने वाले पहरेदारों की भयानक सीटियाँ देर तक चीख़ती रहीं और फिर अपने कमरे के अंदर लेटा हुआ वो बड़ी रात तक न जाने क्या ऊट-पटाँग क़िस्म की बातें सोचता रहा।
दूसरे दिन फ़ैक्ट्री के तमाम डिपार्टमैंट बंद रहे। इसलिए कि चीफ़ एकाऊंटेंट दीपचंद की अचानक मौत हो गई थी। उसकी लाश पावर हाऊस के अंदर पाई गई। उसने इलेक्ट्रिक भेंरियर के स्विच बस एक बार को ग़लती से छू लिया था और इस हादिसे से वो जाँबर न हो सका। इस इत्तिला के साथ ही फ़ैक्ट्री के यार्ड में ये भी सरगोशियाँ हो रही थीं कि दीपचंद ने ख़ुदकुशी कर ली है और उसकी वजह जानने के लिए कितनी ही क़यास आराइयाँ हो रही थीं लेकिन सहपहर को प्रोग्राम के मुताबिक़ डायरेक्टर्ज़ की मीटिंग हुई और कुंवर शिव राज सिंह की सिफ़ारिश पर दीपचंद के बेसहारा ख़ानदान के लिए पाँच हज़ार की रक़म गुज़ारे के लिए मंज़ूर कर दी गई।
फ़ैक्ट्री की तामीर एका एकी मत पड़ती जा रही है!
फागुन की महकी हुई हवाएँ चलने लगी हैं और उन तेज़ हवाओं में सरसों के गहरे ज़र्द फूलों की डालियाँ झूमने लगती हैं और वो खेतों में जैसे बसंती आँचल लहरा जाते हैं। खेतों में रात गए तक ढ़ोलक और झाँजनीं बजा करती हैं और होली के राग और नीचे सुरों में गाए जाते हैं। फिर गाँव के अंदर बड़े बड़े अलाव धमकने लगेंगे और गुलाल उड़ने लगेगा। फागुन की हवाएँ चीख़ती फिर रही हैं कि होली आ रही है, होली आ रही है। फिर गेहूँ की लहलहाती हुई खेतियाँ कटना शुरू हो जाएँगी और दूर के शहरों में काम करने वाले गाँव के लोग मौसम-ए-सर्मा में झीलों पर इकट्ठे होने वाले आबी परिन्दों की तरह अपनी बस्तियों में आना शुरू हो गए हैं। यूनाइटेड इंडस्ट्रीज़ लिमीटेड की फ़ैक्ट्री के यार्ड में मज़दूरों का शोर रोज़ बरोज़ मद्धम पड़ता जा रहा है। फ़सल की कटाई करने के लिए कंपनी के सारे क़ुली धीरे धीरे फ़ैक्ट्री का काम छोड़कर भागने लगे हैं। कंपनी ने घबरा कर उनकी कई हफ़्तों की मज़दूरी रोक ली है। इस बात से कुलीयों के रूखे चेहरों पर हर वक़्त झुंझलाहट छाई रहती है। वो टाइम कीपर ऑफ़िस में इकट्ठा हो कर ज़ोर ज़ोर से चिल्लाते हैं।
ये मज़दूरी क्यूँ नहीं मिलती, ऐसा क्यूँ हो रहा है?
ये सब क्या है? होली का त्यौहार आ रहा है, हम को पैसा चाहिए है।
हाँ, हम को अपनी मज़दूरी चाहिए है, हम को अपनी मज़दूरी चाहिए है।
लेकिन मज़दूरी अभी नहीं मिल सकती, इसलिए कि कंपनी चाहती है कि शूगर प्लाँट जल्द ही तामीर हो जाए। नहीं तो कंपनी का बहुत नुक़्सान हो जाएगा। मगर मज़दूर लोग इसके बावजूद भी नहीं ठहरते। वो गला फाड़ फाड़ कर चीख़ते हैं। सब को गालियाँ देते हैं। फिर किसी रोज़ तारों की छाँव में उठ कर अपनी बस्ती को चल देते हैं। इन बातों को देख कर बोर्ड आफ़ डायरेक्टर्ज़ की एमरजेंसी मीटिंग बुलाई गई और ये तय हुआ कि क़ुली लोगों का रेट बढ़ा दिया जाए। इसलिए कि फ़ैक्ट्री की तामीर में किसी क़िस्म की ताख़ीर नहीं होनी चाहिए। फिर इसके बाद मज़दूरी के रेट बढ़ना शुरू हो गए।
एक रुपया छः आने यौमिया!
एक रुपया दस आने यौमिया!
एक रुपया चौदह आने यौमिया!
मगर इन तीन हफ़्तों में रेट बढ़ाने का तजुर्बा भी कुछ कारगर साबित न हुआ। बल्कि होली का अलाव धमकते ही मज़दूरों ने और भी तेज़ी से काम पर से फ़रार होना शुरू कर दिया। हर रोज़ टाइम कीपर, रजिस्टर लेकर मैनेजिंग डायरेक्टर के ऑफ़िस में जाता और सहमी हुई सी आवाज़ में रिपोर्ट सुनाता। मैनेजिंग डायरेक्टर झुंझला कर मज़दूरों के साथ सहमे हुए टाइम कीपर को भी गालियाँ देने लगता। फिर एक रोज़ उसने वाँचू को अपने दफ़्तर में बुलाया और परेशानी के आलम में कहने लगा,
मिस्टर वाँचू आख़िर ये सब क्या हो रहा है। ये रेट इस तरह कब तक बढ़ाया जाएगा।
मगर वाँचू भी कुछ घबराया हुआ नज़र आ रहा है, वो आहिस्ता आहिस्ता कहने लगा, कुछ समझ में नहीं आ रहा है कुंवर साहब, बात ये है कि ये तराई का इलाक़ा है यहाँ की ज़मीन बड़ी ज़रख़ेज़ है। इस दफ़ा यही सुन रहा हूँ कि फ़सलें बहुत अच्छी रही हैं। राशन का ज़माना है, किसानों के ठाठ हो गए हैं। अब उन्हें ये फ़ैक्ट्री की नौकरी क्या अच्छी लगेगी और ये ज़मींदारी एबोलेशन की ख़बरों ने तो उनका और भी दिमाग़ ख़राब कर दिया है।
वो और भी परेशान हो कर बोला, तुम ने पूरी कथा सुनाना शुरू कर दी। इस तरह कैसे काम चलेगा। ये बताओ कि लेबर का कैसे बंदोबस्त हो।
वाँचू ज़रा देर तक मैनिजिंग डायरेक्टर के चेहरे की तरफ़ देखता रहा। फिर वो बड़े एतिमाद से बोला, मेरी समझ में तो एक ही बात आती है, लेकिन इसमें ख़तरा भी है और रुपया भी अच्छा ख़ासा ख़र्च होगा।
मैनेजिंग डायरेक्टर जल्दी जल्दी कहने लगा, ज़रा अपने आप को बचा कर काम करना और रुपये की तुम फ़िक्र न करो, मैं डाइरेक्टरों से निबट लूँगा और यूँ भी कुछ कम ख़र्च हो रहा है। अगर आइन्दा सीज़न तक फ़ैक्ट्री स्टार्ट न हुई तो ये समझ लो कि कंपनी दीवालिया हो जाएगी।
वाँचू पूछने लगा, आपके ख़याल में ये बंगाली कैमिस्ट सान्याल कैसा आदमी है, इस पर एतिबार किया जा सकता है?
वो गर्दन हिला कर बोला, मैं समझता हूँ कि आदमी तो वो काम का है। अनॉरकिस्ट पार्टी में कई साल तक रह चुका है। उन्ही दिनों पुलिस ने एक बार गिरफ़्तार कर लिया था। बहुत बुरी तरह उसको टार्चर किया मगर उसने ज़रा सा भी सुराग़ न दिया। तुम उस पर एतिबार कर सकते हो।
फिर वाँचू ने चपरासी को आवाज़ दी और उसको सान्याल के बुलाने के लिए भेज दिया। थोड़ी ही देर के बाद भद्दे चेहरे वाला कैमिस्ट दफ़्तर के अंदर आ गया। वाँचू ने ख़ामोशी के साथ उसका गहरी नज़रों से जाएज़ा लिया और फिर पूछने लगा, मिस्टर सान्याल, नवंबर के महीना में आप कंपनी के काम से बंबई गए थे और जहाँ तक मुझे याद पड़ता है, वहाँ आप ने गर्वनमैंट लेबोरेट्री से भी कुछ मश्वरा किया था, वहाँ कोई आपका जानने वाला तो नहीं है?
भद्दे चेहरे वाला सान्याल ज़रा देर तक ग़ौर करने के बाद बोला, जी हाँ! मेरी वाइफ़ के एक रिश्तेदार उसमें काम कर रहे हैं, जिनके फ़्लैट में दो रोज़ तक ठहरा भी था।
और वाँचू का घबराया हुआ चेहरा एक बारगी जैसे दमक उठा। वो चुंगी बजा कर बोला, फिर तो सब कुछ ठीक है। देखिए आज रात की गाड़ी से आप धुली चले जाएँ और वहाँ से हवाई जहाज़ के ज़रिए बंबई पहुँच जाइए, आप को गर्वनमेंट लेबोरेट्री के ज़रिए एक बड़ा अहम काम करना है। और उसके जवाब का इंतिज़ार किए बगै़र उसने टेलीफ़ोन उठा कर धुली के वास्ते सीट की रिज़र्वेशन के लिए स्टेशन मास्टर से गुफ़्तुगू की और सहपहर तक दस हज़ार रुपये का ड्राफ़्ट बनवा कर उसको दे दिया। फिर शाम के वक़्त मैनेजिंग डायरेक्टर की कोठी पर सान्याल, वाँचू के साथ बंद कमरे के अंदर देर तक राज़दाराना बातें करता रहा और प्रोग्राम के मुताबिक़ शब की ट्रेन से धुली रवाना हो गया।
पाँचवें दिन फ़ैक्ट्री में सान्याल का बंबई से टेलीग्राम आया, लिखा था, हार्डवेयर का बाज़ार बहुत ख़राब है। क्राशिंग सलेंडर अभी तक नहीं मिला, वाँचू ने तार को कई बार पढ़ा और अपने दफ़्तर में ख़ामोश बैठा हुआ इस कोड न्यूज़ पर ग़ौर करता रहा। फिर कई रोज़ और गुज़र गए लेकिन कोई इत्तिला न मिली और वाँचू की बेचैनी बढ़ने लगी। इस परेशानी में उसके रुख़सारों की उभरी हुई हड्डियाँ और बदनुमा मालूम होने लगी थीं। फिर एक रोज़ फ़ैक्ट्री का कैमिस्ट सरासीमगी के आलम में उसके दफ़्तर में दाख़िल हुआ। उसके चेहरे के भद्दे नुक़ूश घबराहट से धुँदले मालूम हो रहे थे। वाँचू कुर्सी पर ख़ामोश बैठा हुआ उसको ग़ौर से देखता रहा। फिर उसने आहिस्ता से पूछा, क्या ख़बर लाए हो?
काम तो बन गया।,
वाँचू मुस्कराने लगा, तो फिर तुम इतने परेशान क्यूँ हो?
सान्याल दरवाज़े की तरफ़ मुड़ मुड़ कर देखने लगा। फिर उसके क़रीब झुक कर कहने लगा, मुझे एक शख़्स पर शुब्हा हुआ है कि वो बंबई से मेरा पीछा कर रहा है, वाँचू लहज़ा भर के लिए गहरी ख़ामोशी में डूब गया। फिर उसने बड़े एतिमाद के साथ कहा,
अच्छा आप जा कर ज़रा सा नहा-धोकर आराम कीजिए। इस क़दर घबराने की कोई बात नहीं, सब कुछ ठीक हो जाएगा।
सान्याल ज़रा देर तक ख़ामोश खड़ा रहा फिर दफ़्तर से बाहर चला गया और वाँचू आहिस्ता आहिस्ता चलता हुआ खिड़की के क़रीब आ कर खड़ा हो गया। भद्दे चेहरे वाला कैमिस्ट फ़ैक्ट्री के फाटक से निकल कर अपने क्वार्टर की तरफ़ जा रहा था। वाँचू चुपचाप खड़ा हुआ उसको देखता रहा और जब एक मोड़ पर वो नज़रों से ओझल हो गया तो वो फिर अपनी मेज़ पर आ गया और टेलीफ़ोन उठा कर मैनेजिंग डायरेक्टर को रिंग किया। वो कोठी पर मौजूद था। वाँचू ने बंगाली कैमिस्ट के आने की उसको इत्तिला दी और ख़ुद भी दफ़्तर से निकल कर कुंवर साहब की कोठी की तरफ़ चल दिया। और जब रात ज़रा ढ़ल गई और गहरे सन्नाटे में दोनों का शोर तेज़ हो गया, तो वाँचू ने फ़ैक्ट्री की जीप स्टार्ट की जिसकी पिछली सीट पर आबनूसी जिस्म वाला नीलकंठ ख़ामोश बैठा हुआ था। फ़ैक्ट्री के अहाते से निकल कर जीप रोशन नगर रोड की तरफ़ मुड़ गई। तेरह मील तक पुख़्ता सड़क है, इसलिए जीप सनसनाती हुई तेज़ी के साथ गुज़रती रही। मगर जब ना-हमवार पथरीली सड़क आ गई तो जीप को झटके लगते और वो खड़ खड़ाने लगती लेकिन वाँचू ख़ामोशी से बैठा हुआ उसको ड्राईव करता रहा। उसके चेहरे पर बड़ा पुरअसरार सुकूत छाया हुआ है और नीलकंठ पिछली सीट पर बैठा हुआ सोचता रहा है कि झटकों से उसका सर बोझल होता जा रहा है। बाहर फागुन की हवाएँ चल रही हैं। फागुन की हवाएँ जो होली का संदेसा लाती हैं और होली जो अब ख़त्म हो चुकी है... अब तो गेहूँ की फ़सलें कट रही हैं और हंसिया की तेज़ बाढ़ से लहलहाती हुई गेहूँ की बालियाँ खेतों में ढ़ेर हो जाती हैं। जाने अशीर गढ़ के ख़ूबसूरत गाँव में अब नीलकंठ महाराज को कोई याद करता है जिसकी कटाई का चौपाल पर बड़ा चर्चा रहा करता था और एका एकी बॉँबी की लय पर झूमने वाले नाग की तरह वो बेहोशी के आलम में बड़बड़ाने लगा।
मैं एक किसान हूँ, हाँ मैं किसान हूँ!
फिर किसी ने फ़ौरन ही उसका गला दबोच लिया, नहीं तू मुजरिम है, तू मुजरिम है।पुलिस तेरा वारंट लिए अभी तक तलाश कर रही है।
नीलकंठ ने चौंक कर देखा, सामने वाँचू इत्मिनान से स्टेयरिंग पर बैठा हुआ था और पथरीली सड़क पर जीप हिचकोले खा रही थी और सितारों की मद्धम रोशनी में काहिस्तानी चट्टानें सायों की तरह कोसों तक फैली हुई थीं। फिर एक बारगी वाँचू ने जीप को नीचे ढ़लवान पर घुमा दिया। नीलकंठ घबरा कर अपनी सीट से चिमट गया लेकिन जीप डगमगाती हुई आहिस्ता आहिस्ता ग़ुनजान दरख़्तों के नीचे कुछ दूर तक चलती रही और फिर गहरे अंधेरे में जा कर ठहर गई और दोनों उतर कर नीचे आ गए। वाँचू ने आगे वाली सीट के नीचे से डायनामाइट के भारी केस को बाहर निकाला। ये डायनामाइट जिसको फ़ैक्ट्री का कैमिस्ट बंबई से अपने हमराह लाया था जिसको गर्वनमेंट लेबोरेट्री से स्मगल किया गया था और जिस पर कंपनी का नौ हज़ार से ज़ाइद रुपया ख़र्च हुआ था। फिर नीलकंठ ने उसको अपने मज़बूत हाथों में सँभाल लिया और दोनों अंधेरे में चलने लगे। उनके क़दमों के नीचे ख़ुश्क पत्ते खड़खड़ा रहे थे और दरख़्तों से उलझती हुई काहिस्तानी हवाएँ हाँपती हुई मालूम हो रही थीं। अंधेरा बहुत गहरा था और पथरीली चट्टानों में बहने वाली कोकीला नदी का शोर सुनाई देने लगा था। दोनों इसी तरह कई फर्लांग तक चलते रहे। फिर एक झुके हुए टीले पर से गुज़र कर जब वो नशीब में पहुँचे तो पत्थरों से टकराता हुआ दरिया का शोर बड़ा हैबतनाक मालूम होने लगा था। इस वादी में केला नदी का बहाव बहुत तेज़ है। दोनों तरफ़ सर बुलंद कोहसार हैं और जहाँ पर दरिया का धारा बहुत तेज़ हो गया है, उस मुक़ाम पर सरकारी डैम बना हुआ है। गर्वनमेंट ने हाईड्रो इलेक्ट्रिसिटी पैदा करने के लिए उसको तामीर करवाया है। उस बाँध के पास पानी गरजता हुआ ऊंचाई पर से गिरता है और क़रीब ही में पत्थरों की बनी हुई छोटी से इमारत है जिसके सामने दो पहरेदार संगीनों को सँभाले हुए मुस्तइदी से खड़े रहते हैं।
फिर वाँचू की हिदायात के मुताबिक़ नीलकंठ, डायनामाइट को सँभाले हुए, आहिस्ता आहिस्ता बिखरे हुए पत्थरों पर चलने लगा और फिर वाँचू, उसके वायर को मज़बूती से पकड़े हुए, पथरीली चट्टानों के अंधेरे में बैठा रहा। उसकी तीखी नज़रें सामने पत्थरों पर जाते हुए नीलकंठ का पीछा करती हैं। डैम के पास पहुँच कर, अचानक वो अंधेरे में ग़ायब हो गया और दरिया-ए-कोकिला का तेज़ धारा डैम के नीचे गरजता रहा। इस मुहीब शोर में फागुन की हवाएँ जैसे सो गई थीं और सर बुलंद कोहसार ख़्वाबों में ढके हुए मालूम हो रहे थे। फिर एका एकी डैम के ऊपर एक धुँदली रौशनी में एक इंसानी साया लहराया और उसी वक़्त पथरीली इमारत के नज़दीक खड़े हुए पहरेदार ने चीख़ कर कहा,
हाल्ट, कौन है, ठहर जाओ।
और इसके साथ ही बंदूक़ की तेज़ आवाज़ वादी के अंदर धड़कने लगी लेकिन नीलकंठ आहनी गार्ड से चिमटा हुआ डायनामाइट को फ़िट करता रहा। गोली उसकी कनपटी के पास से एक बार ज़न से गुज़र गई। वांचू अंधेरे में बैठा हुआ सहमी नज़रों से डैम की तरफ़ देखता रहा। एक दफ़ा फिर बंदूक़ की आवाज़ काहिस्तानी चट्टानों में चीख़ने लगी और उसकी धड़कन कोहसारों की गहराई में देर तक हाँपती रही। वाँचू का जिस्म थरथरा कर रह गया फिर एक दम से डायनामाइट का वायर ज़ोर ज़ोर से हिलने लगा। गोया अब अपना काम शुरू कर देना चाहिए मगर नीलकंठ अभी तक कहीं नज़र नहीं आ रहा था।
कोई एक मिनट उसके इंतिज़ार में गुज़र गया।
फिर कई मिनट बड़ी बेचैनी के आलम में गुज़र गए...
वाँचू ने एक बारगी झुंझला कर सोचा कि वो डैम को उड़ा दे। इसलिए कि अब ज़्यादा ताख़ीर करना बहुत ख़तरनाक था लेकिन ख़तरे के शदीद एहसास के बावजूद भी वो कुछ तय न कर सका इसलिए कि अगर नीलकंठ डैम की तबाही के साथ वहीं मर गया और बाद में उसकी लाश शनाख़्त कर ली गई तब तो बहुत बड़ा ख़तरा पैदा हो जाता और यही सोच कर वो बुरे अज़ियतनाक लम्हों में से गुज़रता रहा और सामने डैम की तरफ़ देखता रहा। आख़िर रात की मद्धम रौशनी में नीलकंठ का कुबड़ा जिस्म नज़र आया। वो पत्थरों पर झुका हुआ आहिस्ता आहिस्ता आ रहा था जब वो बिल्कुल क़रीब आ गया तो वाँचू ने आहिस्ता से सिर्फ़ इस क़दर पूछा, सब ठीक है! और नीलकंठ ने इस्बात में अपनी गर्दन हिला दी। वाँचू ने मज़ीद ताख़ीर किए बगै़र एक बारगी डायनामाइट को आन कर दिया और फिर काहिस्तानी वादी में बड़ी हैबतनाक घड़घड़ाहट पैदा हुई और ख़्वाबों में ढ़की हुई सरबुलंद पहाड़ियाँ लरज़ने लगीं। सरकारी डैम चीथड़ों की तरह बिखर कर रह गया और दरिया-ए-कोकीला का धारा बड़ी तेज़ी से नशीब में बहने लगा।
नीली आँखों वाला वाँचू नीलकंठ को अपने हमराह लेकर दरख़्तों के गहरे अंधेरे में तेज़ तेज़ क़दमों से चलने लगा। मगर नीलकंठ हर क़दम पर लड़खड़ा जाता। उसके कंधे पर से बराबर ख़ून बह रहा था, जो गोली से बुरी तरह ज़ख़्मी हो गया था और जब वो जीप के पास पहुंचा तो उसके पैर बिल्कुल बेक़ाबू हो चुके थे। वो डगमगाता हुआ बेजान हो कर पिछली सीट पर गिर पड़ा। जीप स्टार्ट हो गई। रास्ता भर वो कराहता रहा और उसके ज़ख़्म से ख़ून बहता रहा। जीप हिचकोले खाती तेज़ी से गुज़रती रही और जब वो फ़ैक्ट्री के अंदर पहुंचे तो नील कंठ पर बेहोशी की सी कैफ़ियत तारी थी। उसका आबनूसी जिस्म, छिपकली की तरह ज़र्दी माइल हो गया था और इसीलिए क्वार्टर में भेजने की बजाए उसको मैनेजिंग डायरेक्टर की कोठी पर ठहरा दिया गया। दरिया-ए-कोकीला पर बने हुए डैम के इस तरह तबाह हो जाने पर तराई के इलाक़े में बड़ी सनसनी फैल गई है और सरकारी हलक़ों में बड़ा तहलका मच गया है। इसलिए कि इस बाँध की तामीर पर गर्वनमेंट का करोड़ रुपया ख़र्च हुआ था। तहक़ीक़ात करने के लिए तमाम सरकारी अफ़सरों ने बड़ी दौड़-धूप शुरू कर दी है। डाक बंगला की मरम्मत हो रही थी इसलिए फ़ैक्ट्री के गेस्ट हाऊस में सब लोग ठहरे हुए हैं और बड़ी सरगर्मी के साथ तफ़तीश हो रही है। हर मुश्तबहा आदमी को हिरासत में लेकर पुलिस बुरी तरह टार्चर कर रही है और उन्हीं दिनों अचानक रेवेन्यू मिनिस्टर का दामाद नरायन वल्लभ फ़ैक्ट्री में आ गया। वो कंपनी का सब से अहम डायरेक्टर है। रात को मैनिजिंग डायरेक्टर के प्राईवेट कमरे में जब वो उसके पास पहुँचा तो एक दम से उस पर बरस पड़ा, कुंवर साहब, ये आप ने सब क्या कर के रख दिया है। मुझे ऐसा जान पड़ता है कि ये फ़ैक्ट्री अब बर्बाद होने वाली है।
मैनेजिंग डायरेक्टर पहले ही सरकारी अफ़सरों की आमद से बौखलाया हुआ था। नरायन वल्लभ की बातों पर वो और भी बदहवास हो गया। आहिस्ता से बोला, भई मेरी समझ में तो कुछ नहीं आ रहा है। मैं तो यहाँ से बड़ा आजिज़ आ गया हूँ।
मगर वो कहता ही रहा, अब तो आप ऐसा कहेंगे ही। मगर आप को कम से कम ये तो सोचना चाहिए था कि गर्वनमेंट का इंटेलीजेंस डिपार्टमेंट इतना अहमक़ तो नहीं कि इतनी बड़ी बात को भी न समझ सकता। होम सेक्रेटरी के पास जो रिपोर्ट पहुँची है उसमें इस फ़ैक्ट्री पर भी शुबहा ज़ाहिर किया गया है। इसलिए कि इधर जो लेबर की बिल्कुल कमी नहीं, शुबहा कर सकता है। दरअस्ल हुआ भी ऐसा ही है इसलिए कि अब कंपनी को कुलीयों की तलाश में अपने एजेंट गिर्द-व-नावाह की भीड़ लगी रहती है। कंपनी का लेबर ऑफीसर हर रोज़ सवेरे सिर्फ़ पच्चास आदमियों को अंदर बुलाता है और वो उसके सामने क़तार बना कर ख़ामोश खड़े हो जाते हैं। वो हर एक का जिस्म टटोल कर गोश्त के मज़बूत पुट्ठों का अंदाज़ा लगाता है और जिस आदमी को वो फ़िट समझता है उसकी चौड़ी चकली छाती पर खरिया से सफ़ेद निशान बना देता है। इसका मतलब ये है कि अब उसको फ़ैक्ट्री में काम मिल गया है और चौदह आने रोज़ मज़दूरी मिलेगी। उसका नाम और पता टाइम कीपर के रजिस्टर में दर्ज कर दिया जाता है। फाटक के बाहर खड़े हुए लोग जानवरों की तरह गर्दन उठा, उठा कर ये सब कुछ देखते हैं और सहमे हुए लहजे में आहिस्ता आहिस्ता बातें करते हैं!
मैनेजिंग डायरेक्टर और भी घबरा गया। वो बड़े शिकस्त ख़ूर्दा लहजा में कहने लगा, मुझे क्या मालूम था कि ये सब कुछ भी हो जाएगा। वाँचू तो मुझ से बराबर यही कहता रहा कि कोई ख़तरे की बात नहीं। सब ठीक हो जाएगा, इस तरह वाँचू पर सारा इल्ज़ाम रख कर वो जैसे किस क़दर मुतमइन हो गया और इस बात का असर भी ठीक ही हुआ। यूँ भी कंपनी का मैनेजिंग डायरेक्टर होने के अलावा वो रानी बाज़ार के इलाक़े का जागीरदार भी था। इसलिए नरायन वल्लभ एक दम से वाँचू पर बिगड़ने लगा,
वो तो मैंने पहले ही कहा था कि ये वाँचू मुझको बड़ा ख़तरनाक आदमी मालूम पड़ता है। आप उसकी साज़िशों को नहीं समझ सकते। देखिए अब यही सब से बेहतर तरीक़ा है कि वाँचू को इसी इशू पर फ़ैक्ट्री से फ़ौरन अलाहिदा कर दिया जाए वर्ना जब तक वो यहाँ मौजूद है, हर वक़्त ख़तरा सामने है, आप परेशान न हों, मैं सब कुछ संभाल लूँगा,
मैनेजिंग डायरेक्टर गहरी ख़ामोशी में खो गया इसलिए कि वो किसी तरह ये नहीं चाहता कि वाँचू उसके ख़िलाफ़ हो जाए। वो उसके हर ख़तरनाक राज़ को जानता है। इस तरह नौकरी से बरतरफ़ हो जाने पर उसका बर्गशता हो जाने का पूरा ख़ौफ़ था। थोड़ी देर तक इसी तरह चुप रहने के बाद वो कहने लगा, मैं तो सोच रहा था कि इस बात पर अगर वो कंपनी का मुख़ालिफ़ हो गया तो सरकारी गवाह बन कर बहुत बड़ी मुसीबत बन सकता है। मेरा ख़याल है कि किसी और तरीक़े से उसको यहाँ से अभी हटा दिया जाए, बाद में देखा जाएगा, और ये बात नरायन वल्लभ एम.एल.ए. की समझ में भी आ गई और फिर दोनों किसी नतीजे पर पहुंचने के लिए देर तक कमरे के अंदर बैठे हुए बातें करते रहे और जब नरायन वल्लभ कमरे से बाहर चला गया तो कुंवर साहब ने वाँचू को बुलवा लिया और सारी बातें उसको बता दीं और फिर ये तय हुआ कि वो नेपाल की राजधानी काठमांडू चला जाए। सरहद को पार करने में कोई मुश्किल न होगी इसलिए कि राना दिलेर जंगजू रियासत के एक अहम रुक्न थे, वो कुंवर साहब की शिकार गाहों में अक्सर शिकार खेल चुके थे और दोनों के आपस में बड़े अच्छे मरासिम थे और जब तक काठमांडू में रहेगा उसको बराबर एक हज़ार रुपया महीना मैनेजिंग डायरेक्टर की तरफ़ से मिलता रहेगा। फिर एक रोज़ फ़ैक्ट्री की कार में बैठ कर वो स्टेशन की तरफ़ चल दिया। कोई नहीं जानता कि वो कहाँ जा रहा है। दफ़्तर में काम करने वाले सिर्फ़ इसी क़दर जानते हैं कि वो कंपनी के किसी ज़रूरी काम के सिलसिले में कलकत्ता जा रहा है और वाँचू कार में ख़ामोश बैठा हुआ दूर होती हुई फ़ैक्ट्री की इमारत को देखता रहा, जिसकी तामीर के लिए उसने ख़तरनाक साज़िशें की थीं और वो फ़ैक्ट्री उसकी आँखों से दूर होती जा रही थी। उसकी गहरी नीली आँखें बड़ी पुरअसरार मालूम होती थीं।
सरकारी डैम तबाह हो जाने की वजह से कोकीला नदी में बड़ा भयानक तूफ़ान आ गया है। बिफरी हुई लहरें तराई के मैदानी इलाक़ों में, शब ख़ून मारने वाले ग़नीम की तरह फैलती जा रही हैं। गेहूँ की लहलहाती फ़सलें पानी के बहाव में बह गई हैं। सारी बस्तियाँ वीरान होती जा रही हैं और तबाह हाल किसान अपने घरों को छोड़ छोड़ कर भाग रहे हैं और राहील रोड पर मरियल इंसानों के क़ाफ़िले गुज़रते हैं। इसलिए कि सैलाब ज़दगान के लिए अमीरगढ़ में सरकार ने रिलीफ कैंप क़ायम कर दिया है। इस सिलसिले में गर्वनमेंट का जो प्रेस नोट शाए हुआ है, उसमें एलान किया गया है कि इस तबाही में कम्युनिस्टों की दहश्त पसंदी को दख़ल है जो अपने सियासी मफ़ाद के लिए मुल्क में बे इत्मिनानी और हैजान पैदा कराना चाहते हैं और इसलिए पुलिस ने किसान सभा के दफ़्तर पर छापामार कर कितने ही किसान वर्करों को हिरासत में ले लिया है।
नीलकंठ कुंवर साहब की कोठी के एक मुख़्तसर से कमरे में लेटा हुआ आहिस्ता आहिस्ता कराह रहा है। उसके कंधे पर सफ़ेद पट्टियाँ बंधी हुई हैं और उसका मज़बूत पुट्ठों वाला आबनूसी जिस्म छिपकली की मानिंद ज़र्दी माइल हो गया है। ख़ून के ज़्यादा बह जाने से उस पर बार बार ग़शी के दौरे पड़ते हैं और कुंवर साहब ने कंपनी की तरफ़ से कमिशनर के एज़ाज़ में अपनी ख़ूबसूरत कोठी पर एक शानदार डिनर का इंतिज़ाम किया है जिसका हंगामा रात गए तक फ़ैक्ट्री के अंदर गूंजता रहा।