तपन का दुख (बांग्ला बाल कहानी) : सुनील गंगोपाध्याय

Tapan Ka Dukh (Bangla Story) : Sunil Gangopadhyay

तपन को आजकल कुछ अच्छा नहीं लगता है। खिड़की के पास प्राय: अकेला खड़ा रहता है, या फिर छत पर जाकर इधर-उधर ताकता - झाँकता रहता है। उसे लगता है, संसार में उसे कोई नहीं चाहता ।

जबकि यह सच नहीं है, पिता-माता उसे खूब प्यार करते हैं और छोटी मौसी तो आते ही उसे खूब प्यार करती हैं। भैया कभी-कभी डाँटते जरूर हैं - अपनी किताबें छूते ही बिगड़ उठते हैं, लेकिन भैया तो उसके लिए चाकलेट खरीद देते हैं, चना-चबैना खरीदने के लिए पैसा देते हैं और घर का काम-धाम करने वाले बूढ़े बेचाराम तो उसका ही कहना मानते हैं । तब भी तपन को क्यों लगता है कि उसे कोई नहीं चाहता ।

पिछले महीने तपन ने तेरह साल पार कर चौदहवें में पैर रखा है। अचानक किस तरह वह लम्बा होता जा रहा है, अभी वह अपनी माँ से भी लम्बा है। पिछली पूजा में खरीदे गये सारे कपड़े अब छोटे पड़ गये हैं । आवाज भी किस तरह भारी-भरकम हो गयी है। वह अपनी आवाज खुद भी नहीं पहचान पाता है ।

अब वह माता-पिता के साथ एक ही बिस्तर पर नहीं सोता । माँ ने भैया के साथ सोने के लिए कहा था, लेकिन वही नहीं मानता। भैया नींद में किस तरह पैर चलाते हैं। तब से तपन अलग खाट पर सोता है। किसी-किसी दिन रात में हठात् नींद टूट जाने पर तपन को बड़ा डर लगता है। तपन को भूत का डर नहीं है। विज्ञान की पुस्तक में उसने पढ़ा है, भूत नाम की कोई वस्तु नहीं है। लेकिन नींद टूट जाने पर लगता है, सारी पृथ्वी एकदम से चुपचाप है, दूर पर केवल कुत्ते रोने की आवाज में भूँक रहे हैं और कुछ भी नहीं । तब तपन को लगता है, वह कितना अकेला है, उसे कोई नहीं चाहता इस दुनिया में ।

* * * * *

दोपहर से बारिश हो रही है, तपन स्कूल से भीगकर घर लौटा था । आज तो विवेकानन्द पार्क में खेल नहीं पायेगा। पतंग भी उड़ा नहीं सकेगा तपन, तब अभी क्या करे? कहानी की कोई किताब भी नहीं । सब पढ़ ली है - और भैया की पुस्तक तो छूते ही वे बोलेंगे, 'सयाने लोगों की किताबें नहीं पढ़नी चाहिए।' क्या होगा भला, अगर ऐसी किताबें पढ़ी जायें ? तपन ने लुकछिप कर भैया की आलमारी से किताबें निकालकर पढ़ी हैं, कुछ भी तो नहीं हुआ, लेकिन सब किताबें बड़ी बेकार की हैं, केवल बातें और बातें ।

माँ पड़ोसी की शान्ति बुआ से बातें कर रही थीं, तपन के वहाँ पहुँचते ही वे चुप हो गयीं । तपन अब समझने लगा है कि, चुप हो जाने के मायने हैं कि वे उसके सामने बातें करना नहीं चाहतीं । तपन वहाँ से चला आया। भैया अपने कमरे में दोस्तों के साथ बैठकी जमाये हुए हैं और छुपकर सिगरेट पी रहे हैं। वहाँ जाते ही, भैया बिगड़ उठे, 'तुम जाओ अभी यहाँ से!'

लेकिन तपन जाये तो कहाँ ? आगे सामने वाले मकान में वह टुलटुल के साथ कैरम खेलता था। अब जब से टुलटुल साड़ी पहनने लगी है, तब से बदल गयी है। अब वह सब समय लड़कियों के साथ खेलती है। बीच-बीच में फिस- फिस करके अपने से बातें करती है और हँसी से लोट-पोट होती है। लड़कियाँ सब हँसती रहती हैं। इसीलिए तपन को वे अच्छी नहीं लगती हैं। टुलटुल अब उसकी दोस्त नहीं है। तब भी वह खिड़की से झाँककर बुलाने लगा, 'ये टुलटुल, आओ कैरम खेलें ।' लेकिन टुलटुल तो आईने के सामने बाल सँवारने में ही व्यस्त है। तपन का जवाब बड़े तंग मिजाज से दिया, 'नहीं, मैं दीदी के साथ सिनेमा जा रही हूँ।'

तपन अकेला ही सीढ़ी से छत पर चढ़ आया। बारिश की तरफ एकटक देखता रहा। उसका मन बड़ा उदास था। उसे कोई भी नहीं चाहता ।

* * * * *

इसके दो दिन बाद तपन रास्ते पर अन्यमनस्क होकर जा रहा था, आँखें आकाश की तरफ थीं, वह पतंगबाजी देख रहा था। कौन पतंग काटता है, जब तक न कट जाये, तब तक वह नजर लगाये था । काले रंग का पतंग डोलता आ रहा है। कुछ लड़के बच्चे उसे पकड़ने के लिए आ रहे थे। पतंग पेड़ पर जा अटका, फिर अचानक चक्कर मारकर वह रास्ते की तरफ गिरने लगा, और एक बच्चा तीर की तरह तेजी से भागा उस ओर ।

तपन चीख पड़ा, 'ऐ, गाड़ी, गाड़ी!' गाड़ी नजदीक आ गयी थी, इसे वह देख नहीं पाया था । तपन से नहीं रहा गया, उसने दौड़कर बच्चे को दूसरी तरफ ठेल दिया। उसके बाद क्या हुआ, तपन को ख्याल नहीं ।

नजदीक ही तपन का मकान। मोहल्ले के लोग उसे पहचान गये थे । मोटर गाड़ी से धक्का खाया था तपन । विशेष कोई खतरा नहीं था। उस गाड़ी का ड्राइवर एवं दूसरे लोग उसे उठाकर घर पर ले आये थे ।

'ये तपु ! ये तपु !'

मानो खूब दूर से किसी की पुकार सुनी जा रही है। तपन ने आहिस्ते से आँखें खोलीं। आँखों के सामने उसकी माँ का चेहरा झलका। चेहरे पर आँसू की अविरल धारा बह रही थी। पिता के चेहरे पर पीड़ा व उत्सुकता के भाव झलक रहे थे। भैया कभी भी इस वक्त घर पर नहीं रहते - लेकिन भैया भी उसकी ओर व्यग्रता से ताक रहे हैं, बुलाते हैं, 'ये तपु !'

बेचाराम का मुँह उदासी से लटक आया है। टुलटुल भी आयी है, उसका चेहरा देखकर लगता है, अभी-अभी वह रो देगी।

तपन को अब कोई तकलीफ नहीं है। उसे अच्छा लग रहा है। घर के सारे लोगों को देखकर लगता है, सारे के सारे लोग उसकी तकलीफ में शामिल हैं, उसके लिए व्यग्र हैं। तपन की समझ में आ गया कि सभी उसे चाहते हैं। प्यार करते हैं।

  • मुख्य पृष्ठ : सुनील गंगोपाध्याय की कहानियाँ हिन्दी में
  • बंगाली/बांग्ला कहानियां और लोक कथाएँ
  • मुख्य पृष्ठ : भारत के विभिन्न प्रदेशों, भाषाओं और विदेशी लोक कथाएं
  • मुख्य पृष्ठ : संपूर्ण हिंदी कहानियां, नाटक, उपन्यास और अन्य गद्य कृतियां