टूटे हुए जहाज़ के नाविक की कहानी : मिस्र की लोक-कथा

Tale of the Shipwrecked Sailor : Egyptian Folk Tale

टूटे हुए जहाज़ के नाविक की कहानी एक ऐसी कहानी है जो मध्य साम्राज्य के समय की है। यह अपनी तरह की अकेली ही कहानी है – जहाज़ टूटने पर समुद्र के किनारे पर फेंके जाने वालों की कहानियाँ, वीरान टापुओं की कहानियाँ और समुद्री यात्राओं की कहानियाँ।

यह कहानी सेंट पीटर्सबर्ग के इम्पीरियल म्यूजियम में एक पैपीरस पर लिखी हुई पायी गयी। जिस लिखने वाले ने इसकी नकल की उसका नाम मिलता है – अमेनी–अमेना। इसका मतलब होता है “चालाक उँगलियों वाला”।

यह कहानी शुरू होती है कि एक नौकर अपने मालिक को उसकी समुद्री यात्रा से वापसी पर तसल्ली दे रहा है क्योंकि वह अपने मिशन में फेल हो चुका है। नाविक बेचारा चिन्तित है कि राजा क्या कहेगा पर उसका नौकर उसको सलाह देता है कि इस परेशानी के समय में उसे किस तरह से बर्ताव करना चाहिये।

इस समय वह नौकर अपनी एक समुद्री यात्रा का हाल बताता है कि कैसे उसका जहाज़ टूट गया था और फिर वह कैसे बचा।

अक्लमन्द नौकर बोला — “अपने मन को शान्त रखिये मालिक क्योंकि इतने दिनों तक जहाज़ पर रहने के बाद हम लोग कम से कम अपने देश वापस आ गये हैं। हमारे जहाज़ ने हमारी धरती को छू लिया है। सारे लोग एक दूसरे के गले लग लग कर खुशियाँ मना रहे हैं।

इसके अलावा हम सब तन्दुरुस्त हैं और सब ज़िन्दा हैं हममें से कोई भी खोया नहीं है। हालाँकि हम लोग सेनमुत होते हुए ववात यानी नूबिया के किनारे तक हो आये हैं फिर भी हम सब शान्ति से वापस आ गये हैं और अब अपनी धरती देख रहे हैं।

मेरे मालिक सुनिये मेरा और कोई सहारा नहीं है। जा कर नहाइये धोइये और अपनी कहानी हिज़ मैजेस्टी से कहिये।”

मालिक बोला — “तुम्हारा दिल अभी भी कुछ घूमते हुए से शब्द कह रहा है। पर हालाँकि किसी आदमी का मुँह उसे बचा सकता है या फिर उसके शब्द उसके चेहरे को ढक सकते हैं पर तुम जो कुछ मुझसे कहलवाना चाहते हो वह मुझसे साफ साफ कहो।”

नाविक बोला — “अब मैं आपको वह बताता हूँ जो कुछ मेरे साथ हुआ, मेरे अपने साथ। एक बार मैं फैरो की खानों तक जा रहा था। मैं एक जहाज़ पर समुद्र में निकल गया। जहाज़ एक सौ पचास क्यूबिट लम्बा और चालीस क्यूबिट चौड़ा था।

उसमें मिस्र के सबसे अच्छे एक साहृ पचास जहाज़ को खेने वाले थे जिन्होंने सातों आसमान और धरती देखे हुए थे। जिनके दिल शेर के दिलों से भी मजबूत थे।

उन्होंने कहा कि हवा उलटी तो नहीं बहेगी या फिर बहेगी ही नहीं। पर जैसे ही हम धरती के पास पहुँचे कि हवाऐं चलने लगीं। वे इतनी तेज़ चल रही थीं कि वे समुद्र की लहरों को आठ आठ क्यूबिट तक ऊपर उठा रही थीं।

जहाँ तक मेरा सवाल था मैंने एक लकड़ी का लठ्ठा पकड़ रखा था पर जो लोग जहाज़ में थे वे सब मर गये। उनमें से एक भी नहीं बचा। एक लहर ने मुझे एक टापू पर फेंक दिया। उसके बाद तीन दिन तक मैं वहाँ अकेला ही रहा जहाँ मेरे दिल के अलावा मेरे कोई और साथी नहीं था।

मैं वहाँ एक झाड़ी मे लेटता और उसकी छाया ही मेरे ओढ़ने की चादर थी। किसी चीज़ को पकड़ने के लिये जब मैं अपने हाथ आगे बढ़ाये तो मुझे अंजीर सब तरह के अनाज कई तरह के तरबूज और मछलियाँ और चिड़ियें ही मिलीं। वहाँ किसी चीज़ की कोई कमी नहीं थी।

मैंने खूब पेट भर कर खाया और थोड़ा सा अपनी बाँहों मे भरा और जो कुछ ज़्यादा था उसे वहीं पर छोड़ा। फिर मैंने एक गड्ढा खोदा और उसमें आग जला कर देवताओं को भेंट दी।

अचानक मैंने बिजली की सी आवाज सुनी जो मुझे लगा जैसे किसी बड़ी लहर की आवाज थी। उससे बहुत सारे पेड़ हिल गये धरती भी हिल गयी। मैंने अपना चेहरा उघाड़ कर चारों तरफ देखा तो पाया कि एक बहुत बड़ा साँप मेरी तरफ आ रहा है।

वह तीस क्यूबिट लम्बा था और उसकी दाढ़ी तो दो क्यूबिट से भी ज़्यादा लम्बी थी। उसके शरीर पर सोना लगा था। उसका रंग सच्ची लज़ूली जैसा था यानी चमकीला नीला था। वह मेरे सामने कुंडली मार कर बैठा हुआ था।

तब उसने अपना मुँह खोला। मैं उसके सामने मुँह के बल लेटा हुआ था कि वह बोला — “तुम यहाँ क्यों आये हो, तुम यहाँ क्यों आये हो। ओ छोटे आदमी। तुम यहाँ क्यों आये हो। अगर तुम मुझे जल्दी से यह नहीं बताओगे कि तुम इस टापू पर क्यों आये हो तो मैं तुम्हें खुद बता दूँगा कि तुम कौन हो।

अगर तुम मुझे कुछ नहीं बताओगे जो मैंने नहीं सुना या जो मैं नहीं जानता तो फिर जैसे लपट गायब हो जाती है वैसे ही तुम भी गायब हो जाओगे।”

कह कर उसने मुझे अपने मुँह में ले लिया और मुझे अपने घर ले गया और मुझे बिना किसी तकलीफ के लिटा दिया। मैं बिल्कुल ठीक था उसने मेरा कुछ नहीं बिगाड़ा था।

उसने फिर मेरे सामने मुँह खोला और फिर पूछा — “तुम यहाँ क्यों आये हो, तुम यहाँ क्यों आये हो। ओ छोटे आदमी। तुम यहाँ इस टापू पर क्यों आये हो जो समुद्र में है और जिसके किनारे लहरों के बीच में हैं।”

तब मैंने हाथ जोड़ कर उससे कहा — “राजा के हुक्म से मैं खानों पर जाने के लिये जहाज़ पर चढ़ा था। उस जहाज़ की लम्बाई एक सौ पचास क्यूबिट थी और चौड़ाई चालीस क्यूबिट। उसके ऊपर मिस्र के सबसे अच्छे एक सौ पचास नाविक सवार थे जिन्होंने धरती और आसमान सब देखा हुआ था। और जिनके दिल शेरों से भी ज़्यादा मजबूत थे।

उन्होंने कहा था कि हवा उलटी नहीं बहेगी या फिर बहेगी ही नहीं। हर नाविक एक दूसरे से ज़्यादा हिम्मत वाला था और नाव खेने में ज़्यादा होशियार था। और मैं भी उनमें से किसी से कम नहीं था।

सो जब हम समुद्र में थे तो एक बहुत बड़ा तूफान आया। हम मुश्किल से किनारे पर पहुँचे थे कि हवाऐं और तेज़ हो गयीं और लहरें भी आठा आठ क्यूबिट ऊँची उठने लगीं।

जहाँ तक मेरा सवाल था मैंने लकड़ी के एक टुकड़े को पकड़ लिया। जहाँ तक नाव में बैठे लोग थे सब डूब गये उनमें से एक भी नहीं बचा। मैं इस टापू पर आ गया और यहाँ तीन दिन तक पड़ा रहा। अब आप मेरे सामने हैं। मुझे यहाँ समुद्र की एक लहर ला कर पटक गयी है।”

तब वह साँप बोला — “डरो नहीं डरो नहीं ओ छोटे आदमी। दुखी भी मत हो। अब तुम मेरे पास आ गये हो इसका मतलब यह है कि भगवान तुम्हें ज़िन्दा रखना चाहता है। क्योंकि यह वही है जो तुम्हें इस सुन्दर टापू पर ले कर आया है जहाँ किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है। और जो सब अच्छी चीज़ों से भरा हुआ है।

देखो न जब तुम एक एक कर के यहाँ चार महीने गुजार दोगे तब तुम्हारे देश से एक जहाज़ यहाँ आयेगा तब तुम उनके साथ अपने देश चले जाना। यकीन रखो तुम अपने ही शहर में मरोगे।

तुमसे बात कर के मुझे बहुत अच्छा लग रहा है। जो बातें करने में आनन्द लेता है वह दुख के समय को जल्दी गुजार लेता है। मैं यहाँ अपने भाइयों और बच्चों के साथ रहता हूँ। हम अपने बच्चों और नाती पोतों के साथ यहाँ पिचहत्तर साँप हैं।

हमारे पास एक बहुत ही छोटी साँपिन है जो मेरे पास अभी अभी लायी गयी है। हमने अभी उसका नाम भी नहीं रखा है। उस पर भगवान की आफत गिर पड़ी जिसने उसको जला कर रख कर दिया।

जहाँ तक तुम्हारा सवाल है अगर तुम मजबूत हो अगर तुम्हारा दिल धीरज से सब्र रख सकता है तो तुम अपने बच्चों और पत्नी को को अपने गले से जरूर लगाओगे। तुम अपने घर जरूर वापस लौटोगे जिसमें सब कुछ बहुत अच्छा है। तुम अपने देश जरूर लौटोगे और अपने प्यारों के बीच जरूर रहोगे।”

तब मैंने आदर से उसे सिर झुकाया और उसके सामने की जमीन छुई।

अब देखिये जो मैंने आपसे कहा था मैं उसको अपने फैरो के सामने भी कहूँगा। मैं उनको आपका बड़प्पन बताऊँगा। मैं आपके लिये पवित्र तेल और खुशबुऐं लाऊँगा मन्दिरों की खुशबुऐं लाऊँगा जो देवताओं को खुश करने के लिये इस्तेमाल की जाती हैं।

मैं उनको वह भी बताऊँगा जो मैंने देखा नहीं है और फिर वहाँ उस देश में आपकी प्रशंसा की जायेगी। मैं आपके लिये चिड़ियें ले कर आऊँगा और मिस्र का सब तरह का खजाना ले कर आऊँगा जो देवताओं को देने लायक होता है। आदमी के एक ऐसे दोस्त को जो एक दूर देश में रहता है जिसके बारे में दूसरे लोग नहीं जानते।”

यह सुन कर साँप जो उसके दिल में था उसको सोच कर मुस्कुराया। क्योंकि उसने मुझसे कहा — “तुम लोगों के पास कोई बहुत ज़्यादा खुशबुऐं नहीं हैं क्योंकि तुम्हारे पास जो कुछ है वह बस सामान्य खुशबुऐं हैं। मेरे पास क्योंकि मैं पुन्ट देश का राजकुमार हूँ बहुत सारी खुशबुऐं हैं।

केवल तेल, जैसा कि तुम कहते हो कि तुम लाओगे, वह इस टापू पर बहुत ज़्यादा नहीं जाना जाता। पर जब तुम यहाँ से जाओगे तो उसके बाद तुम्हें यह टापू फिर कभी दिखायी नहीं देगा। यहाँ समुद्र आ जायेगा।”

और देखो जैसा साँप ने मुझसे बहुत पहले कहा था जहाज़ मेरे पास आया तो मैं यह देखने के लिये एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गया कि उसमें कौन था। और जब मैंने उनको यह सब बताना चाहा तो उन्होंने कहा कि उनको तो यह सब पहले से ही मालूम था।

तब साँप ने मुझसे कहा — “विदा विदा। अपने घर जाओ। फिर से अपने बच्चों को देखो अपने शहर में अपना नाम ऊँचा करो। यही मेरी तुम्हारे लिये शुभकामना है।”

मैंने उसके सामने फिर सिर झुकाया अपनी बाँहें नीची कर के फैलायीं। उसने मुझे बहुत सारी भेंटें दीं – कीमती खुशबुऐं जैसे दालचीनी की, दूसरी खुशबूदार लकड़ियों की, काजल, अगरबत्ती की खुशबुऐं, हाथी दाँत बबून और बन्दरों के दाँत और बहुत सारी कीमती चीज़ें।

उस सब सामान के साथ मैं जहाज़ पर चढ़ गया। मैंने उसको सिर झुकाया और उसके भगवान से दुआ माँगी।

उसने मुझसे आगे कहा — “तुम दो महीने में अपने देश पहुँचोगे। तुम अपने बच्चों को अपनी छाती से लगाओगे फिर अपनी कब्र में आराम करोगे।”

इसके बाद मैं किनारे जा कर अपने जहाज़ में गया और उस जहाज़ के नाविकों को बुलाया। मैंने उस टापू के मालिक और उस पर रहने वालों की प्रशंसा की।

दो महीने में जब हम अपने देश फैरो के पास आये तो जैसा कि साँप ने कहा था हम महल जायेंगे। तब मैं फैरो के सामने जाऊँगा और वहाँ पहुँच कर मैं कहूँगा कि मैं आपके लिये उस टापू से कुछ भेंटें लाया हूँ। तब वह सबके सामने मुझे धन्यवाद देगा। तब तुम एक आदमी माँगना और मुझे फैरो के दरबारियों के सामने ले कर जाना।

जब मैं उससे मिल लूँ और यह साबित कर दूँ तब तुम मेरी तरफ एक नजर देखना। तुम यह मेरी विनती सुनो क्योंकि लोगों को सुनना अच्छा होता है। मुझसे कहा गया था कि “अक्लमन्द आदमी बनो तुम्हारी इज़्ज़त होगी।” और देखिये कि मैं ऐसा हो गया।”

1 Cubit = 18”, so 150 Cubit = 150 x 18” = 2700” = 75 yards long

Land of Punt – A part of Ethiopia plus some part of Sudan together were called the “Land of Punt” in very ancient times.

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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