एक वाकचतुर किसान की कहानी : मिस्र की लोक-कथा

Tale of the Eloquent Peasant : Egyptian Folk Tale

इस कहानी की क्या खूबी है कि यह कहानी यह बताती है कि कैसे पुराने मिस्र का कानून एक सामान्य आदमी के लिये काम करता था। हम लोग मिस्र के बारे में जो कुछ जानते हैं वह उसके पैपीरस पर लिखे हुए के अनुसार ही जानते हैं जो बड़े लोगों के मकबरों में मिलते हैं। ये लेख उनके जीवन का हाल बताते हैं।

वाक चतुर किसान की कहानी जिस पैपीरस पर लिखी हुई मिलती है वह आजकल ब्रिटिश लाइब्रेरी और रौयल लाइब्रेरी औफ बर्लिन में रखी हुई है।

यह कहानी शायद चौथे राजवंश के राजा नैबकौरे खेती के समय की है और हैरक्लियोपोलिस में हुई थी। यह 1800 बी सी की बात है।

एक बार की बात है कि सैचैत–हैमत में एक हूनानुप नाम का किसान था। उसके एक पत्नी थी। एक बार उसने मिस्र जाने की सोची ताकि वह अपने बच्चों के लिये रोटी ला सके सो उसने अपनी पत्नी से कहा कि वह भंडारघर में जा कर वहाँ अनाज देख ले कि उसमें कितने बुशैल अनाज है। मैं बच्चों के लिये रोटी लाने के लिये मिस्र जा रहा हूँ।

उसने अपनी पत्नी के लिये आठ बुशैल अनाज मापा। फिर उसने अपनी पत्नी से कहा “दो बुशैल अनाज तुम्हारे और तुम्हारे बच्चों के लिये काफी है। और छह बुशैल अनाज मेरी यात्रा के लिये बीयर और रोटी बनाने के लिये रख दो ताकि मैं उसे अपनी यात्रा में खा सकूँ।”

फिर उसने सैचैत–हमेत का सारा सामान अपने गधों पर लादा और दक्षिण की तरफ एहनास को चल दिया। वह जब परफ़ैफ़ी तक पहुँचा तो वहाँ उसने एक आदमी को किनारे पर खड़ा पाया। जिसका नाम था दहूतीनख्त और वह इसैरी का बेटा था जो कभी सरदार मैरूटैन्सी के खेतों में काम करने वाला एक मजदूर था।

दहूतीनख्त ने जब हूनानुप को बोझे से लदे हुए गधे ले जाते देखा तो उसने सोचा क्यों न इसको लूट लिया जाये। दहूतीनख्त का घर पास में ही था और वह रास्ता जो किसान को पार करना था उसके एक तरफ पानी था और दूसरी तरफ राजा के अनाज का खेत था।

दहूतीनख्त ने अपने एक नौकर से चिल्ला कर जल्दी से एक शाल लाने के लिये कहा जिसे उसने रास्ते के बीच में बिछा दिया – पानी के किनारे से ले कर दूसरी तरफ अनाज के ढेर तक। इससे सारा का सारा रास्ता रुक गया।

जब किसान उस बिछे हुए शाल तक आया तो दहूतीनख्त बोला
— “ओ किसान ज़रा सँभल के। देखो मेरे कपड़े खराब मत कर देना।”

किसान बोला — “जैसा तुम कहो। मैं अपने रास्ते चला जाऊँगा।” सो जब वह अपने रास्ते जा रहा था तो उसे शाल से अनाज के ढेर की तरफ से निकल कर जाना था तो दहूतीनख्त बोला
— “क्या मेरा अनाज का ढेर ही तुम्हारा रास्ता है?”

किसान बोला — “मैं अपने रास्ते जा रहा हूँ। नदी का किनारा बहुत ढालू है तो रास्ता तो अनाज के ढेर की तरफ से ही जाता है। बाकी सड़क तो तुमने अपना कपड़ा बिछा कर रोक रखी है। तो क्या तुम मुझे इधर से नहीं जाने दोगे?”

दहूतीनख्त चुप रह गया तो किसान अनाज के ढेरों की तरफ से चल दिया। अब क्या था उसके एक गधे ने उस अनाज के ढेर में से एक बार मुँह भर कर अनाज खा लिया।

दहूतीनख्त बोला — “देखो तुम्हारे गधे ने मेरा अनाज खाया है इसलिये मैं तुम्हारा गधा ले लूँगा।”

किसान फिर बोला — “मैं तो ठीक रास्ते से जा रहा हूँ। सड़क के एक तरफ का रास्ता तो तुमने रोक रखा है तो मुझे अपने गधे को दूसरी तरफ से ले जाना पड़ा तो क्या तुम केवल इसलिये मेरा गधा ले लोगे कि उसने तुम्हारा केवल एक कौर अनाज खाया है?

पर मैं इस खेत के मालिक को जानता हूँ। यह सरदार मैरूटैन्सी का खेत है। वह इस देश में हर चोर को सजा देता है। तो क्या तुम समझते हो कि मैं उसके राज में लूटा जाऊँगा।”

दहूतीनख्त बोला — “क्या लोग ऐसा नहीं कहते कि किसी भी गरीब का नाम उसके मालिक के नाम से जाना जाता है। यह मैं हूँ जो तुमसे कहता हूँ सरदार मैरूटैन्सी नहीं।”

फिर उसने पास के एक पेड़ से एक हरी डंडी तोड़ी और उससे उसको खूब मारा। उसने उसके गधे भी अपने मकान के कम्पाउंड में हाँक लिये।

किसान बेचारा जो उसके साथ किया गया था उसके दर्द के मारे बहुत रोया। दहूतीनख्त बोला — “ओ किसान इतना मत रोओ नहीं तो तुम मरे हुओं के शहर में पहुँच जाओगे।”

किसान बोला — “तुमने मुझे मारा मेरा सामान चुरा लिया तो क्या तुम मेरे मुँह से निकली चीखें भी ले सकते हो। ओ शान्ति रखने वाले। मेरा सामान मुझे वापस दे दो। अगर तुम मेरे चिल्लाने से इतना डर रहे हो तो मैं अपना चिल्लाना कभी बन्द नहीं करूँगा।”

वह चार दिन तक दहूतीनख्त से विनती करता रहा कि वह उसके गधे और उसका सामान लौटा दे पर उसने कुछ नहीं किया।

सो अब हूनानुप ने दक्षिण में एहनास जाने का फैसला किया ताकि वह सरदार मैरूटैन्सी से न्याय माँग सके। सरदार मैरूटैन्सी उसको रास्ते में ही मिल लिया। वह उस समय नाव पर चढ़ने के लिये अपने घर के कम्पाउंड से बाहर निकल रहा था।

उसको देख कर किसान बोला — “मैं आपको अपना हाल सुनाता हूँ। मेहरबानी कर के अपने एक भरोसे वाले नौकर को मेरे साथ आने की इजाज़त दीजिये ताकि वह आपको ठीक ठीक हाल सुना सके।”

तब सरदार मैरूटैन्सी ने अपना एक भरोसे का नौकर किसान के साथ भेज दिया और किसान ने उसको सब कुछ समझा बुझा कर वापस सरदार मैरूटैन्सी के पास भेज दिया।

तब सरदार मैरूटैन्सी ने उस मामले को अपने नीचे वाले अफसरों को बताया तो उसके साथियों ने कहा — “जनाब यह मामला तो आपके एक पुराने किसान के किसी दूसरे किसान के साथ झगड़ा करने का है।

देखिये यह तो उन किसानों में होता ही रहता है जो एक दूसरे के पास रहते हैं। क्या हम दहूतीनख्त को इस छोटे से काम के लिये पीटें। आप दहूतीनख्त को हुक्म दें वह आपके हुक्म का पालन करेगा।”

पहले तो सरदार मैरूटैन्सी कुछ देर तक चुप रहा। न तो उसने औफीसरों से ही कुछ कहा न उसने किसान से ही कुछ कहा। किसान सरदार मैरूटैन्सी से विनती करने के लिये पहली बार वहाँ आया और बोला — “सरदार मैरूटैन्सी माई लौर्ड। आप तो सब बड़ों में भी बड़े हैं। आप उन सबको रास्ता दिखाने वाले हैं जो हैं और जो नहीं हैं।

जब आप सच के सागर पर चलते हैं तो बस आप तो उसमें बहे चले जाते हैं। आपका जहाज़ खेने का तरीका इधर उधर नहीं होता। आपका जहाज़ बहुत तेज़ नहीं जाता। आपके जहाज़ के मस्तूलों के साथ कोई बुरी घटना नहीं होती। आपकी पतवार नहीं टूटती। इसलिये आप कहीं रुकते नहीं।

अगर आप तेज़ भी जाना चाहें तो लहरें आपके जहाज़ को रोकती नहीं। तब आप नदी की बुराइयों को नहीं जान पाते इसलिये आपको डर भी नहीं लगता। छोटी मोटी मछलियाँ तो आपके पास अपने आप ही आ जाती हैं आप तो बड़ी बड़ी चिड़ियों को भी पकड़ लेते हैं।

क्योंकि आप बेसहाराओं के पिता हैं विधवाओं के पति हैं। अकेले लोगों के भाई हैं। बिना माँ के बच्चों के कपड़े हैं। इस देश में मैं आपका नाम सारे अच्छे कानूनों से भी ऊपर रखता हूँ।

आप बिना किसी लालच के लोगों को रास्ता दिखाते हैं। आप नीच लोगों से लोगों की रक्षा करते हैं। आप धोखा देने वालों को नष्ट करते हैं। आप लोगों में सच्चाई का बीज बोेते हैं। बुराइयों को नष्ट करते हैं।

अब मैं आपसे कुछ कहता हूँ मेहरबानी कर के मेरी बात सुनें। न्याय कीजिये ओ प्रशंसा के लायक जिसकी प्रशंसक लोग भी प्रशंसा करते हैं। मेरा दुख दूर कीजिये। देखिये मेरे पास कितना सारा सामान है। मैं एक दुखी आत्मा हूँ। मेरे साथ न्याय हो मैं बहुत दुखी हूँ।”

मैरूटैन्सी को किसान की यह स्पीच इतनी अच्छी लगी कि उसने उसको एक दूसरे औफीसर के पास भेज दिया। दूसरे ने तीसरे के पास, तीसरे ने चौथे के पास, चौथे ने पाँचवे के पास ... किसान यह सब बोलते बोलते थक गया।

जब किसान ने आठवीं बार उससे अपनी विनती कर ली तब नवीं बार उसने उससे कहा — “ओ सरदार। कोई भी आदमी किसी भी वजह से गिर सकता है। अच्छे व्यापारी के मन में लालच नहीं होता। उसका अच्छा व्यापार .... आपका दिल लालची है। यह आप नहीं हैं। आप चोरी करते हैं यह आपके लिये ठीक नहीं है।

आपका रोज का खाना आपके घर में है। आपका पेट भरा हुआ है। ये औफीसर जो आपने न्याय करने के लिये लगा रखे हैं उनमें से ये लोग बेशर्म हैं जो आपने मक्खियों से रक्षा करने लिये लगा रखे हैं। आपके डर से मैं आपको बदनाम करने से नहीं रोक सकता। अगर आप ऐसा सोचते हैं तो आपको मेरे दिल का पता ही नहीं है।

ओ चुप रहने वाले। जो भी अपनी मुश्किलें आपसे कहने के लिये आता है वह उनको आपके सामने कहने से डरता नहीं। आपकी जमींदारी इस देश में है। आपकी रोटी आपकी जमींदारी में है। आपका खाना आपके भंडार में है। आपके ओैफीसर आपको ला कर देते हैं और आप उनसे लेते हैं। तो क्या आप डाकू नहीं हैं? नहीं तो आप अपना अनाज अपने आप उगाइये।

सच के देवता के लिये सब काम सच सच कीजिये। आप लिखने वाले की कलम हैं। आप किताब का एक पन्ना हैं। आप थौट देवता हैं। आपको तो अन्याय के पास भी नहीं फटकना चाहिये।

ओ गुणों वाले आपको तो गुणों से भरपूर होना चाहिये। इसके अलावा सच तो अन्त तक सच ही रहता है। वह उसी के साथ जाता है जो उसका मरते दम तक पालन करता है। वह ताबूत में रखा जायेगा और धरती को दे दिया जायेगा। पर उसका नाम धरती से नहीं जायेगा। लोग उसे उसके गुणों की वजह से हमेशा याद रखेंगे। यही दैवीय शब्दों का मतलब है।

तब क्या ऐसा है कि तराजू किसी ढाल पर खड़ी है? क्या यह भी सोचा जा सकता है कि तराजू एक तरफ को झुकी रहती है? ज़रा सोचिये। अगर यहाँ मैं नहीं आता, कोई और आता तो क्या आप चुप रह जाते?

आपको तो जवाब देना था। आपको तो चुप्पी में भी कुछ कहना था जैसे कोई शान्ति को जवाब देता है। जैसे कोई उसको जवाब देता है जिसने आपसे कुछ कहा भी न हो। आपने तो कुछ भी नहीं किया ... आप बीमार तो नहीं हैं, आप कोई भागे हुए भी नहीं हैं, और आप मर भी नहीं गये हैं।

पर आपने मुझे मेरे उन शब्दों का भी कोई जवाब नहीं दिया जो सूरज देवता के मुँह से निकले हैं – “सच बोलो सच करो क्योंकि वह बहुत ऊँचा है। बहुत ताकतवर है। हमेशा रहने वाला है। वही तुम्हें पुन्य दिलवायेगा और वही तुम्हें इज़्ज़त की जगह पहुँचायेगा।”

क्योंकि तराजू ढाल पर तो नहीं खड़ी है। यह तो उनकी तराजू के पलड़े हैं जिनसे वे चीज़ें तौलते हैं। पर खाली तराजू के नहीं।”

इस नवीं स्पीच के बाद सरदार मैरूटैन्सी ने उसको सजा दे कर वापस भेज दिया। लेकिन फिर कुछ सोच कर दो आदमी उसको वापस लाने के लिये भेजे। इस पर किसान ने सोचा कि शायद उसको वहाँ प्यास लगे क्योंकि उसको तो उसने जो कुछ भी कहा है उसके लिये सजा मिली हुई है सो किसान बोला...

तब सरदार मैरूटैन्सी ने कहा — “डरो नहीं किसान। तुम मेरे साथ हो।”

किसान बोला — “मैं ज़िन्दा हूँ क्योंकि मैं हमेशा आपकी रोटी खाता हूँ और आप ही की बीयर पीता हूँ।”

सरदार मैरूटैन्सी बोला — “आओ यहाँ आओ।”

तब उसने अपने आदमियों को वे सब स्पीचें जो उसने कही थीं नये रौल्स पर लिख कर लाने के लिये कहा। मैरूटैन्सी ने उन सबको राजा नैबकौरे के पास भिजवा दिया जो लोअर और अपर मिस्र का राजा था।

उनको देख कर तो राजा अपने देश में किसी भी चीज़ को देखने से जो खुश होता उससे कहीं ज़्यादा खुश हुआ। हिज़ मैजेस्टी ने कहा — “इसको तो तुम जो सजा देना चाहो वह सजा तुम ही दे दो मेरे बच्चे।”

तब सरदार मैरूटैन्सी ने अपने दो आदमी दहूतीनख्त के घर के सामन की लिस्ट लाने के लिये सरकारी दफ्तर भेजे। उसके पास छह आदमी थे सो कुछ सामान उनमें से चुन कर, जो अनाज गधे सूअर आदि उसके पास थे ...”

(“इस कहानी का अंग्रेजी अनुवादक आगे लिखता है कि इसके बाद का हिस्सा पढ़ कर समझने लायक नहीं है पर उससे ऐसा लगता है कि सरदार मैरूटैन्सी ने दहूतीनख्त के सामान में से ये सब सामान चुन कर हूनानुप को दे दिया होगा। और फिर हूनानुप खुशी खुशी घर चला गया होगा।”)

(साभार सुषमा गुप्ता जी, जिन्होंने लोक-कथाओं पर उल्लेखनीय काम किया है.)

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