स्वगत (कहानी) : शर्मिला बोहरा जालान

Svagat (Hindi Story) : Sharmila Bohra Jalan

क्या पड़ा है मानने में? मानो। अपनी गलती मानो। ऊँह! मैंने किया ही क्या है जो मैं अपनी गलती मानूँ! जिन्होंने सचमुच पाप किए हैं वे स्वीकार करें। मेरे जैसा जीवन बहुत लोगों का है। क्या वे मान रहे हैं? जब वे सारे लोग अपने जीवन के बारे में नहीं सोच रहे तो मैं क्यों मरा जा रहा हूँ ऐसा करने के लिए। इस तरह की फालतू बातों में मैं नहीं आनेवाला। मेरी अपनी जिंदगी है। मैंने अपनने ढंग से जी है। दूसरों को उससे क्या लेना-देना। मैं जैसा हूँ वैसा हूँ। उससे किसी को क्या? मुझे यह एकदम अच्छा नहीं लगता कि कोई मुझसे सवाल करे। मैंने जो किया क्यों किया यह पूछने वाला कोई भी कौन होता है? कोई क्यों मेरे अंदर झाँके? सब अपने काम से मतलब रखें तो अच्छा होगा। मैं किसी से कोई बात नहीं करना चाहता। चाहे वह मेरी बहनें हो, चाहे वह मेरा बेटा राघव हो, चाहे वह मेरी बहू शिखा हो। चाहे मेरी पत्नी लक्ष्मी ही क्यों न हो। पर लक्ष्मी! वह तो कब की मर चुकी। वह कहाँ से आएगी?

सभी मुझको खराब आदमी कहते हैं। हाँ मैं हूँ। बन जाओ ना तुम भी बदमाश। हिम्मत चाहिए ऐसा बनने के लिए। सबको नशा हो गया है अच्छा दिखने का। खराब कहलाने के लिए मन की ताकत चाहिए। मुझमें है। मैं जैसा हूँ वैसा दिखता हूँ। उन लोगों की तरह नहीं हूँ जो होते कुछ हैं, दिखते कुछ हैं। पाखंडी कहीं के!

मेरा जी घबरा रहा है। मुझसे कुछ भी सोचा नहीं जा रहा। न जाने यह सब बातें क्यों सोचने लगा। उफ! कैसी गरमी है। फरवरी का ही महीना है पर...। चलूँ थोड़ा टहल आऊँ। घर में पड़े-पड़े क्या होगा? मुन्ना को ले जाऊँ। रास्ते में भी कौन-सी कम गरमी होगी। हो सकता है नहीं लगे। कम से कम इस बकवास से पीछा छूटेगा जिसने जीना हराम कर दिया है।

कहाँ जाए आदमी, कहाँ घूमे, कहाँ चले? साले सारे के सारे भिखमंगों ने फुटपाथ को अपना घर बना लिया है। मदनमोहन तल्ला में घुसते ही जी घबराता है। वैसे कहाँ जी नहीं घबराता! अलीपुर, बालीगंज इलाके में यह हाल नहीं है। मुन्ना को लेकर मन होता है थोड़ा घूम आऊँ तो वह भी मुश्किल। उधर मंदिर से घुसकर दूसरी तरफ निकल जाऊँ। मकानों के पीछे की जगह और मंदिरों के कंपाउंड में न जाने कहाँ-कहाँ से आकर लोग बस गए हैं। जैसे कबूतरखाना हो। जगह-जगह आधी-अधूरी मूर्तियाँ मूर्तियाँ बनाकर फेंक रखी हैं। कहते हैं, खुले में धूप में सूखेंगी। कुम्हारटोली न हो गया, गंदगी का साम्राज्य हो गया। सरस्वती पूजा है रविवार को। सो देर रात तक मूर्तियों के खरीददार हल्ला करते रहते हैं। कहीं भी शांति नहीं। चलो मुन्ना, इधर इस मकान से निकलें। यह क्या? इतने कुत्ते! कहाँ से चले आ रहे हैं? बाप रे! चार-चार पिल्ले। हट्टो। हट्टो। बिल्ली भी है। मुन्ना हँस रहा है। उसे मजा आ रहा है। उस मिठाई की दुकान से इसे संदेश खरीदकर खिला दूँ। बंगालियों ने जहाँ-तहाँ मिठाई की दुकान खोल ली है। एक मंजिल के मकान हैं और उसके नीचे मिठाई की दुकान तो एस.टी.डी., जेरॉक्स की दुकान।

राघव को भी एक मिठाई की दुकान खुलवाने का मन था। वह कुछ करना नहीं चाहता। बोला, क्या बकवास करते हैं। बंगालियों की तरह दुकान खोलकर बैठ जाऊँ? मैंने भी चिल्लाकर कहा, मारवाड़ी मिठाई का काम नहीं कर रहे। बड़ाबाजार में नहीं देखते?

बड़ा बाजार में दुकान चलेगी। मारवाड़ी भरे पड़े हैं। कुम्हारटोली में बंगाली की चल सकती है। कोई छोटी-मोटी। यहाँ का मारवाड़ी बड़ाबाजार जाएगा। यहाँ की किसी भी दुकान से कुछ नहीं खरीदेगा। वह थियेटर रोड जाएगा। आपने क्या समझा है मैं कुम्हारटोली में इस तरह दुकान खोलकर बैठ जाऊँ? मामूली काम करूँ।

राघव को कुछ भी कहना बेकार है। समझता है अपने को कहीं का नवाब। कोई भी काम बताओ, कहता है क्या यही करूँगा? मत करो। पड़े रहो उस नौकरी में और दिन-रात कहते रहो कि इतनी कम तनख्वाह में घर कैसे चलाऊँ। सुनाते रहो कि मैंने कुछ नहीं किया। मैंने नहीं किया तो कौन-सा मेरे बाप ने मेरे लिए कुछ किया? मेरी माँ ने मुझे भला कभी अपने पास बैठाया? जब देखो तब माँ चौके-चूल्हे में घुसी रहती थी और मेरा बाप नीचे गद्दी में बैठा गप्प मारता रहता। आठ-आठ भाई बहन थे हम। पता नहीं कौन कहाँ रहता है। मैं तो जवाहर के पीछे लटका रहता। वह घर का नौकर था। पूरा काम उसी के जिम्मे था। कपड़ा धोना, खाना बनाना, झाड़ू-पोंछा करना। मुझे वही खिला देता, वही सुला देता। पाखाना आता तो पाखाने में बैठा देता। मैं घर से निकला था इन बातों से पिंड छुड़ाने, पर इन्हीं में घुस गया।

आज मुन्ना भी तंग नहीं कर रहा। तभी मैं वही सब सोचने लग जाता हूँ। मुन्ना मूर्तियाँ देखकर मचल रहा है। ये इतनी बड़ी हैं कि इसे कैसे खरीदूँ? इस गली में घुस जाऊँ ताकि वह मूर्तियों की बात भूल जाए। यह तो वही गली है जो गंगाधर की तरफ जाती है। अभी यह बंद कर दी गई है। याद आया। नक्सल आंदोलन के समय बहुत सारे छोकरे यहाँ से घुस आते थे। सो यह रास्ता बंद कर दिया गया था। पता तो है मुझे कि इस गली का नाम लॉजेंस गली है। यह रहा लॉजेंस का कारखाना। दो-तीन कारखाने और हैं यहाँ किस चीज के। गंजी बनाने और कागज-वागज के। मैं ऐसी कैसी सँकरी गली में घुस आया। ये औरतें मुझे देखे जा रही हैं। कोई देख लेगा तो सोचेगा कि मैं यहाँ क्या कर रहा हूँ? जल्दी से निकल चलूँ। वह छवि यहीं कहीं रहती है जिसने मुन्ने को एक साल तेल लगाया था। वह मुझे देख लेगी तो सोचेगी में उसे बुलाने आया हूँ। घर का मर्द कभी नौकरानी को बुलाने जाता है? भागूँ यहाँ से? मुन्ने को गोद में उठा लूँ। मेरा दिमाग एकदम खराब हो गया है। इतना बड़ा हो गया हूँ पर यह भी नहीं समझता कि क्या करना चाहिए क्या नहीं। किस गली में जाना चाहिए किसमें नहीं।

जवाहर का चाचा ऐसी ही गली में घुस जाता था। कैसी रहस्यमयी थी वह गली। एकदम सुनसान। चारों तरफ तिलिस्म ही तिलिस्म। बहुत छोटा था मैं। एक बार जवाहर के पीछे पड़ गया था कि मुझे घुमाने ले चलो। उसे बहुत काम करना था। उसने मुझे अपने चाचा को दे दिया। उसका चाचा खूब लंबा था और एकदम काला। मुझे उससे डर कहाँ लगता था। वह खूब गाता था। फिल्मी गाने। मुझे उसकी आवाज बहुत अच्छी लगती थी। उस दिन कोई गाना गाते-गाते वह उस गली में घुस गया। बहुत लंबी गली थी। डरावनी सी। अँधेरे में एक कमरे में घुसा। किसी स्त्री का कंठ...।

लगता है मुन्ना सोएगा। उसे नींद आ रही है। घर ले जाऊँ। इसकी माँ सोचेगी - न जाने मैं इसे कहाँ ले गया हूँ।

हमारे घर पर यह क्या तमाशा लगा है? ये लोग नौकर को डाँट रहे हैं। राजू को अढ़ाई महीने ही हुए हैं। मैं भी डाँटता हूँ उसे। खाएगा दो थप्पड़ मुझसे - क्यों हरामी कहीं के! इस घर को बाप का घर समझा है। आए, दो महीने रहे फिर चल दिए। क्या बाबू-बाबू लगा रहे हो? काम करना नहीं था तो क्यों आए? कहते हो माँ बीमार है? झूठे कहीं के। ऐसी मार मारूँगा कि खाल उधेड़ डालूँगा। लाओ वह सब सामान यहाँ लाकर रखो जो तुम्हें इन दो महीनों में दिया गया है।

शिखा, तुमने इसे क्या-क्या दिया था? ओढ़ने वाली चद्दर इसने फाड़ भी डाली। वह एक जोड़ी कपड़े वापस रखो। राघव, तुमने क्या दिया था? चिट्ठी लिखने कलम ली थी। सिर में लगाने तेल लिया था। आधी शीशी उड़ेल ली, दस दिन में। ठीक है जितना बचा है उतना ही लाओ। शिखा, ठीक से क्यों नहीं बताती कि और क्या-क्या दिया था। वह साबुन कहाँ गया? आधी बट्टी बची हुई होगी, उसे भी रखो। कोई और सामान लिया है तो वह भी रख जाओ। क्या समझते हो? खैरात बँट रही है? अब भागो यहाँ से। दस दिन बाद आना तब हिसाब करूँगा। अभी बस भाग जाओ नहीं तो जूते मार कर भगाऊँगा।

राघव, शिखा से कह दो - रोज-रोज नौकरों का आना-जाना मुझे नहीं पोसाता। हाथ से काम कर सकती है तो करे नहीं तो चली जाए अपनी माँ के घर। हम भोजन बाहर से मँगवाकर खा लेंगे।

राघव कमरे से चिल्लाया, क्यों जाए? जाना है तो आप जाइए। आप किसी को टिकने नहीं देते। राजू आपके कारण भागा है। दिन भर आप उससे कभी पान मँगवाते कभी बीस बार चाय बनवाते। कभी पूरे दिन आपका बदन दबाता तो कभी बिना वजह आपके सामने बैठा रहता। घर का काम वैसे भी कौन-सा वह करता था। दिन भर आपकी जी-हजूरी करता रहता। अब पता चलेगा। अपना काम अपने आप करना पड़ेगा तो समझ में आएगा।

बकने दो राघव को। इसकी बकवास कौन सुनेगा। कहता है मैंने नौकर को निकाल दिया। शिखा ने भरे होंगे इसके कान। पर वहाँ सड़क पर कौन चिल्ला रहा है? मेरी इस खिड़की से शोर आ रहा है। अब वहाँ कौन झगड़ पड़ा? औरतें। जो सड़क पर रहती हैं। सब की सब झगड़ पड़ी हैं। उनका चीखना-चिल्लाना मुझे खराब नहीं लग रहा। लग रहा है एक साथ कोई आवाज ऊपर चढ़ रही है फिर नीचे गिर रही है। यह शोर नहीं लग रहा। यह तो संगीत है। रवींद्र सरणी के फुटपाथ का संगीत। ट्राम लाइन के आर-पार का गीत। अच्छा है ये झगड़ती रहें। एक दूसरे को खींचती रहे। कम से कम दुपहरिया का सन्नाटा तो नहीं। यहाँ पूरा-पूरा दिन दो भाग में बँट जाता है। सुबह और शाम में। ट्राम की आवाज, मंदिर की घंटियों की आवाज, एफ.एम. की आवाज, हॉर्न की आवाज। सिर्फ बारह, साढ़े बारह बजे तक। धीरे-धीरे एक बजे के बाद ये सब कुछ शांत हो जाएगा। अभी सरस्वती पूजा है। मूर्तियाँ पूरे-पूरे दिन बेची जाती हैं सो शोर सुनाई पड़ जाता है पर इसके अलावा दोपहर में सब न जाने कहाँ घुस जाते हैं। दुकानें बंद हो जाती हैं। खुली दुकानों के सामने पर्दे खींचकर दुकानदार खर्राटे भरने लगते हैं। दोपहर की शांति अच्छी नहीं लगती है। रात की शांति भी अच्छी नहीं लगती। डर लगता है। अजीब-अजीब लोग दीखते हैं। गली दिखती है। उस गली में डर नहीं लगता था पर अब जब याद करता हूँ तो लगता है, क्या करूँ... सो जाऊँ... थोड़ी दे सो जाऊँ! नींद आ रही है। नींद...।

ओह! बहुत देर तक सोता रह गया। बहुत जोरों की भूख लगी है। क्या शिखा मुझे खाने के लिए नहीं पूछेगी? मुन्ना कहाँ गया? सो रहा है? शिखा का कमरा भी बंद है। देखूँ रसोई में खाने की कोई चीज रखी हुई हो। कलाकंद पड़ा है। कहाँ से आया? खा लूँ। अच्छा है खाने में। कितने दिनों से मीठा खाने का मन कर रहा था। मीठा मुझे बहुत अच्छा लगता है। लगता है दरवाजे की घंटी बजी है। कोई है। कौन होगा? ओ, सुरेश। राघव का दोस्त। आओ। आओ। बहुत दिन बाद आए? क्या बात है? राघव अभी घर पर नहीं है पर बैठो। जिस तरह राघव मेरा बेटा तुम भी हो। अंदर आ जाओ।

आजकल क्या कर रहे हो? कोई नया कारोबार? अब भी उसी दुकान में पिता के साथ बैठते हो? क्या आनी-जानी है उस तरह बैठने में! अगर मैं कुछ गलत कह रहा हूँ तो बोलो? क्या तुम अपने पिता से कहे बिना कुछ बचा, कुछ उठा सकते हो? नहीं न? तो क्या पड़ा है वहाँ पर। छोड़ो ऐसी दुकान को और दूसरा काम सोचो। जीवन भर क्या पिता के तलवे चाटते रहोगे? निकल गए न तुम्हारे दोनों भाई घर से। अपना धंधा कर रहे हैं और मजे से बीवियों को रखते हैं। कोई हगने भी आता है क्या बाप के पास! तुम्हें मेरी बात अच्छी नहीं लग रही हो मैं नहीं बोलूँगा पर मैंने दुनिया देखी है। तुम राघव के दोस्त हो। कैसा सुकुमार चेहरा है। दया आती है तुम्हें देखकर। एकदम बच्चे हो। क्या पड़ा है उस घर में। न ढंग का खाना न पहनना। तुम्हारे बाप को मैं अच्छी तरह जानता हूँ। बुढ़ऊ के पास माल है पर है एकदम कंजूस। मैं तुमसे पूछता हूँ आज तुम्हारी शादी को इतने साल हो गए। एक दमड़ी भी उसने दी? देखो, मैं तुम्हें दुनियादारी समझाता हूँ। अपने बारे में सोचो। तुम्हारे बाप की गलती से ही तुम्हारी सगाई टूटी थी। तुम भी यह बात मानते हो कि नहीं? उसे और माल चाहिए था। पहले दो लड़कों में क्या नहीं मिला? पर तीनों को चूसना और भगवान ने क्या किया? सगाई तोड़ के उसे न धेला मिला न ढंग की लड़की। देखो, देखो बैठो। मेरी बात समझो। मैं तुम्हारी पत्नी के बारे में उल्टा-सीधा नहीं कह रहा। जो सच्चाई है बता रहा हूँ। कैसी काली लड़की से तुम्हें ब्याहना पड़ा। एक बार सगाई टूटने के बाद शादी हो गई वह क्या कम बड़ी बात है। लगता है राघव आ गया। जाओ उस कमरे में बैठ जाओ। वही उसका कमरा है। यहाँ इस कमरे में तुम्हें देखेगा तो मुझसे लड़ने लगेगा। उससे मत कहना जो मैंने तुम्हें कहा है। तुम्हारी चिंता करता हूँ इसलिए बोलता हूँ।

छोड़ो, मुझे क्या पड़ी है जो किसी को समझाऊँ। किसी के घर में क्या हो रहा है उससे मुझे क्या मतलब। राघव के पीछे कोई छोकड़ा है। लगता है फिर कोई नया नौकर रखा जाएगा। ये दोनों आए दिन नौकर बदलते रहते हैं। घर ना हो सराय हो। किससे कहूँ कोई सुने तब ना। माँ आए दिन नौकर कहाँ बदलती थी! जो पड़ा है सो पड़ा है। जवाहर मेरी शादी तक था। बूढ़ा हो गया था। उसके हाथों में इतना कंपन होता था कि जो भी सामान उठाता गिरा देता। फिर भी उसे कहाँ हटाया गया? काम-वाम नहीं करता था। फिर भी पड़ा था। पर वह मुझे गली में क्यों ले जाता था? मेरा जाने का मन करता था और मैं मना भी करता था।

यह सब सोचने से क्या होगा। रात हो गई है। लगता है बारह या एक बज रहे हैं। मूर्तियाँ अभी भी उठ रही हैं। ताँता लगा है लोगों के आने का, मूर्तियाँ खरीदने का। कल ही है पूजा। पूरे-पूरे दिन फिल्मी गाने बजेंगे। सो जाता हूँ। भगवान जाने नींद आएगी या नहीं। '...मारो, साले को मारो। आखिर तुम क्या साबित करना चाहते हो। ...खून पी जाऊँगा तुम्हारा...।' यह क्या! क्या-क्या बके जा रहा हूँ। क्या नींद में बात कर रहा था। क्या बात? किस्से? सामने कोई भी तो नहीं! मेरी नींद में बात करने की आदत बहुत बढ़ गई है क्या? किससे पूछूँ? मुझे पता है मैं आजकल ज्यादा बकने लगा हूँ। उस हरामी ने मेरे लाखों रुपये डकार लिए तो क्या बोलूँ भी नहीं? मुझे उस पर विश्वास हो गया था। वह मेरा रिश्तेदार है। सोचा था मिलकर धंधा बैठाएँगे। ना जाने कैसे मैं उस पर विश्वास कर बैठा। उसके चेहरे में कुछ था जिसके कारण मुझे वह अच्छा लगने लगा था। आँखें उसकी बिलकुल वैसी थीं जैसी मैंने गली में देखी थीं। बस उन्हीं आँखों ने मुझे डुबो दिया। मुझे धोखा दिया। नए काम के नाम पर ठेंगा दिखा दिया गया। लॉरी का लॉरी सूता जो मेरे पैसे से खरीदा गया था रिजेक्ट होता चला गया। सारे माल को कौड़ी के दाम में बेचना पड़ा, मैं बर्बाद हो गया। आज सात साल हो गए। उसने मुझे पैसे लौटाए नहीं है। राघव मुझे कोसता है कि अपनी औलाद को तो कभी कोई पैसा नहीं दिया और एक बदमाश को दे दिया। कोस ले। जिसे जो कहना है कह ले। कैसे बताऊँ कि कैसे उसकी बातों में आ गया। उसके चेहरे में मुझे वह दिखी। सो जाऊँ...?

सुबह हो गई। आज सरस्वती पूजा है। सुबह से ही गाने चल रहे हैं। मुन्ना तैयार नहीं हुआ क्या? आ गया। सुंदर सुंदर कपड़े पहनकर। मैं भी कुर्ता निकल लेता हूँ। फिर नीचे घूम आएँगे।

यहाँ इन कंगलों ने सड़क पर यह कैसा तमाशा खड़ा कर रखा है। ओ, इन लोगों ने भी सरस्वती माता की एक मूर्ति बैठा ली है। बाप रे! कहाँ से उठा लाए लाउड स्पीकर। नाचे जा रहे हैं मूर्ति के सामने। वह औरत मटक रही है। बच्चे आदमी सभी लगता है पागल हो गए हैं। और कपड़े तो देखो इनके, ना जाने किससे-किससे माँग कर लाए हैं। एकदम हीरोइन जैसे फ्रॉक पहने वह लड़की कमर हिला रही है। फुटपाथ को घर तो बना ही रखा था अब नौटंकी भी करने लगे। मुन्ना को यहाँ से निकालकर ले जाना होगा। ये गलियाँ। जगह-जगह मूर्तियाँ सजी हुई हैं। जगह-जगह स्पीकर लगे हुए हैं। सिर्फ मदनमोहन तल्ला में न जाने कितनी गलियों में कितने-कितने बच्चों ने मूर्तियाँ बैठा रखी हैं।

मेरी इस जेब में क्या पड़ा है? कागज? मैंने तो सोचा था नोट पड़े हैं। मुन्ने को कुछ खरीदवा देता पर यह तो...। ओ यह शिखा का हिसाब लिखा पन्ना है पर इस जेब में कहाँ से आया? लगता है मुन्ना ने घुसा दिया है। मुझे देखता है न जेब में पैसे डालते हुए सो अपनी मम्मी के कमरे से कागज उठाकर जेब में भर दिया। शिखा ढूँढ़ेगी तो नाराज होगी। सोचेगी मैंने जान-बूझकर उसके कमरे से कागज उठा लिया है। नहीं-नहीं वापस रख दूँ। जल्दी घर चलूँ। यह एकदम ठीक नहीं। पर इसमें क्या लिखा हुआ है? रोज हिसाब लिखती है। कल का खर्च है। कल ही सुना रही थी, एक बार नीचे उतरो तो सौ का नोट कहाँ जाता है पता नहीं चलता। दिन भर खर्च का रोना रोती रहती है। देखूँ किस चीज में खर्च करती है...

बुधवार 27.04.05
पाव रोटी 10/-
मक्खन 17/-
फोन 4/-
फूल 4/-
संदेश 4/-
नारियल 15/-
आलू 10/-
टमाटर 10/-
सेरीडिन 10/-
दवा (एनी फ्रेंच) 30/-
टोटल खर्च 114/-

दवा? दवा! कौन-सी दवा। किसके लिए? मुन्ना, राघव, शिखा, मैं। हम कोई भी बीमार नहीं हैं। एनी फ्रेंच कौन सी दवा होती है? ओ समझ में आया। इसका विज्ञापन कहीं देखा है। अनचाहे बालों को हटाने के लिए... जैसा गाना टी.वी, में आता है। तो इन सबमें पैसे लुटा रही है। कहती है पैसों का पता नहीं चलता। कैसे चलेगा? श्रृंगार में पैसे फूँके जा रहे हैं। पूछता हूँ घर जाकर कि यह क्या फुटानी है! बहा रही है पैसे। न जाने और किन-किन चीजों में डालती होगी। राघव मुझे तो खर्च देता नहीं है और बीवी को महारानी बनाए हुए है। दोनों सोचते हैं मुझे पता नहीं चलेगा।

शिखा, राघव कहाँ हो तुम दोनों? सुनते नहीं हो? मर गए क्या? बहरे हो गए? यह देखो। यह हिसाब का पन्ना देखो। अब आँखें फाड़ कर इस तरह मत देखो कि मैंने तुम्हारे कमरे में ताका-झाँक की है। यह मुन्ने ने खेल-खेल में शिखा का हिसाब लिखा कागज मेरी जेब में डाल दिया। मुझे क्या पड़ी है जो मैं घर का हिसाब देखूँ। पर जब कागज हाथ लग ही गया तो मैंने पढ़ भी लिया और मैं पूछता हूँ यह सब क्या है? यह कल का हिसाब देखो। देखो-देखो इसमें सबसे अंत में देखो। तीस रुपये किस चीज के लगा रखे हैं। तुम नहीं समझे? यह सब श्रृंगार कि चीजें हैं। तुम्हारे पैसे इस तरह लुटा रही है।

राघव पहले तो अचानक यह सब सुनकर हैरान हुआ फिर कागज ले कमरे में शिखा के पास गया तो देखा वह गुस्से में तनी खड़ी है। बोल रही है, "यह तो बाबूजी ने हद कर दी। आज इसके लिए बोल रहे हैं कल सैनेटरी नैपकिन के लिए बोलेंगे कि इतना महँगा खरीदती है। फिर ब्लाउज और पेटीकोट की सिलाई पर महाभारत करेंगे। मैं इस घर में नहीं रह सकती। यहाँ अपनी मर्जी से साँस भी नहीं ले सकती। ससुर को बहू से इस तरह बात करते यहीं इसी घर में देखा।"

शिखा की बात सुन मैं बाहर से चिल्लाया, "दूसरे घरों में तो ससुर ही लाकर देता होगा। दिन भर पति-पत्नी पैसों का रोना रोते रहते हो और खर्च देखो...।"

रोज राघव मुझे सुनाता है इतने कम रुपये मिलते हैं साड़ी की दुकान से। एक हजार तो महीने का आने-जाने का भाड़ा पकड़ लीजिए। बचे हुए पैसों में घर कैसे चले। आप कुछ क्यों नहीं करते? जोड़-घटाव का काम किसी दुकान में पकड़ लीजिए। मेरी रोटी भारी लग रही है दोनों को। कहते हैं मैं काम करूँ। कहते हैं मैं मर जाऊँ तो पिंड छूटे। मैं नहीं सुहाता। मैं भी कौन-सा तुम लोगों के साथ रहना चाहता हूँ। कभी का चला जाता यहाँ से किसी आश्रम में, पर मुन्ना के कारण अटका हुआ हूँ! कौन समझेगा यह सब!

मुन्ना! ओ मुन्ना! मुन्ना गया कहाँ? इस कमरे में नहीं है। उधर भी नहीं है। कहाँ है? बरामदे में होगा। वहाँ भी नहीं है। वह बैठा है उस मेज के नीचे। क्या कर रहा है? अपनी किताबें लेकर घुसा पड़ा है। आओ निकलो। लाओ मैं पढाऊँ। देखो, मैं तुम्हें सिखाता हूँ। तुम सिर्फ अँग्रेजी की किताब लेकर क्यों बैठे रहते हो? अ आ ए की किताब नहीं है?

जो है वही पढ़ें।

आओ, इसे देखें।

यह लिखा है 'एपल'

और यह 'बनाना'

यह सी, डी, ई, एफ, जी, एच

और यह 'इंसेक्ट' व 'जैकल'

क्या मुझे नहीं आता पढ़ाना?

पर यह पी से क्या है, 'पांडा?'

पांडा या हांडा? सांडा! कैसा मजेदार है यह धंधा।

कहाँ... किस देश का है यह भालू?

दादू, तुम्हें नहीं पता ?

तुम हो एकदम आलू!

आलू भालू, भालू आलू

भालू भालू, आलू आलू

हा हा ही ही। मुन्ना तुमने मुझे हँसा दिया।

बस आज यहीं तक। अब चलो टेबल के नीचे से निकलो।

कैसा झगड़ा-रगड़ा किया राघव और शिखा ने पर मुन्ना ने बचा लिया।

मुन्ना, क्या तुम रोज हँसाओगे?

रोज-रोज मुझे आलू बुलाओगे?

मन हो रहा है खूब अच्छा गाना गाऊँ। राघव तो इतना अच्छा गाता है! मन होता है, सुनता रहूँ। पर आजकल कहाँ गाता। मैं भी उनसे नाहक झगड़ पड़ा। अब मैं कहूँगा, झगड़ा, ना, ना।

गाना, हाँ, हाँ।

यह राघव भी क्या करे? मार महँगाई बढ़ी जा रही है। मैं दो-चार पैसे लाता तो अच्छा ही रहता। पर अब मुझसे हिसाब होता नहीं है। जोड़-घटाव में असंख्य गलतियाँ करता हूँ। ये दोनों सोचते हैं जान-बूझकर नाटक करता हूँ। क्या करूँ? मुझे कोई नहीं समझता। सिर्फ चाची ने समझा था। बोली थी, जिद्दी हो पर अच्छे हो। एक-दो बार ही मिला था उससे और वह मुझे पहचान गई थी। फिर वह गुम हो गई। कहाँ चली गई? क्यों?

यह क्या! अचानक इस बत्ती को क्या हुआ? लोडशैडिंग। अँधेरा। घुप्प अँधेरा। मुन्ना, रोना मत। मैं हूँ ना। मैं आ रहा हूँ। मैं तुम्हें लेने आ रहा हूँ। आओ, यहाँ मेरे पास। मेरी गोदी में बैठ जाओ। शिखा, मुन्ना मेरे पास है। तुम मोमबत्ती जला लो। टॉर्च वहीं कहीं रखी होगी। माचिस नहीं मिल रही? मुन्ना, तुम मुझसे चिपक जाओ। अहा, कितनी अच्छी सुगंध आ रही है तुम्हारे चेहरे से। कौन-सी क्रीम मम्मी ने लगाई है? देखो मैं तुम्हारे इन नन्हें-नन्हें हाथों में एक खेल दिखाता हूँ। गुदगुदी। तुम्हें गुदगुदी लग रही है। मजा आ रहा है। मुझे भी गुदगुदी लग रही है। तुम हँस रहे हो। मैं भी हँस रहा हूँ। खूब हँस रहा हूँ। चाची याद आ रही है। नहीं-नहीं चाची। अब छोड़ दो। बस अब और नहीं। चाची मैं तुम्हारा जूड़ा खोल दूँगा। इसे ऐसे खुला रखो। मत बाँधो। चाची, मैं तुमसे शादी करूँगा। बोलो ना, तुम करोगी। मैं चाचा को गोली मार दूँगा। यह चाकू है न, इसे भोंक दूँगा। चटाक।

क्या तुमने मुझे थप्पड़ मारा? उस काले कलूटे को मैं सचमुच मार डालूँगा। उसके लिए तुमने मुझे मारा।

वह तुमसे बड़ा है। चाचा है। तुम छोटे होकर इस तरह की बात करते हो? वह जवाहर का चाचा। वह काला तुम्हारा पति है। तुमने उससे शादी क्यों की? मैं भी क्या-क्या सोचने लगा। यह मोमबत्ती खत्म होने वाली है। फिर अँधेरा हो गया। लगता है पूरे इलाके कि बत्ती गुल हो गई है। पर अभी इस समय कौआ कहाँ से आकर खिड़की पर बैठ गया। काँव-काँव किए जा रहा है। चुप ही नहीं हो रहा। एक तो अँधेरा ऊपर से कौए की काँव-काँव। पागल हो जाऊँगा। एकदम पागल। फिर कुछ याद आ रहा है...। 'चाची मुझे पागल कर देगी। मुझे इतनी गुदगुदी लगाती है। इतनी जोर से कमर में गुदगुदी लगाई है तभी तो मैं जमीन पर गिड़ पड़ा हूँ। नाक और मुँह में चोट लग गई। मैं तुम्हें मार डालूँगा। मैं तुम्हें जिंदा नहीं छोडूँगा।' चाची हँसते-हँसते दोहरी हो रही थी। मैंने उसे खूब मारा, खूब हँसा, पकड़ा-पकड़ी का खेल। दौड़-भाग का खेल। हम खूब खेलते थे। मैं बहुत छोटा था। लेकिन मुन्ना से बहुत बड़ा। मुन्ना अगले महीने दो साल का हो जाएगा। मैं अगले महीने आठ साल का होने वाला था।

हम लोगों का जन्मदिन। माँ को याद रहता वह। जवाहर को कुछ पैसे देती। कहती जा मिठाई ले आ।

मैं नए कपड़े पहनकर मिठाई लेकर उस गली में गया। चाची वहाँ नहीं थी। उसकी तबीयत खराब थी सो वह कहीं चली गई थी। वह कहाँ चली गई? वह पूरे महीने भी नहीं आई। तीसरा महीना भी बीत गया। चौथा महीना आ पहुँचा और कितने महीने आए-गए याद नहीं। एक दिन जवाहर कैसा-कैसा लग रहा था। मेरे पास आया बोला - चाची मर गई। बच्चा होने वाला था। बच्चा भी मर गया।

चाची! चाची मर गई। क्यों? बोलो न क्यों? तुम मुझे उसके पास ले चलो। मैं उससे पूछूँगा कि वह क्यों मर गई। ले चलो। मुझे ले चलो। जवाहर, मुझे ले चलो।

बत्ती आ गई। उफ! बहुत रोशनी हो गई। शिखा मेरे कमरे कि बत्ती बंद कर दो। मुन्ना सो गया है।

सईं साँझ अँधेरा रहने दूँ। छोड़ो, बत्ती जलने दो। उधर बारामदे में थोड़ी देर बैठ जाऊँ। अच्छी हवा आ रही है। कितना पसीना आ गया था।

वहाँ उस दुकान के सामने कुर्सी पर बैठा दरबान क्या कर रहा है? फुटपाथ पर कंगालों ने जो घर बना रखा है वहीं उसकी कुर्सी लगी हुई है। बंद पड़ा गोडाउन खुल गया है और उसके सामने वह पहरा दे रहा है। पहरा क्या खाक दे रहा है? औरतों में पड़ा है। लफंगा कहीं का! उसे तो मजा मिल गया। नौकरी भी लगे हाथ, जवान औरतों से आशिकी भी। सब के सब ऐसे ही हैं, नीच कमीने।

मैं भी तो ऐसा ही हूँ। नहीं, मैं ऐसा नहीं हूँ। मैंने चाची के साथ कुछ नहीं किया। मैं तो बहुत छोटा था और वह मुझसे बीस साल बड़ी। मुझे कुछ पता नहीं था। वह अच्छी थी। मुझे अच्छी लगती थी। मुझे प्यार करती थी। माँ और बाबूजी ने क्या कभी मुझे प्यार किया? चाची होती तो मैं खराब नहीं होता।

उसके मरने के बाद मैं बार-बार गली में जाता। उस अंधी गली में। वह तिलिस्म टूट गया। वहाँ एक ताला लटका रहता। मैं खूब रोता। हरदम रोता रहता। फिर रोना बंद हो गया। फिर मैं हँसने लगा। वैसे नहीं हँसता था जैसे चाची के संग हँसता रहा। दूसरी तरह से हँसने लगा। पहले अपने पर हँसा। फिर दूसरों का मजाक बना कर हँसने लगा। बदल गया। एकदम।

जवाहर के चाचा ने दूसरी शादी कर ली। उस काले के सामने उसकी दूसरी पत्नी बहुत छोटी थी और मुझसे सिर्फ दस साल बड़ी। ठीक दस साल बाद मैं उस गली में जवाहर के चाचा के मरने के बाद अपने आप जाने लगा। मैं पहले से दस साल बड़ा हो गया था। मुझे हाथ पकड़कर रास्ता पार करवाने की जरूरत नहीं थी। मुझे पकड़कर गली में ले जाने कि जरूरत नहीं थी। मैं अपने-आप आ-जा सकता था। मैं जाने लगा। दो-तीन महीनों में एक बार, महीने में एक बार, महीने में कई बार, सप्ताह में कई-कई बार।

रोज।

रोज जाने लगा।

जवाहर का चाचा मर गया था।

फिर भी मैं जाता।

जवाहर के चाचा की तरह जाता।

जवाहर के चाचा की तरह रहता।

मैं जवाहर का चाचा बन गया था।

न जाने कितने-कितने सालों तक जाता रहा।

मैं उससे चाची का बदला लेता।

मैं चाची को छू नहीं सकता था इसलिए उसे छूता।

मेरे अंदर आग लगी होती।

मैं चिड़चिड़ा हो जाता।

उससे बदला लेकर आता और बच्चे की तरह सो जाता।

उसका क्या नाम था मुझे पता नहीं।

उसका क्या हुआ पता नहीं।

वह कहाँ चली गई पता नहीं।

वह कब मरी यह भी पता नहीं।

बस यह पता है, उससे तब अलग हुआ जब राघव की माँ लक्ष्मी घर में आई। जब बहनों की जिम्मेदारियाँ मुझ पर पड़ीं। जब भाइयों ने ज्यादा हिस्सा मार कर मुझसे किनारा कर लिया। जब काम-धंधा ठप्प पड़ गया और...। छोड़ो इन बातों को। मूर्तियों के भसान का दिन भी आ गया। मुन्ना तो पूरे-पूरे दिन नीचे रहता है। मूर्तियों को आते-जाते देखना चाहता है। ढोल-वोल की आवाज में उसे खूब मजा आ रहा है। बसंत पंचमी होती ही ऐसी है। खूब लुभाती है। खूब मन लगाती है। यहाँ इस इलाके में तो इतने पेड़-पाड़ नहीं दिखते पर जहाँ दिखते होंगे वहाँ जरूर पेड़ों पर फूल लगे होंगे। वह पीले-पीले फूल। क्या कहते हैं उनको गेंदा व कनेर। सूरजमुखी और चंपा। शिखा को कभी भी फूल लाते नहीं देखा।

ओ आ पेट में दर्द हो रहा है। तीन दिन हो गए पेट खराब हुए। न जाने क्या हो जाता है? कैसे? पतली टट्टी। हर पंद्रह दिन पर होने लगती है। खाया पचता ही कहाँ है। शिखा से कहूँ छाछ बना दे। दही तो होगा घर में?

मुन्ना सुनो, बेटा मम्मी से कहो, दादा छाछ माँग रहे हैं। मम्मी से कहो दादा बुला रहे हैं। मैं ही कह देता हूँ। शिखा, आज फिर पेट गड़बड़ है। बहुत बेचैनी हो रही है। थोड़ा छाछ दो। छोड़ो, दही नहीं है तो कोई बात नहीं। वह डाभ खोल दो।

आओ मुन्ना, मेरे पास आओ। दादा की तबीयत खराब है ।

आजकल दादा की तबीयत खराब हो जाती है। तुम बस मेरे पास आ जाओ मुझे अच्छा लगेगा। तुम मुझे एकदम चाची लगते हो।

बताओ तो तुम कितने साल के हो? अभी चाची होती तो जानते हो कितने साल की होती? एकदम बूढ़ी।

मुन्ना, तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो। तुम हर बात में मुँह हिला देते हो। हाँ-हाँ करते हो। कुछ कहते क्यों नहीं? तुम भी कहो मैं बहुत अच्छा हूँ। तुम मेरी बात सुनते नहीं। क्या देख रहे हो? वह चमकती पन्नी। वह जर्दा है। नहीं-नहीं, वह मैं तुम्हें नहीं दे सकता। नहीं बेटा, मम्मी डाँटेगी।

सुनो, इधर आओ।

आओ!

मैं तुम्हें एक कहानी सुनाता हूँ।

किसकी कहानी सुनोगे। मेरी? अच्छा देखो...। मेरा नाम...। मेरा नाम? हाँ मेरा नाम 'पांडा' है। वही पांडा। तुम्हारा चीनी भालू। मैं अच्छा आदमी हूँ। मैं बहुत अच्छा हूँ। पर यह सच नहीं है। तुमसे क्या झूठ कहना। सच-सच कहता हूँ - 'मैं अच्छा नहीं हूँ। मैंने जानते हो क्या किया है : मैंने हरि और सुमित्रा का घर तबाह कर दिया। यह कोई कल परसों की बात थोड़े न है। बहुत पुरानी बात है। पंद्रह-बीस साल पुरानी। रोज सुमित्रा भाभी को जाकर कहता हरि सीता से मिलता है। दोस्त था हरि मेरा। उसने एक दिन मेरे साथ बहुत गंदा बर्ताव किया था। सारे दोस्तों के बीच जलील किया। बोला - तुम सा कमीना और नहीं मिलेगा। बस उस दिन मैंने ठान लिया, मैं उसे नहीं छोडूँगा। घर तबाह कर डालूँगा। मुझे झूठा, हेर-फेर करनेवाला, लंपट कहता है। मुझे तब चैन आया जब सुना, सुमित्रा ने उसे छोड़ दिया। ऐसे ही और भी काम किए उन सबके साथ जिन्होंने मुझे बदनाम किया।

आऽऽऽ! यह दर्द। पेट दर्द। लगता है फिर पाखाना जाना होगा। मुन्ना, मम्मी से कहो डॉक्टर को बुलवा ले। ऐसी कमजोरी। लगता है शरीर में जान नहीं है। निचोड़ लिया है किसी ने सारा रस। मुन्ना यहाँ आओ, मेरे पास। मुझे नींद आ रही है। हाँ, नींद। हाँ मैं अच्छा आदमी हूँ। नहीं, खराब हूँ। खराब आदमी। पसीना भी आ रहा है। पसीना। मैं...। चाची...। मुन्ना की दादी। मुन्ना तुम्हारी दादी ने बहुत सेवा की पर मैंने उसे सुख नहीं दिया। सताया। मारा भी। मेरे! मुन्ना। तुम बहुत अच्छे हो। मैं तुम्हें झूठ नहीं बोलूँगा, तुम्हारी दादी के मरने के बाद मेरा मन उचट गया। मेरा मन नहीं लगता। नींद आ रही है...। मैं मर जाऊँगा। मैं मर क्यों नहीं जाता?

कितनी जोर से टी.वी. चला रही है! आवाज कम करो। मेरी तबीयत ठीक नहीं। शिखा, टी.वी. की आवाज बंद करो। अच्छा नहीं लग रहा। कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा। ओह, मेरा जीवन। बचपन कितना अच्छा था। कहाँ अच्छा था। बचपन! याद करता हूँ तो अच्छा लगता है।

पूरा जीवन ऐसे ही गुजर गया। कुछ नहीं सीखा। बोलना, बात करना भी नहीं आया। लोगों को कहना चाहता था कुछ, जो कहता उसका अर्थ निकलता कुछ। कौन सा साहित्य किसी ने पढ़ या पढ़ाया था जो सही-सही शब्द कहता। क्या पड़ा है सही-सही बोलने में। जो एकदम वही शब्द बोलते हैं जो सोचते हैं उन लोगों ने जीवन में कौन-सा तीर मार लिया? क्या उनकी लंपटता में कोई कमी आई या उनके कमीनेपन में? वे भी तो एक-एक रुपल्ली गिनने में लग हुए हैं। दिखाता तो कोई अच्छा बनकर! स्वीकार करता दुनिया के सामने अपना किया-धरा! बड़े बनते हैं मेरे हितैषी! कहते हैं मैंने जीवन में जो किया है उसे मानूँ।

ऊँह। हूँ। हूँ...। मैं रो रहा हूँ। हाँ, मैं रो रहा हूँ। मेरी सिसकी कौन सुनेगा? मैं क्या करूँ? मैं बहुत परेशान हूँ। मैं बार-बार उस बातों को भूलने की कोशिश करता हूँ। इधर-उधर की बातें करता हूँ पर यह बात मेरा पीछा नहीं छोड़ती। कहाँ से लाऊँ पैसा? इतना पैसा कैसे लौटाऊँ? जैसे लिया वैसे। पर है कहाँ सो दूँ। खत्म हो गए सब। सब हार गया। हाँ, सारे पैसे हजारों रुपये हार गया। उधार के पैसे हार गया। यह सब कुछ मुझसे कैसे हुआ मैं बता नहीं सकता। मैं अब राजा के पैसे कैसे दूँगा? न जाने मुझे क्या हो गया था। न जाने मुझे क्या हो जाता है। बीस हजार की रकम साफ हो गई।

मैं मानता हूँ यह नई बात नहीं है। पहले भी ऐसा कर चुका हूँ। धीरे-धीरे मेरी पत्नी लक्ष्मी के जेवर चले गए। मैंने ही उन्हें साफ कर दिया। पर तब लक्ष्मी जिंदा थी। उसके पास जेवर थे। अब!

अब मुझे कौन बचाएगा? मुझे कोई क्यों बचाएगा?

दिन रात एक ही बात मुझे खाए जा रही है। इतना पैसा मैं कैसे वापस करूँगा? क्या करूँ? शिखा के जेवर। उसके जेवर निकाल लूँ? यही एक रास्ता है। वे चूड़ियाँ जो लक्ष्मी को मुँहदिखाई में दी थीं। बहुत रुपये आएँगे उसके। किसी को क्या पता चलेगा? शिखा और राघव कभी नहीं जान पाएँगे कि मैंने ऐसा किया है। बस अब मैंने सोच लिया है यही करना होगा। आज दोपहर में। आज शिखा बाहर जाने वाली है। आलमारी की चाभी मुझे देकर जाती है। आज का दिन मुझे उबारने वाला दिन है।

ग्यारह बज गए। बारह बजने वाले हैं। एक तो कभी का बज गया। अब दो भी। आज शिखा बाहर नहीं जाएगी? जाने वाली तो थी। क्या हुआ? अगर चूड़ियाँ नहीं मिलीं तो मैं क्या करूँगा? कौन मुझे बचाएगा? लगता है शिखा तैयार हो रही है। हाँ, आ रही है मेरे पास। धीरे-धीरे। वह जल्दी क्यों नहीं आती? आ गई। हाँ, शिखा बोलो। अच्छा चाभी रख दो। नहीं, वहीं उसी दराज में जहाँ हमेशा रखकर जाती हो। आलमारी को ठीक से बंद कर ही दिया होगा। घर की चिंता मत करो। मैं हूँ न! सँभाल लूँगा।

चोरी। हाँ चोरी। आज मैं अपने घर में चोरी करूँगा। यह चोरी नहीं है। लक्ष्मी ने शिखा को जो सामान दिया था उसे वापस ले रहा हूँ। यह पाप नहीं है। कुछ भी पाप नहीं है। घर का आदमी मुसीबत में हो तो घर का ही तो मदद करेगा। कोई नाते रिश्तेदार दोस्त हाथ नहीं बढ़ाएँगे तो भगवान ऊपर से आकर सहायता कभी नहीं करेगा।

जाऊँ। जल्दी-जल्दी आलमारी खोलूँ।

देखूँ। वह दराज। वहाँ। यहाँ। कहाँ? कुछ नहीं मिल रहा। कहीं भी कुछ नहीं रखा। छिः कैसी नीच हरकत की उसने। अरे, दरवाजे की घंटी बजी है। कौन आ गया? इस समय कौन आ गया? जल्दी-जल्दी सब सामान उसी तरह रखना होगा। शिखा आई है क्या? पर वह क्यों आएगी? नौकर के आने का समय नहीं हुआ हो। राघव रात में आता है। फिर घंटी बजी।

कौन है? शिखा तुम! क्या हुआ। कुछ छूट गया। जाओ ले लो। आलमारी की चाभी वहीं रखी है। ले लिया। जा रही हो। आने में देर होगी। ठीक है। जाओ। बाहर का दरवाजा ठीक से बंद कर दो।

चली गई। कहीं फिर तो नहीं आ जाएगी? अब क्या आएगी। अच्छा हुआ जो मैंने उसकी आलमारी को ठीक से बंद कर दिया नहीं तो शक हो जाता। उसे शक तो नहीं हुआ होगा। न, क्या हुआ होगा। होता तो जाती नहीं। कोई बहाना करके रुक जाती। चलूँ एक बार फिर खोज लूँ। गहने हैं या नहीं यह देखूँ। हाँ-हाँ कुछ हैं इस पोटली में। इस कोने में। मिल गए। मैं जो खोज रहा हूँ वह यही हैं। बेकार राघव पर शक किया। वह क्यों चुराता? यही चूड़ियाँ लक्ष्मी ने शिखा को दी थीं। फिर बहू को देने के लिए रख लिया था। एक बार फिर लक्ष्मी मुझे बचा रही है। मरने के बाद भी मेरी मदद करने के लिए उसने कितना कुछ छोड़ दिया। बस अब सब उधार चुक जाएगा। आ...ऽ..। सिर में चोट लग गई। आलमारी से। सिर घूमने लगा।

चटाक। इतनी जोर से थप्पड़ मारा। किसने। तुमने मुझे इतनी जोर से थप्पड़ मारा। चाची तुम कहाँ से आ गई? मैं तुम्हारा हाथ तोड़ दूँगा। तुम मेरा पीछा क्यों करती हो? क्यों मारती हो?

मालिक के बेटे हो तो क्या मैं तुम्हें मार नहीं सकती। अच्छे घर के लड़के होकर चोरी करते हो? यह सब करते हुए शर्म नहीं आती? ऐसे कैसे हो गए?

मुझे नहीं मालूम चाची, मैं ऐसा कैसे हो गया? अब तो मैं छोटा भी नहीं रहा। बहुत बड़ा हो गया हूँ। बूढ़ा। तुम होती तो ऐसा नहीं होता। तुम कहाँ चली गई, तुम इतनी जल्दी क्यों चली गई? जब तक तुम रही तभी तक मैं अच्छा रहा। तभी तक मुझे सब कुछ अच्छा लगता रहा। उसके बाद...। उसके बाद तो मैं ऐसा ही हो गया। आसपास जितने भी लोग थे सब ऐसे ही थे, मैं भी हो गया। क्या करूँ? बताओ मैं क्या करूँ? चाची तुम कहाँ चली गई?

  • शर्मिला बोहरा जालान : हिन्दी कहानियाँ
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