ख़ुदकुशियां (कहानी) : गाय दी मोपासां

Suicides (French Story) : Guy de Maupassant

जॉर्जेस लेग्रैंड को ।

मुश्किल से कोई दिन गुजरता है जब अख़बार में इस तरह की कोई ख़बर हमारी नजर में न आती हो :

"बुधवार रात 40 नंबर फ्लैट, सिल्वर सिटी... (कोई भी स्थान ) में रहने वाले लोग दो गोलियां चलने की आवाज सुन कर जाग गए। धमाके की यह आवाज मिस्टर एक्स….. (कोई भी नाम) के अपार्टमेंट से आई थी। दरवाजा तोड़ा गया तो उस आदमी की लाश खून से लथपथ पड़ी थी और हाथ में एक पिस्टल था जिस से उसने अपनी जान ले ली थी।"

"मिस्टर एक्स, उम्र सत्तावन वर्ष, की अच्छी-खासी आमदनी थी और वो सब कुछ उसके पास था जिस से उसका जीवन खुशियों से भरपूर हो सकता था। उसकी आत्महत्या का कोई भी कारण नहीं मिला।"

कितने घोर दुख, कितनी अनजान पीड़ा, छुपी निराशा, रहस्यमयी जख्म होंगे जिन्होंने शायद इन आनंदित इंसानों को ख़ुदकुशियों की तरफ धकेल दिया? हम खोजते हैं, हमारे ख्याल में होते हैं - प्यार के दुखांत, अविश्‍वसनीय आर्थिक संकट…, और जिनमें हम कुछ ठोस नहीं जान पाते, उन मौतों के लिए ‘रहस्य’ शब्द का इस्तेमाल कर लेते हैं।

ऐसी ही 'बे-वजह ख़ुदकुशियों' में से एक का ख़त, जो उसने अपने जीवन की अंतिम रात लिखा और मेज पर उसकी भरी हुई रिवाल्वर के पास रखा हुआ मिला था, हमारे हाथ लग जाता है। हमें यह काफी दिलचस्प लगता है। यह उन महान विपदाओं में से किसी के बारे में भी नहीं बताता जिनकी हम अक्सर ऐसे हताशापूर्ण कृत्यों के पीछे होने की कल्पना करते हैं, बल्कि यह जीवन के प्रति उन छोटी-छोटी उक्ताहटों का धीरे-धीरे बढ़ते जाने तथा एक अलगाव ग्रस्त व्यक्तित्व का बिखर जाना दिखाता है जिसके सपने मर चुके हैं; यह उन दुखद मौतों का कारण सामने लाता है जिसे केवल गम्भीर व संवेदनशील लोग ही समझ सकते हैं।

यही पेश है-

“आधी रात का समय है। जब मैं यह खत पूरा करूंगा, तो ख़ुदकुशी कर लूंगा। क्यों ? मैं कारण बताने की कोशिश करूंगा, उनके लिए नहीं जो यह ख़त पढ़ेंगे बल्कि खुद के लिए, अपने पस्त होते हौसले को प्रज्वलित करने के लिए, ताकि मैं आत्महत्या के इस फैसले से पीछे न हटूं, जिसे अब ज्यादा से ज्यादा इसे मुलतवी ही किया जा सकता है लेकिन यह आत्मघाती कदम उठाना मेरे लिए बहुत लाज़िम हो गया है I

मेरे माता-पिता सरलचित्त थे जो कभी भी चीजों पर सवाल नहीं उठाते थे और मैं उनकी हर बात पर विश्वास करता था I

लंबे समय मैं सपनों में ही खोया रहा और आखिरकार मेरी आंखों से पर्दा हट गया I

पिछले कुछ सालों से मेरे भीतर एक विचित्र सा बदलाव आ रहा है। जीवन की वे घटनाएं जो पहले मुझे उज्जवल प्रतीत होती थीं, अब धुंधली सी रह गई हैं I चीजों का असली अर्थ मुझे उनकी क्रूर वास्तविकता से महसूस हुआ है और प्रेम के असली कारणों ने मेरे भीतर इस काव्य भाव के लिए घृणा भर दी है-

"मूर्खता और आकर्षक भ्रमों के हम अविनाशी खिलौने हैं, जिन्हें हर बार दोबारा सृजित किया जाता है।"

उम्र के साथ-साथ, मैंने जीवन की घोर रहस्यमयता और प्रयत्नों की व्यर्थता को काफी हद तक स्वीकार कर लिया थाI आज रात भोजन के उपरांत, जीवन की तमाम चीजों के खोखलेपन में मुझे एक नई रोशनी का अहसास हुआI

पहले मैं बहुत खुश थाI हर चीज से मुझे खुशी मिलती थी- आती जाती महिलाएं, गलियों के दृश्य, वह स्थान जहां मैं रहता था और और यहां तक कि मैं अपनी पोशाक में भी रुचि रखता थाI एक ही जैसे दृश्यों के बार-बार सामने आने से मेरा हृदय उकताहट और घृणा से भर गया, जैसे किसी को हर रात एक ही फिल्म देखने के लिए सिनेमा जाना हो I

पिछले तीस सालों से, एक ही समय पर सुबह उठना और फिर, उसी एक होटल में जाना और और उसी एक समय पर, अलग-अलग वेटरों द्वारा लाया गया मगर वही एक सा खाना खानाI

मैंने यात्राएं करने की भी कोशिश कीI अकेलापन, जो कोई अनजान जगह पर महसूस करता है; उसने मुझे भयभीत कर दियाI मैंने खुद को इस धरती पर इतना अकेला और छोटा महसूस किया कि मैं तुरंत अपने घर की ओर वापिस चल दियाI

लेकिन वहां पर भी कोई बदलाव न था। वही फर्नीचर, जो पिछले तीस सालों से उसी एक जगह पर पड़ा थाI हर रात घर से वही एक गंध आती थी जो समय बीतने पर किसी एक स्थान से आने लगती हैI इन सब बातों से मुझे घृणा हो गई और अब मैं इस तरह के जीवन से तंग हो गया हूँ I

यह सब अंतहीन दोहराव है। जिस तरीके से मैं अपने ताले में चाबी लगाता हूँ, वो स्थान जहां से मैं अपनी माचिस ढूँढता हूँ, वो चीज़ जो मुझे कमरे में प्रवेश करते समय सबसे पहले नज़र आती है, इन्हें देखकर महसूस होता है कि खिड़की से कूद जाऊँ और कभी पीछा न छोड़ने वाली इस नीरस दिनचर्या का अंत कर दूं।

हर रोज जब मैं दाढ़ी बनाता हूं तो मैं अपना गला काटने की, एक अजीब सी इच्छा महसूस करता हूं और मेरा चेहरा, जिसे मैं दर्पण में देखता हूं, गालों पर लगी साबुन से हमेशा वैसे का वैसा ही I इस उदासी ने मुझे दुर्बल बना दिया है I

अब तो मुझे उन लोगों से मिलने से भी नफरत होती है जिनसे कभी मैं बड़ी प्रसन्नता से मिला करता था I मैं उन्हें बहुत अच्छी तरह से जानता हूं, मैं बता सकता हूं कि वे क्या कहने वाले हैं और मैं क्या जवाब देने वाला हूंI हम सभी का दिमाग एक सर्कस की तरह हो गया है जहां पर एक ही घोड़ा निरंतर रूप से चक्कर लगाता रहता हैI हम वही गोल गोल चक्कर लगाते रहते हैं, उन्हीं विचारों के इर्द-गिर्द, वही खुशियां, वही आनंद, वही आदतें, वही धारणाएं और वही घृणा की उत्तेजना I

आज शाम धुंध बड़ी भयानक थी I सड़क इसकी चपेट में इस तरह आ गई कि खंभों पर जल रही लाइटें, मोमबत्ती की तरह धुंधली प्रतीत होने लगीI सामान्य से अधिक वजन ने मुझे पीड़ित कर दिया, शायद मेरे शरीर का पाचन ठीक नहीं रहाI

आखिरकार अच्छा पाचन जीवन में बहुत कुछ होता हैI यह कलाकार को प्रेरणा देता है; यह ही युवाओं को कामेच्छा, विचारकों को स्पष्ट विचार, प्रत्येक व्यक्ति को जीवन का आनंद देता है और इसी के कारण तो हम जी भरकर खा सकते हैं जोकि बहुत बड़ा सुख है। एक बीमार उदर संशय, अविश्वास, कुस्‍वप्‍नों व मृत्युकांक्षा को जन्म देता है। मैंने अक्सर ही यह बात देखी है। यदि मेरा पाचन दरुस्त होता, शायद इस शाम मैंने अपनी जान न ली होती।

जब मैं आराम कुर्सी पर बैठा हुआ था; उसी कुर्सी पर, जिसमें पिछले तीस वर्षों से हर रोज बैठता रहा हूँ, अपने चारों ओर देखा, और उसी वक्त मुझे ऐसी असहाय पीड़ा ने आ दबोचा कि मुझे लगा मैं जरूर पागल हो जाऊंगा।

मैंने सोचने की कोशिश की कि ऐसा क्या करूँ जिससे मैं स्वयं से दूर भाग सकूँ। कुछ भी करना मुझे अपनी निष्क्रियता से भी अधिक बुरा प्रतीत हुआ। फिर मैंने अपने कागजों को व्यवस्थित करने के बारे में सोचा।

काफी समय से मैं अपनी दराजें साफ करने के बारे में सोचा करता था। पिछले तीस सालों से मैं अपने पत्र, बिल बेतरतीब रूप में एक ही मेज में रखता रहा हूं और इस तरह की अव्यवस्था ने अक्सर ही मेरे सामने काफी मुश्किलें पैदा की थीं। लेकिन किसी भी चीज़ को व्यवस्थित करने के विचार मात्र से ही मैं अपने अंदर ऐसा नैतिक व शारीरिक आलस्य महसूस करता कि मुझसे कभी भी यह उबाऊ कार्य शुरू करने की हिम्मत नहीं हुई थी।

इसलिए मैंने अपने पुराने काग़ज़ात को छांटकर अलग करने तथा ज्यादातर को नष्ट कर देने के इरादे से अपना दराज़ खोल लिया।

पहले तो मैं इन अस्त-व्यस्त काग़ज़ात का ढ़ेर देखकर घबरा गया जो पुराने होने के कारण पीले हो चुके थे।, फिर मैंने उनमें से एक चुन लिया।

आह! यदि आपको जिंदगी से लगाव है तो पुराने पत्रों की दफ़नगाह कभी नहीं छेड़नी चाहिए!

और इत्तिफ़ाक़न उन्हें हाथ लगाना भी पड़े तो ध्यान रहे कि आपकी आखें उन पर लिखा कोई शब्द न पढ़ पाएं क्योंकि वे किसी पुराने हस्तलेख को पहचानकर आपको यादों के समंदर में डूबो सकती हैं। उन पत्रों को आग के हवाले कर दें और जब उनकी राख बन जाए तो उसे मसलकर, बुरादा बनाकर हवा में उड़ा देना चाहिए वर्ना आप जान की बाजी हार जाओगे, जैसे ठीक आधे घंटे बाद मैं हारने जा रहा हूँ।

पहले कुछ पत्र जो मैंने पढ़े, मुझे ज्यादा दिलचस्प न लगे। ये सभी हाल ही में लिखे गए थे तथा उन जीवित आदमियों के थे जिनसे अक्सर मुलाकात होती रहती है और उनका होना या न होना मुझे कोई ख़ास प्रभावित नहीं करता। लेकिन अचानक एक पत्र ने मुझे चौंका दिया। इस पर मोटे व बड़े अक्षरों में मेरा नाम लिखा हुआ था। एकदम मेरी आँखों में आँसू आ गए। यह पत्र मेरे जवानी के दिनों के साथी, मेरी आसों-उम्मीदों के हमराज़, मेरे सबसे प्रिय मित्र का था और इसे देखते ही, मधुर मुस्कान के साथ अपनी बाहें फैलाए, मेरा दोस्त इस तरह मेरे सामने आ खड़ा हुआ कि मेरी रीढ़ में कंपकंपी दौड़ गई। बिल्कुल, ऐसे ही तो, दुनिया से गए लोग वापिस आते हैं! हमारी स्मृतियों का संसार इस ब्रह्माण्ड से कहीं अधिक विस्तृत है; यह उन्हें भी जीवित कर देता है, जो अब नहीं रहे।

काँपते हाथों व मंद आँखों के साथ मैंने वह सब-कुछ दोबारा पढ़ा जो उसने मुझे लिखा था और मैंने अपने सिसकियों भरे असहाय ह्रदय में ऐसा पीड़ादायक घाव महसूस किया कि मैं ऐसे आदमी की तरह कराहने लगा जिसकी हड्डियां धीरे-धीरे चूर-चूर की जा रही हों।

फिर मैंने अपने पूरे जीवन का सफ़र किया, जैसे कोई नदी के साथ सफ़र करता है। मैंने उन लोगों को देखा जो लंबे अरसे से कभी याद न आए थे; जिनके नाम तक मैं भूल गया था। उनके चेहरे मेरे अंदर जिंदा थे। अपनी मां के पत्रों में दोबारा से मैंने देखा- पुराने नौकरों को, हमारे घर की बनावट और छोटे, बे-मा'ने, बे-ढंगे छोर जो हमारे दिमागों में चिमट कर रह जाते हैं।

हां, मैंने यकायक फिर से अपनी मां के लिबास देखे, वो मुख़्तलिफ़ अंदाज़ जो वो इख़तियार करती थी, वो कई तरीके जिनमें वो अपने बालों को सजाती थी। उसने मुझे विशेष रूप से एक रेशमी पोशाक में प्रेतवाधित किया, पुरानी किनारी के साथ तराशी की; और मुझे कुछ याद आया जो उसने एक दिन कहा था जब वह यह पोशाक पहना रही थी। उसने कहा: 'रॉबर्ट, मेरे बच्चे, अगर तुम सीधे नहीं खड़े होगे, तो तुम जीवन भर झुके रहोगे।'

फिर, एक और दराज खोलकर, मैंने खुद को मधुर यादों के रू-ब-रू पाया: डांसिंग पंप, फटा हुआ रूमाल, बालों की लटें और सूखे फूल। फिर मेरे जीवन के मधुर रोमांस, वो नायिकाएँ जो अभी जीवित हैं पर उनके बाल अब सफेद हो गए हैं, ने मुझे चीजों की गहरी उदासी में डुबो दिया। ओह, युवा माथे जहां भूरी लटें लहराती हैं, हाथों की दुलार, नज़र जो बोलती है, दिल जो धड़कते हैं, वो मुस्कान जो होंठों का वादा करती है, वे होंठ जो गले लगाने का वादा करते हैं! और पहला चुंबन-वह अंतहीन चुंबन जो आपकी आंखें बंद करवा देता है, जो सभी ख़यालों को मिलन के अथाह आनंद में डुबो देता है!

पूर्व प्रेम की इन पुरानी प्रतिज्ञाओं को अपने दोनों हाथों में लेते हुए, मैंने उन्हें उग्र दुलार से ढाँप लिया, और एक-बार फिर आखिरी वक़्त इन यादों से से टूटे हुए, अपनी रूह में, मैंने उन्हें देखा। और मुझे जहन्नुम के बारे में, तमाम अफ़्सानों में ईजाद करदा तमाम अज़ीयतों से ज़्यादा ज़ालिमाना अज़ीयत का सामना करना पड़ा।

एक आख़िरी ख़त रह गया है। ये मेरी तरफ़ से लिखा गया था और पच्चास साल पहले मेरे तहरीरी उस्ताद ने लिखवाया था। ये है-

"मेरी प्यारी माँ

मैं आज सात साल का हूँ, ये अक़ल की उम्र है। मुझे इस दुनिया में लाने के लिए आपका शुक्रिया अदा करने का सुलाभ लेता हूं।

तुम्हारा छोटा बेटा, जो तुमसे प्यार करता है-

राबर्ट”

"अब ये सब ख़त्म हो गया है। मैं शुरू में वापिस चला गया था, और अचानक मैंने अपनी नज़र इस ज़िंदगी पर डाली जो मेरे पास बाक़ी रह गई थी। मैंने देखा कि घिनावना और तन्हा बुढ़ापा है, और कमज़ोरियाँ क़रीब आती जा रही हैं, और सब कुछ ख़त्म हो गया है। और मेरे क़रीब कोई नहीं है।

"मेरा रिवॉल्वर यहां मेज़ पर है। मैं उसे लोड़ कर रहा हूँ…. अपने पुराने ख़ुतूत को दुबारा मत पढ़ना!”

और ऐसे कितने ही आदमी ख़ुद को मार लेते हैं। और हम बेकार में ही उनकी ज़िंदगी में किसी महान दुख की तलाश करते रहते हैं।

(अनुवाद- भगवान दास, मनप्रीत, मुलख सिंह)

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