सूअर की तरह जीना : बिहार की लोक-कथा
Suar Ki Tarah Jeena : Lok-Katha (Bihar)
एक दिन एक गुरु के अंतस् में अपने भावी जीवन की झलक कौंधी। इससे उसे बोध हो गया कि अगले जन्म में उसे कौन-सी योनि मिलेगी। अतः उसने अपने प्रिय शिष्य को बुलाया और उससे पूछा कि उसने उससे जो ज्ञान प्राप्त किया उससे उऋण होने के लिए वह क्या कर सकता है। शिष्य ने उत्तर दिया कि जो गुरु कहे वह करने को तैयार है।
शिष्य का उत्तर सुनकर गुरु ने कहा, “मुझे अभी-अभी बोध हुआ है कि मेरी मृत्यु में अधिक समय शेष नहीं है और सूअर के रूप में मेरा पुर्नजन्म होगा। यहाँ अहाते में मैला खाती सूअरी को तो तुमने देखा ही होगा? वह अगली बार ब्याएगी तो मैं उसके चौथे घंटे के रूप में जन्म लूँगा। मेरी भौंह के चिह्न से तुम मुझे पहचान लोगे। सूअरी ब्याए तो भौंह के चिह्न से तुम चौथे घंटे को ढूँढ़ना और चाकू से उसका गला काट देना। इससे मुझे सूअर के घृणित जीवन से मुक्ति मिल जाएगी। क्या मेरे लिए तुम इतना कर सकोगे?”
सुनकर शिष्य को बहुत दुख हुआ। पर अपने वचन के अनुसार वह यह करने को तैयार हो गया।
कुछ समय पश्चात सचमुच गुरु का देहांत हो गया और सूअरी ने यथासमय चार बच्चों को जन्म दिया। एक दिन शिष्य ने चाकू को पैना किया और चौथे घंटे को ढूँढ़ निकाला। सच में उसकी भौंह पर एक निशान था। घंटे का गला काटने के लिए उसने चाकू नीचे किया ही था कि नन्हा सूअर चीख़ा, “रुक जाओ! मुझे मत मारो!”
घंटे को आदमी की तरह बोलते सुनकर शिष्य की आँखें फटी की फटी रह गई। वह आश्चर्य से उबरा भी न था कि घंटे ने कहा, “मुझे मत मारो! मैं सूअर का जीवन जीना चाहता हूँ। जब मैंने तुमसे मुझे मारने के लिए कहा था तब मुझे पता नहीं था कि सूअर का जीवन कैसा होता है। इसमें बहुत आनंद है। मुझे छोड़ दो!”
(साभार : बिहार की लोककथाएँ, संपादक : रणविजय राव)