हिन्दी कहानियाँ : हज़रत राबिया अल-बसरी
Hindi Stories : Hazrat Rabia al-Basri
1. भेंट अस्वीकार
सूफी संत राबिया बसरी बेहद सादा जीवन जीती थी। उनके मित्रों को अक्सर चिंता होती थी कि क्या उनके पास जीने के लिए पर्याप्त साधन हैं? वे उनके पास आते थे और उनकी मदद करना चाहते थे।
लेकिन जब भी वे ऐसा करने की कोशिश करते, वह कहती -मैं दुनियावी चीजें उससे भी मांगते हुए शर्म महसूस करती हूं जो इस पूरी कायनात का मालिक है। ऐसे में उनसे क्या मदद लूं, जो इस छोटी सी दुनिया के भी मालिक नहीं हैं? उसके मित्र हतोत्साहित होकर वहां से चले जाते, क्योंकि वह प्रभु पर इतना भरोसा करती थी कि अपने मित्रों की मदद को भी मना कर देती थी।
एक बार उनके एक संत मित्र बसरा के हसन उनसे मिलने आए। जब वे आए तो उन्होंने पाया कि राबिया की कुटिया के बाहर बैठा एक आदमी सोने के सिक्कों से भरा एक थैला लिए बैठा है, जो वह राबिया को अर्पित करना चाहता है।
जब हसन पास आए तो उन्होंने उस अमीर आदमी को रोता हुआ पाया। तुम क्यों रो रहे हो? हसन ने पूछा। उस व्यक्ति ने कहा, मैं आंसू बहा रहा हूं, क्योंकि मैं राबिया से बहुत प्रभावित हूं। अगर उनकी दुआएं साथ नहीं होतीं, तो इंसानियत खत्म हो जाती। मैं अपनी यह कमाई उन्हें भेंट देना चाहता हूं, पर डर है कि वे इसे स्वीकार नहीं करेंगी। अगर आप मेरी ओर से पैरवी कर दें, तो हो सकता है वे इसे स्वीकार कर लें।
हसन जब राबिया की कुटिया में गए, तो राबिया को बाहर बैठे उस अमीर का संदेश सुनाया। राबिया ने हसन को तिरछी नजर से देखा और अमीर आदमी की भेंट अस्वीकार करते हुए कहा, जो खुदा अपने निंदकों का भी भरण-पोषण करता है, क्या वह उनका भरण-पोषण नहीं करेगा जो उससे प्रेम करते हैं?
2. हवा में उड़ते हुए इबादत
एक बार राबिया अपने कुछ संतो के साथ बैठकर सत्संग का आनंद ले रही थी । तभी तात्कालिक विख्यात संत हसन बसरी का वहाँ आगमन हुआ । उनके बारे में कहा जाता है कि वह पानी पर बैठकर नमाज़ पढ़ते है । अतः जब उन्होंने लोगों को जमीन पर बैठा देखा तो बोले – “ चलिए, दरिया पर मुसल्ला बिछाकर इबादत करते है ।”
राबिया ताड़ गई कि हजरत हसन बसरी पानी पर चलने की अपनी सिद्धि का प्रदर्शन करना चाहते है । मुस्कुराते हुए राबिया बोली – “ भैया ! हवा में उड़ते हुए इबादत करे तो कैसा रहेगा ?” राबिया के बारे में भी प्रसिद्ध था कि वह हवा में उड़ते हुए इबादत कर सकती है । हसन से कोई उत्तर देते नहीं बना । फिर राबिया गंभीर होकर बोली – “ भैया ! जो आप कर सकते हो, वह हर मछली करती है और जो मैं कर सकती हूँ, वह हर मक्खी करती है । किन्तु सत्य इस करिश्मेबाजी से बहुत ऊपर की चीज़ है । उसे अपनी सिद्धियों के घमंड में आकर इस तरह अपमानित नहीं करना चाहिए ।”
इसीलिए सच्चे अध्यात्मवादी को कभी भी अपने ज्ञान और सिद्ध होने का घमंड नहीं करना चाहिए । हसन ने राबिया की बात को समझा और आत्मशोधन में जुट गए ।
3. ख़ुदा की बंदगी
एक रोज़ एक मजलिस में ‘ख़ुदा की बंदगी’ यानि इबादत के बारे में बातचीत हो रही थी। आप भी उसमें मौजूद थीं। एक ने कहा कि मैं इबादत इसलिए करता हूं कि जहन्नम से महफूज़ रहूं।
एक ने कहा इबादत करने से मुझे जन्नत में आला मकाम हासिल होगा।
तब आपने फ़रमाया कि अगर मैं जहन्नम के डर से इबादत करूं तो ख़ुदा मुझे उसी जहन्नम में डाल दे और अगर जन्नत के लालच में इबादत करूं तो ख़ुदा मुझ पर जन्नत हराम कर दे। ऐसी इबादत भी कोई इबादत है। ख़ुदा की बंदगी तो हम पर ऐन फ़र्ज़ है, हमें तो हर हाल में करना है, चाहे उसका हमें सिला मिले या न मिले। अगर ख़ुदा जन्नत या दोज़ख़ नहीं बनाता तो क्या हम उसकी बंदगी नहीं करते। उसकी बंदगी बिना मतलब के करनी चाहिए।
4. यक़ीन
एक बार दो व्यक्ति राबिया से मिलने आये । बातचीत के दौरान राबिया ने खाने को पूछा तो वो भूखे थे इसलिए मना नहीं किया । राबिया के पास दो रोटियाँ थी । वह दोनों ही रोटियाँ उन दोनों को खिलाने वाली थी लेकिन तभी एक भिखारी मांगता हुआ आ पहुँचा । राबिया ने वह दोनों रोटियाँ उस भिखारी को दे दी । अब उन लोगों के खाने के लिए कुछ भी नहीं बचा ।
थोड़ी ही देर बाद राबिया की एक सेविका उनके लिए रोटियाँ लेकर आई । राबिया ने रोटियों को गिना तो 18 रोटियाँ थी । उसने वापस कर दिया । सेविका ने बहुत मनाया लेकिन राबिया नहीं मानी । कुछ देर बाद वो सेविका फिर आई, इस बार उसके पास 20 रोटियाँ थी । राबिया ने कुबूल कर ली और उन दोनों व्यक्तियों के सामने रख दी ।
यह सब देखकर वह दोनों अचंभित थे । उनमें से एक व्यक्ति गंभीरता से पूछा – “ यह सब क्या है ? 18 रोटियाँ हमारे लिए बहुत ज्यादा थी फिर भी आपने 20 होने पर ही क्यों कुबूल की ।” तो राबिया बोली – “मेरे पास दो ही रोटियाँ थी जो मैं आपको देना चाहती थी लेकिन तभी भिखारी आ गया । इसलिए मैंने उसे दे दी । मेरा खुदा से वादा है, कि वो मुझे एक के बदले दस देगा, तो फिर मैं कम क्यों लूँ । मैंने दो रोटियाँ दी तो खुदा के वादे के अनुसार मुझे बीस रोटियाँ मिलना चाहिए । बस इसीलिए मैंने 18 रोटियों को कुबूल नहीं किया ।
5. राबिया की चादर
राबिया अक्सर इबादत करते – करते सो जाया करती थी । एक दिन भी इसी तरह राबिया सो गई । तभी एक चोर आया और राबिया की चादर लेकर भागने लगा । लेकिन उसे बाहर जाने का रास्ता दिखाई नहीं दिया । तीन – चार बार दीवार से टकराने के बाद उसने चादर एक जगह रखकर इत्मिनान से सोचना शुरू किया, तभी उसे रास्ता दिखाई दिया लेकिन जैसे ही चादर लेकर मुड़ा, फिर से अँधेरा छा गया ।
इस तरह उसने कई बार कोशिश की किन्तु हर बार जैसे ही वह चादर लेकर भागता, आँखों के आगे अँधेरा छा जाता । आखिर वो नहीं माना तब गूंज के साथ एक आवाज आई – “ क्यों आफत मोल ले रहा है !, खुशामद चाहता है तो हिफाजत से चादर रख दे । इस चादरवाली ने खुद को खुदा के हवाले कर रखा है । इसलिए शैतान भी इसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता तो किसी और की क्या मजाल, जो इसका कुछ बिगाड़ सके ।” यह सुनते ही वह चोर चादर को हिफाजत से रखकर भाग गया ।