सियार और कुत्ता : खड़िया/झारखण्ड लोक-कथा
Siyar Aur Kutta : Lok-Katha (Khadiya/Jharkhand)
एक बहुत बड़े जंगल में हाथी, सिंह, बाघ, भालू, हिरण आदि तरह-तरह के जानवर रहते थे। वहाँ पक्षी भी पेड़ों पर घोंसले बनाकर रहते थे। सभी मिलजुलकर आनंदपूर्वक रहते थे। उस जंगल में एक सियार भी रहता था।
एक दिन सियार भोजन की तलाश में जंगल में घूम रहा था। उसकी मुलाकात एक कुत्ते से हो गई। वह कुत्ते को आश्चर्य से देखकर आगे बढ़ गया। इसके बाद जंगल में दोनों की मुलाकात अक्सर हो जाया करती थी। वे कभी-कभी बात भी कर लेते थे। आगे चलकर दोनों में गहरी दोस्ती हो गई।
एक बार सियार को कुत्ते ने दावत दी। अपने मेहमान के लिए उसने चिड़िया का मांस बनवाया। सियार नियत समय पर अपने दोस्त कुत्ते के यहाँ पहुँचा। दोनों ने खूब प्रेमपूर्वक भोजन किया। काफी देर तक दोनों ने गपशप की। इसके बाद सियार अपने घर चला गया।
धीरे-धीरे दोनों की दोस्ती गाढ़ी होती गई। दोनों एक-दूसरे को खूब चाहने लगे। दोनों अक्सर आपस में अपना सुख-दुःख बाँटते तथा छोटी से छोटी बात के लिए भी वे आपस में सलाह-मशविरा करते थे। इस तरह दोनों के दिन सुख से बीत रहे थे।
एक दिन सियार ने अपने सगे-संबंधियों को अपने यहाँ भोजन पर बुलाया। उसने अपने मित्र कुत्ते को भी बुलाया। उसने कुत्ते से कहा,"कल आप चलते-फिरते शाम को मेरे यहाँ अवश्य आइएगा। वहीं आपको भोजन करना है।" कुत्ते ने आने के लिए हामी भर दी।
दूसरे दिन कुत्ता अपने दोस्त के यहाँ जाने को घर से निकला। कुछ दूर जाने पर उसे एक बात याद आ गई। उसने सोचा, 'सियार ने कहा था कि चलते-फिरते मेरे घर आ जाइएगा, मगर मैं तो वहाँ दौड़ कर चला जा रहा हूँ। ऐसा करना ठीक नहीं है।' यह सोचकर वह अपने घर लौट आया।
थोड़ी देर आराम करने के बाद वह फिर दावत खाने के लिए चल पड़ा। कुछ कदम चलने के बाद कुत्तेराम लुदकी दौड़ में दौड़कर जाने लगा। फिर उसे सियार की बात याद हो आई और वह फिर लौट आया। तीसरी बार वह फिर घर से निकला। वह बहुत सावधानीपूर्वक जा रहा था। अपना एक-एक कदम तौल-तौल कर वह रखता था। सियार के घर के निकट पहुँचते-पहुँचते वह फिर दौड़ने लगता। इस तरह जब भी वह अपने मित्र के यहाँ जाने लगता, तो आदत के अनुसार दौड़ने लगता।
उधर सियार दावत की पूरी तैयारी कर चुका था। उसके सभी सगे-संबंधी, हित-मित्र आ चुके थे। केवल कुत्तेराम के आने की देर थी। सियार आसरा देख रहा था कि कुत्ताराम आए, तो भोजन शुरू हो। एक घंटे तक इंतजार करने के बाद भी जब वह नहीं पहुँचा, तो उसने दावत शुरू कर दी। खाना खा चुकने के बाद सभी गप्प-सड़ाका कर रहे थे। उसी समय कुत्ताराम हाँफता हुआ वहाँ पहुँचा। कुत्ते को देखकर सियार बहुत घबराया। उसके यहाँ खाने को कुछ भी नहीं बचा था। सियार परेशान हो उठा, आखिर वह अपने मित्र को क्या खिलाता? माथापच्ची करते-करते उसे एक उपाय सूझा।
कुत्ता जब बैठकर अन्य लोगों से बातें कर रहा था, तबतक सियार बची हुई हड्डियों को बटोरकर, उन्हें एक बर्तन में ढंककर लाया और कुत्ते के सामने परोस दिया।
अपने दोस्त को परेशान देखकर कुत्ते ने पूछा, "दोस्त, आज तुम परेशान नजर क्यों आ रहे हो?"
सियार ने कहा, "नहीं मित्र, ऐसी कोई बात नहीं है। लेकिन तुमने बहुत देर कर दी। लाचार होकर मुझे भोजन शुरू कर देना पड़ा।"
देरी के लिए कुत्ते ने माफी माँगी। और उसके सामने परोसी गई थाली में जो भोजन था, चुपचाप खाने लगा। वह कड़ाकड़ हड्डियों को चबाने लगा। उसने कटर-कटर करके सारी हड्डियों को खा लिया।
रात अधिक हो जाने के कारण सभी मेहमान, मेजबान सियार को धन्यवाद देकर चले गए। कुत्तेराम भी वहाँ से दौड़ते हुए घर चले आए।
कहा जाता है कि तभी से कुत्ता हड्डियों को चबाया करता है।