शरणागति (तमिल लघु उपन्यास) : इंदिरा सौंदर्राजन (अनुवाद : एस.भाग्यम शर्मा)

Sharnagati (Tamil Novel in Hindi) : Indra Soundar Rajan (Translator : S Bhagyam Sharma)

अध्याय 1

घर के कॉलिंग बेल की आवाज सुनकर दरवाजा खोलते ही रंजनी को आश्चर्य हुआ।

दरवाजे के उस पार उसके ससुर जी सुंदरेसन खड़े हुए थे। उन्हें देखते ही आश्चर्य में पड़ कर नफरत से कुछ भी न बोल, बिना उन्हें अंदर बुलाए ही वह अंदर की तरफ मुड़ गई।

बेल की आवाज सुनकर रंजीता के अप्पा सोमसुंदर, अम्मा मनोहरी भी हॉल की तरफ आए।

उन्होंने सुंदरेसन को देखा।

पता नहीं क्यों वे लोग भी खड़े हो गए। वे भी सब को देखने लगे। फिर कुछ संकोच कर फिर भी अंदर की तरफ आकर हॉल के सोफे पर बैठ गए।

आखिर वे जब दो साल पहले इस घर में जब भी आते थे उसकी याद आ रही थी । जब वे बाहर टैक्सी से उतरते थे तभी सोमसुंदरम 'समधी आइए' कहकर उनका आवभगत किया करते थे !

अब तो सब कुछ उल्टा है...!

रिश्ते की ही जरूरत नहीं है ऐसा हो जाए तो फिर यही तो होगा? ऐसा होने पर भी सुंदरेसन स्थिर बुद्धि के हैं। शब्दों को सोने के तराजू में तोल कर बोलते हैं। हमेशा उनके माथे पर भभूति और कुमकुम साफ दिखाई देता था। उनके चेहरे पर दाढ़ी वगैरह सफाचट साफ-सुथरे और गंभीरता लिए हुआ चेहरा होता था । अब उसमें से आधा भी उनके पास नहीं है।

भभूति और कुमकुम भी ठीक से दिखाई नहीं दे रहा था । इसके ऊपर से 'यहां क्यों आए? यहां आपका क्या काम है?' ऐसा गुस्से से रंजीता के पूछते ही उनके चेहरे की रंगत उड़ गई ‌।

एक गंभीर मौन वहां पसर गया.... उसे कौन तोड़ेगा एक घबराहट के साथ सुंदरेसन शुरू हुए।

"आप लोगों को मेरे आने की उम्मीद नहीं थी यह आपके चेहरे से पता चल रहा है। अब आकर बात करने पर कुछ भी नहीं बनेगा ऐसा मुझे भी लगा। परंतु भास्कर के पर्स में वृंदा के फोटो को देखते ही मेरे अंदर एक नया विश्वास पैदा हुआ। उसके साथ रंजनी की फोटो भी थी तो मुझे आश्चर्य हुआ। वही नहीं कुछ दिनों से उसने एक ड्रॉप भी नहीं पिया।

यह सब मुझे आश्चर्य ही लग रहा है। वक्त बदलना शुरू हो गया ऐसा मुझे लग रहा है... वैसे ही...."

वे अपने बेटे भास्कर के बारे में बोल रहे थे तो वे लोग दोबारा कुछ कहते उसके पहले बाहर स्कूल की बस आई उसमें से 8 साल की बच्ची वृंदा पीठ पर बोझ लादकर हाथ में एक टोकरी जिसमें टिफिन बॉक्स और पानी की बोतल को लिए दो चोटी कर थोड़े बिखरे बालों के साथ अंदर आई। उसे देखते ही सुंदरेसन खुश हुए। वह भी 'ताता' (दादा) कहकर तेज बोलकर धीरे से मां की तरफ देखा।

"जा... जाकर हाथ मुंह धो कर अपने कमरे में जाकर होमवर्क करो। अम्मा तेरे लिए बूस्ट लेकर आ रही हूं।" कहकर उसे भगाया। उसकी नजरें कभी सुंदरेसन के ऊपर और कभी रंजनी पर ऐसे बदल-बदल कर देखने लगी।

"अंदर जाओ मैंने बोला ना...? रंजनी के नाराज होते ही वह अपने बैग के साथ अंदर जाने की कोशिश कर रही थी तभी उसे उठा कर सुंदरेसन ने गले लगाया।

"वृंदा मेरी बच्ची... कैसी हो मेरी प्यारी बेटी ! पढ़ाई अच्छी चल रही है ?"

वह भी उनके गले लगी। रंजनी को उसके व्यवहार से घबराहट पैदा हुई।

"उसे छोड़ो..... उसे जाने दो। उसने अभी कुछ दिनों से ही पढ़ना शुरू किया है। उसे खराब मत करो।"

"क्या कह रही हो बेटी..... वृंदा मेरी वारिस है। मैं मरूं तो मुझे अग्नि देने का कर्तव्य उसी का है। मैं उससे गले मिलूं तो गलत है?"

"ऐसी कई बातें हमने बहुत कर ली। आप अपने आने का कारण बताकर यहां से जाने की सोचिए। कोर्ट में कोई रिश्ता नहीं है फैसला हो गया ना ?"

रंजनी ने सीधे-सीधे वार किया।

"बिल्कुल ठीक है बेटी.... कोर्ट ने फैसला सुना दिया। तुमने भी उससे बिना थके बहस कर मेरे बेटे से तलाक ले लिया। उसको यह चाहिए था। पत्नी और बच्ची से ज्यादा महत्वपूर्ण उसने शराब की बोतल को समझा था उसका फल तो उसे मिलना ही था? परंतु इससे वृंदा हमारी वारिस नहीं है ऐसा हो जाएगा क्या?"

"कोर्ट के फैसले में भी मेरे बेटे भास्कर अपनी बेटी को देखना चाहे तो आराम से देखकर जा सकता है। क्या उस बात को तुम भूल गई थी। उसके इस अधिकार का फायदा उठाकर ही मैं यहां आया हूं।"

"ऐसा करने का आपको अधिकार नहीं है। आपके बेटे को अधिकार हो सकता है। परंतु इसकी योग्यता उसमें बिल्कुल नहीं है।"

"यह सब हमें पता ही है। मैं झगड़ा करने नहीं आया हूँ । अधिकार किसका है इसके बारे में विवाद करने भी नहीं आया।"

"फिर यहां आकर हमारे अनुमति के बिना सोफे पर बैठे हुए हो। यहां से पहले चले जाइए...."

"नहीं रंजना ! इस तरह शब्दों के बाण मत छोड़ो। छूटे हुए बाण फिर से तरकस में नहीं आ सकते। मैं अपने लड़के की वकालत करने या वह सुधर गया ऐसा कहकर टूटे रिश्ते को फिर से जोड़ने नहीं आया हूं। मुझे मेरे बेटे से जो प्रेम और ममता थी वह तो भाप बनके कबका उड़ चुका है।"

"मैं और मेरी पत्नी कब यम देवता आकर हमें ले जाएंगे सोचकर बैठे हुए हैं। इसके बीच में भास्कर से हमने जो अपेक्षा की थी उससे भी ज्यादा बदलाव अभी हुआ है जिसकी हमने अपेक्षा भी नहीं की थी यह वह बदलाव है।"

"यह कैसे और क्यों हुआ जानकार आपको बड़ा आश्चर्य होगा। इसीलिए मैं यहां आया हूं।"

सुंदरेसन बड़े आराम से धीरे-धीरे बोलते हुए सोमसुंदरम और उनकी पत्नी मनोहरी को देखा।

उनकी तरफ से एक उत्सुकता उनके भौहों से पता लग रहा था । वहां पर एक मौन शांति दिखाई दी। परंतु रंजनी को उनकी बातों में कोई रुचि दिखाई नहीं दी।

"आपको कुछ बोलने की जरूरत नहीं। अभी मैंने सब कुछ भूलकर अपना जीवन जीना शुरू किया है। अभी कुछ कह कर मेरे मन को भटकाने की जरूरत नहीं चुपचाप रवाना हो जाइए...."

"रंजनी मैं बोल रहा हूं उसे जरा सुनो...."

"आप मेरी बात को सुनिए। आप लोगों के बारे में सोचने को भी मैं तैयार नहीं हूं। मुझे जितना भुगतना था वह बहुत हुआ। मैंने जो कुछ सहा.... अभी मुझे उन सब को भूलना है। दूसरा और कुछ नहीं। मेहरबानी करके आप रवाना हो जाइए..."

वह टप आवाज आएं जैसे दोनों हाथों को जोड़कर कांपते हुए शरीर से कानों के पास पसीना और आंखों में आंसू की बूंदे लिए हुए खड़ी थी।

वे उसी समय मौन आंखों में आंसू की बूंदे चमकते हुए वहां से रवाना हुए। उनके जाने के कई देर तक रंजनी वैसे ही खड़ी रही। उसी समय मोबाइल बजा। उसने सुना।

"रंजनी मैडम ?"

"यस... आप ?"

"हम शरणागति वृद्ध आश्रम से बोल रहे हैं। कल आप आपकी पत्रिका के साक्षात्कार के लिए आने वाले हो ना ?"

"हां... क्या बात है ?"

"आपको कल सुबह 9:00 बजे हमारे होम के डायरेक्टर ने आने के लिए बोला है।"

"ठीक है... मैं उसी समय आती हूं।" रंजनी बात करके मुडी। उसके अप्पा और अम्मा उसको घूर के देख रहे थे।

"मुझे अभी आप लोग क्यों ऐसे घूर के देख रहे हो....?"

"संबंधी से तुमने इतनी कठोरता से बात की वह हमें ठीक नहीं लग रहा है...."

"संबंधी.... नहीं मैं भूल भी जाऊं तो भी आप उसे नहीं भूलोगे क्या ?"

"दामाद ही तो हमारा विलन था। संबंधी कभी भी गलत तरीके से पेश नहीं आए बेटी....."

"बार-बार संबंधी मत बोलिए। वह तो सब कुछ खत्म कर दिया ना...."

"चिल्लाओ मत.... वे कुछ अच्छी बात बोलने आए जैसे लग रहा था। तुम्हें उन्हें बोलने देना चाहिए था।"

"कोई खास बात नहीं ‌। वे भी क्या बोले वह अब सुधर गया आपने सुना नहीं ?"

"क्यों बेटा वह सच नहीं हो सकता ?"

"ऐसे ही शुरुआत होती है। मैं जब तक रही वहां उनको और उनकी पत्नी को बहुत अच्छी तरह रखा। अभी मैं नहीं हूं। मेरे जैसे अब और एक मिलेगी भी नहीं। इसीलिए इनकी जीभ मर गई होगी। इसीलिए रिश्ते को नया करें क्या ऐसा सोच कर आए होंगे। यह बात आपके खोपड़ी में नहीं आएगी?"

रंजीता के इस तरह की बातों ने उन्हें आगे कुछ बात करने नहीं दिया। वे एक दूसरे को आंखें फाड़-फाड़ कर देखने लगे।

वृंदा भी बिना कुछ समझे देख रही थी।

अध्याय 2

शरणागति वृद्धाश्रम ! करीब-करीब 3 एकड़ जमीन पर एक ऊंची इमारत पेड़ों के झुंड के बीच में खड़ा था ।

ठंडी-ठडी हवाएं ! फूलों की भीनी-भीनी खुशबू, सुंदर-सुंदर फूलों से लदे पेड़ों को देखकर मन को बहुत सुकून मिला ।

यहां-वहां सीमेंट के बेंच- छोटे-छोटे मंडप बने हुए थे और उनके बीच में कृष्ण, राम, शिवलिंग ऐसे ही कई पेंट किए हुए मूर्तियां रखी हुई थी।

सीमेंट के बेंचों पर यहां-वहां बुजुर्ग कुछ लोग बैठे हुए थे। एक टैक्सी में आकर रंजनी उतरी इस वातावरण को ध्यान से देखते हुए कार से उतर कर पैदल चलने लगी।

सामने ही उस वृद्धाश्रम की बिल्डिंग उसे दिखाई दी। उसके बाहर ही वृद्धाश्रम में काम करने वाले सहायक रामास्वामी खड़े थे।

"आप रंजनी हैं ?"

"हां मैं ही हूं। हमारे पत्रिका की तरफ से साक्षात्कार के लिए बात करने वाली मैं ही हूँ।"

"वेलकम.... वेलकम..." -वे रंजनी को लेकर उनके डायरेक्टर रामकृष्णन के कमरे में घुसे।

सुहाता हुआ ए.सी, लवंडर की खुशबू, कमरा आरामदायक ठंडा था। सामने चमचमाती हुई कैन की कुर्सी पर बैठे हुए रामकृष्णन के चेहरे पर ही पवित्रता झलक रही थी।

"नमस्कार सर....."

"नमस्कार अम्मा..... आइए... बैठिए....."  - वह भी सामने पड़ी कुशन के कुर्सी पर बैठी।

"कहिए..... कोई साक्षात्कार लेना है आपने बोला?"

"हां सर..... हमारी मासिक पत्रिका में इस बार जो अंक हम निकाल रहे हैं वह बुजुर्गों के लिए है। अत: बुजुर्गों से संबंधित बातों को हमने अच्छी तरह से लाने का इरादा किया है।"

"बुजुर्गों के अनुभव, उनके मन का आरोग्य, उनके शारीरिक स्वास्थ्य सभी समाचारों को इकट्ठा करके हम एक लेख लिखेंगे। इसलिए बुजुर्गों से साक्षात्कार लेकर उनकी भावनाओं को वैसे का वैसा ही मैं बाहर लाने की सोच कर आई हूं।"

"बहुत अच्छी बात है। इस संस्था का निर्माण कर्ता मैं ही हूं। मुझसे पूछने के लिए आपके पास कुछ है क्या ?"

"बहुत कुछ है सर। इस वृद्धाश्रम के बारे में मैंने बहुत कुछ सुना है। हवादार प्राकृतिक वातावरण में शहर से दूर एकदम शांति पूर्ण स्थान है। इस जगह पर है आप कोई लॉज नहीं तो शॉपिंग मॉल भी बना सकते थे। वैसे तो कोई कारखाना भी बना सकते थे। परंतु आपके वृद्धाश्रम खोलने का कारण मैं जान सकती हूं?"

"बहुत बढ़िया प्रश्न। मैं इसका जवाब जरूर दूंगा। उससे पहले आप अंदर जाकर सब को देख कर उन लोगों का साक्षात्कार लेकर आ जाइए......"

"क्यों सर.... अभी आप मेरे प्रश्न का जवाब क्यों नहीं दे सकते ?"

"कभी भी दे सकता हूं। परंतु यहां पर रहने वाले बुजुर्गों को देखकर आने के बाद उसे सुनना ठीक रहेगा और आपके लेख के लिए स्ट्रक्चर बहुत अच्छा रहेगा ।ऐसा मैं सोचता हूं। उसके बाद मुझसे पूछने की जरूरत नहीं हो ऐसा फैसला भी आप ले सकती हैं....."

रामकृष्णन अपनी बातों को बहुत ही स्पष्ट और गंभीरता से बोले। रंजनी  ने मुस्कुराते हुए सिर हिलाया। उसी समय उसके पीने के लिए चाय और उसके साथ चार मोटे-मोटे बिस्कुट लेकर आए।

"इसे खाइए और यह चाय और बिस्कुट दोनों ही स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छे हैं। यह हर्बल चाय विशेष तौर से शुगर पेशेंट को देते हैं।"

उनकी बातों को सुनकर उसने चाय पिया। अच्छी गरम चाय और उसकी खुशबू भी बढ़िया थी। उसके साथ जो बिस्कुट था आधा मीठा बहुत अच्छा लग रहा था। उसे पसंद आया।

"यह अलग तरीके का है..."

"पसंद आया ?"

"बिल्कुल..... यह कांबिनेशन मेरे लिए नया है!"

"ऐसी बहुत सी बातें जो हमें पता नहीं वह नई होती है। परंतु सचमुच में वह नई है ऐसा नहीं होता। इस भूमि में शुरू से ही जो वस्तुएं हैं वही हैं यह सब नई नहीं हैं ।"

चाय और बिस्कुट पर उन्होंने जो जवाब दिया उसमें तत्व था। उस जवाब से पता चलता है यह बड़े गंभीर और गहरे आदमी हैं यह बात रंजनी के समझ में आ गई।

"तुम्हारे अप्पा-अम्मा क्या करते हैं.... वे कैसे हैं...."

उनसे जिस प्रश्न की उसे उम्मीद थी वहीं उन्होंने पूछा। रंजनी थोड़ी आश्चर्यचकित हुई फिर भी जवाब दिया ।

"वे लोग अच्छी तरह से हैं। मेरे साथ ही रहते हैं। आप हमारे अप्पा-अम्मा जैसे ही हो अत: आप मुझे तुम ही बोलिए.... प्लीज..."

"ओ.... तुम्हारे साथ पैदा हुए भाई बहन कितने हैं ? -तुरंत ही उन्होंने बड़े आराम से बातें शुरू की।

"सॉरी सर। मेरे पेरेंट्स की मैं इकलौती हूं।"

"तुम 30 साल की होगी ?"

"आपने ठीक बोला। 8 साल की एक लड़की भी मेरी है।"

"अब चौथी कक्षा में पढ़ रही होगी । ठीक है ?"

"एक्जेक्टली...."

"तुम्हारे पति क्या करते हैं ?"

इस प्रश्न ने स्पीड-ब्रेकर का काम किया जिससे वह थोड़ा चुप हुई। चेहरे की सहजता भी बदली।

"क्यों अम्मा... कुछ गलत पूछ लिया क्या ?"

"नहीं सर। परंतु मेरे लिए यह एक बेकार प्रश्न है। कोई मुझसे यह प्रश्न नहीं पूछना चाहिए ऐसा मैं भगवान से प्रार्थना करती हूं।"

"समझ रहा हूं.... डाइवोर्स हो गया ?"

वे फट से दूसरे प्रश्न पर पहुंच गए।

"हां..." वह धीरे से बोली।

"ठीक है। अब मैं तुम्हारे परिवार के बारे में कुछ नहीं पूछूंगा। परंतु तुम जाने या अनजाने में एक सही जगह ही आई हो। तुम जाकर अपने साक्षात्कार को लेकर आओ। तुम्हारे पहले प्रश्न का उत्तर मैं आखिर में दूंगा।"

वे कुर्सी से उठकर खड़े हुए उनका बोलना गंभीरता लिए हुए था। उसने सोचा थोड़ी देर पहले जो मिलना हुआ वह बढ़िया रहा अब खत्म हो गया है उसे ऐसा लगा ।

अंदर आते समय जो वेग और उत्साह था वह अब नहीं है। फिर भी वह अपने आप को उत्साहित करके खड़ी हुई।

उसे उन्होंने अपने सहायक रामास्वामी के साथ जाने के लिए कहा! सब बातों को विस्तार से बताने के लिए भी बोला......

अध्याय 3

रामास्वामी व रंजनी इस वृद्धाश्रम के बरामदे में खड़े थे। अंदर एक रिसेप्शन का कमरा था। उसमें तीन लोग बैठ सकते थे ऐसी कुर्सियां और एक मुढा भी था। उसके ऊपर पेपर और मासिक और साप्ताहिक  पत्रिकाएं रखी हुई थी। उस पोर्शन के आगे एक छोटा हॉल था। उसमें दो अलग-अलग पलंग थे। उस पर गद्दे बिछे हुए थे। दोनों पलंग के बीच में एक छोटा टेबल था, उस पर इंटरकॉम और एक वाटर जग रखा था। उसी के साथ में दीवार पर एक टी.वी. और पास में एक बड़ा सेल्फ भी था और पास में ही एक लकड़ी का वार्डरोब रखा हुआ था।

सेल्फ के ऊपर के खाने में भगवान की तस्वीरें लगी थी। उसके नीचे ब्रेड संतरा और कई तरह के फल रखे हुए थे। वार्डरोब में कपड़े रखे थे.... पास ही लेट्रिन बाथरूम अटैच थे। जो टाइल्स लगे थे वे चिकनी ना होकर खुरदुरे थे और उस पर सीमेंट लगा हुआ था। दरवाजे बिना भार वाले प्लास्टिक के थे। पीछे के दरवाजे को खोलो तो वहां 5 फीट चौड़ी बाल्कनी थी। वहां कपड़े सुखाने के लिए तार भी बंधे हुए थे। उस कमरे में स्प्लिट ए.सी. भी लगा हुआ था। इसके अलावा एक पंखा भी था।

"कमरा चालीस वर्ग फिट के होंगे। इसमें दो लोग आराम से रह सकते हैं। इस में रहने वाले एक बुजुर्ग दंपत्ति अभी नाश्ता करने गए हुए थे। उन लोगों के कोई रिश्तेदार मिलने आए तो आगे की तरफ रिसेप्शन में बैठकर बात कर सकते हैं। यहां 24 घंटे गर्म पानी की सुविधा भी है क्योंकि छत पर सोलर प्लांट लगाया हुआ है। ऐसे ही डायनिंग हॉल में एक ही समय में 60 लोग खाना खा सकते हैं। खाने के समय पर कॉलिंग बेल बजाते हैं। बेल बजाने के एक घंटे के अंदर कभी भी आकर खाना खा सकते हैं। वहाँ देखो बेटी डायनिंग हॉल। डाइनिंग हॉल में पुरानी सिनेमा के गाने, एम.एस. सुब्बलक्ष्मी के भजन बज रहे थे। सब खाना स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। जितना भी चाहिए मांग कर खा सकते हैं।"

"कॉफी, टी, बिस्किट, नमकीन कुछ स्नैक्स रूम में ले जाकर टेबल पर रख देते हैं।

हर हफ्ते मेडिकल चैकअप होता है। रोजाना प्रेयर हॉल में और भगवत गीता प्रवचन व प्रार्थना होती है। इसके अलावा एकादशी, अमावास, प्रदोष के दिन विशेष पूजा भी होती है। यहां रहने वाले कोई भी बुजुर्ग को किसी भी बात की फिक्र ना हो यह इस वृद्धाश्रम का उद्देश्य  है।

एक दंपत्ति के लिए हर महीने 15000 रुपए खर्च होता है। जिनके पेंशन आती है वह दंपत्ति इसे देती है। जिनके बच्चे नहीं हैं, जिसका आदमी नहीं है, जिनकी औरत नहीं है जिनका कोई आय का साधन नहीं है ऐसे कई तरह के लोग इस संस्था में रहते हैं। उदाहरण के लिए यह देखो वह धनलक्ष्मी पंजाबकेशन उस जोड़ी का कोई बच्चा नहीं है। उनकी आय का कोई साधन नहीं है। वे मंदिर में अर्चना करने वाले पुजारी थे। यहां भी वे पूजा का काम ही करते हैं।

उनके लिए अमेरिका के रहने वाले एक दंपत्ति जिनके अप्पा-अम्मा नहीं हैं वे इनके लिए 15 लाख रुपए का डिपॉजिट करवा दिया। वह रुपया वैसे ही रहेगा। उसका जो ब्याज आता है उसे हम इनके खर्च के लिए लेते हैं। यह एक उदाहरण है। इस तरह विविध प्रकार के लोग इस वृद्धाश्रम में रहते हैं। उन सबकी अपनी-अपनी एक अलग कहानी भी रहती है बेटी...."

रामास्वामी वृद्धाश्रम के बारे में विस्तार से कह सुनाया। इन सब को उसने बड़ी उत्सुकता से टेप कर लिया। उसकी हाथ में जो सेल फोन था उसमें ही यह सुविधा थी।

"कुल कितने लोग यहां रहते हैं ?"

"अभी 74 लोग हैं.……"

"इसे एक सर्विस सेंटर जैसे चलाते हो क्या ? या व्यापार चलाने की मंशा है?"

"100% यह एक सर्विस सेंटर ही है.... और उसी समय व्यापार का उद्देश्य भी है।"

"यह क्या जवाब है सर ?"

"यही जवाब सच है। जितना भी डोनेशन से ट्रस्ट को इंटरेस्ट आए उसे भीख जैसे देने में गौरव की बात नहीं है। ऐसे भीख लेने वाले बुजुर्ग के लिए यहां जगह भी नहीं है। यहां सब के लिए एक कीमत है। परंतु वह बहुत ही न्याय संगत कीमत है। रिश्तेदारों के द्वारा मिलने वाले प्रेम, प्यार और अपनत्व इनको ही हम बिना मूल्य के लुटाते हैं।"

उनके जवाब ने रंजनी को कोई प्रश्न पूछने लायक नहीं छोड़ा। रामास्वामी फिर शुरू हुए।

"पिछले 10-15 वर्ष में साफ बताना है तो यह 21वीं सदी की शुरुवाद ही  विनोदात्मक है।

शिक्षा को बेचकर अपनी जीविका चलाने वाले कॉलेज, मोबाइल उसके लिए सिम बेचने वाले दुकानदार, शराब की दुकान, बार आदि के लाइन से वृद्धि और वृद्धाश्रम सभी एक ही चीज है!

इनमे से कुछ भी देश के लिए जरूरी नहीं है। व्यापार की शिक्षा कोई शिक्षा नहीं है। मोबाइल को जरूरत के हिसाब से काम में लेने वाले भी नहीं है, टास्क मॉस्क के बारे में तो पूछने की जरूरत ही नहीं। एक बुजुर्गों का आश्रम तो एक कटे हुए रिश्तो को बताने वाली जगह है! इन से क्या फायदा है?"

"इसीलिए यह चार बातें तो होनी ही नहीं चाहिए परंतु इन चारों की ही बाढ़ आ रही है। इस 21वीं सदी की शुरुआत ही इतनी भयंकर है तो आगे क्या होगा सोच कर देखिए...."

रामास्वामी कोरीडोर में चलते हुए जो प्रश्न पूछे, उसमें सेलफोन के विषय ने उसे थोड़ा परेशान किया।

"सर... सर फोन तो एक विज्ञान का वरदान है सर ! उसे आप बुरा समझ रहे हैं सोचकर आश्चर्य हो रहा है।"

"मैंने जो बोला है उसे तुमने ठीक से सुना नहीं। एक लिमिट के साथ सेल फोन का उपयोग नहीं करते हैं यह मैंने बोला। मैं भी उसे ठीक से उपभोग करने वाला नहीं हूं। ठीक से उपभोग करने के लिए मुझे सेल फोन की संस्थाएं छोड़ती नहीं? वह तो मालूम है आपको ?" उन्होंने एक पहेली छोड़ दी। फिर शुरू हुए "फ्री के व्हाट्सएप से मुझे आने वाले ऑडियो वीडियो जो जगह को भर देते हैं यह मुझे अप्रत्यक्ष रूप से कितना नुकसान पहुंचाते हैं आपको पता है?" तुरंत मिटा दो तो समस्या का हल हो जाएगा ऐसे आप कह सकते हो ‌। एक व्यस्त गली में एक किनारे बैठ कर ध्यान लगाओ बोले जैसे ही यह विषय है। सिर्फ 100 रुपये के खर्चें में सेल फोन उपयोग करने वाले भी हैं। यह बात है... परंतु वह हजारों में एक है। युवा समुदाय इसे अपने रक्त के सेल से भी जरूरी सोचता है। इसके आधीन युवा समुदाय को हुए कितने वर्ष हो गए।

मनुष्य के जीवन में यदि शांति चाहिए तो सेल फोन से बात करने को कम करना पड़ेगा। अपने शरीर के शक्ति के लिए साग-सब्जी और फल में खर्च करने के बदले मोबाइल में बात करने में खर्च करते हैं। इसकी वजह से कितनी परेशानियां.... कितनी जांचें! अभियोग?"

उस रामास्वामी को आश्चर्य से रंजनी ने देखा।

"कुछ जल्दी से कच्चा-पक्का खाकर काम के लिए चले जाओ यह मरने वाले जैसे लगते हैं ऐसे रहने वाले इस समुदाय में कैसे-कैसे विचार हैं ?"

वह फिर भ्रमित हुई।

“आप जो कह रहे हैं बिल्कुल सही है। मेरा ही एक महीने में डेढ़ हजार रुपया लगता है। पत्रकार होने के कारण इसे रोक नहीं सकती। इसे कम करने की मैं सोचती हूं। परंतु नहीं होता...." कह कर अपने हार को स्वीकार करती हैं ।

"परेशानियों की जड़ ही शराब है... वे अब दूसरी बात पीने पर आ रहे थे यह सोच कर रंजनी ने परेशानी महसूस किया। उसके पति माझी की याद आई। जो पीने के अधीन होकर उसने उसे कितना परेशान किया उसे याद आया।

"क्या हुआ बेटी मैंने पीने की बात कही तो तुम स्तंभित रह गई....?"

"हां सर..…पीना बहुत बुरी चीज है। उसे परेशानी कहना बहुत छोटा शब्द है। पीने की बुराइयों को उसकी कठोरता को कहने के लिए कोई शब्द ही तमिल में नहीं है सर...." उसकी भावनाओं का विस्फोट होने लगा।

"यू आर राइट.... तमिल में ही नहीं किसी भी भाषा में उसके लिए सही शब्द नहीं है। उससे परेशान होकर एक बुजुर्ग दंपत्ति दो दिन पहले ही यहां पर आकर भर्ती हुए हैं...." उन्हें घूम कर देखा रंजनी ने।

"क्या देख रही हो बेटी..... वह दंपत्ति कोई शराबी नहीं है। उनका ओनली वन सन शराबी था। उसकी शादी हो कर एक लड़की भी है। परंतु अभी वह एक सन्यासी है। अब उनकी लड़की और पत्नी कोई भी नहीं है। उसकी पत्नी तलाक ले कर चली गई। कोर्ट ने उसकी बच्ची को पत्नी को ही दे दिया। इन सब का कारण पीना ही था। वह भी उसे छोड़ने की इच्छा रखता था परंतु छोड़ न सका।

पीना बंद करने पर उसका शरीर कांपने लगता था इस तरह वह उसके अधीन हो गया था। पीने में एक विनोदात्मक परेशानी यही तो है। ऐसा पीकर उसने अपने सब रिश्तो को खत्म कर दिया। आखिर में वैसा आदमी अपने जीवन में एक दूसरे मोड़ पर आ गया...."

मोड़ ऐसा एक सस्पेंस है उनके कहते ही उसकी बी.पी. बढ़ने लगी।

अध्याय 4

'वह मोड़ क्या है?' उसके अंदर एक तीव्र उत्सुकता जगी। उसी समय एक लड़की की आवाज आई "रामस्वामी सर...."‌

उन्होंने मुड़कर देखा।

"आपका फोन है.... ऑफिस में बुला रहे हैं ऐसा फर्श को साफ करने वाली अन्नम्मा ने उन्हें बुलाया तो वे "ठीक हैं... आपको जिस से मिलना है मिलिए। बातचीत करिए। मैं बात करके आ रहा हूं।" फिर वे चलने लगे।

रंजनी को थोड़ी निराशा हुई।

करीब-करीब उसके ही जीवन के बारे में वे बात कर रहे थे उसे ऐसा लगा। अब उसमें भी एक प्रश्न वाचक चिन्ह!

वह एक दीर्घ-श्वास लेकर वहां के एक कमरे के अंदर घुसी। एक बुजुर्ग दंपत्ति बहुत उत्साह के साथ चेस खेल रहे थे। उसे उन्होंने अंदर आते देखा।

"नमस्कार। मेरा नाम रंजनी है। मैं एक पत्रिका में काम करने वाली सह संपादक हूं। हमारी पत्रिका में इस बार बुजुर्गों पर विशेषांक निकालने वाले हैं इसीलिए मैं आप सबसे मिलने आई हूं।" इस तरह उन्हें प्रश्न पूछने की जरूरत ही नहीं ऐसे उसने अपना परिचय दे दिया।

"ओ.. रामास्वामी ने जो बताया था वह आप ही हो क्या?" उन्होंने हाथ को हटाते हुए पूछा।

"हां सर..."

"बहुत सारे प्रश्न है सर। यहां आने पर आपका जीवन कैसा है सर ..?"

"बहुत अच्छा है.... शरीर में बहुत सी बीमारियां है। उम्र के साथ होंगी तो सही ? इसीलिए कोई बड़ी बात नहीं बोलना चाहिए। उसके लिए तो बहुत सी दवाइयां गोलियां सब आ गई है ना?"

उनका जवाब किस तरह का है रंजनी के समझ में नहीं आया। वे बड़े खुश हैं ऐसा भी लग रहा था दुखी हैं ऐसा भी लग रहा था।

"ठीक है सर.... आप इस वृद्धाश्रम में क्यों आए हैं बता सकते हैं ?"

"वह क्या... बच्चों का सौभाग्य हमें नहीं मिला। रिश्तेदारों की भी कोई विशेष सहायता नहीं थी। मेरी पत्नी से भाग दौड़ कर मेरे लिए खाना बनाना संभव नहीं था। कितने दिन होटल में खाना खाए? ऐसी परिस्थिति में इस संस्था के बारे में पता लगा तो हमने अपने को ही इस संस्था में सौंप दिया।"

आगे बोले "मैं एक गवर्नमेंट नौकरी से रिटायर हुआ इसलिए पेंशन आता है। एक मकान था उसे बेच कर रूपयों को बैंक में डाल दिया तो कुछ ब्याज मिल जाता है। अब हमें ढूंढते हुए आने वाला एक मात्र यम ही हैं। उसके आने तक हम यहां रहेंगे सोच कर आ गए।"

खेलते हुए बिना किसी टेंशन के उनके बात करने के ढंग पर रंजीता का ध्यान खींचा। उन लोगों से और क्या पूछे उसे समझ में नहीं आया। परंतु उन्होंने उससे पूछना शुरू कर दिया ‌।

"आपकी शादी हो गई क्या ?"

"हां..."

"कितने बच्चे हैं?"

"एक लड़की।"

"सिर्फ एक ही लड़की है ?"

"हां। इस महंगाई में उसे पढ़ा लिखा कर बड़ा करना कम है क्या।"

"अरे जा बेटा.... दूसरा बच्चा बहुत जरूरी है कर लो। बड़ा भाई, छोटा भाई, बड़ी बहन, छोटी बहन, इन रिश्तों की भी बहुत जरूरत है। यह कुछ भी नहीं होने के कारण ही हमें इन रिश्तो का महत्व मालूम है।"

"ऐसा है तो लड़ाई झगड़ा होता है ना। आजकल महंगाई का दबाव भी तो बढ़ गया है...."

"वह सब बहुत सामान्य बातें हैं लड़ाई-झगड़े अज्ञानता के कारण होते हैं। उसे बड़ा नहीं करना चाहिए। एक दूसरे के लिए थोड़ी छूट दे दो तो ठीक है... और फिर मैं का ईगो नहीं होना चाहिए। बस इतनी सी बात! इन लड़ाई-झगड़ों की सोचते रहें तो हमारे जैसे अकेले ही जीना पड़ेगा । जिंदगी में फंस कर रह जाना पड़ेगा। इससे तो वह बढ़िया है...."

खेल भी रहे थे। साफ बात भी कर रहे थे। उनके साथ उनकी पत्नी ने भी मुंह खोला।

"समय को काटने के लिए ही खेल रहे हैं। सब बातों से बोर हो गए। अब टीवी देखना भी अच्छा नहीं लगता। कैसे-कैसे क्रिमिनल योजना वाले मेगा सीरियलस उसे भी देखने की अब इच्छा नहीं। हंसी मजाक वाला अब नया कुछ भी नहीं है। उसे एक बार या दो बार पसंद कर सकते हैं। उसके बाद उसे ही देखें तो गुस्सा आता है।

यहां पर आने के बाद हमारे जैसे बिना आधार वाले कुछ लोगों से हम मिल सके। हम में से कोई भी अपने भूतकाल के बारे में बात नहीं करते। हम लोगों के लिए रोज का ही जीना है। मेरी एक ही इच्छा है। मुझसे पहले इनको जाना चाहिए। मेरे जाने के बाद इन्हें मेरे लिए तड़पना नहीं चाहिए।"

बोलकर खत्म करने से पहले ही उस बुजुर्ग महिला का गला भर आया।

"उसी को कितनी बार कहोगी अभिरामी। हम दोनों एक साथ ही जाएंगे। उसके लिए अभी और समय है। बोलते हुए ही रख रहा हूं देख चेक.... चेक..."

-उन्होंने कॉइन को निकाल कर चेक को रखा । "कैसे भी हो हर बार आप ही जीतो। मुझे एक भी चांस नहीं देते हो...." वह अभिरामी बोली।

"अरे पागल... मुझे जिताने के लिए ही तुम जबरदस्ती खेलकर अब ऐसी बात कह रही हो ?"

"वह ठीक है... आदमियों को किसी से भी हारना नहीं चाहिए.... मैं आपके लिए एक लड़के को तो दे ना सकी.... खेल में तो जीताती हूँ ना.... "

उन दोनों के बीच की बातचीत से उसे जलन सी हुई। ऐसा भी कोई दंपत्ति होगा क्या उसने सोचा।

"क्या देख रही हो बेटी.... तेरे पति को भी किसी मामले में हारने मत देना। हां तुम्हारे बच्चे हैं ना...."

"एक लड़की है...."

"पढ़ रही है क्या ?"

"हां.... फोर्थ स्टैंडर्ड में...."

"अच्छा पढ़ रही है क्या ?"

"ठीक पढ़ रही है...."

"उसको ज्यादा मत पढ़ाओ.... एक डिग्री दिला दो बस। बहुत पढ़ने पर तुम्हारी लड़की फिर तुम्हारी लड़की नहीं रह जाएगी। संभल के रहो...."

"आपकी बात मेरे समझ में नहीं आ रही है। वह कैसे ?"

"उसका मैं जवाब देता हूं....." कहते हुए वाकिंग स्टिक के साथ एक बुजुर्ग अंदर आ रहे थे।

"अरे अरे वर्धराजन सर.... क्या बात है अभी तक नहीं आए मैंने सोचा।"

"मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक... और यह वर्धराजन जाएगा तो स्वामीनाथन तक...."

वे कोई जोक सुना जैसे जोर-जोर से हंसे और।

"इसका मतलब मेरा पति मुल्ला.. आप बहुत वैसे हो...." कहते हुए अभिरामी के उठते ही, उसके स्थान पर वह बैठ गए। फिर उन्होंने रंजनी को देखा।

अध्याय 5

"क्यों बेटी.... तुम ही वह पत्रिका वाली लड़की हो..."

"हां जी...."

"मैंने सोचा। रामस्वामी सब लोगों को सूचना देकर जो कुछ कहना है वह सब कह दो ऐसा कह कर गए। पर क्या बोले ! बोझ बने हुए शरीर के साथ कहां, कब मौत आएगी वह जल्दी आए तो ठीक है सोचते फिर दूसरे समय कही अरे आज ही तो कहीं नहीं आ जाए तो ऐसा भी ड़र लगता है | इस तरह से हम अपनी परेशानियों को शब्दों में वर्णन नहीं कर सकते।"

उनके शब्दों में जो शोक व्याप्त था रंजनी उसी से आहत हुई।

"मैं एक हार्ट पेशेंट हूं। मेरी एक ही लड़की है। अभी अमेरिका में है। मेरे दो दोहेते हैं। दामाद को भारतीय मुद्रा के हिसाब से पाँच लाख रुपये आय है। बड़े आराम से रहते हैं। परंतु उनके साथ रहकर जीना मेरे तकदीर में नहीं...."

"क्यों सर.... आपके दामाद को आपको, अपने साथ रखने की इच्छा नहीं है क्या ?"

"अरे.... मेरा दामाद तो खरा सोना है। मैं 5 साल वहीं था। सुबह मेरी लड़की और दामाद दोनों ऑफिस चले जाते। दोहेते भी स्कूल चले जाते। मैं अकेला घर की चौकीदारी करता।"

"अड़ोस-पड़ोस में कोई नहीं। अपने शहर जैसे कोई मंदिर, चाय की दुकान, बीच कहीं नहीं जा सकते। ठंड और परेशान करती उसे क्या कहूं ? वहां लोग सुंदर... सिर्फ पहली दृष्टि में... बस फिर..?"

वे प्रश्न पूछ कर रूके।

"समझ में आ रहा है सर.... वहां आपसे रहा नहीं गया। ऐसा ही है ना ?"

"हां... तुम अनुभव करो तब तुम्हें पता चलेगा। दिल खोल कर बात करने में ही आदमी के जीवन की सार्थकता है। उसकी भी वहां पर कोई जगह नहीं है ऐसा स्थान है वह बस।"

"आपकी बेटी और दामाद में आपके जैसे भावनाएं नहीं है क्या ?"

"वे तो धन के पीछे भागने वाले पिशाच हैं। काम-काम करके भागते रहते हैं। बिना आराम के परिश्रम करते रहते हैं। कितना भी कमाए उन्हें पूरा नहीं पड़ता। अपने देश में जैसे एफ.डी बनाना या चिटफंड में जमा करना वहाँ के लोग बहुत कम करते हैं या नहीं के बराबर। वहां कोई भी बचत करना नहीं जानते। जो कमाते हैं सब खर्च कर देते हैं। पूछो तो कहते हैं रुपया तभी रोटेट होगा एक सिद्धांत और बताते हैं। वहां 100 में से 90 लोग कर्जदार होते हैं। वह एक अजीब देश है।"

अपने देश जैसे मामा, बुआ, साली, यह सब रिश्ता वहां बड़ा नहीं होता है। बाप-बेटे की बीच में भी यह दूरी होती है।"

"इसका मतलब उन लोगों को जीना नहीं आता ऐसा आप कह रहे हो क्या ?"

"गलत है.... पैदा होते ही वहीं पले-बड़े हो तो पता नहीं चलता। यहां पर एक बढ़िया जीवन जीने के बाद मुझमे एक कंपैरिजन है। वह उनमें वहाँ नहीं है।"

"अपने देश में ऐसा बड़ा क्या है ? गली-गली में शराब की दुकानें.... साफ दीवार को भी ना देख सके जैसे पोस्टर चिपकाए होते हैं। मंदिर की गायें, कुत्ते बीच-बीच में खड़े हुए होते हैं। इनके बीच में ऑटो दौड़ते हैं। उनमें मीटर होने पर भी दस रुपये ज्यादा दो और बारगेनिंग करो कचरा ही कचरा... सड़कों पर गड्ढे ही गड्ढे..... पानी की कमी, पावर कट, सड़क पर औरतों के मंगलसूत्र को भी कतरने वाले पॉकेट मार आदि सब कुछ टूटे-फूटे यहाँ होते हैं ।

इन सबके बावजूद भी आप अमेरिका से अपने देश को कैसे बड़ा सोच सकते हैं।" रंजनी ने प्रश्न बहुत तीखा पूछा।

"बहुत ठीक बोल रही हो... उस देश की सफाई और शांति को देखकर सब ऐसे ही प्रश्न पूछने की सोचेंगे। परंतु मनुष्य जीवन के जीने के लिए नियम और कानून के हिसाब से ही काम नहीं चलता। उसके लिए मन खोल कर एक दूसरे से मिलना-जुलना बात करने में है, बड़ों का सम्मान करना इन सबसे बड़ा पाप, पुण्य से डरना बहुत कुछ है बेटा यहाँ ।

ऐसा कह रहा हूं तो वहां ऐसा कुछ नहीं है क्या ! मत पूछना। बहुत है परंतु यहां के गरीबी में जी सकते हैं परंतु वहां ऐसा नहीं है। वहां भीख मांगने वाले भी कोट-पेंट पहन कर ही रहते हैं। वह दूसरी तरह की दुनिया है बेटी।"

“भाषा और जाति ने आपको उनसे मिलने नहीं दिया। यहां पर इसकी परेशानी नहीं है। उसे आपको ऐसा कहना चाहिए मैं सोचती हूं।"

"हां बेटे.... तुम जो कह रही हो वह ठीक है। इसी समय सफाई के अलावा वहां कोई भी बड़ी चीज नहीं है। परंतु हम से सीखने के लिए उनको बहुत सारी बातें हैं। तुम जाकर वहां रहो तो तुम्हें समझ में आएगा। अपना शहर युवा काल में एक वर प्रसाद है बेटा। वहां 15 घंटे का दिन होता है। बड़ी बड़ी नदियां बहती है परंतु उस में उतर कर नहा नहीं सकते। यहां पर जुकाम-खांसी हो तो काढा घर पर ही पी सकते हैं। वहां डॉक्टर को डेढ़ सौ डॉलर कंसलटिंग फीस ही देनी पड़ेगी।"

वे बात करते जा रहे थे। "ठीक सर.. यहां पर आपका कोई रिश्तेदार नहीं है क्या... आपको यहां रहने की क्या जरूरत?"

"बहुत बढ़िया सवाल। पिछले 30-40 सालों में लोग एक ज्यादा हुआ तो दो से ज्यादा बच्चे पैदा नहीं कर रहे हैं। इसलिए एक परिवार में 4 जने ही हो गए। एक को एक बड़ी बहन या एक छोटी बहन, नहीं तो एक बड़ा भाई, छोटा भाई ऐसा सिर्फ एक ही रिश्ता रह गया। हम लोग भी संकुचित हो गए। मैंने जो तकलीफ पाई वह मेरे बच्चों को नहीं होना चाहिए इसलिए उन्हें बहुत पढ़ा कर बहुत अच्छी तरह से जीवन जीना चाहिए इसीलिए उसे विदेश में रहना चाहिए सोचकर अपने एक बच्चे को भी विदेश में गौरव के लिए भेज देते हैं।

फिर यहां एक अकेलेपन में फंस जाते हैं। उस गलती को मैंने अकेले नहीं मेरे रिश्तेदारों ने भी की। फिर उन्हें शुगर, घुटनों में दर्द अच्छी नौकरानी के न मिलने से परेशानी होती हैं और कई तरह की कमियां हैं। आखिर में एक ही फैसला यह वृद्धाश्रम ही हो गया..…ऐसे समय में मैं किसके घर जाकर ठहरूं ?"

उनके जवाब को वह अस्वीकार नहीं कर सकी। अभी तक उसने इस तरह की एक बात पर विचार ही नहीं किया। सोचा भी नहीं।

"इसीलिए ज्यादा मत पढ़ाओ बोल रहे हो क्या...?"

"हां बेटा... मैं सब कलेक्टर का काम करता था। मेरा कर्मचारी अभी मुझसे ज्यादा खुश है बेटा। उस दिन ऑटो में मंदिर जाकर आते समय मैंने देखा। अपने पोते को स्कूटर से स्कूल में छोड़ कर लौट रहा था। पहले जो सम्मान मुझे देता था उसमें बिल्कुल कमी नहीं थी।"

'आप अच्छी तरह हो क्या सर' ऐसा उसने अच्छी तरह से पूछा। मैं एक बिना किसी उद्देश्य के जीवन जी रहा हूं बोलने का मेरा मन नहीं किया। 'बहुत बढ़िया हूं' ऐसा एक झूठ मैंने बोला।"

"कुछ भी हो बेटा... अब हमारा देश भी विदेशों जैसे ही बदल रहा है। पिज़्ज़ा, बर्गर बेकार के खाने.... पैदल बिल्कुल ना चलना सब अपने-अपने वाहनों पर चलते हैं यही जीवन है.... एक बात अच्छी है मंदिर में जाने की आदत में कमी नहीं आई। साधारण गली के नुक्कड़ के मंदिर में भी प्रदोषम के समय तिल रखने की भी जगह नहीं होती...…."

वे लगातार बोलते चले गए। उसी समय फोन पर बात करने गए रामास्वामी भी आ गए।

अध्याय 6

"क्यों बेटी सब लोगों ने अपनी-अपनी परेशानियों का खूब ब्खान कर रहे थे क्या ?" रामास्वामी ने पूछा।

"हां सर। उन लोगों की बातों को सुनकर मुझे अभी से मेरे बुढ़ापे के बारे में सोच कर डर लग रहा है..."

"क्यों डरना चाहिए बेटा, यह तो कालक्रम है। वे किस कारण से ऐसे हुए यह सुन लो तो बहुत है। उसमें से आप जैसे युवा पीढ़ी को बहुत कुछ जवाब मिल जाएगा। यहां पर बेटों के द्वारा छोड़े हुए से ज्यादा, उन लोगों के साथ रहकर जी न सकने वाले अधिक है। दूसरा उनमें सहनशक्ति नहीं हैं । खास तौर पर लड़की और लड़का बराबर है की सोच के कारण कुछ कमियाँ, कुछ कमजोरियां पुरुषों में होने से इस पीढ़ी की लड़कियां साथ नहीं रह पा रही हैं। पति रात को सोते समय खर्राटे लेता है, उसके मुंह से दुर्गंध आती है इस तरह के कारणों को बहुत बढ़ा-चढ़ा कर वर्णन करके बताते हैं। यह सब बदल जाएं तो बहुत है...."

रामास्वामी के बातचीत में उनके तलाक के बारे में बोलने से वह बात उसके हृदय में शूल सा चुभने लगा। बाहर आते हुए रंजनी बोलने लगी

"सर... आदमी जितने भी बेकार और खराब हो तो एक लड़की को समझौता करके उसके साथ जीना ही जीवन की सफलता हैं ऐसा आप कह रहे हो ?"

उसने ऐसा शांति और गंभीरता से पूछा।

"हां बेटी...." एक मिनट भी न सोच तुरंत उन्होंने जवाब दिया।

"आपका जवाब कितना पुरातन तन्त्री है आपको पता है सर ?" रंजनी का गुस्सा फूटने लगा।

"वह तो देखने के नजरिए पर निर्भर है ‌। मैं अपने बहन के जीवन के आधार पर ही बोल रहा हूं। वह एक तलाकशुदा स्त्री है। उसने दूसरी शादी नहीं की। इसी आश्रम में वह खाना बनाने वाली एक रसोईया है। उसे खाने की, रहने की कोई समस्या नहीं। परंतु उसके जीवन में कोई पकड़ नहीं है पता है आपको?"

"आपकी बहन का अपने पति से क्या झगड़ा था ?"

"वह एक शराबी और जुआरी था...."

"फिर उसके साथ कैसे रह सकते हैं ?"

"उसके साथ जी नहीं सकते यह एक ऊपरी सतह का जवाब है। परंतु उसके लिए सिर्फ तलाक ही आखिरी फैसला नहीं है।"

"फिर क्या फैसला ?"

"मेरे जवाब से आपको आश्चर्य भी हो सकता है। फिर भी बोल रहा हूं। तलाक लेने का तुमने फैसला कर लिया तो दूसरी शादी करने के लिए भी तैयार रहना चाहिए और करके भी दिखाना चाहिए।

गर्म बर्तन को छू लिया और हाथ जल गया तो हाथ को काटने के बजाय उससे भिड कर उसे ठीक रास्ते में लाने के लिए कोशिश करना चाहिए। उसमें लगातार हार होने पर भी एक नहीं तो एक दिन जीतने का अवसर जरूर आएगा । परंतु तलाक हो जाने के बाद उसे भूल भी न सके, याद भी नहीं कर सके ऐसा एक अकेला पेड़ जैसे जीना कितना मुश्किल है पता है?" कहते हुए रामास्वामी डायनिंग हॉल में घुसे वहां पर उसी समय बन रहें गर्म-गर्म भजिए और हलवा लेकर रंजनी को खाने के लिए उन्होंने मनुहार किया परंतु उसको उसे छूने की भी उसकी इच्छा नहीं हुई ‌। उसे देने वाली उनकी बहन.... उसका स्वरूप कुंभलाया हुआ शरीर।

रामास्वामी के जवाब में एक न्याय है तो सही। जी कर दिखाना ही जीवन है। संबंध को काटकर फिर रहना सचमुच में कोई समाधान नहीं है.... वह तो सिर्फ एक अस्थाई समाधान जैसे ही उसे लगा फिर भी सचमुच का समाधान नहीं है... वह तो तुरंत की माया है | रंजनी को धीरे-धीरे समझ में आने लगा।

"मेरे विचार से अभी तुम सहमत नहीं हो ऐसा तुम्हें लग सकता है। परंतु यही मेरा मानना है। फिर औरतों के पास गर्भाशय है, आदमियों के पास नहीं है ऐसे सोचने वाला आदमी नहीं है। परंतु आदमी के पास जो बल है वह महिला के पास नहीं। इसलिए हमारे आचार-संस्कृति में उसके लिए एक अलग मर्यादाएं हैं। वह नियम उसको कैद करने के लिए नहीं है। उसे बचाने का एक तरीका है.... उन सब को समझ कर सहन कर जो चलती है उसी में एक लड़की की जीत निर्भर है।

एक बडी सच्चाई को मैं बता रहा हूं। मेरे अप्पा की दो पत्नियां थीं । उनकी पहली पत्नी के मरने पर तुरंत छ: महीने बाद हमारी मां से उन्होंने शादी की । फिर उनके देहांत के बाद मेरी मां ने दस साल तक विधवा का जीवन जिया फिर उनका भी देहांत हो गया ।

इसे क्यों बता रहा हूं, एक आदमी बिना औरत के तो जी नहीं सकता तुरंत दूसरी शादी के लिए तैयार हो जाता है पर लड़कियों में ऐसा नहीं..... यह काम महिलाओं से ही हो सकता है इसीलिए लड़कों को भी रखकर वह दूसरी शादी के बारे में नहीं सोच कर अपना जीवन जी कर दिखाती है। इस विषय में महिलाओं में जो मानसिक दृढ़ता होती है वह आदमियों में नहीं होती । वह लोगों को मार सकता है, पीट सकता है यह सब शारीरिक दृढ़ता है। परंतु जीवन के लिए जो मानसिक दृढ़ता चाहिए उसी मानसिक दृढ़ता से लड़की बिना किसी के अकेले ही सब संभाल लेती है।

इस वृद्धाश्रम में ऐसी कितनी लड़कियां है पता है? इसे आप चाहे तो अपने लेख में शामिल कर सकती हैं...."

रामस्वामी के विचारों ने रंजनी को सोचने पर मजबूर कर दिया था। वह मौन होकर चल रही थी। "और किसी से मिलना है? एक दो लोगों से ही तो आप मिली है। यह काफी नहीं होगा मुझे लगता है...." रामस्वामी बोले।

"नहीं काफी है। मुझे आपसे एक प्रश्न पूछना है। एक शराब पीने वाले, के मां-बाप यहां पर दो दिन पहले आए हैं आपने बोला ना....."

"हां।"

"वह लड़का सन्यासी हो गया आपने बोला....."

"हां बेटी.... वह एक आश्चर्यजनक बात है। रास्ते में जा रहा सन्यासी जैसा एक आदमी, रास्ते में बेहोश पड़े आदमी के माथे पर भभूति लगाकर तीन बार चेहरे पर फूंका। उसकी बेहोशी खत्म होकर वह खड़ा हुआ उसके बाद वह बिल्कुल नहीं पिया। वही नहीं.... मैंने जो गलतियां की है उसके पश्चाताप स्वरूप सन्यास ले लेता हूं | कहकर तिरुवन्नामलाई जाकर किसी एक स्वामी जी से दीक्षा भी ले ली। बेचारे वह दंपत्ति सब कुछ होते हुए भी कुछ नहीं जैसे यहां आकर रहने लगे। अपने जायदाद को अपनी पोती को देने के लिए वे उसके पास गए । पर वह लड़की तो उनकी बातों को सुनना ही नहीं चाहती थी । गर्दन को पकड़ कर बाहर निकाला जैसे उन्हें निकाल दिया!"

रामास्वामी का जवाब सुन रंजनी बुरी तरह से हिल गई। पास के एक मंडप में कृष्ण की बांसुरी बजाते हुए मूर्ति लगी थी। उसके सामने कुछ बुजुर्ग दंपत्ति बैठे हुए थे। वह भी वहां जाकर चुपचाप बैठ गई। वैसे ही आंख बंद करके भावनाओं से ओतप्रोत हो कर बैठी। उसके अंदर एक समुद्र घुसकर छाती के पीछे से लहरें मार रहा हो ऐसा उसे भ्रम पैदा हुआ।

रामास्वामी भी थोड़ी देर खड़े रहे। रंजीनी उन्हें देखकर "सर आप जाइए। मैं थोड़ी देर बाद आऊंगी।" बोली।

"ठीक है बेटी" कहकर वे भी अलग हो गए। उसी समय उसका मोबाइल बजा। पत्रिका के संपादक का फोन.....

"रंजनी... होम में ही हो ना ?"

"यस मैडम...."

"तुम्हारा अनुभव कैसा है.... हमारा लेख अच्छा बनेगा क्या ?"

"निश्चित रूप से मैडम...."

"पढ़ने से मन में एक सिहरन उठना चाहिए। युवा पीढ़ी को एक सबक भी मिलना चाहिए।"

"निश्चय ही मैडम। मुझे भी एक पर्सनल सबक मिला है....."

"तुम भी एक युवा पीढ़ी की ही तो हो ? तुमने सेंटर में जो समझा वह कौन सा विषय है?"

"बहुत कुछ मैडम.... जीवन में बुढ़ापा और बुढ़ापे में अकेलापन बहुत ही खराब है मैडम।"

"उसका समाधान ?"

"मेरे अम्मा-अप्पा और आपके अम्मा-पापा ने जो जीवन जिया उनमें सहनशक्ति बहुतायत से थी, बिना किसी लालच के बच्चों का पालन-पोषण ही उनका मकसद था मैडम...."

"अरे वाह.... साफ-साफ बोल रही हो.... और बातें तो आमने-सामने होगी...."

फोन के बाद वह तुरंत एक फैसले पर आई।

उस कन्हैया को नमस्कार करके वह रवाना हुई। ऑफिस के कमरे में रामास्वामी से मिली, "सर मेरे सास-ससुर किस कमरे में रहते हैं?" उसने पूछा।

रामास्वामी चौंक गए।

"आपके सास-ससुर.... वे लोग कौन है ?"

"दो दिन पहले ही यहां आकर जो रह रहे हैं आपने बोला था ना.....…वे ही तो है सर...."

"अरे.... फिर उस शराबी की पत्नी आप ही हो क्या ?"

मौन होकर उसने सिर हिलाया। डायरेक्टर रामाकृष्णन भी आश्चर्य में पडे।

"वह ठीक है.... तो फिर उनका भी साक्षात्कार लेने वाली हो ?"

"नहीं सर.... मेरे रहते हुए उनका यहां रहने का कोई अर्थ ही नहीं है। वह न्याय भी नहीं है। उन्हें मैं साथ ले जाना चाहती हूं। कानून के द्वारा कटे हुए रिश्ते को, संबंध के द्वारा नया करने वाली हूं। यदि अवसर मिला तो उस सन्यासी हुए उस आदमी को भी लाने की कोशिश करूंगी। आपने जैसे बोला वैसे अकेले होकर तड़पकर जीने से मुकाबला कर जीना बड़ा है...."

उसके जवाब में एक अलग ही दृढ़ता थी। उसका समर्थन करने जैसे लंच की घंटी भी बजना शुरू हुई!

 

समाप्त

(अनुवाद : एस.भाग्यम शर्मा)

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