शबनम परी (परी कथा) : कर्मजीत सिंह गठवाला

Shabnam Pari (Hindi Pari Katha) : Karamjit Singh Gathwala

मंद-मंद समीर बह रही थी । पूर्व दिशा से सूरज धीरे-धीरे उग रहा था। आसमान में हल्की-सी सुनहरी लाली छा गई थी। हरजोध नींद से जल्दी जाग गया, आज रविवार था, उसको स्कूल भी नहीं जाना था । वह अपने बगीचे में खेलने आ गया। घास पर जमी ओस की बूँदें ऐसे लग रही थीं, जैसे किसी ने हरे मखमल पर हीरे बिखेर दिए हों।

वह झुककर एक ओस की बूँद को निहारने लगा। तभी सूरज की किरण उस बूँद पर पड़ी — और बूँद अचानक सात रंगों में चमकने लगी! हरजोध की आँखें चौंधिया गईं। वह खुशी से चिल्लाया — “वाह! ये तो इंद्रधनुष बन गया!”

वह कुछ देर तक देखता रहा। हर ओस कण पर जब किरण गिरती, तो उसमें बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल — सब रंग झिलमिलाने लगते। हरजोध को यह जादू-सा लगा। वह बोला, “ये कैसे हुआ? क्या ओस के अंदर रंग छिपे रहते हैं?”

उसके इतना कहते ही उन ओस की बूंदों में से एक नन्ही परी प्रकट हुई। उसके कपड़े पारदर्शी थे, बाल चाँदी जैसे चमक रहे थे और पंख इंद्रधनुषी रंगों के थे। वह मुस्कुराई और बोली, "मैं शबनम परी हूँ। तुमने मुझे प्यार से देखा है और तुम्हारे मन में मेरे लिए उत्सुकता जागी है, इसलिए अब मैं तुम्हारे सारे सवालों का जवाब दूँगी।”

हरजोध हँस पड़ा, “सचमुच तुम ओस से निकली हो?”

परी बोली — “हाँ, हर बूँद में थोड़ा सा प्रकाश, थोड़ा सा पानी, और थोड़ा सा जादू छिपा होता है। जब सूरज की किरण उस पर पड़ती है, तो प्रकाश सात रंगों में बिखर जाता है। इसीलिए मैं इंद्रधनुष जैसी लगती हूँ — यह प्रकृति का खेल है, और मैं हूँ उसका रूप!”

हरजोध के होठों पर मुस्कान खेल रही थी, उसने पूछा — “ओ प्यारी परी, भला ओस और घास में क्या रिश्ता है?”

परी मुस्कुराई, “तुम्हारा प्रश्न तो बहुत ही प्यारा है! घास धरती की सबसे विनम्र संतान है। दिन भर सूरज की गर्मी झेलती है, और रात में जब हवा ठंडी होती है, तो आकाश की नमी उसके ऊपर आकर ठहर जाती है। वह नमी ही ओस बन जाती है। बस यूँ समझो — घास और ओस माँ-बेटी जैसी हैं। घास धरती से जन्म लेती है, और ओस आकाश से उतरती है। दोनों मिलती हैं तो धरती मां मुस्कुराने लगती है।”

हरजोध की नज़र बगीचे के फूलों पर पड़ी, उन पर भी ओस की बून्दें चमक रही थीं, उसने पूछा, “और फूलों का क्या रिश्ता है ओस से?”

परी ने कहा — “फूल ओस को अपनी सखी मानते हैं। रात में जब वे सो जाते हैं, तो ओस आकर फूलों को चूमती है, उन्हें दुलारती है, उनकी थकान मिटाती है, और सुबह उन्हें नई ताजगी देती है। अगर ओस न हो, तो फूल मुरझा जाएँ। इसलिए तो कहते हैं —
‘जहाँ ओस गिरे, वहाँ जीवन खिले।’”

हरजोध कुछ सोचते हुए बोला — “लोग ओस की तुलना आँसू, पसीने और अमृत से क्यों करते हैं?”

परी थोड़ी देर चुप रही, फिर बोली — “क्योंकि ओस हर भावना की तरह अलग-अलग रूप में समझी जाती है। देखो — जब किसी की आँखों से आँसू गिरते हैं, तो कभी वे दुख के होते हैं, कभी खुशी के। ओस भी ऐसी ही होती है —
कभी धरती के दुख के आँसू मानी जाती है, कभी प्रकृति की खुशी की हँसी।”

हरजोध ने उत्सुक होकर पूछा — “और पसीना?”

परी प्यार से बोली, “हाँ, कुछ लोग कहते हैं कि ओस धरती का पसीना है। दिन भर जब सूरज उसे गर्म करता है, तो रात को वह ठंडक पाकर अपने रोम-रोम से नमी छोड़ती है — जैसे कोई मेहनती किसान खेत जोतने के बाद पसीना बहाता है या कोई मज़दूर सारे दिन के सख्त काम से पसीने से नहाया-सा लगता है। इसलिए ओस में मेहनत और विश्राम दोनों की कहानी छिपी है।”

“और अमृत?” हरजोध ने आख़िरी प्रश्न किया।

परी ने अपनी हथेलियों में चमकती बूँदें उठाईं और बोली — “जब कोई व्यक्ति सुबह ही ओस को देखता है, तो उसका मन ताज़ा और शांत हो जाता है। इसीलिए पुरानी कथायों में इसे देवतायों का अमृत कहा गया है। क्योंकि यह जीवन को नई ऊर्जा देता है।”

हरजोध ने कहा, “तो क्या ओस सिर्फ़ पानी नहीं है?”

परी मुस्कुराई, “नहीं हरजोध, ओस केवल पानी नहीं — यह धरती की साँस, आकाश का दुलार, और जीवन की मुस्कान है। यह हमें सिखाती है कि छोटी-सी चीज़ भी कितना सौंदर्य और मानसिक शक्ति प्रदान कर सकती है।”

तभी सूरज ऊपर चढ़ आया, उसकी किरणों में तपस् बढ़ने लगी। वह घास पर पड़ीं, और ओस की बूँदें धीरे-धीरे गायब होने लगीं।

हरजोध बोला, “परी! तुम जा रही हो? ... फिर कब आओगी ?”

परी बोली — “मैं हर सुबह आती हूँ और सूरज के साथ लौट जाती हूँ। जब भी तुम ओस को देखो, समझना कि मैं पास ही हूँ —
सात रंगों की मुस्कान बनकर।”

इतना कहकर परी इंद्रधनुष में बदल गई और आकाश में विलीन हो गई।

हरजोध देर तक घास पर बैठा रहा। उसके चेहरे पर मुस्कान थी —
क्योंकि अब उसे पता चल गया था कि ओस सिर्फ़ बूँद नहीं, जीवन का संदेश है —
जो कहता है : “चाहे ओस की तरह छोटे हो, अपनी शीतलता और रोशनी से इस संसार को सुन्दर बनाते रहो।”
वह मन ही मन मुस्कुराया और मां को ये सब-कुछ बताने के लिये घर की ओर दौड़ गया ।

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