ससुराल का आँगन (कहानी) : ज्योति नरेन्द्र शास्त्री
Sasural Ka Aangan (Hindi Story) : Jyoti Narendra Shastri
आज जानवी का भाई अंकित उसके ससुराल से उसे पीहर लेने आया हुआ था । 4 महीने हो गए शादी को और इन चार महीना में जानवी केवल एक बार अपने मायके गई थी । वह भी शादी के तुरंत बाद होने वाली फिरमोडे की रस्म में । जानवी के पिता दीनानाथ ने उसके ससुराल वालों को सैकड़ो कॉल किए होंगे कि हमारा मन बेचैन सा है बेटी के बिना आंगन भी सुना सा है बेटी की शादी कभी कितने दिन हुए है । एक बार दो-चार दिन रह जाती तो हमारा भी मन लग जाता ।
और दो-चार दिन घर रहकर उसको भी ससुराल में बैचेनी नहीं होती ।
22 साल से आपके ही घर में पलकर बड़ी हुई है आपकी बेटी । आपकी बेटी 22 साल से आपके ही साथ रहकर आपके आंगन को ही महका रही है थोड़ी खुशबू तो हमारे आंगन में भी आने दीजिए । या फिर दीनानाथ जी बेटी के बिना इतना ही सूनापन है तो उसका विवाह ही नहीं करते । सब बातो को सुनकर दीनानाथ जी रुंधे गले से कहते हैं आपकी सब बातें सही है समधन जी लेकिन अर्थो ही कन्या परकीय एव यानी कन्या तो पराया धन होती है । विवाह तो करना ही था आज नहीं तो कल । आज जानवी पर आपका हक हमसे ज्यादा है । पिता के घर से बेटियों की डोली उठती है और ससुराल से उनकी अर्थी उठती है । लेकिन इतना निवेदन तो कर ही सकते हैं कि एक पिता बेचैन है बेटी के वियोग में । वियोग तों है ही , लेकिन क्या आप उस वियोग के ज्यादा बढ़ने के दोषी बनना चाहोगे ।
ठीक है दीनानाथ जी एक-दो दिन में आकर ले जाना , साथ संतोषी ने फाइनली प्रतिक्रिया देते हुए अनमने मन से कहा । दीनानाथ जी ने खुशखबरी अपनी बेटी जानवी को बताने के लिए कॉल किया कि उसके ससुराल वाले उसे एक या दों दिन में मायके भेज रहे हैं । जानवी ने सुना और सुनते आज उसकी खुशी सातवें आसमान पर थी । एक दिन बिता , 2 दिन बीते इसी तरह से आज 7 दिन बीत गए ना तो मायके से कोई फोन आया ना ही ससुराल में किसी ने जानवी से कहा कि तुमको मायके जाना है । शाम को जानवी के पति राजीव ऑफिस से लौटे तों जानवी कुछ गुमसुम सी और उखड़ी हुई सी थी । दोनों साथ खाना खाने लगे तों जानवी ने बड़ी मुश्किल से एक 2 निवाले खाये । तों राजीव ने पूछ लिया क्या बात है आज किसी चिंता में हों । कुछ बात नहीं है जानवी ने अपना दर्द छिपाते हुए कहा । देखो मैं तुम्हारा पति हूं , सुख में ही नहीं दुःख में भी एक दूसरे का साथ देने का वादा किया था । तुम्हारा कोई गम अब तुम्हारा नहीं है , हमारा गम है ।
इतना सुनते ही रुलाई फूट पड़ी ।
जानवी ने मां के सभी भाव एक ही सांस पर कह दिए । तुम चिंता मत करो जानवी मैं तुम्हारा दुःख जानता हूं । जिस आंगन में 22 साल पली बढ़ी हो उसको एक अजनबी के लिए कुछ पलों में छोड़ना कितना मुश्किल होता है
मैं भी एक बहन का भाई हूं जब मेरी बहन ससुराल में इतने दिन से है तो बेचैनी में हमारा जो हाल होता है वही हाल आपके भाई और पापा का भी होता होगा ।
मैं कैसे भी करके तुम्हें कल तुम्हारे गांव भिजवा दूंगा । दूसरे दिन जानवी का भाई अंकित उसे लेने आता है । अंकित को बैठक में बिठाकर राजीव जलपान की व्यवस्था करता है । घंटा हुआ 2 घंटे बीते लेकिन जानवी को अभी भी फुर्सत नहीं कि वह जाकर भाई का हाल-चाल पूछ सके ।
मायके जाते समय भी उसें इस बात की फिक्र है ही कल पतिदेव के ऑफिस जाने के लिए कौन सी शर्ट को प्रेस करना है........... सास के कपड़े धोने हैं........ इत्यादि इत्यादि ।
फाइनली चार महीना के इंतजार के बाद जानवी आज अपने घर जा रही है । अभी कार में बैठकर जानवी घर से निकली भी नहीं थी कि सास ने सर पर हाथ रखते हुए कहा बेटा कल ही आ जाना ।
तुम बिन घर का आंगन सुना है ,
दूसरे दिन राजीव जब ऑफिस जाने के लिए निकलने लगे तों संतोषी देवी ने कहा कि बेटे ऑफिस से आज जल्दी आ जाना शाम को बहू को उसके मायके से लाना है ।
देख तो एक दिन बहु मेरी घर पर नहीं थी तों किसी ने चाय समय पर नहीं दी । आज तो सुबह से किसी ने चाय के लिए भी नहीं पूछा...... देख तो घर का सामान भी कैसा अस्त व्यस्त है ....... सुबह से झाडू भी नहीं लगी ।
अब तो तू एक काम कर बेटा जानवी को उसके मायके से ले आ । अब राजीव का सब्र जवाब दे रहा था । मैं जानवी तुम्हारा बहुत ख्याल रखती है , अच्छी है , घर के प्रत्येक सदस्य की जरूरत का ख्याल रखती है । कभी कोई शिकायत नहीं करती लेकिन इसका मतलब यह थोड़ी होता है कि वह कुछ कहे नहीं तो हम उसे सुनाएं और उसे सुनाएं । माना आप उसें बहू की तरह नहीं रखकर बेटी की तरह रखते हो , लेकिन खुद के आंगन की भी याद आती होगी । उसके जीवन के 22 साल उसके घर के आँगन में गुजरे है । जब आपको 4 महीना में जानवी से इतना लगाव हों गया तो उसके मां-बाप की भी सोचो जिन्होंने उसें 22 साल से पाल पोसकर बड़ा किया है । दो-चार दिन उसके मायके में रहने दों जैसे दीदी के बिना घर का आँगन सुना है ऐसे ही वह भी किसी की बहन है उसके बिना भी उसके घर का आँगन सुना होगा । ससुराल का आंगन सबका समान होता है मां फिर वह चाहे मेरी बहन हो या किसी और की । ठीक है बेटा पर अगले सप्ताह तो जरूर ले आना 1 मिनट के खामोशी के बाद एक हँसी छूट पड़ती है । राजीव बाबू खिलखिलाकर हँस पड़ते है । हाँ माँ! अगले सप्ताह जरूर ।