सरकारी तख्ता (तुर्की व्यंग्य) : अजीज नेसिन
Sarkari Takhta (Turkish Satire in Hindi) : Aziz Nesin
क्या आप जानते हैं कि सरकार का तख्ता कैसे उलटा जाता है? संभव है, आप कभी इस प्रकार का कार्य संपन्न करने के बारे में सोचें! यदि न भी सोचें तो भी थोड़ा सा फालतू ज्ञान प्राप्त करने में हर्ज ही क्या है! आइए, इसका तरीका जान लीजिए।
जी, क्या कहा आपने? क्या मैंने स्वयं कभी किसी सरकार का तख्ता उलटा है? जी नहीं, तख्ता तो नहीं उलटा, पर उसके बारे में एक पुस्तक अवश्य पढ़ी है। ‘सरकार का तख्ता उलटने का ज्ञान’ नामक एक पुस्तक। मुद्दत हुई, मुझे किसी अज्ञात कृपालु ने विदेश से डाक द्वारा भेजी थी। पुस्तक के प्रत्येक पृष्ठ पर ‘गोपनीय’ छपा हुआ था। मुझे पुस्तक पाकर बड़ा विस्मय हुआ कि इस प्रकार की खतरनाक चीज बिना सेंसर के मुझ तक डाक द्वारा कैसे पहुँच गई? पुस्तक का प्रकाशन स्थान संभवतः गलत था, क्योंकि बड़ी तलाश के बावजूद उस स्थान का नाम मुझे किसी एटलस में न मिल सका। पुस्तक की भूमिका में लिखा था, चूँकि संसार में सबसे अधिक बोली जानेवाली भाषा अंग्रेजी है, इसलिए यह पुस्तक अंग्रेजी में प्रकाशित की गई है। भूमिका की कुछ बातें प्रस्तुत हैं—
‘हम यह पुस्तक खुफिया तौर पर उन लोगों तक पहुँचाएँ, जो हमारे रिकॉर्ड के अनुसार सरकार का तख्ता उलटने की पूरी योग्यता रखते हैं। आप पढ़कर अपने किसी ऐसे मित्र या संबंधी को दे दीजिए, जो आपके विचार में इस योग्यता का स्वामी हो। इस संबंध में विश्वसनीय और गुणवान व्यक्तियों के लिए खुफिया कोर्स चलाने की भी सिफारिश की जाती है।
‘सरकार का तख्ता उलटना आपका बुनियादी उद्देश्य होना चाहिए। हम इस उद्देश्य की प्राप्ति में आपकी सफलता के लिए प्रार्थना करते हैं। याद रखिए, संसार भर में कोई भी सरकार इतनी सुदृढ नहीं कि इस पुस्तक में बताए गए तरीकों से उसका तख्ता न उलटा जा सके। आजमाइश शर्त है।
भूमिका पढ़ते ही मेरा सारा शरीर डर से काँप उठा। होश-हवास उड़ गए। थोड़ी देर बाद जब घबराहट जरा खत्म हुई तो सोचा, पुस्तक फौरन पुलिस के हवाले कर दूँ, क्योंकि हर वफादार नागरिक को ऐसा ही करना चाहिए। फिर खयाल आया, शायद देश में कई ऐसे लोग हों, जो सचमुच सरकार का तख्ता उलटने की कला सीखना चाहते हों। यदि पुस्तक पुलिस को दे दी तो देश में आसान कशीदाकारी से लेकर कोकशास्त्र तक हर प्रकार की पुस्तक बिना रोक-टोक पढ़ी जा सकती है, तो फिर यह पुस्तक क्यों न पढ़ी जाए?
पुस्तक में कई परिच्छेद थे। हर परिच्छेद में किसी एक प्रकार की सरकार का तख्ता उलटने के अनेक तरीके दर्ज थे। सरकार की प्रकृति, देश के लोगों की अपनी विशेषताएँ और तख्ता उलटनेवालों के लक्ष्यों एवं उद्देश्यों के अनुसार हर तरीका दूसरे तरीकों से भिन्न था। पुस्तक की शैली बहुत मधुर और आकर्षक थी। पढ़नेवालों को ऐसा अनुभव होता, मानो कोई स्वादिष्ट व्यंजन या बढ़िया सा सूप बनाने की विधि पढ़ रहे हों। वास्तव में सारी पुस्तक की दिलचस्पी का भेद उसकी आकर्षक लेखन शैली में छुपा हुआ था। पुस्तक पढ़नेवाले के मन में ख्वाहमख्वाह वर्तमान सरकार का तख्ता उलटने की तड़प उफनने लगती थी। मुझ जैसा डरपोक इनसान भी पुस्तक के कुछ परिच्छेद पढ़ते ही अपने-आपको प्रसिद्धतम क्रांतिकारियों का समकालीन समझने लगा।
अब आप नमूने के तौर पर इस अद्वितीय पुस्तक के विभिन्न परिच्छेदों के शीर्षक पढ़िए। (स्थान की कमी के कारण हर परिच्छेद का केवल शीर्षक ही लिखा जा सकता है। विस्तार में फिर कभी जाएँगे।)
१.लोक-शत्रु सरकारों का तख्ता उलटने की तरकीब।
२.तानाशाही से छुटकारा प्राप्त करने के तरीके।
३.डरपोक क्रांतिकारियों को प्रोत्साहन देने के सफल नुस्खे।
४.अत्याचार-प्रिय सरकारों के विरुद्ध जनता को विद्रोह पर उकसाने की विधियाँ।
५.वायदे भूल जानेवाली सरकारों से छुटकारा पाने की राहें।
६.वर्तमान सरकार का तख्ता उलटना किन परिस्थितियों में शुरू करें?
७.पिछडे़ और विकासशील देशों में सरकार का तख्ता उलटने के लिए ध्यान देने योग्य क्रियाएँ।
८.सभ्य देशों में क्रांति लाने के परखे हुए तरीके, आदि-आदि।
चूँकि पुस्तक का अंतिम परिच्छेद पूरी पुस्तक में सबसे अधिक अपील रखता था, इसलिए अंतिम परिच्छेद में लिखी तेजी से प्रभाव डालनेवाली विधियाँ पाठकों की सेवा में प्रस्तुत की जा रही हैं। मुझे विश्वास है, आप यह परिच्छेद केवल एक बार गौर से पढ़ने के तत्काल बाद बेकाबू होकर इस विधि को कार्यान्वित करने के लिए उठ खड़े होंगे। यहाँ एक बात और स्पष्ट कर दूँ, इस विधि से सरकार का तख्ता उलटने में किसी प्रकार का खतरा नहीं, न आपको फाँसी के तख्ते पर लटकाया जा सकता है और न जेल भेजा जा सकता है। कारण यह है कि तख्ता उलटने के बावजूद स्वयं सरकार को भी पता नहीं चलेगा कि यह हरकत किसने की है। अतः अंतिम परिच्छेद बिल्कुल निर्भीक होकर तन्मयता से पढ़िए।
किसी जमाने में महाद्वीप गमटी के उत्तर-पूर्व में पर्वत पेमा और जगादरी दरिया के बीच में एक पर्वतीय देश स्थित था, जिसका नाम था खाकान। खाकानी बड़े दिलचस्प और सीधे-सादे लोग थे, पर स्वयं को काफी चालाक समझते थे। इस वर्ष फरवरी महीने तक देश में ‘जिंदाबाद’ पार्टी सत्तारूढ़ थी। उस महीने के चुनाव में यह पार्टी हार गई और ‘औलादे-वतन’ पार्टी ने सरकार बना ली। यह परिवर्तन देश के इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण घटना थी।
‘औलादे-वतन’ का लीडर कागान खाँ था। वह बुरा आदमी नहीं था। विश्व-सम्मेलनों के दौरान सोए रहना और अगर जाग रहा हो, तो नाक में उँगली फेरना, बस यही उसकी दो बड़ी बुराइयाँ थीं। चुनाव जीतने पर कागान खाँ देश का प्रधानमंत्री बन गया। यह बात विरोधी ‘जिंदाबाद’ पार्टी को एक आँख न भाई। वह हर कीमत पर ‘औलादे-वतन’ पार्टी को सत्ता से हटाना चाहती थी। अतः सबसे पहले विरोधी पार्टी ने अपने अखबारों में कागान खाँ और उसके साथियों पर आरोप लगाया कि वे सब चोर हैं। जनता ने इस आरोप पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। लोगों का कहना था कि एक निकम्मे व्यक्ति को केवल इसलिए देश का प्रधानमंत्री बना देना, कि वह चोर नहीं है, सरासर गलत नीति है। प्रधानमंत्री ऐसा होना चाहिए, जो कम-से-कम सरकार का काम तो चला सके, चाहे चोर ही क्यों न हो। लोग सचमुच न्यायसंगत थे, क्योंकि ‘जिंदाबाद’ पार्टी के नेताओं ने भी अपने राजकाल में कोई कम चोरियाँ तो नहीं की थीं।
जब विरोधी पार्टी ने देखा कि उनकी यह चाल कारगर साबित नहीं हुई, तो उन्होंने अफवाह उड़ा दी कि कागान खाँ तानाशाह है और जनता की स्वतंत्रता समाप्त करने पर तत्पर है। जनता ने इस अफवाह पर भी कान न धरे। मतलब यह कि उन्होंने कागान खाँ को सत्ता से हटाने के लिए सभी लोकतांत्रिक तरीके आजमा लिये, पर किसी में सफलता न मिली। अतः उन्होंने जनता को ‘औलादे-वतन’ पार्टी की सरकार के विरुद्ध विद्रोह करने पर उकसाने का क्रांतिकारी तरीका अपनाया। यह उनकी बुनियादी गलती थी, क्योंकि विद्रोह किसी अन्य देश में तो सफल हो सकता था, पर खाकानी जनता के स्वभाव और उनकी सांस्कृतिक परंपराओं को विद्रोह नाम की किसी चीज की हवा तक नहीं लगी थी। न ही उन लोगों के खमीर में हिंसा की मिलावट थी कि उन्हें विद्रोह पर तैयार किया जा सकता। इस तरह राष्ट्र के लिए सरकारी आदेशों की अवज्ञा में विद्रोह करना बिल्कुल असंभव था।
जब सरकार से छुटकारा प्राप्त करने का कोई तरीका सफल न हुआ, तो ‘जिंदाबाद’ पार्टी के नेता गर्ग खाँ ने पार्टी के सदस्यों का विशेष अधिवेशन बुलाया और सदस्यों को यों संबोधित किया, ‘प्रिय मित्रो! इस निर्दयी सरकार का तख्ता उलटने में हमारी पार्टी को जो असफलता मिली है, उसका बड़ा कारण यह है कि हमने क्रांति के ऐसे तरीके अपनाए, जो अन्य देश में प्रयुक्त किए जाते रहे हैं, जबकि जरूरत इस बात की थी कि हम अपनी राष्ट्रीय संस्कृति और स्थानीय वातावरण तथा परंपराओं को देखते हुए कोई शुद्ध, देसी नुस्खा इस्तेमाल करते। आप सब जानते हैं, हर देश का अपना अलग परिवेश होता है और हर राष्ट्र की अपनी विशिष्ट विशेषताएँ। अब हमें चाहिए कि कोई ऐसा तरीका ढूँढ़ें, जो हमारी जनता की आत्मा और राष्ट्रीय प्रकृति के अनुकूल हो। इस संबंध में मैंने अपने राष्ट्रीय इतिहास का गहन अध्ययन कर के सरकार का तख्ता उलटने का एक शुद्ध, देसी तरीका ढूँढ़ निकाला है, जिसका उदाहरण आपको दुनिया के किसी अन्य देश के इतिहास में नहीं मिलेगा। अगर आप लोग मेरी तजवीज गौर से सुनें, तो मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि कागान खाँ की सरकार का ढाँचा दो माह के अंदर धड़ाम से जमीन पर आ गिरेगा और खुदा ने चाहा, तो सत्ता हमारे और आपके हाथों में होगी।’
अधिवेशन में उपस्थित लोग गर्ग खाँ की खोज के बारे में और विस्तार से सुनने के लिए एकाग्रचित्त हो गए। गर्ग खाँ ने भाषण जारी रखा, ‘बड़े खेद की बात है कि हम लोग अपने व्यक्तिगत अनुभवों को भूलकर दूसरों के रेडीमेड नुस्खों की तलाश में मारे-मारे फिरते रहे। यही हमारी गलती है। आइए, जरा मिलकर सोचें कि हम स्वयं सत्ता की गद्दी से कैसे हटाए गए थे? इसलिए कि जनता को हमसे सख्त नफरत हो गई थी। लोग हमें बेहद संदेह की दृष्टि से देखते थे। अतः उन्होंने हमें सत्ता से यों हटा दिया, जैसे मक्खन से बाल निकाला जाता है। अब हमें चाहिए कि सत्तारूढ़ पार्टी के लोगों को सत्ता से हटाने के लिए हम भी हू-ब-हू वही तरीके अपनाएँ, जिनसे हम लोगों को सत्ता से हटाया गया था। आइए, हम सब अपनी पार्टी से त्याग-पत्र देकर ‘औलादे-वतन’ पार्टी में शामिल हो जाएँ। इस पार्टी को खचाखच अपने आदमियों से भर दें, ताकि जनता की नफरत हमारी पार्टी से हटकर हमारे आदमियों के साथ सत्तारूढ़ पार्टी के विरुद्ध केंद्रित हो जाए। यही नफरत अंततः सरकार का तख्ता उलटकर रख देगी।’
यह प्रस्ताव सुनकर सब सदस्य वाह-वाह कर उठे, लेकिन एक महाशय ने पूछा, ‘पर श्रीमान, हमें यह तो बताइए कि हम लोग ‘औलादे-वतन’ पार्टी में शामिल होने के बाद करेंगे क्या?’
गर्ग खाँ मानो इस प्रश्न की प्रतीक्षा में था, वह झट बोला, ‘हम लोग वहाँ भी कुछ नहीं करेंगे। हमें जनता ने इसलिए तो नफरत का निशाना बना लिया था कि हम करते-कराते कुछ भी नहीं थे। बस यही काम ‘औलादे-वतन’ पार्टी में शामिल होने के बाद जारी रखना होगा। हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहना। फिर देखना, सरकार का तख्ता कैसे उलटता है!’
विशेष अधिवेशन का यह निर्णय पार्टी की प्रादेशिक, जनपदीय और ग्रामीण शाखाओं तक पहुँचा दिया गया। ‘जिंदाबाद पार्टी’ के सदस्यों ने हर स्तर पर धड़ाधड़ त्याग-पत्र देकर ‘औलादे वतन’ पार्टी में शामिल होना शुरू कर दिया।
उधर सत्तारूढ़ पार्टी के नेता और प्रधानमंत्री, विरोधी पार्टी के सदस्यों के यों पंक्ति-दर-पंक्ति सत्तारूढ़ पार्टी में शामिल होने की खबरें सुन-सुनकर जामे में फूले न समाते। उनके विचार में सत्तारूढ़ पार्टी की लोकप्रियता दिन-प्रतिदिन बढ़ती चली जा रही थी और विरोधी पार्टी का सारा जोर तेजी से टूट रहा था। अपनी पार्टी की लोकप्रियता का लोहा मनवाने के लिए प्रधानमंत्री ने पार्टी के वार्षिक अधिवेशन का आयोजन कर डाला।
उद्घाटन सामारोह में जब प्रधानमंत्री कागान खाँ मंच पर आया, तो लोगों ने बड़ी देर तक तालियाँ बजा-बजाकर उसका स्वागत किया। कागान खाँ माइक्रोफोन हाथ में लेकर बोला, ‘मेरे प्य...’
अभी वह इतना ही कह पाया था कि श्रोताओं ने नारे लगाने और तालियाँ बजानी शुरू कर दीं। जनता ने इतने जोश-खरोश का प्रदर्शन किया कि प्रधानमंत्री के लिए भाषण देना कठिन हो गया। उसने कई बार प्रयत्न किया कि कम-से-कम अपने आरंभिक वाक्य ‘मेरे प्यारे मित्रो और भाइयो!’ ही पूरा कर पाए, पर हर बार लोगों के नारों ओर तालियों के शोर के कारण ‘मेरे प्या...’ के बाद उसके मुँह से निकलनेवाली कोई बात समझ न आई। श्रोताओं में एक बड़ी संख्या विरोधी पार्टी के उन सदस्यों की थी, जो अब ‘औलादे-वतन’ पार्टी में शामिल हो चुके थे और जिन्हें अपने राजकाल में पिछले प्रधानमंत्रियों के भाषणों के दौरान नारे लगाने और तालियाँ बजाने की आदत पड़ चुकी थी। थोड़ी देर बाद एक अवसर ऐसा आया कि कागान खाँ तालियों के मध्यवर्ती विराम से लाभ उठाते हुए यह कहने में सफल हो गया, ‘मेरे प्यारे मित्रो और भाइयो! मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि...’
वायुमंडल फिर नारों और तालियों से गूँज उठा। अगले विराम तक कागान खाँ दाँत-मुट्ठियाँ भींचता रहा। फिर बोला, ‘अब आप अशिष्टता की हद तक पहुँच रहे हैं। प्यारे...’
तालियाँ और नारे पहले से कहीं अधिक तीव्रता धारण कर गए। प्रधानमंत्री गुस्से से लाल-पीला हो रहा था। अंततः तीव्र झल्लाहट की अवस्था में वह चिल्लाने लगा, ‘बकवास बंद करो, कमबख्तो प्यारे’
यों लगता था, जैसे प्रधानमंत्री को हिचकी आ रही हो। उसका कोई वाक्य पूरा न होने पाता। किसी को उसकी बात समझ न आती और लोग फिर अंधाधुंध नारे लगाने तथा तालियाँ बजाने में मग्न हो जाते। प्रधानमंत्री का गुस्सा पराकाष्ठा पर पहुँच चुका था, पर उसे समझ में नहीं आता था कि करे तो क्या करे? आखिर वह गुस्से पर काबू पाते हुए खिसियानी-सी हँसी हँसा और एक बार फिर लोगों से संबोधित हुआ, ‘भई, खुदा के लिए शोर मत कीजिए! गड़बड़ न मचाइए! प्या...’
जब कागान खाँ ने देखा कि यहाँ कोई सुनवाई नहीं, तो वह शोरगुल से बेपरवाह होकर काफी देर अनाप-शनाप बोलता रहा। अंततः मंच से उतरकर अपनी सीट पर जा बैठा।
पार्टी अधिवेशन समाप्त हो गया, पर प्रधानमंत्री जहाँ कहीं नजर आता, ‘औलादे-वतन’ पार्टी के नए सदस्य देर तक उसकी शान में तालियाँ बजा-बजाकर नारे लगाते रहते। अगर प्रधानमंत्री खाँसता, तो वे वाह-वाह के नारे लगाते। अगर वह छींकता, तो भी उसी भावना से नारे लगाते। प्रधानमंत्री जम्हाई लेता, नाक खुजाता या ऊँघता तो भी वे लोग नारों और तालियों से उसकी इन हरकतों की दाद देते। प्रधानमंत्री, जो कि आरंभ में लोगों के नारे और तालियाँ सुन-सुनकर नाराज होता, लोगों पर गुस्सा प्रकट करता, कभी उनसे चुप रहने की याचना करता और कभी उन्हें इस अनुचित हरकत पर गालियाँ दिया करता था, धीरे-धीरे तालियाँ और नारों का आदी हो गया। कुछ ही समय बाद उसे अपनी शान में उठनेवाले नारों और तालियों का इतना नशा लग गया कि अगर कभी उसके ऊँघने पर ये आवाजें बंद हो जातीं, तो वह चौंककर उठ बैठता और अपने इर्द-गिर्द यों नजर दौड़ाता, जैसे लोगों से जवाब-तलबी कर रहा हो कि तालियाँ क्यों बंद कर दी गई हैं! नारे क्यों खामोश हो गए हैं!
यह क्रम यों ही चलता रहा। कुछ समय बाद लोगों में अफवाहें फैलानी शुरू हो गईं कि प्रधानमंत्री कागान खाँ का दिमाग चल गया है। बस फिर क्या था, जो दुर्दशा किसी पागल की होती है, वही प्रधानमंत्री और उसकी ‘औलादे-वतन’ पार्टी की हुई। दो माह के अंदर-अंदर उस पार्टी की सरकार का तख्ता उलट गया।
सम्मानित पाठकगण! हमें चाहिए, इतिहास की इस महत्त्वपूर्ण क्रांति से शिक्षा प्राप्त करें। अगर सरकार का तख्ता उलटने से बाकी सब तरीके असफल हो जाएँ, तो यह आखिरी तरीका आजमाना न भूलिए। दुनिया की सुदृढतम सरकार भी इस तरीके की बात न लाते हुए दम तोड़ देगी।
(अनुवाद : सुरजीत)