सरगम और प्रेरणा की परी (परी कथा) : कर्मजीत सिंह गठवाला
Sargam Aur Prerna Ki Pari (Hindi Pari Katha) : Karamjit Singh Gathwala
सरगम एक चंचल, खुशमिजाज और बहुत ही समझदार बच्ची है। उसकी मुस्कान में ऐसी उजली चमक है कि उसे देखते ही किसी भी उदास चेहरे पर खुशी की एक नई किरण खिल उठती है। वह हमेशा नयी चीज़ें जानने को उत्सुक रहती है—कभी चींटियों का घर देखती है, कभी बादलों में जानवरों की आकृतियाँ ढूँढती है। उसे अपनी कक्षा के सभी बच्चे पसंद हैं, पर उसकी सबसे प्यारी दोस्त है—कमलिनी।
कमलिनी बहुत सुन्दर, भोली-भाली और शांत स्वभाव की है। उसके हल्के घुँघराले बाल और बड़ी-बड़ी मासूम आँखें हैं। बस एक बात थी जो कमलिनी को हमेशा परेशान कर देती—वह पढ़ाई में थोड़ी कमजोर थी। उसे पहाड़े याद नहीं रहते थे, गणित में गड़बड़ हो जाती थी और कविता सुनाते समय शब्द उलझ जाते थे। लेकिन सरगम उसके लिए हमेशा एक छोटी शिक्षिका बन जाती।
कभी सरगम उसे पहाड़े गाना सिखाती— “दो एकम दो… दो दूनी चार… ऐसे गुनगुनाओ, याद हो जाएगा!”
कभी कविता सुनाती— “ये देखो, ऐसे हाथों से भाव बनाओ, कविता अपने-आप याद हो जाएगी!”
धीरे-धीरे कमलिनी को पढ़ाई में मज़ा आने लगा। दोनों की दोस्ती और गहरी होती चली गई।
* * * * *
एक दिन पाठशाला से लौटते समय कमलिनी अचानक बोली,
“सरगम, आज तू मेरे घर चलेगी? मैं तुझे अपनी बड़ी दीदी से मिलवाऊँगी।
वो इतनी मज़ेदार कहानियाँ सुनाती हैं कि तू सुनकर दंग रह जाएगी!”
सरगम कहानी सुनने की बहुत शौकीन थी। वह तुरंत उत्साहित होकर बोली,
“हाँ, क्यों नहीं! चल अभी चलते हैं!”
दोनों हँसी-खुशी रास्ते पर उछलती-कूदती चल दीं। रास्ते में पेड़ों की छाया थी, कहीं-कहीं चिड़ियाँ चहचहा रही थीं, और हवा में ताज़े फूलों की खुशबू थी। सरगम बहुत प्रसन्न थी—नई जगह, नए लोग और नई कहानी!
* * * * *
कमलिनी का घर बहुत सुन्दर था—फर्श चमकदार, दीवारें हल्के गुलाबी रंग की, और कमरों में फूलों की हल्की खुशबू। सरगम ने सोचा, “कमलिनी का घर कितना प्यारा है!”
लेकिन जैसे ही कमलिनी उसे अपनी बड़ी दीदी के कमरे में ले गई, सरगम ठिठक गई।
कमरा आधा अँधेरा था। खिड़कियाँ बंद थीं।
दीवारों पर अजीब-अजीब, डरावने चित्र लगे थे—
लाल आँखों वाले भूत…
लंबे दाँतों वाले पिशाच…
काले वस्त्र में चुड़ैलें…
और खुरदरे नाखूनों वाली परछाइयाँ।
कमरे में धूप का नामोनिशान नहीं था। वातावरण ऐसा था मानो कोई रहस्यमयी कहानी बस शुरू ही हो जाए।
कमलिनी की दीदी एक कोने में बैठी थीं। सरगम को देखते ही बोलीं,
“आहा ! आज सरगम भी आई है । आओ, मैं आज तुम्हें ऐसी कहानी सुनाऊँगी कि रूह काँप जाएगी!”
सरगम थोड़ा असहज हुई, पर बैठ गई।
दीदी ने एक गहरी साँस ली और कहानी शुरू की—
“घने, काले जंगल में एक खतरनाक चुड़ैल रहती थी…
वो रात के समय बाहर निकलती…
हवा में उड़ते हुए बच्चों को ढूँढती…
और जो बच्चा अकेला मिलता, उसे अपने झाड़ू पर बैठा आसमान में ले जाती थी!”
हर वाक्य के साथ दीदी की आवाज़ गहरी होती जा रही थी। कमरे में अँधेरा और गाढ़ा होता जा रहा था।
दीदी अचानक जोर से बोलीं,
“और फिर—झट!”
उन्होंने हाथ पटकते हुए कहा,
“वह बच्चे को आसमान से नीचे फेंक देती थी!”
कमलिनी डरकर सरगम का हाथ पकड़े बैठी थी। लेकिन इस बार सरगम भी काँप रही थी।
कहानी इतनी डरावनी थी कि हर शब्द मन में छेद कर रहा थी।
* * * * *
रात को घर लौटकर सरगम ने खाना तो खाया, पर दिल भारी हो रहा था। जिस समय वह बिस्तर पर लेटी, कहानी के दृश्य उसकी आँखों में घूमने लगे—
काला जंगल…
सिसकती हवा…
हँसती चुड़ैल…
और गिरता हुआ बच्चा…
उसने करवट बदली।
खिड़की के बाहर पत्तों की सरसराहट हुई।
सरगम को लगा—कोई आ रहा है!
अचानक उसने महसूस किया कि जैसे उसके बिस्तर के पास कोई परछाई खड़ी है।
वह घबरा गई और चीख पड़ी— “माँ!”
माँ दौड़ीं, पिता जी भी आए। माँ ने उसे बाँहों में भर लिया।
“डरने की क्या बात है? तू तो मेरी बहादुर बिटिया है!”
पर सरगम रात भर सो नहीं पाई।
* * * * *
अगले दिन पाठशाला में सरगम सामान्य नहीं थी। बसें, बच्चे, मैदान—सब कुछ उसे धुँधला और अजनबी लग रहा था।
कक्षा में गई तो दीवार पर लगी तितली की तस्वीर उसे चमगादड़-सी लगी।
अध्यापक की मुस्कान उसे अजीब डरावनी लगी—
मानो चेहरा लंबा हो रहा हो…
आँखें बड़ी-बड़ी हो रही हों…
दो सहपाठी हँसकर बात कर रहे थे, पर सरगम को लगा—वे उस पर हँस रहे हैं।
वह बार-बार पीछे मुड़कर देखती—कोई परछाई न हो।
पेंसिल गिरने की हल्की ‘टप’ आवाज भी उसे किसी कदम की तरह लगती।
अध्यापिका ने पूछा,
“सरगम, तू इतनी घबराई क्यों है? तबियत ठीक है?”
सरगम ने धीमे से कहा,
“मैम… सब डरावना लग रहा है… परछाइयाँ पीछा कर रही हैं…”
अध्यापिका चिंतित हुईं। उन्होंने पानी पिलाया, बातें कीं, पर सरगम का मन शांत नहीं हुआ।
वह सोचने लगी—
क्या सच में चुड़ैल मेरे पास आ रही है?
क्या रात की परछाई फिर आएगी?
* * * * *
दोपहर की प्रार्थना सभा में सभी बच्चे मैदान में खड़े हो गए। नीला आसमान साफ था, पर सरगम का मन भारी।
वह सिर झुकाए खड़ी थी।
तभी—एक हल्की, शान्त, प्यारी-सी हवा उसके गाल को छू कर गुज़री।
सरगम ने आँखें उठाईं।
और उसके सामने एक सुन्दर, प्रकाशमयी आकृति खड़ी थी—प्रेरणा की परी।
उसके पंख सुनहरी रोशनी से चमक रहे थे।
चेहरा शांत था, आँखें दयालु।
उसके आने से पूरा मैदान जैसे एक पल के लिए ठहर गया।
परी ने कोमल स्वर में पूछा—
“सरगम बेटा, तू इतनी घबराई क्यों है?”
सरगम की आँखें भर आईं। “मुझे डर लग रहा है। जो कहानी मैंने सुनी… वो मेरे दिमाग में घूम रही है। मुझे लगता है कि चुड़ैल सच में आ जाएगी…”
परी मुस्कुराई—
“डर कहानी में था, सच्चाई में नहीं। अगर मन डर के रंग में रंग जाए, तो फूल भी काँटे लगते हैं। और अगर मन हिम्मत से भर जाए, तो जंगल-बियाबान भी बगीचा बन जाता है।”
सरगम ध्यान से सुन रही थी। परी की आवाज़ उसके दिल में उतर रही थी।
* * * * *
परी बोली— “मन डर जाए तो दुनिया बदसूरत लगती है। जैसे धुएँ से दर्पण काला हो जाए, तो उसमें चेहरा भी अजीब दिखता है। तेरा मन भी डर के धुएँ से भर गया है।”
सरगम ने पूछा, “तो मैं क्या करूँ?”
परी ने जादुई छड़ी उठाई और उसके माथे पर हल्का-सा स्पर्श किया। सरगम को लगा जैसे उसके सिर से कोई भारी बोझ उतर गया हो।
परी ने कहा— “अब याद रखना—
जब भी तू डरे, मन ही मन बोलना—
‘मैं बहादुर हूँ। यह सिर्फ मेरी कल्पना है।’
फिर देखना, डर ऐसे भागेगा जैसे रोशनी से अँधेरा भागता है।”
इसके बाद प्रेरणा की परी धीरे-धीरे सुनहरी किरणों में बदल गई और गायब हो गई।
* * * * *
प्रार्थना सभा खत्म हुई।
सरगम ने चारों ओर देखा— अब दीवारें सामान्य थीं। अध्यापक मुस्कुराते हुए दिख रहे थे। बच्चे हँसते, खेलते, एक-दूसरे से बातें कर रहे थे। सब कुछ वैसा ही था जैसा पहले था।
सरगम की आँखों में चमक लौट आई। उसे महसूस हुआ— डर का धुआँ हटते ही दुनिया फिर रंगीन हो जाती है।
* * * * *
घर जाकर उसने माँ से कहा—
“माँ, कुछ कहानियाँ सिर्फ मज़े के लिए होती हैं।
लेकिन अगर हम उनको सच मान लें, तो वे हमें डरा सकती हैं।
मैं अब वैसी कहानियों से दूर रहूँगी।”
माँ ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरते हुए कहा—
“बहुत समझदार हो गई मेरी गुड़िया!”
* * * * *
अगले दिन सरगम फिर कमलिनी के घर गई। कमलिनी बहुत खुश थी कि सरगम आई है।
कमलिनी की दीदी कमरे में बैठी थीं।
सरगम ने धीरे से कहा—
“दीदी, आपकी कहानी बहुत रोमांचक थी,
लेकिन छोटी बच्चियों को डर भी लग सकता है।
क्या आप अगली बार ऐसी कहानियाँ सुनाएँगी—
जिनमें बहादुरी हो, हँसी हो, सीख हो?”
दीदी हँस पड़ीं।
“अरे! तुमने तो मेरी आँखें खोल दीं।
ठीक है, आज से मैं ऐसी कहानियाँ सुनाऊँगी—
जो बच्चों को बल और प्रेरणा दें।”
कमलिनी खुशी से बोली—
“हाँ दीदी! परी-कहानियाँ, जादू, हिम्मत और दोस्ती वाली!”
सरगम मुस्कुराई।
उसके भीतर अब कोई डर नहीं था।
सिर्फ आत्मविश्वास था—साफ, उजला, चमकता हुआ।
* * * * *
उस रात घर में हल्की हवा बह रही थी। पत्तियों की सरसराहट हुई।
पहले सरगम डर जाती, लेकिन अब वह मुस्कुराई— “यह तो पेड़ों की बातों की आवाज़ है।”
खिलौने की परछाई दीवार पर पड़ी, सरगम हँसकर बोली— “अरे! यह तो मेरी गुड़िया की परछाई है।”
और जब अचानक कोई अजीब-सा ख़याल आया,
उसने परी के शब्द दोहराए—
“मैं बहादुर हूँ। यह सिर्फ मेरी कल्पना है।”
बस, डर वहीं खत्म।
कहानी की सीख : डर से भागने से नहीं, उसे समझने से जीत मिलती है।
कल्पना जब डर में बदल जाए, तो मन भारी होता है। पर जब कल्पना हिम्मत का रूप ले ले, तो बच्चा आसमान छू सकता है।
सरगम ने सिर्फ प्रेरणा की परी ही नहीं देखी— उसने अपने भीतर की साहस की परी को जगाया। और तब से उसकी दुनिया पहले से भी ज़्यादा उजली, सुन्दर और जादुई हो गई।
('परियाँ बनी तितलियाँ - कहानी संग्रह' में से)