संत (स्पेनिश कहानी) : गेब्रियल गार्सिया मार्ख़ेस (अनुवाद : विजय शर्मा)
Sant (Spanish Story in Hindi) : Gabriel Garcia Marquez
बाइस वर्ष बाद ट्रास्टवेयरे की पतली रहस्यमयी गलियों में से एक में मार्गरीटो डुआर्ट को देखा। उसे पहचानने में पहले मुझे मुश्किल हुई क्योंकि वह टूटी-फूटी स्पैनिश बोल रहा था और देखने में एक बूढ़ा रोमन लग रहा था। उसके बाल काफी झड़ चुके थे और सफेद हो गए थे। उसके ऐंडियन बुद्धिजीवी तौर-तरीके और सूतक के जिन कपड़ों में वह पहले-पहल रोम आया था उनका कहीं नामो-निशान नहीं बचा था। हमारी बातचीत के दौरान मैं उसे धीरे-धीरे उन बीस वर्षों में से निकाल लाया जिसमें निर्मम समय ने उसके साथ अन्याय किया था। तब मैंने उसे उसी रूप में देखा जैसा वह था; रहस्यमय, अप्रत्याशित और पत्थरकट्ट की भाँति दृढ़। अनेक बार में से एक में बैठ कर पुराने दिनों की तरह ही दूसरा कप कॉफी पीने से पहले मैंने उससे वह प्रश्न पूछने की हिम्मत की जो भीतर-ही-भीतर मुझे कुरेद रहा था।
"संत के साथ क्या हुआ?"
"संत यहीं है इंतजार में।" उसने उत्तर दिया।
हमें वर्षों से उसकी कहानी इतनी अच्छी तरह मालूम थी कि गायक राफेल सिल्वा और मैं ही उसके उत्तर की मानवीय पीड़ा को समझ सके। मैं सोचता था कि मार्गरीटो डुआर्ट एक ऐसा चरित्र था जो एक लेखक की खोज में था, जिसका हम कहानीकार ताजिंदगी इंतजार करते हैं। मैंने कभी उसे मेरा उपयोग नहीं करने दिया क्योंकि अंत में उसकी कहानी कल्पनातीत लगती थी।
वह उस खिले हुए वसंत में रोम आया था जब पोप पायस द्वादश हिचकियों के हमले से ग्रसित था, हिचकियाँ जो न तो डॉक्टरों की अच्छी-बुरी कलाओं से ठीक हो रही थीं, न ही झाड़-फूँक के जादुई इलाज से। कोलंबियन ऐंडीज की ऊँचाई पर स्थित टोलीया गाँव से वह पहली बार बाहर आया था। यह एक सच्चाई थी जो उसके सोने के तरीके तक में नजर आती थी। एक सुबह वह अपने हाथ में वायलिन केस के आकार-प्रकार का पॉलिस किया हुआ पाइन का बक्सा लिए हुए हमारे कॉन्सुलेट में नमूदार हुआ और उसने कॉन्सल को अपनी यात्रा का आश्चर्यजनक कारण बताया। कॉन्सल ने अपने देशवासी गायक राफेल रिबेरो सिल्वा को फोन किया कि जहाँ हम दोनों रह रहे हैं, उसी छात्रावास में उसके रहने का भी इंतजाम कर दें। इस तरह मैं उससे मिला।
मार्गरीटो डुआर्ट प्राइमरी स्कूल से आगे नहीं बढ़ा था, परंतु लिखने-पढ़ने के उसके व्यवसाय के कारण जो भी छपा हुआ उसके हाथ लगा उसने उसे बड़े उत्साह से पढ़ा। अट्ठारह वर्ष की आयु में जब वह गाँव में क्लर्क था उसने एक खूबसूरत लड़की से शादी की, जो उनकी पहली संतान एक बच्ची को जन्म देने के तत्काल बाद मर गई। अपनी माँ से भी अधिक खूबसूरत वह बच्ची भी सात साल की उम्र में बुखार से मर गई। परंतु मार्गरीटो डुआर्ट की कहानी असल में उसके रोम पहुँचने के छ महीने पूर्व प्रारंभ हुई। एक बाँध निर्माण के सिलसिले में उसके गाँव की कब्रगाह उस स्थान से विस्थापित करने की जरूरत पड़ी।
इलाके के सभी निवासियों की भाँति मार्गरीटो डुआर्ट ने भी अपने मृतकों को नई कब्रगाह में ले जाने के लिए खोद निकाला। उसकी पत्नी मिट्टी बन चुकी थी, परंतु उसकी बगल वाली लड़की ग्यारह सालों के बाद भी ज्यों-कि-त्यों थी। असल में जब उन्होंने ताबूत खोला तो उनके नथुनों में उन ताजा कटे गुलाबों की खुशबू भर गई, जिनके साथ उसे दफनाया गया था। सब से ज्यादा आश्चर्यजनक बात यह थी कि लड़की के शरीर में कोई भार न था।
चमत्कार की गूँज से सैंकड़ों उत्सुक गाँव में उमड़ पड़े। इस विषय में कोई शंका न थी, शरीर की अक्षयता उसके संत होने की असंदिग्ध निशानी थी और यहाँ तक कि डायोसीज के बिशप ने स्वीकारा कि ऐसे विलक्षण चमत्कार को वतिकान के फैसले के लिए दर्ज किया जाना चाहिए और इसके लिए उन्होंने जनता से चंदा उगाहा ताकि मार्गरीटो डुआर्ट रोम की यात्रा कर सके और इस निमित्त के लिए जद्दोजहद करे जो अब केवल उसका नहीं था, न ही केवल गाँव की सीमा में संकुचित था, वरन एक राष्ट्रीय मुद्दा बन चुका था।
शांत पारीओली जिले के छात्रावास में जब वह हमें अपनी कहानी सुना रहा था, मार्गरीटो डुआर्ट ने ताला खोला और उस सुंदर बक्से का ढक्कन उठाया। इस तरह गायक राफेल रिबेरो सिल्वा और मैं उस चमत्कार के साझीदार बने। संसार के बहुत से संग्रहालयों में दीखने वाली सूखी ममी (शव) की तरह वह नहीं दीखती थी। एक छोटी बच्ची जिसने दुल्हन की पोशाक पहन रखी हो और जो एक लंबे समय से जमीन के भीतर सो रही हो, वह ऐसी ही लगती थी। उसकी त्वचा चिकनी और नरम थी, उसकी खुली आँखें स्वच्छ थीं और ऐसा लगता था कि वे मृत्यु के पार से हमारी ओर देख रही हों, जिसे सहन करना कठिन था। उसके मुकुट में साटिन और नारंगी के जो कृत्रिम फूल लगे थे उन्होंने समय की मार झेली थी, उसकी त्वचा ने नहीं। परंतु उसके हाथ में जो गुलाब के फूल रखे गए थे वे अब तक ताजा थे। यह एक सच्चाई थी कि जब हमने शरीर संदूक से हटा दिया तब भी संदूक के भार में कोई बदलाव नहीं आया।
पहुँचने के अगले दिन से मार्गरीटो डुआर्ट ने अपनी बातचीत प्रारंभ कर दी। पहले-पहल डिप्लोमेटिक असिस्टेंट के साथ जो दयालु ज्यादा, कुशल कम था। और फिर उसने वतिकान के रचाए गए अनगिनत चक्रव्यूहों की घेराबंदी के प्रत्येक दाँवपेंच से बात की। वह अपने उठाए गए प्रत्येक कदम में सदैव बड़ा गंभीर था लेकिन हमें मालूम था कि वतिकान के घेरे अनगिनत थे और कोई लाभ नहीं होने वाला था। उसने सब धार्मिक सभाओं और जो भी मानवीय संघ मिला उनसे संपर्क साधा। वे बड़े ध्यान से उसकी बात सुनते परंतु कोई आश्चर्य नहीं कि तत्काल कदम उठाने के लिए किए गए वायदे कभी पूरे नहीं होते। सच्चाई यह थी कि यह समय बहुत अनुकूल था भी नहीं। प्रत्येक वह कार्य जिसमें पोप के पवित्र दर्शनों की आवश्यकता थी, तब तक के लिए मुल्तवी कर दिया गया था जब तक पोप की हिचकियों का दौर बंद न हो जाए। जो न केवल विशेषज्ञों का प्रतिरोध नहीं कर रही थीं बल्कि समस्त संसार से भेजे जा रहे प्रत्येक प्रकार के जादू-टोनों को भी बेअसर किए हुए थीं।
आखिर में जब जुलाई महीने में पोप पायस द्वादश स्वस्थ हुए और अपने ग्रीष्मकालीन अवकाश के लिए कैसल गैंडोल्फो चले गए। मार्गरीटो डुआर्ट संत को साप्ताहिक दर्शन के लिए इस आशा के साथ ले गया कि वह उसे पोप को दिखा सकेगा। पोप भीतरी सहन की एक इतनी नीची बाल्कनी पर आए जहाँ से मार्गरीटो डुआर्ट उनके नाखून की चमक और लैवेंडर की सुगंध पा सका। संसार के प्रत्येक देश से आए पर्यटकों के बीच उन्होंने विचरण नहीं किया, जैसा कि मारग्रीटो डुआर्ट ने आशा की थी। परंतु छ भाषाओं में एक ही कथन बार-बार दोहराया गया और सार्वजनिक आशीर्वाद के साथ पोप ने अपना दर्शन समाप्त किया।
बहुत विलंब के बाद मार्गरीटो डुआर्ट ने बात अपने हाथ में लेने का निश्चय किया और उसने लगभग साठ पन्नों का एक पत्र सेक्रेटरी ऑफ स्टेट को लिखा, परंतु कोई जवाब नहीं आया। उसे यही अंदेशा था, क्योंकि जिस कार्यकर्ता ने सारी औपचरिकता के साथ उसका हस्तलिखित पत्र लिया था, उसने मृत लड़की पर एक सरसरी नजर डालने के अलावा उसे किसी और योग्य नहीं समझा था। पास से गुजरते क्लर्कों ने उसे बिना किसी रुचि के देखा था। उनमें से एक ने बताया था कि पिछले वर्ष उन लोगों ने साबुत शवों को संत का दर्जा देने के संबंध में दुनिया के विभिन्न हिस्सों से आठ सौ से ज्यादा पत्र पाए थे। अंत में मार्गरीटो डुआर्ट ने याचना की कि शरीर की भारहीनता की पुष्टि की जाए। अधिकारियों ने जाँच की परंतु उसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
"यह सामूहिक सम्मोहन का मामला है।" उन्होंने कहा।
ग्रीष्म के शुष्क इतवारों को अपने थोड़े से बचे समय में वह अपने कमरे में रहता और इस विषय पर जो भी साहित्य उपलब्ध होता उसे घोंटता रहता। प्रत्येक माह के अंत में, अपने खर्चे की विस्तृत गणना एक विशिष्ट क्लर्क की खास लिपि में दर्ज करता और अपने गाँव के दानकर्ताओं को सतर्कता और नवीनतम जानकारियों के साथ भेजता। साल खतम होने के पहले उसे रोम की समस्त भूल-भुलैया ज्ञात हो गई थी। ऐसा लगता था मानो वह यहीं जनमा हो। वह अपनी ऐंडियन स्पैनिश के लहजे में फर्राटेदार इटैलियन बोलने लगा था और संत घोषित किए जाने की प्रक्रिया (कैनेनाइजेशन) के बारे में सब कुछ जान गया था। लेकिन उसे अपने सोग वाले कपड़े, वेस्ट और मजिस्ट्रेट का हैट बदलने में काफी समय लगा, जो खुलकर न बताने वाली रहस्यमय उद्देश्य वाली सोसाइटी के प्रतीक थे। वह कभी-कभी संत वाला बक्सा ले कर तड़के निकल पड़ता और गई रात थका-उदास लौटता। परंतु सदैव अगले दिन के लिए उत्साह की चमक से भरा रहता।
"संत का अपना खास समय होता है।" वह कहता।
यह रोम में मेरा पहला अवसर था, जहाँ मैं एक्सपैरिमेंटल फिल्म सेंटर में पढ़ रहा था, मैंने सघन संवेदना के साथ उसकी यंत्रणा को जीया।
हमारा छात्रावास विला बोर्गीस से कुछ कदम की दूरी पर एक आधुनिक अपार्टमेंट था। मालकिन स्वयं दो कमरों में रहती थी और उसने चार कमरे विदेशी छात्रों को किराए पर उठाए हुए थे। हम उसे बेला मारिया पुकारते थे। अपना वसंत बीत जाने पर भी वह गजब की सुंदरी और तुनकमिजाज थी। वह इस नियम में विश्वास करती थी कि प्रत्येक इनसान अपने कमरे का बादशाह होता है। मगर वास्तव में उसकी बड़ी बहन बिना पंखों वाली एक फरीश्ता ऑन्ट एंटनिटा रोजमर्रा की सारी मुसीबतें उठाती थी। वह घंटों-घंटों उसके लिए काम किया करती, दिन भर लकड़ी की बाल्टी में पानी और ब्रश लिए अपार्टमेंट में घूमती, संगमरमर के फर्श को शीशे-सा चमकाती। उसी ने हमें नन्हीं साँग बर्ड खाना सिखाया, जो उसका पति बरटोली, युद्ध की बुरी लत के कारण पकड़ लाता था। जब मार्गरीटो डुआर्ट बेला मारिया का किराया चुकाने में असमर्थ रहा तो उसी ने उसे अपने घर में शरण दी।
बिन नियमों वाला घर मार्गरीटो डुआर्ट के स्वभाव के मुआफिक नहीं था। प्रत्येक घंटे हमारे लिए कोई-न-कोई अचंभा इंतजार करता रहता, यहाँ तक कि भोर में जब हम विला बोर्गीस के चिड़ियाघर के शेर की दहाड़ के साथ जागते। गायक रिबेरो सिल्वा को विशेषाधिकार प्राप्त था। रोमन भी उसके सुबह के रियाज का बुरा नहीं मानते। वह छ बजे सुबह उठ कर बर्फीले ठंडे औषधीय जलसे स्नान करता, अपनी बकरा दाढ़ी-मूँछें सँवार कर ऊनी चारखाने वाले कपड़े, चाइनीज सिल्क का स्कार्फ पहनता। और अपना खास इत्र लगा कर वह तन-मन से रियाज में जुट जाता। जब शरत ऋतु के तारे आकाश में जगमगा रहे होते तब भी वह अपनी खिड़की खोल रखता। गरमाने की हद तक वह अपने खुले गले की पूरी ताकत से महान प्रेम की तान लेता। रोजाना जब वह पंचम सुर में 'डो' का आलाप लेता तभी विला बोर्गीस का शेर पृथ्वी कँपाने वाली दहाड़ से उसका उत्तर देगा, ऐसी सब की अपेक्षा रहती।
"तुम सच में सेंट मार्क के अवतार हो प्यारे!" ऑन्ट एंटोनिटा आश्चर्य के साथ घोषित करती। "केवल वही शेरों के साथ बात कर सकता है।"
यह शेर नहीं था जिसने एक सुबह उत्तर दिया। गायक ने 'ओटेलो' से एक युगल प्रेम गीत की तान छेड़ी और नीचे आँगन से एक मधुर पंचम सुर में उत्तर सुनाई दिया। गायक ने रियाज जारी रखा और पड़ौसियों को प्रसन्न करते हुए उन्होंने पूरा गाना गाया। लोगों ने उस प्रचंड प्रेम धार के लिए अपनी-अपनी खिड़कियाँ खोल दीं। गायक करीब-करीब बेहोश हो गया, जब उसे ज्ञात हुआ कि उसकी अदृश्य डेस्डोमोना और कोई नहीं स्वयं महान मारिया कनोग्लिया थी।
मुझे ऐसा लगता है कि इस कड़ी ने मार्गरीटो डुआर्ट को इस घर के जीवन से जोड़ने का सटीक कारण दे दिया। तब से वह हमारे साथ टेबल पर बैठने लगा। पहले वह रसोई में बैठता था। जहाँ प्रतिदिन ऑन्ट एंटोनिटा उसे साँग बर्ड का स्टू देती थी। जब भोजन समाप्त हो जाता, हमें इटैलियन सिखाने की गरज से बेला मारिया जोर-जोर से अखबार पढ़ती और खबरों पर टिप्पणी भी करती चलती, जो हमारे जीवन में रस घोलता। एक दिन उसने हमें बताया कि पॉलेर्मो शहर में एक बहुत विशाल म्युजियम है, जहाँ पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों के अक्षय शव रखे हुए हैं और यहाँ तक कि बहुत से बिशप के भी जो उसी कपुचिन कब्रगाह से हटाए गए थे। इस खबर से मार्गेरीटो डुआर्ट इतना विचलित हो गया कि जब तक हम पॉलेर्मो नहीं गए उसे चैन नहीं पड़ा। परंतु उसके निर्णय के लिए उन विषादजनक गैलरियों की उदास ममी पर एक नजर डालना काफी था।
"ये वो बिल्कुल नहीं हैं," उसने कहा। "कोई भी बता सकता है कि ये मरे हुए हैं।"
दोपहर अपने अगस्त महीने के आलस्य में डूब जाती। दोपहर का सूर्य मध्य आकाश में अटका जड़ा रहता और दो बजे की नीरवता में केवल पानी की आवाज सुनाई पड़ती, जो रोम की नैसर्गिक ध्वनि है। लेकिन जब सात बजे ठंडी हवा चलने लगती तो खिड़कियाँ खुल जातीं, और छतों के ऊपर फूलों के बीच प्रेम गीतों के स्वरों के मध्य बिना किसी उद्देश्य एक खुशनुमा भीड़ मात्र जीने के लिए सड़क पर उमड़ पड़ती।
गायक और मैं झपकी नहीं लेते थे। हम वेस्पा पर सवारी करते, मैं पीछे बैठता और वह चलाता। हम विला बोर्गीज की सदियों पुरानी लॉरेल की छाया में जागे हुए राहगीरों का चमकते हुए सूर्य में इंतजार करती थिरकती नन्हीं वेश्याओं के लिए बर्फ और चाकलेट लाते। उन दिनों की अधिकांश इटैलियन औरतों की तरह वे सुंदर, गरीब और प्यारी थीं। वे नीली ऑर्गंडी, गुलाबी पॉपलीन, हरी लीनेन पहनती और हाल के युद्ध की गोलियों की बौछार से फटे हुए पारासोल की सहायता से स्वयं को धूप से बचातीं।
उनके साथ रहना एक खास तरह की खुशी थी क्योंकि वे धंधे के नियमों को नजरअंदाज कर हमारे साथ बार के एक कोने में बैठ कर कॉफी पीने और बातें करने के लिए अपने धनी ग्राहकों को छोड़ देतीं, या फिर वे हमारे साथ बग्घी में बैठ कर पार्क का चक्कर लगातीं, हमें अपदस्त बादशाहों और उनकी अर्खैलों की बातें बता कर दयाद्र करतीं जो गोधूलि में घोड़े की पीठ पर बैठ कर गेलेपोशियो का चक्कर लगाते थे। कई बार हम उनके दुभाषिए बनते, जब कोई विदेशी बहक जाता।
हमारा मार्गरीटो डुआर्ट को विला बोर्गीज लाने का कारण वेश्याएँ नहीं थीं। हम चाहते थे कि वह शेर देखे। शेर छोटे से टापू में बिना पिंजड़े के खुला रहता था और हमें दूर से देखते ही उसने दहाड़ना शुरू कर दिया। इतनी बेचैनी से कि उसका रखवाला चकित हो गया। पार्क में घूमने आए लोग आश्चर्य से जमा हो गए। गायक उसे अपनी सुबह वाली 'डो' के द्वारा आकर्षित करना चाहता था परंतु शेर ने उस पर कोई ध्यान नहीं दिया। वह हम सब पर दहाड़ रहा था। फिर भी उसका रखवाला तुरंत जान गया कि वह केवल मार्गरीटो डुआर्ट के लिए दहाड़ रहा था। जिधर वह घूमता, शेर भी उधर घूम जाता और जब वह ओझल हो जाता तो शेर दहाड़ना बंद कर देता। उसका रखवाला क्लासिकल लिटरेचर में सियोन यूनिवर्सिटी से डॉक्टरेट था, उसका मानना था कि मार्गरीटो डुआर्ट उस दिन दूसरे शेरों के साथ था और अपने संग उनकी गंध लाया था। रखवाला इस अतार्किक तर्क की कोई और व्याख्या नहीं सोच पा रहा था।
"खैर, यह दहाड़ सहानुभूति की है, युद्ध की नहीं।" उसने कहा। इस अलौकिक एपीसोड से गायक रिबेरो सिल्वा को उतना आश्चर्य नहीं हुआ जितना मार्गरीटो के संभ्रमित होने से हुआ। जब वे पार्क में लड़कियों से बात करने के लिए रुके। गायक ने टेबल पर इस बात का जिक्र किया और हम सब सहमत हो गए - कुछ शैतानी से और कुछ सहानुभूति से - मार्गरीटो डुआर्ट के अकेलेपन को दूर करने का विचार अच्छा है। हमारे दयालु विचार से द्रवित बेला मारिया ने अपने मातामही जैसे सीने पर नकली पत्थरों की अँगुलियों से भरे अपने हाथ दबाए।
"मैं, मैं यह फोकट में करती। लेकिन मैं वेस्ट पहनने वाले आदमी बर्दाश्त नहीं कर सकती।" वह बोली।
और इस तरह गायक अपने वेस्पा पर दोपहर दो बजे विला बोर्गीज गया और एक नन्हीं तितली को ले कर लौटा। उसे लगा कि वह मार्गरेटो डुआर्ट को एक घंटे अच्छा साथ देगी। गायक के कहने पर उसने गायक के कमरे में अपने कपड़े उतारे। गायक ने उसे खुशबूदार साबुन से नहलाया, पोंछा, अपने खास कोलोन से उसे महकाया और उसके सारे शरीर पर कर्पूर वाला आफ्टर शेव पाउडर छिड़का। फिर उसने इस एक घंटे तथा एक और घंटे की कीमत अदा की एवं क्या-क्या करना है उसे बताया।
झपकी के स्वप्न की मानिंद नग्न सुंदरी ने छायादार घर में पंजों के बल चलते हुए बेडरूम के पिछले दरवाजे पर दस्तक दी। नंगे पैर, नंगे बदन मार्गरीटो डुआर्ट दरवाजे पर आया।
"नमस्कार," उसने एक स्कूली लड़की की अदा और स्वर में कहा, "मुझे गायक ने भेजा है।"
बड़ी शान के साथ मार्गरीटो डुआर्ट ने इस हादसे को पचाया। लड़की के अंदर आने के लिए उसने दरवाजा खोल दिया। वह बिस्तर पर लेट गई। इस बीच शर्ट और जूते पहनते हुए वह तेजी से अंदर गया ताकि लड़की का पूरे सम्मान के साथ स्वागत कर सके। फिर वह उसकी बगल वाली कुर्सी पर आ कर बैठ गया और बातचीत करने लगा। परेशान लड़की ने कहा कि वह जल्दी करे क्योंकि उनके पास मात्र एक घंटा है, पर लगता नहीं कि वह इस बात को समझा। अगर वह चाहता तो वह सारा वक्त उसके साथ गुजारती और एक सेंट भी नहीं लेती। ऐसा लड़की ने बाद में बताया। क्योंकि उसे लगा कि इतना अच्छा व्यवहार करने वाला इस दुनिया का हो ही नहीं सकता है। क्या करना है, इसे नहीं जानते हुए लड़की ने इस बीच पूरे कमरे में चारों ओर नजर दौड़ाई। और फिर फायरप्लेस के पास रखे लकड़ी के केस पर उसकी दृष्टि पड़ी। उसने मार्गरीटो डुआर्ट से पूछा क्या वह सेक्सोफोन है। मार्गरीटो डुआर्ट ने जवाब नहीं दिया लेकिन खिड़की का परदा सरका दिया ताकि थोड़ी रोशनी आ सके, वह केस बिस्तर के पास उठा लाया और उसने उसका ढक्कन उठा दिया। लड़की ने कुछ कहने की कोशिश की पर उसके खुले जबड़े लटक गए। या जैसा कि उसने बाद में हमें बताया कि वह दहशत से चीख कर भागी। लेकिन हाल में वह रास्ता भटक गई और ऑन्ट एंटनिटा से जा टकराई जो मेरे कमरे का बल्ब बदलने आ रही थी। वे दोनों इतना डरी हुई थीं कि लड़की ने सारी रात गायक का कमरा नहीं छोड़ा।
ऑन्ट एंटनिटा को कभी पता नहीं चला कि क्या हुआ था। वह इतनी भयभीत थी कि उससे मेरे लैंप का बल्ब नहीं बदला जा रहा था। उसके हाथ काँप रहे थे। मैंने पूछा, "क्या हुआ?"
"इस घर में भूत बसते हैं," उसने कहा, "अब दिन-दहाड़े घूमते हैं।"
पक्के विश्वास के साथ उसने मुझे बताया कि युद्धकाल में एक जर्मन ऑफीसर ने अपनी रखैल का गला उसी कमरे में काट डाला था, जिसमें गायक रहता है। जब ऑन्ट एंटनिटा काम करती इधर-उधर जाती है अक्सर उस बेचारी का भूत कॉरीडोर में मिलता है। मैंने अभी-अभी हॉल में उसे नंगी चलते हुए देखा है," वह बोली, "वह वही थी।"
शहर ने पतझड़ की दिनचर्या पकड़ ली थी। हवा के पहले झोंकों के साथ गर्मी की फूलों वाली छतें बंद हो गई थीं। और गायक तथा मैं अपने ट्रास्टवेयरे के पुराने अड्डे पर लौट आए जहाँ काउंट कारलो कैल्काग्नि के जोर-जोर से बोलने वाले छात्रों और मेरे फिल्म स्कूल के कुछ सहपाठियों के साथ हम रात का भोजन करते। इनमें हमारे सबसे नजदीक लाकिंस था जो बुद्धिमान और दोस्ताना व्यवहार करने वाला यूनानी था। सामाजिक न्याय पर उबाऊ भाषण देना जिसकी एकमात्र कमजोरी थी। यह हमारा सौभाग्य था कि गायक और वादक सदैव उसे गानों के चयन से चित्त कर देते, जिसे वे पूरा गला फाड़ कर गाते, जिससे आधी रात के बाद भी कोई परेशान नहीं होता। उल्टे कोई-कोई देर रात का मुसाफिर उनसे सुर मिलाता और वाहवाही के लिए पड़ोसी खिड़कियाँ खोल देते।
एक रात जब हम गा रहे थे, हमारे गाने में बाधा न पड़े इसलिए मार्गरीटो डुआर्ट दबे पाँव आया। वह पाइन केस लिए हुए था। उस दिन वह संत को लैटरानो में सैन गिओवानी के पेरिस प्रीस्ट को दिखाने ले गया था, जिसके विषय में माना जाता था कि उसकी होली कॉन्ग्रगेशन में अच्छी पहुँच है। लौटने पर उसे संत को छात्रावास में रखने का वक्त नहीं मिला था। मैंने कनखी से देखा कि उसने केस को दूर एक टेबल के नीचे रख दिया और हमेशा की तरह हमारा गाना समाप्त होने तक बैठा रहा। आधी रात के बाद जब रेस्तराँ खाली होने लगता हम कई टेबल खींच कर जोड़ लेते और एक झुंड में बैठते, गाते, फिल्म की बातें करते। हमारे बीच मार्गरीटो डुआर्ट रहस्यमय जिंदगी वाला चुप, उदास कोलंबियन के रूप में जाना जाता था। लाकिंस को जिज्ञासा हुई उसने पूछा क्या वह सेलो बजाता है? मैं औचक पकड़ा गया क्योंकि मुझे वह नाजुक प्रश्न बड़ा मुश्किल लगा। गायक भी उतना ही परेशान अनुभव कर रहा था, वह भी स्थिति को सँभाल नहीं सका। मात्र मार्गरीटो डुआर्ट ही ऐसा था जिसने प्रश्न का बड़े सामान्य ढंग से उत्तर दिया।
"यह सेलो नहीं है, संत है।" उसने कहा।
उसने केस टेबल पर रख दिया, उसका ताला खोला और ढक्कन हटा दिया। रेस्तराँ अचंभे से हिल गया। दूसरे ग्राहक, बैयरे, यहाँ तक कि रसोई के लोग भी अपने खून सने ऐप्रेन के साथ इस आश्चर्य को देखने जमा हो गए। कुछ ने सीने पर क्रॉस बनाया। एक खानसामा अपने घुटनों पर गिर, हाथ जोड़ कर मन-ही-मन प्रार्थना करते हुए भक्ति भाव से काँपने लगा।
जब घबराहट शांत हुई हम वर्तमान काल में संत भावना की कमी के बारे में जोर-जोर से आलोचना करने लगे। स्वाभाविक रूप से लाकिंस सबसे ज्यादा उत्तेजित था और अंत में उसने स्पष्ट किया कि वह संत के विषय पर एक क्रिटिकल मूवी बनाना चाहता है। "मुझे विश्वास है, बूढ़ा सीजर इस विषय को कभी भी हाथ से नहीं जाने देगा।" उसने कहा।
उसका इशारा सीजर जवाटोनी की ओर था जो हमें प्लॉट डिवलपमेंट और स्क्रीन राइटिंग पढ़ाता था। फिल्म इतिहास में वह एक हस्ती था और केवल वही था जो क्लास के बाहर भी हमसे संपर्क रखता था। वह न केवल हमें क्राफ्ट सिखाता वरन जीवन के प्रति एक अलग नजरिया रखना भी बताता था। वह प्लॉट इजाद करने की मशीन था। प्लॉट उससे उमड़ते-घुमड़ते रहते। करीब-करीब उसकी इच्छा के बिना भी इतनी तेजी से निःसृत होते कि उन्हें बीच में लोकने के लिए किसी-न-किसी की आवश्यकता पड़ती। क्योंकि वह उन्हें जोर-जोर से बोल कर सोचता था। उसका जोश प्लॉट को पूरा कर के ही दम लेता था। "बहुत बुरी बात है कि इन्हें फिल्मों में ढालना है..." वह कहता। उसे लगता कि परदे पर इनका मौलिक जादू काफी हद तक नष्ट हो जाएगा। वह अपने विचारों को दीवार पर पिनअप कर के रखता, वे इतने अधिक थे कि उनसे कमरे की पूरी दीवारें भर गई थीं।
अगले शनिवार हम मार्गरीटो डुआर्ट को उसके पास ले गए। हमने जो आइडिया फोन पर उसे बताया था उसमें उसकी रुचि के कारण वह बेताब था। जवाटीनी के पास इतना उत्साह था कि वह हमें विपा-डि-सेंट-एंजेला-मेरिसी के दरवाजे पर खड़ा मिला।
आदतन करने वाला अभिवादन भी उसने नहीं किया। और अपने द्वारा तैयार की गई मेज के पास मार्गरीटो डुआर्ट को ले गया। केस उसने स्वयं खोला। तभी कुछ ऐसा हुआ जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते थे। हमारी आशा के विपरीत पागल होने के बजाय वह एक प्रकार के मानसिक लकवे का शिकार हो गया। "आश्चर्य!" वह भय से बुदबुदाया।
संत को उसने दो-तीन मिनट तक निहारा और फिर केस को स्वयं बंद कर दिया। बिना एक शब्द कहे वह मार्गरीटो डुआर्ट को द्वार तक ऐसे ले गया मानो कोई बच्चा अपना पहला कदम उठा रहा हो, उसने मार्गरीटो डुआर्ट के कंधे पर थपकी देते हुए उसे विदा दी।
"धन्यवाद, मेरे बच्चे, बहुत-बहुत धन्यवाद!" उसने कहा।
"ईश्वर तुम्हारे संघर्ष में तुम्हारा साथ दे।" दरवाजा बंद कर वह हमारी ओर मुड़ा और उसने अपना निर्णय सुनाया।
"यह मूवी के लिए अच्छा नहीं है, कोई पतियाएगा नहीं।" उसने कहा।
जब हम ट्राम से घर लौटे तब वह आश्चर्यजनक पाठ भी हमारे साथ यात्रा कर रहा था। अगर जावाटीनी ने ऐसा कहा है तो यह सत्य ही होगा। कहानी अच्छी नहीं थी। परंतु बेला मारिया हमें जावाटीनी के संदेश के साथ छात्रावास पर मिली। वह उस रात हमारा इंतजार करेगा। लेकिन उसने हमें मार्गरीटो डुआर्ट के बिना बुलाया था।
हमने उस्ताद को सितारों की बुलंदी पर पाया। लाकिंस अपने दो-तीन साथियों को ले कर आया था, परंतु जब जावाटीनी ने दरवाजा खोला, उसने उनकी ओर देखा भी नहीं।
"मुझे मिल गया," वह चिल्लाया, "यह एक सनसनीखेज पिक्चर होगी, यदि मार्गरीटो डुआर्ट एक जादू करे और लड़की को पुनर्जीवित कर दे।"
"पिक्चर में या असल जिंदगी में?" मैंने पूछा। उसने अपनी झुँझलाहट दबा ली, "बेवकूफ मत बनो।" उसने कहा।
हमने उसकी आँखों में अदमनीय उमड़ते विचारों को कौंधते देखा, "यदि वह उसे जीवन में पुनर्जीवित कर दे तो?" उसने विचारा और पूरी गंभीरता से जोड़ा -
"उसे कोशिश करनी होगी।"
यह एक क्षणिक प्रलोभन से ज्यादा न था, उसने पुनः सूत्र सँभाला। वह एक आनंदित पागल की तरह प्रत्येक कमरे में चहलकदमी करने लगा। जोर-जोर से चिल्लाते हुए, हाथ हिला-हिला कर फिल्म दोहराने लगा। चकराते हुए हमने उसे सुना, ऐसा लग रहा था मानो हम सब फिल्म देख पा रहे हों। जैसे अँधेरे में चमकती हुई चिड़ियों के झुंड खुले छोड़ दिए गए हों। उनकी पागल उड़ान पूरे घर में भर गई।
उसने कहा, "एक रात जब किसी कारणवश वह जिन बीस पोप से मिला था, वे मर गए, मार्गरीटो डुआर्ट बूढ़ा हो गया। एक दिन वह थका-हारा अपने घर आता है, केस खोलता है, छोटी मृत लड़की का चेहरा सहलाता है और संसार की सारी कोमलता के साथ कहता है : "मेरी बच्ची! अपने पिता के प्यार की खातिर उठो और चलो।"
उसने हम सब की ओर नजर डाली और एक विजयी मुद्रा के साथ समाप्त किया :
"और वह ऐसा करती है।"
वह हम से कुछ अपेक्षा कर रहा था मगर हम इतना खो गए थे कि एक शब्द न कह सके। केवल यूनानी लाकिंस ने अपना हाथ उठाया मानो वह स्कूल में हो और पूछने के लिए आज्ञा माँग रहा हो।
"मेरी मुसीबत यह है कि मैं इस पर विश्वास नहीं कर पा रहा हूँ," उसने कहा। हमें चकित करते हुए वह जावाटीनी से कह रहा था, "माफ करना उस्ताद, लेकिन मुझे इस पर विश्वास नहीं।"
अब चौंकने की बारी जावाटीनी की थी।
"और क्यों नहीं?"
"मुझे क्या पता।" लाकिंस ने व्यथा के साथ कहा। "परंतु यह असंभव है।"
"आश्चर्य!" उस्ताद ने इतने जोर से और ऐसे स्वर में गर्जन किया जो पूरे पड़ोस में अवश्य सुनी गई होगी।
"स्टालिनवादियों की यही बात मेरी समझ में नहीं आती है कि वे क्यों यथार्थ में विश्वास नहीं करते।"
जैसा कि स्वयं मार्गरीटो डुआर्ट ने बताया अगले पंद्रह वर्ष वह संत को इस इंतजार में कैसल गैंडोल्फो ले जाता रहा कि उसे एक बार संत को प्रदर्शित करने का अवसर मिलेगा। करीब दो सौ तीर्थयात्रियों का जत्था लैटिन अमेरिका से पोप जॉन तैइसवें का दर्शन करने आया था। इस अवसर पर वह किसी प्रकार उन्हें अपनी कहानी सुन सका।
परंतु उन्हें लड़की दिखा नहीं सका क्योंकि हत्या के प्रयासों के तहत की जा रही सावधानी के कारण अन्य यात्रियों के सामान के साथ उसे भी संत को प्रवेश द्वार पर ही छोड़ देना पड़ा। भीड़ में जितने ध्यान से पोप सुन सकते थे उन्होंने उसकी बात सुनी और उसके गाल पर उत्साहजनक चपत लगाई।
"शाबाश, मेरे मित्र।" उन्होंने कहा। "ईश्वर तुम्हारी लगन को ईनाम दे।"
मगर मुस्कुराते एल्बीनों लुसीआनी के अल्पकालीन शासन के दौरान मार्गरीटो डुआर्ट को पक्का यकीन हो गया था कि उसके स्वप्न पूरे होने का समय आ गया है। माग्ररीटो डुआर्ट की कहानी से प्रभावित पोप के एक रिश्तेदार ने हस्तक्षेप करने का वायदा किया। इस पर किसी ने ध्यान नहीं दिया, लेकिन जब दो दिन बाद वह छात्रावास में खाना खा रहा था किसी ने टेलीफोन पर सरल त्वरित संदेश मार्गरीटो डुआर्ट के लिए दिया। उसे किसी भी सूरत में रोम नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि वृहस्पतिवार से पहले किसी भी समय उसको निजी दर्शन के लिए वतिकान से बुलावा आ सकता है।
किसी को भी पता नहीं चल सका कि यह मजाक था या नहीं। मार्गरीटो डुआर्ट ने ऐसा नहीं सोचा और सतर्क रहा। उसने घर नहीं छोड़ा। अगर उसे बाथरूम भी जाना होता तो वह सब को सुना कर कहता, "मैं बाथरूम जा रहा हूँ।" बेला मारिया बुढ़ापे में भी मजाकिया थी, वह मुक्त स्त्रियों की तरह खुल कर हँसती थी। "हमें मालूम है मार्गरीटो," वह जोर से कहती, "अगर पोप बुलाए तो।" अगले सप्ताह एक दिन भोर में मार्गरीटो करीब-करीब बेहोश हो गया, जब उसने दरवाजे के नीचे सरके अखबार की सुर्खी देखी : "पोप मर गया।" कुछ क्षण वह भ्रम में रहा कि हो-न-हो यह पुराना अखबार है, जो गलती से वितरित हो गया है। यह विश्वास करना कठिन था कि प्रति माह एक पोप मरेगा। लेकिन यह सत्य था : मुस्कुराने वाला एल्बीनों लुसीआनी जो मात्र तैंतीस दिन पूर्व चुना गया था, अपनी नींद में ही चल बसा।
पहली बार मार्गरीटो डुआर्ट से मिलने के बाईस वर्ष बाद मैं रोम लौटा था, शायद मैं उसके विषय में नहीं सोचता यदि हम अचानक एक-दूसरे से टकरा न जाते। मैं खराब मौसम से उतना हताश था कि किसी भी विषय पर सोच नहीं पा रहा था। वर्षा की एकसार झड़ी गरम सूप की भाँति लगातार गिर रही थी। दूसरे मौसम की हीरे जैसी चमकती रोशनी मटमैली हो गई थी। स्थान जो कभी मेरा था, मेरी स्मृति में था, अब अजनबी हो गया था। जहाँ छात्रावास था वह जगह अभी भी नहीं बदली थी। मगर कोई बेला मारिया के विषय में नहीं जानता था। वर्षों पहले गायक रिबेरो सिल्वा ने जो छ भिन्न-भिन्न अलग टेलीफोन नंबर मुझे भेजे थे उन पर कोई उत्तर नहीं मिले। फिल्म स्कूल के नए लोगों के साथ खाते समय मैंने अपने उस्ताद की स्मृति जगानी चाही पर एक क्षण के लिए टेबल पर चुप्पी छा गई जब किसी ने कहने की हिमाकत की, "जावाटीनी! कभी नाम नहीं सुना उसका।"
यह सत्य था। किसी ने उसके बारे में नहीं सुना था। विला बोर्गीज के पेड़ बारिश में अस्त-व्यस्त हो गए थे, सुंदर उदास रखैलों के गेलेपिओ को खर-पतवार ने ढक लिया था। पुरानी सुंदर लड़कियाँ बहुत पहले एथलीट की पुरुषों जैसी चमकीली ड्रेस में बदल गई थीं। लुप्तप्राय प्राणियों में केवल बूढ़ा शेर बचा था जो अपने सूखे पानी वाले टापू पर खुजली और नजले से परेशान था। पित्जा डि स्पैग्ना के प्लास्टिक ट्रेटोरियाज (होटल) में न तो कोई गाता था न ही कोई प्रेम में मरता था। क्योंकि हमारी स्मृति का रोम सीजर के रोम के भीतर एक और दूसरा पुराना रोम बन चुका था। ट्रास्टवेयरे की पतली गली में तभी किसी ने मुझे पुकार कर सर्द कर दिया था :
"हेल्लो, कवि!"
यह वह था, बूढ़ा और थका। चार पोप मर चुके थे।
शाश्वत नगर रोम पहली बार वृद्धावस्था की क्षीणता के लक्षण दिखा रहा था और वह अब भी प्रतीक्षा कर रहा था।
"मैंने इतने दिन इंतजार किया है, अब और अधिक समय नहीं लगेगा।" चार घंटे अतीत की याद में बिताने के बाद विदा होते समय उसने कहा। "यह सिर्फ कुछ महीनों की बात है।" कॉम्बैट बूट और पुरानी बदरंग कैप पहने वह सड़क के बीचोंबीच चहबच्चों को नजरअंदाज करता जहाँ रोशनी डूब रही थी, डगमगाता हुआ चला जा रहा था। अगर पहले जरा भी शक था भी तो अब मुझे कोई शक नहीं था कि संत तो असल में मार्गरीटो डुआर्ट था। बिना इस तथ्य को जाने वह अपनी बेटी के अक्षय शरीर के निमित्त अभी भी जीवित था। अपने ही कैनेनाइजेशन (वतिकान द्वारा संत घोषित किए जाने की प्रक्रिया) के वैध संघर्ष में बाईस साल लगा रहा। उसका संघर्ष अपनी बेटी के लिए नहीं, उसके अपने लिए ही था।