समूह की चोरी, समूह को दंड : बिहार की लोक-कथा

Samuh- Ki-Chori, Samuh Ko Dand : Lok-Katha (Bihar)

पुराने ज़माने की बात है। पहाड़ की तराई में एक गाँव था। उस गाँव पर सुदर्शन नामक राजा का शासन था। गाँव की ज़मीन काफ़ी उपजाऊ थी। गाँव के लोग अपने खेतों में मेहनत कर अच्छी फ़सल उगा लेते थे। माल-मवेशी पालकर दूध-दही का इंतज़ाम भी कर लेते थे। वैसे तो सब कुछ ठीक-ठाक था, लेकिन गाँव में एक ही चीज़ की कमी थी। गाँव से शहर जाने का कोई रास्ता नहीं था। गाँव के दो किनारों से नदी बहती थी और दोनों किनारे पर पर्वत दीवार की तरह खड़े थे।

गाँव और शहर को जोड़ने का कोई रास्ता न होने के कारण गाँव में पैदा हुई उपज गाँव में ही रह जाती थी और न ही शहर से इस गाँव तक आ पाती थी। राजा की बहुत इच्छा थी कि गाँव शहर से जुड़ जाए। इसके लिए नदी को पाटा तो नहीं जा सकता था, लेकिन पहाड़ को काटा जा सकता था। यही सोचकर राजा ने गाँव के लोगों को पहाड़ काटने के काम में लगा दिया। साथ-साथ यह भी ऐलान का दिया कि जो पहाड़ कटाई में कोताही बरतेगा, उसे दंड दिया जाएगा।

कुछ दिनों के बाद राजा पहाड़ कटाई के कार्य की प्रगति देखने आया। उसे यह देखकर घोर आश्चर्य हुआ कि यहाँ तो बिल्कुल नाममात्र की कटाई हुई है। पता करने पर उसने पाया कि उसके आदेश के अनुसार सारा गाँव कटाई के काम में जुट गया है। उसने पहाड़ कटाई के लिए औज़ार भिजवाए थे। सबको मेहनताना भी दिया था। फिर भी कटाई का काम जिस हिसाब से होना चाहिए था, नहीं हुआ।

राजा ने इसका कारण पता लगाने की कोशिश की। उसे पता चला कि भीड़ की आड़ में कोई मन से कटाई नहीं कर रहा है। सारे सोचते हैं कि मैं कटाई करूँ या न करूँ, इससे क्या फ़र्क़ पड़ता है, बाक़ी लोग तो कर ही रहे हैं। यही वजह है कि ऊपर से देखने पर ऐसा ही लगता है कि लोग कटाई के काम में लगे हैं, लेकिन अंदर से कटाई नहीं हो रही है।

अब राजा भीड़ की चोरी पकड़ने की फ़िराक़ में लग गया। उस गाँव में एक छोटा-सा तालाब था। गर्मी का दिन होने के कारण उसका पानी सूख गया था। राजा ने उस तालाब को साफ़ करवाया। इसके बाद उसने गाँव वालों को आदेश दिया कि अमावस की अँधेरी रात को प्रत्येक आदमी अपने-अपने घर से एक-एक बाल्टी दूध लाकर इस तालाब में डालेगा। राजा ने यह भी बताया कि ऐसा करने से गाँव में कभी विपत्ति नहीं आएगी और गाँव ख़ूब ख़ुशहाल हो जाएगा।

राजा के आदेश के अनुसार अमावस की रात सबकी बालटियाँ खटखटाने लगीं। सबने आदेश का पालन किया। लेकिन सुबह जब राजा तालाब के पास पहुँचे तो वहाँ का नज़ारा ही कुछ और था। राजा को यह सब देख बहुत आश्चर्य हुआ। तालाब में दूध की जगह पानी भरा था।

राजा को बहुत ग़ुस्सा आया। गाँव वालों को इकट्ठा किया और बोला, “अब सबकी चोरी पकड़ी गई है। मैं किसी को छोड़ूँगा नहीं। सबको दंड मिलेगा। लेकिन मैं दंड देने के पहले यह जानना चाहता हूँ कि सब लोगों ने एक साथ ऐसा काम क्यों किया?”

इस पर गाँव की एक बूढ़ी औरत ने हाथ जोड़कर सफ़ाई दी, “हुज़ूर, अँधेरी रात में सब लोगों ने यही सोचकर पानी डाला कि दूसरा आदमी दूध डालेगा ही, एक उसके पानी डालने से पता नहीं चलेगा।”

राजा ने कहा, “ऐसी ही चोरी से पहाड़ की कटाई भी नहीं हो रही है। समूह की चोरी, भीड़ की चोरी पकड़ ली गई है। सोच रहा हूँ कि आप लोगों को कौन-सा कठोर दंड दिया जाए।”

राजा की बात सुनकर गाँव का एक बूढ़ा व्यक्ति गाँव के लोगों की तरफ़ से विनती करने लगा, “इस बार माफ़ कर दीजिए, सरकार! सब अपनी-अपनी ग़लती स्वीकार कर रहे हैं।”

उस बूढ़े व्यक्ति की बात सुनकर राजा ने मन-ही-मन सोचा, फिर कहा, “ठीक है। लेकिन इसका परिणाम मुझे कल पहाड़ की कटाई में दिखना चाहिए। अब यदि कोई कामचोरी, कोताही करेगा तो उसकी ख़ैर नहीं। मैं पहाड़ की कटाई में ऐसा इंतज़ाम कर देता हूँ कि किसी की कामचोरी छुप नहीं पाएगी।”

राजा की चेतावनी रंग ला रही थी। उसे ऐसा कोई इंतज़ाम नहीं करना पड़ा। दूसरे दिन पहाड़ की कटाई ज़ोर-शोर से होने लगी। देखते ही देखते लोगों ने पहाड़ काट दिया और गाँव से शहर जाने का रास्ता बन गया।

(साभार : बिहार की लोककथाएँ, संपादक : रणविजय राव)

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