समझौता (कहानी) : डॉ. महिमा श्रीवास्तव

Samjhauta (Hindi Story) : Dr. Mahima Shrivastava

दिवस अवसान पर था। आकाश में रूई से बादल अटखेलियां कर रहे थे। मन्दिम सी, शीतल बयार में गीली माटी की सुगंध, आसपास कहीं वर्षा होने का संकेत दे रही थी।

छत पर टहलती मानसी ढलते सूर्य की सौम्य लालिमा को देख अपने उदास मन को हलका करने का प्रयास कर रही है।

कारवां सिस्टम पर उसका प्रिय फिल्मी गीत बज रहा है, "दिल लगा कर हम ये समझे, दिल लगी क्या चीज़ है..." वह सोच रही है कि भाग्य के विचित्र खेल कितने हैरान व परेशान करने वाले होते हैं।

मानसी को देख कोई नहीं कह सकता कि वह बत्तीस बसंत देख चुकी है। चंदन सा वर्ण, छरहरी काया और गोल मुख को घेरे सघन घुंघराले केश। हां हिरणी जैसे नैनों के नीचे कुछ श्यामल घेरे अवश्य हो गए हैं। तीव्र बुद्धि की ऐसी स्वामिनी कि सदैव स्कूल के जमाने में हर कक्षा में प्रथम स्थान पर रही। स्वभाव से सब उसे गऊ कहते थे। क्रोध करना तो जानती ही ना थी। अड़ोस- पड़ोस की वृद्धाओं की विशेष लाड़ली हुआ करती थी।

दस वर्ष पूर्व उसका ब्याह पक्का हुआ था। किन्तु लेन-देन को ले दोनों परिवारों में कहासुनी हो गई। मानसी के दुर्वासा पिता फिर उस चौखट पर नाक रगड़ने कभी ना गये। मानसी सी.ए.कर अपने कार्य में व्यस्त हो गई। मां पहिले ही नहीं थीं, पिता भी गुजर गये। भाई- बहिन कोई थे नहीं।

दस वर्ष में ही समय बहुत परिवर्तित हो गया। सोशल मीडिया ने अनेकों का अकेलापन समाप्त कर दिया। एक दिन फेसबुक पर , अपने कॉलेज के सुदर्शन व कवि सहपाठी की रिक्वेस्ट देख मानसी का दिल धड़का। दोनों में फिर बातचीत का सिलसिला चल निकला। दोनों आशुकवि थे। कविता , शेरों- शायरी में प्रश्न- उत्तर करते। बचपन से लेकर अभी तक की कई घटनायें दोनों ने हंसते- हंसते साझा कीं। 'टाइम मशीन ' में बैठ मानों दोनों किशोरावस्था में पहुंच गए।

इतने वर्षों बाद पता चला कि उनका स्वभाव कितना मेल खाता था। उदय मानो मानसी के लिए उल्लास का उदय सिद्ध हुआ। उसने सूनी आंखों को काजल से रेखांकित करना प्रारंभ कर दिया। नाजुक गोरी कलाई में सोने का ब्रेसलेट सुशोभित हो गया। कलम फिर से मुखर हुई। स्वास्थ्य की लालिमा से गाल फिर रक्तिम आभा से दमक उठे।

उदय अपने सधे स्वर में गाये कई गीत -गज़लें भेजता जिन्हें वह सुरक्षित कर लेती अपनी पेन- ड्राइव में। उसका अपनापन व स्नेहसिक्त व्यवहार दिल को छू जाने वाला था। उसकी प्रेम की खुशबू से तर आवाज़ फोन पर सुन मानसी की दिन भर की थकान उतर जाती। 'मन्नू', जो उसका प्यार व लाड़ का नाम था, इस नाम से पुकार उदय उसे रूमानी संसार में ले जाता। मानसी की प्रशंसा में अनेक कविताओं का सृजन किया उसने। समय व दूरी की बाधा जैसे रह ही नहीं गई थी। उदय दूरस्थ शहर में एक उच्च प्रशासनिक पद पर स्थापित था व साथ ही विवाहित भी। यह जानते हुए भी मानसी उससे प्रभावित हुए बिना ना रह पाई। बरसों पहले का सुसुप्त आकर्षण जाग चुका था।

उदय उसे अपनी पिछली चाहतों के विषय में इंगित करता। वह मजाक में उससे पूछती कि" क्या तुम फ्लर्ट हो?" , जिसका उत्तर मजाकिया ही मिलता। उसे लगता कि उस जैसी समर्पित श्रद्धा उदय को कोई अन्य नहीं दे सकता। उस जैसा पावन निस्वार्थ नेह क्या कोई दे सकता है ? उसे पता नहीं था कि वह आत्मघाती पथ पर अग्रसर है।

अंततः दोनों को आमने- सामने मिलने का मात्र एक संक्षिप्त अवसर प्राप्त हुआ। जाते जाते उदय एक मधुर अधर स्पर्श उपहार स्वरूप दे गया। मुलाकात के बाद तो दोनों का मोह जैसे और भी बढ़ गया।

पर कहते हैं ना कि जिन्दगी प्यार की दो- चार घङी होती है। एकाएक उदय ने व्हॉट्स एप पर वार्तालाप समाप्त कर दिया। उसके संदेशों का कोई उत्तर नहीं आ रहा था। सारी मनुहारें जैसे पत्थर से टकरा कर रह जा रहीं थीं।

बीच बीच में वह ब्लॉक भी करने लगा। जो व्यक्ति उसकी मधुर वाणी की प्रशंसा करते नहीं थकता था अब उसकी कॉल भी काट देता। भावुक मानसी को गहरा सदमा लगा। उसने कभी शालीनता की सीमा पार ना की थी। इस जमाने में दूर रहकर, मीरा की भांति आराधना करनी चाही थी। कभी एक पैसे का उपहार नहीं लिया किन्तु अपने कोमल ह्रदय की समस्त भावनायें भेंट की थी। हां, एक मानसिक अवलम्ब उसको अवश्य प्राप्त हुआ था जिसने अवसाद व एकाकीपन को हरा था।

उदय ने जन्मदिन की बधाई का भी एक औपचारिक सा उत्तर दिया । लगभग अपरिचित सा व्यवहार करने लगा। मानसी उसके ब्रेक अप के फार्मूले पर हैरान थी। उसने बहुत बड़ी ठोकर खाई थी। कई बार इच्छा होती कि पूछे कि वह कौन से नंबर की' एक्स' है ? पर हिम्मत ना होती।

छः- आठ महीने तक वह खूब रोई। उसका व्यक्तित्व निस्तेज होने लगा। बहुत प्रयत्न करने पर भी वह उसे दिल से निकाल पाने में असमर्थ रही । अब उसे समझ आ गया कि उसे पूरी उम्र एक दर्द के साथ ही जीना होगा।

क्या कोई इतना बढ़िया अभिनय कर सकता है , यह उसका ह्रदय मानने को तैयार नहीं था। वह कोई किशोरी तो ना थी। इस उम्र तक आते आते आदमी की पहचान तो होने लगती ही है। इसके पहिले वह कुछ साथी लोगों के प्रेम प्रस्ताव भी ठुकरा चुकी थी। किसी में उसे रूचि अनुभव नहीं हुई थी। किसी तरह भी वह उदय को बुरा व्यक्ति मान लेने में असमर्थ रही। काश उदय ने उसे समझा बुझा कर ब्रेक अप किया होता। एकदम खुदगर्ज होने से क्या उसकी अन्तरात्मा उसे ना धिक्कारती होगी ?

या फिर उसे प्रेम प्रसंगों में पड़ने व निकलने का अभ्यास था। पत्नी का भय होता तो डेढ़ वर्ष तक बिना रूकावट कैसे बतियाता? मानसी के लिए वह एक दुरूह अनबूझ पहेली था।

मानसी कमजोर होकर भी कमजोर ना थी। बाल्यावस्था से ही संघर्ष की आदी थी।अनेक वर्षों की तपस्या के बाद वह कैरियर में भी सफल हो पाई थी। पुनः अवसाद हावी हो , इससे पहिले ही वह तत्परता से मेट्रीमोनियल कॉलम खंगालने लगी।

हालांकि उसे पता था कि विद्वान ,तीव्र बुद्धि वाला ,उदय जैसा दिल को मोह लेने वाला, उसको समझने वाला, उसके लिए कवितायें रचने वाला, लोरी जैसे गीत सुनाने वाला, इस जन्म में ,उसे दूसरा ना मिलेगा। किन्तु जीवन समझौते का ही तो दूसरा नाम है यह परमज्ञान उसे प्राप्त हो चुका था।

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