Sajha : Asghar Wajahat
साझा : असग़र वजाहत
हालांकि उसे खेती की हर बारीकी के बारे में मालूम था, लेकिन फिर भी डरा दिये जाने के कारण वह अकेला खेती करने का साहस न जुटा पाता था।
इससे पहले वह शेर, चीते और मगरमच्छ के साथ साझे की खेती कर चुका था, जब उससे हाथी ने कहा कि अब वह उसके साथ साझे की खेती करे। किसान ने उसको बताया कि साझे में उसका कभी गुजारा नहीं होता और अकेले वह खेती कर नहीं सकता। इसलिए वह खेती करेगा ही नहीं। हाथी ने उसे बहुत देर तक पट्टी पढ़ाई और यह भी कहा कि उसके हाथ साझे की खेती करने से यह लाभ होगा कि जंगल के छोटे-मोटे जानवर खेतों को नुकसान नहीं पहुंचा सकेंगे और खेती की अच्छी रखवाली हो जाएगी।
किसान किसी न किसी तरह तैयार हो गया और उसने हाथी से मिलकर गन्ना बोया।
हाथी पूरे जंगल में घूमकर डुग्गी पीट आया कि गन्ने में इसका साझा है। इसलिए कोई जानवर खेत को नुकशान न पहुंचाये नहीं तो अच्छा न होगा।
किसान फसल की सेवा करता रहा और समय पर जब गन्ने तैयार हो गये तो वह हाथी को खेत पर बुला लाया। किसान चाहता था कि फसल आधी-आधी बांट ली जाये। जब उसने हाथी से यह बात कही तो हाथी काफी बिगड़ा।
हाथी ने कहा, ‘‘अपने और पराये की बात मत करो। यह छोटी बात है। हम दोनों ने मिलकर मेहनत की थी हम दोनों उसके स्वामी हैं। आओ, हम मिलकर गन्ने खायें।’’
किसान के कुछ कहने से पहले ही हाथी ने बढ़कर अपनी सूंड़ से एक गन्ना तोड़ लिया और आदमी से कहा, ‘‘आओ खायें।’’
गन्ने का एक छोर हाथी की सूड़ में था और दूसरा आदमी में मुंह में। गन्ने के साथ-साथ आदमी हाथी के मुंह की तरफ खिंचने लगा तो उसने गन्ना छोड़ दिया।
हाथी ने कहा, ‘‘देखों, हमने एक गन्ना खा लिया।’’
इसी तरह हाथी और आदमी के बीच साझे की खेती बंट गयी।