सादी का अंतिम वसंत (आर्मेनियाई कहानी) : अवेतिक ईसाहकियान

Saadi Ka Antim Vasant (Armenian Story in Hindi) : Avetik Isahakyan

वसंत आ गया था ।

यह उन वसंतों में से एक था जो धरती का रूप बदल देते हैं । खुशियों और ग़म के शायर सादी ने ऐसे सौ वसंत देखे थे । उस सुबह सादी जल्दी ही उठ गए थे । वह रोनाबाद नदी के किनारे फूलों से भरी वाटिका की ओर गए, जहां वह एक बार फिर बुलबुल का संगीत सुन सकें और वसंत का चमत्कार फिर से देख सकें । उन्होंने शीराज के खेत की ओर देखा । वह प्रकृति की अनुपम भेंट गुलाब के फूलों से सजा संवरा था और सुबह की गहरी नींद में डूबा हुआ था । उसे चारों ओर से सफेद खुशबूदार कुहरे की चादर ने ढक रखा था ।

फूलों से लदे चमेली के पेड़ के नीचे हरी घास के सुन्दर कालीन पर सादी बैठ गए। उन्होंने हरी पत्तियों और लाल रंग की पंखुड़ियों वाला गुलाब का फूल अपने थरथराते हाथों में रख लिया । उसे कुछ देर तक बड़ी हसरत से देखते रहे, फिर बहुत आहिस्ता-आहिस्ता उससे कुछ कह उठे -' जैसे कोई नौजवान शहजादी, अपने महबूब के आग़ोश में मुस्कराती है । ठीक वैसे ही गुलाब की ये कलियां सुबह के महकने समीर को अपने ओठों का स्पर्श देती हैं ।'

हालांकि सादी अब बहुत बूढ़े हो चुके थे लेकिन उनकी आत्मा अभी भी उनकी अधखुली आंखों और कानों से इस दुनिया की आश्चर्यजनक घटनाएं और दृश्यों तथा अनजानी दूरियों के गीत और खामोशियां - देख-सुन सकती थीं । कविता की सम्मोहक आत्मा - जमरुन्त चिड़ियां, जिसका घोंसला सितारों के देश में कोहेफाक की चोटी पर बना है, अभी भी उनसे बातें करती थीं ।

चमकती आंखों और भूरे पंखों वाली बुलबुलें वहां चहकने लगी थीं । वे प्यार की आग से जलती हुई अपनी मोहक रुबाइयां गा रही थीं और उनके यही गीत सादी के हृदय में गूंज रहे थे ।

चुंबन करते हुए समीर की निर्मल सांसों ने दूर के आशिक गुलाबों की शुभ कामनाएं लाकर दीं और सादी के दिल ने मोहब्बत के इस इज़हार को समझ लिया। उन्हें याद आ गए वे शब्द जो उन्होंने बहुत बरस पहले कहे थे - एक प्यार भरा दिल ही प्रकृति के शब्दों के अर्थ सदैव समझ सकता है । यह दुनिया प्यार और मिलन की भावना से भरी हुई है । इसकी आशिकाना खुशबू शाश्वत है ।'

बुलबुल के गीत और लाल गुलाबों की सुंदरता से उन्मत्त सादी ने उस सम्मोहक खुशबू में सांस ली और उसकी मादकता में डूबकर आंखें बंद कर लीं। फिर उन्हें लगा जैसे सपने में इस दुनिया का प्रतिबिंब उनके हृदय पर उभर आया हो ।

उन्होंने कमल के पवित्र फूलों से सजे भारत के तालाब देखे । उन्होंने बुद्धि- मान हाथियों को जंगल की झाड़ियों में विचारमग्न देखा और दिल्ली के सुनहरे महलों में सुन्दर शहजादियों को अपने भूरे-काले बालों में किरमिजी फूलों की लगाए देखा ।

उन्होंने तुरान के तूफानी मैदान देखे और देखे भयानक दैत्य जो जलती हुई तलवारें लिए तूफान के पंखों के सहारे आकाश में उड़ रहे थे ।

उन्होंने सूरज की गर्मी से जलता हुआ रेगिस्तान भी देखा, साथ ही अपने ऊपर मंडराने वाली चीलों की तेज नजरों से बचकर तेजी से भागने वाले चिकोरों का पीछा करते हुए बद्दुओं को देखा ।

उन्होंने प्राचीन मिस्र के मशहूर आश्चर्य भी देखे । साथ ही विशाल समुद्र के नीले रत्न और दमिश्क की मखमल जैसी कोमल शहजादियों के झिलमिलाते बदन भी देखे । उनकी लचीली प्यार भरी बाहों ने, युवा सादी के गले में हार बनकर उन्हें आलिंगन में भर लिया ।

सादी ने ठंडी सांस ली और अपनी आंखें खोल दीं। 'आह ! मेरे सौ साल एक सुखद सपने की तरह गुजर गए, जैसे सब कुछ किसी रात की झलक रही हो । ये तमाम साल एक लमहे की तरह गुजर गए, क्योंकि परी कथाएं, बुलबुलें गुलाब के फूल और गुलाब की बहनें, स्वर्गिक सुख से भरी हुई शहजादियां ये सब जो मेरे साथ थे ।'

फिर सूरज के उगते ही उस स्वर्गिक वाटिका के फूल, पत्तियां, पत्थर और चट्टानें अनोखी चमक से भर गए, क्योंकि रात ने उन सब पर ओस के हीरे जो बिखरा दिए थे । उस समय का नीला आकाश, सुनहली सुबह में चिड़ियों का चहकना - यह सब सादी ने बहुत गहराई से देखा । वे सब उनके लिए आश्चर्यजनक और अनोखे थे । 'सचमुच, यह दुनिया एक चमत्कार है, एक अनोखी परीकथा है । यह शाश्वत रूप से मोहक और सुन्दर है ।'

'मैं हर रोज इस दुनिया को देखता हूं और मैं हर रोज इसकी मोहक नवीनता को देखकर हतप्रभ रह जाता हूं, लगता है जैसे यह सब कुछ पहली बार देख रहा हूं। यह दुनिया कितनी जानी पहचानी है, फिर भी कितनी विस्मयकारी है, पुरानी होकर भी कितनी नयी है। इसकी नवीनता कितनी शाश्वत है । इसका सौन्दर्य कितना अकथनीय है, यह स्वयं ही अपनी उपमा है ।'

सादी ने एक बार फिर दुनिया को निहारा, प्रकृति के विविध रूपों और तिलस्मी खेल को निहारा, और तब उन्होंने दो फाख्ता देखे जो अपने मूंगिया पैरों से ही घास पर चलते हुए आपस में चोंच मिला रहे थे। उन्हें देखकर एक बार फिर सादी बोल उठे-

यह दुनिया कितनी मोहक है। जैसे यह किसी अदृश्य जादूगरनी की तिलस्मी घड़ी के आकर्षण से बंधकर सुंदर परीकथा बन गयी हो ।

'यह दुनिया बड़ी तेजी से भागती है, गिरती है और फिर बदल जाती है, लेकिन वह क्या है जो इस सम्मोहक दुनिया को फिर से जन्म देता है, उसे फिर से बनाता है और हमारे सामने एक चमत्कारी परीकथा के रूप में प्रस्तुत कर देता है ? वह कौन है जो चिकोरा की प्यार भरी उमंग को निराशा में बदल देता है, उसे नुकीली चट्टानों पर चढ़ाता है और फिर पत्थर पर अपना सिर पटक-पटक कर अपने सींग तोड़ डालने के लिए मजबूर कर देता है ।

'वह क्या है जो गुलाब की मणि की पत्तों को खोल कर, ऐसी मोहक सुगंध बिखराने के लिए विवश कर देता है ?

'वह क्या है जो मनुष्य को अज्ञात से ज्ञात की ओर ले जाता है और उसे हाड़-मांस की देह प्राप्त कर सोचने, पीड़ाओं को अनुभव करने और अपनी झुलसती हुई आकांक्षाओं की आंच महसूस कर कभी न मरने की चाहना लेकर जीने को मजबूर करता है ?

'वह प्यार है, प्यार ! तुम जो अजेय शक्ति हो, तुम ऐसे प्यारे कातिल हो जिसे मैं बहुत दिनों से जानता हूं और फिर भी मैं कभी तुम्हारी गहराई और तुम्हारे रहस्य को पूरी तरह नहीं समझ सका ।'

सादी की अंतरात्मा ने उन्हें बता दिया था कि यह उनका अन्तिम वसंत है। हां, उनका अन्तिम वसंत ।

तभी उपवन के द्वार खुले ।

महकते समीर को अपने सफेद मरमरी जिस्म का चुंबन देती हुई शीराज की नजियत ने प्रवेश किया । वह सादी की प्रेमिका थी और उनके पास अक्सर आती थी । उसके होंठ मदिरा जैसे मादक थे । उसकी निर्वस्त्र बाहों की सफेदी और गरमाहट ने तो इस शतवर्षीय कवि की अनेक उनींदी रातों को सम्मोहक बनाया था । सादी ने उसे अपने युवा हृदय की शाश्वत सचाई से प्यार किया था और अपने अमर काव्य 'गुलिस्तां' में स्वर्णाक्षरों से अंकित कर दिया था ।

नजियत उनके करीब आयी । उसकी बांहें गुलाब के फूलों से भरी हुई थीं । उसने सादी का स्वागत किया और स्वयं एक महकते गुलाब की तरह उनके सामने खड़ी हो गई ।

कवि उस समय उदास था । उसकी उदासी, उसके पीले होंठों पर उभर आयी थी । 'दुनिया के तमाम इन्सानों में सबसे ज्यादा खुशनसीब, ऐ कवि ! तुम्हें किस बात का ग़म है ?"

सादी खामोश रहे ।

'मैं तुम्हारी उदासी को भी प्यार करती हूं सादी । तुम्हारा तो गम भी मोहक है । क्या तुम्हारे पवित्र होंठों ने नहीं कहा है कि मोती तो घावों से जन्म लेते हैं और लोबान की खुशबू तभी फैलती है जब वह जलता है ।'

सादी ने एक फीकी मुस्कान के साथ उसकी ओर देखा ।

'देखो, मैं तुम्हारे लिए गुलाब के फूल लायी हूं। अपने बाग के मखमली गुलाब ।'

फिर उसने सादी पर गुलाबों की वर्षा कर दी और अपनी सुन्दर उंगलियों से उनके उदास चेहरे को आहिस्ता से छुआ ।

'ऐ पवित्र शहजादी, तुमने जो गुलाब के फूल मुझे दिए हैं, वे दुनिया के सबसे खूबसूरत गुलाब हैं, जो कभी नहीं मुर्झाते ।'

'हां, सादी, तुमने ही तो कहा था - गुलाब की खुशबुओं में सांस लेने वाले को भला यह क्यों सोचना चाहिए कि उसकी जिन्दगी छोटी है। उस खुशबू को एक बार अपनी यादों में बसा लो, तो फिर वह खत्म होकर भी कभी नहीं मिटती ।' नजियत ने अपनी सुरीली आवाज में कहा । फिर नजियत उसके पास बैठ गयी और अपनी स्वप्निल जुल्फें सादी के चेहरे पर फैला दीं। वह सादी के बिल्कुल करीब थी । सादी ने जैसे ही नजियत की स्वप्निल जुल्फों को अपने हाथों से छुआ कि तभी उस बाग में खुशनुमा हवा का एक झौंका आया और वहां इन्द्र- धनुषी आभा बिखर गयी। ये दरअसल जमरुख्त पक्षी के सम्मोहक पंख थे, जिनकी आभा फैल गयी थी ।

तब सादी ने अपने चारों ओर फैले हुए खूबसूरत परिस्तान को अपनी आत्मा की गहराई से, जी भर कर निहारा । फिर उस सुंदर शहजादी की मोहक मुस्कान को देखा और तभी उनकी आंख से गिरे गर्म आंसू की बूँद ने उनके बूढ़े दिल को जला दिया। उन्होंने उस शहजादी का सुंदर हाथ लेकर चूमा और फिर अपने धड़कते दिल पर रखकर हल्के से दबा लिया ।

'अपने इस सुन्दर हाथ से मेरे 'गुलिस्तां' के आखिरी पन्ने पर लिख दो- 'हम अपनी इच्छा से जन्म नहीं लेते, हम तो इस अचरज लोक में सिर्फ रहते हैं और अपनी ही वेदना में खत्म हो जाते हैं ।'

(अनुवाद : विभा देवसरे)

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