रोहिड़ा : राजस्थानी लोक-कथा
Rohida : Lok-Katha (Rajasthan)
(रोहिड़ा राजस्थान का राज्य पृष्प है)
कहते हैं कि राजस्थान में पहले बड़ी हरियाली थी। हरे-भरे ऊँचे-ऊँचे फलदायक
वृक्ष थे, कल-कल करती हुई नदियाँ थीं, प्रकृति का अनुपम आनन्द देनेवाले झरने थे,
झीलें थीं, तालाब थे। यहाँ बड़े-बड़े घास के मैदान थे और जंगल भी थे, जिनमें बाघ,
तेंदुआ, भालू, बन्दर और तरह-तरह के हिरन विचरण करते थे। यहाँ कहीं भी दूर-दूर
तक रेगिस्तान का नामो-निशान नहीं था, लेकिन एक दुष्ट राजकुमार के कारण हरा-भरा
राजस्थान शुष्क, रेतीले रेगिस्तान में बदल गया।
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राजकुमारी के बेटे को सभी बहुत प्यार करते थे। राजा के साथ ही महामन्त्री,
सेनापति, राजपुरोहित आदि राज्य के सभी कर्मचारी राजकुमारी के बेटे को बहुत चाहते
थे और उसके लिए तरह-तरह के उपहार लाते थे, किन्तु राजकुमार को अपने बेटे में
कोई रुचि नहीं थी। वह कई-कई महीनों तक अपने बेटे की शक्ल भी नहीं देखता था।
धीरे-धीरे पाँच वर्ष बीत गए। राजकुमारी का बेटा अब बड़ा हो गया था। वह अभी
महल की सीमा के बाहर तो नहीं जाता था, लेकिन किसी सेवक के साथ या अकेले
ही दादा-दादी के पास पहुँच जाता था और दिन भर वहीं खेलता रहता था। राजा अपने
पोते को बहुत प्रेम करता था। दादी के मन में भी पोते के लिए प्यार कम नहीं था।
राजा जब कभी भी राज-काज में व्यस्त हो जाता तो दादी-पोता साथ-साथ रहते थे।
दादी अपने पोते को देव-दानव, ऋषियों-मुनियों और परियों तथा जल परियों की रोचक
कहानियाँ भी सुनाती थीं। दादी के कहानियाँ न सुनाने पर पोता जिद करता और कहानी
सुनने के बाद ही अपनी माँ के पास लौटता। कभी-कभी तो वह कहानी के लालच में
दादी के पास ही रह जाता था और वहीं सो जाता था। ऐसे में राजकुमारी के लिए अकेले
रात काटना कठिन हो जाता था।
राजकुमारी के लिए उसका बेटा की सब कुछ था। वह देवी माँ की भक्त थी और
देवी से हमेशा अपने बेटे की खुशहाली के लिए प्रार्थना करती रहती थी। वह नियम से देवी
माँ की पूजा-आराधना करती और वर्ष में दो बार नवदुर्गा के अवसर पर निर्जला व्रत रखती
थी। राजकुमारी को देवी माँ पर बहुत विश्वास था। उसे लगता था कि जो कुछ हो रहा
है, वह देवी माँ की इच्छा से हो रहा है और आगे चलकर देवी माँ ही सब ठीक करेगी।
धीरे-धीरे बारह वर्ष हो गए।
राजकुमारी का बेटा अब किशोर हो गया था। वह बहुत बुद्धिमान और होनहार था
तथा राज-काज में हाथ बँटाने लगा था। राजा और राज्य के कर्मचारी, महामन्त्री, सेनापति,
राजपुरोहित आदि उससे बहुत प्रसन्न रहते थे तथा उसके बुद्धिमानीपूर्ण कार्यों का लोहा
मानते थे। राजकुमारी का बेटा अपनी छोटी-सी आयु में राज्य की जटिल-से-जटिल
समस्याओं को बड़ी सरलता से हल कर देता था। राजा अपने पोते के बुद्धि कौशल को
देखता तो उसका सीना गर्व से चौड़ा हो जाता।
एक दिन राजा ने राज्य के सभी महत्त्वपूर्ण कर्मचारियों की गोपनीय बैठक बुलाई।
इस बैठक में राज्य के महामन्त्री, सेनापति, राजपुरोहित, राज-ज्योतिषी, राजवैद्य तथा
राज्य के अन्य विश्वासपात्र और राजभक्त लोग भी थे। किन्तु इसमें राजकुमार को नहीं
बुलाया गया।
राजा ने गोपनीय बैठक में राज्य के सभी प्रमुख व्यक्तियों के आ जाने के बाद राज्य
के उत्तराधिकारी की बात की। यह एक महत्त्वपूर्ण विषय था, अतः सभी लोग गम्भीर
हो गए और उनमें आपस में विचार-विमर्श आरम्भ हो गया। राजकुमार की स्थिति से
सभी लोग परिचित थे। अतः उसे कोई भी व्यक्ति राजा बनाने के पक्ष में नहीं था, किन्तु
राजकुमार होने के कारण कोई भी उसका खुलकर विरोध नहीं कर पा रहा था।
राज्य के सभी प्रमुख लोग राज्य के उत्तराधिकारी के सम्बन्ध में आपस में चर्चा
कर रहे थे। इसी मध्य राजा ने अपना मत व्यक्त किया कि वह राजकुमार को राज्य
का उत्तराधिकारी नहीं बनाना चाहते। राजा अपनी बात कहने के बाद चुप हो गया।
गोपनीय बैठक में सम्मिलित सभी लोगों को राजा के मत से बल मिला और वे भी
एक-एक करके राजा के मत का समर्थन करने लगे। शीघ्र ही यह स्पष्ट हो गया कि
राज्य का कोई भी प्रमुख और महत्त्वपूर्ण व्यक्ति राजकुमार को राज्य का उत्तराधिकारी
नहीं बनाना चाहता।
अब प्रश्न यह था कि उत्तराधिकारी किसे बनाया जाए?
इस पर सभी एक ही बात कहना चाहते थे, पर वे मौन थे। इस मौन को महामन्त्री
ने तोड़ा और अपना सुझाव दिया कि राजकुमारी के बेटे को राज्य का उत्तराधिकारी
घोषित किया जाए। महामन्त्री की बात का सभी ने समर्थन किया, किन्तु राज-ज्योतिषी
मौन रहा।
राज-ज्योतिषी बहुत गहरे सोच में डूबा हुआ था। राजा द्वारा राज्य के उत्तराधिकारी
के सम्बन्ध में पूछने पर राज-ज्योतिषी ने बताया कि ज्योतिष के अनुसार राजकुमारी
के बेटे को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित करने से महाविनाश अवश्यम्भावी है। अतः
इस पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता है।
राजा और राज्य के अन्य सभी महत्त्वपूर्ण लोगों को राज-ज्योतिषी की यह बात
बहुत बुरी लगी। उन्हें लगा कि राज-ज्योतिषी दुष्ट राजकुमार का साथी है और उसे
राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कराने के लिए इस प्रकार की बात कर रहा है। राजा
ने धैर्य से काम लिया और ज्योतिष के अनुसार पूरी स्थिति साफ-साफ बताने के लिए
कहा।
राज-ज्योतिषी अपने साथियों के विरोध के कारण बहुत डर गया था। उसने
डरते-डरते बताया कि राजकुमारी के बेटे के भाग्य में राजयोग नहीं हैं। इसके साथ ही
ग्रहों की स्थिति ऐसी है कि राजकुमारी के बेटे को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित करते
ही महाविनाश आरम्भ हो जाएगा। इससे राजपरिवार के सदस्यों के साथ ही राज्य का
भी अन्त हो जाएगा।
राज-ज्योतिषी के ज्योतिष पर किसी ने विश्वास नहीं किया और राजा ने भी उसकी
बात पर अधिक ध्यान दिए बिना राजकुमारी के बेटे को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित
करने का निर्णय ले लिया। राजा के निर्णय के बाद गुप्त बैठक में सम्मिलित सभी
महत्त्वपूर्ण लोगों ने यह तय किया कि अगले दिन ही विधिवत राज्य के उत्तराधिकारी
की घोषणा कर दी जाए।
इस निर्णय के बाद गुप्त बैठक समाप्त हो गई और सभी महत्त्वपूर्ण लोग
अपने-अपने घर चले गए।
राजा और राज्य के महत्त्वपूर्ण व्यक्ति राज ज्योतिषी पर शक कर रहे थे कि वह
राजकुमार से मिला हुआ है। वास्तव में ऐसा नहीं था। राज्य का सेनापति राजकुमार
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राजकुमार और सेनापति ने तुरन्त अपने घोड़े मोड़े और जंगल की ओर भागे।
इसी समय एक करिश्मा आरम्भ हो गया। अचानक रेत के गुबार उठने लगे और
तेज हवाएँ चलने लगीं। राजकुमार और सेनापति तेजी से अपने-अपने घोड़ों पर सवार
होकर भाग रहे थे। लेकिन वे जिधर जाते धरती रेत से भर जाती। राजकुमार और
सेनापति सुबह तक भागते रहे।
अचानक प्रातःकाल रेत का एक बहुत बड़ा तूफान उठा और राजकुमार एवं
सेनापति की ओर बढ़ा। दोनों दुष्टों ने इस तूफान से बचने के लिए बहुत कोशिश की,
लेकिन बच नहीं सके। देखते ही देखते रेत का तूफान एक टीले में बदल गया और दोनों
दुष्ट इसी के नीचे दबकर मर गए।
कहते हैं कि राजपुरोहित की प्रार्थना पर माँ दुर्गा शान्त हुईं, लेकिन तब तक धरती
का बहुत बड़ा भाग रेगिस्तान बन चुका था। यहाँ न पानी था न जंगल। न जीव-जन्तु
थे न पक्षी।
राजपुरोहित ने माँ दुर्गा से पुनः प्रार्थना की। माँ दुर्गा का क्रोध अब शान्त हो
चुका था। उन्होंने राजपुरोहित की प्रार्थना से खुश होकर रोहिड़ा और खेजड़ी जैसे
वृक्ष दिए। इससे रेगिस्तान की बंजर हो चुकी धरती पर एक बार फिर जीवन आरम्भ
हुआ।
(डॉ. परशुराम शुक्ल की पुस्तक 'भारत का राष्ट्रीय
पुष्प और राज्यों के राज्य पुष्प' से साभार)